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भारत के महाराज्यपाल

सूची भारत के महाराज्यपाल

भारत के महाराज्यपाल या गवर्नर-जनरल (१८५८-१९४७ तक वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल अर्थात राजप्रतिनिधि एवं महाराज्यपाल) भारत में ब्रिटिश राज का अध्यक्ष और भारतीय स्वतंत्रता उपरांत भारत में, ब्रिटिश सम्प्रभु का प्रतिनिधि होता था। इनका कार्यालय सन 1773 में बनाया गया था, जिसे फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी का गवर्नर-जनरल के अधीन रखा गया था। इस कार्यालय का फोर्ट विलियम पर सीधा नियंत्रण था, एवं अन्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का पर्यवेक्षण करता था। सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण अधिकार 1833 में दिये गये और तब से यह भारत के गवर्नर-जनरल बन गये। १८५८ में भारत ब्रिटिश शासन की अधीन आ गया था। गवर्नर-जनरल की उपाधि उसके भारतीय ब्रिटिश प्रांत (पंजाब, बंगाल, बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, इत्यादि) और ब्रिटिष भारत, शब्द स्वतंत्रता पूर्व काल के अविभाजित भारत के इन्हीं ब्रिटिश नियंत्रण के प्रांतों के लिये प्रयोग होता है। वैसे अधिकांश ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश सरकार द्वारा सीधे शासित ना होकर, उसके अधीन रहे शासकों द्वारा ही शासित होता था। भारत में सामंतों और रजवाड़ों को गवर्नर-जनरल के ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि होने की भूमिका को दर्शित करने हेतु, सन १८५८ से वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया (जिसे लघुरूप में वाइसरॉय कहा जाता था) प्रयोग हुई। वाइसरॊय उपाधि १९४७ में स्वतंत्रता उपरांत लुप्त हो गयी, लेकिन गवर्नर-जनरल का कार्यालय सन १९५० में, भारतीय गणतंत्रता तक अस्तित्व में रहा। १८५८ तक, गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों द्वारा चयनित किया जाता था और वह उन्हीं को जवाबदेह होता था। बाद में वह महाराजा द्वारा ब्रिटिश सरकार, भारत राज्य सचिव, ब्रिटिश कैबिनेट; इन सभी की राय से चयन होने लगा। १९४७ के बाद, सम्राट ने उसकी नियुक्ति जारी रखी, लेकिन भारतीय मंत्रियों की राय से, ना कि ब्रिटिश मंत्रियों की सलाह से। गवर्नर-जनरल पांच वर्ष के कार्यकाल के लिये होता था। उसे पहले भी हटाया जा सकता था। इस काल के पूर्ण होने पर, एक अस्थायी गवर्नर-जनरल बनाया जाता था। जब तक कि नया गवर्नर-जनरल पदभार ग्रहण ना कर ले। अस्थायी गवर्नर-जनरल को प्रायः प्रान्तीय गवर्नरों में से चुना जाता था। .

130 संबंधों: चार्ल्स मैटकाफ, चार्ल्स, वेल्स के राजकुमार, एल्यूरेड क्लार्क, डच इस्ट इंडिया कंपनी, तुवालुवी राजतंत्र, तुवालू के गवर्नर-जनरल, दिल्ली दरबार, दिल्ली जिला न्यायालय, दक्षिण अफ़्रीकी संघ, नई दिल्ली, न्यूज़ीलैण्ड का राजतंत्र, पापुआ न्यू गिनी का राजतंत्र, पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर-जनरल, पाक अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान के गवर्नर जनरल, बहामाज़ के गवर्नर-जनरल, बहामियाई राजतंत्र, बारबाडोस का राजतंत्र, बारबाडोस के गवर्नर-जनरल, ब्रिटिश भारतीय सेना, ब्रिटिश राज, ब्रिटिश राज का इतिहास, ब्रिटिश राजतंत्र, बेलीज़ के गवर्नर-जनरल, बेलीज़ियाइ राजतंत्र, बॅल्फ़ोर घोषणा, १९२६, बोरोबुदुर, भारत में मानवाधिकार, भारत सरकार अधिनियम, १९३५, भारत के ध्वजों की सूची, भारत के महाराज्यपाल, भारत के राष्ट्रपति, भारत के सम्राट, भारत के गवर्नर जनरलों की सूची, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, भारतीय सैन्य अकादमी, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय गेज, भारतीय अधिराज्य, मिशेल जीन, मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार, राष्ट्रपति निवास, राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमि, राष्ट्रमण्डल के प्रमुख, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत), रासबिहारी बोस, राजेन्द्र प्रसाद, रॉबर्ट नैपियर, ललितामहल, ..., लुईस माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन, लॉर्ड चेम्स्फोर्ड, लॉर्ड एम्हर्स्ट, लॉर्ड एल्गिन द्वितीय, लॉर्ड ऐम्प्थिल, लॉर्ड ऐलनबरो, लॉर्ड डफरिन, लॉर्ड डलहौजी, लॉर्ड नैपियर, लॉर्ड नॉर्थब्रूक, लॉर्ड बैन्टिक, लॉर्ड मिंटो, लॉर्ड मेयो, लॉर्ड राइपन, लॉर्ड लिट्टन, लॉर्ड लैंस्डाउन, लॉर्ड हार्डिंग, लॉर्ड विलियम बैन्टिक, लॉर्ड विलिंग्डन, लॉर्ड वैलेस्ली, लॉर्ड ऑकलैंड, लॉर्ड इर्विन, लॉर्ड कर्जन, लॉर्ड कैनिंग, लॉर्ड कॉर्नवालिस, लोधी उद्यान, दिल्ली, सफदरजंग विमानक्षेत्र, सर सोराबजी पोचखानवाला, सिंगापुर का इतिहास, सेण्ट किट्स और नेविस, सेंट लूसिया का राजतंत्र, सेंट लूसिया के गवर्नर-जनरल, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस का राजतंत्र, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के गवर्नर-जनरल, सेंट किट्स और नेविस का राजतंत्र, सेंट किट्स और नेविस के गवर्नर-जनरल, सोलोमन द्वीप का राजतंत्र, सोलोमन द्वीप के गवर्नर-जनरल, हिंदचीन, हज़ारद्वारी महल, हुमायूँ का मकबरा, हैनरी हार्डिंग, जमैकन राजतंत्र, जमैका के गवर्नर-जनरल, जेम्स ब्रूस, जॉन लॉरेंस, जॉन शोर, जॉन स्ट्रैचे, जॉर्ज हिलेरियो बार्लो, वाराणसी, वारेन हेस्टिंग्स, वाइपर द्वीप, वाइसरॉय, विलियम डैनिसन, विलियम बटर्वर्थ बेले, विलियम विबरफोर्स बर्ड, विक्टर ब्रूस, विक्टर होप, व्यपगत का सिद्धान्त, ग्रेनेडा का राजतंत्र, ग्रेनेडा के गवर्नर-जनरल, ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल, ऑस्ट्रेलियाई राजतंत्र, आयरिश मुक्त राज्य, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, इस्कंदर मिर्ज़ा, कलकत्ता का सम्मेलन, कंपनी राज, क्रॅसि, कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ, कैनेडियाइ राजतंत्र, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, कोहिनूर हीरा, अण्टीगुआ और बारबुडा का राजतंत्र, अण्टीगुआ और बारबुडा के गवर्नर-जनरल, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, अब्दुर रहमान ख़ान, अल्मोड़ा का इतिहास, १४ सितम्बर, १९४७ का भारत-पाक युद्ध सूचकांक विस्तार (80 अधिक) »

चार्ल्स मैटकाफ

सर चार्ल्स मैटकाफ (१७८५-१८४६) भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। इनका जन्म कलकत्ते में सेना के एक मेजर के घर सन् १७८५ ईसवीं में हुआ। प्रारंभ से ही इनका अनेक भाषाओं की ओर रुझान रहा। १५ वर्ष की उम्र में कंपनी की नौकरी में एक क्लर्क के रूप में प्रविष्ट हुए। शीघ्र ही गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली की, जिसे योग्य व्यक्तियों को पहचानने की अपूर्व क्षमता थी, निगाह इनके ऊपर पड़ी और आपने महाज सिंधिया के दरबार में स्थित रेजीडेंट के सहायक के पद से अपना कार्य प्रारंभ कर, अनेक पदों पर कार्य किया। सन् १८०८ में इन्होने अंग्रेजी राजदूत की हैसियत से सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह को अपनी विस्तार नीति को सीमित करने पर बाध्य कर दिया तथा सन् १८०९ ई० की अमृतसर की मैत्रीपूर्ण संधि का महाराज रणजीत सिंह ने यावज्जीवन पालन किया। गर्वनर जनरल लार्ड हेंसटिंग्ज ने इनके माध्यम से ही विद्रोही खूखाँर पठान सरदार अमीर खान तथा अंग्रेजों के बीच संधि कराई। भरतपुर के सुदृढ़ किले को भी नष्ट करने में आपका योगदान था। सन् १८२७ में इन्हे नाइट पदवी से विभूषित किया गया। जब आगरे का नया प्रांत बना तो आपको ही उसका प्रथम गवर्नर मनोनीत किया गया। थोड़े ही दिनों में इनको अस्थायी गवर्नर जनरल बनाया गया। इस कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण कार्य भारतीय प्रेस को स्वतंत्र बनाना था। सन् १८३८ ईसवीं में ये स्वदेश लौट गए। तदुपरांत इन्होने जमायका के गवर्नर का तथा कनाडा के गर्वनर-जनरल का पदभार संभाला। अंत में १८४६ में कैंसर के भीषण रोग से इनकी मृत्यु हो गई। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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चार्ल्स, वेल्स के राजकुमार

वेल्स के राजकुमार, युवराज चार्ल्स (चार्ल्स फिलिप ऑर्थर जॉर्ज; जन्म 14 नवम्बर 1948) महारानी एलिज़ाबेथ II और एडिनबर्ग के ड्यूक, राजकुमार फिलिप के ज्येष्ट पुत्र हैं। 1952 से ही वे राष्ट्रमंडल शक्तियों की गद्दी के स्पष्ट उत्तराधिकारी रहे हैं। कैम्ब्रिज, ट्रिनिटी कॉलेज से कला में स्नातक प्राप्त करने के बाद उन्होंने रॉयल नेवी मे 1971-1976 तक अपनी सेवाओं का निर्वहन किया। 1981 में उन्होंने लेडी डायना स्पेंसर के साथ संसार भर के टेलीविजन के विशाल दर्शकों के सामने ब्याह रचाया.

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एल्यूरेड क्लार्क

एल्यूरेड क्लार्क फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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डच इस्ट इंडिया कंपनी

वेरऐनिख़्डे ऑव्स्टिडिस्ख़े कोम्पाख़्नी, वीओसी (डच: Verenigde Oostindische Compagnie, VOC) या अंग्रेज़ीकरण यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी नीदरलैंड की एक व्यापारिक कंपनी है जिसकी स्थापना 1602 में की गई और इसे 21 वर्षों तक मनमाने रूप से व्यापार करने की छूट दी गई। भारत आने वाली यह सब से पहली यूरोपीय कंपनी थी। .

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तुवालुवी राजतंत्र

तुवालुवी राजतंत्र, तुवालू की संवैधानिक राजतंत्र है। तुवालू के एकाधिदारुक को तुवालू और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही तुवालू की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। तुवालू सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और तुवालू के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, तुवालू के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " तुवालू की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " तुवालू के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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तुवालू के गवर्नर-जनरल

तुवालू के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, तुवालू की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, तुवालू की रानी, जोकी तुवालू और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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दिल्ली दरबार

दिल्ली दरबार का विहंगम दृष्य सन 1877 का दिल्ली दरबार, भारत के वाइसरॉय बांयीं ओर चबूतरे पर बैठे हैं। दिल्ली दरबार, दिल्ली, भारत में राजसी दरबार होता था। यह इंगलैंड के महाराजा या महारानी के राजतिलक की शोभा में सजते थे। ब्रिटिश साम्राज्य चरम काल में, सन 1877 से 1911 के बीच तीन दरबार लगे थे। सन 1911 का दरबार एकमात्र ऐसा था, कि जिसमें सम्राट स्वयं, जॉर्ज पंचम पधारे थे। .

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दिल्ली जिला न्यायालय

दिल्ली जिला न्यायालय का चिह्न भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल द्वारा दिनांक १७ सितंबर १९१२ को जारी की गई प्रोकलेमेशन संख्या ९११ के अन्तर्गत दिल्ली को विशेष वैधानिक क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई। इस नोटिफिकेशन के द्वारा दिल्ली पर भारत के गवर्नर जनरल का प्रत्यक्ष प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा इसके प्रबंधन का उतरदायित्व भी गवर्नर जनरल के हाथ में आ गया। इस नोटिफिकेशन के जारी होने के बाद मि.विलियम मैलकोम हैले, सी.आई.ई., आई.सी.एस.

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दक्षिण अफ़्रीकी संघ

दक्षिण अफ़्रीकी संघ यानि यूनियन ऑफ़ साउथ ऍफ़्रिका, वर्त्तमान दक्षिण अफ़्रीका का पुरख राज्य था। इसकी स्थापना, ३१ मई १९१० में, अफ्रीका के दक्षिणी छोर पर ष्टिं चार पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश:केप कॉलोनी, नटाल कॉलोनी, ट्रांसवाल उपनिवेश और ऑरेंज रिवर कॉलोनी के एकीकरण से हुई थी। संयुक्त प्रशासन की स्थापना के बाद, इन चार पूर्व उपनिवेशों को, प्रांतों बना दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात, जर्मनी के दक्षिण-पश्चिम अफ़्रीका उपनिवेश को भी लीग ऑफ़ नेशन्स द्वारा दक्षिण अफ़्रीकी संघ के प्रशासन के अंतर्गत एक मैंडेट के रूप में दे दिया गया। हालाँकि सैद्धान्तिक तौर पर यह एक मैंडेट था, परंतु वास्तविक रूप से इसे भी एक प्रान्त के रूप में प्रशासित किया जाता था। इसे ब्रिटिश साम्राज्य के एक डोमिनियन के रूप में स्थापित किया गया था। इसे ब्रिटेन द्वारा एक संवैधानिक राजशाही के रूप में प्रशासित किया जाता था, जिसमें एक गवर्नर-जनरल ब्रिटिश शासक के प्रतिनिधि के रूप में थे। ३१ मई १९६१ को, इस देश ने बिटिश ताज से अपना नाता तोड़ लिया और एक दक्षिण अफ़्रीकी गणराज्य के नाम से एक संप्रभु गणराज्य बन गयी। १९६१ के संविधान के परवर्तन के साथ ही इस राज्य का अंत हो गया। .

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नई दिल्ली

नई दिल्ली भारत की राजधानी है। यह भारत सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के केंद्र के रूप में कार्य करता है। नई दिल्ली दिल्ली महानगर के भीतर स्थित है, और यह दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के ग्यारह ज़िलों में से एक है। भारत पर अंग्रेज शासनकाल के दौरान सन् 1911 तक भारत की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) था। अंग्रेज शासकों ने यह महसूस किया कि देश का शासन बेहतर तरीके से चलाने के लिए कलकत्ता की जगह यदि दिल्‍ली को राजधानी बनाया जाए तो बेहतर होगा क्‍योंकि य‍ह देश के उत्तर में है और यहां से शासन का संचालन अधिक प्रभावी होगा। इस पर विचार करने के बाद अंग्रेज महाराजा जॉर्ज पंचम ने देश की राजधानी को दिल्‍ली ले जाने के आदेश दे दिए। वर्ष 2011 में दिल्ली महानगर की जनसंख्या 22 लाख थी। दिल्ली की जनसंख्या उसे दुनिया में पाँचवीं सबसे अधिक आबादी वाला, और भारत का सबसे बड़ा महानगर बनाती है। क्षेत्रफल के अनुसार भी, दिल्ली दुनिया के बड़े महानगरों में से एक है। मुम्बई के बाद, वह देश का दूसरा सबसे अमीर शहर है, और दिल्ली का सकल घरेलू उत्पाद दक्षिण, पश्चिम और मध्य एशिया के शहरों में दूसरे नम्बर पर आता है। नई दिल्ली अपनी चौड़ी सड़कों, वृक्ष-अच्छादित मार्गों और देश के कई शीर्ष संस्थानो और स्थलचिह्नों के लिए जानी जाती है। 1911 के दिल्ली दरबार के दौरान, 15 दिसम्बर को शहर की नींव भारत के सम्राट, जॉर्ज पंचम ने रखी, और प्रमुख ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लुट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर ने इसकी रूपरेखा तैयार की। ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन द्वारा 13 फ़रवरी 1931 को नई दिल्ली का उद्घाटन हुआ। बोलचाल की भाषा में हालाँकि दिल्ली और नयी दिल्ली यह दोनों नाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अधिकार क्षेत्र को संदर्भित करने के लिए के प्रयोग किये जाते हैं, मगर यह दो अलग-अलग संस्था हैं और नयी दिल्ली, दिल्ली महानगर का छोटा सा हिस्सा है। .

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न्यूज़ीलैण्ड का राजतंत्र

न्यूज़ीलैण्ड का राजतंत्र, न्यूज़ीलैण्ड की संवैधानिक राजतंत्र है। न्यूज़ीलैण्ड के एकाधिदारुक को न्यूज़ीलैण्ड और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही न्यूज़ीलैण्ड की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। न्यूज़ीलैण्ड सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और न्यूज़ीलैण्ड के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, न्यूज़ीलैण्ड के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " न्यूज़ीलैण्ड की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " न्यूज़ीलैण्ड के राजा" के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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पापुआ न्यू गिनी का राजतंत्र

पापुआ न्यू गिनी राजतंत्र, पापुआ न्यू गिनी की संवैधानिक राजतंत्र है। पापुआ न्यू गिनी के एकाधिदारुक को पापुआ न्यू गिनी और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही पापुआ न्यू गिनी की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। पापुआ न्यू गिनी सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है और पापुआ न्यू गिनी के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें "पापुआ न्यू गिनी की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को "पापुआ न्यू गिनी के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर-जनरल

पापुआ न्यू गिनी के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, पापुआ न्यू गिनी की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, पापुआ न्यू गिनी की रानी, जोकी पापुआ न्यू गिनी और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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पाक अधिकृत कश्मीर

भारतीय कश्मीर है और अकसाई चिन चीन के अधिकार में है। इस क्षेत्र का अधिकार चीन को पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था। पाक अधिकृत कश्मीर मूल कश्मीर का वह भाग है, जिस पर पाकिस्तान ने १९४७ में हमला कर अधिकार कर लिया था। यह भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र है। इसकी सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पश्चिम में, उत्तर पश्चिम में अफ़गानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के ज़िन्जियांग उयघूर स्वायत्त क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती हैं। इस क्षेत्र के पूर्व कश्मीर राज्य के कुछ भाग, ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिया गया था व शेष क्षेत्र को दो भागों में विलय किया गया था: उत्तरी क्षेत्र एवं आजाद कश्मीर। इस विषय पर पाकिस्तान और भारत के बीच १९४७ में युद्ध भी हुआ था। भारत द्वारा इस क्षेत्र को पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के) कहा जाता है।रीडिफ, २३ मई २००६ संयुक्त राष्ट्र सहित अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एम.एस.एफ़, एवं रेड क्रॉस द्वारा इस क्षेत्र को पाक-अधिकृत कश्मीर ही कहा जाता है। .

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पाकिस्तान के गवर्नर जनरल

यहाँ पाकिस्तान के स्वतंत्रता उपरांत गवर्नर-जनरल गण की सूची दी गयी है। इनका पूर्ण काल1947 – 1958 के बीच रहा। उसके बाद पाकिस्तान गणतंत्र बन गया। तब वहाँ राष्ट्रपति होने लगे।.

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बहामाज़ के गवर्नर-जनरल

बहामाज़ के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, बहामाज़ की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, बहामाज़ की रानी, जोकी बहामाज़ और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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बहामियाई राजतंत्र

बहामियाई राजतंत्र, बहामाज़ राष्ट्रमण्डल की संवैधानिक राजतंत्र है। बहामाज़ के एकाधिदारुक को बहामाज़ और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही बहामाज़ की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। बहामाज़ राष्ट्रमण्डल सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और बहामाज़ के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, बहामाज़ के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " बहामाज़ की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " बहामाज़ के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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बारबाडोस का राजतंत्र

बार्बाडोसियाई राजतंत्र, बारबाडोस की संवैधानिक राजतंत्र है। बारबाडोस एकाधिदारुक को बारबाडोस और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही बारबाडोस की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। बारबाडोस सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और और बारबाडोस के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, बारबाडोस के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " बारबाडोस की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " बारबाडोस के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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बारबाडोस के गवर्नर-जनरल

बारबाडोस के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, बारबाडोस की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, बारबाडोस की रानी, जोकी बारबाडोस और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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ब्रिटिश भारतीय सेना

भारतीय मुसलमान सैनिकों का एक समूह जिसे वॉली फायरिंग के आदेश दिए गए। ~1895 ब्रिटिश भारतीय सेना 1947 में भारत के विभाजन से पहले भारत में ब्रिटिश राज की प्रमुख सेना थी। इसे अक्सर ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया जाता था बल्कि भारतीय सेना कहा जाता था और जब इस शब्द का उपयोग एक स्पष्ट ऐतिहासिक सन्दर्भ में किसी लेख या पुस्तक में किया जाता है, तो इसे अक्सर भारतीय सेना ही कहा जाता है। ब्रिटिश शासन के दिनों में, विशेष रूप से प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, भारतीय सेना न केवल भारत में बल्कि अन्य स्थानों में भी ब्रिटिश बलों के लिए अत्यधिक सहायक सिद्ध हुई। भारत में, यह प्रत्यक्ष ब्रिटिश प्रशासन (भारतीय प्रान्त, अथवा, ब्रिटिश भारत) और ब्रिटिश आधिपत्य (सामंती राज्य) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी थी। पहली सेना जिसे अधिकारिक रूप से "भारतीय सेना" कहा जाता था, उसे 1895 में भारत सरकार के द्वारा स्थापित किया गया था, इसके साथ ही ब्रिटिश भारत की प्रेसीडेंसियों की तीन प्रेसिडेंसी सेनाएं (बंगाल सेना, मद्रास सेना और बम्बई सेना) भी मौजूद थीं। हालांकि, 1903 में इन तीनों सेनाओं को भारतीय सेना में मिला दिया गया। शब्द "भारतीय सेना" का उपयोग कभी कभी अनौपचारिक रूप से पूर्व प्रेसिडेंसी सेनाओं के सामूहिक विवरण के लिए भी किया जाता था, विशेष रूप से भारतीय विद्रोह के बाद.

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ब्रिटिश राज

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में "इंडिया" कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, "ब्रिटिश इंडिया") और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी। .

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ब्रिटिश राज का इतिहास

ब्रिटिश राज का इतिहास, 1947 और 1858 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन की अवधि को संदर्भित करता है। शासन प्रणाली को 1858 में स्थापित किया गया था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को महारानी विक्टोरिया के हाथों में सौंपते हुए राजशाही के अधीन कर दिया गया (और विक्टोरिया को 1876 में भारत की महारानी घोषित किया गया).

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ब्रिटिश राजतंत्र

ब्रिटिश एकराट्तंत्र अथवा ब्रिटिश राजतंत्र(British Monarchy, ब्रिटिश मोनार्की, ब्रिटिश उच्चारण:ब्रिठिश मॉंनाऱ्क़़ी), वृहत् ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड की संयुक्त राजशाही की संवैधानिक राजतंत्र है। ब्रिटिश एकाधिदारुक को संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ राष्ट्रमण्डल प्रदेशों, मुकुटिया निर्भर्ताओं और समुद्रपार प्रदेशों के राजमुकुटों सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं जब उन्होंने अपने पिता जॉर्ज षष्ठम् से राजगद्दी उत्तराधिकृत की थी। संप्रभु और उसके तत्काल परिवार के सदस्य देश के विभिन्न आधिकारिक, औपचारिक और प्रतिनिधि कार्यों का निर्वाह करते हैं। सत्ताधारी रानी/राजा पर सैद्धांतिक रूप से एक संवैधानिक शासक के अधिकार निहित है, परंतु सदियों पुराने आम कानून के कारण संप्रभु अपने अधिकतर शक्तियों का अभ्यास केवल संसद और सरकार के विनिर्देशों के अनुसार ही कार्यान्वित करने के लिए बाध्य हैं। इस कारण से, इसे वास्तविक तौर पर एक संसदीय सम्राज्ञता मानी जाता है। संसदीय शासक होने के नाते, शासक के अधिकतर अधिकार, निष्पक्ष तथा गैर-राजनैतिक कार्यों तक सीमित हैं। सम्राट, शासक और राष्ट्रप्रमुख होने के नाते उनके अधिकतर संवैधानिक शासन तथा राजनैतिक-शक्तियों का अभ्यय वे सरकार और अपने मंत्रियों की सलाह और विनिर्देशों पर ही करते हैं। परंपरानुसार शासक, ब्रिटेन के सशस्त्र बाल के अधिपति होते हैं। हालाँकि, संप्रभु के समस्त कार्य-अधिकारों का अभ्यय शासक के राज-परमाधिकार द्वारा होता है। वर्ष १००० के आसपास, इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के राज्यों में कई छोटे प्रारंभिक मध्ययुगीन राज्य विकसित हुए थे। इस क्षेत्र में आंग्ल-सैक्सन लोगों का वर्चस्व इंग्लैंड पर नॉर्मन विजय के दौरान १०६६ में समाप्त हो गया, जब अंतिम आंग्ल-सैक्सन राजा हैरल्ड द्वितीय की मृतु हो गयी थी और अंग्रेज़ी सत्ता विजई सेना के नेता, विलियम द कॉंकरर और उनके वंशजों के हाथों में चली गयी। १३वीं सदी में इंग्लैंड ने वेल्स की रियासत को अवशोषित किया तथा मैग्ना कार्टा द्वारा संप्रभु के क्रमिक निःशक्तकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। १६०३ में स्कॉटलैंड के राजा जेम्स चतुर्थ, अंग्रेजी सिंहासन पर जेम्स प्रथम के नाम से विराजमान होकर जो दोनों राज्यों को एक व्यक्तिगत संघ की स्थिति में ला खड़ा किया। १६४९ से १६६० के लिए अंग्रेज़ी राष्ट्रमंडल के नाम से एक क्षणिक गणतांत्रिक काल चला, जो तीन राज्यों के युद्ध के बाद अस्तिव में आया, परंतु १६६० के बाद राजशाही को पुनर्स्थापित कर दिया गया। १७०७ में परवर्तित एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट, १७०१, जो आज भी परवर्तित है, कॅथॉलिक व्यक्तियों तथा कैथोलिक व्यक्ति संग विवाहित व्यक्तियों को अंग्रज़ी राजसत्ता पर काबिज़ होने से निष्कर्षित करता है। १७०७ में अंग्रेज़ी और स्कॉटियाई राजशाहियों के विलय से ग्रेट ब्रिटेन राजशही की साथपना हुई और इसी के साथ अंग्रज़ी और स्कोटिश मुकुटों का भी विलय हो गया और संयुक्त "ब्रिटिश एकराट्तंत्र" स्थापित हुई। आयरिश राजशही ने १८०१ में ग्रेट ब्रिटेन राजशाही के साथ जुड़ कर ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की संयुक्त राजशाही की स्थापना की। ब्रिटिश एकराट्, विशाल ब्रिटिश साम्राज्य के नाममात्र प्रमुख थे, जो १९२१ में अपने वृहत्तम् विस्तार के समय विष के चौथाई भू-भाग पर राज करता था। १९२२ में आयरलैंड का पाँच-छ्याई हिस्सा आयरिश मुक्त राज्य के नाम से, संघ से बहार निकल गया। बॅल्फोर घोषणा, १९२६ ने ब्रिटिश डोमिनिओनों के औपनिवेशिक पद से राष्ट्रमंडल के भीतर ही विभक्त, स्वशासित, सार्वभौमिक देशों के रूप में परिवर्तन को मान्य करार दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य सिमटता गया, और ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकतर पूर्व उपनिवेश व प्रदेश स्वतंत्र हो गए। जो पूर्व उपनिवेश, ब्रिटिश शासक को अपना शासक मानते है, उन देशों को ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल प्रमंडल या राष्ट्रमण्डल प्रदेश कहा जाता है। इन अनेक राष्ट्रों के चिन्हात्मक समानांतर प्रमुख होने के नाते, ब्रिटिश एकराट् स्वयं को राष्ट्रमण्डल के प्रमुख के ख़िताब से भी नवाज़ते हैं। हालांकि की शासक को ब्रिटिश शासक के नाम से ही संबोधित किया जाता है, परंतु सैद्धान्तिक तौर पर सारे राष्ट्रों का संप्रभु पर सामान अधिकार है, तथा राष्ट्रमण्डल के तमाम देश एक-दुसरे से पूर्णतः स्वतंत्र और स्वायत्त हैं। .

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बेलीज़ के गवर्नर-जनरल

बेलीज़ के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, बेलीज़ की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, बेलीज़ की रानी, जोकी बेलीज़ और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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बेलीज़ियाइ राजतंत्र

बेलीज़ का राजतंत्र, बेलीज़ की संवैधानिक राजतंत्र है। बेलीज़ एकाधिदारुक को बेलीज़ और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही बेलीज़ की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। बेलीज़ सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और और बेलीज़ के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, बेलीज़ के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " बेलीज़ की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " बेलीज़ के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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बॅल्फ़ोर घोषणा, १९२६

बॅल्फोर घोषणा(अन्य वर्तनी:बाल्फोर घोषणा), सन् १९२६ की ब्रिटिश साम्राज्य की इम्पीरियल कॉन्फ़्रेन्स द्वारा घोषित घोषणा थी, जिसे यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधानमंत्री और सम्मलेन के अध्यक्ष, आर्थर बॅल्फोर के नाम से पारित किया गया था। यह दस्तावेज़ ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल की व्यवस्था और ब्रिटेन और उसके डोमिनियनों के बीच के संबंध, तथा राष्ट्रमंडल के अन्तर्व्यस्था को परिभाषित करने वाला सबसे अहम दस्तावेज़ है। इस के अनुसार, ब्रिटिश साम्राज्य के सारे परिराज्य, ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर ही स्वायत्त व सार्वभौमिक इकाइयों के रूप में स्थापित होंगे, तथा, ब्रिटेन समेत सारे डोमिनियन, पद में पूर्णतः सामान होंगे, उनमें से कोई भी किसी भी प्रकार से ऊँचा या नीचा नहीं होगा, तथा यूनाइटेड किंगडम की संसद का इन परिराज्यों में से किसी भी राज्य पर किसी भी प्रकार का विधायिक अधिकार नहीं होगा। तमाम राष्ट्रमंडल प्रदेश, राजनैतिक रूप से एक-दुसरे से स्वतंत्र होंगे, और उनके बीच केवल एक कड़ी होगी: राजमुकुट के प्रति उनकी निष्ठा और वफ़ादारी। अर्थात साम्राज्य के भीतर के सारे राज्य पद में समान होंगे और पूर्णतः स्वाधीन और सार्वभौमिक होंगे, जबकि उनके बीच की एकमात्र कड़ी होगी, एक साँझा राजसत्ता और उसके प्रति निष्ठा। हालाँकि सारे राज्यों के सैद्धांतिक राष्ट्रप्रमुख का दर्जा ब्रिटिश संप्रभु को प्राप्त होगा, परंतु वास्तविक प्रमुख, संबंधित देश के महाराज्यपाल होंगे। .

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बोरोबुदुर

बोरोबुदुर विहार अथवा बरबुदुर इंडोनेशिया के मध्य जावा प्रान्त के मगेलांग नगर में स्थित 750-850 ईसवी के मध्य का महायान बौद्ध विहार है। यह आज भी संसार में सबसे बड़ा बौद्ध विहार है। छः वर्गाकार चबूतरों पर बना हुआ है जिसमें से तीन का उपरी भाग वृत्ताकार है। यह २,६७२ उच्चावचो और ५०४ बुद्ध प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इसके केन्द्र में स्थित प्रमुख गुंबद के चारों और स्तूप वाली ७२ बुद्ध प्रतिमायें हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा और विश्व के महानतम बौद्ध मन्दिरों में से एक है। इसका निर्माण ९वीं सदी में शैलेन्द्र राजवंश के कार्यकाल में हुआ। विहार की बनावट जावाई बुद्ध स्थापत्यकला के अनुरूप है जो इंडोनेशियाई स्थानीय पंथ की पूर्वज पूजा और बौद्ध अवधारणा निर्वाण का मिश्रित रूप है। विहार में गुप्त कला का प्रभाव भी दिखाई देता है जो इसमें भारत के क्षेत्रिय प्रभाव को दर्शाता है मगर विहार में स्थानीय कला के दृश्य और तत्व पर्याप्त मात्रा में सम्मिलित हैं जो बोरोबुदुर को अद्वितीय रूप से इंडोनेशियाई निगमित करते हैं। स्मारक गौतम बुद्ध का एक पूजास्थल और बौद्ध तीर्थस्थल है। तीर्थस्थल की यात्रा इस स्मारक के नीचे से आरम्भ होती है और स्मारक के चारों ओर बौद्ध ब्रह्माडिकी के तीन प्रतीकात्मक स्तरों कामधातु (इच्छा की दुनिया), रूपध्यान (रूपों की दुनिया) और अरूपध्यान (निराकार दुनिया) से होते हुये शीर्ष पर पहुँचता है। स्मारक में सीढ़ियों की विस्तृत व्यवस्था और गलियारों के साथ १४६० कथा उच्चावचों और स्तम्भवेष्टनों से तीर्थयात्रियों का मार्गदर्शन होता है। बोरोबुदुर विश्व में बौद्ध कला का सबसे विशाल और पूर्ण स्थापत्य कलाओं में से एक है। साक्ष्यों के अनुसार बोरोबुदुर का निर्माण कार्य ९वीं सदी में आरम्भ हुआ और १४वीं सदी में जावा में हिन्दू राजवंश के पतन और जावाई लोगों द्वारा इस्लाम अपनाने के बाद इसका निर्माण कार्य बन्द हुआ। इसके अस्तित्व का विश्वस्तर पर ज्ञान १८१४ में सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा लाया गया और इसके इसके बाद जावा के ब्रितानी शासक ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। बोरोबुदुर को उसके बाद कई बार मरम्मत करके संरक्षित रखा गया। इसकी सबसे अधिक मरम्मत, यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्द करने के बाद १९७५ से १९८२ के मध्य इंडोनेशिया सरकार और यूनेस्को द्वारा की गई। बोरोबुदुर अभी भी तिर्थयात्रियों के लिए खुला है और वर्ष में एक बार वैशाख पूर्णिमा के दिन इंडोनेशिया में बौद्ध धर्मावलम्बी स्मारक में उत्सव मनाते हैं। बोरोबुदुर इंडोनेशिया का सबसे अधिक दौरा किया जाने वाला पर्यटन स्थल है। .

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भारत में मानवाधिकार

देश के विशाल आकार और विविधता, विकसनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है। भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी अंतर्भूक्त है। संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने-जाने की भी आजादी दी गई है। यह अक्सर मान लिया जाता है, विशेषकर मानवाधिकार दलों और कार्यकर्ताओं के द्वारा कि दलित अथवा अछूत जाति के सदस्य पीड़ित हुए हैं एवं लगातार पर्याप्त भेदभाव झेलते रहे हैं। हालांकि मानवाधिकार की समस्याएं भारत में मौजूद हैं, फिर भी इस देश को दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तरह आमतौर पर मानवाधिकारों को लेकर चिंता का विषय नहीं माना जाता है। इन विचारों के आधार पर, फ्रीडम हाउस द्वारा फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2006 को दिए गए रिपोर्ट में भारत को राजनीतिक अधिकारों के लिए दर्जा 2, एवं नागरिक अधिकारों के लिए दर्जा 3 दिया गया है, जिससे इसने स्वाधीन की संभतः उच्चतम दर्जा (रेटिंग) अर्जित की है। .

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भारत सरकार अधिनियम, १९३५

इस अधिनियम को मूलतः अगस्त 1935 में पारित किया गया था (25 और 26 जियो. 5 C. 42) और इसे उस समय के अधिनियमित संसद का सबसे लंबा (ब्रिटिश) अधिनियम कहा जाता था। इसकी लंबाई की वजह से, प्रतिक्रिया स्वरूप भारत सरकार (पुनःमुद्रित) द्वारा अधिनियम 1935 को (26 जियो. 5 & 1 EDW. 8 C. 1) को दो अलग-अलग अधिनियमों में विभाजित किया गया.

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भारत के ध्वजों की सूची

यह सूची भारत में प्रयोग हुए सभी ध्वजों की है.

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भारत के महाराज्यपाल

भारत के महाराज्यपाल या गवर्नर-जनरल (१८५८-१९४७ तक वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल अर्थात राजप्रतिनिधि एवं महाराज्यपाल) भारत में ब्रिटिश राज का अध्यक्ष और भारतीय स्वतंत्रता उपरांत भारत में, ब्रिटिश सम्प्रभु का प्रतिनिधि होता था। इनका कार्यालय सन 1773 में बनाया गया था, जिसे फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी का गवर्नर-जनरल के अधीन रखा गया था। इस कार्यालय का फोर्ट विलियम पर सीधा नियंत्रण था, एवं अन्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का पर्यवेक्षण करता था। सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण अधिकार 1833 में दिये गये और तब से यह भारत के गवर्नर-जनरल बन गये। १८५८ में भारत ब्रिटिश शासन की अधीन आ गया था। गवर्नर-जनरल की उपाधि उसके भारतीय ब्रिटिश प्रांत (पंजाब, बंगाल, बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, इत्यादि) और ब्रिटिष भारत, शब्द स्वतंत्रता पूर्व काल के अविभाजित भारत के इन्हीं ब्रिटिश नियंत्रण के प्रांतों के लिये प्रयोग होता है। वैसे अधिकांश ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश सरकार द्वारा सीधे शासित ना होकर, उसके अधीन रहे शासकों द्वारा ही शासित होता था। भारत में सामंतों और रजवाड़ों को गवर्नर-जनरल के ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि होने की भूमिका को दर्शित करने हेतु, सन १८५८ से वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया (जिसे लघुरूप में वाइसरॉय कहा जाता था) प्रयोग हुई। वाइसरॊय उपाधि १९४७ में स्वतंत्रता उपरांत लुप्त हो गयी, लेकिन गवर्नर-जनरल का कार्यालय सन १९५० में, भारतीय गणतंत्रता तक अस्तित्व में रहा। १८५८ तक, गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों द्वारा चयनित किया जाता था और वह उन्हीं को जवाबदेह होता था। बाद में वह महाराजा द्वारा ब्रिटिश सरकार, भारत राज्य सचिव, ब्रिटिश कैबिनेट; इन सभी की राय से चयन होने लगा। १९४७ के बाद, सम्राट ने उसकी नियुक्ति जारी रखी, लेकिन भारतीय मंत्रियों की राय से, ना कि ब्रिटिश मंत्रियों की सलाह से। गवर्नर-जनरल पांच वर्ष के कार्यकाल के लिये होता था। उसे पहले भी हटाया जा सकता था। इस काल के पूर्ण होने पर, एक अस्थायी गवर्नर-जनरल बनाया जाता था। जब तक कि नया गवर्नर-जनरल पदभार ग्रहण ना कर ले। अस्थायी गवर्नर-जनरल को प्रायः प्रान्तीय गवर्नरों में से चुना जाता था। .

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भारत के राष्ट्रपति

भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध/शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश के प्रथम नागरिक हैं। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। सिद्धांततः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है। पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद् के द्वारा उपयोग किए जाते हैं। भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में रहते हैं, जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम कितनी भी बार पद पर रह सकते हैं इसकी कोई सीमा तय नहीं है। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने ही इस पद पर दो बार अपना कार्यकाल पूरा किया है। प्रतिभा पाटिल भारत की 12वीं तथा इस पद को सुशोभीत करने वाली पहली महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 25 जुलाई 2007 को पद व गोपनीयता की शपथ ली थी। - Fadoo Post - 14 july 2017 वर्तमान में राम नाथ कोविन्द भारत के चौदहवें राष्ट्रपति हैं। .

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भारत के सम्राट

ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया का सितारा, जो ब्रिटिश साम्राज्यिक भारत के बिल्ले (चिह्न) के रूप में प्रयोग होता था। ”’भारत के सम्राट’”/”’साम्राज्ञी”, ”’ बादशाह-ए-हिं””, ”’ एम्परर/एम्प्रैस ऑफ इण्डिय”” वह उपाधि थी, जो कि अंतिम भारतीय मुगल शासक बहादुर_शाह_द्वितीय एवं भारत में ब्रिटिश राज के शासकों हेतु प्रयोग होती थी। कभी भारत के सम्राट उपाधि, भारतीय सम्राटों, जैसे मौर्य वंश के अशोक-महान। या मुगल_बादशाह अकबर-महान के लिये भी प्रयोग होती है। वैसे उन्होंने कभी भी यह उपाधियां अपने लिये नहीं घोषित कीं। .

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भारत के गवर्नर जनरलों की सूची

भारत के गवर्नर जनरल (या, 1857 से 1947 तक, भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल) भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश राज का प्रधान पद था। यह सूची भारत और पाकिस्तान के आजादी से पहले के सभी वायसराय और गवर्नर-जनरल, भारतीय संघ के दो गवर्नर-जनरल और पाकिस्तानी अधिराज्य के चार गवर्नर-जनरल को प्रदर्शित करती है। गवर्नर जनरल ऑफ द प्रेसीडेंसी ऑफ फोर्ट विलियम के शीर्षक के साथ इस कार्यालय को 1773 में सृजित किया गया था। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान को आजादी मिली तब वायसराय की पदवी को हटा दिया गया, लेकिन दोनों नई रियासतों में गवर्नर-जनरल के कार्यालय को तब तक जारी रखा गया जब तक उन्होंने क्रमशः 1950 और 1956 में गणतंत्र संविधान को अपनाया.

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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भारतीय सैन्य अकादमी

इंडियन मिलिटरी ऐकडमी (भारतीय सैन्य अकादमी) भारतीय सेना के अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए प्रमुख प्रशिक्षण स्कूल है। .

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भारतीय विदेश सेवा

भारतीय विदेश मन्त्रालय के कार्य को चलाने के लिए एक विशेष सेवा वर्ग का निर्माण किया गया है जिसे भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service I.F.S.) कहते हैं। यह भारत के पेशेवर राजनयिकों का एक निकाय है। यह सेवा भारत सरकार की केंद्रीय सेवाओं का हिस्सा है। भारत के विदेश सचिव भारतीय विदेश सेवा के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं। भारतीय राजनय अब संभ्रान्त परिवारों, राजा-रजवाड़ों, सैनिक अफसरों आदि तक ही सीमित न रहकर सभी के लिए खुल गया है। सामान्य नागरिक अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर इस सेवा का सदस्य बन सकता है। सन 1947-1948 की विशेष संकटकालीन भरती के अलावा विदेश सेवा के लिये चुनाव एक विशेष परीक्षा व साक्षात्कार द्वारा किया जाता है। चुनाव हो जाने के पश्चात् इन्हें एक विशेष प्रशिक्षण के लिये भेजा जाता है, जो कई भागों में पूरा होता है। इसमें शैक्षणिक विषयों का ज्ञान, विदेश भाषा की शिक्षा, एक माह के लिये विदेश दूतावास में व्यापार की शिक्षा और राष्टंमण्डल के विदेश सेवा अधिकारी प्रशिक्षण केन्द्र में डेढ़ माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। तत्पश्चात् ही इनकी किसी विदेश दूतावास में नियुक्ति होती है। इस प्रकार प्रशिक्षित व्यावसायिक राजदूतों के अलावा सरकार समय-समय पर गैर-व्यावसायिक राजनीतिज्ञों सैनिकों, खिलाड़ियों आदि को भी राजदूत नियुक्त करती है। दूतावास में अताशों की भी नियुक्ति की जाती है। प्रधानमन्त्री कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में अपने व्यक्तिगत प्रतिनिधि विशेष दूत अथवा घूमने वाले राजदूत (Roving Ambassador) को भी भेज सकता है। विदेश सेवा बोर्ड राजनयिक, व्यापारी एवं वाणिज्य ओर दूतावासों में अधिकारियों की नियुक्ति, उनका स्थानान्तरण और पदोन्नति के कार्य करता है। .

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भारतीय गेज

भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान तथा श्रीलंका ने कई गेजों की भिन्नता होते हुए भी उन्हें अपनाया, जिसमें से सर्वाधिक था। भारतीय रेल ने युनिगेज परियोजना आरंभ की, जिसके अधीन एक व्यवस्थित ढंग से अधिकांश संकरे गेजों को 1,676 मिमी में बदला जा रहा है। भारत में प्रचलित गेजों की मानक गेज से तुलना .

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भारतीय अधिराज्य

भारत अधिराज्य, मौजूदा भारत(अर्थात् भारत गणराज्य) की संक्रमणकालीन अवस्था थी। यह ३ साल तक; १९४७ से १९५० में संविधान के प्रवर्तन तक, अस्तित्व में रही थी। रह मूल रूप से भारत में ब्रिटिश-उपनिवैषिक शासिन अवस्था से स्वतंत्र, स्वायत्त, लोकतांत्रिक, भारतिय गणराज्य के बीच की अस्थाई शासन अथ्वा राज्य थी। इसे आधिकारिक रूप से हिंदी में भारत अधिराज्य एवं अंग्रेज़ी में डोमीनियन ऑफ़ इंडिया(Dominion of India) कहा जाता था। सन १९४७ में ब्रितानियाई संसद में भारतिय स्वतंत्रता अधीनियम पारित होने के बाद, अधिकारिक तौर पर, यूनाईटेड किंगडम की सरकार ने भारत पर अपनी प्रभुता त्याग दी और भारत में स्वशासन अथवा स्वराज लागू कर दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश भारत(ब्रिटिश-भारतिय उपनिवेष) का अंत हो गया और भारत कैनडा और ऑस्ट्रेलिया की हि तरह एक स्वायत्त्योपनिवेष(डोमीनियन) बन गय, (अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वायत्त्य इकाई)। ब्रिटिश संसद के भारत-संबंधित सारे विधानाधिकारों को (1945 में गठित) भारत की संविधान सभा के अधिकार में सौंप दिया गया, भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का सहपद सदस्य भी बन गया साथ ही ब्रिटेन के राजा ने भारत के सम्राट का शाही ख़िताब त्याग दिया। ब्रिटिश स्वयत्तयोपनिवेष एवं रष्ट्रमंडल प्रदेश का हिस्सा होने के नाते इंगलैंड के राजा ज्यौर्ज (षष्ठम) को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया एवं आन्य राष्ट्रमंडल देशों की तरह ही भारतिय लैहज़े में उन्हें भारत के राजा की उपादी से नवाज़ा गया(यह पद केवल नाम-मात्र एवं शिश्टाचार के लिये था), भारत में उनका प्रतिनिधित्व भारत के महाराज्यपाल(गवरनर-जनरल) के द्वारा होता था। 1950 में संविधान के लागू होने के साथ ही भारत एक पूर्णतः स्वतंत्र गणराज्य बन गया और साथ ही भारत के राजा के पद को हमेशा के लिये स्थगित कर दिया गया, और भारत के संवंधान द्वरा स्थापित लोकतांत्रिक प्रकृया द्वारा चुने गए भारत के महामहिं राष्ट्रपति के पद से बदल दिया गया। इस बीच भारत में दो महाराज्यपालों को नियुक्त किया गया, महामहिं महाराज्यपाल लाॅर्ड माउण्टबैटन और महामहिं महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजागोपालाचारी। .

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मिशेल जीन

मिशेल जीन कनाडा की सत्ताईसवीं गवर्नर जनरल थीं। .

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मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार

मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार या अधिक संक्षेप में मोंट-फोर्ड सुधार के रूप में जाना जाते, भारत में ब्रिटिश सरकार द्वार धीरे-धीरे भारत को स्वराज्य संस्थान का दर्ज़ा देने के लिए पेश किये गए सुधार थे। सुधारों का नाम प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत के राज्य सचिव एडविन सेमुअल मोंटेगू, 1916 और 1921 के बीच भारत के वायसराय रहे लॉर्ड चेम्सफोर्ड के नाम पर पड़ा। इसे भारत सरकार अधिनियम का आधार 1919 की आधार पर बनाया गया था। .

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राष्ट्रपति निवास

राष्ट्रपति निवास (पूर्व नाम वाईसरिगल लॉज) शिमला, हिमाचल प्रदेश, भारत के ऑब्जर्वेटरी हिल्स पर स्थित है। .

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राष्ट्रपति भवन

राष्ट्रपति भवन भारत सरकार के राष्ट्रपति का सरकारी आवास है। सन १९५० तक इसे वाइसरॉय हाउस बोला जाता था। तब यह तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल का आवास हुआ करता था। यह नई दिल्ली के हृदय क्षेत्र में स्थित है। इस महल में ३४० कक्ष हैं और यह विश्व में किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के आवास से बड़ा है। वर्तमान भारत के राष्ट्रपति, उन कक्षों में नहीं रहते, जहां वाइसरॉय रहते थे, बल्कि वे अतिथि-कक्ष में रहते हैं। भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल श्री सी राजगोपालाचार्य को यहां का मुख्य शयन कक्ष, अपनी विनीत नम्र रुचियों के कारण, अति आडंबर पूर्ण लगा जिसके कारण उन्होंने अतिथि कक्ष में रहना उचित समझा। उनके उपरांत सभी राष्ट्रपतियों ने यही परंपरा निभाई। यहां के मुगल उद्यान की गुलाब वाटिका में अनेक प्रकार के गुलाब लगे हैं और यह कि जन साधारण हेतु, प्रति वर्ष फरवरी माह के दौरान खुलती है। इस भवन की खास बात है कि इस भवन के निर्माण में लोहे का नगण्य प्रयोग हुआ है। .

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राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमि

राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमि या राष्ट्रमण्डल प्रदेश, जिन्हें अंग्रेज़ी में कॉमनवेल्थ रॆयल्म कहा जाता है, राष्ट्रों के राष्ट्रमण्डल के उन १६ सार्वभौमिक राष्ट्रों को कहा जाता है, जिनपर एक ही शासक, महारानी एलिज़ाबेथ द्वि॰ का राज है। ये सारे देश एक ही राजसत्ता, शासक, राजपरिवार और उत्तराधिकार क्रम को साँझा करते हैं। इस व्यवस्था की शुरुआत १९३१ की वेस्टमिंस्टर की संविधि के साथ हुई थी, जिसके द्वारा ब्रिटेन के तत्कालीन डोमीनियन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैण्ड, आयरिश मुक्त राज्य और न्यूफाउण्डलैण्ड को ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के बराबर के सदस्य होने के साथ ही पूर्ण या पूर्णात्मत वैधिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से, विश्व भर में विस्तृत, ब्रिटिश साम्राज्य के तमाम देशों को एक डोमिनियन के रूप में स्वाधीनता प्रदान कर दी गयी। जिनमे से कुछ राज्यों ने पूर्णतः स्वाधीन होने के बावजूद राजतंत्र के प्रति अपनी वफ़ादारी को बरक़रार रखा, जबकि कुछ राज्यों ने ब्रिटिश राजतंत्र को नाममात्र प्रमुख मानने से इनकार कर स्वयं को गणतांत्रिक राज्य घोषित कर दिया। आज, विश्व बाहर में कुल १६ ऐसे राज्य हैं जो स्वयं को महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के एक प्रजाभूमि के रूप में पहचान करव्वते हैं। .

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राष्ट्रमण्डल के प्रमुख

राष्ट्रमण्डल के प्रमुख, का पद, ५३ राष्ट्रों के राष्ट्रमण्डल का एक औपचारिक अध्यक्षात्मक पद है। राष्ट्रमण्डल या राष्ट्रकुल, ५३ मुख्यतः राष्ट्रों का एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जो पूर्वतः संयुक्त राजशाही के उपनिवेश या परिराज्य हुआ करते थे। यह पद केवल एक रितिस्पद पद है, जिसके पदाधिकारी का इस संगठन के दैनिक कार्यों में किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं है। इस पद के कार्यकाल की कोई समय-सीमा नहीं है, और परंपरागत रूप से इस पद व उत्पाद को ब्रिटिश संप्रभु पर निहित किया गया है। ब्रिटिश संप्रभु को पूर्वतः, राष्ट्रमण्डल के सारे देशों के शासक होने का दर्जा प्राप्त था, परंतु भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारत ने स्वयं को एक गणराज्य घोषित कर दिया, और भारत के सम्राट के पद को खत्म कर दिया गया। बहरहाल, भारत ने राष्ट्रमण्डल का एक सदस्य रहना स्वीकार किया। इसके पश्चात, राष्ट्रमण्डल के प्रमुख के इस पद को एक गैर-राजतांत्रिक, औपचारिक अध्यक्षात्मक उपदि के रूप में स्थापित किया गया था। कथित तौर पर, राष्ट्रमण्डल के प्रमुख को, "स्वतंत्र सदस्य राष्ट्रों की मुक्त सहचार्यता का प्रतीक" माना गया है। .

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राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत)

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, भारतीय सशस्त्र सेना की एक संयुक्त सेवा अकादमी है, जहां तीनों सेवाओं, थलसेना, नौसेना और वायु सेना के कैडेटों को उनके संबंधित सेवा अकादमी के पूर्व-कमीशन प्रशिक्षण में जाने से पहले, एक साथ प्रशिक्षित किया जाता है। यह महाराष्ट्र, पुणे के करीब खडकवासला में स्थित है। जबसे अकादमी की स्थापना हुई है तब से एनडीए के पूर्व छात्रों ने सभी बड़े संघर्ष का नेतृत्व किया है जिसमें भारतीय थलसेना को कार्यवाही के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है। पूर्व छात्रों में तीन परमवीर चक्र प्राप्तकर्ता और 9 अशोक चक्र प्राप्तकर्ता शामिल हैं। .

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रासबिहारी बोस

रासबिहारी बोस (बांग्ला: রাসবিহারী বসু, जन्म:२५ मई १८८६ - मृत्यु: २१ जनवरी १९४५) भारत के एक क्रान्तिकारी नेता थे जिन्होने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गदर षडयंत्र एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन का कार्य किया। इन्होंने न केवल भारत में कई क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, अपितु विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे। दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यद्यपि देश को स्वतन्त्र कराने के लिये किये गये उनके ये प्रयास सफल नहीं हो पाये, तथापि स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी भूमिका का महत्व बहुत ऊँचा है। .

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राजेन्द्र प्रसाद

राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति २६ जनवरी १९५० को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। .

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रॉबर्ट नैपियर

रॉबर्ट नैपियर भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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ललितामहल

ललिता महल मैसूर का दूसरा सबसे बड़ा महल है। यह चामुंडी हिल के निकट, मैसूर शहर के पूर्वी ओर कर्नाटक राज्य में स्थित है। इस महल का निर्माण १९२१ में मैसूर के तत्कालीन महाराजा कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ के आदेशानुसार हुआ था। इस महल के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य तत्कालीन भारत के वाइसरॉय को मैसूर यात्रा के दौरान ठहराना था। वर्तमान में ललितामहल भारत का अतिथिगृह एवं भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) होटल है। यह महल लंदन के सेंट पॉल कैथेड्रल की तर्ज पर बना हुआ है। यह मैसूर शहर की भव्य संरचनाओं में से एक है। इस भव्य महल को शुद्ध सफेद रंग से पोता गया है। इसे 1974 में एक विरासत होटल के रूप में परिवर्तित किया गया था। यह अब भारत सरकार के तहत भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) के अन्तर्गत अशोक ग्रुप के एक विशिष्ट होटल के रूप में चलाया जाता है। हालांकि, महल के मूल शाही माहौल को पहले जैसा ही बनाए रखा गया है। .

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लुईस माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन

लुइस फ्रांसिस एल्बर्ट विक्टर निकोलस जॉर्ज माउंटबेटन, बर्मा के पहले अर्ल माउंटबेटन, बेड़े के एडमिरल, केजी, जीसीबी, ओएम, जीसीएसआई, जीसीआईई, जीसीवीओ, डीएसओ, पीसी, एफआरएस (पूर्व में बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस, 25 जून 1900 - 27 अगस्त 1979), एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और नौसैनिक अधिकारी व राजकुमार फिलिप, एडिनबर्ग के ड्यूक (एलिजाबेथ II के पति) के मामा थे। वह भारत के आखिरी वायसरॉय (1947) थे और स्वतंत्र भारतीय संघ के पहले गवर्नर-जनरल (1947-48) थे, जहां से 1950 में आधुनिक भारत का गणतंत्र उभरेगा। 1954 से 1959 तक वह पहले सी लॉर्ड थे, यह पद उनके पिता बैटनबर्ग के राजकुमार लुइस ने लगभग चालीस साल पहले संभाला था। 1979 में उनकी हत्या प्रोविजनल आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) ने कर दी, जिसने आयरलैंड रिपब्लिक की स्लीगो काउंटी में मुल्लाग्मोर में उनकी मछली मरने की नाव, शैडो V में बम लगा दिया था। वह बीसवीं सदी के मध्य से अंत तक ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के समय के सबसे प्रभावशाली और विवादित शख्सियतों में से एक थे। .

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लॉर्ड चेम्स्फोर्ड

लॉर्ड चेम्स्फोर्ड भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड एम्हर्स्ट

लॉर्ड एम्हर्स्ट फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड एल्गिन द्वितीय

लॉर्ड एल्गिन द्वितीय भारत के एक वायसराय थे जो 1894 से 1899 पद पर रहे। इन्होंने 1895 में आंग्ल रूस संधि पर हस्ताक्षर किए गये। .

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लॉर्ड ऐम्प्थिल

लॉर्ड ऐम्प्थिल भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड ऐलनबरो

लॉर्ड ऐलनबरो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड डफरिन

लॉर्ड डफरिन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। लॉर्ड डफ़रिन 1884 ई. में लॉर्ड रिपन के बाद भारत का वायसराय बनकर आया। वह 1884 से 1888 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा था। सामान्य तौर पर उसका शासनकाल शान्तिपूर्ण था, लेकिन तृतीय बर्मा युद्ध (1885-1886 ई.) उसी के कार्यकाल में हुआ, जिसके फलस्वरूप उत्तरी बर्मा ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का अंग बन गया। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड डलहौजी

लॉर्ड डलहौजी भारत में ब्रिटिश राज का गवर्नर जनरल था और उसका प्रशासन चलाने का तरीका साम्राज्यवाद से प्रेरित था। उसके काल मे राज्य विस्तार का काम अपने चरम पर था। .

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लॉर्ड नैपियर

लॉर्ड नैपियर भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड नॉर्थब्रूक

लॉर्ड नॉर्थब्रूक भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड बैन्टिक

लॉर्ड बैन्टिक फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड मिंटो

लॉर्ड मिंटो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड मेयो

लॉर्ड मेयो भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड राइपन

लॉर्ड राइपन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड लिट्टन

लॉर्ड लिट्टन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड लैंस्डाउन

लॉर्ड लैंस्डाउन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड हार्डिंग

लॉर्ड हार्डिंग भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड विलियम बैन्टिक

लॉर्ड विलियम बैन्टिक भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरलये भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे लॉर्ड विलियम बैंटिक, जिन्हें 'विलियम कैवेंडिश बैटिंग' के नाम से भी जाना जाता है, को भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल का पद सुशोभित करने का गौरव प्राप्त है। पहले वह मद्रास के गवर्नर बनकर भारत आये थे। उनका शासनकाल अधिकांशत: शांति का काल था। लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भारतीय रियासतों के मामले में अहस्तक्षेप की नीति को अपनाया था। उन्होंने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से संधि की थी, जिसके द्वारा अंग्रेज़ और महाराजा रणजीत सिंह ने सिंध के मार्ग से व्यापार को बढ़ावा देना स्वीकार किया था। विलियम बैंटिक के भारतीय समाज में किए गए सुधार आज भी प्रसिद्ध हैं। सती प्रथा को समाप्त करने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। अपने शासनकाल के अंतिम समय में वह बंगाल के गवर्नर-जनरल रहे थे। भारत आगमन लॉर्ड विलियम बैंटिक पहले मद्रास के गवर्नर की हैसियत से भारत आये थे, लेकिन 1806 ई. में वेल्लोर में सिपाही विद्रोह हो जाने पर उन्हें वापस बुला लिया गया। इक्कीस वर्षों के बाद लॉर्ड एमहर्स्ट द्वारा त्यागपत्र दे देने पर उन्हें गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया था और उन्होंने जुलाई 1828 ई. में यह पद ग्रहण कर लिया। सामाजिक सुधार के कार्य विलियम बैंटिक के शासन का महत्त्व उनके प्रशासकीय एवं सामाजिक सुधारों के कारण है, जिनके फलस्वरूप वह बहुत ही लोकप्रिय हुए। इनका आरम्भ सैनिक और असैनिक सेवाओं में किफ़ायतशारी बरतने से हुआ। उन्होंने राजस्व, विशेषकर अफ़ीम के एकाधिकार से होने वाली आय में भारी वृद्धि की। फलत: जिस वार्षिक बजट में घाटे होते रहते थे, उनमें बहुत बचत होने लगी। उन्होंने भारतीय सेना में प्रचलित कोड़े लगाने की प्रथा को भी समाप्त कर दिया। भारतीय नदियों में स्टीमर चलवाने आरम्भ किये, आगरा क्षेत्र में कृषि भूमि का बंदोबस्त कराया, जिससे राजस्व में वृद्धि हुई, तथा किसानों के द्वारा दी जाने वाली मालगुज़ारी का उचित निर्धारण कर उन्हें अधिकार के अभिलेख दिलवाये। बैंटिक ने लॉर्ड कार्नवालिस की भारतीयों को कम्पनी की निम्न नौकरियों को छोड़कर ऊँची नौकरियों से अलग रखने की ग़लत नीति को उलट दिया और भारतीयों की सहायक जज जैसे उच्च पदों पर नियुक्तियाँ कीं। ज़िला मजिस्ट्रेट तथा ज़िला कलेक्टर के पद को मिलाकर एक कर दिया, प्रादेशिक अदालतों को समाप्त कर दिया, भारतीयों की नियुक्तियाँ अच्छे वेतन पर डिप्टी मजिस्ट्रेट जैसे प्राशासकीय पदों पर की तथा 'डिवीजनल कमिश्नरों (मंडल आयुक्त)' के पदों की स्थापना की। इस प्रकार उसने भारतीय प्रशासकीय ढाँचे को उसका आधुनिक रूप प्रदान किया। भारतीयों में लोकप्रियता लॉर्ड बैंटिक के सामाजिक सुधार भी कुछ कम महत्त्व के नहीं थे। 1829 ई. में उसने सती प्रथा को समाप्त कर दिया। कर्नल स्लीमन के सहयोग से उसने ठगी का उन्मूलन किया। उस समय ठगों का देशव्यापी गुप्त संगठन था, वे देश भर में घूता करते थे और भोले-भाले यात्रियों की रुमाल से गला घोंटकर हत्या कर दिया करते थे और उनका सारा माल लूट लेते थे। 1832 ई. में धर्म-परिवर्तन से होने वाली सभी अयोग्यताओं को समाप्त कर दिया गया। 1833 ई. में कम्पनी के अधिकार पत्र को अगले बीस वर्षों के लिए नवीन कर दिया गया। इससे कम्पनी चीन के व्यवसाय पर एकाधिकार से वंचित हो गई। अब वह मात्र प्रशासकीय संस्था रह गई। नये चार्टर एक्ट के द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गये। बंगाल के गवर्नर-जनरल के पद का नाम बदलकर भारत का गवर्नर-जनरल कर दिया गया। गवर्नर-जनरल की कौंसिल की सदस्य संख्या बढ़ाकर चार कर दी गई तथा यह सिद्धान्त निर्दिष्ट किया गया कि कोई भी भारतीय, मात्र अपने धर्म, जन्म अथवा रंग के कारण कम्पनी के अंतर्गत किसी पद से, यदि वह उसके लिए योग्य हो, वंचित नहीं किया जायेगा। समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सरकारी सेवाओं में भेद-भावपूर्ण व्यवहार को ख़त्म करने के लिए 1833 ई. के एक्ट की धारा 87 के अनुसार जाति या रंग के स्थान पर योग्यता को ही सेवा का आधार माना। विलियम बैंटिक ने समाचार-पत्रों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए उनकी स्वतन्त्रता की वकालत की। वह इसे ‘असन्तोष से रक्षा का अभिद्वार’ मानते थे। उन्होंने मद्रास के सैनिक विद्रोह का उल्लेख करते हुए बताया कि, कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) और मद्रास दोनों जगह स्थिति एक जैसी थी, किन्तु मद्रास में विद्रोह इसलिए था, क्योंकि वहाँ समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता नहीं थी। इस प्रकार विलियम बैंटिक भारतीय समाचार-पत्रों को मुक्त करना चाहते थे। किन्तु 1835 ई.में ख़राब स्वास्थ्य के आधार पर विलियम बैंटिक द्वारा इस्तीफ़ा देने के कारण समाचार-पत्रों से प्रतिबन्ध हटा लेने का श्रेय उसके परवर्ती गवर्नर-जनरल चार्ल्स मेटकॉफ़ को मिला। शैक्षिक सुधार शिक्षा के क्षेत्र में विलियम बैंटिक ने महत्त्वपूर्ण सुधार किये। उन्होंने शिक्षा के उद्देश्य एवं माध्यम, दोनों पर पर गहरा अध्ययन किया। शिक्षा के लिए अनुदान का प्रयोग कैसे किया जाय, यह विचारणीय विषय रहा। विवाद फँसा था कि, अनुदान का प्रयोग प्राच्य साहित्य के विकास के लिए किया जाय या फिर पाश्चात्य साहित्य के विकास के लिए। प्राच्य शिक्षा के समर्थकों का नेतृत्व 'विल्सन' व 'प्रिंसेप' ने किया तथा पाश्चात्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व ‘ट्रेवलियन’ ने, जिसको राजा राममोहन राय का भी समर्थन प्राप्त था। अन्ततः इस विवाद के निपटारे के लिए लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति बनी, जिसने पाश्चात्य विद्या के समर्थन में अपना निर्णय दिया। उसने अपने विचारों को 2 फ़रवरी, 1835 ई. के सुप्रसिद्ध स्मरण पत्र में प्रतिपादित किया। अपने प्रस्तावों में लॉर्ड मैकाले की योजना थी कि, "एक ऐसा वर्ग बनाया जाय, जो रंग तथा रक्त से तो भारतीय हो, परन्तु प्रवृति, विचार, नैतिकता तथा बुद्धि से अंग्रेज़ हो।' मैकाले के विचार 7 मार्च, 1835 ई. को एक प्रस्ताव द्वारा अनुमोदि कर दिए गए, जिससे यह निश्चित हुआ कि, उच्च स्तरीय प्रशासन की भाषा अंग्रेज़ी होगी। 1835 ई. में ही लॉर्ड विलियम बैंटिक ने कलकत्ता में ‘कलकत्ता मेडिकल कॉलेज’ की नींव रखी। कम्पनी के राजस्व में वृद्धि वित्तीय सुधारों के अन्तर्गत विलियम बैंटिक ने सैनिकों को दी जाने वाली भत्ते की राशि को कम कर दिया। अब कलकत्ता के 400 मील की परिधि में नियुक्त होने पर भत्ता आधा कर दिया गया। बंगाल में भू-राजस्व को एकत्र करने के क्षेत्र में प्रभावकारी प्रयास किये गये। 'राबर्ट माटिन्स बर्ड' के निरीक्षण में 'पश्चिमोत्तर प्रांत' में (आधुनिक उत्तर प्रदेश) ऐसी भू-कर व्यवस्था की गई, जिससे अधिक कर एकत्र होने लगा। अफीम के व्यापार को नियमित करते हुए इसे केवल बम्बई बंदरगाह से निर्यात की सुविधा दी गई। इसका परिणाम यह हुआ कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी को निर्यात कर का भी भाग मिलने लगा, जिससे उसके राजस्व में बड़ी ज़बर्दस्त वृद्धि हुई। न्याललय की भाषा लॉर्ड विलियम बैंटिक ने लॉर्ड कॉर्नवॉलिस द्वारा स्थापित प्रान्तीय, अपीलीय तथा सर्किट न्यायालयों को बन्द करवाकर, इसका कार्य मजिस्ट्रेट तथा कलेक्टरों में बांट दिया। न्यायलयों की भाषा फ़ारसी के स्थान पर विकल्प के रूप में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति दी गई। ऊंचे स्तर के न्यायलयों में अंग्रेज़ी का प्रयोग होता था।.

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लॉर्ड विलिंग्डन

लॉर्ड विलिंग्डन ब्रिटिश राज में १८ अप्रैल १९३१ से १८ अप्रैल १९३६ तक भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड वैलेस्ली

लॉर्ड वैलेस्ली फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड ऑकलैंड

लॉर्ड ऑकलैंड भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड इर्विन

लॉर्ड इर्विन (16 अप्रैल, 1881 - 23 दिसम्बर 1959) भारत में १९२६-१९३१ ई. तक गवर्नर जनरल तथा सम्राट् के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय थे। भारत में बढ़ रही स्वराज्य तथा संवैधानिक सुधारों की माँग के संबंध में इनकी संस्तुति से १९२७ ई. में लार्ड साइमन की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की, जिसमें सभी सदस्य अंग्रेज थे। फलस्वरूप सारे देश में कमीशन का बाहिष्कार हुआ, 'साइमन, वापस जाओ' के नारे लगाए गए, ओर काले झंडों के प्रदर्शन के साथ आंदोलन हुआ। सांडर्स के नेतृत्व में पुलिस की लाठियों की चोट से लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई। भगत सिंह के दल ने एक वर्ष के भीतर ही बदले के लिए सांडर्स की भी हत्या कर दी। प्रारंभ में भारत औपानिवेशिक स्वराज्य की ही माँग करता रहा, किंतु २६ जनवरी, १९२९ को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 'पूर्ण स्वराज्य' की घोषणा की गई तथा शपथ ली गई कि प्रत्येक वर्ष २६ जनवरी गणतंत्र के रूप में मनाई जाएगी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार १९३० ई. में लार्ड इरविन की संस्तुति से संवैधानिक सुधारों की समस्या के समाधान के लिए लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका गांधी जी ने विरोध किया। साथ ही गांधी जी ने सरकार पर दबाव डालने के लिए ६ अप्रैल, १९३० से नमक सत्याग्रह छेड़ दिया। सारे देश में नमक कानून तोड़ा गया। गांधी जी के साथ हजारों व्यक्ति गिरफ्तार हुए। सर तेजबहादुर सप्रु की मध्यस्थता से गांधी-इरविन-समझौता हुआ। यह समझौता भारतीय इतिहास का एक प्रमुख मोड़ है। इसमें २१ धाराएँ थीं जिनके अनुसार गोलमेज कानफ्ररेंस में भाग लेने के लिए गांधी जी तैयार हुए तथा यह तय हुआ कि कानून तोड़ने की कार्रवाई बंद होगी, ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार बंद होगा, पुलिस के कारनामों की जाँच नहीं होगी, आंदोलन के समय बने अध्यादेश वापस होंगे, सभी राजनीतिक कैदी छोड़ दिए जाएँगे, जुर्माने वसूल नहीं होंगे, जब्त अचल संपत्ति वापस हो जाएगी, अन्यायपूर्ण वसूली की क्षतिपूर्ति होगी, असहयोग करनेवाले सरकारी कर्मचारियों के साथ उदारता बरती जाएगी, नमक कानून में ढील दी जाएगी, इत्यादि। इस समझौते के फलस्वरूप १९३१ ई. की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी ने मदनमोहन मालवीय एवं श्रीमती सरोजनी नायडू के साथ भाग लिया। यद्यपि लार्ड इरविन ने एक साम्राज्यवादी शासक के रूप में स्वदेशी आंदोलन का पूरा दमन किया, तथापि वैयक्तिक मनुष्य के रूप में वे उदार विचारों के थे। यही कारण है कि राष्ट्रवादी नेताओं को इन्होंने काफी महत्व प्रदान किया। इनके जीवित स्मारक के रूप में नई दिल्ली में विशाल 'इरविन अस्पताल' का निर्माण कराया गया। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड कर्जन

जॉर्ज नथानिएल कर्जन अथवा लॉर्ड कर्जन (George Nathaniel Curzon), ऑर्डर ऑफ़ गेटिस, ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया, ऑर्डर ऑफ़ इण्डियन एम्पायर, यूनाइटेड किंगडम के प्रिवी काउंसिल (11 जनवरी 1859 – 20 मार्च 1925), जिन्हें द लॉर्ड कर्जन ऑफ़ केड्लेस्टन 1898 से 1911 के मध्य और द अर्ल कर्जन ऑफ़ केड्लेस्टन 1911 से 1921 तक के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटेन कंजर्वेटिव पार्टी के पूर्व राजनीतिज्ञा थे जो भारत के वायसराय एवं विदेश सचिव बनाये गये थे। .

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लॉर्ड कैनिंग

लॉर्ड कैनिंग भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लॉर्ड कॉर्नवालिस

लॉर्ड कॉर्नवालिस फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। वह बंगाल का गवर्नर जनरल था। इन्होंने 1793 ईस्वी में बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त के रूप में एक नई राजस्व पद्धति की शुरूआत की। इसके समय में जिले के सभी अधिकार कलेक्टर को दिया गया और इसे ही भारतीय सिविल सेवा का जनक माना जाता है। इसने कंपनी के कर्मचारियों के व्यक्तिगत व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया। .

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लोधी उद्यान, दिल्ली

लोधी उद्यान (पूर्व नाम:विलिंग्डन गार्डन, अन्य नाम: लोधी गार्डन) दिल्ली शहर के दक्षिणी मध्य इलाके में बना सुंदर उद्यान है। यह सफदरजंग के मकबरे से १ किलोमीटर पूर्व में लोधी मार्ग पर स्थित है। पहले ब्रिटिश काल में इस बाग का नाम लेडी विलिंगटन पार्क था। यहां के उद्यान के बीच-बीच में लोधी वंश के मकबरे हैं तथा उद्यान में फव्वारे, तालाब, फूल और जॉगिंग ट्रैक भी बने हैं। यह उद्यान मूल रूप से गांव था जिसके आस-पास १५वीं-१६वीं शताब्दी के सैय्यद और लोदी वंश के स्मारक थे। अंग्रेजों ने १९३६ में इस गांव को दोबारा बसाया। यहां नेशनल बोंजाई पार्क भी है जहां बोंज़ाई का अच्छा संग्रह है। इस उद्यान क्षेत्र का विस्तार लगभग ९० एकड़ में है जहां उद्यान के अलावा दिल्ली सल्तनत काल के कई प्राचीन स्मारक भी हैं जिनमें मुहम्मद शाह का मकबरा, सिकंदर लोदी का मक़बरा, शीश गुंबद एवं बड़ा गुंबद प्रमुख हैं। इन स्मारकों में प्रायः मकबरे ही हैं जिन पर लोधी वंश द्वारा १५वीं सदी की वास्तुकला का काम किया दिखता है। लोधी वंश ने उत्तरी भारत और पंजाब के कुछ भूभाग पर और पाकिस्तान में वर्तमान खैबर पख्तूनख्वा पर वर्ष १४५१ से १५२६ तक शासन किया था। अब इस स्थान को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षण प्राप्त है। यहाँ एक उद्यान (बोटैनिकल उद्यान) भी है जहां पेड़ों की विभिन्न प्रजातियां, गुलाब उद्यान (रोज गार्डन) और ग्रीन हाउस है जहां पौधों का प्रतिकूल ऋतु बचाकर रखा जाता है। पूरे वर्ष यहां अनेक प्रकार के पक्षी देखे जा सकते हैं। द हिन्दु, १६ अक्टूबर, २००२.

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सफदरजंग विमानक्षेत्र

सफ़दरजंग विमानक्षेत्र (जिसे सफ़दरजंग वायुसेना स्टेशन भी कहा जाता है) भारत की राजधानी नई दिल्ली के दक्षिणी भाग में इसी नाम से बसे क्षेत्र में बना एक विमानक्षेत्र या हवाई अड्डा है। ब्रिटिश राज के समय स्थापित यह हवाई अड्डा तब विलिंग्डन एयरफ़ील्ड के नाम से आरंभ हुआ था। १९२९ में यहां प्रचालन प्रारंभ हुआ जब यह दिल्ली का पहला एवं भारत का दूसरा हवाई अड्डा बना। साउथ एटलांटिक एयर फ़ेरी मार्ग में आने के कारण इसका भरपूर उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध में, तथा कालांतर में भारत पाक युद्ध १९७४ में हुआ। कभी लूट्यन्स देल्ही के दक्षिणी छोर पर बसा यह हवाई अड्डा अब पूरे नयी दिल्ली शहर के लगभग बीच में आ गया है। १९६२ तक यह शहर का प्रमुख हवाई अड्डा बना रहा और दशक के अंत तक पूरा प्रचालन नये हवाई अड्डे पालम विमानक्षेत्र को स्थानांतरित हुआ। इसका प्रमुख कारण था इस विमानक्षेत्र का जेट विमान जैसे बड़े वायुयानों को उतार पाने में असमर्थता। १९२८ में यहीं दिल्ली फ़्लाइंग क्लब की स्थापना हुई। तब यहां देल्ही एवं रोशनारा नामक २ दे हैविलैण्ड मोठ यान हुआ करते थे। हवाई अड्डे पर प्रचालन २००१ तक चला, किन्तु जनवरी २००२ से सरकार ने ९/११ की घटना को देखते हुए उरक्षा की दृष्टि से इस हवाई अड्डे पर प्रचालन को पूर्ण विराम दिया। तब से यह क्लब यहां केवल वायुयान अनुरक्षण एवं मरम्मत पाठ्यक्रम चलाता है। आजकल इसका प्रयोग मात्र राष्ट्रपति एवं प्रधान मंत्री सहित अन्य वीवीआईपी हेलिकॉप्टर्स की पालम हवाई अड्डे तक की यात्राओं के लिये प्रयोग किया जाता है। १९० एकड़ के इस हवाई अड्डे के परिसर में, राजीव गाँधी भवन परिसर बना है, जहां भारतीय नागर विमानन मंत्रालय तथा भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण का निगमित मुख्यालय स्थापित है। .

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सर सोराबजी पोचखानवाला

सर सोराबजी पोचखानवाला (अंग्रेजी: Sir Sorabji Pochkhanawala, जन्म: 9 अगस्त 1881, मृत्यु: 4 जुलाई 1937) एक भारतीय पारसी बैंकर थे। स्वदेशी आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होंने 102 वर्ष पूर्व 1911 में सेण्ट्रल बैंक ऑफ़ इण्डिया की स्थापना की थी जो आज भारत का एक प्रमुख बैंक है। सोराबजी पोचखानवाला को उनकी बैकिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं के लिये ब्रिटिश राज द्वारा 1 मार्च 1935 को सर की उपाधि दी गयी थी। .

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सिंगापुर का इतिहास

सिंगापुर के इतिहास का विवरण 11वीं सदी से उपलब्ध है। 14वीं सदी के दौरान श्रीविजयन राजकुमार परमेश्वर के शासनकाल में इस द्वीप का महत्त्व बढ़ना शुरु हुआ और यह एक महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गया, लेकिन दुर्भाग्यवश 1613 में पुर्तगाली हमलावरों द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया। आधुनिक सिंगापुर के इतिहास की शुरुआत 1819 में हुई, जब एक अंग्रेज सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा इस द्वीप पर एक ब्रिटिश बंदरगाह की स्थापना की गयी। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत-चीन व्यापार और भंडारगृह (एंट्रीपोट) व्यापार, दोनों के एक केंद्र के रूप में इसका महत्त्व काफी बढ़ गया और यह बड़ी तेजी से एक प्रमुख बंदरगाह शहर में तब्दील हो गया। द्वितीय विश्व युद्घ के समय जापानी साम्राज्य ने सिंगापुर को अपने अधीन कर लिया और 1942 से 1945 तक इसे अपने अधीन रखा। युद्ध समाप्त होने के बाद सिंगापुर वापस अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया और स्व-शासन के अधिकार के स्तर को वढ़ाया गया और अंततः 1963 में फेडरेशन ऑफ मलाया के साथ सिंगापुर का विलय कर मलेशिया का निर्माण किया गया। हालांकि, सामाजिक अशांति और सिंगापुर की सत्तारूढ़ पीपुल्स एक्शन पार्टी तथा मलेशिया की एलायंस पार्टी के बीच विवादों के परिणाम स्वरूप सिंगापुर को मलेशिया से अलग कर दिया गया। 9 अगस्त 1965 को सिंगापुर एक स्वतंत्र गणतंत्र बन गया। गंभीर बेरोजगारी और आवासीय संकट का सामना करने के कारण, सिंगापुर ने एक आधुनिकीकरण कार्यक्रम पर काम करना शुरू कर दिया जिसमें विनिर्माण उद्योग की स्थापना, बड़े सार्वजनिक आवासीय एस्टेट के विकास और सार्वजनिक शिक्षा पर भारी निवेश करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। आजादी के बाद से सिंगापुर की अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष औसतन नौ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। 1990 के दशक तक यह एक अत्यंत विकसित मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था, सुदृढ़ अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक संबंध और जापान के बाहर एशिया में सर्वोच्च प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के साथ दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में से एक बन गया था। .

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सेण्ट किट्स और नेविस

सेंट किट्स और नेविस संघ वेस्ट इंडीज में लीवार्ड द्वीप पर स्थित एक द्वि द्वीपीय संघीय देश है। क्षेत्रफल और जनसंख्या के लिहाज से यह दक्षिण अमेरिका और उत्तरी अमेरिका का सबसे छोटा संप्रभु राष्ट्र है। देश की राजधानी और सरकार का मुख्यालय सबसे बड़े द्वीप सेट किट्स पर स्थित बेसेत्री है। छोटा राज्य नेविस दक्षिण-पूर्व में स्थित है। ऐतिहासिक तौर पर ब्रिटिश निर्भर क्षेत्र एन्गुएला भी कभी इस मंडल का हिस्सा हुआ करता था। सेंट किट्स और नेविस उन पहले कैरेबियाई द्वीपों में शामिल हैं, जहां यूरोपीय पहले पहल बसे थे। सेंट किट्स कैरेबियन में पहले ब्रिटिश और फ्रांसीसी कालोनी का गढ़ हुआ करता था। श्रेणी:देश श्रेणी:उत्तर अमेरिका.

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सेंट लूसिया का राजतंत्र

सेंट लूसिया का राजतंत्र, सेंट लूसिया की संवैधानिक राजतंत्र है। सेंट लूसिया के एकाधिदारुक को सेंट लूसिया और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही सेंट लूसिया की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। सेंट लूसिया सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और सेंट लूसिया के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, सेंट लूसिया के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " सेंट लूसिया की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " सेंट लूसिया के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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सेंट लूसिया के गवर्नर-जनरल

सेंट लूसिया के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, सेंट लूसिया की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, सेंट लूसिया की रानी, जोकी सेंट लूसिया और युनाइटेड किंगडम समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्राध्यक्ष हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस का राजतंत्र

सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस का राजतंत्र, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस की संवैधानिक राजतंत्र है। सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के एकाधिदारुक को सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के गवर्नर-जनरल

सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस की रानी, जोकी सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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सेंट किट्स और नेविस का राजतंत्र

सेंट किट्स और नेविस का राजतंत्र, सेंट किट्स और नेविस की संवैधानिक राजतंत्र है। सेंट किट्स और नेविस के एकाधिदारुक को सेंट किट्स और नेविस और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही सेंट किट्स और नेविस की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। सेंट किट्स और नेविस सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और सेंट किट्स और नेविस के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, सेंट किट्स और नेविस के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " सेंट किट्स और नेविस की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " सेंट किट्स और नेविस के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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सेंट किट्स और नेविस के गवर्नर-जनरल

सेंट किट्स और नेविस के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, सेंट किट्स और नेविस की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, सेंट किट्स और नेविस की रानी, जोकी सेंट किट्स और नेविस और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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सोलोमन द्वीप का राजतंत्र

सोलोमन द्वीप राजतंत्र, सोलोमन द्वीप की संवैधानिक राजतंत्र है। जमैकी एकाधिदारुक को सोलोमन द्वीप और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही सोलोमन द्वीप की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। सोलोमन द्वीप सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और और सोलोमन द्वीप के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, सोलोमन द्वीप के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " सोलोमन द्वीप की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " सोलोमन द्वीप के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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सोलोमन द्वीप के गवर्नर-जनरल

सोलोमन द्वीप के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, सोलोमन द्वीप की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, सोलोमन द्वीप की रानी, जोकी सोलोमन द्वीप और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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हिंदचीन

फ्रेंच हिन्दचीन का प्रसार फ्रेंच हिन्दचीन के उपविभाग हिंदचीन (जिनेवा सम्मलेन के बाद फ़्रांसिसी वियतनाम से निकल गए और फ़्रांसिसी हिंदचीन का अंत हो गया। श्रेणी:वियतनाम श्रेणी:उपनिवेश.

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हज़ारद्वारी महल

हज़ारद्वारी महल, हजारद्वारी महल या सिर्फ हज़ारद्वारी (बांग्ला:হাজারদুয়ারি; हाजारदूयारी), जिसे पहले 'बड़ा कोठी' के नाम से जाना जाता था, भारत के राज्य पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के किला निज़ामात के परिसर में स्थित है। इसका निर्माण उन्नीसवीं शताब्दी में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के नवाब नाजीम हुमायूं जेह (1824-1838) के शासनकाल के दौरान, वास्तुकार डंकन मैक्लॉड द्वारा किया गया था। महल का आधारशिला 9 अगस्त 1829 को रखी गई थी, और उसी दिन निर्माण कार्य भी शुरू किया गया था। विलियम कैवेन्डिश तब तत्कालीन गवर्नर जनरल थे अब, हज़ारद्वारी महल मुर्शिदाबाद शहर में सबसे विशिष्ट इमारत है। 1985 में, बेहतर संरक्षण के लिए इस महल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सौंप दिया गया था। .

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हुमायूँ का मकबरा

हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है- अभिव्यक्ति। १७ अप्रैल २०१०।, एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। १९९३ में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं। देल्ही थ्रु एजेज़। एस.आर.बख्शी। प्रकाशक:अनमोल प्रकाशन प्रा.लि.। १९९५।ISBN 81-7488-138-7। पृष्ठ:२९-३५ इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। हिस्ट‘ओरिक गार्डन रिव्यु नंबर १३, लंदन:हिस्टॉरिक गार्डन फ़ाउडेशन, २००३ अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा। .

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हैनरी हार्डिंग

हैनरी हार्डिंग भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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जमैकन राजतंत्र

जमैका राजतंत्र, जमैका की संवैधानिक राजतंत्र है। जमैकी एकाधिदारुक को जमैका और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही जमैका की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। जमैका सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और और जमैका के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, जमैका के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें "जमैका की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को "जमैका के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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जमैका के गवर्नर-जनरल

जमैका के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, जमैका की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, जमैका की रानी, जोकी जमैका और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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जेम्स ब्रूस

जेम्स ब्रूस भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल श्रेणी:प्रशासक.

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जॉन लॉरेंस

जॉन लॉरेंस भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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जॉन शोर

जॉन शोर फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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जॉन स्ट्रैचे

जॉन स्ट्रैचे भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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जॉर्ज हिलेरियो बार्लो

जॉर्ज हिलेरियो बार्लो फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वारेन हेस्टिंग्स

वारेन हेस्टिंग्स (6 दिसंबर 1732 – 22 अगस्त 1818), एक अंग्रेज़ राजनीतिज्ञ था, जो  फोर्ट विलियम प्रेसीडेंसी (बंगाल) का प्रथम गवर्नर तथा बंगाल की सुप्रीम काउंसिल का अध्यक्ष था और इस तरह 1773 से 1785 तक वह भारत का प्रथम वास्तविक (डी-फैक्टो) गवर्नर जनरल रहा। 1787 में भ्रष्टाचार के मामले में उस पर महाभियोग चलाया गया लेकिन एक लंबे परीक्षण के बाद उसे 1795 में अंततः बरी कर दिया गया। 1814 में उसे प्रिवी काउंसिलर बनाया गया। .

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वाइपर द्वीप

वाइपर द्वीप का दृश्य जिसमें स्मारक भी दृश्य हैं वाइपर द्वीप (viper island) भारत के केंद्र शासित प्रदेश अंदमान एवं निकोबार द्वीप समूह के अनेकों द्वीपों में से है। यह अंदमान एवं निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी अंदमान जिले का भाग है। यह पोर्ट ब्लेयर से ४ किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। ब्रिटिश काल में भारत के अन्य भागों से लाये गये 'खतरनाक' बन्दियों बंदियों को इसी द्वीप पर उतारा जाता था। अब यह द्वीप एक पिकनिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। यहां के टूटे-फूटे फांसी के फंदे निर्मम अतीत के साक्षी बनकर खड़े हैं। .

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वाइसरॉय

वाइसरॉय एक शाही अधिकारी होता है, जो एक देश या प्रांत पर शासन करता है। यह शासन किसी मुख्य शासक के नाम पर होता है। यह शब्द बना है: वाइस अंग्रेज़ी से, अर्थात - उप, + फ्रेंछ शब्द रॉय, अर्थात राजा। वाइस का अर्थ लैटिन में " के नाम पर" भी होता है। तो पूर्ण अर्थ हुआ " राजा के नाम पर"। इनकी पत्नी को वाइसराइन कहा जाता था। .

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विलियम डैनिसन

विलियम डैनिसन भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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विलियम बटर्वर्थ बेले

विलियम बटर्वर्थ बेले फोर्ट विलियम प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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विलियम विबरफोर्स बर्ड

विलियम विबरफोर्स बर्ड भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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विक्टर ब्रूस

विक्टर ब्रूस भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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विक्टर होप

विक्टर होप भारत के गवर्नर जनरल रहे थे। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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व्यपगत का सिद्धान्त

व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति (अँग्रेजी: The Doctrine of Lapse, 1848-1856) भारतीय इतिहास में हिन्दू भारतीय राज्यों के उत्तराधिकार संबंधी प्रश्नों से निपटने के लिए ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी द्वारा 1848 में तैयार किया गया नुस्खा था। यह परमसत्ता के सिद्धान्त का उपसिद्धांत था, जिसके द्वारा ग्रेट ब्रिटेन ने भारतीय उपमहाद्वीप के शासक के रूप में अधीनस्थ भारतीय राज्यों के संचालन तथा उनकी उत्तराधिकार के व्यवस्थापन का दावा किया।John Keay,India: A History.

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ग्रेनेडा का राजतंत्र

ग्रेनेडियाई राजतंत्र, ग्रेनेडा की संवैधानिक राजतंत्र है। ग्रेनेडा एकाधिदारुक को ग्रेनेडा और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही ग्रेनेडा की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। ग्रेनेडा सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और और ग्रेनेडा के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, ग्रेनेडा के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " ग्रेनेडा की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " ग्रेनेडा के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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ग्रेनेडा के गवर्नर-जनरल

ग्रेनेडा के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, ग्रेनेडा की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, ग्रेनेडा की रानी, जोकी ग्रेनेडा और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल

ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, ऑस्ट्रेलिया की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, ऑस्ट्रेलिया की रानी, जोकी ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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ऑस्ट्रेलियाई राजतंत्र

ऑस्ट्रेलियाई राजतंत्र, ऑस्ट्रेलिया की संवैधानिक राजतंत्र है। ऑस्ट्रेलिया के एकाधिदारुक को ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही ऑस्ट्रेलिया की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। ऑस्ट्रेलिया सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और ऑस्ट्रेलिया के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " ऑस्ट्रेलिया की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " ऑस्ट्रेलिया के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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आयरिश मुक्त राज्य

आयरिश मुक्त राज्य (Saorstát Éireann, वर्ष १९२२ में, ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के एक परिराज्य(डोमिनियन) के रूप में स्थापित एक स्वतंत्र राज्य था। इसे दिसंबर १९२१ के आंग्ल-आयरिश संधिके तहत स्थापित किया गया था। इस समझौते ने पिछले तीन वर्षों से, सवोऽद्घोषित आयरिश गणराज्य और ब्रिटिश मुकुट के बलों के बीच चली आ रही आयरिश स्वतंत्रता युद्ध को समाप्त कर दिया। दिसंबर १९३७ में आयरलैण्ड के नए संविधान के परवर्तन, तथा गणराज्य की घोषण के बाद यह विस्थापित होगया। प्रारंभिक समय में आयरलैण्ड की तमाम ३२ काउण्टियाँ, मुक्त राज्य के अधिकार में थीं, परंतु बाद में पूर्वोत्तर की ६ कॉउंटियों ने समझौते के अंतर्गत, मुक्त राज्य से बहार निकल कर पुनः संयुक्त राजशाही में शामिल होने का निर्णय किया। परिराज्य (डोमिनियन) होने के नाते, आयरलैंड, इस व्यवस्था के अंतर्गत, ब्रिटेन की सरकार से स्वतंत्र तो था, परंतु देश के नाममात्र राष्ट्रप्रमुख, ब्रिटिश संप्रभु थे, तथा इसकी सरकार, कार्यकारी परिषद् तथा, संप्रभु के प्रतिनिधि के रूप में, गवर्नर-जनरल द्वारा रचित थी। साथ ही एक द्विसदनीय विधायिक भी थी। सरकारी अधिकारियों को शासक के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेने की भी अनिवार्यता थी। मुक्त राज्य के प्राथमिक महीने, आयरिश गृहयुद्ध से पस्त थे। यह युद्ध नवस्थापित सरकार की सेना और समझौता-विरोधी आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के बीच छिड़ा था, जोकि एक गणराज्य स्थापित करने की इच्छुक थी। यह गृहयुद्ध सरकारी बालों की विजय के साथ समाप्त हुआ, संधि-विरोधी बालों ने मई १९२२ में अपने शास्त्र त्याग दिए और शांतिपूर्ण मार्ग अपनाने का निर्णय किया। संधि तथा राजतंत्र-विरोधी दाल, सिन् फेइन् ने अपने नेता डी वालेरा के नेतृत्व में १९२७ का आम चुनाव लड़ कर राष्ट्रीय विधायक में पहले बार स्थान ग्रहण किया, और १९३२ के चुनाव् के बाद सबसे बड़ी दल के रूप में उबरी। डी वालेरा ने वफादारी की शपथ को बर्खास्त कर दिया, और १९३७ में एक नए गणतांत्रिक संविधान का मसौदा तैयार किया। इस संविधान को तत्वर्ष जुलाई मास में जनमत-संग्रह द्वारा पारित कर दिया गया। २९ दिसंबर १९३७ में नए संविधान के परवर्तन के साथ ही आयरिश मुक्त राज्य का अंत हो गया, और नए संविधान के तहत इस आयरिश राज्य को आयरलैंड का नाम दिया गया। साथ ही शासक और गवर्नर जनरल के पद को समाप्त कर लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर निर्वाचित राष्ट्रपति के पद से परिवर्तित कर दिया दया। .

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का उच्च न्यायालय है। भारत में स्थापित सबसे पुराने उच्च न्यायालयों में से एक है। यह १८६९ से कार्य कर रहा है। .

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इस्कंदर मिर्ज़ा

सैयद इस्कंदर अली मिर्ज़ा, (१३ नवंबर १८९९-१३ नवंबर १९६९) पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति(१९५६-१९५८ तक) और अंतिम गवर्नर-जनरल थे। उनका गवर्नर-जनरल का कार्यकाल १९५५ से १९५६ तक था। वे मीर ज़फ़र के प्रपौत्र थे। वे पाकिस्तानी सेना में मेजर-जनरल के पद तक पहुंचे थे। पाकिस्तान की आज़ादी के बाद, वे पाकिस्तान के पहले रक्षा सचिव नियुक्त किये गए थे, जोकि एक अत्यंत महह्वपूर्ण औदा था। उनके कार्यकाल में उन्होंने बलोचिस्तान की समस्या और प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध की सरपरस्ती की थी। साथ ही पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा आंदोलन से आई समस्या की भी उन्होंने निगरानी की थी। पाकिस्तान में एक इकाई व्यवस्था लागु करने में उनका महत्वपूर्ण स्थान था, और उसके लागु होने के बाद, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन द्वारा पूर्वी पाकिस्तान का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था। १९५५ में वे मालिक ग़ुलाम मुहम्मद के उत्तराधिकारी के रूप में पाकिस्तान के अगले गवर्नर-जनरल नियुक्त हुए। १९५६ के संविधान के परवर्तन के बाद, उन्हें पाकिस्तान का पहला राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। उनका राष्ट्रपतित्व अत्यंत राजनैतिक अस्थिरता का पात्र रहा, और दो वर्षों के कल में ही चार प्रधानमंत्रीयों को बदला गया। अंत्यतः उन्होंने पाकिस्तान में सैन्य शासन लागु कर दिया। इसी के साथ मिर्ज़ा ने पाकिस्तान की राजनीति में सैन्य दखलंदाज़ी का प्रारंभ किया, जब उन्होंने अपने सेना प्रमुख अयूब खान को मुख्य सैन्य शासन प्रशासक नियुक्त किया। इस सैन्य शासन के दौरान, पाकिस्तानी सेना और व्यवस्थापिका के बीच बढ़ते मुठभेड़ के कारण बिगड़े हालातों के बाद, सैन्य शासन लागु होने के 20 दिनों के बाद ही अयूब खान ने राष्ट्रपतित्व से हटा दिया और देश से निष्काषित कर दिया। देश-निष्कासन के बाद वे लंदन चले गए, जहाँ उनकी मृत्यु १९६९ को हुई। मृत्यु के बाद, उनके शव को पाकिस्तान लाने से इनकार कर दिया गया, और अन्यतः उन्हें तेहरान में दफ़नाया गया। .

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कलकत्ता का सम्मेलन

कोलकाता का सम्मेलन 19 वी सदी की एक सन्धि थी जो चिंग राजवंश और वृहत् ब्रिटेन और आयरलैण्ड की संयुक्त राजशाही केबीच में। यह सन्धि तिब्बत और भारतीय के बीच की सीमाओं से संबंधित था। भारत के गवर्नर जनरल, लॉर्ड लांसडाउन और चीनी अम्बन (तिब्बत में निवासी), शेंग ताई, ने 17 मार्च 1890 को कोलकाता, भारत में हस्ताक्षर किया। .

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कंपनी राज

कंपनी राज का अर्थ है ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत पर शासन। यह 1773 में शुरू किया है, जब कंपनी कोलकाता में एक राजधानी की स्थापना की है, अपनी पहली गवर्नर जनरल वार्रन हास्टिंग्स नियुक्त किया और संधि का एक परिणाम के रूप में बक्सर का युद्ध के बाद सीधे प्रशासन, में शामिल हो गया है लिया जाता है1765 में, जब बंगाल के नवाब कंपनी से हार गया था, और दीवानी प्रदान की गई थी, या बंगाल और बिहार में राजस्व एकत्रित करने का अधिकार हैशा सन १८५८ से,१८५७ जब तक चला और फलस्वरूप भारत सरकार के अधिनियम १८५८ के भारतीय विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार सीधे नए ब्रिटिश राज में भारत के प्रशासन के कार्य ग्रहण किया। .

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क्रॅसि

क्रॅसि (भूरे रंग में) पोलैंड में कर्ज़न सीमा से पूर्व में था और १९३९ की सोवियत-नात्ज़ी संधि में सोवियत संघ को दिया गया क्रॅसि का अधिकतर क्षेत्र ऐसा ही है - छोटे टीले और घास से ढके मैदान १९३१ में पोलैंड में भिन्न जातियों का फैलाव - पूर्व के क्रॅसि क्षेत्र में पोलिश के अलावा अन्य जातियों की बहुतायत देखी जा सकती है क्रॅसि (पोलिश: Kresy) पूर्वी यूरोप का एक क्षेत्र है जो द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले पोलैंड का पूर्वी हिस्सा हुआ करता था लेकिन जिसे उस देश से अलग करके सोवियत संघ का भाग बना दिया गया। १९९१ में सोवियत संघ के टूटने के बाद अब यह इलाक़ा पश्चिमी युक्रेन, पश्चिमी बेलारूस और पूर्वी लिथुएनिया में सम्मिलित है। .

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कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ

कृष्ण राज वाडियार चतुर्थ (4 जून 1884 - 3 अगस्त 1940 ನಾಲ್ವಡಿ ಕೃಷ್ಣರಾಜ ಒಡೆಯರು बेंगलोर पैलेस), नलवडी कृष्ण राज वाडियार ನಾಲ್ವಡಿ ಕೃಷ್ಣರಾಜ ಒಡೆಯರು के नाम से भी लोकप्रिय थे, वे 1902 से लेकर 1940 में अपनी मृत्यु तक राजसी शहर मैसूर के सत्तारूढ़ महाराजा थे। जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था तब भी वे भारतीय राज्यों के यशस्वी शासकों में गिने जाते थे। अपनी मौत के समय, वे विश्व के सर्वाधिक धनी लोगों में गिने जाते थे, जिनके पास 1940 में $400 अरब डॉलर की व्यक्तिगत संपत्ति थी जो 2010 की कीमतों के अनुसार $56 बिलियन डॉलर के बराबर होगी.

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कैनेडियाइ राजतंत्र

कैनेडियाई राजतंत्र, कैनडा की संवैधानिक राजतंत्र है। कैनेडा के एकाधिदारुक को कैनेडा और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही कैनेडा की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। कैनेडा सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और कैनेडा के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, कैनेडा के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " कैनेडा की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " कैनेडा के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान भारत के राजस्थान में स्थित एक विख्यात पक्षी अभयारण्य है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। यहाँ २३० प्रजाति के पक्षियों ने भारत के राष्ट्रीय उद्यान में अपना घर बनाया है। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केन्द्र बन गया है, जहाँ पर बहुतायत में पक्षीविज्ञानी शीत ऋतु में आते हैं। इसको १९७१ में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था और बाद में १९८५ में इसे 'विश्व धरोहर' भी घोषित किया गया है। .

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कोहिनूर हीरा

Glass replica of the Koh-I-Noor as it appeared in its original form, turned upside down कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को १८७७ में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना। .

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अण्टीगुआ और बारबुडा का राजतंत्र

अण्टीगुआ और बारबुडा राजतंत्र, अण्टीगुआ और बारबुडा की संवैधानिक राजतंत्र है। अण्टीगुआ और बारबुडा एकाधिदारुक को अण्टीगुआ और बारबुडा और संयुक्त राजशाही समेत कुल १५ प्रजाभूमियों, का सत्ताधारक एकराजीय संप्रभु होने का गौरव प्राप्त है। वर्तमान सत्ता-विद्यमान शासक, ६ फरवरी वर्ष १९५२ से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हैं। अन्य राष्ट्रमण्डल देशों के सामान ही जमैका की राजनीतिक व्यवस्था वेस्टमिंस्टर प्रणाली पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रप्रमुख का पद नाममात्र होता है, और वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां शासनप्रमुख पर निहित होते हैं। अण्टीगुआ और बारबुडा सैद्धांतिक रूप से एक राजतंत्र है, और और जमैका के शासक के पदाधिकारी इसके राष्ट्रप्रमुख होते हैं, हालाँकि शासक की सारी संवैधानिक शक्तियों का अभ्यास, उनके प्रतिनिधि के रूप में, अण्टीगुआ और बारबुडा के गवर्नर-जनरल करते हैं। अधिराट् यदी स्त्री हो तो उन्हें " अण्टीगुआ और बारबुडा की रानी" के नाम हे संबोधित किया जाता है, और एक पुरुष अधिराट् को " अण्टीगुआ और बारबुडा के राजा के नाम से संबोधित किया जाता है। .

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अण्टीगुआ और बारबुडा के गवर्नर-जनरल

अण्टीगुआ और बारबुडा के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल, अण्टीगुआ और बारबुडा की रानी के निवासिय स्थानीय राजप्रतिनिधि का पद है। गवर्नर-जनरल, अण्टीगुआ और बारबुडा की रानी, जोकी अण्टीगुआ और बारबुडा और संयुक्त राजशाही समेत कुल १६ प्रजाभूमियों की शासी नरेश एवं राष्ट्रप्रमुख हैं, के अनुपस्थिति में उनके संवैधानिक कार्यों का निर्वाह करते हैं। .

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अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह

अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह (बंगाली:আন্দামান ও নিকোবর দ্বীপপুঞ্জ) भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है। ये बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित है। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह लगभग 572 छोटे बड़े द्वीपों से मिलकर बना है जिनमें से सिर्फ कुछ ही द्वीपों पर लोग रहते हैं। यहाँ की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है। भारत का यह केन्द्र शासित प्रदेश हिंद महासागर में स्थित है और भौगोलिक दृष्टि से दक्षिण पूर्व एशिया का हिस्सा है। यह इंडोनेशिया के आचेह के उत्तर में 150 किमी पर स्थित है तथा अंडमान सागर इसे थाईलैंड और म्यांमार से अलग करता है। दो प्रमुख द्वीपसमूहों से मिलकर बने इस द्वीपसमूह को 10° उ अक्षांश पृथक करती है, जिसके उत्तर में अंडमान द्वीप समूह और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं। इस द्वीपसमूह के पूर्व में अंडमान सागर और पश्चिम में बंगाल की खाड़ी स्थित है। द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर एक अंडमानी शहर है। 2001 की भारत की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 356152 है। पूरे क्षेत्र का कुल भूमि क्षेत्र लगभग 6496 किमी² या 2508 वर्ग मील है। .

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अब्दुर रहमान ख़ान

'अब्दुर रहमान ख़ान १८८० से १९०१ तक अफ़ग़ानिस्तान के अमीर थे अब्दुर रहमान ख़ान (पश्तो: عبد رحمان خان) सन १८८० से लेकर सन १९०१ तक अफ़ग़ानिस्तान के अमीर थे। इनका जन्म १८४० से १८४४ के बीच और मृत्यु १ अक्टूबर १९०१ में हुई। १८७८-१८८० के द्वितीय आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध की हार के बाद अफ़ग़ानिस्तान की जो केन्द्रीय सरकारी व्यवस्था चौपट हो गई थी उसे अब्दुर रहमान ख़ान ने फिर से बहाल किया। .

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अल्मोड़ा का इतिहास

२०१३ में अल्मोड़ा अल्मोड़ा, भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। इस नगर को राजा कल्याण चंद ने १५६८ में स्थापित किया था। महाभारत (८ वीं और ९वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं। अल्मोड़ा, कुमाऊँ राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। .

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१४ सितम्बर

14 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 257वॉ (लीप वर्ष मे 258 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 108 दिन बाकी है। भारत में राजभाषा हिंदी दिवस .

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१९४७ का भारत-पाक युद्ध

भारत और पाकिस्तान के बीच प्रथम युद्ध सन् १९४७ में हुआ था। यह कश्मीर को लेकर हुआ था जो १९४७-४८ के दौरान चला। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

भारत के वाइसरॉय, भारत के गवर्नर जनरल, भारत के गवर्नर-जनरल, गवर्नर जनरल, गवर्नर-जनरल, गवर्नर-जनरल ऑफ़ इण्डिया

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