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राष्ट्रभाषा

सूची राष्ट्रभाषा

राष्ट्रभाषा एक देश की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जिसे सम्पूर्ण राष्ट्र में भाषा कार्यों में (जैसे लिखना, पढ़ना और वार्तालाप) के लिए प्रमुखता से प्रयोग में लाया जाता है। वह भाषा जिसमें राष्ट्र के काम किए जायें। राष्ट्र के काम-धाम या सरकारी कामकाज के लिये स्वीकृत भाषा। .

सामग्री की तालिका

  1. 32 संबंधों: देवनागरी, नर्मद, नेपाली भाषा, पट्टाभि सीतारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन, पोर्टो रीको, फ़िलिपीनो भाषा, बनारसीदास चतुर्वेदी, बहुसंस्कृतिवाद, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, बेलारूस, भदन्त आनन्द कौसल्यायन, भारत, भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी, भारत की आधिकारिक भाषाएँ, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे, महाराष्ट्र राजभाषा सभा, पूना, मानस संगम, कानपुर, यूनानी भाषा, रामानन्द चट्टोपाध्याय, राष्ट्रभाषा विचार मंच, अम्बाला, लक्ष्मण नारायण गर्दे, शंकर दयाल सिंह, श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर, संसदीय राजभाषा समिति, सेनेगाम्बियाई भाषाएँ, हिन्दी, हिन्दी आन्दोलन, विश्वज्ञानकोश, आंग्ल-आयरी साहित्य, अथर्ववेद संहिता, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

देवनागरी

'''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि .

देखें राष्ट्रभाषा और देवनागरी

नर्मद

नर्मदाशंकर लालशंकर दवे (गुजराती: નર્મદાશંકર લાલશંકર દવે) (24 अगस्त 1833 – 26 फ़रवरी 1886), गुजराती के कवि विद्वान एवं महान वक्ता थे। वे नर्मद के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होने ही १८८० के दशक में सबसे पहले हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा था। गुजराती साहित्य के आधुनिक युग का समारंभ कवि नर्मदाशंकर 'नर्मद' (१८३३-१८८६ ई.) से होता है। वे युगप्रवर्त्तक साहित्यकार थे। जिस प्रकार हिंदी साहित्य में आधुनिक काल के आरंभिक अंश का 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है। हरिश्चंद्र की तरह ही उनकी प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। उन्होंने गुजराती साहित्य को गद्य, पद्य सभी दिशाओं में समृद्धि प्रदान की, किंतु काव्य के क्षेत्र में उनका स्थान विशेष है। लगभग सभ प्रचलित विषयों पर उन्होंने काव्यरचना की। महाकाव्य और महाछंदों के स्वप्नदर्शी कवि नर्मद का व्यक्तित्व गुजराती साहित्य में अद्वितीय है। गुजराती के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी ने उन्हें 'अर्वाचीनों में आद्य' कहा है। .

देखें राष्ट्रभाषा और नर्मद

नेपाली भाषा

नेपाली भाषा के क्षेत्र नेपाली भाषा या खस कुरा नेपाल की राष्ट्रभाषा था। यह भाषा नेपाल की लगभग ४४% लोगों की मातृभाषा भी है। यह भाषा नेपाल के अतिरिक्त भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों (आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय) तथा उत्तराखण्ड के अनेक भारतीय लोगों की मातृभाषा है। भूटान, तिब्बत और म्यानमार के भी अनेक लोग यह भाषा बोलते हैं। .

देखें राष्ट्रभाषा और नेपाली भाषा

पट्टाभि सीतारमैया

पट्टाभि सीतारमैया (24 नवम्बर सन् 1880 - 1959) भारतीय कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष, गांधीबाद के प्रख्यात आचार्य एवं व्याख्याता, उच्च कोटि के लेखक तथा मध्य प्रदेश के प्रथम राज्यपाल थे। डाक्टर पट्टाभि सीतारमैया का नाम आधुनिक भारत के इतिहास में उल्लेखनीय है। .

देखें राष्ट्रभाषा और पट्टाभि सीतारमैया

पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

देखें राष्ट्रभाषा और पुरुषोत्तम दास टंडन

पोर्टो रीको

पोर्टो रिको या प्युर्तो रिको उत्तर अमेरिका महाद्वीप में केरिबियन क्षेत्र में एक राष्ट्रमंडल है। .

देखें राष्ट्रभाषा और पोर्टो रीको

फ़िलिपीनो भाषा

फ़िलिपीनो फ़िलीपीन्स की राष्ट्रभाषा और राजभाषा है। श्रेणी:फ़िलिपीन्ज़ की भाषाएँ.

देखें राष्ट्रभाषा और फ़िलिपीनो भाषा

बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

देखें राष्ट्रभाषा और बनारसीदास चतुर्वेदी

बहुसंस्कृतिवाद

बहुसंस्कृतिवाद, बहु जातीय संस्कृति की स्वीकृति देना या बढ़ावा देना होता है, एक विशिष्ट स्थान के जनसांख्यिकीय बनावट पर यह लागू होती है, आमतौर पर यह स्कूलों, व्यापारों, पड़ोस, शहरों या राष्ट्रों जैसे संगठनात्मक स्तर पर होते हैं। इस संदर्भ में, बहुसंस्कृतिवादी, केन्द्र के रूप में कोई विशेष जातीय, धार्मिक समूह और/ या सांस्कृतिक समुदाय को बढ़ावा देने के बिना विशिष्ट जातीय और धार्मिक समूहों के लिए विस्तारित न्यायसम्मत मूल्य स्थिति की वकालत करते हैं। बहुसंस्कृतिवाद की नीति अक्सर आत्मसातकरण और सामाजिक एकीकरण अवधारणाओं के साथ विपरीत होती है। .

देखें राष्ट्रभाषा और बहुसंस्कृतिवाद

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् भारतीय स्वाधीनता की सिद्धि के बाद की राज्य सरकार ने बिहार विधान सभा द्वारा सन् 1948 ई. में स्वीकृत एक संकल्प के परिणामस्वरूप बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् की स्थापना राष्ट्रभाषा हिंदी की सर्वांगीण समृद्धि की सिद्धि के पवित्र उद्देश्य से सन् 1950 ई.

देखें राष्ट्रभाषा और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्

बेलारूस

बेलारूस (Белару́сь, लेटिन, بيَلارُث,; bʲɪlɐˈrusʲ), आधिकारिक रिपब्लिक ऑफ़ बेलारूस (Рэспубліка Беларусь; Республика Беларусь), पूर्व ज्ञात रूसी नाम ब्येलोरसिया (Белоруссия; हालांकि यह नाम अब बेलारूस में, रूसी भाषा में भी काम में नहीं लिया जाता), पूर्वी यूरोप का स्थल-रुद्ध देश है। बेलारूस की सीमा उत्तर-पूर्व में रूस से, दक्षिण में यूक्रेन से, पश्चिम में पोलैण्ड और उत्तर-पश्चिम में लिथुआनिया एवं लातविया से लगती है। इसकी राजधानी और सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर मिन्स्क है। इसके का 40% से अधिक भाग वन है। इसका सबसे प्रबल आर्थिक क्षेत्र सेवा उद्योग और विनिर्माण है। बीसवीं सदी तक, वर्तमान बेलारूस की भूमि को विभिन्न देशों ने अधिगृहित किया जिसमें प्रिन्सिपलिटी ऑफ़ पोलोतस्क (११वीं से १४वीं सदी), ग्रैंड डची ऑफ़ लिथुआनिया, पोलिश लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल और रूसी साम्राज्य शामिल हैं। .

देखें राष्ट्रभाषा और बेलारूस

भदन्त आनन्द कौसल्यायन

डॉ॰ भदन्त आनन्द कौसल्यायन (5 जनवरी 1905 - 22 जून 1988) बौद्ध भिक्षु, पालि भाषा के मूर्धन्य विद्वान तथा लेखक थे। इसके साथ ही वे पूरे जीवन घूम-घूमकर राष्ट्रभाषा हिंदी का भी प्रचार प्रसार करते रहे। वे 10 साल राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रधानमंत्री रहे। वे बीसवीं शती में बौद्ध धर्म के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तियों में गिने जाते हैं। .

देखें राष्ट्रभाषा और भदन्त आनन्द कौसल्यायन

भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

देखें राष्ट्रभाषा और भारत

भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी

हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है। .

देखें राष्ट्रभाषा और भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी

भारत की आधिकारिक भाषाएँ

भारत की आधिकारिक भाषा, हिन्दी है और अंग्रेज़ी सहायक या गौण आधिकारिक भाषा है; भारत के राज्य अपनी आधिकारिक भाषा (एँ) विधिक रूप से घोषित कर सकते हैं। नाही भारतीय संविधान और ना कोई भारतीय कानून किसी राष्ट्रभाषा को परिभाषित करता है। जिस समय संविधान लागू किया जा रहा था, उस समय अंग्रेज़ी आधिकारिक रूप से केन्द्र और राज्य दोनो स्तरों पर उपयोग में थी। संविधान द्वारा यह परिकल्पित किया गया था कि अगले १५ वर्षों में अंग्रेज़ी को चरणबद्ध रूप से हटा कर विभिन्न भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी, को उपयोग में लाया जाएगा, लेकिन तब भी संसद को यह अधिकार दिया गया था की वह विधिक रूप से उसके बाद भी अंग्रेज़ी का उपयोग हिन्दी के साथ केन्द्र स्तर पर और अन्य भाषाओं के साथ राज्य स्तर पर चालू रख सकती है। .

देखें राष्ट्रभाषा और भारत की आधिकारिक भाषाएँ

महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे

मराठीभाषी प्रदेश में राष्ट्रभाषा का प्रचार करने के हेतु गांधी जी की प्रेरणा से पूना में महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा की स्थापना हुई। आचार्य काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में 22 मई 1937 को पूना में महाराष्ट्र के रचनात्मक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक और सांस्कृतिक नेताओं आदि का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें महाराष्ट्र हिंदी प्रचार समिति के नाम से एक संगठन बनाया गया। आठ साल तक यह समिति, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा से संबद्ध रही। भाषा विषयक सिद्धांत के मतभेद के कारण इस संगठन ने सम्मेलन तथा वर्धा समिति से संबंध तोड़ दिया। 12 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई, जिसमें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का निश्चय किया गया। संस्था अब "महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा" के नाम से काम करने लगी। .

देखें राष्ट्रभाषा और महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे

महाराष्ट्र राजभाषा सभा, पूना

मराठी भाषी प्रदेश में राष्ट्रभाषा का प्रचार करने के हेतु गांधी जी की प्रेरणा से महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा की स्थापना हुई। आचार्य काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में तादृ 22 मई 1937 को पूना में महाराष्ट्र के रचनात्मक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक और सांस्कृतिक नेताओं आदि का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें 'महाराष्ट्र हिंदी प्रचार समिति' के नाम से एक संगठन बनाया गया। आठ साल तक यह समिति राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा से संबद्ध रही। भाषा विषयक सिद्धांत के मतभेद के कारण इस संगठन ने संमेलन तथा वर्धा समिति से संबंध तोड़ दिया। 12 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई, जिसमें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का निश्चय किया गया। संस्था अब महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के नाम से काम करने लगी। .

देखें राष्ट्रभाषा और महाराष्ट्र राजभाषा सभा, पूना

मानस संगम, कानपुर

मानस संगम, कानपुर (उत्तर प्रदेश) की एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था है। इसकी स्थापना सन् १९६९ के दिसम्बर माह में हुई थी। इसके संस्थापक डॉ बद्रीनारायण तिवारी हैं। .

देखें राष्ट्रभाषा और मानस संगम, कानपुर

यूनानी भाषा

यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.

देखें राष्ट्रभाषा और यूनानी भाषा

रामानन्द चट्टोपाध्याय

रामानंद चट्टोपाध्याय (1865 – 1943) कोलकाता से प्रकाशित पत्रिका 'मॉडर्न रिव्यू' के संस्थापक, संपादक एवं मालिक थे। उन्हें भारतीय पत्रकारिता का जनक माना जाता है। .

देखें राष्ट्रभाषा और रामानन्द चट्टोपाध्याय

राष्ट्रभाषा विचार मंच, अम्बाला

राष्ट्रभाषा विचार मंच, अम्बाला की स्थापना २६ जनवरी २००० को हुई थी। इसका उद्देश्य राजनैतिक स्वाधीन भारत में राष्ट्रभाषा की उपेक्षापूर्ण नीति से उत्पन्न समाज में भाषा-संस्कृति के प्रति उदासीनता के कारण राष्ट्रीयता की भावना में ह्रास के दृष्टिगत, समाज में भाषा-संस्कृति के विचार के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का संचार करना तथा राष्ट्र के स्वाभिमान में अभिवृद्धि से राष्ट्र को परम वैभव की प्राप्ति की और ले जाना है। .

देखें राष्ट्रभाषा और राष्ट्रभाषा विचार मंच, अम्बाला

लक्ष्मण नारायण गर्दे

लक्ष्मण नारायण गर्दे (1889-1960) प्रख्यात संपादक तथा साहित्यकार थे। हिंदी पत्रकारिता को आधुनिक उच्चस्तर तथा उन्नत स्वरूप तक पहुँचाने का श्रेय जिन आद्य संपादकाचार्यों को है, उनमें गर्दे जी का नाम प्रमुख है। 50 वर्षों तक आपने भारतीय साहित्य और संस्कृति का पत्रकारिता के माध्यम से जो संवर्धन किया है, वह सदा स्मरणीय रहेगा। हिंदी पत्रकारिता के विकासकाल में आपने उसे ऐसे साँचे में ढालने का सफल कार्य किया, जो राष्ट्रीयता से तो ओतप्रोत था ही, आध्यात्मिकता, नैतिकता और सांस्कृतिक भावना से भी युक्त था। .

देखें राष्ट्रभाषा और लक्ष्मण नारायण गर्दे

शंकर दयाल सिंह

शंकर दयाल सिंह (२७ दिसम्बर,१९३७ - २७ नवम्बर १९९५) भारत के राजनेता तथा हिन्दी साहित्यकार थे। वे राजनीति व साहित्य दोनों क्षेत्रों में समान रूप से लोकप्रिय थे। उनकी असाधारण हिन्दी सेवा के लिये उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। उनके सदाबहार बहुआयामी व्यक्तित्व में ऊर्जा और आनन्द का अजस्र स्रोत छिपा हुआ था। उनका अधिकांश जीवन यात्राओं में ही बीता और यह भी एक विचित्र संयोग ही है कि उनकी मृत्यु यात्रा के दौरान उस समय हुई जब वे अपने निवास स्थान पटना से भारतीय संसद के शीतकालीन अधिवेशन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने दिल्ली आ रहे थे। नई-दिल्ली रेलवे स्टेशन पर २७ नवम्बर १९९५ की सुबह ट्रेन से कहकहे लगाते हुए शंकर दयाल सिंह तो नहीं उतरे, अपितु बोझिल मन से उनके परिजनों ने उनके शव को उतारा। .

देखें राष्ट्रभाषा और शंकर दयाल सिंह

श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर

श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इन्दौर, हिन्दी के प्रचार, प्रसार और विकास के लिये कार्यरत देश की प्राचीनतम सन्स्थाओ में से एक है। समिति की स्थापना सन् १९१० में महात्मा गांधी की प्रेरणा से हुई थी। सन १९१८ में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आव्हान किया था। यहाँ हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान ही पूज्य बापु ने अहिन्दी भाषी प्रदेशो में हिन्दी के प्रचार के लिये अपने पुत्र देवदत्त गांधी सहित पान्च लोगो को हिन्दी दूत बनाकर तत्कालीन मद्रास प्रान्त में भेजा था। इसी अधिवेशन में तत्कालीन मद्रास प्रान्त में "हिन्दी प्रचार सभा" की स्थापना का संकल्प लेकर इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु धन संग्रह किया गया था। वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी हिन्दी साहित्य समिति की ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। इस तरह देश के अहिन्दी भाषी राज्यो में हिन्दी के प्रचार के पहले प्रयास में श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की भूमिका अत्यन्त उल्लेखनीय और प्रभावशाली रही है। सन १९३५ में समिति में पुनः हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता भी गांधीजी ने की। समिति द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका "वीणा" देश की एकमात्र पत्रिका है जो सन १९२७ से निरन्तर प्रकाशित हो रही है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारीलाल द्विवेदी, 'निराला','दिनकर' सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, प्रेमचन्द, जयशन्कर प्रसाद, व्रन्दावन लाल वर्मा, अम्रतलाल नागर तथा माखनलाल चतुर्वेदी सहित देश के लगभग सभी शीर्षस्थ लेखक, कवि, निबन्धकार, कहानीकार और आलोचक नियमित रूप से "वीणा" में लिखते रहे हैं। यही कारण है कि विख्यात कवियत्री महादेवी वर्मा अक्सर ये कहा करती थी कि "हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास समिति और वीणा के जिक्र के बिना सदैव अपूर्ण रहेगा".

देखें राष्ट्रभाषा और श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर

संसदीय राजभाषा समिति

महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय राजभाषा विषय पर विचार-विमर्श किया था और यह निर्णय लिया कि देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूंप में अंगीकृत किया जाए। इसी आधार पर संविधान के अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया। किन्तु, संविधान के निर्माण तथा अंगीकरण के समय यह परिकल्पना की गई थी कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए प्रारम्भिक 15 वर्षों तक अर्थात 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं। परिवर्तन के लिए 15 वर्ष की कालावधि पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की गई थी ताकि उक्त अन्तराल के बाद निर्बाध भाषाई-परिवर्तन हेतु आवश्यक व्यवस्था तथा तैयारी की जा सके। संविधान के निर्माता इस बात के प्रति जागरूंक थे कि सभी क्षेत्रों में 1965 तक भाषाई परिवर्तन करना सम्भव न होगा। उन्हें यह भी आभास रहा होगा कि सुचारूं परिवर्तन के हित में 15 वर्ष की कालावधि के दौरान भी अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के क्रमिक प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में भी संघ की राजभाषा के रूंप में हिंदी के विकास का संकेत दिया गया है। संविधान निर्माताओं ने इस भाषा के एक अखिल भारतीय रूंप की कल्पना की थी जो अन्य भारतीय भाषाओं की सहायता लेकर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा व्यापक रूंप से स्वीकार किए जाने की क्षमता प्राप्त कर सके। 1963 में राजभाषा अधिनियम अधिनियमित किया गया। अधिनियम में यह व्यवस्था भी थी कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी अहिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए। सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। उक्त अधिनियम में, अन्य बातों के साथ-साथ, यह भी प्रावधान था कि संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति का पुनर्विलोकन करने के लिए एक राजभाषा समिति गठित की जाए। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (3) के प्रख्यापन के दस वर्ष बाद इस समिति का गठन किया जाना था। समिति का गठन अधिनियम की धारा 4 के तहत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में संसद के 30 सदस्य होने का प्रावधान है, 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से। बाद में 1977, 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों के पश्चात् समिति का पुनर्गठन हुआ है। समिति के कार्यकलाप और गतिविधियां मुख्यतः राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 में दी गई हैं। सुलभ संदर्भ के लिए राजभाषा अधिनियम की धारा 4 को नीचे उद्धृत किया गया है.

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सेनेगाम्बियाई भाषाएँ

सेनेगाम्बियाई भाषाएँ (Senegambian languages) पश्चिम अफ़्रीका में बोले जाने वाली कुछ भाषाओं का एक भाषा-परिवार है। यह नाइजर-कांगो भाषा-परिवार की एक शाखा है और इसमें फ़ुला भाषा की सभी उपभाषाएँ, सेरेर भाषा और सेनेगल की राष्ट्रभाषा (वोलोफ़ भाषा) शामिल हैं। सेनेगाम्बियाई भाषाओं के बोलने वाले सेनेगल, गाम्बिया, दक्षिणी मॉरीतानिया, गिनी-बिसाऊ और गिनी में रहते हैं। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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हिन्दी आन्दोलन

हिन्दी आन्दोलन भारत में हिन्दी एवं देवनागरी को विविध सामाजिक क्षेत्रों में आगे लाने के लिये विशेष प्रयत्न हैं। यह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन में साहित्यकारों, समाजसेवियों (नवीन चन्द्र राय, श्रद्धाराम फिल्लौरी, स्वामी दयानन्द सरस्वती, पंडित गौरीदत्त, पत्रकारों एवं स्वतंत्रतता संग्राम-सेनानियों (महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन आदि) का विशेष योगदान था। .

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विश्वज्ञानकोश

विश्वज्ञानकोश, विश्वकोश या ज्ञानकोश (Encyclopedia) ऐसी पुस्तक को कहते हैं जिसमें विश्वभर की तरह तरह की जानने लायक बातों को समावेश होता है। विश्वकोश का अर्थ है विश्व के समस्त ज्ञान का भंडार। अत: विश्वकोश वह कृति है जिसमें ज्ञान की सभी शाखाओं का सन्निवेश होता है। इसमें वर्णानुक्रमिक रूप में व्यवस्थित अन्यान्य विषयों पर संक्षिप्त किंतु तथ्यपूर्ण निबंधों का संकलन रहता है। यह संसार के समस्त सिद्धांतों की पाठ्यसामग्री है। विश्वकोश अंग्रेजी शब्द "इनसाइक्लोपीडिया" का समानार्थी है, जो ग्रीक शब्द इनसाइक्लियॉस (एन .

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आंग्ल-आयरी साहित्य

अंग्रेजों द्वारा आयरलैंड विजय करने का कार्य हेनरी द्वितीय द्वारा 12वीं शताब्दी (1171) में आरंभ हुआ और हेनरी अष्टम द्वारा 16वीं शताब्दी (1541) में पूर्ण हुआ। चार सौ वर्षों के संघर्ष के पश्चात् वह 20वीं शताब्दी (1922) में स्वतंत्र हुआ। इस दीर्घकाल में अंग्रेजों का प्रयत्न रहा कि आयरलैंड को पूरी तरह इंग्लैंड के रंग में रंग दें, उसकी राष्ट्रभाषा गैलिक को दबाकर उसे अंग्रेजीभाषी बनाएँ। इस कार्य में वे बहुत अंशों में सफल भी हुए। आँग्ल-आयरी साहित्य से तात्पर्य उस साहित्य से है जो अंग्रेजीभाषी आयरवासियों द्वारा रचा गया है और जिसमें आयर की निजी सभ्यता, संस्कृति और प्रकृति की विशेष छाप है। गैलिक अपने अस्तित्व के लिए 17वीं शताब्दी तक संघर्ष करती रही और स्वतंत्र होने के बाद आयर ने उसे अपनी राष्ट्रभाषा माना। फिर भी लगभग चार सौ वर्षों तक आयरवासियों ने जिस विदेशी माध्यम से अपने को व्यक्त किया है वह पैतृक दाय के रूप में उनकी अपनी राष्ट्रीय संपत्ति है। इसमें से बहुत कुछ इस कोटि का है कि वह अंग्रेजी साहित्य का अविभाज्य अंग बन गया है और उसने अंग्रेजी साहित्य को प्रभावित भी किया है, पर बहुत कम ऐसा है जिसमें आयर के हृदय की अपनी खास धड़कन नहीं सुनाई देती। इस साहित्य के लेखकों में हमें तीन प्रकार के लोग मिलते हैं: एक वे जो इंग्लैंड से जाकर आयर में बस गए पर वे अपने संस्कार से पूरे अंग्रेज बने रहे, दूसरे वे जो आयर से आकर इंग्लैंड में बस गए और जिन्होंने अपने राष्ट्रीय संस्कारों को भूलकर अंग्रेजी संस्कारों को अपना लिया, तीसरे वे जो मूलत: चाहे अंग्रेज हों चाहे आयरी, पर जिन्होंने आयर की आत्मा से अपने को एकात्म करके साहित्यरचना की। मुख्यत: इस तीसरी श्रेणी के लोग ही आँग्ल-आयरी साहित्य को वह विशिष्टता प्रदान करते हैं जिससे भाषा की एकता के बावजूद अंग्रेजी साहित्य में उसको अलग स्थान दिया जाता है। यह विशिष्टता उसकी संगीतमयता, भावाकुलता, प्रतीकात्मकता, काल्पनिकता, अतिमानव और अतिप्रकृति के प्रति आस्था और कभी-कभी बलात् इन सबसे विमुख एक ऐसी बौद्धिकता और तार्किकता में है जो उद्धत और क्रांतिकारिणी प्रतीत होती है। यही है जो एक युग में विलियम बटलर यीट्स को भी जन्म देती है और जार्ज बरनार्ड शा को भी। आँग्ल-आयरी साहित्य का आरंभ संभवत: लियोनेल पावर के संगीत-विषयक लेख से होता है जो 1395 में लिखा गया था; पर साहित्यिक महत्व का प्रथम लेख शायद रिचर्ड स्टैनीहर्स्ट (1547-1618) का माना जाएगा जो आयर के इतिहास के संबंध में हालिनशेड के क्रानिकिल (1578) में सम्मिलित किया गया था। 17वीं शताब्दी के कवियों में डेनहम, रासकामन, टेट; नाट्यकारों में ओरेनी और इतिहासकारों में सर जान टेंपिल के नाम लिए जाएँगे। 18वीं शताब्दी इंग्लैंड में गद्य के चरम विकास के लिए प्रसिद्ध है। वाग्मिता, नाटक, उपन्यास, दर्शन, निबंध सबमें अद्भुत उन्नति हुई। इसमें आयरियों का योगदान अंग्रेजों से किसी भी दशा में कम नहीं माना जाएगा। पार्लियामेंट में बोलनेवालों में एडमंड बर्क (1729-97) का नाम सर्वप्रथम लिया जाएगा। "इंपीचमेंट ऑव वारेन हेस्टिंग्ज़" की प्रत्याशा किसी अंग्रेज से नहीं की जा सकती थी; उसमें अंग्रजों के आत्मनियंत्रण का भी प्रभाव है। पार्लियामेंट के अन्य वक्ताओं में फ़िलपाट क्यरन (1750-1817) और हेनरी ग्राटन (1746-1820) के नाम भी सम्मानपूर्वक लिए जाएँगे, यद्यपि उनके विषय प्राय: आयर से संबद्ध और सीमित होते थे। 18वीं शताब्दी उपन्यासों के उद्भव का काल है। सेंट्सबरी ने जिन चार लेखकों को उपन्यास के रथ का चार पहिया कहा है, उनमें एक स्टर्न (1713-68) हैं। ये आयरमूलक थे और यद्यपि ये आजीवन इंग्लैंड में ही रहे, उनके उपन्यास ने इस प्रकार के चरित्र को जन्म दिया जो भावना के उद्वेग में पूरी तरह बहता है। दूसरे उपन्यासकार गोल्डस्मिथ (1728-74) ने उपन्यास में सामान्य घरेलू जीवन की स्थापना की। जोनाथान स्विफ़्ट (1667-1745) ने सरल शैली में व्यंग्य लिखने में प्रसिद्धि प्राप्त की। उनका ग्रंथ "गलिवर्स ट्रैवेल" मानवता पर सबसे बड़ा व्यंग है। उसे बालविनोद बनाकर लेखक ने मानवता पर व्यंग्य किया है। जार्ज बर्कले (1685-1753) ने यूरोपीय दर्शनशास्त्र में विचार के सूक्ष्म आधारों का सूत्रपात किया। नाट्यकारों में विलियम कांग्रीव (1670-1729), शेरिडन (1751-1816) और जार्ज फ़रकुहर (1668-1707) के नाम उल्लेखनीय हैं। इस शताब्दी में कोई प्रसिद्ध कवि नहीं हुआ। आयर के इतिहास में 19वीं सदी राष्ट्रीयता, उदार मनोवृत्ति, क्रांति की विचारधारा, रूमानी उद्भावना और पुरातन के प्रति अनुराग के लिए प्रसिद्ध है। काव्य के क्षेत्र में, शारलट ब्रुक (1740-93) ने गैलिक कविताओं के अनुवाद अंग्रेजी में किए थे; जे.

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अथर्ववेद संहिता

अथर्ववेद संहिता हिन्दू धर्म के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात मन्त्र भाग है। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ जादू, चमत्कार, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के रज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हैं और उनके इस वेद को प्रमाणिकता स्वंम महादेव शिव की है, ऋषि अथर्व पिछले जन्म मैं एक असुर हरिन्य थे और उन्होंने प्रलय काल मैं जब ब्रह्मा निद्रा मैं थे तो उनके मुख से वेद निकल रहे थे तो असुर हरिन्य ने ब्रम्ह लोक जाकर वेदपान कर लिया था, यह देखकर देवताओं ने हरिन्य की हत्या करने की सोची| हरिन्य ने डरकर भगवान् महादेव की शरण ली, भगवन महादेव ने उसे अगले अगले जन्म मैं ऋषि अथर्व बनकर एक नए वेद लिखने का वरदान दिया था इसी कारण अथर्ववेद के रचियता श्री ऋषि अथर्व हुए| .

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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