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मोतिहारी

सूची मोतिहारी

मोतीहारी बिहार राज्‍य के पूर्वी चंपारण जिले का मुख्‍यालय है। बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी दूर पूर्वी चम्‍पारण बिल्‍कुल नेपाल की सीमा पर बसा है। इसे मोतिहारी के नाम से भी लोग जानते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस जिले को काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है। किसी समय में चम्‍पारण, राजा जनक के मिथिला राज्य का अभिन्‍न भाग था। स्‍वतंत्रता संग्राम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्‍मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी। पर्यटन की दृष्टि यहां सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्‍थान जैसे जगह घूमने लायक है। .

23 संबंधों: चंपारण, चौदहवीं लोकसभा, एनिमल फार्म, नील विद्रोह, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, बिहार, भारत के शहरों की सूची, भारत के ज़िले, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार, मिक्सोडेमा, मुजफ्फरपुर, मृदुला सिन्हा, रमेश चन्द्र झा, राजकुमार शुक्ल, रवीश कुमार, समस्तीपुर, हाजीपुर, जॉर्ज ऑरवेल, केसरिया, अमरनाथ एक्स्प्रेस, अखिलेश प्रसाद सिंह

चंपारण

चंपारण बिहार प्रान्त का एक जिला था। अब पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नाम के दो जिले हैं। भारत और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी मशाल यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से जलायी थी। बेतियापश्चिमी चंपारण का जिला मुख्यालय है और मोतिहारी पूर्वी चम्पारण का। चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। .

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चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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एनिमल फार्म

एनिमल फार्म (Animal Farm) अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल की कालजयी रचना है। बीसवीं सदी के महान अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने अपनी इस कालजयी कृति में सुअरों को केन्‍द्रीय चरित्र बनाकर बोलशेविक क्रांति की विफलता पर करारा व्‍यंग्‍य किया था। अपने आकार के लिहाज से लघु उपन्‍यास की श्रेणी में आनेवाली यह रचना पाठकों के लिए आज भी उतनी ही असरदार है। जॉर्ज ऑरवेल (1903-1950) के संबंध में खास बात यह है कि उनका जन्‍म भारत में ही बिहार के मोतिहारी नामक स्‍थान पर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। ऑरवेल का मूल नाम 'एरिक आर्थर ब्‍लेयर' था। उनके जन्‍म के साल भर बाद ही उनकी मां उन्‍हें लेकर इंग्‍लैण्‍ड चलीं गयीं थीं, जहां से‍वानिवृत्ति के बाद उनके पिता भी चले गए। वहीं पर उनकी शिक्षा हुई। एनीमल फॉर्म 1944 ई. में लिखा गया। प्रकाशन 1945 में इंग्लैंड में हुआ जिसे तब नॉवेला (लघु उपन्यास) कहा गया, यद्यपि इसकी मूल संरचना एक लंबी कहानी की है। कथाकार ने इसे प्रथम प्रकाशन के समय शीर्षक के साथ एक 'फेयरी टेल' (परी कथा) कहा, क्योंकि परी कथाओं के समान ही विभिन्न जानवर-जन्तु यहां उपस्थित हैं। प्रकाशन के साथ ही विश्व की सभी भाषाओं में इसके अनुवाद प्रकाशित हुए- फ्रांसीसी भाषा में तो कई-कई!! प्रसिद्ध टाइम मैगजीन ने वर्ष 2005 में एक सर्वेक्षण में 1923-2005 ई. की कालावधि में प्रकाशित 100 सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासों में इस उपन्यास की गिनती की और साथ ही 20 वीं शती की माडर्न लाइब्रेरी लिस्ट ऑफ बेस्ट 100 नॉवल्स में इसे 31 वां स्थान दिया। एनीमल फॉर्म उपन्यास साम्यवादी क्रांति आन्दोलन के इतिहास में आई भ्रष्टता को नंगा करता हुआ दर्शाता है कि ऐसे आंदोलन के नेतृत्व में प्रवेश कर गयी स्वार्थपरता, लोभ-मोह तथा बहुत-सी अच्छी बातों से किनाराकशी किस प्रकार आदर्शो के स्वप्न-राज्य (यूटोपिया) को खंडित कर सारे सपनों को बिखेर देती है। मुक्ति आंदोलन जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया गया था, सर्वहारा वर्ग को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए, उस उद्देश्य से भटक कर वह बहुत त्रासदायी बन जाता है। एनिमल फॉर्म का गणतंत्र इन्हीं सरोकारों पर अपनी व्यवस्था को केंद्रित करते हैं। पशुओं के बाडे का पशुवाद (एनीमलिज्म) वस्तुत: सोवियत रूस के 1910 से 1940 की स्थितियों का फंतासीपरक रूपात्मक प्रतीकीकरण है। .

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नील विद्रोह

बंगाल में नील के एक कारखाने का दृष्य (१८६७) नील विद्रोह किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् १८५९ में किया गया था। किन्तु इस विद्रोह की जड़ें आधी शताब्दी पुरानी थीं, अर्थात् नील कृषि अधिनियम (indigo plantation act) का पारित होना। इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया। सन् १८६० तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई। सन् १८६० में इसके लिए एक आयोग गठित किया गया। .

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पश्चिमी चंपारण

चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी। .

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पूर्वी चंपारण

पूर्वी चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। चंपारण को विभाजित कर 1971 में बनाए गए पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। पूर्वी चम्‍पारण के उत्‍तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्‍पारण जिला है। .

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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भारत के शहरों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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भारत के ज़िले

तालुकों में बंटे हैं ज़िला भारतीय राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश का प्रशासनिक हिस्सा होता है। जिले फिर उप-भागों में या सीधे तालुकों में बंटे होते हैं। जिले के अधिकारियों की गिनती में निम्न आते हैं.

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महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय

महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय भारत का एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जो बिहार के मोतिहारी में स्थित है। मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यायल की स्थापना होने से सिर्फ चंपारण बल्कि आसपास के जिलों का शैक्षणिक विकास होगा। मोतिहारी सहित गोपालगंज, बेतिया, शिवहर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी आदि जिलों के युवा उच्च शिक्षा के लिए दूसरे प्रदेश का रूख करते थे। .

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महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार

बिहार राज्य के सीवान जिला से लगभग 35 किमी दूर सिसवन प्रखण्ड के अतिप्रसिद्ध मेंहदार गांव में स्थित भगवान शिव के प्राचीन महेंद्रनाथ मन्दिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था और इसका नाम महेंद्रनाथ रखा था। ऐसी मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को चर्म रोग रोग से निजात मिल जाती है । .

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मिक्सोडेमा

हाथ एवं पैर में मिक्सोडेमा मिक्सोडेमा (Myxoedema) शरीर गठन संबंधी रोग है जो थाइरॉइड ग्रंथि की न्यून क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। थाइरॉइड रस की कमी के कारण विभिन्न आयु में विभिन्न लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अत: आयु के अनुसार मिक्सोडीमा के विभिन्न नाम भी हैं। भ्रूणावस्था या शिशुकाल में होनेवाला रोग जड़वामनता (ckretinism) यौनारंभ (puberty) काल में होनेवाला रोग यौन मिक्सोडीमा तथा वयस्क अवस्था में होनेवाला वयस्क मिक्सोडीमा कहलाता है। वैसे मिक्सोडीमा दो प्रकार का होता है: प्रथम प्रकार थाइरॉइड रस की कमी का कारण थाइरॉइड ग्रंथि का रोग होता है, जिससे यह ग्रंथि रस बनाने की अपनी सामान्य क्रिया नहीं कर पाती है तथा दूसरे प्रकार में शल्य क्रिया से जब थाइराइड ग्रंथि काट दी गई हो तब रस की कमी या रस की अनुपस्थिति हो जाती है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ इस रोग से अधिक पीड़ित रहती है। एक ही वंश के रोगियों में यह रोग बहुधा मिलता है तथा माता-पिता द्वारा संचारित होता है। गलगंड (goiter) के स्थानिकमारी स्थान में माँ के शरीर में आयोडीन की कमी से शिशु की थाइरॉइड ग्रंथि का पूर्ण विकास न होने पर शिशु को यह रोग हो सकता है। शिशुकाल में मोटी त्वचा, मोटा स्वर, बड़ी जीभ, नेत्रों में आपस में अधिक दूरी, शिशु को बैठने, खड़े होने तथा बोलने में अपनी आयु से अधिक समय लगाना, बड़ा सिर, चिपटी नाक, मोटे मोटे ओंठ, खुला मुँह, बाहर लटकती जीभ, स्थूलता, देखने में मूर्ख लगना आदि, इसके लक्षण हैं। बुद्धि का विकास जड़ बुद्धिवाले या मंद बुद्धिवाले बालक के समान होता है। शरीर के बाल गिरना, शरीर के ताप की कमी, स्मरणशक्ति का लोप, आधा पागलपन तथा चयापचय (metabolic) गति की कमी इस रोग में पाई जाती है। चिकित्सा में थाइरॉइड ग्रंथि का निष्कर्ष (extract) दिया जाता है, जिससे रस की प्राकृतिक कमी पूरी हो जाय। रोग रोकने के लिए, जिस प्रदेश में गलगंड रोग पाया जाता हो वहाँ की गर्भवती स्त्री को आयोडीन का सेवन कराना चाहिए। भारत के अनेक स्थानों में, जैसे बिहार के मोतिहारी जिले में गलगंड रोग प्रचुरता से देखा जाता है। अत: वहाँ नमक में आयोडीन यौगिक मिलाकर सरकार द्वारा बेचा जाता है। श्रेणी:रोग.

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मुजफ्फरपुर

मुज़फ्फरपुर उत्तरी बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय तथा मुज़फ्फरपुर ज़िले का प्रमुख शहर एवं मुख्यालय है। अपने सूती वस्त्र उद्योग, लोहे की चूड़ियों, शहद तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लीची का कोई जोड़ नहीं है। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी यहाँ से लीची भेजी जाती है। 2017 मे मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी के लिये चयनित हुआ है। अपने उर्वरक भूमि और स्वादिष्ट फलों के स्वाद के लिये मुजफ्फरपुर देश विदेश मे "स्वीटसिटी" के नाम से जाना जाता है। मुजफ्फरपुर थर्मल पावर प्लांट देशभर के सबसे महत्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्रो मे से एक है। .

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मृदुला सिन्हा

मृदुला सिन्हा (27 नवम्बर 1942, ग्राम छपरा, जिला मुजफ्फरपुर बिहार) वर्तमान में गोवा के राज्यपाल पद पर हैं। वे एक सुविख्यात हिन्दी लेखिका के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय कार्यसमिति की सदस्य भी हैं। इससे पूर्व वे पाँचवाँ स्तम्भ के नाम से एक सामाजिक पत्रिका निकालती रही हैं। श्रीमती सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमन्त्रित्व-काल में केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष.

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रमेश चन्द्र झा

रमेशचन्द्र झा (8 मई 1928 - 7 अप्रैल 1994) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय क्रांतिकारी थे जिन्होंने बाद में साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वे बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ हिन्दी के कवि, उपन्यासकार और पत्रकार भी थे। बिहार राज्य के चम्पारण जिले का फुलवरिया गाँव उनकी जन्मस्थली है। उनकी कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है। आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है। "अपने और सपने: चम्पारन की साहित्य यात्रा" नाम के एक शोध-परक पुस्तक में उन्होंने चम्पारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत को भी बखूबी सहेजा है। यह पुस्तक न केवल पूर्वजों के साहित्यिक कार्यों को उजागर करता है बल्कि आने वाले संभावी साहित्यिक पीढ़ी की भी चर्चा करती है। .

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राजकुमार शुक्ल

राजकुमार शुक्ल (१८७५ -) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। दिसंबर 1916 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के किसानों के प्रतिनिधि बनकर वह लखनऊ गए और चंपारण के किसानों की दुर्दशा को शीर्ष नेताओं के समक्ष रखा। नील की खेती करनेवाले रैयत राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर महात्मा गाँधी चंपारण आने को तैयार हुए। राजकुमार शुक्ल के साथ बापू १० अप्रैल १९१७ को कोलकाता से पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए मोतिहारी गए। नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में गाँधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। अंग्रेजों की तत्कालीन तीन कठिया व्यवस्था के तहत हर बीघे में 3 कट्ठे जमीन पर नील की खेती करने की किसानों के लिए विवशता उत्पन्न करने का विरोध करते हुए पंडित राजकुमार शुक्ल ने वहां किसान आंदोलन की शुरुआत की, जिसके एवज में दंड स्वरूप उन्हें कई बार अंग्रेजों के कोड़े और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। क्षेत्र के किसानों की बदहाल स्थिति को देखते हुए पंडित शुक्ल ने महात्मा गांधी को बार-बार वहां आने का आग्रह किया तो गांधीजी इनकार नहीं कर सके। वे चंपारण पहुंचे और फिर वहां के किसानों के आंदोलन को जो धार मिली, उन्होंने देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचा दिया। दरअसल, चंपारण किसान आंदोलन ही देश की आजादी का असली संवाहक बने था। वहां के किसानों के त्याग, बलिदान और संघर्ष की वजह से आज हम आजाद भारत में सांसें लेने के लिए स्वतंत्र हैं। .

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रवीश कुमार

रवीश कुमार (जन्म ५ दिसेम्बर १९७४) एक भारतीय टीवी एंकर, लेखक और पत्रकार हैं, जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को मुखरता के साथ जनता के सामने रखते हैं। रवीश एनडीटीवी समाचार नेटवर्क के हिंदी समाचार चैनल 'एनडीटीवी इंडिया' में वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, और चैनल के प्रमुख कार्यक्रमों जैसे 'हम लोग' और 'रवीश की रिपोर्ट' के होस्ट रहे हैं। रवीश कुमार का प्राइम टाइम शो वर्तमान में काफी लोकप्रिय है। २०१६ में "द इंडियन एक्सप्रेस" ने अपनी '१०० सबसे प्रभावशाली भारतीयों' की सूची में उन्हें भी शामिल किया था। .

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समस्तीपुर

समस्तीपुर भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल स्थित एक शहर एवं जिला है। समस्तीपुर के उत्तर में दरभंगा, दक्षिण में गंगा नदी और पटना जिला, पश्चिम में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली, तथा पूर्व में बेगूसराय एवं खगड़िया जिले है। यहाँ शिक्षा का माध्यम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है लेकिन बोल-चाल में बज्जिका और मैथिली बोली जाती है। मिथिला क्षेत्र के परिधि पर स्थित यह जिला उपजाऊ कृषि प्रदेश है। समस्तीपुर पूर्व मध्य रेलवे का मंडल भी है। समस्तीपुर को मिथिला का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। .

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हाजीपुर

हाजीपुर (Hajipur) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टुबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी।, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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जॉर्ज ऑरवेल

जॉर्ज ऑरवेल जॉर्ज ऑरवेल (अंग्रेज़ी: George Orwell, मूल नाम एरीक अर्तुर ब्लेर, Eric Arthur Blair; 25 जून 1903 - 21 जनवरी 1950) — अंग्रेज़ी लेखक तथा लोक प्रचारक। जॉर्ज ऑरवेल (1903-1950) के संबंध में खास बात यह है कि उनका जन्‍म भारत में ही बिहार के मोतिहारी नामक स्‍थान पर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। ऑरवेल का मूल नाम 'एरिक आर्थर ब्‍लेयर' था। उनके जन्‍म के साल भर बाद ही उनकी मां उन्‍हें लेकर इंग्‍लैण्‍ड चलीं गयीं थीं, जहां से‍वानिवृत्ति के बाद उनके पिता भी चले गए। वहीं पर उनकी शिक्षा हुई। श्रेणी:अंग्रेज लेखक श्रेणी:ब्रिटिश लेखक श्रेणी:फ्रांसीसी भाषा के साहित्यकार श्रेणी:अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकार श्रेणी:1903 में जन्मे लोग श्रेणी:१९५० में निधन.

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केसरिया

केसरिया चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है। यह पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। केसरिया एक महत्‍वपूर्ण बौद्ध स्‍थल है। यह चंपारण में स्थित एक छोटा सा शहर है जो गंडक नदी के किनारे बसा हुआ है। इसका इतिहास काफी पुराना व समृद्ध है। बौद्ध तीर्थस्‍थलों में इसका महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बिताई थी तथा लिच्‍छवियों को अपना भिक्षा-पात्र प्रदान किया था। कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध यहां से जाने लगे तो लिच्‍छवियों ने उन्‍हें रोकने का काफी प्रयास किया। लेकिन जब लिच्‍छवि नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्‍हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्‍पन्‍न की। इसके पश्‍चात् ही भगवान बुद्ध यहां से जा पाने में सफल हो सके थे। सम्राट अशोक ने यहां एक स्‍तूप का निर्माण करवाया था। इसे विश्‍व का सबसे बड़ा स्‍तूप माना जाता है। विश्व विख्यात केसरिया बौद्ध स्तूप दर्शन महात्मा बुद्ध जब वैशाली से महापरिनिर्वाण ग्रहण करने कुशीनगर जा रहे थे तो बुद्ध एक दिन के लिए (केशपुत निगम) केसरिया में विश्राम किये थे। जिस स्थान पर बुद्ध अजातशत्रु आम्रपाली, आनंद और मंझिम संग ठहरे थे उसी जगह पर कुछ समय बाद मगध सम्राट अजातशत्रु ने स्मरण के रूप में स्तूप का निर्माण करवाया था। बौद्ध धर्म प्रचार हेतु संघमित्रा संग सम्राट अशोक ने (केशपुत निगम) केसरिया जाने के क्रम में सम्राट अशोक एवं संघमित्रा संग साहेबगंज के अशोक चैक पर चन्द लम्हों तक विश्राम किया था जो आज भी साहेबगंज के अशोक चैक बौद्ध परिपथ में आज भी अपने अतीत पर आँसू बहा रहा है। भारतीय पुरातत्व विभाग के लापरवाही का सूचक है। पुनः स्तूप का भव्य निर्माण कराया था। इसे विश्व का सबसे बड़ा केसरिया बौद्ध स्तूप माना जाता है। इस (केशपुत निगम) केसरिया में सम्राट अशोक ने इसलिए विश्व का सबसे बड़ा स्तूप का निर्माण कराने का उन्हें पूर्ण विश्वास एवं स्मरण था कि महात्मा बुद्ध का जन्म बुद्धत्व प्रति एवं महापरिनिर्वाण तीनों बुद्ध पूर्णिमा हीं था। इसलिए इस बौद्ध स्तूप 14000 फीट के क्षेत्र में फैला हुआ था और बौद्ध स्तूप की उँचाई 151 फीट था। अलेक्जेंडर कंनिघम के अनुसार स्तूप काफी उँचा था। यह केसरिया बौद्ध स्तूप केसरिया से दो मील दक्षिण में स्थित है। साहेबगंज से पश्चिम ने पांच मील की दूरी पर विश्वविख्यात केसरिया बौद्ध स्तूप, लाला छपरा मे स्थित है। देवभूमि को पूर्वजों ने देउरा हीं केसरिया, पूर्वी चम्पारण जिला अंतर्गत के समृद्ध इतिहास का सबसे चमकता सितारा है। जिसे सोने की मुर्गी कहा जा सकता है। वर्तमान मैं यहाँ पर ईंटों का विशाल खण्डहर का टीला है। इस जगह का महात्मा बुद्ध के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। भगवान केशरनाथ मंदिर पूर्वी चम्पारण जिला अन्तर्गत बटुक लिंग के रूप में स्थागित है। यह लिंग सभी शिवलिंगों मे केसरिया की सबसे अमूल्य निधि माना जाता है। यह शिवलिंग 1969 ई0 में नहर की खुदाई के दौरान मिला था। विद्वानों का मानना है कि विश्व का सबसे अनमोल शिवलिंग जिस प्रकार का जिक्र शिवपुराण में मिलता है। इसी कारण स्थानीय लोगों एवं बुद्धिजीवियों का मानना है कि यह शिवलिंग बहुत प्राचीन है। श्रावण मास में प्रत्येक दिन बेलपत्र, फुल, गंगाजल इत्यादि के अलावा गाय का शुद्ध ताजा दूध शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। दूध चढ़ते हीं शिवलिंग मे ज्योति मय प्रकाश का आगमन दिखता है। यह केसरिया का शिवलिंग वास्तविक है। इस शिवलिंग का वास्तविकता का प्रमाण साक्ष्य है। यह जीवन्त शिवलिंग माना जाता है। ठेकहाँ मठ के महाधिरा श्री श्री 108 कृष्ण मोहन दासजी कहना है कि यह शिवपूराण का विलुप्त बटुक शिवलिंग है जो स्वयं शिवशंकर भोलेनाथ जहाँ व्याप्त होते हैं। कैलेण्डरों में शिवजी के सामने जो लिंग दिखता है वही केसरिया का शिवलिंग साक्षात देख सकते हैं। केसरिया शिवालय में यही सत्य है। ठेकहाँ मठ:- केसरिया का प्राचीन काल में सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान था। केसरिया की यह सांस्कृतिक समृद्धता कत्र्ताराम धवलराम का ठेकहाँ मठ के माध्यम से प्रतिबंधित होती है। इस मठ का इतिहास ढ़ाई सौ वर्ष पुराना है। यह ठेकहाँ मठ केसरिया प्रखण्ड मुख्यालय से सात किलोमीटर एवं साहेबगंज से भी लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांधी पुस्तकालय:- यह एक समृद्ध कर्मवीर गाँधी पुस्तकालय है। जैसा कि स्थानीय एवं बुद्धिजीवी लोग के साथ-साथ सभी लोग जानते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी सन् 1917 ई0 मैं नील की खेती के विरोध में सत्याग्रह करने के लिए आये थे उसी क्रम में केसरिया के पुस्तकालय की नींव रखी थी। उस समय गाँधीजी केसरिया भी बनाये थे। उस सत्याग्रह का केसरिया के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत में क्रांतिकारी लहर दौड़ गया था। आवागमन वायुमार्ग:- साहेबगंज - केसरिया का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा मुजफरपुर मे है। किन्तु आजकल मुजफरपुर के लिए कोई उड़ान उपलब्ध नही है। वायुयान से पटना तक आकर वहाँ से केसरिया बौद्ध स्तूप दर्शन हेतु जाया जा सकता है। सड़क मार्ग:- यह बिहार की राजधानी पटना से साहेबगंज होते हुए अच्छी सड़क मार्ग से केसरिया जुड़ा हुआ है। इसके अलावा बिहार के प्रत्येक जिलों से सड़क मार्ग से केसरिया बौद्ध स्तूप तक पहुँचा जा सकता है। रेलमार्ग:- ऽ केसरिया के सबसे निकट रेलवे स्टेशन मोतीपुर (मुजफरपुर) और चकिया पूर्वी चम्पारण जिला अन्तर्गत में है। ऽ हाजीपुर-साहेबगंज भाया केसरिया होते हुए सुगौली रेलमार्ग निर्माणाधीन है। एवं मोतीपुर से साहेबगंज जंक्शन में मिलाने की योजना प्रस्तावित है। के0 के0 जायसवाल अध्यक्ष केसरिया बौद्ध डेवलाॅपमेंट सेन्टर मो0-8210327294 / 8227942959 .

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अमरनाथ एक्स्प्रेस

15653/54 गुवाहाटी - जम्मु तवी अमरनाथ एक्सप्रेस भारतीय रेल की पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे जोन की एक एक्सप्रेस ट्रेन है - जो भारत के गुवाहाटी और जम्मु तवी के बीच चलती है। यह ट्रेन नंबर 15653 के रूप में जम्मू तवी से गुवाहाटी एवं विपरीत दिशा में ट्रेन नंबर 15654 के रूप में चल रही है। यह भारत के ८ राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में सेवारत हैं। इसका नामकरण प्रसिद्ध अमरनाथ गुफा पर रखा गया हैं जो भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित है। लोहित एक्सप्रेस के अलावा यह दूसरी ट्रैन हैं जो गुहाटी एवं जम्मू तवी को जोड़ती है। .

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अखिलेश प्रसाद सिंह

श्री अखिलेश प्रसाद सिंह भारत के चौदहवीं लोकसभा के सदस्य हैं वे बिहार के मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र से चुनकर आये हैं एवं संसद में राजद के प्रतिनिधि हैं। .

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