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भारत के प्राकृतिक प्रदेश

सूची भारत के प्राकृतिक प्रदेश

भारत के प्राकृतिक प्रदेश से तात्पर्य भारत को प्राकृतिक तत्वों जैसे उच्चावच, जलवायु की विशेषताएँ, मिट्टियाँ इत्यादि के समेकित आधार पर प्रदेशों में विभाजन से है। कई भूगोलवेत्ताओं द्वारा लगभग सारी प्राकृतिक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए भारत का प्रदेशों में विभाजन किया गया है। इनमें मैकफरलेन, बेकर (१९२८),एल॰ डडले स्टाम्प (१९२८), स्पेट (१९५४) और आर॰ एल॰ सिंह (१९७१) का वर्गीकरण प्रमुख हैं। इनमें से कुछ को सही अर्थों में प्राकृतिक प्रदेशों में वर्गीकरण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इन विद्वानों में से कुछ ने सबसे छोटे स्तर पर प्रदेशों के विभाजन में मानवीय और सांस्कृतिक तत्वों को भी जगह दी है। मैकफरलेन का वर्गीकरण इस तरह का पहला प्रयास था जो उन्होंने अपनी पुस्तक इकोनोमिक ज्याग्रफी में प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने भारत को दो बृहद प्रदेशों और सोलह उप-प्रदेशों में विभाजित किया। डडले स्टाम्प का वर्गीकरण मुख्यतया भूमि-आकारिकी और जलवायु के तत्वों पर आधारित है और उन्होंने भारत को तीन बृहत् और २२ उप प्रदेशों में विभाजित किया। इन विद्वानों के वर्गीकरण के आलावा अन्य कई वर्गीकरण भी प्रचलित हैं। .

2 संबंधों: भारत का भूगोल, भारत के भू-आकृतिक प्रदेश

भारत का भूगोल

भारत का भूगोल या भारत का भौगोलिक स्वरूप से आशय भारत में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। दक्षिण एशिया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित यह देश अपने ३२,८७,२६३ वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग १.३ अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। भारत की भौगोलिक संरचना में लगभग सभी प्रकार के स्थलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके उत्तर में विशाल हिमालय की पर्वतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दक्षिण में विस्तृत हिंद महासागर, एक ओर ऊँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो वहीं विशाल और समतल सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, थार के विस्तृत मरुस्थल में जहाँ विविध मरुस्थलीय स्थलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। कर्क रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु भी पायी जाती है। मिट्टी, वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से भी भारत में काफ़ी भौगोलिक विविधता है। प्राकृतिक विविधता ने यहाँ की नृजातीय विविधता और जनसंख्या के असमान वितरण के साथ मिलकर इसे आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विविधता प्रदान की है। इन सबके बावजूद यहाँ की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक एकता इसे एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करती है। हिमालय द्वारा उत्तर में सुरक्षित और लगभग ७ हज़ार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा के साथ हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर स्थित भारत का भू-राजनैतिक महत्व भी बहुत बढ़ जाता है और इसे एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करता है। .

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भारत के भू-आकृतिक प्रदेश

भारत एक विशाल देश है जिसमें अनेक धरातलीय विविधताएँ, विषमताएँ और जटिलताएँ पाई जाती हैं। यहाँ ऊँचे-ऊँचे पर्वत, पठार तथा समतल मैदानी सभी प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती है। इनकी विद्यमानता के परिणाम स्वरूप भारत का भू-आकृति प्रादेशीकरण (Physiographic Regionalisation) अत्यन्त कठिन कार्य है। इस कार्य के लिए लम्बे समय से अनेक विद्वान प्रयत्नशील रहे हैं, परन्तु वे त्रुटिमुक्त प्रादेशीकरण प्रस्तुत करने में सफल नहीं हो सके। इस क्षेत्र में आर0 एल0 सिंह और बी0 के0 राय के प्रयास काफी सराहनीय एवं अग्रणी माने जाते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है: .

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