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बीसवीं शताब्दी

सूची बीसवीं शताब्दी

ग्रेगरी पंचांग (कलेंडर) के अनुसार ईसा की बीसवीं शताब्दी 1 जनवरी 1901 से 31 दिसम्बर 2000 तक मानी जाती है। कुछ इतिहासवेत्ता 1914 से 1992 तक को संक्षिप्त बीसवीं शती का नाम भी देते हैं। (उन्नीसवी शताब्दी - बीसवी शताब्दी - इक्कीसवी शताब्दी - और शताब्दियाँ) दशक: १९०० का दशक १९१० का दशक १९२० का दशक १९३० का दशक १९४० का दशक १९५० का दशक १९६० का दशक १९७० का दशक १९८० का दशक १९९० का दशक ---- समय के गुज़रने को रेकोर्ड करने के हिसाब से देखा जाये तो बीसवी शताब्दी वह शताब्दी थी जो १९०१ - २००० तक चली थी। मनुष्य जाति के जीवन का लगभग हर पहलू बीसवी शताब्दी में बदल गया।.

सामग्री की तालिका

  1. 42 संबंधों: एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स, एंटीमैटर, झारखंड आंदोलन, दामोदर स्वरूप 'विद्रोही', नालापत बालमणि अम्मा, न्यूरॉन, परमाणु परीक्षण, पापारात्सी, पारिस्थितिकी, पाल इल्यार, प्रेयोक्ति, प्रोबायोटिक, फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट, बलवंत सिंह (लेखक), बालमणि अम्मा का जीवन परिचय, बकिंघम नहर, ब्याज, भोजेश्वर मन्दिर, मधुशाला, महाद्वीप, मिजुहारा शुओशी, ललितामहल, शनि की साढ़े साती, सत्यजित राय, साइबर्नेटिक्स, सूक्ष्मदर्शन, हुमायूँ का मकबरा, जेम्स यंग सिंपसन, विन्सेंट वैन गो, विल्लुपुरम चिन्नैया गणेशन, विश्व देवालय (पैन्थियन), रोम, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत), वैश्वीकरण, खगोल शास्त्र, ग्रैन्ड कैन्यन, गोपालदास नीरज, आशारानी व्होरा, क्रिकेट का इतिहास, क्लोरोफॉर्म, कोलकाता, कोलकाता की संस्कृति, उत्तर आधुनिकतावाद

एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स

सर एड्विन्स लैंडसीयर लूट्यन्स, OM, KCIE,PRA,FRIBA,LLD (29 मार्च 1869 – 1 जनवरी 1944) बीसवीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध ब्रिटिश वास्तुकार थे, जिन्हें अपने युग की आवश्यकताओं के अनुसार परंपरागत शैली को कल्पनापूर्वक अपनाने के लिये याद किया जाता है। इन्होंने कई इंग्लिश भवन बनाये, व मुख्यतः इन्हें भारत की तत्कालीन राजधानी नई दिल्ली की अभिकल्पना के लिये जाना जाता है। इनका जन्म व मृत्यु लंदन में ही हुई। इनका नाम इनके पिता के एक मित्र, एक शिल्पकार, एड्विन लैण्डसियर के नाम पर रखा गया था। इन्हें महानतम ब्रिटिश वास्तुकार कहा जाता है। .

देखें बीसवीं शताब्दी और एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स

एंटीमैटर

एंटीमैटर क्लाउड कण भौतिकी में, प्रतिद्रव्य या एंटीमैटर (antimatter) वस्तुतः पदार्थ के एंटीपार्टिकल के सिद्धांत का विस्तार है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार पदार्थ कणों का बना होता है उसी प्रकार प्रतिद्रव्य प्रतिकणों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिये, एक एंटीइलेक्ट्रॉन (एक पॉज़ीट्रॉन, जो एक घनात्मक आवेश सहित एक इलेक्ट्रॉन होता है) एवं एक एंटीप्रोटोन (ऋणात्मक आवेश सहित एक प्रोटोन) मिल कर एक एंटीहाईड्रोजन परमाणु ठीक उसी प्रकार बना सकते हैं, जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन एवं एक प्रोटोन मिल कर हाईड्रोजन परमाणु बनाते हैं। साथ ही पदार्थ एवं एंटीमैटर के संगम का परिणाम दोनों का विनाश (एनिहिलेशन) होता है, ठीक वैसे ही जैसे एंटीपार्टिकल एवं कण का संगम होता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च-ऊर्जा फोटोन (गामा किरण) या अन्य पार्टिकल-एंटीपार्टिकल युगल बनते हैं। वैसे विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन चलचित्रों में कई बार एंटीमैटर का नाम सुना जाता रहा है। एंटीहाइड्रोजन परमाणु का त्रिआयामी चित्र एंटीमैटर केवल एक काल्पनिक तत्व नहीं, बल्कि असली तत्व होता है। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुई थी। तब से यह आज तक वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिस तरह सभी भौतिक वस्तुएं मैटर यानी पदार्थ से बनती हैं और स्वयं मैटर में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, उसी तरह एंटीमैटर में एंटीप्रोटोन, पोसिट्रॉन्स और एंटीन्यूट्रॉन होते हैं।। नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मार्च २०१० एंटीमैटर इन सभी सूक्ष्म तत्वों को दिया गया एक नाम है। सभी पार्टिकल और एंटीपार्टिकल्स का आकार एक समान किन्तु आवेश भिन्न होते हैं, जैसे कि एक इलैक्ट्रॉन ऋणावेशी होता है जबकि पॉजिट्रॉन घनावेशी चार्ज होता है। जब मैटर और एंटीमैटर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो दोनों नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत महाविस्फोट (बिग बैंग) ऐसी ही टकराहट का परिणाम था। हालांकि, आज आसपास के ब्रह्मांड में ये नहीं मिलते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड के आरंभ के लिए उत्तरदायी बिग बैंग के एकदम बाद हर जगह मैटर और एंटीमैटर बिखरा हुआ था। विरोधी कण आपस में टकराए और भारी मात्रा में ऊर्जा गामा किरणों के रूप में निकली। इस टक्कर में अधिकांश पदार्थ नष्ट हो गया और बहुत थोड़ी मात्रा में मैटर ही बचा है निकटवर्ती ब्रह्मांड में। इस क्षेत्र में ५० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित तारे और आकाशगंगा शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सुदूर ब्रह्मांड में एंटीमैटर मिलने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गामा-किरण वेधशाला से मिले चार साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद बताया है कि आकाश गंगा के मध्य में दिखने वाले बादल असल में गामा किरणें हैं, जो एंटीमैटर के पोजिट्रान और इलेक्ट्रान से टकराने पर निकलती हैं। पोजिट्रान और इलेक्ट्रान के बीच टक्कर से लगभग ५११ हजार इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इन रहस्यमयी बादलों की आकृति आकाशगंगा के केंद्र से परे, पूरी तरह गोल नहीं है। इसके गोलाई वाले मध्य क्षेत्र का दूसरा सिरा अनियमित आकृति के साथ करीब दोगुना विस्तार लिए हुए हैं।। याहू जागरण। १४ जनवरी २००९ एंटीमैटर की खोज में रत वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को दो हिस्सों में चीरने की घटना में एंटीमैटर अवश्य उत्पन्न होता होगा। इसके अलावा वे लार्ज हैडरन कोलाइडर जैसे उच्च-ऊर्जा कण-त्वरकों द्वारा एंटी पार्टिकल उत्पन्न करने का प्रयास भी कर रहे हैं। पार्टिकल एवं एंटीपार्टिकल पृथ्वी पर एंटीमैटर की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बहुत थोड़ी मात्रा में एंटीमैटर का निर्माण किया है। प्राकृतिक रूप में एंटीमैटर पृथ्वी पर अंतरिक्ष तरंगों के पृथ्वी के वातावरण में आ जाने पर अस्तित्व में आता है या फिर रेडियोधर्मी पदार्थ के ब्रेकडाउन से अस्तित्व में आता है। शीघ्र नष्ट हो जाने के कारण यह पृथ्वी पर अस्तित्व में नहीं आता, लेकिन बाह्य अंतरिक्ष में यह बड़ी मात्र में उपलब्ध है जिसे अत्याधुनिक यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है। एंटीमैटर नवीकृत ईंधन के रूप में बहुत उपयोगी होता है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया फिल्हाल इसके ईंधन के तौर पर अंतत: होने वाले प्रयोग से कहीं अधिक महंगी पड़ती है। इसके अलावा आयुर्विज्ञान में भी यह कैंसर का पेट स्कैन (पोजिस्ट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा पता लगाने में भी इसका प्रयोग होता है। साथ ही कई रेडिएशन तकनीकों में भी इसका प्रयोग प्रयोग होता है। नासा के मुताबिक, एंटीमैटर धरती का सबसे महंगा मैटेरियल है। 1 मिलिग्राम एंटीमैटर बनाने में 250 लाख डॉलर रुपये तक लग जाते हैं। एंटीमैटर का इस्तेमाल अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाने वाले विमानों में ईधन की तरह किया जा सकता है। 1 ग्राम एंटीमैटर की कीमत 312500 अरब रुपये (3125 खरब रुपये) है। .

देखें बीसवीं शताब्दी और एंटीमैटर

झारखंड आंदोलन

झारखंड का अर्थ है "वन क्षेत्र", झारखंड वनों से आच्छादित छोटानागपुर के पठार का हिस्सा है जो गंगा के मैदानी हिस्से के दक्षिण में स्थित है। झारखंड शब्द का प्रयोग कम से कम चार सौ साल पहले सोलहवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। अपने बृहत और मूल अर्थ में झारखंड क्षेत्र में पुराने बिहार के ज्यादतर दक्षिणी हिस्से और छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ आदिवासी जिले शामिल है। देश की लगभग नब्बे प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का यह निवास स्थल है। इस आबादी का बड़ा हिस्सा 'मुंडा', 'हो' और 'संथाल' आदि जनजातियों का है, लेकिन इनके अलावे भी बहुत सी दूसरी आदिवासी जातियां यहां मौजूद हैं जो इस झारखंड आंदोलन में काफी सक्रिय रही हैं। चूँकि झारखंड पठारी और वनों से आच्छादित क्षेत्र है इसलिये इसकी रक्षा करना तुलनात्मक रूप से आसान है। परिणामस्वरुप, पारंपरिक रूप से यह क्षेत्र सत्रहवीं शताब्दी के शुरुआत तक, जब तक मुगल शासक यहाँ नहीं पहुँचे, यह क्षेत्र स्वायत्त रहा है। मुगल प्रशासन ने धीरे धीरे इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरु किया और फलस्वरुप यहाँ की स्वायत्त भूमि व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन हुआ, सारी व्यवस्था ज़मींदारी व्यवस्था में बदल गयी जबकि इससे पहले यहाँ भूमि सार्वजनिक संपत्ति के रूप में मानी जाती थी। यह ज़मींदारी प्रवृति ब्रिटिश शासन के दौरान और भी मज़बूत हुई और जमीने धीरे धीरे कुछ लोगों के हाथ में जाने लगीं जिससे यहाँ बँधुआ मज़दूर वर्ग का उदय होने लगा। ये मजदू‍र हमेशा कर्ज के बोझ तले दबे होते थे और परिणामस्वरुप बेगार करते थे। जब आदिवासियों के ब्रिटिश न्याय व्यवस्था से कोई उम्मीद किरण नहीं दिखी तो आदिवासी विद्रोह पर उतर आये। अठारहवीं शताब्दी में कोल्ह, भील और संथाल समुदायों द्वारा भीषण विद्रोह किया गया। अंग्रेजों ने बाद मेंउन्निसवीं शताब्दी और बीसवीं शताब्दी में कुछ सुधारवादी कानून बनाये। 1845 में पहली बार यहाँ ईसाई मिशनरियों के आगमन से इस क्षेत्र में एक बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन और उथल-पुथल शुरु हुआ। आदिवासी समुदाय का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा ईसाईयत की ओर आकृष्ट हुआ। क्षेत्र में ईसाई स्कूल और अस्पताल खुले। लेकिन ईसाई धर्म में बृहत धर्मांतरण के बावज़ूद आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक धार्मिक आस्थाएँ भी कायम रखी और ये द्वंद कायम रहा। झारखंड के खनिज पदार्थों से संपन्न प्रदेश होने का खामियाजा भी इस क्षेत्र के आदिवासियों को चुकाते रहना पड़ा है। यह क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा खनिज क्षेत्र है जहाँ कोयला, लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और इसके अलावा बाक्साईट, ताँबा चूना-पत्थर इत्यादि जैसे खनिज भी बड़ी मात्रा में हैं। यहाँ कोयले की खुदाई पहली बार 1856 में शुरु हुआ और टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनीकी स्थापना 1907 में जमशेदपुर में की गई। इसके बावजूद कभी इस क्षेत्र की प्रगति पर ध्यान नहीं दिया गया। केंद्र में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो, उसने हमेशा इस क्षेत्र के दोहन के विषय में ही सोचा था। .

देखें बीसवीं शताब्दी और झारखंड आंदोलन

दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'

दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' (जन्म:2 अक्टूबर 1928 - मृत्यु: 11 मई 2008) अमर शहीदों की धरती के लिये विख्यात शाहजहाँपुर जनपद के चहेते कवियों में थे। यहाँ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर विद्रोही जी का नाम आज भी उतना ही है जितना कि तब था जब वे जीवित थे। विद्रोही की अग्निधर्मा कविताओं ने उन्हें कवि सम्मेलन के अखिल भारतीय मंचों पर स्थापित ही नहीं किया अपितु अपार लोकप्रियता भी प्रदान की। उनका एक मुक्तक तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ: सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में उनकी पहचान वीर रस के सिद्धहस्त कवि के रूप में भले ही हुई हो परन्तु यह भी एक सच्चाई है कि उनके हृदय में एक सुमधुर गीतकार भी छुपा हुआ था। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द के विधान पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। भ्रष्टाचार, शोषण, अत्याचार, छल और प्रवचन के समूल नाश के लिये वे ओजस्वी कविताओं का निरन्तर शंखनाद करते रहे। उन्होंने चीन व पाकिस्तान युद्ध और आपातकाल के दिनों में अपनी आग्नेय कविताओं की मेघ गर्जना से देशवासियों में अदम्य साहस का संचार किया। हिन्दी साहित्य के आकाश में स्वयं को सूर्य-पुत्र घोषित करने वाले यशस्वी वाणी के धनी विद्रोही जी भौतिक रूप से भले ही इस नश्वर संसार को छोड़ गये हों परन्तु अपनी कालजयी कविताओं के लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा। .

देखें बीसवीं शताब्दी और दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'

नालापत बालमणि अम्मा

नालापत बालमणि अम्मा (मलयालम: എൻ. ബാലാമണിയമ്മ; 19 जुलाई 1909 – 29 सितम्बर 2004) भारत से मलयालम भाषा की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। अम्मा के साहित्य और जीवन पर गांधी जी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उनकी प्रमुख कृतियों में अम्मा, मुथास्सी, मज़्हुवींट कथाआदि हैं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। अपने पति वी॰एम॰ नायर के साथ मिलकर उन्होने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया। अम्मा मलयालम भाषा के प्रखर लेखक एन॰ नारायण मेनन की भांजी थी। उनसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा और उनकी लिखी पुस्तकों का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था। अपने मामा से प्राप्त प्रेरणा ने उन्हें एक कुशल कवयित्री बनने में मदद की। नालापत हाउस की आलमारियों से प्राप्त पुस्तक चयन के क्रम में उन्हें मलयालम भाषा के महान कवि वी॰ नारायण मेनन की पुस्तकों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी शैली और सृजनधर्मिता से वे इस तरह प्रभावित हुई कि देखते ही देखते वे अम्मा के प्रिय कवि बन गए। अँग्रेजी भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास उनकी सुपुत्री थीं, जिनके लेखन पर उनका खासा असर पड़ा था। अम्मा को मलयालम साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय मलयालम महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और 'एज्हुथाचन पुरस्कार' सहित कई उल्लेखनीय पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1987 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। वर्ष 2009, उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। .

देखें बीसवीं शताब्दी और नालापत बालमणि अम्मा

न्यूरॉन

तंत्रिका कोशिकाओं तंत्रिकोशिका या तंत्रिका कोशिका (अंग्रेज़ी:न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका है। इस कोशिका का कार्य मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है।। हिन्दुस्तान लाइव। १ फ़रवरी २०१० यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है। तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र के प्रमुख भाग होते हैं जिसमें मस्तिष्क, मेरु रज्जु और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं। कई तरह के विशिष्ट तंत्रिका कोशिका होते हैं जिसमें सेंसरी तंत्रिका कोशिका, अंतरतंत्रिका कोशिका और गतिजनक तंत्रिका कोशिका होते हैं। किसी चीज के स्पर्श छूने, ध्वनि या प्रकाश के होने पर ये तंत्रिका कोशिका ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने संकेत मेरु रज्जु और मस्तिष्क को भेजते हैं। मोटर तंत्रिका कोशिका मस्तिष्क और मेरु रज्जु से संकेत ग्रहण करते हैं। मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रंथियां इससे प्रभावित होती है। एक सामान्य और साधारण तंत्रिका कोशिका में एक कोशिका यानि सोमा, डेंड्राइट और कार्रवाई होते हैं। तंत्रिका कोशिका का मुख्य हिस्सा सोमा होता है। तंत्रिका कोशिका को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। यह एकध्रुवी, द्विध्रुवी और बहुध्रुवी (क्रमशः एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय और बहुध्रुवीय) होते हैं। तंत्रिका कोशिका में कोशिकीय विभाजन नहीं होता है जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। किन्तु इसे स्टेम कोशिका के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि अस्थिकणिका को तंत्रिका कोशिका में बदला जा सकता है। तंत्रिका कोशिका शब्द का पहली बार प्रयोग जर्मन शरीर विज्ञानशास्त्री हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर ने किया था। २०वीं शताब्दी में पहली बार तंत्रिका कोशिका प्रकाश में आई जब सेंटिगयो रेमन केजल ने बताया कि यह तंत्रिका तंत्र की प्राथमिक प्रकार्य इकाई होती है। केजल ने प्रस्ताव दिया था कि तंत्रिका कोशिका अलग कोशिकाएं होती हैं जो कि विशिष्ट जंक्शन के द्वारा एक दूसरे से संचार करती है। तंत्रिका कोशिका की संरचना का अध्ययन करने के लिए केजल ने कैमिलो गोल्गी द्वारा बनाए गए सिल्वर स्टेनिंग तरीके का प्रयोग किया। मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका की संख्या प्रजातियों के आधार पर अलग होती है। एक आकलन के मुताबिक मानव मस्तिष्क में १०० अरब तंत्रिका कोशिका होते हैं। टोरंटो विश्वविद्यालय में हुए अनुसंधान में एक ऐसे प्रोभूजिन की पहचान हुई है जिसकी मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रोभूजिन की सहायता से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को और समझना भी सरल होगा व अल्जामरर्स जैसे रोगों के कारण भी खोजे जा सकेंगे। एसआर-१०० नामक यह प्रोभूजिन केशरूकीय क्षेत्र में पाया जाता है साथ ही यह तंत्रिका तंत्र का निर्माण करने वाले जीन को नियंत्रित करता है। एक अमरीकी जरनल सैल (कोशिका) में प्रकाशित बयान के अनुसार स्तनधारियों के मस्तिष्क में विभिन्न जीनों द्वारा तैयार किए गए आनुवांशिक संदेशों के वाहन को नियंत्रित करता है। इस अध्ययन का उद्देश्य ऐसे जीन की खोज करना था जो मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका के निर्माण को नियंत्रित करते हैं। ऎसे में तंत्रिका कोशिका के निर्माण में इस प्रोभूजिन की महत्त्वपूर्ण भूमिका की खोज तंत्रिका कोशिका के विकास में होने वाली कई अपसामान्यताओं से बचा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका निर्माण के समय कुछ गलत संदेशों वाहन से तंत्रिका कोशिका का निर्माण प्रभावित होता है। तंत्रिका कोशिका का विकृत होना अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों के कारण भी होता है। इस प्रोभूजिन की खोज के बाद इस दिशा में निदान की संभावनाएं उत्पन्न हो गई हैं। .

देखें बीसवीं शताब्दी और न्यूरॉन

परमाणु परीक्षण

२७ मार्च, १९५४ को अमरीका द्वारा किये गये कैसल रोमियो नाभिकीय परीक्षण का चित्र "बेकर शॉट", संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया ऑपरेशन क्रॉसरोड्स अभियान का एक भाग, १९४६ नाभिकीय अस्त्र परीक्षण (अंग्रेज़ी:Nuclear weapons tests) या परमाण परीक्षण उन प्रयोगों को कहते हैं जो डिजाइन एवं निर्मित किये गये नाभिकीय अस्त्रों के प्रभाविकता, उत्पादकता एवं विस्फोटक क्षमता की जाँच करने के लिये किये जाते हैं। परमाणु परीक्षणों से कई जानकारियाँ प्राप्त होतीं हैं; जैसे - ये नाभिकीय हथियार कैसा काम करते हैं; विभिन्न स्थितियों में ये किस प्रकार का परिणाम देते हैं; भवन एवं अन्य संरचनायें इन हथियारों के प्रयोग के बाद कैसा बर्ताव करतीं हं। सन् १९४५ के बाद बहुत से देशों ने परमाणु परीक्षण किये। इसके अलावा परमाणु परीक्षणों से वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सैनिक शक्ति का प्रदर्शन करने की कोशिश भी की जाती है। .

देखें बीसवीं शताब्दी और परमाणु परीक्षण

पापारात्सी

पापारात्सी शैली की फोटोकारी पापारात्सी (Paparazzi) उन स्वतन्त्र फोटोग्राफरों को कहते हैं जो खिलाड़ियों, अभिनेताओं, राजनेताओं, तथा अन्य प्रद्ध व्यक्तियों के फोटो लेते हैं। ये प्रायः उनके दैनिक जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों के फोटो लेते हैं। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अख़बारी फ़ोटोग्राफ़रों का यह बिल्कुल नया पेशा सामने आया। पापारात्सी राजनीति, खेल, फ़िल्म या किसी भी विभाग के प्रसिद्ध व्यक्ति का पीछा करते हैं और उनके दैनिक जीवन के ऐसे तथ्यों को अपने कैमरे में सुरक्षित कर लेते हैं जो देखने वालों के लिए अत्याधिक रोचक और सनसनी से भरी हो। पापारात्सी फ़ोटोग्राफ़र शो बिज़नेस की दुनिया में विशेष रूप से बदनाम हैं क्योंकि उन के जासूस कैमरों की आंखें कला जगत के विख्यात सितारों का पीछा करती रहती हैं और उन प्रसिद्ध कलाकारों के लिए तनहाई में एक छण भी बिताना मुशकिल हो जाता है। पापारात्सी (Paparazzi) इतालवी भाषा का शब्द है और इसका उच्चारण पापारात्सी है। पहली बार 50 के दशक में सुना गया था जब रोम के कुछ युवा फ़ोटोग्राफ़रों ने मिस्र के शाह फ़ारूक़ के कुछ निजी चित्र प्रकाशित करा दिए। लेकिन उस समय तक पापारात्सी शब्द चर्चित नहीं हुआ था बल्कि ऐसे लोगों की चर्चा स्ट्रीट फ़ोटोग्राफ़र (Street Photographer) जैसे अपमानजनक नाम से की जाती थी। इन लोगों के पेशे को लेकर उस समय काफ़ी आलोचना शुरू हो गई जब राजकुमारी डायना की एक दुर्घटना में मौत हुई। इस कार दुर्घटना के बारे में एक विचार यह था कि सब पापारात्सी फ़ोटोग्राफ़रों का किया धरा है जो कि राजकुमारी डायना और उनके प्रेमी की फ़ोटो लेने के लिए शिकारी कुत्तों की तरह उन का पीछा किया करते थे। .

देखें बीसवीं शताब्दी और पापारात्सी

पारिस्थितिकी

260 px 95px 173px 115px 125px पारिस्थितिकी का वैज्ञानिक साम्राज्य वैश्विक प्रक्रियाओं (ऊपर), से सागरीय एवं पार्थिव सतही प्रवासियों (मध्य) से लेकर अन्तर्विशःइष्ट इंटरैक्शंस जैसे प्रिडेशन एवं परागण (नीचे) तक होता है। पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी:इकोलॉजी) जीवविज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीव समुदायों का उसके वातावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करतें हैं। प्रत्येक जन्तु या वनस्पति एक निशिचत वातावरण में रहता है। पारिस्थितिज्ञ इस तथ्य का पता लगाते हैं कि जीव आपस में और पर्यावरण के साथ किस तरह क्रिया करते हैं और वह पृथ्वी पर जीवन की जटिल संरचना का पता लगाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २ मई २०१०। पारिस्थितिकी को एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी भी कहा जाता है। इस विषय में व्यक्ति, जनसंख्या, समुदायों और इकोसिस्टम का अध्ययन होता है। इकोलॉजी अर्थात पारिस्थितिकी (जर्मन: Oekologie) शब्द का प्रथम प्रयोग १८६६ में जर्मन जीववैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकल ने अपनी पुस्तक "जनरेल मोर्पोलॉजी देर ऑर्गैनिज़्मेन" में किया था। बीसवीं सदी के आरम्भ में मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों पर अध्ययन प्रारंभ हुआ और एक साथ कई विषयों में इस ओर ध्यान दिया गया। परिणामस्वरूप मानव पारिस्थितिकी की संकलपना आयी। प्राकृतिक वातावरण बेहद जटिल है इसलिए शोधकर्ता अधिकांशत: किसी एक किस्म के प्राणियों की नस्ल या पौधों पर शोध करते हैं। उदाहरण के लिए मानवजाति धरती पर निर्माण करती है और वनस्पति पर भी असर डालती है। मनुष्य वनस्पति का कुछ भाग सेवन करते हैं और कुछ भाग बिल्कुल ही अनोपयोगी छोड़ देते हैं। वे पौधे लगातार अपना फैलाव करते रहते हैं। बीसवीं शताब्दी सदी में ये ज्ञात हुआ कि मनुष्यों की गतिविधियों का प्रभाव पृथ्वी और प्रकृति पर सर्वदा सकारात्मक ही नहीं पड़ता रहा है। तब मनुष्य पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव के प्रति जागरूक हुए। नदियों में विषाक्त औद्योगिक कचरे का निकास उन्हें प्रदूषित कर रहा है, उसी तरह जंगल काटने से जानवरों के रहने का स्थान खत्म हो रहा है। पृथ्वी के प्रत्येक इकोसिस्टम में अनेक तरह के पौधे और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनके अध्ययन से पारिस्थितिज्ञ किसी स्थान विशेष के इकोसिस्टम के इतिहास और गठन का पता लगाते हैं। इसके अतिरिक्त पारिस्थितिकी का अध्ययन शहरी परिवेश में भी हो सकता है। वैसे इकोलॉजी का अध्ययन पृथ्वी की सतह तक ही सीमित नहीं, समुद्री जनजीवन और जलस्रोतों आदि पर भी यह अध्ययन किया जाता है। समुद्री जनजीवन पर अभी तक अध्ययन बहुत कम हो पाया है, क्योंकि बीसवीं शताब्दी में समुद्री तह के बारे में नई जानकारियों के साथ कई पुराने मिथक टूटे और गहराई में अधिक दबाव और कम ऑक्सीजन पर रहने वाले जीवों का पता चला था। .

देखें बीसवीं शताब्दी और पारिस्थितिकी

पाल इल्यार

पाल इल्यार (14 दिसम्बर 1895 – 26 नवम्बर 1952) फ्रांस के एक कवि थे। .

देखें बीसवीं शताब्दी और पाल इल्यार

प्रेयोक्ति

एक प्रेयोक्ति का अर्थ होता है, सुननेवाले को रुष्ट करने वाली या कोई अप्रिय अर्थ देने वाली अभिव्यक्ति को एक रुचिकर या कम अपमानजनक अभिव्यक्ति के साथ प्रतिस्थापित करना, या कहने वाले के लिए उसे कम कष्टकर बनाना, जैसा की द्विअर्थी के मामले में होता है। प्रेयोक्ति का परिनियोजन राजनीतिक विशुद्धता के सार्वजनिक उपयोग में केंद्रीय पहलू है। यह किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के वर्णन को भी प्रतिस्थापित कर सकता है ताकि गोपनीय, पवित्र, या धार्मिक नामों को अयोग्य के समक्ष ज़ाहिर करने से बचा जा सके, या किसी वार्ता के विषय की पहचान को किसी संभावित प्रच्छ्न्न श्रोता से गुप्त रखा जा सके.

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प्रोबायोटिक

लैक्टोबैसिलस जीवाणु प्रोबायोटिक जीवाणु है, जो दूध को दही में बदलता है। प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं। प्रोबायोटिक विधि रूसी वैज्ञानिक एली मैस्निकोफ ने २०वीं शताब्दी में प्रस्तुत की थी। इसके लिए उन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।। हिन्दुस्तान लाइव। १ दिसम्बर २००९ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रोबायोटिक वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं।। बिज़नेस भास्कर। २४ मई २००९। डॉ॰ रतन सागर खन्ना ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं।। बिज्नेस स्टैण्डर्ड। नेहा भारद्वाज। १८ सितंबर २००८ इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु। भोजन के द्वारा यदि मित्र जीवाणुओं को भीतर लें तो वे धीरे-धीरे शरीर में उपलब्ध शत्रु जीवाणुओं को नष्ट करने में कारगर सिद्ध होते हैं। मित्र जीवाणु प्राकृतिक स्रोतों और भोजन से प्राप्त होते हैं, जैसे दूध, दही और कुछ पौंधों से भी मिलते हैं। अभी तक मात्र तीन-चार ही ऐसे जीवाणु ज्ञात हैं जिनका प्रयोग प्रोबायोटिक रूप में किया जाता है। इनमें लैक्टोबेसिलस, बिफीडो, यीस्ट और बेसिल्ली हैं। इन्हें एकत्र करके प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ में डाला जाता है। वैज्ञानिकों के अब तक के अध्ययन के अनुसार इस तरह से शरीर में पहुंचने वाले जीवाणु किसी प्रकार की हानि भी नहीं पहुंचाते हैं। शोधों में रोगों के रोकथाम में इनकी भूमिका सकारात्मक पाई गई है तथा इनके कोई दुष्प्रभाव भी ज्ञात नहीं हैं। .

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फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट

फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट(जनवरी 30, 1882- अप्रैल 12, 1945) अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति थे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान बीसवीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से थे। राष्ट्रपति पद के लिए वे चार बार चुने गए और 1933 से 1945 तक इस पर बने रहे। वे अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने दो बार से ज्यादा इस पद की शोभा बढ़ाई। 1930 के दशक में वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान, उन्होंने रोजगार बढ़ाने, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और आर्थिक सुधार के लिए कई बैंकों और एजेंसियों से समझोता किया। इनमें वर्क्स प्रोग्रेस एडमिनिशट्रेशन(पीपीए), नेशनल रिकवरी एडमिनिस्ट्रेशन(एनआरए) और एग्रीकल्चरल एडजस्टमेंट एडमिनिस्ट्रेशन(एएए) शामिल हैं। हालांकि द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने तक अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी, लेकिन उन्होंने फेडेरल डिपोजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन(एफडीआईसी), टेनिज वेली ऑथरिटी(टीवीए) और यूएस सेक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन जैसे कार्यक्रमों की शुरूआत की। उनके कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में सोशल सेक्युरिटी सिस्टम और नेशनल लेबर रिलेशन बोर्ड की स्थापना शामिल है। जब अंग्रेजों ने धूरी राष्ट्रों के साथ युद्ध छेड़ दी, तो रुजावेल्ट ने विंसटन चर्चिल को मदद का हाथ बढ़ाया और दिसंबर 1941 में औपचारिक रूप से अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल हो गया। उसी दौरान उन्होंने मूल्यों पर रोक लगाई और लोगों को नियंत्रित दर जरूरी चीजें मुहैया करवाई। जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर हमले और नाजियों तथा फ़ासीवादी जर्मनों द्वारा अमेरिका के खिलाफ युद्ध छेड़े जाने के बाद रूजवेल्ट ने जापानी अमेरिकियों, जर्मन अमेरिकियों और इतालवी अमेरिकियों के लिए अंतिम संस्कार की व्यवस्था लागू की, जो युद्ध में मारे गए। ये डेमोक्रैट पार्टी से थे। श्रेणी:अमेरिका के राष्ट्रपति.

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बलवंत सिंह (लेखक)

बलवंत सिंह हिन्दी: (जन्म:जून 1921ई. - 27 मई 1986ई.) बीसवीं सदी की उर्दू और हिन्दी  के मशहूर नाटककार, उपन्यासकार और गल्पकार और पत्रकार हैं जिन्होंने जगा, पहला पत्थर, तारोपुद, हिंदुस्तान हमारा जैसे कहानी संग्रह और कॉल कोस, रात, चोर और चाँद, चक पीरान का जस्सा  जैसे लजवाल उपन्यास सृजन किए और अपनी रचनात्मक गुणों से उर्दू गल्प को विश्वीय पहचान देने मैं #अहम भूमिका अदा की। .

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बालमणि अम्मा का जीवन परिचय

बालमणि अम्मा की पेंटिंग बालमणि अम्मा बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में से एक हैं। उनका जन्म 19 जुलाई 1909 को केरल के मालाबार जिला के पुन्नायुर्कुलम (तत्कालीन मद्रास प्रैज़िडन्सी, ब्रिटिश राज) में पिता चित्तंजूर कुंज्जण्णि राजा और माँ नालापत कूचुकुट्टीअम्मा के यहाँ "नालापत" में हुआ था। यद्यपि उनका जन्म 'नालापत' के नाम से पहचाने-जाने वाले एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ, जहां लड़कियों को विद्यालय भेजना अनुचित माना जाता था। इसलिए उनके लिए घर में शिक्षक की व्यवस्था कर दी गयी थी, जिनसे उन्होने संस्कृत और मलयालम भाषा सीखी। नालापत हाउस की अलमारियाँ पुस्तकों से भरी-पड़ी थीं। इन पुस्तकों में कागज पर छपी पुस्तकों के साथ हीं ताड़पत्रों पर उकेरी गई हस्तलिपि वाली पुस्तकें भी थीं। इन पुस्तकों में बाराह संहिता से लेकर टैगोर तक का रचना संसार सम्मिलित था। उनके मामा एन॰ नारायण मेनन कवि और दार्शनिक थे, जिन्होने उन्हें साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित किया। कवि और विद्वान घर पर अतिथि के रूप में आते और हफ्तों रहते थे। इस दौरान घर में साहित्यिक चर्चाओं का घटाटोप छाया रहता था। इस वातावरण ने उनके चिंतन को प्रभावित किया। उनका विवाह 19 वर्ष की आयु में वर्ष 1928 में वी॰एम॰ नायर से हुआ, जो आगे चलकर मलयालम भाषा के दैनिक समाचार पत्र 'मातृभूमि'के प्रबंध संपादक और प्रबंध निदेशक बनें। विवाह के तुरंत बाद अम्मा ने अपने पति के साथ कोलकाता छोड़ दिया। उस समय उनके पति "वेलफोर्ट ट्रांसपोर्ट कम्पनी" में वरिष्ठ अधिकारी थे। यह कंपनी ऑटोमोबाइल कंपनी "रोल्स रॉयस मोटर कार्स" और "बेंटले" के उपकरणों को बेचती थी। 1977 में उनके पति की मृत्यु हुई। वे अँग्रेजी व मलयालम भाषा की प्रसिद्ध भारतीय लेखिका कमला दास की माँ थीं, जिन्हें उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’से अत्यधिक प्रसिद्धि मिली थी और उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार हेतु नामित किया गया था। कमला के लेखन पर अम्मा का अत्यंत प्रभाव पड़ा था।इसके अलावा वे क्रमश: सुलोचना, मोहनदास और श्याम सुंदर की भी माँ थीं। लगभग पाँच वर्षों तक अलजाइमर रोग से जूझने के बाद 95 वर्ष की अवस्था में 29 सितंबर 2004 को शाम 4 बजे कोच्चि में उनकी मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु के बाद से वे यहाँ अपने बच्चों क्रमश: श्याम सुंदर (पुत्र) और सुलोचना (पुत्री) के साथ रह रहीं थीं। उनका अंतिम संस्कार कोच्चि के रविपुरम शव दाह गृह में हुई। .

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बकिंघम नहर

कोरोमंडल तट का मानचित्र, जिसमें बकिंघम नहर दर्शित है बकिंघम नहर दक्षिण भारत के कोरोमंडल तट के समानांतर ४२० कि॰मी॰ लंबी खारे पानी की नौवहन नहर है। यह आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा शहर से तमिल नाडु के विल्लुपुरम जिला तक जाती है। यह नहर अधिकांश बैक वाटर्स को चेन्नई बंदरगाह से जोड़ती है। इसका निर्माण ब्रिटिश काल में अंतिम १९वीं शताब्दी और आरंभिक बीसवीं शताब्दी में हुआ था। श्रेणी:चेन्नई.

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ब्याज

ब्याज एक ऐसा शुल्क है जो उधार ली गयी संपत्ति (ऋण) के लिए किया जाता है। यह उधार लिए गए पैसे के लिए अदा की गयी कीमत है, या, जमा धन से अर्जित किया गया पैसा है। जिन संपत्तियों को ब्याज के साथ उधार दिया जाता है उनमें शामिल हैं धन, शेयर, किराए पर खरीद द्वारा उपभोक्ता वस्तुएं, प्रमुख संपत्तियां जैसे विमान और कभी-कभी वित्त पट्टा व्यवस्था पर दिया गया पूरा कारखाना.

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भोजेश्वर मन्दिर

भोजेश्वर मन्दिर (जिसे भोजपुर मन्दिर भी कहते हैं) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग ३० किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर नामक गांव में बना एक मन्दिर है। यह मन्दिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। --> मन्दिर का निर्माण एवं इसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० - १०५३ ई॰) ने करवायी थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर मन्दिर या भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है, हालाँकि कुछ किंवदंतियों के अनुसार इस स्थल के मूल मन्दिर की स्थापना पाँडवों द्वारा की गई मानी जाती है। इसे "उत्तर भारत का सोमनाथ" भी कहा जाता है। यहाँ के शिलालेखों से ११वीं शताब्दी के हिन्दू मन्दिर निर्माण की स्थापत्य कला का ज्ञान होता है व पता चलता है कि गुम्बद का प्रयोग भारत में इस्लाम के आगमन से पूर्व भी होता रहा था। इस अपूर्ण मन्दिर की वृहत कार्य योजना को निकटवर्ती पाषाण शिलाओं पर उकेरा गया है। इन मानचित्र आरेखों के अनुसार यहाँ एक वृहत मन्दिर परिसर बनाने की योजना थी, जिसमें ढेरों अन्य मन्दिर भी बनाये जाने थे। इसके सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाने पर ये मन्दिर परिसर भारत के सबसे बड़े मन्दिर परिसरों में से एक होता। मन्दिर परिसर को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक चिह्नित किया गया है व इसका पुनरुद्धार कार्य कर इसे फिर से वही रूप देने का सफ़ल प्रयास किया है। मन्दिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मन्दिरों में सबसे ऊँचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मन्दिर के निकट ही इस मन्दिर को समर्पित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी बना है। शिवरात्रि के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा यहां प्रतिवर्ष भोजपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है। .

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मधुशाला

मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। .

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महाद्वीप

महाद्वीपों को समाहित या विभाजित किया जा सकता है, उदाहरणतः यूरेशिया को प्रायः यूरोप तथा एशिया में विभाजित किया जाता है लाल रंग में। बक्मिन्स्टर फुलर द्वारा डायमैक्सियम नक्शा जो दर्शित करता है भूमिखण्ड कम से कम विरूपण समेत, एक एक लगातार महाद्वीप में बंटे हुए विश्व के महाद्वीप महाद्वीप (en:Continent) एक विस्तृत ज़मीन का फैलाव है जो पृथ्वी पर समुद्र से अलग दिखाई देतै हैं। महाद्वीप को व्यक्त करने के कोई स्पष्ट मापदण्ड नहीं है। अलग-अलग सभ्यताओं और वैज्ञानिकों नें महाद्वीप की अलग परिभाषा दी है। पर आम राय ये है कि एक महाद्वीप धरती बहुत बड़ा का विस्तृत क्षेत्र होता है जिसकी सीमाएं स्पष्ट पहचानी जा सके.

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मिजुहारा शुओशी

मिजुहारा शुओशी (Mizuhara Shuoshi) (१८९२-१९८१) २०वीं शताब्दी के जापानी कवि एवं हाइकुकार थे। पेशे से वे अपने पिता की तरह चिकित्सक थे। उन्होंने सन १९२६ में टोक्यो विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की। उन्होंने २० खंडो में हाइकु का प्रकाशन किया। डॉ॰ अंजली देवधर द्वारा हिन्दी में अनुवादित शुओशी का एक हाइकु- एक नया वर्ष आरम्भ हुआ खिल जाने से एक तुषारायित गुलाब के .

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ललितामहल

ललिता महल मैसूर का दूसरा सबसे बड़ा महल है। यह चामुंडी हिल के निकट, मैसूर शहर के पूर्वी ओर कर्नाटक राज्य में स्थित है। इस महल का निर्माण १९२१ में मैसूर के तत्कालीन महाराजा कृष्णराज वोडेयार चतुर्थ के आदेशानुसार हुआ था। इस महल के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य तत्कालीन भारत के वाइसरॉय को मैसूर यात्रा के दौरान ठहराना था। वर्तमान में ललितामहल भारत का अतिथिगृह एवं भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) होटल है। यह महल लंदन के सेंट पॉल कैथेड्रल की तर्ज पर बना हुआ है। यह मैसूर शहर की भव्य संरचनाओं में से एक है। इस भव्य महल को शुद्ध सफेद रंग से पोता गया है। इसे 1974 में एक विरासत होटल के रूप में परिवर्तित किया गया था। यह अब भारत सरकार के तहत भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) के अन्तर्गत अशोक ग्रुप के एक विशिष्ट होटल के रूप में चलाया जाता है। हालांकि, महल के मूल शाही माहौल को पहले जैसा ही बनाए रखा गया है। .

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शनि की साढ़े साती

शनि की साढ़े साती, भारतीय ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में से एक ग्रह, शनि की साढ़े सात वर्ष चलने वाली एक प्रकार की ग्रह दशा होती है। ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र के नियमानुसार सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते हैं। इस प्रकार जब शनि ग्रह लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। शनि की मंथर गति से चलने के कारण ये ग्रह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है, इस प्रकार एक वर्तमान के पहले एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। भारतीय ज्योतिष में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है। .

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सत्यजित राय

सत्यजित राय (बंगाली: शॉत्तोजित् राय्) (२ मई १९२१–२३ अप्रैल १९९२) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। इनका जन्म कला और साहित्य के जगत में जाने-माने कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज और विश्व-भारती विश्वविद्यालय में हुई। इन्होने अपने कैरियर की शुरुआत पेशेवर चित्रकार की तरह की। फ़्रांसिसी फ़िल्म निर्देशक ज़ाँ रन्वार से मिलने पर और लंदन में इतालवी फ़िल्म लाद्री दी बिसिक्लेत (Ladri di biciclette, बाइसिकल चोर) देखने के बाद फ़िल्म निर्देशन की ओर इनका रुझान हुआ। राय ने अपने जीवन में ३७ फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं। इनकी पहली फ़िल्म पथेर पांचाली (পথের পাঁচালী, पथ का गीत) को कान फ़िल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। यह फ़िल्म अपराजितो (অপরাজিত) और अपुर संसार (অপুর সংসার, अपु का संसार) के साथ इनकी प्रसिद्ध अपु त्रयी में शामिल है। राय फ़िल्म निर्माण से सम्बन्धित कई काम ख़ुद ही करते थे — पटकथा लिखना, अभिनेता ढूंढना, पार्श्व संगीत लिखना, चलचित्रण, कला निर्देशन, संपादन और प्रचार सामग्री की रचना करना। फ़िल्में बनाने के अतिरिक्त वे कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार और फ़िल्म आलोचक भी थे। राय को जीवन में कई पुरस्कार मिले जिनमें अकादमी मानद पुरस्कार और भारत रत्न शामिल हैं। .

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साइबर्नेटिक्स

साईबर्नेटिक फैक्टरी को एक नियंत्रण प्रणाली रूप में प्रतिरूपित किया जा सकता है। साइबर्नेटिक्स नियामक व्यवस्था के ढांचों का अंतःविषय अध्ययन होता है। ये नियंत्रण सिद्धांत और प्रणाली सिद्धांत से निकटता से संबंधित होता है। इसका उद्गम एवं विकास २०वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था। साइबर्नेटिक्स समान रूप से शारीरिक और सामाजिक (जो भाषा के आधार पर) अनुप्रयोग प्रणालियों पर लागू होता है। श्रेणी:नियंत्रण सिद्धांत श्रेणी:रूपबद्ध विज्ञान श्रेणी:सिस्टम्स श्रेणी:सिटम्स सिद्धांत श्रेणी:अमरीकी खोज.

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सूक्ष्मदर्शन

परागकणों का स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्राप्त चित्र सूक्ष्मदर्शिकी या सूक्ष्मदर्शन (अंग्रेज़ी:माइक्रोस्कोपी) विज्ञान की एक शाखा होती है, जिसमें सूक्ष्म व अतिसूक्ष्म जीवों को बड़ा कर देखने में सक्षम होते हैं, जिन्हें साधारण आंखों से देखना संभव नहीं होता है। इसका मुख्य उद्देश्य सूक्ष्मजीव संसार का अध्ययन करना होता है। इसमें प्रकाश के परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन और विद्युतचुम्बकीय विकिरण का प्रयोग होता है। विज्ञान की इस शाखा मुख्य प्रयोग जीव विज्ञान में किया जाता है। विश्व भर में रोगों के नियंत्रण और नई औषधियों की खोज के लिए माइक्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता है।|हिन्दुस्तान लाइव। ९ जून २०१० सूक्ष्मदर्शन की तीन प्रचलित शाखाओं में ऑप्टिकल, इलेक्ट्रॉन एवं स्कैनिंग प्रोब सूक्ष्मदर्शन आते हैं। ---- एक स्टीरियो सूक्ष्मदर्शी माइक्रोस्कोपी विषय का आरंभ १७वीं शताब्दी के आरंभ में हुआ माना जाता है। इसी समय जब वैज्ञानिकों और अभियांत्रिकों ने भौतिकी में लेंस की खोज की थी। लेंस के आविष्कार के बाद वस्तुओं को उनके मूल आकार से बड़ा कर देखना संभव हो पाया। इससे पानी में पाए जाने वाले छोटे और अन्य अति सूक्ष्म जंतुओं की गतिविधियों के दर्शन सुलभ हुए और वैज्ञानिकों को उनके बारे में नये तथ्यों का ज्ञान हुआ। इसके बाद ही वैज्ञानिकों को यह भी ज्ञात हुआ कि प्राणी जगत के बारे में अपार संसार उनकी प्रतीक्षा में है व उनका ज्ञान अब तक कितना कम था। माइक्रोस्कोपी की शाखा के रूप में दृष्टि संबंधी सूक्ष्मदर्शन (ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी) का जन्म सबसे पहले माना जाता है। इसे प्रकाश सूक्ष्मदर्शन (लाइट माइक्रोस्कोपी) भी कहा जाता है। जीव-जंतुओं के अंगों को देखने के लिए इसका प्रयोग होता है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप) अपेक्षाकृत महंगे किन्तु बेहतर उपकरण होते हैं। सूक्ष्मदर्शन के क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज अत्यंत महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसकी खोज के बाद वस्तुओं को उनके वास्तविक आकार से कई हजार गुना बड़ा करके देखना संभव हुआ था। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी में हुई थी। हालांकि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप अन्य सूक्ष्मदर्शियों से महंगा होता है और प्रयोगशाला में इसका प्रयोग करना छात्रों के लिए संभव नहीं होता, लेकिन इसके परिणाम काफी बेहतर होते हैं। इससे प्राप्त चित्र एकदम स्पष्ट होते हैं। सूक्ष्मदर्शन में एक अन्य तकनीक का प्रयोग होता है, जो इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शन से भी बेहतर मानी जाती है। इसमें हाथ और सलाई के प्रयोग से वस्तु का कई कोणों से परीक्षण होता है। ग्राहम स्टेन ने इसी प्रक्रिया में सबसे पहले जीवाणु को देखा था। .

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हुमायूँ का मकबरा

हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है- अभिव्यक्ति। १७ अप्रैल २०१०।, एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। १९९३ में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं। देल्ही थ्रु एजेज़। एस.आर.बख्शी। प्रकाशक:अनमोल प्रकाशन प्रा.लि.। १९९५।ISBN 81-7488-138-7। पृष्ठ:२९-३५ इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। हिस्ट‘ओरिक गार्डन रिव्यु नंबर १३, लंदन:हिस्टॉरिक गार्डन फ़ाउडेशन, २००३ अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा। .

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जेम्स यंग सिंपसन

सर जेम्स यंग सिम्पसन (७ जून १८११ – ६ मई १८७०) एक स्खॉटिश डॉक्टर थे। सिम्पसन ने क्लोरोफार्म का निष्चेतक के रूप में अन्वेषण किया था। एडनबरा से २३ किलोमीटर दूर बाथगेट नामक स्थान पर एक हुआ था।। आज की बात।।१९ अगस्त, २००९। रिंकू,।सीवान, बिहार उनके पिता बहुत कम आमदनी पाने वाले बहुत साधारण से आदमी थे। सेम्पसन पढने लिखने में बहुत ही होशियार थे हर बात कि लगन थी उन में सिर्फ़ १४ साल कि उम्र में उन्होंने एडनबरा विश्वविधालय में दाखिला ले लिए था और मात्र १८ साल कि उम्र में अपनी डाक्टरी कि पढाई पूर्ण कर ली थी। इसके खोज का इतिहास भी रोचक है। क्लोरोफॉर्म की खोज एडनबरा के एक डाक्टर ने की थी। एक बार उनके अस्पताल में एक रोगी के खराब टांग का आपरेशन करने हेतु उसके हाथ पांव रस्सी से बाँध दिए गए। उसकी टांग में एक घाव हो गया था जो सड़ चुका था उसकी टांग काटनी पड़ी थी। जब उसकी टांग काटी गई तो वह मरीज तो दर्द के मारे बेहोश हो गया। उसके साथ ही डाक्टर सेम्प्सन जो उस वक्त पढ़ाई कर रहे थे वह भी बेहोश हो गए। होश में आने पर उन्होंने प्रतिज्ञा कि वह कोई ऐसा आविष्कार करेंगे जिस से मरीज को इतना कष्ट न हो। जब उन्होंने इस के बारे में अपने साथ पढने वाले मित्रों से बात करी तब सब ने उनका मजाक बनाया पर उन्होंने हिम्मत नही हारी। तरल अवस्था में क्लोरोफॉर्म एक परखनली में डाक्टर बन जाने के बाद भी अपनी प्रतिज्ञा भूले नही उन्होंने इस दवाई कि खोज जारी रखे जिस से शल्य-क्रिया के समय कोई रोगी दर्द न सहे। ४ नवम्बर १८४७ को कोई प्रयोग करते समय उनकी नज़र अपने सहयोगी डाक्टर पर पड़ी जो उनकी बनायी एक दवा सूंघ रहे थे और देखते ही देखते वह बेहोश हो गए। सेम्प्सन ने उसको ख़ुद सूंघ के देखा उनकी भी वही हालत हुई जो उनके सहयोगी डाक्टर की हुई थी। तभी उनकी पत्नी वहाँ आई और यह देख कर चीख उठी और किसी और डाक्टर ने डाक्टर सेम्प्सन की नाडी देखी वह ठीक चल रही थी उसी समय डाक्टर सेम्प्सन ने आँखे खोल दी और होश में आते ही वह चिल्लाए कि मिल गया, बेहोश कर के दुबारा होश में आने का नुस्खा मिल गया। बाद में इस में कई परिवर्तन किए गए और यही दवा रोगियों के लिए एक वरदान साबित हुई। क्लोरोफॉर्म का चिकित्सा जगत में प्रयोग १८४७ से ही आरंभ हो गया था, किन्तु जल्द ही रोगियों पर इसके पड़ने वाले विपरीत प्रभाव के कारण इसके प्रयोग पर शंकाएं उठने लगीं थीं।।हिन्दुस्तान लाइव।२९ अक्टूबर, २००९। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में क्लोरोफॉर्म के स्थान पर सुरक्षित और सस्ती दवाएं इस्तेमाल में लाई जाने लगी थीं। आज चिकित्साजगत में अन्य दवाओं के साथ-साथ हेलोथेन, आइसोफ्लुरेन और सेवोफ्लुरेन का प्रयोग इसके स्थान पर किया जाता है। .

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विन्सेंट वैन गो

विन्सेंट विलेम वैन गो (डच: Vincent Willem van Gogh, ३० मार्च १८५३ – २९ जुलाई १८९०) नीदरलैण्ड के अत्यंत प्रतिभावान चित्रकार थे जिनकी पर-प्रभाववादी चित्रकारी ने २०वीं शताब्दी की आधुनिक कला पर अमिट छाप छोड़ी है। इनके चित्र विशद रंगों और संवेदनाओं से भरे हैं। जीवनभर इन्हें कोई सम्मान नहीं मिला, बल्कि मानसिक रोगों से लड़ते रहे, अपना कान तक काट डाला और अंततः ३७ वर्ष की आयु में गोली मार कर आत्महत्या कर ली। मृत्योपरांत इनकी ख्याति बढ़ती ही गई और आज इन्हें संसार के महानतम चित्रकारों में गिना जाता है और आधुनिक कला के संस्थापकों में से एक माना जाता है। वैन गो ने २८ वर्ष की आयु में चित्रकारी करना शुरु किया और जीवन के अंतिम दो वर्षों में अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण रचनाएं बनाईं। ९ साल के समय में इन्होंने २००० से अधिक चित्र बनाए जिनमें लगभग ९०० तैल-चित्र शामिल हैं। इनके द्वारा रचित स्वयं-चित्र, परिदृश्य, छवियाँ और सूरजमुखी विश्व की सबसे प्रसिद्ध और महंगी कलाकृतियों में शामिल हैं। वैन गो ने अपने वयस्क जीवन की शुरुआत की कलाकृतियों के व्यापारियों के साथ काम करते हुए और द हेग, लंदन और पैरिस के बीच काफी घूमे। इसके बाद इन्होंने इंग्लैण्ड में कुछ समय पढ़ाया भी। इनकी कामना थी पादरी बनने की और इसी मकसद से इन्होंने १८७९ से बेल्जियम की एक खान में मिशनरी का काम करना शुरु किया। इसी दौरान इन्होंने आस-पास के लोगों के चित्र बनाना शुरु किया और १८८५ में अपनी पहली मुख्य रचना आलूहारी (The Potato Eaters, द पोटेटो ईटर्स) बनाई। उस समय ये अपने चित्रों में मलिन रंगों का उपयोग करते थे। मार्च १८८६ में ये कलाकार बनने का ध्येय लेकर पैरिस पहुंचे और इनका सामना हुआ फ्रांसीसी प्रभाववादी कलाकारों से। कुछ समय बाद विन्सेंट वैन गो दक्षिणी फ्रांस पहुंचे, जहाँ की चकाचौंध धूप इन्हें बहुत सुहाई। तबसे इनके चित्रों में चमकीले रंगों का प्रयोग बढ़ना शुरु हुआ। आर्ल में रहते हुए इन्होंने अपनी निराली शैली विकसित की जिससे आज इनकी पहचान होती है। इनके मानसिक रोगों का इनकी कला पर क्या प्रभाव डाला इसपर बहुत चर्चा हुई है। आजकल यह माना जाता है कि ये परिपूर्ण कलाकार थे जो अपने रोग के कारण नष्ट हुए समय को लेकर निराश रहते थे। .

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विल्लुपुरम चिन्नैया गणेशन

शिवाजी गणेशन (சிவாஜி கணேசன்) (जन्म:विल्लुपुरम चिन्नैया पिल्लई गणेशन, १ अक्टूबर, १९२८ - २१ जुलाई, २००१)) एक भारतीय फिल्म अभिनेता थे। ये बीसवीं शताब्दी के परार्ध में सक्रिय रहे। इनको भारत सरकार द्वारा सन १९८४ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं। .

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विश्व देवालय (पैन्थियन), रोम

विश्व देवालय ((ब्रिटेन) या (अमेरिका), Pantheon,शायद ही कभी पैन्थियम. इस इमारत का वर्णन करने में प्लिनी के प्राकृतिक इतिहास (XXXVI.38) में यह दिखाई देता है: Agrippae Pantheum decoravit Diogenes Atheniensis; in columnis templi eius Caryatides probantur inter pauca operum, sicut in fastigio posita signa, sed propter altitudinem loci minus celebrata.

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विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत)

आयोग की स्थापना के समय मौलाना आजाद एवं डॉ॰सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (अंग्रेज़ी:University Grants Commission, लघु:UGC) केन्द्रीय सरकार का एक उपक्रम है जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को अनुदान प्रदान करता है। यही आयोग विश्वविद्यालयों को मान्यता भी देता है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है और इसके छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलुरु में हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २२ फ़रवरी २०१० .

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वैश्वीकरण

Puxi) शंघाई के बगल में, चीन. टाटा समूहहै। वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात, व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण.

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खगोल शास्त्र

चन्द्र संबंधी खगोल शास्त्र: यह बडा क्रेटर है डेडलस। १९६९ में चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करते समय अपोलो ११ के चालक-दल (क्रू) ने यह चित्र लिया था। यह क्रेटर पृथ्वी के चन्द्रमा के मध्य के नज़दीक है और इसका व्यास (diameter) लगभग ९३ किलोमीटर या ५८ मील है। खगोल शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसके अंतर्गत पृथ्वी और उसके वायुमण्डल के बाहर होने वाली घटनाओं का अवलोकन, विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। यह वह अनुशासन है जो आकाश में अवलोकित की जा सकने वाली तथा उनका समावेश करने वाली क्रियाओं के आरंभ, बदलाव और भौतिक तथा रासायनिक गुणों का अध्ययन करता है। बीसवीं शताब्दी के दौरान, व्यावसायिक खगोल शास्त्र को अवलोकिक खगोल शास्त्र तथा काल्पनिक खगोल तथा भौतिक शास्त्र में बाँटने की कोशिश की गई है। बहुत कम ऐसे खगोल शास्त्री है जो दोनो करते है क्योंकि दोनो क्षेत्रों में अलग अलग प्रवीणताओं की आवश्यकता होती है, पर ज़्यादातर व्यावसायिक खगोलशास्त्री अपने आप को दोनो में से एक पक्ष में पाते है। खगोल शास्त्र ज्योतिष शास्त्र से अलग है। ज्योतिष शास्त्र एक छद्म-विज्ञान (Pseudoscience) है जो किसी का भविष्य ग्रहों के चाल से जोड़कर बताने कि कोशिश करता है। हालाँकि दोनों शास्त्रों का आरंभ बिंदु एक है फिर भी वे काफ़ी अलग है। खगोल शास्त्री जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करते हैं जबकि ज्योतिषी केवल अनुमान आधारित गणनाओं का सहारा लेते हैं। .

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ग्रैन्ड कैन्यन

ग्रैंड कैन्यन और निकटवर्ती क्षेत्रों का १९०८ का एक मानचित्र। ग्रैंड कैन्यन घाटी संयुक्त राज्य अमेरिका के एरिजोना राज्य से होकर बहने वाली कोलोरेडो नदी की धारा से बनी तंग घाटी है। यह घाटी अधिकांशत: ग्रैंड कैन्यन नेशनल पार्क से घिरी है जो अमेरिका के सबसे पहले राष्ट्रीय उद्यानों में से एक था। भू-विशेषज्ञों के अनुसार कोलोरेडो नदी के बहाव से ग्रैंड कैन्यन घाटी कोई साठ लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई थी। यह घाटी ४४६ किलोमीटर लंबी और छह हजार फीट गहरी है। २७७ कि॰मी॰ लंबी इस घाटी विभिन्न स्थानों पर इसकी चौड़ाई ६.४ से २९ कि॰मी॰ तक है और गहरायी एक मील (१.८३ कि.मी.) तक है। लगभग २० करोड़ वर्ष पूर्व कोलोराडो नदी और उसकी सहायक नदियों ने इस क्षेत्र को परत दर पर्त काटा था और कोलोराडो पठार ऊपर उठता गया था, तब पृथ्वी का भूगर्भीय इतिहास प्रकट हुआ था। ग्रैण्ड कैन्यन पश्चिम में आरंभ हुयी और दूसरी पूर्व में भी साथ ही बनी। लगभग ६० लाख वर्ष पूर्व दोनो एक साथ मिल गयीं यह संगम उस स्थान पर हुआ था, जहां आज नदी पश्चिम को मुड़ती है। यह स्थान कैबब मेहराब कहलाता है। " लेख Grand Canyon Still Grand but Older प्रकाशित: ७ मार्च, २००८, शोधकर्ता: विक्टर पोल्याक, कैरल हिल येमाने एस्मोरोम, विज्ञान, खंड ३१९, पृ.१३७७-१३८० आधुनिक अमेरिकी राज्य के १७७९ में अस्तित्व में आने से पूर्व ग्रैंड कैन्यन घाटी में अमेरिकी इंडियंस रहते थे। इस घाटी की गुफाएं उनका घर थीं और वहां पर उनके कई धार्मिक पवित्र स्थान भी थे। इस स्थान पर पहुंचने वाले पहले यूरोपीय यात्री स्पेन के गार्सिया लोपेज दि गार्सेनाज थे जो यहां १५४० में पहुंचे थे। नए परीक्षणों के बाद भू-विशेषज्ञों का कहना है कि कोलोरेडो बेसिन एक करोड़ सत्तर लाख वर्ष पूर्व बना था। वर्ष २००८ में इस नई खोज को प्रकाशित किया गया था जो घाटी से मिले कैल्साइट की यूरेनियम जांच के बाद प्रकाश में आया था। हालांकि बाद में इस खोज पर बहुत विवाद भी हुआ था। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट पिछली शताब्दी के आरंभ में ग्रैंड कैन्यन पार्क को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया था। आज यह कई प्राणियों को संरक्षण देता है। कोलोरेडो नदी में भी पर्यटक कई तरह के जल-क्रीड़ा (वाटर स्पोटर्स)का आनंद भी उठाते हैं। इस विशालकाय घाटी को देखने के लिए पर्यटकों को हवाई जहाज की सुविधा भी मिलती है। एक विशाल प्राकृतिक अजूबे के साथ ही ग्रैंड कैन्यन अमेरिका के सबसे बड़े पर्यटक केंद्रों में से एक है। Image:GRANDVIEWREVB.jpg|ग्रैंडव्यू पाइंट से ग्रैंड कैन्यन का दृश्य File:Hazy_blue_hour_in_Grand_Canyon.JPG|ब्लू आवर, ग्रैंड कैन्यन .

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गोपालदास नीरज

गोपालदास नीरज (जन्म: 4 जनवरी 1925), हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक हैं। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। .

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आशारानी व्होरा

आशारानी व्होरा (जन्म: ७ अप्रैल १९२१ - मृत्यु: २१ दिसम्बर २००९) ब्रिटिश भारत में झेलम जिले में जन्मी एक हिन्दी लेखिका थीं जिन्होंने सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। जीवन की अन्तिम साँस तक वह निरन्तर लिखती रहीं। ८८ वर्ष की आयु में उनका निधन नई दिल्ली में अपने बेटे डॉ॰ शशि व्होरा के घर पर हुआ। आशारानी को अपने जीवन काल में कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति एक ट्रस्ट बनाकर नोएडा स्थित सूर्या संस्थान को दान कर दी। .

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क्रिकेट का इतिहास

क्रिकेट के खेल का इतिहास 16 वीं शताब्दी से आज तक अत्यन्त विस्तृत रूप में विद्यमान है, अंतरराष्ट्रीय मैच1844 के बाद खेला गया, यद्यपि आधिकारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट (Test cricket) 1877 से प्रारम्भ हुए.

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क्लोरोफॉर्म

क्लोरोफ़ॉर्म (अंग्रेज़ी:Chloroform) या ट्राईक्लोरो मिथेन (अंग्रेज़ी:Trichloro methane) एक कार्बनिक यौगिक है, जिसका रासयनिक सूत्र CHCl3 है। यह एक रंगहीन और सुगंधित तरल पदार्थ होता है जिसे चिकित्सा क्षेत्र में किसी रोगी को शल्य क्रिया किए जाने के लिए मूर्छित करने हेतु निष्चेतक। याहू जागरण।। डॉ॰ मुमुक्षु दीक्षित: सीनियर कन्सल्टेट एनेस्थेटिस्ट।१४ अक्टूबर, २००८ के रूप में प्रयोग किया जाता था। ।हिन्दुस्तान लाइव।२९ अक्टूबर, २००९।। निश्चेतना विज्ञान (एनेस्थीसिया) के अंतर्गत निष्चेतक देने वाले डॉक्टर के तीन महत्वपूर्ण प्रयोजन होते हैं, जिनमें पहला, शल्य-क्रिया के लिए रोगी को मूर्छा की स्थिति में पहुंचाकर उसे पुन: सकुशल अवस्था में लाना होता है। इसके बाद दूसरा काम रोगी को दर्द से छुटकारा दिलाना तथा तीसरा काम शल्य-चिकित्सक की आवश्यकतानुसार रोगी की मांसपेशियों को कुछ ढीला करने का प्रयास करना होता है। आरंभिक काल में एक ही निष्चेतक यानि ईथर या क्लोरोफॉर्म से उपरोक्त तीनों काम किये जाते थे, किंतु क्लोरोफॉर्म की मात्रा के कम या अधिक होने से रोगी पर सुरक्षापूर्वक वांछित परिणाम नहीं मिल पाते थे, जिस कारण से चिकित्सा विज्ञान में अनेक शोध जारी रहे और आज इस क्षेत्र में हुई प्रगति से संतुलित निष्चेतक के माध्यम से रोगियों को भिन्न-भिन्न औषधियों के प्रभाव से आवश्यकतानुरूप वांछित परिणाम मिलते हैं। वर्तमान चिकित्सा में इसका प्रयोग बंद कर दिया गया है। आज क्लोरोफॉर्म का प्रयोग रसायन और साबुन इत्यादि बनाने में किया जाता है। इसका निर्माण इथेनॉल के साथ क्लोरीन की अभिक्रिया कराने के बाद होता है। यह विषैला होता है और इस कारण इसे सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाना चाहिए। क्लोरोफॉर्म के अधिक निकटस्थ प्रयोग रहने से शरीर के कई अंगों पर बुरा असर पड़ सकता है। .

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कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

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कोलकाता की संस्कृति

श्रेणी:कोलकाता.

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उत्तर आधुनिकतावाद

उत्तर आधुनिकतावाद (Postmodernism) २०वीं शताब्दी के दूसरे भाग में दर्शनशास्त्र, कला, वास्तुशास्त्र और आलोचना के क्षेत्रों में फैला एक सांस्कृतिक आंदोलन था जिसने अपने से पहले प्रचलित आधुनिकतावाद को चुनौती दी और सांस्कृतिक वातावरण बदल डाला। इस नई विचारशैली में विचारधाराओं, एक निर्धारित दिशा वाले सामाजिक विकास और वस्तुनिष्ठावाद के विरुद्ध, और संशयवाद, व्यक्तिपरकता (subjectivity) और व्यंगोक्ति की ओर रुझान प्रचलित हो गया। .

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20 शताब्दी, 20वीं शताब्दी, बीसवी शताब्दी, बीसवीं सदी के रूप में भी जाना जाता है।