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भाषाविज्ञान

सूची भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

197 संबंधों: चार्ल्स फिल्मोर, चीनी भावचित्र, टोक पिसिन, ऍथनोलॉग, , एडवर्ड सपीर, एंगिन आक्युरेक, , ऐक्टर-नेटवर्क सिद्धान्त, झ़, झुआंग लोग, डेकन कॉलेज, तातार भाषा, ताई-कादाई भाषाएँ, ताइवानी आदिवासी, तिब्बती-किन्नौरी भाषाएँ, तगालोग भाषा, तंत्रिका विज्ञान, तुलनात्मक साहित्य, तुषारी भाषाएँ, तुंगुसी भाषा-परिवार, त्रुटि, तेन्ग्री, थ़, थियोडोर मोम्मसेन, द्वित्व, देवनागरी, नाभिकीय मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ, निहाली भाषा, न्यायालयिक भाषाविज्ञान, नृजातीय भाषाविज्ञान, नूरिस्तानी भाषाएँ, नोआम चाम्सकी, पति, पदविज्ञान, पर्या भाषा, पाठसंग्रह, पारंपरिक संगीत, पांडुरंग दामोदर गुणे, पिएर जोसेफ प्रूधों, प्रतिवर्तन, प्रायोगिक भाषाविज्ञान, प्राकृतिक भाषा, प्राकृतिक भाषा संसाधन, प्रजनक व्याकरण, प्रकार-टोकन अंतर, पूर्वोत्तर कॉकसी भाषाएँ, फर्दिनान्द द सस्यूर, फहमीदा हुसैन, फ़िलिपीनी भाषाएँ, ..., फ़ोर्मोसी भाषाएँ, फ्रेडरिक नीत्शे, बाबूराम सक्सेना, बाख़्त्री भाषा, बइ भाषा, बोधात्मक भाषाविज्ञान, भारतीय गणित का इतिहास, भाषा, भाषा प्रयुक्ति, भाषा शुद्धतावाद, भाषा की उत्पत्ति, भाषा उद्योग, भाषा-द्वैत, भाषाविज्ञान का इतिहास, भाषिका, भावना, मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ, मस्बाते, महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन, मात्रात्मक भाषाविज्ञान, माधवी सरदेसाई, मानस शास्त्र, मानव मस्तिष्क, मानविकी, माल्टो भाषा, मांचु भाषा, मिखाइल लोमोनोसोव, मंगोलों का गुप्त इतिहास, मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान, यूनानी वर्णमाला, योस्त गिप्पेर्त, रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव, रूपबद्ध विज्ञान, रेखीय बी लिपि, रोलां बार्थ, लहजा (भाषाविज्ञान), लिप्यन्तरण, लुडविग विट्गेंस्टाइन, लैंग और पैरोल, लेवी स्ट्रास, शब्दकोश, शालिग्राम शुक्ला, शिवराज आचार्य कौण्डिन्न्यायन, शिक्षा (वेदांग), श्यामसुन्दर दास, श्वा, शौरसेनी, शैलीविज्ञान, , समाजभाषाविज्ञान, सम्पत्ति, सम्मिलन (भाषाविज्ञान), समूहवाचक संज्ञा (अंग्रेजी व्याकरण), सहस्वानिकी, सामाजिक विज्ञान, सांकेतिक भाषा, साकेत बहुगुणा, सजातीय शब्द, संस्कृत साहित्य, संस्कृत कॉलेज, संज्ञा, संज्ञान, संज्ञानात्मक विज्ञान, संकेतविज्ञान, सआलिबी, सुभाष काक, स्फोट, स्लावी भाषाएँ, स्वनिमविज्ञान, स्वनविज्ञान, सीताराम लालस, हरदेव बाहरी, हिन्द-आर्य भाषाएँ, हिन्दको भाषा, हिंदी भाषा में उपयोग होने वाले संस्कृत एवं फ़ारसी मूल धातुओं की सूची, हुमायुन आजाद, हेमचन्द जोशी, हेलमट नेस्पिटल, जर्मैनी भाषा परिवार, ज़, ज़ालमान दाइम्शित्स, वचन (व्याकरण), वनस्थली विद्यापीठ, वाडमीमांसा, वाक्यविन्यास, विल्हेम वॉन हम्बोल्ट, विशिष्टीकरण (भाषाविज्ञान), विष्णु सीताराम सुकथंकर, व्याकरण, व्याकरण (वेदांग), खड़ीबोली, ख़, ख़ातून, ख़ितानी भाषा, ख्यात, गणन संख्या (भाषा विज्ञान), गबडलय अखटऊ, ग़, गायन, गागाउज़ भाषा, गुआंचे, ग्लोस, गोविन्द चन्द्र पाण्डेय, , ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ, औपचारिक भाषा, आचार्य नरेन्द्र भूषण, आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा, आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग, क मुं हिंदी विद्यापीठ आगरा, कठबोली, कपिल कपूर, कमान भाषा, करेन भाषाएँ, कला, कलानाथ शास्त्री, क़, कारेलिया गणतंत्र, काल (व्याकरण), काव्यशास्त्र, काकलीय व्यंजन, किशोरीदास वाजपेयी, क्रमसूचक संख्या (भाषा विज्ञान), कैनरी द्वीपसमूह, केरलीय गणित सम्प्रदाय, कॉर्पस भाषाविज्ञान, कोशविज्ञान, , अण्डमान क्रियोल हिन्दी, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, अन्तरजालीय भाषाविज्ञान, अन्तोनी मारिया अलकुवे ई सुरेदा, अन्विता अब्बी, अब्जद, अभिश्लेषण, अर्थविज्ञान, अल्ताई भाषा-परिवार, अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट, अशाब्दिक संप्रेषण, अंकन, अक्षर, अक्षर कला, उच्चारण, उपभाषा, उपभाषा विज्ञान, उइगुर भाषा, ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष सूचकांक विस्तार (147 अधिक) »

चार्ल्स फिल्मोर

चार्ल्स.

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चीनी भावचित्र

चीनी लिपि में 'आँख' के लिए भावचित्र 'आँख' के भावचित्र का हस्त-लिखित रूप शांग राजवंश काल में हड्डियों पर खरोंचे गए स्वर-अर्थ संयुक्त भावचित्र - इनसे भविष्यवानियाँ की जाती थीं सन् १४३६ में बनी चीनी भावचित्र सिखाने के लिए एक पुस्तक का पृष्ठ गाय के चित्र से कैसे उसका आधुनिक भावचित्र बदलावों के साथ उत्पन्न हुआ चीनी भावचित्रों में हर दिशा में खीची जाने वाली हर प्रकार की लकीर का एक भिन्न नाम है - हर भावचित्र में यह लकीरें अलग तरह से सम्मिलित होती हैं - यहाँ दिखाए गए भावचित्र 永 का मतलब 'हमेशा' या 'सनातन' है हानज़ी अथवा चीनी भावचित्र (अंग्रेज़ी: Chinese characters, चाइनीज़ कैरॅक्टर्ज़) चीनी भाषा और (कुछ हद तक) जापानी भाषा लिखने के लिए इस्तेमाल होने वाले भावचित्र होते हैं। इन्हें चीनी के लिए जब प्रयोग किया जाए तो यह हानज़ी(汉字/漢字, hanzi) कहलाते हैं और जब जापानी के लिए प्रयोग किया जाए तो कानजी (漢字, kanji) कहलाते हैं। पुराने ज़माने में इनका प्रयोग कोरियाई भाषा और वियतनामी भाषा के लिए भी होता था। चीनी भावचित्र दुनिया की सब से पुरानी चलती आ रही लिखने की विधि है।, Hans Jensen, Allen & Unwin, 1969,...

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टोक पिसिन

टोक पिसिन (Tok Pisin) पापुआ न्यू गिनी में बोली जाने वाली एक क्रियोल भाषा है। यह पापुआ न्यू गिनी की कुछ स्थानीय भाषाओं और अंग्रेज़ी के मिश्रण से १९वीं सदी में विकसित हुई थी। हालांकि इसका नामक अंग्रेज़ी के 'टॉल्क पिजिन' (Talk Pidgin), यानि 'पिजिन बोली' का विकृत रूप है, यह भाषावैज्ञानिक दृष्टि से वास्तव में पिजिन नहीं बल्कि क्रियोल का दर्जा रखती है, अर्थात ज़्यादा स्थाई और विकसित है। टोक पिसिन को पापुआ न्यू गिनी में सरकारी मान्यता प्राप्त है और यह उस देश की एक राजभाषा है। यह पापुआ न्यू गिनी की सबसे अधिक प्रचलित भाषा भी है हालांकि इसे बोलने वाले अधिकतर पापुआ न्यू गिनी की किसी अन्य भाषा के मातृभाषी होते हैं।, Nina Schulte-Schmale, Maike Naujoks, pp.

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ऍथनोलॉग

ऍथनोलॉग (अंग्रेज़ी: Ethnologue) विश्व की भाषाओँ की एक सूची है जिसका प्रयोग भाषाविज्ञान में अक्सर किया जाता है। इसमें हर भाषा और उपभाषा को अलग तीन अंग्रेज़ी अक्षरों के साथ नामांकित किया गया है। इस नामांकन को "सिल कोड" (SIL code) कहा जाता है। उदाहरण के लिए मानक हिंदी का सिल कोड 'hin', ब्रज भाषा का 'bra', बुंदेली का 'bns' और कश्मीरी का 'kas' है। हर भाषा और उपभाषा का भाषा-परिवार के अनुसार वर्गीकरण करने का प्रयास किया गया है और उसके मातृभाषियों के वासक्षेत्र और संख्या का अनुमान दिया गया है। इस सूची का १६वाँ संस्करण सन् २००९ में छपा और उसमें ७,३५८ भाषाएँ दर्ज थीं। .

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ए की ध्वनि सुनिए ऐ की ध्वनि सुनिए - यह ए से भिन्न है ऍ की ध्वनि सुनिए - यह भी ए से भिन्न है ऐ देवनागरी लिपि का सातवाँ वर्ण है और एक स्वर भी है। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध॰व॰) में इसके उच्चारण को e के चिन्ह से लिखा जाता है। इसका प्रयोग आधुनिक मानक हिंदी के बहुत से शब्दों में होता है (जैसे एक, मेरा, ने और केन्द्र) और इस से रूप में मिलते-जुलते 'ऐ' और 'ऍ' स्वरों के उच्चारण से अलग है। 'ए' का स्वर बहुत सी अन्य भाषाओँ में भी मिलता है, जैसे की अंग्रेज़ी, यूनानी और जापानी। .

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एडवर्ड सपीर

एडवर्ड सपीर (१९१० में) एडवर्ड सपीर (Edward Sapir; १८८४-१९३९ ई.) अमेरिकी नृतात्विक भाषावैज्ञानिक थे। .

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एंगिन आक्युरेक

एंगिन आक्युरेक(तुर्की भाषा: Engin Akyürek) (जन्म 12 अक्टूबर 1981 को अंकारा में) एक तुर्क अभिनेता है जिसे अंतरराष्ट्रीय एमी पुरस्कार के लिए नामित किया जा चुका है। आक्युरेक ने तुर्की की कई प्रमुख फिल्मों और टेलिविज़न श्रृंखलाओं में काम कर प्रसिद्धि पाई है। भारत में एंगिन की प्रसिद्धि उनके टेलिविज़न धारावाहिक फातमागुल के कारण है जिसका प्रसारण ज़ी ज़िन्दगी नामक टीवी चैनल पर किया जाता है। .

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ऐ की ध्वनि सुनिए ए की ध्वनि सुनिए - यह ऐ से भिन्न है ऍ की ध्वनि सुनिए - यह भी ऐ से भिन्न है ऐ देवनागरी लिपि का आठवाँ वर्ण है और एक स्वर भी है। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध॰व॰) में इसके उच्चारण को æ के चिन्ह से लिखा जाता है। इसका प्रयोग आधुनिक मानक हिंदी के बहुत से शब्दों में होता है (जैसे ऐनक, बैल, सैर) और इस से रूप में मिलते-जुलते 'ए' और 'ऍ' स्वरों के उच्चारण से अलग है। पूर्वी हिंदी की कुछ उपभाषाओं, मराठी और कुछ अन्य भाषाओँ में इसका उच्चारण मानक हिंदी से भिन्न होता है और उनमें इसे एक संयुक्त स्वर (डिप्थाँग) की तरह उच्चारित किया जाता है। .

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ऐक्टर-नेटवर्क सिद्धान्त

ऐक्टर-नेटवर्क सिद्धान्त (Actor–network theory (ANT)) सामाजिक सिद्धान्त एवं अनुसंधान की वह विधि है जो वस्तुओं को सामाजिक नेटवर्क का भाग मानती है। नेटवर्क की अवधारणा के इर्द-गिर्द हुआ चिन्तन अभी तक प्रौद्योगिकीय और सामाजिक चिन्तन के बीच संबंध-सूत्र कायम करने की समस्या का संतोषजनक हल नहीं खोज पाया है। एक्टर- नेटवर्क थियरी इसी समाधान का प्रयास करती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी अध्ययन के विद्वान ब्रूनो लातूर और मिशेल कैलन ने समाजशास्त्री जॉन लॉक की मदद से इसका प्रतिपादन किया। तकनीकी रूप से इसे ‘मैटीरियल-सीमियोटिक’ पद्धति का नाम दिया जाता है। अर्थात् इस सिद्धांत के द्वारा वस्तुओं के बीच संबंधों का अध्ययन तो किया ही जाता है, यह अवधारणाओं के बीच संबंधों की समझ बनाने में भी मदद करता है। यह सिद्धान्त यह मान कर चलता है कि कई संबंध एक साथ भौतिक (मैटीरियल) और संकेतमूलक (सीमियोटिक) होते हैं। उदाहरण के लिये, किसी बैंक में व्यक्तियों, उनके विचारों और प्रौद्योगिकी के बीच त्रिकोणीया अन्योन्यक्रिया होती है। परिणामस्वरूप एक ऐसा नेटवर्क बनता है जो एकल अस्तित्व के रूप में ‘एक्ट’ करते हुए विभिन्न तत्त्वों के साथ अपना सूत्र कायम करता है ताकि स्वयं में सुसंगत और सम्पूर्ण हो सके। एक्टर-नेटवर्क के इस के लगातार बनते-बिगड़ते रहते हैं। ऐसे नेटवर्कों में संबंधों को लगातार और बार-बार ‘परफ़ॉर्म’ करना पड़ता है, अन्यथा नेटवर्क बिखर जाता है। इस नेटवर्क को सुसंगत बनाये रखने के लिए जरूरी है कि उसके सदस्यों के बीच द्वंद्व कम से कम हो (श्रम-संबंध दुरुस्त रहें या कम्प्यूटर सॉक्रटवेयरों के बीच समरसता रहे)। फ़्रांसीसी दार्शनिक ज़ील डलज़ और फ़ेलिक्स गुआतारी (Deleuze and Guattari) के चिंतन से प्रेरणा लेने वाली इस थियरी की रुचि यह बताने में है कि एक्टर-नेटवर्क कैसे बनता है, कैसे ख़ुद को कायम रखता है और कैसे बिखर जाता है। लेकिन इसके ज़रिये यह पता नहीं चलता कि नेटवर्क अपना प्रकट रूप कैसे ग्रहण करता है। नेटवर्क की अवधारणा के प्रति द्वैध के बावजूद इस सिद्धांत के कारण मोबिलिटी और कनेक्टिविटी संबंधी प्रश्नों पर नवीन चिंतन की गुंजाइशें निकली हैं। जॉन लॉक और जॉन हैसर्ड द्वारा सम्पादित ग्रंथ "एक्टर नेटवर्क थियरी ऐंड ऑक्रटर" में इस सिद्धांत की विशेषताओं, उपलब्धियों और सीमाओं का एक कारगर ख़ाका मिलता है। लॉक के अनुसार यह थियरी ‘भौतिकता के लक्षणशास्त्र’ या ‘संबंधात्मक भौतिकता’ ज़ोर देती है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यह सिद्धांत लक्षणशास्त्र के दायरे से ली गयी संकेतों की संबंधात्मकता के औजार से भौतिक रूपों का विश्लेषण करता है। इन भौतिक रूपों में रोजाना के जीवन से जुड़ी वस्तुएँ भी हो सकती हैं। एक्टर-नेटवर्क थियरी अपनी इसी विशेषता के कारण सोशल नेटवर्क विश्लेषण से अलग हो जाती है। लक्षण-विज्ञान एक भाषाशास्त्रीय उपकरण है, पर यह सिद्धांत उसकी अंतर्दृष्टियों का इस्तेमाल करके तत्त्वों की संबंधात्मकता की टोह लेता है और फिर उसके ज़रिये बेहिचक होकर हर तरह की सामग्री का विश्लेषण कर डालता है। नारीवादी चिंतक डोना हारावे ने भी नब्बे के दशक में भौतिक और सांकेतिक के बीच संबंधों की थाह लेने के लिए ऐसे तत्त्वों का अध्ययन किया था जो भौतिक रूप में होने के बावजूद नये तरह की बौद्धिक सम्पदा की तरफ इशारा करती थीं। लॉक के अनुसार इसके माध्यम से यह पद्धति पता लगाती है कि दूसरे तत्त्वों के साथ अपनी के मानवीय ग़ैर-मानवीय तत्त्वों पर क्या असर पड़ता है। एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों के के तहत चीजें अपनी या दूसरों की क्रियात्मकता से गुजरती हैं। यहाँ लॉक पूछते हैं कि इस क्रियात्मकता और संबंधों की अपेक्षाकृत स्थिरता और स्थानिकता के बीच क्या संबंध है? इसके जवाब में लॉक एक वैकल्पिक स्थान-वैज्ञानिक (टोपोलॅजीकल प्रणाली) के रूप में नेटवर्क के विचार को पेश करते हैं। यानी एक नेटवर्क के तहत अपनी आपसी सूत्रों या संबंधों के आधार पर विभिन्न तत्त्व अपने स्थानिक अखण्डता कायम रख पाते हैं। सोशल नेटवर्क विश्लेषण के महारथी जिस नेटवर्क की चर्चा करते हैं, वह नेटवर्क यह नहीं है। उनके लिए तो नेटवर्क एक अपेक्षाकृत तटस्थ और वर्णनात्मक पद है। जॉन लॉक के लिए नेटवर्क अपने-आप में स्थानिकता का एक स्वरूप या स्वरूपों का एक समुच्चय है। नेटवर्क की यह विशेषता किसी भी तरह की टोपोलॅजीकल सम्भावना पर अपनी तरफ से कड़ी सीमाएँ आरोपित करती है। वह नेटवर्क के भीतर काम कर रहे सूत्रों का समरूपीकरण नहीं होने देती। न ही सम्भव संबंधों का समरूपीकरण हो पाता है। परिणामस्वरूप सम्भव तत्त्वों के चरित्र का भी समरूपीकरण नहीं होता। इसी पर थियरी सीमाएँ सामने आती हैं। लॉक को नेटवर्क की अवधारणा के साथ पहली मुश्किल यह लगती है कि उसके ज़रिये एक सीमा तक ही विश्लेषण किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि नेटवर्क पहले से ही एक खास रूप ग्रहण कर चुका है। एक ऐसा रूप जो अपनी पहुँच के सभी जुड़ सकने वाले तत्त्वों के साथ एक जैसा ही व्यवहार करता है। लॉक को आपत्ति इस बात पर है कि इस रवैये के कारण नेटवर्क के भीतर और नेटवर्कों के बीच बनने वाले सूत्रों के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलती। इसी कारण से तत्त्वों के बारे में भी पता नहीं चल पाता कि उन्होंने अपना मौजूदा रूप कैसे प्राप्त किया। लॉक की मान्यता है कि जब तक यह थियरी नेटवर्क के विचार के परे जा कर तत्त्वों की नानाविध बहुलता पर बल नहीं देगी, और संबंधों की जटिलता को फिर से रेखांकित नहीं करेगी तब तक यह समस्या हल नहीं हो सकती। रोचक बात यह है कि एक्टर-नेटवर्क थियरी के प्रमुख ब्रूनो ने बाद में इसकी आलोचना की। लातूर का कहना था कि इस सिद्धांत में चार चीजे कारगर नहीं हैं। न एक्टर शब्द कारगर है, न नेटवर्क, न थियरी और न ही एक्टर और नेटवर्क के बीच लगा हायफ़न। उनका तर्क यह था कि बीस साल पहले नेटवर्क के विचार और रूपक का इस्तेमाल करने पर वह समाज और राष्ट्र-राज्य जैसे स्थापित विचारों के परे जाने की गुंजाइश प्रदान करता था, पर आज वर्ल्ड वाइड वेब का वजूद कायम हो चुका है और लगभग हर व्यक्ति नेटवर्क का मोटा-मोटा मतलब समझता है। दरअसल, अपनी ही थियरी को ख़ारिज करने के पीछे लातूर की मंशा यह कहने की थी आज के ज़माने में नेटवर्क के विचार का इस्तेमाल संस्थागत रूपों के विश्लेषण से कतराते हुए लचीलेपन और प्रवाहों पर ज़ोर देने के लिए ही किया जाता है। इस चक्कर में होता यह है कि स्थानिकता का प्रश्न विश्लेषण से छूट जाता है और संस्थागत रूप आलोचना से बच हैं उन आलोचना कोई असर नहीं होता। दूसरे, यह आलोचना करते हुए लातूर को यह चिंता भी सता रही थी कि आजकल समाज-विज्ञान में नेटवर्क पद का अंधाधुंध इस्तेमाल होने लगा है, जबकि यह मुख्यतः तकनीकी शै है जिसकी नफ़ासत और पेचीदगी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। आलोचना के इस मुकाम पर लातूर को डलज़ और गुआतारी द्वारा सुझाये गये ऋजमो (rhizomes; जड़ों की जटिल प्रणाली जिसकी एक-दूसरे क्षैतिज में हैं) के विचार में गुंजाइश नज़र आती है। ऋजमो की ख़ास बात यह है कि वह किसी सुपरिभाषित भू-क्षेत्रीयता के बिना ही अपनी शाखाओं के संबंध-सूत्रों के कारण प्रणालीगत गुणों को व्यक्त करता है। डलज़ और गुआतारी कहते हैं कि ऋजमो की परिभाषा संबंध-सूत्रों और विषमांगता के आधार पर होती है। वह किसी के साथ किसी भी समय संबंध कायम कर सकता है। ऋजमो के तर्ज़ पर लातूर कहते हैं कि नेटवर्क को एक ऐसे रूप की तरह ग्रहण किया जाना चाहिए जो लगातार बनता-बिगड़ता रहता है, और जो संबंध-सूत्रों की अभूतपूर्व सम्भावना पेश करता है। यह आलोचना करते-करते लातूर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि नेटवर्क कहने के बजाय अब 'वर्क-नेट' की अभिव्यक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए। उनके अनुसार नेटवर्क में सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा ‘वर्क’ का ही है। संबंध-सूत्र करने लिए करना, या परफ़ॉर्मेटिविटी आवश्यक है। .

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झ़

thumb झ़ की ध्वनि सुनिए झ़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। इसका प्रयोग हिंदी-उर्दू (उर्दू: ژ) में केवल गिनती के ही शब्दों में होता है, जैसे की "झ़ुझ़" (जो एक प्रकार की सेह या पोर्क्युपाइन होती है) और "अझ़दहा" (जिसे अंग्रेज़ी में ड्रैगन या dragon कहते हैं)। अंग्रेज़ी में इसका प्रयोग बहुत सारे शब्दों में होता है, जैसे की "टॅलिविझ़न" (television), "ट्रॅझ़र" (treasure यानि ख़ज़ाना), "विझ़न" (vision यानि दृष्टि या नज़र), "डिसिझ़न" (decision यानि फ़ैसला) और "डिविझ़न" (division यानि बाँटना या किसी चीज़ का भाग करना)। प्रथा के अनुसार "झ़" को कभी-कभी "ज़" लिख दिया जाता है जैसे की television को अक्सर "टेलिविज़न" लिख दिया जाता है हालाँकि यह पूरा सही नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को ʒ के चिन्ह से लिखा जाता है और उर्दू में इसे ژ लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम "झ़े" है। .

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झुआंग लोग

गुआंगशी प्रांत के लोंगझोऊ ज़िले की कुछ महिला झुआंग कलाकार पिंग आन, एक झुआंग गाँव झुआंग (झुआंग: Bouxcuengh, चीनी: 壮族, अंग्रेज़ी: Zhuang) दक्षिणी चीन में बसने वाली एक मानव जाति का नाम है। यह अधिकतर चीन के गुआंगशी प्रांत में रहते हैं, जिस वजह से उसे 'गुआंगशी झुआंग स्वशासित प्रदेश' (Guangxi Zhuang Autonomous Region) भी कहा जाता है। इसके आलावा झुआंग समुदाय युन्नान, गुआंगदोंग, गुइझोऊ और हूनान प्रान्तों में भी मिलते हैं। कुल मिलाकर दुनिया भर में झुआंग लोगों की आबादी १.८ करोड़ है। हान चीनी लोगों के बाद यह चीन का दूसरा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। झुआंग भाषाएँ ताई-कादाई भाषा-परिवार की सदस्य हैं - इस परिवार की भाषाएँ पूर्वोत्तर भारत में भी मिलती हैं। .

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डेकन कॉलेज

डेकन कॉलेज पुणे का एक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान है। वर्तमान समय में इसका नाम डेक्कन कॉलेज परास्नातक एवं अनुसंधान संस्थान (Deccan College Post-Graduate and Research Institute) है। यह पुरातत्व एवं भाषाविज्ञान के शिक्षण के लिये जाना जाता है। यह भारत में आधुनिक शिक्षा के सबसे प्राचीन संस्थानों में से एक है। मुळा-मुठा नदीयोंपे काफी संशोधन इस काॅलेजमे हुआ है.

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तातार भाषा

यान्या इमल्यै (विकसित अरबी लिपि) में लिखी तातार भाषा तातार भाषा (तातार: татар теле, तातार तेले; अंग्रेज़ी: Tatar language) रूस के तातारस्तान और बश्कोरतोस्तान के तातार लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक तुर्की भाषा है। मध्य एशिया, युक्रेन, पोलैंड, तुर्की, फ़िनलैंड और चीन में भी कुछ तातार समुदाय इसे बोलते हैं। ध्यान दें कि युक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र में एक 'क्रीमियाई तातार' नामक भाषा बोली जाती है जो इस तातार भाषा से भिन्न हैं, हालांकि दोनों भाषाएँ भाषावैज्ञानिक नज़रिए से सम्बन्ध रखती हैं। सन् २००२ में अनुमानित ६५ लाख लोग यह तातार भाषा बोलते थे।, Ethnologue Languages of the world .

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ताई-कादाई भाषाएँ

ताई-कादाई भाषाओँ का फैलाव ताई-कादाई भाषाएँ (Tai-Kadai), जिन्हें दाई, कादाई और क्रा-दाई भी कहा जाता है, पूर्वोत्तर भारत, दक्षिण चीन और दक्षिण-पूर्वी एशिया में बोली जाने वाली सुरभेदी भाषाओँ का एक समूह है। इनमें थाई भाषा (थाईलैंड की राष्ट्रभाषा) और लाओ भाषा (लाओस की राष्ट्रभाषा) शामिल है। दुनिया भर में लगभग १० करोड़ लोग ताई-कादाई भाषाएँ बोलते हैं। ऍथनोलॉग भाषा-सूची के मुताबिक़ विश्व में ९२ ताई-कादाई भाषाएँ बोली जाती हैं जिनमें से ७६ इस भाषा-परिवार की काम-ताई (Kam-Tai) शाखा की सदस्य हैं। दक्षिण-पूर्वी चीन के गुइझोऊ और हाइनान प्रान्तों में इन भाषाओँ की सबसे ज़्यादा विविधता मिलती है, जिस से भाषावैज्ञानिकों का अनुमान है कि शायद वही इस भाषा-परिवार की गृह-भूमि है जहाँ से यह आसपास के अन्य इलाक़ों में फैली।, Anthony Van Nostrand Diller, Psychology Press, 2008, ISBN 978-0-7007-1457-5,...

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ताइवानी आदिवासी

ताइवानी आदिवासी (अंग्रेज़ी: Taiwanese aborigines, ताइवानीज़ अबोरिजीन्ज़; चीनी: 臺灣原住民, ताइवान युआनझूमिन) ताइवान के मूल निवासी हैं। वे एक ऑस्ट्रोनीशियाई समुदाय हैं और फ़िलिपीन्ज़, मलेशिया, इण्डोनेशिया, माडागास्कर तथा ओशिआनिया के अन्य ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ बोलने वाले समुदायों से अनुवांशिक (जेनेटिक) व भाषीय सम्बन्ध रखते हैं। ताइवानी आदिवासी चीन के हान चीनी लोगों से बिलकुल भिन्न हैं और इतिहासकारों का अनुमान है कि वे ताइवान पर पिछ्ले ८,००० वर्षों से बसे हुए हैं। इनकी मूल बोलियाँ फ़ोर्मोसी भाषाएँ कहलाती हैं। सन् २०१४ में ताइवान की सरकार ने इनकी कुल आबादी ५,३३,६०० अनुमानित की गई थी जो ताइवान की पूरी जनसंख्या का २.३% था। .

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तिब्बती-किन्नौरी भाषाएँ

तिब्बती-किन्नौरी भाषाएँ (Tibeto-Kanauri languages) या भोटी भाषाएँ (Bodic) या भोटिया-हिमालियाई (Bodish–Himalayish) या पश्चिमी तिब्बती-बर्मी (Western Tibeto-Burman) चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार की एक प्रस्तावित माध्यमिक श्रेणी है जिसमें तिब्बताई भाषाएँ और किन्नौरी भाषा की सभी उपभाषाएँ शामिल हैं। यह भारत, तिब्बत व नेपाल में बोली जाती हैं। भाषावैज्ञानिकों में इस श्रेणीकरण को लेकर विवाद है। .

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तगालोग भाषा

तगालोग दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश में बोली जाने वाली ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा परिवार की मलय-पोलेनीशियाई शाखा की एक भाषा है। इसे फ़िलिपीन्ज़ के २५% लोग मातृभाषा के रूप में और उस देश के अधिकांश लोग द्वितीय भाषा के रूप में बोलते हैं, जो कि फ़िलिपीन्ज़ की किसी भी अन्य भाषा से अधिक है। अंग्रेज़ी के साथ-साथ, तगालोग को फ़िलिपीन्ज़ की राजभाषा होने का दर्जा प्राप्त है। .

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तंत्रिका विज्ञान

तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience) तन्त्रिका तन्त्र के वैज्ञानिक अध्ययन को कहते हैं। पारम्परिक रूप से यह जीवविज्ञान की शाखा माना जाता था लेकिन अब रसायन शास्त्र, संज्ञान शास्त्र, कम्प्यूटर विज्ञान, अभियान्त्रिकी, भाषाविज्ञान, गणित, आयुर्विज्ञान, आनुवंशिकी और अन्य सम्बन्धित विषयों (जैसे कि दर्शनशास्त्र, भौतिकी और मनोविज्ञान) के अंतर्विषयक सहयोग द्वारा परिभाषित है। तंत्रिका जीवविज्ञान (neurobiology) और तंत्रिका विज्ञान (neuroscience) को अक्सर एक ही अर्थ वाला माना जाता है हालाँकि यह सम्भव है कि भविष्य में जीवों से बाहर भी तंत्रिका व्यवस्था बनाई जा सके और उस सन्दर्भ में इन दोनों नामों में अंतर होगा। .

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तुलनात्मक साहित्य

तुलनात्मक साहित्य (Comparative literature) वह विद्या-शाखा है जिसमें दो या अधिक भिन्न भाषायी, राष्ट्रीय या सांस्कृतिक समूहों के साहित्य का अध्ययन किया जाता है। तुलना इस अध्ययन का मुख्य अंग है। साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन व्यापक दृष्टि प्रदान करता है। संकीर्णता के विरोध में व्यापकता आज के विश्व-मनुष्य की आवश्यकता है। हेनरी एच.एच.रेमाक ने तुलनात्मक साहित्य की परिभाषा इस प्रकार की है- .

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तुषारी भाषाएँ

एक तख़्ती पर ब्राह्मी लिपि में लिखी हुई तुषारी 'बी' भाषा (कूचा, आक़्सू विभाग, शिनजियांग प्रान्त, चीन से मिली) तुषारी पांडुलिपि का अंश तुषारी या तुख़ारी (अंग्रेज़ी: Tocharian, टोचेरियन; यूनानी: Τόχαροι, तोख़ारोई) मध्य एशिया की तारिम द्रोणी में बसने वाले तुषारी लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की भाषाएँ थीं जो समय के साथ विलुप्त हो गई। एक तुर्की ग्रन्थ में तुषारी को 'तुरफ़ानी भाषा' भी बुलाया गया था। इतिहासकारों का मानना है कि जब तुषारी-भाषी क्षेत्रों में तुर्की भाषाएँ बोलने वाली उईग़ुर लोगों का क़ब्ज़ा हुआ तो तुषारी भाषाएँ ख़त्म हो गई। तुषारी की लिपियाँ भारत की ब्राह्मी लिपि पर आधारित थीं और उन्हें तिरछी ब्राह्मी (Slanted Brahmi) कहा जाता है।, Florian Coulmas, Wiley-Blackwell, 1999, ISBN 978-0-631-21481-6,...

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तुंगुसी भाषा-परिवार

उत्तर-पूर्वी एशिया में तुंगुसी भाषाओं का विस्तार एवेंकी भाषा में कुछ लिखाई, जो साइबेरिया में बोली जाने वाली एक तुंगुसी भाषा है मांचु भाषा में, जो एक तुंगुसी भाषा है तुंगुसी भाषाएँ (अंग्रेज़ी: Tungusic languages, तुन्गुसिक लैग्वेजिज़) या मांचु-तुंगुसी भाषाएँ पूर्वी साइबेरिया और मंचूरिया में बोली जाने वाली भाषाओं का एक भाषा-परिवार है। इन भाषाओं को मातृभाषा के रूप में बोलने वालुए समुदायों को तुंगुसी लोग कहा जाता है। बहुत सी तुंगुसी बोलियाँ हमेशा के लिए विलुप्त होने के ख़तरे में हैं और भाषावैज्ञानिकों को डर है कि आने वाले समय में कहीं यह भाषा-परिवार पूरा या अधिकाँश रूप में ख़त्म ही न हो जाए। बहुत से विद्वानों के अनुसार तुंगुसी भाषाएँ अल्ताई भाषा-परिवार की एक उपशाखा है। ध्यान दीजिये कि मंगोल भाषाएँ और तुर्की भाषाएँ भी इस परिवार कि उपशाखाएँ मानी जाती हैं इसलिए, अगर यह सच है, तो तुंगुसी भाषाओँ का तुर्की, उज़बेक, उइग़ुर और मंगोल जैसी भाषाओं के साथ गहरा सम्बन्ध है और यह सभी किसी एक ही आदिम अल्ताई भाषा की संतानें हैं।, Martine Irma Robbeets, Otto Harrassowitz Verlag, 2005, ISBN 978-3-447-05247-4 तुंगुसी भाषाएँ बोलने वाली समुदायों को सामूहिक रूप से तुंगुसी लोग कहा जाता है। .

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त्रुटि

मोंटपार्नासे, फ्रांस, में ट्रेन का मलबा,1895 शब्द त्रुटि के कई अर्थ है और सापेक्ष रूप से इसे कैसे लागू किया जाता हैं इस आधार पर इसके कई उपयोग भी हैं। लैटिन भाषा के शब्द एरर (error यानि त्रुटि) का वास्तविक अर्थ है "भटकना" या "इधर उधर घूमना".

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तेन्ग्री

यहाँ पुरानी तुर्की लिपि में 'तेन्ग्री' लिखा हुआ है गुयुक ख़ान द्वारा १२४६ ई में इसाई पोप को लिखे पत्र पर लगी मोहर में पहले चार शब्द है 'मोन्गके तेन्ग्री- यिन कुचुन्दुर' यानि 'सनातन आकाश की शक्ति के अधीन' ख़ान तेन्ग्री पर्वत तेन्ग्री (Tengri) प्राचीन तुर्क लोगों और मंगोल लोगों के धर्म के मुख्य देवता थे। इनकी मान्यता शियोंगनु और शियानबेई जैसे बहुत सी मंगोल और तुर्की समुदायों में थी और इनके नाम पर उन लोगों के धर्म को तेन्ग्री धर्म (Tengriism) बुलाया जाता है। तुर्की लोगों की सबसे पहली ख़ागानत ने, जिसका नाम गोएकतुर्क ख़ागानत था, भी इन्हें अपना राष्ट्रीय देवता ठहराया था और उसके ख़ागान भी अपनी गद्दी पर विराजमान होने का कारण 'तेन्ग्री की इच्छा' बताते थे। तेन्ग्री को 'आकाश का देवता' या 'नीले आकाश का पिता' कहा जाता था। अक्सर मंगोल शासक अपने राज के पीछे 'सनातन नीले आकाश की इच्छा' होने की बात किया करते थे।, Zachary Kent, Enslow Publishers, 2007, ISBN 978-0-7660-2715-2,...

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थ़

थ़ की ध्वनि सुनिए - यह थ से भिन्न है थ़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है जिसके उच्चारण को अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में θ के चिन्ह से लिखा जाता है। मानक हिंदी और मानक उर्दू में इसका प्रयोग नहीं होता है, लेकिन हिंदी की कुछ पश्चिमी उपभाषाओं में इसका 'थ' के साथ सहस्वानिकी संबंध है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग पहाड़ी भाषों को देवनागरी में लिखने के लिए होता है। अंग्रेज़ी के कईं शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की 'थ़िन' (thin, यानि पतला)। .

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थियोडोर मोम्मसेन

थियोडोर मोम्मसेन थ्योडोर मामसन (३० नवंबर, सन् १८१७ ई० -- १ नवंबर, सन् १९०३ ई०।) जर्मन के पुरालेखविद् और इतिहासकार थे। १९ वीं शताब्दी के यूरोपीय विद्याजगत् में मामसन उस जाज्वल्यमान नक्षत्र की भाँति है जिसने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से अनेक क्षेत्रों को उद्भासित किया। सन् १९०२ ई० में उसे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कील विश्वविद्यालय में न्यायशास्त्र और भाषाविज्ञान के विद्यार्ही थे। सन् १८४२ ई० में डाक्टर की उपाधि प्राप्त की। १८४८ ई० में लाइपजिंग में रोमन विधि का प्राचार्य नियुक्त हुआ। १८५८ ई० से जीवनपर्यन्त बर्लिन विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास का प्राचार्य रहा। १८७२ ई० से १८८२ ई० तक प्रशा की पार्लिमेंट का भी सदस्य रहा और वहाँ उसने बिस्मार्क की गृहनीति की तीव्र आलोचना की। वह ने केवल महान् इतिहासकार था अपितु उच्च कोटि का पुरालेखविद्, न्यायवेत्ता, भाषाशास्त्रविद्, मुद्राशास्त्रज्ञ तथा साहित्यिक भी था। इतिहास में उसकी परम देन उसका ग्रंथ, 'रोम का इतिहास' है जो पाँच विशाल खंडो में प्रकाशित हुआ (१८५४-१८५६ ई०)। इसके अतिरिक्त रोमन विधि तथा अन्य विषयों पर भी उसने कई उच्च कोटि के ग्रंथों का प्रणयन किया। उसके समकालीन आंग्ल विद्वान् फ्रीमैन के अनुसार मामसन न केवल अपने ही काल का, परंतु सार्वकालिक दृष्टि से भी चरम कोटि का विद्वान् था।.

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द्वित्व

भाषाविज्ञान में जब किसी शब्द के मूल या स्टेम (stem) को दोहराया जाता है तो इसे द्वित्व (Reduplication) कहते हैं। मूल की पुनरावृत्ति हूबहू हो सकती है या मामूली परिवर्तन के साथ। 'साथ-साथ', 'कहाँ-कहाँ', 'धीरे-धीरे', 'खाना-वाना', 'चलते-चलते' आदि हिन्दी में प्रयुक्त कुछ द्वित्व हैं। विश्व की अनेकानेक भाषाओं और भाषा-समूहों में द्वित्व पाया जाता है। द्वित्व का प्रयोग बहुबचन बनाने, जोर देने, या नये शब्द गढ़ने के लिये किया जाता है। जब कोई वक्ता अधिक जोर देना या अलंकारिक भाषा का प्रयोग करना चाहता है तो वह द्वित्व का उपयोग करता है। /(एक साथ युग्म रूप में प्रयुक्त शब्द द्वित्व शब्द कहलाते हैं)\ .

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देवनागरी

'''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि .

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नाभिकीय मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ

नाभिकीय मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ (Nuclear Malayo-Polynesian languages) ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा-परिवार की एक प्रस्तावित शाखा है, जो इण्डोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर एक मूल भाषा से उत्पन्न होकर भौगोलिक विस्तार करती रहीं और जिनमें कई संतान भाषाएँ विकसित होती रहीं। इन्हें नाभिकीय (nuclear, न्यूक्लीयर) इसलिए कहा जाता है क्योंकि भाषावैज्ञानिकों का मानना है कि विश्व की लगभग सभी मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ इसी केन्द्र से विकसित हुई हैं। .

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निहाली भाषा

निहाली भाषा पश्चिम-मध्य भारत के मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र राज्यों के कुछ छोटे भागों में बोली जाने वाली एक भाषा है। यह एक भाषा वियोजक है, यानि विश्व की किसी भी अन्य भाषा से कोई ज्ञात जातीय सम्बन्ध नहीं रखती और अपने भाषा-परिवार की एकमात्र ज्ञात भाषा है। भारत में इसके अलावा केवल जम्मू और कश्मीर की बुरुशस्की भाषा ही दूसरी ज्ञात भाषा वियोजक है। निहाली समुदाय की संख्या लगभग ५,००० है लेकिन सन् १९९१ की जनगणना में इनमें से केवल २,००० ही इस भाषा को बोलने वाले गिने गए थे। निहाली समुदाय ऐतिहासिक रूप से कोरकू समुदाय से सम्बन्धित रहा है और उन्हीं के गाँवों में बसता है। इस कारण से निहाली बोलने वाले बहुत से लोग कोरकू भाषा में भी द्विभाषीय होते हैं। निहाली बोली में बहुत से शब्द आसापास की भाषाओं से लिए गए हैं और साधारण बोलचाल में लगभग ६०-७०% शब्द कोरकू के होते हैं। भाषावैज्ञानिकों के अनुसार मूल निहाली शब्दावली के केवल २५% शब्द ही आज प्रयोग में हैं। .

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न्यायालयिक भाषाविज्ञान

न्यायालयिक भाषाविज्ञान या न्याय-भाषाविज्ञान (फोरेंसिक भाषाविज्ञान), अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है जो भाषावैज्ञानिक ज्ञान, विधियों तथा अन्तर्दृष्टि का उपयोग करके न्यालयों में अपराध-अन्वेषण में सहायक होता है। न्यायालयों में काम करने वाले भाषावैज्ञानिक निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में इसका उपयोग करते हैं-;.

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नृजातीय भाषाविज्ञान

जब से मानव वैज्ञानिक अध्ययन में भाषाविज्ञान और भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण में मानवविज्ञान की सहायता ली जाने लगी है, मानवविज्ञानश्रित भाषाविज्ञान को एक विशिष्ट कोटि का अध्ययन माना जाने लगा है। इसमें ऐसी भाषाओं का अध्ययन किया जाता है जिनका अपना कोई लिखित रूप न हो और न उनपर पहले विद्वानों ने कार्य ही किया हो। अर्थात् ज्ञात संस्कृति से अछूत आदिम जातियों की भाषाओं का वर्णनात्मक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन इस कोटि के अंतर्गत आता है। इसका एक रूप मानवजाति भाषा विज्ञान (Ethno-linguistics) कहलाता है। अलबर्ट गलेशन (Albert Gallation 1761-1840) ने भाषा आधार पर अमरीकी वर्गों का विभाजन किया। जे0 ड़ब्ल्यू पावेल (1843-1902) और डी0 जी0 ब्रिंटन (1837-1890) ने अमरीकी इंडियनों की भाषा का अध्ययन किया। हबोल्ट (1767-1835) के अध्ययन के बाद 19वीं शताब्दी के मध्य में मानव जाति-विज्ञान और भाषाविज्ञान में घनिष्ठ संबंध स्थापित हुआ और तदनंतर इस क्षेत्र में अधिकाधिक कार्य होने लगा। सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य सपीर का है जो (Time perspective in Aborigina American Culture) (1916) के नाम से सामने आया। वूर्फ (Whorf) होपी ने बोली पर कार्य किया है। ब्लूमफील्ड ने केंद्रीय एल्गोंकियन, सी0 मीनॉफ ने बांटू और ओ0 डैम्पोल्फ (O Dempwlaff) ने मलाया पोलेनीशियन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया। ली (Lee) का विंटो पर और हैरी (Harry Hoijer) का नाहोवो (Nahovo) पर किया गया कार्य भाषा और संस्कृति के पारस्परिक संबंध पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। इस प्रकार अमेरिकी स्कूल के भाषावैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में बड़ा कार्य किया है। अमेरिका से ही (Anthropological Linguistics) नामक पत्रिका निकलती है जिसमें इस क्षेत्र में होनेवाला अनुसंधानकार्य प्रकाशित होता रहता है। श्रेणी:मानवशास्त्र श्रेणी:भाषा-विज्ञान.

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नूरिस्तानी भाषाएँ

नूरिस्तानी भाषाएँ (Nuristani languages) हिन्द-ईरानी भाषा-परिवार का एक उपपरिवार है जिसकी सदस्य भाषाएँ पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में और पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के चित्राल ज़िले के कुछ हिस्सों में बोली जाती हैं। इन्हें लगभग १,३०,००० लोग बोलते हैं जो नूरिस्तानी या कलश कहलाते हैं। कुछ भाषावैज्ञानिक इन्हें हिन्द-आर्य भाषा-परिवार की दार्दी शाखा की उपशाखा समझा है लेकिन अन्य इन्हें ईरानी भाषाओं और हिन्द-आर्य भाषाओं के साथ हिन्द-ईरानी भाषा-परिवार की एक अलग तीसरी श्रेणी माना जाता है।, Andrew Dalby, pp.

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नोआम चाम्सकी

एवरम नोम चोम्स्की (हीब्रू: אברם נועם חומסקי) (जन्म 7 दिसंबर, 1928) एक प्रमुख भाषावैज्ञानिक, दार्शनिक, by Zoltán Gendler Szabó, in Dictionary of Modern American Philosophers, 1860–1960, ed.

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पति

पति बहुत-सी हिन्द-ईरानी भाषाओँ में 'स्वामी' या 'मालिक' के लिए एक शब्द है। यह संस्कृत, हिन्दी, अवस्ताई फ़ारसी और बहुत सी अन्य भाषाओँ में देखा जाता है।, Roger D. Woodard, University of Illinois Press, 2006, ISBN 978-0-252-02988-2,...

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पदविज्ञान

भाषाविज्ञान में रूपिम की संरचनात्मक इकाई के आधार पर शब्द-रूप (अर्थात् पद) के अध्ययन को पदविज्ञान या रूपविज्ञान (मॉर्फोलोजी) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, 'शब्द' को 'पद' में बदलने की प्रक्रिया के अध्ययन को रूपविज्ञान कहा जाता है। रूपविज्ञान, भाषाविज्ञान का एक प्रमुख अंग है। इसके अंतर्गत पद के विभिन्न अंशों - मूल प्रकृति (baseform) तथा उपसर्ग, प्रत्यय, विभक्ति (affixation) - का सम्यक् विश्लेषण किया जाता है इसलिये कतिपय भारतीय भाषाशास्त्रियों ने पदविज्ञान को "प्रकृति-प्रत्यय-विचार" का नाम भी दिया है। भाषा के व्याकरण में पदविज्ञान का विशेष महत्त्व है। व्याकरण/भाषाविज्ञानी वाक्यों का वर्णन करता है और यह वर्णन यथासम्भव पूर्ण और लघु हो, इसके लिए वह पदों की कल्पना करता है। अतः उसे पदकार कहा गया है। पदों से चलकर ही हम वाक्यार्थ और वाक्योच्चारण तक पहुंचते हैं। "किसी भाषा के पदविभाग को ठीक-ठीक हृदयंगम करने का अर्थ है उस भाषा के व्याकरण का पूरा ज्ञान"। .

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पर्या भाषा

पर्या (Parya; रूसी: Парья язык) उज़्बेकिस्तान और तजिकिस्तान के कुछ भागों में बोली जाने वाली मध्य हिन्द-आर्य भाषा है। यह हिन्दी की एक उपभाषा है। इस भाषा की विशेषताओं के अध्ययन एवं उनके दस्तावेजीकरण पर सोवियत भाषावैज्ञानिक आई एम ओरांस्की ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है। यह भाषा ब्रजभाषा, हरियाणवी तथा राजस्थानी बोलियों पर आधारित है तथा उजबेक, ताजिक एवं रूसी भाषाओं से प्रभावित है। विश्व भर में इसके लगभग २५०० बोलने वाले हैं। .

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पाठसंग्रह

भाषाविज्ञान में बड़े और संरचित (structured) पाठ के समुच्चय को पाठसंग्रह या कॉर्पस (corpus) कहते हैं। पाठसंग्रह के बहुत से उपयोग हैं। जैसे किसी भाषा में प्रयुक्त शब्दों की बारंबारता निकालना, किसी भाषा में प्रयुक्त सर्वाधिक १००० शब्दों की जानकारी निकालना, कोई शब्द किस-किस प्रकार से प्रयुक्त होता है आदि। .

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पारंपरिक संगीत

ग्रैमी अवार्ड्स की शब्दावली में अब पारंपरिक संगीत शब्द का प्रयोग "लोक संगीत " के स्थान पर किया जाता है। इस बदलाव का पूर्ण विवरण विश्व संगीत लेख के शब्दावली अनुभाग में पाया जा सकता है। अन्य संगठनों ने इसी तरह के परिवर्तन किए हैं, हालांकि गैर-शैक्षणिक हलकों में, तथा सीडी बेचने वाली कई वेबसाइटों पर, "लोक संगीत" वाक्यांश का प्रयोग बहुत सारे अर्थों में किया जाता है। .

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पांडुरंग दामोदर गुणे

पांडुरंग दामोदर गुणे (1884-1922 ई.) तुलनात्मक भाषाशास्त्री। 20 मई 1884 ई. को अहमदनगर में जन्म। बंबई विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.

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पिएर जोसेफ प्रूधों

300px पिएर जोसेफ प्रूधों (Pierre Joseph Proudhon; १८०९-१८६५) फ्रांसीसी अराजकतावादी विचारक था। .

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प्रतिवर्तन

प्रकृति में प्रतिवर्तन प्रतिवर्तन (Recursion) का सामान्य अर्थ है - किसी वस्तु या कार्य का बार-बार उसी रूप में दोहराया जाना। अनेकों विधाओं में इस शब्द का प्रयोग होता है और उनमें इसके भिन्न-भिन्न अर्थ और परिभाषाएँ हैं। उदाहरण के लिए, गणित एवं कम्प्यूटर विज्ञान में जब किसी फलन की परिभाषा में उसी फलन का उपयोग हो तो इसे प्रतिवर्तन कहा जाता है। प्रतिवर्तन का सर्वाधिक उपयोग गणित में ही होता है। गणित तथा तथा संगणक विज्ञान के अतिरिक्त भाषाविज्ञान, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, जीवविज्ञान, तथा कला में भी विविध रूपों में प्रतिवर्तन देखा जा सकता है।; प्रतिवर्तन के कुछ सामान्य उदाहरण.

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प्रायोगिक भाषाविज्ञान

प्रायोगिक भाषाविज्ञान या संकेतप्रयोगविज्ञान (Pragmatics), भाषाविज्ञान का एक उपक्षेत्र है जिसमें इस बात का अध्यन किया जाता है कि प्रसंग (context) के अनुसार अर्थ कैसे बदलते हैं। श्रेणी:भाषा-विज्ञान *.

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प्राकृतिक भाषा

तंत्रिका मनोविज्ञान, भाषा विज्ञान और भाषा के दर्शन में, प्राकृतिक भाषा ऐसी भाषा है जो किसी योजना या अपने स्वयं के पूर्वचिन्तन के बिना मनुष्य के दिमाग के एक समूह में विकसित हुई। इसलिए, लगभग हमेशा, मनुष्य एक दूसरे से संवाद करने के लिये इनका उपयोग करते हैं। श्रेणी:भाषा-विज्ञान श्रेणी:भाषा श्रेणी:विज्ञान.

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प्राकृतिक भाषा संसाधन

स्वचालित ऑनलाइन सहायक आजकल बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। प्राकृतिक भाषा संसाधन (एनएलपी) कम्प्यूटर विज्ञान, कृत्रिम बुद्धि तथा भाषा विज्ञान का एक क्षेत्र है तथा मानव (प्राकृतिक) भाषाओं और कंप्यूटर के अन्तःक्रियाओं से सम्बन्धित है। प्राकृतिक भाषा संसाधन, कम्प्यूटर के द्वारा, मानव द्वारा कही या लिखी भाषा से अर्थ निकालने का काम करता है। इसके अलावा प्राकृतिक भाषा का सृजन (लिखित या वाचित रूप में) करने के लिए भी एनएलपी प्रयुक्त होता है। .

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प्रजनक व्याकरण

प्रजनक व्याकरण (Generative grammar) एक भाषावैज्ञानिक सिद्धान्त है जो यह मानता है कि व्याकरण कुछ नियमों का एक ऐसा समूह है जो शब्दों का ठीक-ठीक वही क्रम उत्पन्न करेगा जो किसी प्राकृतिक भाषा में 'व्याकरनसम्मत वाक्य' के रूप में विद्यमान हों। 1965 में नोआम चाम्सकी ने अपनी पुस्तक 'ऐस्पेक्ट्स ऑफ द थिअरी ऑफ सिन्टैक्स' में लिखा था कि पाणिनीय व्याकरण (अष्टाध्यायी) 'प्रजनक व्याकरण' के आधुनिक परिभाषा के अनुसार, एक प्रजनन व्याकरण है। .

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प्रकार-टोकन अंतर

प्रकार-टोकन अंतर (type–token distinction) तर्कशास्त्र, भाषाविज्ञान, अधितर्कशास्त्र, अक्षरकला और कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए प्रयोग होता है। मसलन अगर "हम दोनों एक ही गाड़ी चलाते हैं" कहा जाए, तो यह स्पष्ट नहीं है कि "हम दोनों एक ही प्रकार की गाड़ी चलाते हैं" या "हम दोनों की गाड़ी एक ही वस्तु है"। इसके स्पष्टिकरण के लिए प्रकार और टोकन (वस्तु) विशेष में अंतर करना आवश्यक है। .

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पूर्वोत्तर कॉकसी भाषाएँ

पूर्वोत्तर कॉकसी भाषाएँ (Northeast Caucasian languages) या नाख़-दाग़िस्तानी भाषाएँ (Nakh-Daghestanian languages) कॉकस क्षेत्र में रूस के दाग़िस्तान, चेचन्या और इंगुशेतिया गणतंत्रों तथा उत्तरी अज़रबैजान में बोला जाने वाला एक भाषा परिवार है। यह उत्तर कैस्पियाई भाषाएँ (North Caspian languages) भी कहलाती हैं। जहाँ तक भाषावैज्ञानिकों को ज्ञात है, यह भाषा-परिवार विश्व के अन्य सभी भाषा परिवारों से बिलकुल भिन्न है, हालांकि इनकी भाषाओं में अन्य भाषा-परिवारों के कुछ ऋणशब्द ज़रूर प्रयोग होते हैं। .

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फर्दिनान्द द सस्यूर

फर्दिनान्द द सस्यूर फर्डिनांद द सस्यूर (Ferdinand de Saussure) को आधुनिक भाषाविज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है। .

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फहमीदा हुसैन

डॉ फहमीदा हुसैन (मूल नाम: फहमीदा मेमन; जन्म: ०५ जुलाई, १९४८) (ڊاڪٽر فهميده حسين ميمڻ) सिन्धी साहित्यकार, शिक्षाविद एवं शिक्षक हैं। वे पाकिस्तान की सुप्रसिद्ध लेखिका, विद्वान, भाषाविद तथा बुद्धिजीवी हैं। उन्होने साहित्य, भाषाविज्ञान, स्त्री अध्ययन, तथा नृविज्ञान के क्षेत्र में कार्य किया है। उन्हें शाह अब्दुल लतीफ़ के काव्य में विशेषज्ञता प्राप्त है। सन २००८ से २०१५ तक वे सिन्धी भाषा प्राधिकरण (सिन्धी लैंग्वेज एथारिटी) की अध्यक्षा थीं। डॉ फहमीदा हुसैन का जन्म पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के हैदराबाद जिले के टंडो जाम में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद याकून 'नियाज' भी विद्वान थे जिन्होने हाफ़िज़ शिराज़ी के काव्य का फारसी से सिन्धी भाषा में अनुवाद किया था। उनके भाई सिराजुल हक़ मेमन भी एक प्रसिद्ध लेखक एवं शोधकर्ता थे। .

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फ़िलिपीनी भाषाएँ

फ़िलिपीनी भाषाएँ (Philippine languages) ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा-परिवार की मलय-पोलेनीशियाई शाखा के अंतर्गत एक प्रस्तावित भाषा-परिवार है जिसमें फ़िलिपीन्ज़ और उत्तरी सुलावेसी की लगभग सभी भाषाएँ शामिल हैं, सिवाय समा-बजाउ भाषा-परिवार और पलावन की बोलियों को छोड़कर। तगालोग भाषा सबसे अधिक बोली जाने वाली फ़िलिपीनी भाषा है। हालांकि ताइवान ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा-परिवार की स्रोतभूमि मानी जाती है और फ़िलिपीन्ज़ उसके पास स्थित है, फिर भी जहाँ ताइवान में फ़ोर्मोसी भाषाओं में बहुत आपसी भिन्नताएँ मिलती है वहाँ फ़िलिपीनी भाषाएँ एक-दूसरे से बहुत समीपी हैं। यह देखकर भाषावैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि ऐसी विविधता कभी फ़िलिपीन्ज़ में भी रही होगी लेकिन आधुनिक फ़िलिपीनी भाषाओं की किसी पूर्वजा भाषा ने विस्तार करके इसे मिटा डाला।The Austronesian Languages of Asia and Madagascar, K। Alexander Adelaar and Nikolaus Himmelmann, Psychology Press, 2005, ISBN 9780700712861 भाषावैज्ञानिक समीक्षा से पता चलता है कि फ़ोर्मोसी भाषाओं के बाद फ़िलिपीनी भाषाओं में ही ऑस्ट्रोनीशियाई के सर्वाधिक प्राचीन लक्षण देखने को मिलते हैं, यानि ताइवान से बाहर फैलते हुए शायद फ़िलिपीन्ज़ ही ऑस्ट्रोनीशियाई का सर्वप्रथम पड़ाव था। .

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फ़ोर्मोसी भाषाएँ

फ़ोर्मोसी भाषाएँ (Formosan languages) ताइवान के आदिवासियों की मूल भाषाएँ हैं, जो कि ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा-परिवार की सदस्य हैं। ताइवानी आदिवासी जनसंख्या सन् २०१४ में पाँच लाख से कुछ अधिक गिनी गई थी जो उस द्वीप की कुल आबादी का लगभग २.३% है, लेकिन इस समुदाय के केवल कुछ ही लोग इन भाषाओं को अब बोलते हैं - अन्यों ने चीनी भाषा का प्रयोग आरम्भ कर दिया है। २६ ज्ञात फ़ोर्मोसी भाषाओं में से १० विलुप्त हो चुकी हैं, ४ या ५ विलुप्त होने की कागार पर हैं और बाक़ी में से बहुत-सी संकटग्रस्त हैं। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से फ़ोर्मोसी भाषाएँ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कई भाषाविद् मानते हैं कि ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओं की दस मुख्य शाखाओं में से ९ ताइवान की इन फ़ोर्मोसी भाषाओं में मिलती हैं और केवल एक शाखा (मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ, जिसकी १२०० सदस्य भाषाएँ हैं) ही ताइवान से बाहर मिलती है। इस से यह संकेत मिलता है कि ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ जो अब अफ़्रीका के तट के पास स्थित माडागास्कर देश से लेकर न्यू ज़ीलैण्ड की माओरी भाषा और संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई द्वीपों तक विस्तृत है, उनकी सांझी पूर्वज भाषा का मूल जन्मस्थान ताइवान ही है। .

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फ्रेडरिक नीत्शे

फ्रेडरिक नीत्शे फ्रेडरिक नीत्शे (Friedrich Nietzsche) (15, अक्टू, 1844 से 25, अगस्त 1900) जर्मनी का दार्शनिक था। मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद एवं परिघटनामूलक चिंतन (Phenomenalism) के विकास में नीत्शे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्तिवादी तथा राज्यवादी दोनों प्रकार के विचारकों ने उससे प्रेरणा ली है। हालाँकि नाज़ी तथा फासिस्ट राजनीतिज्ञों ने उसकी रचनाओं का दुरुपयोग भी किया। जर्मन कला तथा साहित्य पर नीत्शे का गहरा प्रभाव है। भारत में भी इक़बाल आदि कवियों की रचनाएँ नीत्शेवाद से प्रभावित हैं। .

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बाबूराम सक्सेना

डॉ॰ बाबूराम सक्सेना (1897 --) भारत के एक भाषावैज्ञानिक थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष तथा एवं उपकुलपति रहे। १९६९ से १९७५ तक विज्ञान परिषद् प्रयाग के सभापति रहे। .

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बाख़्त्री भाषा

कुषाण सम्राट कनिष्क का सन् १५० ईसवी के लगभग ज़र्ब किया गया सिक्का, जिसपर बाख़्त्री में लिखा है ' ϷΑΟΝΑΝΟϷΑΟ ΚΑΝΗϷΚΙ ΚΟϷΑΝΟ', शाओनानोशाओ कनिष्की कोशानो', यानि 'शहनशाह कनिष्क कुषाण' बाख़्त्री (फ़ारसी) या बैक्ट्रीयाई (अंग्रेज़ी: Bactrian) प्राचीनकाल में मध्य एशिया के बाख़्तर (बैक्ट्रीया) क्षेत्र में बोली जाने वाली एक पूर्वी ईरानी भाषा थी जो समय के साथ विलुप्त हो गई। भाषावैज्ञानिक नज़रिए से बाख़्त्री के पश्तो, यिदग़ा और मुंजी भाषाओँ के साथ गहरे सम्बन्ध हैं। यह प्राचीन सोग़दाई और पार्थी भाषाओं से भी मिलती-जुलती थी। बाख़्त्री को लिखने के लिया ज़्यादातर यूनानी लिपि इस्तेमाल की जाती थी, इसलिए इस कभी-कभी 'यूनानी-बाख़्त्री' (या 'ग्रेको-बाख़्त्री') भी कहा जाता है।, Vadim Mikhaĭlovich Masson, UNESCO, 1994, ISBN 978-92-3-102846-5,...

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बइ भाषा

बइ भाषा या बइप भाषा (चीनी: 白語, बइ यु; अंग्रेज़ी: Bai या Baip language) चीन के युन्नान प्रान्त और उसके कुछ पड़ोसी क्षेत्रों, में बइ लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार की एक बोली है। इसे सन् २००३ में लगभग १२,४०,००० लोग अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते थे। अन्य चीनी-तिब्बती भाषाओं की तरह यह भी एक सुरभेदी भाषा है और इसमें आठ सुरों का प्रयोग होता है।, S. Robert Ramsey, pp.

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बोधात्मक भाषाविज्ञान

बोधात्मक भाषाविज्ञान (Cognitive linguistics (CL)) भाषाविज्ञान की एक शाखा है। .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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भाषा

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .

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भाषा प्रयुक्ति

भाषाविज्ञान में भाषा प्रयुक्ति (register) किसी भाषा की वह भाषिका (variety, lect) होती है जो किसी विशेष सामाजिक परिस्थिति, सामाजिक वर्ग या लक्ष्य के लिए प्रयोग हो। मसलन औपचारिक स्थितियों में हिन्दी में "आप कल आइये" या "तू कल आना" के प्रयोग को ही सही व्याकरण समझा जाता है, जबकि दो किशोर मित्रों के बीच "तू कल आइयो" का प्रयोग भी एक भिन्न भाषा प्रयुक्ति के रूप में अक्सर होता है। इसी तरह अमेरिकी अंग्रेज़ी में "आए ऐम गोइंग टू टॉक टू माए फ़ादर" (I am going to talk to my father, अर्थ: मैं अपने पिता से बात करूँगा) सभ्य समाज में प्रयोग होने वाली औपचारिक भाषा प्रयुक्ति है जबकि "आएम गोन्ना टॉक टू माए ओल्ड मैन" (I'm gonna talk to my old man) ठीक वहीं अर्थ रखने वाली अनौपचारिक प्रयुक्ति है। .

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भाषा शुद्धतावाद

भाषा शुद्धतावाद (linguistic purism) या भाषा संरक्षणवाद (linguistic protectionism) ऐसी विचारधारा को कहते हैं जिसमें किसी भाषा के एक विशेष रूप या प्रकार को अन्य रूपों या प्रकारों से अधिक उत्कृष्ट समझा जाये। कुछ देशों में यह विचारधारा सरकार द्वारा स्थापित भाषा-अकादमियों द्वारा लागू की जाती है, मसलन फ़्रान्स में आकादेमी फ़्रान्सेस (Académie française) सरकार द्वारा स्थापित है। शुद्धतावादी अक्सर किसी भाषा में अन्य भाषाओं से हुए शब्द-प्रवेश और व्याकरण में हुए बदलावों का विरोध करते हैं, और यह विरोध अक्सर ऐसी किसी भाषा से होता है जिसके विस्तार या अधिक प्रभाव से शुद्धतावादियों को खतरा लगे। .

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भाषा की उत्पत्ति

भाषा की उत्पत्ति से आशय उस काल से है जब मानव ने बोलना आरम्भ किया और 'भाषा' सीखना आरम्भ किया। इस विषय में बहुत सी संकल्पनाएं हैं जो अधिकांशतः अनुमान पर आधारित हैं। मानव के इतिहास में यह काल इतना पहले आरम्भ हुआ कि इसके विकास से सम्बन्धित कोई भी संकेत मिलने असम्भव हैं। .

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भाषा उद्योग

भाषा उद्योग (language industry) उन कार्यकलापों को कहते हैं जो भाषाओं के कम्प्यूटर द्वारा प्रसंस्करण से सम्बन्धित उपकरणों (सॉफ्टवेयर आदि) एवं उत्पादों के डिजाइन, उत्पादन एवं विपणन आदि से सम्बन्ध रखते हैं। भाषा उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी के उद्योग का एक भाग है। इसमें सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी, भाषा विज्ञान, कृत्रिम बुद्धि एवं इन्टरफेस डिजाइन आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है। .

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भाषा-द्वैत

भाषाविज्ञान में, भाषा-द्वैत या समष्‍टि द्विभाषिता या द्विभाषारूपिता (diglossia) उस दशा का नाम है जिसमें एक ही भाषा-समुदाय दो अलग तरह की भाषाओं का व्यवहार करता है। सामान्य तौर पर प्रतिदिन बोली जाने वाली 'निम्न' भाषा के अलावा एक दूसरी 'अति परिमार्जित' ('उच्च भाषा') का प्रयोग किया जाता है। 'उच्च भाषा' का प्रयोग प्रायः साहित्य, औपचारिक शिक्षा, आदि में होता है किन्तु सामान्य बातचीत में नहीं। श्रेणी:भाषा *.

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भाषाविज्ञान का इतिहास

प्राचीन काल में भाषावैज्ञानिक अध्ययन मूलत: भाषा के सही व्याख्या करने की कोशिश के रूप में था। सबसे पहले चौथी शदी ईसा पूर्व में पाणिनि ने संस्कृत का व्याकरण लिखा। संसार के प्रायः सभी देशों में भाषा-चिन्तन होता रहा है। भारत के अतिरिक्त चीन, यूनान, रोंम, फ्रांस, इंग्लैंड, अमरीका, रूस, चेकोस्लाविया, डेनमार्क आदि देशों में भाषाध्ययन के प्रति अत्यधिक सचेष्टता बरती गई है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से भाषाध्ययन के इतिहास को मुख्यतः दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है: (१) पौरस्त्य (२) पाश्चात्य .

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भाषिका

भाषिका (lect) किसी भाषा या उपभाषा सतति का एक विशिष्ट रूप होती है। यह भाषा, उपभाषा, भाषा प्रयुक्ति, भाषा शैली या अन्य भाषा रूप हो सकती है। भाषाविज्ञान में किसी विशेष भाषा रूप को मानक भाषा कहकर उसे एक उच्च-प्रतीत होने वाला स्थान दिया जाता है जबकि अन्य रूपों को अक्सर उपभाषा कहकर उन्हें निम्न प्रतीत होने वाला स्थान दिया जाता है। इस कारणवश इनकी परिभाषा को लेकर भाषावैज्ञानिकों में आपसी विवाद लगा रहता है। "भाषिका" शब्द में ऐसा कोई विवाद नहीं होता और मानक भाषाएँ व उपभाषाएँ सभी भाषिका की परिभाषा में आ सकती हैं। .

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भावना

thumb भावना मूड, स्वभाव, व्यक्तित्व तथा ज़ज्बात और प्रेरणासे संबंधित है। अंग्रेजी शब्द 'emotion' की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द émouvoir से हुई है। यह लैटिन शब्द emovere पर आधारित है जहां e- (ex - का प्रकार) का अर्थ है 'बाहर' और movere का अर्थ है 'चलना'.

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मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ

मलय-पोलेनीशियाई भाषा-परिवार की उपशाखाएँ मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ (Malayo-Polynesian languages) ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा परिवार की एक उपश्रेणी है और विश्व में लगभग ३८.५५ करोड़ लोग मलय-पोलेनीशियाई भाषाएँ बोलते हैं। यह दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीप-राष्ट्रों में, प्रशांत महासागर के बहुत से द्वीपों में और एशिया की मुख्यभूमि के कुछ छोटे इलाक़ों में (जैसे कि मलेशिया में) बोली जाती हैं। इसके अलावा हिंद महासागर में स्थित माडागास्कर की मालागासी नामक राजभाषा भी एक मलय-पोलेनीशियाई भाषा है। अलग भाषावैज्ञानिक इस परिवार की भाषाएँ अलग-अलग तरह से गिनते हैं लेकिन कुछ के अनुसार ९६० ज्ञात ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओं में से ९४० मलय-पोलेनीशियाई शाखा में आती हैं।, pp.

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मस्बाते

मस्बाते (Masbate) दक्षिणपूर्वी एशिया के फ़िलिपीन्ज़ देश के बिकोल प्रशासनिक क्षेत्र में एक द्वीप है जो प्रशासनिक व्यवस्था में प्रान्त का दर्जा रखता है। प्रशासनिक रूप से यह लूज़ोन द्वीप दल का भाग है लेकिन जैवभौगोलिक और सामाजिक-भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यह विसाया द्वीप-दल का हिस्सा है। मस्बाते प्रान्त में, मुख्य मस्बाते द्वीप के अलावा, तिकाओ (Ticao) और बुरिआस (Burias) के द्वीप भी सम्मिलित हैं। .

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महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन

भाषाविज्ञान में महाप्राण व्यंजन वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें मुख से वायु-प्रवाह के साथ बोला जाता है, जैसे की 'ख', 'घ', 'झ' और 'फ'। अल्पप्राण व्यंजन वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें बहुत कम वायु-प्रवाह से बोला जाता है जैसे की 'क', 'ग', 'ज' और 'प'। देवनागरी लिपि में बहुत से वर्णों में महाप्राण और अल्पप्राण के जोड़े होते हैं जैसे 'क' और 'ख', 'च' और 'छ' और 'ब' और 'भ'। कुछ भाषाएँ हैं, जैसे के तमिल, जिनमें महाप्राण व्यंजन होते ही नहीं और कुछ भाषाएँ ऐसी भी हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन दोनों प्रयोग तो होतें हैं लेकिन बोलने वालों को दोनों एक से प्रतीत होतें हैं, जैसे अंग्रेज़ी।, Thomas Egenes, pp.

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मात्रात्मक भाषाविज्ञान

मात्रात्मक भाषाविज्ञान (Quantitative linguistics (QL)), भाषाविज्ञान का एक उपक्षेत्र है। इसमें सांख्यिकीय विधियों का उपयोग करते हुए भाषाओं का विश्लेषण किया जाता है। इसका उपयोग भाषा अधिगम, भाषा परिवर्तन, तथा प्राकृतिक भाषाओं की संरचना के अध्ययन में किया जाता है। मात्रात्मक भाषाविज्ञान का का प्रमुख उद्देश्य भाषा के नियमों के सूत्रीकरण (formulation) में होता है। श्रेणी:भाषा-विज्ञान.

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माधवी सरदेसाई

माधवी सरदेसाई एक भारतीय अकादमिक थी, जो कोंकणी साहित्यिक जर्नल जाग के संपादक थी और लेखिका भी, जो मुख्य रूप से गोवा में कोंकणी भाषा में काम करती थी। वह गोवा विश्वविद्यालय के कोंकणी विभाग की प्रमुख थी। इनके द्वारा रचित एक निबंध-संग्रह मंथन के लिये उन्हें सन् २०१४ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया। उन्होंने अंग्रेजी में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की कोंकणी पर लेक्सिकल प्रभावों की तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक और सांस्कृतिक अध्ययन पर। सरदेसाई ने अपनी प्राथमिक शिक्षा को कोंकणी माध्यम से किया था और चौगुले महाविद्यालय, मडगांव से अंग्रेजी और दर्शन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कैंसर के साथ एक निश्चित लड़ाई के बाद उनका २२ दिसंबर, २०१४ को निधन हो गया। .

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मानस शास्त्र

साइकोलोजी या मनोविज्ञान (ग्रीक: Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",ψυχήसाइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -λογία-लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health).

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मानव मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क को प्रदर्शित करता चित्र मानव मस्तिष्क के एम.आर.आई. प्रतिबिंब को प्रदर्शित करता चित्र मानव मस्तिष्क शरीर का एक आवश्यक अंग होने के साथ-साथ प्रकृति की एक उत्कृष्ट रचना भी है। देखने में यह एक जैविक रचना से अधिक नहीं प्रतीत होता। परन्तु यह हमारी इच्छाओं, संवेगों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, चेतना, ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व इत्यादि का केन्द्र भी होता है। मानव मस्तिष्क कैसे काम करता है यह एक ज्वलंत प्रश्न के रूप में जीवविज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित और दर्शनशास्त्र में स्थान रखता है। प्रस्तुत आलेख में मस्तिष्क के विभिन्न संरचनात्मक एवं क्रियात्मक पहलुओं पर चर्चा की गई है। 200px .

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मानविकी

सिलानिओं द्वारा दार्शनिक प्लेटो का चित्र मानविकी वे शैक्षणिक विषय हैं जिनमें प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मुख्यतः अनुभवजन्य दृष्टिकोणों के विपरीत, मुख्य रूप से विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक या काल्पनिक विधियों का इस्तेमाल कर मानवीय स्थिति का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन और आधुनिक भाषाएं, साहित्य, कानून, इतिहास, दर्शन, धर्म और दृश्य एवं अभिनय कला (संगीत सहित) मानविकी संबंधी विषयों के उदाहरण हैं। मानविकी में कभी-कभी शामिल किये जाने वाले अतिरिक्त विषय हैं प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी), मानव-शास्त्र (एन्थ्रोपोलॉजी), क्षेत्र अध्ययन (एरिया स्टडीज), संचार अध्ययन (कम्युनिकेशन स्टडीज), सांस्कृतिक अध्ययन (कल्चरल स्टडीज) और भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स), हालांकि इन्हें अक्सर सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के रूप में माना जाता है। मानविकी पर काम कर रहे विद्वानों का उल्लेख कभी-कभी "मानवतावादी (ह्यूमनिस्ट)" के रूप में भी किया जाता है। हालांकि यह शब्द मानवतावाद की दार्शनिक स्थिति का भी वर्णन करता है जिसे मानविकी के कुछ "मानवतावाद विरोधी" विद्वान अस्वीकार करते हैं। .

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माल्टो भाषा

मालटो या पहाड़िया पूर्व भारत के बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल व उड़ीसा राज्यों और बंग्लादेश के कुछ छोटे क्षेत्रों में बोली जाने वाली एक उत्तरी द्रविड़ भाषा है। इसकी कुमारभाग पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया नामक दो उपभाषाएँ हैं जिन्हें कुछ भाषावैज्ञानिक दो सम्बन्धित लेकिन स्वतंत्र भिन्न भाषाएँ समझते हैं। कुमारभाग पहाड़िया झारखंड और पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ सीमित क्षेत्रों में, जबकि सौरिया पहाड़िया बिहार और पश्चिम बंगाल में तथा बंग्लादेश के सीमित इलाक़ों में बोली जाती हैं। इन दोनों के शब्दों में ८०% की सामानता मापी गई है। मालटो भारत की सबसे उत्तरी द्रविड़ भाषा है।, Sanford B. Steever, pp.

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मांचु भाषा

तिब्बती लिपि में लिखा है और किनारों पर मांचु में, जो एक तुन्गुसी भाषा है मांचु या मान्चु (मांचु: ᠮᠠᠨᠵᡠ ᡤᡳᠰᡠᠨ, मांजु गिसुन) पूर्वोत्तरी जनवादी गणतंत्र चीन में बसने वाले मांचु समुदाय द्वारा बोली जाने वाली तुन्गुसी भाषा-परिवार की एक भाषा है। भाषावैज्ञानिक इसके अस्तित्व को ख़तरे में मानते हैं क्योंकि १ करोड़ से अधिक मांचु नसल के लोगों में से सिर्फ ७० हज़ार ही इसे अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। बाक़ियों ने चीनी भाषा को अपनाकर उसमें बात करना आरम्भ कर दिया है। मांचु भाषा की 'शिबे भाषा' नाम की एक अन्य क़िस्म चीन के दूर पश्चिमी शिनजियांग प्रान्त में भी मिलती है, जहाँ लगभग ४०,००० लोग उसे बोलते हैं। शिबे बोलने वाले लोग उन मांचुओं के वंशज हैं जिन्हें १६४४-१९११ ईसवी के काल में चलने वाले चिंग राजवंश के दौरान शिनजियांग की फ़ौजी छावनियों में तैनात किया गया था।, Edward J. M. Rhoads, University of Washington Press, 2001, ISBN 978-0-295-98040-9 मांचु एक जुरचेन नाम की भाषा की संतान है। जुरचेन में बहुत से मंगोल और चीनी शब्दों के मिश्रण से मांचु भाषा पैदा हुई। अन्य तुन्गुसी भाषाओँ की तरह मांचु में अभिश्लेषण (अगलूटिनेशन) और स्वर सहयोग (वावल हार्मोनी) देखे जाते हैं। मांचु की अपनी एक मांचु लिपि है, जिसे प्राचीन मंगोल लिपि से लिया गया था। इस लिपि की ख़ासियत है की यह ऊपर से नीचे लिखी जाती है। मांचु भाषा में वैसे तो लिंग-भेद नहीं किया जाता लेकिन कुछ शब्दों में स्वरों के इस्तेमाल से लिंग की पहचान होती है, मसलन 'आमा' का मतलब 'पिता' है जबकि 'एमे' का मतलब 'माता' है। .

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मिखाइल लोमोनोसोव

मिखाइल वैसेल्यवीच लोमोनोसोव (Mikhail Vasilyevich Lomonosov), (p;(19 नवम्बर 1711-15 अप्रैल 1765), एक रूसी बहुश्रुत, वैज्ञानिक और लेखक थे। उन्होने साहित्य, शिक्षा और विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी खोजों में से एक शुक्र का वायुमंडल था। उनके विज्ञान के क्षेत्र प्राकृतिक विज्ञान, रसायनशास्त्र, भौतिकी, खनिज विज्ञान, इतिहास, भाषाशास्त्र, प्रकाशिकी उपकरण एवं अन्य थे। लोमोनोसोव एक कवि थे और उन्होने आधुनिक रूसी साहित्यिक भाषा के गठन को प्रभावित भी किया था। .

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मंगोलों का गुप्त इतिहास

सन् १९०८ में चीनी भावचित्र लिपि में लिखी मंगोल भाषा में 'मंगोलों का गुप्त इतिहास' की एक प्रति मंगोलों का गुप्त इतिहास (प्राचीन मंगोल: 30px, मोंगग़्योल निग़ुचा तोबचियान; अंग्रेज़ी: Secret History of the Mongols) मंगोल भाषा की सबसे पुरानी साहित्य कृति है जो आधुनिक काल तक उपलब्ध है। चंगेज़ ख़ान की सन् १२२७ में हुई मृत्यु के बाद यह किसी अज्ञात लेखक द्वारा मंगोल शाही परिवार के लिए लिखी गई थी। माना जाता है कि इसे सबसे पहले प्राचीन मंगोल लिपि में लिखा गया था हालाँकि वर्तमान तक बची हुई इसकी प्रतियाँ सभी चीनी भावचित्रों में या उस से लिप्यान्तरण करके बनी हैं। यह चीनी लिपि में आधारित प्रतियाँ १४वीं शताब्दी में मिंग राजवंश द्वारा 'युआन राजवंश का गुप्त इतिहास' के नाम से मंगोल लिपि से लिप्यान्तरण करके बनवाई गई थी।, Herbert Franke, Cambridge University Press, 1994, ISBN 978-0-521-24331-5,...

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मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान

मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (मैसाचुसेट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी - एमआईटी) (Massachusetts Institute of Technology) कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में स्थित एक निजी शोध विश्वविद्यालय है। एमआईटी में 32 शैक्षणिक विभागों से युक्त पांच विद्यालय और एक महाविद्यालय है, जिसमें वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी अनुसंधान पर विशेष जोर दिया जाता है। एमआईटी दो निजी भूमि अनुदान विश्वविद्यालयों में से एक है और वह समुद्री-अनुदान और अंतरिक्ष-अनुदान विश्वविद्यालय भी है। विलियम बार्टन रोजर्स द्वारा 1861 में संयुक्त राज्य अमेरिका के औद्योगिकीकरण की जरुरतो को ध्यान में रख कर स्थापित किए गए इस विश्वविद्यालय ने यूरोपीय विश्वविद्यालय प्रतिमान को अपनाया और इसमें प्रारंभ से ही प्रयोगशाला शिक्षा पर जोर दिया गया। इसका मौजूदा परिसर 1916 में खुला, जो चार्ल्स नदी घाटी के उत्तरी किनारे पर फैला हुआ है। एमआईटी शोधकर्ता द्वितीय विश्वयुद्ध और शीतयुद्ध के दौरान सुरक्षा अनुसंधान के संबंध में कम्प्यूटर, रडार और इनर्टिअल (inertial) मार्गदर्शन रचने के प्रयत्नो में जुड़े हुए थे। पिछले 60 वर्षों में, एमआईटी के शिक्षात्मक कार्यक्रम भौतिक विज्ञान और अभियांत्रिकी से परे अर्थशास्त्र, दर्शन, भाषा विज्ञान, राजनीति विज्ञान और प्रबंधन जैसे सामाजिक विज्ञान तक भी विस्तरीत हुए है। एमआईटी में वर्ष 2009-2010 के पतझड़ के सत्र के लिए अवरस्नातक स्तर पर 4,232 और स्नातक स्तर पर 6,152 छात्रों को प्रवेश दिया गया है। इसमें करीबन 1,009 संकाय सदस्यों को रोजगार प्रदान किया है। इसकी बंदोबस्ती और अनुसंधान पर वार्षिक व्यय अन्य किसी भी अमेरिकी विश्वविद्यालयो में से सबसे अधिक है। अब तक 75 नोबल पुरस्कार विजेता, 47 राष्ट्रीय विज्ञान पदक प्रापक और 31 मैकआर्थर अध्येता इस विश्वविद्यालय के साथ वर्तमान या भूतपूर्व समय में सम्बद्ध रहे है। एमआईटी के पूर्व छात्रों द्वारा स्थापित कंपनियों का एकत्रित राजस्व विश्व की सबसे बड़ी सत्तरहवीं अर्थव्यवस्था है। इंजिनीयर्स द्वारा 33 खेल प्रायोजित है, जिनमें से ज्यादातर NCAA श्रेणी III के न्यू इंग्लैंड महिला और पुरुषों के व्यायामी सम्मेलन में भाग लेते है, श्रेणी I के नौकायन कार्यक्रम EARC और EAWRC प्रतिस्पर्धा के भाग है। .

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यूनानी वर्णमाला

यूनानी वर्णमाला (Greek alphabet) चौबीस अक्षरों की वर्ण व्यवस्था है जिनके प्रयोग से यूनानी भाषा को आठवीं सदी ईसा-पूर्व से लिखा जा रहा है। प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन लिए पृथक चिन्ह वाली यह पहली एवं प्राचीनतम वर्णमाला है। यह वर्णमाला फ़ोनीशियाई वर्णमाला से उत्पन्न हुई थी और यूरोप की कई वर्ण-व्यवस्थाएँ इसी से जन्मी हैं। अंग्रेज़ी लिखने के लिये प्रयुक्त रोमन लिपि तथा रूसी भाषा लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली सीरिलिक वर्णमाला दोनों यूनानी लिपि से जन्मी हैं। दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के बाद गणितज्ञों ने यूनानी अक्षरों को अंक दर्शाने के लिए भी प्रयोग करना शुरू कर दिया। यूनानी वर्णों का प्रयोग विज्ञान के कई क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे भौतिकी में तत्वों के नाम, सितारों के नाम, बिरादरी एवं साथी सम्प्रदाय के नाम, ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के नाम के लिए। .

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योस्त गिप्पेर्त

योस्त गिप्पेर्त (Jost Gippert,; (जन्म १२ मार्च १९५६, विन्ज़-नीदेर्वेनिगेर्न में, अभी हत्तिनगेन) योहान वुल्फगांग गेटे यूनिवर्सिटी फ़्रैंकफ़र्ट (जर्मनी) में प्रयोगात्मक भाषाविज्ञान के संस्थान में तुलनात्मक भाषाविज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं। योस्त गिप्पेर्त भाषा- एवं कॉकस-वैज्ञानिक और लेखक भी हैं। .

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रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव

डॉ॰ रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव (9 जुलाई 1936 - 3 अक्‍तूबर, 1992) हिन्दी के भाषाचिन्तक एवं मनीषी थे। .

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रूपबद्ध विज्ञान

रूपबद्ध विज्ञान जिसे औपचारिक विज्ञान भी कहा जाता है, औपचारिक निकायों का अध्ययन है जैसे तर्कशास्त्र, गणित, सांख्यिकी, सैद्धांतिक संगणक विज्ञान, सूचना सिद्धांत, खेल सिद्धांत, निकाय सिद्धान्त, निर्णय सिद्धांत और भाषाविज्ञान के कुछ अंश। .

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रेखीय बी लिपि

यह रेखीय बी लिपि मे लिखित तख़्ती एक तेली के घर से मिली जिसमें किसी ग्राहक की ऊन रंगने की बात लिखी है रेखीय बी एक अक्षरमाला पर आधारित लिपि थी जिसका प्रयोग प्राचीन यूनान में माइसीनियाई यूनानी लिखने के लिए किया जाता था। यह यूनानी वर्णमाला से कई सदियों पहले प्रचलित थी और माइसीनियाई संस्कृति के पतन के साथ-साथ इसका प्रयोग भी ख़त्म हो गया। रेखीय बी के अभिलेख नोसोस, साइडोनिया, पाएलोस, थीब्स और माइसीनाए के स्थलों पर मिली हैं। रेखीय बी की विलुप्ति के बाद कुछ अरसे तक यूनान में किसी लिखाई का सबूत नहीं मिला है और इस काल को यूनानी अंधकार काल कहा जाता है। भाषावैज्ञानिकों का मानना है कि यह लिपि रेखीय ए नामक लिपि की संतान थी जो क्रीत के द्वीप पर बोली जाने वाली मिनोआई भाषाओँ के लिए विकसित की गई थी। रेखीय बी में लगभग ८७ भिन्न ध्वनियों से सम्बंधित अक्षर थे, लेकिन साथ ही साथ कुछ भावचित्र (इडियोग्रैम) भी प्रयोग होते थे। कुल मिलकर लीनियर बी में क़रीब २०० चिह्न पाए गए हैं। यह ध्यान योग्य बात है कि इसकी पूर्वज रेखीय ए लिपि को अभी तक भाषावैज्ञानिक पढ़ने और समझने में असमर्थ रहे हैं। .

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रोलां बार्थ

रोलां बार्थ (१९१५ - १९८०) फ्रांस के प्रमुख साहित्यिक आलोचक, साहित्यिक और सामाजिक सिद्धांतकार, दार्शनिक और लाक्षण-विज्ञानी थे। संरचनावाद, लाक्षण-विज्ञान, समाजशास्त्र, डिज़ाइन सिद्धांत, नृविज्ञान और उत्तर-संरचनावाद जैसे सिद्धांत उनके विविध विचारों से प्रभावित थे। .

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लहजा (भाषाविज्ञान)

भाषाविज्ञान में लहजा (अंग्रेज़ी: accent, एक्सेंट) बोलचाल में उच्चारण के उस तरीक़े को कहते हैं जिसका किसी व्यक्ति, स्थान, समुदाय या देश से विशेष सम्बन्ध हो। उदहारण के तौर पर कुछ दक्षिण-पूर्वी हिंदी क्षेत्र के ग्रामीण स्थानों में लोग 'श' की जगह पर 'स' बोलते हैं, जिसकी वजह से वह 'शहर' और 'अशोक' की जगह 'सहर' और 'असोक' बोलतें हैं - इसे उस क्षेत्र का देहाती लहजा कहा जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर तुतलाने को भी एक बोलने का लहजा कहा जा सकता है।, Anne Betten et al (editors), pp.

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लिप्यन्तरण

सामान्यतः किसी एक लेखन पद्धति में लिखे जाने वाले शब्द या पाठ को किसी अन्य लेखन पद्धति में लिखने को लिप्यन्तरण (transliteration) कहते हैं। लिप्यन्तरण .

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लुडविग विट्गेंस्टाइन

लु़डविग विट्गेंश्टाइन लुडविग विट्गेंश्टाइन (Ludwig Josef Johann Wittgenstein') (26 अप्रिल 1889 - 29 अप्रैल 1951) आस्ट्रिया के दार्शनिक थे। उन्होने तर्कशास्त्र, गणित का दर्शन, मन का दर्शन, एवं भाषा के दर्शन पर मुख्यतः कार्य किया। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी के महानतम दार्शनिकों में होती है। उनके जीते जी एक ही पुस्तक प्रकाशित हो पाई - Tractatus Logico-Philosophicus। बाद की प्रकाशित पुस्तकों में Philosophical Investigations काफी चर्चित रही। विट्गेंश्टाइन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे हैं। विट्गेंश्टाइन के पिता कार्ल एक यहूदी थे जिन्होंने बाद में प्रोटेस्टेंट धर्म अपना लिया था। .

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लैंग और पैरोल

लैंग (मतलब भाषा) और पैरोल (मतलब बोलना) फर्दिनांद द सस्यूर द्वारा "कोर्स इन जनरल लिंग्विस्टिक्स" पुस्तक में प्रतिष्ठित भाषावैज्ञानिक पद हैं। श्रेणी:भाषा-विज्ञान.

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लेवी स्ट्रास

क्लौड लेवी स्ट्रास (28 नवम्बर 1908-30 अक्टूबर 2009) एक फ्रांसीसी मानव विज्ञानी और नस्ल विज्ञानी थे | इनको, जेम्ज़ जोर्ज फ्रेज़र के साथ "आधुनिक मानव विज्ञान के पिता" कहा जाता है | .

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शब्दकोश

शब्दकोश (अन्य वर्तनी:शब्दकोष) एक बडी सूची या ऐसा ग्रंथ जिसमें शब्दों की वर्तनी, उनकी व्युत्पत्ति, व्याकरणनिर्देश, अर्थ, परिभाषा, प्रयोग और पदार्थ आदि का सन्निवेश हो। शब्दकोश एकभाषीय हो सकते हैं, द्विभाषिक हो सकते हैं या बहुभाषिक हो सकते हैं। अधिकतर शब्दकोशों में शब्दों के उच्चारण के लिये भी व्यवस्था होती है, जैसे - अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि में, देवनागरी में या आडियो संचिका के रूप में। कुछ शब्दकोशों में चित्रों का सहारा भी लिया जाता है। अलग-अलग कार्य-क्षेत्रों के लिये अलग-अलग शब्दकोश हो सकते हैं; जैसे - विज्ञान शब्दकोश, चिकित्सा शब्दकोश, विधिक (कानूनी) शब्दकोश, गणित का शब्दकोश आदि। सभ्यता और संस्कृति के उदय से ही मानव जान गया था कि भाव के सही संप्रेषण के लिए सही अभिव्यक्ति आवश्यक है। सही अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द का चयन आवश्यक है। सही शब्द के चयन के लिए शब्दों के संकलन आवश्यक हैं। शब्दों और भाषा के मानकीकरण की आवश्यकता समझ कर आरंभिक लिपियों के उदय से बहुत पहले ही आदमी ने शब्दों का लेखाजोखा रखना शुरू कर दिया था। इस के लिए उस ने कोश बनाना शुरू किया। कोश में शब्दों को इकट्ठा किया जाता है। .

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शालिग्राम शुक्ला

शालिग्राम शुक्ला अमेरिका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में भाषाविज्ञान के सह-आचार्य (असोसिएट प्रोफेसर) हैं। भारोपीय भाषाविज्ञान, तुलनात्मक अमेरिकी-भारतीय भाषाविज्ञान तथा नृशास्त्रीय भाषाविज्ञान उनकी रुचि के प्रमुख क्षेत्र हैं। .

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शिवराज आचार्य कौण्डिन्न्यायन

शिवराज अाचार्य काैण्डिन्न्यायन (जन्म २ फरवरी १९४१) विशिष्ट संस्कृत विद्वान्, वैदिक (शुक्लयजुर्वेदी), शिक्षाशास्त्री, कल्पशास्त्रमर्मज्ञ, उत्कृष्ट भाषाशास्त्री, वैयाकरण, काेषकार, वेदांगज्याेतिषविद्, मीमांसक, वेदान्तज्ञ हैं। इन्हाेंने संस्कृत शिक्षा के सुधार के लिए लम्बा संघर्ष किया। संस्कृतशिक्षा काे कैसे सन्तुलित अाैर सर्वजनाेपयाेगी बनाया जा सकता है, इसका निदर्शन प्रस्तुत किया। धार्मिक, शास्त्रीय, वैज्ञानिक अथवा साधारण शिक्षा के रूप में संस्कृतशिक्षा संचालित की जा सकती है, इसका नवीन स्वरूप निर्माण किया है। .

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शिक्षा (वेदांग)

शिक्षा, वेद के छ: अंगों में से एक है। इसका रचनाकाल विभिन्न विद्वानों ने १००० ईसापूर्व से ५०० ईसापूर्व बताया है। भाषावैज्ञानिकों की दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य सामान्य स्वनविज्ञान (फोनेटिक्स) एवं स्वनिमविज्ञान (फोनोलॉजी) माना जा सकता है। शिक्षा ने सभी प्राप्त ध्वनियों का विश्लेषण किया है। इसका उद्देश्य वेद की ऋचाओं का ठीक प्रकार से पाठ करना है। पुराकाल में माता पिता और आचार्य सभी वर्णोच्चारण का विज्ञान अपने पुत्रों और शिष्यों कि बताया करते थे। धीरे-धीरे पुस्तकें लिखी गई और बाद में सूत्र रचना भी होने लगी। वेदमन्त्रों के उच्चारण की शिक्षा ही वर्णोच्चारण शिक्षा के रूप में प्रसिद्ध हो गई। इस विषय में अनेक ऋषि ग्रन्थ लिखें है, जिन्हें प्रातिशख्य और शिक्षा कहा जाता है। महर्षि पाणिनि की शिक्षा विशेष प्रसिद्ध है। इस शिक्षा के चार सोपान थे।.

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श्यामसुन्दर दास

हिन्दी के महान सेवक: बाबू श्यामसुन्दर दास डॉ॰ श्यामसुंदर दास (सन् 1875 - 1945 ई.) हिंदी के अनन्य साधक, विद्वान्, आलोचक और शिक्षाविद् थे। हिंदी साहित्य और बौद्धिकता के पथ-प्रदर्शकों में उनका नाम अविस्मरणीय है। हिंदी-क्षेत्र के साहित्यिक-सांस्कृतिक नवजागरण में उनका योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने और उनके साथियों ने मिलकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई के लिए अगर बाबू साहब के नाम से मशहूर श्याम सुंदर दास ने पुस्तकें तैयार न की होतीं तो शायद हिंदी का अध्ययन-अध्यापन आज सबके लिए इस तरह सुलभ न होता। उनके द्वारा की गयी हिंदी साहित्य की पचास वर्षों तक निरंतर सेवा के कारण कोश, इतिहास, भाषा-विज्ञान, साहित्यालोचन, सम्पादित ग्रंथ, पाठ्य-सामग्री निर्माण आदि से हिंदी-जगत समृद्ध हुआ। उन्हीं के अविस्मरणीय कामों ने हिंदी को उच्चस्तर पर प्रतिष्ठित करते हुए विश्वविद्यालयों में गौरवपूर्वक स्थापित किया। बाबू श्याम सुंदर दास ने अपने जीवन के पचास वर्ष हिंदी की सेवा करते हुए व्यतीत किए उनकी इस हिंदी सेवा को ध्यान में रखते हुए ही राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने निम्न पंक्तियाँ लिखी हैं- डॉ॰ राधा कृष्णन के शब्दों में, बाबू श्याम सुंदर अपनी विद्वत्ता का वह आदर्श छोड़ गए हैं जो हिंदी के विद्वानों की वर्तमान पीढ़ी को उन्नति करने की प्रेरणा देता रहेगा। .

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श्वा

अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में श्वा का चिन्ह भाषाविज्ञान और स्वानिकी में श्वा (अंग्रेजी: schwa) मध्य-केंद्रीय स्वर वर्ण को कहते हैं। इस वर्ण को देवनागरी में 'अ' लिखा जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसे 'ə' के चिन्ह से दर्शाया जाता है। .

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शौरसेनी

शौरसेनी नामक प्राकृत मध्यकाल में उत्तरी भारत की एक प्रमुख भाषा थी। यह नाटकों में प्रयुक्त होती थी (वस्तुतः संस्कृत नाटकों में, विशिष्ट प्रसंगों में)। बाद में इससे हिंदी-भाषा-समूह व पंजाबी विकसित हुए। दिगंबर जैन परंपरा के सभी जैनाचार्यों ने अपने महाकाव्य शौरसेनी में ही लिखे जो उनके आदृत महाकाव्य हैं। शौरसेनी उस प्राकृत भाषा का नाम है जो प्राचीन काल में मध्यप्रदेश में प्रचलित थी और जिसका केंद्र शूरसेन अर्थात् मथुरा और उसके आसपास का प्रदेश था। सामान्यत: उन समस्त लोकभाषाओं का नाम प्राकृत था जो मध्यकाल (ई. पू. ६०० से ई. सन् १००० तक) में समस्त उत्तर भारत में प्रचलित हुईं। मूलत: प्रदेशभेद से ही वर्णोच्चारण, व्याकरण तथा शैली की दृष्टि से प्राकृत के अनेक भेद थे, जिनमें से प्रधान थे - पूर्व देश की मागधी एवं अर्ध मागधी प्राकृत, पश्चिमोत्तर प्रदेश की पैशाची प्राकृत तथा मध्यप्रदेश की शौरसेनी प्राकृत। मौर्य सम्राट् अशोक से लेकर अलभ्य प्राचीनतम लेखों तथा साहित्य में इन्हीं प्राकृतों और विशेषत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है। भरत नाट्यशास्त्र में विधान है कि नाटक में शौरसेनी प्राकृत भाषा का प्रयोग किया जाए अथवा प्रयोक्ताओं के इच्छानुसार अन्य देशभाषाओं का भी (शौरसेनं समाश्रत्य भाषा कार्या तु नाटके, अथवा छंदत: कार्या देशभाषाप्रयोक्तृभि - नाट्यशास्त्र १८,३४)। प्राचीनतम नाटक अश्वघोषकृत हैं (प्रथम शताब्दी ई.) उनके जो खंडावशेष उपलब्ध हुए हैं उनमें मुख्यत: शौरसेनी तथा कुछ अंशों में मागधी और अर्धमागधी का प्रयोग पाया जाता है। भास के नाटकों में भी मुख्यत: शौरसेनी का ही प्रयोग पाया जाता है। पश्चात्कालीन नाटकों की प्रवृत्ति गद्य में शौरसेनी और पद्य में महाराष्ट्री की ओर पाई जाती है। आधुनिक विद्वानों का मत है कि शौरसेनी प्राकृत से ही कालांतर में भाषाविकास के क्रमानुसार उन विशेषताओं की उत्पत्ति हुई जो महाराष्ट्री प्राकृत के लक्षण माने जाते हैं। वररुचि, हेमचंद्र आदि वैयाकरणों ने अपने-अपने प्राकृत व्याकरणों में पहले विस्तार से प्राकृत सामान्य के लक्षण बतलाए हैं और तत्पश्चात् शौरसेनी आदि प्रकृतों के विशेष लक्षण निर्दिष्ट किए हैं। इनमें शौरसेनी प्राकृत के मुख्य लक्षण दो स्वरों के बीच में आनेवाले त् के स्थान पर द् तथा थ् के स्थान पर ध्। जैसे अतीत > अदीद, कथं > कधं; इसी प्रकार ही क्रियापदों में भवति > भोदि, होदि; भूत्वा > भोदूण, होदूण। भाषाविज्ञान के अनुसार ईसा की दूसरी शती के लगभग शब्दों के मध्य में आनेवाले त् तथा द् एव क् ग् आदि वर्णों का भी लोप होने लगा और यही महाराष्ट्री प्राकृत की विशेषता मानी गई। प्राकृत का उपलभ्य साहित्य रचना की दृष्टि से इस काल से परवर्ती ही है। अतएव उसमें शौरसेनी का उक्त शुद्ध रूप न मिलकर महाराष्ट्री मिश्रित रूप प्राप्त होता है और इसी कारण पिशल आदि विद्वानों ने उसे उक्त प्रवृत्तियों की बहुलतानुसार जैन शौरसेनी या जैन महाराष्ट्री नाम दिया है। जैन शौरसेनी साहित्य दिंगबर जैन परंपरा का पाया जाता है। प्रमुख रचनाएँ ये हैं - सबसे प्राचीन पुष्पदंत एव भूतवलिकृत षट्खंडागम तथा गुणधरकृत कषाय प्राभृत नामक सूत्रग्रंथ हैं (समय लगभग द्वितीय शती ई.)। वीरसेन तथा जिनसेनकृत इनकी विशाल टीकाएँ भी शौरसेनी प्राकृत में लिखी गई है (९वीं शती ई.)। ये सब रचनाएँ गद्यात्मक हैं। पद्य में सबसे प्राचीन रचनाएँ कुंदकुंदाचार्यकृत हैं (अनुमानत: तीसरी शती ई.)। उनके बारह तेरह ग्रंथ प्रकाश में आ चुके हैं, जिनके नाम हैं - समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, बारस अणुवेक्खा तथा दर्शन, बोध पाहुडादि अष्ट पाहुड। इन ग्रंथों में मुख्यतया जैन दर्शन, अध्यात्म एवं आचार का प्रतिपादन किया गया है। मुनि आचार संबंधी मुख्य रचनाएँ हैं- शिवार्य कृत भगवती आराधना और वट्टकेर कृत मूलाचार। अनुप्रेक्षा अर्थात् अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाएँ भावशुद्धि के लिए जैन मुनियों के विशेष चिंतन और अभ्यास के विषय हैं। इन भावनाओं का संक्षेप में प्रतिपादन तो कुंदकुंदाचार्य ने अपनी 'बारस अणुवेक्खा' नामक रचना में किया है, उन्हीं का विस्तार से भले प्रकार वर्णन कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा में पाया जाता है, जिसके कर्ता का नाम स्वामी कार्त्तिकेय है। (लगभग चौथी पाँचवीं शती ई.)। (१) यति वृषभाचार्यकृत तिलोयपण्णत्ति (९वीं शती ई. से पूर्व) में जैन मान्यतानुसार त्रैलाक्य का विस्तार से वर्णन किया गया है, तथा पद्मनंदीकृत जंबूदीवपण्णत्ति में जंबूद्वीप का। (२) स्याद्वाद और नय जैन न्यायशास्त्र का प्राण है। इसका प्रतिपादन शौरसेनी प्राकृत में देवसेनकृत लघु और बृहत् नयचक्र नामक रचनाओं में पाया जाता है (१०वीं शती ई.)। जैन कर्म सिद्धांत का प्रतिपादन करनेवाला शौरसेनी प्राकृत ग्रन्थ है- नेमिचंद्रसिद्धांत चक्रवर्ती कृत गोम्मटसार, जिसकी रचना गंगनरेश मारसिंह के राज्यकाल में उनके उन्हीं महामंत्री चामुंडराय की प्रेरणा से हुई थी, जिन्होंने मैसूर प्रदेश के श्रवणबेलगोला नगर में उस सुप्रसिद्ध विशाल बाहुबलि की मूर्ति का उद्घाटन कराया था (११वीं शती ई.)। उपर्युक्त समस्त रचनाएँ प्राकृत-गाथा-निबद्ध हैं। जैन साहित्य के अतिरक्त शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग राजशेखरकृत कर्पूरमंजरी, रद्रदासकृत चंद्रलेखा, घनश्यामकृत आनंदसुंदरी नामक सट्टकों में भी पाया जाता है। यद्यपि कर्पूरमंजरी के प्रथम विद्वान् संपादक डा.

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शैलीविज्ञान

शैलीविज्ञान (stylistics) शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है- शैली और विज्ञान जिसका शाब्दिक अर्थ है 'शैली का विज्ञान' अर्थात‌‌‌‌ जिस विज्ञान में शैली का वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित रूप सें अध्ययन किया जाए वह शैलीविज्ञान है। ’शैली’ शब्द अंग्रेजी के स्टाइल (Style) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। उसी प्रकार 'शैलीविज्ञान' अंग्रेजी के स्टाइलिस्टिक्स (Stylistics) है। शैलीविज्ञान भाषाविज्ञान एवं साहित्यशास्त्र दोनों की सहायता लेता हुआ भी दोनों से अलग स्वतंत्र विज्ञान है। शैलीविज्ञान एक ओर भाषाशैली का अध्ययन साहित्यशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर करता है, जिसमें रस, अलंकार, वक्रोक्ति, ध्वनि, रीति, वृत्ति, प्रवृत्ति, शब्द-शक्ति, गुण, दोष, बिंब, प्रतीक आदि आते हैं। दूसरी ओर शैलीविज्ञान के अंतर्गत भाषा-शैली का अध्ययन भाषाविज्ञान के सिद्धांतों के आधार पर किया जाता है, जिसमें भाषा की प्रकृति और संरचना के अनुशीलन को महत्त्व दिया जाता है। शैलीविज्ञान के अध्ययन की मुख्यत: दो दिशाएँ प्रचलित है.

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ष का संस्कृत उच्चारण सुनिए - यह श से थोड़ा भिन्न है श का उच्चारण सुनिए - हिंदी में ष इसी की तरह कहा जाता है, लेकिन संस्कृत का ष इस से भिन्न है ष देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। संस्कृत से उत्पन्न कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की षष्ठ, धनुष, सुष्मा, कृषि, षड्यंत्र, संघर्ष और कष्ट। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध॰व॰) में इसके संस्कृत उच्चारण को ʂ के चिन्ह से लिखा जाता है। संस्कृत में 'ष' और 'श' के उच्चारण में काफ़ी अंतर है, लेकिन हिंदी से 'ष' ध्वनि लगभग लुप्त हो चुकी है और इसे 'श' कि तरह उच्चारित किया जाता है, जिसका अ॰ध॰व॰ चिन्ह ʃ है। संस्कृत में 'क' और 'ष' का एक संयुक्त अक्षर 'क्ष' भी प्रयोग होता है। संस्कृत में 'क्ष' का उच्चारण भी 'क्श' से भिन्न है हालाँकि हिंदी में इनमें अंतर नहीं है। .

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समाजभाषाविज्ञान

समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics) के अन्तर्गत समाज का भाषा पर एवं भाषा के समाज पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। यह भाषावैज्ञानिक अध्ययन का वह क्षेत्र है जो भाषा और समाज के बीच पाये जानेवाले हर प्रकार के सम्बंधों का अध्ययन विश्लेषण करता है। अर्थात समाजभाषाविज्ञान वह है जो भाषा की संरचना और प्रयोग के उन सभी पक्षों एवं संदर्भों का अध्ययन करता है जिनका सम्बंध सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रकार्य के साथ होता है अत: इसके अध्ययन क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक वर्गों की भाषिक अस्मिता, भाषा के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण एवं अभिवृत्ति, भाषा की सामाजिक शैलियाँ, बहुभाषिकता का सामाजिक आधार, भाषा नियोजन आदि भाषा-अध्ययन के वे सभी संदर्भ आ जाते है, जिनका संबंध सामाजिक संस्थान से रहता है। .

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सम्पत्ति

पूर्वी तथा पश्चिमी समाजों द्वारा संपत्ति का प्रयोग सामाजिक संगठन तथा सामाजिक रहन-सहन के लिए एक अत्यावश्यक वस्तु के रूप में होता रहा है। संपत्ति शब्द का आशय, इससे संबंधित अन्य विचारों से, जिन्हें "वस्तु" या "रेस" (res), "डोमस" (Domus) तथा "स्वामी" (प्रोप्रायटर) आदि शब्दों से व्यक्त किया गया, विकसित हुआ। .

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सम्मिलन (भाषाविज्ञान)

भाषाविज्ञान में सम्मिलन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें एक शब्द का अंत की ध्वनी दुसरे शब्द के आरम्भ की ध्वनी के साथ पूरी तरह जुड़ी हो, यानि बोलते समय उन दोनों शब्दों के बीच कोई ठहराव न हो। सम्मिलन की स्थिति में बोलने वाले का मुंह और स्वरग्रंथि एक शब्द ख़त्म करने से पहले ही दुसरे शब्द की आरंभिक ध्वनी को उच्चारित करने के लिए तैयार होने लगती है। उदहारण के लिए "दिल से दिल" तेज़ी से बोलते हुए हिंदी मातृभाषी अक्सर पहले "दिल" की अंतिम "ल" ध्वनी पूरी तरह उच्चारित नहीं करते और न ही "से" में "ए" की मात्रा पूरी तरह बोलते हैं, जिस से वास्तव में इन तीनो शब्दों का पूरा उच्चारण "दि' स' दिल" से मिलता हुआ होता है। .

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समूहवाचक संज्ञा (अंग्रेजी व्याकरण)

भाषा विज्ञान में, समूहवाचक संज्ञा वह शब्द है जिसका इस्तेमाल वस्तुओं के समूह को परिभाषित करने के लिए किया जाता है, व जिसमें व्यक्ति, पशु, भावनाएं, निर्जीव वस्तु, अवधारणाएं या अन्य चीजें हो सकती है। उदाहरण के लिए, "ए प्राइड ऑफ लॉयन्स", वाक्यांश में प्राइड समूहवाचक संज्ञा है। ज्यादातर समूहवाचक संज्ञा का प्रयोग रोजमर्रा की बातचीत में होता है, जैसे कि "ग्रुप" शब्द बहुत आम शब्द है और यह किसी एक प्रकार की मूल वस्तु का भान नहीं कराता.

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सहस्वानिकी

v की ध्वनि सुनिए - हिंदी में इसके लिए वर्ण 'व' है w की ध्वनि सुनिए - हिंदी में इसके लिए भी वर्ण 'व' ही है (इसकी ध्वनी 'v' से भिन्न है लेकिन हिंदी में 'v' और 'w' की सहस्वानिकी के कारण हिंदीभाषियों को अक्सर फ़र्क बताने में कठिनाई होती है भाषाविज्ञान में सहस्वानिक ध्वनियाँ, जिन्हें अंग्रेज़ी में एलोफ़ोन (allophone) कहा जाता है, वह ध्वनियाँ होती हैं जो किसी भाषा के बोलने वालों के लिए एक ही वर्ण या वर्ण-समूह को बोलने के भिन्न तरीक़े हों। सहस्वानिकी में बोलने वालों को स्वयं ज्ञात नहीं होता के वह एक ही वर्ण को अलग-अलग प्रकार से उच्चारित कर रहें हैं। उदहारण के तौर पर अंग्रेज़ी में 'ट', 'त', 'थ' और 'ठ' में सहस्वनिकी होती है। अंग्रेज़ी मातृभाषी (जो हिंदी ना जानते हों) 'ताली', 'थाली', 'टाली' और 'ठाली' में अक्सर फ़र्क नहीं बता सकते क्योंकि उनके लिए यह सारे स्वर अंग्रेज़ी अक्षर 't' से समन्धित हैं और उन्हें सब एक ही जैसे सुनाई देते हैं। उसी तरह हिंदी में 'v' और 'w' सहस्वनिक ध्वनियाँ होती हैं। हिंदी मातृभाषी अक्सर 'wow' (यानि 'वाह!') और 'vow' (यानि 'शपथ') को एक जैसा उच्चारित करते हैं, जो अंग्रेज़ी में ग़लत है। .

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सामाजिक विज्ञान

सामाजिक विज्ञान (Social science) मानव समाज का अध्ययन करने वाली शैक्षिक विधा है। प्राकृतिक विज्ञानों के अतिरिक्त अन्य विषयों का एक सामूहिक नाम है 'सामाजिक विज्ञान'। इसमें नृविज्ञान, पुरातत्व, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधि, भाषाविज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और संचार आदि विषय सम्मिलित हैं। कभी-कभी मनोविज्ञान को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है। .

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सांकेतिक भाषा

संकेत भाषा (या सांकेतिक भाषा) एक ऐसी भाषा है, जो अर्थ सूचित करने के लिए श्रवणीय ध्वनि पैटर्न में संप्रेषित करने के बजाय, दृश्य रूप में सांकेतिक पैटर्न (हस्तचालित संप्रेषण, अंग-संकेत) संचारित करती है-जिसमें वक्ता के विचारों को धाराप्रवाह रूप से व्यक्त करने के लिए, हाथ के आकार, विन्यास और संचालन, बांहों या शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का एक साथ उपयोग किया जाता है। जहां भी बधिर लोगों का समुदाय मौजूद हो, वहां संकेत भाषा का विकास होता है। उनके पेचीदा स्थानिक व्याकरण, उच्चरित भाषाओं के व्याकरण से स्पष्ट रूप से अलग है। दुनिया भर में सैकड़ों संकेत भाषाएं प्रचलन में हैं और स्थानीय बधिर समूहों द्वारा इनका उपयोग किया जा रहा है। कुछ संकेत भाषाओं ने एक प्रकार की क़ानूनी मान्यता हासिल की है, जबकि अन्य का कोई महत्व नहीं है। .

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साकेत बहुगुणा

साकेत बहुगुणा एक छात्र कार्यकर्ता और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक हैं। .

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सजातीय शब्द

सजातीय शब्द, जिन्हें अंग्रेजी में काग्नेट (cognate) शब्द कहा जाता है, भिन्न भाषाओं के वे शब्द होते हैं जो अलग भाषाओं से होने के बावजूद एक ही प्राचीन जड़ रखते हैं। इस कारण से इन शब्दों को जिनका रूप और अर्थ अक्सर मिलता-जुलता होता है सजातीय शब्द कहते हैं, हालाँकि ये आवश्यक नहीं है कि उनका अर्थ बिल्कुल सामान हो। उदहारण के रूप में मातृ (संस्कृत), मादर (फ़ारसी), मातर (लातिन) और मदर (अंग्रेजी) का रूप सामान सा है और सब का अर्थ माँ है क्योंकि यह सारी भाषाएँ एक ही आदिम-हिन्द-यूरोपीय (Proto-Indo-European) भाषा से उपजी संतानें हैं। .

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संस्कृत साहित्य

बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .

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संस्कृत कॉलेज

संस्कृत कॉलेज कोलकाता स्थित एक महाविद्यालय है। यह पश्चिम बंगाल शासन का एक विशिष्ट कला महाविद्यालय है जिसमें संस्कृत, पालि, भाषाविज्ञान, प्राचीन भारतीय एवं विश्व इतिहास की स्नातक स्तर की शिक्षा दी जाती है। यह कोलकाता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। इसकी स्थापना १ जनवरी १८२४ को हुई थी और यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुरानी शैक्षिक संस्थाओं में से एक है। यह शिक्षा प्रतिष्ठान, उत्तरी कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट क्षेत्र में स्थित है। .

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संज्ञा

भाषा विज्ञान में, संज्ञा एक विशाल, मुक्त शाब्दिक वर्ग का सदस्य है, जिसके सदस्य वाक्यांश के कर्ता के मुख्य शब्द, क्रिया के कर्म, या पूर्वसर्ग के कर्म के रूप में मौजूद हो सकते हैं। शाब्दिक वर्गों को इस संदर्भ में परिभाषित किया जाता है कि उनके सदस्य अभिव्यक्तियों के अन्य प्रकारों के साथ किस तरह संयोजित होते हैं। संज्ञा के लिए भाषावार वाक्यात्मक नियम भिन्न होते हैं। अंग्रेज़ी में, संज्ञा को उन शब्दों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो उपपद और गुणवाचक विशेषणों के साथ होते हैं और संज्ञा वाक्यांश के शीर्ष के रूप में कार्य कर सकते हैं। पारंपरिक अंग्रेज़ी व्याकरण में Noun, आठ शब्दभेदों में से एक है। .

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संज्ञान

कई उदाहरणों को देखकर बुद्धि संज्ञान से उनकी समानताएँ निकाल लेती है और फिर 'वृक्ष' नामक एक उच्च-स्तरीय अवधारणा से वास्तविकता में मौजूद करोड़ों अलग-अलग दिखने वाले वृक्षों को एक ही अवधारणा के प्रयोग से समझने में सक्षम होती है संज्ञान (cognition, कोग्निशन) कुछ महत्वपूर्ण मानसिक प्रक्रियाओं का सामूहिक नाम है, जिनमें ध्यान, स्मरण, निर्णय लेना, भाषा-निपुणता और समस्याएँ हल करना शामिल है। संज्ञान का अध्ययन मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, भाषाविज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान और विज्ञान की कई अन्य शाखाओं के लिए ज़रूरी है। मोटे तौर पर संज्ञान दुनिया से जानकारी लेकर फिर उसके बारे में अवधारणाएँ बनाकर उसे समझने की प्रक्रिया को भी कहा जा सकता है।, CUP Archive, 1988, ISBN 978-0-521-31246-2,...

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संज्ञानात्मक विज्ञान

इस चित्र में उन विषयों को दिखाया गया है जिनका बोध विज्ञान के जन्म में योगदान था। संज्ञानात्मक विज्ञान या बोध विज्ञान (Cognitive science) मस्तिष्क एवं उसकी प्रक्रियाओं का अनतरविषयी वैज्ज्यानिक अध्ययन है। यह संज्ञान की प्रकृति और उसके कार्यों की खोजबीन करता है। संज्ञानात्मक वैज्ञानिक बुद्धि और व्यवहार का अध्ययन करते हैं जिसमें फोकस इस बात पर रहता है कि तंत्रिका तंत्र किस प्रकार सूचनाओं का किस प्रकार निरूपण करता है, कैसे उनका प्रसंस्करण करता है और कैसे उनको रूपान्तरित करता है। बोध विज्ञानी के लिये महत्व के कुछ विषय ये हैं- भाषा, अवगम (perception), स्मृति, ध्यान (attention), तर्कणा (reasoning), तथा संवेग (emotion)। इन विषयों को समझने के लिये बोध विज्ञानी भाषाविज्ञान, मनोविज्ञान, कृत्रिम बुद्धि, दर्शन, तंत्रिका विज्ञान (neuroscience) तथा नृविज्ञान (anthropology) आदि का सहारा लेता है। श्रेणी:दर्शन की शाखा श्रेणी:संज्ञानात्मक विज्ञान.

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संकेतविज्ञान

भाषाविज्ञान में, संकेत प्रक्रियाओं (लाक्षणिकता), या अभिव्यंजना और संप्रेषण, लक्षण और प्रतीक का अध्ययन संकेतविज्ञान (Semiotics या semiotic studies या semiology) कहलाता है। इसे आम तौर पर निम्नलिखित तीन शाखाओं में विभाजित किया जाता है.

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सआलिबी

सआलिबी (Thaalibi; 961–1038) ११वीं शताब्दी पूर्वार्ध का प्रसिद्ध भाषाशास्त्री, कवि और कोशकार जिसका पूरा नाम 'अबू मंसूर अब्दुल मलिक इब्न मुहम्मद इब्न इस्माएल-सआलिबो' था। १०३८ ई. में इसकी मृत्यु हुई। यूरोप की आधुनिक भाषाओं में इसकी कई महत्वपूर्ण कृतियाँ अनुदित होकर प्रकाशित हुई है। इसकी पुस्तक किताब यतीमात उद-दह्र, किताब फिक़ उल-लुघा, महासिने अहलिल अस्र अरबी साहित्य में अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। वह सन् १९६१ में इरान के निशापुर (Nishapur) में उत्पन्न हुआ था। श्रेणी:भाषाशास्त्री श्रेणी:कोअशकार.

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सुभाष काक

सुभाष काक सुभाष काक (जन्म 26 मार्च 1947) प्रमुख भारतीय-अमेरिकी कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक हैं। वे अमेरिका के ओक्लाहोमा प्रान्त में संगणक विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके कई ग्रन्थ वेद, कला और इतिहास पर भी प्रकाशित हुए हैं। उनका जन्म श्रीनगर, कश्मीर में राम नाथ काक और सरोजिनी काक के यहाँ हुआ। उनकी शिक्षा कश्मीर और दिल्ली में हुई। .

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स्फोट

स्फोट भारतीय व्याकरण की परम्परा एवं पाणिनि दर्शन का महत्वपूर्ण विषय है। कुछ लोग इसी स्फोट (नित्य शब्द) को संसार का कारण मानते हैं। जो स्फोट या नित्य शब्द को ही संसार का मूल हेतु या कारण मानते हैं उन्हें स्फोटवादी कहा जाता है। पाणिनि दर्शन में वर्णो का वाचकत्व न मानकर स्फोट ही के बल से अर्थ की प्रतिपत्ति मानी गई है। वर्णों द्बारा जो स्फुटित या प्रकट हो उसको स्फोट कहते है, वह वर्णातिरिक्त है। जैसे ' कमल' कहने से अर्थ की जो प्रतीति होती है वह 'क', 'म' और 'ल' इन वर्णों के द्बारा नहीं, इनके उच्चारण से उप्तन्न स्फोट द्बारा होती है। वह स्फोट नित्य है। पाणिनीय दर्शन के मत से स्फोटात्मक निरवयव नित्य शब्द ही जगत् का आदि कारण रूप परब्रह्म है। अनादि अनंत अक्षर रूप शब्द ब्रह्म से जगत् की साकी प्राक्रियाएँ अर्थ रूप में पर्वर्तित होती हैं। इस दर्शन ने शब्द के दो भेद माने हैं। नित्य और अनित्य। नित्य शब्द स्फोट मात्र ही है, संपूर्ण वर्णांत्मक उच्चरित शब्द अनित्य हैं। अर्थबोधन सामर्थ्य केवल स्फोट में है। वर्ण उस (स्फोट) की अभिव्यक्ति मात्र के साधन हैं। इस स्फोट को ही शब्दशास्त्रज्ञों ने सच्चिदानंद ब्रह्म माना है। अतः शब्द शास्त्र की आलोचना करते करते क्रमशः अविद्या का नाश होकर मुक्ति प्राप्त होती है। 'सर्वदर्शनसंग्रह' के रचयिता के मत से व्याकरण शास्त्र अर्थात 'पाणिनीयदर्शन' सब विद्याओं से पवित्र, मुक्ति का द्वारस्वरुप और मोक्ष मार्गों में राजमार्ग है। सिद्धि के अभिलाषी को सबसे पहले इसी की उपासना करनी चाहिए। .

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स्लावी भाषाएँ

देश जिनमें एक दक्षिणी स्लावी भाषा राष्ट्रभाषा है स्लावी भाषाएँ (अंग्रेज़ी: Slavic languages) या स्लावोनी भाषाएँ (अंग्रेज़ी: Slavonic languages) हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार की एक उपशाखा है जो पूर्वी यूरोप, बाल्कन क्षेत्र और उत्तरी एशिया के साइबेरिया क्षेत्र में बोली जाती हैं। स्लावी भाषाएँ बोलने वाली मूल जातियों को स्लाव लोग कहा जाता है। .

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स्वनिमविज्ञान

स्वनिमविज्ञान (Phonology) भाषाविज्ञान की वह शाखा है जो किसी भी मानव भाषा में ध्वनि के सम्यक उपयोग द्वारा अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति से सम्बन्धित मुद्दों का अध्ययन करती है। किसी भाषा की सार्थक ध्वनियों की व्यवस्था का अध्ययन ही स्वनिमविज्ञान कहलाता है। स्वनिमविज्ञान अपनी मूल इकाई के रूप में स्वनिम (फोनीम) की संकल्पना करता है और इसके उपरांत स्वनिम तथा सहस्वन, उनके वितरण तथा अनुक्रम आदि का अध्ययन करता है। यह 'शब्द' के स्तर के नीचे के स्तर पर अध्यन करता है। .

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स्वनविज्ञान

स्वानिकी या स्वनविज्ञान (Phonetics), भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत मानव द्वारा बोली जाने वाली ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है। यह बोली जाने वाली ध्वनियों के भौतिक गुण, उनके शारीरिक उत्पादन, श्रवण ग्रहण और तंत्रिका-शारीरिक बोध की प्रक्रियाओं से संबंधित है। .

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सीताराम लालस

सीताराम लालस (25 नवम्बर 1912 - दिसम्बर 1986) भारत के प्रख्यात कोशकर्मी तथा भाषाविज्ञानी थे। उन्होने राजस्थानी का पहला शब्दकोश निर्मित किया जिसका नाम 'राजस्थानी शब्दकोश' हैं। उन्होने 'राजस्थानी-हिन्दी वृहद कोश' की भी रचना की। श्रेणी:भारतीय कोशकर्मी श्रेणी:भारतीय भाषावैज्ञानिक श्रेणी:1912 में जन्मे लोग श्रेणी:१९८६ में निधन.

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हरदेव बाहरी

डॉ॰ हरदेव बाहरी (जन्म १९०७ ई०) हिन्दी के कोशकार, भाषावैज्ञानिक तथा शिक्षाविद हैं। .

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हिन्द-आर्य भाषाएँ

हिन्द-आर्य भाषाएँ हिन्द-यूरोपीय भाषाओं की हिन्द-ईरानी शाखा की एक उपशाखा हैं, जिसे 'भारतीय उपशाखा' भी कहा जाता है। इनमें से अधिकतर भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं। हिन्द-आर्य भाषाओं में आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के 'घ', 'ध' और 'फ' जैसे व्यंजन परिरक्षित हैं, जो अन्य शाखाओं में लुप्त हो गये हैं। इस समूह में यह भाषाएँ आती हैं: संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, कश्मीरी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, रोमानी, असमिया, गुजराती, मराठी, इत्यादि। .

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हिन्दको भाषा

हिन्दको (Hindko) पश्चिमोत्तरी पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत के हिन्दकोवी लोगों और अफ़ग़ानिस्तान के कुछ भागों में हिन्दकी लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक हिंद-आर्य भाषा है। कुछ भाषावैज्ञानिकों के अनुसार यह पंजाबी की एक पश्चिमी उपभाषा है हालांकि इसपर कुछ विवाद भी रहा है। कुछ पश्तून लोग भी हिन्दको बोलते हैं। पंजाबी के मातृभाषी बहुत हद तक हिन्दको समझ-बोल सकते हैं।, Aydin Yücesan Durgunoğlu, Ludo Th Verhoeven, pp.

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हिंदी भाषा में उपयोग होने वाले संस्कृत एवं फ़ारसी मूल धातुओं की सूची

अनुगामित सूची, हिंदी भाषा में साधारणतः प्रयोग होने वाले संस्कृत तथा फ़ारसी भाषाई मूल के धातुओं, मूलशब्दों, शब्दांशों, अनुलग्नों व पूर्वलग्नों तथा उनके लैटिन/यूनानी/अंग्रेज़ी समकक्षों को देवनागरी वर्णक्रमानुसार अनुक्रमित करती है: .

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हुमायुन आजाद

हुमायुन आजाद (२८ अप्रैल १९४७ - ११ अगस्त २००४) (बांग्ला: হুমায়ুন আজাদ) बांग्लादेश के ढाका शहर में जन्मे एक प्रख्यात उपन्यासकार, कवि एवम आलोचक थे। उन्होने सत्तर से भी ज्यादा किताबें लिखीं जिसमें अधिकतर बांग्लादेश के रूढीवादी समाज, धर्म और सैन्य-शासन के खिलाफ हैं। तसलीमा नसरीन को बांग्लादेश ने केवल देश-निकाला करके बाहर भेज दिया था, परन्तु हुमायुन आजादको पहले धमकियों और बाद में कातिलाना हमलों का शिकार होना पड़ा। आखिरकार २७ अप्रैल २००४ को हुए एक खूनी हमले में वे बुरी तरह से घायल हो गए। हमले के बाद उनकी पत्नी उन्हें इलाज के लिए जर्मनी ले गईं, पर आजाद बच नहीं पाये। हुमायुन आजाद .

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हेमचन्द जोशी

हेमचंद जोशी (२१ जून सन् १८९४ ई. -) हिंदी के प्रमुख भाषाशास्त्री तथा इतिहासज्ञ थे। इनका जन्म नैनीताल में २१ जून सन् १८९४ ई. को हुआ। शिक्षा दीक्षा अल्मोड़ा, प्रयाग तथा वाराणसी में हुई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.

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हेलमट नेस्पिटल

हेलमट नेस्पिटल बर्लिन की फ़्री युनिवर्सिटी में भारतविद्या और आधुनिक एशियाई भाषाओं और साहित्य के प्रोफ़ेसर रह चुके थे। .

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जर्मैनी भाषा परिवार

जर्मैनी भाषाओँ का फैलाव - गाढ़े नीले रंग के देशों में कोई जर्मैनी भाषा बहुसंख्यक या प्रथम भाषा है, हलके नीले देशों में कोई जर्मैनी भाषा सरकारी स्तर पर मान्य है जर्मैनी भाषा परिवार हिन्द-यूरोपी भाषा परिवार की एक शाखा है। इस परिवार की सारी भाषाओँ की सांझी पूर्वजा "आदिम जर्मैनी" नाम की एक कल्पित भाषा है। इतिहासकार अनुमान लगते हैं की आदिम जर्मैनी भाषा लौह युग में लगभग 800 ईसापूर्व के काल में उत्तर यूरोप में बोली जाती थी। अंग्रेज़ी इसी भाषा परिवार की सदस्या है और इसकी अन्य जानी-मानी भाषाएँ जर्मन, डच और स्कैंडिनेविया क्षेत्र की भाषाएँ हैं (जिनमें नोर्वीजियाई, स्वीडी, डेनी और आइसलैंडी शामिल हैं)। कुल मिलकर विश्व में लगभग 56 करोड़ लोग किसी जर्मैनी भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। दुनिया में अंग्रेज़ी के फैलाव के कारण लगभग 2 अरब लोग किसी जर्मैनी भाषा को बोल सकते हैं (चाहे वह मातृभाषा न होकर उनकी दूसरी या तीसरी भाषा ही हो)। .

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ज़

ज़ की ध्वनि सुनिए ज़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिंदी-उर्दू के कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की ज़रुरत, ज़माना, आज़माइश, ज़रा और ज़ंग। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को z के चिन्ह से लिखा जाता है और उर्दू में इसको ز लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम ज़े है। .

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ज़ालमान दाइम्शित्स

ज़ालमान दाइम्शित्स बेलारूस के यानोवीची सोराझ़ वीतीबस्क (Yanovichi Surazh Vitebsk) क्षेत्र में 1921 ई. में पैदा हुए थे। .

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वचन (व्याकरण)

भाषाविज्ञान में वचन (नम्बर) एक संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया आदि की व्याकरण सम्बन्धी श्रेणी है जो इनकी संख्या की सूचना देती है (एक, दो, अनेक आदि)। अधिकांश भाषाओं में दो वचन ही होते हैं- एकवचन तथा बहुवचन, किन्तु संस्कृत तथा कुछ और भाषाओं में द्विवचन भी होता है। .

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वनस्थली विद्यापीठ

वनस्थली विद्यापीठ महिला शिक्षा की राष्ट्रीय संस्था है जो राजस्थान के टोंक जिले की निवाई में स्थित है। जहॉ शिशु कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षण एंव अनुसंधान कार्य हो रहा है। विद्यापीठ को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की धारा 3 के अधीन भारत सरकार द्वारा समविश्वविद्यालय घोषित किया गया है। विद्यापीठ भारतीय विश्वविद्यालय संघ तथा एसोसिएशन ऑफ कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटीज का सदस्य है। वनस्थली का वातावरण स्वतंत्रता का वातावरण है। छात्राओं को अधिकतम स्वतन्त्रता दी जाती है और उनके व्यक्तित्व के निर्माण का प्रयास किया जाता है। जो छात्रा दो-चार वर्ष वनस्थली में पढ़ लेती है उसके व्यक्तित्व मे वनस्थली की झलक देखी जा सकती है। वनस्थली के विशाल पुस्तकालय में लगभग एक लाख पुस्तकें हैं जिनमें उच्चकोटि के अनेक दुर्लभ ग्रन्थ भी हैं। लगभग 750 पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती हैं जिनमें उच्च स्तर की विदेशी पत्रिकाएँ भी हैं। क्षेत्रीय स्तर पर, राज्य के स्तर पर, तथा राष्ट्रीय स्तर पर भी वनस्थली की छात्राएँ खेलकूद के विभिन्न कार्यक्रमों में पुरस्कृत होती है। घुड़सवारी के प्रशिक्षण की यहाँ जो व्यवस्था है वह यही का एक विशिष्ट और सराहनीय पक्ष है। लगभग प्रतिवर्ष ही राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान विश्वविद्यालय की मेरिट लिस्ट में यहाँ की छात्राएँ भी स्थान पाती हैं। वनस्थली का उच्च माध्यमिक विद्यालय देश का प्रथम 'गर्ल्स ऑटोनॉमस स्कूल' है। .

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वाडमीमांसा

लिखित ऐतिहासिक स्रोतों की भाषा का अध्ययन सांस्कृतिक भाषाशास्त्र या वाडमीमांसा (Philology) कहलाता है। यह साहित्यिक आलोचना, इतिहास तथा भाषाविज्ञान का सम्मिलित रूप है। श्रेणी:भाषा.

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वाक्यविन्यास

किसी भाषा में जिन सिद्धान्तों एवं प्रक्रियाओं के द्वारा वाक्य बनते हैं, उनके अध्ययन को भाषा विज्ञान में वाक्यविन्यास, 'वाक्यविज्ञान' या सिन्टैक्स (syntax) कहते हैं। वाक्य के क्रमबद्ध अध्ययन का नाम 'वाक्यविज्ञान' कहते हैं। वाक्य विज्ञान, पदों के पारस्परिक संबंध का अध्ययन है। वाक्य भाषा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। मनुष्य अपने विचारों की अभिव्यक्ति वाक्यों के माधयम से ही करता है। अतः वाक्य भाषा की लघुतम पूर्ण इकाई है। .

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विल्हेम वॉन हम्बोल्ट

विल्हेम वॉन हम्बोल्ट (अंग्रेजी:Friedrich Wilhelm Christian Karl Ferdinand von Humboldt; २२ जून, १७६७ - ८ अप्रैल, १८३५) एक जर्मन दार्शनिक, भाषा विज्ञानी और तत्कालीन प्रशा की सरकार में प्रशासक थे। उनका योगदान तत्कालीन शिक्षा नीतियों को निर्मित करने में रहा था। हम्बोल्ट का सर्वाधिक प्रभाव भाषाई दर्शन और इसके चिंतकों पर पड़ा है जिनमें नॉम चौम्स्की और मार्टिन हाइडेगर जैसे प्रसिद्द दार्शनिक और भाषा विज्ञानी शामिल हैं। विल्हेम के छोटे भाई अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट एक प्रसिद्द भूगोलवेत्ता, जलवायु विज्ञानी और वनस्पति शास्त्री रहे हैं। .

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विशिष्टीकरण (भाषाविज्ञान)

भाषाविज्ञान के सन्दर्भ में, पॉल हॉपर ने विशिष्टीकरण (specialization) की परिभाषा दी है। इस सन्दर्भ में विशिष्टीकरण उन पाँच सिद्धान्तों एक है जो वैयाकरणीकरण (grammaticalization) की सूचना देते हैं। वैयाकरणीकरण होने की सूचना देने वाले अन्य चार सिद्धान्त ये हैं- स्तरीकरण (layering), अपसार (divergence), निरति (persistence), तथा निवर्गीकरण (de-categorialization)। श्रेणी:भाषा-विज्ञान.

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विष्णु सीताराम सुकथंकर

विष्णु सीताराम सुकथंकर (1887-1943) संस्कृत के विद्वान एवं भाषावैज्ञानिक थे। .

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व्याकरण

किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। .

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व्याकरण (वेदांग)

वेदांग (वेद के अंग) छ: हैं, जिसमें से व्याकरण एक है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का अधययन किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह वेद का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है। इसके मूलतः पाँच प्रयोजन हैं - रक्षा, ऊह, आगम, लघु और असंदेह। व्याकरण की जड़ें वैदिकयुगीन भारत तक जाती हैं। व्याकरण की परिपाटी अत्यन्त समृद्ध है जिसमें पाणिनि का अष्टाध्यायी नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ भी शामिल है। 'व्याकरण' से मात्र 'ग्रामर' का अभिप्राय नहीं होता बल्कि यह भाषाविज्ञान के अधिक निकट है। साथ ही इसका दार्शनिक पक्ष भी है। संस्कृत व्याकरण वैदिक काल में ही स्वतंत्र विषय बन चुका था। नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात - ये चार आधारभूत तथ्य यास्क (ई. पू. लगभग 700) के पूर्व ही व्याकरण में स्थान पा चुके थे। पाणिनि (ई. पू. लगभग 550) के पहले कई व्याकरण लिखे जा चुके थे जिनमें केवल आपिशलि और काशकृत्स्न के कुछ सूत्र आज उपलब्ध हैं। किंतु संस्कृत व्याकरण का क्रमबद्ध इतिहास पाणिनि से आरंभ होता है। संस्कृत व्याकरण का इतिहास पिछले ढाई हजार वर्ष से टीका-टिप्पणी के माध्यम से अविच्छिन्न रूप में अग्रसर होता रहा है। इसे सजीव रखने में उन ज्ञात अज्ञात सहस्रों विद्वानों का सहयोग रहा है जिन्होंने कोई ग्रंथ तो नहीं लिखा, किंतु अपना जीवन व्याकरण के अध्यापन में बिताया। .

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खड़ीबोली

खड़ी बोली वह बोली है जिसपर ब्रजभाषा या अवधी आदि की छाप न हो। ठेंठ हिंदी। आज की राष्ट्रभाषा हिंदी का पूर्व रूप। इसका इतिहास शताब्दियों से चला आ रहा है। यह परिनिष्ठित पश्चिमी हिंदी का एक रूप है। .

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ख़

ख़ की ध्वनि सुनिए ख़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिंदी-उर्दू के कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे कि ख़रगोश, ख़ुश, ख़बर, ख़ैर और ख़ून। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को x के चिह्न से लिखा जाता है और उर्दू में इसे خ लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम ख़े है। .

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ख़ातून

मंगोल सम्राट हुलागु ख़ाँ अपनी ईसाई पत्नी दोक़ुज़ ख़ातून के साथ ख़ातून (خاتون, Khātūn, Hatun) एक स्त्रियों को दी जाने वाली उपाधि है जो सब से पहले गोएकतुर्क साम्राज्य और मंगोल साम्राज्य में प्रयोग की गई थी। इनके क्षेत्रों में यह "रानी" और "महारानी" की बराबरी की उपाधि थी। समय के साथ-साथ यह भारतीय उपमहाद्वीप में "देवी" की तरह किसी भी महिला के लिए एक आदरपूर्ण ख़िताब बन गया। भारत में कई प्रसिद्ध औरतों के नाम से यह उपाधि जुड़ी हुई है, मसलन "हब्बा ख़ातून" कश्मीरी भाषा की एक प्रसिद्ध कवियित्री थीं। .

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ख़ितानी भाषा

कोरिया से मिला एक आइना जिसमें छोटी ख़ितानी लिपि में लिखावट है सन ९८६ की ऐक शिला जिसमें बड़ी ख़ितानी लिपि में लिखावट है ख़ितानी भाषा मध्य एशिया में बोले जाने वाली एक विलुप्त भाषा थी जिसे ख़ितानी लोग बोला करते थे। यह भाषा सन् ३८८ से सन् १२४३ तक ख़ितानी राज्य व्यवस्था के लिए प्रयोगित थी। भाषा-परिवार के नज़रिए से इसे मंगोल भाषा-परिवार का सदस्य माना जाता है, हालांकि जब यह बोली जाति थी तब आधुनिक मंगोल भाषा अस्तित्व में नहीं थी। यह भाषा पहले ख़ितानियों के लियाओ राजवंश और फिर कारा-ख़ितान की राजभाषा रही। किसी ज़माने में कुछ भाषावैज्ञानिक समझते थे कि इसका मंगोल भाषा होने कि बजाए एक तुन्गुसी भाषा होना अधिक संभव है, लेकिन वर्तमान युग में लगभग सभी विद्वान इस एक मंगोल भाषा मानते हैं। क्योंकि यह भाषा काफ़ी अरसे तक उईग़ुर जैसी तुर्की भाषाओँ के संपर्क में रही, इसलिए इनमें शब्दों का आपसी आदान-प्रदान होता रहा। .

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ख्यात

ख्यात इतिहास-सम्बन्धी साहित्य है जिसके लेखन का प्रचलन भारत के उन क्षेत्रों में था जिसे आजकल राजस्थान के नाम से जाना जाता है। अर्थात ख्यात ऐतिहासिक दस्तावेज हैं। कुछ प्रसिद्ध ख्यात निम्नलिखित हैं-.

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गणन संख्या (भाषा विज्ञान)

भाषा विज्ञान में, विशेषकर पारम्परिक व्याकरण में, गणन संख्या या गणन संख्यांक एक शब्दभेद है जिसका प्रयोग गिनने के लिए होता है, जैसे कि हिन्दी शब्द एक, दो, तीन और समास, उदाहरणार्थ एक हज़ार चार सौ पच्चीस, इत्यादि। गणन संख्याओं को निश्चित संख्यांकों के रूप में श्रेणीबद्ध किया जाता हैं और वे पहला, दूसरा, तीसरा, इत्यादि जैसे क्रमसूचक संख्याओं से संबंधित हैं। .

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गबडलय अखटऊ

गबडलय अखटऊ Gabdulkhay Akhatov (1927-1986) गबडलय अखटऊ (अंग्रेज़ी भाषा Gabdulkhay Akhatov; रूसी भाषा Габдулхай Хурамович Ахатов (1927 - 1986, सोवियत संघ, रूस, तातारस्तान) - एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक और भाषाविद्. प्रोफेसर (1970). बहुभाषाविद. वह राज्य कज़ान शैक्षणिक संस्थान (कज़ान विश्वविद्यालय) से स्नातक की उपाधि (1954). अनुसंधान के क्षेत्र: भाषाविज्ञान, भाषाशास्त्र, तातार भाषा, नृवंशविज्ञान. वैज्ञानिक 200 से अधिक किताबें और लेख के लेखक है। .

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ग़

ग़ की ध्वनि सुनिए ग़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिंदी-उर्दू के कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे कि ग़ायब, ग़ज़ल, ग़नीमत और ग़रीब। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को ɣ के चिह्न से लिखा जाता है और उर्दू में इसे غ लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम ग़ैन है। .

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गायन

हैरी बेलाफोन्ट 1954 गायन एक ऐसी क्रिया है जिससे स्वर की सहायता से संगीतमय ध्वनि उत्पन्न की जाती है और जो सामान्य बोलचाल की गुणवत्ता को राग और ताल दोनों के प्रयोग से बढाती है। जो व्यक्ति गाता है उसे गायक या गवैया कहा जाता है। गायक गीत गाते हैं जो एकल हो सकते हैं यानी बिना किसी और साज या संगीत के साथ या फिर संगीतज्ञों व एक साज से लेकर पूरे आर्केस्ट्रा या बड़े बैंड के साथ गाए जा सकते हैं। गायन अकसर अन्य संगीतकारों के समूह में किया जाता है, जैसे भिन्न प्रकार के स्वरों वाले कई गायकों के साथ या विभिन्न प्रकार के साज बजाने वाले कलाकारों के साथ, जैसे किसी रॉक समूह या बैरोक संगठन के साथ। हर वह व्यक्ति जो बोल सकता है वह गा भी सकता है, क्योंकि गायन बोली का ही एक परिष्कृत रूप है। गायन अनौपचारिक हो सकता है और संतोष या खुशी के लिये किया जा सकता है, जैसे नहाते समय या कैराओके में; या यह बहुत औपचारिक भी हो सकता है जैसे किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय या मंच पर या रिकार्डिंग के स्टुडियो में पेशेवर गायन के समय। ऊंचे दर्जे के पेशेवर या नौसीखिये गायन के लिये सामान्यतः निर्देशन और नियमित अभ्यास आवश्यकता होती है। पेशेवर गायक सामान्यतः किसी एक प्रकार के संगीत में अपने पेशे का निर्माण करते हैं जैसे शास्त्रीय या रॉक और आदर्श रूप से वे अपने सारे करियर के दौरान किसी स्वर-अध्यापक या स्वर-प्रशिक्षक की सहायता से स्वर-प्रशिक्षण लेते हैं। .

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गागाउज़ भाषा

गागाउज़ (Gagauz dili) एक तुर्की भाषा है जो मोल्दोवा के गागाउज़िया क्षेत्र की सरकारी भाषा है और जिसे मुख्य रूप से गागाउज़ समुदाय के लोग बोलते हैं। ध्यान दें कि एक अन्य 'बालकनी गागाउज़ तुर्की' नामक भाषा भी है लेकिन भाषावैज्ञानिक इन दोनों को भिन्न मानते हैं।, Ethnologue: Languages of the World, Lewis, M. Paul (ed.), SIL International, 2009, Accessed 2011-04-29 .

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गुआंचे

वेदी कटोरे प्रतिमा गुआंचे (स्पेनी भाषा: Spanish, Guanches), कैनरी द्वीपसमूह पर निवास करने वाले आदिवासी हैं जिन्हें बर्बर नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये लोग वहाँ पर १००० ई॰पू॰ अथवा इससे भी पहले बस गये थे। .

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ग्लोस

लातिनी भाषा की इस पांडुलिपि के किनारे पर स्पेनी भाषा में ग्लोस लिखे हैं शेरों के किनारों पर अर्थ-विस्तार करते ग्लोस ग्लोस या ग्लॉस (अंग्रेज़ी: gloss; यूनानी: γλῶσσα, ग्लोसा, अर्थ: जीह्वा) किसी लेख में किसी शब्द का अर्थ समझाने के लिए करी गई छोटी सी टिप्पणी को कहते हैं। यह अक्सर वाक्य के साथ पृष्ठ के किनारों पर या छोटे अकार के अक्षरों में शब्द के ऊपर, नीचे या साथ में लिखा होता है। ग्लोस लिखाई की भाषा में या पढ़ने वाले की मातृभाषा में हो सकता है (अगर वह लेख की मूल भाषा से अलग हो)। अक्सर धार्मिक भाषाओँ में लिखे ग्रंथों के पृष्ठों के किनारों पर शब्दों के अर्थ लिखे जाते हैं और कभी-कभी ऐसे ग्लोस पढ़ने वाले ख़ुद भविष्य में अपने लिए डाल देते हैं। .

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गोविन्द चन्द्र पाण्डेय

डॉ॰ गोविन्द चन्द्र पाण्डेय (30 जुलाई 1923 - 21 मई 2011) संस्कृत, लेटिन और हिब्रू आदि अनेक भाषाओँ के असाधारण विद्वान, कई पुस्तकों के यशस्वी लेखक, हिन्दी कवि, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहबाद के सदस्य राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति और सन २०१० में पद्मश्री सम्मान प्राप्त, बीसवीं सदी के जाने-माने चिन्तक, इतिहासवेत्ता, सौन्दर्यशास्त्री और संस्कृतज्ञ थे। .

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ऑ की ध्वनि सुनिए औ की ध्वनि सुनिए - यह ऑ से ज़रा भिन्न है ओ की ध्वनि सुनिए - यह ऑ से काफ़ी भिन्न है ऑ मराठी भाषा का एक वर्ण है। ऍ और ऑ असल देवनागरी में नहीँ पाएं जाते। फ़िलहाल हिंदी में ऑ वर्ण का उपयोग तो पूरी तरह किया जाने लगा है, लेकिन ऍ का उपयोग अभी भी साधारणतः नहीँ किया जाता। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध॰व॰) में इसके उच्चारण को ɒ के चिन्ह से लिखा जाता है। इसका प्रयोग अक्सर अंग्रेज़ी के शब्दों को लिखने के लिए किया जाता है, मसलन "फॉर" (for), "नॉट" (not) और "बॉल" (ball)। इसकी ध्वनि आधुनिक मानक हिंदी के तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों में नहीं पाई जाती हालांकि कुछ पश्चिमी हिन्दी उपभाषाओं में इसका प्रयोग मिलता है, उदाहरणतः खड़ीबोली और हरयाणवी वाले कुछ क्षेत्रों में "सोना" को "सॉना" उच्चारित किया जाता है। .

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ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ

ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओं का ताइवान में ३००० ईपू में जन्मने के बाद फैलाव; संख्याएँ साल बताती हैं (– का अर्थ ईसापूर्व है और + का अर्थ ईसवी है) ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ (Austronesian languages) एक भाषा परिवार है जिसकी सदस्य भाषाएँ दक्षिण-पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर के बहुत से द्वीपों पर विस्तृत हैं। एशिया के महाद्वीप की मुख्यभूमि के भी कुछ क्षेत्रों में यह बोली जाती हैं। कुल मिलकर ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाएँ बोलने वालों की जनसँख्या ३८.६ करोड़ अनुमानित की गई है। सबसे ज़्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली ऑस्ट्रोनीशियाई भाषा मलय भाषा है, जिसे लगभग १८ करोड़ लोग बोलते हैं और जो विश्व की ८वीं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। कई ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओं को १ करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं हालांकि ऐसी भी कुछ भाषाएँ है जो गिनती के लोग ही बोलते हैं। लगभग २० ऑस्ट्रोनीशियाई भाषाओं को अपने देशों की राजभाषा होने का दर्जा प्राप्त है। यह भाषाएँ सुदूर पश्चिम में अफ़्रीका के तट के क़रीब स्थित माडागैस्कर से लेकर सुदूर पूर्व में हवाई द्वीपों तक बोली जाती हैं। .

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औपचारिक भाषा

गणित, कम्प्यूटर विज्ञान और भाषाविज्ञान में औपचारिक भाषा (formal language) चिन्हों के स्ट्रिंगों का एक समुच्चय (सेट) होता है जिनके साथ एक सम्बन्धित नियमों की सूची भी सम्मिलित हो। ऐसी औपचारिक भाषा की वर्णमाला चिन्हों व अक्षरों का वह समुच्चय होता है जिसके साथ उस भाषा के स्ट्रिंग बनाए जा सकें। किसी औपचारिक भाषा के मान्य स्ट्रिंगों को सुनिर्मित शब्द (well-formed words) या सुनिर्मित फ़ॉर्मूला (well-formed formula) कहते हैं। अक्सर औपचारिक भाषाओं के साथ-साथ उसके शब्द निर्माण व प्रयोग के लिए एक औपचारिक व्याकरण (formal grammar) भी परिभाषित होता है, जिसे उसका निर्माण नियम (formation rule) भी कहते हैं। .

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आचार्य नरेन्द्र भूषण

' आचार्य नरेन्द्र भूषण ' '(आचार्यजी) एक भारत भाषाविज्ञान, वैदिक विद्वान, वक्ता, लेखक, अनुवादक, पत्रका व प्रकाशक भी थे। वह संस्कृत, मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी के विद्वान थे। .

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आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा

हिन्द-यूरोपीय भाषाओँ का वर्गीकरण ''(अंग्रेजी में, देखने के लिए क्लिक करें)'' आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (आ॰हि॰यू॰), जिसे प्रोटो-इंडो-यूरोपियन भाषा (अंग्रेजी: Proto-Indo-European) भी कहा जाता है, भाषावैज्ञानिकों द्वारा पूरे हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सभी भाषाओं की एकमात्र प्राचीन जननी भाषा मानी जाती है। माना जाता है के इसे प्राचीन काल में आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग बोला करते थे, लेकिन यह भाषा हज़ारों वर्ष पूर्व ही पूरी तरह से लुप्त हो चुकी थी। बहुत सी हिन्द-यूरोपीय भाषाओं के सजातीय शब्दों की एक-दुसरे से तुलना के बाद भाषावैज्ञानिकों ने इस लुप्त भाषा का पुनर्निर्माण किया है जिस से इस के शब्दों का अनुमान लगाया जा सकता है। भाषावैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा लगभग ३७०० ई॰पू॰ तक बोली जाती रही और फिर उसका विभिन्न भाषाओं में खंडन होने लगा। इस तिथि के बारे में विद्वानों में हज़ार वर्ष इधर-उधर तक का आपसी मतभेद है। इस बात पर भी कई अवधारणाएँ हैं के इस भाषा को बोलने वाले कहाँ रहते थे, लेकिन बहुत से पश्चिमी विद्वान् कुरगन अवधारणा में विश्वास रखते हैं। कुरगन अवधारणा के अनुसार इस भाषा को बोलने वाले आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में फैले हुए पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी के क्षेत्र में रहते थे। आधुनिक युग में विलियम जोन्स पहले विद्वान् थे जिन्होंने प्राचीन संस्कृत, प्राचीन यूनानी, प्राचीन फारसी और लातिन भाषाओं में समानताएँ देखकर यह दावा किया था के ये सारी एक ही आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा से उपजी भाषाएँ हैं। बीसवी शताब्दी की शुरुआत तक भाषावैज्ञानिकों के परिश्रम से आदिम-हिन्द-यूरोपीय (आ॰हि॰यू॰) भाषा का चित्रण काफ़ी हद तक किया जा चुका था, जिसमे छोटे-मोटे सुधार लगातार होते रहे हैं। .

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आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग

पितृवंश समूह आर१ए का विस्तार आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोगों के फैलाव के साथ सम्बंधित माना जाता है आदिम-हिन्द-यूरोपीय यूरेशिया में बसने वाले उन प्राचीन लोगों को कहा जाता है जो आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा बोलते थे। इनके बारे में जानकारी भाषावैज्ञानिक तकनीकों से और कुछ हद तक पुरातत्व-विज्ञान (आर्कियोलोजी) से आई है। आधुनिक युग में अनुवांशिकी (जेनेटिक्स) के ज़रिये भी इनकी जातीयता के बारे में जानकारी मिल रही है। बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि यह लोग ४००० ईसापूर्व के काल में पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी क्षेत्र में बसा करते थे और २,००० ईसापूर्व तक अनातोलिया, पश्चिमी यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिणी साइबेरिया तक विस्तृत हो चुके थे।, J. P. Mallory, Taylor & Francis, 1997, ISBN 978-1-884964-98-5 आनुवंशिकी नज़रिए से बहुत से विद्वान अब इन्हें पितृवंश समूह आर१ए का वंशज मानते हैं।, Carlos Quiles, Fernando López-Menchero, Indo-European Association, 2009, ISBN 978-1-4486-8206-5,...

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क मुं हिंदी विद्यापीठ आगरा

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ डॉ भीमराव अंबेदकर विश्वविद्यालय, आगरा का प्रतिष्ठित शिक्षण और शोध संस्थान है जो हिंदी भाषा और भाषाविज्ञान के उच्चतर अध्ययन और अनुसंधान के क्षेत्र में उत्तर भारत के सर्वप्रथम संस्थान के रूप में सन 1953 से कार्य कर रहा है। .

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कठबोली

कठबोली या स्लैंग (slang) किसी भाषा या बोली के उन अनौपचारिक शब्दों और वाक्यांशों को कहते हैं जो बोलने वाले की भाषा या बोली में मानक तो नहीं माने जाते लेकिन बोलचाल में स्वीकार्य होते हैं।, Elisa Mattiello, Polimetrica s.a.s., 2008, ISBN 978-88-7699-113-4,...

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कपिल कपूर

जवहरलाल नेहरू विश्वविदयालय डॉ कपिल कपूर (जन्म 17 नवम्बर 1940) भाषाविज्ञान एवं साहित्य के विद्वान हैं। वे ग्यारह भागों में सन् २०१२ में प्रकाशित हिन्दू धर्म के विश्वकोश (अंग्रेजी में) के मुख्य सम्पादक हैं। डॉ कपिल कपूर भारतीय बौद्धिक परम्परा के प्रतिनिधि विद्वान हैं। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलपति रह चुके हैं। .

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कमान भाषा

कमान भाषा (Kaman language) या मिजू भाषाएँ (Miju language) या गेमान भाषा (Geman language) भारत के अरुणाचल प्रदेश और दक्षिणपूर्वी तिब्बत के कमान मिश्मी समुदाय द्वारा बोली जाने वाली एक भाषा है। भाषावैज्ञानिकों में विवाद है कि यह तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की सदस्य है या एक भाषा वियोजक है। यह प्रस्ताव है कि ज़ेख्रिंग भाषा (मेयोर) के साथ यह मिडज़ू भाषा-परिवार की सदस्य है जो स्वयं सम्भव है कि तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की एक छोटी शाखा हो। .

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करेन भाषाएँ

करेन भाषाएँ (Karen languages) बर्मा में लगभग ७० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली सुरभेदी भाषाओं का एक समूह है। यह औपचारिक रूप से चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार की एक उपशाखा हैं लेकिन इनमें उस परिवार से बहुत अंतर हैं। कुछ भाषावैज्ञानिकों के अनुसार यह पड़ोस में बोली जाने वाली मोन और ताई-कादाई भाषाओं का प्रभाव है। .

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कला

राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित 'गोपिका' कला (आर्ट) शब्द इतना व्यापक है कि विभिन्न विद्वानों की परिभाषाएँ केवल एक विशेष पक्ष को छूकर रह जाती हैं। कला का अर्थ अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है, यद्यपि इसकी हजारों परिभाषाएँ की गयी हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार कला उन सारी क्रियाओं को कहते हैं जिनमें कौशल अपेक्षित हो। यूरोपीय शास्त्रियों ने भी कला में कौशल को महत्त्वपूर्ण माना है। कला एक प्रकार का कृत्रिम निर्माण है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग होता है। .

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कलानाथ शास्त्री

कलानाथ शास्त्री (जन्म: 15 जुलाई 1936) संस्कृत के जाने माने विद्वान,भाषाविद्, एवं बहुप्रकाशित लेखक हैं। आप राष्ट्रपति द्वारा वैदुष्य के लिए अलंकृत, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, संस्कृत अकादमी आदि से पुरस्कृत, अनेक उपाधियों से सम्मानित व कई भाषाओँ में ग्रंथों के रचयिता हैं। वे विश्वविख्यात साहित्यकार तथा संस्कृत के युगांतरकारी कवि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के ज्येष्ठ पुत्र हैं। .

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क़

क़ की ध्वनि सुनिए क़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिंदी-उर्दू के कईं शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे कि क़िला, क़यामत, क़त्ल, क़ुरबानी और क़ानून। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को q के चिन्ह से लिखा जाता है और उर्दू में इसे लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम "क़ाफ़" है। .

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कारेलिया गणतंत्र

कारेलिया गणतन्त्र (रूसी: Респу́блика Каре́лия, अंग्रेज़ी: Republic of Karelia, कारेलियाई: Karjalan Tazavalda) रूसी गणतन्त्र का एक संघीय खंड है जो उस देश की शासन प्रणाली में गणतंत्र का दर्जा रखता है। यह यूरोप के उत्तर में और रूस के पश्चिमोत्तर में स्थित है। इसकी राजधानी पेत्रोज़ावोद्स्क नगर है और जनसंख्या ६,४३,५४८ (२०१० की जनगणना) है। रूस का यह विभाग ऐतिहासिक 'कारेलिया' नामक क्षेत्र पर विस्तृत है जो वर्तमान में रूस और फ़िनलैन्ड के बीच बंटा हुआ है। .

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काल (व्याकरण)

व्याकरणिक काल किसा भी स्थिति या क्रिया के समय को क्रियापद के द्वारा, पर, के दौरान या से परे व्यक्त करनेवाली एक कालिक भाषावैज्ञानिक गुणवत्ता है। काल भाव, आवाज़ और पहलू के साथ, चार गुणों में से कम से कम एक है, जो अभिव्यक्ति स्पष्ट कर सकते हैं। काल एक अभिव्यक्ति के घटनाक्रम के साथ सामयिक सन्दर्भों का विपर्यास व्यतिरेक दर्शाते हैं। सभी भाषाएं समान काल इस्तेमाल करती हैं - वर्तमान, भूत और भविष्य, हालांकि हमेशा इन कालों की अभिव्यक्ति का अनुवाद स्पष्ट रूप से एक भाषा से दूसरी भाषा में नहीं किया जा सकता.

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काव्यशास्त्र

काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतों की ज्ञानराशि है। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य और शिल्प बदलता रहता है; फलत: काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों में भी निरंतर परिवर्तन होता रहा है। भारत में भरत के सिद्धांतों से लेकर आज तक और पश्चिम में सुकरात और उसके शिष्य प्लेटो से लेकर अद्यतन "नवआलोचना' (नियो-क्रिटिसिज्म़) तक के सिद्धांतों के ऐतिहासिक अनुशीलन से यह बात साफ हो जाती है। भारत में काव्य नाटकादि कृतियों को 'लक्ष्य ग्रंथ' तथा सैद्धांतिक ग्रंथों को 'लक्षण ग्रंथ' कहा जाता है। ये लक्षण ग्रंथ सदा लक्ष्य ग्रंथ के पश्चाद्भावनी तथा अनुगामी है और महान्‌ कवि इनकी लीक को चुनौती देते देखे जाते हैं। काव्यशास्त्र के लिए पुराने नाम 'साहित्यशास्त्र' तथा 'अलंकारशास्त्र' हैं और साहित्य के व्यापक रचनात्मक वाङमय को समेटने पर इसे 'समीक्षाशास्त्र' भी कहा जाने लगा। मूलत: काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दकाव्य (महाकाव्य एवं मुक्तक) तथा दृश्यकाव्य (नाटक) के ही सम्बंध में सिद्धांत स्थिर करता देखा जाता है। अरस्तू के "पोयटिक्स" में कामेडी, ट्रैजेडी, तथा एपिक की समीक्षात्मक कसौटी का आकलन है और भरत का नाट्यशास्त्र केवल रूपक या दृश्यकाव्य की ही समीक्षा के सिद्धांत प्रस्तुत करता है। भारत और पश्चिम में यह चिंतन ई.पू.

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काकलीय व्यंजन

स्वनविज्ञान में काकलीय व्यंजन (Glottal consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिनका उच्चारण प्रमुख रूप से कण्ठद्वार के प्रयोग द्वारा किया जाता है। इनमें 'ह' शामिल है। कुछ भाषावैज्ञानिक काकलीय व्यंजनों को असली व्यंजन मानते ही नहीं क्योंकि उन्हें केवल कण्ठद्वार का खोल बदलकर बिना किसी उच्चारण अंग का प्रयोग करे उत्पन्न करा जाता है, लेकिन हिन्दी समेत विश्व की कई भाषाओं यह व्यंजनों की ही भांति प्रयोग होते हैं। .

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किशोरीदास वाजपेयी

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (१८९८-१९८१) हिन्दी के साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य थे। हिन्दी की खड़ी बोली के व्याकरण की निर्मिति में पूर्ववर्ती भाषाओं के व्याकरणाचार्यो द्वारा निर्धारित नियमों और मान्यताओं का उदारतापूर्वक उपयोग करके इसके मानक स्वरूप को वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पन्न करने का गुरुतर दायित्व पं॰ किशोरीदास वाजपेयी ने निभाया। इसीलिए उन्हें 'हिन्दी का पाणिनी' कहा जाता है। अपनी तेजस्विता व प्रतिभा से उन्होंने साहित्यजगत को आलोकित किया और एक महान भाषा के रूपाकार को निर्धारित किया। आचार्य किशोरीदास बाजपेयी ने हिन्दी को परिष्कृत रूप प्रदान करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे पूर्व खडी बोली हिन्दी का प्रचलन तो हो चुका था पर उसका कोई व्यवस्थित व्याकरण नहीं था। अत: आपने अपने अथक प्रयास एवं ईमानदारी से भाषा का परिष्कार करते हुए व्याकरण का एक सुव्यवस्थित रूप निर्धारित कर भाषा का परिष्कार तो किया ही साथ ही नये मानदण्ड भी स्थापित किये। स्वाभाविक है भाषा को एक नया स्वरूप मिला। अत: हिन्दी क्षेत्र में आपको "पाणिनि' संज्ञा से अभिहित किया जाने लगा। .

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क्रमसूचक संख्या (भाषा विज्ञान)

भाषा विज्ञान में, क्रमसूचक संख्याएँ वे शब्द होते हैं जो अनुक्रमिक क्रम में स्थान या दर्जा दर्शाते हैं। क्रम चाहे आकार, महत्त्व, कालक्रम, इत्यादि का हो सकता हैं। हिन्दी भाषा में, वे तीसरा और तृतीयक जैसे विशेषण होते हैं। वे गणन संख्याओं से भिन्न होते हैं जो मात्रा दर्शाते हैं। .

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कैनरी द्वीपसमूह

कैनरी द्वीपसमूह का नक़्शा कैनरी द्वीपसमूह अफ़्रीका के उत्तरपश्चिमी छोर से आगे अंध महासागर में स्थित हैं पिको देल तेइदे (तेनरीफ़) कैनरी द्वीपसमूह स्पेन द्वारा नियंत्रित द्वीपों का एक समूह है जो अफ़्रीका के उत्तरपश्चिमी छोर से आगे अंध महासागर में स्थित है। प्रशासनिक दृष्टि से यह स्पेन का एक स्वायत्त समुदाय है, जो लगभग एक राज्य जैसा दर्जा रखता है। इस द्वीपसमूह में (बड़े से छोटे) यह द्वीप आते हैं: तेनरीफ़ (Tenerife), ग्रान कानारिया (Gran Canaria), फ़्वेरतेवेन्तूरा (Fuerteventura), लान्सारोते (Lanzarote), ला पाल्मा (La Palma), ला गोमेरा (La Gomera), ला ईएरो (La Hierro), ला ग्रासीओसा (La Graciosa), आलेग्रान्सा (Alegranza), मोन्तान्या क्लारा (Montaña Clara), रोक दॅल एस्ते (Roque del Este), रोक दॅल ओएस्ते (Roque del Oeste) और इस्ला दे लोबोस (Isla de Lobos)। इस प्रदेश की दो राजधानियाँ हैं: तेनरीफ़ के द्वीप पर स्थित सान्ता क्रूस दे तेनरीफ़ (Santa Cruz de Tenerife) और ग्रान कानारिया द्वीप पर स्थित लास पालमास दे ग्रान कानारिया (Las Palmas de Gran Canaria)। तेनरीफ़ पर पिको देल तेइदे (Pico del Teide) नाम का ज्वालामुखी स्थित है जो आकार में विश्व का तीसरा सब से बड़ा ज्वालामुखी है। .

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केरलीय गणित सम्प्रदाय

केरलीय गणित सम्प्रदाय केरल के गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों का एक के बाद एक आने वाला क्रम था जिसने गणित और खगोल के क्षेत्र में बहुत उन्नत कार्य किया। इसकी स्थापना संगमग्राम के माधव द्वारा की गयी थी। परमेश्वर, नीलकण्ठ सोमजाजिन्, ज्येष्ठदेव, अच्युत पिशारती, मेलापतुर नारायण भट्टतिरि तथा अच्युत पान्निकर इसके अन्य सदस्य थे। यह सम्प्रदाय १४वीं शदी से लेकर १६वीं शदी तक फला-फूला। खगोलीय समस्याओं के समाधान के खोज के चक्कर में इस सम्प्रदाय ने स्वतंत्र रूप से अनेकों महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएँ सृजित की। इनमें नीलकंठ द्वारा तंत्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में दिया गया त्रिकोणमितीय फलनों का श्रेणी के रूप में प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है। केरलीय गणित सम्प्रदाय माधवन के बाद कम से कम दो शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा। ज्येष्ठदेव से हमें समाकलन का विचार मिला, जिसे संकलितम कहा गया था, (हिंदी अर्थ संग्रह), जैसा कि इस कथन में है: जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में अनुवादित करता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें से अधिकांश परिणाम यूरोप में ऐसे ही परिणामों के अस्तित्व से कई शताब्दियों पूर्व के हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है। इस समूह ने खगोल विज्ञान में अन्य कई कार्य भी किये; वास्तव में खगोलीय परिकलनों पर विश्लेषण संबंधी परिणामों की तुलना में कहीं अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं। केरल स्कूल ने भाषाविज्ञान (भाषा और गणित के मध्य सम्बन्ध एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, देखें, कात्यायन) में भी योगदान दिया है। केरल की आयुर्वेदिक और काव्यमय परंपरा की जड़ें भी इस स्कूल में खोजी जा सकती हैं। प्रसिद्ध कविता, नारायणीयम, की रचना नारायण भात्ताथिरी द्वारा की गयी थी। .

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कॉर्पस भाषाविज्ञान

भाषाशास्त्र में वृहद एवं सुसंगठित पाठ (टेक्स्ट) को पाठसंग्रह या कॉर्पस (corpus) कहते हैं। आज के एलेक्ट्रानिक युग में पाठसंग्रह को एलेक्ट्रानिक प्रारूप में संग्रहित किया जाता है एवं संगणक द्वारा इसकी बहुविध जाँच-पड़ताल एवं प्रसंस्करण किया जाता है। इस प्रकार का पाठसंग्रह सांख्यिकीय विश्लेषण करने, परिकल्पना-परीक्षण, शब्दों के प्रयोग की आवृत्ति निकालने तथा भाषायी नियमों की जाँच के लिये प्रयुक्त होते हैं। .

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कोशविज्ञान

कोशविज्ञान (Lexicology) भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसमें शब्दों का अध्ययन किया जाता है। इसमें शब्दों के अर्थ, उनका चिन्हों के रूप से प्रयोग और उनके अर्थों का ज्ञानमीमांसासे सम्बन्ध भी इसमें समझा जाता है। .

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thumb अ देवनागरी लिपि का पहला वर्ण तथा संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली आदि भाषाओं की वर्णमाला का पहला अक्षर एवं ध्वनि है। यह एक स्वर है। यह कंठ्य वर्ण है।। इसका उच्चारण स्थान कंठ है। इसकी ध्वनि को भाषाविज्ञान में श्वा कहा जाता है। यह संस्कृत तथा भारत की समस्त प्रादेशिक भाषाओं की वर्णमाला का प्रथम अक्षर है। इब्राली भाषा का 'अलेफ्', यूनानी का 'अल्फा' और लातिनी, इतालीय तथा अंग्रेजी का ए (A) इसके समकक्ष हैं। अक्षरों में यह सबसे श्रेष्ठ माना जाता हैं। उपनिषदों में इसकी बडी महिमा लिखी है। तंत्रशास्त्र के अनुसार यह वर्णमाला का पहला अक्षर इसलिये है क्योंकि यह सृष्टि उत्पन्न करने के पहले सृष्टिवर्त की आकुल अवस्था को सूचित करता है। श्रीमद्भग्वद्गीता में कृष्ण स्वयं को अक्षरों में अकार कहते हैं- 'अक्षराणामकारोस्मि'। अ हिंदी वर्णमाला का स्वर वर्ण है उच्चारण की दृष्टि से अ निम्नतर,मध्य,अगोलित,हृस्व स्वर है कुछ स्थितियों में अ का उच्चारण स्थान ह वर्ण से पूर्वभी होता है जैसे कहना में वह में अ का उच्चारण स्थानभी है अ हिंदी में पूर्व प्रत्यय के रूप में भी बहुप्रयुक्त वर्ण है अ पूर्व प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होकर प्रायः मूल शब्द के अर्थ का नकारात्मक अथवा विपरीत अर्थ देता है,जैसे-अप्रिय,अन्याय,अनीति ऊ अन्यत्र मूल शब्द के पूर्ण न होने की स्थिति भी दर्शाता है,जैसे-अदृश्य,अकर्म अ पूर्व प्रत्यय की एक अन्य विशेषता यह भी है कि वह मूल शब्द के भाव के अधिकार को सूचित करता है,जैसे-अघोर अक्स उतारने वाला अक्कास कहलाता है चित्रकार;अक्कास कहलाता है .

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अण्डमान क्रियोल हिन्दी

अण्डमान क्रियोल हिन्दी भारत के अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह के अण्डमान क्षेत्र में बोली जाने वाली एक क्रियोल भाषा है। १९९४ में प्रकाशित हुए एक भाषावैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार यह हिन्दी, बंगाली और मलयालम के मिश्रण पर आधारित है। यह विशेषकर क्षेत्रीय राजधानी पोर्ट ब्लेयर और उस से दक्षिण में स्थित गाँव-बस्तियों में बोली जाती हैं। at Ethnologue (17th ed., 2013) .

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अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान

जिस प्रकार सामान्य विज्ञान का व्यावहारिक पक्ष 'अनुप्रयुक्त विज्ञान' है, उसी प्रकार भाषाविज्ञान का व्यावहारिक पक्ष अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied linguistics) है। भाषासंबंधी मौलिक नियमों के विचार की नींव पर ही अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की इमारत खड़ी होती है। संक्षेप में, इसका संबंध व्यावहारिक क्षेत्रों में भाषाविज्ञान के अध्ययन के उपयोग से है। .

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अन्तरजालीय भाषाविज्ञान

अन्तरजालीय भाषाविज्ञान (Internet linguistics) भाषाविज्ञान की एक नवीनतम शाखा है। डेविड क्रिस्टल इसके प्रतिपादक हैं। इसके अन्तर्गत अन्तर्जाल एवं नये माध्यमों के कारण भाषाओं में आये नये परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। भाषाविज्ञान, अन्तरजालीय भाषाविज्ञान, अन्तरजालीय श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अन्तोनी मारिया अलकुवे ई सुरेदा

अन्तोनी मारिया अलकुवे ई सुरेदा (Antoni Maria Alcover i Sureda; 2 फ़रवरी 1862 – 8 जनवरी 1932) स्पेनी कातालोन्याई पादरी, भाषावैज्ञानिक, लेखक और इतिहासकार थे। मायोर्का द्वीप के निवासी अलकुवे की लेखन शैली आधुनिकतावादी थी व इन्होंने कई विविध विषयों जैसे रोमन कैथलिक गिरजाघर, लोककथाओं और भाषाविज्ञान में रचनाएँ की थीं। मुख्य रूप से इन्हें कैटलन भाषा और उसकी उपभाषाओं में रुचि पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से किए गए प्रयासों के लिए जाना जाता है तथा अपने इस कार्य के लिए ये इतने प्रसिद्ध हुए कि इन्हें 'भाषा का देवदूत' (कैटलन: apòstol de la llengua) कहा गया। इनके कुछ प्रमुख कार्यो में शामिल है कैटलन-वैलेंसियाई-बालेआरिक शब्दकोश। .

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अन्विता अब्बी

अन्विता अब्बी (जन्म ९ जनवरी १९४९) एक भारतीय भाषाविद और अल्पसंख्यक भाषाओं की विद्वान हैं। भाषा विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें २०१३ में, पद्म श्री को चौथी उच्चतम नागरिक पुरस्कार प्रदान करके उन्हें सम्मानित किया था। अन्विता अब्बी का जन्म ९ जनवरी १९४९ को आगरा में हुआ था। १९६८ में उन्होंने ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र (बीए ऑनर्स) में स्नातक प्राप्त की। उन्होंने १९७० में पहले डिवीजन और प्रथम रैंक के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय से ही भाषाविज्ञान में मास्टर डिग्री (एमए) हासिल की। और १९७५ में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, इथाका, यूएसए, से पीएचडी की। उन्होंने ने कैनसस स्टेट यूनिवर्सिटी में फ़रवरी १९७५ में दक्षिण एशिया मीडिया केंद्र के निदेशक के रूप में अपना करियर शुरू किया और वाहा एक साल तक काम किया। .

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अब्जद

अब्जद ऐसी लिपि होती है जिसमें हर अक्षर एक व्यंजन होता है। इसमें स्वर लिखा ही नहीं जाता और पाठक को स्वयं ही स्वर का अनुमान लगाना पड़ता है। प्राचीनकाल में फ़ोनीशियाई वर्णमाला एक अब्जद लिपि थी और उस से उत्पन्न यूनानी लिपि और आरामाई लिपि दोनों अब्जद थी। इसी प्रकार अरबी, इब्रानी और पहलवी लिपियाँ भी अब्जद थीं। कई आधुनिक अब्जद लिपियाँ अशुद्ध होती हैं, यानि उनमें कभी-कभी स्वर दर्शाए जाते हैं। इसका उदाहरण आधुनिक अरबी लिपि है। .

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अभिश्लेषण

बीच का संकेत हंहेरियन में है जो अत्यधिक अभिश्लेषित है। उपर एवं नीचे के संकेत क्रमशः रोमानियन एवं जर्मन में हैं, जो 'इन्फ्लेक्टेड भाषाएँ' हैं अभिश्लेषण (एग्लूटिनेशन) दो वस्तुओं का मिलना। भाषाविज्ञान में शब्दों के संमेलन को अभिश्लेषण कहते हैं। भाषा में पदों के द्वारा अर्थ का तथा परसर्ग आदि के द्वारा संबंध का बोध होता है। 'मेरे' शब्द में 'मैं' (अर्थ तत्व) और 'का' (संबंध तत्व) का अभिलेषण करके "मेरे' शब्द बनाया गया है। इस अभिलेषण के आधार पर ही भाषाओं का आकृतिमूलक वर्गीकरण किया जाता है। चीनी भाषा में अभिश्लेषण नहीं है किंतु तुर्की भाषा अभिश्लेषण का अच्छा उदाहरण है। इसके तीन मुख्य भेद हैं- (१) प्रश्लिष्ट अभिश्लेषण (इनकारपोरेशन), इसमें दोनों तत्वों को अलग नहीं किया जा सकता। (२) अभिश्लिष्ट अभिश्लेषण (सिंपुल एग्लूटिलेशन) में अभिश्लिष्ट तत्व पृथक्‌ दिखाई देते हैं। (३) श्लिष्ट अभिश्लेषण (इनफ़्लेक्शन) में यद्यपि अर्थ तत्व में विकार हो जाता है फिर भी संबंध तत्व अलग मालूम होता है। संस्कृत व्याकरण में अभिश्लेषण की प्रक्रिया को सामर्थ्य कहते हैं। वहाँ इसके एकार्थी भाव और व्यपेक्षा में दो भेद माने गए हैं। प्राचीन पाश्चात्य दर्शन में दो विचारों के समन्वय के लिए इसका प्रयोग हुआ है। चिकित्साशास्त्र में द्रव पदार्थ में बैक्टीरिया, सेल या जीवाणुओं के परस्पर संयोग के लिए इस शब्द का प्रयोग होता है। श्रेणी:अभिश्लेषणी भाषाएँ अभिश्लेषण अभिश्लेषण da:Agglutination.

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अर्थविज्ञान

भाषाविज्ञान के अन्तर्गत अर्थविज्ञान या 'शब्दार्थविज्ञान' (Semantics) शब्दों के अर्थ से सम्बन्धित विधा है। .

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अल्ताई भाषा-परिवार

अल्ताई भाषा परिवार का फैलाव अल्ताई पर्वत क्षेत्र में शुरू हुईं अल्ताई (अंग्रेज़ी: Altaic languages, ऑल्टेइक लैन्गवेजिज़) एक भाषा-परिवार है जिसमें तुर्की भाषाएँ, मंगोल भाषाएँ, तुन्गुसी भाषाएँ, जापानी भाषाएँ और कोरियाई भाषा आती हैं। अल्ताई भाषाएँ यूरेशिया के बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती हैं जो पूर्वी यूरोप से लेकर मध्य एशिया से होता हुआ सीधा जापान तक जाता है। इस परिवार में कुल मिलकर लगभग ७० जीवित भाषाएँ आती हैं और इन्हें बोलने वालों की तादाद वर्तमान विश्व में लगभग ५० करोड़ है। .

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अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट

अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट''' 1859 में 89 साल की उम्र में अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट (Alexander von Humboldt या Friedrich Wilhelm Heinrich Alexander von Humboldt; जन्म १७६९- मृत्यु १८५९ ई.) जर्मनी (तत्कालीन प्रशा) के भूगोलवेत्ता, प्रकृति विज्ञानी, और खोजकर्ता थे। उनका जन्म बर्लिन में तत्कालीन शाही परिवार में हुआ। हम्बोल्ट के बड़े भाई विल्हेम वॉन हम्बोल्ट एक प्रसिद्द भाषा विज्ञानी और प्रशा कि सरकार में मंत्री थे। हम्बोल्ट ने सर्वप्रथम वनस्पति विज्ञान में परिमाणात्मक विधियों का प्रयोग किया जिनसे जैव भूगोल की मजबूत आधारशिला का निर्माण हुआ। यह हम्बोल्ट ही थे जिनके द्वारा भूगोलीय घटनाओं की दीर्घावधिक मॉनिटरिंग वकालत की गयी और इस कार्य ने आधुनिक भूचुम्बकीय और मौसम वैज्ञानिक प्रेक्षणों का मार्ग प्रशस्त किया। हम्बोल्ट एक अनुभववादी विचारक थे और घटनाओं के प्रेक्षण और मापन में यकीन रखते थे। उन्होंने घर में बैठकर चिंतन करके लेखन करने की बजाय भ्रमण करके घटनाओं के प्रेक्षण के बाद उनके निरूपण की विधा पर कार्य किया। हम्बोल्ट ने अपने जीवन में लगबग साढ़े छह हजार किलोमीटर की यात्रायें कीं जिनमें सबसे प्रमुख उनकी दक्षिण अमेरिका की यात्रा है। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस महादीप की यात्रा और इसका वर्णन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने दूरबीन, तापमापी, साइनोमीटर, सेक्सटैंट, वायुदाबमापी इत्यादि उपकरणों से लैस होकर मापन कार्य किये और उनकी इस यात्रा के वर्णन का प्रकाशन २१ खण्डों में हुआ। हम्बोल्ट उन पहले लोगों में से थे जिन्होंने दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कभी जुड़े हुए होने की बात कही थी। हम्बोल्ट कि सबसे प्रमुख कृति कॉसमॉस है जिसमें उन्होंने संश्लेषणात्मक विचारों के साथ ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में सामंजस्य और एकता लाने का प्रयास किया है। इस कार्य में वे ब्रह्माण्ड को एक एकीकृत इकाई के रूप में भी पुरःस्थापित किया। वे अनेकता में एकता के सिद्धांत के पुरोधा थे। .

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अशाब्दिक संप्रेषण

अशाब्दिक संप्रेषण (non-verbal communication /NVC) से तात्पर्य सामान्यतः शब्द रहित संदेशों को भेजने एवं प्राप्त करने की संप्रेषण प्रक्रिया से है। अर्थात् भाषा ही संप्रेषण का एकमात्र माध्यम नहीं है, कुछ अन्य माध्यम भी हैं। इस प्रकार के संप्रेषण के लिए 'अवाचिक संप्रेषण', 'वाचेतर संपेष्रण'; 'अशाब्दिक संचार' आदि शब्दों का भी प्रयोग होता है। अशाब्दिक संप्रेषण को शारीरिक हाव-भाव एवं स्पर्श (हैपटिक संप्रेषण), शारीरिक भाषा एवं भावभंगिमा, चेहरे की अभिव्यक्ति या आँखों के संपर्क से भी संप्रेषित किया जा सकता है। एन वी सी (NVC) को वस्तु सामग्री संप्रेषण यथा - वस्त्र, बालों की स्टाइल या स्थापत्य, प्रतीकों व चित्रों के माध्यम से भी संप्रेषित किया जा सकता है। आवाज या वाणी में पैरालैग्वेज नामक अशाब्दिक तत्व सम्मिलित होते हैं जिनमें आवाज की गुणवत्ता, भावना, बोलने के तरीके के साथ-साथ ताल, लय, आलाप एवं तनाव जैसे छन्द शास्त्र संबंधी लक्षण भी सम्मिलित हैं। नृत्य को भी अशाब्दिक संप्रेषण माना जाता है। इसी तरह, लिखित पाठ में भी अशाब्दिक तत्व होते हैं जैसे - हस्तलेखन तरीका, शब्दों की स्थान संबंधी व्यवस्था या इमोटिकॉन (emoticons) का प्रयोग.

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अंकन

भाषाविज्ञान और संकेतविज्ञान में अंकन (notation) चित्रालेखों, चिन्हों, अक्षरों या अन्य संक्षिप्त व्यंजकों की प्रणाली होती है जिनके द्वारा किसी वैज्ञानिक या कलात्मक अध्ययन की शाखा में तकनीकी तथ्य और मापी गई मात्राएँ प्रदर्शित की जाती है। किसी अंकित चिन्ह का क्या अर्थ है, यह उस अध्ययन में जुटे विशेषज्ञों द्वारा आपसी सहमति से और ऐतिहासिक प्रयोग के आधार पर स्थापित कर लिया जाता है। उदाहरण के लिये रसायन शास्त्र में रासायनिक सूत्र दर्शाने के लिये हर रासायनिक तत्व के लिये एक अंकन चुना गया है, जिसके अनुसार पानी है। .

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अक्षर

भाषाविज्ञान में 'अक्षर' या शब्दांश (अंग्रेज़ी: syllable सिलाबल) ध्वनियों की संगठित इकाई को कहते हैं। किसी भी शब्द को अंशों में तोड़कर बोला जा सकता है और शब्दांश शब्द के वह अंश होते हैं जिन्हें और ज़्यादा छोटा नहीं बनाया जा सकता वरना शब्द की ध्वनियाँ बदल जाती हैं। उदाहरणतः 'अचानक' शब्द के तीन शब्दांश हैं - 'अ', 'चा' और 'नक'। यदि रुक-रुक कर 'अ-चा-नक' बोला जाये तो शब्द के तीनों शब्दांश खंडित रूप से देखे जा सकते हैं लेकिन शब्द का उच्चारण सुनने में सही प्रतीत होता है। अगर 'नक' को आगे तोड़ा जाए तो शब्द की ध्वनियाँ ग़लत हो जातीं हैं - 'अ-चा-न-क'.

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अक्षर कला

मुद्रण कला मुद्रण को सजाने, मुद्रण डिजाइन तथा मुद्रण ग्लिफ्स को संशोधित करने की कला एवं तकनीक है। मुद्रण ग्लिफ़ को विभिन्न उदाहरण तकनीकों का उपयोग करके बनाया और संशोधित किया जाता है। मुद्रण की सजावट में टाइपफेस का चुनाव, प्वायंट साईज, लाइन की लंबाई, लिडिंग (लाइन स्पेसिंग) अक्षर समूहों के बीच स्पेस (ट्रैकिंग) तथा अक्षर जोड़ों के बीच के स्पेस (केर्निंग) को व्यवस्थित करना शामिल हैं। टाइपोग्राफी का टाइपसेटर, कम्पोजिटर, टाइपोग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर, कला निर्देशक, कॉमिक बुक कलाकार, भित्तिचित्र कलाकार तथा क्लैरिकल वर्करों द्वारा किया जाता है। डिजिटल युग के आने तक टाइपोग्राफी एक विशेष प्रकार का व्यवसाय था। डिजिटलीकरण ने टाइपोग्राफी को नई पीढ़ी के दृश्य डिजाइनरों और ले युजरों के लिए सुगम बना दिया.

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उच्चारण

1. नासिका (नाक); 2. ओष्ठ (ओठ); 3. दन्त; 4. तालु; 5. जिस प्रकार से कोई शब्द बोला जाता है; या कोई भाषा बोली जाती है; या कोई व्यक्ति किसी शब्द को बोलता है; उसे उसका उच्चारण (pronunciation)" कहते हैं। भाषाविज्ञान में उच्चारण के शास्त्रीय अध्ययन को ध्वनिविज्ञान की संज्ञा दी जाती है। भाषा के उच्चारण की ओर तभी ध्यान जाता है जब उसमें कोई असाधारणता होती है, जैसे.

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उपभाषा

उपभाषा (अंग्रेज़ी: dialect, डायालॅक्ट​) किसी भाषा के ऐसे विशेष रूप को बोलते हैं जिसे उस भाषा के बोलने वाले लोगों में एक भिन्न समुदाय प्रयोग करता हो। अक्सर 'उपभाषा' किसी भाषा के क्षेत्रीय प्रकारों को कहा जाता है, उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ी, हरयाणवी, मारवाड़ी, ब्रजभाषा और खड़ीबोली हिन्दी की कुछ क्षेत्रीय उपभाषाएँ हैं।, Manisha Kulshreshtha, Ramkumar Mathur, pp.

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उपभाषा विज्ञान

उपभाषा विज्ञान या बोली विज्ञान (Dialectology) भाषाविज्ञान की एक है शाखा जो बोलियों को भौगोलिक वितरण और व्याकरण की दृष्टि से अपने अध्ययन का लक्ष्य बनाती है। भौगोलिक वितरण पर विचार करते हुए सामाजिक वर्गों, जातीय स्तरों, व्यावसायिक वैविध्यों और धार्मिक, सांस्कृतिक विशेषताओं का भी ध्यान रखा जाता है। इन सब के अतिरिक्त बोली विज्ञान का एक लक्ष्य और भी है जिसे कोशविज्ञान (lexicology) का अंग माना जाता है। इसमें विभिन्न बोलियों के शब्दों को ध्वन्यात्मक प्रतिलेखन (Phonetic Transcription) में संगृहीत कर उनकी संकेतसीमा (Referent Range) स्पष्ट की जाती है। .

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उइगुर भाषा

मान्छु में लिखा हुआ है - इसमें उइग़ुर लिखाई 'रोशन अवतरादाक़ी दारवाज़ा' कह रही है, यानि 'रोशन सुन्दर दरवाज़ा' - हिंदी और उइग़ुर में बहुत से समान शब्द मिलते हैं उइग़ुर, जिसे उइग़ुर में उइग़ुर तिलि या उइग़ुरचे कहा जाता है, चीन का शिंच्यांग प्रांत की एक प्रमुख भाषा है, जिसे उइग़ुर समुदाय के लोग अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। उइग़ुर भाषा और उसकी प्राचीन लिपि पूरे मध्य एशिया में और कुछ हद तक भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में भी, बहुत प्रभावशाली रहे हैं। सन् २००५ में अनुमानित किया गया था कि उइग़ुर मातृभाषियों कि संख्या लगभग १ से २ करोड़ के बीच है।, Peter Austin, University of California Press, 2008, ISBN 978-0-520-25560-9,...

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ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष

सुभाष काक द्वारा लिखी गई-ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष। ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष यह अंग्रेज़ी में लिखी सुभाष काक की १९९४ (और २००० में बडा संस्करण) प्रकाशित पुस्तक दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद है। इसमें सदियों से लुप्त वैदिक काल के ज्योतिष की व्याख्या है। इसका भारत के इतिहास की समझ के लिये भी बहुत महत्व है। इससे काल-क्रम पर भी प्रकाश डलता है। और यह समझ आती है कि क्यों ऋग्वेद में ४३२००० अक्षर हैं। इस ग्रन्थ से वैदिक अध्ययन को बहुत स्फूर्ति मिली है। अमेरिका के वेदपण्डित वामदेव शास्त्री ने इस शोध को स्मारकीय उपलब्धि (monumental achievement) कहा है।'दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद' के जिल्द से, मुंशीराम मनोहारलाल, नई दिल्ली, २०००। कनाडा के विख्यात आचार्य क्लास क्लास्टरमेयर के अनुसार, "मेरी बहुत देर की समझ थी कि ऋग्वेद में भाषाशास्त्र और इतिहास के परे बहुत कुछ था। यह है वह!...

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