सामग्री की तालिका
178 संबंधों: चमार, चुनाव, चैत्य भूमि, टेबल नम्बर २१, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर (फ़िल्म), डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद, त्रिपुरा के राज्यपालों की सूची, त्रिभाषा सूत्र, दलित, दिल्ली के लॅफ़्टिनॅण्ट गवर्नरों की सूची, दिल्ली उच्च न्यायालय, देशी भाषा, देवनागरी अंक, दीनानाथ भार्गव, धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस, नार्को परीक्षण, निदेशक तत्त्व, न्यायपालिका, न्यायालय, न्यायिक पुनरावलोकन, पारिभाषिक शब्दावली, पाकिस्तान का संविधान, पंचायती राज, पंजाब (भारत) के मुख्यमंत्रियों की सूची, प्रयोजनमूलक हिन्दी, पूनिया हत्याकांड, ब्रिटिश राज का इतिहास, भारत, भारत में धर्म, भारत में धर्मनिरपेक्षता, भारत में मानवाधिकार, भारत में मौत की सज़ा, भारत में हिन्दी, भारत में आरक्षण, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, भारत सरकार, भारत सारावली, भारत का ध्वज, भारत का प्रधानमन्त्री, भारत का केन्द्रीय मंत्रिमण्डल, भारत का केंद्रीय बजट, भारत का उच्चतम न्यायालय, भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक, भारत के प्रधान मंत्रियों की सूची, भारत के मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य, भारत के राष्ट्रपति, भारत के राष्ट्रपतियों की सूची, ... सूचकांक विस्तार (128 अधिक) »
चमार
चमार अथवा चर्मकार भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली जाति समूह है। वर्तमान समय में यह जाति अनुसूचित जातियों की श्रेणी में आती है। यह जाति अस्पृश्यता की कुप्रथा का शिकार भी रही है। इस जाति के लोग परंपरागत रूप से चमड़े के व्यवसाय से जुड़े रहे हैं। संपूर्ण भारत में चमार जाति अनुसूचित जातियों में अधिक संख्या में पाई जाने वाली जाति है, जिनका मुख्य व्यवसाय, चमड़े की वस्तु बनाना था । संविधान बनने से पूर्व तक इनकोअछूतों की श्रेणी में रखा जाता था। अंग्रेजों के आने से पहले तक भारत में चमार जाति के लोगों को उपर बहुत यातनाएं तथा जु़ल्म किए गए। आजादी के बाद इनके उपर हो रहे ज़ुल्मों व यातनाओं को रोकने के लिए इनको भारत के संविधान में अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा गया तथा सभी तरह के ज़ुल्मों तथा यातनाओं को प्रतिबंधित कर दिया गया। इसके बावजूद भी देश में कुछ जगहों पर इन जातियों तथा अन्य अनुसूचित जातियों के साथ यातनाएं आज भी होती हैं। .
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चुनाव
चुनाव पेटी चुनाव या निर्वाचन (election), लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता (लोग) अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। चुनाव के द्वारा ही आधुनिक लोकतंत्रों के लोग विधायिका (और कभी-कभी न्यायपालिका एवं कार्यपालिका) के विभिन्न पदों पर आसीन होने के लिये व्यक्तियों को चुनते हैं। चुनाव के द्वारा ही क्षेत्रीय एवं स्थानीय निकायों के लिये भी व्यक्तिओं का चुनाव होता है। वस्तुतः चुनाव का प्रयोग व्यापक स्तर पर होने लगा है और यह निजी संस्थानों, क्लबों, विश्वविद्यालयों, धार्मिक संस्थानों आदि में भी प्रयुक्त होता है। .
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चैत्य भूमि
चैत्यभूमि मुंबई के दादर स्थित भारतीय संविधान के निर्माता भारतरत्न डॉ भीमराव आंबेडकर जी की समाधि स्थली और बौद्ध धर्म के लोगो का आस्था का केंद्र हैं। दादर के समुद्र तट पर चैत्य भूमि स्थित है। दिल्ली में अपने निवास में ६ दिसंबर १९५६ को आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ और उनका पार्थिव मुंबई में लाया गया, चैत्यभूमि में ७ दिसंबर १९५६ को भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने आंबेडकर का बौद्ध परम्परा के अनुसार दाह संस्कार किया था। आंबेडकर का दाह संस्कार के पहले उन्हें साक्षी रख उनके १०,००,००० अनुयायिओं ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली और यह दीक्षा उन्हें भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने दी थी। .
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टेबल नम्बर २१
टेबल नम्बर २१ आदित्य दत्त द्वारा निर्देशित एवं इरोज इंटरनेशनल द्वारा निर्मित २०१३ की बॉलीवुड हिन्दी एक्शन रहस्यमय फ़िल्म है। इस फ़िल्म का नामकरण भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१ के लिए किया गया जिसमें जीवन सुरक्षा एवं स्वतंत्रता का उल्लेख है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में परेश रावल, राजीव खण्डेलवाल और टीना देसाई हैं। .
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डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर (फ़िल्म)
डॉ.
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डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय
डॉ.
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डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र
डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, जिसे सोनेगांव हवाई अड्डा भी कहा जाता है, एक नागरिक अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र है, जो कि महाराष्ट्र राज्य के नागपुर शहर के लिए बना है। इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय संविधान लेखक तथा आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के नाम पर रखा गया है। यह विमानक्षेत्र भारत के एक महानगर में स्थित होने के कारण, एक मुख्य विओमानक्षेत्र का कार्य भी करता है, जो भारत की वायु यात्रा को बढ़ावा देने में भी सहायक है। यह विमानक्षेत्र नागपुर शहर को भारत के सभी मुख्य शहरों से जोड़ता है। साथ ही कई अन्तर्राष्ट्रीय गंतव्यों से भी: जैसे शारजाह, दुबई, दोहा, इत्यादि से भी जोड़ता है। .
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त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद
त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वशासी जिला परिषद(टीटीएएडीसी), त्रिपुरा राज्य के त्रिपुरी बहुल इलाकों को प्रशशित करने वाला स्वशासित निकाय है। इसकी सभा व परिषद्, अगरतला से २६ किमी दूर खुमुलुङ नमक नगर में है। .
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त्रिपुरा के राज्यपालों की सूची
ब्रज कुमार नेहरू, त्रिपुरा के पहले राज्यपाल त्रिपुरा के राज्यपाल उत्तर-पुर्व भारत के त्रिपुरा राज्य के सरकार के संवैधानिक प्रमुख हैं। राज्यपाल को पांच साल की अवधि के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, और राष्ट्रपति के इच्छा के अनुसार कार्यालय का कार्यकाल होता है। भारत के संविधान के मुताबिक, त्रिपुरा के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी त्रिपुरा के मुख्यमंत्री है। भारत का संविधान राज्यपाल को अपने स्वयं के विवेक पर कार्य करने का अधिकार देता है; जैसे कि मंत्रालय को नियुक्त करने या खारिज करने की क्षमता, राष्ट्रपति के शासन की सिफारिश करना, या राष्ट्रपति की सहमति के लिए कोई विधेयक आरक्षित करना। .
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त्रिभाषा सूत्र
भाषा की एक उदाहरण्। त्रिभाषा सूत्र (Three-language formula) भारत में भाषा-शिक्षण से सम्बन्धित नीति है जो भारत सरकार द्वारा राज्यों से विचार-विमर्श करके बनायी गयी है। यह सूत्र (नीति) सन् १९६८ में स्वीकार किया गया। .
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दलित
दलित का मतलब पहले पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट हुआ करता था, लेकिन अब अनुसूचित जाति को दलित बताया जाता है, अब दलित शब्द पूर्णता जाति विशेष को बोला जाने लगा हजारों वर्षों तक अस्पृश्य या अछूत समझी जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्त होता है जो हिंदू धर्म शास्त्रों द्वारा हिंदू समाज व्यवस्था में सबसे निचले (चौथे) पायदान पर स्थित है। और बौद्ध ग्रन्थ में पाँचवे पायदान पर (चांडाल) है संवैधानिक भाषा में इन्हें ही अनुसूचित जाति कहां गया है। भारतीय जनगनणा 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्या में लगभग 16.6 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है।http://m.timesofindia.com/india/Half-of-Indias-dalit-population-lives-in-4-states/articleshow/19827757.cms आज अधिकांश हिंदू दलित बौद्ध धर्म के तरफ आकर्षित हुए हैं और हो रहे हैं, क्योंकी बौद्ध बनने से हिंदू दलितों का विकास हुआ हैं।http://www.bbc.com/hindi/india/2016/04/160414_dalit_vote_politician_rd "दलित" शब्द की व्याखा, अर्थ तुलनात्मक दृष्टी से देखे तो इसका विरुद्ध विषलेशण इस प्रकार है। "दलित" -: पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट "फलित" -: पिडामुक्त, उच्च, प्रसन्न, खुशहाल, अखंड, अखंडित, जोडना, समानता, एकरुप, पूर्णरूप, संपूर्ण .
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दिल्ली के लॅफ़्टिनॅण्ट गवर्नरों की सूची
दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख हैं। यह पद पहली बार १९६६ में स्थापित हुआ था, जब दिल्ली प्रशासन अधिनियम, १९६६ प्रभावी हुआ था। इस प्रकार दिल्ली विधानसभा की जगह दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल ने ५६ निर्वाचित और ५ नामित सदस्यों के साथ दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में स्थान दिया था। परिषद के पास कोई विधायी शक्ति नहीं थी, केवल दिल्ली के शासन में एक सलाहकार की भूमिका थी। यह स्थापना १९९० तक हुई, जब विधानसभा को बहाल किया गया था, लेफ्टिनेंट गवर्नर ने अपनी भूमिका निभाई। ३१ दिसंबर २०१६ के बाद से वर्तमान लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल, पूर्व केंद्रीय गृह सचिव उनका आधिकारिक निवास दिल्ली में राज निवास में है। .
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दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय दिल्ली राज्य का न्यायालय हैं। इसे ३१ अक्टूबर, १९६६ को स्थापित किया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय को चार न्यायाधीशों के साथ स्थापित किया गया था। वे मुख्य न्यायाधीश थे - के एस हेगड़े, न्यायमूर्ति आईडी दुआ, न्यायाधीश एचआर खन्ना और न्यायमूर्ति एस के कपूर। .
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देशी भाषा
"देशी" शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द "देश" से है और इस अर्थ में अन्य शब्द "देश्य" तथा देशीय भी प्रयुक्त मिलते हैं। यह विशेषण भाषा के अतिरिक्त शब्दावली, नृत्यपद्धति तथा संगीतपद्धति के लिए भी प्रयुक्त मिलता है। इस प्रकार "देशी" और "देश्य" विशेषण से युक्त "देशी भाषा", "देशी शब्द", "देशी नृत्य" तथा "देशी संगीत" इन पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग भारतीय वाङ्मय में उपलब्ध है। शास्त्रीय अथवा परिनिष्ठित से भिन्न प्रणाली तथा पद्धति का संकेत करने के लिए भी यह शब्द भारतीय वाङ्मय में प्रयुक्त होता है। तौर्यत्रिक (गान, वादन तथा नृत्य) के संबंध में संगीतशास्त्र के ग्रंथों में यह सकेत मिलता है कि देशी पद्धति वह है, जो "मार्ग" (शास्त्रीय अथवा परिनिष्ठित) पद्धति से भिन्न है और जिसमें तत्तद् देशीय जनता की रुचि के अनुरूप लोकप्रचलित पद्धति का निर्वाह पाया जाता है। इस प्रकार "देश" और अंगरेजी के "फोक" शब्द का समानार्थक है। इसी तरह भाषा अथवा शब्द के अर्थ में भी "देशी" शब्द का तात्पर्य उस प्राकृत वाग्व्यापार तथा उसकी निजी शब्दावली से है, जिसका प्रयोग जनसामान्य में पाया जाता है। भाषा तथा शब्द के सबंध में "देशी", "देश्य", "देशीमत", "देशी प्रसिद्ध" इन चार शब्दों का प्रयोग संस्कृत तथा प्राकृत के वैयाकरणों ने किया है। भरत ने "नाट्यशास्त्र" में शब्दों की तीन कोटियों का संकेत किया है - तत्सम, तद्भव तथा देशीमत (नाट्यशास्त्र 17/3)। यहाँ भरत का तात्पर्य स्पष्टत: उन शब्दों से हे जो अनिर्णीत स्रोत से जनवाग्व्यापार में आ गए थे। अन्यत्र भरत ने "देशभाषा" शब्द का भी प्रयोग किया है (नाट्यशास्त्र 17/46-48), किंतु यहाँ "देशभाषा" से तात्पर्य संस्कृत से इतर सभी प्राकृत विभाषाएँ हैं। आगे चलकर महाराष्ट्री के जैन कवि पादलिप्त ने अपनी "तरंगवती कथा" की भाषा को, जो वस्तुत: (जैन) महाराष्ट्री है "देसी वयण" कहा है। छठी शती ईसवी के प्राकृत वैयाकरण चंड में भाषा या विभाषा के लिए इस शब्द का प्रयोग नहीं मिलता किंतु संस्कृतेतर तथा प्राकृतेतर शब्दों का उसने "देशी प्रसिद्ध" संज्ञा दी है। नवीं शती ईसवी के लगभग से "देशी" शब्द अपभ्रंश के समानार्थक रूप में प्रचलित हो गया था। स्वयंभू ने "पउम चरिउ" में "देशी भाषा" को वह सरिता माना है जिसके दोनों किनारे संस्कृत और प्रकृत हैं और जो कवियों के दुष्कर धनशब्द के शिलाखंडों से सुशोभित हैं। भाषा के अर्थ में पुष्पवंत ने भी "महापुराण" में "देशी" शब्द का प्रयोग किया है। अन्यत्र "देशी" शब्द का प्रयोग पद्मदेव के "पासाणाह चरिउ" तथा लक्ष्मणदेव के "णेमिणाह चरिउ" में मिलता है। ऐसा जान पड़ता है, जहां संस्कृत तथा प्राकृत के वैयाकरण, प्राकृत के वैयाकरण, प्राकृत के बाद विकसित भाषास्थिति को अपभ्रष्ट कहकर हीन संज्ञा से अभिहित करते थे, वहां अपभ्रंश के कवि इस हीनता को हटाने के लिए अपने आपको गौरव के साथ देशी भाषा का कवि घोषित कर रहे थे। देशी शब्द का प्रयोग भाषा तथा शब्दसंपत्ति के सबंध में संस्कृत आलंकारिकों और संस्कृत-प्राकृत-वैयाकरणों ने भी किया है। रुद्रट ने अपने "काव्यालंकार" में "देश्य" या "देशी" शब्द उन्हें माना है, जिनकी प्रकृति-प्रत्यय-मूलक व्युत्पत्ति का पता नहीं है (काव्यालंकार 6/27)। आगे चलकर हेमचंद्र ने इस प्रकार के शब्दों का एक कोश "देशीनाममाला" के नाम से निबद्ध किया। इस ग्रंथ के भूमिका भाग में हेमचंद्र ने बताया है कि जो शब्द व्याकरण से नहीं सिद्ध हैं, संस्कृत कोशों में ही प्रसिद्ध हैं, जिन शब्दों की सिद्धि अभिधा शक्ति के अतिरिक्त गौणी और लक्षणा शक्ति से भी संभव नहीं है, ऐसे शब्द जो केवल देश-विशेष में प्रचलित हैं और संख्या में अनंत हैं देशी कहलाते हैं (देशी नाममाला 1/3-4)। इस प्रकार हेमचंद्र के अनुसार संस्कृत के तत्सम और प्राकृत व्याकरण के ध्वनिपरिवर्तन नियमों के आधार पर बने तद्भव शब्दों से इतर अपरिज्ञात व्युत्पत्तिक शब्द देशी हैं। इधर की खोजों ने यह सिद्ध किया है कि हेमचंद्र ने "देशी नाममाला" में जितने देशी शब्द संकलित किए हैं उनमें से कई के मूलस्त्रोत संस्कृत के जान पड़ते हैं और शेष शब्दों को द्राविड़ स्रोत से आया हुआ माना जाने लगा है। इन स्त्रोतों से आए शब्दों के अतिरिक्त कुछ अनुकरणात्मक शब्द हैं और शेष ऐसे भी हैं जो देशी भाषा ने स्वयं गढ़े हैं। मराठी के प्रसिद्ध संत कवि ज्ञानेश्वर ने "ज्ञानेश्वरी" की भाषा को "देशी बंध" घोषित किया है। इन्हीं दिनों हिंदी के प्रसिद्ध कवि विद्यापति ने अनी अवहट्ट रचना "कीर्तिलता" की भाषा को "देसिल वयन" की संज्ञा दी है। आधुनिक अर्थ में देशी भाषा से आशय देश में प्रचलित उन भाषाओं में से किसी एक से है जिनका उद्गम एवं विकास प्राकृत अथवा अपभ्रंश से हुआ हो अथवा जिनका उद्भव स्थानीय बोलियों के आधार पर प्राय: स्वतंत्र रूप से हुआ हो। भारतीय संविधान के अनुसार भारत में इस तरह की बीसों देशी भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। इनमें से हिंदी, मराठी, गुजराती, बँगला, उड़िया आदि प्रथम (आर्यभाषाओं के) वर्ग में तथा तमिल, तेलुगु, कन्नड आदि द्वितीय (द्राविड़) वर्ग में आती हैं। .
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देवनागरी अंक
देवनागरी लिपि में गिनती के लिए दस अंकों वाली दशमलव आधारित गणना पद्धति का प्रयोग किया जाता है। ये दस अंक भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के समानांतर प्रचलित हैं। देवनागरी लिपि का प्रयोग करने वाली विभिन्न भाषाओं में ये अंक आम तौर पर प्रयुक्त होते हैं। प्राचीन काल से ही प्रयुक्त इन अंकों को 19वीं सदी के उत्तरार्ध में आधिकारीक दर्जा दिलाने की कोशिश शुरु हुई। भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 351 में देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को तो संघ की राजभाषा घोषित कर दिया किंतु अंक अंतर्राष्ट्रीय ही रखा। 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने अपने संविधान प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए देवनागरी अंक के प्रयोग का अध्यादेश जारी किया। तब से देवनागरी लिपि अंतर्राष्ट्रीय एवं देवनागरी अंकों के साथ भी लिखी जाने लगी। .
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दीनानाथ भार्गव
दीनानाथ भार्गव(1 नवंबर 1927 - 25 दिसंबर 2016) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रख्यात चित्रकार थे। वे शांति निकेतन के कला गुरू नन्दलाल बोस के प्रिय शिष्यों में से एक थे। भारतीय संविधान में चित्रित अशोक स्तंभ में सिंह की चित्रकारी में शामिल थे। .
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धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस
धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय बौद्धों एक प्रमुख त्यौहार है। दुनिया भर से लाखों बौद्ध अनुयायि एकट्टा होकर हर साल १४ अक्टूबर के दिन इसे दीक्षाभूमि, महाराष्ट्र में मनाते है। २० वीं सदी के मध्य में भारतीय संविधान के निर्माता, बोधिसत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने अशोक विजयादशमी के दिन १४ अक्टूबर १९५६ को नागपुर में अपने ५,००,००० अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। डॉ॰ आंबेडकर ने जहां बौद्ध धम्म की दीक्षा ली वह भूमि आज दीक्षाभूमि के नाम से जानी जाती है। डॉ॰ आंबेडकर ने जब बौद्ध धर्म अपनाया था तब बुद्धाब्ध (बौद्ध वर्ष) २५०० था। विश्व के कई देशों एवं भारत के हर राज्यों से बौद्ध अनुयायि हर साल दीक्षाभूमि, नागपुर आकर ‘धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस’ १४ अक्टूबर को एक उत्सव के रूप में मनाते है। यह त्यौहार व्यापक रूप से डॉ॰ आंबेडकर के बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने यह दिन बौद्ध धम्म दीक्षा के चूना क्योंकि इसी दिन ईसा पूर्व ३ री सदी में सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म ग्रहन किया था। तब से यह दिवस बौद्ध इतिहास में अशोक विजयादशमी के रूप में जाना जाता था, डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने बीसवीं सदीं में बौद्ध धर्म अपनाकर भारत से लुप्त हुए धर्म का भारत में पुनरुत्थान किया। इस त्यौहार में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध व्यक्ति एवं भारत के प्रमुख राजनेता भी सामिल रहते है। .
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नार्को परीक्षण
नार्को परीक्षण का प्रयोग किसी व्यक्ति से जानकारी प्राप्त करने के लिए दिया जाता है जो या तो उस जानकारी को प्रदान करने में असमर्थ होता है या फिर वो उसे उपलब्ध कराने को तैयार नहीं होता दूसरे शब्दों में यह किसी व्यक्ति के मन से सत्य निकलवाने लिए किया प्रयोग जाता है। अधिकतर आपराधिक मामलों में ही नार्को परीक्षण का प्रयोग किया जाता है।|हिन्दुस्तान लाइव|६ जनवरी २००९ हालांकि बहुत कम किन्तु यह भी संभव है कि नार्को टेस्ट के दौरान भी व्यक्ति सच न बोले। इस टेस्ट में व्यक्ति को ट्रुथ सीरम इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता है जिससे व्यक्ति स्वाभविक रूप से बोलता है। नार्को विश्लेषण एक फोरेंसिक परीक्षण होता है, जिसे जाँच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और फोरेंसिक विशेषज्ञ की उपस्थिति में किया जाता है। भारत में हाल के कुछ वर्षों से ही ये परीक्षण आरंभ हुए हैं, किन्तु बहुत से विकसित देशों में वर्ष १९२२ में मुख्यधारा का भाग बन गए थे, जब राबर्ट हाउस नामक टेक्सास के डॉक्टर ने स्कोपोलामिन नामक ड्रग का दो कैदियों पर प्रयोग किया था।। मनोरथ। २३ अक्टूबर २००८। समीर यादव .
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निदेशक तत्त्व
किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्व (directive principles of state policy) जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व हैं। सर्वप्रथम ये आयरलैंड के संविधान मे लागू किये गये थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए है। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की स्थापना करना है। .
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न्यायपालिका
न्यायपालिका (Judiciary या judicial system या judicature) किसी भी जनतंत्र के तीन प्रमुख अंगों में से एक है। अन्य दो अंग हैं - कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। न्यायपालिका, संप्रभुतासम्पन्न राज्य की तरफ से कानून का सही अर्थ निकालती है एवं कानून के अनुसार न चलने वालों को दण्डित करती है। इस प्रकार न्यायपालिका विवादों को सुलझाने एवं अपराध कम करने का काम करती है जो अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धान्त के अनुरूप न्यायपालिका स्वयं कोई नियम नहीं बनाती और न ही यह कानून का क्रियान्यवन कराती है। सबको समान न्याय सुनिश्चित करना न्यायपालिका का असली काम है। न्यायपालिका के अन्तर्गत कोई एक सर्वोच्च न्यायालय होता है एवं उसके अधीन विभिन्न न्यायालय (कोर्ट) होते हैं। .
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न्यायालय
लंदन के पुरानी बेली स्थित एक कोर्ट का दृष्य न्यायालय (अदालत या कोर्ट) का तात्पर्य सामान्यतः उस स्थान से है जहाँ पर न्याय प्रशासन कार्य होता है, परंतु बहुधा इसका प्रयोग न्यायाधीश के अर्थ में भी होता है। बोलचाल की भाषा में अदालत को कचहरी भी कहते हैं। .
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न्यायिक पुनरावलोकन
न्यायिक पुनरावलोकन अथवा न्यायिक पुनर्विलोकन अथवा न्यायिक पुनरीक्षा (Judicial review) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके अन्तर्गत कार्यकारिणी के कार्यों (तथा कभी-कभी विधायिका के कार्यों) की न्यायपालिका द्वारा पुनरीक्षा (review) का प्रावधान हो। दूसरे शब्दों में न्यायिक पुनरावलोकन से तात्पर्य न्यायालय की उस शक्ति से है जिस शक्ति के बल पर वह विधायिका द्वारा बनाये कानूनों, कार्यपालिका द्वारा जारी किये गये आदेशों तथा प्रशासन द्वारा किये गये कार्यों की जांच करती है कि वह मूल ढांचें के अनुरूप हैं या नहीं। मूल ढांचे के प्रतिकूल होने पर न्यायालय उसे अवैध घोषित करती है। न्यायिक पुनरावलोकन की उत्पति सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका से मानी जाती है किन्तु पिनाँक एवं स्मिथ ने इसकी उत्पति ब्रिटेन से मानी है। 1803 मे अमेरिका के मुख्य न्यायधीश मार्शन ने मार्बरी बनाम मेडिसन नामक विख्यात वाद मे प्रथम बार न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति की प्रस्थापना की थी। भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन सिद्धान्त का स्पष्ट उल्लेख नहीं हुआ है, परन्तु इसका आधार है- अनु॰ 13 (2), अनु॰ 32, 226, 131, 243 और न्यायधीशों द्वारा संविधान के संरक्षण की शपथ। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 राज्य के विरुद्ध नागरिकों को मूल अधिकारों के संरक्षण की गारण्टी देता है। यदि राज्य द्वारा कोई ऐसी विधि बनाई जाती है जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है तो न्यायालय उसको शून्य घोषित कर सकता है। इसके द्वारा न्यायालय विधियों की संवैधानिकता की जाँच करता है। इसीलिए अनुच्छेद 13 को 'मूल अधिकारों का प्रहरी' भी कहा जाता है। अनुच्छेद 13 (1):- इसमें कहा गया है कि भारतीय संविधान के लागू होने के ठीक पहले भारत में प्रचलित सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जहाँ तक कि वे संविधान भाग तीन के उपबंधों से असंगत हैं। अनुच्छेद 13 (2):- राज्य ऐसी कोई विधि नहीँ बनायेगा जो मूल अधिकारों को छीनती है। इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी। अनुच्छेद 13 (3):- विधि के अंतर्गत भारत में विधि के समान कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, उपनियम, अधिसूचना, रूढ़ि व प्रथा आते हैं अर्थात इनमें से किसी के भी द्वारा मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उन्हें न्यायालय में रिट के द्वारा चुनौती दी जा सकती है। अनुच्छेद 13 (4):- यह खण्ड "संविधान के 24 वें संशोधन" द्वारा जोड़ा गया है। इसके अनुसार इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किये गए संविधान संशोधन को लागू नहीं होगी। यह अनुच्छेद सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका को अपनी-अपनी हद में रहने को बाध्य करता है ताकि यह एक दूसरे के क्षेत्रों में हस्तक्षेप न करें। संविधान में अनुच्छेद 13, 32 व 226 के द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति दी गई है। कुछ प्रावधानों को न्यायिक पुनर्विलोकन से बाहर रखा गया है। .
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पारिभाषिक शब्दावली
पारिभाषिक शब्दावली या परिभाषा कोश, "ग्लासरी" (glossary) का प्रतिशब्द है। "ग्लासरी" मूलत: "ग्लॉस" शब्द से बना है। "ग्लॉस" ग्रीक भाषा का glossa है जिसका प्रारंभिक अर्थ "वाणी" था। बाद में यह "भाषा" या "बोली" का वाचक हो गया। आगे चलकर इसमें और भी अर्थपरिवर्तन हुए और इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के शब्द (पारिभाषिक, सामान्य, क्षेत्रीय, प्राचीन, अप्रचलित आदि) के लिए होने लगा। ऐसे शब्दों का संग्रह ही "ग्लॉसरी" या "परिभाषा कोश" है। ज्ञान की किसी विशेष विधा (कार्य क्षेत्र) में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की उनकी परिभाषा सहित सूची पारिभाषिक शब्दावली (glossary) या पारिभाषिक शब्दकोश कहलाती है। उदाहरण के लिये गणित के अध्ययन में आने वाले शब्दों एवं उनकी परिभाषा को गणित की पारिभाषिक शब्दावली कहते हैं। पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग जटिल विचारों की अभिव्यक्ति को सुचारु बनाता है। महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' नामक प्रथम अध्याय में कहा है- इसके बाद उन्होने लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन, समय, सोना, चाँदी एवं अन्य धातुओं के मापन की इकाइयों के नाम और उनकी परिभाषा (परिमाण) दिया है। इसके बाद गणितीय संक्रियाओं के नाम और परिभाषा दी है तथा अन्य गणितीय परिभाषाएँ दी है। द्विभाषिक शब्दावली में एक भाषा के शब्दों का दूसरी भाषा में समानार्थक शब्द दिया जाता है व उस शब्द की परिभाषा भी की जाती है। अर्थ की दृष्टि से किसी भाषा की शब्दावली दो प्रकार की होती है- सामान्य शब्दावली और पारिभाषिक शब्दावली। ऐसे शब्द जो किसी विशेष ज्ञान के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, वह पारिभाषिक शब्द होते हैं और जो शब्द एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त नहीं होते वह सामान्य शब्द होते हैं। प्रसिद्ध विद्वान आचार्य रघुवीर बड़े ही सरल शब्दों में पारिभाषिक और साधारण शब्दों का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहते हैं- पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार - डॉ॰ भोलानाथ तिवारी 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं- .
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पाकिस्तान का संविधान
पाकिस्तान का संविधान (آئین پاکستان;आईन(ए) पाकिस्तान) या दस्तूरे पाकिस्तान دستور پاکستان) को १९७३ का क़ानून भी कहते हैं। यह पाकिस्तान का सर्वोच्च दस्तूर है। पाकिस्तान का संविधान संविधान सभा द्वारा १० अप्रैल १९७३ को पारित हुआ तथा 14 अगस्त 1973 से प्रभावी हुआ। इस का प्रारूप ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की सरकार और विपक्ष ने मिल कर तैयार किया। ये पाकिस्तान का तीसरा दस्तूर है और इस में कई बार रद्दोबदल की जा चुकी है। .
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पंचायती राज
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तालुका और जिला आते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई। .
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पंजाब (भारत) के मुख्यमंत्रियों की सूची
पंजाब के मुख्यमंत्री उत्तर भारत के पंजाब राज्य के सरकार के प्रमुख हैं। भारत के संविधान के मुताबिक, पंजाब के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमंत्री है। पंजाब विधान सभा के चुनावों के बाद, राज्यपाल आम तौर पर सरकार बनाने के लिए बहुसंख्य पक्ष (या गठबंधन) को आमंत्रित करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है, जिनके मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से विधानसभा के लिए जिम्मेदार है। यह देखते हुए कि उन्हें विधानसभा का विश्वास है, मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल के लिए है और यह कोई अवधि सीमा नहीं है। .
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प्रयोजनमूलक हिन्दी
व्यक्ति द्वारा विभिन्न रूपों में बरती जाने वाली भाषा को भाषा-विज्ञानियों ने स्थूल रूप से सामान्य और प्रयोजनमूलक इन दो भागों में विभक्त किया है। प्रयोजनमूलक हिन्दी (Functional Hindi) से तात्पर्य हिन्दी के विज्ञान, तकनीकी, विधि, संचार एवं अन्यान्य गतिविधियों में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी से है। हिन्दी केवल साहित्य की भाषा न रहे बल्कि जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रभावी रूप से प्रयुक्त हो, तभी इसका विकास सुनिश्चित होगा। सुखद सूचना यह है कि हिन्दी की इस नितांत ताजा-टटकी और कई संदर्भों में बेहद नयी भाषिक-संरचना या नवजात शिशु रूप को केन्द्रीय विश्वविद्यालयों ने अपने-अपने पाठ्यक्रमों में शामिल कर इसे सम्मानित किया है। प्रयोजनमूलक हिन्दी आज इस देश में बहुत बड़े फलक और धरातल पर प्रयुक्त हो रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का पुल बनाने में आज इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने एक ओर कम्प्यूटर, टेलेक्स, तार, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीप्रिंटर, दूरदर्शन, रेडियो, अखबार, डाक, फिल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के माध्यमों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है, तो वहीं दूसरी ओर शेयर बाजार, रेल, हवाई जहाज, बीमा उद्योग, बैंक आदि औद्योगिक उपक्रमों, रक्षा, सेना, इन्जीनियरिंग आदि प्रौद्योगिकी संस्थानों, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों, आयुर्विज्ञान, कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, ए० एम० आई० के साथ विभिन्न संस्थाओं में हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण दिलाने कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, सरकारी, अर्द्धसरकारी कार्यालयों, चिट्ठी-पत्री, लेटर पैड़, स्टॉक-रजिस्टर, लिफाफे, मुहरें, नामपट्ट, स्टेशनरी के साथ-साथ कार्यालय-ज्ञापन, परिपत्र, आदेश, राजपत्र, अधिसूचना, अनुस्मारक, प्रेस–विज्ञाप्ति, निविदा, नीलाम, अपील, केबलग्राम, मंजूरी पत्र तथा पावती आदि में प्रयुक्त होकर अपने महत्व को स्वतः सिद्ध कर दिया है। कुल मिलाकर यह कि पर्यटन बाजार, तीर्थस्थल, कल-कारखने, कचहरी आदि अब प्रयोजनमूलक हिन्दी की जद में आ गए हैं। हिन्दी के लिए यह शुभ है। .
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पूनिया हत्याकांड
पूनिया हत्याकान्ड (या रेलू राम पूनिया हत्या का मुकदमा) भारतीय राजनेता रेलू राम पूनिया और उनके परिवार के सात सदस्यों की सामूहिक हत्या का मामला है। संपत्ति के विवाद के चलते २३ अगस्त २००१ की रात को रेलू राम की बेटी सोनिया ने अपने पति संजीव कुमार के साथ इनकी हत्या कर दी थी। यह मामला न्यायालय में दायर किया गया था और सोनिया, संजीव और उनके परिवार के विभिन्न सदस्यों पर चलाया गया था। दंपति को हत्या के आरोपों से दोषी ठहराया गया था और जिला न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई थी। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस सजा को कम कर आजीवन कारावास दिया था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने फिर से मौत की सजा बहाल की थी। भारत के संविधान के खंड ७२ (१) के तहत, इस दलील के दौरान दंपति ने राष्ट्रपति को दया याचिका उठाई थी। यह याचिका राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के कार्यकाल के दौरान अनुत्तरित रही लेकिन उनके उत्तराधिकारी प्रणब मुखर्जी ने इसे खारिज कर दि थी। हालांकि, एक नागरिक अधिकार समूह "पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स" (पीयूडीआर) ने दया याचिका के निपटान में देरी का कारण देकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी २०१४ में स्वीकार किया और दंपति की मौत की सजा वापस लौटा दी गई थी। .
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ब्रिटिश राज का इतिहास
ब्रिटिश राज का इतिहास, 1947 और 1858 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश शासन की अवधि को संदर्भित करता है। शासन प्रणाली को 1858 में स्थापित किया गया था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को महारानी विक्टोरिया के हाथों में सौंपते हुए राजशाही के अधीन कर दिया गया (और विक्टोरिया को 1876 में भारत की महारानी घोषित किया गया).
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भारत
भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
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भारत में धर्म
तवांग में गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा. बैंगलोर में शिव की एक प्रतिमा. कर्नाटक में जैन ईश्वरदूत (या जिन) बाहुबली की एक प्रतिमा.
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भारत में धर्मनिरपेक्षता
भारतीय संविधान द्वारा भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। भारतीय संविधान की पूर्वपीठिका (preamble) में 'सेक्युलर' शब्द ४२वें संविधान संसोधन द्वारा सन १९७६ में जोड़ा गया। किन्तु ऐतिहासिक रूप से भारत में 'सर्वधर्म समन्वय' और वैचारिक एवं दार्शनिक स्वतन्त्रता अनादी काल से चली आ रही है। .
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भारत में मानवाधिकार
देश के विशाल आकार और विविधता, विकसनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है। भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी अंतर्भूक्त है। संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने-जाने की भी आजादी दी गई है। यह अक्सर मान लिया जाता है, विशेषकर मानवाधिकार दलों और कार्यकर्ताओं के द्वारा कि दलित अथवा अछूत जाति के सदस्य पीड़ित हुए हैं एवं लगातार पर्याप्त भेदभाव झेलते रहे हैं। हालांकि मानवाधिकार की समस्याएं भारत में मौजूद हैं, फिर भी इस देश को दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तरह आमतौर पर मानवाधिकारों को लेकर चिंता का विषय नहीं माना जाता है। इन विचारों के आधार पर, फ्रीडम हाउस द्वारा फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2006 को दिए गए रिपोर्ट में भारत को राजनीतिक अधिकारों के लिए दर्जा 2, एवं नागरिक अधिकारों के लिए दर्जा 3 दिया गया है, जिससे इसने स्वाधीन की संभतः उच्चतम दर्जा (रेटिंग) अर्जित की है। .
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भारत में मौत की सज़ा
भारत में मौत की सज़ा कुछ गंभीर अपराधों के लिए दी जाती है।Majumder, Sanjoy.
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भारत में हिन्दी
भारत में हिन्दी सब से अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी भाषा का जन्म भारत में हुआ था। हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में राजभाषा के सम्बंध में धारा ३४३ से ३५२ तक की व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। .
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भारत में आरक्षण
भारत में गरीबी रेखा से नीचे लोगों के जाति और समुदाय प्रोफ़ाइल, सच्चर रिपोर्ट जैसे दर्शाया गया सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों से सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए भारत सरकार ने अब भारतीय कानून के जरिये सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों की इकाइयों और धार्मिक/भाषाई अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को छोड़कर सभी सार्वजनिक तथा निजी शैक्षिक संस्थानों में पदों तथा सीटों के प्रतिशत को आरक्षित करने की कोटा प्रणाली प्रदान की है। भारत के संसद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व के लिए भी आरक्षण नीति को विस्तारित किया गया है। भारत की केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में 27% आरक्षण दे रखा है और विभिन्न राज्य आरक्षणों में वृद्धि के लिए क़ानून बना सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 50% से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता, लेकिन राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने 68% आरक्षण का प्रस्ताव रखा है, जिसमें अगड़ी जातियों के लिए 14% आरक्षण भी शामिल है। आम आबादी में उनकी संख्या के अनुपात के आधार पर उनके बहुत ही कम प्रतिनिधित्व को देखते हुए शैक्षणिक परिसरों और कार्यस्थलों में सामाजिक विविधता को बढ़ाने के लिए कुछ अभिज्ञेय समूहों के लिए प्रवेश मानदंड को नीचे किया गया है। कम-प्रतिनिधित्व समूहों की पहचान के लिए सबसे पुराना मानदंड जाति है। भारत सरकार द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार, हालांकि कम-प्रतिनिधित्व के अन्य अभिज्ञेय मानदंड भी हैं; जैसे कि लिंग (महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है), अधिवास के राज्य (उत्तर पूर्व राज्य, जैसे कि बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कम है), ग्रामीण जनता आदि। मूलभूत सिद्धांत यह है कि अभिज्ञेय समूहों का कम-प्रतिनिधित्व भारतीय जाति व्यवस्था की विरासत है। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान ने पहले के कुछ समूहों को अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) के रूप में सूचीबद्ध किया। संविधान निर्माताओं का मानना था कि जाति व्यवस्था के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे और उन्हें भारतीय समाज में सम्मान तथा समान अवसर नहीं दिया गया और इसीलिए राष्ट्र-निर्माण की गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी कम रही। संविधान ने सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की खाली सीटों तथा सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में अजा और अजजा के लिए 15% और 7.5% का आरक्षण था।बाद में, अन्य वर्गों के लिए भी आरक्षण शुरू किया गया। 50% से अधिक का आरक्षण नहीं हो सकता, सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से (जिसका मानना है कि इससे समान अभिगम की संविधान की गारंटी का उल्लंघन होगा) आरक्षण की अधिकतम सीमा तय हो गयी। हालांकि, राज्य कानूनों ने इस 50% की सीमा को पार कर लिया है और सर्वोच्च न्यायलय में इन पर मुकदमे चल रहे हैं। उदाहरण के लिए जाति-आधारित आरक्षण भाग 69% है और तमिलनाडु की करीब 87% जनसंख्या पर यह लागू होता है (नीचे तमिलनाडु अनुभाग देखें)। .
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भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में सम्मिलित है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित ६ प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान करतीं हैं। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारतीय संविधान में धारा १९ द्वारा सम्मिलित छह स्वतंत्रता के अधिकारों में से एक है। .
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भारत सरकार
भारत सरकार, जो आधिकारिक तौर से संघीय सरकार व आमतौर से केन्द्रीय सरकार के नाम से जाना जाता है, 29 राज्यों तथा सात केन्द्र शासित प्रदेशों के संघीय इकाई जो संयुक्त रूप से भारतीय गणराज्य कहलाता है, की नियंत्रक प्राधिकारी है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत सरकार नई दिल्ली, दिल्ली से कार्य करती है। भारत के नागरिकों से संबंधित बुनियादी दीवानी और फौजदारी कानून जैसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता, आदि मुख्यतः संसद द्वारा बनाया जाता है। संघ और हरेक राज्य सरकार तीन अंगो कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका के अन्तर्गत काम करती है। संघीय और राज्य सरकारों पर लागू कानूनी प्रणाली मुख्यतः अंग्रेजी साझा और वैधानिक कानून (English Common and Statutory Law) पर आधारित है। भारत कुछ अपवादों के साथ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्याय अधिकारिता को स्वीकार करता है। स्थानीय स्तर पर पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया है। भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका। .
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भारत सारावली
भुवन में भारत भारतीय गणतंत्र दक्षिण एशिया में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है। यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ देश है। भारत की संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति एवं सभ्यताओं में से है।भारत, चार विश्व धर्मों-हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म के जन्मस्थान है और प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का घर है। मध्य २० शताब्दी तक भारत अंग्रेजों के प्रशासन के अधीन एक औपनिवेशिक राज्य था। अहिंसा के माध्यम से महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत देश को १९४७ में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया। भारत, १२० करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। .
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भारत का ध्वज
भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है। इसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी।। भास्कर डॉट कॉम। १५ अगस्त २००९ इसे १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व २२ जुलाई, १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।। भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात ३:२ है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें २४ आरे होते हैं। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व रूप सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है। भारतीय राष्ट्रध्वज अपने आप मै ही भारत की निति को दर्शाता हुआ दिखाई देता है। आत्मरक्षा, शांति, समृद्धि और सदैव विकास की ओर अग्रसर। राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादीमें ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता हैं भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है। ध्वज का हेराल्डिक वर्णन इस प्रकार से होता है: .
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भारत का प्रधानमन्त्री
भारत गणराज्य के प्रधानमन्त्री (सामान्य वर्तनी:प्रधानमंत्री) का पद भारतीय संघ के शासन प्रमुख का पद है। भारतीय संविधान के अनुसार, प्रधानमन्त्री केंद्र सरकार के मंत्रिपरिषद् का प्रमुख और राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का प्रमुख होता है और सरकार के कार्यों के प्रति संसद को जवाबदेह होता है। भारत की संसदीय राजनैतिक प्रणाली में राष्ट्रप्रमुख और शासनप्रमुख के पद को पूर्णतः विभक्त रखा गया है। सैद्धांतिकरूप में संविधान भारत के राष्ट्रपति को देश का राष्ट्रप्रमुख घोषित करता है और सैद्धांतिकरूप में, शासनतंत्र की सारी शक्तियों को राष्ट्रपति पर निहित करता है। तथा संविधान यह भी निर्दिष्ट करता है कि राष्ट्रपति इन अधिकारों का प्रयोग अपने अधीनस्थ अधकारियों की सलाह पर करेगा। संविधान द्वारा राष्ट्रपति के सारे कार्यकारी अधिकारों को प्रयोग करने की शक्ति, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित, प्रधानमन्त्री को दी गयी है। संविधान अपने भाग ५ के विभिन्न अनुच्छेदों में प्रधानमन्त्रीपद के संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद ७४ में स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानमन्त्री की उपस्थिति को आवश्यक माना गया है। उसकी मृत्यु या पदत्याग की दशा मे समस्त परिषद को पद छोडना पडता है। वह स्वेच्छा से ही मंत्रीपरिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति मंत्रिगण की नियुक्ति उसकी सलाह से ही करते हैं। मंत्री गण के विभाग का निर्धारण भी वही करता है। कैबिनेट के कार्य का निर्धारण भी वही करता है। देश के प्रशासन को निर्देश भी वही देता है तथा सभी नीतिगत निर्णय भी वही लेता है। राष्ट्रपति तथा मंत्रीपरिषद के मध्य संपर्कसूत्र भी वही हैं। मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रवक्ता भी वही है। वह सत्तापक्ष के नाम से लड़ी जाने वाली संसदीय बहसों का नेतृत्व करता है। संसद मे मंत्रिपरिषद के पक्ष मे लड़ी जा रही किसी भी बहस मे वह भाग ले सकता है। मन्त्रीगण के मध्य समन्वय भी वही करता है। वह किसी भी मंत्रालय से कोई भी सूचना आवश्यकतानुसार मंगवा सकता है। प्रधानमन्त्री, लोकसभा में बहुमत-धारी दल का नेता होता है, और उसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने पर होती है। इस पद पर किसी प्रकार की समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है परंतु एक व्यक्ति इस पद पर केवल तब तक रह सकता है जबतक लोकसभा में बहुमत उसके पक्ष में हो। संविधान, विशेष रूप से, प्रधानमन्त्री को केंद्रीय मंत्रिमण्डल पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करता है। इस पद के पदाधिकारी को सरकारी तंत्र पर दी गयी अत्यधिक नियंत्रणात्मक शक्ति, प्रधानमन्त्री को भारतीय गणराज्य का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति बनाती है। विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या, सबसे बड़े लोकतंत्र और विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य बलों समेत एक परमाणु-शस्त्र राज्य के नेता होने के कारण भारतीय प्रधानमन्त्री को विश्व के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है। वर्ष २०१० में फ़ोर्ब्स पत्रिका ने अपनी, विश्व के सबसे शक्तिशाली लोगों की, सूची में तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को १८वीं स्थान पर रखा था तथा २०१२ और २०१३ में उन्हें क्रमशः १९वें और २८वें स्थान पर रखा था। उनके उत्तराधिकारी, नरेंद्र मोदी को वर्ष २०१४ में १५वें स्थान पर तथा वर्ष २०१५ में विश्व का ९वाँ सबसे शक्तिशाली व्यक्ति नामित किया था। इस पद की स्थापना, वर्त्तमान कर्तव्यों और शक्तियों के साथ, २६ जनवरी १९४७ में, संविधान के परवर्तन के साथ हुई थी। उस समय से वर्त्तमान समय तक, इस पद पर कुल १५ पदाधिकारियों ने अपनी सेवा दी है। इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले पदाधिकारी जवाहरलाल नेहरू थे जबकि भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी हैं, जिन्हें 26 मई 2014 को इस पद पर नियुक्त किया गया था। .
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भारत का केन्द्रीय मंत्रिमण्डल
केन्द्रीय मंत्रिमंडल, भारत गणराज्य में कार्यकारी अधिकार का प्रयोग करता हैं। इस में वरिष्ठ मंत्री (केबिनेट मंत्री) और कनिष्ठ मंत्री (राज्य मंत्री) सम्मिलित होते हैं, जिनका नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल नामक एक छोटी कार्यकारी निकाय, भारत में सर्वोच्च निर्णय लेने की संस्था हैं। केवल प्रधानमंत्री और कैबिनेट मंत्री ही कैबिनेट के सदस्य होते हैं। भारत में सबसे वरिष्ठ सिविल सेवक, कैबिनेट सचिव, कैबिनेट सचिवालय का नेतृत्व करते हैं, तथा मंत्रियों की परिषद को प्रशासनिक सहायता प्रदान करते हैं। राज्य मंत्रियों को अपने काम में कैबिनेट मंत्रियों की सहायता के साथ काम सौंपा गया हैं। यह सूची भारत के केन्द्रीय मंत्रियों की सूची है जिसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सोलहवीं लोकसभा के गठन के बाद 2014 में चुना गया है। इस सूची में जनवरी 2015 में परिवर्तन किया गया है। .
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भारत का केंद्रीय बजट
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है, जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस में भारत के वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता है। भारत के वित्तीय वर्ष की शुरूआत, अर्थात 1 अप्रैल से इसे लागू करने से पहले बजट को सदन द्वारा इसे पारित करना आवश्यक होता है। पूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने अभी तक सबसे ज्यादा 10 बार बजट प्रस्तुत किया है। .
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भारत का उच्चतम न्यायालय
भारत का उच्चतम न्यायालय या भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है जिसे भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित किया गया है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त हैं। भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारतीय संविधान के संरक्षक की है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्रों की नींव हैं। उच्चतम न्यायालय सबसे उच्च अपीलीय अदालत है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील सुनता है। इसके अलावा, राज्यों के बीच के विवादों या मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं को आमतौर पर उच्च्तम न्यायालय के समक्ष सीधे रखा जाता है। भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को हुआ और उसके बाद से इसके द्वारा 24,000 से अधिक निर्णय दिए जा चुके हैं। .
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भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार
मौलिक अधिकार भारत के संविधान के तीसरे भाग में वर्णित लोगों के मूल अधिकार हैं। ये अधिकार सभी भारतीय नागरिकों की नागरीक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं जैसे सभी भारत के लोग, भारतीय नागरिक के रूप में शान्ति के साथ समान रूप से जीवन व्यापन कर सकते हैं। .
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भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक
भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (अंग्रेजी: Comptroller and Auditor General of India संक्षिप्त नाम: CAG) भारतीय संविधान के अध्याय ५ द्वारा स्थापित एक प्राधिकारी है जो भारत सरकार तथा सभी प्रादेशिक सरकारों के सभी तरह के लेखों का अंकेक्षण करता है। वह सरकार के स्वामित्व वाली कम्पनियों का भी अंकेक्षण करता है। उसकी रिपोर्ट पर सार्वजनिक लेखा समितियाँ ध्यान देती है। भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक एक सवतंत्र संस्था के रूप में कार्य करते हैं और इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता| भारत के नियन्त्र और महालेखापरीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं| नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक ही भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा का भी मुखिया होता है। इस समय पूरे भारत की इस सार्वजनिक संस्था में ५८ हजार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक का कार्यालय 10 बहादुर शाह जफर मार्ग पर नई दिल्ली में स्थित है। वर्तमान समय में इस संस्थान के मुखिया राजीव महर्षि हैं। वे भारत के 13वें नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक हैं। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की उम्र, जो भी पहले होगा, की अवधि के लिए राष्टपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।केन्द अथवा राज्य सरकार के अनुरोध पर किसी भी सरकारी विभाग की जाँच करता है। .
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भारत के प्रधान मंत्रियों की सूची
भारत के प्रधानमंत्री भारत गणराज्य की सरकार के मुखिया हैं। भारत के प्रधानमंत्री, का पद, भारत के शासनप्रमुख (शासनाध्यक्ष) का पद है। संविधान के अनुसार, वह भारत सरकार के मुखिया, भारत के राष्ट्रपति, का मुख्य सलाहकार, मंत्रिपरिषद का मुखिया, तथा लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है। वह भारत सरकार के कार्यपालिका का नेतृत्व करता है। भारत की राजनैतिक प्रणाली में, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल में का वरिष्ठ सदस्य होता है। .
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भारत के मूल अधिकार, निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य
भारत के संविधान की प्रस्तावना - भारत के मौलिक और सर्वोच्च कानून मूल अधिकार, राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व और मूल कर्तव्य भारत के संविधान के अनुच्छेद हैं जिनमें अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्वों और राज्य के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है। इन अनुच्छेदों में सरकार के द्वारा नीति-निर्माण तथा नागरिकों के आचार एवं व्यवहार के संबंध में एक संवैधानिक अधिकार विधेयक शामिल है। ये अनुच्छेद संविधान के आवश्यक तत्व माने जाते हैं, जिसे भारतीय संविधान सभा द्वारा 1947 से 1949 के बीच विकसित किया गया था। ''मूल अधिकारों'' को सभी नागरिकों के बुनियादी मानव अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के भाग III में परिभाषित ये अधिकार नस्ल, जन्म स्थान, जाति, पंथ या लिंग के भेद के बिना सभी पर लागू होते हैं। ये विशिष्ट प्रतिबंधों के अधीन अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय हैं। राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत सरकार द्वारा कानून बनाने के लिए दिशानिदेश हैं। संविधान के भाग IV में वर्णित ये प्रावधान अदालतों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन जिन सिद्धांतों पर ये आधारित हैं, वे शासन के लिए मौलिक दिशानिदेश हैं जिनको राज्य द्वारा कानून तैयार करने और पारित करने में लागू करने की आशा की जाती है। मौलिक कर्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिए भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। संविधान के चतुर्थ भाग में वर्णित ये कर्तव्य व्यक्तियों और राष्ट्र से संबंधित हैं। निदेशक सिद्धांतों की तरह, इन्हें कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। .
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भारत के राष्ट्रपति
भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किये जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध/शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश के प्रथम नागरिक हैं। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। सिद्धांततः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है। पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद् के द्वारा उपयोग किए जाते हैं। भारत के राष्ट्रपति नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में रहते हैं, जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम कितनी भी बार पद पर रह सकते हैं इसकी कोई सीमा तय नहीं है। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने ही इस पद पर दो बार अपना कार्यकाल पूरा किया है। प्रतिभा पाटिल भारत की 12वीं तथा इस पद को सुशोभीत करने वाली पहली महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 25 जुलाई 2007 को पद व गोपनीयता की शपथ ली थी। - Fadoo Post - 14 july 2017 वर्तमान में राम नाथ कोविन्द भारत के चौदहवें राष्ट्रपति हैं। .
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भारत के राष्ट्रपतियों की सूची
भारत का राष्ट्रपति देश का मुखिया और भारत का प्रथम नागरिक है। राष्ट्रपति के पास भारतीय सशस्त्र सेना की भी सर्वोच्च कमान है। भारत का राष्ट्रपति लोक सभा, राज्यसभा और विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। भारत की स्वतंत्रता से अबतक 13 राष्ट्रपति हो चुके है। भारत के राष्ट्रपति पद की स्थापना भारतीय संविधान के द्वारा की गयी है। इन 13 राष्ट्रपतियों के अलावा 3 कार्यवाहक राष्ट्रपति भी हुए हैं जो पदस्थ राष्ट्रपति की मृत्यु के बाद बनाये गए है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद थे। 7 राष्ट्रपति निर्वाचित होने से पूर्व राजनीतिक पार्टी के सदस्य रह चुके है। इनमे से 6 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और 1 जनता पार्टी के सदस्य शामिल है, जो बाद राष्ट्रपति बने। दो राष्ट्रपति, ज़ाकिर हुसैन और फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, जिनकी पदस्थ रहते हुए मृत्यु हुई। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी है जो 25 जुलाई 2012 को भारत के 13 वें राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित हुए राष्ट्रपति रहने से पूर्व वे भारत सरकार में वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके है। वे मूल रूप से पश्चिम बंगाल के निवासी है इसलिए वे इस राज्य से पहले राष्ट्रपति हैं। इससे पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति है। वर्तमान में 25 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति का पद रामनाथ कोविंद को प्राप्त हुआ है। .
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भारत के राजनीतिक दलों की सूची
भारत में बहुदलीय प्रणाली बहु-दलीय पार्टी व्यवस्था है जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियां वे हैं जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है, जो विभिन्न राज्यों में समय समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है। इस मान्यता की सहायता से राजनीतिक दल कुछ पहचानों पर अपनी स्थिति की अगली समीक्षा तक विशिष्ट स्वामित्व का दावा कर सकते हैं जैसे की पार्टी चिन्ह.
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भारत के संविधान का संशोधन
दशक प्रति प्रति दशक भारत में संवैधानिक संशोधनों की संख्या1 भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। इस तरह के परिवर्तन भारत की संसद के द्वारा किये जाते हैं। इन्हें संसद के प्रत्येक सदन से पर्याप्त बहुमत के द्वारा अनुमोदन प्राप्त होना चाहिए और विशिष्ट संशोधनों को राज्यों के द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया का विवरण संविधान के लेख 368, भाग XX में दिया गया है। इन नियमों के बावजूद 1950 में संविधान के लागू होने के बाद से इस में 90 से अधिक संशोधन किये जा चुके हैं। विवादस्पद रूप से भारतीय सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) के अनुसार संविधान में किये जाने वाले प्रत्येक संशोधन को अनुमति देना संभव नहीं है। एक संशोधन इस प्रकार होना चाहिए की यह संविधान की "मूल सरंचना" का सम्मान करे, जो कि अपरिवर्तनीय है। .
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भारत के संविधान का ४२वां संशोधन
भारतीय संविधान के ४२ वां संशोधन, जिसे आधिकारिक तौर पर संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, 1 976 के रूप में जाना जाता है, इंदिरा गांधी की अध्यक्षता वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सरकार द्वारा आपातकाल (25 जून 1975 - 21 मार्च 1 9 77) के दौरान अधिनियमित किया गया था । संशोधन का अधिकांश प्रावधान 3 जनवरी 1 977 को लागू हुआ, अन्य 1 फरवरी से लागू किया गया और 27 अप्रैल 1 अप्रैल 1977 को लागू हुआ। 42 वां संशोधन को भारतीय इतिहास में सबसे विवादास्पद संवैधानिक संशोधन माना जाता है।.
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भारत के उप प्रधानमंत्री
भारत के उपप्रधानमंत्री का पद, तकनीकी रूप से एक एक संवैधानिक पद नहीं है, नाही संविधान में इसका कोई उल्लेख है। परंतु ऐतिहासिक रूप से, अनेक अवसरों पर विभिन्न सरकारों ने अपने किसी एक वरिष्ठ मंत्री को "उपप्रधानमंत्री" निर्दिष्ट किया है। इस पद को भरने की कोई संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है, नाही यह पद किसी प्रकार की विशेष शक्तियाँ प्रदान करता हैं। आम तौर पर वित्तमंत्री या रक्षामंत्री जैसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को इस पद पर स्थापित किया जाता है, जिन्हें प्रधानमंत्री के बाद, सबसे वरिष्ठ माना जाता है। अमूमन इस पद का उपयोग, गठबंधन सरकारों में मज़बूती लाने हेतु किया जाता रहा है। इस पद के पहले धारक सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जोकि जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में गृहमंत्री थे। कई अवसरों पर ऐसा होता रहा है की प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में उपप्रधानमंत्री संसद या अन्य स्थानों पर उनके स्थान पर सर्कार का प्रतिनिधित्व करते हैं, एवं कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता कर सकते हैं। भारत के उपप्रधानमंत्री भारतीय सरकार के मंत्रीमंडल के उपाध्यक्ष होते है। .
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भारत के उपराष्ट्रपतियों की सूची
यह भारत के उपराष्ट्रपतियों की सूची है जो भारतीय संविधान की व्यवस्था के तहत अबतक चुने गये हैं। .
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भारत की राजनीति
भारत की राजनीति अपने संविधान के ढाँचे में काम करती हैं, क्योंकि भारत एक संघीय संसदीय, लोकतांत्रिक गणतंत्र हैं, जहाँ पर राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता हैं और प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता हैं। भारत एक द्वि-राजतन्त्र का अनुसरण करता हैं, अर्थात, केन्द्र में एक केन्द्रीय सत्ता वाली सरकार और परिधि में राज्य सरकारें। संविधान में विधान मंडल के द्विसदनीयता का प्रावधान हैं, जिस में एक ऊपरी सदन (राज्य सभा) जो भारतीय संघ के राज्य तथा केन्द्र-शासित प्रदेश का प्रतिनिधित्व करता हैं, और निचला सदन (लोक सभा) जो भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करता हैं, सम्मिलित हैं। शासन एवं सत्ता सरकार के हाथ में होती है। संयुक्त वैधानिक बागडोर सरकार एवं संसद के दोनो सदनों, लोक सभा एवं राज्य सभा के हाथ में होती है। न्याय मण्डल शासकीय एवं वैधानिक, दोनो से स्वतंत्र होता है। संविधान के अनुसार, भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य है, जहां पर सरकार जनता के द्वारा चुनी जाती है। अमेरिका की तरह, भारत में भी संयुक्त सरकार होती है, लेकिन भारत में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जो कि ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है। बहुमत की स्थिति में न होने पर सरकार न बना पाने की दशा में अथवा विशेष संवैधानिक परिस्थिति के अंतर्गत, केन्द्र सरकार राज्य सरकार को निष्कासित कर सकती है और सीधे संयुक्त शासन लागू कर सकती है, जिसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है। .
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भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी
हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है। .
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भारत की शिक्षा प्रणाली
भारत के स्कूली बच्चे .
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भारत की संस्कृति
कृष्णा के रूप में नृत्य करते है भारत उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय सांस्कृतिक सीमाओं और क्षेत्रों की स्थिरता और ऐतिहासिक स्थायित्व को प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र भारत की संस्कृति बहुआयामी है जिसमें भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। इसके साथ ही पड़ोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है। पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़, भाषाएँ, प्रथाएँ और परंपराएँ इसके एक-दूसरे से परस्पर संबंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं। भारत कई धार्मिक प्रणालियों, जैसे कि हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे धर्मों का जनक है। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न हुए विभिन्न धर्म और परम्पराओं ने विश्व के अलग-अलग हिस्सों को भी बहुत प्रभावित किया है। .
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भारत की आधिकारिक भाषाएँ
भारत की आधिकारिक भाषा, हिन्दी है और अंग्रेज़ी सहायक या गौण आधिकारिक भाषा है; भारत के राज्य अपनी आधिकारिक भाषा (एँ) विधिक रूप से घोषित कर सकते हैं। नाही भारतीय संविधान और ना कोई भारतीय कानून किसी राष्ट्रभाषा को परिभाषित करता है। जिस समय संविधान लागू किया जा रहा था, उस समय अंग्रेज़ी आधिकारिक रूप से केन्द्र और राज्य दोनो स्तरों पर उपयोग में थी। संविधान द्वारा यह परिकल्पित किया गया था कि अगले १५ वर्षों में अंग्रेज़ी को चरणबद्ध रूप से हटा कर विभिन्न भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी, को उपयोग में लाया जाएगा, लेकिन तब भी संसद को यह अधिकार दिया गया था की वह विधिक रूप से उसके बाद भी अंग्रेज़ी का उपयोग हिन्दी के साथ केन्द्र स्तर पर और अन्य भाषाओं के साथ राज्य स्तर पर चालू रख सकती है। .
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भारतीय चुनाव
चुनाव लोकतंत्र का आधार स्तम्भ हैं। आजादी के बाद से भारत में चुनावों ने एक लंबा रास्ता तय किया है। 1951-52 को हुए आम चुनावों में मतदाताओं की संख्या 17,32,12,343 थी, जो 2014 में बढ़कर 81,45,91,184 हो गई है। 2004 में, भारतीय चुनावों में 670 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (यह संख्या दूसरे सबसे बड़े यूरोपीय संसदीय चुनावों के दोगुने से अधिक थी) और इसका घोषित खर्च 1989 के मुकाबले तीन गुना बढ़कर $300 मिलियन हो गया। इन चुनावों में दस लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया। 2009 के चुनावों में 714 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (अमेरिका और यूरोपीय संघ की संयुक्त संख्या से भी अधिक).
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भारतीय प्रशासनिक सेवा
भारतीय प्रशासनिक सेवा (अंग्रेजी: Indian Administrative Service) अखिल भारतीय सेवाओं में से एक है। इसके अधिकारी अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (तथा भारतीय पुलिस सेवा) में सीधी भर्ती संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से की जाती है तथा उनका आवंटन भारत सरकार द्वारा राज्यों को कर दिया जाता है। आईएएस अधिकारी केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में रणनीतिक और महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हैं। सरकार के वेस्टमिंस्टर प्रणाली के बाद दूसरे देशों की तरह, भारत में स्थायी नौकरशाही के रूप में आईएएस भारत सरकार के कार्यकारी का एक अविभाज्य अंग है, और इसलिए प्रशासन को तटस्थता और निरंतरता प्रदान करता है। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस / आईएफओएस) के साथ, आईएएस तीन अखिल भारतीय सेवाओं में से एक है - इसका संवर्ग केंद्र सरकार और व्यक्तिगत राज्यों दोनों के द्वारा नियोजित है। उप-कलेक्टर/मजिस्ट्रेट के रूप में परिवीक्षा के बाद सेवा की पुष्टि करने पर, आईएएस अधिकारी को कुछ साल की सेवा के बाद जिला मजिस्ट्रेट और कलेक्टर के रूप में जिले में प्रशासनिक आदेश दिया जाता है, और आमतौर पर, कुछ राज्यों में सेवा के १६ साल की सेवा करने के बाद, एक आईएएस अधिकारी मंडलायुक्त के रूप में राज्य में एक पूरे मंडल का नेतृत्व करता है। सर्वोच्च पैमाने पर पहुंचने पर, आईएएस अधिकारी भारत सरकार के पूरे विभागों और मंत्रालयों की का नेतृत्व करते हैं। आईएएस अधिकारी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वार्ता में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रतिनियुक्ति पर, वे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक और संयुक्त राष्ट्र या उसकी एजेंसियों जैसे अंतरसरकारी संगठनों में काम करते हैं। भारत के चुनाव आयोग की दिशा में भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर आईएएस अधिकारी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य सरकार के कार्मिक विभाग द्वारा उक्त नियमावली के अनुसार सेवा संबंधी मामलों का क्रियान्वयन किया जाता है।पदोन्नति, अनुशासनिक कार्यवाही इत्यादि के सम्बन्ध में भारत सरकार द्वारा ही दिशानिर्देश तैयार की जाती है। इन मामलों पर कार्मिक विभाग द्वारा भारत सरकार को आख्या/रिपोर्ट भेजी जाती है। जिस पर भारत सरकार विचार कर राज्य सरकार (कार्मिक विभाग) को मामलों पर कार्यवाही करने का आदेश देती है। तत्पश्चात् कार्मिक विभाग द्वारा भारत सरकार के आदेशों को जारी कर कार्यवाही की जाती है। .
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भारतीय राष्ट्रीयता क़ानून
वीजा-आवश्यकता की स्थिति भारतीय नागरिकता और राष्ट्रीयता कानून के अनुसार: भारत का संविधान पूरे देश के लिए एकमात्र नागरिकता उपलब्ध कराता है। संविधान के प्रारंभ में नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भारत के संविधान के भाग II में अनुच्छेद 5 से 11 में दिया गया है। प्रासंगिक भारतीय कानून नागरिकता अधिनियम 1955 है, जिसे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1986, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1992, और के द्वारा संशोधित किया गया है, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2003 को 7 जनवरी 2004 को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति प्रदान की गयी और 3 दिसम्बर 2004 को यह अस्तित्व में आया। नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश 2005 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किया गया था और यह 28 जून 2005 को अस्तित्व में आया। इन सुधारों के बाद, भारतीय राष्ट्रीयता कानून जूस सोली (jus soli) (क्षेत्र के भीतर जन्म के अधिकार के द्वारा नागरिकता) के विपरीत काफी हद तक जूस सेंगिनीस (jus sanguinis) (रक्त के अधिकार के द्वारा नागरिकता) का अनुसरण करता है। .
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भारतीय राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्रियों की सूची
भारत गणराज्य में उन्तीस राज्यों और दो केन्द्र-शासित प्रदेशों (दिल्ली और पुद्दुचेरी) की प्रत्येक सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री कहलाता है। भारत के संविधान के अनुसार राज्य स्तर पर राज्यपाल क़ानूनन मुखिया होता है लेकिन वास्तव में कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमंत्री ही होता है। राज्य विधान सभा चुनावों के बाद राज्यपाल सामान्यतः सरकार बनाने के लिए बहुमत वाले दल (अथवा गठबंधन) को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है जिसकी कैबिनेट विधानसभा के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार होती है। यदि विधानसभा में विश्वासमत प्राप्त हो तो मुख्यमंत्री का कार्यकाल सामान्यतः अधिकतम पाँच वर्ष का होता है; इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री के कार्यकाल की संख्याओं की कोई सीमा नहीं होती। वर्तमान में पदस्थ इकत्तीस में से तीन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, जम्मू और कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती और राजस्थान में वसुंधरा राजे महिला हैं। दिसम्बर 1994 से (समय के लिए), सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग सबसे लम्बे समय से पदस्थ मुख्यमंत्री हैं। पंजाब के अमरिन्दर सिंह (जन्म 1942) सबसे वृद्ध मुख्यमंत्री हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू (जन्म 1979) सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। भारतीय जनता पार्टी के चौदह पदस्थ, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पाँच पदस्थ तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दो है; इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य दल के पदस्थ मुख्यमंत्रियों की संख्या एक से अधिक नहीं है। .
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भारतीय सिविल सेवा
भारतीय सिविल सेवा भारत सरकार की नागरिक सेवा तथा स्थायी नौकरशाही है। सिविल सेवा देश की प्रशासनिक मशीनरी की रीढ है। भारत के संसदीय लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों, जो कि मंत्रीगण होते हैं, के साथ वे प्रशासन को चलाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये मंत्री विधायिकाओं के लिए उत्तरदायी होते हैं जिनका निर्वाचन सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर आम जनता द्वारा होता है। मंत्रीगण परोक्ष रूप से लोगों के लिए भी जिम्मेदार हैं। लेकिन आधुनिक प्रशासन की कई समस्याओं के साथ मंत्रीगण द्वारा व्यक्तिगत रूप से उनसे निपटने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस प्रकार मंत्रियों ने नीतियों का निर्धारण किया और नीतियों के निर्वाह के लिए सिविल सेवकों की नियुक्ति की जाती है। कार्यकारी निर्णय भारतीय सिविल सेवकों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। सिविल सेवक, भारतीय संसद के बजाए भारत सरकार के कर्मचारी हैं। सिविल सेवकों के पास कुछ पारंपरिक और सांविधिक दायित्व भी होते हैं जो कि कुछ हद तक सत्ता में पार्टी के राजनैतिक शक्ति के लाभ का इस्तेमाल करने से बचाता है। वरिष्ठ सिविल सेवक संसद के स्पष्टीकरण के लिए जिम्मेवार हो सकते हैं। सिविल सेवा में सरकारी मंत्रियों (जिनकी नियुक्ति राजनैतिक स्तर पर की गई हो), संसद के सदस्यों, विधानसभा विधायी सदस्य, भारतीय सशस्त्र बलों, गैर सिविल सेवा पुलिस अधिकारियों और स्थानीय सरकारी अधिकारियों को शामिल नहीं किया जाता है। .
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भारतीय संविधान सभा
भारतीय संविधान सभा का पहला दिन (११ दिशम्बर १९४६)। बैठे हुए दाएं से: बी जी खेर, सरदार बल्लभ भाई पटेल, के एम मुंशी और डॉ. भीमराव आंबेडकर भारत की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान की रचना के लिए किया गया था। ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्र होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने। .
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भारतीय संविधान का इतिहास
किसी भी देश का संविधान उसकी राजनीतिक व्यवस्था का वह बुनियादी सांचा-ढांचा निर्धारित करता है, जिसके अंतर्गत उसकी जनता शासित होती है। यह राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे प्रमुख अंगों की स्थापना करता है, उसकी शक्तियों की व्याख्या करता है, उनके दायित्यों का सीमांकन करता है और उनके पारस्परिक तथा जनता के साथ संबंधों का विनियमन करता है। इस प्रकार किसी देश के संविधान को उसकी ऐसी 'आधार' विधि (कानून) कहा जा सकता है, जो उसकी राज्यव्यवस्था के मूल सिद्धातों को निर्धारित करती है। वस्तुतः प्रत्येक संविधान उसके संस्थापकों एवं निर्माताओं के आदर्शों, सपनों तथा मूल्यों का दर्पण होता है। वह जनता की विशिष्ट सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति, आस्था एवं आकांक्षाओं पर आधारित होता है। भारत में नये गणराज्य के संविधान का शुभारंभ 26 जनवरी, 1950 को हुआ और भारत अपने लंबे इतिहास में प्रथम बार एक आधुनिक संस्थागत ढांचे के साथ पूर्ण संसदीय लोकतंत्र बना। 26 नवम्बर, 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित ‘भारत का संविधान’ के पूर्व ब्रिटिश संसद द्वारा कई ऐसे अधिनियम/चार्टर पारित किये गये थे, जिन्हें भारतीय संविधान का आधार कहा जा सकता है। .
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भारतीय संविधान के संशोधनों की सूची
भारतीय संविधान के लागू होने (१९५०) के बाद से सन २०१६ तक १०१(GST latest) संशोधन हो चुके हैं। .
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भारतीय संविधान की उद्देशिका
संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक उद्देशिका (Preamble) प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की उद्देशिका अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। उद्देशिका संविधान का सार मानी जाती है;और इसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता हैं। उसके लक्ष्य प्रकट करती है; संविधान का दर्शन भी इसके माध्यम से प्रकट होता है। संविधान किन आदर्शों, आकाक्षाओं को प्रकट करता है, इसका निर्धारण भी उद्देशिका से हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के मतानुसार उद्देशिका का प्रयोग संविधान निर्माताओ के मस्तिष्क में झांकने और उनके उद्देश्य को जानने में प्रयोग की जा सकती है। उद्देशिका यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती थी अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नहीं कर सकता है परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। .
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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन
* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .
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भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्रियों की सूची
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संसद सदस्यों की संख्या के आधार पर भारतीय गणराज्य की राजनैतिक प्रणाली का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। 1980 में स्थापित भाजपा, राजनीतिक विचारधारा के स्तर पर, सामान्यतः एक दक्षिणपंथी दल माना जाता है।, वह प्राथमिक सदस्यता की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा दल है।, 17 राज्यों में 42 भाजपा नेता मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो चुके है, जिनमें से पन्द्रह निवर्तमान हैं। उनतीस राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली और पुडुचेरी) में से प्रत्येक का शासनाध्यक्ष मुख्यमंत्री होता है। भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य स्तर पर, राज्यपाल विधिवत् प्रधान होता है, किंतु वस्तुतः कार्यकारी अधिकार मुख्यमंत्री के पास होते हैं। विधानसभा के चुनावों के बाद, राज्यपाल अधिकांशतः सरकार बनाने के लिए विधानसभा सदस्यों की बहुसंख्यता वाले दल (या गठबंधन) को आमंत्रित करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है जिसका मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति समूह्य-उत्तरदायी होता हैं। अगर उसके पास विधानसभा का विश्वास है तो एक मुख्यमंत्री की अवधि सामान्यतः अधिकतम पांच वर्ष की होती है। 42 भाजपा मुख्यमंत्रियों में से पन्द्रह निवर्तमान है—अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू, असम में सर्बानंद सोनोवाल, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत, गुजरात में विजय रूपाणी, गोवा में मनोहर पर्रीकर, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह, झारखंड में रघुवर दास, मणिपुर में एन बीरेन सिँह, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडणवीस, राजस्थान में वसुंधरा राजे, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर तथा त्रिपुरा में बिप्लब कुमार देब। भाजपा मुख्यमंत्रियों में से चार महिलाएँ रही हैं—दिल्ली में सुषमा स्वराज, गुजरात में आनंदीबेन पटेल, मध्य प्रदेश में उमा भारती और राजस्थान में वसुंधरा राजे। दिसंबर 2003 से कार्यरत (के लिए), रमन सिंह भाजपा के सबसे लम्बे समय तक सेवारत मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री के रूप में कर्नाटक के बी॰ एस॰ येदियुरप्पा का पहला कार्यकाल केवल नौ दिनों तक चला, जो भाजपा मुख्यमंत्रियों के बीच में सबसे कम अवधि का कार्यकाल है; तथापि, सभी कार्यकालों के कुल को ध्यान में लेते हुए, सुषमा स्वराज 52 दिन की सबसे कम अवधि के लिए मुख्यमंत्री रहीं। राजस्थान के भैरों सिंह शेखावत भाजपा के पहले मुख्यमंत्री थे। उन्होंने 4 मार्च 1990 को राजस्थान का मुख्यमंत्री का पद संभाला। बहरहाल कुछ भाजपा नेता जनता पार्टी (जपा) के सदस्य होते हुए पहले से ही मुख्यमंत्री के रूप में निर्वाचित हो चुके थे; जपा राजनीतिक दलों का एक मिश्रण था जिसमें भाजपा का पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ भी शामिल था। उत्तराखण्ड और गुजरात में भाजपा के पांच मुख्यमंत्री रहे है, जबकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भाजपा के चार मुख्यमंत्री रहे हैं; कर्नाटक, झारखंड, और दिल्ली में तीन भाजपा मुख्यमंत्री रहे हैं। .
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भारतीय इतिहास तिथिक्रम
भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.
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भारतीय अधिराज्य
भारत अधिराज्य, मौजूदा भारत(अर्थात् भारत गणराज्य) की संक्रमणकालीन अवस्था थी। यह ३ साल तक; १९४७ से १९५० में संविधान के प्रवर्तन तक, अस्तित्व में रही थी। रह मूल रूप से भारत में ब्रिटिश-उपनिवैषिक शासिन अवस्था से स्वतंत्र, स्वायत्त, लोकतांत्रिक, भारतिय गणराज्य के बीच की अस्थाई शासन अथ्वा राज्य थी। इसे आधिकारिक रूप से हिंदी में भारत अधिराज्य एवं अंग्रेज़ी में डोमीनियन ऑफ़ इंडिया(Dominion of India) कहा जाता था। सन १९४७ में ब्रितानियाई संसद में भारतिय स्वतंत्रता अधीनियम पारित होने के बाद, अधिकारिक तौर पर, यूनाईटेड किंगडम की सरकार ने भारत पर अपनी प्रभुता त्याग दी और भारत में स्वशासन अथवा स्वराज लागू कर दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश भारत(ब्रिटिश-भारतिय उपनिवेष) का अंत हो गया और भारत कैनडा और ऑस्ट्रेलिया की हि तरह एक स्वायत्त्योपनिवेष(डोमीनियन) बन गय, (अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वायत्त्य इकाई)। ब्रिटिश संसद के भारत-संबंधित सारे विधानाधिकारों को (1945 में गठित) भारत की संविधान सभा के अधिकार में सौंप दिया गया, भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का सहपद सदस्य भी बन गया साथ ही ब्रिटेन के राजा ने भारत के सम्राट का शाही ख़िताब त्याग दिया। ब्रिटिश स्वयत्तयोपनिवेष एवं रष्ट्रमंडल प्रदेश का हिस्सा होने के नाते इंगलैंड के राजा ज्यौर्ज (षष्ठम) को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया एवं आन्य राष्ट्रमंडल देशों की तरह ही भारतिय लैहज़े में उन्हें भारत के राजा की उपादी से नवाज़ा गया(यह पद केवल नाम-मात्र एवं शिश्टाचार के लिये था), भारत में उनका प्रतिनिधित्व भारत के महाराज्यपाल(गवरनर-जनरल) के द्वारा होता था। 1950 में संविधान के लागू होने के साथ ही भारत एक पूर्णतः स्वतंत्र गणराज्य बन गया और साथ ही भारत के राजा के पद को हमेशा के लिये स्थगित कर दिया गया, और भारत के संवंधान द्वरा स्थापित लोकतांत्रिक प्रकृया द्वारा चुने गए भारत के महामहिं राष्ट्रपति के पद से बदल दिया गया। इस बीच भारत में दो महाराज्यपालों को नियुक्त किया गया, महामहिं महाराज्यपाल लाॅर्ड माउण्टबैटन और महामहिं महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजागोपालाचारी। .
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भाषा
भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .
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भीमराव आम्बेडकर
भीमराव रामजी आम्बेडकर (१४ अप्रैल, १८९१ – ६ दिसंबर, १९५६) बाबासाहब आम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की। जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता; वह भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और बातचीत में शामिल हो गए, पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। .
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मणिपुर
मणिपुर भारत का एक राज्य है। इसकी राजधानी है इंफाल। मणिपुर के पड़ोसी राज्य हैं: उत्तर में नागालैंड और दक्षिण में मिज़ोरम, पश्चिम में असम; और पूर्व में इसकी सीमा म्यांमार से मिलती है। इसका क्षेत्रफल 22,347 वर्ग कि.मी (8,628 वर्ग मील) है। यहां के मूल निवासी मेइती जनजाति के लोग हैं, जो यहां के घाटी क्षेत्र में रहते हैं। इनकी भाषा मेइतिलोन है, जिसे मणिपुरी भाषा भी कहते हैं। यह भाषा १९९२ में भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ी गई है और इस प्रकार इसे एक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो गया है। यहां के पर्वतीय क्षेत्रों में नागा व कुकी जनजाति के लोग रहते हैं। मणिपुरी को एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य माना जाता है। .
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मणिपुर का इतिहास
प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण मणिपुर का अपना एक प्राचीन एवं समृद्ध इतिहास है। इसका इतिहास पुरातात्विक अनुसंधानों, मिथकों तथा कलिखित इतिहास से प्राप्त होता है। इसका प्राचीन नाम कंलैपाक् है। मणिपुर के नामकरण के संदर्भ में जहाँ पौराणिक कथाओं से उसका संबंध जोड़ा जाता है, वहीं प्राप्त तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि प्राचीन काल में पड़ोसी राज्यों द्वारा मणिपुर को विभिन्न नामों से पुकारा जाता था, जैसे बर्मियों द्वारा कथे, असमियों द्वारा मोगली, मिक्ली आदि। इतिहास से यह भी पता चलता है कि मणिपुर को मैत्रबाक, कंलैपुं या पोंथोक्लम आदि नामों से भी जाना जाता था। ईसवी युग के प्रारंभ होने से पहले से ही मणिपुर का लंबा और शानदार इतिहास है। यहां के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई.
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मणिपुर के मुख्यमंत्रियों की सूची
ओकरम इबोबी सिंह १५ सालों तक मणिपुर के मुख्यमंत्री रहे मणिपुर के मुख्यमंत्री उत्तर-पुर्व भारत के मणिपुर राज्य के सरकार के प्रमुख हैं। भारत के संविधान के मुताबिक, मणिपुर के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमंत्री है। मणिपुर विधान सभा के चुनावों के बाद, राज्यपाल आम तौर पर सरकार बनाने के लिए बहुसंख्य पक्ष (या गठबंधन) को आमंत्रित करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है, जिनके मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से विधानसभा के लिए जिम्मेदार है। यह देखते हुए कि उन्हें विधानसभा का विश्वास है, मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल के लिए है और यह कोई अवधि सीमा नहीं है। १९६३ से बारह लोगों ने मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कीया है इनमें से पांच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के थे, पहले पदाधिकारी मैरेम्बम कोइर्ंग सिंह सहित। मौजूदा पदाधिकारी नोंगथोम्बम बिरेन सिंह भारतीय जनता पार्टी के पहले मुख्यमंत्री है। .
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मणिपुर के राज्यपालों की सूची
मणिपुर के राज्यपाल उत्तर-पुर्व भारत के मणिपुर राज्य के सरकार के संवैधानिक प्रमुख हैं। राज्यपाल को पांच साल की अवधि के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, और राष्ट्रपति के इच्छा के अनुसार कार्यालय का कार्यकाल होता है। भारत के संविधान के मुताबिक, मणिपुर के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी मणिपुर के मुख्यमंत्री है। भारत का संविधान राज्यपाल को अपने स्वयं के विवेक पर कार्य करने का अधिकार देता है; जैसे कि मंत्रालय को नियुक्त करने या खारिज करने की क्षमता, राष्ट्रपति के शासन की सिफारिश करना, या राष्ट्रपति की सहमति के लिए कोई विधेयक आरक्षित करना। .
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मताधिकार
vote ASBS।मताधिकार संम्पादन। https://commons.wikimedia.org/wiki/ राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु, अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार (फ्रैंचाइज) कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है। जनतंत्र की नीवं मताधिकार पर ही रखी जाती है। इस प्रणाली पर आधारित समाज व शासन की स्थापना के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक व्ययस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार प्रदान किया जाय। जिस देश में जितने ही अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त रहता है उस देश को उतना ही अधिक जनतांत्रिक समझा जाता है। इस प्रकार हमारा देश संसार के जनतांत्रिक देशों में सबसे बड़ा है क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकारप्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सबसे बड़ी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 325 व 326 के अनुसार प्रत्येक वयस्क् नागरिक को, जो पागल या अपराधी न हो, मताधिकार प्राप्त है। किसी नागरिक को धर्म, जाति, वर्ण, संप्रदाय अथवा लिंग भेद के कारण मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के "गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट" के अनुसार केवल 13 प्रति शत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तें थीं। केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थितिवाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था1 इसमें विशेषतया वे ही लोग थे जिनके कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था। अन्य पश्चिमी देशों में, जनतांत्रिक प्रणाली अब पूर्ण विकसित हो चुकी है, एकाएक सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार नहीं प्रदान किया गया था। धीरे धीरे, सदियों में, उन्होंने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया है। कहीं कहीं तो अब भी मताधिकार के मामले में रंग एवं जातिभेद बरता जाता है। परंतु भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानते हुए और व्यक्ति की महत्ता को स्वीकारते हुए, अमीर गरीब के अंतर को, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के अंतर को, तथा स्त्री पुरुष के अंतर को मिटाकर प्रत्येक वयस्क नागरिक को देश की सरकार बनाने के लिये अथवा अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिये "मत" (वोट) देने का अमूल्य अधिकार प्रदान किया है। संविधान लागू होने के बाद पिछले वर्षों में भारतीय जनता ने अपने मताधिकार के पवित्र कर्त्तव्य का समुचित रूप से पालन करके प्रमाणित कर दिया है कि उसे जनतंत्र में पूर्ण आस्था है। इस दृष्टि से भी भारतीय जनतंत्र का विशेष महत्व है। .
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महानतम भारतीय (सर्वेक्षण)
सबसे महान भारतीय या महानतम भारतीय (अंग्रेजी:The Greatest Indian) एक सर्वेक्षण जो रिलायंस मोबाइल द्वारा प्रायोजित है और सीएनएन आईबीएन और हिस्ट्री चैनल के साथ साझेदारी में, आउटलुक पत्रिका द्वारा आयोजित किया गया था। आधुनिक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपुर्ण योगदान और भारतीयों के जीवन में अद्वितीय असाधारन बदलाव लाने वाला महानतम शख्सियत खोजने के लिए भारत में दि ग्रेटेस्ट इंडियन या सबसे महानतम भारतीय इस कार्यक्रम का जनमत सर्वेक्षण जून 2012 से अगस्त 2012 दौरान आयोजित किया गया था, इसके विजेता, डॉ॰ भीमराव आंबेडकर हैं, 11 अगस्त को इसकी घोषणा हुई थी। इस सर्वेक्षण में करीब 2 करोड़ वोटिंग डॉ॰ आंबेडकर को हुई थी। इस सर्वेक्षण में पहले भारत के विभिन्न छेत्रों (जैसे, कला, राजनिती, अर्थशास्त्र, समाज सेवा, खेल, उद्योग, संगीत आदी) के 100 महान हस्तियों में से ज्यूरी के जरीये उनमें से 50 महान भारतीयों को चूना गया। बाद में 50 नामों में से वोटिंग के जरीये जवाहरलाल नेहरू से ए.पी.जे.
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महाभियोग
जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग (Impeachment) कहा जाता है। इंग्लैड में राजकीय परिषद क्यूरिया रेजिस के न्यासत्व अधिकार द्वारा ही इस प्रक्रिया का जन्म हुआ। समयोपरांत जब क्यूरिया या पार्लिमेंट का हाउस ऑफ लार्ड्स तथा हाउस ऑ कामंस, इन दो भागों में विभाजन हुआ तो यह अभियोगाधिकार हाउस ऑव लार्ड्स को प्राप्त हुआ। किंतु जब से (1700 ई) न्यायाधीशों एवं मंत्रियों के ऊपर अभियोग चलाने का रूप अन्य प्रकार से निर्धारित हो गया है, महाभियोग का प्रयोग समाप्तप्राय है। इंग्लैंड में कुछ महाभियोग इतने महत्वपूर्ण हुए हैं कि वे स्वयं इतिहास बन गए। उदाहरणार्थ 16वीं शताब्दी में वारेन हेस्टिंग्ज तथा लार्ड मेलविले (हेनरी उंडस) का महाभियोग सतत स्मरणीय है। संयुक्त राष्ट्र अमरीका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमरीका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है। न्यूयार्क राज्य में 1613 ई में वहाँ के गवर्नर विलियम सुल्जर पर महाभियोग चलाकर उन्हें पदच्युत किया गया था और आश्चर्य की बात यह है कि अभियोग के कारण श्री सुल्जर के गवर्नर पद ग्रहण करने के पूर्व काल से संबंधित थे। इंग्लैंड एवं अमरीका में महाभियोग क्रिया में एक अन्य मान्य अंतर है। इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है। भारतीय संविधान महाभियोग क्या है? भारतीय संविधान में इस प्रक्रिया को संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है । महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है.
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महाराष्ट्र में धर्म
महाराष्ट्र में धर्म धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं की विविधता से चिन्हित होता हैं। महाराष्ट्र में दुनिया के छः प्रमुख धर्म हैं; अर्थात् हिंदू धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म और सिख धर्म। महाराष्ट्र के पूरे इतिहास में, धर्म राज्य की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा हैं। भारत का संविधान राज्य को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित करता है जिसे नागरिकों के स्वतंत्र रूप से पूजा करने और किसी भी धर्म या विश्वास को प्रचारित करने के अधिकार को कायम रखना चाहिए। भारत का संविधान धर्म की आज़ादी के अधिकार को मौलिक अधिकार भी घोषित करता है। .
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महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग
महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग भारतीय संविधान की रचना है जिसके द्वारा महाराष्ट्र में लोकसेवाओं के लिए प्रतिनिधियों को उनकी योग्यता व आरक्षण के आधार पर चुना जाता है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इसका गठन भारतीय संविधान के लेख ३१५ के अंतर्गत किया गया था ताकि महाराष्ट्र सरकार का कार्य सही तरीके से सही प्रतिनिधियों की नियुक्ति द्वारा हो सके। श्रेणी:भारतीय राज्यों के लोकसेवा आयोग.
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मातृभाषा विकास परिषद
मातृभाषा विकास परिषद हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने एवं उनके विकास को समर्पित संस्था है। .
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मिज़ो समझौता
मिज़ो समझौता (Mizo Accord) भारत सरकार और मिज़ो नैश्नल फ़्रन्ट (ऍम॰ऍन॰ऍफ़॰) के बीच ३० जून १९८६ को हुआ एक समझौता था। ऍम॰ऍन॰ऍफ़॰ ने १९५० के दशक में भारत-सरकार के मिज़ोरम के प्रति ग़ैर-संवेदनशील प्रशासन से उत्तेजित होकर एक अलगाववादी अभियान आरम्भ किया था। हालांकि यह अभियान असफल था लेकिन इसके कारण मिज़ो समाज विस्तृत हिन्सा से पीड़ित था। इस समझौते के अंतरगत ऍम॰ऍन॰ऍफ़॰ ने भारतीय संविधान के तहत कार्य करने की घोषणा करी और हिन्सा त्याग दी। भारत सरकार ने बदले में ऍम॰ऍन॰ऍफ़॰ से सम्बन्धित उग्रवादियों को मुख्यधारा में प्रवेश करवाने की सहायता की घोषणा करी। मिज़ोरम को संघक्षेत्र से बढ़ाकर पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। समझौता मिज़ोरम में शान्ति लाने में सफल रहा और वहाँ उग्रवाद लगभग ख़त्म हो गया। ऍम॰ऍन॰ऍफ़॰ एक राजनैतिक दल के रूप में जारी रही और उसके नेता, पू लालडेन्गा, मिज़ोरम के मुख्यमंत्री रहे। मिज़ोरम में तेज़ी से विकास हुआ है और अब उसका साक्षरता दर लगभग केरल के बराबर और सभी अन्य भारतीय राज्यों से ऊँचा है। .
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मिज़ोरम के मुख्यमंत्रियों की सूची
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री उत्तर-पुर्व भारत के मिज़ोरम राज्य के सरकार के प्रमुख हैं। भारत के संविधान के मुताबिक, मिज़ोरम के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमंत्री है। मिज़ोरम विधान सभा के चुनावों के बाद, राज्यपाल आम तौर पर सरकार बनाने के लिए बहुसंख्य पक्ष (या गठबंधन) को आमंत्रित करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है, जिनके मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से विधानसभा के लिए जिम्मेदार है। यह देखते हुए कि उन्हें विधानसभा का विश्वास है, मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल के लिए है और यह कोई अवधि सीमा नहीं है। .
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मैथिली भाषा
मैथिली भारत के उत्तरी बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। यह हिन्द आर्य परिवार की सदस्य है। इसका प्रमुख स्रोत संस्कृत भाषा है जिसके शब्द "तत्सम" वा "तद्भव" रूप में मैथिली में प्रयुक्त होते हैं। यह भाषा बोलने और सुनने में बहुत ही मोहक लगता है। मैथिली भारत में मुख्य रूप से दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, शिवहर, भागलपुर, मधेपुरा, अररिया, सुपौल, वैशाली, सहरसा, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर जिलों में बोली जाती है| नेपाल के आठ जिलों धनुषा,सिरहा,सुनसरी, सरलाही, सप्तरी, मोहतरी,मोरंग और रौतहट में भी यह बोली जाती है। बँगला, असमिया और ओड़िया के साथ साथ इसकी उत्पत्ति मागधी प्राकृत से हुई है। कुछ अंशों में ये बंगला और कुछ अंशों में हिंदी से मिलती जुलती है। वर्ष २००३ में मैथिली भाषा को भारतीय संविधान की ८वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया। सन २००७ में नेपाल के अन्तरिम संविधान में इसे एक क्षेत्रीय भाषा के रूप में स्थान दिया गया है। .
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मेघालय
मेघालय पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य है। इसका अर्थ है बादलों का घर। २०१६ के अनुसार यहां की जनसंख्या ३२,११,४७४ है। मेघालय का विस्तार २२,४३० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में है, जिसका लम्बाई से चौडाई अनुपात लगभग ३:१ का है। IBEF, India (2013) राज्य का दक्षिणी छोर मयमनसिंह एवं सिलहट बांग्लादेशी विभागों से लगता है, पश्चिमी ओर रंगपुर बांग्लादेशी भाग तथा उत्तर एवं पूर्वी ओर भारतीय राज्य असम से घिरा हुआ है। राज्य की राजधानी शिलांग है। भारत में ब्रिटिश राज के समय तत्कालीन ब्रिटिश शाही अधिकारियों द्वारा इसे "पूर्व का स्काटलैण्ड" की संज्ञा दी थी।Arnold P.
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मेघालय के मुख्यमंत्रियों की सूची
मेघालय के मुख्यमंत्री उत्तर-पुर्व भारत के मेघालय राज्य के सरकार के प्रमुख हैं। भारत के संविधान के मुताबिक, मेघालय के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमंत्री है। मेघालय विधान सभा के चुनावों के बाद, राज्यपाल आम तौर पर सरकार बनाने के लिए बहुसंख्य पक्ष (या गठबंधन) को आमंत्रित करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है, जिनके मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से विधानसभा के लिए जिम्मेदार है। यह देखते हुए कि उन्हें विधानसभा का विश्वास है, मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल के लिए है और यह कोई अवधि सीमा नहीं है। १९७० से, बारह लोगों ने मेघालय के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है। इनमें से छह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के थे, जिनमें पहले पदाधिकारी विलियमसन ए संगमा और सबसे लम्बे समय तक पदधारी मुकुल संगमा शामिल है, जो कार्यालय में २० अप्रैल २०१० से ६ मार्च २०१८ तक रहे। वर्तमान पदधारी कॉनराड संगमा हैं जो ६ मार्च २०१८ से इस पद पर हैं। .
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मेघवाल
जम्मू, भारत में एक समारोह के दौरान मेघ बालिकाओं का एक समूह मेघ, मेघवाल, या मेघवार, (उर्दू:میگھواڑ, सिंधी:ميگھواڙ) लोग मुख्य रूप से उत्तर पश्चिम भारत में रहते हैं और कुछ आबादी पाकिस्तान में है। सन् 2008 में, उनकी कुल जनसंख्या अनुमानतः 2,807,000 थी, जिनमें से 2760000 भारत में रहते थे। इनमें से वे 659000 मारवाड़ी, 663000 हिंदी, 230000 डोगरी, 175000 पंजाबी और विभिन्न अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते हैं। एक अनुसूचित जाति के रूप में इनका पारंपरिक व्यवसाय बुनाई रहा है। अधिकांश हिंदू धर्म से हैं, ऋषि मेघ, कबीर, रामदेवजी और बंकर माताजी उनके प्रमुख आराध्य हैं। मेघवंश को राजऋषि वृत्र या मेघ ऋषि से उत्पन्न जाना जाता है।सिंधु सभ्यता के अवशेष (मेघ ऋषि की मुर्ति मिली) भी मेघो से मिलते है। हडप्पा,मोहन-जोद़ङो,कालीबंगा (हनुमानगढ),राखीगङी,रोपङ,शक्खर(सिंध),नौसारो(बलुचिस्तान),मेघढ़(मेहरगढ़ बलुचिस्तान)आदि मेघवंशजो के प्राचीन नगर हुआ करते थे। 3300ई.पू.से 1700ई.पू.तक सिंध घाटी मे मेघो की ही आधिक्य था। 1700-1500ई.पू.मे आर्यो के आगमन से मेघ, अखंड भारत के अलग अलग भागो मे बिछुङ (चले) गये । ये लोग बहुत शांत स्वभाव व प्रवृति के थे। इनका मुख्य साधन ऊंठ-गाङा व बैल-गाङा हुआ करता। आज मेघवालो को बहुत सारी उपजातीयो बांट रखा है जिसमे सिहमार, भगत, बारुपाल, मिड़ल (मिरल),केम्मपाल, अहम्पा, पंवार,पङिहार,लिलङ,जयपाल,पंवार,चावणीया, तुर्किया,गाडी,देवपाल,जालानी गोयल-मंगी,पन्नु, गोगली,गंढेर,दहीया,पुनङ,मुंशी,कोली आदि प्रमुख है। मेघवंशो के कूलगुरु गर्गाचार्य गुरङा होते है। .
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योल्मो लोग
योल्मो लोगों को कर रहे हैं एक स्वदेशी लोगों के पूर्वी हिमालय क्षेत्रहै। वे खुद को देखें के रूप में "Yolmowa" या "Hyolmopa", और natively में रहते हैं हेलम्बू और Melamchi घाटियों (पर स्थित 43.4 किलोमीटर/27 मील की दूरी पर और 44.1 किलोमीटर/27.4 मील के उत्तर के लिए काठमांडू क्रमशः) और आसपास के क्षेत्रों के पूर्वोत्तर नेपाल.
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रणबीर दण्ड संहिता
जम्मू एवं कश्मीर राज्य रणबीर दंड संहिता(साधारण शब्दों में रणबीर दंड संहिता या रणबीर आचार संहिता) भारत के जम्मू एवं कश्मीर राज्य में लागू अपराध एवं दंड संहिता है। भारतीय संविधान की धारा ३७० की बिंदुओं के तहत भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) जम्मू-कश्मीर राज्य पर आधिपत्य नहीं की जा सकती। आन्य भारत के उलट जम्मू-कश्मीर पर भारतीय दंड संहिता नहीं रणबीर दंड संहिता आव्रत है। यह जम्मू-कश्मीर में ब्रिटीश काल के समय से लागू है, अर्थात् तब, जब जम्मू कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत था। इसका कार्यान्वयन १९३२ में हुआ था और यह अभी भी लागू है। इस प्रक्रिया को तब अवगत कराया गया था जब यहाँ डोगरा राजवंश का शासन था और महाराज रणबीर सिंह शासक थे। रणबीर आचार संहिता आईपीसी के पदों के आधार पर ही बनाया गया है जिसे थॉमस बैबिंटन मैकाॅले ने रचित किया था। .
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राष्ट्रपति शासन
राष्ट्रपति शासन (या केन्द्रीय शासन) भारत में शासन के संदर्भ में उस समय प्रयोग किया जाने वाला एक पारिभाषिक शब्द है, जब किसी राज्य सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्य प्रत्यक्ष संघीय शासन के अधीन आ जाता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद-356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है। राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो। सत्तारूढ़ पार्टी या केंद्रीय (संघीय) सरकार की सलाह पर, राज्यपाल अपने विवेक पर सदन को भंग कर सकते हैं, यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो। राज्यपाल सदन को छह महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था' में रख सकते हैं। छह महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किये जाते हैं। इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण बजाय एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के, सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है, लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किये जाते हैं। प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल आम तौर पर सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं। आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है। .
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राष्ट्रभाषा
राष्ट्रभाषा एक देश की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जिसे सम्पूर्ण राष्ट्र में भाषा कार्यों में (जैसे लिखना, पढ़ना और वार्तालाप) के लिए प्रमुखता से प्रयोग में लाया जाता है। वह भाषा जिसमें राष्ट्र के काम किए जायें। राष्ट्र के काम-धाम या सरकारी कामकाज के लिये स्वीकृत भाषा। .
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राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमि
राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमि या राष्ट्रमण्डल प्रदेश, जिन्हें अंग्रेज़ी में कॉमनवेल्थ रॆयल्म कहा जाता है, राष्ट्रों के राष्ट्रमण्डल के उन १६ सार्वभौमिक राष्ट्रों को कहा जाता है, जिनपर एक ही शासक, महारानी एलिज़ाबेथ द्वि॰ का राज है। ये सारे देश एक ही राजसत्ता, शासक, राजपरिवार और उत्तराधिकार क्रम को साँझा करते हैं। इस व्यवस्था की शुरुआत १९३१ की वेस्टमिंस्टर की संविधि के साथ हुई थी, जिसके द्वारा ब्रिटेन के तत्कालीन डोमीनियन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैण्ड, आयरिश मुक्त राज्य और न्यूफाउण्डलैण्ड को ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के बराबर के सदस्य होने के साथ ही पूर्ण या पूर्णात्मत वैधिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से, विश्व भर में विस्तृत, ब्रिटिश साम्राज्य के तमाम देशों को एक डोमिनियन के रूप में स्वाधीनता प्रदान कर दी गयी। जिनमे से कुछ राज्यों ने पूर्णतः स्वाधीन होने के बावजूद राजतंत्र के प्रति अपनी वफ़ादारी को बरक़रार रखा, जबकि कुछ राज्यों ने ब्रिटिश राजतंत्र को नाममात्र प्रमुख मानने से इनकार कर स्वयं को गणतांत्रिक राज्य घोषित कर दिया। आज, विश्व बाहर में कुल १६ ऐसे राज्य हैं जो स्वयं को महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के एक प्रजाभूमि के रूप में पहचान करव्वते हैं। .
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति
भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निदेशक तत्वों में कहा गया है कि प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाय। 1948 में डॉ॰ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के साथ ही भारत में शिक्षा-प्रणाली को व्यवस्थित करने का काम शुरू हो गया था। 1952 में लक्ष्मीस्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में गठित माध्यमिक शिक्षा आयोग, तथा 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग की अनुशंशाओं के आधार पर 1968 में शिक्षा नीति पर एक प्रस्ताव प्रकाशित किया गया जिसमें ‘राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान तथा कार्यकुशल’ युवक-युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जो अब तक चल रही है। इस बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति, तथा 1993 में प्रो.
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राजभाषा
राजभाषा, किसी राज्य या देश की घोषित भाषा होती है जो कि सभी राजकीय प्रायोजनों में प्रयोग होती है। उदाहरणतः भारत की राजभाषा हिन्दी है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। .
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राजभाषा आयोग, १९५५
भारत के राष्ट्रपति ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 344 (1) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 7 जून 1955 को श्री बी.जी.
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राज्य सभा
राज्य सभा भारतीय लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। लोकसभा निचली प्रतिनिधि सभा है। राज्यसभा में 250 सदस्य होते हैं। जिनमे 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं। इन्हें 'नामित सदस्य' कहा जाता है। अन्य सदस्यों का चुनाव होता है। राज्यसभा में सदस्य 6 साल के लिए चुने जाते हैं, जिनमे एक-तिहाई सदस्य हर 2 साल में सेवा-निवृत होते हैं। किसी भी संघीय शासन में संघीय विधायिका का ऊपरी भाग संवैधानिक बाध्यता के चलते राज्य हितों की संघीय स्तर पर रक्षा करने वाला बनाया जाता है। इसी सिद्धांत के चलते राज्य सभा का गठन हुआ है। इसी कारण राज्य सभा को सदनों की समानता के रूप में देखा जाता है जिसका गठन ही संसद के द्वितीय सदन के रूप में हुआ है। राज्यसभा का गठन एक पुनरीक्षण सदन के रूप में हुआ है जो लोकसभा द्वारा पास किये गये प्रस्तावों की पुनरीक्षा करे। यह मंत्रिपरिषद में विशेषज्ञों की कमी भी पूरी कर सकती है क्योंकि कम से कम 12 विशेषज्ञ तो इस में मनोनीत होते ही हैं। आपातकाल लगाने वाले सभी प्रस्ताव जो राष्ट्रपति के सामने जाते हैं, राज्य सभा द्वारा भी पास होने चाहिये। भारत के उपराष्ट्रपति (वर्तमान में वैकेया नायडू) राज्यसभा के सभापति होते हैं। राज्यसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को हुआ था। .
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राज्यपाल (भारत)
भारत का संविधान संघात्मक है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान है। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों के लिए लागू होता है। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के कारण उसके लिए अलग संविधान है। संघ की तरह राज्य की भी शासन पद्धति संसदीय है। राज्यपाल की नियुक्ति राज्यों में होती है तथा केंद्र प्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल की नियुक्ति होती है भारत में 7 केंद्र शासित राज्य हैं जिनमें से 3 केंद्र शासित राज्यों में उप राज्यपाल का पद है वह 3 केंद्र शासित राज्य निम्न है अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह,दिल्ली और पुडुचेरी बाकी चार केंद्र शासित राज्यों में प्रशासक होते हैं वहां पर उप राज्यपाल का पद नहीं होता है वह 4 केंद्र शासित राज्य है। चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, लक्ष्यदीप। राज्य की कार्यपालिका का प्रमुख राज्यपाल (गवर्नर) होता है, जो मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करता है। कुछ मामलों में राज्यपाल को विवेकाधिकार दिया गया है, ऐसे मामले में वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना भी कार्य करता है। राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की होती है। केन्द्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं। 7 वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है। .
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राजेन्द्र प्रसाद
राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति २६ जनवरी १९५० को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। .
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लॉङ्गतलाई ज़िला
लॉङ्गतलाई ज़िला भारतीय राज्य मिज़ोरम के आठ ज़िलों में से एक है। ज़िला उत्तर में लुंगलेई ज़िले, पश्चिम में बांग्लादेश, दक्षिण में म्यांमार तथा पूर्व में सइहा ज़िले से घिरा है। ज़िले का क्षेत्रफल २५५७.१० वर्ग किमी है तथा लॉङ्गतलाई कस्बा ज़िले का मुख्यालय है। .
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लोक सभा
लोक सभा, भारतीय संसद का निचला सदन है। भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा है। लोक सभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है। भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों का और 20 सदस्य तक केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति यदि चाहे तो आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत कर सकता है। लोकसभा की कार्यावधि 5 वर्ष है परंतु इसे समय से पूर्व भंग किया जा सकता है .
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लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों की सूची
भारत के संविधान के अनुसार लोक सभा का गठन वयस्क मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है। सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या ५५२ है जैसा कि संविधान में उल्लेख किया गया है जिसमें ५३० सदस्य राज्यों का, २० सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं और महामहिम राष्ट्रपति महोदय, यदि ऐसा मानते हैं कि आंग्ल भारतीय समुदाय को सभा में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो उस समुदाय से अधिकतम दो सदस्यों को नामित कर सकते हैं। कुल निर्वाचित सदस्यता राज्यों में इस प्रकार वितरित की गई है कि प्रत्येक राज्य को आबंटित सीटों की संख्या और उस राज्य की जनसंख्या के मध्य अनुपात, जहाँ तक व्यवहार्य हो, सभी राज्यों के लिए समान रहे। .
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लीला सेठ
लीला सेठ (20 अक्टूबर 1930 – 5 मई 2017) भारत में उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला थीं। दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनने का श्रेय भी उन्ही को ही जाता है। वे देश की पहली ऐसी महिला भी थीं, जिन्होंने लंदन बार परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया। .
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शक्तियों का पृथक्करण
शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त (principle of separation of powers) राज्य के सुशासन का एक प्रादर्श (माडल) है। शक्तियों के पृथक्करण के लिये राज्य को भिन्न उत्तरदायित्व वाली कई शाखाओं में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक 'शाखा' को अलग-अलग और स्वतंत्र शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं। प्रायः यह विभाजन - कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका के रूप में किया जाता है। शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत फ्रेंच दार्शनिक मान्टेस्कयू ने दिया था। उसके अनुसार राज्य की शक्ति उसके तीन भागों कार्यपालिका, विधानपालिका, तथा न्यायपालिका मे बांट देनी चाहिये। यह सिद्धांत राज्य को सर्वाधिकारवादी होने से बचा सकता है तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। अमेरिका का संविधान पहला ऐसा संविधान था जिसमें यह सिद्धान्त अपनाया गया था। .
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श्याम रुद्र पाठक
'''श्याम रूद्र पाठक''' श्याम रुद्र पाठक भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं। वे 'न्याय एवं विकास अभियान' नामक अभियान के संयोजक है। .
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समता का अधिकार
समता का अधिकार वैश्विक मानवाधिकार के लक्ष्यों के प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अनुसार विश्व के सभी लोग विधि के समक्ष समान हैं अतः वे बिना किसी भेदभाव के विधि के समक्ष न्यायिक सुरक्षा पाने के हक़दार हैं। .
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समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' का मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं। समान नागरिकता कानून के अंतर्गत.
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समानता की प्रतिमा
समानता की प्रतिमा या डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर स्मारक, मुम्बई' 106.68 मीटर (350 फीट) ऊँचा महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तावित भारत के प्रथम कानून मंत्री तथा भारतीय संविधान के पिता डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी का स्मारक है। भारत के प्रधानमंत्री श्री॰ नरेन्द्र मोदी ने अक्टूबर 2015 को डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी की इस विशालकाय मूर्ति एवं विश्व-स्मारक के निर्माण का मुंबई में शिलान्यास किया। इंदू मिल की 12 एकड भूमि पर यह भव्य स्मारक बनेगा। समानता का यह स्मारक डॉ॰ आंबेडकर के समाधि स्थल चैत्य भूमि के करीब है। डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने करोड़ो देशवासियों के समानता के पूरे जीवन भर संघर्ष किया, इसलिए भीमराव को समानता का प्रतीक (सिम्बॉल ऑफ इक्वेलिटी) कहा जाता है। .
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सर्व शिक्षा अभियान
मध्य प्रदेश के गांव में एक प्राथमिक स्कूल. सर्व शिक्षा अभियान भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसकी शुरूआत अटल बिहारी बाजपेयी द्वारा एक निश्चित समयावधि के तरीके से प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण को प्राप्त करने के लिए किया गया, जैसा कि भारतीय संविधान के 86वें संशोधन द्वारा निर्देशित किया गया है जिसके तहत 6-14 साल के बच्चों (2001 में 205 मिलियन अनुमानित) की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान को मौलिक अधिकार बनाया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य 2010 तक संतोषजनक गुणवत्ता वाली प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण को प्राप्त करना है। एसएसए (SSA) में 8 मुख्य कार्यक्रम हैं। इसमें आईसीडीएस (ICDS) और आंगनवाड़ी आदि शामिल हैं। इसमें केजीबीवीवाई (KGBVY) भी शामिल है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरूआत 2004 में हुई जिसमें सारी लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा देने का सपना देखा गया, बाद में यह योजना एसएसए के साथ विलय हो गई। .
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सामाजिक वर्ग
सामाजिक वर्ग समाज में आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का समूह है। समाजशास्त्रियों के लिये विश्लेषण, राजनीतिक वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, मानवविज्ञानियों और सामाजिक इतिहासकारों आदि के लिये वर्ग एक आवश्यक वस्तु है। सामाजिक विज्ञान में, सामाजिक वर्ग की अक्सर 'सामाजिक स्तरीकरण' के संदर्भ में चर्चा की जाती है। आधुनिक पश्चिमी संदर्भ में, स्तरीकरण आमतौर पर तीन परतों: उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग से बना है। प्रत्येक वर्ग और आगे छोटे वर्गों (जैसे वृत्तिक) में उपविभाजित हो सकता है। शक्तिशाली और शक्तिहीन के बीच ही सबसे बुनियादी वर्ग भेद है। महान शक्तियों वाले सामाजिक वर्गों को अक्सर अपने समाजों के अंदर ही कुलीन वर्ग के रूप में देखा जाता है। विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक सिद्धांतों का कहना है कि भारी शक्तियों वाला सामाजिक वर्ग कुल मिलाकर समाज को नुकसान पहुंचाने के लिये अपने स्वयं के स्थान को अनुक्रम में निम्न वर्गों के ऊपर मज़बूत बनाने का प्रयास करता है। इसके विपरीत, परंपरावादियों और संरचनात्मक व्यावहारिकतावादियों ने वर्ग भेद को किसी भी समाज की संरचना के लिए स्वाभाविक तथा उस हद तक अनुन्मूलनीय रूप में प्रस्तुत किया है। मार्क्सवाधी सिद्धांत में, दो मूलभूत वर्ग विभाजन कार्य और संपत्ति की बुनियादी आर्थिक संरचना की देन हैं: बुर्जुआ और सर्वहारा.
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साहित्य अकादमी पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार भारत में एक साहित्यिक सम्मान है, जो साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष भारत की अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त प्रमुख भाषाओं में से प्रत्येक में प्रकाशित सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कृति को पुरस्कार प्रदान करती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल २२ भारतीय भाषाओं के अलावा ये राजस्थानी और अंग्रेज़ी भाषा; याने कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं। पहली बार ये पुरस्कार सन् 1955 में दिए गए। पुरस्कार की स्थापना के समय पुरस्कार राशि 5,000/- रुपए थी, जो सन् 1983 में ब़ढा कर 10,000/- रुपए कर दी गई और सन् 1988 में ब़ढा कर इसे 25,000/- रुपए कर दिया गया। सन् 2001 से यह राशि 40,000/- रुपए की गई थी। सन् 2003 से यह राशि 50,000/- रुपए कर दी गई है। .
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सांसद, लोक सभा
एक लोक सभा का सांसद (Member of Parliament, Lok Sabha), लोक सभा में भारतीय लोगों का एक प्रतिनिधि होता हैं, जो भारत के संसद का निचला सदन हैं। .
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सिन्धी भाषा की लिपियाँ
सिन्धी वर्णमाला तथा उसके तुल्य देवनागरी, उर्दू, तथा रोमन वर्ण एक शताब्दी से कुछ पहले तक सिन्धी लेखन के लिए चार लिपियाँ प्रचलित थीं। हिन्दू पुरुष देवनागरी का, हिंदु स्त्रियाँ प्राय: गुरुमुखी का, व्यापारी लोग (हिंदू और मुसलमान दोनों) "हटवाणिको" का (जिसे 'सिंधी लिपि' भी कहते हैं) और मुसलमान तथा सरकारी कर्मचारी अरबी-फारसी लिपि का प्रयोग करते थे। सन 1853 ई.
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संचित निधि (कोष)
सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, बाजार से लिए गए ऋण और स्वीकृत ऋणों पर प्राप्त ब्याज संचित निधि (Consolidated Fund) में जमा होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत स्थापित है यह ऐसी निधि है जिस में समस्त एकत्र कर/राजस्व जमा, लिये गये ऋण जमा किये जाते है यह भारत की सर्वाधिक बडी निधि है जो कि संसद के अधीन रखी गयी है कोई भी धन इसमे बिना संसद की पूर्व स्वीकृति के निकाला/जमा या भारित नहीं किया जा सकता है अनु 266 प्रत्येक राज्य की समेकित निधि का वर्णन भी करता है .
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संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध
संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध (अंग्रेजी: United Provinces of Agra and Oudh; उच्चारण: यूनाईटेड प्राॅविन्सेज़ ऑफ ऐग्रा ऐण्ड औध) ब्रिटिश भारत में स्वाधीनता से पूर्व एकीकृत प्रान्त का नाम था जो 22 मार्च 1902 को आगरा व अवध नाम की दो प्रेसीडेंसी को मिलाकर बनाया गया था। उस समय सामान्यतः इसे संयुक्त प्रान्त (अंग्रेजी में यू॰पी॰) के नाम से भी जानते थे। यह संयुक्त प्रान्त लगभग एक शताब्दी 1856 से 1947 तक अस्तित्व में बना रहा। इसका कुल क्षेत्रफल वर्तमान भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के संयुक्त क्षेत्रफल के बराबर था। जिसे आजकल उत्तर प्रदेश या अंग्रेजी में यू॰पी॰ कहते हैं उसमें ब्रिटिश काल के दौरान रामपुर व टिहरी गढ़वाल जैसी स्वतन्त्र रियासतें भी शामिल थीं। 25 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान की घोषणा से एक दिन पूर्व सरदार बल्लभ भाई पटेल ने इन सभी रियासतों को मिलाकर इसे उत्तर प्रदेश नाम दिया था। 3 जनवरी 1921 को जो राज्य पूर्णत: ब्रिटिश भारत का अंग बन गया था उसे स्वतन्त्र भारत में 20वीं सदी के जाते-जाते सन् 2000 में पुन: विभाजित कर उत्तरांचल (और बाद में उत्तराखण्ड) राज्य को स्थापित किया गया। .
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संसदीय राजभाषा समिति
महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय राजभाषा विषय पर विचार-विमर्श किया था और यह निर्णय लिया कि देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूंप में अंगीकृत किया जाए। इसी आधार पर संविधान के अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया। किन्तु, संविधान के निर्माण तथा अंगीकरण के समय यह परिकल्पना की गई थी कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए प्रारम्भिक 15 वर्षों तक अर्थात 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं। परिवर्तन के लिए 15 वर्ष की कालावधि पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की गई थी ताकि उक्त अन्तराल के बाद निर्बाध भाषाई-परिवर्तन हेतु आवश्यक व्यवस्था तथा तैयारी की जा सके। संविधान के निर्माता इस बात के प्रति जागरूंक थे कि सभी क्षेत्रों में 1965 तक भाषाई परिवर्तन करना सम्भव न होगा। उन्हें यह भी आभास रहा होगा कि सुचारूं परिवर्तन के हित में 15 वर्ष की कालावधि के दौरान भी अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के क्रमिक प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में भी संघ की राजभाषा के रूंप में हिंदी के विकास का संकेत दिया गया है। संविधान निर्माताओं ने इस भाषा के एक अखिल भारतीय रूंप की कल्पना की थी जो अन्य भारतीय भाषाओं की सहायता लेकर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा व्यापक रूंप से स्वीकार किए जाने की क्षमता प्राप्त कर सके। 1963 में राजभाषा अधिनियम अधिनियमित किया गया। अधिनियम में यह व्यवस्था भी थी कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी अहिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए। सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। उक्त अधिनियम में, अन्य बातों के साथ-साथ, यह भी प्रावधान था कि संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति का पुनर्विलोकन करने के लिए एक राजभाषा समिति गठित की जाए। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (3) के प्रख्यापन के दस वर्ष बाद इस समिति का गठन किया जाना था। समिति का गठन अधिनियम की धारा 4 के तहत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में संसद के 30 सदस्य होने का प्रावधान है, 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से। बाद में 1977, 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों के पश्चात् समिति का पुनर्गठन हुआ है। समिति के कार्यकलाप और गतिविधियां मुख्यतः राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 में दी गई हैं। सुलभ संदर्भ के लिए राजभाषा अधिनियम की धारा 4 को नीचे उद्धृत किया गया है.
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संस्कृत भाषा
संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .
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संस्कृत का पुनरुत्थान
संस्कृत भाषा के अध्ययन, अध्यापन, और उपयोग को बढ़ाने के कई प्रयास किये जाते रहे हैं और आज भी किये जा रहे हैं। इन्हें सम्मिलित रूप से संस्कृत पुनरुद्धार या 'संस्कृत का पुनरुत्थान' कहते हैं। .
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संघ लोक सेवा आयोग
संघ लोक सेवा आयोग (अंग्रेज़ी: Union Public Service Commission (UPSC) -यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन), भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार के लोकसेवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का संचालन करती है। संविधान के अनुच्छेद 315-323 में एक संघीय लोक सेवा आयोग और राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान है। श्रीमती अल्का सिरोही इसकी निवर्तमान अध्यक्ष हैं। .
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संघवाद
'''नीला''': एकात्मक राज्य '''हरा''': संघीय राज्य संघवाद (फेडलिज़्म) संवैधानिक राजसंचालन की उस प्रवृत्ति का प्रारूप है जिसके अंतर्गत विभिन्न राज्य एक संविदा द्वारा एक संघ की स्थापना करते हैं। इस संविदा के अनुसार एक संघीय सरकार एवं अनेक राज्य सरकारें संघ की विभिन्न इकाइयाँ हो जाती हैं। सामान्य रूप से प्रभुसत्ता का विभाजन संघीय एवं राज्यसरकारों के मध्य उनके संविधान में उल्लिखित होता है जो उस संविदा को अंतिम रूप से पुष्ट करता है। साधारणतया संघीय सरकार को ऐसे कार्यों के संचालन का भार दिया जाता है जिन्हें क्षेत्रविस्तार खर्चीला अथवा दुरूह होने के कारण राज्य स्वयं चलाने में कठिनाई प्रतीत करते हैं। अत: इन कार्यों के चलाने के लिए वे सब इकाइयाँ प्रतीत करते हैं। अत: इन कार्यों के चलाने के लिए वे सब इकाइयाँ अपनी राजशक्तियों का एक निश्चित भाग संघीय सरकार को अधिकार एवं साधन के रूप में प्रदान कर देते हैं। शेष अन्य विषयों में राज्य स्वयं कार्यभार वहन करते हैं एवं उसके प्रतिरूप अधिकार एवं साधन के रूप में प्रदान कर देते हैं। शेष अन्य विषयों में राज्य स्वयं कार्यभार वहन करते हैं एवं उसके प्रतिरूप अधिकार एवं साधन संविधान द्वारा लेते हैं। इस प्रकार एकात्मक संविधान (यूनिटरी संविधान) के विपरीत संघात्मक संविधान एक ही संविधान के अंतर्गत राजद्वै (डुवल पालिटी) को स्थापना करता है। परिणामस्वरूप ऐसे संघ के नागरिक दो प्रकार की सरकारों, संघीय एवं राज्य सरकारों के अधीनस्थ होते हैं। .
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संविधान
संविधान, मूल सिद्धान्तों या स्थापित नज़ीरों का एक समुच्चय है, जिससे कोई राज्य या अन्य संगठन अभिशासित होते हैं। वह किसी संस्था को प्रचालित करने के लिये बनाया हुआ संहिता (दस्तावेज) है। यह प्रायः लिखित रूप में होता है। यह वह विधि है जो किसी राष्ट्र के शासन का आधार है; उसके चरित्र, संगठन, को निर्धारित करती है तथा उसके प्रयोग विधि को बताती है, यह राष्ट्र की परम विधि है तथा विशेष वैधानिक स्थिति का उपभोग करती है सभी प्रचलित कानूनों को अनिवार्य रूप से संविधान की भावना के अनुरूप होना चाहिए यदि वे इसका उल्लंघन करेंगे तो वे असंवैधानिक घोषित कर दिए जाते है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी सम्प्रभु देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान है, जिसमें, उसके अंग्रेज़ी-भाषी संस्करण में १४६,३८५ शब्दों के साथ, २२ भागों में ४४४ अनुच्छेद, १२ अनुसूचियाँ और १०१ संशोधन हैं, जबकि मोनाको का संविधान सबसे छोटा लिखित संविधान है, जिसमें ९७ अनुच्छेदों के साथ १० अध्याय, और कुल ३,८१४ शब्द हैं। .
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संविधान (बहुविकल्पी)
संविधान अथवा संवैधानिक निम्नलिखित में से कोई एक हो सकता है.
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संविधान दिवस (भारत)
संविधान दिवस (26 नवम्बर) भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को संविधान दिवस मनाया गया। डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने भारत के महान संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में लाया गया। आंबेडकरवादी और बौद्ध लोगों द्वारा कई दशकों पूर्व से ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा पहली बार 2015 से डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के इस महान योगदान के रूप में 26 नवम्बर को "संविधान दिवस" मनाया गया। 26 नवंबर का दिन संविधान के महत्व का प्रसार करने और डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के विचारों और अवधारणाओं का प्रसार करने के लिए चुना गया था। .
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संवैधानिक उपचार
मनुष्य को विधिप्रदत्त अनेक अधिकार प्राप्त हैं। मनुष्य जाति, समय समय पर, उन अधिकारों के प्रवर्तन के लिये अनेक विधिक उपायों (legal rights) की उद्भावना करती आई है। भारत में विधिक उपायों का स्थूल विभाजन दो श्रेणियों में किया जा सकता है -.
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हिन्दी
हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .
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हिन्दी दिवस
हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। .
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हिन्दी–उर्दू विवाद
भारत में राजमार्ग चिह्नों में उर्दू और हिन्दी। हिन्दी–उर्दू विवाद भारतीय उपमहाद्वीप में १९वीं सदी में आरम्भ हुआ भाषाई विवाद है। इस विवाद के कुछ मूल प्रश्न ये थे- उत्तरी भारत तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत की भाषा का स्वरूप क्या हो, सरकारी कार्यों में किस भाषा/लिपि का प्रयोग हो, हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा के दो रूप शैली हैं या अलग-अलग हैं (हिन्दुस्तानी देखें।) हिन्दी और उर्दू हिन्दी भाषा की खड़ी बोली की रूप को कहा जाता है और यह लगभग भारत की ४५% जनसंख्या की भाषा है जिसे विभिन्न हिन्दी, हिन्दुस्तानी और उर्दू के रूप में जाना जाता है। वास्तव में हिन्दी–उर्दू विवाद अंग्रेजी काल में शुरू हुआ था और ब्रितानी शासन ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस विवाद को बढ़ाने में मदद की। इसी क्रम में ब्रितानी शासन समाप्त होने के बाद उर्दू पाकिस्तान की राजभाषा घोषित की गयी (१९४६ में) और हिन्दी भारत की राजभाषा (१९५० में)। वर्तमान समय में कुछ मुस्लिमों के अनुसार हिन्दुओं ने उर्दू को परित्यक्त किया जबकि कुछ हिन्दुओं का विश्वास है कि मुस्लिम राज के दौरान उर्दू को कृत्रिम रूप से जनित किया गया। हिंदी और उर्दू हिंदी की खड़ी बोली के दो भिन्न साहित्यिक रूप हैं। खड़ी बोली का एक फ़ारसीकृत रूप, जो विभिन्नता से हिंदी, हिंदुस्तानी और उर्दू कहलाता था, दक्षिण एशिया के दिल्ली सल्तनत (1206-1526 AD) और मुगल सल्तनत (1526–1858 AD) के दौरान आकार लेने लगी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने आधुनिक भारत के हिंदी बोलने वाले उत्तरी प्रांतों में फ़ारसी भाषा की जगह उर्दू लिपि में लिखित उर्दू को सरकारी मानक भाषा का दर्रजा दे दिया, अंग्रेज़ी के साथ। उन्नीसवीं सदी के आखिरी कुछ दशकों में उत्तर पश्चिमी प्रांतों और अवध में हिंदी-उर्दू विवाद का प्रस्फुटन हुआ। हिंदी और उर्दू के समर्थक क्रमशः देवनागरी और फ़ारसी लिपि में लिखित हिंदुस्तानी का पक्ष लेने लगे थे। हिंदी के आंदोलन जो देवनागरी का विकास और आधिकारिक दर्जे को हिमायत दे रहे थे उत्तरी हिंद में स्थापित हुए। बाबू शिव प्रसाद और मदनमोहन मालवीय इस आंदोलन के आरंभ के उल्लेखनीय समर्थक थे। इस के नतीजे में उर्दू आंदोलनों का निर्माण हुआ, जिन्होंने उर्दू के आधिकारिक दर्जे को समर्थन दिया; सैयद अहमद ख़ान उनके एक प्रसिद्ध समर्थक थे। सन् 1900 में, सरकार ने हिन्दी और उर्दू दोनों को समान प्रतीकात्मक दर्जा प्रदान किया जिसका मुस्लिमों ने विरोध किया और हिन्दूओं ने खुशी व्यक्त की। हिन्दी और उर्दू का भाषायीं विवाद बढ़ता गया क्योंकि हिन्दी में फारसी-व्युत्पन्न शब्दों के तुल्य औपचारिक और शैक्षिक शब्दावली का मूल संस्कृत को लिया गया। इससे हिन्दू-मुस्लिम मतभेद बढ़ने लगे और महात्मा गांधी ने मानकों का पुनः शुद्धीकरण करके पारम्परिक शब्द हिन्दुस्तानी के अन्दर उर्दू अथवा देवनागरी लिपि काम में लेने का सुझाव दिया। इसका कांग्रेस के सदस्यों तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कुछ नेताओं ने समर्थन किया। इसके फलस्वरूप 1950 में भारतीय संविधान के लिए बनी संस्था ने अंग्रेज़ी के साथ उर्दू के स्थान पर हिन्दी को देवनागरी लिपि में राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। .
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हृदय नाथ कुन्ज़रू
डॉ॰ हृदय नाथ कुन्ज़रू (1 अक्टूबर 1887-3 अप्रैल 1978) हृदय नाथ कुन्ज़रू भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे भारतीय संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा के एक सदस्य थे। खेल मनोरंजन एवं अनुसाशन में भारत सरकार को सुझाव देता है कुंजरू समिति का निर्माण हृदय नाथ कुंजरू की अद्यक्षता में किया गया था। .
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जन लोकपाल विधेयक आंदोलन २०११
जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में ५ अप्रैल २०११ को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव आदि शामिल थे। संचार साधनों के प्रभाव के कारण इस अनशन का प्रभाव समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी उनका रवैया उपेक्षा पूर्ण ही रहा। किंतु इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पास कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई। सरकार ने इसकी राह में कई रोड़े अटकाए एवं १६ अगस्त को अन्ना हजारे एवं उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। किंतु इससे आंदोलन पुरे देश में भड़क उठा। देश भर में अगले १२ दिलों तक लगातार बड़ी संख्या में धरना, प्रदर्शन और अनशन आयोजित किए गए। अंततः संसद द्वारा अन्ना की तीन शर्तों पर सहमती का प्रस्ताव पास करने के बाद २८ अगस्त को अन्ना ने अपना अनशन स्थगित करने की घोषणा की। .
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जनहित याचिका
भारत का उच्चतम न्यायालय - केन्द्रीय पक्षजनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है। अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमें यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए। यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है। जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है।http://www.ielrc.org/content/a0003.pdf न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यतः स्वागत और समर्थन किया है। यहाँ यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है। यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है, इसका कोई अंतर्राष्ट्रीय समतुल्य नहीं है और इसे एक विशिष्ट भारतीय संप्रल्य के रूप में देखा जाता है। .
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जरनैल सिंह भिंडरांवाले
जरनैल सिंह भिंडरांवाले (ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਭਿੰਡਰਾਂਵਾਲੇ, जन्म का नाम जरनैल सिंह बराड़ (ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਬਰਾੜ, 12 फ़रवरी 1947 - 6 जून 1984) भारतीय पंजाब में सिखों के धार्मिक समूह दमदमी टकसाल का प्रमुख लीडर था। इसने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का समर्थन किया। इसने सिखो को कट्टरपंथी बनने के लिए मजबूर किया । इसने सिख नौजवानों को केश काटने की निषिद्धता की। इस भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 की सख़्त हिंसक स्वरूप मे विरोध किया और सिख आतंकवाद की शुुुरु की गई । जिसके अनुसार सिक्ख पंथ के अनुयायी को कम संख्या कहा गया और हिन्दू धर्म का एक हिस्सा कहा गया। अगस्त 1982 में भिंडरांवाले और अकाली दल ने 'धर्म युद्ध मोर्चा' शुरू किया। इसका उद्देश्य आनंदपुर प्रसाव में व्यक्त किए गए उद्देश्यों को पाना था। .
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जाति
भारतीय समाज जातीय सामाजिक इकाइयों से गठित और विभक्त है। श्रमविभाजनगत आनुवंशिक समूह भारतीय ग्राम की कृषिकेंद्रित व्यवस्था की विशेषता रही है। यहाँ की सामाजिक व्यवस्था में श्रमविभाजन संबंधी विशेषीकरण जीवन के सभी अंगों में अनुस्यूत है और आर्थिक कार्यों का ताना बाना इन्हीं आनुवंशिक समूहों से बनता है। यह जातीय समूह एक ओर तो अपने आंतरिक संगठन से संचालित तथा नियमित है और दूसरी ओर उत्पादन सेवाओं के आदान प्रदान और वस्तुओं के विनिमय द्वारा परस्पर संबद्ध हैं। समान पंमरागत पेशा या पेशे, समान धार्मिक विश्वास, प्रतीक सामाजिक और धार्मिक प्रथाएँ एवं व्यवहार, खानपान के नियम, जातीय अनुशासन और सजातीय विवाह इन जातीय समूहों की आंतरिक एकता को स्थिर तथा दृढ़ करते हैं। इसके अतिरिक्त पूरे समाज की दृष्टि में प्रत्येक जाति का सोपानवत् सामाजिक संगठन में एक विशिष्ट स्थान तथा मर्यादा है जो इस सर्वमान्य धार्मिक विश्वास से पुष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य की जाति तथा जातिगत धंधे दैवी विधान से निर्दिष्ट हैं और व्यापक सृष्टि के अन्य नियमों की भाँति प्रकृत तथा अटल हैं एक गाँव में स्थित परिवारों का ऐसा समूह वास्तव में अपनी बड़ी जातीय इकाई का अंग होता है जिसका संगठन तथा क्रियात्मक संबंधों की दृष्टि से एक सीमित क्षेत्र होता है, जिसकी परिधि सामान्यत: 20-25 मील होती है। उस क्षेत्र में जातिविशेष की एक विशिष्ट आर्थिक तथा सामाजिक मर्यादा होती है जो उसके सदस्यों को, जो जन्मना होते हैं, परंपरा से प्राप्त होती है। यह जातीय मर्यादा जीवन पर्यंत बनी रहती है और जातीय धंधा छोड़कर दूसरा धंधा अपनाने से तथा आमदनी के उतार चढ़ाव से उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह मर्यादा जातीय-पेशा, आर्थिक स्थिति, धार्मिक संस्कार, सांस्कृतिक परिष्कार और राजनीतिक सत्ता से निर्धारित होती है और निर्धारकों में परिवर्तन आने से इसमें परिवर्तन भी संभव है। किंतु एक जाति स्वयं अनेक उपजातियों तथा समूहों में विभक्त रहती है। इस विभाजन का आधार बहुधा एक ही पेशे के अंदर विशेषीकरण के भेद प्रभेद होते हैं। किंतु भौगोलिक स्थानांतरण ने भी एक ही परंपरागत धंधा करनेवाली एकाधिक जातियों को साथ साथ रहने का अवसर दिया है। कभी कभी जब किसी जाति का एक अंग अपने परंपरागत पेशे के स्थान पर दूसरा पेशा अपना लेता है तो कालक्रम में वह एक पृथक् जाति बन जाता है। उच्च हिंदू जातियों में गोत्रीय विभाजन भी विद्यमान हैं। गोत्रों की उपायोगिता मात्र इतनी ही है कि वे किसी जाति के बहिविवाही समूह बनाते हैं। और एक गोत्र के व्यक्ति एक ही पूर्वज के वंशज समझे जाते हैं। यह उपजातियाँ भी अपने में स्वतंत्र तथा पृथक् अंतविवाही इकाइयाँ होती हैं और कभी कभी तो बृहत्तर जाति से उनका संबंध नाम मात्र का होता है (दे.
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जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू (नवंबर १४, १८८९ - मई २७, १९६४) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने १९४७ में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर १९६४ तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के वास्तुकार मानें जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाएँ जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री का पद सँभालने के लिए कांग्रेस द्वारा नेहरू निर्वाचित हुएँ, यद्यपि नेतृत्व का प्रश्न बहुत पहले 1941 में ही सुलझ चुका था, जब गांधीजी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिस और उत्तराधिकारी के रूप में अभिस्वीकार किया। प्रधानमन्त्री के रूप में, वे भारत के सपने को साकार करने के लिए चल पड़े। भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। मुख्यतः, एक बहुवचनी, बहु-दलीय लोकतन्त्र को पोषित करते हुएँ, उन्होंने भारत के एक उपनिवेश से गणराज्य में परिवर्तन होने का पर्यवेक्षण किया। विदेश नीति में, भारत को दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय नायक के रूप में प्रदर्शित करते हुएँ, उन्होंने गैर-निरपेक्ष आन्दोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में प्रभुत्व दिखाते हुएँ और 1951, 1957, और 1962 के लगातार चुनाव जीतते हुएँ, एक सर्व-ग्रहण पार्टी के रूप में उभरी। उनके अन्तिम वर्षों में राजनीतिक मुसीबतों और 1962 के चीनी-भारत युद्ध में उनके नेतृत्व की असफलता के बावजूद, वे भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहें। भारत में, उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। .
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वस्तु एवं सेवा कर (भारत)
गुड्स एंड सर्विसिज़ टैक्स या वस्तु एवं सेवा कर (संक्षेप मे: वसेक या जीएसटी GST, Goods and Services Tax) भारत में १ जुलाई २०१७ से लागू एक महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जिसे सरकार व कई अर्थशास्त्रियों द्वारा इसे स्वतंत्रता के पश्चात् सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया है।http://hindi.economictimes.indiatimes.com/business/business-news/know-all-about-indias-biggest-tax-reform-gst/articleshow/57909199.cms http://hindi.moneycontrol.com/news/market-news/gst-beginning-of-new-tax-regime_162197.html मनीकंट्रोल.कॉम इससे केन्द्र एवम् विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भिन्न भिन्न दरों पर लगाए जा रहे विभिन्न करों को हटाकर पूरे देश के लिए एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू की जाएगी जिससे भारत को एकीकृत साझा बाजार बनाने में मदद मिलेगी। भारतीय संविधान में इस कर व्यवस्था को लागू करने के लिए संशोधन किया गया है। 1 जुलाई 2017 से पूर्व किसी भी सामान पर केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा कई तरह के अलग-अलग कर लगाती हैं लेकिन जीएसटी आने से सभी तरह के सामानों पर एक जैसा ही कर लगाया जाएगा पूर्व में किसी भी सामान पर 30 से 35% तक कर देना पड़ता था कुछ चीजों पर तो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से लगाया जाने वाला कर 50% से ज्यादा होता था जीएसटी आने के बाद यह कर अधिकतम 28 प्रतिशत हो जाएगा जिसमें कोई भी अप्रत्यक्ष कर नहीं होगा जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था को एक देश एक कर वाली अर्थव्यवस्था बना देगा। फिलहाल भारतवासी 17 अलग-अलग तरह के कर चुकाते हैं जबकि जीएसटी लागू होने के बाद केवल एक ही तरह का कर दिया जाएगा इसके लागु होते ही एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट, मनोरंजन कर, लग्जरी कर जैसे बहुत सारे कर खत्म हो जाएंगे| जीएसटी लागू होने के बाद किसी भी सामान और सेवा पर कर वहां लगेगा जहां वह बिकेगा | जीएसटी अलग-अलग स्तर पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी, एडिशनल एक्साइज ड्यूटी,सेंट्रल सेल्स टैक्स, वैट, लक्ज़री टैक्स, सर्विस कर, इत्यादि की जगह अब केवल जीएसटी लगेगा। जीएसटी परिषद ने 66 तरह के प्रोडक्ट्स पर टैक्स की दरें घटाई हैंhttps://www.hindi.nyoooz.com/news/kanpur/tax-reduction-rate-of-66-products-in-gst-the-decision-taken-by-the-council_61223/ | भारत में संचालित जीएसटी टैक्स दर के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत सहित केवल 5 देशों में चार गैर स्तरीय स्लैब है।) .
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विधान परिषद
विधान परिषद कुछ भारतीय राज्यों में लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। इसके सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुने जाते हैं। कुछ सदस्य राज्यपाल के द्वारा मनोनित किए जाते हैं। विधान परिषद विधानमंडल का अंग है। आंध्र प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के रूप में, (उन्तीस में से) सात राज्यों में विधान परिषद है। इसके अलावा, राजस्थान और असम को भारत की संसद ने अपने स्वयं के विधान परिषद बनाने की मंजूरी दे दी है। .
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विधान सभा
विधान सभा या वैधानिक सभा जिसे भारत के विभिन्न राज्यों में निचला सदन(द्विसदनीय राज्यों में) या सोल हाउस (एक सदनीय राज्यों में) भी कहा जाता है। दिल्ली व पुडुचेरी नामक दो केंद्र शासित राज्यों में भी इसी नाम का प्रयोग निचले सदन के लिए किया जाता है। 7 द्विसदनीय राज्यों में ऊपरी सदन को विधान परिषद कहा जाता है। विधान सभा के सदस्य राज्यों के लोगों के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि होते हैं क्योंकि उन्हें किसी एक राज्य के 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के नागरिकों द्वारा सीधे तौर पर चुना जाता है। इसके अधिकतम आकार को भारत के संविधान के द्वारा निर्धारित किया गया है जिसमें 500 से अधिक व् 60 से कम सदस्य नहीं हो सकते। हालाँकि विधान सभा का आकार 60 सदस्यों से कम हो सकता है संसद के एक अधिनियम के द्वारा: जैसे गोवा, सिक्किम, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी। कुछ राज्यों में राज्यपाल 1 सदस्य को अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त कर सकता है, उदा० ऐंग्लो इंडियन समुदाय अगर उसे लगता है कि सदन में अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। राज्यपाल के द्वारा चुने गए या नियुक्त को विधान सभा सदस्य या MLA कहा जाता है। प्रत्येक विधान सभा का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है जिसके बाद पुनः चुनाव होता है। आपातकाल के दौरान, इसके सत्र को बढ़ाया जा सकता है या इसे भंग किया जा सकता है। विधान सभा का एक सत्र वैसे तो पाँच वर्षों का होता है पर लेकिन मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्यपाल द्वारा इसे पाँच साल से पहले भी भंग किया जा सकता है। विधानसभा का सत्र आपातकाल के दौरान बढ़ाया जा सकता है लेकिन एक समय में केवल छः महीनों के लिए। विधान सभा को बहुमत प्राप्त या गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने पर भी भंग किया जा सकता है। .
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विधि दिवस (भारत)
भारत में प्रतिवर्ष २६ नवम्बर को विधि दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन भारत का संविधान स्वीकार किया गया था। 'विधि दिवस' मनाये जाने की परम्परा सर्वप्रथम भारत के प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के प्रयासों और सुप्रीम कोर्ट बार एशोशिएशन द्वारा सन 1979 में प्रारंभ हुई। .
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विधि शासन
विधि शासन या कानून का शासन (Rule of law) का अर्थ है कि कानून सर्वोपरि है तथा वह सभी लोगों पर समान रूप से लागू होती है। .
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विधि के स्रोत
विधि के स्रोत (Sources of law) का संकीर्ण अर्थ है, "कानून की उत्पत्ति"। किन्तु विस्तृत अर्थ में तर्क करने का कोई भी आधार-सामग्री। कानून के स्रोत अन्तरराष्ट्रीय हो सकते हैं या राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या धार्मिक हो सकते हैं। .
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विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987
समान अवसर के आधार न्याय सुलभ कराने को सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया गया जिसके द्वारा केन्द्र में राष्ट्रीय विधिक सेवा समिति एवं जिलों में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण पर एक प्रमुख दायित्व सौंपा गया कि ग्रामीण क्षेत्रों, गरीब बस्तियों या स्लम कालोनियों में समस्त कमजोर वर्गो को उनके अधिकारों के साथ ही लोक अदालतों के माध्यम से विवादों को सुलझाने के लिए प्रात्साहित करने के लिए शिक्षित करने के प्रयोजन से विधिक सहायता शिविरों का आयोजन किया जाय और राज्य प्राधिकरणों पर इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व सौंपा गया। .
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विधिक वृत्ति
विधिक वृत्ति (Legal profession) वह वृत्ति (व्यवसाय) है जिससे सम्बन्धित लोग विधि का अध्ययन करते हैं, उसका विकास करते एवं उसे लागू करते हैं। वर्तमान समय में विधिक वृत्ति चुनने के इच्छुक व्यक्ति को पहले विधि में डिग्री प्राप्त करना होता है या कोई अन्य विधिक शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती है। आरंभ में विधिक वृत्ति न्यायालय में विधि के गूढ़ार्थ को स्पष्ट करने के सहायतार्थ थी। आज भी इसका मुख्य कार्य यही है। इसके अतिरिक्त आज अधिवक्ता केवल विधिविशेषज्ञ नहीं, समाज के निर्देशक भी हैं। आधुनिक समाज का स्वरूप एवं प्रगति मुख्यत: विधि द्वारा नियंत्रित होती है और विधानसभाओं द्वारा निर्मित विधि केवल सैद्धांतिक मूल नियम होती है, उसके शब्दजाल को व्यवस्थित कर जो स्वरूप चाहें अधिवक्ता उसे प्रदान करते हैं। अतएव विधि का व्यावहारिक रूप अधिवक्ताओं के हाथों ही निर्मित होता है, जिसके सहारे समाज प्रगति करता है। विधिक वृत्ति आधुनिक समाज का मुख्य आधार स्तंभ है। विधि का स्वरूप और निर्माण स्वभावतया विधिकारों से संबद्ध और संतुलित होता है। विधि का रूप तभी परिष्कृत एवं परिमार्जित हो पाता है जब उस देश की विधिक वृत्ति पुष्ट और परिष्कृत होती है। प्राचीन आदियुग में समाज की संपूर्ण क्रियाशक्ति मुखिया के हाथ में होती थी। तब विधि का स्वरूप बहुत आदिम था। ज्यों ही न्यायप्रशासन व्यक्ति के हाथ से समुदायों के हाथ में आया कि विधि का रूप निखरने लगा, क्योंकि अब नियम व्यक्तिविशेष की निरंकुश मनोवांछाएँ नहीं, सार्वजनिक सिद्धांत के रूप में होते। विधि के उत्कर्ष में सदा किसी समुदाय की सहायता रही है। मध्य एशिया में सर्वप्रथम न्यायाधीशों, धर्मप्रधान देशों में धर्मपंडितों, मिस्र और मेसोपोटामिया में न्यायाधीशों, ग्रीस में अधिवक्ताओं और पंचों, रोम में न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं एवं न्यायविशेषज्ञों, मध्यकालीन ब्रिटेन और फ्रांस में न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं एवं एटर्नी तथा भारत में विधिपंडितों ने सर्वप्रथम विधि को समुचित रूप दिया। प्रत्येक देश का क्रम यही रहा है कि विधिनिर्माण क्रमश: धर्माधिकारियों के नियंत्रण से स्वतंत्र होकर विधिकारों के क्षेत्र में आता गया। विधिविशेषज्ञों के शुद्ध बौद्धिक चिंतन के सम्मुख धर्माधिकारियों का अनुशासन क्षीण होता गया। आरंभ में व्यक्ति न्यायालय में स्वयं पक्षनिवेदन करते थे, किसी विशेष द्वारा पक्षनिवेदन की प्रथा नहीं थी। विधि का रूप ज्यों ज्यों परिष्कृत हुआ उसमें जटिलता और प्राविधिकता आती गई, अत: व्यक्ति के लिए आवश्यक हो गया कि विधि के गूढ़ तत्वों को वह किसी विशेषज्ञ द्वारा समझे तथा न्यायालय में विधिवत् निवेदन करवाए। कभी व्यक्ति की निजी कठिनाइयों के कारण भी यह आवश्यक होता कि वह अपनी अनुपस्थिति में किसी को प्रतिनिधि रूप में न्यायालय में भेज दे। इस प्रकार वैयक्तिक सुविधा और विधि के प्राविधिक स्वरूप ने अधिवक्ताओं (ऐडवोकेट्स) को जन्म दिया। पाश्चात्य एवं पूर्वी दोनों देशों में विधिज्ञाताओं ने सदा से समाज में, विद्वान् होने के कारण, बड़ा समान प्राप्त किया। इनकी ख्याति और प्रतिष्ठा से आकृष्ट होकर समाज के अनेक युवक विधिज्ञान की ओर आकर्षित होने लगे। क्रमश: विधिविशेषज्ञों के शिष्यों की संख्या में वृद्धि होती गई और विधिसम्मति प्रदान करने के अतिरिक्त इनका कार्य विधिदीक्षा भी हो गया। फलस्वरूप इन्हीं के नियंत्रण में विधि-शिक्षा-केंद्र स्थापित हुए। विधि सम्मति देने अथवा न्यायालय में अन्य का प्रतिनिधि बन पक्षनिवेदन करने का यह पारिश्रमिक भी लेते थे। क्रमश: यह एक उपयोगी व्यवसाय बन गया। आरंभ में धर्माधिकारी तथा न्यायालय इस विधिक व्यवसाय को नियंत्रित करते थे किंतु कुछ समय पश्चात् व्यवसाय तनिक पुष्ट हुआ तो इनके अपने संघ बन गए, जिनके नियंत्रण से विधिक वृत्ति शुद्ध रूप में प्रगतिशील हुई। विधिक वृत्ति में सदा दो प्रकार के विशेषज्ञ रहे-एक वह जो अन्य व्यक्ति की ओर से न्यायालय में प्रतिनिधित्व कर पक्षनिवेदन करते, दूसरे वह जो न्यायालय में जाकर अधिवक्तृत्व नहीं करते किंतु अन्य सब प्रकार से दावे का विधि-दायित्व लेते। यही भेद आज के सौलिसिटर तथा ऐडवोकेट में है। विधिक वृत्ति की प्रगति की यह रूपरेखा प्राय सब देशों में रही है। .
देखें भारत का संविधान और विधिक वृत्ति
विश्व बालश्रम दिवस
विश्व बालश्रम दिवस 12 जून को मनाया जाता है। .
देखें भारत का संविधान और विश्व बालश्रम दिवस
व्यौहार राममनोहर सिंहा
व्यौहार राममनोहर सिंहा (1929 - 2007) एक भारतीय कलाकार थे जिन्होंने भारतीय संविधान श्रेणी:भारतीय कलाकार.
देखें भारत का संविधान और व्यौहार राममनोहर सिंहा
खड़ीबोली
खड़ी बोली वह बोली है जिसपर ब्रजभाषा या अवधी आदि की छाप न हो। ठेंठ हिंदी। आज की राष्ट्रभाषा हिंदी का पूर्व रूप। इसका इतिहास शताब्दियों से चला आ रहा है। यह परिनिष्ठित पश्चिमी हिंदी का एक रूप है। .
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गणतन्त्र दिवस (भारत)
गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। यह भारत के तीन राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है, अन्य दो स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती हैं। .
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गुजरात विधानसभा चुनाव, 2017
गुजरात विधानसभा चुनाव, 2017 9 तथा 14 दिसम्बर 2017 को दो चरणों में सम्पन्न होंगे। सबसे अधिक सीटें जीतने वाला दल या गठबंधन का नेता ही गुजरात राज्य का अगला मुख्यमन्त्री होगा। .
देखें भारत का संविधान और गुजरात विधानसभा चुनाव, 2017
गुजरात के राज्यपालों की सूची
गुजरात के राज्यपाल उत्तर-पुर्व भारत के गुजरात राज्य के सरकार के संवैधानिक प्रमुख हैं। राज्यपाल को पांच साल की अवधि के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, और राष्ट्रपति के इच्छा के अनुसार कार्यालय का कार्यकाल होता है। भारत के संविधान के मुताबिक, गुजरात के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी गुजरात के मुख्यमंत्री है। भारत का संविधान राज्यपाल को अपने स्वयं के विवेक पर कार्य करने का अधिकार देता है; जैसे कि मंत्रालय को युक्त करने या खारिज करने की क्षमता, राष्ट्रपति के शासन की सिफारिश करना, या राष्ट्रपति की सहमति के लिए कोई विधेयक आरक्षित करना। .
देखें भारत का संविधान और गुजरात के राज्यपालों की सूची
गोवा के मुख्यमंत्रियों की सूची
गोवा के मुख्यमंत्री पश्चिम भारत के गोवा राज्य के सरकार के प्रमुख हैं। भारत के संविधान के मुताबिक, गोवा के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी मुख्यमंत्री है। गोवा विधान सभा के चुनावों के बाद, राज्यपाल आम तौर पर सरकार बनाने के लिए बहुसंख्य पक्ष (या गठबंधन) को आमंत्रित करता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है, जिनके मंत्रिमंडल में सामूहिक रूप से विधानसभा के लिए जिम्मेदार है। यह देखते हुए कि उन्हें विधानसभा का विश्वास है, मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल के लिए है और यह कोई अवधि सीमा नहीं है। .
देखें भारत का संविधान और गोवा के मुख्यमंत्रियों की सूची
ओडिशा के राज्यपालों की सूची
ओडिशा के राज्यपाल पुर्व भारत के ओडिशा राज्य के सरकार के संवैधानिक प्रमुख हैं। राज्यपाल को पांच साल की अवधि के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, और राष्ट्रपति के इच्छा के अनुसार कार्यालय का कार्यकाल होता है। भारत के संविधान के मुताबिक, ओडिशा के राज्यपाल राज्य के न्यायपालिक है, लेकिन वास्तविक कार्यकारी प्राधिकारी ओडिशा के मुख्यमंत्री है। भारत का संविधान राज्यपाल को अपने स्वयं के विवेक पर कार्य करने का अधिकार देता है; जैसे कि मंत्रालय को नियुक्त करने या खारिज करने की क्षमता, राष्ट्रपति के शासन की सिफारिश करना, या राष्ट्रपति की सहमति के लिए कोई विधेयक आरक्षित करना। .
देखें भारत का संविधान और ओडिशा के राज्यपालों की सूची
आठवीं अनुसूची
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में २२ भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। इनमें से १४ भाषाओं को संविधान में शामिल किया गया था। सन १९६७ में, सिन्धी भाषा को अनुसूची में जोड़ा गया। इसके बाद, कोंकणी भाषा, मणिपुरी भाषा, और नेपाली भाषा को १९९२ में जोड़ा गया। हाल में २००४ में बोड़ो भाषा, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा, और संथाली भाषा शामिल किए गए। .
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आदिवासी (भारतीय)
उडी़सा के जनजातीय कुटिया कोंध समूह की एक महिलाआदिवासी शब्द दो शब्दों आदि और वासी से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़) जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है (संस्कृत ग्रंथों में)। संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में,((धनुहार/धनवार)),संथाल, गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, बोडो, भील, खासी, सहरिया, गरासिया, मीणा, उरांव, बिरहोर आदि हैं। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कह कर पुकारा है। जिस पर वामपंथी मानविज्ञानियों ने सवाल उठाया है कि क्या मैदान में रहने वालों को मैदानी कहा जाता है? आदिवासी को दक्षिणपंथी लोग वनवासी या जंगली कहकर पुकारते हैं। इस तरह के नामों के पीछे बुनियादी रूप से यह धारणा काम कर रही होती है कि आदिवासी देश के मूल निवासी हैं या नहीं तथा आर्य यहीं के मूल निवासी हैं या बाहर से आए हैं? जबकि निश्चित रूप से आदिवासी ही भारत के मूलनिवासी हैं। आमतौर पर आदिवासियों को भारत में जनजातीय लोगों के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक है जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं, जैसे मिजोरम। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी " अनुसूचित जातियों और जनजातियों " में रखा जाता है जो कुछ सकारात्मक कार्रवाई के उपायों के लिए पात्र है। आदिवासी नृत्य आदिवासियों का अपना धर्म है। ये प्रकृति पूजक हैं और जंगल, पहाड़, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिंदू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिूंदकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परंतु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड की मांग कर रहे हैं। भारत में 1871 से लेकर 1941 तक की जनगणना में आदिवासी को अन्य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे Aborgines, Aborigional, Animist, Triabal Religion, Tribes आदि कहा गया है। आदिवासी की गणना अलग ग्रुप में की गई है, लेकीन 1951 की जनगणना से आदिवासी को Schedule Tribe बना कर अलग गिनती करना बन्द कर दिया गया है। माना जाता है कि हिंदुओं के देव भगवान शिव भी मूल रूप से एक आदिवासी देवता थे लेकिन आर्यों ने भी उन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया। भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति। बहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे थे। .
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आधारभूत लक्षण का सिद्धान्त
आधारभूत लक्षण का सिद्धान्त (basic structure doctrine), भारत का एक न्यायिक सिद्धान्त है, जिसके अनुसार, भारतीय संविधान के कुछ निश्चित मूलभूत लक्षण (फीचर) हैं जिन्हें संसद के किसी अधिनियम द्वारा बदला या समाप्त नहीं किया जा सकता। संविधान, संसद और राज्य विधान मंडलों या विधानसभाओं को उनके संबंधित क्षेत्राधिकार के भीतर कानून बनाने का अधिकार देता है। संविधान में संशोधन करने के लिए बिल संसद में ही पेश किया जा सकता है, लेकिन यह शक्ति पूर्ण नहीं है। यदि सर्वोच्च न्यायालय को लगता है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान मूलभूत लक्षण साथ मेल नहीं खाता तो सर्वोच्च न्यायालय के पास इसे अमान्य घोषित करने की शक्ति है। श्रेणी:भारतीय न्याय व्यवस्था.
देखें भारत का संविधान और आधारभूत लक्षण का सिद्धान्त
आपातकाल (भारत)
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, जिन्होंने भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करवाई। 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था। .
देखें भारत का संविधान और आपातकाल (भारत)
आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी, संक्षेप में आप, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल एवं अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से जुड़े बहुत से सहयोगियों द्वारा गठित एक भारतीय राजनीतिक दल है। इसके गठन की आधिकारिक घोषणा २६ नवम्बर २०१२ को भारतीय संविधान अधिनियम की ६३ वीं वर्षगाँठ के अवसर पर जंतर मंतर, दिल्ली में की गयी थी। सन् २०११ में इंडिया अगेंस्ट करपशन नामक संगठन ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन लोकपाल आंदोलन के दौरान भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा जनहित की उपेक्षा के खिलाफ़ आवाज़ उठाई। अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे, जबकि अरविन्द केजरीवाल और उनके सहयोगियों की यह राय थी कि पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा जाये। इसी उद्देश्य के तहत पार्टी पहली बार दिसम्बर २०१३ में दिल्ली विधानसभा चुनाव में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी। पार्टी ने चुनाव में २८ सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनायी। अरविन्द केजरीवाल ने २८ दिसम्बर २०१३ को दिल्ली के ७वें मुख्य मन्त्री पद की शपथ ली। ४९ दिनों के बाद १४ फ़रवरी २०१४ को विधान सभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया। .
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आंबेडकर जयंती
आंबेडकर जयंती या भीम जयंती डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जिन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन १४ अप्रैल को तौहार के रूप में भारत समेत पुरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन को 'समानता दिवस' और 'ज्ञान दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकी जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करने वाले प्रतिभाशाली डॉ॰ भीमराव आंबेडकर को समानता के प्रतिक और ज्ञान के प्रतिक भी कहां जाता है। भीमराव विश्व भर में उनके मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माण और उनकी प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे इन्होंने १४ अप्रेल १९२८ में पुणे शहर में मनाई थी। रणपिसे आंबेडकर के अनुयायी थे। उन्होंने आंबेडकर जयंती की प्रथा शुरू की और भीम जयंतीचे अवसरों पर बाबासाहेब की प्रतिमा हाथी के अंबारी में रखकर रथसे, उंट के उपर कई मिरवणुक निकाली थी। उनके जन्मदिन पर हर साल उनके लाखों अनुयायी उनके जन्मस्थल भीम जन्मभूमि महू (मध्य प्रदेश), बौद्ध धम्म दीक्षास्थल दीक्षाभूमि, नागपुर और उनका समाधी स्थल चैत्य भूमि, मुंबई में उन्हें अभिवादन करने लिए इकट्टा होते है। सरकारी दफ्तरों और भारत के हर बौद्ध विहार में भी आंबेडकर की जयंती मनाकर उन्हें नमन किया जाता है। विश्व के 55 से अधिक देशों में डॉ॰ भीमराव आंबेडकर की जयंती मनाई जाती है। गुगल ने डॉ॰ आंबेडकर की 124 वी जयंती 2015 पर अपने 'गुगल डुडल' पर उनकी तस्वीर लगाकर उन्हें अभिवादन किया। तीन महाद्विपों के देशों में यह डुडल था। .
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कन्नड़ भाषा
कन्नड़ (ಕನ್ನಡ) भारत के कर्नाटक राज्य में बोली जानेवाली भाषा तथा कर्नाटक की राजभाषा है। यह भारत की उन २२ भाषाओं में से एक है जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में साम्मिलित हैं। name.
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कृष्णम राजू
Uppalapati वेंकट Krishnam राजू (जन्म 20 जनवरी, 1940) एक भारतीय फिल्म अभिनेता, जाना जाता है के लिए अपने काम करता है में तेलुगू सिनेमाहै। उन्होंने व्यापक रूप से जाना जाता है के रूप में विद्रोही स्टार के लिए अपने विद्रोही अभिनय शैली है। वह भी विजेता के उद्घाटन नंदी पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता.
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केन्द्र-राज्य संबंध
केंद्र-राज्य संबंध से अभिप्राय किसी लोकतांत्रिक राष्ट्रीय-राज्य में संघवादी केंद्र और उसकी इकाइयों के बीच के आपसी संबंध से होता है। विश्व भर में लोकतंत्र के उदय के साथ राजनीति में केंद्र-राज्य संबंधों को एक नई परिभाषा मिली है। .
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केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली स्थित एक सरकारी विभाग है, जो भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन है और मानक हिन्दी के प्रसार के लिए उत्तरदायी है। यह देवनागरी लिपि के उपयोग और हिन्दी वर्तनी का विनियामन भी करता है।भारतीय संविधान के में हिन्दी भाषा के विकास के लिए दिए गए निर्देश को ध्यान में रखते हुए १ मार्च १९६० को केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना की गई थी। इसके चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं जो चैन्नई, हैदराबाद, गुवाहाटी और कोलकाता में स्थित हैं। .
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केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
केंद्रीय हिंदी संस्थान भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन एक उच्चतर शैक्षणिक एवं शोध संस्थान है। इसका मुख्यालय आगरा में है। इसके आठ केंद्र- दिल्ली, हैदराबाद, गुवाहाटी, शिलांग, मैसूर, दीमापुर, भुवनेश्वर तथा अहमदाबाद हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 में निहित दिशा-निर्देशों के अनुरूप हिंदी को अपनी विविध भूमिकाएं निभाने में समर्थ और सक्रिय बनाने के उद्देश्य से और विविध शैक्षिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक स्तरों पर सुनियोजित अनुसंधान द्वारा शिक्षण-प्रशिक्षण, भाषाविश्लेषण, भाषा का तुलनात्मक अध्ययन तथा शिक्षण सामग्री निर्माण आदि को विकसित करने के लिए सन् १९६१ में भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में की गई। संस्थान का मुख्य कार्य हिंदी भाषा से संबंधित क्षैक्षणिक कार्यक्रम चलाना, शोध कार्य संपन्न करना एवं हिन्दी के प्रचार प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाना है। प्रारंभ में संस्थान का प्रमुख कार्य अहिंदी भाषी क्षेत्रों के लिए योग्य, सक्षम एवं प्रभावकारी हिंदी अध्यापकों को ट्रेनिंग कॉलेज और स्कूली स्तरों पर पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करना था। परंतु बाद में हिंदी के शैक्षिक प्रचार-प्रसार और विकास को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने अपने कार्य क्षेत्रों और प्रकार्यों को विस्तृत किया, जिसके अंतर्गत हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषा-परक शोध, भाषाविज्ञान तथा तुलनात्मक साहित्य आदि विषयों से संबंधित मूलभूत वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यक्रमों को संचालित करना प्रारंभ किया तथा विविध स्तरीय पाठ्यक्रमों, शैक्षिक सामग्री, अध्यापक निर्देशिकाएँ इत्यादि तैयार करने का कार्य भी प्रारंभ किया। यह संस्थान हिंदी अध्ययन-अध्यापन और अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। संस्थान को उच्च स्तरीय शैक्षिक संस्थान के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है। हिंदी भारत की सामासिक संस्कृति की संवाहिका के रूप में अपनी सार्थक भूमिका निभा सके, इस उद्देश्य एवं संकल्प के साथ संस्थान निरंतर कार्यरत है। अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए भी संस्थान अथक प्रयास कर रहा है। संस्थान का मूलभूत उद्देश्य है कि भारतीय भाषाएँ एक दूसरे के निकट आएँ और सामान्य बोधगम्यता की द्रष्टि से हिंदी इनके बीच सेतु का कार्य करे तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय चेतना, संस्कृति एवं उससे संबद्ध मूल तत्व हिंदी के माध्यम से प्रसारित ही न हों, बल्कि सुग्राह्य भी बनें। .
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केरल उच्च न्यायालय
केरल उच्च न्यायालय केरल राज्य का न्यायालय है। इसके अधिकार मे केरल के साथ लक्षद्वीप भी आता हैं। इसे १ नवम्बर १९५६ को स्थापित किया गया। .
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कोरकू भाषा
कोरकू (Korku) भारत के मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र राज्यों में बोली जाने वाली ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा-परिवार की मुण्डा शाखा की एक भाषा है। इसे कोरकू समुदाय के लोग बोलते हैं, जो भारतीय संविधान के तहत एक अनुसूचित जनताति हैं। कोरकूभाषियों के आसपास गोंडी भाषा बोलने वाले बसते हैं, जिनकी संख्या अधिक है। ऐतिहासिक रूप से कोरकू लोगों का निहाली भाषा बोलने वालों के साथ सम्बन्ध रहा है, जो कोरकू बोलने वालों के गावों के भीतर ही विशेष हिस्सों में रहते हैं। .
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कोंकणी भाषा
कोंकणी गोवा, महाराष्ट्र के दक्षिणी भाग, कर्नाटक के उत्तरी भाग, केरल के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषायी तौर पर यह 'आर्य' भाषा परिवार से संबंधित है और मराठी से इसका काफी निकट का संबंध है। राजनैतिक तौर पर इस भाषा को अपनी पहचान के लिये मराठी भाषा से काफी संघर्ष करना पड़ा है। अब भारतीय संविधान के तहत कोंकणी को आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त है। १९८७ में गोवा में कोंकणी को मराठी के बराबर राजभाषा का दर्जा दिया गया किन्तु लिपि पर असहमति के कारण आजतक इस पर अमल नहीं किया जा सका। कोंकणी अनेक लिपियों में लिखी जाती रही है; जैसे - देवनागरी, कन्नड, मलयालम और रोमन। गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद दवनागरी लिपि में कोंकणी को वहाँ की राजभाषा घोषित किया गया है। .
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अधिकार
अधिकार, किसी वस्तु को प्राप्त करने या किसी कार्य को संपादित करने के लिए उपलब्ध कराया गया किसी व्यक्ति की कानूनसम्मत या संविदासम्मत सुविधा, दावा या विशेषाधिकार है। कानून द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ अधिकारों की रक्षा करती हैं। दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे के बिना संभव नहीं। जहाँ कानून अधिकारों को मान्यता देता है वहाँ इन्हें लागू करने या इनकी अवहेलना पर नियंत्रण स्थापित करने की व्यवस्था भी करता है। .
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अनुच्छेद ३७०
भारतीय संविधान का राष्ट्रचिन्ह धारा ३७० भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसके द्वारा जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दर्ज़ा) प्राप्त है। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है। भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग २१ का अनुच्छेद ३७० जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था। स्वतन्त्र भारत के लिये कश्मीर का मुद्दा आज तक समस्या बना हुआ है। .
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अन्य पिछड़ा वर्ग
भारतीय सरकार की इमारत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) एक वर्ग है, जो जातियाँ वर्गीकृत करने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रयुक्त एक सामूहिक शब्द है। यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ-साथ भारत की जनसंख्या के कई सरकारी वर्गीकरण में से एक है 'भारतीय संविधान में ओबीसी "सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों 'के रूप में वर्णित किया जाता है, और भारत सरकार उनके सामाजिक और शैक्षिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए हैं - उदाहरण के लिए, ओबीसी सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 27% आरक्षण के हकदार हैं। जातियों और समुदायों के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक कारकों के आधार पर जोड़ा या हटाया जा सकता है 'और इनको।सामाजिक न्याय और अधिकारिता भारतीय मंत्रालय द्वारा बनाए रखा ओबीसी की सूची, गतिशील है। 1985 तक, पिछड़ा वर्ग के मामलों में गृह मंत्रालय में पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के बाद देखा गया था। कल्याण की एक अलग मंत्रालय अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों से संबंधित मामलों के लिए भाग लेने के लिए (सामाजिक एवं अधिकारिता मंत्रालय को) 1985 में स्थापित किया गया था। अन्य पिछड़े वर्गों के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण से संबंधित कार्यक्रमों के कार्यान्वयन, और अन्य पिछड़ा वर्ग, पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम और राष्ट्रीय आयोग के कल्याण के लिए गठित दो संस्थानों से संबंधित मामले है ' .
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अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल (जन्म: १६ अगस्त १९६८) एक भारतीय राजनीतिज्ञ, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान वह २८ दिसम्बर २०१३ से १४ फ़रवरी २०१४ तक इस पद पर रहे। इससे पहले वो एक सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं और सरकारी कामकाज़ में अधिक पारदर्शिता लाने के लिये संघर्ष किया। भारत में सूचना अधिकार अर्थात सूचना कानून (सूका) के आन्दोलन को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाने, सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने और सबसे गरीब नागरिकों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये सशक्त बनाने हेतु उन्हें वर्ष २००६ में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने आम आदमी पार्टी के नाम से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की। .
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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .
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अंग्रेजी हटाओ आंदोलन
स्वतंत्र भारत में साठ के दशक में अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ के आंदोलन का सूत्रपात राममनोहर लोहिया ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा काम राममनोहर लोहिया ने किया। वे सगुण समाजवाद के पक्षधर थे। उन्होंने लोकसभा में कहा था- १९५० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा। इससे पहले कि संवैधानिक समयसीमा पूरी होती, डॉ राममनोहर लोहिया ने 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम को सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। वे पूरे भारत में इस आंदोलन का प्रचार करने लगे। 1962-63 में जनसंघ भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गया। लेकिन इस दौरान दक्षिण भारत के राज्यों (विशेषकर तमिलनाडु में) आंदोलन का विरोध होने लगा। तमिलनाडु में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके पार्टी ने हिंदी विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद कुछ शहरों में आंदोलन का हिंसक रूप भी देखने को मिला। कई जगह दुकानों के ऊपर लिखे अंग्रेजी के साइनबोर्ड तोड़े जाने लगे। उधर 1965 की समयसीमा नजदीक होने की वजह से तमिलनाडु में भी हिंदी विरोधी आंदोलन काफी आक्रामक हो गया। यहां दर्जनों छात्रों ने आत्मदाह कर ली। इस आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया। इसमें प्रावधान किया गया कि 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है। ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन को उन दिनों यह कहकर खारिज करने की कोशिश की गई कि अगर अंग्रेजी की जगह हिंदी आयेगी तो हिन्दी का वर्चस्ववाद कायम होगा और तटीय भाषाएँ हाशिए पर चली जायेंगी। सत्ताधारियों ने हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा के के रूप में पेश कर हिन्दी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं (बांग्ला, तेलुगू, तमिल, गुजराती, मलयालम) का विवाद छेड़ इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बता दिया। इसे देश जोड़क भाषा नहीं, देश तोड़क भाषा बना दिया। लोहिया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी ने देश जोड़क भाषा का काम किया है। देश में एकता स्थापित की है, आगे भी इस भाषा में संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदी को राजकाज, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी की भाषा नहीं बनाना चाहते तो इसकी जगह अन्य किसी भी भारतीय भाषा को बना दिया जाए। जरूरी हो तो हिन्दी को भी शामिल कर लिया जाए। लेकिन भारत की मातृभाषा की जगह अंग्रेजी का वर्चस्ववाद नहीं चलना चाहिए। लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते हैं, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं है। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी है। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था, उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था– दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई। तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। दुर्भाग्य से सन १९६७ में लोहिया का असमय देहान्त हो गया जिससे इस आन्दोलन को भारी धक्का लगा। यह यह आंदोलन सफल होता तो आज भाषाई त्रासदी का यह दौर न देखना पडता। लोहिया इस तर्क कि "अंग्रेजी का विरोध न करें, हिन्दी का प्रचार करें" की अंतर्वस्तु को भली भांति समझते थे। वे जानते थे कि यह एक ऐसा भाषाई षडयंत्र है जिसके द्वारा औपनिवेशिक संस्कृति की मृत प्राय अमरबेल को पुन: पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। उनका कहना था, .
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उपप्रधानमंत्री
भारत का उपप्रधानमंत्री भारत सरकार की कैबिनेट का एक सदस्य होता है। यह पद, सांविधानिक पद नहीं है और प्रायः अपने आप में कोई विशिष्ट शक्तियाँ नहीं रखता। सामान्यतः उपप्रधानमंत्री कोई अन्य महत्वपूर्ण विभाग भी रखता है, जैसे- गृहमंत्री या वित्त मंत्री। इस पद का उपयोग प्रायः सरकार द्वारा राजनीतिक स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है (क्योंकि संविधान ने प्रधानमंत्री को "समानों में प्रथम" कहा है, अतः शक्ति संतुलन हेतु)। अथवा आपात्काल में भी इस पद पर नियुक्ति की जा सकती है, जबकि अनुदेश रेखा को स्पष्टतः परिभाषित करना जरूरी हो जाता है। भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे। इस पद पर अब तक के अंतिम व्यक्ति श्री लालकृष्ण आडवाणी थे। वर्तमान सरकार में कोई उपप्रधानमंत्री नहीं है। वस्तुतः उपप्रधानमंत्री के पास केवल यह शक्ति है कि वह प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है। केवल तभी वह प्रधानमंत्री का कार्यभार ग्रहण करता है जबकि प्रधानमंत्री गंभीर रूप से बीमार हो, अक्षम हो या उसकी मृत्यु हो जाये। श्रेणी:भारतीय राजनीति.
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छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की स्थापना छत्तीसगढ़ में लोक सेवा में नियुक्तियों तथा सिविल सेवा से संबंधित सभी विषयों पर शासन को परामर्श देने हेतु की गई है। आयोग की स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 के तहत छत्तीसगढ़ शासन दिनांक 23 मई 2001 को की गई है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का कार्यालय, शंकर नगर, रायपुर में भगतसिंह चौंक के पास स्थित है। .
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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ राज्य का उच्च-न्यायालय है। यह बिलासपुर मे स्थित है। यह भारत के नवीनतम उच्च-न्यायालयों में से एक है। इसे १ नवंबर २००० को मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के अंतर्गत मान्यता मिली थी। बिलासपुर उच्च-न्यायालय देश का १९वां उच्च-न्यायालय है।http://www.hindu.com/2000/10/28/stories/01280002.htm सम्मानीय न्यायधीश श्री आर.एस.
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१९५६ का पाकिस्तानी संविधान
1956 का संविधान पाकिस्तान में मार्च 1956 से अक्टूबर 1958 तक लागू पाकिस्तान की सर्वोच्च विधि संहिता व संविधान थी, जिसे 1958 के तख्तापलट को बाद निलंबित कर दिया गया था। यह पाकिस्तान का पहला संविधान था। .
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१९६२ का पाकिस्तानी संविधान
1962 का पाकिस्तानी संविधान एक कानूनी दस्तावेज था, जिसे जून 1962 में लागू किया गया था। रह जून 1962 से मार्च 1969 तक पाकिस्तान की सर्वोच्च विधि संहिता थी। 1956 के संविधान की तरह इसे 1969 में निलंबित कर दिया गया था। अंत्यतः इसे 1973 के संविधान से बदल दिया गया, जो अब भी लागू है। .
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८६वां संविधान संशोधन अधिनियम (शिक्षा)
८६वां संविधान संशोधन विधेयक, भारतीय संविधान का एक संशोधन विधेयक है। यह विधेयक 12 दिसंबर, 2002 को प्रारित हुआ। इस विधेयक मे ६ से १४ वर्ष के आयु वर्ग के सभी बच्चों को राज्य द्वारा मौलिक अधिकार के रूप में प्राथमिक शिक्षा मुफ्त देने का प्रावधान हैं। .
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भारतीय संविधान के रूप में भी जाना जाता है।