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लक्ष्मीमल्ल सिंघवी

सूची लक्ष्मीमल्ल सिंघवी

लक्ष्मीमल्ल सिंघवी - डाकटिकट लक्ष्मीमल्ल सिंघवी (या लक्ष्मीमल सिंघवी) (९ नवंबर १९३१- ६ अक्टूबर २००७) ख्यातिलब्ध न्यायविद, संविधान विशेषज्ञ, कवि, भाषाविद एवं लेखक थे। उनका जन्म भारत के राजस्थान प्रांत में स्थित जोधपुर नगर में हुआ। १९६२ से १९६७ तक तीसरी लोक सभा के सदस्य श्री सिंघवी ने १९७२ से ७७ तक राजस्थान के एडवोकेट जनरल तथा अनेक वर्षों तक यूके में भारत के राजदूत पद पर कार्य किया। उन्हें १९९८ में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया तथा १९९९ में वे राज्य सभा के सदस्य भी चुने गए। डॉ॰ लक्ष्मीमल सिंघवी ने नेपाल, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका के संविधान रचे। उन्हें भारत में अनेक लोकपाल, लोकायुक्त संस्थाओं का जनक माना जाता है। डॉ॰ सिंघवी संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार अधिवेशन और राष्ट्रकुल (कॉमनवेल्थ) विधिक सहायता महासम्मेलन के अध्यक्ष, विशेषज्ञ रहे। वे ब्रिटेन के सफलतम उच्चायुक्त माने जाते हैं। वे सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के चार बार अध्यक्ष रहे। उन्होंने विधि दिवस का शुभारंभ किया। डॉ॰ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने हिंदी के वैश्वीकरण और हिंदी के उन्नयन की दिशा में सजग, सक्रिय और ईमानदार प्रयास किए। भारतीय राजदूत के रूप में उन्होंने ब्रिटेन में भारतीयता को पुष्पित करने का प्रयास तो किया ही, अपने देश की भाषा के माध्यम से न केवल प्रवासियों अपितु विदेशियों को भी भारतीयता से जोड़ने की कोशिश की। वे संस्कृतियों के मध्य सेतु की तरह अडिग और सदा सक्रिय रहे। वे भारतीय संस्कृति के राजदूत, ब्रिटेन में हिन्दी के प्रणेता और हिंदी-भाषियों के लिए प्रेरणा स्रोत थे। विश्व भर में फैले भारत वंशियों के लिए प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की संकल्पना डॉ॰ सिंघवी की ही थी। वे साहित्य अमृत के संपादक रहे और अपने संपादन काल में उन्होने श्री विद्यानिवास मिश्र की स्वस्थ साहित्यिक परंपरा को गति प्रदान की। भारतीय ज्ञानपीठ को भी श्री सिंघवी की सेवाएँ सदैव स्मरण रहेंगी। भारतीय डायसपोरा की अनेक संस्थाओं के अध्यक्ष श्री सिंघवी ने अनेक पुस्तकों की रचना भी की है। वे कई कला तथा सांस्कृतिक संगठनों के संरक्षक भी थे। जैन इतिहास और संस्कृति के जानकार के रूप में मशहूर श्री सिंघवी ने कई पुस्तकें लिखीं जिनमें से अनेक हिंदी में हैं। श्री सिंघवी प्रवासी भारतीयों की उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष भी रहे। विधि और कूटनीति की कूट एवं कठिन भाषा को सरल हिन्दी में अभिव्यक्त करने में उनका कोई सानी नहीं था। विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजनों में सदा उनकी अग्रणी भूमिका रहती थी। संध्या का सूरज: हिन्दी काव्य, पुनश्च (संस्मरणों का संग्रह), भारत हमारा समय, जैन मंदिर आदि उनकी प्रसिद्ध हिन्दी कृतियाँ हैं। अंग्रेज़ी में टुवर्डस ग्लोबल टुगैदरनेस (Towards Global Togetherness), डेमोक्रेसी एंड द रूल ऑफ़ द लॉ (Democracy and the Rule of the Law), फ्रीडम ऑन ट्रायल (Freedom on trial) आदि उनकी प्रसिद्ध अंग्रेज़ी पुस्तकें हैं। ८ दिसम्बर २००८ को भारतीय डाकतार विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक-टिकट तथा प्रथम दिवस आवरण प्रकाशित किया है। .

9 संबंधों: नेमीचंद जैन 'भावुक', प्रवासी भारतीय, प्रवासी भारतीय दिवस, ज्ञानपीठ पुरस्कार, जोधपुर के लोगों की सूची, विधि दिवस (भारत), अभिषेक मनु सिंघवी, उषा राजे सक्सेना, १९९८ में पद्म भूषण धारक

नेमीचंद जैन 'भावुक'

नेमीचंद जैन 'भावुक' (२५ जुलाई १९२८—२१ अक्टूबर २०१०) गांधीवादी चिंतक, वरिष्ठ पत्रकार, अनेक संस्थाओं के प्रतिष्ठाता थे। वे विभिन्न कालखंडों में दर्जनों युवाओं के पथ-प्रदर्शक रहे। भावुक द्वारा स्थापित अंतर प्रांतीय कुमार साहित्य परिषद ने साहित्य के क्षेत्र में कई लोगों को मंच प्रदान किया। वे प्रख्यात विधिवेत्ता लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के समकालीन ही नहीं उनके करीबी भी थे। .

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प्रवासी भारतीय

प्रवासी भारतीय वे लोग हैं जो भारत छोड़कर विश्व के दूसरे देशों में जा बसे हैं। ये दनिया के अनेक देशों में फैले हुए हैं। 48 देशों में रह रहे प्रवासियों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और वहां की आर्थिक व राजनीतिक दशा व दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां उनकी आर्थिक, शैक्षणिक व व्यावसायिक दक्षता का आधार काफी मजबूत है। वे विभिन्न देशों में रहते हैं, अलग भाषा बोलते हैं परंतु वहां के विभिन्न क्रियाकलापों में अपनी महती भूमिका निभाते हैं। प्रवासी भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के कारण ही साझा पहचान मिली है और यही कारण है जो उन्हें भारत से गहरे जोड़ता है। जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे वहां उन्होंने आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान की और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया। वे मजदूर, व्यापारी, शिक्षक अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में दुनियाभर में स्वीकार किए गए। प्रवासियों की सफलता का श्रेय उनकी परंपरागत सोच, सांस्कृतिक मूल्यों और शैक्षणिक योग्यता को दिया जा सकता है। कई देशों में वहां के मूल निवासियों की अपेक्षा भारतवंशियों की प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है। वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके कारण भारत की विदेशों में छवि निखरी है। प्रवासी भारतीयों की सफलता के कारण भी आज भारत आर्थिक विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। डॉ॰ एल. एम. सिंघवी की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी ने प्रवासी भारतीयों पर 18 अगस्त 2000 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में प्रवासी भारतीयों पर बनाई गई उच्चस्तरीय कमेटी को पहला ऐतिहासिक कदम बताते हुए इस बात की आशा व्यक्त की गई है कि कमेटी द्वारा जो सुझाव दिए पर सरकार पहल करेगी। .

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प्रवासी भारतीय दिवस

प्रवासी भारतीय दिवस भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष ९ जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आये थे। इस दिवस को मनाने की शुरुवात सन २००३ से हुई थी। प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की संकल्पना स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी के दिमाग की उपज थी। प्रवासी भारतीय दिवस ८-९ जनवरी २००८ को नयी दिल्ली में आयोजित हुआ" इस साल २०११ में यह सम्मलेन जयपुर में आयोजित किया जा रहा है जयपुर में होटलों में बुकींग हो चुकी है और करीब १५०० प्रवासी जयपुर पधारेंगे। इस सम्मेलन ·क लिए कई बड़े-बड़े उद्योगपति और कई राज्यों क मुख्यमंत्री भी जयपुर पहुंच चुक हैं। शनिवार को माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आ चुके हैं। इस अवसर पर प्रायः तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले भारतवंशियों का सम्मान किया जाता है तथा उन्हे प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किया जाता है। यह आयोजन भारतवंशियों से सम्बन्धित विषयों और उनकी समस्यायों के चर्चा का मंच भी है। .

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ज्ञानपीठ पुरस्कार

पुरस्कार-प्रतीकः वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई २२ भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में ग्यारह लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। १९६५ में १ लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को २००५ में ७ लाख रुपए कर दिया गया जो वर्तमान में ग्यारह लाख रुपये हो चुका है। २००५ के लिए चुने गये हिन्दी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थे जिन्हें ७ लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार १९६५ में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था। उस समय पुरस्कार की धनराशि १ लाख रुपए थी। १९८२ तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिये दिया जाता था। लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिये दिया जाने लगा। अब तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखक सबसे अधिक सात बार यह पुरस्कार पा चुके हैं। यह पुरस्कार बांग्ला को ५ बार, मलयालम को ४ बार, उड़िया, उर्दू और गुजराती को तीन-तीन बार, असमिया, मराठी, तेलुगू, पंजाबी और तमिल को दो-दो बार मिल चुका है। .

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जोधपुर के लोगों की सूची

जोधपुर, भारत के उल्लेखनीय व्यक्ति.

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विधि दिवस (भारत)

भारत में प्रतिवर्ष २६ नवम्बर को विधि दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन भारत का संविधान स्वीकार किया गया था। 'विधि दिवस' मनाये जाने की परम्परा सर्वप्रथम भारत के प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के प्रयासों और सुप्रीम कोर्ट बार एशोशिएशन द्वारा सन 1979 में प्रारंभ हुई। .

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अभिषेक मनु सिंघवी

अभिषेक मनु सिंघवी (जन्म - 24 फ़रवरी 1959) एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से संबंधित हैं और वर्तमान में भारतीय संसद के एक सदस्य हैं जो भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्तमान में वे कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता हैं। .

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उषा राजे सक्सेना

उषा राजे सक्सेना युनाइटेड किंगडम मे बसी भारतीय मूल की लेखक है। वे भारत में भी काफी लोकप्रिय है। लक्ष्मीमल सिंघवी, कमलेश्वर, शिवमंगल सिंह 'सुमन', रामदरश मिश्र, हिमांशु जोशी, अशोक चक्रधर, चित्रा मुद्गल एवं हरीश नवल जैसे साहित्यकारों ने समय-समय पर उषा राजे के साहित्य की सराहना की है। कहानी, कविता, लेख जैसी विधाओं में उषा राजे ने अपनी एक शैली विकसित की है। किन्चित आलोचको के अनुसार्, उनकी कहानियों की एक पहचान है कि उन्हें यात्रा में कोई चरित्र मिलता है जो उन्हें या तो अपनी कहानी सुनाता है या वो कुछ ऐसा कर जाता है जिससे उषा राजे को कहानी मिल जाती है। किन्तु उनकी कहानी इससे भी कुछ अधिक है| प्रवास मे भारतीय सोच, जो सन्कीर्णताओ से मुक्त किन्तु शाश्वत सत्यो से गुंथी हुई है, सौम्यता, सहोदरता और विश्व-बन्धुत्व को साधारण से विशिष्ट होते हुए पात्रो के माध्यम से अभिव्यक्त करती है| उनकी कहानी मे सदयता के साथ, मानवीय सत्ता के प्रति विश्वास् और विपरीत परिस्थिति मे साहस उत्तर आधुनिक काल मे एक प्रकाश-स्तम्भ की भाति उभरते है| मिट्टी की सुगंध नामक कहानी संग्रह संपादित कर उषा राजे सक्सेना ने युनाइटेड किंगडम के कथाकारों को पहली बार एक संगठित मंच प्रदान किया। वे `पुरवाई' पत्रिका की सह-संपादिका हैं। उषा राजे सक्सेना के साहित्य पर भारत में एम.

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१९९८ में पद्म भूषण धारक

श्रेणी:पद्म भूषण.

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