4 संबंधों: डिस्लेक्सिया, नंदिनी मुंडकुर, बाल विकास के चरण, ज़ाँ प्याज़े।
डिस्लेक्सिया
डिस्लेक्सिया एक अधिगम विकलांगता है जिसका प्रकटीकरण मुख्य रूप से वाणी या लिखितभाषा के दृश्य अंकन की कठिनाइयों के रूप में होता है, विशेष तौर पर मनुष्य-निर्मित लेखन प्रणालियों को पढ़ने में.
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नंदिनी मुंडकुर
डॉ नंदिनी मुंडकुर भारत की विकासात्मक बाल रोग विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने बाल विकास सम्बन्धी विकारों की प्रारंभिक बचपन में पहचान और हस्तक्षेप (Early childhood intervention) के क्षेत्र में अग्रणी के रूप में काम किया है। .
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बाल विकास के चरण
४ से ८ माह की आयु में दात आने लगते है और उस कारण बच्चे मुह में चिजें डालते है। बालविकास के चरण (Child development stages), बाल विकास के वे बिन्दु हैं जहाँ-जहाँ बलक में कुछ स्पष्ट परिवर्तन दिखते हैं। मनोवैज्ञानिक दैशीयता (Psychological nativism) के अनुसार मानवे के दिमाग में कुछ कौशल या क्षमताएं जन्मे से भरी होती हैं। आनुवांशिक, संज्ञानात्मक, शारीरिक, परिवारीक, सांस्कृतिक, पोषण, शैक्षिक, और पर्यावरणीय कारकों में बदलाव के कारण किस चरण को "सामान्य" माना जाए इसके संदर्भ में विशेषज्ञों में व्यापक विविधता है। कई बच्चे आदर्श चरणों तक पहुचने में अलग-अलग समय लगाते हैं। .
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ज़ाँ प्याज़े
ज़ाँ प्याज़े (Jean Piaget; 9 अगस्त, 1896 – 16 सितम्बर, 1980) स्विटजरलैण्ड के एक चिकित्सा मनोविज्ञानी थे जो बाल विकास पर किये गये अपने कार्यों के कारण प्रसिद्ध हैं। पियाजे, विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी हस्ती हैं। अनेक पांडित्यपूर्ण अवधारणाओं के लिए हम पियाजे के ऋणी हैं जिनमें आज भी टिके रहने की क्षमता और आकर्षण है, जैसे समायोजन/आत्मसातकरण (Assimilation), अनुकूलन वस्तु स्थायित्व (object permanence), आत्मकेंन्द्रीकरण (Egocentrism), संरक्षण (conservation), तथा परिकाल्पनिक-निगमित सोच (Hypothetico-deductive reasoning)। बच्चों के सक्रिय, रचनात्मक विचारक होने की वर्तमान दृष्टि के लिए भी हम, विलियम जेम्स तथा जॉन डुई के साथ-साथ, पियाजे के ऋणी हैं। बच्चों का निरीक्षण करने की पियाजे में विलक्षण प्रतिभा थी। उसके सावधानीपूर्वक किये गये प्रेक्षणों ने हमें यह खोजने के सूझबूझ भरे तरीके दिखाये कि बच्चे कैसे अपने संसार के साथ क्रिया करते हैं और तालमेल बिठाते हैं। पियाजे ने हमें संज्ञानात्मक विकास में कुछ खास चीजें खोजना सिखाया, जैसे पूर्वसंक्रियात्मक सोच से मूर्त संक्रियात्मक सोच में होने वाला बदलाव। उसने हमें यह भी दिखाया कि कैसे बच्चों को अपने अनुभवों की संगत अपनी योजनाओं (schemas/congnitive frameworks), संज्ञानात्मक ढांचों और साथ ही साथ अपनी योजनाओं की संगत अपने अनुभवों से बिठाने की जरूरत होती है। पियाजे ने यह भी दिखलाया कि यदि परिवेश की संरचना ऐसी हो जिसमें एक स्तर से दूसरे स्तर तक धीरे-धीरे बढ़ने की सुविधा हो तो, संज्ञानात्मक विकास होने की संभावना रहती है।हम अब इस प्रचलित मान्यता के लिए भी उसके ऋणी हैं कि अवधारणाएं अचानक अपने पूरे स्वरूप में प्रकट नहीं हो जातीं, बल्कि वे ऐसी छोटी-छोटी आंशिक उपलब्धियों की श्रृंखला से होती हुई विकसित होती हैं जिनके परिणाम स्वरूप क्रमशः अधिक परिपूर्ण समझ पैदा होती है। .
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