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रघु वीर

सूची रघु वीर

आचार्य रघुवीर (३०, दिसम्बर १९०२ - १४ मई १९६३) महान भाषाविद, प्रख्यात विद्वान्‌, राजनीतिक नेता तथा भारतीय धरोहर के मनीषी थे। आप महान्‌ कोशकार, शब्दशास्त्री तथा भारतीय संस्कृति के उन्नायक थे। एक ओर आपने कोशों की रचना कर राष्ट्रभाषा हिंदी का शब्दभण्डार संपन्न किया, तो दूसरी ओर विश्व में विशेषतः एशिया में फैली हुई भारतीय संस्कृति की खोज कर उसका संग्रह एवं संरक्षण किया। राजनीतिक नेता के रूप में आपकी दूरदर्शिता, निर्भीकता और स्पष्टवादिता कभी विस्मृत नहीं की जा सकती। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। दो बार (१९५२ व १९५८) राज्य सभा के लिये चुने गये। नेहरू की आत्मघाती चीन-नीति से खिन्न होकर जन संघ के साथ चले गये। भारतीय संस्कृति को जगत्गुरू के पद पर आसीन करने के लिये उन्होने विश्व के अनेक देशों का भ्रमण किया तथा अनेक प्राचीन ग्रन्थों को एकत्रित किया। उन्होने ४ लाख शब्दों वाला अंग्रेजी-हिन्दी तकनीकी शब्दकोश के निर्माण का महान कार्य भी किया। भारतीय साहित्य, संस्कृति और राजनीति के क्षेत्र में आपकी देन विशिष्ट एवं उल्लेखनीय है। भारत के आर्थिक विकास के संबंध में भी आपने पुस्तकें लिखी हैं और उनमें यह मत प्रतिपादित किया है कि वस्तु को केंद्र मानकर कार्य आरंभ किया जाना चाहिए। .

5 संबंधों: पारिभाषिक शब्दावली, भारतीय संविधान सभा, भारतीय जनसंघ, लोकेश चंद्र, वैदिक शाखाएँ

पारिभाषिक शब्दावली

पारिभाषिक शब्दावली या परिभाषा कोश, "ग्लासरी" (glossary) का प्रतिशब्द है। "ग्लासरी" मूलत: "ग्लॉस" शब्द से बना है। "ग्लॉस" ग्रीक भाषा का glossa है जिसका प्रारंभिक अर्थ "वाणी" था। बाद में यह "भाषा" या "बोली" का वाचक हो गया। आगे चलकर इसमें और भी अर्थपरिवर्तन हुए और इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के शब्द (पारिभाषिक, सामान्य, क्षेत्रीय, प्राचीन, अप्रचलित आदि) के लिए होने लगा। ऐसे शब्दों का संग्रह ही "ग्लॉसरी" या "परिभाषा कोश" है। ज्ञान की किसी विशेष विधा (कार्य क्षेत्र) में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की उनकी परिभाषा सहित सूची पारिभाषिक शब्दावली (glossary) या पारिभाषिक शब्दकोश कहलाती है। उदाहरण के लिये गणित के अध्ययन में आने वाले शब्दों एवं उनकी परिभाषा को गणित की पारिभाषिक शब्दावली कहते हैं। पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग जटिल विचारों की अभिव्यक्ति को सुचारु बनाता है। महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' नामक प्रथम अध्याय में कहा है- इसके बाद उन्होने लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन, समय, सोना, चाँदी एवं अन्य धातुओं के मापन की इकाइयों के नाम और उनकी परिभाषा (परिमाण) दिया है। इसके बाद गणितीय संक्रियाओं के नाम और परिभाषा दी है तथा अन्य गणितीय परिभाषाएँ दी है। द्विभाषिक शब्दावली में एक भाषा के शब्दों का दूसरी भाषा में समानार्थक शब्द दिया जाता है व उस शब्द की परिभाषा भी की जाती है। अर्थ की दृष्टि से किसी भाषा की शब्दावली दो प्रकार की होती है- सामान्य शब्दावली और पारिभाषिक शब्दावली। ऐसे शब्द जो किसी विशेष ज्ञान के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, वह पारिभाषिक शब्द होते हैं और जो शब्द एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त नहीं होते वह सामान्य शब्द होते हैं। प्रसिद्ध विद्वान आचार्य रघुवीर बड़े ही सरल शब्दों में पारिभाषिक और साधारण शब्दों का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहते हैं- पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार - डॉ॰ भोलानाथ तिवारी 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं- .

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भारतीय संविधान सभा

भारतीय संविधान सभा का पहला दिन (११ दिशम्बर १९४६)। बैठे हुए दाएं से: बी जी खेर, सरदार बल्लभ भाई पटेल, के एम मुंशी और डॉ. भीमराव आंबेडकर भारत की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान की रचना के लिए किया गया था। ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने। .

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भारतीय जनसंघ

'''दीपक''' या '''दीया''' - भारतीय जनसंघ का चुनावचिह्न था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक '''डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ भारत का एक पुराना राजनैतिक दल था जिससे १९८० में भारतीय जनता पार्टी बनी। इस दल का आरम्भ श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में की गयी थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। इसने 1952 के संसदीय चुनाव में २ सीटें प्राप्त की थी जिसमे डाक्टर मुखर्जी स्वयं भी शामिल थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय कर के एक नए दल जनता पार्टी का गठन किया गया। आपातकाल से पहले बिहार विधानसभा के भारतीय जनसंघ के विधायक दल के नेता लालमुनि चौबे ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बिहार विधानसभा से अपना त्यागपत्र दे दिया। जनता पार्टी 1980 में टूट गयी और जनसंघ की विचारधारा के नेताओं नें भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। भारतीय जनता पार्टी 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार की सबसे बड़ी पार्टी रही थी। 2014 के आम चुनाव में इसने अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। .

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लोकेश चंद्र

प्रो. लोकेश चन्द्र लोकेश चंद्र (जन्म: १९२७) वेद, बौद्ध धर्म तथा भारतीय कला के प्रमुख विद्वान हैं। सम्प्रति वे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष हैं। वे भारतीय संस्कृति की अन्तरराष्ट्रीय अकादमी के भी निदेशक हैं। वे राज्य सभा के सदस्य रहे हैं तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा सन २००६ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। लोकेश चन्द्र, महान भाषाशास्त्री एवं कोशकार डॉ रघुवीर के सुपुत्र हैं। .

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वैदिक शाखाएँ

मूलवस्तु से निकले हुए विभाग अथवा अंग को शाखा कहते हैं - जैसे वृक्ष की शाखा। वैदिक साहित्य के संदर्भ में वैदिक शाखा शब्द से उन विशेष परंपराओं का बोध होता है जो गुरु-शिष्य-प्रणाली, देशविभाग, उच्चारण की भिन्नता, काल एवं विशेष परिस्थितिजन्य कारणों से चार वेदों के भिन्न-भिन्न पाटों के रूप में विकसित हुई। शाखाओं को कभी कभी 'चरण' भी कहा जाता है। इन शाखाओं का विवरण शौनक के चरणव्यूह और पुराणों में विशद रूप से मिलता है। वैदिक शाखाओं की संख्याएँ सब जगह एक रूप में दी गई हों, ऐसा नहीं। फिर, विभिन्न स्थलों में वर्णित सभी वैदिक शाखाएँ आजकल उपलब्ध भी नहीं है। पतंजलि ने ऋग्वेद की 21, यजुर्वेद की 100, सामवेद की 100 तथा अथर्ववेद की 9 शाखाएँ बताई है। किंतु चरणव्यूह में उल्लिखित संख्याएँ इनसे भिन्न हैं। चरणव्यूह से ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ ज्ञात होती हैं - शाकलायन, वाष्कलायन, आश्वलायन, शाखायन और मांडूकायन। पुराणों से उसकी केवल तीन ही शाखाएँ ज्ञात होती हैं - शाकलायन, वाष्कलायन और मांडूकायन। यजुर्वेद की दो शाखायें ज्ञात होती है - शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद की 85 शाखाओं की चर्चा मिलती है, किंतु आज उनमें से केवल ये चार ही उपलब्ध है तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठकलकठशाखा। कितु कपिष्ठलशाखा कठ की ही एक उपशाखा है। कठशाखा पंजाब में तथा तैत्तिरीय और मैत्रायणी शाखाएँ क्रमश: नर्मदा नदी के निचले प्रदेशों एव दक्षिण भार में प्रचलित हुई। वहाँ उनकी और भी उपशाखाएँ हो गई। सामवेद की शाखासंख्या पुराणों में १००० बताई गई है। पतंजलि ने भी सामवेद को 'सहस्रवर्त्मा' कहा है। भागवत, विष्णु और वायुपुराणों के अनुसार वेदव्यास के शिष्य जैमिनी हुए। उन्हीं के वंश में सुकर्मा हुए, जिनके दो शिष्य थे - एक हिरण्यनाभ कौसल्य, जो कोसल के राजा थे और दूसरे पौष्पंजि। कोसल की स्थिति पूर्वी (वास्तव में उत्तर पूर्वी) भारत में थी और इस कारण हिरण्यनाभ से चलनेवाली 500 शाखाएँ 'प्राच्य' कहलाई। पौष्यंजि से चलनेवाली 500 शाखाएँ 'उदीच्य' कहलाई। अथर्ववेद की नौ शाखाएँ मिलती हैं। उनमें नाम हैं - पिप्पलाद, स्तौद, मौद, शौनक, जाजल, जलद, ब्रह्मवद, देवदर्श तथा चारणवैद्य। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध शाखाएँ हैं पिप्पलाद और शौनक। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

रघुवीर, डॉ., आचार्य रघुवीर

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