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भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार

सूची भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार

१ अप्रैल १९३३ को मोहम्मद युनुस ने अपने नेतृत्व में प्रथम भारतीय मन्त्रिमण्डल बिहार में स्थापित किया गया। इसके सदस्य बहाव अली, कुमार अजिट प्रताप सिंह और गुरु सहाय लाल थे। युनुस मन्त्रिमण्डल के गठन के दिन जयप्रकाश नारायण, बसावन सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसके विरुद्ध प्रदर्शन किया। फलतः गवर्नर ने वैधानिक कार्यों में गवर्नर हस्तक्षेप नहीं करेगी का आश्‍वासन दिया। ७ जुलाई १८३७ को कांग्रेस कार्यकारिणी ने सरकारों के गठन का फैसला लिया। मोहम्मद यूनुस के अन्तरिम सरकार के त्यागपत्र के बाद २० जुलाई १९३७ को श्रीकृष्ण सिंह ने अपने मन्त्रिमण्डल का संगठन किया लेकिन १५ जनवरी १९३८ में राजनीतिक कैदियों की रिहाई के मुद्दे पर अपने मन्त्रिमण्डल को भंग कर दिया। १९ मार्च १९३८ को द्वितीय विश्‍व युद्ध में बिना ऐलान के भारतीयों को शामिल किया गया, जिसका पूरे देश भर में इसके विरुद्ध प्रदर्शन हुआ। २७ जून १९३७ में लिनलियथगो ने आश्‍वासन दिया कि भारतीय मन्त्रियों के वैधानिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। आजाद दस्ता- यह भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद क्रान्तिकारियों द्वारा प्रथम गुप्त गतिविधियाँ थीं। जयप्रकाश नारायण ने इसकी स्थापना नेपाल की तराई के जंगलों में रहकर की थी। इसके सदस्यों को छापामार युद्ध एवं विदेशी शासन को अस्त-व्यस्त एवं पंगु करने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। बिहार प्रान्तीय आजाद दस्ते का नेतृत्व सूरज नारायण सिंह के अधीन था। परन्तु भारत सरकार के दबाव में मई, १९४३ में जय प्रकाश नारायण, डॉ॰ लोहिया, रामवृक्ष बेनीपुरी, बाबू श्यामनन्दन, कार्तिक प्रसाद सिंह इत्यादि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और हनुमान नगर जेल में डाल दिया गया। आजाद दस्ता के निर्देशक सरदार नित्यानन्द सिंह थे। मार्च, १९४३ में राजविलास (नेपाल) में प्रथम गुरिल्ला प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई। सियाराम दल- बिहार में गुप्त क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेतृत्व सियाराम दल ने स्थापित किया था। इसके क्रान्तिकारी दल के कार्यक्रम की चार बातें मुख्य थीं- धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण तथा सरकार का प्रतिरोध करने के लिए जनसंगठन बनाना। सियाराम दल का प्रभाव भागलपुर, मुंगेर, किशनगंज, बलिया, सुल्तानगंज, पूर्णिया आदि जिलों में था। सियाराम सिंह सुल्तानगंज के तिलकपुर गांव के निवासी थे l क्रान्तिकारी आन्दोलन में हिंसा और पुलिस दमन के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं। तारापुर गोलीकांड:- मुंगेर जिले के तारापुर थाना में तिरंगा फहराते हुए 60 क्रांतिकारी शहीद हुए थे। 15 फ़रवरी 1932 की दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने मुंगेर जिला के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े | उन अमर सेनानियों ने हाथों में राष्ट्रीय झंडा और होठों पर वंदे मातरम, भारत माता की जय नारों की गूंज लिए हँसते-हँसते गोलियाँ खाई थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े गोलीकांड में देशभक्त पहले से लाठी-गोली खाने को तैयार हो कर घर से निकले थे। 50 से अधिक सपूतों की शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया | आजादी मिलने के बाद से हर साल 15 फ़रवरी को स्थानीय जागरूक नागरिकों के द्वारा तारापुर दिवस मनाया जाता है। जालियावाला बाग से भी बड़ी घटना थी तारापुर गोलीकांड। सैकड़ों लोगों ने धावक दल को अंग्रेजों के थाने पर झंडा फहराने का जिम्मा दिया था। और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए जनता खड़ी होकर भारतमाता की जय, वंदे मातरम्.आदि का जयघोष कर रहे थे। भारत माँ के वीर बेटों के ऊपर अंग्रेजों के कलक्टर ई ओली एवं एसपी डब्ल्यू फ्लैग के नेतृत्व में गोलियां दागी गयी थी। गोली चल रही थी लेकिन कोई भाग नहीं रहा था। लोग डटे हुए थे। इस गोलीकांड के बाद कांग्रेस ने प्रस्ताव पारित कर हर साल देश में 15 फ़रवरी को तारापुर दिवस मनाने का निर्णय लिया था। घटना के बाद अंग्रेजों ने शहीदों का शव वाहनों में लाद कर सुलतानगंज की गंगा नदी में बहा दिया था। शहीद सपूतों में से केवल 13 की ही पहचान हो पाई थी। ज्ञात शहीदों में विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढि़या), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगांव) थे। 31 अज्ञात शव भी मिले थे, जिनकी पहचान नहीं हो पायी थी। और कुछ शव तो गंगा की गोद में समा गए थे। इलाके के बुजुर्गों के अनुसार शंभुगंज थाना के खौजरी पहाड में तारापुर थाना पर झंडा फहराने की योजना बनी थी। खौजरी पहाड, मंदार, बाराहाट और ढोलपहाड़ी तो जैसे क्रांतिकारियों की सुरक्षा के लिए ही बने थे। प्रसिद्द क्रन्तिकारी सियाराम-ब्रह्मचारी दल भी इन्हीं पहाड़ों में बैठकर आजादी के सपने देखा करते थे। थाना बिहपुर से लेकर गंगा के इस पार बांका –देवघर के जंगलों –पहाड़ों ताक क्रांतिकारियों का असर बहुत अधिक हुआ करता था। मातृभूमि की रक्षा के लिए जान लेने वाले और जान देने वाले दोनों तरह के सेनानियों ने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर रखा था। इतिहासकार डी सी डीन्कर ने अपनी किताब “ स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान “ में भी तारापुर की इस घटना का जिक्र करते हुए विशेष रूप से संता पासी के योगदान का उल्लेख किया है। पंडित नेहरु ने भी 1942 में तारापुर की एक यात्रा पर 34 शहीदों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा था “ The faces of the dead freedom fighters were blackened in front of the resident of Tarapur “ ११ अगस्त १९४२ को सचिवालय गोलीकाण्ड बिहार के इतिहास वरन्‌ भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक अविस्मरणीय दिन था। पटना के जिलाधिकारी डब्ल्यू.

6 संबंधों: बिहार, बिहार का आधुनिक इतिहास, बिहार का इतिहास, भारत छोड़ो आन्दोलन, रमेश चन्द्र झा, शहीद स्मारक, पटना

बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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बिहार का आधुनिक इतिहास

आधुनिक बिहार का संक्रमण काल १७०७ ई. से प्रारम्भ होता है। १७०७ ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद राजकुमार अजीम-ए-शान बिहार का बादशाह बना। जब फर्रुखशियर १७१२-१९ ई. तक दिल्ली का बादशाह बना तब इस अवधि में बिहार में चार गवर्नर बने। १७३२ ई. में बिहार का नवाब नाजिम को बनाया गया। .

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बिहार का इतिहास

बिहार के इतिहास को तीन काल-खण्डों में बांटकर देखा जा सकता है। .

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भारत छोड़ो आन्दोलन

बंगलुरू के बसवानगुडी में दीनबन्धु सी एफ् अन्ड्रूज का भाषण भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ८ अगस्त १९४२ को आरम्भ किया गया था|यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद ९ अगस्त सन १९४२ को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय काँगेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधि गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया। .

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रमेश चन्द्र झा

रमेशचन्द्र झा (8 मई 1928 - 7 अप्रैल 1994) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय क्रांतिकारी थे जिन्होंने बाद में साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वे बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ हिन्दी के कवि, उपन्यासकार और पत्रकार भी थे। बिहार राज्य के चम्पारण जिले का फुलवरिया गाँव उनकी जन्मस्थली है। उनकी कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है। आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है। "अपने और सपने: चम्पारन की साहित्य यात्रा" नाम के एक शोध-परक पुस्तक में उन्होंने चम्पारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत को भी बखूबी सहेजा है। यह पुस्तक न केवल पूर्वजों के साहित्यिक कार्यों को उजागर करता है बल्कि आने वाले संभावी साहित्यिक पीढ़ी की भी चर्चा करती है। .

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शहीद स्मारक, पटना

शहीद स्मारक, सात युवा पुरुषों की एक जीवन-आकार की मूर्ति है जो भारत छोड़ो आन्दोलन (अगस्त 1942) में अपनी ज़िंदगी का बलिदान करता था, (अब) सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। 15 अगस्त 1947 को बिहार के गवर्नर श्री जयराम दास दौलतराम ने शहीद स्मारक की आधारशिला रखी। मूर्तिकार देवप्रसाद रॉयचौधरी ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ सात विद्यार्थियों की कांस्य प्रतिमा का निर्माण किया। इन मूर्तियों को इटली में डाली गई और बाद में यहां रखा गया। शहीद का स्मारक पटना में सचिवालय भवन के बाहर स्थित है। .

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