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राधेश्याम कथावाचक

सूची राधेश्याम कथावाचक

राधेश्याम कथावाचक (1890 - 1963) पारसी रंगमंच शैली के हिन्दी नाटककारों में एक प्रमुख नाम है। उनका जन्म 25 नवम्बर 1890 को उत्तर-प्रदेश राज्य के बरेली शहर में हुआ था। अल्फ्रेड कम्पनी से जुड़कर उन्होंने वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, श्रीकृष्णावतार आदि अनेक नाटक लिखे। परन्तु सामान्य जनता में उनकी ख्याति राम कथा की एक विशिष्ट शैली के कारण फैली। लोक नाट्य शैली को आधार बनाकर खड़ी बोली में उन्होंने रामायण की कथा को 25 खण्डों में पद्यबद्ध किया। इस ग्रन्थ को राधेश्याम रामायण के रूप में जाना जाता है। आगे चलकर उनकी यह रामायण उत्तरप्रदेश में होने वाली रामलीलाओं का आधार ग्रन्थ बनी। 26 अगस्त 1963 को 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। 24 नवम्बर 2012 दैनिक ट्रिब्यून, अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013 .

सामग्री की तालिका

  1. 3 संबंधों: नाटक, राधेश्याम रामायण, राम लीला

नाटक

नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है। नाट्यशास्त्र में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है। .

देखें राधेश्याम कथावाचक और नाटक

राधेश्याम रामायण

राधेश्याम रामायण की रचना राधेश्याम कथावाचक ने की थी। इस ग्रन्थ में आठ काण्ड तथा २५ भाग है। इस रामायण में श्री राम की कथा का वर्णन इतना मनोहारी ढँग से किया गया है कि समस्त राम प्रेमी जब-जब इस रचना का रसपान करते है तब-तब वे इसके प्रणेता के प्रति अपना आभार व्यक्त करते है। हिन्दी, उर्दू, अवधी और ब्रजभाषा के आम शब्दों के अलावा एक विशेष गायन शैली में रचित राधेश्याम रामायण गाँव, कस्बा और शहरी क्षेत्र के धार्मिक लोगों में इतनी लोकप्रिय हुई कि राधेश्याम कथावाचक के जीवनकाल में ही इस ग्रन्थ की हिन्दी व उर्दू में पौने दो करोड़ से अधिक प्रतियाँ छपीं और बिकीं। .

देखें राधेश्याम कथावाचक और राधेश्याम रामायण

राम लीला

रामलीला का एक दृश्य। रामलीला उत्तरी भारत में परम्परागत रूप से खेला जाने वाला राम के चरित पर आधारित नाटक है। यह प्रायः विजयादशमी के अवसर पर खेला जाता है। .

देखें राधेश्याम कथावाचक और राम लीला