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लोलिम्बराज

सूची लोलिम्बराज

लोलिंबराज दक्षिण के हरिहर नामक नरेश की सभा के प्रतिष्ठित कवि एवं विद्वान् थे। आयुर्वेद, गांधर्ववेद, तथा काव्यकला में इन्हें विशिष्ट नैपुण्य प्राप्त हुआ। ये धारा के प्रसिद्ध परमारवंशी नरेश भोज के समकालिक थे। भोज के समकालिक होने के कारण लोलिंबराज का भी समय ईसा की एकादश शताब्दी निश्चित रूप से कहा जा सकता है। इनके पिता का नाम दिवाकर सूनु था। लोलिंबराज के अग्रज नि:संतान थे। उन्होंने इनका पुत्रवत् लालन पालन किया। फलत: यौवनागम तक ये निरक्षर ही रहे। आवारों की भाँति दिन भर इधर उधर घूमते रहते, केवल भोजनवेला में घर पर आते। एक बार जब बड़े भाई वृत्ति उपार्जन के लिए परदेश गए हुए थे, इन्होंने अपनी भाभी के हाथ से झपटकर भोजनपात्र छीन लिया। पतिवियोग से संतप्त भाभी ने लोलिम्ब की इस अविनयपूर्ण अशिष्टता से क्रुद्ध होकर इन्हें दुत्कारा, जिससे लोलिंब के हृदय पर गहरा धक्का लगा। तुरंत सभी विषयों से विमुख हो इन्होंने 'सप्तशृंग' नामक पर्वत पर विराजमान अष्टादश भुजाओंवाली भगवती महिषासुरमर्दिनी, की पूर्ण विश्वास के साथ सेवा की, और स्वल्प समय में ही जगदंबा की प्रसन्नता का वर प्राप्त कर लिया। फलत: एक घड़ी में सौ उत्तम श्लोकों की रचना की सामर्थ्य प्राप्त कर ली। इसका उल्लेख उन्होंने स्वयं इस प्रकार किया है: इनकी अनुपम काव्यप्रतिभा से पूर्ण दो वैद्यक ग्रंथ मिलते हैं, 'वैद्यजीवन' तथा 'वैद्यावतंस' और पाँच सर्गों का एक अतिशय मधुर काव्य 'हरिविलास', जिसमें श्रीकृष्णभगवान् की नंदगृह में स्थिति से कंसवध तक की लीला का वर्णन हुआ है। इस काव्य की रचना लोलिंब ने अपने आश्रयदाता श्री सूर्यपुत्र हरि (या हरिहर) नरेश के अनुरोध से की थी- काव्यकला की दृष्टि से इस काव्य में कोई वैशिष्ट्य नहीं प्रतीत होता है। रीति वैदर्भी तथा कहीं-कहीं यमक एवं अनुप्रास की छटा अवश्य देखने को मिलती है। पूर्ववर्ती कवियों में कालिदास तथा भारवि का प्रभाव अत्यधिक प्रतीत होता है। उदाहरणार्थ, रघुवंश के प्रसिद्ध श्लोक 'कुसुमजन्म ततो नवपल्लवास्तदनु षट्पदकोकिलकूजितम्' की छाया इन पंक्तियों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है-'पुष्पाणि प्रथमं तत: प्रकटिता, स्वान्तोत्सवा:पल्लवा:। पश्चादुन्मदकोकिलालिललना कोलाहला: कोमला' आदि। कहीं कहीं कुछ अपाणिनीय प्रयोग भी मिलते हैं, जैसे- 'प्रिय इति पतिनोक्ता सा सुखाब्धौ ममज्ज (ह.

सामग्री की तालिका

  1. 4 संबंधों: संस्कृत ग्रन्थों की सूची, संस्कृत कवियों की सूची, आयुर्वेद का इतिहास, कुंदुरी

संस्कृत ग्रन्थों की सूची

निम्नलिखित सूची अंग्रेजी (रोमन) से मशीनी लिप्यन्तरण द्वारा तैयार की गयी है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं। विद्वान कृपया इन्हें ठीक करने का कष्ट करे। .

देखें लोलिम्बराज और संस्कृत ग्रन्थों की सूची

संस्कृत कवियों की सूची

यह संस्कृत भाषा के कवियों की सूची हैं। .

देखें लोलिम्बराज और संस्कृत कवियों की सूची

आयुर्वेद का इतिहास

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संचार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है। विभिन्न विद्वानों ने इसका रचना काल ईसा के ३,००० से ५०,००० वर्ष पूर्व तक का माना है। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है। अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व ३,००० से ५०,००० वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक। .

देखें लोलिम्बराज और आयुर्वेद का इतिहास

कुंदुरी

कुंदुरी या कुंदरू (Coccinia grandis, Kovakka अथवा Coccinia indica) एक उष्णकटिबंधीय लता है। यह सारे भारत में स्वतः भी उगती है और कुछ जगहों पर इसकी खेती भी की जाती है। इसकी जड़ें लंबी और फल २ से ५ सें.

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