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रतनपुर, छत्तीसगढ़

सूची रतनपुर, छत्तीसगढ़

रतनपुर दुर्ग रतनपुर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले की एक नगर पंचायत है। .

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सामग्री की तालिका

  1. 11 संबंधों: प्रस्तर, बिलासपुर जिला (छत्तीसगढ़), महामाया मंदिर अम्बिकापुर, महामाया मंदिर,रतनपुर,बिलासपुर, मुंगेर, रामायणकालीन छत्तीसगढ़, लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर, श्रीलंका, छत्तीसगढ़ में शक्ति पीठ, छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल, छत्तीसगढ़ के छत्तीस गढ़

प्रस्तर

प्रस्तर का अर्थ होता है पत्थर। .

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बिलासपुर जिला (छत्तीसगढ़)

बिलासपुर भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक जिला है। इसका मुख्यालय बिलासपुर है जो राज्य की राजधानी नया रायपुर से १३३ किलोमीटर उत्तर में स्थित है तथा प्रशासनिक दृष्टि से राज्य का दूसरा सबसे प्रमुख शहर है। छत्तीसगढ़ राज्य का उच्च न्यायालय भी इसी शहर में स्थित है अतः इसे “न्यायधानी” होने का भी गौरव प्राप्त है। बिलासपुर सुगंधित दूबराज चावल की किस्म के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ हथकरघा उद्योग से निर्मित कोसे की साड़ियाँ भी देशभर में विख्यात है। बिलासपुर सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध है और यहाँ की संस्कृति अनेक विविधताओं एवं रंगों को समाहित किये हुए है। .

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महामाया मंदिर अम्बिकापुर

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ। एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड़ स्थित है। इनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर के महामाया मन्दिर में है। इस मन्दिर का निर्माण महामाया रघुनाथ शरण सिंह देव ने कराया था। चैत्र व शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते है। श्रेणी:भारत के मंदिर.

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महामाया मंदिर,रतनपुर,बिलासपुर

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक महामाया मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में रतनपुर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। यह मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर लगभग १२वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। मंदिर के अंदर महामाया माता का मंदिर है। वैसे तो सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मां महमाया देवी मंदिर के लिए नवरात्रों में मुख्य उत्सव, विशेष पूजा-अर्चना एवं देवी के अभिषेक का आयोजन किया जाता है। .

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मुंगेर

मुंगेर भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में स्थित एक शहर एवं जिला है। .

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रामायणकालीन छत्तीसगढ़

अंगकोर (कंबोडिया) में रामायण की वानरसेना का एक दृश्यऐसे अनेक तथ्य हैं जो इंगित करते हैं कि ऐतिहासिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ प्रदेश की प्राचीनता रामायण युग को स्पर्श करती है। उस काल में दण्डकारण्य नाम से प्रसिद्ध यह वनाच्छादित प्रान्त आर्य-संस्कृति का प्रचार केन्द्र था। यहाँ के एकान्त वनों में ऋषि-मुनि आश्रम बना कर रहते और तपस्या करते थे। इनमें वाल्मीकि, अत्रि, अगस्त्य, सुतीक्ष्ण प्रमुख थे इसीलिये दण्डकारण्य में प्रवेश करते ही राम इन सबके आश्रमों में गये। राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश काव्य में उल्लेख है कि राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। यदि शरावती और श्रावस्ती को एक मान लिया जाये तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश दक्षिण कोशल के शासक बने। सम्भवतः उनकी राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी, शायद कोसला ग्राम ही उस काल की कुशावती थी। यदि कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि मान लिया जावे तो भी किसी प्रकार की विसंगति प्रतीत नहीं होती। रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिये विन्ध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोशल में ही था। उपरोक्त सभी उद्धरणों से स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ आदिकाल से ही ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों का पावन तपोस्थल रहा है। प्रतीत होता है कि छोटा नागपुर से लेकर बस्तर तथा कटक से ले कर सतारा तक के बिखरे हुये राजवंशों को संगठित कर राम ने वानर सेना बनाई हो। आर.पी.

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लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से १२० कि॰मी॰ तथा संस्कारधानी शिवरीनारायण से ३ कि॰मी॰ की दूरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक हैं और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ रामायण कालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात 'लक्ष्मणेश्वर महादेव' की स्थापना की थी। यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर ४८ फुट ऊँचा और ३० फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नन्दी मंडप और भोगशाला हैं। मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियाँ थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इस आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दूसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरुष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। लक्ष्मणेश्वर महादेव के इस मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है। .

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श्रीलंका

श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। १९७२ तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे १९७२ में बदलकर लंका तथा १९७८ में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। .

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छत्तीसगढ़ में शक्ति पीठ

छत्तीसगढ़ में अनादि काल से शिवोपासना के साथ साथ देवी उपासना भी प्रचलित थी। शक्ति स्वरूपा मां भवानी यहां की अधिष्ठात्री हैं- यहां के सामंतो, राजा-महाराजाओं, जमींदारों आदि की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित आज श्रद्धा के केंद्र बिंदु हैं- छत्तीसगढ़ में देवियां अनेक रूपों में विराजमान हैं- श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इन स्थलों को शक्तिपीठ की मान्यता देने लगी है- प्राचीन काल में देवी के मंदिरों में जवारा बोई जाती थी और अखंड ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती थी जो आज भी अनवरत जारी है- ग्रामीणों द्वारा माता सेवा और ब्राह्मणों द्वारा दुर्गा सप्तमी का पाठ और भजन आदि की जाती है- श्रद्धा के प्रतीक इन स्थलों में सुख, शांति और समृद्धि के लिये बलि दिये जाने की परंपरा है| .

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छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल

छत्तीसगढ़ में बहुत से पर्यटन स्थल हैं। इनमें ढ़ेरों धार्मिक महत्व के हैं। .

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छत्तीसगढ़ के छत्तीस गढ़

श्रेणी:छत्तीसगढ़.

देखें रतनपुर, छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के छत्तीस गढ़

रतनपुर के रूप में भी जाना जाता है।