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रॉकेट

सूची रॉकेट

अपोलो १५ अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण रॉकेट एक प्रकार का वाहन है जिसके उड़ने का सिद्धान्त न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया तथा बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया पर आधारित है। तेज गति से गर्म वायु को पीछे की ओर फेंकने पर रॉकेट को आगे की दिशा में समान अनुपात का बल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कार्य करने वाले जेट विमान, अंतरिक्ष यान एवं प्रक्षेपास्त्र विभिन्न प्रकार के राकेटों के उदाहरण हैं। रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग के साथ बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है। अंतरिक्ष यानों को वायुमंडल से ऊपर उड़ना होता है इसलिए वे अपना ईंधन एवं आक्सीजन लेकर उड़ते हैं। जेट विमान में केवल ईँधन रहता है। जब विमान चलना प्रारम्भ करता है तो विमान के सिरे पर बने छिद्र से बाहर की वायु इंजन में प्रवेश करती है। वायु के आक्सीजन के साथ मिलकर ईँधन अत्यधिक दबाव पर जलता है। जलने से उत्पन्न गैस का दाब बहुत अधिक होता है। यह गैस वायु के साथ मिलकर पीछे की ओर के जेट से तीव्र वेग से बाहर निकलती है। यद्यपि गैस का द्रव्यमान बहुत कम होता है किन्तु तीव्र वेग के कारण संवेग और प्रतिक्रिया बल बहुत अधिक होता है। इसलिए जेट विमान आगे की ओर तीव्र वेग से गतिमान होता है। रॉकेट का इतिहास १३वी सदी से प्रारंभ होता है। चीन में राकेट विद्या का विकास बहुत तेज़ी से हुआ और जल्दी ही इसका प्रयोग अस्त्र के रूप में किया जाने लगा। मंगोल लड़ाकों के द्वारा रॉकेट तकनीक यूरोप पहुँची और फिर विभिन्न शासकों द्वारा यूरोप और एशिया के अन्य भागों में प्रचलित हुई। सन १७९२ में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद अंग्रेज सेना ने रॉकेट के महत्त्व को समझा और इसकी तकनीक को विकसित कर विश्व भर में इसका प्रचार किया। स्पेस टुडे पर--> .

65 संबंधों: चन्द्रयान, ऊष्मा इंजन, टर्बो जेट, एच-2ए, एच-2बी, एटलस 5, एरियन 5, थियोडोलाइट, द्वितीय विश्वयुद्ध काल की प्रौद्योगिकी, ध्वंसशीर्ष, निम्नतापिकी, निम्नतापी रॉकेट इंजन, परमाणु परीक्षण, परिवहन, परिवहन की विधि, प्रणोदन, प्राक्षेपिकी, प्रक्षेप्य, पेत्रोज़ावोद्स्क, पोटैशियम नाइट्रेट, बम, बाल पत्रकारिता, ब्रेकथ्रू स्टारशॉट, बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र, भारत २०१०, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान, मशीन सारावली, मोटरवाहन, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम, शनि (ग्रह), सितंबर २०१०, संकर रॉकेट, सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (सोहो), सौर पाल, सोयुज टीएमए १२, हाइड्राज़िन, हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी, जेट इंजन, जॉयस्टिक, ईन्धन, वायु प्रदूषण, वायुयान, वायुगतिकी, विमानन, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, वैमानिक शास्त्र, गणकीय तरल यांत्रिकी, गति के समीकरण, ..., आइएनएस किलतान, इंजन, अन्तर्दहन इंजन, अन्वेषणों की समय-रेखा, अंतरिक्ष शटल, अंतरिक्ष विज्ञान, अंतरिक्ष अन्वेषण, उड़ान, उदीयमान तकनीकों की सूची, १९ सितम्बर, १९४६, १९६७, २०१०, २४ अक्टूबर, ३ दिसम्बर सूचकांक विस्तार (15 अधिक) »

चन्द्रयान

चन्द्रयान (अथवा चंद्रयान-१) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत द्वारा चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को २२ अक्टूबर, २००८ को चन्द्रमा पर भेजा गया और यह ३० अगस्त, २००९ तक सक्रिय रहा। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल, पी एस एल वी) के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में ५ दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में १५ दिनों का समय लग गया। चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था। चंद्रयान-प्रथम ने चंद्रमा से १०० किमी ऊपर ५२५ किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। यह उपग्रह अपने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे। भारतीय अंतरिक्षयान प्रक्षेपण के अनुक्रम में यह २७वाँ उपक्रम था। इसका कार्यकाल लगभग २ साल का होना था, मगर नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूटने के कारण इसे उससे पहले बंद कर दिया गया। चन्द्रयान के साथ भारत चाँद को यान भेजने वाला छठा देश बन गया था। इस उपक्रम से चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर मानव-सहित विमान भेजने के लिये रास्ता खुला। हालाँकि इस यान का नाम मात्र चंद्रयान था, किन्तु इसी शृंखला में अगले यान का नाम चन्द्रयान-२ होने से इस अभियान को चंद्रयान-१ कहा जाने लगा। .

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ऊष्मा इंजन

एक ऊष्मा इंजन का चित्र: यह इंजन TH ताप वाले गरम स्रोत से QH ऊर्जा लेती है और इसमें से W ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा के रूप में बदलकर शेष QC ऊष्मा को TC ताप वाले सिंक को स्थानातरित कर देती है। जो इंजन है ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं उन्हें ऊष्मा इंजन (थर्मल इंजन) कहते हैं। ये इंजन ऊष्मा के उच्च ताप से निम्न ताप पर प्रवाहित होने के गुण का उपयोग करके बनाए जाते हैं। इसके विपरीत वे इंजन जो यांत्रिक ऊर्जा की सहायता से ऊष्मा को अधिक ताप से कम ताप पर ले जाते हैं उन्हें 'ऊष्मा पम्प' या 'प्रशीतक' (रेफ्रिजिरेटर) कहते हैं। उच्च ताप से निम्न ताप पर ऊष्मा किसी तरल के सहारे स्थानान्तरित होती है। ऊष्मा मशीनें प्रायः किसी ऊष्मा चक्र में काम करती हैं। इसीलिए इन्हें सम्बन्धित ऊष्मागतिकीय चक्र (थर्मोडाइनेमिक सायकिल) के नाम से जाता जाता है। उदाहरण के लिए कर्ना चक्र पर काम करने वाला ऊष्मा इंजन 'कर्ना इंजन' कहलाता है। ऊष्मा इंजन अन्य इंजनों से इस मामले में भिन्न हैं कि इनकी अधिकतम दक्षता कर्ना के प्रमेय से निर्धारित होती है जो अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। किन्तु फिर भी ऊष्मा इंजन सर्वाधिक प्रचलित इंजन है क्योंकि लगभग सभी प्रकार की उर्जाओं को ऊष्मा में बहुत आसानी से बदला जा सकता है और ऊष्मा इंजन द्वारा इस ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में। ऊष्मा इंजन और ऊर्जा का संतुलन .

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टर्बो जेट

टर्बो जेट इंजन टर्बो जेट इंजन रॉकेट सिद्धांत पर कार्य करने वाला एक लोकप्रिय जेट इंजन है। इसमें एक नोदक चंचु के साथ गैस टर्बाइन लगी होती है। .

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एच-2ए

एच-२ए १९ की उड़ान एच-२ए रॉकेट लाइन मे एच-२ए एच-२ए (H2A) मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (MHI) के लिए जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी द्वारा संचालित एक सक्रिय उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। तरल ईंधन एच-२ए रॉकेट का इस्तेमाल उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा, चंद्र परिक्रमा अंतरिक्ष यान में लांच में किया गया जाता है। एच-२ए ने पहली उड़ान 2001 में भरी। और फरवरी, 2016 तक यह 30 बार उड़ान भर चुका है। श्रेणी:जापान के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट.

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एच-2बी

एच-2बी (H-IIB या H2B) एक उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। जिसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए एच-II हस्तांतरण वाहन (HTV, या Kounotori) लॉन्च करने में किया जाता है। एच-2बी रॉकेट तरल बूस्टर के साथ ठोस ईंधन का बाना हैं। यह् जापान में तानेगाशिमा अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाता है।.

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एटलस 5

एटलस V (Atlas V या Atlas 5) रॉकेट एटलस परिवार में सक्रिय एक प्रक्षेपण यान रॉकेट परिवार है। एटलस V पूर्व में लॉकहीड मार्टिन द्वारा संचालित किया गया था। और अब लॉकहीड मार्टिन-बोइंग के संयुक्त उद्यम यूनाइटेड लांच अलायन्स (ULA) द्वारा संचालित है। प्रत्येक एटलस V रॉकेट अपने पहले चरण में एक रूस निर्मित आरडी-180 इंजन का उपयोग करता है। जो मिट्टी का तेल और तरल ऑक्सीजन को जला कर थ्रस्ट उत्पन करता है। .

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एरियन 5

एरियन 5 (Ariane 5) एक यूरोपीय प्रक्षेपण यान रॉकेट है। यह एरियन रॉकेट परिवार का हिस्सा है। एरियन-5 रॉकेट यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) और सिनेस के अधिकार के तहत निर्मित किये जाते हैं। एयरबस रक्षा और अंतरिक्ष एरियन 5 के लिए मुख्य ठेकेदार है। एरियन-5 का संचालन और व्यापार एरियन स्पेस द्वारा किया जाता है। एयरबस रक्षा और अंतरिक्ष यूरोप में रॉकेट बनाता है। तथा एरियन स्पेस उन्हें फ्रेंच गुयाना में गुयाना अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण करता है। .

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थियोडोलाइट

1958 मे सोवियत संघ मे निर्मित एक प्रकाशीय विकोणमान जिसका उपयोग स्थलीय सर्वेक्षण के लिये किया जाता था। विकोणमान या थिओडोलाइट (Theodolite) उस यंत्र को कहते हैं जो पृथ्वी की सतह पर स्थित किसी बिंदु पर अन्य बिंदुओं द्वारा निर्मित क्षैतिज और उर्ध्व कोण नापने के लिये सर्वेक्षण में व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है। सर्वेक्षण का आरंभ ही क्षैतिज और ऊर्ध्व कोण पढ़ने से होता है, जिसके लिये थियोडोलाइट ही सबसे अधिक यथार्थ फल देनेवाला यंत्र है। अत: यह सर्वेक्षण क्रिया का सबसे महत्वपूर्ण यंत्र है। थिओडोलाइट क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों तरह के कोणों को मापने का उपकरण है, जिसका प्रयोग, त्रिकोणमितीय नेटवर्क में किया जाता है। यह सर्वेक्षण और दुर्गम स्थानों पर किये जाने वाले इंजीनियरिंग काम में प्रयुक्त होने वाला एक सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। आजकल विकोणमान को अनुकूलित कर विशिष्ट उद्देश्यों जैसे कि मौसम विज्ञान और रॉकेट प्रक्षेपण प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी उपयोग मे लाया जा रहा है। .

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द्वितीय विश्वयुद्ध काल की प्रौद्योगिकी

१६ जुलाई १९४५ का ट्रिनिटी विस्फोट: इससे परमाणु बम के युग का आरम्भ हुआ। जर्मन एनिग्मा: कूट का रहस्य खोज निकालने वाली मशीन प्रौद्योगिकी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम को बहुत हद तक प्रभावित और निर्धारित किया। द्वितीय विश्वयुद्ध में बाहर आयी प्रौद्योगिकी का अधिकांश हिस्सा १९२० और १९३० के बीच विकसित किया गया था। लगभग हर प्रकार की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हुआ था जिसमें से प्रमुख हैं-.

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ध्वंसशीर्ष

एक रासायनिक ध्वंसशीर्ष का प्रदर्शन मॉडल मिसाइल, रॉकेट, या टॉरपीडो से किसी जगह पर गिराये जाने वाले विस्फोटक या विषाक्त पदार्थ को ध्वंसशीर्ष (वारहेड) कहते हैं। .

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निम्नतापिकी

तुषारजनिकी में प्रयोग होने वाली तरल नाइट्रोजन गैस निम्नतापिकी, तुषारजनिकी या प्राशीतनी (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक्स) भौतिकी की वह शाखा है, जिसमें अत्यधिक निम्न ताप उत्पन्न करने व उसके अनुप्रयोगों के अध्ययन किया जाता है। क्रायोजेनिक का उद्गम यूनानी शब्द क्रायोस से बना है जिसका अर्थ होता है शीत यानी बर्फ की तरह शीतल। इस शाखा में (-१५०°से., −२३८ °फै. या १२३ कै.) तापमान पर काम किया जाता है। इस निम्न तापमान का उपयोग करने वाली प्रक्रियाओं और उपायों का क्रायोजेनिक अभियांत्रिकी के अंतर्गत अध्ययन करते हैं। यहां देखा जाता है कि कम तापमान पर धातुओं और गैसों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं।|हिन्दुस्तान लाइव। ६ जून २०१० कई धातुएं कम तापमान पर पहले से अधिक ठोस हो जाती हैं। सरल शब्दों में यह शीतल तापमान पर धातुओं के आश्चर्यजनक व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान होता है। इसकी एक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन और अन्य में मनुष्यों और पौधों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक तुषारजनिकी को पूरी तरह कम तापमान तैयार करने की विधि से जोड़कर देखते हैं जबकि कुछ कम तापमान पर धातुओं में आने वाले परिवर्तन के अध्ययन के रूप में। एक तुषारजनिक वॉल्व क्रायोजेनिक्स में अध्ययन किए जाने वाले तापमान का परास काफी अधिक होता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें -१८०° फारेनहाइट (-१२३° सेल्सियस) से नीचे के तापमान पर ही अध्ययन किया जाता है। यह तापमान जल के प्रशीतन बिन्दु (०° से.) से काफी नीचे होता है और जब धातुओं को इस तापमान तक लाया जाता है तो उन पर आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाई देते हैं। इतना कम तापमान तैयार करने के कुछ तरीके होते हैं, जैसे विशेष प्रकार के प्रशीतक या नाइट्रोजन जैसी तरल गैस, जो अनुकूल दाब की स्थिति में तापमान को नियंत्रित कर सकती है। धातुओं को तुषारजनिकी द्वारा ठंडे किए जाने पर उनके अणुओं की क्षमता बढ़ती है। इससे वह धातु पहले से ठोस और मजबूत हो जाते हैं। इस विधि से कई तरह की औषधियाँ तैयार की जाती हैं और विभिन्न धातुओं को संरक्षित भी किया जाता है। रॉकेट और अंतरिक्ष यान में क्रायोजेनिक ईंधन का प्रयोग भी होता है। तुषारजनिकी का प्रयोग जी एस एल वी रॉकेट में भी किया जाता है। जी.एस.एल.वी.

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निम्नतापी रॉकेट इंजन

150px भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त होने वाली द्रव ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन निम्नतापी रॉकेट इंजन या तुषारजनिक रॉकेट इंजन (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक रॉकेट इंजिन) कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र बढ़े कदम पा लेंगे मंजिल। हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१० क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (२००० डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत: ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -२५३ डिग्री सेल्सियस से लेकर २००० डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए थ्रस्ट चैंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है। .

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परमाणु परीक्षण

२७ मार्च, १९५४ को अमरीका द्वारा किये गये कैसल रोमियो नाभिकीय परीक्षण का चित्र "बेकर शॉट", संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया ऑपरेशन क्रॉसरोड्स अभियान का एक भाग, १९४६ नाभिकीय अस्त्र परीक्षण (अंग्रेज़ी:Nuclear weapons tests) या परमाण परीक्षण उन प्रयोगों को कहते हैं जो डिजाइन एवं निर्मित किये गये नाभिकीय अस्त्रों के प्रभाविकता, उत्पादकता एवं विस्फोटक क्षमता की जाँच करने के लिये किये जाते हैं। परमाणु परीक्षणों से कई जानकारियाँ प्राप्त होतीं हैं; जैसे - ये नाभिकीय हथियार कैसा काम करते हैं; विभिन्न स्थितियों में ये किस प्रकार का परिणाम देते हैं; भवन एवं अन्य संरचनायें इन हथियारों के प्रयोग के बाद कैसा बर्ताव करतीं हं। सन् १९४५ के बाद बहुत से देशों ने परमाणु परीक्षण किये। इसके अलावा परमाणु परीक्षणों से वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सैनिक शक्ति का प्रदर्शन करने की कोशिश भी की जाती है। .

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परिवहन

परिवहन उस विधि या व्यवस्था को कहते हैं जो कि व्यक्ति, वस्तुओं और सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते हैं। .

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परिवहन की विधि

परिवहन की विधि (या परिवहन के साधन या परिवहन प्रणाली या परिवहन का तरीका या परिवहन के रूप) वह शब्द हैं जो वस्तुत: परिवहन के अलग-अलग तरीकों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। सबसे प्रमुख परिवहन के साधन हैं हवाई परिवहन, रेल परिवहन सड़क परिवहन और जल परिवहन, लेकिन अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं जिनमें पाइप लाइन, केबल परिवहन, अंतरिक्ष परिवहन और ऑफ-रोड परिवहन भी शामिल हैं। मानव संचालित परिवहन और पशु चालित परिवहन अपने तरीके का परिवहन है, लेकिन यह सामान्य रूप से अन्य श्रेणियों में आते हैं। सभी परिवहन में कुछ माल परिवहन के लिए उपयुक्त हैं और कुछ लोगों के परिवहन के लिए उपयुक्त हैं। प्रत्येक परिवहन की विधि को मौलिक रूप से विभिन्न तकनीकी समाधान और कुछ अलग वातावरण की आवश्यकता होती है। प्रत्येक विधी की अपनी बुनियादी सुविधाएं, वाहन, कार्य और अक्सर विभिन्न विनियमन हैं। जो परिवहन एक से अधिक मोड का उपयोग करते हैं उन्हें इंटरमोडल के रूप में वर्णित किया जा सकता है। .

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प्रणोदन

प्रणोदन (propulsion) किसी वस्तु को गति देने के लिये लगाये गये बल का उत्पादन करने के साधन को कहते हैं। किसी भी प्रणोदन प्रणाली (propulsion system) में यांत्रिक शक्ति (mechanical power) बनाने का स्रोत और फिर इस शक्ति को धकेलने के लिए बल में परिवर्तित करने का कोई प्रणोदक (propulsor) आवश्यक होता है। प्रौद्योगिक प्रणालियों में यांत्रिक शक्ति स्रोत को अक्सर इंजन (engine) या मोटर (motor) कहा जाता है। फिर इस शक्ति को पहियों व धुरी, नोदक या तेज़ी से पीछे की ओर गैस या अन्य सामग्री फेंकने वाले राकेट द्वारा धकेलने के बल में परिवर्तित कर के गति प्राप्त की जाती है। जैविक प्रणोदन प्रणालियों में कोई प्राणी अपनी मांसपेशियों को शक्ति स्रोत और पंखों, फ़िनों या टांगों को प्रणोदक बनाता है। .

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प्राक्षेपिकी

प्रक्षेपिकी क्षेपण विज्ञान या प्राक्षेपिकी (Ballistics, यूनानी भाषा में βάλλειν ('ba'llein') .

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प्रक्षेप्य

एक प्रक्षेप्य वह वस्तु कहलाती है जिसे दिक् (खाली अथवा नहीं) में किसी बल के अधीन प्रक्षेपित किया जाता है। यद्यपि समष्टि (दिक्) में किसी भी वस्तु की गति (उदाहरण के लिए क्रिकेट के खेल में क्षेत्ररक्षक द्वारा गेंद को फैंकना) को प्रक्षेप्य कहा जा सकता है, यह शब्द सामान्यतः कम मारक क्षमता वाली वस्तुओं के लिए काम में ली जाती है। प्रक्षेप्य वक्र के विश्लेषण के लिए गणितीय गति के समीकरणों का उपयोग किया जाता है। .

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पेत्रोज़ावोद्स्क

पेत्रोज़ावोद्स्क (रूसी: Петрозаводск, अंग्रेज़ी: Petrozavodsk) रूस के सुदूर पश्चिमोत्तर में स्थित एक शहर है जो उस देश के कारेलिया गणतंत्र नामक संघीय खंड की राजधानी भी है। यह ओनेगा झील के पश्चिमी छोर पर बसा हुआ है और उसके तट पर २७ किमी तक विस्तृत है।, Mara Vorhees, pp.

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पोटैशियम नाइट्रेट

पोटैशियम नाइट्रेट (Potassium nitrate) एक रासायनिक यौगिक है। इसका अणसूत्र KNO3 है। यह एक आयनिक लवण है। पोटैशियम नाइट्रेट 'शोरा' (niter) नामक खनिज के रूप मिलता है और नाइट्रोजन का प्राकृतिक ठोस स्रोत है। नाइट्रोजन से युक्त बहुत से यौगिकों को सामूहिक रूप से 'शोरा' (saltpeter या saltpetre) कहते हैं; पोटैशियम नाइट्रेट उनमें से एक है। पोटैशियम नाइट्रेट का उपयोग मुख्यतः उर्वरक, रॉकेट के नोदक (प्रोपेलेंट), तथा पटाखों (fireworks) में होता है। पोटैशियम नाइट्रेट, बारूद के तीन घटकों में से एक है। मध्ययुग से ही इसे खाद्य संरक्षण के लिए उपयोग किया जाता रहा है। श्रेणी:रासायनिक यौगिक श्रेणी:पोटैशियम यौगिक श्रेणी:नाइट्रेट श्रेणी:लवण श्रेणी:ऑक्सीकारक श्रेणी:संरक्षक.

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बम

विशाल आयुध एयर ब्लास्ट (मोआब) संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादित बम दुनिया का एक सबसे शक्तिशाली गैर-परमाणु बमें हैं। बम विस्फोटक उपकरणों का कोई एक प्रकार है, जो आमतौर पर एक अत्यंत तेज और प्रबल उर्जा निर्गमन उत्पन्न करने के लिए विस्फोटक सामग्री की उष्माक्षेपी (एक्सोथर्मिक) रासायनिक प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है। यह शब्द ग्रीक शब्द βόμβος (बम्बोस) से आया है, यह एक अनुकरणात्मक शब्द है, जिसका अर्थ अंग्रेजी के 'बूम' शब्द के लगभग समान है। एक परमाणु हथियार बहुत बड़े परमाणु-आधारित विस्फोट को करने के लिए रसायनिक-आधारित विस्फोटकों का प्रयोग करता है। "बम" शब्द को आमतौर पर नागरिक उद्देश्यों जैसे निर्माण या खनन के लिए प्रयोग की जाने वाली विस्फोटक उपकरणों पर लागू नहीं किया जाता है, यद्यपि लोग इन उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए इसे बम के रूप में संदर्भित करते हैं। सैन्य में "बम" या विशेष रूप से हवाई बम इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर हवा से गिराये गए बम के संदर्भ में होता है, यह एक संचालनरहित विस्फोटक हथियार है जिसका सबसे ज्यादा प्रयोग वायु सेना और नौसेना के विमानन द्वारा किया जाता हैं। अन्य सैन्य विस्फोटक हथियार जिन्हें "बम" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया हैं उनमें ग्रेनेड, गोला (शेल्स), जलबम (पानी में प्रयुक्त), स्फोटक शीर्ष जब मिसाइलों में रहती हैं, या बारूदी सुरंग शामिल हैं। अपरंपरागत युद्ध में, "बम" को आक्रामक हथियार के रूप में या विस्फोटक उपकरणों के असीमित कोई एक प्रकार के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। .

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बाल पत्रकारिता

बाल पत्रकारिता की सुदीर्घ परम्परा को एक आलेख में समेटना निश्चय ही अंजलि में समुद्र भर लेने के समान है। बाल साहित्य की अनेक पत्रिकाएँ विगत पचास वर्षों में प्रकाशित हुई हैं। इन प्रकात्रिओं का सही-सही विवरण दे पाना एक दुरूह कार्य है। बाल साहित्य की पत्रिकाओं में कुछ पत्रिकाएँ तो लम्बे समय से प्रकाशित हो रही हें, परन्तु अधिकतर पत्रिकाएँ काल-कविलत हो गईं। उनके पुराने अंक खोजना कठिन ही नहीं, असम्भव-सा कार्य है। फिर भी जिन पत्रिकाओं का विवरण उपलब्ध हो सका है, उन्हें इस आलेख में समाहित किया जा रहा है। .

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ब्रेकथ्रू स्टारशॉट

एक कल्पित सौर पाल ब्रेकथ्रू स्टारशॉट (Breakthrough Starshot) एक अनुसंधान और अभियान्त्रिकी परियोजना है जिसका ध्येय प्रकाश पाल (light sail) से चलने वाले अंतरिक्ष यानों का एक बेड़ा विकसित करना है जो पृथ्वी से ४.३७ प्रकाशवर्ष दूर स्थित मित्र तारे (Alpha Centauri) के बहु तारा मंडल तक पहुँच सके। इन परिकल्पित अंतरिक्ष यानों का नाम "स्टारचिप" (StarChip) रखा गया है और इन्हें प्रकाश की गति का १५% से २०% तक का वेग देने का प्रस्ताव है। इस रफ़्तार से वे लगभग २० से ३० वर्षों में मित्र तारे के मंडल तक पहुँच सकेंगे और वहाँ से पृथ्वी को सूचित करेंगे। इतनी दूरी पर उनसे प्रसारित संकेतों को पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग ४ साल लगेंगे। यह यान इतनी तेज़ी से चल रहे होंगे की वे केवल कुछ देर के लिये मंडल में रहकर आगे अंतरिक्ष में निकल जाएँगे। प्रस्तावकों की चेष्टा है कि इस अंतराल में यह यान अगस्त २०१६ में मिले प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी (Proxima Centauri b) नामक स्थलीय ग्रह (जो पृथ्वी से ज़रा बड़ा ग़ैर-सौरीय ग्रह है) के समीप से भी उड़ें और उसकी तस्वीरें खींचकर पृथ्वी भेजें। .

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बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र

पहली बैलिस्टिक मिसाइल V-2 का रेखाचित्र तकनीकी दृष्टि से बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र या बैलिस्टिक मिसाइल (ballistic missile) उस प्रक्षेपास्त्र को कहते हैं जिसका प्रक्षेपण पथ सब-आर्बिटल बैलिस्टिक पथ होता है। इसका उपयोग किसी हथियार (प्राय: नाभिकीय अस्त्र) को किसी पूर्वनिर्धारित लक्ष्य पर दागने के लिये किया जाता है। यह मिसाइल अपने प्रक्षेपण के प्रारम्भिक चरण में ही केवल गाइड की जाती है; उसके बाद का पथ कक्षीय यांत्रिकी (या आर्बिटल मेकैनिक्स) के सिद्धान्तों एवं बैलिस्टिक्स के सिद्धान्तों से निर्धारित होता है। अभी तक इन्हें रासायनिक रॉकेट इंजनों के द्वारा प्रणोदित (प्रोपेल) किया जाता है। .

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भारत २०१०

इन्हें भी देखें 2014 भारत 2014 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2014 साहित्य संगीत कला 2014 खेल जगत 2014 .

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भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिन्हें भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा गया है। वे वैज्ञानिक कल्पना एवं राष्ट्र-नायक के रूप में जाने गए। वर्तमान प्रारूप में इस कार्यक्रम की कमान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के हाथों में है। .

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, (संक्षेप में- इसरो) (Indian Space Research Organisation, ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बेंगलुरू कर्नाटक में है। संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है। 1969 में स्थापित, इसरो अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके करीबी सहयोगी और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से 1962 में स्थापित किया गया। भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, जो 19 अप्रैल 1975 सोवियत संघ द्वारा शुरू किया गया था यह गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था बनाया।इसने 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था। लेकिन ये अपने आप में भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी। 7 जून 1979 को भारत ने दूसरा उपग्रह भास्कर 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। 1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारतीय-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी -3 बन गया जिस्से कक्षा में स्थापित किया गया। इसरो ने बाद में दो अन्य रॉकेट विकसित किये। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान उपग्रहों शुरू करने के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी),भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों को रखने के लिए ध्रुवीय कक्षाओं और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान। ये रॉकेट कई संचार उपग्रहों और पृथ्वी अवलोकन गगन और आईआरएनएसएस तरह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम तैनात किया उपग्रह का शुभारंभ किया।जनवरी 2014 में इसरो सफलतापूर्वक जीसैट -14 का एक जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण में एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया। इसरो के वर्तमान निदेशक ए एस किरण कुमार हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है। इसरो एक चंद्रमा की परिक्रमा, चंद्रयान -1 भेजा, 22 अक्टूबर 2008 और एक मंगल ग्रह की परिक्रमा, मंगलयान (मंगल आर्बिटर मिशन) है, जो सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश पर 24 सितंबर 2014 को भारत ने अपने पहले ही प्रयास में सफल होने के लिए पहला राष्ट्र बना। दुनिया के साथ ही एशिया में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी में एजेंसी को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए इसरो चौथे स्थान पर रहा। भविष्य की योजनाओं मे शामिल जीएसएलवी एमके III के विकास (भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए) ULV, एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष, आगे चंद्र अन्वेषण, ग्रहों के बीच जांच, एक सौर मिशन अंतरिक्ष यान के विकास आदि। इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए साल 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया। जून 2016 तक इसरो लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लॉन्च कर चुका है, और इसके द्वारा उसने अब तक 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं।http://khabar.ndtv.com/news/file-facts/in-record-launch-isro-flies-20-satellites-into-space-10-facts-1421899?pfrom.

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भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (अंग्रेज़ी:जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, लघु: जी.एस.एल.वी) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी का इस्तेमाल अब तक बारह लॉन्च में किया गया है, 2001 में पहली बार लॉन्च होने के बाद से 29 मार्च, 2018 को जीएसएटी -6 ए संचार उपग्रह ले जाया गया था। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र हालांकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (जीएसएलवी मार्क 3) नाम साझा करता है, यह एक पूरी तरह से अलग लॉन्चर है। .

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मशीन सारावली

उन युक्तियों को मशीन (Machine) कहते हैं जो कोई उपयोगी कार्य करती हैं या करने में मदद करतीं हैं। सभी मशीनें प्राय: उर्जा लेकर (निवेश) कार्य करतीं हैं। नीचे मशीनों की सारावली दी गयी है जो मशीनों एवं उनसे सम्बन्धित उपविषयों पर एक विहंगम दृष्टि प्रस्तुत करती है। .

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मोटरवाहन

कार्ल बेन्ज़'स "वेलो"मॉडल (1894) -सबसे पहले गाड़ियों के होड़ में आई right विश्व मानचित्र प्रति 1000 लोग गाड़ी, मोटरवाहन, कार, मोटरकार या ऑटोमोबाइल एक पहियों वाला वाहन है, जो यात्रियों के परिवहन के काम आता है; और जो अपना इंजन या मोटर भी स्वयं उठाता है। इस शब्द की अधिकांश परिभाषाओं के अनुसार मोटरवाहन मुख्य रूप से सड़कों पर चलाने के लिए हैं, एक से आठ लोगों कों बैठाने के लिए हैं, आमतौर पर जिनके चार पहिये होते हैं, जिनका निर्माण मुख्य रूप से सामान के उपेक्षा लोगों के परिवहन के लिए किया जाता है। मोटरकार शब्द का प्रयोग विद्युतिकृत रेल प्रणाली के सन्दर्भ में, एक ऐसी कार के लिए प्रयुक्त होता है, जो एक छोटा लोकोमोटिव होने के साथ ही, इसमे लोगों और सामान के लिए जगह भी होती है। ये लोकोमोटिव कार उपनगरीय मार्गों में अंतर्नगरीय रेल प्रणालियों में इस्तेमाल की जाती हैं। 2002 तक, 590 मिलियन यात्री करें दुनिया भर में थी (मोटे तौर पर एक कार प्रति ग्यारह लोग).

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लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम

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शनि (ग्रह)

शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है। शनि का आंतरिक ढांचा संभवतया, लोहा, निकल और चट्टानों (सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक) के एक कोर से बना है, जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है, तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल के कारण एक हल्का पीला रंग दर्शाता है। माना गया है धातु हाइड्रोजन परत के भीतर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है, जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है और बृहस्पति की एक-बीसवीं शक्ति के करीब है। बाह्य वायुमंडल आम तौर पर नीरस और स्पष्टता में कमी है, हालांकि दिर्घायु आकृतियां दिखाई दे सकती है। शनि पर हवा की गति, 1800 किमी/घंटा (1100 मील) तक पहुंच सकती है, जो बृहस्पति पर की तुलना में तेज, पर उतनी तेज नहीं जितनी वह नेप्च्यून पर है। शनि की एक विशिष्ट वलय प्रणाली है जो नौ सतत मुख्य छल्लों और तीन असतत चाप से मिलकर बनी हैं, ज्यादातर चट्टानी मलबे व धूल की छोटी राशि के साथ बर्फ के कणों की बनी हुई है। बासठ चन्द्रमा ग्रह की परिक्रमा करते है; तिरेपन आधिकारिक तौर पर नामित हैं। इनमें छल्लों के भीतर के सैकड़ों " छोटे चंद्रमा" शामिल नहीं है। टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध ग्रह से बड़ा है और एक बड़े वायुमंडल को संजोकर रखने वाला सौरमंडल का एकमात्र चंद्रमा है। .

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सितंबर २०१०

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संकर रॉकेट

संकर रॉकेट मोटर के विभिन्न अवयव जिस रॉकेट का मोटर प्रोपेलेन्ट ईंधनों को दो अलग-अलग अवस्थाओं में उपयोग करता है उसे संकर रॉकेट या 'हाइब्रिड रॉकेट' कहते हैं। ईंधन की ये दो अवस्थाओं में पहली ठोस अवस्था होती है और दूसरी या तो गैस अवस्था या द्रव अवस्था। संकर रॉकेट का कांसेप्ट कम से कम ७५ वर्ष पुराना है। .

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सौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (सोहो)

सूर्य के नज़दीक सोहो का चित्रसौर एवं सौरचक्रीय वेधशाला (सोहो) (Solar and Heliospheric Observatory (SOHO)) यूरोप के एक औद्योगिक अल्पकालीन संघटन ऐस्ट्रियम द्वारा निर्मित एक अंतरिक्ष यान है। इस वेधशाला को लॉकहीड मार्टिन एटलस २ एएस रॉकेट द्वारा २ दिसम्बर १९९५ को अंतरिक्ष में भेजा गया। इस प्रयोगशाला का लक्ष्य सूर्य और सौरचक्रीय परिवेश का अध्ययन करना और क्षुद्रग्रहों की उपस्थिति संबंधित आँकड़े उपलब्ध कराना है। सोहो द्वारा अब तक कुल २३00 से अधिक क्षुद्रग्रहों का पता लगाया जा चुका है। सोहो, अंतरराष्ट्रीय सहयोग से संबद्ध, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा की संयुक्त परियोजना है। हालांकि सोहो मूल रूप से द्विवर्षीय परियोजना थी, लेकिन अंतरिक्ष में १५ वर्षों से अधिक समय से यह कार्यरत है। २00९ में इस परियोजना का विस्तार दिसंबर २0१२ तक मंज़ूर कर लिया गया है।.

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सौर पाल

सौर पाल (solar sail), जिसे प्रकाश पाल (light sail) या फ़ोटोन पाल (photon sail) भी कहते हैं सौर प्रकाश को बड़े दर्पणों से किसी अंतरिक्ष यान पर लगे बड़े आकार के परावर्तक पाल पर दाग़कर उस से बनने बाले विकिरण दाब द्वारा करे गये अंतरिक्ष यान प्रणोदन (गतिमान करने की क्रिया) को कहते हैं। जिस प्रकार कोई पालनौका पवन के प्रहार से चल पड़ती है, उसी प्रकार विचार है कि अंतरिक्ष यानों को प्रकाश के प्रहार से चलाया जा सकता है। वैज्ञानिकों की सोच है कि इस सिद्धांत से बनाये गये यानों पर ख़र्च कम होगा क्योंकि उन्हें अपने साथ ईन्धन ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी। कुछ प्रस्तावों में सौर प्रकाश के स्थान पर पथ्वी या चंद्रमा पर लेज़र किरणों का स्रोत लगाकर उन्हें पाल पर चमकाने का सुझाव दिया गया है। पृथ्वी की कक्षा के पास स्थित ८०० मीटर चौड़े और ८०० मीटर लम्बे सौर पाल पर सूरज की किरणों का बल लगभग ५ न्य्यूटन के बराबर पड़ेगा। यह एक हल्का बल है। लेकिन जहाँ आज के राकेट कुछ अरसे तक चलकर ईन्धन समाप्त होने पर रुक जाते हैं वहाँ सौर पाल यान को महीनों, वर्षों, दशकों या शताब्दियों तक लगातार अधिक गतिशील कर सकता है। विकिरण दाब एक वास्तविकता है और बिना पाल वाले अंतरिक्ष यानों पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। .

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सोयुज टीएमए १२

सोयुज टीएमए १२ एक वर्तमान सोयुज अंतरिक्ष मिशन है जो अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्रकी उडान पर है जिसे सोयुज एफजी रॉकेट द्वारा ११:१६ मिनट यूटीसी पर ८ अप्रैल २००८ को छोडा गया। इसके अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचने का नियत समय १० अप्रैल २००८ को तय है।.

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हाइड्राज़िन

हाइड्रेज़ीन (Hydrazine / H2N-NH2) अकार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र N2H4 है। यह रंगहीन, ज्वलनशील द्रव है जिसमें अमोनिया जैसी गंध आती है। इसे डायाजेन (diazane) भी कहते हैं। यह अत्यन्त विषैली तथा भयानक अस्थिर है इसलिये इसे इसे विलयन में ही रखा जाता है। हाइड्रेजीन मुख्यतः पॉलीमर फोम के निर्माण में 'फोमिंग एजेंट' के रूप में प्रयुक्त होती है। इसके अलावा यह बहुलीकारक उत्प्रेरक के उपयोग के पूर्व उपयोग की जाती है। औषधि निर्माण में भी इसका उपयोग है। यह रॉकेट के ईंधन में प्रयुक्त होती है। यह नाभिकीय और गैर-नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों के वाष्प चक्र (steam cycles) में घुलित आक्सीजन की सांद्रता को कम करने के लिये प्रयुक्त होती है ताकि संक्षारण (corrosion) को कम किया जा सके। .

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हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी

हाइड्रोजन के उत्पादन एवं उपयोग से सम्बन्धित समस्त तकनीकें हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आतीं हैं। हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का अनेकानेक क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है या हो सकता है। कुछ हाइद्रोजन प्रौद्योगिकियाँ कार्बन न्यूट्रल हैं तथा इस कारण जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा भविष्य की हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। .

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जेट इंजन

जेट इंजन जेट इंजन रॉकेट के सिद्धांत पर कार्य करने वाला एक प्रकार का इंजन है। आधुनिक विमान मुख्यतः जेट इंजन का ही प्रयोग करते है। रॉकेट और जेट इंजन का कार्य करने का सिद्धांत एक ही होता है लेकिन इस दोनो मे अंतर केवल यह है कि जहॉ रॉकेट अपना ईंधन स्वयं ढोहता है जेट इंजन आस पास की वायु को ही ईंधन के रूप मे उपयोग करता है। इसिलिये जेट इंजन पृथ्वी के वातावरण से बाहर जहॉ वायु नही होती है, काम नही कर सकते। अंग्रेजी मे इन्हे 'एयर ब्रिदिन्ग इंजन' (air breathing) कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है वायु मे साँस लेने वाले इंजन। .

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जॉयस्टिक

जॉयस्टिक तत्व: #1 स्टिक, #2 बेस; #3 उत्प्रेरक; #4 अतिरिक्त बटन, #5 ऑटोफायर स्विच, #6 थ्रौटल; #7 हैट स्विच (पीओवी (POV) हैट); #8 सक्शन कप जॉयस्टिक एक इनपुट उपकरण होता है जो किसी धुरी पर घूमने वाली एक छड़ी से बना होता है, जो अपने कोण या दिशा की सूचना उस उपकरण को देती है, जो उसके नियंत्रण में होता है। जॉयस्टिकों का प्रयोग अक्सर वीडियो गेमों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है और आम तौर पर उसमें एक या अधिक दबाए जाने वाले बटन होते हैं, जिनकी स्थिति को कम्प्यूटर द्वारा भी पढ़ा जा सकता है। आधुनिक वीडियो गेम कन्सोलों पर इस्तेमाल किए जाने वाले जॉयस्टिक का एक लोकप्रिय प्रकार एनालॉग छड़ी है। जॉयस्टिक कई विमानों की कॉकपिट में प्रमुख उड़ान नियंत्रक रहा है, विशेष रूप से तेजी से उड़ने वाले लड़ाकू विमानों में केंद्रीय छड़ी या बगल की छड़ी के रूप में.

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ईन्धन

जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध्‌ धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत्‌ ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .

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वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। वायु प्रदूषण के कारण मौतें और श्वास रोग.

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वायुयान

एक बोईंग ७८७ ड्रीमलाइनर विमान हवा में उड़ान भरता हुआ वायुयान ऐसे यान को कहते है जो धरती के वातावरण या किसी अन्य वातावरण में उड सकता है। किन्तु राकेट, वायुयान नहीं है क्योंकि उडने के लिये इसके चारो तरफ हवा का होना आवश्यक नहीं है। .

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वायुगतिकी

वायुगतिकी (Aerodynamics) गतिविज्ञान की वह शाखा है जिसमें वायु तथा अन्य गैसीय तरलों (gaseous fluids) की गति का और इन तरलों के सापेक्ष गतिवान ठोसों पर लगे बलों का विवेचन होता है। इस विज्ञान के सार्वाधिक महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों में से एक अनुप्रयोग वायुयान की अभिकल्पना है। .

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विमानन

विमानन किसी विमान — विशेषकर हवा से भारी विमान — के प्रारूप, विकास, उत्पादन, परिचालन तथा उसके उपयोग को कहते हैं। .

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विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र

विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (Vikram Sarabhai Space Centre) इसरो का सबसे बड़ा एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह तिरुवनंतपुरम में स्थित है। यहाँ पर रॉकेट, प्रक्षेपण यान एवं कृत्रिम उपग्रहों का निर्माण एवं उनसे सम्बंधित तकनीकी का विकास किया जाता है। केंद्र की शुरुआत थम्बा भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र के तौर पर १९६२ में हुई थी। केंद्र का पुनः नामकरण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ॰ विक्रम साराभाई के सम्मान में किया गया। .

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वैमानिक शास्त्र

वैमानिक शास्त्र में निरूपित 'शकुन विमान' 'द विमानिक शास्त्र' नाम से सन् १९७३ में प्रकाशित 'वैमानिक शास्त्र' का अंग्रेजी अनुवाद वैमानिक शास्त्र, संस्कृत पद्य में रचित एक ग्रन्थ है जिसमें विमानों के बारे में जानकारी दी गयी है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में वर्णित विमान रॉकेट के समान उड़ने वाले प्रगत वायुगतिकीय यान थे। इस पुस्तक के अस्तित्व की घोषणा सन् 1952 में आर जी जोसयर (G. R. Josyer) द्वारा की गयी। जोसयर ने बताया कि यह ग्रन्थ पण्डित सुब्बाराय शास्त्री (1866–1940) द्वारा रचित है जिन्होने इसे 1918–1923 के बीच बोलकर लिखवाया। इसका एक हिन्दी अनुवाद 1959 में प्रकाशित हुआ जबकि संस्कृत पाठ के साथ अंग्रेजी अनुवाद 1973 में प्रकाशित हुआ। इसमें कुल ८ अध्याय और 3000 श्लोक हैं। पण्डित सुब्बाराय शास्त्री के अनुसार इस ग्रंथ के मुख्य जनक रामायणकालीन महर्षि भारद्वाज थे। भारद्वाज ने 'विमान' की परिभाषा इस प्रकार की है- .

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गणकीय तरल यांत्रिकी

गणकीय तरल यांत्रिकी द्वारा नासा के यान ऑर्बिटर के पार्श्व प्रवाह क्षेत्र का अनुमानित चित्र गणकीय तरल गतिकी या अभिकलनीय तरल गतिकी (Computational Fluid Dynamics or CFD), तरल यांत्रिकी (fluid mechanics) और गणक विधियों का एक एक मिश्र विषय है जिसमें आंकिक विधियों (Numerical Methods) की मदद से तरल गति के जटिल समीकरणों का हल निकाला जाता है। संगणकों के आ जाने से इस विषय में शोध और विकास के कार्य तेजी से चलने लगे हैं। .

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गति के समीकरण

गति के समीकरण, ऐसे समीकरणों को कहते हैं जो किसी पिण्ड के स्थिति, विस्थापन, वेग आदि का समय के साथ सम्बन्ध बताते हैं। गति के समीकरणों का स्वरूप भिन्न-भिन्न हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि गति में स्थानान्तरण हो रहा है या केवल घूर्णन है या दोनो हैं; एक ही बल काम कर रहा है या कई; बल (त्वरण) नियत है या परिवर्तनशील; पिण्ड का द्रव्यमान स्थिर है या बदल रहा है (जैसे रॉकेट में) आदि। परम्परागत भौतिकी (क्लासिकल फिजिक्स) में गति का समीकरण इस प्रकार है: m \cdot \frac .

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आइएनएस किलतान

आइ॰एन॰एस किलतान (P30) भारतीय नौसेना  का एक पनडुब्बी रोधी लघु युद्धपोत (कार्वेट) है, जिसे परियोजना 28 के तहत बनाया गया है। यह भारतीय नौसेना द्वारा अन्तर्ग्रहण के विभिन्न चरणों में कमोर्ता श्रेणी के चार युद्धपोतों में से तीसरा है। यह पोत गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स, कोलकाता द्वारा बनाया गया है, तथा 26 मार्च 2013 को इसका जलावतरण किया गया था। किलतान भारतीय नौसेना द्वारा किया जाने वाला स्थानीयकरण का प्रतिनिधि प्रयास है जिसमें प्रयुक्त 90% सामग्री भारत में ही तैयार की गई है। .

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इंजन

चार-स्ट्रोक वाला आन्तरिक दहन इंजन आजकल अधिकांश कामों में इस्तेमाल होता है इंजन या मोटर उस यंत्र या मशीन (या उसके भाग) को कहते हैं जिसकी सहायता से किसी भी प्रकार की ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इंजन की इस यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग, कार्य करने के लिए किया जाता है। अर्थात् इंजन रासायनिक ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, गतिज ऊर्जा या ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है। वर्तमान युग में अंतर्दहन इंजन तथा विद्युत मोटरों का अत्यन्त महत्व है। .

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अन्तर्दहन इंजन

42-सिलिण्डर वाला JSC Zvezda M503 डीजल इंजन, 2940 kW अन्तर्दहन इंजन (अन्तः दहन इंजन या आन्तरिक दहन इंजन या internal combustion engine) ऐसा इंजन है जिसमें ईंधन एवं आक्सीकारक सभी तरफ से बन्द एक बेलानाकार दहन कक्ष में जलते हैं। दहन की इस क्रिया में प्रायः हवा ही आक्सीकारक का काम करती है। जिस बन्द कक्ष में दहन होता है उसे दहन कक्ष (कम्बशन चैम्बर) कहते हैं। दहन की यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी (exothermic reaction) होती है जो उच्च ताप एवं दाब वाली गैसें उत्पन्न करती है। ये गैसें दहन कक्ष में लगे हुए एक पिस्टन को धकेलती हुए फैलतीं है। पिस्टन एक कनेक्टिंग रॉड के माध्यम से एक क्रेंक शाफ्ट(घुमने वाली छड़) से जुड़ा होता है, इस प्रकार जब पिस्टन नीचे की तरफ जाता है तो कनेक्टिंग रॉड से जुड़ी क्रेंक शाफ्ट घुमने लगती है, इस प्रकार ईंधन की रासायनिक ऊर्जा पहले ऊष्मीय ऊर्जा में बदलती है और फिर ऊष्मीय ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में बदल जाती है। अन्तर्दहन इंजन के विपरीत बहिर्दहन इंजन, (जैसे, वाष्प इंजन) में कार्य करने वाला तरल (जैसे वाष्प) किसी अन्य कक्ष में किसी तरल को गरम करके प्राप्त किया जाता है। प्रायः पिस्टनयुक्त प्रत्यागामी इंजन, जिसमें कुछ-कुछ समयान्तराल के बाद दहन होता है (लगातार नहीं), को ही अन्तर्दहन इंजन कहा जाता है किन्तु जेट इंजन, अधिकांश रॉकेट एवं अनेक गैस टर्बाइनें भी अन्तर्दहन इंजन की श्रेणी में आती हैं जिनमें दहन की क्रिया अनवरत रूप से चलती रहती है। .

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अन्वेषणों की समय-रेखा

यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तकनीकी खोजों की समय के सापेक्ष सूची दी गयी है। .

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अंतरिक्ष शटल

अंतरिक्ष शटल संयुक्त राज्य अमरीका में नासा द्वारा मानव सहित या रहित उपग्रह यातायात प्रणाली को कहा जाता है। यह शटल पुन: प्रयोगनीय यान होता है और इसमें कंप्यूटर डाटा एकत्र करने और संचार के तमाम यंत्र लगे होते हैं।|हिन्दुस्तान लाइव|२७ दिसम्बर २००९ इसमें सवार होकर ही वैज्ञानिक अंतरिक्ष में पहुंचते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों के खाने-पीने और यहां तक कि मनोरंजन के साजो-सामान और व्यायाम के उपकरण भी लगे होते हैं। अंतरिक्ष शटल को स्पेस क्राफ्ट भी कहा जाता है, किन्तु ये अंतरिक्ष यान से भिन्न होते हैं। इसे एक रॉकेट के साथ जोड़कर अंतरिक्ष में भेजा जाता है, लेकिन प्रायः यह सामान्य विमानों की तरह धरती पर लौट आता है। इसे अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए कई बार प्रयोग किया जा सकता है, तभी ये पुनःप्रयोगनीय होता है। इसे ले जाने वाले रॉकेट ही अंतरिक्ष यान होते हैं। आरंभिक एयरक्राफ्ट एक बार ही प्रयोग हो पाया करते थे। शटल के ऊपर एक विशेष प्रकार की तापरोधी चादर होती है। यह चादर पृथ्वी की कक्षा में उसे घर्षण से पैदा होने वाली ऊष्मा से बचाती है। इसलिए इस चादर को बचाकर रखा जाता है। यदि यह चादर न हो या किसी कारणवश टूट जाए, तो पूरा यान मिनटों में जलकर खाक हो जाता है। चंद्रमा पर कदम रखने वाले अभियान के अलावा, ग्रहों की जानकारी एकत्र करने के लिए जितने भी स्पेसक्राफ्ट भेजे जाते है, वे रोबोट क्राफ्ट होते है। कंप्यूटर और रोबोट के द्वारा धरती से इनका स्वचालित संचालन होता है। चूंकि इन्हें धरती पर वापस लाना कठिन होता है, इसलिए इनका संचालन स्वचालित रखा जाता है। चंद्रमा के अलावा अभी तक अन्य ग्रहों पर भेजे गये शटल इतने लंबे अंतराल के लिये जाते हैं, कि उनके वापस आने की संभावना बहुत कम या नहीं होती है। इस श्रेणी का शटल वॉयेजर १ एवं वॉयेजर २ रहे हैं। स्पेस शटल डिस्कवरी कई वैज्ञानिकों के साथ अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की मरम्मत करने और अध्ययन के लिए अंतरिक्ष में गया था। .

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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अंतरिक्ष अन्वेषण

सैटर्न V रॉकेट जिसका उपयोग अमेरिकी चंग्रमा अभियानों पर किया जाता है अंतरिक्ष यात्रा या अंतरिक्ष अन्वेषण ब्रह्माण्ड की खोज और उसका अन्वेषण अंतरिक्ष की तकनीकों का उपयोग करके करने को कहते हैं। अंतरिक्ष का शारीरिक तौर पर अन्वेषण मानवीय अंतरिक्ष उड़ानों व रोबोटिक अंतरिक्ष यानो द्वारा किया जाता है। हालाँकि खगोलविज्ञान के ज़रिए हम अंतरिक्ष में मौजूद वस्तुओं का निरिक्षण मानव इतिहास में लंबे समय से करते आ रहे हैं परन्तु २०वि सदी की शुरुआत में बड़े व कारगर रॉकेटों के कारण हमने अंतरिक्ष अन्वेषण को एक सत्य बना दिया है। अंतरिक्ष अन्वेषण में आधुकिन वैज्ञानिक अनुसन्धान, कई राष्ट्रों को एक जुट करना, मानवता का भविष्य में जीवित रहना पक्का करना और अन्य देशों के खिलाफ़ सैन्य व सैन्य तकनीकों का विकास करना शामिल है। कई बार अंतरिक्ष अन्वेषण पर अलग-अलग तरह से टिका की गई है। अंतरिक्ष अन्वेषण का उपयोग शीत युद्ध जैसे कालों में अपना कौशल व वर्चस्व सिद्ध करने के लिए अक्सर होता आया है। अंतरिक्ष अन्वेषण की शुरुआत सोवियत संघ और अमेरिका के बिच शुरू हुई "अंतरिक्ष होड़" से हुई जब सोवियत संघ ने ४ अक्टूबर १९५७ को मानव-निर्मित पहली वस्तु, स्पुतनिक 1 पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किया था और इसके बाद अमेरिकी अपोलो ११ अंतरिक्ष यान को चंद्रमा पर २० जुलाई १९६९ को उतारा गया था। इन दोनों घटनाओं को अपने काल की बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है। सोवित अंतरिक्ष कार्यक्रम ने कई शुरूआती उपलब्धियां हासिल की जिनमे १९५७ में पहले जीवित प्राणी को कक्षा में भेजना, १९६१ में पहली मानवीय अंतरिक्ष उड़ान (यूरी गगारिन वोस्तोक 1 में), १९६५ में पहला अंतरिक्ष में कदम (एलेक्सी लेओनोव द्वारा), १९६६ में किसी बाह्य अंतरिक्ष वस्तु पर पहली स्वयंचलित लैंडिंग और १९७१ में पहला अंतरिक्ष स्टेशन (सल्यूट 1) भेजना शामिल है। अन्वेषण व खोज के पहले २० वर्षों बाद एक-तरफा उड़ानों से ध्यान पुनः उपयोग में लाए जा सकने वाले स्रोतों की ओर मुड़ा जिनमे स्पेस शटल कार्यक्रम शामिल है और होड़ से मिलजुल कर काम करने पर केंद्रित हुआ जिसका परिणाम अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) है। २००० में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ने एक सफल मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके साथ ही युओपीय संघ, जापान और भारत ने भी भविष्य में मानवी अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाई है। चीन, रूस, जापान और भारत ने २१वि सदी में चंद्रमा पर मानव अभियानों की शुरुआत ककी है और युओपीय संघ ने चंद्रमा और मंगल, दोनों पर मानव अभियानों की शुरुआत करने का निर्णय लिया है। १९९० के बाद से कई निजी कंपनियों ने अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा देना शुरू किया है और इसके बाद चंद्रमा का निजी अन्वेषण भी करने की मांग की है। श्रेणी:अंतरिक्ष.

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उड़ान

उड़ान एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक वस्तु, किसी सतह के सीधे संपर्क के बिना वायुमंडल में (पृथ्वी के सम्बन्ध में) या इससे बाहर (अंतरिक्ष उड़ान के सम्बन्ध में) चलती है। इसे ऐरोडायनामिक लिफ्ट, एयर प्रप्लशन, बोएन्सी या बैलेस्टिक मूवमेंट पैदा करके प्राप्त किया जा सकता है। बहुत सी चीजें उड़ती हैं जैसे पक्षी,कीट और मानव निर्मित जैसे मिसाइल, विमान हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, गुब्बारे,रॉकेट व अंतरिक्ष यान। .

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उदीयमान तकनीकों की सूची

नीचे कुछ उदीयमान प्रौद्योगिकी (Emerging technology) की सूची दी गयी है। उदीयमान तकनीकें, नवीन तकनीकें होती हैं; इनमें तकनीकी जगत में उथल-पुथल मचाने की क्षमता (disruptive technologies) होती है - ये पहले से जड़ जमायी तकनीकों को पिछाड सकती हैं। उदाहरण के लिये सूचना प्रौद्योगिकी ऐसी ही एक तकनीकी है जो पहले ही उथल-पुथल कर चुकी है। इसी प्रकार कृत्रिम बुद्धि जो कि सूचना प्रौद्योगिकी के अन्दर ही आती है, इसमें भी उथल-पुथल करने की प्रबल क्षमता है। .

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१९ सितम्बर

19 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 262वॉ (लीप वर्ष मे 263 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 103 दिन बाकी है। .

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१९४६

1946 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९६७

1967 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२०१०

वर्ष २०१० वर्तमान वर्ष है। यह शुक्रवार को प्रारम्भ हुआ है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष २०१० को अंतराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इन्हें भी देखें 2010 भारत 2010 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2010 साहित्य संगीत कला 2010 खेल जगत 2010 .

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२४ अक्टूबर

24 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 297वॉ (लीप वर्ष मे 298 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 68 दिन बाकी है।.

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३ दिसम्बर

3 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 337वॉ (लीप वर्ष में 338 वॉ) दिन है। साल में अभी और 28 दिन बाकी है। १२३४५६७८९ .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

Rocket, राकेट, रोकेट

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