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मंगोल

सूची मंगोल

चंगेज़ ख़ान एक पारम्परिक मंगोल घर, जिसे यर्त कहते हैं मंगोल मध्य एशिया और पूर्वी एशिया में रहने वाली एक जाति है, जिसका विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में इस जाति को मुग़ल के नाम से जाना जाता था, जिस से मुग़ल राजवंश का नाम भी पड़ा। आधुनिक युग में मंगोल लोग मंगोलिया, चीन और रूस में वास करते हैं। विश्व भर में लगभग १ करोड़ मंगोल लोग हैं। शुरु-शुरु में यह जाति अर्गुन नदी के पूर्व के इलाकों में रहा करती थी, बाद में वह वाह्य ख़िन्गन पर्वत शृंखला और अल्ताई पर्वत शृंखला के बीच स्थित मंगोलिया पठार के आर-पार फैल गई। मंगोल जाति के लोग ख़ानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे और शिकार, तीरंदाजी व घुड़सवारी में बहुत कुशल थे। १२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसके मुखिया तेमूचीन ने तमाम मंगोल कबीलों को एक किया। .

सामग्री की तालिका

  1. 97 संबंधों: चारीकार, चिंगहई, चीन का इतिहास, चीनी जनवादी गणराज्य, एवेंक लोग, तमन प्रायद्वीप, तातार लोग, तान्गूत भाषा, तारिम नदी, ताइवान, तिब्बत का इतिहास, तुमेन, तूल नदी, तेन्ग्री, तेन्ग्री धर्म, तोलुइ ख़ान, थारू, दायकुंदी प्रान्त, दूनहुआंग, दोंगहु लोग, नायमन लोग, नासिरुद्दीन तूसी, नोगाई ख़ान, परवान प्रान्त, पश्चिमी शिया, फ़िरोज़कोह, बातु ख़ान, बाबर, बामयान प्रान्त, बालासगून, बिलगे ख़ागान, बग़दाद, बीसतून, भारतीय इतिहास तिथिक्रम, मध्यकालीन चीन, मलिक काफूर, मानव बलि, मामलुक साम्राज्य, मिस्र, मंगोल भाषा-परिवार, मंगोल लिपि, मंगोल साम्राज्य, मुग़ल साम्राज्य, मीनार-ए-जाम, युआन राजवंश, रूस का इतिहास, रॉकेट, लियाओ राजवंश, शियानबेई लोग, शियोंगनु लोग, ... सूचकांक विस्तार (47 अधिक) »

चारीकार

चारीकार में जानवरों की एक डाक्टर चारीकार (दरी फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Charikar) उत्तर-पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के परवान प्रान्त की राजधानी है। यह कोहदामन (अर्थ:पहाड़ का दामन) नामक वादी का मुख्य शहर है और ग़ोरबंद नदी के किनारे स्थित है।, Ludwig W.

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चिंगहई

चिंगहई (चीनी: 青海; अंग्रेजी: Qinghai, मंगोल: Көкнуур, कोक नूर; तिब्बती: མཚོ་སྔོན་) जनवादी गणराज्य चीन के पश्चिमी भाग में स्थित एक प्रांत है। इसकी राजधानी शिनिंग शहर है। यह प्रांत अधिकतर तिब्बत के पठार पर स्थित है और परंपरागत रूप से तिब्बती लोग इसके अधिकतर भाग को तिब्बत का एक क्षेत्र समझते हैं जिसका तिब्बती नाम 'आमदो' है। इस प्रान्त का नाम चिंगहई झील पर पड़ा है। ऐतिहासिक रूप से यह इलाक़ा चीन का भाग नहीं था बल्कि इसपर कई जातियों में खींचातानी चलती थी, जिनमें तिबाती, हान चीनी, मंगोल और तुर्की लोग शामिल थे। चीन की एक महत्वपूर्ण नदी ह्वांग हो (उर्फ़ 'पीली नदी') इसी प्रान्त के दक्षिणी भाग में जन्म लेती है जबकि यांग्त्से नदी और मिकोंग नदी इसके दक्षिण-पश्चिमी भाग में जन्मती हैं।, Shelley Jiang, Shelley Cheung, Macmillan, 2004, ISBN 978-0-312-32005-8,...

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चीन का इतिहास

चीन के राजवंशों की राज्यसीमाएँ पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर चीन में मानव बसाव लगभग साढ़े बाईस लाख (22.5 लाख) साल पुराना है। चीन की सभ्यता विश्व की पुरातनतम सभ्यताओं में से एक है। यह उन गिने-चुने सभ्यताओं में एक है जिन्होनें प्राचीन काल में अपना स्वतंत्र लेखन पद्धति का विकास किया। अन्य सभ्यताओं के नाम हैं - प्राचीन भारत (सिंधु घाटी सभ्यता), मेसोपोटामिया की सभ्यता, मिस्र सभ्यता और माया सभ्यता। चीनी लिपि अब भी चीन, जापान के साथ-साथ आंशिक रूप से कोरिया तथा वियतनाम में प्रयुक्त होती है। .

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चीनी जनवादी गणराज्य

चीनी जनवादी गणराज्य (चीनी: 中华人民共和国) जिसे प्रायः चीन नाम से भी सम्बोधित किया जाता है, पूर्वी एशिया में स्थित एक देश है। १.३ अरब निवासियों के साथ यह विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है और ९६,४१,१४४ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ यह रूस और कनाडा के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्रफल वाला देश है। इतना विशाल क्षेत्रफल होने के कारण इसकी सीमा से लगते देशों की संख्या भी विश्व में सर्वाधिक (रूस के बराबर) है जो इस प्रकार है (उत्तर से दक्षिणावर्त्त): रूस, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, वियतनाम, लाओस, म्यान्मार, भारत, भूटान, नेपाल, तिबत देश,पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और कज़ाख़िस्तान। उत्तर पूर्व में जापान और दक्षिण कोरिया मुख्य भूमि से दूरी पर स्थित हैं। चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना १ अक्टूबर, १९४९ को हुई थी, जब साम्यवादियों ने गृहयुद्ध में कुओमिन्तांग पर जीत प्राप्त की। कुओमिन्तांग की हार के बाद वे लोग ताइवान या चीनी गणराज्य को चले गए और मुख्यभूमि चीन पर साम्यवादी दल ने साम्यवादी गणराज्य की स्थापना की। लेकिन चीन, ताईवान को अपना स्वायत्त क्षेत्र कहता है जबकि ताइवान का प्रशासन स्वयं को स्वतन्त्र राष्ट्र कहता है। चीनी जनवादी गणराज्य और ताइवान दोनों अपने-अपने को चीन का वैध प्रतिनिधि कहते हैं। चीन विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो अभी भी अस्तित्व में है। इसकी सभ्यता ५,००० वर्षों से अधिक भी पुरानी है। वर्तमान में यह एक "समाजवादी गणराज्य" है, जिसका नेतृत्व एक दल के हाथों में है, जिसका देश के २२ प्रान्तों, ५ स्वायत्तशासी क्षेत्रों, ४ नगरपालिकाओं और २ विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों पर नियन्त्रण है। चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य भी है। यह विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक और दूसरा सबसे बड़ा आयातक है और एक मान्यता प्राप्त नाभिकीय महाशक्ति है। चीनी साम्यवादी दल के अधीन रहकर चीन में "समाजवादी बाज़ार अर्थव्यवस्था" को अपनाया जिसके अधीन पूंजीवाद और अधिकारवादी राजनैतिक नियन्त्रण सम्मित्लित है। विश्व के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक ढाँचे में चीन को २१वीं सदी की अपरिहार्य महाशक्ति के रूप में माना और स्वीकृत किया जाता है। यहाँ की मुख्य भाषा चीनी है जिसका पाम्परिक तथा आधुनिक रूप दोनों रूपों में उपयोग किया जाता है। प्रमुख नगरों में बीजिंग (राजधानी), शंघाई (प्रमुख वित्तीय केन्द्र), हांगकांग, शेन्ज़ेन, ग्वांगझोउ इत्यादी हैं। .

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एवेंक लोग

सन् १९०० के आसपास साइबेरिया में खींची गई कुछ एवेंकियों की तस्वीर एक पारम्परिक एवेंक ओझा (जो पुजारी और हक़ीम दोनों का स्थान रखता था) की पोशाक एवेंक लोग (रूसी: Эвенки, एवेंकी; मंगोल: Хамниган, ख़ामनिगन; अंग्रेजी: Evenk) पूर्वोत्तरी एशिया के साइबेरिया, मंचूरिया और मंगोलिया क्षेत्रों में बसने वाली एक तुन्गुसी जाति का नाम है। रूस के साइबेरिया इलाक़े में सन् २००२ में ३५,५२७ एवेंकी थे और यह औपचारिक रूप से 'उत्तरी रूस की मूल जनजाति' की सूची में शामिल थे।, José Antonio Flores Farfán, Fernando F.

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तमन प्रायद्वीप

१८७० ईसवी के आसपास बनाया गया रूसी भाषा में तमन प्रायद्वीप का नक़्शा तमन प्रायद्वीप (रूसी: Таманский полуостров, तमनस्कीय पोलूओस्त्रोव; अंग्रेज़ी: Taman Peninsula) रूस के क्रास्नोदार क्राय प्रशासनिक विभाग में स्थित एक प्रायद्वीप है। यह कॉकस क्षेत्र में स्थित है और इसके उत्तर में आज़ोव सागर, पश्चिम में केर्च जलडमरू तथा दक्षिण में कृष्ण सागर आता है। पश्चिम में केर्च जलडमरू के पार युक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र का पूर्वतम हिस्सा (जो केर्च प्रायद्वीप कहलाता है) स्थित है। तेम्रयुक (Темрю́к, Temryuk) इस प्रायद्वीप का सबसे बड़ा शहर है। .

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तातार लोग

दिनारा सफीना रूस के लिए टेनिस खेलती हैं और नस्ल से तातार हैं रुसलन चाग़ायेव उज़बेकिस्तान के लिए मुक्केबाज़ी करते हैं और एक तातार हैं तातार या ततार (तातार: ततरलार; रूसी: Татар; अंग्रेज़ी: Tatar) रूसी भाषा और तुर्की भाषाएँ बोलने वाली एक जाति है जो अधिकतर रूस में बसती है। दुनिया भर में इनकी आबादी ७० लाख अनुमानित की गई है, जिनमें से ५५ लाख रूस में रहते हैं। रूस के तातारस्तान प्रांत में २० लाख तातार रहते हैं। रूस के बाहर तातार समुदाय उज़बेकिस्तान, पोलैंड, काज़ाख़स्तान, युक्रेन, ताजिकिस्तान, किर्गिज़स्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाए जाते हैं।, Global Vision Publishing Ho, 2005, ISBN 978-81-8220-062-3,...

देखें मंगोल और तातार लोग

तान्गूत भाषा

बौद्ध सूत्र तान्गूत भाषा (Tangut) या शी शिया भाषा (西夏) एक प्राचीन उत्तरपूर्वी तिब्बती-बर्मी भाषा थी जो कभी पश्चिमी शिया साम्राज्य के तान्गूत लोगों द्वारा बोली जाती थी। इसे कभी-कभी तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की चिआंगी उपशाखा (Qiangic) में वर्गीकृत किया जाता है।, James Matisoff, 2004.

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तारिम नदी

तारिम नदी के जलसम्भर क्षेत्र का नक़्शा तारिम नदी (उईग़ुर:, तारिम दरियासी; चीनी: 塔里木河, तालीमु हे; अंग्रेजी: Tarim River) चीन के शिंजियांग प्रांत की मुख्य नदी है। इसी नदी के नाम पर महान तारिम द्रोणी का नाम पड़ा है, जो मध्य एशिया में कुनलुन पर्वतों और तियान शान पर्वतों के बीच और तिब्बत के पठार से उत्तर में स्थित है। १,३२१ किलोमीटर लम्बा यह दरिया चीन की सबसे लम्बी नदी है जो समुद्र में नहीं बहती, यानि जो एक बन्द जलसम्भर वाली नदी है।, Yue-man Yeung, Jianfa Shen, Chinese University Press, 2004, ISBN 978-962-996-157-2,...

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ताइवान

ताइवान द्वीप की स्थिति ताइवान का मानचित्र ताइवान या ताईवान (चीनी: 台灣) पूर्व एशिया में स्थित एक द्वीप है। यह द्वीप अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है जिसका मुख्यालय ताइवान द्वीप ही है। इस कारण प्रायः 'ताइवान' का अर्थ 'चीनी गणराज्य' से भी लगाया जाता है। यूं तो ऐतिहासिक तथा संस्कृतिक दृष्टि से यह मुख्य भूमि (चीन) का अंग रहा है, पर इसकी स्वायत्ता तथा स्वतंत्रता को लेकर चीन (जिसका, इस लेख में, अभिप्राय चीन का जनवादी गणराज्य से है) तथा चीनी गणराज्य के प्रशासन में विवाद रहा है। ताइवान की राजधानी है ताइपे। यह देश का वित्तीय केन्द्र भी है और यह नगर देश के उत्तरी भाग में स्थित है। यहाँ के निवासी मूलत: चीन के फ्यूकियन (Fukien) और क्वांगतुंग प्रदेशों से आकर बसे लोगों की संतान हैं। इनमें ताइवानी वे कहे जाते हैं, जो यहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व में बसे हुए हैं। ये ताइवानी लोग दक्षिण चीनी भाषाएँ जिनमें अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) सम्मिलित हैं, बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राज्यकार्यों की भाषा है। ५० वर्षीय जापानी शासन के प्रभाव में लोगों ने जापानी भी सीखी है। आदिवासी, मलय पोलीनेशियाई समूह की बोलियाँ बोलते हैं। .

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तिब्बत का इतिहास

तिब्बत का ऐतिहासिक मानचित्र 300px मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के अनुसार तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से सहायता माँगी। चीन के सहायता से उसने नेपाल से छुटकारा तो पाया लेकिन इसके बाद 1906-7 ई0 में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार बनाया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। 1912 ई0 में चीन से मांछु शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया.

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तुमेन

तुमेन (मंगोल: Түмэн, अंग्रेज़ी: Tümen) तुर्कियों और मंगोलों की संख्या प्रणाली में 'दस-हज़ार' (१०,०००) के लिए प्रयोग होने वाली संख्या थी। फ़ौजी दृष्टिकोण से दस-हज़ार सैनिकों के दस्तों को तुमेन बुलाया जाता था। मंगोल सोच थी कि एक तुमेन का दस्ता किसी झड़प को तेज़ी से जीतने के लिए पर्याप्त था लेकिन इतना भी बड़ा नहीं था कि इसे जल्दी से दिशा बदलने में या खाना-पानी पहुँचाने में मुश्किल हो। आधुनिक मंगोल भाषा में 'तुमेन' शब्द को 'बहुत ज़्यादा' या 'असीमित' के अर्थ के साथ भी इस्तेमाल किया जाता है। मान्छु लोग और हूण लोग भी इसी तुमेन सैनिक संगठन प्रणाली का प्रयोग करते थे।, Michael Lee Lanning, James F.

देखें मंगोल और तुमेन

तूल नदी

गोरख़ी-तेरेल्ज​ राष्ट्रीय उद्यान से गुज़रती तूल नदी तूल नदी (मंगोल: Туул гол, तूल गोल; अंग्रेज़ी: Tuul River) मंगोलिया के उत्तरी भाग में बहने वाली एक प्रमुख नदी है जिसे मंगोल लोग एक पवित्र नदी मानते हैं। इसे पुराने ज़माने में 'तोला नदी' (Tola) भी कहा जाता था और 'तूल' शब्द का अर्थ मंगोल भाषा में 'पानी में चलना' होता है। इस ७०४ किमी लम्बी नदी का ज़िक्र 'मंगोलों का गुप्त इतिहास' नामक इतिहास-ग्रन्थ में हुआ था। मंगोल लोग इस अक्सर 'ख़तन तूल' यानि 'रानी तूल' बुलाते हैं। इसके जलसम्भर का क्षेत्रफल ४९,८४० वर्ग किमी है।, World Bank, World Bank Publications, 2010, ISBN 978-0-8213-8126-7,...

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तेन्ग्री

यहाँ पुरानी तुर्की लिपि में 'तेन्ग्री' लिखा हुआ है गुयुक ख़ान द्वारा १२४६ ई में इसाई पोप को लिखे पत्र पर लगी मोहर में पहले चार शब्द है 'मोन्गके तेन्ग्री- यिन कुचुन्दुर' यानि 'सनातन आकाश की शक्ति के अधीन' ख़ान तेन्ग्री पर्वत तेन्ग्री (Tengri) प्राचीन तुर्क लोगों और मंगोल लोगों के धर्म के मुख्य देवता थे। इनकी मान्यता शियोंगनु और शियानबेई जैसे बहुत सी मंगोल और तुर्की समुदायों में थी और इनके नाम पर उन लोगों के धर्म को तेन्ग्री धर्म (Tengriism) बुलाया जाता है। तुर्की लोगों की सबसे पहली ख़ागानत ने, जिसका नाम गोएकतुर्क ख़ागानत था, भी इन्हें अपना राष्ट्रीय देवता ठहराया था और उसके ख़ागान भी अपनी गद्दी पर विराजमान होने का कारण 'तेन्ग्री की इच्छा' बताते थे। तेन्ग्री को 'आकाश का देवता' या 'नीले आकाश का पिता' कहा जाता था। अक्सर मंगोल शासक अपने राज के पीछे 'सनातन नीले आकाश की इच्छा' होने की बात किया करते थे।, Zachary Kent, Enslow Publishers, 2007, ISBN 978-0-7660-2715-2,...

देखें मंगोल और तेन्ग्री

तेन्ग्री धर्म

काज़ाख़स्तान के राष्ट्रीय ध्वज की नीली पृष्ठभूमि 'सनातन नीले आकाश', यानि तेन्ग्री, का प्रतीक है तेन्ग्री धर्म (पुरानी तुर्की: 7px7px7px7px, मंगोल: Тэнгэр шүтлэг, अंग्रेज़ी: Tengrism) एक प्राचीन मध्य एशियाई धर्म है जिसमें ओझा प्रथा, सर्वात्मवाद, टोटम प्रथा और पूर्वज पूजा के तत्व शामिल थे। यह तुर्क लोगों और मंगोलों की मूल धार्मिक प्रथा थी। इसके केन्द्रीय देवता आकाश के प्रभु तेन्ग्री (Tengri) थे और इसमें आकाश के लिए बहुत श्रद्धा रखी जाती थी। आज भी मध्य एशिया और उत्तरी एशिया में तूवा और साइबेरिया में स्थित ख़कासिया जैसी जगहों पर तेन्ग्री धर्म के अनुयायी सक्रीय हैं।, Robert A.

देखें मंगोल और तेन्ग्री धर्म

तोलुइ ख़ान

तोलुइ ख़ान अपनी पत्नी सोरग़ोग़तानी के साथ तोलुइ ख़ान (मंगोल: Тулуй, फ़ारसी:, अंग्रेजी: Tolui;; जन्म: ११९२ ई; देहांत: १२३२ ई) मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ान और उसकी मुख्य पत्नी बोरते का चौथा और सबसे छोटा पुत्र था। अपने पिता की वसीयत में उसे मंगोलिया का क्षेत्र मिला, जो मंगोलों की मातृभूमि थी। चंगेज़ ख़ान की मृत्यु के बाद जब ओगताई ख़ान को अगला सर्वोच्च ख़ान चुनने में थोड़ा विलम्ब हुआ तो उसी काल में तोलुइ ने एक निपुण प्रशासक की भूमिका निभाई। उस से पहले चीन और ईरान पर क़ब्ज़ा करने के चंगेज़ ख़ान के अभियान में उसने एक कुशल सिपहसलार होने का भी प्रमाण दिया। हालांकि तोलुइ ख़ान ने कभी भी सर्वोच्च ख़ान बनने का दावा नहीं किया, उसी के ही दो पुत्रों ने आगे चलकर ईरान के इलख़ानी साम्राज्य और चीन के युआन राजवंश की स्थापना की। उसकी पत्नी सोरग़ोग़तानी को मंगोल इतिहास की सबसे होशियार और सक्षम स्त्री कहा जाता है।, Kathy Sammis, Walch Publishing, 2002, ISBN 978-0-8251-4369-4,...

देखें मंगोल और तोलुइ ख़ान

थारू

परम्परागत वस्त्रों में थारू स्त्रियाँ थारू पुरुष मछली पकड़ने के लिये जातीं थारू स्त्रियाँ थारू, नेपाल और भारत के सीमावर्ती तराई क्षेत्र में पायी जाने वाली एक जनजाति है। नेपाल की सकल जनसंख्या का लगभग 6.6% लोग थारू हैं। भारत में बिहार के चम्पारन जिले में और उत्तराखण्ड के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर में थारू पाये जाते हैं। थारुओं का मुख्य निवास स्थान जलोढ़ मिट्टी वाला हिमालय का संपूर्ण उपपर्वतीय भाग तथा उत्तर प्रदेश के उत्तरी जिले वाला तराई प्रदेश है। ये हिन्दू धर्म मानते हैं तथा हिन्दुओं के सभी त्योहार मनाते हैं। .

देखें मंगोल और थारू

दायकुंदी प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का दायकुंदी प्रांत (लाल रंग में) दायकुंदी या दाय कुंदी (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Daykundi) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के मध्य भाग में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल १८,०८८ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ४ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी नीली शहर है। बामयान प्रान्त की तरह, इस प्रान्त में भी अधिकतर आबादी हज़ारा समुदाय की है, जो मंगोल नस्ल के वंशज हैं और शिया इस्लाम के अनुयायी हैं। .

देखें मंगोल और दायकुंदी प्रान्त

दूनहुआंग

दूनहुआंग में एक बाज़ार चीन के गांसू प्रान्त में दूनहुआंग शहर (गुलाबी रंग में) हान राजवंश काल के दौरान बने मिट्टी के संतरी बुर्ज के खंडहर नवचंद्र झील दूनहुआंग (चीनी: 敦煌, अंग्रेज़ी: Dunhuang) पश्चिमी चीन के गांसू प्रान्त में एक शहर है जो ऐतिहासिक रूप से रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था। इसकी आबादी सन् २००० में १,८७,५७८ अनुमानित की गई थी। रेत के टीलों से घिरे इस रेगिस्तानी इलाक़े में दूनहुआंग एक नख़लिस्तान (ओएसिस) है, जिसमें 'नवचन्द्र झील' (Crescent Lake) पानी का एक अहम स्रोत है। प्राचीनकाल में इसे शाझोऊ (沙州, Shazhou), यानि 'रेत का शहर', के नाम से भी जाना जाता था। यहाँ पास में मोगाओ गुफ़ाएँ भी स्थित हैं जहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धी ४९२ मंदिर हैं और जिनमें इस क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति पर भारत का गहरा प्रभाव दिखता है।, Morning Glory Publishers, 2000, ISBN 978-7-5054-0715-2,...

देखें मंगोल और दूनहुआंग

दोंगहु लोग

तीसरी सदी ईसापूर्व में चिन राजवंश के दौरान दोंगहु पूर्वोत्तर में बसते थे दोंगहु (चीनी भाषा: 東胡, अंग्रेज़ी: Donghu) प्राचीन चीन से उत्तर-पूर्व में बसने वाली एक मंगोल ख़ानाबदोश क़बीलों की जाति थी जिनका वर्णन सातवी शताब्दी ईसापूर्व से मिलता है। माना जाता है कि उनकी झड़पें शिओंगनु लोगों से हुई जिन्होनें १५० ईसापूर्व में उन्हें नष्ट कर दिया। आगे जाकर दोंगहु लोग वूहुआन (烏桓, Wuhuan) और शिआनबेई (鮮卑, Xianbei) गुटों में बंट गए। माना जाता है कि मंगोल जाति इन्ही की वंशज है। .

देखें मंगोल और दोंगहु लोग

नायमन लोग

चंगेज़ ख़ान के मंगोल साम्राज्य से पहले १३वीं सदी में यूरेशिया के स्थिति - नायमन (Naiman) राज्य नक़्शे में दिख रहा है नायमन या नायमन तुर्क या नायमन मंगोल (मंगोल: Найман ханлиг, नायमन ख़ानलिग) मध्य एशिया के स्तेपी इलाक़े में बसने वाली एक जाति का मंगोल भाषा में नाम था, जिनके कारा-ख़ितान के साथ सम्बन्ध थे और जो सन् ११७७ तक उनके अधीन रहे। मंगोल नाम होने के बावजूद, नायमानों को एक मंगोल जाति नहीं बल्कि एक तुर्की जाति माना जाता है।, René Grousset, Rutgers University Press, 1970, ISBN 978-0-8135-1304-1,...

देखें मंगोल और नायमन लोग

नासिरुद्दीन तूसी

नासेर अल दीन (1201-1274) तेरहवीं सदी के एक इस्लामी खगोलविद, ज्यामितज्ञ तथा विद्वान थे। इन्होंने मंगोलों के आक्रमण के काल में खगोल प्रयोगशाला बनाई और इस प्रचलित सिद्धांत का विरोध किया कि पृथ्वी स्थिर है। उनका जन्म ख़ोरासान के तूस में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। Category:मुस्लिम खगोलविद.

देखें मंगोल और नासिरुद्दीन तूसी

नोगाई ख़ान

नोगाई ख़ान (मंगोल: Ногай хан; अंग्रेजी: Nogai Khan;; देहांत: १२९९ ई) एक मंगोल सिपहसालार और सुनहरा उर्दू नामक मंगोल ख़ानत का असली शासक भी था। नोगाई का दादा बाउल ख़ान (उर्फ़ तेवल ख़ान) था जो जोची ख़ान का ७वाँ बेटा था। इस लिहाज़ से नोगाई मंगोल साम्राज्य के मशहूर संस्थापक चंगेज़ ख़ान का पड़-पड़-पोता था। .

देखें मंगोल और नोगाई ख़ान

परवान प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का परवान प्रान्त (लाल रंग में) परवान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Parwan) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के पूर्व में स्थित है। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ५,९७४ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००९ में लगभग ५.६ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी चारीकार शहर है। यहाँ के ज़्यादातर लोग फ़ारसी बोलने वाले ताजिक लोग हैं, हालाँकि यहाँ पश्तून समुदाय के लोग भी रहते हैं। .

देखें मंगोल और परवान प्रान्त

पश्चिमी शिया

सन् ११११ ईसवी में पश्चिमी शिया राजवंश का क्षेत्र (हरे रंग में) तान्गूत सरकार द्वारा जारी यह कांसे के अधिकारपत्र धारक को 'घोड़े जलाने' (यानि आपातकाल में सरकारी घोड़े तेज़ी से दोड़ाकर थका डालने) की अनुमति देते थे पश्चिमी शिया राजवंश (चीनी: 西夏, शी शिया; अंग्रेजी: Western Xia) जिसे तान्गूत साम्राज्य (Tangut Empire) भी कहा जाता है पूर्वी एशिया का एक साम्राज्य था जो आधुनिक चीन के निंगशिया, गांसू, उत्तरी शान्शी, पूर्वोत्तरी शिनजियांग, दक्षिण-पश्चिमी भीतरी मंगोलिया और दक्षिणी मंगोलिया पर सन् १०३८ से १२२७ ईसवी तक विस्तृत था। तान्गूत लोग तिब्बती लोगों से सम्बंधित माने जाते हैं और उन्होंने चीनी लोगों का पड़ोसी होने के बावजूद चीनी संस्कृति नहीं अपनाई। तिब्बती और तान्गूत लोग इस साम्राज्य को मिन्याक साम्राज्य (Mi-nyak) बुलाते थे। तान्गुतों ने कला, संगीत, साहित्य और भवन-निर्माण में बहुत तरक्की की थी। सैन्य क्षेत्र में भी वे सबल थे - वे शक्तिशाली लियाओ राजवंश, सोंग राजवंश और जिन राजवंश (१११५–१२३४) का पड़ोसी होते हुए भी डट सके क्योंकि उनका फ़ौजी बन्दोबस्त बढ़िया था। रथी, धनुर्धर, पैदल सिपाही, ऊँटों पर लदी तोपें और जल-थल दोनों पर जूझने को तैयार टुकड़ियाँ सभी उनकी सेना का अंग थीं और एक-साथ आयोजित तरीक़े से लड़ना जानती थीं।, David Hartill, Trafford Publishing, 2005, ISBN 978-1-4120-5466-9,...

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फ़िरोज़कोह

फ़िरोज़कोह या फ़िरूज़कूह (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Fîrûzkûh या Turquoise Mountain) आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान के ग़ोर प्रान्त में स्थित एक शहर था जो ग़ोरी राजवंश की प्रथम राजधानी थी। कहा जाता है कि अपने समय में यह विश्व के महान नगरों में से एक था लेकिन सन् १२२० के दशक में चंगेज़ ख़ान के पुत्र ओगताई ख़ान के नेतृत्व में मंगोल फ़ौजों ने इसपर धावा बोला और इसे तहस-नहस कर डाला। उसके बाद यह शहर इतिहास को खोया गया और इसका ठीक स्थान किसी को ज्ञात नहीं है।, Edgar Knobloch, Tempus, 2002, ISBN 978-0-7524-2519-1,...

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बातु ख़ान

222px बातु ख़ान (मंगोल: Бат Хаан, बात ख़ान; अंग्रेजी: Batu Khan;; जन्म: १२०७ ई अनुमानित; देहांत: १२५५ ई) एक मंगोल शासक था और सुनहरा उर्दू नामक साम्राज्य का संस्थापक था जो मंगोल साम्राज्य के अधीन एक ख़ानत थी। बातु ख़ान जोची ख़ान का पुत्र और मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ान का पोता था। 'बातु' या 'बात' शब्द का अर्थ मंगोल भाषा में 'कड़ा' या 'दृढ़' होता है। उसके द्वारा शुरू किये गए साम्राज्य का रूस, पूर्वी यूरोप और कॉकस के बड़े भाग पर लम्बे अरसे तक राज रहा। चंगेज़ ख़ान के पुत्रों कि मृत्य के बाद बातु ख़ान ही उस साम्राज्य का सबसे आदरणीय राजकुंवर बना और उसे 'आग़ा' (अर्थ: बड़े भाईसाहब) के नाम से जाना जाता था।, David Morgan, John Wiley & Sons, 2007, ISBN 978-1-4051-3539-9,...

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बाबर

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था, जिनका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश के संस्थापक था। वो तैमूर लंग के परपोते था, और विश्वास रखते था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश के पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है! .

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बामयान प्रान्त

अफ़्ग़ानिस्तान का बामयान प्रांत (लाल रंग में) बामयान या बामियान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Bamyan) अफ़्ग़ानिस्तान का एक प्रांत है जो उस देश के मध्य भाग में स्थित है। बामयान में अधिकतर आबादी हज़ारा समुदाय की है, जो मंगोल नस्ल के वंशज हैं और शिया इस्लाम के अनुयायी हैं। बामियान प्रान्त का क्षेत्रफल १४,१७५ वर्ग किमी है और इसकी आबादी सन् २००६ में लगभग ३.९ लाख अनुमानित की गई थी।, Central Intelligence Agency (सी आइ ए), Accessed 27 दिसम्बर 2011 इस प्रान्त की राजधानी बामयान शहर है। .

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बालासगून

बुराना बुर्ज बालासगून (तुर्की: Balagasun, फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Balasagun) मध्य एशिया के किरगिज़स्तान क्षेत्र में एक प्राचीन सोग़दाई शहर था। यह चुय वादी में किरगिज़स्तान की आधुनिक राजधानी बिश्केक और इसिक कुल झील के बीच स्थित था। शुरू में यहाँ सोग़दाई भाषा बोली जाती थी, जो एक ईरानी भाषा थी। १०वीं सदी ईसवी के बाद यह काराख़ानी ख़ानत की राजधानी बना जो तुर्की भाषी था जिस से यहाँ की स्थानीय भाषा धीरे-धीरे बदलकर तुर्की हो गई। १२वीं सदी में इसपर कारा-ख़ितान ख़ानत का क़ब्ज़ा हो गया और फिर सन् १२१८ में फैलते हुए मंगोल साम्राज्य ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया। मोंगोलों ने इसका नाम बदलकर गोबालिक (Gobalik) कर दिया, जिसका मतलब मंगोल भाषा में 'सुन्दर शहर' था। मंगोल जीत के बाद इस शहर का महत्व घटने लगा। अब यहाँ बहुत से खँडहर हैं जिन्हें देखने के लिए सैलानी आया करते हैं। यहाँ का बुराना बुर्ज (Burana Tower) मशहूर है, जो कभी १३८ फ़ुट (४६ मीटर) लम्बा था लेकिन भूकम्पों में इसके हिस्से गिरने से केवल ७९ फ़ुट (२४ मीटर) रह गया है। यहाँ नेस्टोरी शाखा के ईसाई भी रहते थे जिनका टूटता हुआ कब्रिस्तान भी यहीं मौजूद है। तुर्की भाषा के प्रसिद्ध 'कूतादगू बिलिग' (Kutadgu Bilig) नामक ग्रन्थ के रचियता, युसुप ख़ास हाजिब, भी बालासगून शहर में पैदा हुए थे।, Laurence Mitchell, pp.

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बिलगे ख़ागान

ओरख़ोन नदी के पास खड़ा की गई ऐसी शिलाएँ बिलगे ख़ागान के लिए स्मारक थीं और इनपर पुरानी तुर्की भाषा की सबसे प्राचीन ज्ञात लिखाई है बिलगे ख़ागान (Bilge Qaghan, जन्म: ६८३ या ६८४ ईसवी, मृत्यु: ७३४ ईसवी) गोएकतुर्क ख़ागानत का एक ख़ागान (सर्वोच्च ख़ान शासक) था। उसके कारनामों का बखान प्रसिद्ध ओरख़ोन शिलालेखों में मिलता है। .

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बग़दाद

बगदाद एक प्रमुख नगर बग़दाद (بغداد) विश्व का एक प्रमुख नगर एवं ईराक की राजधानी है। इसका नाम ६०० ईपू के बाबिल के राजा भागदत्त पर पड़ा है। यह नगर 4,000 वर्ष पहले पश्चिमी यूरोप और सुदूर पूर्व के देशों के बीच, समुद्री मार्ग के आविष्कार के पहले कारवाँ मार्ग का प्रसिद्ध केंद्र था तथा नदी के किनारे इसकी स्थिति व्यापारिक महत्व रखती थी। मेसोपोटामिया के उपजाऊ भाग में स्थित बगदाद वास्तव में शांति और समृद्धि का केंद्र था। 9वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में यह अपने चरमोत्कर्ष पर था। उस समय यहाँ प्रबुद्ध खलीफा की छत्रछाया में धनी व्यापारी एवं विद्वान लोग फले-फूले। रेशमी वस्त्र एवं विशाल खपरैल के भवनों के लिए प्रसिद्ध बगदाद इस्लाम धर्म का केंद्र रहा है। यहाँ का औसत ताप लगभग 23 डिग्री सें.

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बीसतून

बीसतून पश्चिम ईरान में एक स्थान है जो अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए विख्यात है। यह करमनशाह से क़रीब 30 किमी दूर हमादान जाने वाली सड़क पर अवस्थित है। यहाँ पर दारा प्रथम के शिलालेख के अलावा हर्क्युलेस की विश्राम की अवस्था में प्रस्तरछवि, पार्थियनों (दूसरी सदी) की अग्नि पूजा, एक सासानी पुल (पाँचवीं सदी), मंगोल आक्रमण के भग्नावशेष (तेरहवीं सदी), एक सत्रहवीं सदी में निर्मित सराय (कारवांसराय) और उन्नासवीं सदी में बनाई गई घेराबंदी देखी जा सकती है। यह स्थान ईरानी इतिहास के संग्रहालय की तरह है। श्रेणी:ईरान के नगर.

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भारतीय इतिहास तिथिक्रम

भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.

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मध्यकालीन चीन

सुई राजवंश के बाद तंग राजवंश और सोंग राजवंश काकाल आया। इनके शासन के दौरान चीन की संस्कृति और विज्ञान अपने चरम पर पहुंच गया। सातवीं से चौदहवीं सदी तक चीन विश्व का सबसे संस्कृत देश बना रहा। 1271 में मंगोल सरदार कुबलय खां ने युआन रादवंश की स्थापना की जिसने 1279 तक सोंग वंश को सत्ता से हटाकर अपना अधिपत्य कायम किया। एक किसान ने 1368 में मंगोलों को भगा दिया और मिंग राजवंश की स्थापना की जो 1664 तक चला। मंचू लोगों के द्वारा स्थापित क्विंग राजवंश ने चीन पर 1911 तक राज किया जो चीन का अंतिम वंश था। चीन का सबसे पुराना राजवंश है - शिया राजवंश। इनका अस्तित्व एक लोककथा लगता था पर हेनान में पुरातात्विक खुदाई के बाद इसके वजूद की सत्यता सामने आई। प्रथम प्रत्यक्ष राजवंश था - शांग राजवंश, जो पूर्वी चीन में 18वीं से 12 वीं सदी इसा पूर्व पीली नदी के किनारे बस गए। 12वीं सदी ईसा पूर्व में पश्चिम से झोऊ शासकों ने इनपर हमला किया और इनके क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इन्होने 5वीं सदी ईसा पूर्व तक राज किया। इसके बाद चीन के छोटे राज्य आपसी संघर्ष में भिड़ गए। ईसा पूर्व 221 में चिन राजवंश ने चीन का प्रथम बार एकीकरण किया। इन्होने राजा का कार्यालय स्थापित किया और चीनी भाषा का मानकीकरण किया। ईसा पूर्व 220 से 206 ई.

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मलिक काफूर

मलिक काफूर (१३१६ में निधन), जिसे ताज अल-दिन इज्ज अल-द्वा के नाम से भी जाना जाता है, दिल्ली सल्तनत शासक अलाउद्दीन खिलजी के एक प्रमुख अनौपचारिक दास/गुलाम-जनरल था। इसे अलाउद्दीन के जनरल नुसरत खान द्वारा गुजरात १२९९ के आक्रमण के दौरान लाया गया। अलाउद्दीन की सेना के कमांडर के रूप में, काफुर ने १३०६ में मंगोल आक्रमणकारियों को हराया था। इसके बाद, इन्होंने यादव (१३०८), काकतीय (१३१०), होसैलस (१३११) और पांड्या (१३११) के खिलाफ भारत के दक्षिणी भाग में एक अभियान की श्रृंखला का नेतृत्व किया था। इन अभियानों के दौरान, इन्होंने दिल्ली सल्तनत के लिए बड़ी संख्या में खजाने, हाथी और घोड़े प्राप्त किए थे। १३१३-१३१५ के दौरान, काफूर देवगिरी के अलाउद्दीन के गवर्नर के रूप में कार्यरत थे। १३१५ में जब अलाउद्दीन गंभीर रूप से बीमार हो गए, तब उन्हें दिल्ली वापस बुला लिया गया और उन्हें नाइब (वायसरॉय) के रूप में रखा गया। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद, उन्होंने अलाउद्दीन के बेटे शिहाबुद्दीन ओमार की सत्ता को हड़पने की कोशिश की। इसके बाद ये गद्दी पर बैठ गए और उनकी सत्ता लगभग एक महीने तक चली, और बाद में अलाउद्दीन के पूर्व अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी। तत्पश्चात अलाउद्दीन के बड़े बेटे, मुबारक शाह शासक के रूप में सफल हुए, हालांकि बाद में सत्ता का त्याग कर दिया। .

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मानव बलि

एचिलिस के कब्र पर नीओप्टोलेमस के हाथ से पॉलीजिना मर गया" (एक प्राचीन कैमिया के बाद 1900 सदी का चित्र) किसी धार्मिक अनुष्ठान के भाग (अनुष्ठान हत्या) के रूप में किसी मानव की हत्या करने को मानव बलि कहते हैं। इसके अनेक प्रकार पशुओं को धार्मिक रीतियों में काटा जाना (पशु बलि) तथा आम धार्मिक बलियों जैसे ही थे। इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों में मानव बलि की प्रथा रही है। इसके शिकार व्यक्ति को रीति-रिवाजों के अनुसार ऐसे मारा जाता था जिससे कि देवता प्रसन्न अथवा संतुष्ट हों, उदाहरण के तौर पर मृत व्यक्ति की आत्मा को देवता को संतुष्ट करने के लिए भेंट किया जाता था अथवा राजा के अनुचरों की बलि दी जाती थी ताकि वे अगले जन्म में भी अपने स्वामी की सेवा करते रह सकें.

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मामलुक साम्राज्य

मामलुक साम्राज्य (1250-1517) के बीच मिस्र तथा पश्चिमी अरब पर शासन करने वाला एक साम्राज्य था। तेरहवीं सदी के उत्तरार्ध में इनकी लड़ाई मंगोलों से हुई थी जिसमें वे विजयी रहे थे। इसके आलावा धर्मयुद्धों में भी इमकी भूमिका रही थी। मंगोलों द्वारा बग़दाद के लूटे जाने (1257) के बाद काहिरा में इनका एक ख़लीफ़ा भी होता था। यह साम्राज्य एक समय ग़ुलाम के रूप में रहे लोगों द्वारा शासित था - ये ग़ुलाम मुखयतः तुर्क होते थे जिन्हें मामलुक कहा जाता था। उत्तरी भारत में भी लगभग इसी समय (50 साल पहले) ग़ुलाम वंश स्थापित हुआ था जिनके शासक तुर्क नस्ल के ग़ुलाम थे। .

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मिस्र

मिस्र (अरबी; مصر, अंग्रेजी:Egypt), आधिकारिक तौर पर मिस्र अरब गणराज्य, एक देश है जिसका अधिकांश हालांकि उत्तरी अफ्रीका में स्थित है जबकि इसका सिनाई प्रायद्वीप, दक्षिणपश्चिम एशिया में एक स्थल पुल बनाता है। इस प्रकार मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है, तथा अफ्रीका, भूमध्य क्षेत्र, मध्य पूर्व और इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति है। इसका क्षेत्रफल 1010000 वर्ग किलोमीटर है और इसके उत्तर में भूमध्य सागर, पूर्वोत्तर में गाजा पट्टी और इस्राइल, पूर्व में लाल सागर, दक्षिण में सूडान और पश्चिम में लीबिया स्थित है। मिस्र, अफ्रीका और मध्य पूर्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में से एक है। इसकी अनुमानित 7.90 करोड़ जनसंख्या का अधिकतर हिस्सा नील नदी के किनारे वाले हिस्से में रहता है। नील नदी का यह क्षेत्र लगभग 40000 वर्ग किलोमीटर (15000 वर्ग मील) का है और पूरे देश का सिर्फ इसी क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि पायी जाती है। सहारा मरुस्थल के एक बड़े हिस्से में विरल जनसंख्या निवास करती है। मिस्र के लगभग आधे निवासी शहरों में वास करते हैं जिनमें नील नदी के मुहाने के क्षेत्र में बसे सघन जनसंख्या वाले शहर जैसे कि काहिरा, सिकन्दरिया आदि प्रमुख हैं। मिस्र की मान्यता उसकी प्राचीन सभ्यता के लिए है। गीज़ा पिरामिड परिसर और महान स्फिंक्स जैसे प्रसिद्ध स्मारक यहीं स्थित है। मिस्र के प्राचीन खंडहर जैसे कि मेम्फिस, थेबिस, करनाक और राजाओं की घाटी जो लक्सर के बाहर स्थित हैं, पुरातात्विक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण केंद्र हैं। यहां के शासक को फारो नाम से जाना जाता था। इस पदवी का प्रयोग ईसाई और इस्लाम काल के पूर्व काल में होता था। इसे फारोह भी लिखते हैं। फारो को मिस्र के देवता होरसका पुनर्जन्म माना जाता था। होरस द्यौ (आकाश) का देवता था और इसे सूर्य भी माना जाता था। मिस्र की कार्यशक्ति का लगभग 12% हिस्सा पर्यटन और लाल सागर रिवेरा में कार्यरत है। मध्य पूर्व में, मिस्र की अर्थव्यवस्था सबसे अधिक विकसित और विविध अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। पर्यटन, कृषि, उद्योग और सेवा जैसे क्षेत्रों का उत्पादन स्तर लगभग एक समान है। 2011 के शुरूआत में मिस्र उस क्रांति का गवाह बना, जिसके द्वारा मिस्र से होस्नी मुबारक नाम के तानाशाह के 30 साल के शासन का खात्मा हुआ। .

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मंगोल भाषा-परिवार

मोंगोल भाषाओँ का विस्तार मंगोल भाषाएँ (अंग्रेज़ी: Mongolic languages, मोंगोलिक लैग्वेजिज़) पूर्वी एशिया और मध्य एशिया में बोली जाने वाली भाषाओँ का एक भाषा-परिवार है। इसकी सब से नुमाया भाषा मंगोल भाषा है, जो मंगोलिया और चीन के भीतरी मंगोलिया प्रान्त के मंगोल समुदाय कि प्रमुख भाषा है और जिसे लगभग ५२ लाख लोग बोलते हैं। कुछ भाषावैज्ञानिकों के हिसाब से मंगोल भाषाएँ अल्ताई भाषा-परिवार की एक उपशाखा है। मंगोल के अलावा मंगोल भाषा-परिवार में कई अन्य भाषाएँ भी आती हैं, जैसे कि रूस के साइबेरिया क्षेत्र में बोली जाने वाली बुर्यात भाषा, चीन के चिंग हई प्रान्त में बोली जाने वाली कन्गजिआ भाषा और चीन के ही शिनजियांग प्रान्त में बोली जाने वाली दोंगशियांग भाषा।, Juha Janhunen, Psychology Press, 2003, ISBN 978-0-7007-1133-8 .

देखें मंगोल और मंगोल भाषा-परिवार

मंगोल लिपि

मंगोल लिपि में गुयुक ख़ान का सन् १२४६ का राजचिह्न इस सिक्के पर मंगोल लिपि में लिखा है कि यह 'रिन्छिन्दोर्जी ग​एख़ातू ने ख़ागान के नाम पर ज़र्ब किया' मंगोल लिपि (मंगोल: ᠮᠣᠩᠭᠣᠯ ᠪᠢᠴᠢᠭ᠌, सिरिलिक लिपि: Монгол бичиг, मोंगयोल बिचिग), जिसे उईग़ुरजिन भी कहते हैं, मंगोल भाषा को लिखने की सर्वप्रथम लिपि और वर्णमाला थी। यह उईग़ुर भाषा के लिए प्रयोग होने वाली प्राचीन लिपि को लेकर विकसित की गई थी और बहुत अरसे तक मंगोल भाषा लिखने के लिए सब से महत्वपूर्ण लिपि का दर्जा रखती थी।, Urgunge Onon, Brill Archive, 1990, ISBN 978-90-04-09236-5,...

देखें मंगोल और मंगोल लिपि

मंगोल साम्राज्य

हलाकू (बायें), खलीफा अल-मुस्तसिम को भूख से मारने के लिये उसके खजाने में कैद करते हुए मांगके खान की मृत्यु के समय (१२५९ ई में) मंगोल साम्राज्य मंगोल साम्राज्य 13 वीं और 14 वीं शताब्दियों के दौरान एक विशाल साम्राज्य था। इस साम्राज्य का आरम्भ चंगेज खान द्वारा मंगोलिया के घूमन्तू जनजातियों के एकीकरण से हुआ। मध्य एशिया में शुरू यह राज्य अंततः पूर्व में यूरोप से लेकर पश्चिम में जापान के सागर तक और उत्तर में साइबेरिया से लेकर दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप तक फैल गया। आमतौर पर इसे दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा सन्निहित साम्राज्य माना जाना जाता है। अपने शीर्ष पर यह 6000 मील (9700 किमी) तक फैला था और 33,000,000 वर्ग कि॰मी॰ (12,741,000 वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करता था। इस समय पृथ्वी के कुल भू क्षेत्रफल का 22% हिस्सा इसके कब्ज़े में था और इसकी आबादी 100 करोड़ थी। मंगोल शासक पहले बौद्ध थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे तुर्कों के सम्पर्क में आकर उन्होंने इस्लाम को अपना लिया। .

देखें मंगोल और मंगोल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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मीनार-ए-जाम

मीनार-ए-जाम मीनार-ए-जाम (फ़ारसी) या जाम की मीनार (अंग्रेज़ी: Minaret of Jam) पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के ग़ोर प्रांत के शहरक ज़िले में हरी नदी (हरीरूद) के किनारे खड़ी एक प्रसिद्ध ईंटों की बनी मीनार है। यह ६५ मीटर ऊँची मीनार दिल्ली के क़ुतुब मीनार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची मीनार है, हालांकि क़ुतुब मीनार वास्तव में इसी मीनार से प्रेरित होकर बनवाया गया था। मीनार-ए-जाम जाम नदी और हरी नदी के संगम के पास है और चारों तरफ़ से २,४०० मीटर ऊँचे पहुँचने वाले पहाड़ों से घिरी हुई है। सन् ११९० के दशक में बनी इस मीनार पर ईंट, गच पलस्तर (स्टक्को) और टाइलें लगी हुई हैं जिनपर क़ुरान की आयतें और आकर्षक लकीरें व आकृतियाँ बनी हुई हैं। .

देखें मंगोल और मीनार-ए-जाम

युआन राजवंश

सन् १२९४ ईसवी में युआन साम्राज्य का नक़्शा (हरे रंग में) - कोरिया का इलाक़ा एक स्वशासित लेकिन अधीन राज्य था युआन राजवंश (चीनी: 元朝, युआन चाओ; मंगोल: दाई ओन उल्स; अंग्रेजी: Yuan Dynasty) सन् १२७१ ईसवी से सन् १३६८ ईसवी तक चलने वाला एक राजवंश था जिसके साम्राज्य में आधुनिक चीन का लगभग पूरा हिस्सा, सारे मंगोलिया का भूक्षेत्र और कुछ आसपास के इलाक़े शामिल थे। इसकी स्थापना मंगोल नेता कुबलई ख़ान ने की थी, जो चंगेज़ ख़ान का पोता भी था। इस साम्राज्य को मंगोल साम्राज्य का एक विभाग और चीन का एक राजवंश दोनों समझा जाता है। युआन राजवंश के ज़माने में पूरा चीन पर एक विदेशी जाति ने लम्बे अरसे तक राज किया।, Gregory Veeck, Clifton Pannell, Christopher Smith, Youqin Huang, Rowman & Littlefield Publishers, 2011, ISBN 978-0-7425-6784-9,...

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रूस का इतिहास

आधुनिक रूस का इतिहास पूर्वी स्लाव जाति से शुरू होता है। स्लाव जाति जो आज पूर्वी यूरोप में बसती है का सबसे पुराना गढ़ कीव था जहाँ ९वीं सदी में स्थापित कीवी रुस साम्राज्य आधुनिक रूस की आधारशिला के रूप में माना जाता है। हाँलांकि उस क्षेत्र में इससे पहले भी साम्राज्य रहे थे पर वे दूसरी जातियों के थे और उन जातियों के लोग आज भी रूस में रहते हैं - ख़ज़र और अन्य तुर्क लोग। कीवि रुसों को मंगोलों के महाभियान में १२३० के आसपास परास्त किया गया लेकिन १३८० के दशक में मंगोलों का पतन आरंभ हुआ और मॉस्को (रूसी भाषा में मॉस्कवा) का उदय एक सैन्य राजधानी के रूप में हुआ। १७वीं से १९वीं सदी के मध्य में रूसी साम्रज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ। यह प्रशांत महासागर से लेकर बाल्टिक सागर और मध्य एशिया तक फैल गया। प्रथम विश्वयुद्ध में रूस को ख़ासी आंतरिक कठिनाइयों का समना करना पड़ा और १९१७ की बोल्शेविक क्रांति के बाद रूस युद्ध से अलग हो गया। द्वितीय विश्वयुद्ध में अपराजेय लगने वाली जर्मन सेना के ख़िलाफ अप्रत्याशित अवरोध तथा अन्ततः विजय प्रदर्शित करन के बाद रूस तथा वहाँ के साम्यवादी नायक जोसेफ स्टालिन की धाक दुनिया की राजनीति में बढ़ी। उद्योगों की उत्पादक क्षमता और देश की आर्थिक स्थिति में उतार चढ़ाव आते रहे। १९३० के दशके में ही साम्यवादी गणराज्यों के समूह सोवियत रूस का जन्म हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शीत युद्ध के काल के गुजरे इस संघ का विघटन १९९१ में हो गया। .

देखें मंगोल और रूस का इतिहास

रॉकेट

अपोलो १५ अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण रॉकेट एक प्रकार का वाहन है जिसके उड़ने का सिद्धान्त न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया तथा बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया पर आधारित है। तेज गति से गर्म वायु को पीछे की ओर फेंकने पर रॉकेट को आगे की दिशा में समान अनुपात का बल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कार्य करने वाले जेट विमान, अंतरिक्ष यान एवं प्रक्षेपास्त्र विभिन्न प्रकार के राकेटों के उदाहरण हैं। रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग के साथ बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है। अंतरिक्ष यानों को वायुमंडल से ऊपर उड़ना होता है इसलिए वे अपना ईंधन एवं आक्सीजन लेकर उड़ते हैं। जेट विमान में केवल ईँधन रहता है। जब विमान चलना प्रारम्भ करता है तो विमान के सिरे पर बने छिद्र से बाहर की वायु इंजन में प्रवेश करती है। वायु के आक्सीजन के साथ मिलकर ईँधन अत्यधिक दबाव पर जलता है। जलने से उत्पन्न गैस का दाब बहुत अधिक होता है। यह गैस वायु के साथ मिलकर पीछे की ओर के जेट से तीव्र वेग से बाहर निकलती है। यद्यपि गैस का द्रव्यमान बहुत कम होता है किन्तु तीव्र वेग के कारण संवेग और प्रतिक्रिया बल बहुत अधिक होता है। इसलिए जेट विमान आगे की ओर तीव्र वेग से गतिमान होता है। रॉकेट का इतिहास १३वी सदी से प्रारंभ होता है। चीन में राकेट विद्या का विकास बहुत तेज़ी से हुआ और जल्दी ही इसका प्रयोग अस्त्र के रूप में किया जाने लगा। मंगोल लड़ाकों के द्वारा रॉकेट तकनीक यूरोप पहुँची और फिर विभिन्न शासकों द्वारा यूरोप और एशिया के अन्य भागों में प्रचलित हुई। सन १७९२ में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद अंग्रेज सेना ने रॉकेट के महत्त्व को समझा और इसकी तकनीक को विकसित कर विश्व भर में इसका प्रचार किया। स्पेस टुडे पर--> .

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लियाओ राजवंश

सन् ११११ ईसवी में लियाओ राजवंश का क्षेत्र (गुलाबी रंग में) लियाओ राजवंश (चीनी: 遼朝, लियाओ चाओ; ख़ितानी: मोस जैलुत; अंग्रेजी: Liao Dynasty) जिसे ख़ितानी साम्राज्य (契丹國, चिदान गुओ, Khitan Empire) भी कहा जाता है पूर्वी एशिया का एक साम्राज्य था जो मंगोलिया, कज़ाख़स्तान के कुछ भागों, रूस के सुदूर पूर्वी भागों और उत्तरी चीन पर विस्तृत था। इसकी स्थापना चीन में तंग राजवंश के पतन के दौरान ख़ितानी लोगों के महान ख़ान अबाओजी ने की थी। यह साम्राज्य ९०७ ईसवी से ११२५ ईसवी तक चला। सन् ११२५ ई में जुरचेन लोगों के जिन राजवंश (१११५–१२३४) ने लियाओ राजवंश का नाश कर दिया।, Frederick W.

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शियानबेई लोग

शियानबेई (चीनी भाषा: 鮮卑, अंग्रेज़ी: Xianbei) प्राचीनकाल में मंचूरिया, भीतरी मंगोलिया और पूर्वी मंगोलिया में बसने वाली एक मंगोल ख़ानाबदोश क़बीलों की जाति थी। माना जाता है कि ख़ान की उपाधि का इस्तेमाल सबसे पहली इन्ही लोगों में हुआ था। चीनी स्रोतों के अनुसार शियानबेई लोग दोंगहु लोगों के वंशज थे। प्रसिद्ध चीनी इतिहासकार सीमा चियान ने अपने महान इतिहासकार के अभिलेख नामक इतिहास-ग्रन्थ में दर्ज किया था कि शियानबेई लोग ६९९ ईसापूर्व से ६३२ ईसापूर्व के काल में भीतरी मंगोलिया में रहते थे। यह लोग पहले शियोंगनु लोगों की सेवा में थे, फिर इन्होनें चीन के हान राजवंश की शियोंगनु के विरुद्ध सहायता करी लेकिन उसके बाद स्वयं ही चीनी साम्राज्य पर आक्रमण का सिलसिला शुरू किया। इनका सबसे प्रसिद्ध राजा तान्शीहुआई (Tanshihuai) था जिसनें एक विस्तृत शियानबेई साम्राज्य की स्थापना की।, Emma C.

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शियोंगनु लोग

२५० ईसापूर्व में शियोंगनु क्षेत्र शियोंगनु (चीनी: 匈奴, अंग्रेज़ी: Xiongnu) एक प्राचीन ख़ानाबदोश क़बीलों की जाती थी जो चीन के हान राजवंश के काल में हान साम्राज्य से उत्तर में रहती थी। इतिहास में उनका वर्णन सीमित है, इसलिए यह ठीक से ज्ञात नहीं है कि उनकी नस्ल क्या थी। अलग-अलग इतिहासकार उन्हें तुर्की, मंगोली, ईरानी, तुन्गुसी और तुषारी जातियों का बताते हैं। उनके नामों और रीति-रिवाजों के बारे में जितना पता है वह प्राचीन चीनी सूत्रों से आता है। शियोंगनु भाषा हमेशा के लिए खोई जा चुकी है। यह संभव है कि 'शियोंगनु' शब्द 'हूण' के लिए एक सजातीय शब्द हो लेकिन इसका भी कोई पक्का प्रमाण नहीं है।, Valerie Hansen, Kenneth Curtis, Kenneth R.

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शेनयांग

शेनयांग (चीनी: 沈阳, अंग्रेज़ी: Shenyang) या मुकदेन (Mukden, मान्छु: 15px) पूर्वोत्तरी चीन के मंचूरिया क्षेत्र में स्थित लियाओनिंग प्रान्त की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह एक उप-प्रांत का दर्जा रखने वाला शहर है। सन् २०१० की जनगणना में शेनयांग की जनसँख्या ८१,०६,१७१ थी। .

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शॉम्पनी

अंडमान निकोबार की जनजातियों में शॉम्पनी (लगभग 200) एक विलुप्त होती हुई प्रजाति है। ये मंगोल नस्ल की है जबकि अंडमान और निकोबार की बाक़ी सभी जनजातियाँ नीग्रोईड यानी अफ्रीकियों जैसी हैं। श्रेणी:अण्डमान और निकोबार की जनजातियां.

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साइबेरिया

साइबेरिया का नक़्शा (गाढ़े लाल रंग में साइबेरिया नाम का संघी राज्य है, लेकिन लाल और नारंगी रंग वाले सारे इलाक़े साइबेरिया का हिस्सा माने जाते हैं गर्मी के मौसम में दक्षिणी साइबेरिया में जगह-जगह पर झीलें और हरियाली नज़र आती है याकुत्स्क शहर में 17वी शताब्दी में बना एक रूसी सैनिक-गृह साइबेरिया (रूसी: Сибирь, सिबिर) एक विशाल और विस्तृत भूक्षेत्र है जिसमें लगभग समूचा उत्तर एशिया समाया हुआ है। यह रूस का मध्य और पूर्वी भाग है। सन् 1991 तक यह सोवियत संघ का भाग हुआ करता था। साइबेरिया का क्षेत्रफल 131 लाख वर्ग किमी है। तुलना के लिए पूरे भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है, यानि साइबेरिया भारत से क़रीब चार गुना है। फिर भी साइबेरिया का मौसम और भूस्थिति इतनी सख़्त है के यहाँ केवल 4 करोड़ लोग रहते हैं, जो 2011 में केवल उड़ीसा राज्य की आबादी थी। यूरेशिया का अधिकतर स्टॅप (मैदानी घासवाला) इलाक़ा साइबेरिया में आता है। साइबेरिया पश्चिम में यूराल पहाड़ों से शुरू होकर पूर्व में प्रशांत महासागर तक और उत्तर में उत्तरध्रुवीय महासागर (आर्कटिक महासागर) तक फैला हुआ है। दक्षिण में इसकी सीमाएँ क़ाज़ाक़स्तान, मंगोलिया और चीन से लगती हैं। .

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सुनहरा उर्दू

सन् १३०० ईसवी में सुनहरा उर्दू साम्राज्य (हरे रंग में) सुनहरा उर्दू या सुनहरा झुण्ड (मंगोल: Зүчийн улс, ज़ुची-इन उल्स; अंग्रेज़ी: Golden Horde) एक मंगोल ख़ानत थी जो १३वीं सदी में मंगोल साम्राज्य के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में शुरू हुई थी और जिसे इतिहासकार मंगोल साम्राज्य का हिस्सा मानते हैं। इसे किपचक ख़ानत और जोची का उलुस भी कहा जाता था। यह ख़ानत १२४० के दशक में स्थापित हुई और सन् १५०२ तक चली। यह अपने बाद के काल में तुर्की प्रभाव में आकर एक तुर्की-मंगोल साम्राज्य बन चला था। इस साम्राज्य की नीव जोची ख़ान के पुत्र (और चंगेज़ ख़ान के पोते) बातु ख़ान ने रखी थी। अपने चरम पर इस ख़ानत में पूर्वी यूरोप का अधिकतर भाग और पूर्व में साइबेरिया में काफ़ी दूर तक का इलाक़ा शामिल था। दक्षिण में यह कृष्ण सागर के तट और कॉकस क्षेत्र तक विस्तृत थी। इसकी दक्षिण सीमाएँ इलख़ानी साम्राज्य नाम की एक अन्य मंगोल ख़ानत से लगती थीं।, David Morgan, John Wiley & Sons, 2007, ISBN 978-1-4051-3539-9,...

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सुम (ज़िला)

मंगोलिया के अरख़ानगई प्रांत के सुम सुम (मंगोलियाई: ᠰᠤᠮᠤ या сум; अंग्रेजी: Sum), सुमु या सुमुन मंगोलियाई और तुर्की भाषाओँ में ज़िले का स्तर रखने वाले एक प्रशासनिक प्रभाग हो कहते हैं। यह ईकाई मंगोलिया में और चीन और रूस के मंगोल इलाक़ों में इस्तेमाल होती है। चीन में इसे भीतरी मंगोलिया में और रूस में इसे बुरयात गणतंत्र और तूवा में प्रयोग किया जाता है। .

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हलाकु ख़ान

इलख़ानी साम्राज्य का संस्थापक हलाकु ख़ान अपनी पत्नी दोक़ुज़ ख़ातून के साथ सन् १२५८ में हलाकु की फ़ौज बग़दाद को घेरे हुए हलाकु द्वारा ज़र्ब किया गया ख़रगोश के चिह्न वाला सिक्का हलाकु ख़ान या हुलेगु ख़ान (मंगोल: Хүлэг хаан, ख़ुलेगु ख़ान; फ़ारसी:, हूलाकू ख़ान; अंग्रेजी: Hülegü Khan;; जन्म: १२१७ ई अनुमानित; देहांत: ८ फ़रवरी १२६५ ई) एक मंगोल ख़ान (शासक) था जिसने ईरान समेत दक्षिण-पश्चिमी एशिया के अन्य बड़े हिस्सों पर विजय करके वहाँ इलख़ानी साम्राज्य स्थापित किया। यह साम्राज्य मंगोल साम्राज्य का एक भाग था। हलाकु ख़ान के नेतृत्व में मंगोलों ने इस्लाम के सबसे शक्तिशाली केंद्र बग़दाद को तबाह कर दिया। ईरान पर अरब क़ब्ज़ा इस्लाम के उभरने के लगभग फ़ौरन बाद हो चुका था और तबसे वहाँ के सभी विद्वान अरबी भाषा में ही लिखा करते थे। बग़दाद की ताक़त नष्ट होने से ईरान में फ़ारसी भाषा फिर पनपने लगी और उस काल के बाद ईरानी विद्वान और इतिहासकार फ़ारसी में ही लिखा करते थे।, Craig A.

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हज़ारा लोग

हज़ारा (Hazara) मध्य अफ़्ग़ानिस्तान में बसने वाला और दरी फ़ारसी की हज़ारगी उपभाषा बोलने वाला एक समुदाय है। यह लगभग सारे शिया इस्लाम के अनुयायी होते हैं और अफ़्ग़ानिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा समुदाय हैं। अफ़्ग़ानिस्तान में इनकी जनसँख्या को लेकर विवाद है और यह २६ लाख से ५४ लाख के बीच में मानी जाती है। कुल मिलकर यह अफ़्ग़ानिस्तान की कुल आबादी का लगभग १८% हिस्सा हैं। पड़ोस के ईरान और पाकिस्तान देशों में भी इनके पाँच-पाँच लाख लोग बसे हुए हैं। पाकिस्तान में यह अधिकतर शरणार्थी के रूप में जाने पर मजबूर हो गए थे और अधिकतर क्वेट्टा शहर में बसे हुए हैं। जब अफ़्ग़ानिस्तान में तालिबान सत्ता में थी तो उन्होने हज़ारा लोगों पर उनके शिया होने की वजह से बड़ी कठोरता से शासन किया था, जिस से बामियान प्रान्त और दायकुंदी प्रान्त जैसे हज़ारा-प्रधान क्षेत्रों में भुखमरी और अन्य विपदाएँ फैली थीं।, Tom Lansford, Ashgate Publishing, Ltd., 2003, ISBN 978-0-7546-3615-1,...

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ज़ुन्गार लोग

सरल (Saral), जो मान्छु लोगों के चीन और मंगोलिया पर राज करने वाले चिंग राजवंश की फ़ौज में ज़ुन्गार जाति का एक अफसर था ज़ुन्गार (मंगोल: Зүүнгар, कज़ाख़: Жоңғар, अंग्रेज़ी: Dzungar) मंगोल लोगों की ओइरत शाखा की एक उपशाखा का नाम है जिन्होनें १७वीं और १८वीं सदी में अपनी ज़ुन्गार ख़ानत चलाई थी। ऐतिहासिक रूप से वे ओइरत उपजाति के चार प्रमुख क़बीलों में से एक रहे हैं (अन्य तीन तोरग़ुत​, दोरबेत और ख़ोशूत​ हैं)। मंगोल भाषा में 'ज़ुउन्गार' शब्द का मतलब 'बाहिनें हाथ' होता है। आधुनिक युग में ज़ुन्गार लोग मंगोलिया और चीन में रहते हैं और मंगोलिया में उनकी जनसँख्या १५,५२० अनुमानित की गई थी। .

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जापान का इतिहास

जापान के प्राचीन इतिहास के संबंध में कोई निश्चयात्मक जानकारी नहीं प्राप्त है। जापानी लोककथाओं के अनुसार विश्व के निर्माता ने सूर्य देवी तथा चन्द्र देवी को भी रचा। फिर उसका पोता क्यूशू द्वीप पर आया और बाद में उनकी संतान होंशू द्वीप पर फैल गए। हँलांकि यह लोककथा है पर इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आती है। पौराणिक मतानुसार जिम्मू नामक एक सम्राट् ९६० ई.

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जिन राजवंश (१११५–१२३४)

सन् ११४१ ईसवी में जिन राजवंश के साम्राज्य का नक़्शा (आसमानी नीले रंग में) जिन राजवंश (जुरचेन: अइसिन गुरून; चीनी: 金朝, जिन चाओ; अंग्रेजी: Jin Dynasty), जिसे जुरचेन राजवंश भी कहा जाता है, जुरचेन लोगों के वानयान (完顏, Wanyan) परिवार द्वारा स्थापित एक राजवंश था जिसने उत्तरी चीन और उसके कुछ पड़ोसी इलाक़ों पर सन् १११५ ईसवी से १२३४ ईसवी तक शासन किया। यह जुरचेन लोग उन्ही मान्छु लोगों के पूर्वज थे जिन्होनें ५०० वर्षों बाद चीन पर चिंग राजवंश के रूप में राज किया। ध्यान दीजिये की इस जिन राजवंश से पहले एक और जिन राजवंश आया था जिनका इस वंश से कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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जुरचेन लोग

चंगेज़ ख़ान के मंगोल साम्राज्य से पहले १३वीं सदी में यूरेशिया के स्थिति - पूर्वोत्तर में पीले रंग में जुरचेनों के जिन राजवंश का इलाक़ा दिख रहा है एक जुरचेन योद्धा जुरचेन लोग (जुरचेनी: जुशेन; चीनी: 女真, नुझेन) उत्तर-पूर्वी चीन के मंचूरिया क्षेत्र में बसने वाली एक तुन्गुसी जाति थी।, Willard J.

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जू-जान ख़ागानत

५०० ईसवी में जू-जान ख़ागानत ५०० ईसवी में जू-जान और उनके पड़ौसी जू-जान ख़ागानत (Jou-jan Khaganate) या रोऊरान ख़ागानत (चीनी: 柔然, Rouran Khaganate) या निरून ख़ागानत (मंगोल: Нирун, Nirun Khaganate) एक ख़ानाबदोश क़बीलों का परिसंघ था जो चीन के उत्तरी भाग और उसके पड़ौसी इलाक़ों में चौथी सदी ईसवी के अंत से छठी सदी ईसवी के मध्य तक के काल में विस्तृत था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह क़बीले वही थे जो बाद में यूरोप में यूरेशियाई आवार लोगों के रूप में उभरे।, Barbara A.

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जोनंग

जोनंग (Jonang, तिब्बती: ཇོ་ནང་) तिब्बती बौद्ध धर्म के छह मुख्य सम्प्रदायों में से एक है। अन्य पाँच न्यिंगमा, कग्यु, सक्या, गेलुग और बोन हैं। इसका आरम्भ तिब्बत में १२वीं शताब्दी में यूमो मिक्यो दोर्जे ने करा और सक्या सम्प्रदाय में शिक्षित दोल्पोपा शेरब ग्याल्त्सेन नामक भिक्षु ने इसका प्रसार करा। १७वीं शताब्दी के अन्तभाग में ५वें दलाई लामा ने इस सम्प्रदाय का विरोध करा था और माना जाता था कि यह विलुप्त हो चुका है। लेकिन यह तिब्बत के खम और अम्दो क्षेत्रों के गोलोक, नाशी और मंगोल समुदायों वाले इलाकों में जीवित रहा और वर्तमान में लगभग ५,००० भिक्षु-भिक्षिका जोनंग धर्मधारा से जुड़े हैं। .

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जीलिन

चीन में जीलिन प्रांत (लाल रंग में) जीलिन (चीनी: 吉林, अंग्रेज़ी: Jilin, मान्छु: ᡤᡳ᠍ᡵᡳ᠌ᠨ ᡠᠯᠠ) जनवादी गणराज्य चीन के सुदूर पूर्वोत्तर में स्थित एक प्रांत है जो ऐतिहासिक मंचूरिया क्षेत्र का भाग है। 'जीलिन' शब्द मान्छु भाषा के 'गीरिन उला' (ᡤᡳ᠍ᡵᡳ᠌ᠨ ᡠᠯᠠ, Girin Ula) से आया है जिसका मतलब 'नदी के साथ' होता है। इसके चीनी भावचित्रों का अर्थ 'शुभ वन (जंगल)' है और इसका संक्षिप्त एकाक्षरी चिह्न '吉' (जी) है। जीलिन प्रान्त की सीमाएँ पूर्व में रूस और उत्तर कोरिया को लगती हैं। इस प्रान्त का क्षेत्रफल १,८७,४०० वर्ग किमी है, यानि भारत के कर्नाटक राज्य से ज़रा ज़्यादा। सन् २०१० की जनगणना में इसकी आबादी २,७४,६२,२९७ थी जो लगभग भारत के पंजाब राज्य के बराबर थी। जीलिन की राजधानी चांगचून शहर है। .

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ईरान

ईरान (جمهوری اسلامی ايران, जम्हूरीए इस्लामीए ईरान) जंबुद्वीप (एशिया) के दक्षिण-पश्चिम खंड में स्थित देश है। इसे सन १९३५ तक फारस नाम से भी जाना जाता है। इसकी राजधानी तेहरान है और यह देश उत्तर-पूर्व में तुर्कमेनिस्तान, उत्तर में कैस्पियन सागर और अज़रबैजान, दक्षिण में फारस की खाड़ी, पश्चिम में इराक और तुर्की, पूर्व में अफ़ग़ानिस्तान तथा पाकिस्तान से घिरा है। यहां का प्रमुख धर्म इस्लाम है तथा यह क्षेत्र शिया बहुल है। प्राचीन काल में यह बड़े साम्राज्यों की भूमि रह चुका है। ईरान को १९७९ में इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया था। यहाँ के प्रमुख शहर तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज़, मशहद इत्यादि हैं। राजधानी तेहरान में देश की १५ प्रतिशत जनता वास करती है। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात पर निर्भर है। फ़ारसी यहाँ की मुख्य भाषा है। ईरान में फारसी, अजरबैजान, कुर्द और लूर सबसे महत्वपूर्ण जातीय समूह हैं .

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ईरान का इतिहास

सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे। ईरान का पुराना नाम फ़ारस है और इसका इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है जिसमें इसके पड़ोस के क्षेत्र भी शामिल रहे हैं। इरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के ६०० साल पहले के हख़ामनी शासकों से शुरु होती है। इनके द्वारा पश्चिम एशिया तथा मिस्र पर ईसापूर्व 530 के दशक में हुई विजय से लेकर अठारहवीं सदी में नादिरशाह के भारत पर आक्रमण करने के बीच में कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फारसी सास्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा इराक का दक्षिणी भाग, अज़रबैजान, पश्चिमी अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान का दक्षिणी भाग और पूर्वी तुर्की भी शामिल हैं। ये सब वो क्षेत्र हैं जहाँ कभी फारसी सासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था। सातवीं सदी में ईरान में इस्लाम आया। इससे पहले ईरान में जरदोश्त के धर्म के अनुयायी रहते थे। ईरान शिया इस्लाम का केन्द्र माना जाता है। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएं दी गई। इनमें से कुछ लोग भाग कर भारत के गुजरात तट पर आ गए। ये आज भी भारत में रहते हैं और इन्हें पारसी कहा जाता है। सूफ़ीवाद का जन्म और विकास ईरान और संबंधित क्षेत्रों में ११वीं सदी के आसपास हुआ। ईरान की शिया जनता पर दमिश्क और बग़दाद के सुन्नी ख़लीफ़ाओं का शासन कोई ९०० साल तक रहा जिसका असर आज के अरब-ईरान रिश्तों पर भी देखा जा सकता है। सोलहवीं सदी के आरंभ में सफ़वी वंश के तुर्क मूल लोगों के सत्ता में आने के बाद ही शिया लोग सत्ता में आ सके। इसके बाद भी देश पर सुन्नियों का शासन हुआ और उन शासकों में नादिर शाह तथा कुछ अफ़ग़ान शासक शामिल हैं। औपनिवेशक दौर में ईरान पर किसी यूरोपीय शक्ति ने सीधा शासन तो नहीं किया पर अंग्रेज़ों तथा रूसियों के बीच ईरान के व्यापार में दखल पड़ा। १९७९ की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान की राजनैतिक स्थिति में बहुत उतार-चढ़ाव आता रहा है। ईराक के साथ युद्ध ने भी देश को इस्लामिक जगत में एक अलग जगह पर ला खड़ा किया है। २३ जनवरी २००८ .

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वनोन्मूलन

वनोन्मूलन का अर्थ है वनों के क्षेत्रों में पेडों को जलाना या काटना ऐसा करने के लिए कई कारण हैं; पेडों और उनसे व्युत्पन्न चारकोल को एक वस्तु के रूप में बेचा जा सकता है और मनुष्य के द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है जबकि साफ़ की गयी भूमि को चरागाह (pasture) या मानव आवास के रूप में काम में लिया जा सकता है। पेडों को इस प्रकार से काटने और उन्हें पुनः न लगाने के परिणाम स्वरुप आवास (habitat) को क्षति पहुंची है, जैव विविधता (biodiversity) को नुकसान पहुंचा है और वातावरण में शुष्कता (aridity) बढ़ गयी है। साथ ही अक्सर जिन क्षेत्रों से पेडों को हटा दिया जाता है वे बंजर भूमि में बदल जाते हैं। आंतरिक मूल्यों के लिए जागरूकता का अभाव या उनकी उपेक्षा, उत्तरदायी मूल्यों की कमी, ढीला वन प्रबन्धन और पर्यावरण के कानून, इतने बड़े पैमाने पर वनोन्मूलन की अनुमति देते हैं। कई देशों में वनोन्मूलन निरंतर की जाती है जिसके परिणामस्वरूप विलोपन (extinction), जलवायु में परिवर्तन, मरुस्थलीकरण (desertification) और स्वदेशी लोगों के विस्थापन जैसी प्रक्रियाएं देखने में आती हैं। .

देखें मंगोल और वनोन्मूलन

ख़ान (उपाधि)

ओगदाई ख़ान, चंग़ेज़ ख़ान का तीसरा पुत्र ख़ान या ख़ाँ (मंगोल: хан, फ़ारसी:, तुर्की: Kağan) मूल रूप से एक अल्ताई उपाधि है तो शासकों और अत्यंत शक्तिशाली सिपहसालारों को दी जाती थी। यह समय के साथ तुर्की-मंगोल क़बीलों द्वारा पूरे मध्य एशिया में इस्तेमाल होने लगी। जब इस क्षेत्र के सैन्य बलों ने भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, अफ़्ग़ानिस्तान और अन्य क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर के अपने साम्राज्य बनाने शुरू किये तो इसका प्रयोग इन क्षेत्रों की कई भाषाओँ में आ गया, जैसे कि हिन्दी-उर्दू, फ़ारसी, पश्तो, इत्यादि। इसका एक और रूप 'ख़ागान' है जिसका अर्थ है 'ख़ानों का ख़ान' या 'ख़ान-ए-ख़ाना', जो भारत में कभी प्रचलित नहीं हुआ। इसके बराबरी की स्त्रियों की उपाधियाँ ख़ानम और ख़ातून हैं।, Elena Vladimirovna Boĭkova, R.

देखें मंगोल और ख़ान (उपाधि)

ख़ितानी लोग

ख़ितानी लोग शिकार के लिए पालतू चीलों का इस्तेमाल करते थे चंगेज़ ख़ान के मंगोल साम्राज्य से पहले १३वीं सदी में यूरेशिया के स्थिति - कारा-ख़ितान राज्य नक़्शे में दिख रहा है ख़ितानी लोग (मंगोल: Кидан, किदान; फ़ारसी:, ख़िताई; चीनी: 契丹, चिदान) ४थी सदी ईसवी से मंगोलिया और मंचूरिया में बसने वाले एक मंगोल जाति के लोग थे। १०वीं सदी तक उन्होंने उत्तरी चीन के एक बड़े इलाक़े पर अपनी धाक जमा ली थी और लियाओ राजवंश स्थापित कर लिया था। सन् ११२५ में यह राजवंश ख़त्म हो गया और ख़ितानी पश्चिम की ओर कूच कर गए जहाँ उन्होंने कारा-ख़ितान नाम का राज्य बनाया। फिर सन् १२१८ में उनकी टक्कर मंगोल साम्राज्य से हुई जिसने उनका राज हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।, Michal Biran, Cambridge University Press, 2005, ISBN 978-0-521-84226-6 .

देखें मंगोल और ख़ितानी लोग

ख़कास लोग

ख़कास (अंग्रेज़ी: Khakas), जो स्वयं को तादार (ख़कास: Тадарлар) कहते हैं, रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग में स्थित ख़कासिया गणतंत्र में बसने वाला तुर्क लोगों का एक समुदाय है। ध्यान दें कि हालांकि यह लोग अपने आप को 'तादार' या 'तातार' कहते हैं, इस से तात्पर्य 'साइबेरियाई तातार' है जो रूस के यूरोपीय भाग में बसने वाले तातार लोगों से अलग है। .

देखें मंगोल और ख़कास लोग

ख़ोव्द प्रांत

ख़ोव्द (मंगोल: Ховд; अंग्रेज़ी: Khovd) मंगोलिया के पश्चिमी भाग में स्थित उस देश का एक अइमग (यानि प्रांत) है। यहाँ कई समुदाय रहते हैं और मंगोल लोग व कज़ाख़ लोग की मिश्रित आबादी बसी हुई है।, Alan J.K.

देखें मंगोल और ख़ोव्द प्रांत

गयासुद्दीन तुग़लक़

गयासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-1325 ई॰) के नाम से 8 सितम्बर 1320 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था। वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ 'ग़ाज़ी' शब्द जोड़ा था। गयासुद्दीन का पिता करौना तुर्क ग़ुलाम था व उसकी माता हिन्दू थी। .

देखें मंगोल और गयासुद्दीन तुग़लक़

गुयुक ख़ान

गुयुक ख़ान या गोयोक ख़ान (मंगोल: Гүюг хаан, फ़ारसी:, अंग्रेजी: Güyük Khan;; १२०६ ई - १२४८ ई अनुमानित जीवनकाल) मंगोल साम्राज्य का तीसरा ख़ागान (सर्वोच्च ख़ान) था। वह चंगेज़ ख़ान का पोता और ओगताई ख़ान का सबसे बड़ा पुत्र था। सन् १२४८ में सफ़र करते हुए अज्ञात कारणों से उसकी मृत्यु हो जाने के बाद उसके चाचा तोलुइ ख़ान का पुत्र मोंगके ख़ान ख़ागान बना।, Robert Marshall, University of California Press, 1993, ISBN 978-0-520-08300-4,...

देखें मंगोल और गुयुक ख़ान

ओइरत लोग

ल्हाबज़ंग ख़ान एक ख़ोशूत​ ओइरत था जिसने १६९७-१७१७ काल में तिब्बत पर राज किया ओइरत (मंगोल: Ойрад, अंग्रेज़ी: Oirat) मंगोल लोगों का सबसे पश्चिमतम समुदाय है जो पश्चिमी मंगोलिया के अल्ताई पर्वत क्षेत्र में वास करते हैं। कई क़बीलों के एकीकरण से बनी यह जाति मध्य एशिया के पूर्वी भाग में उत्पन्न हुई थी लेकिन अब इनका सबसे बड़ा गुट रूस के काल्मिकिया गणतंत्र में मिलता है जहाँ इन्हें काल्मिक लोग कहा जाता है। काल्मिकी १७वीं सदी के शुरूआती दौर में ज़ुन्गारिया से रूसी साम्राज्य के दक्षिण-पूर्वी यूरोपी भाग में आ बसे थे।, Barbara A.

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आमू-पार

मध्य एशिया के इस नक़्शे में ट्रांसऑक्सेनिया (आमू-पार) क्षेत्र नामांकित है आमू-पार या ट्रांसऑक्सेनिया (अंग्रेजी: Transoxania) या फ़रा-रूद (फारसी) मध्य एशिया का वह इलाक़ा है जो आमू दरिया और सिर दरिया के बीच में स्थित है। इसके फ़ारसी नाम 'फ़रा-रूद' का मतलब है 'रूद' (नदी, यानी आमू नदी) से 'फ़रा' (पार)। इस इलाक़े में ख़ानाबदोश क़बीले रहा करते थे, जिनका भारत के इतिहास पर भी गहरा प्रभाव है। यह क्षेत्र उत्तरी रेशम मार्ग पर स्थित होने से हजारों सालों से संस्कृति और व्यापार की धारा में रहा है। यहाँ ईरान के सासानी साम्राज्य की एक सात्रापी थी और बाद में मंगोलों और तुर्की-मंगोलों का क्षेत्र रहा है। इसके मुख्य नगर ज़रफ़शान नदी के किनारे पर बसे बुख़ारा और समरक़न्द शहर हैं। आधुनिक राजनैतिक सीमाओं के हिसाब से आमू-पार क्षेत्र में उज़बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगिज़स्तान और काज़ाख़स्तान​ के कुछ इलाक़े आते हैं।, Svatopluk Soucek, Cambridge University Press, 2000, ISBN 978-0-521-65704-4,...

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इराक़

इराक़ पश्चिमी एशिया में स्थित एक जनतांत्रिक देश है जहाँ के लोग मुख्यतः मुस्लिम हैं। इसके दक्षिण में सउदी अरब और कुवैत, पश्चिम में जोर्डन और सीरिया, उत्तर में तुर्की और पूर्व में ईरान अवस्थित है। दक्षिण पश्चिम की दिशा में यह फ़ारस की खाड़ी से भी जुड़ा है। दजला नदी और फरात इसकी दो प्रमुख नदियाँ हैं जो इसके इतिहास को ५००० साल पीछे ले जाती हैं। इसके दोआबे में ही मेसोपोटामिया की सभ्यता का उदय हुआ था। इराक़ के इतिहास में असीरिया के पतन के बाद विदेशी शक्तियों का प्रभुत्व रहा है। ईसापूर्व छठी सदी के बाद से फ़ारसी शासन में रहने के बाद (सातवीं सदी तक) इसपर अरबों का प्रभुत्व बना। अरब शासन के समय यहाँ इस्लाम धर्म आया और बगदाद अब्बासी खिलाफत की राजधानी रहा। तेरहवीं सदी में मंगोल आक्रमण से बगदाद का पतन हो गया और उसके बाद की अराजकता के सालों बाद तुर्कों (उस्मानी साम्राज्य) का प्रभुत्व यहाँ पर बन गया २००३ से दिसम्बर २०११ तक अमेरिका के नेतृत्व में नैटो की सेना की यहाँ उपस्थिति बनी हुई थी जिसके बाद से यहाँ एक जनतांत्रिक सरकार का शासन है। राजधानी बगदाद के अलावा करबला, बसरा, किर्कुक तथा नजफ़ अन्य प्रमुख शहर हैं। यहाँ की मुख्य बोलचाल की भाषा अरबी और कुर्दी भाषा है और दोनों को सांवैधानिक दर्जा मिला है। .

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इलख़ानी साम्राज्य

अपने चरम पर इलख़ानी साम्राज्य इलख़ानी साम्राज्य या इलख़ानी सिलसिला (फ़ारसी:, सिलसिला-ए-इलख़ानी; मंगोल: Хүлэгийн улс, हुलेगु-इन उल्स; अंग्रेज़ी: Ilkhanate) एक मंगोल ख़ानत थी जो १३वीं सदी में ईरान और अज़रबेजान में शुरू हुई थी और जिसे इतिहासकार मंगोल साम्राज्य का हिस्सा मानते हैं। इसकी स्थापना चंगेज़ ख़ान के पोते हलाकु ख़ान ने की थी और इसके चरम पर इसमें ईरान, ईराक़, अफ़्ग़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, आर्मीनिया, अज़रबेजान, तुर्की, जोर्जिया और पश्चिमी पाकिस्तान शामिल थे। इलख़ानी बहुत से धर्मों के प्रति सहानुभूति रखते थे लेकिन इनमें बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म को विशेष स्वीकृति हासिल थी।, Robert Marshall, University of California Press, 1993, ISBN 978-0-520-08300-4,...

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इस्लाम

इस्लाम (अरबी: الإسلام) एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो इसके अनुयायियों के अनुसार, अल्लाह के अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है। कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं। .

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इस्लाम का इतिहास

इस्लाम का उदय सातवीं सदी में अरब प्रायद्वीप में हुआ। इसके अन्तिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। लगभग 613 इस्वी के आसपास मुहम्मद साहब ने लोगों को अपने ज्ञान का उपदेशा देना आरंभ किया था। इसी घटना का इस्लाम का आरंभ जाता है। हँलांकि इस समय तक इसको एक नए धर्म के रूप में नहीं देखा गया था। परवर्ती वर्षों में मुहम्म्द स्० के अनुयायियों को मक्का के लोगों द्वारा विरोध तथा मुहम्म्द के मदीना प्रस्थान (जिसे हिजरा नाम से जाना जाता है) से ही इस्लाम को एक धार्मिक सम्प्रदाय माना गया। अगले कुछ वर्षों में कई प्रबुद्ध लोग मुहम्मद स्० (पैगम्बर नाम से भी ज्ञात) के अनुयायी बने। उनके अनुयायियों के प्रभाव में आकर भी कई लोग मुसलमान बने। इसके बाद मुहम्मद साहब ने मक्का वापसी की और बिना युद्ध किए मक्काह फ़तह किया और मक्का के सारे विरोधियों को माफ़ कर दिया गया। इस माफ़ी की घटना के बाद मक्का के सभी लोग इस्लाम में परिवर्तित हुए। पर पयम्बर (या पैगम्बर मुहम्मद) को कई विरोधों और नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने हर नकारात्मकता से सकारात्मकता को निचोड़ लिया जिसके कारण उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में जीत हासिल की। उनकी वफात के बाद अरबों का साम्राज्य और जज़्बा बढ़ता ही गया। अरबों ने पहले मिस्र और उत्तरी अफ्रीका पर विजय हासिल की और फिर बैजेन्टाइन तथा फारसी साम्राज्यों को हराया। यूरोप में तो उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली पर फारस में कुछ संघर्ष करने के बाद उन्हें जीत मिलने लगी। इसके बाद पूरब की दिशा में उनका साम्राज्य फेलता गया। सन् 1200 तक वे भारत तक पहुँच गए। । .

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कालमिकिया

कालमिकिया (रूसी: Республика Калмыкия, रेसपूब्लिका कालमिकिया; कालमिक: Хальмг Таңһч; अंग्रेज़ी: Republic of Kalmykia) रूस का एक संघीय खंड है जो उस देश की शासन प्रणाली में गणतंत्र का दर्जा रखता है। (2010 All-Russian Population Census, vol.

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काश्गर विभाग

चीन के शिंजियांग प्रांत (नारंगी रंग) में स्थित काश्गर विभाग (लाल रंग) क़ारग़िलिक (८) माकित (९) योपूरग़ा (१०) पेज़िवात (११) मारालबेख़ी (१२) ताश्कोरगान काश्गर विभाग (उईग़ुर:, क़ाश्क़ार विलायती; चीनी: 喀什地区, काशी दीचू; अंग्रेजी: Kashgar Prefecture, काश्गर प्रीफ़ॅक्चर) चीन के शिंजियांग प्रांत का एक प्रशासनिक विभाग है।, James A.

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काज़ान

काज़ान (रूसी: Казань, तातार: Казан, अंग्रेज़ी: Kazan) रूस के तातारस्तान गणतंत्र खंड की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह रूस का आठवाँ सबसे अधिक आबादी वाला नगर है। काज़ान रूस के यूरोपीय भाग में वोल्गा नदी और काज़ानका नदी के संगम पर स्थित है। इस शहर में रूसी ईसाई और तातार मुस्लिम लोग दोनों बसते हैं। सन् २००५ में काज़ान शहर की स्थापना की १०००वीं सालगिरह मनाई गई। शहर के बीच का काज़ान क्रेमलिन (क़िला) काज़ान का सबसे जाना-माना स्थल है और इसके बीच में स्थित टूटी हुई क़ुल​ शरीफ़ मस्जिद का नवनिर्माण करवाकर इसका भी २००५ में उदघाटन हुआ। यह अब यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिद है।, Jessica Jacobson, pp.

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किरगिज़ लोग

काराकोल में एक मनासची कथाकार पारम्परिक किरगिज़ वेशभूषा में एक किरगिज़ परिवार किरगिज़ मध्य एशिया में बसने वाली एक तुर्की-भाषी जाति का नाम है। किरगिज़ लोग मुख्य रूप से किर्गिज़स्तान में रहते हैं हालाँकि कुछ किरगिज़ समुदाय इसके पड़ौसी देशों में भी मिलते हैं, जैसे कि उज़्बेकिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, अफ़्ग़ानिस्तान और रूस। .

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किलाबंदी

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में किलेबन्दी का चित्रात्मक वर्णन दुर्गबन्दी या किलाबंदी (fortification) शत्रु के प्रतिरोध और उससे रक्षा करने की व्यवस्था का नाम होता है। इसके अन्तर्गत वे सभी सैनिक निर्माण और उपकरण आते हैं जो अपने बचाव के लिए उपयोग किए जाते हैं (न कि आक्रमण के लिए)। वर्तमान समय में किलाबन्दी सैन्य इंजीनियरी के अन्तर्गत आती है। यह दो प्रकार की होती है: स्थायी और अस्थायी। स्थायी किलेबंदी के लिए दृढ़ दुर्गों का निर्माण, जिनमें सुरक्षा के साधन उपलब्ध हो, आवश्यक है। अस्थायी मैदानी किलाबंदी की आवश्यकता ऐसे अवसरों पर पड़ती है जब स्थायी किले को छोड़कर सेनाएँ रणक्षेत्र में आमने सामने खड़ी होती हैं। मैदानी किलाबंदी में अक्सर बड़े-बड़े पेड़ों को गिराकर तथा बड़ी बड़ी चट्टानों एवं अन्य साधनों की सहायता से शत्रु के मार्ग में रूकावट डालने का प्रयत्न किया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह निष्कर्ष निकला कि स्थायी किलाबंदी धन तथा परिश्रम की दृष्टि से ठीक नहीं है; शत्रु की गति में विलंब अन्य साधनों से भी कराया जा सकता है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि इसका महत्व बिल्कुल ही खत्म हो गया। अणुबम के आक्रमण में सेनाओं को मिट्टी के टीलों या कंकड़ के रक्षक स्थानों में आना ही होगा। नदी के किनारे या पहाड़ी दर्रों के निकट इन स्थायी गढ़ों का उपयोग अब भी लाभदायक है। हाँ, यह अवश्य कहा जा सकता है कि आधुनिक तृतीय आयोमात्मक युद्ध में स्थायी दुर्गो की उपयोगिता नष्ट हो गई है। .

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कज़ाख़ लोग

चीन के शिनजियांग प्रांत में एक कज़ाख़ परिवार कज़ाख़ मध्य एशिया के उत्तरी भाग में बसने वाली एक तुर्की-भाषी जाति का नाम है। कज़ाख़स्तान की अधिकाँश आबादी इसी नस्ल की है, हालाँकि कज़ाख़ समुदाय बहुत से अन्य देशों में भी मिलते हैं, जैसे कि उज़बेकिस्तान, मंगोलिया, रूस और चीन के शिनजियांग प्रान्त में। विश्व भर में १.३ से लेकर १.५ करोड़ कज़ाख़ लोग हैं और इनमें से अधिकतर की मातृभाषा कज़ाख़ भाषा है। कज़ाख़ लोग बहुत से प्राचीन तुर्की जातियों के वंशज हैं, जैसे कि अरग़िन, ख़ज़र, कारलुक, किपचक और कुमन। माना जाता है कि इनमें कुछ हद तक मध्य एशिया की कुछ ईरानी भाषाएँ बोलने वाली जातियाँ (जैसे कि शक, स्किथाई और सरमती) भी शामिल हो गई। कज़ाख़ लोग साइबेरिया से लेकर कृष्ण सागर तक फैले हुए थे और जब इस क्षेत्र में तुर्की-मंगोल लोगों का राज चला तब भी वे मध्य एशिया में ही बसे रहे। .

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कछारी राज्य

कछारी (असमिया: কছাৰী) मध्यकालीन असम का एक शक्तिशाली राज्य था। असम राज्य के उत्तरी असम-भूटान-सीमावर्ती कामरूप और दरंग जिले वर्तमान कछारी या 'बोड़ो' कबीले का मुख्य निवास स्थान हैं। .

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क्रीमिया

युक्रेन में क्रीमिया प्रायद्वीप की स्थिति (लाल रंग में) right ख़ान का महल क्रीमिया या क्राईमिया (अंग्रेज़ी: Crimea, क्राईमिया; रूसी: Крым, क्र्यिम; यूक्रेनी: Крим, क्रिम) पूर्वी यूरोप में युक्रेन देश का एक स्वशासित अंग है जो उस राष्ट्र की प्रशासन प्रणाली में एक 'स्वशासित गणराज्य' का दर्जा रखता है। यह कृष्ण सागर के उत्तरी तट पर स्थित एक प्रायद्वीप (पेनिनसुला) है। इस क्षेत्र के इतिहास में क्रीमिया का महत्व रहा है और बहुत से देशों और जातियों में इस पर क़ब्ज़े को लेकर झड़पें हुई हैं। 18 मार्च 2014 को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन क्रीमिया को रूसी संघ में मिलाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही क्रीमिया रूसी संघ का हिस्सा बन गया है। .

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कूमान लोग

कूमान (Cuman), जिन्हें रूसी भाषा में पोलोव्त्सी (Polovtsi) कहा जाता था, एक तुर्क बंजारा समुदाय था जो 1237 ईसवी में होने वाले मंगोल हमले तक यूरेशियाई स्तेपी में कृष्ण सागर से उत्तरी में और वोल्गा नदी के किनारे विस्तृत कूमान-किपचाक परिसंध की पश्चिमी शाखा थी। मंगोल हमले के बाद उनमें से कई ने हंगरी में शरण ली थी। इस आक्रमण से पहले इनका कॉकस और ख़्वारेज़्म क्षेत्र पर बहुत प्रभाव था, और वे भारी मात्रा में हंगरी और बुल्गारिया में बसने लगे थे। .

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कीवयाई रूस

11वीं सदी में कीवयाई रूस राज्य कीवयाई रूस (रूसी: Киевская Русь, अंग्रेज़ी: Kievan Rus') मध्यकालीन यूरोप का एक राज्य था। यह 9वीं से 13वीं शताब्दी ईसवी तक अस्तित्व में रहा और 1237-1240 के मंगोल आक्रमण से ध्वस्त हो गया। अपने शुरूआती काल में इसे 'रूस ख़ागानत​' के नाम से जाना जाता था। सन् 882 में 'रूस' नाम की एक वाइकिंग उपजाति ने इसे ख़ज़रों की अधीनता से आज़ाद करवाया और इसकी राजधानी नोवगोरोद से हटाकर कीव कर दी।, pp.

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अब्बासी ख़िलाफ़त

अपने चरम पर अब्बासियों का क्षेत्र (हरे रंग में, गाढ़े हरे रंग वाले क्षेत्र उनके द्वारा जल्दी ही खोए गए) अब्बासी (अरबी:, अल-अब्बासियून; अंग्रेज़ी: Abbasids) वंश के शासक इस्लाम के ख़लीफ़ा थे जो सन् 750 के बाद से 1257 तक इस्लाम के धार्मिक प्रमुख और इस्लामी साम्राज्य के शासक रहे। इनके पूर्वज मुहम्मद से संबंधित थे इसलिए इनको सुन्नियों के साथ साथ शिया विचारधारा के मुसलमानों का भी बहुत सहयोग मिला जिसमें ईरान तथा ख़ोरासान तथा शाम की जनता शामिल थी। इस जनसहयोग की बदौलत उन्होंने उमय्यदों को हरा दिया और ख़लीफ़ा बनाए गए। उन्होंने उमय्यदों के विपरीत साम्राज्य में ईरानी तत्वों को समावेश किया और उनके काल में इस्लामी विज्ञान, कला तथा ज्योतिष में काफ़ी नए विकास हुए। सन् 762 में उन्होंने बग़दाद की स्थापना की जहाँ ईरानी सासानी निर्माण कला तथा अरबी संस्कृति से मिश्रित एक राजधानी का विकास हुआ। यद्यपि 10वीं सदी में उनकी वंशानुगत शासन की परम्परा टूट गई पर ख़िलाफ़त बनी रही। इस परंपरा टूटने के कारण शिया इस्लाम में इस्माइली तथा बारहवारी सम्प्रदायों का जन्म हुआ जो इस्लाम के उत्तराधिकारी के रूप में मुहम्मद साहब के विभिन्न वंशजों का समर्थन करते थे। उनके काल में इस्लाम भारत में भी फैल गया लेकिन 1257 में उस समय अमुस्लिम रहे मंगोलों के आक्रमण से बग़दाद नष्ट हो गया। .

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अर-रक्का

अर-रक्का: अंग्रेजी Al-Raqqah (अरबी‎ﺍﻟﺮﻗﺔ ‏‎ अर रक्का) यह एक सीरिया का नगर है जो फूरात नदी से 160 किलोमीटर उत्तर में स्थित है तथा अलेप्पो शहर से 40 किलोमीटर पुर्व में स्थित है। सीरिया की 2004 की जनगणना के अनुसार इस नगर की जनसंख्या 220,488 है। .

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अर्दबील प्रांत

पीरबिदाक़ गाँव अर्दबील प्रान्त (फ़ारसी:, ओस्तान-ए-अल्बोर्ज़; उच्चारण: अर+दबील; अंग्रेज़ी: Ardabil Province) ईरान के ३१ प्रान्तों में से एक है जो उस देश के पश्चिमोत्तरी भाग में स्थित है। इसकी राजधानी अर्दबील नाम का शहर ही है। यहाँ बहुत से अज़ेरी लोग रहते हैं और इसे 'ईरानी अज़रबेजान' का हिस्सा माना जाता है।, Patricia Baker, Hilary Smith, Bradt Travel Guides, 2009, ISBN 978-1-84162-289-7 .

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अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया। .

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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उत्तरी युआन राजवंश

उत्तरी युआन राजवंश की (रानी) ख़ातून मंदूख़​ई, जिन्हें 'बुद्धिमान रानी मंदूख़​ई' कहा जाता है उत्तरी युआन राजवंश (मंगोल: ᠬᠦᠮᠠᠷᠳᠦ ᠥᠨ ᠥᠯᠥᠰ; चीनी: 北元, बेई युआन; अंग्रेजी: Northern Yuan Dynasty) युआन राजवंश के उन बचे-कुचे भागों को कहते हैं जो अपने सन् १३६८ में चीन से सत्ता-वांछित और निकाले जाने के बाद मंगोलिया वापस चले गए थे। ध्यान रहे कि चीन पर शासन करने वाला युआन राजवंश वास्तव में चीनी जाति का नहीं बल्कि मंगोल जाति का था। १५वीं सदी में दयन ख़ान और मंदूख़​ई ख़ातून ने पूरे मंगोल राष्ट्र को फिर संगठित कर दिया। मंगोलिया में उत्तरी युआन राजवंश को 'चालीस और चार तुमेन' कहा जाता है क्योंकि इसमें चालीस तुमेन पूर्वी मंगोल और चार तुमेन पश्चिमी तुमेन शामिल थे (मंगोल भाषा में 'तुमेन' का मतलब 'दस हज़ार' है)। इस राजवंश के अन्तकाल में मंगोलिया में बौद्ध धर्म का प्रभाव बहुत बढ़ा। १६३५ में मान्छु लोगों के दबाव के कारण इसका अंत हो गया और मान्छुओं ने मंगोलिया, चीन और अन्य क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया।, Marshall Cavendish Corporation, Not Available (NA), Marshall Cavendish, 2007, ISBN 978-0-7614-7631-3,...

देखें मंगोल और उत्तरी युआन राजवंश

उज़बेक लोग

दो उज़बेक बच्चे उज़बेक मध्य एशिया में बसने वाली एक तुर्की-भाषी जाति का नाम है। उज़बेकिस्तान की अधिकाँश आबादी इसी नसल की है, हालाँकि उज़बेक समुदाय बहुत से अन्य देशों में भी मिलते हैं, जैसे कि अफ़्ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज़स्तान, तुर्कमेनिस्तान, काज़ाख़स्तान, रूस, पाकिस्तान, मंगोलिया और चीन के शिनजियांग प्रान्त में। विश्व भर में लगभग २.३ करोड़ उज़बेक लोग हैं और यह पूरे विश्व की मनुष्य आबादी का लगभग ०.३% हैं। भारत में मुग़ल सलतनत की स्थापना करने वाला बाबर भी नसल से उज़बेक जाति का ही था।, Suryakant Nijanand Bal, Lancer Publishers, 2004, ISBN 978-81-7062-273-4,...

देखें मंगोल और उज़बेक लोग

१० फ़रवरी

10 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 41वॉ दिन है। साल में अभी और 324 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 325)। .

देखें मंगोल और १० फ़रवरी

मंगोल नस्ल, मंगोल लोग, मंगोल लोगों, मंगोल समुदाय, मंगोलों, मंगोली जातियाँ, मोंगोलों के रूप में भी जाना जाता है।

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