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मोम

सूची मोम

मोमबत्तीमोम या सिक्थ, हाइड्रोकार्बनों का एक वर्ग है जो सामान्य तापमान पर सुघट्य (आघातवर्ध्य) होता है। मोम 45 °C (113 °F) से ऊपर के तापमान पर पिघल कर एक निम्न श्यानता के द्रव में का निर्माण करते हैं। मोम जल में अघुलनशील लेकिन पेट्रोलियम आधारित विलायक में घुलनशील होते हैं। मोम कई पौधों और जीवों द्वारा भी स्रावित किये जाते हैं, जैसे मधुमक्खी का मोम और कार्नौबा मोम (पादप मोम)। अधिकांश औद्योगिक मोम जीवाश्म ईंधनों के घटक होते हैं या फिर पेट्रोलियम यौगिकों के संश्लेषण से व्युत्पन्न होते हैं, जैसे पैराफिन। कान का मैल या मोम, मानव कान में पाया जाने वाला एक तैलीय पदार्थ है। कई पदार्थ जैसे कि सिलिकॉन मोम के गुण मोम के समान होते हैं इसलिए इन्हें मोम की श्रेणी में ही रखा जाता है। .

31 संबंधों: ऊष्मातापी, ताब्लास द्वीप, तारपीन, दंत-लोमक, द्रवघनत्वमापी, निक्षारण, पेट्रोलियम उत्पाद, फर्श, बस्तर जिला, भारत में ज्वैलरी डिजाइन, मधुमक्खी, मधुमोम, मैडम तुसाद संग्रहालय, मोमबत्ती, मोहर (चिन्ह), मोहरी लाख, रंजनशलाका, लिपिड, लेज़र प्रिंटर, सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय, स्टेग्नोग्राफ़ी, सूत, विरंजन, विशिष्ट ऊष्मा धारिता, वैक्सिंग, गाँजा, गुड़िया, कर्णमल, कोलेस्टेरॉल, अनियत ठोस, अकार्बनिक रसायन

ऊष्मातापी

हनीवेल का स्तुत्य "द राउंड" मॉडल T87 थर्मोस्टैट, जिनमें से एक स्मिथसोनियन में है। लक्स उत्पाद का मॉडल TX900TS टच स्क्रीन थर्मोस्टैट. भवनों के लिए द्विधात्विक थर्मोस्टैट ऊष्मातापी किसी तंत्र के तापमान को नियमित बनाये रखने का एक उपकरण है ताकि तंत्र का तापमान एक वांछित निश्चित बिंदु के आसपास बना रहे। यह नाम ग्रीक शब्दों थर्मो यानि की "गर्म" और स्टेटोस यानि की "एक नियत" से लिया गया है। ऊष्मातापी, यह कार्य तापक और शीतलक उपकरणों को चालू या बंद, या सही तापमान बनाये रखने के लिए ऊष्मा हस्तांतरण द्रव के प्रवाह को आवश्यकतानुसार नियमित करके करता है। एक ऊष्मातापी एक तापक और शीतलक तंत्र की एक नियंत्रण इकाई या एक हीटर या वातानुकूलक का एक घटक हिस्सा हो सकता है। ऊष्मातापी कई तरह से बनाया जा सकता है और तापमान को मापने के लिए विभिन्न प्रकार के संवेदकों का उपयोग कर सकता है। तब संवेदक का निर्गम तापक और शीतलक उपकरण को नियंत्रित करता है। पहला विद्युत कक्ष ऊष्मातापी 1883 में वारेन एस.

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ताब्लास द्वीप

ताब्लास (Tablas) दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश के रोमब्लोन द्वीपसमूह व प्रान्त का सबसे बड़ा द्वीप है, जो प्रशासनिक दृष्टि से मिमारोपा क्षेत्र का भाग है। फ़िलिपीन्ज़ पर स्पेनी उपनिवेशी क़ब्ज़ा होने से पहले इस द्वीप का नाम ओसिगान (Osigan) हुआ करता था और यह अपने मोम के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। आधुनिक काल में ताब्लास पर ९ नगरपालिकाएँ हैं और इसकी अर्थव्यवस्था फलों व सब्ज़ियों की कृषि और मत्स्योद्योग पर आधारित है। .

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तारपीन

'''पाइनीन''' (pinene) का रासायनिक संरचना; यह तारपीन का मुख्य घटक है। तारपीन (Turpentine) सगंध वाष्पशील तैल है। वाष्पशील तैलों में इसका स्थान सर्वोपरि है। इसे 'तारपीन का तेल' (oil of turpentine) भी कहते हैं। यह चीड़ आदि जीवित वृक्षों से प्राप्त रेजिन के आसवन से प्राप्त किया जाता है। इसमें टरपीन होते हैं। वनस्पति से प्राप्त तारपीन के स्थान पर खनिज तारपीन या अन्य पेट्रोलियम आसवों का उपयोग भी किया जाता है किन्तु ये तारपीन वनस्पति से प्राप्त तारपीन से रासायनिक रूप से सर्वथा भिन्न हैं। तारपीन के उपयोग का पहले पहल उल्लेख १६०५ ई० में मिलता है। तब से इसका उपयोग दिन दिन बढ़ता गया और पीछे व्यापक रूप से व्यापार शुरू हो गया। १६५० ई० में तो यह व्यापार की प्रमुख वस्तु बन गया था। धीरे धीरे अमरीका में भी इसका व्यापार चमका और १८०० ई० तक यह अमरीका में व्यापार के लिये महत्व की वस्तु बन गया था। अमरीका के अनेक राज्यों में भी इसका निर्माण शुरू हो गया। १९०० ई० में जॉर्जिया इसके उत्पादन का प्रधान केंद्र बन गया था। .

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दंत-लोमक

एक आवधिक दांत की सफाई के दौरान डेंटल स्वास्थ्‍य विज्ञानवेत्ता एक मरीज की दांत को लोमकिंग कर रहे हैं। दंत-लोमक या तो महीन नायलॉन तंतुओं का एक पुलिंदा होता है या फिर प्लास्टिक (टेफ्लान या पॉलिथिलीन) का एक फीता होता है जिसका प्रयोग दांतों से खाद्यपदार्थ और दंत-पपड़ी निकालने के लिये किया जाता है। लोमक को धीरे से दांतों के बीच डाला जाता है और दांतों के दोनों पार्श्वों पर, विशेषकर मसूड़ों के नजदीक, कुरेदा जाता है। दंत-लोमक सुगंधित या सुगंधरहित और मोमयुक्त या मोमरहित हो सकता है। ऐसा ही प्रभाव प्राप्त करने के लिये उपयुक्त एक वैकल्पिक औजार है, अंतर्दंतीय ब्रश.

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द्रवघनत्वमापी

उत्पल-घनत्वमापी द्रवघनत्वमापी या उत्प्लव-घनत्वमापी या हाइड्रोमीटर (Hydrometer) वह यंत्र है जिससे बिना किसी गणना के, द्रवों के घनत्व पढ़े जा सकते हैं। इन यंत्रों की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान अत्यंत प्राचीन समय से था और इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि आर्किमीडीज़ (१८७- २१२ ई.पू.) को इनकी जानकारी थी। .

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निक्षारण

सैनिक और उसकी पत्नी.डैनियल हूफर की एचिंग, जिनके बारे में माना जाता है कि मुद्रण में इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे धातु में बनी आकृति में एक डिजाइन तैयार करने के लिए किसी धातु की सतह के अरक्षित हिस्सों की कटाई के लिए तीव्र एसिड या मॉरडेंट का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया को निक्षारण (etching/एचिंग) कहते हैं (यह मूल प्रक्रिया थी; आधुनिक निर्माण प्रक्रिया में अन्य प्रकार की सामग्रियों पर अन्य रसायनों का इस्तेमाल किया जा सकता है).

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पेट्रोलियम उत्पाद

ग्रेंगमोउथ, स्कॉटलैंड में एक पेट्रोकेमिकल्स रिफाइनरी. पेट्रोलियम उत्पाद, तेल रिफाइनरियों में संसाधित कच्चे तेल (पेट्रोलियम) से प्राप्त होने वाली उपयोगी सामग्रियों को कहते हैं। कच्चे तेल की संरचना और मांग के अनुसार रिफाइनरियां पेट्रोलियम उत्पादों को विभिन्न मात्राओं में उत्पादित कर सकती हैं। तेल उत्पादों का सबसे अधिक मात्रा में उर्जा वाहकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि इंधन तेल तथा गैसोलीन (पेट्रोल) के विभिन्न प्रकार.

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फर्श

अलंकृत फर्श फर्श भवन का वह अंग है जो चलने-फिरने के काम आता है। कच्ची मिट्टी के फर्श से लेकर आधुनिक तकनीक से बने बहु-स्तरीय फर्श तक अनेकों प्रकार के फर्श होते हैं। अच्छे फर्श से भवन की शोभा ही नहीं बढ़ती वरन् उसे आसानी से साफ सुथरा रखा जा सकता है। फर्श पत्थर, लकड़ी, बाँस, धातु या कंक्रीट आदि की हो सकती है। प्रायः फर्श के दो भाग होते हैं- नीचे का भाग, जो लोड सहन करने के ध्येय से बनाया जाता है, तथा ऊपरी फर्श जो चलने के लिये अच्छा हो और सुन्दर दिखे। आधुनिक भवनों में फर्श के नीचे ही बिजली के तार, पानी के पाइप आदि बिछाये गये होते हैं। .

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बस्तर जिला

बस्तर भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। जिले का प्रशासनीक मुख्यालय जगदलपुर है। यहां की कुल आबादी का लगभग 70% भाग जनजातीय है। इसके उत्तर में दुर्ग, उत्तर-पूर्व में रायपुर, पश्चिम में चांदा, पूर्व में कोरापुट तथा दक्षिण में पूर्वी गोदावरी जिले हैं। यह पहले एक देशी रियासत था। इसका अधिकांश भाग कृषि के अयोग्य है। यहाँ जंगल अधिक हैं जिनमें गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं। जगंलों में टीक तथा साल के पेड़ प्रमुख हैं। यहाँ की स्थानांतरित कृषि में धान तथा कुछ मात्रा में ज्वार, बाजरा पैदा कर लिया जाता है। इंद्रावती यहाँ की प्रमुख नदी है। चित्राकट में कई झरने भी हैं। जगदलपुर, बीजापुर, कांकेर, कोंडागाँव, भानु प्रतापपुर आदि प्रमुख नगर हैं। यहाँ के आदिवासी जंगलों में लकड़ियाँ, लाख, मोम, शहद, चमड़ा साफ करने तथा रँगने के पदार्थ आदि इकट्ठे करते रहते हैं। खनिज पदार्थों में लोहा, अभ्रक महत्वपूर्ण हैं। .

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भारत में ज्वैलरी डिजाइन

ज्वैलरी डिजाइन कला या डिजाइन और आभूषण बनाने का पेशा है। यह सभ्यता की सजावट की जल्द से जल्द रूपों में से एक है, मेसोपोटामिया और मिस्र का सबसे पुराना ज्ञात मानव समाज के लिए कम से कम सात हजार साल पहले डेटिंग। कला परिष्कृत धातु और मणि काटने आधुनिक दिन में ज्ञात करने के लिए प्राचीन काल की साधारण पोत का कारचोबी से सदियों भर में कई रूपों ले लिया है। इससे पहले कि आभूषणों के एक लेख बनाई गई है, डिजाइन अवधारणाओं विस्तृत तकनीकी एक आभूषण डिजाइनर, जो सामग्री, निर्माण तकनीक, संरचना, पहनने और बाजार के रुझान के स्थापत्य और कार्यात्मक ज्ञान में प्रशिक्षित किया जाता है एक पेशेवर द्वारा उत्पन्न चित्र द्वारा पीछा किया गाया जाता है। पारंपरिक हाथ ड्राइंग और मसौदा तैयार करने के तरीकों अभी भी विशेष रूप से वैचारिक स्तर पर, आभूषण डिजाइन में उपयोग किया जाता है। हालांकि, एक पारी गैंडा 3 डी और मैट्रिक्स की तरह कंप्यूटर एडेड डिजाइन कार्यक्रमों के लिए हो रही है। जबकि परंपरागत रूप से हाथ से सचित्र गहना आम तौर पर एक कुशल शिल्पकार द्वारा मोम या धातु सीधे में अनुवाद किया है, एक सीएडी मॉडल आम तौर पर रबर मोल्डिंग में इस्तेमाल किया है या मोम खो दिया जा एक सीएनसी कट या 3 डी मुद्रित 'मोम' पैटर्न के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है कास्टिंग प्रक्रियाओं। .

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मधुमक्खी

मधुमक्खी मधुमक्खी के छाते मधुमक्खी कीट वर्ग का प्राणी है। मधुमक्खी से मधु प्राप्त होता है जो अत्यन्त पौष्टिक भोजन है। यह संघ बनाकर रहती हैं। प्रत्येक संघ में एक रानी, कई सौ नर और शेष श्रमिक होते हैं। मधुमक्खियाँ छत्ते बनाकर रहती हैं। इनका यह घोसला (छत्ता) मोम से बनता है। इसके वंश एपिस में 7 जातियां एवं 44 उपजातियां हैं। .

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मधुमोम

मधुमोम की भेली मधुमोम या मधुमक्खियों का मोम, एपिस वंश की मधुमक्खियों द्वारा उनके छत्ते में उत्पादित एक प्राकृतिक मोम है। प्रत्येक श्रमिक मक्खी (मादा) के उदर में उपस्थित आठ मोमोत्पादक ग्रंथियों द्वारा मोम का उत्पादन किया जाता है। इन ग्रंथियों का आकार श्रमिक की आयु और उसकी दैनिक उड़ानों के दौरान इनमें आयी क्षीणता पर निर्भर करता है। ताजा उत्पादित मोम पारदर्शी और रंगहीन होता है पर मधुमक्खियों द्वारा चबाये जाने से यह अपारदर्शी हो जाता है। मधुकोश के इस सफेद रंग के मोम को उसका पीला या भूरा रंग, इसमें मिलने वाले पराग तेलों और पादपांश के कारण होता है। .

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मैडम तुसाद संग्रहालय

मैडम तुसाद संग्रहालय लन्दन में स्थापित मोम की मूर्तियों का संग्रहालय हैं। इसकी अन्य साखाएँ विश्व के प्रमुख शहरों मे मे हैं। इसकी स्थापना 1835 में मोम शिल्पकार मेरी तुसाद ने की थी। .

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मोमबत्ती

एक मोमबत्ती मोमबत्ती एक बत्ती मोम में है। वह रोशनी या ऊष्मा बनती है। .

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मोहर (चिन्ह)

मोहर (seal) किसी मोम, काग़ज़ या अन्य वस्तु पर चिन्ह लगाने के लिए बनी एक वस्तु को कहते हैं। ऐसी वस्तु से लगाए गए चिन्ह को भी मोहर कहा जाता है। इसका मक्सद किसी दस्तावेज़, लिफ़ाफ़े, ताले या अन्य प्रकार की वस्तु को प्रमाणित करना होता है। जब किसी ताले, लिफ़ाफ़े या अन्य बन्द करने वाली चीज़ पर मोहर लगाई जाती है तो उसके अंदर बन्द चीज़ों को प्रमाणित करा जा रहा होता है और मोहर ऐसे ढंग से लगाई जाती है कि उसे खोलते ही मोहर टूट जाए। उच्चाधिकारियों के लिए कभी-कभी ऐसी मोहरों को अंगूठियाँ में बना दिया जाता था ताकि वे समय-समय पर आसानी से जहाँ चाहे अपने अधिकारानुसार दस्तावेज़ों व अन्य चीज़ों को प्रमाणित कर सकें। .

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मोहरी लाख

मोहरी लाख (Sealing wax) एक प्रकार की मोम या मोम-जैसी सामग्री होती है जो पिघलने के बाद जल्दी से जम जाए और काग़ज़, वस्त्र या धातुओं से इस भांति चिपक जाए कि उसे हटाने पर उस में स्पष्ट तोड़े जाने के निशान दिखें। ऐसी मोम पर मोहर लगाकर चीज़ों को प्रमाणित करा जा सकता है। मसलन यदि एक मोहर केवल किसी अधिकारी के पास उपलब्ध हो (और उसकी नकल करना कठिन हो) तो किसी लिफ़ाफ़े में पत्र बंद कर के उसके खोल पर मोहर लगाई जाए तो मिलने वाले को यह प्रमाणित होता है कि लिफ़ाफ़े का पत्र सीधा उस अधिकारी द्वारा मान्य है। इसी तरह यदी कोई न्यायालय किसी कमरे पर ताला लगाकर उसपर मोहर लगा दे, तो बिना टूटी हुई मोहर से यह प्रमाणित होता है कि उस कमरे के भीतर के सामान में कोई छेड़खानी नहीं हुई है। इतिहास में, कभी-कभी इस मोम या लाख को पहचान देने के लिए उसमें आसानी से पहचानी जाने वाली सुगन्ध भी मिलाई जाती थी। Vol II, page 495.

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रंजनशलाका

आधुनिक रंजनशलाका अंगूठाकार अंगूठाकार रंजनशलाका या लिपस्टिक एक सौन्दर्य प्रसाधन है जिसका प्रयोग होठों को रंगने और उनकी बनावट को सुधारने और निखारने के लिए किया जाता है। एक आम रंजनशलाका के प्रमुख घटक रंगद्रव्य, तेल, मोम और स्निग्घकारक होते हैं। रंजनशलाका की कई किस्में हैं। श्रृंगार के अधिकांश अन्य प्रकारों के समान रंजनशलाका का प्रयोग भी अमूमन महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। आमतौर पर रंजनशलाका का प्रयोग किशोरावस्था या वयस्कता आने तक नहीं किया जाता है। .

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लिपिड

शरीर में लिपिड लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है। लिपिड को सामान्य भाषा मे कई बार वसा भी कहा जाता है परंतु दोनो मे कुछ अंतर होता है। लिपिड प्राकृतिक रूप से बने अणु होते हैं, जिनमें वसा, मोम, स्टेरॉल, वसा-घुलनशील विटामिन (जैसे विटामिन ए, डी, ई एवं के) मोनोग्लीसराइड, डाईग्लीसराइड, फॉस्फोलिपिड एवं अन्य आते हैं। इनका प्रमुख कार्य शरीर में उर्जा संरक्षण करना, ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना और हार्मोन और विटामिन के अभिन्न अवयव निर्माण करना होता है। शरीर में कोलेस्ट्रोल तथा ट्राईग्लीसराईड की मात्रा ज्ञात करने हेतु लिपिड प्रोफाईल नामक परीक्षण करवाया जाता है। इसकी जांच से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि रोगी की धमनियों मे कोलेस्ट्राल जमा होने और रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने की कितनी सम्भावना है? लिपिड अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे कि कोलेसटेरोल, काईलोमाईक्रोन इत्यादि। इनका भिन्न प्रकार से उपयोग होता है। कुछ लिपिड आहार के द्वारा प्राप्त होते हैं, तो कुछ लिपिड शरीर में निर्मित होते हैं। फोस्फैटीडाईकोलाइन हैं।स्ट्रायर ''et al.'', पृ. ३३० लिपिड को सारे शरीर में रक्त द्वारा भेजा जाता है। शरीर में पूरे लिपिड का एक संतुलन रहता है और अत्याधिक लिपिड को भविष्य प्रयोग हेतु जमा कर लिया जाता है, या फिर मल त्याग के द्वारा निकाल दिया जाता है। यदि रक्त में किसी कारण से बहुत अधिक लिपिड हो तो, तो यह रक्तवाहिकाओं में जमा होकर उसे संकुचित कर देता है या फिर अवरोधित भी कर देता है। इसको एथ्रोसक्लेरोसिस कहते हैं और यह समय के साथ और बढते जाता है। अंत में यह विभिन्न अंगों में रक्त-प्रवाह को कम करके हानि पहुँचाता है, जैसे कि हृदयाघात या पक्षाघात आदि। .

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लेज़र प्रिंटर

HP लेज़रजेट 4200 सिरीज़ प्रिंटर HP लेज़रजेट 1200 प्रिंटर एक लेज़र प्रिंटर कम्प्यूटर प्रिंटर का एक आम प्रकार है, जो तीव्र गति से किसी सादे कागज़ पर उच्च गुणवत्ता वाले अक्षर और चित्र उत्पन्न (मुद्रित) करता है। डिजिटल फोटोकॉपियर्स या बहु-कार्यात्मक प्रिंटर्स (MFPs) की ही तरह लेज़र प्रिंटर में भी एक ज़ेरोग्राफिक प्रिंटिंग प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, लेकिन यह एनालॉग फोटोकॉपियर्स से इस रूप में अलग होता है कि प्रिंटर के फोटोकॉपियर पर एक लेज़र किरण की प्रत्यक्ष स्कैनिंग के द्वारा छवि उत्पन्न की जाती है। .

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सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय

सिद्धगिरि ग्रामजीवन संग्रहालय (कनेरी मठ) महाराष्ट्र में कोल्हापुर के निकट कनेरी में स्थित एक मोम संग्रहालय है। यह श्री क्षेत्र सिद्धगिरि मठ में स्थित है। यह एक ऐसा गाँव है जहाँ किसान हल और बैल के साथ खड़े मिलेंगे। गाँव की औरतें कुंए में पानी भरने जाती हुयी दिखेंगी। बच्चे पेड़ के नीचे गुरुकुल शैली में पढ़ाई कर रहे हैं, किसान खेत में भोजन कर रहे हैं और आस-पास पशु चारा चर रहे हैं। गाँव के घरों का घर-आँगन और विभिन्न कार्य करते लोग, लेकिन सब कुछ स्थिर...ठहरा हुआ फिर भी एकदम सजीव, जीवंत। https://commons.wikimedia.org/wiki/File:%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8.jpg .

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स्टेग्नोग्राफ़ी

स्टेग्नोग्राफ़ी, गुप्त संदेश कुछ इस तरीक़े से लिखने की कला और विज्ञान है कि प्रेषक और अभीष्ट प्राप्तकर्ता के अलावा किसी और को संदेश के अस्तित्व के बारे में संदेह नहीं होता, जो कि अस्पष्टता के माध्यम से एक सुरक्षा है। स्टेग्नोग्राफ़ी शब्द मूलतः ग्रीक भाषा का है, जिसका अर्थ है "प्रच्छन्न लेखन".

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सूत

सूत सुतों की रील सूत, परस्पर जुड़े रेशों की एक निरंतर लम्बाई है जो कपड़े (टेक्सटाइल्स) के उत्पादन, सिलाई, क्रोशिये से बुनाई (क्रोशेटिंग), सलाईयों से बुनाई (निटिंग), बुनाई (वीविंग), कढ़ाई और रस्सी बनाने के लिए उपयुक्त है। धागा एक प्रकार का सूत है जो हाथ या मशीन से होने वाली सिलाई में प्रयुक्त होता है। सिलाई प्रक्रिया के तनाव को सहने के लिए सिलाई के लिए निर्मित आधुनिक धागों पर मोम या दूसरे स्नेहकों की परत चढ़ी हुई हो सकती है। कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले धागे, हाथ या मशीन से होने वाली कढ़ाई के लिए विशेष रूप से डिज़ाईन किये गए सूत हैं। .

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विरंजन

विरंजक कू बोतल रंगीन पदार्थों से रंग निकालकर उन्हें श्वेत करने को विरंजन करना (ब्लीचिंग) कहते हैं। विरंजन से केवल रंग ही नहीं निकलता, वरन् प्राकृतिक पदार्थों से अनेक अपद्रव्य भी निकल जाते हैं। अनेक पदार्थों को विरंजित करने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे पदार्थों में रूई, वस्त्र, लिनेन, ऊन, रेशम, कागज लुगदी, मधु, मोम, तेल, चीनी और अनेक अन्य पदार्थ हैं। विरंजकों का कार्य प्रायः आक्सीकरण पर आधारित है। अधिकांश विरंजक क्लोरीन पर आधारित हैं। .

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विशिष्ट ऊष्मा धारिता

यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी वस्तु का ताप बढ़ाने के लिये उसे उष्मा देनी पड़ती है। किन्तु अलग-अलग पदार्थों की समान मात्रा का ताप समान मात्रा से बढ़ाने के लिये अलग-अलग मात्रा में उष्मा की जरूरत होती है। किसी पदार्थ की इकाई मात्रा का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को उस पदार्थ का विशिष्ट उष्मा धारिता (Specific heat capacity) या केवल विशिष्ट उष्मा कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि जिस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा अधिक होगी उसे गर्म करने के लिये अधिक उष्मा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिये, शीशा (लेड) का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये जितनी उष्मा लगती है उससे आठ गुना उष्मा एक किलोग्राम मग्नीशियम का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। किसी भी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा मापी जा सकती है। .

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वैक्सिंग

वैक्सिंग के पहले और बाद में पुरुष की छाती. वैक्सिंग (Waxing), अनचाहे बालों को हटाने की एक अर्द्ध स्थायी विधि है जो बालों को जड़ों से हटा देती है। पहले से वैक्स किये हुए भाग में नए बाल, दो से आठ सप्ताह से पहले नहीं उगते हैं। शरीर के लगभग किसी भी भाग में वैक्स किया जा सकता है, जैसे भोहें, चेहरा, बिकिनी का भाग, पैर, हाथ, पीठ, पेट का निचला भाग और पंजा। कई प्रकार के वैक्सिंग उपलब्ध हैं जो अनचाहे बालों को हटाने के लिए उपयुक्त हैं। वैक्सिंग की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए त्वचा पर मोम के मिश्रण की पतली परत फैलाई जाती है। उसके बाद एक कपड़े या कागज की पट्टी को उसके ऊपर दबाया जाता है और फिर उसे बालों के उगने की दिशा में एक झटके में खींचा जाता है। यह मोम के साथ बालों को भी हटा देता है। एक अन्य विधि में सख्त मोम का इस्तेमाल किया जाता है (यह पट्टी मोम के विपरीत होता है).

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गाँजा

मादा भांग के पधे के फूल, आसपास की पत्तियों एवं तने को सुखाकर बनाया गया '''गांजा''' गांजा (Cannabis या marijuana), एक मादक पदार्थ (ड्रग) है जो गांजे के पौधे से भिन्न-भिन्न विधियों से बनाया जाता है। इसका उपयोग मनोसक्रिय मादक (psychoactive drug) के रूप में किया जाता है। मादा भांग के पौधे के फूल, आसपास की पत्तियाँ एवं तनों को सुखाकर बनने वाला गांजा सबसे सामान्य (कॉमन) है। .

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गुड़िया

गुड़िया एक प्रकार की मनुष्याकृति होती है। गुड़ि‍या का अस्तित्व मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही रहा है और विभिन्न पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, लकड़ी, हड्डी, कपड़े और कागज से लेकर पोर्सलि‍न, चीनी मिट्टी, रबर और प्लास्टिक तक से इसका निर्माण होता रहा है। यद्यपि पारंपरिक रूप से गुड़ि‍या बच्चों का खिलौना रही है परंतु वयस्क भी गृह-विरही महत्व, सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व या आर्थिक महत्व के कारण अपने संग्रह करते हैं। प्राचीन काल में, गुड़ि‍यों का उपयोग देव रूप में किया जाता था और धार्मिक उत्स‍वों, तथा धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी मुख्य भूमिका हुआ करती थी। सजीव दिखने वाली या शरीर-रचना की दृष्टि से सही गुड़ि‍या का उपयोग स्वास्थ्यकर्मियों, चिकित्सकीय विद्यालयों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य प्रक्रियाओं या चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने में या बच्चों के साथ हुए यौन दुराचारों के मामलों की छानबीन करने में किया जाता है। कभी-कभी कलाकार इसका उपयोग मानव आकृति बनाने के लिए करते हैं। गतिशील (एक्शन) शारीरिक आकृतियां सुपरहीरोज और उनके पूर्ववर्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, एक्शन गुड़िया खास तौर पर लड़कों में लोकप्रिय होती हैं। .

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कर्णमल

रूई की एक फुरेरी पर गीला मानव कर्णमैल कान की मैल कान का मैल या कर्णमल (ग्रामीण क्षेत्रों में 'ठेक', 'खोंठ' या खूँट भी कहते हैं), मानव व दूसरे स्तनधारियों की बाह्य कर्ण नाल के भीतर स्रावित होने वाला एक एक पीले रंग का मोमी पदार्थ है। यह मानव की बाह्य कर्ण नलिका की त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है साथ ही यह सफाई और स्नेहन में भी सहायता करता है। यह मैल कुछ हद तक कान को जीवाणु, कवक, कीटों और जल से भी सुरक्षा प्रदान करता है। अत्यधिक या ठूंसा हुआ मैल कान के पर्दे पर दबाव डाल कर बाह्य श्रवण नलिका को अवरुद्ध करके व्यक्ति की श्रवण शक्ति को क्षीण कर सकता है। .

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कोलेस्टेरॉल

कोलेस्ट्रॉल क्रिस्टल का सूक्ष्मदर्शी दर्शन, जल में। छायाचित्र ध्युवीकृत प्रकाश में लिया गया है। कोलेस्ट्रॉल या पित्तसांद्रव मोम जैसा एक पदार्थ होता है, जो यकृत से उत्पन्न होता है। यह सभी पशुओं और मनुष्यों के कोशिका झिल्ली समेत शरीर के हर भाग में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल कोशिका झिल्ली का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां उचित मात्रा में पारगम्यता और तरलता स्थापित करने में इसकी आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में विटामिन डी, हार्मोन्स और पित्त का निर्माण करता है, जो शरीर के अंदर पाए जाने वाले वसा को पचाने में मदद करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल भोजन में मांसाहारी आहार के माध्यम से भी पहुंचता है यानी अंडे, मांस, मछली और डेयरी उत्पाद इसके प्रमुख स्रोत हैं। अनाज, फल और सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लगभग २५ प्रतिशत उत्पादन यकृत के माध्यम से होता है। कोलेस्ट्रॉल शब्द यूनानी शब्द कोले और और स्टीयरियोज (ठोस) से बना है और इसमें रासायनिक प्रत्यय ओल लगा हुआ है। १७६९ में फ्रेंकोइस पुलीटियर दी ला सैले ने गैलेस्टान में इसे ठोस रूप में पहचाना था। १८१५ में रसायनशास्त्री यूजीन चुरवेल ने इसका नाम कोलेस्ट्राइन रखा था। मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता मुख्यतः कोशिकाओं के निर्माण के लिए, हारमोन के निर्माण के लिए और बाइल जूस के निर्माण के लिए जो वसा के पाचन में मदद करता है; होती है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख रिसर्चर डॉ॰ गांग हू के अनुसार कोलेस्ट्रॉल अधिक होने से पार्किंसन रोग की आशंका बढ़ जाती है। .

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अनियत ठोस

कांच सदृश सिलिका (SiO2) के परमाणुओं का द्विबिम विन्यास अकेलास ठोस (एमोर्फस सॉलिड / Amorphous solid) उन ठोस पदार्थों को कहते हैं जिनके अन्दर पर्याप्त दूरी तक परमाणुओं का कोई सुनिश्चित विन्यास नहीं होता। अकेलास ठोस गरम करने पर क्रमश नरम हो जाते हैं और फिर धीरे-धीरे उनकी श्यानता (विस्कोसिटी) इतनी कम हो जाती है कि वे चल्य (मोबाइल) बनकर द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं। इन पदार्थों का कोई निश्चित गलनांक नहीं होता। ये पदार्थ ठीक-ठीक ठोस की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते। इसलिए इनको अत्यधिक श्यानता वाले अतिशीतलित (सुपरकूल्ड) द्रव भी कहा जाता है। काँच, मोम, वसा, अलकतरा (डामर) आदि अकेलास ठोस में से हैं। अधिकांश ठोस एमार्फस रूप में पाये जाते हैं या उन्हें एमॉर्फस रूप में बनाया जा सकता है। .

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अकार्बनिक रसायन

प्रांगार को छोड़कर शेष सभी तत्वों और उनके योगिकों की मीमांसा करना अकार्बनिक रसायन (Inorganic chemistry) का क्षेत्र है। बोरॉन, सिलिकन, जर्मेनियम आदि तत्व भी लगभग उसी प्रकार के विविध यौगिक बनाते हैं, जैसे कार्बन। पर इस पार्थिव सृष्टि में उनका उतना महत्व नहीं है जितना कार्बन यौगिकों का, इसलिए कार्बनिक रसायन का अन्य तत्वों से पृथक्‌ रासायनिक क्षेत्र मान लिया गया है। मनुष्य एवं वनस्पतियों का जीवन कार्बन यौगिकों के चक्र पर निर्भर है, अत: कार्बनिक यौगिकों को एक अलग उपांग में रखना कुछ अनुचित नहीं है। यह कार्बन ही है जो पृथ्वी पर पाए जानेवाले सामान्य ताप (०° से ४०°) पर अनेक स्थायी समावयवी यौगिक दे सकता है। .

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