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भाप

सूची भाप

सौ डिग्री सेंट्रिग्रेड से अधिक गरम किसी वस्तु पर जल डालने से अचानक भाप पैदा होता है। पानी की गैसीय अवस्था या जलवाष्प को भाप (steam) कहते हैं। शुष्क भाप अदृश्य होती है, परंतु जब भाप में जल की छोटी-छोटी बूँदें मिली होती हैं तब उसका रंग सफेद होता है, जैसा रेल के इंजन से निकलती भाप में स्पष्ट दिखाई देता है। जब भाप में जल की बूँदे उपस्थित होती हैं, तो इसे 'आर्द्र भाप' (wet steam) कहते हैं। यदि जल की बूँदों का सर्वथा अभाव हो तो यह 'शुष्क भाप' (dry steam) कहलाती है। .

30 संबंधों: ऊर्जा का रूपान्तरण, ऊष्मातापी, टर्बाइन, टर्बोजनित्र, ढलवां लोहा, थर्मल प्रदूषण, नाभिकीय ऊर्जा, परिवहन की विधि, फ़ूमारोल, भात, भाप टरबाइन, भाप आसवन, भारत में कोयला-खनन, मुद्रण का इतिहास, युद्धपोत, संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण), स्टीमर, हरी चाय, जल, जलवाष्प, जलगैस, वाष्प, ग्लीसरीन, आटोक्लेव, आसुत जल, क्रेन, कॉफ़ी, अतितप्त भाप, अपशिष्ट प्रबंधन, उष्णोत्स

ऊर्जा का रूपान्तरण

ऊर्जा के रूपान्तरण में तीन ऊर्जा: इन्पुट उर्जा, आउटपुट ऊर्जा एवं नष्ट ऊर्जा (ऊर्जा क्षति) किसी संकाय (सिस्टम) की कार्य करने की क्षमता को उर्जा कहते हैं। किसी संकाय पर काम करके या उसके द्वारा काम कराकर ही उसकी उर्जा को बदला जा सकता है क्योंकि उर्जा वह राशि है जो संरक्षित (कंजर्व्ड) होती है। उर्जा तरह-तरह के रूपों में पायी जाती है और भिन्न-भिन्न प्रकार की उर्जा का परस्पर परिवर्तन किया जा सकता है। किसी प्रकार की उर्जा कहीं उपयोगी है तो किसी प्रकार की कहीं और। उदाहरण के लिये कोयले में संचित रासायनिक उर्जा को जलाकर उससे उष्मीय उर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस उष्मा से पानी को उबालकर वाष्प बनाकर उससे वाष्प टरबाइन चलाकर इसे यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इस टरबाइन से कोई विद्युत जनित्र चलाकर इस यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदला जा सकता है। इस विद्युत उर्जा से प्रकाश बल्ब जलाकर प्रकाश उर्जा प्राप्त की जा सकती है। .

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ऊष्मातापी

हनीवेल का स्तुत्य "द राउंड" मॉडल T87 थर्मोस्टैट, जिनमें से एक स्मिथसोनियन में है। लक्स उत्पाद का मॉडल TX900TS टच स्क्रीन थर्मोस्टैट. भवनों के लिए द्विधात्विक थर्मोस्टैट ऊष्मातापी किसी तंत्र के तापमान को नियमित बनाये रखने का एक उपकरण है ताकि तंत्र का तापमान एक वांछित निश्चित बिंदु के आसपास बना रहे। यह नाम ग्रीक शब्दों थर्मो यानि की "गर्म" और स्टेटोस यानि की "एक नियत" से लिया गया है। ऊष्मातापी, यह कार्य तापक और शीतलक उपकरणों को चालू या बंद, या सही तापमान बनाये रखने के लिए ऊष्मा हस्तांतरण द्रव के प्रवाह को आवश्यकतानुसार नियमित करके करता है। एक ऊष्मातापी एक तापक और शीतलक तंत्र की एक नियंत्रण इकाई या एक हीटर या वातानुकूलक का एक घटक हिस्सा हो सकता है। ऊष्मातापी कई तरह से बनाया जा सकता है और तापमान को मापने के लिए विभिन्न प्रकार के संवेदकों का उपयोग कर सकता है। तब संवेदक का निर्गम तापक और शीतलक उपकरण को नियंत्रित करता है। पहला विद्युत कक्ष ऊष्मातापी 1883 में वारेन एस.

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टर्बाइन

सिमेन्स (Siemens) की टर्बाइन जिसका आवरण खोल दिया गया है टर्बाइन एक घूर्णी (rotary) इंजन है जो किसी तरल की गतिज या/तथा स्थितिज उर्जा को ग्रहण करके स्वयं घूमती है और अपने शॉफ्ट पर लगे अन्य यन्त्रों (जैसे विद्युत जनित्र) को घुमाती है। पवन चक्की (विंड मिल्) और जल चक्की (वाटर ह्वील) आदि टर्बाइन के प्रारम्भिक रूप हैं। विद्युत शक्ति के उत्पादन में टर्बाइनों का अत्यधिक महत्व है। गैस, भाप और जल से जलनेवाले टरबाइन एक दूसरे से भिन्न होते हैं। गैस कम्प्रेशर या पम्प भी टर्बाइन जैसा ही होता है पर यह टर्बाइन के उल्टा कार्य करता है। .

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टर्बोजनित्र

टर्बोजनित्र या टर्बोजनरेटर (turbo generator) टरबाइन और जनित्र का सम्मिलित रूप है जिसमें टरबाइन, जनित्र से सीधे जुड़ा होता है। विश्व की अधिकांश विद्युत ऊर्जा विशाल भापचालित टर्बोजनित्रों के द्वारा ही पैदा की जाती है। श्रेणी:विद्युत मशीन.

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ढलवां लोहा

आयरन-सेमेंटाईट मेटा-स्टेबल डायग्राम. ढलवां लोहा (कास्ट आयरन) आम तौर पर धूसर रंग के लोहे को कहा जाता है लेकिन इसके साथ-साथ यह एक बड़े पुंज में लौह अयस्कों का मिश्रण भी है, जो एक गलनक्रांतिक तरीके से ठोस बन जाता है। किसी भी धातु की खंडित सतह को देखकर उसके मिश्र धातु होने का पता लगाया जा सकता है। सफेद ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित सफ़ेद सतह के आधार पर किया गया है क्योंकि इसमें कार्बाइड सम्बन्धी अशुद्धियां पाई जाती हैं जिसकी वजह से इसमें सीधी दरार पड़ती है। धूसर ढलवां लोहे का नामकरण इसकी खंडित धूसर सतह के आधार पर किया गया है, इसके खंडित होने का कारण यह है कि ग्रेफाइट की परतें पदार्थ के टूटने के दौरान पड़ने वाली दरार को विक्षेपित कर देती हैं जिससे अनगिनत नई दरारें पड़ने लगती हैं। मिश्र (अयस्क) धातु में पाए जाने वाले पदार्थों के वजन (wt%) में से 95% से भी अधिक लोहा (Fe) होता है जबकि अन्य मुख्य तत्वों में कार्बन (C) और सिलिकॉन (Si) शामिल हैं। ढलवां लोहे में कार्बन की मात्रा 2.1 से 4 wt% होती है। ढलवां लोहे में सिलिकॉन की पर्याप्त राशि, सामान्य रूप से 1 से 3 wt% होती है और इसके फलस्वरूप इन धातुओं को त्रिगुट Fe-C-Si (लोहा-कार्बन-सिलिकन) धातु माना जाना चाहिए। तथापि ढलवां लोहा घनीकरण का सिद्धांत द्विआधारी लोहा-कार्बन चरण आरेख से समझ आता है, जहां गलनक्रांतिक बिंदु और 4.3 wt% कार्बन के 4.3 % वजन (4.3 wt%) पर है। चूंकि ढलवां लोहे की संरचना का अनुमान इस तथ्य से ही लग जता है कि, इसका गलनांक (पिघलने का तापमान) शुद्ध लोहे के गलनांक से लगभग कम है। पिटवां ढलवां लोहे को छोड़कर, बाकि ढलवां लोहे भंगुर होते है। निम्न गलनांक (कम पिघलने वाले तापमान), अच्छी द्रवता, आकार देने की योग्यता, इच्छित आकार देने की उत्कृष्ट योग्यता, विरूपण करने के लिए प्रतिरोध और जीर्ण होने के प्रतिरोध के साथ ढलवां लोहा अनुप्रयोगों की व्यापक श्रेणी के साथ इंजीनियरिंग सामग्री बन गए हैं, पाइप और मशीनों और मोटर वाहन उद्योग के कुछ हिस्सों, जैसे सिलेंडर हेड्स (उपयोग में गिरावट), सिलेंडर ब्लॉक और गियरबॉक्स के डब्बे (केसेज)(उपयोग में गिरावट) में इसका प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीकरण (जंग) के द्वारा क्षय होने और कमजोर हो जाने में प्रतिरोधी है। .

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थर्मल प्रदूषण

पोत्रेरो जेनेरेटिंग स्टेशन सेन फ्रांसिस्को खाड़ी में गर्म पानी निस्सरण करते हुए. सेलना, रॉबर्ट (2009). "पावर प्लांट का मछली मारने से रोकने की कोई योजना नहीं है।" सेन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल, 2 जनवरी 2009. थर्मल प्रदूषण किसी भी प्रकार के प्रदूषण की प्रक्रिया को कहा जायेगा जिससे व्यापक रूप में पानी के प्राकृतिक तापमान में बदलाव होता हो। थर्मल प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण बिजली संयंत्रों तथा औद्योगिक विनिर्माताओं द्वारा शीतलक पानी का प्रयोग करने से होता है। जब शीतलक हेतु प्रयोग किया गया पानी पुनः प्राकृतिक पर्यावरण में आता है तो उसका तापमान अधिक होता है, तापमान में बदलाव के कारण (क.) ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है (ख.) पारिस्थिथिकी तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है। नगरीय जल बहाव-- सड़कों और गाड़ियों को रखने के स्थानों से बहे पानी, ये सभी तापमान के बढ़ने के कारण हो सकते हैं। जब एक बिजली संयंत्र मरम्मत अथवा अन्य कारणों से खुलता और बंद होता है, तो इसकी वजह से मछलियां और अन्य तरह के जीवाणु जो की एक विशेष प्रकार के तापमान के आदि होते हैं, अचानक तापमान में हुई बढ़ोतरी से मर जाते हैं, इसे 'थर्मल झटका' कहा जाता है। थर्मल प्रदूषण का एक और कारण जलाशय तालाब/टंकी द्वारा बहुत ही ज्यादा ठन्डे पानी को उष्ण नदियों में बहाने से होता है। .

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नाभिकीय ऊर्जा

इकाटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र, एक दबावयुक्त जल रिएक्टर जो समुद्र के साथ माध्यमिक शीतलक विनिमय द्वारा ठंडा करता है। सुसक्युहाना वाष्प विद्युत् केंद्र, एक उबलता जल रिएक्टर. रिएक्टर, शीतलक टावरों के सामने की ओर आयताकार रोकथाम इमारतों के अंदर स्थित हैं। परमाणु ऊर्जा चालित तीन जहाज, (ऊपर से नीचे) परमाणु क्रूजर USS बेनब्रिज और USS लोंग ब्रिज, USS इंटरप्राइज़ के साथ जो 1964 में पहला परमाणु संचालित विमान वाहक. चालक दल के सदस्य, उड़ान डेक पर आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता सूत्र को लिख रहे हैं E.

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परिवहन की विधि

परिवहन की विधि (या परिवहन के साधन या परिवहन प्रणाली या परिवहन का तरीका या परिवहन के रूप) वह शब्द हैं जो वस्तुत: परिवहन के अलग-अलग तरीकों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। सबसे प्रमुख परिवहन के साधन हैं हवाई परिवहन, रेल परिवहन सड़क परिवहन और जल परिवहन, लेकिन अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं जिनमें पाइप लाइन, केबल परिवहन, अंतरिक्ष परिवहन और ऑफ-रोड परिवहन भी शामिल हैं। मानव संचालित परिवहन और पशु चालित परिवहन अपने तरीके का परिवहन है, लेकिन यह सामान्य रूप से अन्य श्रेणियों में आते हैं। सभी परिवहन में कुछ माल परिवहन के लिए उपयुक्त हैं और कुछ लोगों के परिवहन के लिए उपयुक्त हैं। प्रत्येक परिवहन की विधि को मौलिक रूप से विभिन्न तकनीकी समाधान और कुछ अलग वातावरण की आवश्यकता होती है। प्रत्येक विधी की अपनी बुनियादी सुविधाएं, वाहन, कार्य और अक्सर विभिन्न विनियमन हैं। जो परिवहन एक से अधिक मोड का उपयोग करते हैं उन्हें इंटरमोडल के रूप में वर्णित किया जा सकता है। .

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फ़ूमारोल

फ़ूमारोल (fumarole) पृथ्वी की भूपर्पटी (क्रस्ट, सबसे ऊपरी परत में खुले हुए एक मुख को कहते हैं जिस में से भाप और गैसें (जैसे कि कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड व हाइड्रोजन सल्फाइड) निकलते रहते हैं। यह अक्सर ज्वालामुखियों के पास मिलते हैं। .

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भात

थाईलैण्ड का भात चावल को उबालकर या भाप द्वारा पकाने से भात (Cooked rice) बनता है। भारत सहित अनेक देशों में यह प्रमुखता से खाया जाता है। .

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भाप टरबाइन

आधुनिक भाप-टरबाइन और विद्युत-जनित्र प्रणाली भाप टरबाइन (steam turbine) वह यांत्रिक युक्ति है जो दाबित भाप से ऊष्मीय ऊर्जा निकालकर इसे यांत्रिक कार्य में बदलती है। आधुनिक रूप में इसका आविष्कार सर चार्ल्स पैर्सन्स ने 1884 में किया था। भाप टरबाइन (Steam Turbine) एक मूलचालक (prime mover) है, जिसमें भाप की उष्मा-ऊर्जा को गतिज उर्जा में परिवर्तित कर, उच्च गतिशील भाप को एक घूर्णक (rotor) पर बँधे हुए बहुत से फलकों पर टकराया जाता है, जिससे फलक परिभ्रमण करते हैं एवं इससे कार्य होता है। अन्योन्यगतिक (reciprocating) भाप इंजन में भाप की स्थैतिक (statical) दाब द्वारा पिस्टन पर कार्य किया जाता है। यद्यपि इंजन में भाप पिस्टन के साथ चलती है, फिर भी इंजन की क्रिया में भाप की गतिज उर्जा का प्रभाव नगणय है। भाप टरबाइन में भाप इंजन की अपेक्षा उच्चतर गति मिल सकती है और गतिसीमा भी बड़ी हा सकती है। टरबाइन के पुर्जों का संतुलन अच्छा रहता है। भाप की समान मात्रा एवं समान अवस्था में भाप टरबाइन भाप इंजन से अधिक शक्ति पैदा कर सकता है। भाप इंजन से कुछ वर्ष काम लेने के बाद भाप की खपत बढ़ जाती है, परंतु टरबाइन में ऐसी अवस्था नहीं आती पृथ्वी पर के सभी मूल चालकों में भाप टरबाइन सबसे अधिक टिकाऊ होता है। टरबाइन से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि इससे घूर्णक गति सीधे प्राप्त होती है, जबकि भाप इंजन में अन्योन्यगति से घूर्णक गति प्राप्त करने के लिए अलग से उपादान का व्यवहर करना पड़ता है। वाष्पित्र (बॉयलर) में भाप का जनन उच्च दाब एवं अधिताप (superheat temperature) पर होता है। जब यह भाप टरबाइन के पास पहुँचती है, उस समय इसमें अधिक मात्रा में उष्मा ऊर्जा होती है और इसकी दाब भी इतनी अधिक होती है कि यह निम्नदाब तक प्रसारित हो सकती है। परंतु उस समय इसकी गतिज उर्जा नगण्य होती है। अत: भाप कुछ कार्य कर सके इसके पहले इसकी उष्मा ऊर्जा को गतिज उर्जा में परिवर्तित किया जाता है। यह परिवर्तन, अच्छी तरह अभिकल्पित उपकरण में, भाप को विस्तारित करने से होता है। भाप का प्रसार या तो एक ही क्रिया में पूर्ण किया जाता है, या विभिन्न क्रियाओं में। इसका अर्थ यह होता है कि उष्मा ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए बहुत से स्थिर उपकरण व्यवहार में लाए जाते हैं और प्राय: दो स्थिर उपकरणों के बीच एक गतिमान उपकरण लगा रहता है। स्थिर उपकरण में प्राप्त गतिज ऊर्जा को उसके बाद बँधे हुए गतिमान उपकरण के ऊपर कार्य करने के लिये लगाया जाता है। .

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भाप आसवन

date.

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भारत में कोयला-खनन

भारत में कोयले का उत्पादन भारत में कोयले के खनन का इतिहास बहुत पुराना है। ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने १७७४ में दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे पर रानीगंज में कोयले का वाणिज्यिक खनन आरम्भ किया। इसके बाद लगभग एक शताब्दी तक खनन का कार्य अपेक्षाकृत धीमी गति से चलता रहा क्योंकि कोयले की मांग बहुत कम थी। किन्तु १८५३ में भाप से चलने वाली गाड़ियों के आरम्भ होने से कोयले की मांग बढ़ गयी और खनन को प्रोत्साहन मिला। इसके बाद कोयले का उत्पादन लगभग १ मिलियन मेट्रिक टन प्रति वर्ष हो गया। १९वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में उत्पादन 6.12 मिलियन टन वार्षिक हो गया। और १९२० तक १८ मिलियन मेट्रिक टन वार्षिक। प्रथम विश्वयुद्ध के समय उत्पादन में सहसा वृद्धि हुई किन्तु १९३० के आरम्भिक दशक में फिर से उत्पादन में कमी आ गयी। १९४२ तक उत्पादन २९ मिलियन मेट्रिक टन प्रतिवर्ष तथा १९४६ तक ३० मिलियन मेट्रिक टन हो गया। .

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मुद्रण का इतिहास

सामान्यत: मुद्रण का अर्थ छपाई से है, जो कागज, कपड़ा, प्लास्टिक, टाट इत्यादि पर हो सकता है। डाकघरों में लिफाफों, पोस्टकार्डों व रजिस्टर्ड चिट्ठियों पर लगने वाली मुहर को भी 'मुद्रण' कहते हैं। प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान चार्ल्स डिक्नस ने मुद्रण की महत्ता को बताते हुए कहा है कि स्वतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व को बनाए रखने में मुद्रण महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रारंभिक युग में मुद्रण एक कला था, लेकिन आधुनिक युग में पूर्णतया तकनीकी आधारित हो गया है। मुद्रण कला पत्रकारिता के क्षेत्र में पुष्पित, पल्लवित, विकसित तथा तकनीकी के रूप में परिवर्तीत हुई है। वैदिक सिद्धांत के अनुसार- परमेश्वर की इच्छा से ब्रह्माण्ड की रचना और जीवों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद 'ध्वनि' प्रकट हुआ। ध्वनि से 'अक्षर' तथा अक्षरों से च्शब्दज् बनें। शब्दों के योग को 'वाक्य' कहा गया। इसके बाद पिता से पुत्र और गुरू से शिष्य तक विचारों, भावनाओं, मतों व जानकारियों का आदान-प्रदान होने लगा। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सुनने की क्रिया को श्रुति और समझने को प्रक्रिया को स्मृति का नाम दिया। ज्ञान के प्रसार का यह तरीका असीमित तथा असंतोषजनक था, जिसके कारण मानव ने अपने पूर्वजों और गुरूजनों के श्रेष्ठ विचारों, मतों व जानकारियों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की। इसके लिए लिपि का आविष्कार किया तथा पत्थरों व वृक्षों की छालों पर खोदकर लिखने लगा। इस तकनीकी से भी विचारों को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखना संभव नहीं था। इसके बाद लकड़ी को नुकिला छीलकर ताड़पत्रों और भोजपत्रों पर लिखने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। प्राचीन काल के अनेक ग्रंथ भोजपत्रों पर लिखे मिले हैं। सन् १०५ ई. में चीनी नागरिक टस्-त्साई लून ने कपस एवं सलमल की सहयता से कागज का आविष्कार हुआ। सन् ७१२ ई. में चीन में एक सीमाबद्ध एवं स्पष्ट ब्लाक प्रिंटिंग की शुरूआत हुई। इसके लिए लकड़ी का ब्लाक बनाया गया। चीन में ही सन् ६५० ई. में हीरक सूत्र नामक संसार की पहली मुद्रित पुस्तक प्रकाशित की गयी। सन् १०४१ ई. में चीन के पाई शेंग नामक व्यक्ति ने चीनी मिट्टी की मदद से अक्षरों को तैयार किया। इन अक्षरों को आधुनिक टाइपों का आदि रूप माना जा सकता है। चीन में ही दुनिया का पहला मुद्रण स्थापित हुआ, जिसमें लकड़ी के टाइपों का प्रयोग किया गया था। टाइपों के ऊपर स्याही जैसे पदार्थ को पोतकर कागज के ऊपर दबाकर छपाई का काम किया जाता था। इस प्रकार, मुद्रण के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। यह कला यूरोप में चीन से गई अथवा वहां स्वतंत्र रूप से विकसित हुयी, इसके संदर्भ में कोई अधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक कागज बनाने की कला चीन से अरब देशों में तथा वहां से यूरोप में पहुंची होगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक १४वीं-१५वीं सदी के दौरान यूरोप में मुद्रण-कला का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ। उस समय यूरोप में बड़े-बड़े चित्रकार होते थे। उनके चित्रों की स्वतंत्र प्रतिक्रिया को तैयार करना कठिन कार्य था। इसे शीघ्रतापूर्वक नहीं किया जा सकता था। अत: लकड़ी अथवा धातु की चादरों पर चित्रों को उकेर कर ठप्पा बनाया जाने लगा, जिस पर स्याही लगाकर पूर्वोक्त रीति से ठप्पे को दो तख्तों के बीच दबाकर उनके चित्रों की प्रतियां तैयार की जाती थी। इस तरह के अक्षरों की छपाई का काम आसान नहीं था। अक्षरों को उकेर कर उनके छप्पे तैयार करना बड़ा ही मुश्किल काम था। उसमें खर्च भी बहुत ज्यादा पड़ता था। फिर भी उसकी छपाई अच्छी नहीं होती थी। इन असुविधाओं ने जर्मनी के लरेंस जेंसजोन को छुट्टे टाइप बनाने की प्रेरणा दी। इन टाइपों का प्रयोग सर्वप्रथम सन् १४०० ई. में यूरोप में हुआ। जर्मनी के जॉन गुटेनबर्ग ने सन् १४४० ई. में ऐसे टाइपों का आविष्कार किया, जो बदल-बदलकर विभिन्न सामग्री को बहुसंख्या में मुद्रित कर सकता था। इस प्रकार के टाइपों को पुनरावत्र्तक छापे (रिपीटेबिल प्रिण्ट) के वर्ण कहते हैं। इसके फलस्वरूप बहुसंख्यक जनता तक बिना रूकावट के समाचार और मतों को पहुंचाने की सुविधा मिली। इस सुविधा को कायम रखने के लिए बराबर तत्पर रहने का उत्तरदायित्व लेखकों और पत्रकारों पर पड़ा। जॉन गुटेनबर्ग ने ही सन् १४५४-५५ ई. में दुनिया का पहला छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) लगाया तथा सन् १४५६ ई. में बाइबिल की ३०० प्रतियों को प्रकाशित कर पेरिस भेजा। इस पुस्तक की मुद्रण तिथि १४ अगस्त १४५६ निर्धारित की गई है। जॉन गुटेनबर्ग के छापाखाने से एक बार में ६०० प्रतियां तैयार की जा सकती थी। परिणामत: ५०-६० वर्षों के अंदर यूरोप में करीब दो करोड़ पुस्तकें प्रिंट हो गयी थी। इस प्रकार, मुद्रण कला जर्मनी से आरंभ होकर यूरोपीय देशों में फैल गयी। कोलने, आगजवर्ग बेसह, टोम, पेनिस, एन्टवर्ण, पेरिस आदि में मुद्रण के प्रमुख केंद्र बने। सन् १४७५ ई. में सर विलियम केकस्टन के प्रयासों के चलते ब्रिटेन का पहला प्रेस स्थापित हुआ। ब्रिटेन में राजनैतिक और धार्मिक अशांति के कारण छापाखाने की सुविधा सरकार के नियंत्रण में थी। इसे स्वतंत्र रूप से स्थापित करने के लिए सरकार से विधिवत आज्ञा लेना बड़ा ही कठिन कार्य था। पुर्तगाल में इसकी शुरूआत सन् १५४४ ई. में हुई। मुद्रण के इतिहास की पड़ताल से स्पष्ट है कि छापाखाना का विकास धार्मिक-क्रांति के दौर में हुआ। यह सुविधा मिलने के बाद धार्मिक ग्रंथ बड़े ही आसानी से जन-सामान्य तक पहुंचने लगे। इन धार्मिक ग्रंथों का विभिन्न देशों की भाषाओं में अनुवाद करके प्रकाशित होने लगे। पूर्तगाली धर्म प्रचार के लिए मुद्रण तकनीकी को सन् १५५६ ई. में गोवा लाये और धर्मग्रंथों को प्रकाशित करने लगे। सन् १५६१ ई. में गोवा में प्रकाशित बाइबिल पुस्तक की एक प्रति आज भी न्यूयार्क लाइब्रेरी में सुरक्षित है। इससे उत्साहित होकर भारतीयों ने भी अपने धर्मग्रंथों को प्रकाशित करने का साहस दिखलाया। भीम जी पारेख प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने दीव में सन् १६७० ई. में एक उद्योग के रूप में प्रेस शुरू किया। सन् १६३८ ई. में पादरी जेसे ग्लोभरले ने एक छापाखाना जहाज में लादकर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उनके सहयोगी म्याश्यु और रिटेफेन डे ने उक्त छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) को स्थापित किया। सन् १७९८ ई. में लोहे के प्रेस का आविष्कार हुआ, जिसमें एक लिवर के द्वारा अधिक संख्या में प्रतियां प्रकाशित करने की सुविधा थी। सन् १८११ ई. के आस-पास गोल घूमने वाले सिलेण्डर चलाने के लिए भाप की शक्ति का इस्तेमाल होने लगा, जिसे आजकल रोटरी प्रेस कहा जाता है। हालांकि इसका पूरी तरह से विकास सन् १८४८ ई. के आस-पास हुआ। १९वीं सदी के अंत तक बिजली संचालित प्रेस का उपयोग होने लगा, जिसके चलते न्यूयार्क टाइम्स के १२ पेजों की ९६ हजार प्रतियों का प्रकाशन एक घंटे में संभव हो सका। सन् १८९० ई. में लिनोटाइप का आविष्कार हुआ, जिसमें टाइपराइटर मशीन की तरह से अक्षरों के सेट करने की सुविधा थी। सन् १८९० ई. तक अमेरिका समेत कई देशों में रंग-बिरंगे ब्लॉक अखबार छपने लगे। सन् १९०० ई. तक बिजली संचालित रोटरी प्रेस, लिनोटाइप की सुविधा और रंग-बिरंगे चित्रों को छापने की सुविधा, फोटोग्राफी को छापने की व्यवस्था होने से सचित्र समाचार पत्र पाठको तक पहुंचने लगे। .

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युद्धपोत

विलियम वैन डे वेल्डे द यंगर द्वारा कैनन शॉट 17 वीं सदी के लाइन के डच जहाज़ को प्रदशित कर रहा है युद्धपोत एक ऐसा जलयान है जिसका निर्माण युद्ध करने के लिए किया गया हो। युद्धपोतों का निर्माण आमतौर पर व्यापारिक जलयानों से पूर्णतया भिन्न रूप से होता है। सशस्त्र होने के साथ ही साथ युद्धपोत की रचना उसको होने वाली क्षति को सहने के लिए भी की जाती है, साथ ही वे व्यापारिक जलयानों की तुलना में अधिक तेज तथा आसानी से मुड़ सकने वाले होते हैं। एक व्यापारिक जलयान के विपरीत, एक युद्धपोत आमतौर पर केवल अपने स्वयं के चालक दल के लिए हथियार, गोला बारूद, तथा आपूर्ति को ढोता है (न कि व्यापारिक माल).

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संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण)

फ्रिज की संघनन कुण्डली संघनित्र (condenser) एक यांत्रिक युक्ति है जो गैस या वाष्प को ठण्डा करके द्रव में बदल देती है। संघनित्र कई जगह प्रयोग किये जाते हैं। उर्जा संयत्रों में इनका प्रयोग टर्बाइन से निकलने वाले भाप को संघनित करने के लिये किया जाता है। शीतलन संयंत्रों (refrigeration plants) में अमोनिया एवं फ्लोरीनेटड हाइड्रोकार्बनों जैसे शीतलक वाष्पों को संघनित करने के काम आता है। पेट्रोलियम एवं अन्य रासायनिक उद्योगों में हाइड्रोकार्बनों एवं अन्य रसायनों के वाष्पों को संघनित करने के लिये काम में लिया जाता है। .

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स्टीमर

फीनिश स्टीमर, फिनलैंड स्टीमर या स्टीमबोट एक भाप से चलने वाला पानी का जहाज होता है, जिसमें प्रोपल्ज़न का प्राथमिक तरीका वाष्प-शक्ति होती है। स्टीमर को प्रायः झीलों, नदियों आदि में परिवहन हेतु प्रयोग किया जाता है, किंतु बड़े स्टीमरों को समुद्र में भी प्रयोग किया जा सकता है। Image:SteamboatEnglishPatent.gif|1736 steamboat English patent.

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हरी चाय

गायवान में पकी हरी चाय की पत्तियाँ किण्वन की विभिन्न श्रेणियों में चाय कैमेलिया साइनेसिस का पौधा हरी चाय (अंग्रेज़ी: ग्रीन टी) एक प्रकार की चाय होती है, जो कैमेलिया साइनेन्सिस नामक पौधे की पत्तियों से बनायी जाती है। इसके बनाने की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण न्यूनतम होता है। इसका उद्गम चीन में हुआ था और आगे चलकर एशिया में जापान से मध्य-पूर्व की कई संस्कृतियों से संबंधित रही। इसके सेवन के काफी लाभ होते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। ६ जनवरी २०१० प्रतिदिन कम से कम आठ कप ग्रीन टी हृदय रोग होने की संभावनाओं को कम करने कोलेस्ट्राल को कम करने के साथ ही शरीर के वजन को भी नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होती है। प्रायः लोग ग्रीन टी के बारे में जानते हैं लेकिन इसकी उचित मात्र न ले पाने की वजह से उन्हें उनका पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। हरी चाय का फ्लेवर ताज़गी से भरपूर और हल्का होता है तथा स्वाद सामान्य चाय से अलग होता है। इसकी कुछ किस्में हल्की मिठास लिए होती है, जिसे पसंद के अनुसार दूध और शक्कर के साथ बनाया जा सकता है।। दैनिक भास्कर। १ मार्च २००८ ग्रीन टी बनाने के लिए एक प्याले में २-४ ग्राम चाय पड़ती है। पानी को पूरी तरह उबलने के बाद २-३ मिनट के लिए छोड़ देते हैं। प्याले में रखी चाय पर गर्म पानी डालकर फिर तीन मिनट छोड़ दें। इसे कुछ देर और ठंडा होने पर सेवन करते हैं। विभिन्न ब्रांड के अनुसार एक दिन में दो से तीन कप ग्रीन टी लाभदायक होती है। इसका अर्थ है कि एक दिन में ३००-४०० मिलीग्राम ग्रीन टी पर्याप्त होती है। अब तक ग्रीन टी का सिर्फ एक ही नुकसान ज्ञात हुआ है, अनिद्रा यानी नींद कम आने की बीमारी। इसका कारण चाय में उपस्थित कैफीन है। हालांकि इसमें कॉफी के मुकाबले कम कैफीन होता है। .

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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जलवाष्प

जलवाष्प अथवा जल वाष्प पानी की गैसीय अवस्था है और अन्य अवस्थाओं के विपरीत अदृश्य होती है। पृथ्वी के वायुमण्डल में इसकी मात्रा लगातार परिवर्तनशील होती है। द्रव अवस्था में स्थित पानी से जलवाष्प का निर्माण क्वथन अथवा वाष्पीकरण के द्वारा होता रहता है और संघनन द्वारा जलवाष्प द्रव अवस्था में भी परिवर्तित होती रहती है। बर्फ़ से इसका निर्माण ऊर्ध्वपातन की प्रक्रिया द्वारा होता है। .

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जलगैस

जलगैस प्रतिक्रिया का समीकरण। मोटे अक्षरजलगैस (Water gas) एक कृत्रिम गैस (synthesis gas) है। इसमें कार्बन मोनोआक्साइड और हाइड्रोजन मिश्रित होती है। कोयला गैस के साथ मिलाकर जलगैस ईंधन में काम आती है। इससे बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन तैयार होती है और पेट्रोलियम तथा मेथिल ऐलकोहल का संश्लेषण भी होता है। यह बहुत उपयोगी है किन्तु इसके प्रयोग में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि जलगैस कार्बन मोनोक्साइड के कारण प्रबल विषाक्त होती है। कोई गंध न हेने के कारण विष की भयंकरता बढ़ जाती है। इसकी ज्वाला बड़ी गरम होती है। ताप 1,600 डिग्री सें.

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वाष्प

किसी पदार्थ के क्रांतिक बिन्दु से कम ताप पर उस पदार्थ के गैस प्रावस्था को उस पदार्थ का वाष्प (vapor) कहते हैं। इसका अर्थ है कि वाष्प का दाब बढ़ाकर, बिना ताप कम किये ही, उसे द्रव या ठोस में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिये, पानी का क्रांतिक ताप 374 °C (647 K) है। इसका मतलब है कि इससे अधिक ताप पर किसी भी दशा में पानी द्रव अवस्था में नहीं रह सकता। अतः वायुमण्डल में, सामान्य तापों पर पानी की वाष्प द्रव में बदल जायेगी यदि इसका आंशिक दाब पर्याप्त बढ़ा दिया जाय। वाष्प और द्रव (या ठोस) का सह-अस्तित्व सम्भव है। .

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ग्लीसरीन

ग्लिसरिन या ग्लीसरॉल (glycerin or glycerine or Glycerol / C H2 O H. C H O H C H2 O H) एक कार्बनिक यौगिक है। यह तेल और वसा में पाया जाता है। यह रंगहीन, गंधहीन एवं श्यान द्रव है जिसका प्रयोग औषधि निर्माण में बहुतायत से होता है। ग्लिसरॉल में तीन जलप्रेमी (hydrophilic) हाइडॉक्सिल समूह होते हैं जो इसकी जल में विलेयता के लिये उत्तरदायी हैं तथा इन्हीं हाइड्रॉक्सिल समूहों के कारण ही यह यह नमी-शोषक (hygroscopic) होता है। ग्लिसरॉल बहुत से लिपिड्स का मुख्य घटक है। यह स्वाद में मीठा-मीठा एवं कम विषाक्तता (toxicity) वाला होता है। .

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आटोक्लेव

आटोक्लेव एक ऐसा साधन है, जो उपकरणों और सामग्रियों को उनके भार और अन्तर्वस्तु के आधार पर, विशेषतः 15 से 20 मिनट तक, 121 °C या अधिक के उच्च दबाव वाले वाष्प के अधीन रख कर, उन्हें निष्कीटित करता है। 1879 में चार्ल्स चेम्बरलैंड द्वारा इसका आविष्कार किया गया, जबकि स्टीम डाईजेस्टर नामक इसके पुरोगामी को डेनिस पापिन ने 1679 में बनाया था। इसके नाम की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द aut और लैटिन शब्द clavis अर्थात् कुंजी से हुई है जिसका अर्थ है - एक स्व-अवरोधी उपकरण.

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आसुत जल

मैड्रिड में रियल फ़ार्मेसिया में आसवित पानी की बोतल. आसुत जल वह जल है जिसकी अनेक अशुद्धियों को आसवन के माध्यम से हटा दिया गया हो। आसवन में पानी को उबालकर उसकी भाप को एक साफ़ कंटेनर में संघनित किया जाता है। यह पीने के लिए उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि इसमें जीवन के लिए आवश्यक लवण अनुपस्थित होते है। इसका उपयोग चिकित्सीय कार्यों जैसे दवाइयाँ बनाने, शल्य उपकरणो आदि को धोने में किया जाता हैं। .

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क्रेन

बाउमा (Bauma) २००७: क्रेनें ही क्रेनें आधुनिक क्राउलर डेरिक क्रेन क्रेन (crane) भारी चीजों को उठाने की मशीन है। क्रेन में एक या अधिक सरल मशीनें लगी होतीं हैं जो वस्तुओं को उठाने के लिये यांत्रिक लाभ प्रदान करतीं हैं ताकि वे वस्तुएं भी उठायी जा सकें जो सामान्य मानव के उठाने की क्षमता के परे हैं। प्राय: यातायात उद्योग में क्रेनों का बहुत उपयोग होता है। इसी प्रकार निर्माण उद्योगों में भी भारी भागों को असेम्बल करने के लिये क्रेन से उठाना पड़ता है। .

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कॉफ़ी

कॉफ़ी का प्यालाकॉफ़ी (अरब. قهوة क़हवा उत्तेजक पेय पदार्थ) — एक लोकप्रिय पेय पदार्थ (साधारणतया गर्म) है, जो कॉफ़ी के पेड़ के भुने हुए बीजों से बनाया जाता है। कॉफ़ी में कैफ़ीन होने के कारण वह हल्के उद्दीपक सा प्रभाव डालती है। इसके विषय में वैज्ञानिकों का कोई निश्चित मत नहीं हैं। जहाँ एक ओर कहा जाता है कि कॉफ़ी से शुक्राणुओं की सक्रियता बढ़ती है वहीं दूसरी ओर कुछ अध्ययनों में यह भी पता चला है कि अधिक कॉफ़ी पीने से मतिभ्रम भी हो सकता है। .

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अतितप्त भाप

जल के क्वथनांक से अधिक तापमान वाली भाप अतितप्त भाप (Superheated steam) कहलाती है। .

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अपशिष्ट प्रबंधन

बर्कशायर, इंग्लैंड में पहियों वाला कचरे का डब्बा अपशिष्ट प्रबंधन परिवहन (transport), संसाधन (processing), पुनर्चक्रण (recycling) या अपशिष्ट (waste) के काम में प्रयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह है। यह शब्द आम तौर पर उस सामग्री को इंगित करता है जो मानव गतिविधियों से बनती हैं और ये इसलिए किया जाता है ताकि मानव पर उस के स्वस्थ, पर्यावरण (environment) या सौंदर्यशास्त्र.

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उष्णोत्स

उष्णोत्स (geyser, गीज़र या गाइज़र दोनों स्वीकार्य) एक प्रकार का पानी का चश्मा होता है जिसमें समय-समय पर पानी ज़ोरों से धरती से शक्तिशाली फव्वारे की भांति फूटता है और साथ में भाप निकलती है। यह पृथ्वी पर कम स्थानों में ही मिलते हैं क्योंकि इनके निर्माण के लिए विशेष भूतापीय व अन्य भूवैज्ञानिक परिस्थितियों की ज़रूरत होती है। .

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