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भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

सूची भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (अंग्रेज़ी:जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, लघु: जी.एस.एल.वी) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी का इस्तेमाल अब तक बारह लॉन्च में किया गया है, 2001 में पहली बार लॉन्च होने के बाद से 29 मार्च, 2018 को जीएसएटी -6 ए संचार उपग्रह ले जाया गया था। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र हालांकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (जीएसएलवी मार्क 3) नाम साझा करता है, यह एक पूरी तरह से अलग लॉन्चर है। .

सामग्री की तालिका

  1. 36 संबंधों: चंद्रयान-२, एकीकृत प्रक्षेपण यान, दक्षिण एशिया उपग्रह, ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन, निम्नतापिकी, निम्नतापी रॉकेट इंजन, भारतीय चन्द्रयान अभियान, भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-३, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र तृतीय लांच पैड, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र द्वितीय लांच पैड, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र प्रथम लांच पैड, संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान, हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड, जुलाई 2006, जीसैट, जीसैट-1, जीसैट-14, जीसैट-2, जीसैट-4, जीसैट-5पी, जीसैट-6ए, इनसैट-3डीआर, इनसैट-4ई, इसरो कक्षीय वाहन, कक्षीय लांच प्रणालियों की तुलना, क्रायोजेनिक इंजन-7.5, कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन, के राधाकृष्णन, उपग्रह प्रक्षेपण यान, ५ जनवरी

चंद्रयान-२

चंद्रयान-2 भारत का चंद्रयान -1 के बाद दूसरा चंद्र अन्वेषण अभियान है। जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने विकसित किया है। अभियान को जीएसएलवी प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपण करने की योजना है। इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर ऑर्बिटर (चन्द्र यान) तथा एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल होंगे। इस सब का विकास इसरो द्वारा किया जायेगा। भारत चंद्रयान-2 को 2018 में प्रक्षेपण करने की योजना बना रहा है। इसरो के अनुसार यह अभियान विभिन्न नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ 'नए' प्रयोगों को भी करेगा। पहिएदार रोवर चन्द्रमा की सतह पर चलेगा तथा ऑन-साइट विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा। आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा। मायलास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम चंद्रयान-2 पर भी काम कर रही है। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और चंद्रयान-२

एकीकृत प्रक्षेपण यान

एकीकृत प्रक्षेपण यान (Unified Launch Vehicle (ULV)) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक परियोजना है जिसका लक्ष्य एक मॉड्युलर आर्किटेक्चर का विकास करना है जो अन्ततः पीएसएलवी, जीएसएलवी आदि की जगह ले सके। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और एकीकृत प्रक्षेपण यान

दक्षिण एशिया उपग्रह

दक्षिण एशिया उपग्रह (इंग्लिश: South Asia Satellite) जिसका नाम पहले सार्क उपग्रह (SAARC Satellite) था, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) क्षेत्र के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा बनाया गया भू-समकालिक संचार और मौसम विज्ञान उपग्रह है। २०१४ में नेपाल में आयोजित १८वें सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक उपग्रह सार्क के सदस्य देशों की आवश्यकताओं की सेवा का विचार रखा था। जो उनकी 'पहले पड़ोस' नीति का हिस्सा था। हालांकि उपग्रह सार्क क्षेत्र में सेवा करने का इरादा है, पाकिस्तान कार्यक्रम से बाहर निकल गया, जबकि अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने अपनी वचनबद्धता देने का वायदा नहीं किया था।, Economic Times .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और दक्षिण एशिया उपग्रह

ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन

'''पी.एस.एल.वी सी8''' इटली के एक उपग्रह को लेकर सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से उड़ान भरते समय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान या पी.एस.एल.वी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित एक उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। भारत ने इसे अपने सुदूर संवेदी उपग्रह को सूर्य समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया है। पीएसएलवी के विकास से पूर्व यह सुविधा केवल रूस के पास थी। पीएसएलवी छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेजने में सक्षम है। अब तक पीएसएलवी की सहायता से 70 अन्तरिक्षयान (30 भारतीय + 40 अन्तरराष्ट्रीय) विभिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किये जा चुके हैं। इससे इस की विश्वसनीयता एवं विविध कार्य करने की क्षमता सिद्ध हो चुकी है। २२ जून, २०१६ में इस यान ने अपनी क्षमता की चरम सीमा को छुआ जब पीएसएलवी सी-34 के माध्यम से रिकॉर्ड २० उपग्रह एक साथ छोड़े गए।http://khabar.ndtv.com/news/file-facts/in-record-launch-isro-flies-20-satellites-into-space-10-facts-1421899?pfrom.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन

निम्नतापिकी

तुषारजनिकी में प्रयोग होने वाली तरल नाइट्रोजन गैस निम्नतापिकी, तुषारजनिकी या प्राशीतनी (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक्स) भौतिकी की वह शाखा है, जिसमें अत्यधिक निम्न ताप उत्पन्न करने व उसके अनुप्रयोगों के अध्ययन किया जाता है। क्रायोजेनिक का उद्गम यूनानी शब्द क्रायोस से बना है जिसका अर्थ होता है शीत यानी बर्फ की तरह शीतल। इस शाखा में (-१५०°से., −२३८ °फै.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और निम्नतापिकी

निम्नतापी रॉकेट इंजन

150px भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त होने वाली द्रव ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन निम्नतापी रॉकेट इंजन या तुषारजनिक रॉकेट इंजन (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक रॉकेट इंजिन) कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र बढ़े कदम पा लेंगे मंजिल। हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१० क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (२००० डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत: ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -२५३ डिग्री सेल्सियस से लेकर २००० डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए थ्रस्ट चैंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और निम्नतापी रॉकेट इंजन

भारतीय चन्द्रयान अभियान

भारतीय चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम जिसे चंद्रयान कार्यक्रम के रूप में भी जाना जाता है। चंद्रयान कार्यक्रम, (इसरो) द्वारा बाह्य अंतरिक्ष मिशन की एक श्रृंखला है। इस कार्यक्रम में चंद्रमा के लिये कक्षीयान और भविष्य चंद्र लैंडर और रोवर अंतरिक्ष यान को शामिल किया गया। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भारतीय चन्द्रयान अभियान

भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम

भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (Indian human spaceflight programme) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) द्वारा पृथ्वी की निचली कक्ष एक-दो व्यक्ति चालक दल को प्रक्षेपण करने का एक प्रस्ताव है। हाल की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि मानव अंतरिक्ष उड़ान 2017 के बाद जीएसएलवी-एमके III पर घटित होगा। क्योंकि मिशन सरकार की 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में शामिल नहीं है। चूंकि इसरो के पास एक भी मानव रेटेड प्रक्षेपण वाहन नहीं है। और सरकार की ओर से बजट में इस तरह के उड़ान शुरू करने के लिए बजट नहीं है। अत: मानव अंतरिक्ष उड़ान 2020 से पहले नहीं होगी। "भारत की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा 2021 में करने की योजना बनाई जा रही है।" डॉ राधाकृष्णन, (अध्यक्ष, इसरो) ने दिए गये एक इंटरव्यू में बताया। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (Indian Regional Navigational Satellite System) अथवा इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम-आईआरएनएसएस भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित, एक क्षेत्रीय स्वायत्त उपग्रह नौवहन प्रणाली है जो पूर्णतया भारत सरकार के अधीन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। सात उपग्रहों वाली इस प्रणाली में चार उपग्रह ही निर्गत कार्य करने में सक्षम हैं लेकिन तीन अन्य उपग्रह इसकी द्वारा जुटाई गई जानकारियों को और सटीक बनायेगें। हर उपग्रह की कीमत करीब 150 करोड़ रुपए के करीब है। वहीं पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत 130 करोड़ रुपए है। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, (संक्षेप में- इसरो) (Indian Space Research Organisation, ISRO) भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बेंगलुरू कर्नाटक में है। संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है। 1969 में स्थापित, इसरो अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके करीबी सहयोगी और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से 1962 में स्थापित किया गया। भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट, जो 19 अप्रैल 1975 सोवियत संघ द्वारा शुरू किया गया था यह गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था बनाया।इसने 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था। लेकिन ये अपने आप में भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी। 7 जून 1979 को भारत ने दूसरा उपग्रह भास्कर 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। 1980 में रोहिणी उपग्रह पहला भारतीय-निर्मित प्रक्षेपण यान एसएलवी -3 बन गया जिस्से कक्षा में स्थापित किया गया। इसरो ने बाद में दो अन्य रॉकेट विकसित किये। ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान उपग्रहों शुरू करने के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी),भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों को रखने के लिए ध्रुवीय कक्षाओं और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान। ये रॉकेट कई संचार उपग्रहों और पृथ्वी अवलोकन गगन और आईआरएनएसएस तरह सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम तैनात किया उपग्रह का शुभारंभ किया।जनवरी 2014 में इसरो सफलतापूर्वक जीसैट -14 का एक जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण में एक स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया। इसरो के वर्तमान निदेशक ए एस किरण कुमार हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है। इसरो एक चंद्रमा की परिक्रमा, चंद्रयान -1 भेजा, 22 अक्टूबर 2008 और एक मंगल ग्रह की परिक्रमा, मंगलयान (मंगल आर्बिटर मिशन) है, जो सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश पर 24 सितंबर 2014 को भारत ने अपने पहले ही प्रयास में सफल होने के लिए पहला राष्ट्र बना। दुनिया के साथ ही एशिया में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी में एजेंसी को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए इसरो चौथे स्थान पर रहा। भविष्य की योजनाओं मे शामिल जीएसएलवी एमके III के विकास (भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए) ULV, एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष, आगे चंद्र अन्वेषण, ग्रहों के बीच जांच, एक सौर मिशन अंतरिक्ष यान के विकास आदि। इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए साल 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया। जून 2016 तक इसरो लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लॉन्च कर चुका है, और इसके द्वारा उसने अब तक 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं।http://khabar.ndtv.com/news/file-facts/in-record-launch-isro-flies-20-satellites-into-space-10-facts-1421899?pfrom.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (अंग्रेज़ी:जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, लघु: जी.एस.एल.वी) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी का इस्तेमाल अब तक बारह लॉन्च में किया गया है, 2001 में पहली बार लॉन्च होने के बाद से 29 मार्च, 2018 को जीएसएटी -6 ए संचार उपग्रह ले जाया गया था। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र हालांकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (जीएसएलवी मार्क 3) नाम साझा करता है, यह एक पूरी तरह से अलग लॉन्चर है। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-३

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-३ भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-३ (GSLV-III) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित एक भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान है। भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान-मार्क3 का परीक्षण आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। 630 टन वजनी और 43.43 मीटर लंबे इस अंतरिक्ष यान ने प्रक्षेपण के कुछ ही सेकंडों में अपने को दूसरे लांच पैड से अलग कर लिया और आकाश में उडमन भरी। करीब 155 करोड़ रुपये की लागत वाला यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने की योजना का हिस्सा है। यह अपने साथ 3.7 टन वजनी क्रू मॉड्यूल भी लेकर गया है, जिसे क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट नाम दिया गया है। इसके जरिये अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-३

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle mark 3, or GSLV Mk3, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लाँच वहीकल मार्क 3, या जीएसएलवी मार्क 3, या जीएसएलवी-3), जिसे लॉन्च वाहन मार्क 3 (LVM 3) भी कहा जाता है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण वाहन (लॉन्च व्हीकल) है। इसे भू-स्थिर कक्षा (जियो-स्टेशनरी ऑर्बिट) में उपग्रहों और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया गया है। जीएसएलवी-III में एक भारतीय तुषारजनिक (क्रायोजेनिक) रॉकेट इंजन की तीसरे चरण की भी सुविधा के अलावा वर्तमान भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की तुलना में अधिक पेलोड (भार) ले जाने क्षमता भी है। | फ्रंटलाइन| ७ फरवरी २०१४ .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1 भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 रॉकेट की प्रथम विकास उडान है। इसे अप्रैल 2017 में लांच किया जायेगा यह उडान भारत के लिए बहुत महत्पूर्ण है इसके द्वारा भारत संचार उपग्रह को स्वदेश में लांच करने की काबिलियत हासिल करेगा। श्रेणी:भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण रॉकेट श्रेणी:भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 डी1

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र तृतीय लांच पैड

तृतीय लांच पैड (Third Launch Pad or TLP) सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा का निर्माणाधीन रॉकेट प्रक्षेपण स्थल है। जब लांच पैड पूरी तरह से निर्माण हो जायेगा। तब यह सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तृतीय लांच पैड होगा। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र तृतीय लांच पैड

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र द्वितीय लांच पैड

द्वितीय लांच पैड (Second Launch Pad or SLP) सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा में एक रॉकेट प्रक्षेपण स्थल है। यह सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर स्थित दो लांच पैड में से एक है। द्वितीय लॉन्च पैड या एसएलपी को मार्च 1999 से दिसंबर 2003 की अवधि के दौरान रांची (झारखंड, भारत) में स्थित भारतीय सरकार की एमईसीओएन लिमिटेड द्वारा डिजाइन, आपूर्ति, निर्माण और कमीशन किया गया था। उस समय इस पर लगभग 400 करोड़ रुपये खर्च हुए। संबद्ध सुविधाओं के साथ द्वितीय लांच पैड 2005 में बनाया गया था। हालांकि, यह 5 मई 2005 को पीएसएलवी-सी 6 के लॉन्च के साथ ही चालू हुआ था। इस परियोजना के लिए एमईसीओएन लिमिटेड के उप-ठेकेदार, जिनमें इंनोक इंडिया, एचईसी, टाटा ग्रोथ, गोदरेज बॉयस, सिम्प्लेक्स, नागार्जुन कंस्ट्रक्शन, स्टीलेज आदि शामिल थे। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर अन्य लॉन्च पैड प्रथम लांच पैड है। द्वितीय लांच पैड का इस्तेमाल ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3 लॉन्च वाहनों को लॉन्च करने में किया जाता है। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र द्वितीय लांच पैड

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र प्रथम लांच पैड

प्रथम लांच पैड (First Launch Pad or FLP) सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा में एक रॉकेट प्रक्षेपण स्थल है। जो 1993 में शुरू किया गया था। यह वर्तमान में इसरो के दो प्रक्षेपण वाहन ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान और भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान को लांच करने में प्रयुक्त होता है। इस पैड से पहला प्रक्षेपण 20 सितंबर 1993 पर घटित हुआ था। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र प्रथम लांच पैड

संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान

संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (Augmented Satellite Launch Vehicle) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक पांच चरण ठोस ईंधन रॉकेट था। यह पृथ्वी की निचली कक्ष में 150 किलो के उपग्रहों स्थापित करने में सक्षम था। इस परियोजना को भू-स्थिर कक्षा में पेलोड के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए 1980 के दशक के दौरान भारत द्वारा शुरू किया गया था। इसका डिजाइन उपग्रह प्रक्षेपण यान पर आधारित था http://www.astronautix.com/lvs/aslv.htm .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान

हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड

हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत का एक सार्वजनिक प्रतिष्ठान है, जो हवाई संयन्त्र निर्माण करता है। इसका मुख्यालय बंगलुरु में है। दिसम्बर, १९४० में भूतपूर्व मैसूर राजसी राज्य एवं असाधारण दूरद्रष्टा उद्यमी श्री सेठ वालचन्द हीराचन्द के सहयोग से बेंगलूर में शुरु हुआ। एच ए एल की आपूर्तियाँ / सेवाएँ प्रमुख रूप से भारतीय रक्षा सेनाओं, तटरक्षक तथा सीमा सुरक्षा बल के लिए हैं। भारतीय विमान - वाहकों तथा राज्य सरकारों को भी परिवहन विमानों तथा हेलिकाप्टरों की पूर्ति की गयी है। कंपनी ने गुणवत्ता एवं किफायती दरों के माध्यम से ३० से अधिक देशों में निर्यात क्षेत्र में पदार्पण किया है। आज भारत भर में एच ए एल की १६ उत्पादन इकाइयाँ एवं ९ अनुसंधान व विकास केन्द्र हैं। इसके उत्पाद-क्रम में देशीय अनुसंधान व विकास के अधीन १२ प्रकार के विमान एवं लाइसेंस के अधीन १३ प्रकार के विमान हैं। एच ए एल द्वारा अब तक ३३०० से भी अधिक विमानों, ३४०० से अधिक विमान-इंजनों का उत्पादन तथा ७७०० से अधिक विमानों एवं २६,००० से अधिक इंजनों का ओवरहाल किया गया है। एच ए एल को अनुसंधान व विकास, प्रौद्योगिकी, प्रबंधकीय निष्पादन, निर्यात, ऊर्जा की बचत, गुणवत्ता एवं सामाजिक दायित्वों के निर्वहण में अनेक अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। गुणवत्ता एवं दक्षता में कारपोरेट उपलब्धि के लिए अंतर्राष्ट्रीय सूचना एवं विपणन केन्द्र (आई आई एम सी) ने मेसर्स ग्लोबल रेटिंग, युनाइटेड किंगडम के संयोजन से मेसर्स हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड को अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन (वैश्विक मूल्यांकन नेता २००३), लंदन, यू.के.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड

जुलाई 2006

आंद्रे आगासी ने अपना आखरी विंबलडन सिंगल्स टेनिस मैच खेला। विंबलडन के तीसरे दौर मे वे राफ़ेल नडाल से ७-६ (७-५), ६-२, ६-४ से हार गए। श्रेणी:जुलाई श्रेणी:2006.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और जुलाई 2006

जीसैट

जीसैट उपग्रह, भारत की स्वदेशी रूप से विकसित संचार उपग्रहों की तकनीक है जो डिजिटल ऑडियो, डेटा और वीडियो के प्रसारण के लिए प्रयोग की जाती है। नवंबर 2015 तक, 13 जीसैट उपग्रहों को इसरो द्वारा प्रक्षेपित किया जा चुका है। .

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जीसैट-1

जीसैट-१ जीएसएलवी रॉकेट की पहली उडान द्वारा प्रक्षेपित एक प्रयोगधर्मी संचार उपग्रह था। यह अंतरिक्ष यान एस बैंड आवृति और सीबैंड के तीन प्रेषानुकरों (ट्रांसपौंडरों) द्वारा छोडे जा रहे स्पदंन स्वर परिवर्तन (पल्स कोड मॉड्युलेशन) नापने वाले उपकरणों से सुसज्जित था। इस उपग्रह पर सुधारित प्रतिक्रिया नियंत्रण थ्रस्टर, त्वरित पुनःप्राप्ति तारा संवेदक और ऊष्मा प्रवाहिका रेडियेटर पैनल जैसे कई नए अंतरिक्ष यान अवयवों का परीक्षण भी किया गया। जीसैट-1 का उपयोग डिजीटल ऑडियो प्रसारण, इंटरनेट सेवाएँ और संपीडित डिजीटल टी.वी.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और जीसैट-1

जीसैट-14

जीसैट-14 एक भारतीय संचार उपग्रह है जिसे जनवरी 2014 में सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया। माना जा रही है कि यह उपग्रह वर्ष 2004 में प्रक्षेपित जीसैट-3 का स्थान लेगा। जीसैट -14 को जीएसएलवी डी 5 द्वारा प्रमोचित किया गया जिसके तीसरे चरण में भारत में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल हुआ था। .

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जीसैट-2

जीसैट-2 was an experimental communication satellite built by the भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित एक प्रयोगधर्मी संचार उपग्रह था जिसे पहले जीएसएलवी प्रमोचन यान से १८ मई २००३ को प्रक्षेपित किया गया था। उपग्रह को 48° पूर्व देशांतर पर भू-स्थैतिक कक्षा में भेजा गया था। u बैंड ट्रॉन्सपौंडर और एक चलित उपग्रह सेवा and a Mobile Satellite Service (MSS) payload operating in S-band forward link and C-band return link.

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जीसैट-4

जीसैट-4 (GSAT-4) को हेल्थसैट के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रयोगात्मक संचार और नेविगेशन उपग्रह था। इसे भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 2 की प्रथम प्रयोगिक उड़ान में भेजा गया था। लेकिन भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 2 के तीसरे चरण की विफलता के कारण यह कक्षा तक नहीं पंहुचा। और वायुमंडल में ही नष्ट हो गया। .

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जीसैट-5पी

जीसैट-5पी (GSAT-5P) या जीसैट-5प्राइम (GSAT-5 Prime) एक प्रयोगात्मक संचार उपग्रह था। इसे भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 1 एफ06 की उड़ान में भेजा गया था। लेकिन भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 1 के बूस्टर की विफलता के कारण यह कक्षा तक नहीं पंहुचा। उड़ान भरने के कुछ समय बाद बूस्टर विफल हो गए और राकेट निर्धारित पथ से भटक गया। इसको देखते हुए उड़ान के 63 सेकंड बाद सीमा सुरक्षा अधिकारी ने राकेट को बंगाल की खाड़ी में नष्ट करने का आदेश दिया और उपग्रह राकेट के साथ नष्ट हो गया। .

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जीसैट-6ए

जीसैट-6ए (GSAT-6A) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित एक संचार उपग्रह है। इसमें जीसैट-6 पर इस्तेमाल किए गए 6 मीटर (20 फीट) एस-बैंड एंटीना की सुविधा है। लिफ्ट-ऑफ के लगभग 17 मिनट बाद, जीएसएलवी एमके 2 रॉकेट की जीएसएलवी एफ08 मिशन उड़ान ने सफलतापूर्वक उपग्रह को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में छोड़ा। .

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इनसैट-3डीआर

इनसैट-3डीआर एक भारतीय मौसम उपग्रह है। यह एक आधुनिक मौसमविज्ञान-संबंधी सैटेलाइट (एडवांस मेट्रोलॉजिकल सैटेलाइट) है जिसमें इमेजिंग सिस्टम और वायु-मंडल-संबंधी घोषक (एटमोस्फियरिक साउंडर) हैं। इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा बनाया गया है। यह भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली द्वारा संचालित होगा। यह भारत को मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करेगा। उपग्रह को 8 सितंबर 2016 को दोपहर 4:10 (आईएसटी) पर लॉन्च किया गया। - एनडीटीवी - 8 सितम्बर 2016 विभिन्न सेवाएं देने के साथ साथ इनसैट-3डीआर तटरक्षक, भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण, जहाजरानी एवं रक्षा सेवाओं सहित विभिन्न उपयोगकर्ताओं के लिए इनसैट -3डी द्वारा मुहैया कराई जाने वाली संचालनगत सेवाओं से संबद्ध हो जाएगा। इनसैट-3डीआर की मिशन अवधि 10 साल है। .

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इनसैट-4ई

इनसैट-4ई (INSAT 4E) जिसे जीसैट-6 (GSAT-6) के नाम से भी जाना जाता है एक मल्टीमीडिया संचार उपग्रह है। यह भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह का सदस्य उपग्रह है। यह उपग्रह अन्य सामाजिक और सामरिक अनुप्रयोगों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उपग्रह का जीवन काल 9 साल होगा। इसका प्रक्षेपण भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 2 द्वारा 27 अगस्त 2015, 11:22 यु.टी.सी हुआ था। .

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इसरो कक्षीय वाहन

इसरो कक्षीय वाहन अस्थायी रूप से नामित भारतीय मानवयुक्त अंतरिक्ष यान है। अंतरिक्ष कैप्सूल तीन लोगों को ले जाने के लिए तैयार किया गया है। और उन्नत संस्करण डॉकिंग क्षमता से लैस किया जाएगा। अपनी पहली मानवयुक्त मिशन में, यह 3.7 टन का कैप्सूल तीन व्यक्ति दल के साथ सात दिनों के लिए 400 किमी (250 मील) की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे। कक्षीय वाहन को इसरो के भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3 पर लॉन्च करने की योजना है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित इस क्रू मॉड्यूल ने 18 दिसंबर 2014 को अपना पहला मानवरहित प्रायोगिक उड़ान किया।http://hal-india.com/Crew%20Module.asp .

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कक्षीय लांच प्रणालियों की तुलना

यह एक कक्षीय लांच प्रणालियों की तुलना (Comparison of orbital launch systems) है। यह निम्नलिखित पारंपरिक कक्षीय लांच सिस्टम की पूरी सूची उजागर है। पारंपरिक लांचर परिवारों की सरल छोटी सूची के लिए देखें: कक्षीय लांचर परिवारों की तुलना। तालिका में कक्षा संक्षिप्त रूपों के लिए लीजेंड.

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और कक्षीय लांच प्रणालियों की तुलना

क्रायोजेनिक इंजन-7.5

क्रायोजेनिक इंजन-7.5 (Cryogenic Engine-7.5) एक 'क्रायोजेनिक इंजन है। जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने जीएसएलवी मार्क-2 के ऊपरी चरण के लिए विकसित किया गया है। यह इंजन क्रायोजेनिक ऊपरी चरण परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसका प्रयोग रूस का क्रायोजेनिक इंजन केवीडी-1(KVD-1) को स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन से बदलने का था। जीएसएलवी मार्क-1 में रूस के क्रायोजेनिक इंजन केवीडी-1 का प्रयोग होता था। लेकिन जीएसएलवी मार्क-2 संस्करण में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग किया गया। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और क्रायोजेनिक इंजन-7.5

कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन

कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन राज्यसभा के सांसद एवं प्रसिद्ध भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं। इन्हें भारत सरकार ने १९९२ में विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये कर्नाटक से हैं एवं वर्तमान में भारतीय योजना आयोग के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। .

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के राधाकृष्णन

डॉक्टर के.

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उपग्रह प्रक्षेपण यान

उपग्रह प्रक्षेपण यान या एसएलवी (SLV) परियोजना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा 1970 के दशक में शुरू हुई परियोजना है जो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए की गयी थी। उपग्रह प्रक्षेपण यान परियोजना एपीजे अब्दुल कलाम की अध्यक्षता में की गयी थी। उपग्रह प्रक्षेपण यान का उद्देश्य 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचना और 40 किलो के पेलोड को कक्षा में स्थापित करना था। अगस्त 1979 में एसएलवी-3 की पहली प्रायोगिक उड़ान हुई, परन्तु यह विफल रही। यह चार चरण वाला ठोस प्रणोदक रॉकेट था। उपग्रह प्रक्षेपण यान का पहला प्रक्षेपण 10 अगस्त 1979 को श्रीहरिकोटा से हुआ। उपग्रह प्रक्षेपण यान का चौथे और अंतिम प्रक्षेपण 17 अप्रैल 1983 को हुआ। .

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५ जनवरी

5 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 5वाँ दिन है। साल में अभी और 360 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 361)। .

देखें भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान और ५ जनवरी

जी. एस. एल. वी., जीएसएलवी, जीएसएलवी 2 के रूप में भी जाना जाता है।