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बिग बैंग सिद्धांत

सूची बिग बैंग सिद्धांत

महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार, यह ब्रह्मांड अति सघन और ऊष्म अवस्था से विस्तृत हुआ है और अब तक इसका विस्तार चालू है। एक सामान्य धारणा के अनुसार अंतरिक्ष स्वयं भी अपनी आकाशगंगाओं सहित विस्तृत होता जा रहा है। ऊपर दर्शित चित्र ब्रह्माण्ड के एक सपाट भाग के विस्तार का कलात्मक दृश्य है। ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं।।अमर उजाला।। श्य़ामरत्न पाठक, तारा भौतिकविद, जिसके अनुसार से लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में था।।बीबीसी हिन्दी।। बीबीसी संवाददाता, लंदन:ममता गुप्ता और महबूब ख़ान उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई अवधारणा अस्तित्व में नहीं थी।।हिन्दुस्तान लाइव।।२७ अक्टूबर, २००९ महाविस्फोट सिद्धांत के अनुसार लगभग १३.७ अरब वर्ष पूर्व इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गर्म द्रव्य बन चुका था। १.४ सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे और ब्रह्मांड अब कुछ ठंडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व बनने लगे थे। महाविस्फोट सिद्धान्त के आरंभ का इतिहास आधुनिक भौतिकी में जॉर्ज लिमेत्री ने लिखा हुआ है। लिमेत्री एक रोमन कैथोलिक पादरी थे और साथ ही वैज्ञानिक भी। उनका यह सिद्धान्त अल्बर्ट आइंसटीन के प्रसिद्ध सामान्य सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आधारित था। महाविस्फोट सिद्धांत दो मुख्य धारणाओं पर आधारित होता है। पहला भौतिक नियम और दूसरा ब्रह्माण्डीय सिद्धांत। ब्रह्माण्डीय सिद्वांत के मुताबिक ब्रह्मांड सजातीय और समदैशिक (आइसोट्रॉपिक) होता है। १९६४ में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्गस ने महाविस्फोट के बाद एक सेकेंड के अरबें भाग में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत प्रतिपादित किया था, जो भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था। इसे बाद में 'हिग्गस-बोसोन' के नाम से जाना गया। इस सिद्धांत ने जहां ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों पर से पर्दा उठाया, वहीं उसके स्वरूप को परिभाषित करने में भी मदद की।। दैट्स हिन्दी॥।१० सितंबर, २००८। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। .

40 संबंधों: ऍडविन हबल, एंटीमैटर, तापमान, द बिग बैंग थीअरी, पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास, पृथ्वी का इतिहास, फ़्रेड हॉयल, ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड (जैन धर्म), ब्रह्माण्डविद्या, ब्लैक होल (काला छिद्र), बेल्जियम, भट्टी तारामंडल, भौतिक विज्ञानी, भूगोल शब्दावली, मानक मॉडल से परे भौतिकी, रेडियो खगोलशास्त्र, लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर, शिवलिंग, स्टीफन हॉकिंग, स्थायी अवस्था सिद्धान्त, सृजन मिथक, हिग्स बोसॉन, जयन्त विष्णु नार्लीकर, जेम्स वेब खगोलीय दूरदर्शी, विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान, विज्ञान एक्‍सप्रेस, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, खगोलीय ठंडा धब्बा, खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण, गांगेय वर्ष, गुप्त ऊर्जा, इलेक्ट्रॉन, कार्ल सेगन, क्रम-विकास, क्वार्क-ग्लूऑन प्लाज्मा, अजीवात् जीवोत्पत्ति, अंतरिक्ष विज्ञान, अंशुबोधिनी, Hagen Kleinert

ऍडविन हबल

ऍडविन पावल हबल (अंग्रेज़ी: Edwin Powell Hubble, जन्म: २० नवम्बर १८८९, देहांत: २८ सितम्बर १९५३) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे जिन्होनें हमारी गैलेक्सी (आकाशगंगा या मिल्की वे) के अलावा अन्य गैलेक्सियाँ खोज कर हमेशा के लिए मानवजाती की ब्रह्माण्ड के बारे में अवधारणा बदल डाली। उन्होंने यह भी खोज निकाला के कोई गैलेक्सी पृथ्वी से जितनी दूर होती है उस से आने वाले प्रकाश का डॉप्लर प्रभाव उतना ही अधिक होता है, यानि उसमे लालिमा अधिक प्रतीत होती है। इस सच्चाई का नाम "हबल सिद्धांत" रखा गया और इसका सीधा अर्थ यह निकला के हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर बढ़ती हुई गति से फैल रहा है। .

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एंटीमैटर

एंटीमैटर क्लाउड कण भौतिकी में, प्रतिद्रव्य या एंटीमैटर (antimatter) वस्तुतः पदार्थ के एंटीपार्टिकल के सिद्धांत का विस्तार है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार पदार्थ कणों का बना होता है उसी प्रकार प्रतिद्रव्य प्रतिकणों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिये, एक एंटीइलेक्ट्रॉन (एक पॉज़ीट्रॉन, जो एक घनात्मक आवेश सहित एक इलेक्ट्रॉन होता है) एवं एक एंटीप्रोटोन (ऋणात्मक आवेश सहित एक प्रोटोन) मिल कर एक एंटीहाईड्रोजन परमाणु ठीक उसी प्रकार बना सकते हैं, जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन एवं एक प्रोटोन मिल कर हाईड्रोजन परमाणु बनाते हैं। साथ ही पदार्थ एवं एंटीमैटर के संगम का परिणाम दोनों का विनाश (एनिहिलेशन) होता है, ठीक वैसे ही जैसे एंटीपार्टिकल एवं कण का संगम होता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च-ऊर्जा फोटोन (गामा किरण) या अन्य पार्टिकल-एंटीपार्टिकल युगल बनते हैं। वैसे विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन चलचित्रों में कई बार एंटीमैटर का नाम सुना जाता रहा है। एंटीहाइड्रोजन परमाणु का त्रिआयामी चित्र एंटीमैटर केवल एक काल्पनिक तत्व नहीं, बल्कि असली तत्व होता है। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुई थी। तब से यह आज तक वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिस तरह सभी भौतिक वस्तुएं मैटर यानी पदार्थ से बनती हैं और स्वयं मैटर में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, उसी तरह एंटीमैटर में एंटीप्रोटोन, पोसिट्रॉन्स और एंटीन्यूट्रॉन होते हैं।। नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मार्च २०१० एंटीमैटर इन सभी सूक्ष्म तत्वों को दिया गया एक नाम है। सभी पार्टिकल और एंटीपार्टिकल्स का आकार एक समान किन्तु आवेश भिन्न होते हैं, जैसे कि एक इलैक्ट्रॉन ऋणावेशी होता है जबकि पॉजिट्रॉन घनावेशी चार्ज होता है। जब मैटर और एंटीमैटर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो दोनों नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत महाविस्फोट (बिग बैंग) ऐसी ही टकराहट का परिणाम था। हालांकि, आज आसपास के ब्रह्मांड में ये नहीं मिलते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड के आरंभ के लिए उत्तरदायी बिग बैंग के एकदम बाद हर जगह मैटर और एंटीमैटर बिखरा हुआ था। विरोधी कण आपस में टकराए और भारी मात्रा में ऊर्जा गामा किरणों के रूप में निकली। इस टक्कर में अधिकांश पदार्थ नष्ट हो गया और बहुत थोड़ी मात्रा में मैटर ही बचा है निकटवर्ती ब्रह्मांड में। इस क्षेत्र में ५० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित तारे और आकाशगंगा शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सुदूर ब्रह्मांड में एंटीमैटर मिलने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गामा-किरण वेधशाला से मिले चार साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद बताया है कि आकाश गंगा के मध्य में दिखने वाले बादल असल में गामा किरणें हैं, जो एंटीमैटर के पोजिट्रान और इलेक्ट्रान से टकराने पर निकलती हैं। पोजिट्रान और इलेक्ट्रान के बीच टक्कर से लगभग ५११ हजार इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इन रहस्यमयी बादलों की आकृति आकाशगंगा के केंद्र से परे, पूरी तरह गोल नहीं है। इसके गोलाई वाले मध्य क्षेत्र का दूसरा सिरा अनियमित आकृति के साथ करीब दोगुना विस्तार लिए हुए हैं।। याहू जागरण। १४ जनवरी २००९ एंटीमैटर की खोज में रत वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को दो हिस्सों में चीरने की घटना में एंटीमैटर अवश्य उत्पन्न होता होगा। इसके अलावा वे लार्ज हैडरन कोलाइडर जैसे उच्च-ऊर्जा कण-त्वरकों द्वारा एंटी पार्टिकल उत्पन्न करने का प्रयास भी कर रहे हैं। पार्टिकल एवं एंटीपार्टिकल पृथ्वी पर एंटीमैटर की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बहुत थोड़ी मात्रा में एंटीमैटर का निर्माण किया है। प्राकृतिक रूप में एंटीमैटर पृथ्वी पर अंतरिक्ष तरंगों के पृथ्वी के वातावरण में आ जाने पर अस्तित्व में आता है या फिर रेडियोधर्मी पदार्थ के ब्रेकडाउन से अस्तित्व में आता है। शीघ्र नष्ट हो जाने के कारण यह पृथ्वी पर अस्तित्व में नहीं आता, लेकिन बाह्य अंतरिक्ष में यह बड़ी मात्र में उपलब्ध है जिसे अत्याधुनिक यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है। एंटीमैटर नवीकृत ईंधन के रूप में बहुत उपयोगी होता है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया फिल्हाल इसके ईंधन के तौर पर अंतत: होने वाले प्रयोग से कहीं अधिक महंगी पड़ती है। इसके अलावा आयुर्विज्ञान में भी यह कैंसर का पेट स्कैन (पोजिस्ट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा पता लगाने में भी इसका प्रयोग होता है। साथ ही कई रेडिएशन तकनीकों में भी इसका प्रयोग प्रयोग होता है। नासा के मुताबिक, एंटीमैटर धरती का सबसे महंगा मैटेरियल है। 1 मिलिग्राम एंटीमैटर बनाने में 250 लाख डॉलर रुपये तक लग जाते हैं। एंटीमैटर का इस्तेमाल अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाने वाले विमानों में ईधन की तरह किया जा सकता है। 1 ग्राम एंटीमैटर की कीमत 312500 अरब रुपये (3125 खरब रुपये) है। .

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तापमान

आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .

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द बिग बैंग थीअरी

बिग बैंग थीअरी एक अमेरिकी स्थितिपरक प्रहसन है, जिसका सृजन और कार्यकारी निर्माण चक लोर्री और बिल प्रैडी ने किया और जिसका प्रथम प्रदर्शन CBS पर 24 सितंबर 2007 को किया गया। पासाडेना, कैलिफ़ोर्निया में दृश्यबंध यह शो, बीस वर्षीय कैलटेक के दो प्रतिभाशाली पुरुषों पर केन्द्रित है, जिनमें एक प्रयोगात्मक भौतिक विज्ञानी (लीओनार्ड) और दूसरा सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी (शेल्डन) है, जो हॉल के दूसरी ओर रहने वाली मनोरंजन-व्यवसाय से जुड़ने का अरमान लिए एक आकर्षक सुनहरे बालों वाली वेट्रेस (पेन्नी) के क़रीब रहते हैं। लियोनार्ड और शेल्डन के नीरसपन और बौद्धिकता को, हास्यामय प्रभाव उत्पन्न करने के लिए पेन्नी की सामाजिक कुशलता और सामान्य बोध के विपरीत दिखाया गया है। उनके जैसे ही उनके दो और बेकार मित्र, हॉवर्ड और राजेश भी मुख्य किरदारों में शामिल हैं। शो का निर्माण वार्नर ब्रदर टेलीविज़न और चक लोर्री प्रोडक्शन द्वारा किया गया है। मार्च 2009 में ऐसी सूचना थी कि द बिग बैंग थीअरी को CBS ने तीसरे और चौथे सीज़न के लिए नवीकृत किया है। अगस्त 2009 में इस स्थितिपरक प्रहसन ने सर्वोत्कृष्ट प्रहसन श्रृंखला TCA पुरस्कार प्राप्त किया और जिम पार्सन को हास्य में व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए पुरस्कृत किया गया। द बिग बैंग थीअरी का प्रसारण सोमवार 9:30 EST बजे होता है, जिससे पहले चक लोर्री द्वारा ही निर्मित दूसरे शो टू एंड ए हाफ़ मेन का प्रसारण होता है। .

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पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास

300px पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास इसके शैलों के स्तरों के अध्ययन के आधार पर निकाला जाता है। पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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फ़्रेड हॉयल

सर फ़्रेडेरिक हॉयल (24 जून 1915 - 20 अगस्त 2001) ब्रिटिश खगोलशास्त्री थे जिनके विचार अक्सर मुख्य वैज्ञनिक समुदाय के विपरीत होते थे। इनका काम मुख्यतः ब्रह्माण्डविज्ञान के क्षेत्र में है। इन्होंने तारों के नाभिकों में हो रही नाभिकीय प्रक्रियाओं का अध्ययन किया और पाया कि कार्बन तत्त्व बनने के लिये जिस प्रक्रिया की आवश्यकता होती है उसकी सम्भावना सांख्यिकी के अनुसार बहुत कम है। चूंकि मनुष्य और पृथ्वी पर मौजूद अन्य जीवन कार्बन पर आधारित है, हॉयल का विचार था कि ऐसा सम्भव होना इस बात को इंगित करता है कि पृथ्वी पर जीवन की मौजूदगी में किसी ऊपरी शक्ति का हाथ है। नाभिकीय प्रक्रियाओं पर इनके काम को नोबेल समिति ने अनदेखा कर दिया और 1983 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार इनके सहयोगी विलियम ए फोलर को दिया (सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर के साथ)। फ़्रेड हॉयल ब्रह्माण्ड के जन्म के बिग बैंग सिद्धांत में विश्वास नहीं रखते थे। इनका विचार था कि ब्रह्माण्ड एक स्थिर अवस्था में है। विशाल विस्फोट सिद्धान्त के पक्ष में अधिक प्रमाण इकट्ठा होने पर वैज्ञानिकों ने स्थिर अवस्था को लगभग त्याग दिया है। हॉयल का यह भी विश्वास था कि पृथ्वी पर जीवन धूमकेतुओं के जरिए अन्तरिक्ष से आए विषाणुओं के जरिये शुरु हुआ। वे नहीं मानते थे कि रासायनिक प्रक्रियाओं के जरिए जीवन का प्रारंभ संभव है। इन्होंने विज्ञान कथाएँ भी लिखी हैं जिनमें शामिल है द ब्लैक क्लाउड (The Black Cloud, काला बादल) और ए फ़ॉर एन्ड्रोमीडा (A for Andromeda)। द ब्लैक क्लाउड में ऐसे जीवों का वर्णन है जो तारों के बीच के गैस के बादलों में उत्पन्न होते हैं और विश्वास नहीं कर पाते हैं कि ग्रहों पर भी बुद्धिमान जीव उत्पन्न हो सकते है। श्रेणी:खगोलशास्त्री श्रेणी:वैज्ञानिक श्रेणी:1915 में जन्मे लोग.

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ब्रह्माण्ड

ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण समय और अंतरिक्ष और उसकी अंतर्वस्तु को कहते हैं। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह, तारे, गैलेक्सिया, गैलेक्सियों के बीच के अंतरिक्ष की अंतर्वस्तु, अपरमाणविक कण, और सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा शामिल है। अवलोकन योग्य ब्रह्माण्ड का व्यास वर्तमान में लगभग 28 अरब पारसैक (91 अरब प्रकाश-वर्ष) है। पूरे ब्रह्माण्ड का व्यास अज्ञात है, और ये अनंत हो सकता है। .

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ब्रह्माण्ड (जैन धर्म)

जैन धर्म सृष्टि को अनादिनिधन बताता है यानी जो कभी नष्ट नहीं होगी। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड हमेशा से अस्तित्व में है और हमेशा रहेगा। यह ब्रह्मांड प्राकृतिक कानूनों द्वारा नियंत्रित है और अपनी ही ऊर्जा प्रक्रियाओं द्वारा रखा जा रहा है। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड शाश्वत है और ईश्वर या किसी अन्य शक्ति ने इसे नहीं बनाया। आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्माण्ड हमेशा से अस्तित्व में नहीं था, इसकी उत्पत्ति बिग बैंग से हुई थी। .

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ब्रह्माण्डविद्या

हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रहाण्ड का चित्रण ब्रह्माण्डविद्या या कॉस्मोलॉजी खगोल विज्ञान की एक शाखा है, जिसमें ब्रह्माण्ड से जुड़ी तमाम बातों का अध्ययन किया जाता है। इसमें ब्रह्माण्ड के बनने की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी दी जाती है। बीसवीं शताब्दी में आए वैज्ञानिक बदलावों ने वैज्ञानिकों की ब्रह्माण्ड के बारे में दिलचस्पी बढ़ा दी। वैज्ञानिक उससे जुड़े तमाम रहस्यों को तलाशने लगे। यह बीसवीं शताब्दी में कॉस्मोलॉजी के बारे में बढ़ती जिज्ञासा का ही प्रतिफल था कि वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जुड़ी बिग बैंग सिद्धांत दे डाला। कॉस्मोलॉजी की शुरुआत एक तरह से आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के बाद से मानी जाती है। उससे पूर्व ब्रह्माण्ड के शुरुआत और अंत के बारे में कोई निश्चित धारणा नहीं थी। आइंस्टीन ने कहा कि ब्रह्माण्ड में कुछ पदार्थ है। इसी सिद्धांत के आधार पर फ्रेडमेन ने अपना सिद्धान्त दिया जिसमें कहा कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है या सिकुड़ रहा है। 1927 में जॉर्ज लेमेत्री ने बिग बैंग थ्योरी देकर फ्रेडमेन के सिद्धांत की पुष्टि की। इसके बाद हबल के कॉस्मोलॉजिकल सिद्धांत ने बिग बैंग थ्योरी और फ्रेड के गैलैक्सी के नियम को आधार प्रदान किया। 1965 में माइक्रोवेव की खोज और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के नियम के बाद इस बात को माना जाने लगा कि वह फैल रहा है। माइक्रोवेव की खोज के दौरान यह बात भी सामने आई कि ब्रह्माण्ड के 25 प्रतिशत हिस्से में डार्क मैटर है जिसमे से केवल 4 प्रतिशत को ही देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को माना कि विस्फोट से पहले ब्रह्माण्ड सिकुड़ा हुआ था। कॉस्मोलॉजी के मानक सिद्धान्त अनुसार ब्रह्माण्ड को विभिन्न समय में बांटा जा सकता है। इन्हें 'इपोस' कहते हैं। मोटे तौर पर कहा जाए तो फिजिकल कास्मोलॉजी के माध्यम से ब्रह्माण्ड के बड़े ऑब्जेक्ट मसलन गैलेक्सी, क्लस्टर और सुपरक्लस्टर के बारे में जनकारी मिलती है। कॉस्मोलॉजी की मदद से ब्लैक होल के बारे में जानने में मदद मिली। कॉस्मोलॉजी से यह भी देखा गया कि भौतिकी के नियम ब्रह्माण्ड में हर जगह समान हैं या नहीं। .

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ब्लैक होल (काला छिद्र)

बड़े मैग्लेनिक बादल के सामने में एक ब्लैक होल का बनावटी दृश्य। ब्लैक होल स्च्वार्ज़स्चिल्ड त्रिज्या और प्रेक्षक दूरी के बीच का अनुपात 1:9 है। आइंस्टाइन छल्ला नामक गुरुत्वीय लेंसिंग प्रभाव उल्लेखनीय है, जो बादल के दो चमकीले और बड़े परंतु अति विकृत प्रतिबिंबों का निर्माण करता है, अपने कोणीय आकार की तुलना में. सामान्य सापेक्षता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि) में, एक ब्लैक होल ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है। ब्लैक होल के चारों ओर एक सीमा होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है, जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता। इसे "ब्लैक (काला)" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता, थर्मोडाइनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी) में ठीक एक आदर्श ब्लैक-बॉडी की तरह। ब्लैक होल का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। एक ब्लैक होल का पता तारों के उस समूह की गति पर नजर रख कर लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से का चक्कर लगाते हैं। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे से आप एक अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस को गिरते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, यदि प्रकृति की हमारी समझ पूर्णतया गलत साबित न हो जाये तो, हमारे ब्रह्मांड में ब्लैक होल का अस्तित्व मौजूद है। सैद्धांतिक रूप से, कोई भी मात्रा में तत्त्व (matter) एक ब्लैक होल बन सकता है यदि वह इतनी जगह के भीतर संकुचित हो जाय जिसकी त्रिज्या अपनी समतुल्य स्च्वार्ज्स्चिल्ड त्रिज्या के बराबर हो। इसके अनुसार हमारे सूर्य का द्रव्यमान ३ कि.

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बेल्जियम

किंगडम ऑफ़ बेल्जियम उत्तर-पश्चिमी यूरोप में एक देश है। यह यूरोपीय संघ का संस्थापक सदस्य है और उसके मुख्यालय का मेज़बान है, साथ ही, अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों का, जिसमें NATO भी शामिल है। 10.7 मीलियन की जनसंख्या वाले बेल्जियम का क्षेत्रफल है। जर्मनिक और लैटिन यूरोप के मध्य अपनी सांस्कृतिक सीमा को विस्तृत किये हुए बेल्जियम, दो मुख्य भाषाई समूहों, फ्लेमिश और फ्रेंच-भाषी, मुख्यतः वलून्स सहित जर्मन भाषियों के एक छोटे समूह का आवास है। बेल्जियम के दो सबसे बड़े क्षेत्र हैं, उत्तर में 59% जनसंख्या सहित फ्लेंडर्स का डच भाषी क्षेत्र और वालोनिया का फ्रेंच भाषी दक्षिणी क्षेत्र, जहाँ 31% लोग बसे हैं। ब्रुसेल्स-राजधानी क्षेत्र, जो आधिकारिक तौर पर द्विभाषी है, मुख्यतः फ्लेमिश क्षेत्र के अंतर्गत एक फ्रेंच भाषी एन्क्लेव है और यहाँ 10% जनसंख्या बसी है। * * * * पूर्वी वालोनिया में एक छोटा जर्मन भाषी समुदाय मौजूद है। मूल (पहले ही) 71,500 निवासियों के बजाय 73,000 का उल्लेख करता है। बेल्जियम की भाषाई विविधता और संबंधित राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संघर्ष, राजनीतिक इतिहास और एक जटिल शासन प्रणाली में प्रतिबिंबित होता है। बेल्जियम नाम, गॉल के उत्तरी भाग में एक रोमन प्रान्त, गैलिया बेल्जिका से लिया गया है, जो केल्टिक और जर्मन लोगों के एक मिश्रण बेल्जी का निवास स्थान था। ऐतिहासिक रूप से, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग, निचले देश के रूप में जाने जाते थे, जो राज्यों के मौजूदा बेनेलक्स समूह की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ बड़े क्षेत्र को आवृत किया करते थे। मध्य युग की समाप्ति से लेकर 17 वीं सदी तक, यह वाणिज्य और संस्कृति का एक समृद्ध केन्द्र था। 16वीं शताब्दी से लेकर 1830 में बेल्जियम की क्रांति तक, यूरोपीय शक्तियों के बीच बेल्जियम के क्षेत्र में कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं, जिससे इसे यूरोप के युद्ध मैदान का तमगा मिला - एक छवि जिसे दोनों विश्व युद्ध ने और पुष्ट किया। अपनी स्वतंत्रता पर, बेल्जियम ने उत्सुकता के साथ औद्योगिक क्रांति में भाग लिया और उन्नीसवीं सदी के अंत में, अफ्रीका में कई उपनिवेशों पर अधिकार जमाया। 20वीं सदी के उत्तरार्ध को फ्लेमिंग्स और फ्रैंकोफ़ोन के बीच साँप्रदायिक संघर्ष की वृद्धि के लिए जाना जाता है, जिसे एक तरफ तो सांस्कृतिक मतभेद ने भड़काया, तो दूसरी तरफ फ्लेनडर्स और वालोनिया के विषम आर्थिक विकास ने. अब भी सक्रिय इन संघर्षों ने पूर्व में एक एकात्मक राज्य बेल्जियम को संघीय राज्य बनाने के दूरगामी सुधारों को प्रेरित किया। .

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भट्टी तारामंडल

भट्टी (फ़ॉरनैक्स) तारामंडल भट्टी तारामंडल में दिखने वाला ग़ैर-सौरीय ग्रह हिप १३०४४ बी क्षीरमार्ग (हमारी आकाशगंगा) में नहीं जन्मा था (काल्पनिक चित्र) बिग बैंग महाविस्फोट में हुए ब्रह्माण्ड के जन्म के ५० करोड़ वर्षों के अन्दर-अन्दर दिखती होगी भट्टी या फ़ॉरनैक्स खगोलीय गोले के दक्षिणी भाग में स्थित एक छोटा-सा तारामंडल है। इसकी परिभाषा १८वीं सदी में की गई थी और अब यह अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी की गई ८८ तारामंडलों की सूची में शामिल है। .

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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भूगोल शब्दावली

कोई विवरण नहीं।

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मानक मॉडल से परे भौतिकी

मानक मॉडल से परे भौतिकी (Physics beyond the Standard Model) का तात्पर्य उस भौतिकी से है जो सैद्धांतिक विकास को समझने के लिए मानक मॉडल की अपूर्णता को दूर करे, यथा उत्क्रम समस्या, डार्क मैटर, ब्रह्मांडीय नियतांक समस्या, प्रबल आवेश-समता समस्या, न्यूट्रिनो दोलन आदि। अन्य समस्या मानक मॉडल के गणितीय ढ़ाँचे के साथ है – मानक मॉडल सामान्य आपेक्षिकता के संगत नहीं है। मानक मॉडल ज्ञात दिक्-काल में विचित्रता जैसे महाविस्फोट सिद्धांत और घटना क्षितिज में ब्लैक होल को समझाने में असमर्थ है। .

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रेडियो खगोलशास्त्र

अमेरिका के न्यू मेक्सिको राज्य के रेगिस्तान में लगी रेडियो दूरबीनों की एक शृंखला रेडियो खगोलशास्त्र (Radio astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का अध्ययन रेडियो आवृत्ति (फ़्रीक्वॅन्सी) पर आ रही रेडियो तरंगों के ज़रिये किया जाता है। इसका सबसे पहला प्रयोग १९३० के दशक में कार्ल जैन्सकी (Karl Jansky) नामक अमेरिकी खगोलशास्त्री ने किया था जब उन्होंने आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) से विकिरण (रेडियेशन) आते हुए देखा। उसके बाद तारों, गैलेक्सियों, पल्सरों, क्वेज़ारों और अन्य खगोलीय वस्तुओं का रेडियो खगोलशास्त्र में अध्ययन किया जा चुका है। बिग बैंग सिद्धांत की पुष्ठी भी खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण (कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडियेशन) का अध्ययन करने से की गई है।, Hephaestus Books, Hephaestus Books, 2011, ISBN 978-1-244-89478-5, Sir Francis Graham-Smith, CUP Archive, 1952 रेडियो खगोलशास्त्र में भीमकाय रेडियो एन्टेना के ज़रिये रेडियो तरंगों को पकड़ा जाता है और फिर उनपर अनुसन्धान किया जाता है। इन रेडियो एन्टेनाओं को रेडियो दूरबीन (रेडियो टेलिस्कोप) कहा जाता है। कभी-कभी रेडियो खगोलशास्त्र किसी अकेले एन्टेना से किया जाता है और कभी एक पूरे रेडियो दूरबीनों के गुट का प्रयोग किया जाता है जिसमें इन सबसे मिले रेडियो संकेतों को मिलकर एक ज़्यादा विस्तृत तस्वीर मिल सकती है। क्योंकि रेडियो दूरबीनों का आकार बड़ा होता है इसलिए अक्सर ऐसी दूरबीनों की शृंखलाएँ शहर से दूर रेगिस्तानों और पहाड़ों जैसे बीहड़ इलाकों में मिलती हैं।, Jeff Lashley, Springer, 2010, ISBN 978-1-4419-0882-7 .

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लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर या वृहद हैड्रॉन संघट्टक (Large Hadron Collider; LHC के रूप में संक्षेपाक्षरित) विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। यह सर्न की महत्वाकांक्षी परियोजना है। यह जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर ज़मीन के नीचे स्थित है। इसकी रचना २७ किलोमीटर परिधि वाले एक छल्ले-नुमा सुरंग में हुई है, जिसे आम भाषा में लार्ड ऑफ द रिंग कहा जा रहा है। इसी सुरंग में इस त्वरक के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइन एवं अन्य उपकरण लगे हैं। सुरंग के अन्दर दो बीम पाइपों में दो विपरीत दिशाओं से आ रही ७ TeV (टेरा एले़ट्रान वोल्ट्) की प्रोट्रॉन किरण-पुंजों (बीम) को आपस में संघट्ट (टक्कर) किया जायेगा जिससे वही स्थिति उत्पन्न की जायेगी जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय बिग बैंग के रूप में हुई थी। ग्यातव्य है कि ७ TeV उर्जा वाले प्रोटॉन का वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। एल एच सी की सहायता से किये जाने वाले प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य स्टैन्डर्ड मॉडेल की सीमाओं एवं वैधता की जाँच करना है। स्टैन्डर्ड मॉडेल इस समय कण-भौतिकी का सबसे आधुनिक सैद्धान्तिक व्याख्या या मॉडल है। १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई। इस परियोजना में विश्व के ८५ से अधिक देशों नें अपना योगदान किया है। परियोजना में ८००० भौतिक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जो विभिन्न देशों, या विश्वविद्यालयों से आए हैं। प्रोटॉन बीम को त्वरित (accelerate) करने के लिये इसके कुछ अवयवों (जैसे द्विध्रुव (डाइपोल) चुम्बक, चतुर्ध्रुव (quadrupole) चुमबक आदि) का तापमान लगभग 1.90केल्विन या -२७१.२५0सेन्टीग्रेड तक ठंडा करना आवश्यक होता है ताकि जिन चालकों (conductors) में धारा बहती है वे अतिचालकता (superconductivity) की अवस्था में आ जांय और ये चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।"".

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शिवलिंग

त्रिपुण्ड्र लगाया हुआ शिवलिंग शिवलिंग का अर्थ है 'शिव का प्रतीक' जो मन्दिरों एवं छोटे पूजस्थलों में पूजा जाता है। इसे केवल ' शिव लिंगम' भी कहते हैं। भारतीय समाज में शिवलिंगम को शिव की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। लिंग को प्रायः 'योनि' (शाब्दिक अर्थ.

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स्टीफन हॉकिंग

स्टीफन विलियम हॉकिंग (८ जनवरी १९४२– १४ मार्च २०१८)), एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र (Centre for Theoretical Cosmology) के शोध निर्देशक थे। .

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स्थायी अवस्था सिद्धान्त

ब्रह्माण्डिकी (cosmology) के सन्दर्भ में, स्थायी अवस्था सिद्धान्त (Steady State theory) ब्रह्माण्ड के उद्भव का एक सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त बिग बैंग सिद्धान्त का वैकल्पिक सिद्धान्त है। श्रेणी:ब्रह्माण्ड.

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सृजन मिथक

सृजन मिथक संसार के निर्माण और लोगों के उसमें बसने के प्रतीकात्मक वर्णन को कहते हैं।, "Creation myths are symbolic stories describing how the universe and its inhabitants came to be.

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हिग्स बोसॉन

एक सिमुलेट की गयी घटना जो हिग्स बोसान की उत्पत्ति को दर्शा रही है। हिग्स बोसॉन (Higgs boson) एक मूल कण है जिसकी प्रथम परिकल्पना 1964 में दी गई और इसका प्रायोगिक सत्यापन 14 मार्च 2013 को किया गया। इस आविष्कार को एक 'यादगार' कहा गया क्योंकि इससे हिग्स क्षेत्र की पुष्टि हो गई। कण भौतिकी के मानक मॉडल द्वारा इसके अस्तित्व का अनुमान लगाया गया है। वर्तमान समय तक इस प्रकार के किसी भी कण के विद्यमान होने की ज्ञान नहीं है। हिग्स बोसॉन को कणो के द्रव्यमान या भार के लिये जिम्मेदार माना जाता है। प्रायः इसे अंतिम मूलभूत कण माना जाता है। .

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जयन्त विष्णु नार्लीकर

जयन्त विष्णु नार्लीकर जयन्त विष्णु नार्लीकर (मराठी: जयन्त विष्णु नारळीकर; जन्म 19 जुलाई 1938) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अंग्रेजी, हिन्दी और मराठी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं। ये ब्रह्माण्ड के स्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ हैं और फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं। .

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जेम्स वेब खगोलीय दूरदर्शी

100px जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरदर्शी (James Webb Space Telescope (JWST)) एक प्रकार की अवरक्त अंतरिक्ष वेधशाला है। यह हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी का वैज्ञानिक उत्तराधिकारी और आधुनिक पीढ़ी का दूरदर्शी है, जिसे जून २०१४ में एरियन ५ राकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इसका मुख्य कार्य ब्रह्माण्ड के उन सुदूर निकायों का अवलोकन करना है जो पृथ्वी पर स्थित वेधशालाओं और हबल दूरदर्शी के पहुँच के बाहर है। JWST, नासा और यूनाइटेड स्टेट स्पेस एजेंसी की एक परियोजना है जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA), केनेडियन स्पेस एजेंसी (CSA) और पंद्रह अन्य देशों का अन्तराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त है। इसका असली नाम अगली पीढ़ी का अंतरिक्ष दूरदर्शी (Next Generation Space Telescope (NGST)) था, जिसका सन २००२ में नासा के द्वितीय प्रशासक जेम्स एडविन वेब (१९०६-१९९२) के नाम पर दोबारा नामकरण किया गया। जेम्स एडविन वेब ने केनेडी से लेकर ज़ोंनसन प्रशासन काल (१९६१-६८) तक नासा का नेतृत्व किया था। उनकी देखरेख में नासा ने कई महत्वपूर्ण प्रक्षेपण किए, जिसमे जेमिनी कार्यक्रम के अंतर्गत बुध के सारे प्रक्षेपण एवं प्रथम मानव युक्त अपोलो उड़ान शामिल है। JWST की कक्षा पृथ्वी से परे पंद्रह लाख किलोमीटर दूर लग्रांज बिन्दु L2 पर होगी अर्थात पृथ्वी की स्थिति हमेंशा सूर्य और L2 बिंदु के बीच बनी रहेगी। चूँकि L2 बिंदु में स्थित वस्तुएं हमेंशा पृथ्वी की आड़ में सूर्य की परिक्रमा करती है इसलिए JWST को केवल एक विकिरण कवच की जरुरत होगी जो दूरदर्शी और पृथ्वी के बीच लगी होगी। यह विकिरण कवच सूर्य से आने वाली गर्मी और प्रकाश से तथा कुछ मात्रा में पृथ्वी से आने वाली अवरक्त विकिरणों से दूरदर्शी की रक्षा करेगी। L2 बिंदु के आसपास स्थित JWST की कक्षा की त्रिज्या बहुत अधिक (८ लाख कि.मी.) है, जिस कारण पृथ्वी के किसी भी हिस्से की छाया इस पर नहीं पड़ेगी। सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी से काफी करीब होने के बावजूद JWST पर कोई ग्रहण नहीं लगेगा। .

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विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान

विल्किनसन शोधयान का चित्र विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान (अंग्रेज़ी: Wilkinson Microwave Anisotropy Probe, विल्किनसन माइक्रोवेव आइनाइसोट्रोपी प्रोब), जिसे WMAP भी कहा जाता है, एक अंतरिक्ष शोध यान है जो अंतरिक्ष में जगह-जगह झाँककर बिग बैंग धमाके से उत्पन्न हुए सूक्ष्मतरंगी विकिरण (माइक्रोवेव रेडियेशन) को मापता है। .

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विज्ञान एक्‍सप्रेस

विज्ञान एक्‍सप्रेस (Science Express) एक रेल पर सवार बच्चों के लिए एक गतिशील वैज्ञानिक प्रदर्शनी है जो पूरे भारत में यात्रा करती है। यह परियोजना ३० अक्टूबर २००७ को सफदरजंग रेलवे स्टेशन, दिल्ली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि ये सभी के लिए खुला है, ये प्रदर्शनी मुख्य रूप से छात्रों और शिक्षकों को लक्षित करती हैं। ट्रेन के नौ चरण हो चुके हैं और तीन विषयों पर प्रदर्शन किया गया है। २००७ से २०११ के पहले चार चरणों को साइंस एक्सप्रेस कहा जाता था और ये माइक्रो और मैक्रो कॉस्मॉस पर केंद्रित था। २०१२ से २०१४ के अगले तीन चरणों में जैव विविधता विशेष के रूप में प्रदर्शन को फिर से तैयार किया गया। २०१५ से २०१७ के आठवें और नौवें चरण को जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बदल दिया गया था। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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खगोलीय ठंडा धब्बा

डब्ल्यू मैप शोधयान द्वारा ली गयी तस्वीर में खगोलीय ठंडा धब्बा नज़र आ रहा है (नीले रंग में) खगोलीय ठंडा धब्बा आकाश में एक ऐसा बड़ा स्थान है जहाँ पर सूक्ष्मतरंगी विकिरण (माइक्रोवेव रेडियेशन) बहुत कम है। अंतरिक्ष में हर दिशा में देखने पर ब्रह्माण्ड के धमाकेदार जन्म के समय में पैदा हुआ विकिरण हर जगह देखा जा सकता है और इसकी वजह से हर जगह औसतन 2.7 कैल्विन का तापमान रहता है जो आम तौर पर इस औसत से 18 माइक्रोकैल्विन (यानि 0.000018 कैल्विन) ही कम-ज़्यादा होता है। खगोलीय ठन्डे धब्बे में तापमान इस औसत से 70 माइक्रोकैल्विन कम है। वैज्ञानिकों को इसका ठीक कारण अभी ज्ञात नहीं है। इस धब्बे को अंग्रेज़ी में "सी ऍम बी कोल्ड स्पोट" (CMB cold spot) और "डब्ल्यू मैप कोल्ड स्पोट" (WMAP cold spot) भी कहा जाता है। "डब्ल्यू मैप" विल्किनसन सूक्ष्मतरंग शोधयान के अंग्रेज़ी नाम पर डाला गया है। इस धब्बे का आकार बहुत बड़ा है और 50 करोड़ से 1 अरब प्रकाश वर्ष का व्यास (डायामीटर) रखता है। यह आकाश में स्रोतास्विनी तारामंडल के क्षेत्र में नज़र आता है जिसका अंग्रेज़ी नाम "इरिडनस तारामंडल" है। कुछ वैज्ञानिक समझते हैं के इस क्षेत्र में ठण्ड इसलिए है क्योंकि यह एक महारिक्ति है (यानि एक ख़ाली जगह)। इसलिए कभी-कभी इस धब्बे को "इरिडनस महारिक्ति" (इरिडनस सुपरवोइड) भी कहा जाता है। .

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खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण

बिग बैंग के धमाके का सबूत माना जाता है खगोलशास्त्र में खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण (ख॰पा॰सू॰वि॰, अंग्रेज़ी: cosmic microwave background radiation, कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडियेशन) उस विकिरण (रेडियेशन) को बोलते हैं जो पृथ्वी से देखे जा सकने वाले ब्रह्माण्ड में बराबर स्तर से हर और फैली हुई है। आम प्रकाश देखने वाली दूरबीन से आकाश में कुछ जगह वस्तुएँ (जैसे ग्रह, गैलेक्सियाँ, वग़ैराह) दिखाई देती हैं और अन्य जगहों पर अँधेरा। लेकिन सूक्ष्मतरंग (माइक्रोवेव) माप सकने वाले रेडिओ दूरबीन (रेडीओ टेलिस्कोप) से देखा जाए तो हर दिशा में एक हलकी सूक्ष्म्तरंगी लालिमा फैली हुई है। वैज्ञानिक मानते हैं के यह ख॰पा॰सू॰वि॰ बिग बैंग सिद्धांत का सबूत देता है। अरबों साल पहले, जब ब्रह्माण्ड पैदा हुआ था उसके फ़ौरन बाद उसका अकार आज के मुक़ाबले में बहुत छोटा था और उसमें खौलती हुई हाइड्रोजन की प्लाज़्मा गैस फैली हुई थी। उस गैस की उर्जा से जो फ़ोटोन (प्रकाश या सूक्ष्मतरंग के कण) पैदा हुए थे वे तब से ब्रह्माण्ड में इधर-उधर घूम रहे हैं और वही हम आज ख॰पा॰सू॰वि॰ के रूप में देखते हैं। .

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गांगेय वर्ष

गांगेय वर्ष (Galactic year), सौरमंडल द्वारा आकाशगंगा के केंद्र का एक पूर्ण चक्कर लगाने में लिया जाने वाला समय है |, Fact Guru, University of Ottawa एक गांगेय वर्ष का अनुमानित मान २२ से २५ करोड़ वर्ष है | इसे GY संकेत द्वारा दर्शाया जाता है | नासा के अनुसार, सौर मंडल 8,28,000 किमी/घंटा (230 किमी/सेकंड) या 5,14,000 मील प्रति घंटा (143 मील/सेकंड) की औसत गति से यात्रा कर रहा है,http://starchild.gsfc.nasa.gov/docs/StarChild/questions/question18.html NASA - StarChild Question of the Month for February 2000 जो प्रकाश की गति का 1300वां है। यदि आप इसी गति से एक जेट विमान में भूमध्य रेखा के साथ-साथ यात्रा कर सकते हो, तो आपका दुनिया भर में जाना करीब 2 मिनट और 54 सेकंड में हो पाएगा। नासा के अनुसार, यहां तक ​​कि इस अविश्वसनीय गति पर, यह भी मिल्कीवे आकाशगंगा के केन्द्र की एक बार परिक्रमा के लिए सौरमंडल के 23 करोड़ साल लेता है | गांगेय वर्ष ब्रह्मांडीय और भूवैज्ञानिक समयावधि के चित्रण के लिए एक साथ एक सुविधाजनक उपयोगी इकाई प्रदान करता है। इसके विपरीत, एक "अरब-वर्ष" पैमाना भूगर्भिक घटनाओं के बीच उपयोगी विभेद की अनुमति नहीं देता है और एक "लाख-वर्ष" पैमाने को कुछ हद तक ही बड़ी संख्या की जरुरत होती है | .

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गुप्त ऊर्जा

भौतिक ब्रह्माण्ड विज्ञान, खगोल विज्ञान और खगोलीय यांत्रिकी में, गुप्त ऊर्जा, ऊर्जा का एक काल्पनिक रूप है जो सम्पूर्ण अंतरिक्ष में व्याप्त होता है एवं जिसमें ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर को बढ़ाने की प्रवृत्ति होती है। गुप्त ऊर्जा हाल के उन पर्यवेक्षणों एवं प्रयोगों को व्यक्त करने का सर्वाधिक लोकप्रिय तरीका है जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड का विस्तार एक त्वरणशील दर से होता हुआ मालूम पड़ता है। ब्रह्माण्ड विज्ञान के मानक मॉडल में, गुप्त ऊर्जा को वर्तमान में ब्रह्मांड के कुल ऊर्जा-द्रव्यमान का 74% माना जाता है। गुप्त ऊर्जा के दो प्रस्तावित रूप ब्रह्माण्ड संबंधी नियतांक, जो अंतरिक्ष को समरूप से.

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इलेक्ट्रॉन

इलेक्ट्रॉन या विद्युदणु (प्राचीन यूनानी भाषा: ἤλεκτρον, लैटिन, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पेनिश: Electron, जर्मन: Elektron) ऋणात्मक वैद्युत आवेश युक्त मूलभूत उपपरमाणविक कण है। यह परमाणु में नाभिक के चारो ओर चक्कर लगाता हैं। इसका द्रव्यमान सबसे छोटे परमाणु (हाइड्रोजन) से भी हजारगुना कम होता है। परम्परागत रूप से इसके आवेश को ऋणात्मक माना जाता है और इसका मान -१ परमाणु इकाई (e) निर्धारित किया गया है। इस पर 1.6E-19 कूलाम्ब परिमाण का ऋण आवेश होता है। इसका द्रव्यमान 9.11E−31 किग्रा होता है जो प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग १८३७ वां भाग है। किसी उदासीन परमाणु में विद्युदणुओं की संख्या और प्रोटानों की संख्या समान होती है। इनकी आंतरिक संरचना ज्ञात नहीं है इसलिए इसे प्राय:मूलभूत कण माना जाता है। इनकी आंतरिक प्रचक्रण १/२ होती है, अतः यह फर्मीय होते हैं। इलेक्ट्रॉन का प्रतिकणपोजीट्रॉन कहलाता है। द्रव्यमान के अलावा पोजीट्रॉन के सारे गुण यथा आवेश इत्यादि इलेक्ट्रॉन के बिलकुल विपरीत होते हैं। जब इलेक्ट्रॉन और पोजीट्रॉन की टक्कर होती है तो दोंनो पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं एवं दो फोटॉन उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रॉन, लेप्टॉन परिवार के प्रथम पीढी का सदस्य है, जो कि गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकत्व एवं दुर्बल प्रभाव सभी में भूमिका निभाता है। इलेक्ट्रॉन कण एवं तरंग दोनो तरह के व्यवहार प्रदर्शित करता है। बीटा-क्षय के रूप में यह कण जैसा व्यवहार करता है, जबकि यंग का डबल स्लिट प्रयोग (Young's double slit experiment) में इसका किरण जैसा व्यवहार सिद्ध हुआ। चूंकि इसका सांख्यिकीय व्यवहार फर्मिऑन होता है और यह पॉली एक्सक्ल्युसन सिध्दांत का पालन करता है। आइरिस भौतिकविद जॉर्ज जॉनस्टोन स्टोनी (George Johnstone Stoney) ने १८९४ में एलेक्ट्रों नाम का सुझाव दिया था। विद्युदणु की कण के रूप में पहचान १८९७ में जे जे थॉमसन (J J Thomson) और उनकी विलायती भौतिकविद दल ने की थी। कइ भौतिकीय घटनाएं जैसे-विध्युत, चुम्बकत्व, उष्मा चालकता में विद्युदणु की अहम भूमिका होती है। जब विद्युदणु त्वरित होता है तो यह फोटान के रूप मेंऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन करता है।प्रोटॉन व न्यूट्रॉन के साथ मिलकर यह्परमाणु का निर्माण करता है।परमाणु के कुल द्रव्यमान में विद्युदणु का हिस्सा कम से कम् 0.0६ प्रतिशत होता है। विद्युदणु और प्रोटॉन के बीच लगने वाले कुलाम्ब बल (coulomb force) के कारण विद्युदणु परमाणु से बंधा होता है। दो या दो से अधिक परमाणुओं के विद्युदणुओं के आपसी आदान-प्रदान या साझेदारी के कारण रासायनिक बंध बनते हैं। ब्रह्माण्ड में अधिकतर विद्युदणुओं का निर्माण बिग-बैंग के दौरान हुआ है, इनका निर्माण रेडियोधर्मी समस्थानिक (radioactive isotope) से बीटा-क्षय और अंतरिक्षीय किरणो (cosmic ray) के वायुमंडल में प्रवेश के दौरान उच्च ऊर्जा टक्कर के कारण भी होता है।.

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कार्ल सेगन

कार्ल सेगन (9 नवम्बर 1934 - 20 दिसम्बर 1996) प्रसिद्ध यहूदी खगोलशास्त्री और खगोल रसायनशास्त्री थे जिन्होंने खगोल शास्त्र, खगोल भौतिकी और खगोल रसायनशास्त्र को लोकप्रिय बनाया। इन्होंने पृथ्वी से इतर ब्रह्माण्ड में जीवन की खोज करने के लिए सेटी नामक संस्था की स्थापना भी की। इन्होंने अनेक विज्ञान संबंधी पुस्तकें भी लिखी हैं। ये 1980 के बहुदर्शित टेलिविजन कार्यक्रम कॉसमॉस: ए पर्सनल वॉयेज (ब्रह्माण्ड: एक निजी यात्रा) के प्रस्तुतकर्ता भी थे। इन्होंने इस कार्यक्रम पर आधारित कॉसमॉस नामक पुस्तक भी लिखी। अपने जीवनकाल में सेगन ने 600 से भी अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे और 20 से अधिक पुस्तकें लिखी। अपनी कृतियों में ये अकसर मानवता, वैज्ञानिक पद्धति और संशयी अनुसंधान पर जोर देते थे। .

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क्रम-विकास

आनुवांशिकता का आधार डीएनए, जिसमें परिवर्तन होने पर नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं। क्रम-विकास या इवोलुशन (English: Evolution) जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तन को कहते हैं। क्रम-विकास की प्रक्रियायों के फलस्वरूप जैविक संगठन के हर स्तर (जाति, सजीव या कोशिका) पर विविधता बढ़ती है। पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है, जो ३.५–३.८ अरब वर्ष पूर्व रहता था। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। जीवन के क्रम-विकासिक इतिहास में बार-बार नयी जातियों का बनना (प्रजातिकरण), जातियों के अंतर्गत परिवर्तन (अनागेनेसिस), और जातियों का विलुप्त होना (विलुप्ति) साझे रूपात्मक और जैव रासायनिक लक्षणों (जिसमें डीएनए भी शामिल है) से साबित होता है। जिन जातियों का हाल ही में कोई साझा पूर्वज था, उन जातियों में ये साझे लक्षण ज्यादा समान हैं। मौजूदा जातियों और जीवाश्मों के इन लक्षणों के बीच क्रम-विकासिक रिश्ते (वर्गानुवंशिकी) देख कर हम जीवन का वंश वृक्ष बना सकते हैं। सबसे पुराने बने जीवाश्म जैविक प्रक्रियाओं से बने ग्रेफाइट के हैं, उसके बाद बने जीवाश्म सूक्ष्मजीवी चटाई के हैं, जबकि बहुकोशिकीय जीवों के जीवाश्म बहुत ताजा हैं। इस से हमें पता चलता है कि जीवन सरल से जटिल की तरफ विकसित हुआ है। आज की जैव विविधता को प्रजातिकरण और विलुप्ति, दोनों द्वारा आकार दिया गया है। पृथ्वी पर रही ९९ प्रतिशत से अधिक जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जातियों की संख्या १ से १.४ करोड़ अनुमानित है। इन में से १२ लाख प्रलेखित हैं। १९ वीं सदी के मध्य में चार्ल्स डार्विन ने प्राकृतिक वरण द्वारा क्रम-विकास का वैज्ञानिक सिद्धांत दिया। उन्होंने इसे अपनी किताब जीवजाति का उद्भव (१८५९) में प्रकाशित किया। प्राकृतिक चयन द्वारा क्रम-विकास की प्रक्रिया को निम्नलिखित अवलोकनों से साबित किया जा सकता है: १) जितनी संतानें संभवतः जीवित रह सकती हैं, उस से अधिक पैदा होती हैं, २) आबादी में रूपात्मक, शारीरिक और व्यवहारिक लक्षणों में विविधता होती है, ३) अलग-अलग लक्षण उत्तर-जीवन और प्रजनन की अलग-अलग संभावना प्रदान करते हैं, और ४) लक्षण एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को दिए जाते हैं। इस प्रकार, पीढ़ी दर पीढ़ी आबादी उन शख़्सों की संतानों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है जो उस बाईओफीसिकल परिवेश (जिसमें प्राकृतिक चयन हुआ था) के बेहतर अनुकूलित हों। प्राकृतिक वरण की प्रक्रिया इस आभासी उद्देश्यपूर्णता से उन लक्षणों को बनती और बरकरार रखती है जो अपनी कार्यात्मक भूमिका के अनुकूल हों। अनुकूलन का प्राकृतिक वरण ही एक ज्ञात कारण है, लेकिन क्रम-विकास के और भी ज्ञात कारण हैं। माइक्रो-क्रम-विकास के अन्य गैर-अनुकूली कारण उत्परिवर्तन और जैनेटिक ड्रिफ्ट हैं। .

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क्वार्क-ग्लूऑन प्लाज्मा

क्वार्क-ग्लूऑन प्लाज्मा (Quark–gluon plasma) जिसे क्वार्क सूप या ग्लाज्मा भी कहते हैं, भौतिकी के मानक प्रारूप के अंतर्गत पदार्थ की पाँचवीं अवस्था है। इस पदार्थ में कण का अवशेष भी नहीं है। यदि प्रोटॉन को अति उच्च तापमान अथवा अति उच्च घनत्व प्रदान किया जाय तो एक ऐसी प्रावस्था की प्राप्ति होती है जिसमें मु्ख्यतः क्वार्क और ग्लूऑन मिलते हैं। माना जा रहा है कि बिग बैंग के तुरंत बाद ही ऐसे पदार्थों का बनना शुरु हो गया। .

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अजीवात् जीवोत्पत्ति

अजीवात् जीवोत्पत्ति सरल कार्बनिक यौगिक जैसे अजीवात् पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति की प्राकृतिक प्रक्रिया को कहते हैं। जीवोत्पत्ति पृथ्वी पर अनुमानित ३.८ से ४ अरब वर्ष पूर्व हुई थी। इसका अध्ययन प्रयोगशाला में किए गए कुछ प्रयोगों के द्वारा, और आज के जीवों के जेनेटिक पदार्थों से जीवन पूर्व पृथ्वी पर हुए उन रासायनिक अभिक्रियाओं का अनुमान लगा कर किया गया है जिनसे संभवतः जीवन की उत्पत्ति हुई है। जीवोत्पत्ति के अध्ययन के लिए मुख्यतः तीन तरह की परिस्थितियों का ध्यान रखना पड़ता है: भूभौतिकी, रासायनिक और जीवविज्ञानी। बहुत अध्ययन यह अनुसंधान करते हैं कि अपनी प्रतिलिपि बनाने वाले अणु कैसे उत्पन्न हुए। यह स्वीकृत है कि आज के सभी जीव आर एन ए अणुओं के वंशज हैं.

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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अंशुबोधिनी

अंशुबोधिनी महर्षि भरद्वाज द्वारा रचित एक ग्रन्थ है। इसमें सूरज से प्राप्त ऊर्जा के विभिन्न उपयोग बताये गये हैं। इसमें बिना तार के सन्देश भेजने की बात भी कही गयी है। .

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Hagen Kleinert

Hagen KleinertHagen Kleinert(जन्म 1941) जर्मन फ्री विश्वविध्यालय (Free University of Berlin) में सोव्दंतिक भौथिकी (Theoretical Physics) के प्रोफ़ेसर (1968 से) क्य्र्ग्य्ज़-रूसी स्लाव विश्वविधालय में मानद प्रोफ़ेसर तथा के मानद सदस्य है। कण और दोस भौतिकी में उनके योगदान के लिए उन्हें Max Born Prize 2008 से सम्मानित किया गया है। Kleinert ने गणितीय भौतिकी (mathematical physics) और प्रथिमिक कण भौतिकी (physics of elementary particles), नामिको (nuclei), डोस अवस्था (solid state), द्रव क्रिस्टल (liquid crystals), बिओमेम्ब्राने (biomembranes), मिक्रोएमुल्सिओन (microemulsions), पोल्य्मेर्स (polymers) और वित्तिय बजाये (financial markets) के सिद्धांत पर 370 शोधे पत्र प्रकाशित किये हैं। उनकी मुक्य पुस्तक "Path Integral in Quantum Mechanics,Statistics,Polymer Physics और Financial Markets" 1990 से चार संस्करणों तथा दो नये संस्करण Application Of Path Integral in Financial Markets पर नये अध्यायों के साथ प्रकाशित हो चुकी है। इस पुस्थक को उत्साहवर्धन समीक्षये मिली है।.

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