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माइकलसन मोर्ले प्रयोग

सूची माइकलसन मोर्ले प्रयोग

माइकलसन मोर्ले का व्यतिकरणमापी यन्त्र। माइकलसन-मोर्ले प्रयोग (Michelson–Morley experiment), अल्बर्ट मिशेलसन और एडवर्ड मोर्ले द्वारा १८८७ में किया गया प्रयोग है। कई बार इसे माइकलसन मोर्ले व्यतिकरणमापी भी कहा जाता है। इस प्रयोग के परिणाम ने ईथर सिद्धान्त (aether) को असत्य सिद्ध कर दिया। इस प्रयोग ने परम्परागत रास्ते से हटकर उस रास्ते पर कदम बढ़ाया जो वैज्ञानिक समाज को 'द्वितीय वैज्ञानिक क्रान्ति' की दिशा में ले गया। विशिष्ट आपेक्षिकता के मूलभूत परीक्षण करने वाले तीन प्रयोग हैं- माइकलसन मोर्ले प्रयोग, इव्स-इस्टिवेल प्रयोग (Ives–Stilwell) तथा केनेडी-थॉर्नडाइक प्रयोग (Kennedy–Thorndike experiments)। .

7 संबंधों: प्रायोगिक भौतिकी, माइकेल्सन व्यतिकरणमापी, रेले व ब्रेस के प्रयोग, ईथर माध्यम की परिकल्पना, विशिष्ट आपेक्षिकता, आपेक्षिकता सिद्धांत, उत्सर्जन सिद्धांत

प्रायोगिक भौतिकी

भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, प्रायोगिक भौतिकी ब्रह्माण्ड के बारे में आँकड़े संग्रहित करने के क्रम में भौतिक परिघटनाओं के प्रेक्षण से सम्बंधित विषय और उप-विषयों की श्रेणी है। इसकी विधियाँ एक विषय से दूसरे विषय में बहुत परिवर्तित होता है जैसे सरल प्रयोग से प्रेक्षण जैसे कैवेंडिश प्रयोग से बहुत जटिल प्रयोगों में से एक वृहद हेड्रॉन संघट्टक तक। .

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माइकेल्सन व्यतिकरणमापी

प्रकाशीय मेज पर व्यवस्थित एक माइकेल्सन व्यतिकरणमापी माइकेल्सन व्यतिकरणमापी में प्रकाश का पथ प्रोफेसर ए. ए. माइकेल्सन के प्रारंभिक व्यतिकरणमापी मे दाहिनी ओर से एक प्रकाशकिरण दर्पण M पर आती है। M दर्पण का आधा भाग रजतित (silvered) होता है। जिससे केवल आधा प्रकाश परावर्तित होकर दर्पण M1 पर जाता है और शेष आधा प्रकाश अरजतित भाग से पारगमित होकर सीधा दर्पण M2 पर आपतित होता है तथा अपने पथ पर परावर्तित हो जाता है। दर्पण M1 तथा M2 एक दूसरे पर लंब होते हैं। दर्पण M1 तथा M2 से परावर्तित होनेवाली प्रकाश की किरणपुंजें पुन: दर्पण M पर आपतित होती है और प्रेक्षक इन दोनों किरणों के द्वारा बनी व्यतिकरण फ्रंजों को देखता है। माइकेल्सन ने अपने व्यतिकरणमापी की सहायता से प्रकाश का वेग तथा प्रकाश की तरंग लंबाई मापी तथा सर्वप्रथम तारों का कोणीय व्यास ज्ञात किया। बीटेलजूज़ (Betelguese) प्रथम तारा है, जिसका कोणीय व्यास (0.049) ज्ञात किया गया था। दूरदर्शक से युक्त माइकेल्सन व्यतिकरणमापी से अत्यधिक दूर स्थित तारों तथा मंद तारों की मापें ज्ञात करना संभव हो गया है। तारों से प्राप्त होनेवाली प्रकाशतरंगों से व्यतिकरण द्वारा तारों की दिशा, दूरी तथा विस्तार का निर्धारण किया जाता है। .

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रेले व ब्रेस के प्रयोग

रेले व ब्रेस के प्रयोग (Experiments of Rayleigh and Brace) (1902-1904) का उद्देश्य द्विअपवर्तन सिद्धान्त की सहायता से लम्बाई में संकुचन का प्रायोगिक अध्ययन करना था। यह प्रयोग उन उन प्रारम्भिक प्रयोगों से एक है जो पृथ्वी की आपेक्षिक गति और प्रकाशवाही ईथर का मापन करने के लिए बने तथा इसकी प्रकाश के वेग के लिए मापन शुद्धता v/c की द्वितीय कोटी तक थी। इसके परिणाम नकारात्मक रहे जो लोरेन्ट्स रूपांतरण के विकास के लिए बहुत महत्व रखता है जिसके फलस्वरूप आपेक्षिकता सिद्धांत का निर्माण हुआ। .

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ईथर माध्यम की परिकल्पना

19 वीं शताब्दि में, प्रकाशवाही ईथर सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्माण्ड में एक ईथर माध्यम की परिकल्पना (Aether drag hypothesis) की गई। इसके अनुसार प्रकाश तरंगे ईथर माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर संचरित होती हैं। .

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विशिष्ट आपेक्षिकता

विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा आपेक्षिकता का विशिष्ट सिद्धांत (Spezielle Relativitätstheorie, special theory of relativity or STR) गतिशील वस्तुओं में वैद्युतस्थितिकी पर अपने शोध-पत्र में अल्बर्ट आइंस्टीन ने १९०५ में प्रस्तावित जड़त्वीय निर्देश तंत्र में मापन का एक भौतिक सिद्धांत दिया।अल्बर्ट आइंस्टीन (1905) "", Annalen der Physik 17: 891; अंग्रेजी अनुवाद का जॉर्ज बार्कर जेफ़री और विल्फ्रिड पेर्रेट्ट ने 1923 में किया; मेघनाद साहा द्वारा (1920) में अन्य अंग्रेजी अनुवाद गतिशील वस्तुओं की वैद्युतगतिकी गैलीलियो गैलिली ने अभिगृहीत किया था कि सभी समान गतियाँ सापेक्षिक हैं और यहाँ कुछ भी निरपेक्ष नहीं है तथा कुछ भी विराम अवस्था में भी नहीं है, जिसे अब गैलीलियो का आपेक्षिकता सिद्धांत कहा जाता है। आइंस्टीन ने इस सिद्धांत को विस्तारित किया, जिसके अनुसार प्रकाश का वेग निरपेक्ष व नियत है, यह एक ऐसी घटना है जो माइकलसन-मोरले के प्रयोग में हाल ही में दृष्टिगोचर हुई थी। उन्होने एक अभिगृहीत यह भी दिया कि यह सभी भौतिक नियम, यांत्रिकी व स्थिरवैद्युतिकी के सभी नियमों, वो जो भी हों, समान रहते हैं। इस सिद्धांत के परिणामों की संख्या वृहत है जो प्रायोगिक रूप से प्रेक्षित हो चुके हैं, जैसे- समय विस्तारण, लम्बाई संकुचन और समक्षणिकता। इस सिद्धांत ने निश्चर समय अन्तराल जैसी अवधारणा को बदलकर निश्चर दिक्-काल अन्तराल जैसी नई अवधारणा को जन्म दिया है। इस सिद्धांत ने क्रन्तिकारी द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध E.

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आपेक्षिकता सिद्धांत

सामान्य आपेक्षिकता में वर्णित त्रिविमीय स्पेस-समय कर्वेचर की एनालॉजी के का द्विविमीयप्रक्षेपण। आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा सापेक्षिकता का सिद्धांत (अंग्रेज़ी: थ़िओरी ऑफ़ रॅलेटिविटि), या केवल आपेक्षिकता, आधुनिक भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया और जिसके दो बड़े अंग हैं - विशिष्ट आपेक्षिकता (स्पॅशल रॅलॅटिविटि) और सामान्य आपेक्षिकता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि)। फिर भी कई बार आपेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (Relativtheorie) से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था। .

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उत्सर्जन सिद्धांत

उत्सर्जन सिद्धांत (Emission theory) को विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत का प्रतिस्पर्ध्दा सिद्धांत भी कहा जाता है, क्योंकि यह सिद्धांत भी माइकलसन मोर्ले प्रयोग के परिणामों को समझाने में सक्षम रहा था। उत्सर्जन सिद्धांत प्रकाश संचरण के लिए कोई प्रधान निर्देश तंत्र नहीं होने के कारण आपेक्षिकता सिद्धांत का पालन करते हैं, लेकिन ये सिद्धांत निश्चरता अभिगृहीत के स्थान पर स्रोत के सापेक्ष उत्सर्जित प्रकाश का प्रकाश के वेग c लेते हैं। अतः उत्सर्जन सिद्धांत सरल न्यूटनीय सिद्धांत के साथ विद्युतगतिकी और यांत्रिकी को जोड़ती है। यद्दपि यहाँ वैज्ञानिक मुख्यधारा के बाहर इस सिद्धांत के समर्थक अब तक भी हैं, यह सिद्धांत अधिकांश वैज्ञानिकों द्वारा अन्त में उपयोग रहित माना जाता है। .

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