सामग्री की तालिका
19 संबंधों: तनिष्क बागची, तेज सप्रू, नसीरुद्दीन शाह, परेश रावल, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार, मोहरा (बहुविकल्पी), रवीना टंडन, सदाशिव अमरापुरकर, सुनील शेट्टी, हिंदी चलचित्र, १९९० दशक, गुलशन ग्रोवर, कुनिका, अवतार गिल, अक्षय कुमार, अक्षय कुमार की फ़िल्में, ९ सितम्बर।
तनिष्क बागची
तनिष्क बागची एक भारतीय संगीतकार हैं, जो बॉलीवुड फिल्मों के लिए संगीत बनाते हैं। उन्होंने बॉलीवुड में २०१५ में तनु वेड्स मनु रिटर्न्स के गीत "बन्नो" से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की। फिल्मों के लिए संगीत रचना करने से पहले, उन्होंने टीवी धारावाहिकों के लिए भी संगीत निर्माण किया है। .
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तेज सप्रू
तेज सप्रू हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। मुख्यत: खलनायक की भूमिका के लिए जाने जाते है। .
देखें मोहरा और तेज सप्रू
नसीरुद्दीन शाह
नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया। मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म 'हम पांच' से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी। हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार 'जाने भी दो यारों' में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया। नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म 'कर्मा' ने। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट "दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। 1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।' 2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी। नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।' साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी। बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी। नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। .
देखें मोहरा और नसीरुद्दीन शाह
परेश रावल
परेश रावल (जन्म: 30 मई, 1950) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। 2014 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। यह 1994 में राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सहायक किरदार के लिए से सम्मानित हुए। इसके बाद इन्हें सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी मिल चुका है। यह केतन मेहता की फ़िल्म सरदार में स्वतंत्रता सेनानी वलभभाई पटेल की मुख्य किरदार में नजर आए थे। .
देखें मोहरा और परेश रावल
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार हिंदी फिल्मों के लिए वार्षिक फिल्मफेयर पुरस्कार के हिस्से के रूप में फिल्मफेयर द्वारा दिया जाने वाला पुरस्कार है। यह किसी महिला पार्श्व गायिका को दिया जाता है जिसने फिल्म गीत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। यद्यपि पुरस्कार समारोह की स्थापना 1954 में हुई थी लेकिन 1959 में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक की श्रेणी शुरू की गई थी। यह पुरस्कार 1967 तक पुरुष और माहिला गायक दोनों के लिए शुरू में एक ही था। इस श्रेणी को अगले वर्ष विभाजित किया गया था और जब से पुरुष और महिला गायक को अलग पुरस्कार से प्रस्तुत किया जाता है। .
देखें मोहरा और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार हिंदी फिल्मों के लिए वार्षिक फिल्मफेयर पुरस्कार के हिस्से के रूप में फिल्मफेयर द्वारा दिया जाने वाला पुरस्कार है। यह किसी पुरुष पार्श्व गायक को दिया जाता है जिसने फिल्म गीत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। यद्यपि पुरस्कार समारोह की स्थापना 1954 में हुई थी लेकिन 1959 में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक की श्रेणी शुरू की गई थी। यह पुरस्कार 1967 तक पुरुष और माहिला गायक दोनों के लिए शुरू में एक ही था। इस श्रेणी को अगले वर्ष विभाजित किया गया था और जब से पुरुष और महिला गायक को अलग पुरस्कार से प्रस्तुत किया जाता है। .
देखें मोहरा और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका द्वारा प्रति वर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार है। .
देखें मोहरा और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका द्वारा प्रति वर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार है। .
देखें मोहरा और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार
मोहरा (बहुविकल्पी)
मोहरा शब्द के निम्न लिखित अर्थ हो सकते हैं.
देखें मोहरा और मोहरा (बहुविकल्पी)
रवीना टंडन
रवीना टंडन (जन्म: 26 अक्टूबर, 1974) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .
देखें मोहरा और रवीना टंडन
सदाशिव अमरापुरकर
सदाशिव अमरापुरकर हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। 2014 में उनका फेफड़ों में संक्रमण के कारण निधन हो गया। .
देखें मोहरा और सदाशिव अमरापुरकर
सुनील शेट्टी
सुनील शेट्टी (जन्म: 11 अगस्त, 1961) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं।i .
देखें मोहरा और सुनील शेट्टी
हिंदी चलचित्र, १९९० दशक
1990 दशक के हिंदी चलचित्र। .
देखें मोहरा और हिंदी चलचित्र, १९९० दशक
गुलशन ग्रोवर
गुलशन ग्रोवर (जन्म: 21 सितंबर, 1955) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। .
देखें मोहरा और गुलशन ग्रोवर
कुनिका
कुनिका हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .
देखें मोहरा और कुनिका
अवतार गिल
अवतार गिल हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। .
देखें मोहरा और अवतार गिल
अक्षय कुमार
अक्षय कुमार (ਅਕਸ਼ੈ ਕੁਮਾਰ, जन्म: राजीव हरी ओम भाटिया, ९ सितम्बर, १९६७) एक भारतीय बॉलीवुड फ़िल्म अभिनेता हैं। वे 100 से अधिक हिन्दी फिल्मों में काम कर चुके हैं। 90 के दशक में, हिट एक्शन फिल्मों जैसे खिलाड़ी (१९९२), मोहरा (१९९४) और सबसे बड़ा खिलाड़ी (१९९५) में अभिनय करने के कारण, कुमार को बॉलीवुड का एक्शन हीरो की संज्ञा दी जाती थी और विशेषतः वे "खिलाड़ी श्रृंखला" के लिए जाने जाते थे। फिर भी, वह रोमांटिक फिल्मों जैसे ये दिल्लगी (१९९४) और धड़कन (२०००) में अपने अभिनय के लिए सम्मानित किए गए और साथ ही साथ ड्रामेटिक फिल्मों जैसे एक रिश्ता (२००१) में अपनी अभिनय क्षमता को दिखाया। 2002 में उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ खलनायक फ़िल्म अजनबी (2001) में अभिनय के लिए दिया गया। अपनी एक सी छवि को बदलने के इच्छुक अक्षय कुमार ने ज्यादातर कोमेडी फिल्में की। फ़िल्म हेरा फेरी (2002), मुझसे शादी करोगी (2004), गरम मसाला (2005) और जान-ए-मन (२००६) में हास्य अभिनय के लिए फ़िल्म समीक्षकों द्वारा उनकी प्रशंसा की गई। 2007 में वे सफलता की ऊचाईयों को छूने लगे, जब उनके द्वारा अभिनीत चार लगातार कामर्सियल फिल्में हिट हुई। इस तरह से, उन्होंने अपने आपको हिन्दी फ़िल्म उद्योग में एक प्रमुख अभिनेता के रूप में स्थापित किया। वे मार्शल आर्ट्स (सामरिक कला) की शिक्षा बेंगकोक में प्राप्त करके आए और वहां एक रसोइया की नौकरी भी करते थे। वे फिर मुंबई वापस आ गए, जहाँ वे मार्सल आर्ट्स की शिक्षा देने लगे। उनका एक विद्यार्थी जो एक फोटोग्राफर था, उसने उन्हें मॉडलिंग करने कहा। उस विद्यार्थी ने उन्हें एक छोटी कंपनी में एक मॉडलिंग असयांमेंट दिया। उन्हें कैमरे के सामने पोज देने के लिए, दो घंटे के 5,000 रुपये मिलते था। पहले की तनख्वाह 4000 रुपये प्रति महीने की तुलना में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण था कि वे क्यों मॉडल बने। मॉडलिंग करने के दो महीने बाद, कुमार को प्रमोद चक्रवर्ती ने अंततः अपनी फ़िल्म दीदार में अभिनय करने का मौका दिया। .
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अक्षय कुमार की फ़िल्में
अक्षय कुमार (जन्म ९ सितम्बर १९६७ को राजीव हरि ओम भाटिया) भारतीय अभिनेता फ़िल्म निर्माता और युद्ध कला का कलाकार हैं। उन्होंने अब तक १२५ से भी अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। उन्हें कई बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों के लिए नामित किया गया और ३ बार उन्होंने ये पुरस्कार जीता। १९९० के दशक में जब उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा तो शुरुआत में केवल एक्शन फ़िल्मों में अभिनय करते थे और उन्हें सामान्यतः "खिलाड़ी शृंखला" जिसमें खिलाड़ी (1992), मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी (1994), सबसे बड़ा खिलाड़ी (1995), खिलाड़ियों का खिलाड़ी (1996), मिस्टर एंड मिसेज़ खिलाड़ी (1997), इन्टरनेशनल खिलाड़ी (1999) और खिलाड़ी ४२० (2000), खिलाड़ी ७८६ (2012), शामिल हैं, सहित अन्य एक्शन फ़िल्मों जैसे वक्त हमारा है (1993), मोहरा (1994), एलान (1994), सुहाग (1994), सपूत (1996), अंगारे (1998), कीमत (1998) और संघर्ष (1999) में उनके अभिनय के लिए जाना जाता था। बाद में उन्होंने नाटकीय, रोमांस और हास्य अभिनयों में भी ख्याति प्राप्त की। उन्होंने रूमानी फ़िल्मों जैसे ये दिल्लगी (1994), दिल तो पागल है (1997), धड़कन (2000), हमको दीवाना कर गये (2006), जानेमन (2006) और नमस्ते लंदन (2007) आदि में अपनी प्रस्तुति से शोहरत प्राप्त की और इसी प्रकार नाटकीय फ़िल्मों जैसे जानवर (1999), दोस्ती (2005), वक़्त (2005) और पटियाला हाउस (2011) में भी प्रसिद्धि प्राप्त की। उन्होंने अपने हास्य फ़िल्मों हेरा फेरी (2000), मुझसे शादी करोगी (2004), गरम मसाला (2005), भूल भुलैया (2007), सिंह इज़ किंग (2008) और हाउसफुल २ (2012) में अपनी हास्य भूमिका से प्रशंसा प्राप्त की। उनकी सफलता में २००७ में तब चार चाँद लग गये जब उन्होंने लगातार चार वाणिज्यिक रूप से सफल फ़िल्में दी। २०१२ में उनकी सफलता में हाउसफुल २ (2012) और रावड़ी राठौर (2012) दोनों फ़िल्मों में ₹ 100 करोड़ (यूएस$18.2 मिलियन) और इसी तरह ओ माय गॉड जिसके वो निर्माता भी हैं, आदि फ़िल्में शामिल है। इसी तरह उन्होंने खिलाड़ी शृंखला की आठवीं फ़िल्म खिलाड़ी ७८६ भी बॉक्स-ऑफ़िस पर सफल रही। .
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९ सितम्बर
9 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 252वॉ (लीप वर्ष मे 253 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 113 दिन बाकी है। .
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मोहरा (1994 फ़िल्म) के रूप में भी जाना जाता है।