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रसविद्या

सूची रसविद्या

रसविद्या, मध्यकालीन भारत की किमियागारी (alchemy) की विद्या है जो दर्शाती है कि भारत भौतिक संस्कृति में भी अग्रणी था। भारत में केमिस्ट्री (chemistry) के लिये "रसायन शास्त्र", रसविद्या, रसतन्त्र, रसशास्त्र और रसक्रिया आदि नाम प्रयोग में आते थे। जहाँ रसविद्या से सम्बन्धित क्रियाकलाप किये जाते थे उसे रसशाला कहते थे। इस विद्या के मर्मज्ञों को रसवादिन् कहा जाता था। रसविद्या का बड़ा महत्व माना गया है। रसचण्डाशुः नामक ग्रन्थ में कहा गया है- इसी तरह- .

27 संबंधों: ढंकगिरि, नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक), नागार्जुन (रसायनशास्त्री), प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, भारतीय रसायन का इतिहास, भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास, भक्तिरसशास्त्र (वैष्णव), भैषज्य कल्पना, यन्त्र (संस्कृत), यंत्र, रस (बहुविकल्पी), रस (काव्य शास्त्र), रस चिकित्‍सा, रसतरंगिणी, रसरत्नसमुच्चय, रसहृदयतन्त्र, रसायन, रसायन विज्ञान का इतिहास, शोधन, संस्कृत साहित्य, वाग्भट, गंधशास्त्र, औषधनिर्माण, आयुर्वेद, कीमिया, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, अंक विद्या

ढंकगिरि

ढंकगिरि गुजरात के प्रसिद्ध प्राचीन नगर वल्लभीपुर के निकट स्थित जैन तीर्थ स्थान है। ढंकगिरि, 'शत्रुंजय पर्वत' का ही एक नाम है। सातवाहन के गुरु और पादलिप्त सूर के शिष्य सिद्ध नागार्जुन ढंकागिरि में रहकर रसविद्या या 'अलकीमिया' की साधना किया करते थे। इस तथ्य का उल्लेख जैन ग्रंथ 'विविध तीर्थ कल्प' में है- .

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नागार्जुन (प्राचीन दार्शनिक)

नागार्जुन (बौद्धदर्शन) शून्यवाद के प्रतिष्ठापक तथा माध्यमिक मत के पुरस्कारक प्रख्यात बौद्ध आचार्य थे। युवान् च्वाङू के यात्राविवरण से पता चलता है कि ये महाकौशल के अंतर्गत विदर्भ देश (आधुनिक बरार) में उत्पन्न हुए थे। आंध्रभृत्य कुल के किसी शालिवाहन नरेश के राज्यकाल में इनके आविर्भाव का संकेत चीनी ग्रंथों में उपलब्ध होता है। इस नरेश के व्यक्तित्व के विषय में विद्वानों में ऐकमत्य नहीं हैं। 401 ईसवी में कुमारजीव ने नागार्जुन की संस्कृत भाषा में रचित जीवनी का चीनी भाषा में अनुवाद किया। फलत: इनका आविर्भावकाल इससे पूर्ववर्ती होना सिद्ध होता है। उक्त शालिवाहन नरेश को विद्वानों का बहुमत राजा गौतमीपुत्र यज्ञश्री (166 ई. 196 ई.) से भिन्न नहीं मानता। नागार्जुन ने इस शासक के पास जो उपदेशमय पत्र लिखा था, वह तिब्बती तथा चीनी अनुवाद में आज भी उपलब्ध है। इस पत्र में नामत: निर्दिष्ट न होने पर भी राजा यज्ञश्री नागार्जुन को समसामयिक शासक माना जाता है। बौद्ध धर्म की शिक्षा से संवलित यह पत्र साहित्यिक दृष्टि से बड़ा ही रोचक, आकर्षक तथा मनोरम है। इस पत्र का नाम था - "आर्य नागार्जुन बोधिसत्व सुहृल्लेख"। नागार्जुन के नाम के आगे पीछे आर्य और बोधिसत्व की उपाधि बौद्ध जगत् में इनके आदर सत्कार तथा श्रद्धा विश्वास की पर्याप्त सूचिका है। इन्होंने दक्षिण के प्रख्यात तांत्रिक केंद्र श्रीपर्वत की गुहा में निवास कर कठिन तपस्या में अपना जीवन व्यतीत किया था। .

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नागार्जुन (रसायनशास्त्री)

नागार्जुन भारत के धातुकर्मी एवं रसायनज्ञ (alchemist) थे। उन्होने रसरत्नाकर नामक रसग्रंथ की रचना की। शायद अपने समय मे किसी व्यक्ति को लेकर इतनी कहानियां नहीं गढ़ी गई थी जितनी नागार्जुन के बारे में। कहा जाता है कि देवी-देवताओँ के साथ उनका सम्पर्क था जिससे उनके पास अप धातुओं को सोने में बदलने की शक्ति आ गई थी। और वह अमृत बना सकते थे। वह प्रसिद्ध थे और लोग उन्हें सराहना और भय मिश्रित दृष्टि से देखते थे। .

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प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये पुरातत्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पडता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधतासम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारत के कुछ योगदान निम्नलिखित हैं-.

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भारतीय रसायन का इतिहास

भारतीय धातुकर्म का एक नमूना है। भारत में रसायन शास्त्र की अति प्राचीन परंपरा रही है। पुरातन ग्रंथों में धातुओं, अयस्कों, उनकी खदानों, यौगिकों तथा मिश्र धातुओं की अद्भुत जानकारी उपलब्ध है। इन्हीं में रासायनिक क्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले सैकड़ों उपकरणों के भी विवरण मिलते हैं। वस्तुत: किसी भी देश में किसी ज्ञान विशेष की परंपरा के उद्भव और विकास के अध्ययन के लिए विद्वानों को तीन प्रकार के प्रमाणों पर निर्भर करना पड़ता है-.

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भक्तिरसशास्त्र (वैष्णव)

महाप्रभु चैतन्य (१४८६-१५३३ ई.) की प्रेरणा से वृंदावन के षट्गोस्वामियों में अन्यतम रूपगोस्वामी (१४७०-१५५४ ई.) ने वैष्णव संप्रदाय के धर्मदर्शन की छाया में भक्तिरसशास्त्र का प्रवर्तन किया। "भक्तिरसामृत सिंधु" तथा "उज्ज्वलनीलमणि", जिसमें कामशास्त्र की परंपराओं का रिक्थ है, वैष्णव रसशास्त्र के मौलिक और उपजीव्य ग्रंथ हैं। .

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भैषज्य कल्पना

आयुर्वेद में भैषज्य कल्पना का अर्थ है औषधि के निर्माण की डिजाइन (योजना)। आयुर्वेद में रसशास्त्र का अर्थ 'औषध (भेषज) निर्माण' है और यह मुख्यतः खनिज मूल के औषधियों से सम्बन्धित है।रसशास्त्र और भैषज्य कल्पना मिलकर आयुर्वेद का महत्वपूर्ण अंग बनाते हैं। .

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यन्त्र (संस्कृत)

यन्त्र शब्द भारतीय साहित्य में उपकरण, मशीन या युक्ति के अर्थ में आया है। ज्योतिष, रसशास्त्र, आयुर्वेद, गणित आदि में इस शब्द का प्रयोग हुआ है। ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त में 'यन्त्राध्याय' नामक २२वां अध्याय है।;संस्कृत साहित्य में वर्णित कुछ यन्त्रों के नाम यन्त्रराज, दोलायन्त्र, तिर्यक्पातनयन्त्र, डमरूयन्त्र, ध्रुवभ्रमयन्त्र, पातनयन्त्र, राधायन्त्र, धरायन्त्र, ऊर्ध्वपातनयन्त्र, स्वेदनीयन्त्र, मूसयन्त्र, कोष्ठियन्त्र, यन्त्रमुक्त, खल्वयन्त्र .

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यंत्र

जेम्स अल्बर्ट बोनसैक द्वारा सन् १८८० में विकसित मशीन; यह मशीन प्रति घण्टे लगभग २०० सिगरेट बनाती थी। कोई भी युक्ति जो उर्जा लेकर कुछ कार्यकलाप करती है उसे यंत्र या मशीन (machine) कहते हैं। सरल मशीन वह युक्ति है जो लगाये जाने वाले बल का परिमाण या दिशा को बदल दे किन्तु स्वयं कोई उर्जा खपत न करे। .

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रस (बहुविकल्पी)

'रस' से निम्नलिखित का बोध होता है-.

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रस (काव्य शास्त्र)

श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं। रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है। परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में, अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है। सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय पर जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है। रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ज्ञात रहता है, सुना हुआ या देखा हुआ होता है। इसके बावजूद कुछ नया अनुभव मिलता है। वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है। अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है। रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय है। .

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रस चिकित्‍सा

पारा और गंधक के साथ काष्‍ठादिक औषधियों के योग से बनने वाली दवाओं को रसौषधि कहते हैं। रसौषधियों से रोगों की चिकित्‍सा जब की जाती है तब इसे रस चिकित्‍सा कहते हैं। .

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रसतरंगिणी

रसतरंगिणी (.

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रसरत्नसमुच्चय

रसरत्नसमुच्चय रस चिकित्सा का सर्वांगपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें रसों के उत्तम उपयोग तथा पारद-लोह के अनेक संस्कारों का उत्तम वर्णन है। यह वाग्भट की रचना है। रसशास्त्र के मौलिक रसग्रन्थों में रसरत्नसमुच्चय का स्थान सर्वोच्च है। इसमें पाये जाने वाले स्वर्ण, रजत आदि का निर्माण तथा विविध रोगों को दूर करने के लिये उत्तमोत्तम रस तथा कल्प अपनी सादृश्यता नहीं रखते। यह ग्रन्थ जितना उच्च है उतना ही गूढ़ और व्यावहारिकता में कठिन भी है। .

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रसहृदयतन्त्र

रसहृदयतन्त्रम् प्राचीन भारतीय रसविद्या का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके रचयिता गोविन्द भगवतपाद हैं जो शंकराचार्य के गुरु थे। .

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रसायन

रसायन, आयुर्वेद के आठ भागों में से का एक विभाग है। आधुनिक रसायन शास्त्र में उन सभी द्रव्यों को रसायन को कहते हैं जो किसी अभिक्रिया में भाग लेते हैं।;टिप्पणी.

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रसायन विज्ञान का इतिहास

रसायन विज्ञान का इतिहास बहुत पुराना है। १००० ईसापूर्व में प्राचीन सभ्यताओं के लोग ऐसी प्राविधियों काo.

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शोधन

रसविद्या के सन्दर्भ में, शोधन उस प्रक्रिया का नाम है जो औषधिनिर्माण के समय 'कच्चे पदार्थों' (वनस्पतियों, खनिजों, धातुओं, जन्तुओं से प्राप्त पदार्थों) के निराविषन (detoxification), शुद्धीकरण, या प्रभावीकरण के लिये उपयोग में लाये जाते हैं। श्रेणी:आयुर्वेद.

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संस्कृत साहित्य

बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .

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वाग्भट

वाग्भट नाम से कई महापुरुष हुए हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है: .

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गंधशास्त्र

गंधशास्त्र, देवताओं के षोडशोपचार में एक आवश्यक उपचार माना गया है। आज भी नित्य देवपूजन में सुवासित अगरबत्ती और कपूर का उपयोग होता है। यही नहीं, भारत के निवासी अपने प्रसाधन में सुगंधित वस्तुओं और विविध वस्तुओं के मिश्रण से बने हुए सुगंध का प्रयोग अति प्राचीन काल से करते आ रहे हैं। सुगंधि की चर्चा से प्राचीन भारतीय साहित्य भरा हुआ है। इन सुगंधियों के तैयार करने की एक कला थी और उसका अपना एक शास्त्र था। किंतु एतत्संबंधित जो ग्रंथ 12वीं-13वीं शती के पूर्व लिखे गए थे वे आज अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं। वैद्यक ग्रंथों में यत्रतत्र सुगंधित तेलों का उल्लेख मिलता है। .

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औषधनिर्माण

चिकित्सा में प्रयुक्त द्रव्यों के ज्ञान को औषधनिर्माण अथवा भेषज विज्ञान या 'भेषजी' या 'फार्मेसी' (Pharmacy) कहते हैं। इसके अंतर्गत औषधों का ज्ञान तथा उनका संयोजन ही नहीं वरन् उनकी पहचान, संरक्षण, निर्माण, विश्लेषण तथा प्रमापण भी हैं। नई औषधों का आविष्कार तथा संश्लेषण भेषज (फ़ार्मेसी) के प्रमुख कार्य हैं। फार्मेसी उस स्थान को भी कहते हैं जहाँ औषधयोजन तथा विक्रय होता है। जब तक भेषजीय प्रविधियाँ सुगम थीं तब तक भेषज विज्ञान चिकित्सा का ही अंग था। परंतु औषधों की संख्या तथा प्रकारों के बढ़ने तथा उनकी निर्माणविधियों के क्रमश: जटिल होते जाने से भेषज विज्ञान के अलग विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ी। .

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आयुर्वेद

आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .

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कीमिया

जाबीर इब्न हय्यान (८वीं शताब्दी) ने वैज्ञानिक एवं प्रयोगाधारित रसायन की नींव रखी। उसे रसायन का जनक कहा जाता है। कीमिया (अंग्रेजी: Alchemy) एक प्राचीन दर्शन (या सोच) तथा व्यवसाय था जिसमें अल्कली धातुओं को स्वर्ण में बदलने का प्रयत्न किया जाता था। इसके अलावा दीर्घायु होने के लिये 'अमृत' के निर्माण का प्रयत्न तथा अनेक ऐसे पदार्थ बनने का प्रयत्न किया जाता था जो असाधारण गुणों वाले हों। कीमिया शब्द पुरानी फारसी से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ "सोना" (स्वर्ण) होता है। उर्दु भाषा में रसायन शास्त्र को आज भी कीमिया कहा जाता है। .

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अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान

अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (Indian Institute of Ayurveda / AIIA) दिल्ली स्थित भारत का सार्वजनिक आयुर्वेद चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान है। इसकी स्थापना २०१६ में हुई थी। .

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अंक विद्या

अनेक प्रणालियों, परम्पराओं (tradition) या विश्वासों (belief) में अंक विद्या, अंकों और भौतिक वस्तुओं या जीवित वस्तुओं के बीच एक रहस्यवाद (mystical) या गूढ (esoteric) सम्बन्ध है। प्रारंभिक गणितज्ञों जैसे पाइथागोरस के बीच अंक विद्या और अंकों से सम्बंधित शकुन लोकप्रिय थे, परन्तु अब इन्हें गणित का एक भाग नहीं माना जाता और आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा इन्हे छद्म गणित (pseudomathematics) की मान्यता दी जाती है। यह उसी तरह है जैसे ज्योतिष विद्या में से खगोल विद्या और रसविद्या (alchemy) से रसायन शास्त्र का ऐतिहासिक विकास है। आज, अंक विद्या को बहुत बार अदृश्य (occult) के साथ-साथ ज्योतिष विद्या और इसके जैसे शकुन विचारों (divinatory) की कलाओं से जोड़ा जाता है। इस शब्द को उनके लोगों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है जो कुछ प्रेक्षकों के विचार में, अंक पद्धति पर ज्यादा विश्वास करते हैं, तब भी यदि वे लोग परम्परागत अंक विद्या को व्यव्हार में नहीं लाते। उदाहरण के लिए, उनकी १९९७ की पुस्तक अंक विद्या; या पाइथागोरस ने क्या गढ़ा, गणितज्ञ अंडरवुड डुडले (Underwood Dudley) ने शेयर बाजार (stock market) विश्लेषण के एलिअट के तरंग सिद्धांत (Elliott wave principle) के प्रयोगकर्ताओं की चर्चा करने के लिए इस शब्द का उपयोग किया है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

रस (आयुर्वेद), रसशास्त्र

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