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मायादेवी

सूची मायादेवी

मायादेवी या महामाया सिद्धार्थ गौतम बुद्ध की माता थीं। श्रेणी:बौद्ध धर्म श्रेणी:गौतम बुद्ध.

सामग्री की तालिका

  1. 7 संबंधों: महाप्रजापती गौतमी, माता, राजकुमारी यशोधरा, रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ, गौतम बुद्ध, कपिलवस्तु, अहिरावण

महाप्रजापती गौतमी

महाप्रजापती गौतमी एक महान भिक्खूणी है जिन्होंने अर्हत पद प्राप्त किया है। भिक्खूणी बनने वाली वह पहली महालाओं में से एक है। बुद्ध का गौतम नाम गौतमी के नाम से पडा है ऐसा भी माना जाता है। बौद्ध धर्म के संघ में महिलाओं के लिए प्रवेश वर्जित था, गौतमी ने सीधे गौतम बुद्ध से अनुरोध किया, और पहले भिक्खूओं के संघ में महालाओं को या भिक्खूनी वर्ग को बुद्ध द्वारा मान्यता मिली। यशोधरा और अन्य महालाओं के साथ महाप्रजापती गौतमी ने बौद्ध संघ में प्रवेश किया और भिक्खूनीयां बनी। महामाया और महाप्रजापती गौतमी कोलिय राज्य की राजकुमारीयां और सगी बहनें थी। गौतमी बुद्ध की मौसी और दत्तक मां दोनों थी, उनकी बहन महामाया का बुद्ध को जन्म के बाद निर्वाण हो गया। महाप्रजापती गौतमी का 120 वर्ष की आयु में महापरिनिर्वाण हो गया था। "महाप्रजापती गौतमी और उनकी पांच सौ भिक्खूनी साथियों के निर्वाण की कहानी लोकप्रिय और व्यापक रूप से फैली है और एकाधिक संस्करणों में ही अस्तित्व में थी।" यह विभिन्न जीवित विनय परंपराओं में दर्ज की गई है पाली के सिद्धांतों और Sarvastivada और Mulasarvastivada संस्करणों सहित। .

देखें मायादेवी और महाप्रजापती गौतमी

माता

माता वह है जिसके द्वारा कोई प्राणी जन्म लेता है। माता का संस्कृत मूल मातृ है। हिन्दी में इस शब्द का प्रयोग प्रायः इष्टदेवी को संबोधित करने के लिये किये जाता है, पर सामान्यरूप से माँ शब्द का प्रयोग ज्यादा होता है। .

देखें मायादेवी और माता

राजकुमारी यशोधरा

राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) कोलीय वंश के राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा शुद्धोदन की बहन थीं। १६ वर्ष की आयु में यशोधरा का विवाह राजा शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ गौतम के साथ हुआ। बाद में सिद्धार्थ गौतम संन्यासी हुए और गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। यशोधरा ने २९ वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल था। अपने पति गौतम बुद्ध के संन्यासी हो जाने के बाद यशोधरा ने अपने बेटे का पालन पोषण करते हुए एक संत का जीवन अपना लिया। उन्होंने मूल्यवान वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया। पीला वस्त्र पहना और दिन में एक बार भोजन किया। जब उनके पुत्र राहुल ने भी संन्यास अपनाया तब वे भी संन्यासिनि हो गईं। उनका देहावसान ७८ वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध के निर्वाण से २ वर्ष पहले हुआ। यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें मैथिलीशरण गुप्त की रचना यशोधरा (काव्य) बहुत प्रसिद्ध है। राजकुमारी यशोधरा कोलीय (कोरी) वंश की पुत्री थी। .

देखें मायादेवी और राजकुमारी यशोधरा

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

रबीन्द्रनाथ ठाकुर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सृष्टिकर्म काव्य, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, प्रबन्ध, चित्रकला और संगीत आदि अनेकानेक क्षेत्रों फैला हुआ है। .

देखें मायादेवी और रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए। .

देखें मायादेवी और गौतम बुद्ध

कपिलवस्तु

कपिलवस्तु, शाक्य गण की राजधानी था। गौतम बुद्ध के जीवन के प्रारम्भिक काल खण्ड यहीं पर व्यथीत हुआ था। भगवान बुद्ध के जन्म इस स्थान से १० किमी पूर्व में लुंबिनी मे हुआ था। आर्कियोलजिक खुदाइ और प्राचीन यात्रीऔं के विवरण अनुसार अधिकतर विद्वान्‌ कपिलवस्तु नेपाल के तिलौराकोट को मानते हैं जो नेपाल की तराई के नगर तौलिहवा से दो मील उत्तर की ओर हैं। विंसेंट स्मिथ के मत से यह उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का पिपरावा नामक स्थान है जहाँ अस्थियों पर शाक्यों द्वारा निर्मित स्तूप पाया गया है जो उन के विचार में बुद्ध के अस्थि है। बुद्ध शाक्य गण के राजा शुद्धोदन और महामाया के पुत्र थे। उनका जन्म लुंबिनी वन में हुआ जिसे अब रुम्मिनदेई कहते हैं। रुम्मिनदेई तिलौराकोट (कपिलवस्तु) से १० मील पूर्व और भगवानपुर से दो मील उत्तर है। यहाँ अशोक का एक स्तंभलेख मिला है जिसका आशय है कि भगवान्‌ बुद्ध के इस जन्मस्थान पर आकर अशोक ने पूजा की और स्तंभ खड़ा किया तथा "लुम्मिनीग्राम' के कर हलके किए। गौतम बुद्ध ने बाल्य और यौवन के सुख का उपभोग कर २९ वर्ष की अवस्था में कपिलवस्तु से महाभिनिष्क्रमण किया। बुद्धत्वप्राप्ति के दूसरे वर्ष वे शुद्धोदन के निमंत्रण पर कपिलवस्तु गए। इसी प्रकार १५ वाँ चातुर्मास भी उन्होंने कपिलवस्तु में न्यग्रोधाराम में बिताया। यहाँ रहते हुए उन्होंने अनेक सूत्रों का उपदेश किया, ५०० शाक्यों के साथ अपने पुत्र राहुल और वैमात्र भाई नंद को प्रवज्जा दी तथा शाक्यों और कोलियों का झगड़ा निपटाया। बुद्ध से घनिष्ठ संबंध होने के कारण इस नगर का बौद्ध साहित्य और कला में चित्रण प्रचुरता से हुआ है। इसे बुद्धचरित काव्य में "कपिलस्य वस्तु' तथा ललितविस्तर और त्रिपिटक में "कपिलपुर' भी कहा है। दिव्यावदान ने स्पष्टत: इस नगर का संबंध कपिल मुनि से बताया है। ललितविस्तर के अनुसार कपिलवस्तु बहुत बड़ा, समृद्ध, धनधान्य और जन से पूर्ण महानगर था जिसकी चार दिशाओं में चार द्वार थे। नगर सात प्रकारों और परिखाओं से घिरा था। यह वन, आराम, उद्यान और पुष्करिणियों से सुशोभित था और इसमें अनेक चौराहे, सड़कें, बाजार, तोरणद्वार, हर्म्य, कूटागार तथा प्रासाद थे। यहाँ के निवासी गुणी और विद्वान्‌ थे। सौंदरानंद काव्य के अनुसार यहाँ के अमात्य मेधावी थे। पालि त्रिपिटक के अनुसार शाक्य क्षत्रिय थे और राजकार्य "संथागार" में एकत्र होकर करते थे। उनकी शिक्षा और संस्कृति का स्तर ऊँचा था। भिक्षुणीसंघ की स्थापना का श्रेय शाक्य स्त्रियों को है। फ़ाह्यान के समय तक कपिलवस्तु में थोड़ी आबादी बची थी पर युआन्च्वाङ के समय में नगर वीरान और खँडहर हो चुका था, किंतु बुद्ध के जीवन के घटनास्थलों पर चैत्य, विहार और स्तूप १,००० से अधिक संख्या में खड़े थे। श्रेणी:ऐतिहासिक स्थान श्रेणी:बौद्ध धर्म श्रेणी:बौद्ध तीर्थ स्थल.

देखें मायादेवी और कपिलवस्तु

अहिरावण

कृत्तिवास रामायण में अहिरावण विश्रवा ऋषि के पुत्र और रावण के भाई थे। वो राक्षस थे और गुप्त रूप से राम और उनके भाई लक्ष्मण को नरग-लोक में ले गये और वहाँ पर अपनी आराघ्य महामाया के लिए दोनो भाइयों की बलि देने को तैयार हो गये। लेकिन हनुमान ने अहिरावण और उनकी सेना को मारकर इनकी रक्षा की। .

देखें मायादेवी और अहिरावण

महामाया के रूप में भी जाना जाता है।