सामग्री की तालिका
8 संबंधों: बिन्देश्वर पाठक, रालेगन सिद्धि, सूक्ष्मजीव, जैवभार, वाहितमल उपचार, गाजर घास, गौ अभयारण्य अनुसन्धान एवं उत्पादन केन्द्र सालरिया, अवायवीय अपघटन।
बिन्देश्वर पाठक
डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: ०२ अप्रैल १९४३) विश्वविख्यात भारतीय समाजिक कार्यकर्ता एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। सुलभ इंटरनेशनल मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाली एक अग्रणी संस्था है। श्री पाठक का कार्य स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। इनके द्वारा किए गए कार्यों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है और पुरस्कृत किया गया है। .
देखें बायोगैस और बिन्देश्वर पाठक
रालेगन सिद्धि
रालेगन सिद्धि (मराठी: राळेगण सिद्धी), भारत के पश्चिम में स्थित राज्य महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले, की पारनेर तहसील में स्थित एक गांव है। यह पुणे से ८७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांव का क्षेत्रफल ९८२.३१ हेक्टेयर है (१९९१)। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से इसे एक आदर्श गांव माना जाता है। १९७५ के बाद से, गाँव में विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में, मृदा अपरदन रोकने के लिए वृक्षारोपण और सीढ़ीदार खेतों में कृषि और वर्षा के पानी के संचय के लिए नहरों की खुदाई जैसे कार्यक्रमों को चलाया गया है। ऊर्जा के लिए गांव में सौर ऊर्जा, बायोगैस (जिसमें कुछ % सांप्रदायिक शौचालय से उत्पन्न होती है) और एक पवनचक्की का उपयोग किया जाता है। इस परियोजना को १९७५ में शुरू किया गया था और अब यह ३६ साल पुरानी है। यह गांव ग्राम गणतंत्र का एक स्थायी निदर्श है। ऊर्जा के क्षेत्र में गैर परंपरागत ऊर्जा का उपयोग गांव की सबसे बड़ी उपलब्धि है। उदाहरण के लिए, गांव की सभी सड़कें सौर बत्ती द्वारा प्रकाशित होती हैं, जिनमें प्रत्येक बत्ती का अपना अलग सौर पटल है।इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में मडियाहू तहसील के अंतर्गत हरिहरपुर गांव को मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार विजय यादव स्मार्ट विलेज बनाने का संकल्प लेकर काम कर रहे है। .
देखें बायोगैस और रालेगन सिद्धि
सूक्ष्मजीव
जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .
देखें बायोगैस और सूक्ष्मजीव
जैवभार
पुआल के गट्ठर बायोमास बानाने के काम आते हैं। धान की भूसी को जलाकर ऊर्जा (ऊष्मा) प्राप्त की जा सकती है। Panicum virgatum का उपयोग जैव मात्रा के रूप में किया जाता है। जीवित जीवों अथवा हाल ही में मरे हुए जीवों से प्राप्त पदार्थ जैव मात्रा या जैव संहति या 'बायोमास' (Biomass) कहलाता है। प्रायः यहाँ 'जीव' से आशय 'पौधों' से है। बायोमास ऊर्जा के स्रोत हैं। इन्हें सीधे जलाकर इस्तेमाल किया जा सकता है या इनको विभिन्न प्रकार के जैव ईंधन में परिवर्तित करने के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण- गन्ने की खोई, धान की भूसी, अनुपयोगी लकड़ी आदि बायोमास को जैव ईंधन के रूप में कई प्रकार से बदला जा सकता है, जिन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है- ऊष्मीय विधियाँ, रासायनिक विधियाँ तथा जैवरासायनिक विधियाँ। .
देखें बायोगैस और जैवभार
वाहितमल उपचार
मलजल प्रशोधन का उद्देश्य - समुदायों के लिए कोई मुसीबत पैदा किए बिना या नुकसान पहुंचाए बिना निषकासनयोग्य उत्प्रवाही जल को उत्पन्न करना और प्रदूषण को रोकना है।1 मलजल प्रशोधन, या घरेलू अपशिष्ट जल प्रशोधन, अपवाही (गन्दा जल) और घरेलू दोनों प्रकार के अपशिष्ट जल और घरेलू मलजल से संदूषित पदार्थों को हटाने की प्रक्रिया है। इसमें भौतिक, रासायनिक और जैविक संदूषित पदार्थों को हटाने की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसका उद्देश्य एक अपशिष्ट प्रवाह (या प्रशोधित गन्दा जल) और एक ठोस अपशिष्ट या कीचड़ का उत्पादन करना है जो वातावरण में निर्वहन या पुनर्प्रयोग के लिए उपयुक्त होता है। यह सामग्री अक्सर अनजाने में कई विषाक्त कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों से संदूषित हो जाती है। .
देखें बायोगैस और वाहितमल उपचार
गाजर घास
गाजर घास गाजर घास या 'चटक चांदनी' (Parthenium hysterophorus) एक घास है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है। इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए। गाजर घास का उपयोग अनेक प्रकार के कीटनाशक, जीवाणुनाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों के र्निमाण में किया सकता है। इसकी लुग्दी से विभिन्न प्रकार के कागज तैयार किये जा सकते हैं। बायोगैस उत्पादन में भी इसको गोबर के साथ मिलाया जा सकता है। .
देखें बायोगैस और गाजर घास
गौ अभयारण्य अनुसन्धान एवं उत्पादन केन्द्र सालरिया
गौ अभयारण्य अनुसन्धान एवं उत्पादन केन्द्र मध्य प्रदेश के आगर-मालवा जिले के सालरिया ग्राम में स्थित है। यह भारत का प्रथम गौ-अभयारण्य है। यह अभयारण्य कुल ४७२ हेक्टेयर क्षेत्र में बना है। यह सितम्बर २०१७ में उद्घाटित हुआ था। इस अभयारण्य में गायों की नस्लों से लेकर उनके दूध, गोबर, मूत्र तक पर अनुसन्धान होगा। इसमें ६ हजार गायें रखने की व्यवस्था है। अभी ४ हजार से अधिक गाएँ हैं। गो-अभयारण्य बनाने के पीछे गोवंश का संरक्षण, भारतीय गोवंशीय नस्लों का संवर्धन, पंचगव्य से निर्मित वस्तुओं के शोध व उनका उत्पादन, जैविक खाद व कीट नियंत्रक आदि पर शोध व उत्पादन, चारागाह विकास व अनुसंधान केंद्र का उद्देश्य है। अभयारण्य में आवारा, बीमार, दूध नहीं देने वाले आदि मवेशी भी रखे जाएंगे और उनका संरक्षण किया जाएगा। गोबर से बायोगैस, गोमूत्र से दवाएं बनाई जाएंगी। वहीं संकर (हाईब्रीड) नस्लें तैयार होंगी। वर्मी कम्पोस्ट यूनिट से केंचुआ खाद तैयार की जाएगी। .
देखें बायोगैस और गौ अभयारण्य अनुसन्धान एवं उत्पादन केन्द्र सालरिया
अवायवीय अपघटन
तेल अवीव में कार्यरत एक अवायवीय अपघटन संयंत्र अवायवीय अपघटन या 'अवायवीय पाचन' (Anaerobic digestion) कई प्रक्रियाओं के समूह का नाम है जिसमें सूक्ष्मजीव आक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव-अपघटनीय पदार्थों को विघटित कर देते हैं। अवायवीय अपघटन की यह प्रक्रिया बहुत उपयोगी है और औद्योगिक तथा घरेलू कचरा के प्रबन्धन या/एवं ईंधन (बायोगैस) के उत्पादन में प्रयोग की जाती है। इसके अलावा खाद्य पदार्थ तथा पेय बनाने के लिये जिस किण्वन का उपयोग किया जाता है वह भी अवायवीय अपघटन पर ही आधारित है। अवायवीय अपघटन प्राकृतिक रूप से बहुत सी मृदाओं में होता है। यह झीलों और समुद्रों के द्रोणी (बेसिन) के तलछटों में भी होता है। वोल्टा ने १७७६ में जो मार्श गैस (मीथेन) खोजी थी उसका स्रोत यही था। अवायवीय विघटन के चरण .
देखें बायोगैस और अवायवीय अपघटन
बायो गैस, जैवगैस, गोबर गैस संयंत्र के रूप में भी जाना जाता है।