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मोमबत्ती

सूची मोमबत्ती

एक मोमबत्ती मोमबत्ती एक बत्ती मोम में है। वह रोशनी या ऊष्मा बनती है। .

5 संबंधों: पैराफिन, मोम, रेलवे संकेतक, गणेश वासुदेव जोशी, आतिशबाज़ी बनाने की विद्या

पैराफिन

पैराफिन में रखा हुआ सोडियम रसायन विज्ञान में, पैराफिन शब्द का प्रयोग एल्केन के पर्याय के रूप में कर सकते हैं। वस्तुत: ये CnH2n+2 सामान्य सूत्र वाले हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है। पैराफिन मोम से मतलब एल्केनों के ऐसे मिश्रण से है जिसमें 20 ≤ n ≤ 40 होता है तथा ये कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होते हैं किन्तु लगभग 37 °C के उपर जाने पर द्रवित होने लगते हैं। .

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मोम

मोमबत्तीमोम या सिक्थ, हाइड्रोकार्बनों का एक वर्ग है जो सामान्य तापमान पर सुघट्य (आघातवर्ध्य) होता है। मोम 45 °C (113 °F) से ऊपर के तापमान पर पिघल कर एक निम्न श्यानता के द्रव में का निर्माण करते हैं। मोम जल में अघुलनशील लेकिन पेट्रोलियम आधारित विलायक में घुलनशील होते हैं। मोम कई पौधों और जीवों द्वारा भी स्रावित किये जाते हैं, जैसे मधुमक्खी का मोम और कार्नौबा मोम (पादप मोम)। अधिकांश औद्योगिक मोम जीवाश्म ईंधनों के घटक होते हैं या फिर पेट्रोलियम यौगिकों के संश्लेषण से व्युत्पन्न होते हैं, जैसे पैराफिन। कान का मैल या मोम, मानव कान में पाया जाने वाला एक तैलीय पदार्थ है। कई पदार्थ जैसे कि सिलिकॉन मोम के गुण मोम के समान होते हैं इसलिए इन्हें मोम की श्रेणी में ही रखा जाता है। .

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रेलवे संकेतक

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गणेश वासुदेव जोशी

गणेश वासुदेव जोशी (जुलाई २०, १८२८ - जुलाई २५, १८८०) महाराष्ट्र के समाजसुधारक तथा सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके द्वारा किए गए सार्वजनिक कार्यों के कारण उनको 'सार्वजनिक काका' ही कहा जाने लगा था। भारत में 'स्वदेशी' का विचार सबसे पहले उन्होने ही प्रस्तुत किया था। न्यायमूर्ति रानडे के साथ मंत्रणा कर सार्वजनिक काका ने 1872 में स्वदेशी आंदोलन का श्रीगणेश किया था। उन्होंने 'देशी व्यापारोत्तेजक मंडल" की स्थापना कर स्याही, साबुन, मोमबत्ती, छाते आदि स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन करने को प्रोत्साहन दिया था। इसके लिए स्वयं आर्थिक हानि भी सही थी। इस स्वदेशी माल की बिक्री के लिए सहकारिता के सिद्धांत पर आधारित पुणे, सातारा, नागपूर, मुंबई, सुरत आदि स्थानों पर दुकाने प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया था। स्वदेशी वस्तुओं की प्रदर्शनियां भी आयोजित की। उन्हीं के प्रयत्नों से आगरा में कॉटन मिल शुरु की गई थी। १२ जनवरी १८७२ को उन्होंने खादी उपयोग में लाने की शपथ ली थी और उसे आजीवन निभाया। खादी का उपयोग कर उसका प्रचार-प्रसार करनेवाले वे पहले द्रष्टा देशभक्त थे। श्रेणी:भारत के समाज सुधारक.

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आतिशबाज़ी बनाने की विद्या

आतिशबाज़ी बनाने की विद्या वह तकनीक है जिसमें वह पदार्थ जो की घुन्ना और आत्मनिर्भर एक्ज़ोथिर्मिक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में सूक्षम होते है इस्तेमाल किए जाते है गर्मी, प्रकाश, गैस, धुआं और ध्वनि के उत्पादन के लिए। आतिशबाज़ी बनाने की इस विद्या को पाएरों तकनीक खा जाता है और यह शब्द ग्रीक भाषा से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है आग की क्रिया। इस तकनीक में केवल पटाखों का उत्पादन ही नहीं होता उसके साथ-साथ माचिस, मोमबत्ती ऑक्सीजन, विस्फोटक बोल्ट और फास्टनरों, मोटर वाहन एयरबैग और गैस के दबाव खनन, उत्खनन और विध्वंस में नष्ट की घटकों का निर्माण भी करते है। .

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