सामग्री की तालिका
58 संबंधों: चैती देवी मन्दिर, काशीपुर, ताजमहल, ताजमहल के मूल एवं वास्तु, नेकुसियार, प्रयाग प्रशस्ति, फ़र्रुख़ सियर, बद्र-उन-निस्सा, बहादुर शाह प्रथम, बादशाही मस्जिद, बाबर, बाग़-ए-बाबर, बक्सर का युद्ध, भारत के सम्राट, भारतीय जनता पार्टी, मनसा राम, मरियम उज़-ज़मानी, महाबत खां, माघ मेला, मिर्ज़ा नजफ खां, मुहम्मद शाह (मुगल), मुहम्मद इब्राहिम (मुगल सम्राट), मुगल साम्राज्य की सेना, मुग़ल शासकों की सूची, मुग़ल साम्राज्य, मेरठ, रफी उद-दर्जत, रफी उद-दौलत, शालीमार उद्यान, लाहौर, शाह आलम द्वितीय, शाहजहां तृतीय, शक्ति सिंह, हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस, हमीदा बानो बेगम, हल्द्वानी का इतिहास, हज़रत निज़ामुद्दीन, हुमायूँ, हुमायूँ का मकबरा, जहाँगीर, जहाँगीर का मकबरा, जहांदार शाह, ज़रदोज़ी, ग्रैंड ट्रंक रोड, गौहरारा बेगम, औरंगाबादी महल, आदिल शाह सूरी, आलमगीर द्वितीय, इलाहाबाद/आलेख, क़ुदसिया बेगम, कालिंजर दुर्ग, काशीपुर का चैती मेला, ... सूचकांक विस्तार (8 अधिक) »
चैती देवी मन्दिर, काशीपुर
चैती देवी मन्दिर (जिसे माता बालासुन्दरी मन्दिर भी कहा जाता है) उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में काशीपुर कस्बेे में कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित है। यह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है और इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र मास की नवरात्रि में चैती मेला (जिसे चैती का मेला भी कहा जाता है) का आयोजन किया जाता है। यह धार्मिक एवं पौराणिक रूप से ऐतिहासिक स्थान है और पौराणिक काल में इसे गोविषाण नाम से जाना जाता था। मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं। .
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ताजमहल
ताजमहल (تاج محل) भारत के आगरा शहर में स्थित एक विश्व धरोहर मक़बरा है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् १९८३ में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली, अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। साधारणतया देखे गये संगमर्मर की सिल्लियों की बडी- बडी पर्तो से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से ढंका है। केन्द्र में बना मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि यह पूर्णतया सममितीय है। इसका निर्माण सन् १६४८ के लगभग पूर्ण हुआ था। उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान रूपांकनकर्ता माना जाता है। .
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ताजमहल के मूल एवं वास्तु
ताजमहल, भारत का चित्र ताजमहल मुगल वास्तुकला का सर्वाधिक परिष्कृत एवं उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसका उद्गम भारत के बडे़ भूभाग पर शासन करने वाले मुगल साम्राज्य की इस्लामी संस्कृति एवं इतिहास की बदलती परिस्थितियों पर आधारित है। एक विचलित मुगल बादशाह शाहजहाँ ने एक मकबरा अपनी प्यारी पत्नी मुमताज महल की स्मृति में उसके मरणोपरांत बनवाया था। आज यह एक सर्वाधिक प्रसिद्ध, प्रशंसित एवं पहचानी जाने वाली इमारत बन चुका है। जहाँ इसका श्वेत संगमर्मर गुम्बद वाला भाग, इस इमारत का मुख्य भाग है, वहीं इसकी पूर्ण इमारत समूह बाग, बगीचों सहित 22.44 हेक्टेयर में विस्तृत है, एवं इसमें सम्मिलित हैं अन्य गौण मकबरे, जल आपूर्ति अवसंरचना एवं ताजगंज की छोटी बस्ती, साथ ही नदी के उत्तरी छोर पर माहताब बाग भी इसके अभिन्न अंग हैं। इसका निर्माण 1632 ई.
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नेकुसियार
नेकुसियार या नेकुसियार मुहम्मद १२वां मुगल सम्राट था। यह ४० की आयु में १७१९ में गद्दी पर बैठा। .
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प्रयाग प्रशस्ति
प्रयाग प्रशस्ति गुप्त राजवंश के सम्राट समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित लेख था। इस लेख को समुद्रगुप्त द्वारा २०० ई में कौशाम्बी से लाये गए अशोक स्तंभ पर खुदवाया गया था। इसमें उन राज्यों का वर्णन है जिन्होंने समुद्रगुप्त से युद्ध किया और हार गये तथा उसके अधीन हो गये। इसके अलावा समुद्रगुप्त ने अलग अलग स्थानों पर एरण प्रशस्ति, गया ताम्र शासन लेख, आदि भी खुदवाये थे। इस प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का अच्छा विस्तार किया था। उसको क्रान्ति एवं विजय में आनन्द मिलता था। इलाहाबाद के अभिलेखों से पता चलता है कि समुद्रगुप्त ने अपनी विजय यात्रा का प्रारम्भ उत्तर भारत से किया एवं यहां के अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त की। .
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फ़र्रुख़ सियर
फ़र्रुख़ सियर (जन्म: 20 अगस्त 1685 - मृत्यु: 19 अप्रैल 1719) एक मुग़ल बादशाह था जिसने 1713 से 1719 तक हिन्दुस्तान पर हुकूमत की। उसका पूरा नाम अब्बुल मुज़फ़्फ़रुद्दीन मुहम्मद शाह फ़र्रुख़ सियर था। आलिम अकबर सानी वाला, शान पादशाही बह्र-उर्-बार, तथा शाहिदे-मज़्लूम उसके शाही ख़िताबों के नाम हुआ करते थे। 1715 ई.
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बद्र-उन-निस्सा
शहज़ादी बद्र-उन-निस्सा बेगम साहिबा (27 अक्टूबर 1647 – 9 अप्रैल 1670) मुगल सम्राट औरंगजेब और नवाब बाई की बेटी थीं। वह भविष्य के मुगल सम्राट मुज्ज़म बहादुर शाह I की बहन थीं। उनकी मौत 1670 में लाहौर में हुई। .
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बहादुर शाह प्रथम
बहादुर शाह प्रथम का जन्म 14 अक्तूबर, सन् 1643 ई. में बुरहानपुर, भारत में हुआ था। बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-1712 ई.) था। 'शहज़ादा मुअज्ज़म' कहलाने वाले बहादुरशाह, बादशाह औरंगज़ेब का दूसरा पुत्र था। अपने पिता के भाई और प्रतिद्वंद्वी शाहशुजा के साथ बड़े भाई के मिल जाने के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ही औरंगज़ेब के संभावी उत्तराधिकारी बना। बहादुर शाह प्रथम को 'शाहआलम प्रथम' या 'आलमशाह प्रथम' के नाम से भी जाना जाता है। .
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बादशाही मस्जिद
बादशाही मस्जिद पाकिस्तान के लाहौर में स्थित है। इस मस्जिद को 1673 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने बनवाया था। यह मस्जिद मुगल काल की सौंदर्य और भव्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। पाकिस्तान की इस दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद में एक साथ 55000 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। बादशाही मस्जिद का डिजाइन दिल्ली की जामा मस्जिद से काफी मिलता-जुलता है, जिसे 1648 में औरंगजेब के पिता शाहजहां ने बनवाया था। मस्जिद लाहौर किले के नजदीक स्थित है। हाल में मस्जिद परिसर में एक छोटा संग्रहालय भी जोड़ा गया है। .
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बाबर
ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था, जिनका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश के संस्थापक था। वो तैमूर लंग के परपोते था, और विश्वास रखते था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश के पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है! .
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बाग़-ए-बाबर
बाग-ए-बाबर पार्क, काबुल का शहर की पृष्ठभूमि के संग शीतकालीन दृश्य बाग़-ए-बाबर (باغ بابر) (हिंदी अर्थ: बाबर का उद्यान) मुगल सम्राट बाबर का मकबरा परिसर है। यह काबुल आने वाले पर्यटकों का सबसे पसंदीदा स्थान है। इसी बाग में प्रथम मुगल बादशाह बाबर की कब्र है। यह पार्क कई बगीचों को मिलाकर बनाया गया है। इस बाग की बाहरी दीवार का पुनर्निर्माण २००५ ई.
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बक्सर का युद्ध
बक्सर का युद्ध २२ अक्टूबर १७६४ में बक्सर नगर के आसपास ईस्ट इंडिया कंपनी के हैक्टर मुनरो और मुगल तथा नबाबों की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना अंग्रेज कंपनी से लड़ रही थी। लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया। .
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भारत के सम्राट
ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया का सितारा, जो ब्रिटिश साम्राज्यिक भारत के बिल्ले (चिह्न) के रूप में प्रयोग होता था। ”’भारत के सम्राट’”/”’साम्राज्ञी”, ”’ बादशाह-ए-हिं””, ”’ एम्परर/एम्प्रैस ऑफ इण्डिय”” वह उपाधि थी, जो कि अंतिम भारतीय मुगल शासक बहादुर_शाह_द्वितीय एवं भारत में ब्रिटिश राज के शासकों हेतु प्रयोग होती थी। कभी भारत के सम्राट उपाधि, भारतीय सम्राटों, जैसे मौर्य वंश के अशोक-महान। या मुगल_बादशाह अकबर-महान के लिये भी प्रयोग होती है। वैसे उन्होंने कभी भी यह उपाधियां अपने लिये नहीं घोषित कीं। .
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भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी (संक्षेप में, भाजपा) भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में से एक हैं, जिसमें दूसरा दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस है। यह राष्ट्रीय संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के मामले में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है और प्राथमिक सदस्यता के मामले में यह दुनिया का सबसे बड़ा दल है।.
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मनसा राम
श्री मनसा राम सन १७३७ से १७४० तक काशी राज्य के नरेश रहे। मनसा राम काशी नरेश राजा बलवंत सिंह के पिता थे जिनका जन्म बनारस के गंगापुर गांव में हुआ था। जमींदार मनसा राम बनारस,जौनपुर और मिर्जापुर के आमिल बनने से पहले अवध के नवाब सफदरजंग के मातहत थे लेकिन राजस्व प्रबंधन के अपने काम-काज के चलते वो अपने पुत्र बलवंत सिंह को काशी नरेश का खिताब दिलवाने में कामयाब रहे। इस खिताब पर बाद में दिल्ली के मुगल बादशाह ने भी मुहर लगा दी। .
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मरियम उज़-ज़मानी
मरियम उज़-ज़मानी बेगम साहिबा (नस्तालीक़:; जन्म 1 अक्टूबर 1542, दीगर नाम: रुकमावती साहिबा,राजकुमारी हिराकुँवारी और हरखाबाई) एक राजपूत शहज़ादी थीं जो मुग़ल बादशाह जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर से शादी के बाद मलिका हिन्दुस्तान बनीं। वे जयपुर की राजपूत आमेर रियासत के राजा भारमल की सब से बड़ी बेटी थीं। उनके गर्भ से सल्तनत के वलीअहद और अगले बादशाह नूरुद्दीन जहाँगीर पैदा हुए। .
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महाबत खां
महाबत खां (محابت خان) (पूरा नाममहाबत खान खान-ए-खाना सिपह-सालार ज़माना बेग काबुली, जन्म नाम ज़माना बेग) (मृत्यु १६३४), मुगल सम्राट जहांगीर के राज्य में एक प्रमुख सेनापति/सिपहसालार था। श्रेणी:मुगल.
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माघ मेला
माघ मेला हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला है। हिन्दू पंचांग के अनुसार १४ या १५ जनवरी को मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है। यह भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। नदी या सागर स्नान इसका मुख्य उद्देश्य होता है। धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्त शिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेला एक विकास मेला भी है तथा इसमें राज्य सरकार विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं को प्रदर्शित करती है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के महात्म्य के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस प्रकार माघमेले का धार्मिक महत्त्व भी है। .
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मिर्ज़ा नजफ खां
मिर्ज़ा नजफ़ खां मिर्ज़ा नजफ़ खां (१७२२-१७८२) मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के दरबार में एक फारसी एडवेंचरर था। इसके सफ़ावी वंश को नादिर शाह ने १७३५ में पदच्युत कर दिया था। नजफ़ खां भारत १७४० में आया था। इसकी बहन का विवाह अवध के नवाब से हुआ था। इसे अवध के उप-वज़ीर का पद भी मिला था। मिर्ज़ा १७२२ से अपनी मृत्यु पर्यन्त मुगल सेना का सिपहसालार रहा था। अप्रैल, १७८२ में इसकी मृत्यु हुई। इसके बाद इसका मकबरा नई दिल्ली के लोधी रोड के निकट कर्बला क्षेत्र में स्थित है। दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में स्थित नजफगढ़ का नाम नजफ़ खां के नाम पर ही पड़ा है। इलाहाबाद के फौजदार मोहम्मद कुली खाँ का मामा। मोहम्मद कुली के समय में (1753-59) नजफ़ खाँ इलाहाबाद के किले का रक्षक था। .
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मुहम्मद शाह (मुगल)
मुहम्मद शाह ((1748 – १७०२) जिन्हें रोशन अख्तर भी कहते थे, मुगल सम्राट था। इनका शासन काल १७१९-१७४८ रहा। Available on Project Gutenberg. मुहम्मद शह की मृत्यु १७४८ में ४६ वर्ष की आयु में हुई थी। .
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मुहम्मद इब्राहिम (मुगल सम्राट)
मुहम्मद इब्राहिम (محمد ابراهيم) १३वां मुगल सम्राट था। यह रफी उल-दर्जत और रफी उद-दौलत का भाई था और १७२० में फर्रुख्शियार के बाद गद्दी पर बैठा। १७४४ में इसकी मृत्यु हो गई। श्रेणी:मुगल श्रेणी:१७२० मृत्यु.
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मुगल साम्राज्य की सेना
मुगल साम्राज्य की सेना; Army of the Mughal Empire; राज्य के द्वारा कोई विशाल सेना स्थायी रूप से नहीं रखी जाती थी परन्तु सिद्धान्त रूप में साम्राज्य के सभी बल नागरिक शाही सेना के हो सकने वाले सिपाही थे। मुगल सेना का इतिहास अधिकतर मनसबदारी प्रणाली का इतिहास है। .
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मुग़ल शासकों की सूची
मुग़ल सम्राटों की सूची कुछ इस प्रकार है।.
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मुग़ल साम्राज्य
मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .
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मेरठ
मेरठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ नगर निगम कार्यरत है। यह प्राचीन नगर दिल्ली से ७२ कि॰मी॰ (४४ मील) उत्तर पूर्व में स्थित है। मेरठ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (ऍन.सी.आर) का हिस्सा है। यहाँ भारतीय सेना की एक छावनी भी है। यह उत्तर प्रदेश के सबसे तेजी से विकसित और शिक्षित होते जिलों में से एक है। मेरठ जिले में 12 ब्लॉक,34 जिला पंचायत सदस्य,80 नगर निगम पार्षद है। मेरठ जिले में 4 लोक सभा क्षेत्र सम्मिलित हैं, सरधना विधानसभा, मुजफ्फरनगर लोकसभा में हस्तिनापुर विधानसभा, बिजनौर लोकसभा में,सिवाल खास बागपत लोकसभा क्षेत्र में और मेरठ कैंट,मेरठ दक्षिण,मेरठ शहर,किठौर मेरठ लोकसभा क्षेत्र में है .
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रफी उद-दर्जत
रफी उद-दर्जत(३० नवम्बर १६९९-१७१९), रफ़ी-उस-शहान का कनिष्ठ पुत्र (अज़ीम उश शान का भाई) दसवां मुगल सम्राट था। यह फर्रुख्शियार के बाद २८ फ़रवरी १७१९ को सैयद भ्राता द्वारा बादशाह घोषित किया गया। रफी-उद-दज्रत की मौत Lung Cancer से या फिर उसे सैयद भाइयों ने १७१९ में मार डाला था। .
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रफी उद-दौलत
रफी उद-दौलत (رفی الدولت) जिसे शाहजहां द्वितीय (شاه جہان ۲) भी कहा गया है (जन्म १६९६) १७१९ में अति लघु-काल के लिए मुगल सम्राट बना था। यह अपने भाई रफी उल-दर्जत की मृत्यु उपरांट गद्दी पर बैठा था। इसे भि उसी की तरह सैयद भ्राता ने बाद्शाह घोषित किया था। १७१९ में ही इसकी हत्या कर दी गयी थी। .
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शालीमार उद्यान, लाहौर
शालीमार उद्यान को मुगल सम्राट शाहजहां ने 1641 ई. में बनवाया था। यह पाकिस्तान के लाहौर शहर में स्थित है। चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा यह गार्डन अपने जटिल फ्रेमवर्क के लिए प्रसिद्ध है। 1981 में यूनेस्को ने इसे लाहौर किले के साथ विश्वदाय धरोहरों में शामिल किया था। फराह बख्स, फैज बख्स और हयात बख्स नामक चबूतरे गार्डन की सुंदरता में वृद्धि करते हैं। शालीमार उद्यान, लाहौर .
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शाह आलम द्वितीय
The Mughal Emperor Shah Alam II, negotiates territorial changes with a member of the British East India Company शाह आलम द्वितीय (१७२८-१८०६), जिसे अली गौहर भी कहा गया है, भारत का मुगल सम्राट रहा। इसे गद्दी अपने पिता, आलमगीर द्वितीय से १७६१ में मिली। १४ सितंबर १८०३ को इसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गया और ये मात्र कठपुतली बनकर रह गया। १८०५ में इसकी मृत्यु हुई। इसकी कब्र १३ शताब्दी के संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की महरौली में दरगाह के निकट एक संगमर्मर के परिसर में बहादुर शाह प्रथम (जिसे शाह आलम प्रथम भी कहा जाता है) एवं अकबर द्वितीय के साथ बनी है। .
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शाहजहां तृतीय
शाहजहां तृतीय (شاه جہان ۳) जिसे मुही-उल-मिल्लत भू कहा गया है, मुगल सम्राट थे। ये मुही उस-सुन्नत का पुत्र और मुहम्मद कम बख्श का ज्येष्ठ पुत्र था, जो औरंगज़ेब का कनिष्ठ पुत्र था। इसे १७५९ में गद्दी पर बैठाया गया किंतु १७६० में ही अपने ही वज़ीर द्वारा हटा दित्या गया। १७५९ में दिल्ली पर मराठा सेनाओं का कुछ कब्ज़ा हो गया था। .
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शक्ति सिंह
शक्ति सिंह सिसोदिया, जिन्हें शक्ति तथा सगत नामों से भी जाना जाता था, राणा उदय सिंह द्वितीय तथा रानी सज्जा बाई सोलंकिनी के पुत्र तथा महाराणा प्रताप के छोटे भाई थे। अपने पिता से शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों के कारण उन्होंने मुग़ल शासक अकबर के पाले में चले गये तथा बाद में उन्हें "मीर" की उपाधि प्रदान की गयी। १५६७ ईस्वी में धौलपुर से भाग गये जब अकबर ने वहाँ पड़ाव डाला था। उन्होंने अकबर की चित्तौड़ पर आधिपत्य जमाने की योजना अपने पिता को बता दी जिससे अकबर बहुत नाराज हो गया। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान वे अपने भाई महाराणा प्रताप के पक्ष में आ गये। उनके वंशज शक्तवत नाम से जाने जाते हैं। .
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हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस
नई दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस में महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर उपस्थित हनुमान जी स्वयंभू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर वाला यह मंदिर आस्था का महान केंद्र है।। हनुमान जयंती इसके साथ बने शनि मंदिर का भी प्राचीन इतिहास है। एक दक्षिण भारतीय द्वारा बनवाए गए कनॉट प्लेस शनि मंदिर में दुनिया भर के दक्षिण भारतीय दर्शनों के लिए आते हैं।। नवभारत टाइम्स। १८ अप्रैल २००७। पीयुष के जैन प्रत्येक मंगलवार एवं विशेषतः हनुमान जयंती के पावन पर्व पर यहां भजन संध्या और भंडारे लगाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके साथ ही भागीरथी संस्था के तत्वाधान में संध्या का आयोजन किया जाता है, साथ ही क्षेत्र में झांकी निकाली जाती है।। याहू जागरण। .
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हमीदा बानो बेगम
हमीदा बानो (१५२७-१६०४) प्रसिद्ध मुगल सम्राट हुमायुं की बेगम और तीसरे मुगल सम्राट अकबर की मां थी। हिदांल के गुरु की बेटी थी वो शिया थी किंतु उसका पति सुन्नी था। .
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हल्द्वानी का इतिहास
कुमाऊँ का प्रवेश द्वार, हल्द्वानी उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में स्थित हल्द्वानी राज्य के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है। इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। .
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हज़रत निज़ामुद्दीन
हजरत निज़ामुद्दीन (حضرت خواجة نظام الدّین اولیا) (1325-1236) चिश्ती घराने के चौथे संत थे। इस सूफी संत ने वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल पेश की, कहा जाता है कि 1303 में इनके कहने पर मुगल सेना ने हमला रोक दिया था, इस प्रकार ये सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय बन गए। हजरत साहब ने 92 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे और उसी वर्ष उनके मकबरे का निर्माण आरंभ हो गया, किंतु इसका नवीनीकरण 1562 तक होता रहा। दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है। .
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हुमायूँ
मिर्जा मुहम्मद हाकिम, पुत्र अकीकेह बेगम, पुत्री बख्शी बानु बेगम, पुत्री बख्तुन्निसा बेगम, पुत्री | --> हुमायूँ एक मुगल शासक था। प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर के पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ (६ मार्च १५०८ – २२ फरवरी, १५५६) थे। यद्यपि उन के पास साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, पर मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का योगदान है। बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने १५३० में भारत की राजगद्दी संभाली और उनके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले लिया। बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर दोनों भाइयों में लड़ाई न हो। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी बने। हुमायूँ का शासन अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों पर १५३०-१५४० और फिर १५५५-१५५६ तक रहा। भारत में उन्होने शेरशाह सूरी से हार पायी। १० साल बाद, ईरान साम्राज्य की मदद से वे अपना शासन दोबारा पा सके। इस के साथ ही, मुग़ल दरबार की संस्कृति भी मध्य एशियन से इरानी होती चली गयी। हुमायूँ के बेटे का नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। .
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हुमायूँ का मकबरा
हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है- अभिव्यक्ति। १७ अप्रैल २०१०।, एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। १९९३ में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं। देल्ही थ्रु एजेज़। एस.आर.बख्शी। प्रकाशक:अनमोल प्रकाशन प्रा.लि.। १९९५।ISBN 81-7488-138-7। पृष्ठ:२९-३५ इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। हिस्ट‘ओरिक गार्डन रिव्यु नंबर १३, लंदन:हिस्टॉरिक गार्डन फ़ाउडेशन, २००३ अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा। .
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जहाँगीर
अकबर के तीन लड़के थे। सलीम, मुराद और दानियाल (मुग़ल परिवार)। मुराद और दानियाल पिता के जीवन में शराब पीने की वजह से मर चुके थे। सलीम अकबर की मृत्यु पर नुरुद्दीन मोहम्मद जहांगीर के उपनाम से तख्त नशीन हुआ। १६०५ ई.
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जहाँगीर का मकबरा
जहांगीर का मकबरा, शाहदरा, लाहौर लाहौर में शाहदरा नगर के निकट स्थित जहांगीर मकबरा मुगल सम्राट जहांगीर को समर्पित है। इसे जहांगीर की मृत्यु के १० साल बाद उनके पुत्र शाहजहां ने बनवाया था। एक बगीचे के अंदर स्थित मकबरे की मीनारें ३० मीटर ऊंची हैं। मकबरे के भीतरी हिस्से में भित्तिचित्रों की सुंदर सजावट है। .
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जहांदार शाह
जहांदार शाह (१६६१-१७१३) हिन्दुस्तान का मुगल सम्राट था। इसने यहां १७१२-१७१३ तक राज्य किया। बहादुरशाह का ज्येष्ठ पुत्र जहाँदारशाह १६६१ में उत्पन्न हुआ। पिता की मृत्यु के पश्चात् सत्ता के लिये इसे अपने भाइयों से संघर्ष करना पड़ा। मीर बख्शी जुल्फिकार खाँ ने इसे सहायता दी। इसका एक भाई अजीम-अल-शान लाहौर के निकट युद्ध में मारा गया। शेष दो भाइयों- जहानशाह और रफी-अल-शान को पदच्युतकर सम्राट् बनने में यह सफल हुआ। विलासी प्रकृति के जहाँदारशाह ने समूचे राज्य के प्रति उपेक्षा बरती। १७१२ में अब्दुल्लाखाँ, हुसेन अलीखाँ और फर्रुखसियर ने इसके विरुद्ध पटना से कूच किया। आगरा में जहाँदारशाह ने टक्कर ली। पराजित होकर इसने दिल्ली में जुल्फिकार खाँ के पिता असदखाँ के यहाँ शरण ली। असदखाँ ने इसे दिल्ली के किले में कैद कर लिया। फर्रुखसियर ने विजयी होते ही इसकी हत्या करवा दी। .
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ज़रदोज़ी
ज़रदोज़ी का काम रेशम पर ज़रदोज़ी फारसी एवं उर्दु: زردوزی) का काम एक प्रकार की कढ़ाई होती ह ऐ, जो भारत एवं पाकिस्तान में प्रचलित है। यह काम भारत में ऋगवेद के समय से प्रचलित है। यह मुगल बादशाह अकबर के समय में और समृद्ध हुई, किंतु बाद में राजसी संरक्षण के अभाव और औद्योगिकरण के दौर में इसका पतन होने लगा। वर्तमान में यह फिर उभरी है। अब यह भारत के लखनऊ, भोपाल और चेन्नई आदि कई शहरों में हो रही है। ज़रदोज़ी का नाम फासरी से आया है, जिसका अर्थ है: सोने की कढ़ाई। .
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ग्रैंड ट्रंक रोड
ग्रैंड ट्रंक रोड, दक्षिण एशिया के सबसे पुराने एवं सबसे लम्बे मार्गों में से एक है। दो सदियों से अधिक काल के लिए इस मार्ग ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी एवं पश्चिमी भागों को जोड़ा है। यह हावड़ा के पश्चिम में स्थित बांगलादेश के चटगाँव से प्रारंभ होता है और लाहौर (पाकिस्तान) से होते हुए अफ़ग़ानिस्तान में काबुल तक जाता है। पुराने समय में इसे, उत्तरपथ,शाह राह-ए-आजम,सड़क-ए-आजम और बादशाही सड़क के नामों से भी जाना जाता था। यह मार्ग, मौर्य साम्राज्य के दौरान अस्तित्व में था और इसका फैलाव गंगा के मुँह से होकर साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी सीमा तक हुआ करता था। आधुनिक सड़क की पूर्ववर्ती का पुनःनिर्माण शेर शाह सूरी द्वारा किया गया था। सड़क का काफी हिस्सा १८३३-१८६० के बीच ब्रिटिशों द्वारा उन्नत बनाया गया था। .
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गौहरारा बेगम
गौहरारा बेगम (17 जून 1631 – 1706; गौहर आरा बेगम या दहर आरा बेगम के तौर पर भी जाना जाता है) वह मुगल साम्राज्य की एक शाही राजकुमारी थीं और मुगल सम्राट, शाहजहां (ताज महल निर्माता) और उनकी प्यारी पत्नी मुमताज महल की चौदहवीं और आखिरी संतान थीं। उनको जन्म देते हुए उनकी माँ की मृत्यु हो गई। गौहरारा, तथापि, बच गईं और 75 साल तक जीवित रहीं। उनके बारे में अल्पज्ञात जानकारी है कि क्या वह अपने पिता के सिंहासन उत्तराधिकार के युद्ध में शामिल थीं या नहीं। 75 साल की उम्र में गौहरारा की मृत्यु 1706 में प्राकृतिक कारण या बीमारी से हुई। .
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औरंगाबादी महल
औरंगाबादी महल साहिबा (निधन नवंबर 1688) मुगल सम्राट औरंगजेब की तीसरी और अंतिम बीवी थीं। औरंगाबाद शहर में औरंगज़ेब के हरम में प्रवेश के बाद उनका नाम औरंगाबादी महल रखा गया। .
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आदिल शाह सूरी
आदिल शाह सूरी सूर वंश का सातवां और अंतिम शासक था। ये सिकंदर शाह सूरी का भ्राता था और इसने पूर्वी दिल्ली पर सिकंदर शाह सूरी के हुमायुं से १५५५ में हार जाने के ब्बाद भी शासन किया। आदिल शाह और सिकंदर शाह दिल्ली सल्तनत में मुगल बादशाह अकबर क विरुद्ध उत्तराधिकारी बने हुए थे। श्रेणी:1557 जन्म श्रेणी:1553 मृत्यु श्रेणी:Deaths श्रेणी:सूर वंश श्रेणी:पश्तून लोग.
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आलमगीर द्वितीय
अज़ीज़-उद्दीन आलमगीर द्वितीय (१६९९-१७५९) (उर्दु:عالمگير) ३ जून १७५४ से ११ दिसम्बर १७५९ तक भारत में मुगल सम्राट रहा। ये जहांदार शाह का पुत्र था। .
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इलाहाबाद/आलेख
इलाहाबाद (اللہآباد), जिसे प्रयाग (پریاگ) भी कहते हैं, उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक शहर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। शहर का प्राचीन नाम अग्ग्र (संस्कृत) है, अर्थात त्याग स्थल। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम बलिदान दिया था। यही सबसे बड़े हिन्दी सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। शहर का वर्तमान नाम मुगल सम्राट अकबर द्वारा १५८३ में रखा गया था। हिन्दी नाम इलाहाबाद का अर्थ अरबी शब्द इलाह (अकबर द्वारा चलाये गए नये धर्म दीन-ए-इलाही के सन्दर्भ से, अल्लाह के लिये) एवं फारसी से आबाद (अर्थात बसाया हुआ) – यानि ईश्वर द्वारा बसाया गया, या ईश्वर का शहर है। शहर में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश राज्य हाईस्कूल एवं इंटरमीडियेट शिक्षा कार्यालय। इलाहाबाद भारत के १४ प्रधानमंत्रियों में से ७ से संबंधित रहा है: जवाहर लाल नेहरु, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, गुलजारी लाल नंदा, विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं चंद्रशेखर; जो या तो यहां जन्में हैं, या इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़े हैं या इलाहाबाद निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहरलाल नेहरु अर्बन रिन्यूअल मिशन(JNNURM) के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है, जिसके अन्तर्गत शहरी अवसंरचना में सुधार, दक्ष प्रशासन एवं शहरी नागरिकों हेतु आधारभूत सुविधाओं का प्रयोजन करना है। इलाहाबाद में संगम स्थल का दृश्य इलाहाबाद शहर देश के बड़े शहरों से सड़क व रेल यातायात द्वारा जुड़ा हुआ है। शहर में आठ रेलवे-स्टेशन हैं:प्रयाग रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद सिटी रेलवे स्टेशन, दारागंज रेलवे स्टेशन, इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन, नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन, प्रयाग घाट रेलवे स्टेशन, सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन और बमरौली रेलवे स्टेशन। .
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क़ुदसिया बेगम
लघुकृति उधम बाई का आतिशबाज़ी और नृत्य से मनोरंजन दर्शाती हुई (1742 CE में मीर मिरान द्वारा) कुदसिया बेगम (मृत्यु 1765), मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह की पत्नी और बादशाह अहमद शाह बहादुर की माँ थीं। उन्होंने वास्तविक रीजेंट, भारत में 1748 से 1754 तक सेवा की और वहाँ की व्यवस्थापकही रहीं। .
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कालिंजर दुर्ग
कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .
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काशीपुर का चैती मेला
चैती मेला (जिसे चैती का मेला भी कहा जाता है) क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला है। इसका आयोजन नैनीताल जिले में काशीपुर में प्रतिवर्ष चैत्र मास की नवरात्रि में आयोजित किया जाता है। यह धार्मिक एवं पौराणिक रूप से ऐतिहासिक स्थान है। काशीपुर में कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित यह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है और यहीं बालासुन्दरी देवी का मन्दिर है जो इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं। .
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अहमद शाह बहादुर
अहमद शाह बहादुर (१७२५-१७७५) मुहम्मद शाह (मुगल) का पुत्र था और अपने पिता के बाद १७४८ में २३ वर्ष की आयु में १५वां मुगल सम्राट बना। इसकी माता उधमबाई थी, जो कुदसिया बेगम के नाम से प्रसिद्ध थीं। .
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अकबर
जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .
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अकबर शाह द्वितीय
अकबर द्वितीय (22 अप्रैल 1760 - 28 सितंबर 1837) को भी अकबर शाह द्वितीय के रूप में जाना जाता है, भारत के अंतिम द्वितीय मुगल सम्राट थे। उन्होंने 1806-1837 तक शासन किया। वह शाह आलम द्वितीय के दूसरे पुत्र और बहादुर शाह ज़फ़र के पिता थे। श्रेणी:मुगल बादशाह श्रेणी:18वीं सदी में जन्मे लोग.
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अकबरी सराय
अकबरी सराय का निर्माण मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में हुआ था। इस ऐतिहासिक इमारत के दरवाजे के ऊपर फारसी भाषा में एक शिलापट्ट जड़ा हुआ है, जिसमें दर्ज है कि इस शाही इमारत का निर्माण लशकर खां की निगरानी में हुआ था। इतिहासकार कमरूद्दीन फलक के अभिलेखों के अनुसार मुगलकाल की इस सराय के कमरों के गुंबद पर हवा के आवागमन के लिये छेद बने हुए हैं। इनमें भूसा भरकर बर्फ रखी जाती थी और उस पर नमक डालते रहते थे। कमरों के अंदर एक हत्था था जिससे ठंडी हवा को बंद-चालू कर सकते थे। .
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१८०५
1805 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
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१८५९
1859 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
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२२ मई
बछेंद्री पाल ने दुनिया के सबसे ऊंची पर्वत एवेरेस्ट को २२ मई १९८४ को फतह किया था। 22 मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 142वॉ (लीप वर्ष मे 143 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 223 दिन बाकी है। .
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७ जनवरी
7 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 7वाँ दिन है। साल में अभी और 358 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 359)। .
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मुगल बादशाह, मुगल बादशाहों की सूची, मुग़ल बादशाहों की सूची, मुग़ल शासक के रूप में भी जाना जाता है।