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बेतवा नदी

सूची बेतवा नदी

'''बेतवा''', यमुना की सहायक नदी है। बेतवा भारत के मध्य प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह यमुना की सहायक नदी है। यह मध्य-प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, ललितपुर आदि जिलों में होकर बहती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसकी सम्पूर्ण लम्बाई 480 किलोमीटर है। यह बुंदेलखण्ड पठार की सबसे लम्बी नदी है। यह हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसके किनारे सांची और विदिशा के प्रसिद्ध व सांस्कृतिक नगर स्थित हैं। भारतीय नौसेना ने बैटवा नदी के सम्मान में एक फ्रिगेट्स आईएनएस बेतवा नाम दिया है। .

21 संबंधों: चंदेरी, टीकमगढ़, तात्या टोपे, धसान नदी, बीना नदी, भारत की नदियों की सूची, भारत की नदी प्रणालियाँ, भोजपुर, मध्य प्रदेश, भोजेश्वर मन्दिर, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश का पर्यटन, मध्य प्रदेश का इतिहास, माच, यमुना नदी, विदिशा का इतिहास, विन्ध्याचल पर्वत शृंखला, गंगा की सहायक नदियाँ, कलियासोत डेम, केशव, अपवाह तन्त्र, उत्तर प्रदेश

चंदेरी

चंदेरी का विहंगम दृष्य मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित चंदेरी एक छोटा लेकिन ऐतिहासिक नगर है। मालवा और बुन्देलखंड की सीमा पर बसा यह नगर शिवपुरी से १२७ किलोमीटर, ललितपुर से ३७ किलोमीटर और ईसागढ़ से लगभग ४५ किलोमीटर की दूरी पर है। बेतवा नदी के पास बसा चंदेरी पहाड़ी, झीलों और वनों से घिरा एक शांत नगर है, जहां सुकून से कुछ समय गुजारने के लिए लोग आते हैं। बुन्देल राजपूतों और मालवा के सुल्तानों द्वारा बनवाई गई अनेक इमारतें यहां देखी जा सकती है। इस ऐतिहासिक नगर का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। ११वीं शताब्दी में यह नगर एक महत्वपूर्ण सैनिक केंद्र था और प्रमुख व्यापारिक मार्ग भी यहीं से होकर जाते थे। वर्तमान में बुन्देलखंडी शैली में बनी हस्तनिर्मित साड़ियों के लिए चन्देरी काफी चर्चित है। .

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टीकमगढ़

टीकमगढ़जिला मुख्यालय टीकमगढ़ है। शहर का मूल नाम 'टेहरी' था, जो अब पुरानी टेहरी के नाम से जाना जाता है। 1783 ई विक्रमजीत (1776 - 1817 CE के शासक) ने ओरछा से अपनी राजधानी टेहरी जिला टीकमगढ़ में स्थानांतरित कर दी थी। टीकमगढ़ टीकम (श्री कृष्ण का एक नाम)से टीकमगढ़ पड़ा। टीकमगढ़ जिला बुंदेलखंड क्षेत्र का एक हिस्सा है। यह और की एक सहायक नदी के बीच बुंदेलखंड पठार पर है। इस जिले के अंतर्गत क्षेत्र ओरछा के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था। ओरछा राज्य रुद्र प्रताप द्वारा 1501 में स्थापित किया गया था। विलय के बाद, यह 1948 में विंध्य प्रदेश के आठ जिलों में से एक बन गया। 1 नवम्बर को राज्यों के पुनर्गठन के बाद, 1956 यह नए नक्काशीदार मध्य प्रदेश राज्य के एक जिले में बन गया। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक गाँव है। इस गाँव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (या गढ़) के नाम पर गढ़-कुंडार पढ़ा है। गढ कुण्डार का प्राचीन नाम गढ कुरार है। गढ़-कुंडार किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि ऐतिहासिक समृद्धि का प्रतीक भी है। गढ़कुंडार किले का सम्बन्ध चंदेल और खंगार नरेशों से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है। वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार गुजरात, महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार राज्य की नींव डाली थी। छोटी देवी जी(नन्ही भुवानी) टीकमगढ़। शहर के बीचों बीच श्री श्री 1008 श्री जानकी रमण मंदिर(श्री ठाकुर गोविंद जू विराजमान) छोटी देवी के अंदर टीकमगढ़ में स्थित हैं। यह मंदिर टीकमगढ़ में पपौरा चौराहा के समीप बुख़ारिया जी की गली में है। छोटी देवी मंदिर में प्रत्येक नवरात्रि में नो दिनों के लिये भव्य मेला लगाया जाता हैं। .

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तात्या टोपे

तात्या टोपे (1814 - 18 अप्रैल 1859) भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई थी। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।nice and thanks .

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धसान नदी

धसान नदी मध्य भारत में बहने वाली बेतवा की सहायक नदी है जो इससे बायें से आकार जुड़ती है। यह नदी मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले से निकलती है और उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के साथ मध्य प्रदेश की सीमा का निर्धारण करती है। श्रेणी:भारत की नदियाँ.

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बीना नदी

बीना नदी भारत के मध्य प्रदेश से कोकर बहती है। इसका प्राचीन नाम 'वेण्वा' है। यह बेतवा की सहायक नदी है। इसके तट पर प्राचीन नगर ऐरण (या, एरकिण) बसा हुआ है। बीना नामक कस्बा इस नदी के किनारे ही है। श्रेणी:भारत की नदियाँ.

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भारत की नदियों की सूची

भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ है (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तरी भारत में सिंधु, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा, और उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा, कावेरी, महानदी, आदि नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं। यहाँ भारत की नदियों की एक सूची दी जा रही है: .

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भारत की नदी प्रणालियाँ

भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिन्धु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का संकेन्द्रण नदी घाटी क्षेत्रों में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध है। नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ है (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तरी भारत में सिंधु, मध्य भारत में गंगा, उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा कावेरी महानदी आदी नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं। भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे:-.

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भोजपुर, मध्य प्रदेश

भोजपुर मध्य प्रदेश के विदिशा से ४५ मील की दूरी पर रायसेन जिले में वेत्रवती नदी के किनारे बसा है। प्राचीन काल का यह नगर "उत्तर भारत का सोमनाथ' कहा जाता है। गाँव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल शिव मंदिर है। इस नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० ई.- १०५३ ई.) ने किया था। अतः इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। .

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भोजेश्वर मन्दिर

भोजेश्वर मन्दिर (जिसे भोजपुर मन्दिर भी कहते हैं) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग ३० किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर नामक गांव में बना एक मन्दिर है। यह मन्दिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। --> मन्दिर का निर्माण एवं इसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० - १०५३ ई॰) ने करवायी थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर मन्दिर या भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है, हालाँकि कुछ किंवदंतियों के अनुसार इस स्थल के मूल मन्दिर की स्थापना पाँडवों द्वारा की गई मानी जाती है। इसे "उत्तर भारत का सोमनाथ" भी कहा जाता है। यहाँ के शिलालेखों से ११वीं शताब्दी के हिन्दू मन्दिर निर्माण की स्थापत्य कला का ज्ञान होता है व पता चलता है कि गुम्बद का प्रयोग भारत में इस्लाम के आगमन से पूर्व भी होता रहा था। इस अपूर्ण मन्दिर की वृहत कार्य योजना को निकटवर्ती पाषाण शिलाओं पर उकेरा गया है। इन मानचित्र आरेखों के अनुसार यहाँ एक वृहत मन्दिर परिसर बनाने की योजना थी, जिसमें ढेरों अन्य मन्दिर भी बनाये जाने थे। इसके सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाने पर ये मन्दिर परिसर भारत के सबसे बड़े मन्दिर परिसरों में से एक होता। मन्दिर परिसर को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक चिह्नित किया गया है व इसका पुनरुद्धार कार्य कर इसे फिर से वही रूप देने का सफ़ल प्रयास किया है। मन्दिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मन्दिरों में सबसे ऊँचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मन्दिर के निकट ही इस मन्दिर को समर्पित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी बना है। शिवरात्रि के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा यहां प्रतिवर्ष भोजपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है। .

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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .

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मध्य प्रदेश का पर्यटन

मध्य प्रदेश भारत के ठीक मध्य में स्थित है। अधिकतर पठारी हिस्से में बसे मध्यप्रदेश में विन्ध्य और सतपुडा की पर्वत श्रृखंलाएं इस प्रदेश को रमणीय बनाती हैं। ये पर्वत श्रृखंलाएं हैं कई नदियों के उद्गम स्थलों को जन्म देती हैं, ताप्ती, नर्मदा,चम्बल, सोन,बेतवा, महानदी जो यहां से निकल भारत के कई प्रदेशों में बहती हैं। इस वैविध्यपूर्ण प्राकृतिक देन की वजह से मध्यप्रदेश एक बेहद खूबसूरत हर्राभरा हिस्सा बन कर उभरता है। जैसे एक हरे पत्ते पर ओस की बूंदों सी झीलें, एक दूसरे को काटकर गुजरती पत्ती की शिराओं सी नदियां। इतना ही विहंगम है मध्य प्रदेश जहां, पर्यटन की अपार संभावनायें हैं। हालांकि 1956 में मध्यप्रदेश भारत के मानचित्र पर एक राज्य बनकर उभरा था, किन्तु यहां की संस्कृति प्राचीन और ऐतिहासिक है। असंख्य ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरें विशेषत: उत्कृष्ट शिल्प और मूर्तिकला से सजे मंदिर, स्तूप और स्थापत्य के अनूठे उदाहरण यहां के महल और किले हमें यहां उत्पन्न हुए महान राजाओं और उनके वैभवशाली काल तथा महान योध्दाओं, शिल्पकारों, कवियों, संगीतज्ञों के साथ-साथ हिन्दु, मुस्लिम,जैन और बौध्द धर्म के साधकों की याद दिलाते हैं। भारत के अमर कवि, नाटककार कालिदास और प्रसिध्द संगीतकार तानसेन ने इस उर्वर धरा पर जन्म ले इसका गौरव बढाया है। मध्यप्रदेश का एक तिहाई हिस्सा वन संपदा के रूप में संरक्षित है। जहां पर्यटक वन्यजीवन को पास से जानने का अदभुत अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। कान्हा नेशनल पार्क,बांधवगढ़, शिवपुरी आदि ऐसे स्थान हैं जहां आप बाघ, जंगली भैंसे, हिरणों, बारहसिंघों को स्वछंद विचरते देख पाने का दुर्लभ अवसर प्राप्त कर सकते हैं। मध्यप्रदेश के हर इलाके की अपनी संस्कृति है और अपनी धार्मिक परम्पराएं हैं जो उनके उत्सवों और मेलों में अपना रंग भरती हैं। खजुराहो का वार्षिक नृत्यउत्सव पर्यटकों को बहुत लुभाता है और ओरछा और पचमढी क़े उत्सव वहा/ कि समृध्द लोक और आदिवासी संस्कृति को सजीव बनाते हैं। मध्यप्रदेश की व्यापकता और विविधता को खयाल में रख हम इसे पर्यटन की सुविधानुसार पांच भागों में बांट सकते र्हैं मध्य प्रदेश राज्य में अत्यधिक पर्यटन स्थल हैं। .

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मध्य प्रदेश का इतिहास

मध्य प्रदेश का इतिहास पेलियोलिथिक समय से ही शुरुआत मे आ गया था। इसे मुख्यत: तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है। .

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माच

माच (अंग्रेजी में Mach) मालवा का प्रमुख लोक नाट्य रूप है। लोक मानस के प्रभावी मंच माच को उज्जैन में जन्म मिला है। माच शब्द का सम्बन्ध संस्कृत मूल मंच से है। इस मंच शब्द के मालवी में अनेक क्षेत्रों में प्रचलित परिवर्तित रूप मिलते हैं। उदाहणार्थ- माचा, मचली, माचली, माच, मचैली, मचान जैसे कई शब्दों का आशय मंच के समानार्थी भाव बोध को ही व्यक्त करता है। माच गुरु सिद्धेश्वर सेन माच की व्युत्पत्ति के पीछे सम्भावना व्यक्त करते हैं कि माच के प्रवर्तक गुरु गोपालजी ने सम्भवतः कृषि की रक्षा के लिए पेड़ पर बने मचान को देखा होगा, जिस पर चढ़कर स्त्री या पुरुष आवाज आदि के माध्यम से नुकसान पहुँचाने वाले पशु-पक्षियों से खेत की रक्षा करते हैं। गुरु गोपालजी ने मचान शब्द को ध्यान में रखा होगा और फिर नाट्य-प्रदर्शन के ऊँचे स्थान (मंच) से उसी मचान की आकृति एवं रूप साम्य के आधार पर अपने मंच का नाम माच दे दिया होगा। कालान्तर में यही नाम प्रचलित हो गया। वस्तुतः माच के मंच और मचान में पर्याप्त साम्य रहा है। पुराने दौर में माच का मंच इतना अधिक ऊँचा बनाया जाता था कि उसके नीचे से बैलगाड़ी भी गुजर जाती थी। इन दिनों मंच की ऊँचाई प्रायः सामान्य ही रहती है। भारत के विभिन्न अंचलों में बोली जाने वाली लोक-भाषाएँ राष्ट्रभाषा हिंदी की समृद्धि का प्रमाण हैं। लोक-भाषाएँ और उनका साहित्य वस्तुतः भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रवाणी के लिए अक्षय स्रोत हैं। हम इनका जितना मंथन करें, उतने ही अमूल्य रत्न हमें मिलते रहेंगे। कथित आधुनिकता के दौर में हम अपनी बोली-बानी, साहित्य-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं। ऐसे समय में जितना विस्थापन लोगों और समुदायों का हो रहा है, उससे कम लोक-भाषा और लोक-साहित्य का नहीं हो रहा है। घर-आँगन की बोलियाँ अपने ही परिवेश में पराई होने का दर्द झेल रही हैं। इस दिशा में लोकभाषा, साहित्य और संस्कृतिप्रेमियों के समग्र प्रयासों की दरकार है। प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के अनुसार भारत के हृदय अंचल मालवा ने तो एक तरह से समूची भारतीय संस्कृति को गागर में सागर की तरह समाया हुआ है। मालवा की परम्पराएँ समूचे भारत से प्रभावित हुई हैं और पूरे भारत को मालवा की संस्कृति ने किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। मालवा भारत का हृदय अंचल है तो इसकी सांस्कृतिक राजधानी है उज्जैन। उज्जैन कला के अधिष्ठाता शिव और सर्व-कला-रत्न श्रीकृष्ण की नगरी है। इसी नगरी को लोक नाट्य माच के जन्म का श्रेय जाता है। आज का मालवा सम्पूर्ण पश्चिमी मध्यप्रदेश और उसके साथ सीमावर्ती पूर्वी राजस्थान के कुछ जिलों तक विस्तार लिए हुए है, जहाँ मालवी और उसकी उपबोलियों का प्रयोग होता है। इसकी सीमा रेखा के संबंध में एक पारम्परिक दोहा प्रचलित है जिसके अनुसार चम्बल, बेतवा और नर्मदा नदियों से घिरे भू-भाग को मालवा की सीमा मानना चाहिए- इत चम्बल उत बेतवा मालव सीम सुजान। दक्षिण दिसि है नर्मदा यह पूरी पहचान।। मालवा का लोक-साहित्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ का लोकमानस शताब्दी-दर-शताब्दी कथा-वार्ता, गाथा, गीत, नाट्य, पहेली, लोकोक्ति आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति पाता आ रहा है। जीवन का ऐसा कोई प्रसंग नहीं है, जब मालवजन अपने हर्ष-उल्लास, सुख-दुःख को दर्ज करने के लिये लोक-साहित्य का सहारा न लेता हो। भारतीय लोक-नाट्य परम्परा में मालवा के माच का विशिष्ट स्थान है। मालवा क्षेत्र का प्रतिनिधि लोक नाट्य माच है, जो अपनी सुदीर्घ परम्परा के साथ आज भी लोक मानस का प्रभावी मंच बना हुआ हैं। मालवा के लोकगीतों, लोक-कथाओं, लोक- नृत्य रूपों और लोक-संगीत के समावेश से समृद्ध माच सम्पूर्ण नाट्य (टोटल थियेटर) की सम्भावनाओं को मूर्त करता है। लोकमानस की सहज अभिव्यंजना और लोक रंग व्यवहारों की सरल रेखीय अनायासता से उपजा यह लोकनाट्य लोकरंजन और लोक मंगल के प्रभावी माध्यम के रूप में स्थापित है। माच मालवा-राजस्थान के व्यापक जनसमुदाय को आन्दोलित करता आ रहा है। माच शब्द संस्कृत के मंच शब्द का ही परिवर्तित रूप है। माच के नाटकों को खेल कहा जाता है, जो मुक्ताकाशी रंगमंच पर प्रस्तुत किए जाते हैं। संगीत, नृत्य, पाठ, अभिनय और बोलों  की अन्तः क्रिया माच को एक सम्पूर्ण नाट्य या यूँ कहें टोटल थियेटर का रूप दे देती है। माच के खेलों में सामाजिक सद्भाव, परस्पर प्रेम और सहज लोक जीवन के दर्शन होते हैं। माच के दर्शकों में भी एक खास ढंग की रसिकता देखी जा सकती है। इसके दर्शक महज दर्शक नहीं होते, मंच व्यापार में उनकी आपसदारी भी दिखाई द .

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यमुना नदी

आगरा में यमुना नदी यमुना त्रिवेणी संगम प्रयाग में वृंदावन के पवित्र केशीघाट पर यमुना सुबह के धुँधलके में यमुनातट पर ताज यमुना भारत की एक नदी है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री (उत्तरकाशी से ३० किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। ब्रज की संस्कृति में यमुना का महत्वपूर्ण स्थान है। .

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विदिशा का इतिहास

विदिशा भारतवर्ष के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है, जो हिंदू तथा जैन धर्म के समृद्ध केन्द्र के रूप में जानी जाती है। जीर्ण अवस्था में बिखरे पड़े कई खंडहरनुमा इमारतें यह बताती है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि कोण से मध्य प्रदेश का सबसे धनी क्षेत्र है। धार्मिक महत्व के कई भवनों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो नष्ट कर दिया या मस्जिद में बदल दिया। महिष्मती (महेश्वर) के बाद विदिशा ही इस क्षेत्र की सबसे पुराना नगर माना जाता है। महिष्मती नगरी के ह्रास होने के बाद विदिशा को ही पूर्वी मालवा की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी चर्चा वैदिक साहित्यों में कई बार मिलता है। .

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विन्ध्याचल पर्वत शृंखला

विंध्याचल पर्वत शृंखला भारत के पश्चिम-मध्य में स्थित प्राचीन गोलाकार पर्वतों की शृंखला है जो भारत उपखंड को उत्तरी भारत व दक्षिणी भारत में बांटती है। (विन्ध्याचल .

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गंगा की सहायक नदियाँ

देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती हुईं गंगा नदी भारत की एक प्रमुख नदी है। इसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाड़ियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्मा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी और सोन गंगा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्‍लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियाँ चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं। यमुना गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है। हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस तथा बाद में लघु हिमालय में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। इनके अलावा चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की अन्य सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। यमुना इलाहाबाद के निकट बायीँ ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर जिले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में जा मिलती है। करनाली मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर अयोध्या, फैजाबाद होती हुई बलिया जिले के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में घाघरा कहा जाता है। गंडक हिमालय से निकलकर नेपाल में 'शालग्रामी' नाम से बहती हुई मैदानी भाग में 'नारायणी' उपनाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है। कोसी की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। ब्रह्मपुत्र के बेसिन के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद एवरेस्ट कंचनजंघा शिखरों के बीच से बहती हुई अरूण नदी दक्षिण की ओर ९० किलोमीटर बहती है जहाँ इसमें पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह शिवालिक को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर सोन नदी पटना के पास गंगा में मिलती है। मध्य प्रदेश के मऊ के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर चम्बल नदी इटावा से ३८ किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। काली सिंध, बनास और पार्वती इसकी सहायक नदियाँ हैं। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, जालौन आदि जिलों में होकर बहती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसकी सम्पूर्ण लम्बाई ४८० किलोमीटर है। यह हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसे प्राचीन काल में वत्रावटी के नाम से जाना जाता था। भागीरथी नदी के दायें किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर नदियाँ प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बायें किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गई हैं। .

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कलियासोत डेम

कलियासोत डेम कलियासोत नदी भोपाल में स्थित प्रमुख जलबंधो व भोपाल के प्रमुख मनोरम खुबसूरत पर्यटक स्थल में से एक है यह भोपाल के मध्य में चुनाभट्टी व नेहरूनगर रहवासी कॉलोनी में स्थित है | कलियासोत डेम का उपयोग मुख्तया वर्ष के नबम्बर से फरवरी के मध्य रबी की फसलों में लगभग 10४२५ हेक्टेयर में मध्य प्रदेश के भोपाल एवं रायसेन जिलो में सिचाई हेतु किया जाता है | इस डेम का निर्माण भोपाल के जलसंधारण को लेकर बहुत ही खुबसूरत तरीके से किया गया है जिसके अंतर्गत भोपाल में होने वाली वर्षा के जल को संधारित व वर्षा के जल को सिचाई में पूर्ण रूप से उपयोग में लाया जाता है | जैसा की विदित है भोपाल की शान कहलाने वाला बड़ा ताल जिसका निर्माण परमार राजाभोज सन १००५ से १०५५ के मध्य में किया गया | इस तालाब में कोलान्स नदी से वर्षा का जल आता है परन्तु अधिक मात्रा में होने वाली वर्षा के जल को रोकने हेतु भोपाल के दक्षिण दिशा में सन १९६५ में भदभदा डेम का निर्माण किया गया एवं इसमें ओवर फ्लो जल को सन १९९४ में बना कलियासोत जलबंध में प्रावाहित किया जाता है जिसको कलियासोत जलबंद द्वारा रोका जाता है | इस जलबंध में १३ द्वार भी है जिसके द्वारा वर्षा जल को कलियासोत नदी में बहाया जाता है जो की बेतवा नदी में मिलता है | भोपाल में अधिक में हुई वर्षा को कालियासोत जलबंद के द्वारा नियत्रित किया जाता है | श्रेणी:भोपाल के जलबंध.

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केशव

केशव का स्वचित्रण (१५७० ई) केशव या केशवदास (जन्म (अनुमानत) 1555 विक्रमी और मृत्यु (अनुमानत) 1618 विक्रमी) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं। इनका जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीराम था जो ओड़छानरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके मुख्य आश्रयदाता थे। वे केशव को अपना गुरु मानते थे। रसिकप्रिया के अनुसार केशव ओड़छा राज्यातर्गत तुंगारराय के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित ओड़छा नगर में रहते थे। .

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अपवाह तन्त्र

डेल्टाई भाग में अपवाह तंत्र अपवाह तन्त्र या प्रवाह प्रणाली (drainage system) किसी नदी तथा उसकी सहायक धाराओं द्वारा निर्मित जल प्रवाह की विशेष व्यवस्था है।सोनल गुप्ता - यह एक तरह का जालतन्त्र या नेटवर्क है जिसमें नदियाँ एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनती हैं। किसी नदी में मिलने वाली सारी सहायक नदियाँ और उस नदी बेसिन के अन्य लक्षण मिलकर उस नदी का अपवाह तन्त्र बनाते हैं। .

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

बेतवा, वेत्रवती

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