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बाइबिल

सूची बाइबिल

बाइबिल (अथवा बाइबल, Bible, अर्थात "किताब") ईसाई धर्म(मसीही धर्म) की आधारशिला है और ईसाइयों (मसीहियों) का पवित्रतम धर्मग्रन्थ है। इसके दो भाग हैं: पूर्वविधान (ओल्ड टेस्टामैंट) और नवविधान (न्यू टेस्टामेंट)। बाइबिल का पूर्वार्ध अर्थात् पूर्वविधान यहूदियों का भी धर्मग्रंथ है। बाइबिल ईश्वरप्रेरित (इंस्पायर्ड) है किंतु उसे अपौरुषेय नहीं कहा जा सकता। ईश्वर ने बाइबिल के विभिन्न लेखकों को इस प्रकार प्रेरित किया है कि वे ईश्वरकृत होते हुए भी उनकी अपनी रचनाएँ भी कही जा सकती हैं। ईश्वर ने बोलकर उनसे बाइबिल नहीं लिखवाई। वे अवश्य ही ईश्वर की प्रेरणा से लिखने में प्रवृत्त हुए किंतु उन्होंने अपनी संस्कृति, शैली तथा विचारधारा की विशेषताओं के अनुसार ही उसे लिखा है। अत: बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है। मानव जाति तथा यहूदियों के लिए ईश्वर ने जो कुछ किया और इसके प्रति मनुष्य की जो प्रतिक्रिया हुई उसका इतिहास और विवरण ही बाइबिल का वण्र्य विषय है। बाइबिल गूढ़ दार्शनिक सत्यों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें दिखलाया गया है कि ईश्वर ने मानव जाति की मुक्ति का क्या प्रबंध किया है। वास्तव में बाइबिल ईश्वरीय मुक्तिविधान के कार्यान्वयन का इतिहास है जो ओल्ड टेस्टामेंट में प्रारंभ होकर ईसा के द्वारा न्यू टेस्टामेंट में संपादित हुआ है। अत: बाइबिल के दोनों भागों में घनिष्ठ संबंध है। ओल्ड टेस्टामेंट की घटनाओं द्वारा ईसा के जीवन की घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार की गई है। न्यू टेस्टामेंट में दिखलाया गया है कि मुक्तिविधान किस प्रकार ईसा के व्यक्तित्व, चमत्कारों, शिक्षा, मरण तथा पुनरुत्थान द्वारा संपन्न हुआ है; किस प्रकार ईसा ने चर्च की स्थापना की और इस चर्च ने अपने प्रारंभिक विकास में ईसा के जीवन की घटनाओं को किस दृष्टि से देखा है कि उनमें से क्या निष्कर्ष निकाला है। बाइबिल में प्रसंगवश लौकिक ज्ञान विज्ञान संबंधी बातें भी आ गई हैं; उनपर तात्कालिक धारणाओं की पूरी छाप है क्योंकि बाइबिल उनके विषय में शायद ही कोई निर्देश देना चाहती है। मानव जाति के इतिहास की ईश्वरीय व्याख्या प्रस्तुत करना और धर्म एवं मुक्ति को समझना, यही बाइबिल का प्रधान उद्देश्य है, बाइबिल की तत्संबंधी शिक्षा में कोई भ्रांति नहीं हो सकती। उसमें अनेक स्थलों पर मनुष्यों के पापाचरण का भी वर्णन मिलता है। ऐसा आचरण अनुकरणीय आदर्श के रूप में नहीं प्रस्तुत हुआ है किंतु उसके द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य कितने कलुषित हैं और उनको ईश्वर की मुक्ति की कितनी आवश्यकता है। .

163 संबंधों: चर्च, चार्ल्स ब्रेडलॉफ, चिंपैंजी, ट्रेजर आइलैंड, ए ओ ह्यूम, एवेंज्ड सेवनफोल्ड, ऐंग्लिकन समुदाय, झूठ, त्रित्व, थॉमस हिल ग्रीन, द डा विंची कोड (फ़िल्म), द वेस्ट लैंड, दस धर्मादेश, दालचीनी, द्वंद्वयुद्ध, दैवज्ञ, दैवीय ज्ञान, दोमिनिकी संघ, दी एज ऑफ़ रीज़न, धम्मपद, धर्म (पंथ), धर्मप्रचार (ईसाई), नबी, नरभक्षण, नाड़ीग्रन्थि पुटी, नारायण वामन तिलक, नाहूम, नगमा, नोआम चाम्सकी, नीतिकथा, पन्ना, पश्चिमी संस्कृति, पहेली, पादप रोगविज्ञान, पापस्वीकरण, पारंपरिक संगीत, पुराना नियम, पुराना यरुशलम शहर, प्रचलित गलत धारणाओं की सूची, प्रणामी संप्रदाय, प्रदत्त नाम, प्रभुप्रकाश, प्रसिद्ध पुस्तकें, प्राचीन यूनानी भाषा, प्रायश्चित्त, प्रेयोक्ति, प्रोटेस्टैंट, पैराडाइज, पैराडाइज लॉस्ट, फिदेल कास्त्रो के धार्मिक विचार, ..., बाँसुरी, बादाम, बियोवुल्फ़, बिग ब्रदर (टीवी सीरिज़), बवासीर, ब्राह्म समाज, ब्लेड रनर, बैल (पौराणिक मान्यता), भजनसंहिता, भौमिकी का इतिहास, मत्ती, मरियम (ईसा मसीह की माँ), मानव बलि, मार्टिन बुबेर, माईली सायरस, मिस्र की संस्कृति, मुद्रण का इतिहास, मैक्स क्लिंजर, मूसा, मूआब, मेथोडिज़्म, मॉनमाउथ रेजिमेंटल संग्रहालय, मोलोक, यशयाह, यहूदी, यहूदी धर्म, यहूदी पर्व, यहोवा, यहोवा के साक्षी, यूनानी भाषा, यूनानी वर्णमाला, यूरोपीय धर्मसुधार, यीशु, राज्य, रुसी भाषा का साहित्य, लाल सागर, लैवेंडर, लूक़ा, लेव तोलस्तोय, लोलार्ड, शबा की रानी, श्रद्धाराम शर्मा, श्रीलंका का इतिहास, शैतान, शेरलॉक होम्स, सर्वेपल्लि राधाकृष्णन, सिरका, स्वप्न व्याख्या, सैयद अहमद ख़ान, सेम्युल एफ.बी. मोर्स, सोलोमन द्वीप, सीनाई पर्वत, हेनरी ड्यूनेन्ट, हीरीरो भाषा, जर्मन भाषा का साहित्य, ज़ेब-उन-निसा, जेम्स तिस्सो, जेरिको (मिसाइल), जेसिका एल्बा, जोशीया, ईसा मसीह सत्य गिरजाघर, ईसा इब्न मरियम, ईसाई धर्म, ईसाई धर्म का इतिहास, ईसाई मत में ईश्वर, ईवान आईवाज़ोवस्की, वाद्य यन्त्र, वाशिंगटन ऐल्स्टन, विल स्मिथ, विलियम टिन्डेल, विलियम कैरी (मिशनरी), वॉरेन बफे, वीर्य, गणित का इतिहास, गब्रीएल, गुर्दा, गोस्पल, ओ माय गॉड (फिल्म), आईज़ैक असिमोव, आइज़क न्यूटन, इथियोपियाई साहित्य, इब्रानी भाषा, इब्रानी साहित्य, इब्राहीमी धर्म, इयोब्ब, इराक़, इस्लाम के पैग़म्बर, इस्लामी पवित्र पुस्तक, इज़राइल, इज़राइल का इतिहास, इकसिंगा, कर्ट कोबेन, कलीसिया, कश्मीरी भाषा, क़ुरआन, कुष्ठरोग, क्रिसमस, कॉप्टिक भाषा, अधिप्रचार, अन्तरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस, अपस्मार, अफ़्रीकान्स भाषा, अल बुस्तानी, अवतारवाद, अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र, अंग्रेजी नाटक, अंग्रेजी शब्दकोशों का इतिहास, अंग्रेजी साहित्य, अंग्रेजी गद्य, अंक विद्या, उत्पत्ति पुस्तक, १४५६, २३ अगस्त सूचकांक विस्तार (113 अधिक) »

चर्च

चर्च (Church) शब्द यूनानी विशेषण का अपभ्रंश है जिसका शाब्दिक अर्थ है "प्रभु का"। हिन्दी बोलचाल में, इस विदेशज शब्द को अंग्रेज़ी से लिया गया है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में, ईसाई धर्मस्थल के भवन के लिए उपयोग किया जाता है। वास्तव में, ईसाई समुदाय में, "चर्च" शब्द को दो अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है.

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चार्ल्स ब्रेडलॉफ

चार्ल्स ब्रेडलॉफ (26 सितम्बर 1833 - 30 जनवरी 1891) एक राजनैतिक कार्यकर्ता एवं उन्नीसवीं शताब्दी इंग्लैंड के एक बहुचर्चित नास्तिक थे। उन्होंने 1866 में नेशनल सेक्युलर सोसाइटी की स्थापना की.

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चिंपैंजी

चिंपैंजी जिसे आम बोलचाल की भाषा में कभी-कभी चिम्प भी कहा जाता है, पैन जीनस (वंश) के वानरों (एप) की दो वर्तमान प्रजातियों का सामान्य नाम है। कांगो नदी दोनों प्रजातियों के मूल निवास स्थान के बीच सीमा का काम करती है.

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ट्रेजर आइलैंड

ट्रेजर आइलैंड स्कॉटिश लेखक रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन का एक दुस्साहसिक उपन्यास है, जो "समुद्री डाकू और गड़े सोने" की कहानी कहता है। पहली बार 1883 में एक पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ, मूलत: यह बच्चों की पत्रिका यंग फोक्स में 1881-82 के बीच धारावाहिक रूप से ट्रेजर आईलैंड या म्युटिनी ऑफ द हिसपैनीओला और छद्मवेशी कैप्टन जॉर्ज नॉर्थ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। परंपरागत रूप से इसे भविष्यकालीन कहानी के लिए माना जाता है, यह एक दुस्साहिक कहानी है जो अपने माहौल, चरित्र और कार्रवाई और साथ नैतिकता की अस्पष्टता पर व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी के लिए जाना जाता है - जैसा कि लौन्ग जॉन सिल्वर में देखा गया - जो कि तब और अब भी बाल साहित्य के लिए असाधारण है। यह अब तक के सभी उपन्यासों में सबसे अधिक नाटकीय है। "एक्स" (X) निशान के साथ खजाने के मानचित्र, दो मस्तूलवाले जहाज, काले निशान वाली जगह, उष्णकटिबंधीय द्वीपों और कंधे पर तोते के साथ एक पैरों वाले नाविक समेत समुद्री डाकुओं की लोकप्रिय अवधारणा में ट्रेजर आईलैंड का बहुत अधिक प्रभाव है। .

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ए ओ ह्यूम

एलेन ओक्टेवियन ह्यूम एलेन ओक्टेवियन ह्यूम (६ जून १८२९ - ३१ जुलाई १९१२) ब्रिटिशकालीन भारत में सिविल सेवा के अधिकारी एवं राजनैतिक सुधारक थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे। ह्यूम प्रशासनिक अधिकारी और राजनैतिक सुधारक के अलावा माहिर पक्षी-विज्ञानी भी थे, इस क्षेत्र में उनके कार्यों की वजह से उन्हें 'भारतीय पक्षीविज्ञान का पितामह' कहा जाता है। .

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एवेंज्ड सेवनफोल्ड

एवेंज्ड सेवनफोल्ड (Avenged Sevenfold) हंटिंग्टन बीच, कैलिफोर्निया में स्थित एक अमेरिकी रॉक बैंड है, जिसका गठन 1999 में हुआ था। बैंड में गायक एम.

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ऐंग्लिकन समुदाय

ईसाई संप्रदायों में ऐंग्लिगन समुदाय (Anglican Communion) का विशेष स्थान है। इसका इतिहास एक प्रकार से इंग्लैंड में ईसाई धर्म के प्रवेश के साथ-साथ प्रारंभ होता है, किंतु १६वीं शताब्दी में ही वह रोमन काथलिक गिरजे से अलग होकर चर्च ऑव इंग्लैंड का अपनाने लगा। १७वीं शताब्दी में इसके लिए 'ऐंग्लिकन चचर्' का प्रयोग चल पड़ा। आजकल संसार भर के ऐंग्लिकन ईसाइयों का संगठन 'ऐंग्लिकन समुदाय' कहलाता है। .

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झूठ

झूठ (जिसे वाक्‌छल या असत्यता भी कहा जाता है) एक ज्ञात असत्य है जिसे सत्य के रूप में व्यक्त किया जाता है। झूठ, एक असत्य बयान के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है, जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है और प्रायः जिसका उद्देश्य होता है किसी राज़ या प्रतिष्ठा को बरकरार रखना, किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचना.

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त्रित्व

त्रित्व त्रित्व ईसाई धर्म का केंद्रीय तथा गूढ़तम धर्मसिद्धांत ईश्वर के आभ्यंतर स्वरूप से संबंधित है जिसे ट्रिनिटी अर्थात् त्रित्व कहते हैं। त्रित्व का अर्थ है कि एक ही ईश्वर में तीन व्यक्ति हैं -- पिता, पुत्र तथा पवित्र आत्मा (फादर, सन ऐंड होली गोस्ट)। ये तीनों समान रूप से अनादि, अनंत और सर्वशक्तिमान् हैं क्योंकि तर्क के बल पर मानव बुद्धि केवल एक सर्वशक्तिमान् सृष्टिकर्ता ईश्वर के अस्तित्व तक पहुँच सकती है। वस्तुत: त्रित्व के धर्मसिद्धांत पर इसीलिये विश्वास किया जाता है कि उसकी शिक्षा ईसा ने दी है। बाइबिल के पूर्वार्ध से पता चलता है कि यहूदी धर्म में एकेश्वरवाद पर विशेष बल दिया गया था। बाइबिल के उत्तरार्ध में ईसा उस एकेश्वर को बनाए रखते हुए भी यह शिक्षा देते हैं कि मैं और परम पिता परमेश्वर एक ही हैं (वास्तव में यहूदियों ने इसी कारण से ईसा को प्राणदंड दिया)। इसके अतिरिक्त वह अपने शिष्यों से कहते हैं कि मैं पवित्र आत्मा को भेज दूँगा जा अव्यक्त रूप से तुम लोगों के साथ रहेगा। उस पवित्र आत्मा को भी वह ईश्वरीय गुणों से समन्वित मानते हैं। इस प्रकार ईसा ने स्पष्ट रूप से बताया है कि एक ही परमेश्वर में पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा विद्यमान हैं। बाद में त्र्येक (त्रिअएक) ईश्वर की इस विशेषता को त्रित्व का नाम दिया गया है। त्रित्व के इस धर्मसिद्धांत को ईसाई धर्मपंडितों ने यूनानी तथा लातीनी दर्शन के पारिभाषिक शब्दों के सहारे इस प्रकार स्पष्ट करने का प्रयास किया है -- एक ही ईश्वरीय स्वभाव (नेचर) में तीन व्यक्ति (परसंस) विद्यमान हैं। तीनों तत्वत: (सब्स्टैंशली) एक हैं। अत: तीनों की एक ही संकल्पशक्ति तथा एक ही बुद्धि है। फिर भी पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में पारस्परिक भिन्नता है। पिता किसी से उत्पन्न नहीं होता। पुत्र आदिकाल से पिता से परिपूर्ण ईश्वरत्व ग्रहण करता है। पुत्र की इस उत्पत्ति को प्रजनन (जेनेरेशन) कहते हैं। पवित्र आत्मा की उत्पत्ति को प्रजनन (जेनेरेशन) कहते हैं। पवित्र आत्मा की उत्पत्ति पिता तथा पुत्र दोनों से मानी जाती है और प्रसरण (प्रोसेशन) कहलाती है। पुत्र के प्रजनन तथा पवित्र आत्मा से प्रसरण से तीनों व्यक्तियों की पारस्परिक भिन्नता उत्पन्न होती है, किंतु तत्वत: तीनों एक हैं और समान रूप से सभी ईश्वरीय गुणों से समन्वित हैं। (प्राच्य चर्च में पवित्र आत्मा का प्रसरण पिता से माना जाता है)। शताब्दियों तक इस धर्मसिद्धांत पर चिंतन किया गया है और तत्वसंबंधी अनेक धारणाओं को भ्रामक ठहराया गया है। त्रिदेवतावाद, जो तीन भिन्न ईश्वरीय तत्व मानता है स्पष्टतया भ्रामक है, क्योंकि इस प्रकार तीन स्वतंत्र देवताओं का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है। मोदालिस्म के अनुसार पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा एक ही ईश्वर के तीन पहलू हैं जो सृष्टि के कारण उत्पन्न हो जाते हैं -- पिता सृष्टिकर्ता है, पुत्र हमारा उद्धार करता है तथा पवित्र आत्मा हमको पवित्र करता है। चर्च ने इस वाद को तीसरी तथा चौथी शताब्दी में ठुकराकर यह बताया कि सृष्टि से पहले ही ईश्वर में तीन व्यक्ति विद्यान थे। निसेआ (325 ईदृ) की विश्वसभा ने त्रित्व विषयक उन सभी व्याख्याओं को भ्रामक ठहराया है जिनके अनुसार पुत्र अथवा पवित्र आत्मा पिता से गौण माने जाते हैं। उस सभा में यह स्पष्ट घोषित किया गया है कि पिता और पुत्र तत्वत: एक ही हैं। .

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थॉमस हिल ग्रीन

टी एच ग्रीन थॉमस हिल ग्रीन (Thomas Hill Green; 7 अप्रैल 1836 – 15 मार्च 1882) इंग्लैण्ड के दार्शनिक, तथा ब्रिटिश प्रत्यवादी आन्दोलन के सदस्य थे। आदर्शवादी विचारक ग्रीन का राजदर्शन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। हम उसके दर्शन में आदर्शवाद, उदारतावाद, व्यक्तिवाद तथा सत्तावाद का एक सुन्दर समन्वय पाते हैं। उन्होंने आधुनिक उदारवाद को एक नया धार्मिक विश्वास प्रदान किया, व्यक्तिवाद को नैतिक तथा सामाजिक बनाया और आदर्शवाद को सन्तुलित एवं परिमार्जित किया। उन्होंने अपने दर्शन में व्यक्ति तथा राज्य दोनों को महत्त्व दिया। वेपर का यह मन्तव्य सही है कि ग्रीन ने अंग्रेजों को बेन्थमवाद से कहीं अधिक सन्तुष्टि प्रदान की। काण्ट के दर्शन पर आधारित होने के कारण उसका आदर्शवाद अधिक सौम्य है। .

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द डा विंची कोड (फ़िल्म)

द डा विंची कोड, रॉन हावर्ड द्वारा निर्देशित, 2006 की एक अमेरिकी रहस्य-रोमांच वाली फ़िल्म है। पटकथा को अकिवा गोल्ड्समैन द्वारा लिखा गया और यह डैन ब्राउन के दुनिया भर में सर्वोच्च बिक्री वाले 2003 के उपन्यास द डा विंची कोड पर आधारित है। हावर्ड ने जॉन कैले और ब्रायन ग्रेज़र के साथ इसका निर्माण किया और कोलंबिया पिक्चर्स ने इसे संयुक्त राज्य अमेरिका में 9 मई 2006 को जारी किया। द डा विंची कोड में टॉम हैंक्स ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रतीकविज्ञानी रॉबर्ट लेंग्डन का किरदार निभाया है, ऑड्रे तौटो ने फ्रांस के Centrale de la Police Judiciaire के कूट-विशेषज्ञ सोफी नेवू का, सर इयान मेकेलन ने ब्रिटिश ग्रेल इतिहासकार सर ले टीबिंग का, अल्फ्रेड मोलिना ने बिशप मैनुएल अरिंगारोसा का, जीन रेनो ने Direction Centrale de la Police Judiciaire के कैप्टेन बेजु फाक का और पॉल बेट्टेनी ने ओपस डे भिक्षु सीलास का किरदार निभाया.

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द वेस्ट लैंड

द वेस्ट लैंड टी एस एलियट के द्वारा लिखी गयी 434 पंक्तियों की एक आधुनिक कविता है जो पहले पहल सन 1922 में प्रकाशित हुई थी। इसे 20 वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण कविताओं में से एक भी कहा जाता है। कविता की दुर्बोधता के बावजूद 2010/08/08 को पुनः प्राप्त.

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दस धर्मादेश

दस फ़रमानों के साथ मूसा - सन् १६५९ में रेमब्रांट द्वारा बनाई गई तस्वीर दस धर्मादेश या दस फ़रमान (अंग्रेज़ी: Ten Commandments, टेन कमान्डमेन्ट्स​)इस्लाम धर्म,यहूदी धर्म और ईसाई धर्म के वह दस नियम हैं जिनके बारे में उन धार्मिक परम्पराओं में यह माना जाता है कि वे धार्मिक नेता मूसा को ईश्वर ने स्वयं दिए थे। इन धर्मों के अनुयायिओं की मान्यता है कि यह मूसा को सीनाई पर्वत के ऊपर दिए गए थे।, Dorling Kindersley, pp.

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दालचीनी

दालचीनी (Cinnamomum verum, या C. zeylanicum) एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है, यह लौरेसिई (Lauraceae) परिवार का है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही खुशबू होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। .

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द्वंद्वयुद्ध

थाइलैण्ड में द्वन्द्वयुद्ध को निरूपित करती मूर्ति दो विरोधी व्यक्तियों या दलों के बीच, पूर्वनिश्चित तथा जाने माने नियमों के अनुसार प्रचलित शस्त्रों द्वारा युद्ध को द्वंद्वयुद्ध कहते हैं। ऐसे युद्ध प्राचीन काल में बहुत से देशों में प्रचलित थे। इनके प्रचलन के मूल में यह विश्वास था कि इन युद्धों में ईश्वर उसी को जिताता है जिसके पक्ष में न्याय होता है। .

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दैवज्ञ

जॉन विलियम वाटरहाउस द्वारा रचित "दैवज्ञ से परामर्श"; जिसमे आठ महिला पुरोहितों को भविष्यवाणी के एक मंदिर में दिखाया गया है प्राचीन पुरातनता में, दैवज्ञ एक व्यक्ति या एजेंसी को कहा जाता था जिसे ईश्वरप्रेरित बुद्धिमत्तापूर्ण सलाह या भविष्यसूचक (पूर्वकथित) विचार, भविष्यवाणियों या पूर्व ज्ञान का एक स्रोत माना जाता था। इस प्रकार यह भविष्यवाणी का एक रूप है। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन क्रिया ōrāre (अर्थात "बोलना") से हुई है एवं यह सही-सही भविष्यवाणी करने वाले पुजारी या पुजारिन को संदर्भित करता है। विस्तृत प्रयोग में, दैवज्ञ अपने स्थल, एवं यूनानी भाषा में khrēsmoi (χρησμοί) कहे जाने वाले दैवीय कथनों को भी संदर्भित कर सकता है। देवज्ञों को ऐसा प्रवेश-द्वार माना जाता था जिसके माध्यम से ईश्वर मनुष्य से सीधे बात करते थे। इस अर्थ में, वे भविष्यद्रष्टाओं (manteis, μάντεις) से भिन्न होते थे जो पक्षियों के चिह्नों, पशु की अंतरियों एवं अन्य विभिन्न विधियों के माध्यम से ईश्वर के द्वारा भेजे गए प्रतीकों की व्याख्या करते थे।फ्लॉवर, माइकल एत्यह.

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दैवीय ज्ञान

दैवीय ज्ञान, इलहाम अथवा श्रुति (Revelation) धर्मशास्त्र तथा प्रत्ययवादी धार्मिक दर्शन की आधारभूत अवधारणा है। इलहाम रहस्यमय प्रबोधन की संक्रिया में अलौकिक यथार्थ के अतीन्द्रिय संज्ञान की अभिव्यक्ति है। इलहाम की चर्चा मुख्यतः सामी धर्म के पवित्रग्रंथों (बाइबिल, क़ुरान आदि) में की गयी है। समसामयिक धर्मशास्त्र यह दावा करते हुए कि इलहाम तर्कबुद्धि के विपरीत नहीं है, इस विचार को आधुनिक रूप देने का प्रयास करता है। ऐसी मान्यता है कि, समकालीन धार्मिक धाराओं में इलहाम के प्रत्यय के कारण ईश्वरवाद की दार्शनिक पैरवी में अतर्कबुद्धिवाद की भूमिका मे वृद्धि हो रही है। .

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दोमिनिकी संघ

दोमिनिकी संघ (Dominican Order या Dominicans) रोमन कैथलिक सम्प्रदाय का एक उपसम्प्रदाय है। इसकी स्थापना सन्त दोमिनिक ने की थी। .

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दी एज ऑफ़ रीज़न

दी एज ऑफ़ रीज़न; बीइंग एन इन्वेस्टिगेशन ऑफ़ फैबुलस थियोलॉजी अंग्रेज़ी और अमेरिकी राजनीतिक कार्यकर्ता थॉमस पेन द्वारा लिखित कार्य है, जो देववाद के दार्शनिक स्थान का तर्क देता है। वह १८वीं सदी के ब्रितानी देववाद की परम्परा का अनुसरण करता है और संस्थागत धर्म तथा बाइबल की वैधता को चुनौती देता है। वह 1794, 1795, और 1807 में तीन भागों में प्रकाशित हुआ था।.

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धम्मपद

धम्मपद बौद्ध साहित्य का सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय ग्रंथ है। इसमें बुद्ध भगवान् के नैतिक उपदेशों का संग्रह यमक, अप्पमाद, चित्त आदि 26 वग्गों (वर्गों) में वर्गीकृत 423 पालि गाथाओं में किया गया है। त्रिपिटक में इसका स्थान सुत्तपिटक के पाँचवें विभाग खुद्दकनिकाय के खुद्दकपाठादि 15 उपविभागों में दूसरा है। ग्रंथ की आधी से अधिक गाथाएँ त्रिपिटक के नाना सुत्तों में प्रसंगबद्ध पाई जा चुकी हैं। धम्मपद की रचना उपलब्ध प्रमाणों से ई.पू.

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धर्म (पंथ)

अनेक धर्म का चिह्न प्रमुख धर्मों के अनुयायियों का प्रतिशत धर्म (या मज़हब) किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रीति, रिवाज, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है। इस संबंध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। ज़िंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है। मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे- स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया एवं प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा। उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था। धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। धर्म के ठेकेदारों ने पुरुषार्थवादी-मार्ग के मुख्य-द्वार पर ताला लगा दिया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा। आज के युग ने यह चेतना प्रदान की है कि विकास का रास्ता हमें स्वयं बनाना है। किसी समाज या देश की समस्याओं का समाधान कर्म-कौशल, व्यवस्था-परिवर्तन, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास, परिश्रम तथा निष्ठा से सम्भव है। आज के मनुष्य की रुचि अपने वर्तमान जीवन को सँवारने में अधिक है। उसका ध्यान 'भविष्योन्मुखी' न होकर वर्तमान में है। वह दिव्यताओं को अपनी ही धरती पर उतार लाने के प्रयास में लगा हुआ है। वह पृथ्वी को ही स्वर्ग बना देने के लिए बेताब है। .

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धर्मप्रचार (ईसाई)

बाइबिल में लिखा है कि ईसा ने अपने स्वर्गारोहण के पूर्व अपने शिष्यों को आदेश दिया था कि वे संसार भर में उनके धर्म का प्रचार करें। अत: प्रारंभ से ही धर्मप्रचार ईसाई धर्म की एक प्रधान विशेषता रही है। .

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नबी

ईश्वर क गुणगान करने वाला नबी (prophet) का अर्थ है ईश्वर का गुणगान करनेवाला, ईश्वर की शिक्षा तथा उसके आदेर्शों का उद्घोषक। बाइबिल ने उसे 'ईश्वर का मनुष्य' और 'आत्मा का मनुष्य' भी कहा गया है। यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, प्राचीन यूनान, पारसी आदि धर्मों एवं संस्कृतियों में विभिन्न नबियों के होने के दावे किये गये हैं। ऐसी मान्यता है कि ईश्वर (या सर्वशक्तिमान) ने किसी व्यक्ति से सम्पर्क किया और भगवान की तरफ से उनको अपना सन्देशवाहक बनाया गया। इस प्रकार नबी ईश्वर और मानवजाति के बीच आधार जैसे कार्य का निष्पादन करने वाले थे। .

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नरभक्षण

हैंस स्टैडेन द्वारा कहा गया 1557 में नरभक्षण. लियोंहार्ड कर्ण द्वारा नरभक्षण, 1650 नरभक्षण (नरभक्षण) (नरभक्षण की आदत के लिए विख्यात वेस्ट इंडीज जनजाति कैरीब लोगों के लिए स्पेनिश नाम कैनिबलिस से) एक ऐसा कृत्य या अभ्यास है, जिसमें एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का मांस खाया करता है। इसे आदमखोरी (anthropophagy) भी कहा जाता है। हालांकि "कैनिबलिज्म" (नरभक्षण) अभिव्यक्ति के मूल में मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य के खाने का कृत्य है, लेकिन प्राणीशास्त्र में इसका विस्तार करते हुए किसी भी प्राणी द्वारा अपने वर्ग या प्रकार के सदस्यों के भक्षण के कृत्य को भी शामिल कर लिया गया है। इसमें अपने जोड़े का भक्षण भी शामिल है। एक संबंधित शब्द, "कैनिबलाइजेशन" (अंगोपयोग) के अनेक अर्थ हैं, जो लाक्षणिक रूप से कैनिबलिज्म से व्युत्पन्न हैं। विपणन में, एक उत्पाद के कारण उसी कंपनी के अन्य उत्पाद के बाजार के शेयर के नुकसान के सिलसिले में इसका उल्लेख किया जा सकता है। प्रकाशन में, इसका मतलब अन्य स्रोत से सामग्री लेना हो सकता है। विनिर्माण में, बचाए हुए माल के भागों के पुनःप्रयोग पर इसका उल्लेख हो सकता है। खासकर लाइबेरिया और कांगो में, अनेक युद्धों में हाल ही में नरभक्षण के अभ्यास और उसकी तीव्र निंदा दोनों ही देखी गयी। अतीत में दुनिया भर के मनुष्यों के बीच व्यापक रूप से नरभक्षण का प्रचलन रहा था, जो 19वीं शताब्दी तक कुछ अलग-थलग दक्षिण प्रशांत महासागरीय देशों की संस्कृति में जारी रहा; और, कुछ मामलों में द्वीपीय मेलेनेशिया में, जहां मूलरूप से मांस-बाजारों का अस्तित्व था। फिजी को कभी 'नरभक्षी द्वीप' ('Cannibal Isles') के नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि निएंडरथल नरभक्षण किया करते थे, और हो सकता है कि आधुनिक मनुष्यों द्वारा उन्हें ही कैनिबलाइज्ड अर्थात् विलुप्त कर दिया गया हो। अकाल से पीड़ित लोगों के लिए कभी-कभी नरभक्षण अंतिम उपाय रहा है, जैसा कि अनुमान लगाया गया है कि ऐसा औपनिवेशिक रौनोक द्वीप में हुआ था। कभी-कभी यह आधुनिक समय में भी हुआ है। एक प्रसिद्ध उदाहरण है उरुग्वेयन एयर फ़ोर्स फ्लाइट 571 की दुर्घटना, जिसके बाद कुछ बचे हुए यात्रियों ने मृतकों को खाया.

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नाड़ीग्रन्थि पुटी

नाड़ीग्रन्थि पुटी को बाईबल पुटी भी कहा जाता है। यह एक प्रकार की सूजन है जो हाथ या पैर के जोड़ों और कंडरों के आसपास पाई जाती है। नाड़ीग्रन्थि पुटी का आकार समय के साथ बदल सकता है। यह आम तौर पर कलाई के पिछले भाग या उंगली पर पाई जाती है। "बाईबल बम्प" नाम पुराने जमाने के एक सामान्य उपचार से आता है जिसमें पुटी पर बाईबल या कोई दूसरी भारी चीज बार-बार मारी जाती थी।http://www.eatonhand.com/hw/hw013.htm पुटी फूटने पर इसका इलाज बड़ा मुश्किल है। .

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नारायण वामन तिलक

नारायण वामन तिलक (6 दिसम्बर, 1861 – 1919) एक मराठी कवि थे। नारायण वामन तिलक का जन्म ६ दिसंबर १८६१ में महाराष्ट्र राज्य के जिला रत्नगिरि के करज गाँव में हुआ था। इनके पिता का स्वभाव कठोर था तथा माता कोमल स्वभाव की थीं। इसलिए सब बच्चे माँ को ही अधिक मानते थे। माता का धर्म से तथा कविता से प्रेम था, अत: तिलक भी बाल्यावस्था से ही धार्मिक प्रवृत्ति के तथा कविता लिखने के शौकीन थे। माता का देहांत ११ वर्ष की अवस्था में हो जाने के कारण उनके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया। उन्होंने निश्चय किया कि अब वे अपने पिता से अलग रहकर संसार में अपने लिए स्वयं ही मार्ग ढूँढ़ेगे। वे नासिक चले गए और वहाँ एक युवक के घर में शरण पाई। नासिक में उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान् गणेश शास्त्री लेले से हुई। उन्होंने नारायण तिलक को संस्कृत की नि:शुल्क शिक्षा दी। एक हाई स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें कक्षा में नि:शुल्क बैठने की अनुमति दी। इस प्रकार उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन आरंभ किया। इसी समय उनके पिता ने शेष चार बच्चों को भी नासिक भेज दिया कि वे नारायण के साथ रहें। उनको स्कूल छोड़कर जीविका की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ा। फिर भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोड़ा। कुछ कठिनाई के उपरांत एक स्वजातीय लड़की के साथ उनका विवाह हो गया। वे बहुत समय तक किसी एक वातावरण में न रह सके क्योंकि सत्य की खोज में उनकी तीव्र प्रतिभा बराबर उन्हें नवीन क्षेत्रों की ओर ढकेल रही थी। अपनी युवती पत्नी को उसके मायके में छोड़कर वे महाराष्ट्र का कोना-कोना छानते हुए दूर निकल जाते थे। वे कीर्तन करते, पुराण पढ़ते और व्याख्यान दिया करते थे। धार्मिक क्षेत्रों में वे बड़े उत्साह के साथ सत्य की खोज करते थे। किशोरावस्था में ही जातिवाद से घृणा कने लगे थे। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे बेड़ियाँ जो भारत माँ को जकड़े हुए हैं, तोड़ दी जाएँ। वे मूर्तिपूजा तथा जातिवाद रूपी दीवारों को गिरा देना चाहते थे। उनकी भेंट नागपुर के एक धनी नागरिक अप्पा साहब से हुई जिन्होंने वैदिक तथा अन्य धर्मग्रंथों का संग्रह करने में काफी रकम खर्च की थी। नारायण वामन तिलक ने इन संस्कृत की रचनाओं का मराठी भाषा में अनुवाद किया। एक दिन तिलक नागपुर से राजनाँदगाँव राजा के पास नौकरी करने जा रहे थे कि रेलगाड़ी में उनकी भेंट एक अंग्रेज मिशनरी से हुई जिसने उनको बाइबिल की प्रतिलिपि पढ़ने को दी। अरुचि होने के बावजूद उन्होंने इसे पढ़ने की प्रतिज्ञा की। महीनों तक बाइबिल का अध्ययन करने के बाद मसीही धर्म की सत्यता का उनमें मन में विश्वास हो गया। उन्होंने अमरीकी-मराठी मिशन के पादरी जे.इ. ऐबट साहब से १० फरवरी, १८९५ ई. को बंबई में बप्तिस्मा ले लिया। मनुष्य के नाते नारायण वामन तिलक ने अपने साथियों से जाति, धर्म और कुल का भेदभाव रखे बिना प्रेम किया। किसी विद्वान् ने उनसे प्रश्न किया कि 'प्रभु की सेवा क्या है?' तिलक जी ने उत्तर दिया कि 'जनसेवा ही प्रभु की सेवा के बराबर है। अपने हित को बिसार दो और दूसरों के हित को अपना हित समझो।' भारतीय होने के नाते वे महान् देशभक्त थे। उनमें ऐसी ज्वलंत देशभक्ति विद्यमान थी जिसका अनुभव उनके संपर्क में आकर कोई भी व्यक्ति कर सकता था। वे कहा करते थे कि जब तक मनुष्य देशभक्त न हो, वह यीशु मसीह का सच्चा भक्त नहीं हो सकता। संपूर्ण महाराष्ट्र के नगरों तथा गाँवों में मसीही जनता उनके बनाए हुए गानों को समय समय पर गाया करती है। उनकी मृत्यु १२ जून, १९४० ई. में महाबलेश्वर में हुई। श्रेणी:मराठी कवि.

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नाहूम

नाहूम (Nahum; हिब्रू: נַחוּם Naḥūm‎) एक लघु नबी थे जिनकी भविष्यवाणियाँ इब्रानी बाइबल (Hebrew Bible) में संगृहीत है। नबी नाहूम ने एक काव्यग्रंथ की रचना की है जो बाइबिल में संगृहीत है। साहित्यिक दृष्टि से वह बाइबिल के सर्वोत्तम अंशों में से है। इस काव्य में सीरिया की राजधानी के भावी विध्वंस का वर्णन है और वह उस घटना (६१२ ई.पू.) के कुछ पहले ही लिखा गया था। असीरिया ने ७२२ ई.पू.

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नगमा

चित्र:C:\Documents and Settings\user\Desktop\images.jpg नंदिता मोरारजी या नम्रता सदाना, जो नगमा के रूप में विख्यात हैं, नघमाநக்மா (जन्म 25 दिसम्बर 1974), बॉलीवुड, टॉलीवुड और कॉलीवुड की एक भारतीय अभिनेत्री हैं। 1990 के दशक में अपने चरम पर, द हिन्दू अख़बार के उद्धरणानुसार, "तमिल सिनेमा पर उनका प्रभुत्व" था। उनका जन्म क्रिसमस दिवस पर, एक मुससमान मां और हिन्दू पिता के घर हुआ। उन्होंने बॉलीवुड में अपना अभिनय कॅरिअर शुरू किया और कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया, लेकिन दक्षिण में स्थानांतरित हो गईं, जहां उनकी मुंबई वापसी से पहले तक, उन्हें बेशुमार सफलता मिली। हालांकि कभी-कभी फ़िल्म नामावलियों में उन्हें नग़मा के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, पर उन्हें एक पुरानी अभिनेत्री न समझ लिया जाए, जिन्होंने इसी मंच नाम को अपनाया था - यह ग़लती इंटरनेट मूवी डेटाबेस वेबसाइट पर उनकी सूची में किया गया है। नगमा हिन्दी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, भोजपुरी, पंजाबी और अब मराठी जैसी भारतीय भाषाओं में विस्तृत रूप से काम करने के लिए उल्लेखनीय रही हैं। .

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नोआम चाम्सकी

एवरम नोम चोम्स्की (हीब्रू: אברם נועם חומסקי) (जन्म 7 दिसंबर, 1928) एक प्रमुख भाषावैज्ञानिक, दार्शनिक, by Zoltán Gendler Szabó, in Dictionary of Modern American Philosophers, 1860–1960, ed.

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नीतिकथा

thumb नीतिकथा (Fable) एक साहित्यिक विधा है जिसमें पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों एवं अन्य निर्जीव वस्तुओं को मानव जैसे गुणों वाला दिखाकर उपदेशात्मक कथा कही जाती है। नीतिकथा, पद्य या गद्य में हो सकती है। पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि प्रसिद्ध नीतिकथाएँ हैं। .

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पन्ना

पन्ना, बेरिल (Be3Al2(SiO3)6) नामक खनिज का एक प्रकार है जो हरे रंग का होता है और जिसे क्रोमियम और कभी-कभी वैनेडियम की मात्रा से पहचाना जाता है।हर्ल्बट, कॉर्नेलियस एस.

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पश्चिमी संस्कृति

पश्चिमी संस्कृति (जिसे कभी-कभी पश्चिमी सभ्यता या यूरोपीय सभ्यता के समान माना जाता है), यूरोपीय मूल की संस्कृतियों को सन्दर्भित करती है। यूनानियों के साथ शुरू होने वाली पश्चिमी संस्कृति का विस्तार और सुदृढ़ीकरण रोमनों द्वारा हुआ, पंद्रहवी सदी के पुनर्जागरण एवं सुधार के माध्यम से इसका सुधार और इसका आधुनिकीकरण हुआ और सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक जीवन और शिक्षा के यूरोपीय तरीकों का प्रसार करने वाले उत्तरोत्तर यूरोपीय साम्राज्यों द्वारा इसका वैश्वीकरण हुआ। दर्शन, मध्ययुगीन मतवाद एवं रहस्यवाद, ईसाई एवं धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद की एक जटिल श्रृंखला के साथ यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। ज्ञानोदय, प्रकृतिवाद, स्वच्छंदतावाद (रोमेन्टिसिज्म), विज्ञान, लोकतंत्र और समाजवाद के प्रयोगों के साथ परिवर्तन एवं निर्माण के एक लंबे युग के माध्यम से तर्कसंगत विचारधारा विकसित हुई.

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पहेली

किसी व्यक्ति की बुद्धि या समझ की परीक्षा लेने वाले एक प्रकार के प्रश्न, वाक्य अथवा वर्णन को पहेली (Puzzle) कहते हैं जिसमें किसी वस्तु का लक्षण या गुण घुमा फिराकर भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया गया हो और उसे बूझने अथवा उस विशेष वस्तु का ना बताने का प्रस्ताव किया गया हो। इसे 'बुझौवल' भी कहा जाता है। पहेली व्यक्ति के चतुरता को चुनौती देने वाले प्रश्न होते है। जिस तरह से गणित के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, उसी तरह से पहेलियों को भी नज़रअन्दाज नहीं किया जा सकता। पहेलियां आदि काल से व्यक्तित्व का हिस्सा रहीं हैं और रहेंगी। वे न केवल मनोरंजन करती हैं पर दिमाग को चुस्त एवं तरो-ताजा भी रखती हैं। .

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पादप रोगविज्ञान

'''चूर्णिल आसिता''' (Powdery mildew) का रोग एक बायोट्रॉफिक कवक के कारण होता है कृष्ण विगलन (ब्लैक रॉट) रोगजनक का जीवनचक्र पादप रोगविज्ञान या फायटोपैथोलोजी (plant pathology या phytopathology) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक के तीन शब्दों जैसे पादप, रोग व ज्ञान से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "पादप रोगों का ज्ञान (अध्ययन)"। अत: पादप रोगविज्ञान, कृषि विज्ञान, वनस्पति विज्ञान या जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत रोगों के लक्ष्णों, कारणों, हेतु की, रोगचक्र, रागों से हानि एवं उनके नियंत्रण का अध्ययन किया जाता हैं। .

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पापस्वीकरण

यीशु का बपतिस्मा और कनफेशन बॉक्स। ईसाई धर्म का मूलभूत विश्वास है कि ईसा मानव जाति को पाप से छुटकारा दिलाकर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से पृथ्वी पर आए थे। अपने स्वर्गारोहण के पूर्व उन्होंने अपने शिष्यों को अधिकार दिया कि बपतिस्मा द्वारा पश्चात्तापी विश्वासियों को उनके पापों से मुक्त कर दें लेकिन बपतिस्मा के बाद मनुष्य पाप कर सकता है, इसीलिये ईसा ने पापस्वीकरण (कनफेशन) का संस्कार भी निश्चित कर दिया, जिसके द्वारा पश्चात्तापी मनुष्य अपने पापों का परिहार कर सकता है। शताब्दियों तक समस्त ईसाइयों का यही विश्वास रहा है। इसका आधार बाइबिल में सुरक्षित ईसा का अपने शिष्यों के प्रति यह कथन है- जिन लोगों के पाप तुम क्षमा करोगे वे अपने पापों से मुक्त हो जायँगे, जिन लोगों के पाप तुम नहीं क्षमा करोगे वे अपने पापों से बँधे रहेंगे (संत योहन का सुसमाचार, २०, २१)। ईसाई धर्म के प्रारंभ ही से पूजा के समय सामूहिक पापस्वीकरण के अतिरिक्त व्यक्तिगत पापस्वीकरण का उल्लेख मिलता है। पापी प्राय: बिशप के सामने अपना पाप स्वीकार करता था और उसे प्रायश्चित्त करने का अवसर दिया जाता था, उसे पूरा करने के बाद ही पापी के फिर यूखारिस्ट संस्कार ग्रहण करने की अनुमति दी जाती थी। किसी पुरोहित के सामने अकेले में निजी पापस्वीकरण की प्रथा चौथी शती के बाद ही धीरे धीरे प्रचलित होने लगी थी। सन् १२१५ में वर्ष भर में कम से कम एक बार पापस्वीकरण करने का नियम लागू कर दिया गया था। प्रोटेस्टैंट धर्म पापस्वीकरण को ईसा द्वारा नियम संस्कार नहीं मानता तथा नियमित रूप से निजी पापस्वीकरण करना अनावश्यक समझता है। रोमन काथलिक तथा प्राच्य चर्च समान रूप में पापस्वीकरण को ईसा द्वारा नियत किया हुआ संस्कार समझा हैं। पापस्वीकरण के लिये पापी की ओर से तीन बातों की अपेक्षा है- (१) पश्चात्ताप, (२) किसी पुरोहित के सामने अपने पापों स्वीकार करना, (३) पुरोहित द्वारा ठहराया हुआ प्रायश्चित्त का कार्य पूरा करना। पुरोहित पापों को सच्चा पश्चात्तापी जानकर उसे ईसा के नाम पर पाप से मुक्त कर देता है और बाद में किसी भी हालत में पापस्वीकरण द्वारा प्राप्त जानकारी को गुप्त रखने के लिये बाध्य होता है। श्रेणी:ईसाई धर्म.

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पारंपरिक संगीत

ग्रैमी अवार्ड्स की शब्दावली में अब पारंपरिक संगीत शब्द का प्रयोग "लोक संगीत " के स्थान पर किया जाता है। इस बदलाव का पूर्ण विवरण विश्व संगीत लेख के शब्दावली अनुभाग में पाया जा सकता है। अन्य संगठनों ने इसी तरह के परिवर्तन किए हैं, हालांकि गैर-शैक्षणिक हलकों में, तथा सीडी बेचने वाली कई वेबसाइटों पर, "लोक संगीत" वाक्यांश का प्रयोग बहुत सारे अर्थों में किया जाता है। .

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पुराना नियम

ईसाइयों के धर्मग्रन्थ बाइबल के प्रथम खण्ड (पूर्वार्ध) का नाम पुराना नियम (अंग्रेज़ी::en:Old Testament है। इसे यहूदी धर्म भी अपना धर्मग्रन्थ मानता है। इसमें परमेश्वर द्वारा विश्व की उत्पत्ति, यहूदी राष्ट्र और ईश्वर से उनका सम्बन्ध, आदि का कहानियों द्वारा वर्णन है। यहूदियों के प्रारंभिक इतिहास का अधिकतर पता ओल्ड टेस्टामेंट से ही चलता है। पुराने अहदनामे में तीन ग्रंथ शामिल हैं। सबसे प्रारंभ में "तौरेत" (इबरानी थोरा) है। तौरेत का शब्दिक अर्थ वही है जो "धर्म" शब्द का है, अर्थात् धारण करने या बाँधनेवाला। दूसरा ग्रंथ "यहूदी पैगंबरों का जीवनचरित" और तीसरा "पवित्र लेख" है। इन तीनों ग्रंथों का संग्रह "पुराना अहदनामा" है। पुराने अहदनामें में 39 खंड या पुस्तकें हैं। इसका रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच है। पुराने अहदनामे में सृष्टि की रचना, मनुष्य का जन्म, यहूदी जाति का इतिहास, सदाचार के उच्च नियम, धार्मिक कर्मकांड, पौराणिक कथाएँ और यह्वे के प्रति प्रार्थनाएँ शामिल हैं। पुराने नियम में कई काण्ड हैं.

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पुराना यरुशलम शहर

पुराना शहर (העיר העתיקה, हा'लर हा'अतिकाह, البلدة القديمة, अल-बलद अल-कदीम) वर्तमान यरुशलम के अंतर्गत एक 0.9 वर्ग किलीमीटर दीवारों से घिरा क्षेत्र है। पुराना शहर कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों का घर है: टेम्पल माउंट और पश्चिमी दीवार यहूदियों के लिये, पवित्र कब्र वाला चर्च ईसाईयों के लिये तथा डोम ऑफ़ द रॉक और अल-अक्सा मस्जिद मुस्लिमों के लिये पवित्र धार्मिक स्थल है। युनेस्को ने इसे 1981 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया। पारम्परिक रूप से पुराना शहर चार खण्डों में विभक्त है; ये हैं मुस्लिम खण्ड, ईसाई खण्ड, अर्मेनियाई खण्ड और यहूदी खण्ड। शहर की रक्षा प्राचीरें तथा द्वार उस्मान साम्राज्य के सुल्तान सुलेमान प्रथम द्वारा 1535–1542 ईस्वी के मध्य बनवायी गयी थी। 2007 के अनुसार पुराने शहर में 27,500 मुस्लिम, 5,681 ईसाई, 790 अर्मेनियाई तथा 3,089 यहूदी रहते हैं। अरब-इजराइल युद्ध (१९४८) के बाद जॉर्डन ने पुराने शहर पर कब्ज़ा कर लिया और यहूदियों को यहाँ से बाहर निकाल दिया। छः दिन के युद्ध के दौरान इजराइल ने पुराने शहर सहित पूरे पूर्व यरुशलम पर कब्ज़ा कर लिया और इसे पश्चिम यरुशलम के साथ मिला दिया। वर्तमान में यह पूरा क्षेत्र इसरायली सरकार के नियंत्रण में है, जो इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का अंग मानती है। हालांकि इसरायली सरकार के 1980 के यरुशलम एकीकरण को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अमान्य घोषित कर दिया है। पूर्व यरुशलम को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब फिलिस्तानी क्षेत्र का अंग मानता है। .

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प्रचलित गलत धारणाओं की सूची

यहाँ पर उन धारणाओं का विवरण दिया गया है जो जनसाधारण में व्यापक रूप से प्रचलित हैं किन्तु गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि उनमें त्रुटि है। .

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प्रणामी संप्रदाय

प्रणामी सम्प्रदाय एक हिन्दू सम्प्रदाय है जिसमे सर्वेसर्वा इश्वर "राज जी" (सदचित्त आनन्द) को मानने वाले अनुयायी शामिल है। यह संप्रदाय अन्य धर्मों की तरह बहुईश्वर में विश्वास नहीं रखता। यह ४००-वर्ष प्राचीन संप्रदाय है। इसकी स्थापना देवचंद्र महाराज द्वारा हुई तथा इसका प्रचार प्राणनाथ स्वामी व उनके शिष्य महाराज छत्रसाल ने किया। जामनगर में नवतनपुरी धाम प्रणामी धर्म का मुख्य तीर्थ स्थल है। इसे श्री कृष्ण प्रणामी धर्म या निजानंद सम्प्रदाय या परनामी संप्रदाय भी कहते हैं। परब्रह्म परमात्मा श्री राज जी एवं उनकी सह-संगिनी श्री श्यामा महारानी जी इस ब्रह्माण्ड के पालनहार एवं रचयिता है। इस संप्रदाय में जो तारतम ग्रन्थ है, वो स्वयं परमात्मा की स्वरुप सखी इंद्रावती ने प्राणनाथ के मनुष्य रूप में जन्म लेकर लिखा। वाणी का अवतरण हुआ और कुरान, बाइबल, भगवत आदि ग्रंथो के भेद खुले। प्रणामियो को ईश्वर ने ब्रह्म आत्मा घोषित किया है। अर्थात ब्रह्मात्मा के अंदर स्वयं परमात्मा का वास होता है। ये ब्रह्मात्माएँ परमधाम में श्री राज जी एवं श्यामा महारानी जी के संग गोपियों के रूप में रहती है। सबसे पहले परमात्मा का अवतरण अल्लाह के रूप में, दूसरी बार कृष्ण (केवल 11 वर्ष 52 दिन तक के गोपी कृष्ण के रूप में, बाकी जीवन में कृष्ण विष्णु अवतार थे। कृष्ण ने गीता भी परमात्मा अवतार - अक्षरातीत अवतार में ही कही है।) और सोहलवीं शताब्दी में श्री प्राणनाथ के रूप में ईश्वर के रूप में जन्म लिया। इस सम्प्रदाय में 11 साल और 52 दिन की आयु वाले बाल कृष्ण को पूजा जाता है। क्योकि इस आयु तक कृष्ण रासलीला किया करते थे। पाठक गलत न समझे कि कृष्ण अलग अलग है। कृष्ण तो केवल एक मनुष्य रूप का नाम है कोई ईश्वर का नही। बाल्यकाल में कृष्ण परमात्मा के अवतार थे और बाकी जीवन में विष्णु अवतार। .

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प्रदत्त नाम

प्रदत्त नाम या दिया हुआ नाम एक ऐसा व्यक्तिगत नाम है जो कि लोगों के समूह में सदस्यों की पहचान कराता है, विशेषकर परिवार में, जहां सभी सदस्य आम तौर पर एकसमान पारिवारिक नाम (कुलनाम) साझा करते हैं, उनके बीच अंतर स्पष्ट करता है। एक प्रदत्त नाम किसी व्यक्ति को दिया गया नाम है, जो पारिवारिक नाम की तरह विरासत में नहीं मिलता। अधिकांश यूरोपीय देशों में और ऐसे देशों में जहां की संस्कृति मुख्य रूप से यूरोप से प्रभावित है (जैसे कि उत्तर और दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, आदि में बसे यूरोपीय आनुवंशिकता वाले व्यक्ति), आम तौर पर प्रदत्त नाम पारिवारिक नाम से पहले आता है (हालांकि सामान्यतः सूचियों और कैटलॉग में नहीं) और इसलिए पूर्व नाम या प्रथम नाम के रूप में जाना जाता है। लेकिन विश्व की कई संस्कृतियों में - जैसे कि हंगरी, अफ्रीका की विभिन्न संस्कृतियों और पूर्व एशिया की अधिकांश संस्कृतियों (उदा. चीन, जापान, कोरिया और वियतनाम) में - प्रदत्त नाम परंपरागत रूप से परिवार के नाम के बाद आते हैं। पूर्वी एशिया में, प्रदत्त नाम का अंश भी परिवार की किसी विशिष्ट पीढ़ी के सभी सदस्यों के बीच साझा किया जा सकता है, ताकि एक पीढ़ी की दूसरी पीढ़ी से अलग पहचान की जा सके। सामान्य पश्चिमी नामकरण परंपरा के तहत, आम तौर पर लोगों के एक या अधिक पूर्व नाम (या तो दिए गए या प्राप्त) होते हैं। यदि एक से अधिक है, तो आम तौर पर (हर रोज़ के इस्तेमाल के लिए) एक मुख्य पूर्व नाम और एक या अधिक पूरक पूर्व नाम मौजूद होते हैं। लेकिन कभी-कभी दो या अधिक एकसमान महत्व वाले होते हैं। इस तथ्य के परे कि पूर्व नाम उपनाम से पहले होते हैं, इनके लिए कोई विशिष्ट क्रमांकन नियम मौजूद नहीं है। अक्सर मुख्य पूर्व नाम शुरूआत में होता है, जिसके परिणामस्वरूप एक प्रथम नाम और एक या अधिक मध्यम नाम बनते हैं, लेकिन अन्य व्यवस्थाएं भी काफ़ी प्रचलित है। प्रदत्त नाम का उपयोग अक्सर अनौपचारिक स्थितियों में एक परिचित और मैत्रीपूर्ण ढंग से किया जाता है। अधिक औपचारिक स्थितियों में इसके बजाय उपनाम का प्रयोग किया जाता है, जब तक कि एक ही उपनाम वाले लोगों के बीच अंतर करना ज़रूरी न हो। मुहावरा "प्रथम-नाम के आधार पर" (या "प्रथम-नाम संबोधन") इस तथ्य का संकेत देता है कि व्यक्ति के प्रदत्त नाम का उपयोग, सुपरिचय जताता है। .

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प्रभुप्रकाश

एपिफ़नी (Epiphany) अथवा 'प्रभुप्रकाश' नामक ईसाई पर्व परम्परागत रूप से ६ जनवरी को मनाया जाता है। यह लगभग सन्‌ 200 ई. में प्राच्य चर्च में प्रारंभ हुआ। बाद में वह पर्व पाश्चात्य चर्च में भी फैल गया। प्रारंभ में वह ईश्वरीय शक्ति के आविर्भाव तथा ईसा के जन्म के आदर में मनाया जाता था। बाद में क्रिस्मस (25 दिसंबर) ही ईसा का एकमात्र जन्मपर्व रह गया और एफ़िनी (6 जनवरी) का पर्व, बाइबिल में वर्णित ईसा की जीवनी की तीन घटनाओं का, संस्मरणोत्सव बन गया। अर्थात्‌ ज्ञानी पुरुषों की आराधना, जार्डन नदी में ईसा का बपतिस्मा तथा काना नगर में ईसा का प्रथम चमत्कार: तीन घटनाओं के संस्मरण में यह पर्व मनाया जाने लगा। .

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प्रसिद्ध पुस्तकें

कोई विवरण नहीं।

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प्राचीन यूनानी भाषा

प्राचीन यूनानी भाषा (अथवा प्राचीन ग्रीक, अंग्रेज़ी: Ancient Greek, यूनानी: हेल्लेनिकी) प्राचीन काल के यूनान देश और उसके आस-पास के क्षेत्रों की मुख्य भाषा थी। इसे संस्कृत की बहिन भाषा माना जा सकता है। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की यूनानी शाखा में आती है। इसे एक शास्त्रीय भाषा माना जाता है, जिसमें काफ़ी ज़्यादा और उच्च कोटि का साहित्य रचा गया था, जिसमें सबसे ख़ास होमर के दो महाकाव्य इलियाड और ओडेस्सी हैं। इसके व्याकरण, शब्दावली, ध्वनि-तन्त्र और संगीतमय बोली इसे संस्कृत के काफ़ी करीब रख देते हैं। इसकी बोलचाल की बोली कोइने में ही बाइबल का लगभग सारा नया नियम लिखा गया था। .

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प्रायश्चित्त

हिन्दू धर्म में, प्रायश्चित्त शास्त्रानुसार विहित वह कृत्य है जिसके करने से मनुष्य के पाप छूट जाते हैं। दूसरे शब्दों में, जिस अनुष्ठान के द्वारा किए हुए पाप का निश्चित रूप से शोधन हो उसे प्रायश्चित्त कहते हैं। जैसे क्षार से वस्त्र की शुद्धि होती है वैसे ही प्रायश्चित्त से पापी की शुद्धि होती है। धर्म की व्याख्या करते हुए जैमिनि ने बतलाया है कि वेद द्वारा विहित धर्म एवं उससे विरुद्ध अधर्म है। धर्म के आचरण से पुण्य तथा अधर्म के आचरण से पाप होता है। पुण्य से इष्टसाधन एवं पाप से अनिष्ट की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में भिन्न भिन्न प्रकार के कृत्यों का विधान है। किसी पाप में व्रत का, किसी में दान का, किसी मे व्रत और दान दोनों का विधान है। लोक में भी समाज के नियमविरुद्ध कोई काम करने पर मनुष्य को समाज द्वारा निर्धारित कुछ कर्म करने पड़ते हैं जिससे वह समाज में पुनः व्यवहार योग्य होता है। इस प्रकार के कृत्यों को भी प्रायश्चित कहते हैं। .

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प्रेयोक्ति

एक प्रेयोक्ति का अर्थ होता है, सुननेवाले को रुष्ट करने वाली या कोई अप्रिय अर्थ देने वाली अभिव्यक्ति को एक रुचिकर या कम अपमानजनक अभिव्यक्ति के साथ प्रतिस्थापित करना, या कहने वाले के लिए उसे कम कष्टकर बनाना, जैसा की द्विअर्थी के मामले में होता है। प्रेयोक्ति का परिनियोजन राजनीतिक विशुद्धता के सार्वजनिक उपयोग में केंद्रीय पहलू है। यह किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के वर्णन को भी प्रतिस्थापित कर सकता है ताकि गोपनीय, पवित्र, या धार्मिक नामों को अयोग्य के समक्ष ज़ाहिर करने से बचा जा सके, या किसी वार्ता के विषय की पहचान को किसी संभावित प्रच्छ्न्न श्रोता से गुप्त रखा जा सके.

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प्रोटेस्टैंट

प्रोटेस्टैंट ईसाई धर्म की एक शाखा है। इसका उदय सोलहवीं शताब्दी में प्रोटेस्टैंट सुधारवादी आन्दोलन के फलस्वरूप हुआ। यह धर्म रोमन कैथोलिक धर्म का घोर विरोधी है। इसकी प्रमुख मान्यता यह है कि धर्मशास्त्र (बाइबल) ही उद्घाटित सत्य (revealed truth.) का असली स्रोत है न कि परम्पराएं आदि। प्रोटेस्टैंट के विषय में यह प्राय: सुनने में आता है कि वह असंख्य संप्रदायों में विभक्त है किंतु वास्तव में समस्त प्रोटेस्टैंट के 94 प्रतिशत पाँच ही संप्रदायों में सम्मिलित हैं, अर्थात: लूथरन, कैलविनिस्ट, एंग्लिकन, बैप्टिस्ट और मेथोडिस्ट। .

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पैराडाइज

यूनानी साहित्य में फारसी राजाओं की वाटिका को पैराडाईज कहा जाता था। बाइबिल के प्रारंभ में आदम और हौवा का निवास स्थान एक वाटिका के रूप में चित्रित है और उसे पैराडाज अथवा अदनवाटिका कहा गया है। उसका तात्पर्य है कि वे सुख-शांति से जीवन व्यतीत कर रहे थे। पाप करने के बाद उनको पैराडाइज से निकाल दिया गया था, अर्थात्‌ वे अपनी सुख शांति खो बैठे। यहूदियों का विश्वास था कि मसीह मानव जाति के लिये पैराडाइज फिर खोल देगें अर्थात्‌ वह सुख शांति एवं मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर देगे, इस तरह पैराडाइज स्वर्ग का प्रतीक बन गया। .

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पैराडाइज लॉस्ट

मिल्टन का प्रसिद्ध महाकाव्य: '''पैराडाइज लॉस्ट''' पैराडाइज लॉस्ट (Paradise Lost), जॉन मिल्टन नामक आंग्ल कवि का लिखा हुआ एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य को लिखने की इच्छा उनके मन में 1639 में ही अंकुरित हुई थी, परंतु लिखने का काम पूरी लगन के साथ सन् 1658 से शुरू हो सका। यह सन् 1663 में समाप्त हुआ। चार साल के बाद यह प्रकाशित हुआ। पैराडाइज लॉस्ट, जो अतुकान्त छंद में लिखा गया है, वर्जिल तथा होमर के समय से लिखे गये सभी महाकाव्यों में सर्वोत्कृष्ट है। यह महाकाव्य शक्तिशाली चरित्र-चित्रण, अत्यंत सुंदर कल्पनाशक्ति, विविध प्रभावपूर्ण छंद तथा प्रौढ़ भाषा के आनंद आदि गुणों से पूरिपूर्ण है। यह काव्य पुनर्जागरण काल (रेनेसां) तथा यूरोपीय धर्मसुधार (रिफाॅर्मेशन) काल की प्रवृत्तियों का परिपूर्ण सम्मिश्रण है। इसमें प्राचीन देवतावाद युग और बाइबल के नैतिक उत्साह का सुंदर मिलन है। .

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फिदेल कास्त्रो के धार्मिक विचार

फिदेल कास्त्रो के धार्मिक विचार सार्वजनिक चर्चा का विषय बने हुए हैं। वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के कारावास से भेजे गए पत्र यह दिखाते हैं कि वह एक अद्भुत आध्यात्मिक चिन्तन वाले पुरुष थे और भगवान में सच्ची आस्था रखते थे। कास्त्रो ने एक दिवंगत कॉमरेड को श्रद्धाँजलि देते हुए कहते है: ""मैं उसके बारे में एक अनुपस्थित व्यक्ति के रूप में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि ऐसा कभी हुआ ही नहीं। ये केवल तसल्ली के शब्द नहीं। हम में से सिर्फ़ वही इस बात को सच्चे तौर पर और स्थाई रूप से अपनी अत्मा की गहराई में उतरने वाला ही महसूस कर सकता है। शारिरिक जीवन अल्पकालिक है जो तेज़ी से गुज़र जाता है.

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बाँसुरी

दुनिया भर से बांसुरियों का एक संकलन बांसुरी काष्ठ वाद्य परिवार का एक संगीत उपकरण है। नरकट वाले काष्ठ वाद्य उपकरणों के विपरीत, बांसुरी एक एरोफोन या बिना नरकट वाला वायु उपकरण है जो एक छिद्र के पार हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न करता है। होर्नबोस्टल-सैश्स के उपकरण वर्गीकरण के अनुसार, बांसुरी को तीव्र-आघात एरोफोन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। बांसुरीवादक को एक फ्लूट प्लेयर, एक फ्लाउटिस्ट, एक फ्लूटिस्ट, या कभी कभी एक फ्लूटर के रूप में संदर्भित किया जाता है। बांसुरी पूर्वकालीन ज्ञात संगीत उपकरणों में से एक है। करीब 40,000 से 35,000 साल पहले की तिथि की कई बांसुरियां जर्मनी के स्वाबियन अल्ब क्षेत्र में पाई गई हैं। यह बांसुरियां दर्शाती हैं कि यूरोप में एक विकसित संगीत परंपरा आधुनिक मानव की उपस्थिति के प्रारंभिक काल से ही अस्तित्व में है। .

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बादाम

बादाम (अंग्रेज़ी:ऑल्मंड, वैज्ञानिक नाम: प्रूनुस डल्शिस, प्रूनुस अमाइग्डैलस) मध्य पूर्व का एक पेड़ होता है। यही नाम इस पेड़ के बीज या उसकी गिरि को भी दिया गया है। इसकी बड़े तौर पर खेती होती है। बादाम एक तरह का मेवा होता है। संस्कृत भाषा में इसे वाताद, वातवैरी आदि, हिन्दी, मराठी, गुजराती व बांग्ला में बादाम, फारसी में बदाम शोरी, बदाम तल्ख, अंग्रेजी में आलमंड और लैटिन में एमिग्ड्रेलस कम्युनीज कहते हैं। आयुर्वेद में इसको बुद्धि और नसों के लिये गुणकारी बताया गया है। भारत में यह कश्मीर का राज्य पेड़ माना जाता है। एक आउंस (२८ ग्राम) बादाम में १६० कैलोरी होती हैं, इसीलिये यह शरीर को उर्जा प्रदान करता है।|नीरोग लेकिन बहुत अधिक खाने पर मोटापा भी दे सकता है। इसमें निहित कुल कैलोरी का ¾ भाग वसा से मिलता है, शेष कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन से मिलता है। इसका ग्लाईसेमिक लोड शून्य होता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट बहुत कम होता है। इस कारण से बादाम से बना केक या बिस्कुट, आदि मधुमेह के रोगी भी ले सकते हैं। बादाम में वसा तीन प्रकार की होती है: एकल असंतृप्त वसीय अम्ल और बहु असंतृप्त वसीय अम्ल। यह लाभदायक वसा होती है, जो शरीर में कोलेस्टेरोल को कम करता है और हृदय रोगों की आशंका भी कम करता है। इसके अलावा दूसरा प्रकार है ओमेगा – ३ वसीय अम्ल। ये भी स्वास्थवर्धक होता है। इसमें संतृप्त वसीय अम्ल बहुत कम और कोलेस्टेरोल नहीं होता है। फाईबर या आहारीय रेशा, यह पाचन में सहायक होता है और हृदय रोगों से बचने में भी सहायक रहता है, तथा पेट को अधिक देर तक भर कर रखता है। इस कारण कब्ज के रोगियों के लिये लाभदायक रहता है। बादाम में सोडियम नहीं होने से उच्च रक्तचाप रोगियों के लिये भी लाभदायक रहता है। इनके अलावा पोटैशियम, विटामिन ई, लौह, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फास्फोरस भी होते हैं।। हिन्दी मीडिया.इन। २५ सितंबर २००९। मीडिया डेस्क .

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बियोवुल्फ़

बियोवुल्फ़ (पुरानी अंग्रेज़ी में या तो या), एक पुराने अंग्रेज़ी वीर महाकाव्य कविता का पारम्परिक नाम है, जिसमें 3182 अनुप्रास लंबी पंक्तियां हैं, जो स्कैंडिनेविया में सेट की गई हैं और जिसे सामान्यतः एंग्लो-सेक्सोन साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है। इसे केवल एक ही पांडुलिपि में लिखा गया है, इस पांडुलिपि को नोवेल कोडेक्स के नाम से भी जाना जाता है। इसकी रचना एक अनाम एंग्लो-सेक्सोन कवि द्वारा 8वीं और आरंभिक 11वीं सदी के बीच की गई थी। कविता में, बियोवुल्फ़, गेट्स का नायक है, जो तीन शत्रुओं:ग्रैन्डल, जो हरूगर के मीड हॉल में आवासी योद्धाओं के ऊपर आक्रमण करता रहता है (डेन्स का राजा), ग्रैन्डल की माँ और एक अनाम ड्रैगन (अझ़दहा) के साथ युद्ध करता है। अंतिम लड़ाई बाद में होती है, बियोवुल्फ़ अब गेट्स का राजा बन चुका है। अंतिम लड़ाई में, बियोवुल्फ़ गंभीर रूप से घायल हो जाता है। उसके देहांत के बाद उसके समर्थक उसे गेटलैंड के टुमुलस में दफना देते हैं। .

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बिग ब्रदर (टीवी सीरिज़)

बिग ब्रदर एक रियलिटी टेलीविजन शो है, जहां एक बड़े घर में लोगों का एक समूह एक साथ रहता है, बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग, लेकिन टेलीविजन कैमरों द्वारा उन्हें लगातार देखा जा रहा होता है। प्रत्येक सीरिज़ तीन महीने के करीब चलती है और इसमें आम तौर पर 15 से कम प्रतिभागी हुआ करते हैं। इस घर के सदस्य खुद को घर से होने वाले नियतकालिक निष्कासन से बचाते हुए एक नकद पुरस्कार जीतने की कोशिश करते हैं। जॉन डी मोल प्रोदुक्तिज़ (John de Mol Produkties) (इंडेमोल का एक स्वतंत्र भाग) नामक निर्माण संस्था के एक जबर्दस्त बहस-मुबाहिसे से इस शो का विचार 4 सितंबर 1997 सामने आया। 1999 में नीदरलैंड के वेरोनिका चैनल में पहले बिग ब्रदर का प्रसारण किया गया था। अगले साल से जर्मनी, पुर्तगाल, यूएसए (USA), यूके (UK), स्पेन, बेल्जियम, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और इटली में इसका प्रसारण शुरू हुआ और इस तरह यह एक विश्वव्यापी हलचल बन गया।‍ तब से यह लगभग 70 देशों में प्राइम-टाइम हिट बना हुआ है। शो का नाम जॉर्ज ऑरवेल के 1949 के उपन्यास नाइंटीन एटी-फोर (Nineteen Eighty-Four) से लिया गया, यह एक ऐसे आतंकराज की कहानी है जिसमे बिग ब्रदर अपनी तानाशाही के निवासियों पर हमेशा उनके टेलीविजन सेट के जरिये जासूसी कर सकता है, इस नारे के साथ कि "बिग ब्रदर इज वाचिंग यू " (Big Brother is watching you) अर्थात तुम पर बिग ब्रदर की नज़र है। .

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बवासीर

बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है। 1- खूनी बवासीर:- खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है। 2-बादी बवासीर:- बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी भाषा में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीड़ा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अँग्रेजी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रकार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। .

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ब्राह्म समाज

ब्रह्म समाज भारत का एक सामाजिक धार्मिक आंदोलन है, जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना है। समाज का वास्तविक अर्थ होता सम+आज। .

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ब्लेड रनर

ब्लेड रनर 1982 की एक अमेरिकी साइंस फिक्शन कथा फिल्म है, जिसे रिडले स्कॉट ने निर्देशित किया है और जो हैरिसन फोर्ड, रटगेर हॉयर तथा सीन यंग द्वारा अभिनीत है। हैम्पटन फैंचर और डेविड पीपुल्स द्वारा लिखित पटकथा, कुछ हद तक डू एंड्रोयड्स ड्रीम ऑफ़ इलेक्ट्रिक शीप? नामक उपन्यास पर आधारित है। जो फिलिप के.एच.

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बैल (पौराणिक मान्यता)

अंकारा में ऐनाटोलियन सभ्यताओं के संग्रहालय में कैटलहोयुक से बैल का सिर खोदकर निकाला गया। नंदी बैल की द्वितीय शताब्दी ईसवी की मूर्ति. प्राचीन विश्व के दौरान पवित्र बैल की पूजा पश्चिमी विश्व की स्वर्ण बछड़े की प्रतिमा से सम्बंधित बाइबिल के प्रसंग में सर्वाधिक समानता रखती है, यह प्रतिमा पर्वत की चोटी के भ्रमण के दौरान यहूदी संत मोसेज़ द्वारा पीछे छोड़ दिए गए लोगों द्वारा बनायी गयी थी और सिनाइ (एक्सोडस) के निर्जन प्रदेश में यहूदियों द्वारा इसकी पूजा की जाती थी। मर्दुक "उटू का बैल" कहा जाता है। भगवान शिव की सवारी नंदी, भी एक बैल है। वृषभ राशि का प्रतीक भी पवित्र बैल है। बैल मेसोपोटामिया और मिस्र के समान चन्द्र संबंधी हो या भारत के समान सूर्य संबंधी हो, अन्य अनेकों धार्मिक और सांस्कृतिक अवतारों का आधार होता है और साथ ही साथ नवयुग की संस्कृति में आधुनिक लोगो की चर्चा में होता है। .

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भजनसंहिता

भजन संहिता (The Book of Psalms; टाइबेरियन: Təhillîm; आधुनिक: Tehillim, תְהִלִּים, या "प्रशंशा"), एक हिब्रू की बाइबल और ईसाई बाइबल की एक पुस्तक है। इसे प्रायः 'साल्म' (Psalms) कहा जाता है। कुल मिलाकर इसके १५० भजन इजराइल के सम्पूर्ण मजहबी विश्वास को अभिव्यक्त करते हैं। .

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भौमिकी का इतिहास

भौमिकी का इतिहास बहुत पुराना है। शायद 'पृथ्वी की उत्पत्ति' सम्बन्धी विचारों को सबसे पहला भूवैज्ञानिक विचार कहा जा सकता है।.

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मत्ती

मत्ती नया नियम बाइबिल के पहला पुस्तक है। किंतु यह मध्य के होते हुए भी इस पुस्तक मे ईसा मसीह के मुख्य मुख्य चमत्कार, काम, जन्म से लेकर स्वर्ग सिधारने तक के विवरण तथा वंश के वारेमे लिखे जाने की वजह से यह पहली पुस्तक है। इस पुस्तक मे कूल 28 अध्याय है। यह येशु के एक चेला द्वारा लिखित पुस्तक है। लेखक कर लेने वाले हाकिम थे जिसका नाम मतियोस यानी मत्ती था। मत्ती 9:9 और मत्ती 10:2-4 .

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मरियम (ईसा मसीह की माँ)

मरियम यीशु मसीह की माँ का नाम था, जो "ख़ुदावंद की माँ " या "मुक़द्दस कुँआरी मरियम" भी कहलातीं हैं। उनकी कहानी बाईबल के नया नियम में बताई गई है। वे फ़िलिस्तीन के इलाक़े गलील के शहर नासिरत में रहनेवाली एक जन्मजात यहूदी औरत थीं। इंजील ब-मुताबिक़ मत्ती, इंजील ब-मुताबिक़ लूक़ा और क़ुरान में बताया गया है कि वे कुँआरी थीं ईसाईयों का मान्यता है कि किसी इंसानी दख़्ल के बिना, मरियम पवित्र आत्मा के क़ुदरत से गर्भ रहीं, क्योंकि वे ईश्वर की चुनिंदा हस्ती थीं। इस्लाम में माना जाता है कि मरियम महज़ ईश्वर की अभिलाषा से गर्भ रहीं। उस समय, मरियम की मंगनी यूसुफ़ से हो चुकी थी। यूसुफ़ के साथ शादी करने के बाद वे बैतलहम चलीं गईं, जहां पर ईसा मसीह पैदा हुआ। ईसाई धर्म में माना जाता है कि पुराने नियम (पुराने अहदनामा) में नबियों ने कुँआरी से जन्म की भविष्यवाणी भी की है: "देखो, कुँआरी पेट रहेगी और उसको बेटा होगा" (अशाया 14:7) नये नियम में मरियम की कहानी शुरु होती जब जिब्राइल फ़रिश्ता उनके सामने ज़ाहिर होकर उन्हें ऐलान करता है कि ईश्वर ने उनको आनेवाले मसीह की माँ बनने के लिए चुना है। गिरजे के परंपराओं और चंद प्राचीन अपोक्रिफ़ा के मुताबिक़, मरियम के माँ-बाप हन्ना और योआकीम नामी दो बुज़ुर्ग लोग थे। ईसाई धर्म में मरियम के प्रति मान्यताएं विभिन्न हैं, जैसे कि मरियम की "बेदाग़ पैदाइश" और "जन्नत में चढ़ाव".

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मानव बलि

एचिलिस के कब्र पर नीओप्टोलेमस के हाथ से पॉलीजिना मर गया" (एक प्राचीन कैमिया के बाद 1900 सदी का चित्र) किसी धार्मिक अनुष्ठान के भाग (अनुष्ठान हत्या) के रूप में किसी मानव की हत्या करने को मानव बलि कहते हैं। इसके अनेक प्रकार पशुओं को धार्मिक रीतियों में काटा जाना (पशु बलि) तथा आम धार्मिक बलियों जैसे ही थे। इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों में मानव बलि की प्रथा रही है। इसके शिकार व्यक्ति को रीति-रिवाजों के अनुसार ऐसे मारा जाता था जिससे कि देवता प्रसन्न अथवा संतुष्ट हों, उदाहरण के तौर पर मृत व्यक्ति की आत्मा को देवता को संतुष्ट करने के लिए भेंट किया जाता था अथवा राजा के अनुचरों की बलि दी जाती थी ताकि वे अगले जन्म में भी अपने स्वामी की सेवा करते रह सकें.

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मार्टिन बुबेर

मार्टिन बुबेर (מרטין בובר; 8 फ़रवरी 1878 - 13 जून 1965) एक ऑस्ट्रियाई मूल के यहूदी दार्शनिक थे जिन्हें उनके संवाद के दर्शन के लिए अधिक जाना जाता है। संवाद का दर्शन धार्मिक अस्तित्ववाद का एक रूप है जो आई-दाऊ (मैं-तुम) सम्बन्ध और आई-इट (मैं-यह) सम्बन्ध के बीच भेद पर केंद्रित है। वियना में जन्मे, बुबेर श्रद्धालु यहूदी परिवार के थे, लेकिन उन्होंने दर्शन में धर्मनिरपेक्ष अध्ययन करने के लिए यहूदी प्रथाओं से नाता तोड़ लिया। 1902 में, बुबेर जिओनवादी आंदोलन की केन्द्रीय पत्रिका डी वेल्ट (Die Welt) साप्ताहिक के सम्पादक बन गए, हालांकि उन्होंने बाद में खुद को जिओनवाद के संगठनात्मक कार्यों से बाहर कर लिया। 1923 में बुबेर ने अस्तित्व पर अपना प्रसिद्ध निबंध लिखा, Ich und Du (इश उंड डू) (जिसका बाद में आई एंड दाऊ के रूप में अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया) और 1925 में उन्होंने हिब्रू बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद शुरू किया। 1930 में बुबेर फ्रैंकफर्ट विश्वविद्यालय अम माइन के मानद प्रोफेसर बन गए और 1933 में एडॉल्फ हिटलर के सत्ता में आने के तुरंत बाद ही अपने प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया.

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माईली सायरस

माईली रे सायरस (जन्म नाम डेस्टिनी होप सायरस जन्म तिथि 23 नवम्बर 1992) एक अमेरिकी गायिका, अभिनेत्री और लेखिका है। सायरस डिजनी चैनल श्रृंखला हैना मॉण्टेना में प्रमुख चरित्र के अभिनय के लिए विशेष रूप से जानी जाती है। हैना मॉण्टेना की सफलता को ध्यान में रखकर अक्टूबर 2006 में एक साउण्डट्रैक CD प्रसारित की गई, जिसमें समारोह में गाये उसके आठ गाने हैं। सायरस के एकल म्युज़िक करियर की शुरुआत 23 जून 2007 को उसके पहले एलबम, मीट माईली सायरस के रिलीज़ के साथ हुई.

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मिस्र की संस्कृति

मिस्र की संस्कृति का हजारों वर्षों की लिखित इतिहास प्राप्त होता है। प्राचीन मिस्र विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी। एक सहस्राब्दी तक मिस्र की अत्यन्त जटिल और स्थिर संस्कृति बनी रही। इसने यूरोप, मध्य एशिया तथा अफ्रीका की परवर्ती संस्कृतियों को प्रभावित किया। फैरोकाल के उपरान्त मिस्र यूनानवाद (Hellenism) के प्रभाव में आया, उसके बाद लघु काल के लिये ईसाइयत के प्रभाव में तथा अन्त में इस्लामी संस्कृति के प्रभाव में आ गया। .

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मुद्रण का इतिहास

सामान्यत: मुद्रण का अर्थ छपाई से है, जो कागज, कपड़ा, प्लास्टिक, टाट इत्यादि पर हो सकता है। डाकघरों में लिफाफों, पोस्टकार्डों व रजिस्टर्ड चिट्ठियों पर लगने वाली मुहर को भी 'मुद्रण' कहते हैं। प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान चार्ल्स डिक्नस ने मुद्रण की महत्ता को बताते हुए कहा है कि स्वतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व को बनाए रखने में मुद्रण महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रारंभिक युग में मुद्रण एक कला था, लेकिन आधुनिक युग में पूर्णतया तकनीकी आधारित हो गया है। मुद्रण कला पत्रकारिता के क्षेत्र में पुष्पित, पल्लवित, विकसित तथा तकनीकी के रूप में परिवर्तीत हुई है। वैदिक सिद्धांत के अनुसार- परमेश्वर की इच्छा से ब्रह्माण्ड की रचना और जीवों की उत्पत्ति हुई। इसके बाद 'ध्वनि' प्रकट हुआ। ध्वनि से 'अक्षर' तथा अक्षरों से च्शब्दज् बनें। शब्दों के योग को 'वाक्य' कहा गया। इसके बाद पिता से पुत्र और गुरू से शिष्य तक विचारों, भावनाओं, मतों व जानकारियों का आदान-प्रदान होने लगा। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सुनने की क्रिया को श्रुति और समझने को प्रक्रिया को स्मृति का नाम दिया। ज्ञान के प्रसार का यह तरीका असीमित तथा असंतोषजनक था, जिसके कारण मानव ने अपने पूर्वजों और गुरूजनों के श्रेष्ठ विचारों, मतों व जानकारियों को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की। इसके लिए लिपि का आविष्कार किया तथा पत्थरों व वृक्षों की छालों पर खोदकर लिखने लगा। इस तकनीकी से भी विचारों को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखना संभव नहीं था। इसके बाद लकड़ी को नुकिला छीलकर ताड़पत्रों और भोजपत्रों पर लिखने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। प्राचीन काल के अनेक ग्रंथ भोजपत्रों पर लिखे मिले हैं। सन् १०५ ई. में चीनी नागरिक टस्-त्साई लून ने कपस एवं सलमल की सहयता से कागज का आविष्कार हुआ। सन् ७१२ ई. में चीन में एक सीमाबद्ध एवं स्पष्ट ब्लाक प्रिंटिंग की शुरूआत हुई। इसके लिए लकड़ी का ब्लाक बनाया गया। चीन में ही सन् ६५० ई. में हीरक सूत्र नामक संसार की पहली मुद्रित पुस्तक प्रकाशित की गयी। सन् १०४१ ई. में चीन के पाई शेंग नामक व्यक्ति ने चीनी मिट्टी की मदद से अक्षरों को तैयार किया। इन अक्षरों को आधुनिक टाइपों का आदि रूप माना जा सकता है। चीन में ही दुनिया का पहला मुद्रण स्थापित हुआ, जिसमें लकड़ी के टाइपों का प्रयोग किया गया था। टाइपों के ऊपर स्याही जैसे पदार्थ को पोतकर कागज के ऊपर दबाकर छपाई का काम किया जाता था। इस प्रकार, मुद्रण के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। यह कला यूरोप में चीन से गई अथवा वहां स्वतंत्र रूप से विकसित हुयी, इसके संदर्भ में कोई अधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक कागज बनाने की कला चीन से अरब देशों में तथा वहां से यूरोप में पहुंची होगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक १४वीं-१५वीं सदी के दौरान यूरोप में मुद्रण-कला का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ। उस समय यूरोप में बड़े-बड़े चित्रकार होते थे। उनके चित्रों की स्वतंत्र प्रतिक्रिया को तैयार करना कठिन कार्य था। इसे शीघ्रतापूर्वक नहीं किया जा सकता था। अत: लकड़ी अथवा धातु की चादरों पर चित्रों को उकेर कर ठप्पा बनाया जाने लगा, जिस पर स्याही लगाकर पूर्वोक्त रीति से ठप्पे को दो तख्तों के बीच दबाकर उनके चित्रों की प्रतियां तैयार की जाती थी। इस तरह के अक्षरों की छपाई का काम आसान नहीं था। अक्षरों को उकेर कर उनके छप्पे तैयार करना बड़ा ही मुश्किल काम था। उसमें खर्च भी बहुत ज्यादा पड़ता था। फिर भी उसकी छपाई अच्छी नहीं होती थी। इन असुविधाओं ने जर्मनी के लरेंस जेंसजोन को छुट्टे टाइप बनाने की प्रेरणा दी। इन टाइपों का प्रयोग सर्वप्रथम सन् १४०० ई. में यूरोप में हुआ। जर्मनी के जॉन गुटेनबर्ग ने सन् १४४० ई. में ऐसे टाइपों का आविष्कार किया, जो बदल-बदलकर विभिन्न सामग्री को बहुसंख्या में मुद्रित कर सकता था। इस प्रकार के टाइपों को पुनरावत्र्तक छापे (रिपीटेबिल प्रिण्ट) के वर्ण कहते हैं। इसके फलस्वरूप बहुसंख्यक जनता तक बिना रूकावट के समाचार और मतों को पहुंचाने की सुविधा मिली। इस सुविधा को कायम रखने के लिए बराबर तत्पर रहने का उत्तरदायित्व लेखकों और पत्रकारों पर पड़ा। जॉन गुटेनबर्ग ने ही सन् १४५४-५५ ई. में दुनिया का पहला छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) लगाया तथा सन् १४५६ ई. में बाइबिल की ३०० प्रतियों को प्रकाशित कर पेरिस भेजा। इस पुस्तक की मुद्रण तिथि १४ अगस्त १४५६ निर्धारित की गई है। जॉन गुटेनबर्ग के छापाखाने से एक बार में ६०० प्रतियां तैयार की जा सकती थी। परिणामत: ५०-६० वर्षों के अंदर यूरोप में करीब दो करोड़ पुस्तकें प्रिंट हो गयी थी। इस प्रकार, मुद्रण कला जर्मनी से आरंभ होकर यूरोपीय देशों में फैल गयी। कोलने, आगजवर्ग बेसह, टोम, पेनिस, एन्टवर्ण, पेरिस आदि में मुद्रण के प्रमुख केंद्र बने। सन् १४७५ ई. में सर विलियम केकस्टन के प्रयासों के चलते ब्रिटेन का पहला प्रेस स्थापित हुआ। ब्रिटेन में राजनैतिक और धार्मिक अशांति के कारण छापाखाने की सुविधा सरकार के नियंत्रण में थी। इसे स्वतंत्र रूप से स्थापित करने के लिए सरकार से विधिवत आज्ञा लेना बड़ा ही कठिन कार्य था। पुर्तगाल में इसकी शुरूआत सन् १५४४ ई. में हुई। मुद्रण के इतिहास की पड़ताल से स्पष्ट है कि छापाखाना का विकास धार्मिक-क्रांति के दौर में हुआ। यह सुविधा मिलने के बाद धार्मिक ग्रंथ बड़े ही आसानी से जन-सामान्य तक पहुंचने लगे। इन धार्मिक ग्रंथों का विभिन्न देशों की भाषाओं में अनुवाद करके प्रकाशित होने लगे। पूर्तगाली धर्म प्रचार के लिए मुद्रण तकनीकी को सन् १५५६ ई. में गोवा लाये और धर्मग्रंथों को प्रकाशित करने लगे। सन् १५६१ ई. में गोवा में प्रकाशित बाइबिल पुस्तक की एक प्रति आज भी न्यूयार्क लाइब्रेरी में सुरक्षित है। इससे उत्साहित होकर भारतीयों ने भी अपने धर्मग्रंथों को प्रकाशित करने का साहस दिखलाया। भीम जी पारेख प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने दीव में सन् १६७० ई. में एक उद्योग के रूप में प्रेस शुरू किया। सन् १६३८ ई. में पादरी जेसे ग्लोभरले ने एक छापाखाना जहाज में लादकर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उनके सहयोगी म्याश्यु और रिटेफेन डे ने उक्त छापाखाना (प्रिंटिंग-प्रेस) को स्थापित किया। सन् १७९८ ई. में लोहे के प्रेस का आविष्कार हुआ, जिसमें एक लिवर के द्वारा अधिक संख्या में प्रतियां प्रकाशित करने की सुविधा थी। सन् १८११ ई. के आस-पास गोल घूमने वाले सिलेण्डर चलाने के लिए भाप की शक्ति का इस्तेमाल होने लगा, जिसे आजकल रोटरी प्रेस कहा जाता है। हालांकि इसका पूरी तरह से विकास सन् १८४८ ई. के आस-पास हुआ। १९वीं सदी के अंत तक बिजली संचालित प्रेस का उपयोग होने लगा, जिसके चलते न्यूयार्क टाइम्स के १२ पेजों की ९६ हजार प्रतियों का प्रकाशन एक घंटे में संभव हो सका। सन् १८९० ई. में लिनोटाइप का आविष्कार हुआ, जिसमें टाइपराइटर मशीन की तरह से अक्षरों के सेट करने की सुविधा थी। सन् १८९० ई. तक अमेरिका समेत कई देशों में रंग-बिरंगे ब्लॉक अखबार छपने लगे। सन् १९०० ई. तक बिजली संचालित रोटरी प्रेस, लिनोटाइप की सुविधा और रंग-बिरंगे चित्रों को छापने की सुविधा, फोटोग्राफी को छापने की व्यवस्था होने से सचित्र समाचार पत्र पाठको तक पहुंचने लगे। .

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मैक्स क्लिंजर

''एमिल ओर्लिक द्वारा निमित मैक्स क्लिंजर का पोर्ट्रेट (१९०२) मैक्स क्लिंजर (Max Klinger) (१८ फ़रवरी १८५७ - ५ जुलाई १९२०) चित्रकला, शिल्पकला और एचिंग (खुदाई) कला में निष्णात्‌ जर्मन कलाकार। इसका जन्म लाइपत्सिग में एक व्यापारी के घर हुआ था। सन्‌ १८७४ में कार्लस्रुन में कला के अध्ययन अभ्यास का श्रीगणेश किया। सन्‌ १८७८ में इनकी कला तथा हस्तकौशल की कटु आलोचना हुई। मूर्खतापूर्ण अनावश्यक शंकाएँ उपस्थित कर कुछ काल तक इनकी कला पर प्रतिबंध लगाया गया था। अंतत: बर्लिन की नैशनल गैलरी में इनके चित्रों को स्थान मिला। बाइबिल और पौराणिक विषयों से संबंधित इनकी त्रासात्मक कलाकृतियाँ लाइपत्सिग युनिवर्सिटी तथा म्यूज़ियम के लिये विशेष रूप से बनाई गई थी। .

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मूसा

मूसा (अंग्रेज़ी: Moses मोसिस, इब्रानी: מֹשֶׁה मोशे) यहूदी,इस्लाम और ईसाईधर्मों में एक प्रमुख नबी (ईश्वरीय सन्देशवाहक) माने जाते हैं। ख़ास तौर पर वो यहूदी धर्म के संस्थापक और इस्लाम धर्म के पैग़म्बर माने जाते हैं। कुरान और बाइबल में हज़रत मूसा की कहानी दी गयी है, जिसके मुताबिक मिस्र के फ़राओ के ज़माने में जन्मे मूसा यहूदी माता-पिता के की औलाद थे पर मौत के डर से उनको उनकी माँ ने नील नदी में बहा दिया। उनको फिर फ़राओ की पत्नी ने पाला और मूसा एक मिस्री राजकुमार बने। बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वो यहूदी हैं और उनका यहूदी राष्ट्र (जिसको फरओ ने ग़ुलाम बना लिया था) अत्याचार सह रहा है। मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फ़राओ को हराकर यहूदियों को आज़ाद कराया और मिस्र से एक नयी भूमि इस्राइल पहुँचाया। इसके बाद मूसा ने इस्राइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है। .

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मूआब

मूआब (अंग्रेज़ी: Moab, अरबी: مؤاب, इब्रानी: מוֹאָב) या मोआब पश्चिमी एशिया के जोर्डन देश में मृत सागर के पूर्वी तट के साथ स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र का ऐतिहासिक नाम है। यहाँ १३वीं से ४थी शताब्दी ईसापूर्व काल में एक मूआब राजशाही (Kingdom of Moab) नामक राज्य हुआ करता था, जिसका उल्लेख ईसाई धर्म के बाइबल ग्रंथ के साथ-साथ कुछ अन्य स्थानीय प्राचीन स्रोतों में भी मिलता थे। मूआबी अक्सर अपने से पश्चिम में स्थित इज़्राइली लोगों के साथ झड़पों में लगे रहते थे। .

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मेथोडिज़्म

जॉन वेस्ली मेथोडिज्म प्रोटेस्टैण्ट ईसाइयत से सम्बन्धित धार्मिक आन्दोलन है। यह अनेकानेक नामों वाली संस्थाओं के माध्यम से चलाया जा रहा है। इनका दावा है कि इसके लगभग ७ करोड़ अनुयाई हैं। मेथाडिस्ट विश्व भर में फैला हुआ है। ब्रिटेन के अतिरिक्त वह प्रधानतया कनाडा, दक्षिण अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया में फैला हुआ है। एक ऐंग्लिकन पादरी जान वेस्ली (सन् १७०३-१७३१ ई०) के नेतृत्व में मेथोडिज्म का प्रवर्त्तन हुआ था। उन्होंने सन् १७२९ ई० में अपने भाई चार्ल्स तथा कुछ अन्य साथियों के साथ ऑक्सफर्ड के विद्यार्थियों के लिये 'होली क्लब' नामक संस्था बनाई। इस क्लब के सदस्य एकत्र होकर बाइबिल पढ़ते, उपवास करते, जनता को उपदेश देते और बीमारों तथा कैदियों से भेंट करने जाते थे। लोगो ने उपहास में 'होली क्लब' के सदस्यों का नाम मेथाडिस्ट रखा था। किंतु वेस्ली ने स्वंय उसी नाम को अपनाया। प्रांरभ मे वे एंग्लिकन गिरजाघरों में प्रवचन किया करते थें। किंतु उनका सुधार आंदोलन बढ़ता गया और मेथोडिस्ट सोसायटी के रूप में एंग्लिकन चर्च से अलग हो गया। १८वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मेथाडिस्ट को अमरीका में बड़ी सफलता मिली। आज कल वहाँ का चर्च महत्वपूर्ण बन गया है। .

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मॉनमाउथ रेजिमेंटल संग्रहालय

मॉनमाउथ रेजिमेंटल संग्रहालय (औपचारिक नाम: कासल और रेजिमेंटल संग्रहालय मॉनमाउथ) (Monmouth Regimental Museum) (Amgueddfa Filwrol Trefynwy) कासल हिल, मॉनमाउथ, मॉनमाउथशायर, वेल्स में स्थित एक सैन्य संग्रहालय है। संग्रहालय ग्रेट कासल हाउस की एक शाखा है, जो ग्रेड प्रथम इमारत होने के साथ-साथ मॉनमाउथ हेरिटेज ट्रेल के चौबीस स्थलों में से भी एक है। संग्रहालय में प्रदर्शित वस्तुएँ ब्रिटिश प्रादेशिक सेना में सबसे अधिक एवं सबसे वरिष्ठ रेजिमेंट रॉयल मॉनमाउथशायर रॉयल इंजीनियर्स (मिलिशिया) पर केंद्रित हैं। ग्रेट कासल हाउस रॉयल मॉनमाउथशायर रॉयल इंजीनियर्स का कार्यालय है और संग्रहालय रेजिमेंट के अभिलेखागार का कार्य करता है। संग्रहालय 1989 में राजकुमार रिचर्ड, ग्लौस्टर के ड्यूक, द्वारा स्थापित किया गया था। मॉनमाउथ शहर को अपने योगदान के लिए संग्रहालय प्रिंस ऑफ वेल्स पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। संग्रहालय में विभन्न प्रकार की कलाकृतियाँ उपस्थित हैं जिनका ध्यान रॉयल मॉनमाउथशायर रॉयल इंजीनियर्स पर मुख्य तौर से है। यहाँ मॉनमाउथ कासल के खंडहरों के अवशेषों से लेकर उन्नीसवीं सदी व द्वितीय विश्व युद्ध तक की कई वस्तुएँ हैं। ऐतिहासिक वस्तुओं को प्रदर्शित करने के साथ-साथ संग्रहालय मिलिशिया के रिकॉर्ड के लिए एक भण्डार के रूप में भी कार्य करता है। इसमें मिले पुरालेखों से यह स्पष्ट होता है कि कैसे रॉयल मॉनमाउथशायर रॉयल इंजीनियर्स के नाम में अनूठे तौर पर दो "रॉयल" हैं। संग्रहालय अपने कुछ रिकॉर्ड इंटरनेट पर खोज डेटाबेस के रूप में भी उपलब्ध कराता है। .

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मोलोक

यहूदियों के आसपास बसनेवाली कानानाइट, फैनिसियन और अमोनाइट जातियों का एक देवता। वह अधोलोक का राजा (इब्रानी में मेलेक, उर्दू में मालिक) माना जाता था। महाविपत्ति के समय लोग उसकी वेदी पर बच्चों को जलाकर बलिदान चढ़ाते थे। मूसा की संहिता में यहूदियों के लिये इस प्रथा का सुस्पष्ट निषेघ है। इसके बावजूद सुलेमान ने अपनी गैर यहूदी पत्नियों का मन रखने के लिये जैतून पर्वत पर मोलोक के आदर में वेदियाँ बनवाई थी (राजा, 11,7): राजा आहाज ने मोलोक को अपने पुत्र का बलिदान दिया था (राजा, 16)। परवतीं शताब्दियों में भी हित्रोम घाटी में तोफेन नामक स्थान पर मोलोक की वेदी का उल्लेख है। बाइबिल के अनेक स्थलों पर नबियों ने मोलोक की पूजा की घोर निंदा की है। .

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यशयाह

यशयाह (लगभग 760 - 701 ई0 पूर्व) बाइबिल के पूर्वार्ध के मुख्य नबियों में सबसे महान्‌। वह राजधानी येरूसलेम के एक प्रभावशाली परिवार के थे। उन्होंने येरूसलेम में ही अपना सारा जीवन बिताया। एक परवर्ती अप्रामाणिक परंपरा के अनुसार आरे से उनका शरीर आरपार काटकर उनको मार डाला गया था। यशयाह येरूसलेम के मंदिर की पवित्रता तथा ईश्वर की पूजा के औचित्य की चिंता किया करते थे। ईश्वर के आदेश से उन्होंने यहूदियों के उत्तरी राज्य इसराइल तथा दक्षिणी राज्य यूदा, दोनों के विनाश की घोषणा की। दोनों राज्य बाद में क्रमश: नष्ट किए गए - 722 ई0 पू0 में असीरियों द्वारा और 586 ई0पू0 में बाबीलोनियो द्वारा। यशयाह ने इस विनाश को ईश्वर पर यहूदिययों के अविश्वास का दंड माना है। यहूदी लोग विदेशी राष्ट्रों के साथ राजनीतिक संधियों पर भरोसा रखते थे, किंतु यशयाह उनसे कहा करते थे कि ईश्वर पर ही भरोसा रखना चाहिए। बाइबिल के पूर्वार्ध में जो यशयाह नामक ग्रंथ समिलित है इसके प्रथम 39 अध्याय प्रामाणिक हैं। शेष अध्याय यशयाह की शिष्य परंपरा के एक नबी द्वारा लिखे गए हैं जो 550 ई0पू0 के लगभग बाबुल में प्रवासी यहूदियों के बीच रहते थे। इस अंश में दु:खश् भोगने वाले ईश्वरदास का जो चित्रण किया गया है। वह ईसा का प्रतीक माना जाता है। .

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यहूदी

यहूदी जाति 'यहूदी' का मौलिक अर्थ है- येरूशलेम के आसपास के 'यूदा' नामक प्रदेशें का निवासी। यह प्रदेश याकूब के पुत्र यूदा के वंश को मिला था। बाइबिल में 'यहूदी' के निम्नलिखित अर्थ मिलते हैं- याकूब का पुत्र यहूदा, उनका वंश, उनकर प्रदेश, कई अन्य व्यक्तियों के नाम। यूदा प्रदेश (Kingdom of Juda) के निवासी प्राचीन इजरायल के मुख्य ऐतिहासिक प्रतिनिधि बन गए थे, इस कारण समस्त इजरायली जाति के लिये यहूदी शब्द का प्रयोग होने लगा। इस जाति का मूल पुरूष अब्राहम थे, अत: वे 'इब्रानी' भी कहलाते हैं। याकूब का दूसरा नाम था इजरायल, इस कारण 'इब्रानी' और 'यहूदी' के अतिरक्ति उन्हें 'इजरायली' भी कहा जाता है। यहूदी धर्म को मानने वालों को यहूदी (en:Jew) कहा जाता है। यहूदियों का निवास स्थान पारंपरिक रूप से पश्चिम एशिया में आज के इसरायल को माना जाता है जिसका जन्म १९४७ के बाद हुआ। मध्यकाल में ये यूरोप के कई क्षेत्रों में रहने लगे जहाँ से उन्हें उन्नीसवीं सदी में निर्वासन झेलना पड़ा और धीरे-धीरे विस्थापित होकर वे आज मुख्यतः इसरायल तथा अमेरिका में रहते हैं। इसरायल को छोड़कर सभी देशों में वे एक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में रहते हैं। इन्का मुख्य काम व्यापार है। यहूदी धर्म को इसाई और इस्लाम धर्म का पूर्ववर्ती कहा जा सकता है। इन तीनों धर्मों को संयुक्त रूप से 'इब्राहिमी धर्म' भी कहते हैं। अल्लाह ने यहूदियों के बारे में पवित्र कुरान में कहा "ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये (भी तो सोचो) कि हमने तुमको सारे जहाँन के लोगों से बढ़ा दिया" (Sura 2-47) "और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखू़बी जानते हो जो शम्बे (सनीचर) के दिन अपनी हद से गुज़र गए (कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले) तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ (और वह बन्दर हो गए)" (Sura2-65) "फिर तुममें से थोड़े आदमियों के सिवा (सब के सब) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले.और (वह वक़्त याद करो) जब हमने तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) से अहद लिया था कि आपस में खू़रेजि़याँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना तो तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो .(कि हाँ ऐसा हुआ था) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो (और लुत्फ़ तो ये हैं कि) अगर वही लोग क़ैदी बनकर तम्हारे पास (मदद माँगने) आए तो उनको तावान देकर छुड़ा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या तुम (किताबे खु़दा की) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो बस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि जि़न्दगी भर की रूसवाई हो और (आखि़रकार) क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खु़दा उससे ग़ाफि़ल नहीं है" (Sura 2-83,84,85) "और तुम्हारे पास मूसा तो वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ ही चुके थे फिर भी तुमने उनके बाद बछड़े को खु़दा बना ही लिया और उससे तुम अपने ही ऊपर ज़ुल्म करने वाले थे"(Sura2-92) "बनी इसराईल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंनं तुम को दी हैं और ये कि मैंने तुमको सारे जहाँन पर फज़ीलत दी " (Sura 2-122) "बेशक हम ने तौरेत नाजि़ल की जिसमें (लोगों की) हिदायत और नूर (ईमान) है उसी के मुताबिक़ ख़ुदा के फ़रमाबरदार बन्दे (अम्बियाए बनी इसराईल) यहूदियों को हुक्म देते रहे और अल्लाह वाले और उलेमाए (यहूद) भी किताबे ख़ुदा से (हुक्म देते थे) जिसके वह मुहाफि़ज़ बनाए गए थे और वह उसके गवाह भी थे बस (ऐ मुसलमानों) तुम लोगों से (ज़रा भी) न डरो (बल्कि) मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले में (दुनिया की दौलत जो दर हक़ीक़त बहुत थोड़ी क़ीमत है) न लो और (समझ लो कि) जो ख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुयी (किताब) के मुताबिक़ हुक्म न दे तो ऐसे ही लोग काफि़र हैं" (Sura 5-44) "(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुम्हें ख़ुदा के नज़दीक सज़ा में इससे कहीं बदतर ऐब बता दॅू (अच्छा लो सुनो) जिसपर ख़ुदा ने लानत की हो और उस पर ग़ज़ब ढाया हो और उनमें से किसी को (मसख़ करके) बन्दर और (किसी को) सूअर बना दिया हो और (ख़ुदा को छोड़कर) शैतान की परस्तिश की हो बस ये लोग दरजे में कहीं बदतर और राहे रास्त से भटक के सबसे ज़्यादा दूर जा पहँचे हैं " (Sura 5-60) "यहूद तो कहते हैं कि अज़ीज़ ख़़ुदा के बेटे हैं और नुसैरा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) ख़़ुदा के बेटे हैं ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफि़रों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं ख़़ुद उनको क़त्ल (तहस नहस) करके (देखो तो) कहाँ से कहाँ भटके जा रहे हैं" (Sura 9-30) "ऐ बनी इसराइल हमने तुमको तुम्हारे दुश्मन (के पंजे) से छुड़ाया और तुम से (कोहेतूर) के दाहिने तरफ का वायदा किया और हम ही ने तुम पर मन व सलवा नाजि़ल किया.और (फ़रमाया) कि हमने जो पाक व पाक़ीज़ा रोज़ी तुम्हें दे रखी है उसमें से खाओ (पियो) और उसमें (किसी कि़स्म की) शरारत न करो वरना तुम पर मेरा अज़ाब नाजि़ल हो जाएगा और (याद रखो कि) जिस पर मेरा ग़ज़ब नाजि़ल हुआ तो वह यक़ीनन गुमराह (हलाक) हुआ " (Sura 20-80,81) "और हमने बनी इसराईल को किताब (तौरेत) और हुकूमत और नबूवत अता की और उन्हें उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं और उनको सारे जहाँन पर फ़ज़ीलत दी.और उनको दीन की खुली हुई दलीलें इनायत की तो उन लोगों ने इल्म आ चुकने के बाद बस आपस की जि़द में एक दूसरे से एख़्तेलाफ़ किया कि ये लोग जिन बातों से एख़्तेलाफ़ कर रहें हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उनमें फैसला कर देगा" (Sura 45-16,17) .

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यहूदी धर्म

यहूदी धर्म इस्राइल और हिब्रू भाषियों का राजधर्म है और इसका पवित्र ग्रंथ तनख़ बाईबल का प्राचीन भाग माना जाता है। धार्मिक पैग़म्बरी मान्यता मानने वाले धर्म इस्लाम और ईसाई धर्म का आधार इसी परम्परा और विचारधारा को माना जाता है। इस धर्म में एकेश्वरवाद और ईश्वर के दूत यानि पैग़म्बर की मान्यता प्रधान है। अपने लिखित इतिहास की वजह से ये कम से कम ३००० साल पुराना माना जाता है। यहूदी धर्म को माननेवाले विश्व में करीब १.४३ करोड़ है, जो विश्व की जनसंख्या में ०.2% है। .

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यहूदी पर्व

प्राचीन काल से चले आ रहे यहूदी त्योहार इजराइल में बड़े पैमाने पर और विभिन्न तरह से मनाए जाते हैं। ये त्योहार वहां के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक रीति-रिवाजों में परिलक्षित होते हैं और राष्ट्रीय जीवन के विविध पहलुओं पर अपनी गहरी छाप छोड़ते हैं। यहूदी त्योहार वे मील के पत्थर हैं, जिनसे इजराइली लोग अपने गुजरे हुए वर्षों को गिनते हैं। ये त्योहार बहुत हद तक रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होते हैं: गली-मुहल्लों से लेकर स्कूलों, सिनेगॉग (प्रार्थना गृह) और देश भर के घरों तक में। .

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यहोवा

यहोवा (en:Yahweh) यहूदी धर्म में और इब्रानी भाषा में परमेश्वर का नाम है। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम परमेश्वर ने हज़रत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रन्थ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है। .

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यहोवा के साक्षी

यहोवा के साक्षी (Jehovah's Witnesses) ईसाई धर्म का एक संप्रदाय है जिसकी धार्मिक मान्यताएँ मुख्यधारा ईसाईयत से भिन्न हैं। संस्था के अनुसार विश्व भर में उसके 8.2 मिलियन (82.2 लाख) अनुयायी इंजीलवाद (धर्म प्रचार) में लगे हुए हैं, सम्मेलन उपस्थिति 12 मिलियन (1.2 करोड़) तथा वार्षिक स्मृति उपस्थिति 19.86 मिलियन (1.98 करोड़) से अधिक है। .

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यूनानी भाषा

यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.

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यूनानी वर्णमाला

यूनानी वर्णमाला (Greek alphabet) चौबीस अक्षरों की वर्ण व्यवस्था है जिनके प्रयोग से यूनानी भाषा को आठवीं सदी ईसा-पूर्व से लिखा जा रहा है। प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन लिए पृथक चिन्ह वाली यह पहली एवं प्राचीनतम वर्णमाला है। यह वर्णमाला फ़ोनीशियाई वर्णमाला से उत्पन्न हुई थी और यूरोप की कई वर्ण-व्यवस्थाएँ इसी से जन्मी हैं। अंग्रेज़ी लिखने के लिये प्रयुक्त रोमन लिपि तथा रूसी भाषा लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली सीरिलिक वर्णमाला दोनों यूनानी लिपि से जन्मी हैं। दूसरी शताब्दी ईसापूर्व के बाद गणितज्ञों ने यूनानी अक्षरों को अंक दर्शाने के लिए भी प्रयोग करना शुरू कर दिया। यूनानी वर्णों का प्रयोग विज्ञान के कई क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे भौतिकी में तत्वों के नाम, सितारों के नाम, बिरादरी एवं साथी सम्प्रदाय के नाम, ऊष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के नाम के लिए। .

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यूरोपीय धर्मसुधार

16वीं शताब्दी के प्रारंभ में समस्त पश्चिमी यूरोप धार्मिक दृष्टि से एक था - सभी ईसाई थे; सभी रोमन काथलिक चर्च के सदस्य थे; उसकी परंपरगत शिक्षा मानते थे और धार्मिक मामलों में उसके अध्यक्ष अर्थात् रोम के पोप का शासन स्वीकार करते थे। यूरोपीय धर्मसुधार अथवा रिफॉरमेशन 16वीं शताब्दी के उस महान आंदोलन को कहते हैं जिसके फलस्वरूप पाश्चात्य ईसाइयों की यह एकता छिन्न-भिन्न हुई और प्रोटेस्टैंट धर्म का उदय हुआ। चर्च के इतिहस में समय-समय पर सुधारवादी आंदोलन होते रहे किंतु वे चर्च के धार्मिक सिद्धातों अथवा उसके शासकों को चुनौती न देकर उनके निर्देश के अनुसार ही नैतिक बुराइयों का उन्मूलन तथा धार्मिक शिक्षा का प्रचार अपना उद्देश्य मानते थे। 16वीं शताब्दी में जो सुधार का आंदोलन प्रवर्तित हुआ वह शीघ्र ही चर्च की परंपरागत शिक्षा और उसके शासकों के अधिकार, दोनों का विरोध करने लगा। धर्मसुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप यूरोप में कैथोलिक सम्प्रदाय के साथ-साथ लूथर सम्प्रदाय, कैल्विन सम्प्रदाय, एंग्लिकन सम्प्रदाय और प्रेसबिटेरियन संप्रदाय प्रचलित हो गये। .

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यीशु

एक मोजेक यीशु या यीशु मसीहईसा, यीशु और मसीह नाम हेतु पूरी चर्चा इस लेख के वार्ता पृष्ठ पर है। प्रचलित मान्यता के विरुद्ध, ईसा एक इस्लामी शब्दावली है, व "यीशु" सही ईसाई शब्दावली है। तथा मसीह एक उपादि है। विस्तृत चर्चा वार्ता पृष्ठ पर देखें। (इब्रानी:येशुआ; अन्य नाम:ईसा मसीह, जीसस क्राइस्ट), जिन्हें नासरत का यीशु भी कहा जाता है, ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं। ईसाई लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक परमेश्वर का तृतीय सदस्य मानते हैं। ईसा की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम (ख़ास तौर पर चार शुभसन्देशों: मत्ती, लूका, युहन्ना, मर्कुस पौलुस का पत्रिया, पत्रस का चिट्ठियां, याकूब का चिट्ठियां, दुनिया के अंत में होने वाले चीजों का विवरण देने वाली प्रकाशित वाक्य) में दिये गये हैं। यीशु मसीह को इस्लाम में ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के भी महानतम पैग़म्बरों में से एक माना जाता है। .

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राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

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रुसी भाषा का साहित्य

सेंट पिट्सबर्ग स्थित '''रूसी साहित्य संस्थान''' रूसी साहित्य से आशय रूस में रचित साहित्य के अलावा रूसी भाषा में रचित उन अनेकों देशों के साहित्य से है जो कभी रूसी साम्राज्य या सोवियत संघ के भाग थे। रूसी साहित्य की रचना मध्यकाल में आरम्भ हुई थी जब पुरानी रूसी में महाकाव्य तथा इतिहास की रचना हुई थी। १८३० के दशक के आरम्भ में रूसी काव्य, गद्य और नाटक का स्वर्णयुग आ चुका था। पुरानी स्लाव भाषा सभी स्लाविक भाषाओं की मूलभाषा है। पुरानी स्लाव भाषा 3 वर्गों में बँटी हुई थी–.

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लाल सागर

लाल सागर लाल सागर अफ्रीका एवं एशिया के बीच हिंद महासागर का एक नमकीन पानी की एक खाड़ी हैं। दक्षिण में अदन की खाड़ी से लाल सागर हिंद महासागर से मिलता है। इसका पानी लाल नहीं है, हाँलांकि, समुद्री सतह पर प्रवाल की मौसमी उपस्थिति के कारण यह कभी-कभी लाल दिखता है। लगभग 2250 किलोमीटर लंबाई के इस समुद्री विस्तार की औसत गहराई 490 मीटर है तथा सबसे चौड़े स्थान पर इसके तटों के बीच 355 किलोमीटर की दूरी है। मिस्र और अरब-इस्राइल को पृथक करने वाले इस सागर को बाईबल तथा हिब्रू ग्रंथों में वर्णित सागर का यथार्थ माना जाता है। .

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लैवेंडर

लैवेंडर (लैवेन्डुला) पुदिना परिवार लैमिआसे के 39 फूल देने वाले पौधों में से एक प्रजाति है। एक पुरानी विश्व प्रजाति मकारोनेसिया (केप वर्डे और कैनरी द्वीप और मैदेरा) अफ्रीका, भूमध्यसागरीय, दक्षिणी पश्चिमी एशिया, अरब, पश्चिमी ईरान और दक्षिण पूर्व भारत के पार से वितरित हुई.

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लूक़ा

लूक़ा (Luke, לוקאס‎ (Lūqās)) चार इंजीलवादियों में से एक था। लूक़ा ने तीसरी गोस्पल लिखी थी और ऍक्ट्स ओफ़ द अपॉसल्स का एक भाग भी। वे बाइबिल के बहुत महत्वपूर्ण चरित्र हैं। श्रेणी:ईसाई धर्म श्रेणी:बाइबिल.

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लेव तोलस्तोय

लेव तोलस्तोय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। .

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लोलार्ड

लोलार्ड (Lollard, Lollardi या Loller) चौदहवीं शताब्दी में उत्पन्न इंग्लैंड के सामाजिक तथा धार्मिक आंदोलन के अनुयायियों का अपमानजनक (मुँहबोला)नाम है। ये लोग प्रायः अशिक्षित थे या केवल अंग्रेजी भाषा में शिक्षित थे। वे जान विक्लिफ की शिक्षा से प्रेरणा लेकर चर्च की भू-संपत्ति, पुरोहितों के ब्रह्मचर्य, पूजापद्धति के आडंबर, पापस्वीकरण (कनफेशन) की प्रथा आदि के विरोध में प्रचार करने लगे। उनकी शिक्षा थी कि प्रत्येक युद्ध, बाइबिल की शिक्षा के विरुद्ध, अन्यायपूर्ण है और राजा की महिमा बढ़ाने के उद्देश्य से हत्या तथा गरीबों के शोषण का साधनमात्र है। विक्लिफ (सन् १३२०-१३८४ ई.) की मृत्यु के बाद यह आंदोलन विशेष रूप से सफल रहा और चर्च के संगठन को चुनौती देने लगा। सन् १४०१ ई. से राजा मृत्युदंड, कैद आदि के द्वारा उसे मिटाने का प्रयास करने लगा। इसके फलस्वरूप लोलार्डों का प्रकट आंदोलन तो समाप्तप्राय हो गया किंतु वह लुके छिपे जारी रहा और १६वीं शताब्दी में प्रोटेस्टैंट विचारों के प्रचार में सहायक सिद्ध हुआ। श्रेणी:इंग्लैण्ड में धर्मसुधार.

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शबा की रानी

चित्रित: शबा की रानी शबा की महारानी (इब्रानी: ‏מלכת שְׁבָא‏‎‎‎, मलकत शवा, फ़ारसी: ملكة سبأ‎, मलिका-ए-शबा, इथियोपियाई: ንግሥተ ሳባ, निगिस्ता सबा) का उल्लेख क़ुरआन, बाइबिल तथा इथियोपियाई इतिहास में मिला जा सकता है। आधुनिक पुरातत्वविदों के अनुसार उनके राज्य 'शबा' इथियोपिया या यमन में स्थित थे। वे इथियोपियाई में माकेदा व इस्लामी समुदाय में बिलक़िस के नामों से जानी जाती हैं। श्रेणी:इस्लाम श्रेणी:सुलेमान.

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श्रद्धाराम शर्मा

पं.

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श्रीलंका का इतिहास

इतिहासकारों में इस बात की आम धारणा थी कि श्रीलंका के आदिम निवासी और दक्षिण भारत के आदिम मानव एक ही थे। पर अभी ताजा खुदाई से पता चला है कि श्रीलंका के शुरुआती मानव का सम्बंध उत्तर भारत के लोगों से था। भाषिक विश्लेषणों से पता चलता है कि सिंहली भाषा, गुजराती और सिंधी से जुड़ी है। प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहला वंश का शासन रहा है। समय समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों का भी आक्रमण भी इसपर होता रहा है। तीसरी सदी इसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र के यहां आने पर बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। इब्नबतूता ने चौदहवीं सदी में द्वीप का भ्रमण किया। .

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शैतान

शैतान शैतान (अंग्रेज़ी:Satan सेटन या Devil डेविल), इब्रानी:שָׂטָן शातान, अरबी:شيطان शैतान। शाब्दिक अर्थ: दुश्मन, विरोधी या अभियोगी) इब्राहिमी सम्प्रदायों में सबसे दुष्ट अस्तित्वी का नाम है, जो दुनिया की सारी बुराई का प्रतीक है। इन सम्प्रदायों में ईश्वर को सारी अच्छाई प्रदान की जाती है और बुराई शैतान को। हिन्दू धर्म में शैतान जैसी चीज़ का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि दुनिया में पाप और दुख मनुष्य स्वयं अपने कर्मो और अपने अज्ञान द्वारा उत्पन्न करता है। ईसाई, इस्लाम और यहूदी मतों के अनुसार शैतान पहले ईश्वर का एक फ़रिश्ता था, जिसने ईश्वर से विद्रोह किया और इसके बदले ईश्वर ने उसे स्वर्ग से निकाल दिया। शैतान पृथ्वी पर मानवों को पाप के लिये उकसाता है। कई उसे नरक का राजा भी मानते हैं। शैतान शब्द अन्य दुष्ट भूत-प्रेतों और दुष्ट देवों के लिये भी प्रयुक्त होता है। शैतानी धर्म में शैतान की पूजा की जाती है। .

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शेरलॉक होम्स

शेरलॉक होम्स उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध का एक काल्पनिक चरित्र है, जो पहली बार 1887 में प्रकाशन में उभरा। वह ब्रिटिश लेखक और चिकित्सक सर आर्थर कॉनन डॉयल की उपज है। लंदन का एक प्रतिभावान 'परामर्शदाता जासूस ", होम्स अपनी बौद्धिक कुशलता के लिए मशहूर है और मुश्किल मामलों को सुलझाने के लिए अपने चतुर अवलोकन, अनुमिति तर्क और निष्कर्ष के कुशल उपयोग के लिए प्रसिद्ध है। कोनन डॉयल ने चार उपन्यास और छप्पन लघु कथाएं लिखी हैं जिसमें होम्स को चित्रित किया गया है। पहली दो कथाएं (लघु उपन्यास) क्रमशः 1887 में बीटन्स क्रिसमस ऐनुअल में और 1890 में लिपिनकॉट्स मंथली मैग्जीन में आईं.

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सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; 5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (५ सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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सिरका

विभिन्न आकार वाली सिरके की बोतलें सिरका या चुक्र (Vinagar) भोजन का भाग है जो पाश्चात्य, यूरोपीय एवं एशियायी देशों के भोजन में प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होता आया है। किसी भी शर्करायुक्त विलयन के मदिराकरण के अनंतर ऐसीटिक (अम्लीयامیر) किण्वन (acetic fermentation) से सिरका या चुक्र (Vinegar, विनिगर) प्राप्त होता है। इसका मूल भाग ऐसीटिक अम्ल का तनु विलयन है पर साथ ही यह जिन पदार्थों से बनाया जाता है उनके लवण तथा अन्य तत्व भी उसमें रहते हैं। प्रायः भोजन के लिये प्रयुक्त सिरके में ४% से ८% तक एसेटिक अम्ल होता है। विशेष प्रकार का सिरका उसके नाम से जाना जाता है, जैसे मदिरा सिरका (Wine Vinegar), मॉल्ट (यव्य या यवरस) सिरका (Malt Vinegar), अंगूर का सिरका, सेब का सिरका (Cider Vinegar), जामुन का सिरका और कृत्रिम सिरका इत्यादि। .

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स्वप्न व्याख्या

टॉम पेन सोये हुए एक बुरा स्वप्न देख रहे हैं स्वप्न व्याख्या सपनों को अर्थ देने की प्रक्रिया है। मिस्र और ग्रीस जैसे कई प्राचीन समाजों में, स्वप्न देखने को एक अलौकिक संचार या ईश्वरीय हस्तक्षेप माना जाता था जिसे वे ही सुलझा सकते थे जिनके पास निश्चित शक्तियां होती थीं। आधुनिक समय में, मनोविज्ञान की विभिन्न विचारधाराओं ने सपनों के अर्थ के बारे में सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं। .

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सैयद अहमद ख़ान

सर सैयद अहमद ख़ान (उर्दू:, 17 अक्टूबर 1817 - 27 मार्च 1898) हिन्दुस्तानी शिक्षक और नेता थे जिन्होंने भारत के मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की। उन्होने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएण्टल कालेज की स्थापना की जो बाद में विकसित होकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। उनके प्रयासों से अलीगढ़ क्रांति की शुरुआत हुई, जिसमें शामिल मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारतीय मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग करने का काम किया और पाकिस्तान की नींव डाली। सय्यद अहमद खान ईस्ट इण्डिया कम्पनी में काम करते हुए काफ़ी प्रसिद्ध हुए। सय्यद अहमद १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय ब्रिटिश साम्राज्य के वफादार बने रहे और उन्होने बहुत से यूरोपियों की जान बचायी। बाद में उस संग्राम के विषय में उन्होने एक किताब लिखी: असबाब-ए-बग़ावत-ए-हिन्द, जिसमें उन्होने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना की। ये अपने समय के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम नेता थे। उनका विचार था कि भारत के मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार के प्रति वफ़ादार नहीं रहना चाहिये। उन्होने उर्दू को भारतीय मुसलमानों की सामूहिक भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। .

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सेम्युल एफ.बी. मोर्स

सेम्युल फिनले ब्रीज मोर्स (27 अप्रैल 1791 - 2 अप्रैल 1872) एक अमेरिकी थे जिन्होंने एकल-तार टेलीग्राफ प्रणाली और मोर्स कोड का निर्माण किया। और उन्हें (कम विख्यात रूप से) ऐतिहासिक दृश्यों के एक चित्रकार के रूप में भी जाना जाता है। .

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सोलोमन द्वीप

सोलोमन द्वीप है एक संप्रभु देश मिलकर के छह प्रमुख द्वीपों और 900 से अधिक छोटे द्वीपों में ओशिनिया के लिए झूठ बोल के पूर्व पापुआ न्यू गिनी और नॉर्थवेस्ट के वानुअतु और कवर एक भूमि क्षेत्र के साथ 28,400 वर्ग किलोमीटर (11,000 वर्ग मील)है। देश की राजधानी होनियारा, द्वीप पर स्थित है के गुआडलकैनाल.

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सीनाई पर्वत

सीनाई प्रायद्वीप, सीनाई पर्वत के स्थान को प्रदर्शित कर रहा है सीनाई पर्वत (अंग्रेज़ी: Mount Sinai, माउण्ट सायनाय; इब्रानी: הר סיני, हार सीनाई), जिसे अरबी में तूर सीना या जबल मूसा (अर्थ: मूसा का पर्वत) कहते हैं, मिस्र के सीनाई प्रायद्वीप में संत कैथरीन के पास स्थित एक पर्वत का नाम है। बदूईन लोग इसे होरेब पर्वत के नाम से भी बुलाते हैं। सीनाई पर्वत का कुरान में कई बार उल्लेख किया गया है;.

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हेनरी ड्यूनेन्ट

हेनरी ड्यूनेन्ट (जन्म; जीन हेनरी ड्यूनेन्ट, ०८ मई १८२८ - ३० अक्टूबर १९१०), जिसे हेनरी ड्यूनेन्ट के नाम से भी जाना जाता है, एक स्विस व्यापारी और सामाजिक कार्यकर्ता, रेड क्रॉस के संस्थापक थे और नोबल शांति पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता थे। १८६४ के जेनेवा कन्वेंशन के विचारों पर आधारित था। १९१० में उन्होंने फ्रेडरिक पासी के साथ मिलकर पहले नोबल शांति पुरस्कार प्राप्त किया, जिससे हेनरी ड्यूनेन्ट को पहली स्विस नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १८५९ में एक व्यापार यात्रा के दौरान, ड्यूनेन्ट आधुनिक इटली में सॉलफेरिन की लड़ाई के बाद गवाह था। उन्होंने अपनी यादें और अनुभवों को एक मेमोरी ऑफ़ सॉलफिरोनो में दर्ज किया जो १८६३ में रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (आईसीआरसी) के निर्माण से प्रेरित था। ड्यूनेन्ट का जन्म जेनेवा, स्विटजरलैंड में हुआ था, जो बिजनेस जीन-जैक्स ड्यूनेन्ट और एंटोनेट ड्यूनेंट-कोलाडोन के पहले बेटे थे। उनके परिवार को निर्विवाद रूप से कैल्विनवादी था और जेनेवा समाज में इसका महत्वपूर्ण प्रभाव था। उनके माता-पिता ने सामाजिक कार्य के मूल्य पर जोर दिया और उनके पिता अनाथ और पैरोल में सक्रिय रहे, जबकि उनकी मां बीमार और गरीबों के साथ काम करती थी। उनके पिता एक जेल और एक अनाथालय में काम करते थे। ड्यूनेंट धार्मिक जागरण की अवधि के दौरान बड़े हुए, जिसे रीवेइल के रूप में जाना|धार्मिक जाता है, और १८ साल की उम्र में वह जेनेवा सोसाइटी फॉर अल्म्स में शामिल हो गए। अगले वर्ष, दोस्तों के साथ, उन्होंने तथाकथित "गुरुवार एसोसिएशन", युवा पुरुषों के ढीली बैंड की स्थापना की जो बाइबल का अध्ययन करने और गरीबों की मदद करने के लिए मुलाकात की, और उन्होंने अपना बहुत सा समय सामाजिक कार्य में लगाया था। ३० नवंबर १८५२ को, उन्होंने वाईएमसीए के जिनेवा अध्याय की स्थापना की और तीन साल बाद उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना के लिए समर्पित पेरिस की बैठक में भाग लिया। १८५९ में, २१ साल की उम्र में, गरीब ग्रेड के कारण ड्यूनेन्ट को कोलिग केल्विन छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, और उन्होंने धन-बदलने वाले फर्म लुलिन एट साउटर के साथ एक प्रशिक्षु शुरू किया। सफल निष्कर्ष के बाद, वह बैंक के एक कर्मचारी के रूप में बने रहे। .

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हीरीरो भाषा

हीरीरो (Otjiherero) बाण्टू परिवार की एक भाषा है। यह नामीबिया और बोत्सवाना में हीरीरो लोगों द्वारा बोली जाती है, जिनकी संख्या लगभग १,१३,००० है। दोनों देशों में लगभग १,३३,००० हीरीरो लोग रहते हैं। इसका भाषाई वितरण जिस क्षेत्र को कवर करता है उसे हीरीरोलैण्ड कहा जाता है। इस क्षेत्र में ओमाहिके क्षेत्र आता है, साथ ही साथ ओट्जोज़ोण्ड्जुपा और कुनेने क्षेत्र भी। हिम्बा, जो हीरीरो लोगों से सम्बन्धित है, एक ऐसी बोली बोलते हैं जो हीरीरो भाषा से मिलती जुलती है। नामीबिया की राजधानी विण्डहोइक में यथेष्ट संख्या में हीरीरोभाषी अल्पसंख्यक रहते हैं। ईसाई मिश्नरी गोट्ट्लीब विहे (१८३९-१९०१) द्वारा बाइबल का हीरीरो भाषा में अनुवाद किया गया जिससे बोली जाने बाली भाषा का लैटिन आधारित लिपि में लिप्यन्तरण किया गया। पादरी पीटर हींरिक ब्रिन्कर (१८३६-१९०४) द्वारा बहुत से ब्रह्मवैज्ञानिक (थियोलॉजिकल) काव्यों और गानो का अनुवाग किया गया। हीरीरो भाषा पाठशालाओं में मातृ भाषा और दूसरी भाषा, दोनों रूपों में पढ़ाई जाती है और नामीबिया विश्वविद्यालय में इसे प्रधान सामग्री के रूप में सम्मिलित किया जाना है। हीरीरो उन छः अल्पसंख्यक भाषाओं में भी है जिनमें नामीबियाई राजकीय रेडियो द्वारा प्रसारण किया जाता है। ऐम्बो रोमाम्बो, ने वर्ष २००८ तक, एक मात्र रीरीरो शब्दकोश का प्रकाशन किया है। .

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जर्मन भाषा का साहित्य

जर्मन साहित्य, संसार के प्रौढ़तम साहित्यों में से एक है। जर्मन साहित्य सामान्यत: छह-छह सौ वर्षों के व्यवधान (600, 1200, 1800 ई.) में विभक्त माना जाता है। प्राचीन काल में मौखिक एवं लिखित दो धाराएँ थीं। ईसाई मिशनरियों ने जर्मनों को रुने (Rune) वर्णमाला दी। प्रारंभ में (900 ई.) ईसामसीह पर आधारित साहित्य (अनुवाद एवं चंपू) रचा गया। प्रारंभ में वीरकाव्य (एपिक) मिलते हैं। स्काप्स का "डासहिल्डे ब्रांडस्ल्डि", (पिता पुत्र के बीच मरणांतक युद्धकथा) जर्मन बैलेड साहित्य की उल्लेख्य कृति है। ओल्ड टेस्टामेंट के अनेक अनुवाद हुए। जर्मन साहित्य के विभिन्न काल ImageSize .

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ज़ेब-उन-निसा

जे़ब-अल-निसा (15 फरवरी 1638 – 26 मई 1702) एक मुग़ल शहज़ादी और बादशाह औरंगज़ेब (3 नवंबर, 1618 – 3 मार्च 1707) और उसकी मुख्य मलिका दिलरस बानो बेगम की सबसे बड़ी औलाद थी। वह एक कवित्री भी थी, जो "मख़फ़ी" (مخفی) के छद्म नाम के तहत लिखा करती था। उसके जीवन के पिछले 20 वर्षों में उसे सलीमगढ़ क़िला, दिल्ली में उसके पिता द्वारा क़ैद रखा गया है। शहज़ादी जे़ब-उन-निसा को एक कवि के रूप में याद किया जाता है, और उसका लेखन दीवान-ए-मख़फ़ी के रूप में मरणोपरांत एकत्रित किया गया था। .

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जेम्स तिस्सो

जेम्स तिस्सो का स्वचित्र जेम्स तिस्सो (१८३६-१९०२) फ्रेंच चित्रकार था। उसका मूल नाम 'जाक जोजेफ तिस्सो' (Jacques Joseph Tissot) था। .

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जेरिको (मिसाइल)

जेरिको एक सामान्य पद दिया करने के लिए एक शिथिल संबंधित परिवार तैनात की बैलिस्टिक मिसाइलों द्वारा विकसित इसराइल 1960 के दशक से आगे हैं। नाम लिया जाता है से पहले विकास के अनुबंध के लिए जेरिको मैं पर हस्ताक्षर किए के बीच इसराइल और Dassault 1963 में, साथ कोडनेम के रूप में एक संदर्भ के लिए बाइबिल के शहर जेरिको.

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जेसिका एल्बा

जेसिका मैरी एल्बा (जन्म - 28 अप्रैल 1981) एक अमेरिकी टेलीविज़न और फ़िल्म अभिनेत्री है। उसने 13 वर्ष की आयु में कैंप नोव्हेयर और द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ़ एलेक्स मैक (1994) में अपने टेलीविज़न और मूवी कार्यक्रमों का आरंभ किया। एल्बा, टेलीविज़न श्रृंखला डार्क एंजल (2000–2002) में प्रमुख अभिनेत्री के रूप में उभर कर सामने आई.

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जोशीया

हिब्रू बाइबल के अनुसार जोशीया या योशीया (Josiah / ६४९-६०९ ईo पूo)) यहूदिया (Juda) अर्थात् दक्षिण फिलिस्तीन के १६वें राजा थे। अधिकांश इतिसकार मानते हैं कि योशीया ने महत्वपूर्ण हिब्रू धर्मग्रन्थों का संकलन किया या उन्हें स्थापित किया। अपने पिता की हत्या होने पर वे आठ वर्ष की उम्र में राजा बने थे। .

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ईसा मसीह सत्य गिरजाघर

ईसा मसीह सत्य गिरजाघर एक स्वतंत्र गिरिजाघर है जो कि १९१७ में बीजींग, चीन में स्थापित किया गया था। प्रचारक युंग-जी लिन सत्य ईसा मसीह गिरजाघर के वर्तमान अध्यक्ष हैं। ये गिरिजाघर ईसाई समाज के रोमीय मत विरोधी (प्रोटेस्टेन्ट) शाखा से संबंधित है। भारत में इसकी स्थापना १९३२ में हुई। इस गिरिजाघर में बड़ा दिन और शुभ शुक्रवार नहीं मनाए जाते। .

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ईसा इब्न मरियम

ईसा इब्न मरियम (यानि: मरियम के पुत्र ईसा) या ईसा मसीह (सम्मानजनक रूप से:हज़रात ईसा अलाइ सलाम; अन्य नाम: यीशु मसीह, जीसस क्राइस्ट), इस्लाम के अनुसार, अल्लाह द्वारा, मानव जाति को भेजे गए पैग़म्बरों में से एक हैं, जोकि ईसाई धर्म के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक हैं। ईसा, इस्लाम के उन २५ पैग़म्बरों में से एक हैं, जिनका उल्लेख क़ुरान में किया गया है। इस्लामी धर्मशास्त्र के अनुसार, ईसा को मुहम्मद के बाद दुसरे सबसे महत्वपूर्ण स्थान पर रखा जाता है। बाइबिल में दिए गए उनकी आत्मकथा से जुड़े लगभग सारी दैवी घटनाओं को इस्लाम में माना जाता है, जिसमें: कुँवारीगर्भ से जन्म, उनके चमत्कार, उनके क्रूस पर चढ़ाय जाने, मृत्यु और मृतोत्थान शामिल हैं। हालाँकि कुरान के कुछ विवोचनों के अनुसार, क्रूस पर चढ़ाना, मृत्यु और मृतोत्थान जायसी घटनाएँ नहीं हुई थी। बहरहाल, मसीहियों के विरुद्ध मुस्लमान, ईसा को ईश्वरपुत्र या त्रिमूर्तित्व को नहीं मानते। इस्लाम में ईसा मसीह को एक आदरणीय नबी (मसीहा) माना जाता है, जो ईश्वर (अल्लाह) ने इस्राइलियों को उनके संदेश फैलाने को भेजा था। क़ुरान के अनुसार, अल्लाह ने ईसा को इन्जील नमक पवित्र किताब का इल्हाम दिया था, जोकि इस्लामिक मान्यता के अनुसार, अल्लाह द्वारा मानवता को प्रदान किये गए चार पवित्र किताबों में से एक है। क़ुरान में ईसा के नाम का ज़िक्र मुहम्मद से भी ज़्यादा है और मुसुल्मान ईसा के कुँवारी माता द्वारा जन्मा मानते हैं। .

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ईसाई धर्म

'''ईद्भास/क्रॉस''' - यह ईसाई धर्म का निशान है ईसाई धर्म (अन्य प्रचलित नाम:मसीही धर्म व क्रिश्चियन धर्म) एक इब्राहीमीChristianity's status as monotheistic is affirmed in, amongst other sources, the Catholic Encyclopedia (article ""); William F. Albright, From the Stone Age to Christianity; H. Richard Niebuhr; About.com,; Kirsch, God Against the Gods; Woodhead, An Introduction to Christianity; The Columbia Electronic Encyclopedia; The New Dictionary of Cultural Literacy,; New Dictionary of Theology,, pp.

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ईसाई धर्म का इतिहास

चर्च (Church) शब्द यूनानी विशेषण का अपभ्रंश है जिसका शाब्दिक अर्थ है "प्रभु का"। वास्तव में चर्च (और गिरजा भी) दो अर्थों में प्रयुक्त है; एक तो प्रभु का भवन अर्थात् गिरजाघर तथा दूसरा, ईसाइयों का संगठन। चर्च के अतिरिक्त 'कलीसिया' शब्द भी चलता है। यह यूनानी बाइबिल के 'एक्लेसिया' शब्द का विकृत रूप है; बाइबिल में इसका अर्थ है - किसी स्थानविशेष अथवा विश्व भर के ईसाइयों का समुदाय। बाद में यह शब्द गिरजाघर के लिये भी प्रयुक्त होने लगा। यहाँ पर संस्था के अर्थ में चर्च पर विचार किया जायगा। .

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ईसाई मत में ईश्वर

बाइबिल में कहीं भी ईश्वर के स्वरूप का दार्शनिक विवेचन तो नहीं मिलता किंतु मनुष्यों के साथ ईश्वर के व्यवहार का जो इतिहास इसमें प्रस्तुत किया गया है उसपर ईश्वर के अस्तित्व तथा उसके स्वरूप के विषय में ईसाइयों की धारण आधारित है। (१) बाइबिल के पूर्वार्ध का वर्ण्य विषय संसार की सृष्टि तथा यहूदियों का धार्मिक इतिहास है। उससे ईश्वर के विषय में निम्नलिखित शिक्षा मिलती है: एक ही ईश्वर है- अनादि और अनंत; सर्वशक्तिमान और अपतिकार्य, विश्व का सृष्टिकर्ता, मनुष्य मात्र का आराध्य। वह सृष्ट संसार के परे होकर उससे अलग है तथा साथ-साथ अपनी शक्ति से उसमें व्याप्त भी रहता है। कोई मूर्ति उसका स्वरूप व्यक्त करने में असमर्थ है। वह परमपावन होकर मनुष्य को पवित्र बनने का आदेश देता है, मनुष्य ईश्वरीय विधान ग्रहण कर ईश्वर की आराधना करे तथा ईश्वर के नियमानुसार अपना जीवन बितावे। जो ऐसा नहीं करता वह परलोक में दंडित होगा क्योंकि ईश्वर सब मनुष्यों का उनके कर्मों के अनुसार न्याय करेगा। पाप के कारण मनुष्य की दुर्गति देखकर ईश्वर ने प्रारंभ से ही मुक्ति की प्रतिज्ञा की थी। उस मुक्ति का मार्ग तैयार करने के लिए उसने यहूदी जाति को अपनी ही प्रजा के रूप में ग्रहण किया तथा बहुत से नबियों को उत्पन्न करके उस जाति में शुद्ध एकेश्वरवाद बनाए रखा। यद्यपि बाइबिल के पूर्वार्ध में ईश्वर का परमपावन न्यायकर्ता का रूप प्रधान है, तथापि यहूदी जाति के साथ उसके व्यवहार के वर्णन में ईश्वर की दयालुता तथा सत्यप्रतिज्ञा पर भी बहुत ही बल दिया गया है। (२) बाइबिल के उत्तरार्ध से पता चलता है कि ईसा ने ईश्वर के स्वरूप के विषय में एक नए रहस्य का उद्घाटन किया है। ईश्वर तिर्यकू है, अर्थात् एक ही ईश्वर में तीन व्यक्ति हैं- पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। तीनों समान रूप से अनादि, अनंत और सर्वशक्तिमान् हैं क्योंकि वे तत्वत: एक हैं। ईश्वर के आभ्यंतर जीवन का वास्तविक स्वरूप है-पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का अनर्विचनीय प्रेम। प्रेम से ही प्रेरित होकर ईश्वर ने मनुष्य को अपने आभ्यंतर जीवन का भागी बनाने के उद्देश्य से उसकी सृष्टि की थी किंतु प्रथम मनुष्य ने ईश्वर की इस योजना को ठुकरा दिया जिससे संसार में पाप का प्रवेश हुआ। मनुष्यों को पाप से मुक्त करने के लिए ईश्वर ईसा में अवतरित हुआ जिससे ईश्वर का प्रेम और स्पष्ट रूप से परिलिक्षित होता है। ईसा ने क्रूस पर मरकर मानव जाति के सब पापों का प्रायश्चित किया तथा मनुष्य मात्र के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जो कोई सच्चे हृदय से पछतावा करे वह ईसा के पुण्यफलों द्वारा पापक्षमा प्राप्त कर सकता है और अनंतकाल तक पिता-पुत्र-पवित्र आत्मा के आभ्यंतर जीवन का साझी बन सकता है। इस प्रकार ईश्वर का वास्तविक स्वरूप प्रेम ही है। मनुष्य की दृष्टि से वह दयालु पिता है जिसके प्रति प्रेमपूर्ण आत्मसमर्पण होना चाहिए। बाइबिल के उत्तरार्ध में ईश्वर को लगभग ३०० बार 'पिता' कहकर पुकारा गया है। (३) बाइबिल के आधार पर ईसाइयों का विश्वास है कि मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर भी ईश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। अपूर्ण होते हुए भी यह ज्ञान प्रामाणिक ही है। ईसाई धर्म का किसी एक दर्शन के साथ अनिवार्य संबंध तो नहीं है, किंतु ऐतिहासिक परिस्थितियों के फलस्वरूप ईसाई तत्वज्ञ प्राय: अफलातून अथवा अरस्तू के दर्शन का सहारा लेकर ईश्वरवाद का प्रतिपादन करते हैं। ईश्वर का अस्तित्व प्राय: कार्य-कारण-संबंध के आधार पर प्रमाणित किया जाता है। ईश्वर निर्गुण, अमूर्त, अभौतिक है। वह परिवर्तनीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, अनंत और अनादि है। वह सृष्टि के परे होते हुए भी इसमें व्याप्त रहता है; वह अंतर्यामी है। ईसाई दार्शनिक एक ओर तो सर्वेश्वरवाद तथा अद्वैत का विरोध करते हुए सिखलाते हैं कि समस्त सृष्टि (अत: जीवात्मा भी) तत्वत: ईश्वर से भिन्न है, दसूरी ओर वे अद्वैत को भी पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं सकते, क्योंकि उनकी धारणा है कि समस्त सृष्टि अपने अस्तित्व के लिए निरंतर ईश्वर पर निर्भर रहती है। .

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ईवान आईवाज़ोवस्की

ईवान कॉन्स्टेनटिनोविच आईवाज़ोवस्की (Ива́н Константи́нович Айвазо́вский, Հովհաննես Այվազովսկի Hovhannes Ayvazovski); 29 जुलाई 18172 मई 1900) एक रूसी प्रकृतवादी चित्रकार थे। उन्हें इतिहास के महानतम सामुद्रिक कलाकारों में से एक माना जाता है। बचपन में ईसाई बनने पर इनका नाम Hovhannes Aivazian रखा गया था। इनका जन्म काला सागर के तटीय शहर फिओदोसिया में एक आर्मेनियाई परिवार में हुआ था और ये जीवन भर मुख्यत: अपने मूल प्रांत क्रीमिया में ही रहे। इम्पीरियल अकादमी ऑफ आर्ट्स में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ये यूरोप घूमने गये और १८४० में कुछ समय तक इटली में रहे। फ़िर वो रूस वापस आ गये और रूसी नौसेना में आधिकारिक चित्रकार की हैसियत से नौकरी करने लगे। आईज़ोवस्की के तत्कालीन रूसी साम्राज्य के सैन्य व राजनीतिक प्रबुद्ध जनों से अच्छे संबंध थे और वो अक्सर सैन्य सम्मेलनों में शामिल हुआ करते थे। शासक रोमानोव घराना उन्हें बहुत मानता था, उनके कार्यों को प्रायोजित करता था व साम्राज्य में उनका आजीवन बहुत सम्मान रहा। रूस में किसी अत्यंत ही मनोरम व खूबसुरत वस्तु या दृश्य की प्रशंसा करने के लिये एंटोन शेखोव द्वारा आईज़ोवस्की के सम्मान में कहा गया वाक्य यह तो आईज़ोवस्की के चित्रकारी के काबिल है ("worthy of Aivazovsky's brush") अभी भी प्रयोग किया जाता है। अपने काल के सर्वाधिक प्रसिद्ध रूसी कलाकारों में से एक आईज़ोवस्की रूस के बाहर भी उतने ही प्रचलित थे। संयुक्त राज्य अमेरिका व यूरोप में उनके कई सारे व्यक्तिगत प्रदर्शनियाँ लगीं जो बहुत सराही गयीं। अपने लगभग ६० वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने ६००० से ज्यादा चित्र बनाए, जिसकी वजह से उन्हें उस काल का सफलतम चित्रकार माना जाता है। उनके अधिकतर कार्य समुद्री दृश्य हैं, लेकिन उन्होंने युद्ध के दृश्य, आर्मेनियाई विषय-वस्तु और वर्णनात्मक चित्रांकन भी किए हैं। आईज़ोवस्की के अधिकतर कार्य रूसी, आर्मेनियाई व यूक्रेनी संग्रहालयों में रक्खे हैं। .

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वाद्य यन्त्र

एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि निकालने के प्रयोजन के लिए होता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कही जा सकती है। वाद्ययंत्र का इतिहास, मानव संस्कृति की शुरुआत से प्रारंभ होता है। वाद्ययंत्र का शैक्षणिक अध्ययन, अंग्रेज़ी में ओर्गेनोलोजी कहलाता है। केवल वाद्य यंत्र के उपयोग से की गई संगीत रचना वाद्य संगीत कहलाती है। संगीत वाद्य के रूप में एक विवादित यंत्र की तिथि और उत्पत्ति 67,000 साल पुरानी मानी जाती है; कलाकृतियां जिन्हें सामान्यतः प्रारंभिक बांसुरी माना जाता है करीब 37,000 साल पुरानी हैं। हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि वाद्य यंत्र के आविष्कार का एक विशिष्ट समय निर्धारित कर पाना, परिभाषा के व्यक्तिपरक होने के कारण असंभव है। वाद्ययंत्र, दुनिया के कई आबादी वाले क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से विकसित हुए.

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वाशिंगटन ऐल्स्टन

वाशिंगटन ऐल्स्टन (Washington Allston; १७७९-१८४३) अमरीकी कवि तथा चित्रकार थे। उन्होने शिक्षा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पाई। युवावस्था में लंदन, पेरिस, रोम, वेनिस आदि का भ्रमण कर पुन: अमरीका लौट आए और वहीं अपना कार्य आरंभ कर दिया। इनकी कलाकृतियों में प्रकाश और छाया के प्रयोग तथा रंगों के चुनाव आदि में वेनिस की शैली का प्रभाव परिलक्षित है, इसीलिए इन्हें 'अमरीकी तिशियन' भी कहा जाता है। इनके चित्र मिलान के राजभवन और सांता मेरिया के गिरजे में हैं जो इनके गुरु कोरेज्जो की कृतियों से भी अधिक श्रेष्ठ हैं। ये स्वयं धार्मिक स्वभाव के थे और इनके अधिकांश चित्रों की कथा वस्तु भी बाइबिल की कहानियाँ हैं। सर्वोत्तम कृतियाँ–'मृत व्यक्ति का पुनर्जीवन', 'देवदूत द्वारा संत पीतर की मुक्ति' और 'जेकोब का स्वप्न' हैं। लेखक के रूप में अभिव्यक्ति की सुगमता और काल्पनिक शक्ति के लिए ये विख्यात हैं। कोलरिज (ऐल्स्टन द्वारा बनाया जिसका चित्र आज भी नैशनल गैलरी में है) का कहना था कि उस युग में कला और काव्य के क्षेत्र में कोई और ऐल्स्टन की समता नहीं कर सकता था। .

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विल स्मिथ

विलियार्ड क्रिस्टोफर "विल" स्मिथ, जूनियर (जन्म 25 सितम्बर 1968) एक अमरीकी अभिनेता, फिल्म-निर्माता और रैपर हैं। उन्होंने संगीत, टेलीविजन और फिल्म में सफलता का आनंद लिया है। अप्रेल 2007 के न्यूजवीक ने उन्हें इस ग्रह का सबसे शक्तिशाली अभिनेता कहा था। स्मिथ को चार गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड्स और दो एकाडमी अवॉर्ड्स के लिए नामित किया जा चुका है और उन्होंने अनेक ग्रैमी अवॉर्ड्स जीते हैं। अस्सी के दशक के अंत में, स्मिथ ने द फ्रेश प्रिंस के नाम से एक रैपर के रूप में पर्याप्त सफलता प्राप्त की.

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विलियम टिन्डेल

विलियम टिंडेल (William Tyndale; &ndash) एक अंग्रेज विद्वान था जिसे बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए जिन्दा जला दिया गया था। उसे दिये गये इस वीभत्स प्राणदण्ड के बाद प्रोटेस्टैंट आन्दोलन के समय उसका जीवन एक प्रेरक जीवन बन गया। श्रेणी:अनुवादक.

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विलियम कैरी (मिशनरी)

विलियम कैरी (17 अगस्त 1761 - 9 जून 1834) एक अंग्रेजी बैप्टिस्ट मिशनरी और सुधरे हुए बैप्टिस्ट मंत्री थे जिन्हें "आधुनिक मिशन का जनक " कहा जाता है। कैरी, बैप्टिस्ट मिशनरी सोसाइटी के संस्थापकों में से एक थे। भारत के श्रीरामपुर की डेनिश कॉलोनी के एक मिशनरी के रूप में उन्होंने बंगला, संस्कृत और कई अन्य भाषाओँ और बोलियों में बाइबिल का अनुवाद किया। .

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वॉरेन बफे

वॉरेन बफे | spouse .

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वीर्य

ऑल्ट.

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गब्रीएल

गब्रीएल या जिब्राइल बाइबिल में उल्लिखित देवदूतों में से एक। इब्रानी भाषा में इस नाम का अर्थ है - 'ईश्वर का सामर्थ्य'। बाइबिल के पूर्वार्ध में वे दानियाल नामक नबी के लिये मसीह के राज्य संबंधी भविष्यद्वारिणों की व्याख्या करते हें। उत्तरार्ध में वे मसीह के अग्रदूत योहन बपतिसमा का तथा बाद में ईसाहमसीह का आगामी जन्म घोषित करते हैं। इस्लाम में माना जाता है कि हजरत मुहम्मद ने गब्रीएल से अपना धर्म ग्रहण किया था। ईसाई गब्रीएल की उपासना रक्षक के रूप में करते हैं। .

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गुर्दा

वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं। गुर्दे युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं। ये अनेक प्रकार के पशुओं में पाये जाते हैं, जिनमें कशेरुकी व कुछ अकशेरुकी जीव शामिल हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है। ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं। औदरिक गुहा के पिछले भाग में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) में स्थित गुर्दे वृक्कीय धमनियों के युग्म से रक्त प्राप्त करते हैं और इसे वृक्कीय शिराओं के एक जोड़े में प्रवाहित कर देते हैं। प्रत्येक गुर्दा मूत्र को एक मूत्रवाहिनी में उत्सर्जित करता है, जो कि स्वयं भी मूत्राशय में रिक्त होने वाली एक युग्मित संरचना होती है। गुर्दे की कार्यप्रणाली के अध्ययन को वृक्कीय शरीर विज्ञान कहा जाता है, जबकि गुर्दे की बीमारियों से संबंधित चिकित्सीय विधा मेघविज्ञान (nephrology) कहलाती है। गुर्दे की बीमारियां विविध प्रकार की हैं, लेकिन गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के रोगियों में अक्सर विशिष्ट चिकित्सीय लक्षण दिखाई देते हैं। गुर्दे से जुड़ी आम चिकित्सीय स्थितियों में नेफ्राइटिक और नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम, वृक्कीय पुटी, गुर्दे में तीक्ष्ण घाव, गुर्दे की दीर्घकालिक बीमारियां, मूत्रवाहिनी में संक्रमण, वृक्कअश्मरी और मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न होना शामिल हैं। गुर्दे के कैंसर के अनेक प्रकार भी मौजूद हैं; सबसे आम वयस्क वृक्क कैंसर वृक्क कोशिका कर्कट (renal cell carcinoma) है। कैंसर, पुटी और गुर्दे की कुछ अन्य अवस्थाओं का प्रबंधन गुर्दे को निकाल देने, या वृक्कुच्छेदन (nephrectomy) के द्वारा किया जा सकता है। जब गुर्दे का कार्य, जिसे केशिकागुच्छीय शुद्धिकरण दर (glomerular filtration rate) के द्वारा नापा जाता है, लगातार बुरी हो, तो डायालिसिस और गुर्दे का प्रत्यारोपण इसके उपचार के विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, पथरी बहुत अधिक हानिकारक नहीं होती, लेकिन यह भी दर्द और समस्या का कारण बन सकती है। पथरी को हटाने की प्रक्रिया में ध्वनि तरंगों द्वारा उपचार शामिल है, जिससे पत्थर को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्राशय के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। कमर के पिछले भाग के मध्यवर्ती/पार्श्विक खण्डों में तीक्ष्ण दर्द पथरी का एक आम लक्षण है। .

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गोस्पल

गोस्पल ईसाई धर्म का पवित्र ग्रंथ है। यह बाइबिल का दूसरा भाग नवविधान (न्यू टेस्टामेंट) है। श्रेणी:ईसाई ग्रंथ.

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ओ माय गॉड (फिल्म)

ओएमजी ओ माय गॉड! 2012 की भारतीय कॉमेडी-ड्रामा फिल्म है। ये गुजराती मंच-नाटक कांजी विरुद्ध कांजी पर आधारित है। इसकी कहानी एक ऑस्ट्रेलियाई फिल्म द मैन हू स्युड गॉड (वो व्यक्ति जिसने भगवान पर मुकदमा किया) के समान है। यह उमेश शुक्ला द्वारा निर्देशित है। फिल्म में निर्णायक भूमिका में मिथुन चक्रवर्ती के साथ साथ मुख्य भूमिका में अक्षय कुमार और परेश रावल भी हैं। 20 करोड़ (यूएस $ 4.12 मिलियन) के बजट पर इसे बनाया गया है। 28 सितंबर 2012 को रिलीज़ होने के बाद फिल्म को आलोचकों से काफी प्रशंसा मिली और इसे एक ब्लॉकबस्टर फिल्म घोषित किया गया। तेलुगु में बने फिल्म के रीमेक में मुख्य भूमिका में गोपाल गोपाल, वैंकटेश और पवन कल्याण आदि हैं। .

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आईज़ैक असिमोव

आईज़ैक असिमोव (Айзек Азимов; जन्मतः आईज़ैक युडोविच ओज़िमोव, Исаак Юдович Озимов 2 जनवरी 1920 - 6 अप्रैल 1992), एक अमेरिकी लेखक और बोस्टन विश्वविद्यालय में जैव-रसायन (बायोकेमिस्ट्री) के प्रोफेसर थे जिन्हें अपने साइंस फिक्शन से संबंधित कार्यों तथा साइंस की लोकप्रिय किताबों के लिए जाना जाता है। असिमोव, लेखन के क्षेत्र में अब तक सर्वाधिक कार्य करने वाले लेखकों में से एक हैं जिन्होंने 500 से अधिक पुस्तकों तथा अनुमानतः 9000 पत्रों और पोस्टकार्डों को लिखा अथवा सम्पादित किया है। उनके कार्यों को ड्यूवी डेसिमल सिस्टम की दस में से नौ श्रेणियों में प्रकाशित किया जा चुका है (100s: फिलोसोफी एंड साइकोलोजी इसका एकमात्र अपवाद है).

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आइज़क न्यूटन

सर आइज़ैक न्यूटन इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे। जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की। वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे। इनका शोध प्रपत्र "प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांतों "" सन् १६८७ में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी। उनकी फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका, 1687 में प्रकाशित हुई, यह विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है। इस कार्य में, न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केन्द्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया। यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में, उन्होंने पहला व्यवहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया और इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है। उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का भी प्रदर्शन किया और एक फलन के शून्यों के सन्निकटन के लिए तथाकथित "न्यूटन की विधि" का विकास किया और घात श्रृंखला के अध्ययन में योगदान दिया। वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन की स्थिति बहुत शीर्ष पद पर है, ऐसा ब्रिटेन की रोयल सोसाइटी में 2005 में हुए वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण के द्वारा प्रदर्शित होता है, जिसमें पूछा गया कि विज्ञान के इतिहास पर किसका प्रभाव अधिक गहरा है, न्यूटन का या एल्बर्ट आइंस्टीन का। इस सर्वेक्षण में न्यूटन को अधिक प्रभावी पाया गया।.

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इथियोपियाई साहित्य

इथिओपियाई साहित्य केवल धर्मग्रंथों का साहित्य है और बाइबिल के अनुवादों तक सीमित है। इसमें ४६ अनुवाद 'ओल्ड टेस्टामेंट' के और ३५ 'न्यू टेस्टामेंट' के हुए। सबसे पहले ईसा के जीवनचरित और उपदेशों के अनुवाद पश्चिमी आर्मीनियाई भाषा से सन्‌ ५०० ई. में हुए थे। इथिओपियाई भाषा को गीज़ कहते हैं। साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए गीज़ का प्रयोग अबिसीनिया में ईसाई धर्म के आगमन से कुछ ही पहले प्रारंभ हुआ। जनभाषा के रूप में इसका प्रयोग कब बंद हो गया, यह अज्ञात है। ईसाई धर्म के आगमन से पूर्व इथिओपिया में प्रकृतिपूजा प्रचलित थी। प्राचीन इथियोपियाई धर्म और संस्कृति प्राचीन मिस्र से आई प्रतीत होती है। तीन प्राचीन शाही शिलालेख उपलब्ध हुए हैं। उनमें से दो डी.एच.

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इब्रानी भाषा

हिब्रूभाषी क्षेत्र हिब्रू (עִבְרִית, Ivrit) सामी-हामी भाषा-परिवार की सामी शाखा में आने वाली एक भाषा है। ये इस्राइल की मुख्य- और राष्ट्रभाषा है। इसका पुरातन रूप बिब्लिकल हिब्रू यहूदी धर्म की धर्मभाषा है और बाइबिल का पुराना नियम इसी में लिखा गया था। ये हिब्रू लिपि में लिखी जाती है ये दायें से बायें पढ़ी और लिखी जाती है। पश्चिम के विश्वविद्यालयों में आजकल इब्रानी का अध्ययन अपेक्षाकृत लोकप्रिय है। प्रथम महायुद्ध के बाद फिलिस्तीन (यहूदियों का इज़रायल नामक नया राज्य) की राजभाषा आधुनिक इब्रानी है। सन् १९२५ई.

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इब्रानी साहित्य

इब्रानी साहित्य (Hebrew literature) के अन्तर्गत इब्रानी भाषा में लिखित प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक साहित्य आता है। यह मुख्यतः यहूदी धर्मावलम्बियों द्वारा सृजित साहित्य है किन्तु कुछ मात्रा में गैर-यहूदियों ने भी इसमें योगदान किया है। हिब्रू साहित्य की रचना संसार के विभिन्न भागों में हुई किन्तु आधुनिक हिब्रू साहित्य मुख्यतः इजराइल में सृजित होता है। .

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इब्राहीमी धर्म

इब्राहीमी धर्म उन धर्मों को कहते हैं जो हज़रत इब्राहीम (इब्राहिम अथवा अब्राहम) के पूजित ईश्वर को मानते हैं। इनमें ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म और यहूदी धर्म शामिल हैं, और ये अपने आप को बाइबिल में वर्णित नबी इब्राहीम का वंशज मानते हैं। ये तीनों धर्म मध्य पूर्व के रेगिस्तान में पनपे थे और बिलकुल एकेश्वरवादी हैं। .

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इयोब्ब

बाइबिल के अनुसार, इय्योब (अय्यूब, योब) अब्राहम के समकालीन कोई अरबनिवासी गैर-यहूदी कुलपति थे। लगभग ५३० ई. पू.

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इराक़

इराक़ पश्चिमी एशिया में स्थित एक जनतांत्रिक देश है जहाँ के लोग मुख्यतः मुस्लिम हैं। इसके दक्षिण में सउदी अरब और कुवैत, पश्चिम में जोर्डन और सीरिया, उत्तर में तुर्की और पूर्व में ईरान अवस्थित है। दक्षिण पश्चिम की दिशा में यह फ़ारस की खाड़ी से भी जुड़ा है। दजला नदी और फरात इसकी दो प्रमुख नदियाँ हैं जो इसके इतिहास को ५००० साल पीछे ले जाती हैं। इसके दोआबे में ही मेसोपोटामिया की सभ्यता का उदय हुआ था। इराक़ के इतिहास में असीरिया के पतन के बाद विदेशी शक्तियों का प्रभुत्व रहा है। ईसापूर्व छठी सदी के बाद से फ़ारसी शासन में रहने के बाद (सातवीं सदी तक) इसपर अरबों का प्रभुत्व बना। अरब शासन के समय यहाँ इस्लाम धर्म आया और बगदाद अब्बासी खिलाफत की राजधानी रहा। तेरहवीं सदी में मंगोल आक्रमण से बगदाद का पतन हो गया और उसके बाद की अराजकता के सालों बाद तुर्कों (उस्मानी साम्राज्य) का प्रभुत्व यहाँ पर बन गया २००३ से दिसम्बर २०११ तक अमेरिका के नेतृत्व में नैटो की सेना की यहाँ उपस्थिति बनी हुई थी जिसके बाद से यहाँ एक जनतांत्रिक सरकार का शासन है। राजधानी बगदाद के अलावा करबला, बसरा, किर्कुक तथा नजफ़ अन्य प्रमुख शहर हैं। यहाँ की मुख्य बोलचाल की भाषा अरबी और कुर्दी भाषा है और दोनों को सांवैधानिक दर्जा मिला है। .

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इस्लाम के पैग़म्बर

इस्लाम के पैग़म्बर (अरबी: الأنبياء في الإسلام) में "दूत" (रसूल, बहुवचन: रुसुल) शामिल हैं, एक मलक के माध्यम से एक दिव्य प्रकाशन के लायक (अरबी: ملائكة, malā'ikah); Shaatri, A. I. (2007).

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इस्लामी पवित्र पुस्तक

मुस्लिम समुदाय के विश्वासों के आधार पर यह वह पुस्तक हैं जिनको अल्लाह ने अनेक पैगम्बरों पर अवतरण किया। मानव चरित्र में मानव कल्याण के लिए जब जब आवश्यकता हुई तब तब पैगम्बरों को भेजा और सन्मार्ग की शिक्षा दी। और इस शिक्षण के लिए आसमानी किताबें, सहीफे उतारे गए। इन्हीं किताबों के श्रंखला की आख़री कड़ी कुरआन है। और ये आख़री किताब कुरआन पिछले भेजे गए तमाम किताबों की तस्दीक करती है। वैसे इस्लाम में कुरआन पवित्र और अल्लाह का आख़री कलाम है, और कुरान ये भी तालीम देता है कि पिछले ग्रंथों की इज्ज़त करें। इस्लाम में, कुरआन में चर्चित चार किताबों को आसमानी किताबें माना जाता है। वे तौरात (जो मूसा पर प्रकट हुई), ज़बूर (जो दाउद पर प्रकट हुई), इंजील (जो ईसा मसीह पर प्रकट हुई) और कुरआन.

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इज़राइल

इज़राइल राष्ट्र (इब्रानी:מְדִינַת יִשְׂרָאֵל, मेदिनत यिसरा'एल; دَوْلَةْ إِسْرَائِيل, दौलत इसरा'ईल) दक्षिण पश्चिम एशिया में स्थित एक देश है। यह दक्षिणपूर्व भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसके उत्तर में लेबनॉन, पूर्व में सीरिया और जॉर्डन तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र है। मध्यपूर्व में स्थित यह देश विश्व राजनीति और इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इतिहास और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार यहूदियों का मूल निवास रहे इस क्षेत्र का नाम ईसाइयत, इस्लाम और यहूदी धर्मों में प्रमुखता से लिया जाता है। यहूदी, मध्यपूर्व और यूरोप के कई क्षेत्रों में फैल गए थे। उन्नीसवी सदी के अन्त में तथा फ़िर बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में यूरोप में यहूदियों के ऊपर किए गए अत्याचार के कारण यूरोपीय (तथा अन्य) यहूदी अपने क्षेत्रों से भाग कर येरूशलम और इसके आसपास के क्षेत्रों में आने लगे। सन् 1948 में आधुनिक इसरायल राष्ट्र की स्थापना हुई। यरूशलम इसरायल की राजधानी है पर अन्य महत्वपूर्ण शहरों में तेल अवीव का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यहाँ की प्रमुख भाषा इब्रानी (हिब्रू) है, जो दाहिने से बाँए लिखी जाती है। यहाँ के निवासियों को इसरायली कहा जाता है। .

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इज़राइल का इतिहास

इजराइल का ध्वज इज़राइल संसार के यहूदी धर्मावलंबियों के प्राचीन राष्ट्र का नया रूप है। इज़रायल का नया राष्ट्र 14 मई सन् 1948 को अस्तित्व में आया। इज़रायल राष्ट्र, प्राचीन फ़िलिस्तीन अथवा पैलेस्टाइन का ही बृहत् भाग है। .

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इकसिंगा

इकसिंगा या यूनिकॉर्न (जो लैटिन शब्दों - unus (यूनस) अर्थात् 'एक' एवं cornu (कॉर्नू) अर्थात् 'सींग' से बना है) एक पौराणिक प्राणी है। हालांकि इकसिंगे का आधुनिक लोकप्रिय छवि कभी-कभी एक घोड़े की छवि की तरह प्रतीत होता है जिसमें केवल एक ही अंतर है कि इकसिंगे के माथे पर एक सींग होता है, लेकिन पारंपरिक इकसिंगे में एक बकरे की तरह दाढ़ी, एक सिंह की तरह पूंछ और फटे खुर भी होते हैं जो इसे एक घोड़े से अलग साबित करते हैं। मरियाना मेयर (द यूनिकॉर्न एण्ड द लेक) के अनुसार, "इकसिंगा एकमात्र ऐसा मनगढ़ंत पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।", Geocities.com .

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कर्ट कोबेन

कर्ट डोनाल्ड कोबेन (उच्चारण / koʊbeɪn /, / kʌbeɪn /; 20 फ़रवरी 1967 - सी 5 अप्रैल 1994) एक अमेरिकी गीतकार और संगीतकार और रॉक बैंड निर्वाण के मुख्य गायक और गिटारवादक थे। निर्वाण के दूसरे एलबम नेवरमाइंड (1991) के मुख्य सिंगल "स्‍मेल्‍स लाइक टीन स्पिरिट" के साथ निर्वाण ने मुख्यधारा में प्रवेश किया और वैकल्पिक रॉक की उपशैली को लोकप्रिय किया जिसे ग्रूंज कहते हैं। अन्य सिएटल ग्रूंज बैंड जैसे एलिस इन चैन्स, पर्ल जैम और साउंडगार्डन को भी व्यापक श्रोता प्राप्त हुए और परिणामस्वरूप वैकल्पिक रॉक 1990 के दशक के प्रारम्भ से मध्य के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका में रेडियो और संगीत टेलीविजन पर एक प्रमुख अंग बन गया। निर्वाण को "जनरेशन X" के "प्रमुख बैंड" के तौर पर देखा गया और कोबेन ने पाया कि उसका अग्रणी व्यक्ति होने के नाते मीडिया ने जनरेशन के प्रवक्ता के तौर पर नियुक्त किया है। कोबेन चौकसी से परेशान थे और उन्होंने बैंड के संगीत पर अपना ध्यान केंद्रित रखा और उनका मानना था कि बैंड के तीसरे स्टूडिओ एलबम इन उटेरो (1993) के श्रोताओं को चुनौती देकर बैंड के संदेश और कलात्मक दृष्टि की जनता द्वारा गलत व्याख्या की जा रही है। अपने जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान कोबेन ने अपनी हेरोइन की लत, बीमारी और अवसाद, अपनी प्रसिद्धि और सार्वजनिक छवि के साथ ही पेशेवर और अपने तथा अपनी संगीतकार पत्नी कर्टनी लव के आसपास जीवन पर्यन्त व्यक्तिगत दबाव के साथ संघर्ष किया। 8 अप्रैल 1994 को कोबेन सिएटल में अपने घर पर मृत पाये गये, जो आधिकारिक तौर पर अपने सिर पर गोली मार कर की गयी आत्महत्या थी। उनकी मौत की परिस्थितियां कई बार आकर्षण और विवाद का विषय बन गयीं। निर्वाण में गीतकार के तौर पर कोबेन के पहले प्रयास के बाद से अकेले अमेरिका में पच्चीस मिलियन और दुनिया भर में पचास मिलिनय से अधिक एलबम बिके.

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कलीसिया

कलीसिया (लातिनी:Ecclesia, एक्क्लेसिया) अथवा चर्च का अर्थ ईसाई धर्म के अन्तर्गत आने वाले किसी भी धार्मिक संगठन या साम्प्रदाय को कहा जाता है। कलीसिया, का शाब्दिक अर्थ है लोगों का समूह या सभा। कलीसिया कुछ विशेष ईसाइ विश्वासियों का संगठन या समूह, को कहते हैं, जिन्हें ईसाई मान्यता के अनुसार, एकमात्र परमेश्वर में विस्वास हो तथा उनके पुत्र ईसा मसीह पर विश्वास हो। विश्वासियों के इस समुदाय के सदस्य इस तरह देश-काल से परे एक सार्वभौमिक कलीसिया के भाग होते हैं। यह सार्वभौमिक कलीसिया एक वैश्विक समुदाय के समान है जिसमें हर विश्वासी एक अंग का कार्य करता है। .

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कश्मीरी भाषा

कश्मीरी भाषा एक भारतीय-आर्य भाषा है जो मुख्यतः कश्मीर घाटी तथा चेनाब घाटी में बोली जाती है। वर्ष २००१ की जनगणना के अनुसार भारत में इसके बोलने वालों की संख्या लगभग ५६ लाख है। पाक-अधिकृत कश्मीर में १९९८ की जनगणना के अनुसार लगभग १ लाख कश्मीरी भाषा बोलने वाले हैं। कश्मीर की वितस्ता घाटी के अतिरिक्त उत्तर में ज़ोजीला और बर्ज़ल तक तथा दक्षिण में बानहाल से परे किश्तवाड़ (जम्मू प्रांत) की छोटी उपत्यका तक इस भाषा के बोलने वाले हैं। कश्मीरी, जम्मू प्रांत के बानहाल, रामबन तथा भद्रवाह में भी बोली जाती है। प्रधान उपभाषा किश्तवाड़ की "कश्तवाडी" है। कश्मीर की भाषा कश्मीरी (कोशुर) है ये कश्मीर में वर्तमान समय में बोली जाने वाली भाषा है। कश्मीरी भाषा के लिए विभिन्न लिपियों का उपयोग किया गया है, जिसमें मुख्य लिपियां हैं- शारदा, देवनागरी, रोमन और परशो-अरबी है। कश्मीर वादी के उत्तर और पश्चिम में बोली जाने वाली भाषाएं - दर्ददी, श्रीन्या, कोहवाड़ कश्मीरी भाषा के उलट थीं। यह भाषा इंडो-आर्यन और हिंदुस्तानी-ईरानी भाषा के समान है। भाषाविदों का मानना ​​है कि कश्मीर के पहाड़ों में रहने वाले पूर्व नागावासी जैसे गंधर्व, यक्ष और किन्नर आदि,बहुत पहले ही मूल आर्यन से अलग हो गए। इसी तरह कश्मीरी भाषा को आर्य भाषा जैसा बनने में बहुत समय लगा। नागा भाषा स्वतः ही विकसित हुई है इस सब के बावजूद, कश्मीरी भाषा ने अपनी विशिष्ट स्वर शैली को बनाए रखा और 8 वीं-9 वीं शताब्दी में अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं की तरह, कई चरणों से गुजरना पड़ा। .

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क़ुरआन

'''क़ुरान''' का आवरण पृष्ठ क़ुरआन, क़ुरान या कोरआन (अरबी: القرآن, अल-क़ुर्'आन) इस्लाम की पवित्रतम किताब है और इसकी नींव है। मुसलमान मानते हैं कि इसे अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रील द्वारा हज़रत मुहम्मद को सुनाया था। मुसलमान मानते हैं कि क़ुरआन ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च किताब है। यह ग्रन्थ लगभग 1400 साल पहले अवतरण हुई है। इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक़ क़ुरआन अल्लाह के फ़रिश्ते जिब्रील (दूत) द्वारा हज़रत मुहम्मद को सन् 610 से सन् 632 में उनकी मौत तक ख़ुलासा किया गया था। हालांकि आरंभ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैग़म्बर मुहम्मद की मौत के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् 653 में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियाँ इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर द्वारा भेजे गए पवित्र संदेशों के सबसे आख़िरी संदेश क़ुरआन में लिखे गए हैं। इन संदेशों की शुरुआत आदम से हुई थी। हज़रत आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहला नबी (पैग़म्बर या पयम्बर) था और इसकी तुलना हिन्दू धर्म के मनु से एक हद तक की जा सकती है। जिस तरह से हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मानव कहा गया है वैसे ही इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है। तौहीद, धार्मिक आदेश, जन्नत, जहन्नम, सब्र, धर्म परायणता (तक्वा) के विषय ऐसे हैं जो बारम्बार दोहराए गए। क़ुरआन ने अपने समय में एक सीधे साधे, नेक व्यापारी इंसान को, जो अपने ‎परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था। विश्व की दो महान शक्तियों ‎‎(रोमन तथा ईरानी) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं ‎उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर ‎इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी इसके निशान पक्के मिलते हैं। ‎क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत ‎किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है। मुसलमानों के अनुसार कुरआन में दिए गए ज्ञान से ये साबित होता है कि हज़रत मुहम्मद एक नबी है | .

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कुष्ठरोग

कुष्ठरोग (Leprosy) या हैन्सेन का रोग (Hansen’s Disease) (एचडी) (HD), चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर, माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है। कुष्ठरोग मुख्यतः ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म और बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा-संबंधी (granulomatous) बीमारी है; त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। लोककथाओं के विपरीत, कुष्ठरोग के कारण शरीर के अंग अलग होकर गिरते नहीं, हालांकि इस बीमारी के कारण वे सुन्न तथा/या रोगी बन सकते हैं। कुष्ठरोग ने 4,000 से भी अधिक वर्षों से मानवता को प्रभावित किया है, और प्राचीन चीन, मिस्र और भारत की सभ्यताओं में इसे बहुत अच्छी तरह पहचाना गया है। पुराने येरुशलम शहर के बाहर स्थित एक मकबरे में खोजे गये एक पुरुष के कफन में लिपटे शव के अवशेषों से लिया गया डीएनए (DNA) दर्शाता है कि वह पहला मनुष्य है, जिसमें कुष्ठरोग की पुष्टि हुई है। 1995 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुमान के अनुसार कुष्ठरोग के कारण स्थायी रूप से विकलांग हो चुके व्यक्तियों की संख्या 2 से 3 मिलियन के बीच थी। पिछले 20 वर्षों में, पूरे विश्व में 15 मिलियन लोगों को कुष्ठरोग से मुक्त किया जा चुका है। हालांकि, जहां पर्याप्त उपचार उपलब्ध हैं, उन स्थानों में मरीजों का बलपूर्वक संगरोध या पृथक्करण करना अनावश्यक है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी पूरे विश्व में भारत (जहां आज भी 1,000 से अधिक कुष्ठ-बस्तियां हैं), चीन, रोमानिया, मिस्र, नेपाल, सोमालिया, लाइबेरिया, वियतनाम और जापान जैसे देशों में कुष्ठ-बस्तियां मौजूद हैं। एक समय था, जब कुष्ठरोग को अत्यधिक संक्रामक और यौन-संबंधों के द्वारा संचरित होने वाला माना जाता था और इसका उपचार पारे के द्वारा किया जाता था- जिनमें से सभी धारणाएं सिफिलिस (syphilis) पर लागू हुईं, जिसका पहली बार वर्णन 1530 में किया गया था। अब ऐसा माना जाता है कि कुष्ठरोग के शुरुआती मामलों से अनेक संभवतः सिफिलिस (syphilis) के मामले रहे होंगे.

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क्रिसमस

क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह 25 दिसम्बर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व मे अवकाश रहता है। क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू.

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कॉप्टिक भाषा

कॉप्टिक या कोप्ती मिस्र की एक भाषा थी जो १७वीं शताब्दी तक लुप्त हो गयी। यह प्राचीन मिस्रियों के आधुनिक वंशधर कोप्तों (किब्त, कुब्त) की भाषा थी। कोपी भाषा उस प्राचीन मिस्री से निकली थी जो स्वयं चित्रलिपिक (हिरोग्लिफ़िक), पुरोहिती (हिरेतिक), देमोतिक आदि अनेक रूपों में लिखी गई। दीर्घकाल तक, ग्रीक भाषा के घने प्रभाव के बावजूद, कोप्ती अपनी निजता बनाए रही। अरबों की मिस्र विजय ने नि:संदेह इसपर अपना गहरा प्रभाव डाला और अरबी प्राय: इसे आत्मसात् कर गई। १७वीं सदी ईसवी तक पहुँचते-पहुँचते इसके अस्तित्व का लोप हो गया। दूसरी सदी ईसवी में देमोतिक से मिलीजुली वह जंतर-मंतर के उपयोग के लिए लिखी जाने लगी थी। तब तक उसका रूप प्राय: शुद्ध प्राचीन था। प्राचीन कोप्ती की अपनी अनेक जनबोलियाँ भी थीं जिनमें तीन - साहीदी, अख़मीमी और फ़ायूमी प्रधान थीं। ग्रीक भाषा प्रभावित इन बोलियों का उपयोग अधिकतर १३वीं सदी तक होता रहा, पर अरबी के बढ़ते हुए प्रभाव और प्रयोग के धीरे-धीरे इसका अस्तित्व मिटा दिया। इनके धार्मिक साहित्यों की व्याख्या तक अरबी में होने लगी। स्वयं कोप्तों ने १०वीं सदी से ही अरबी में लिखना-पढ़ना शुरू कर दिया था, यद्यपि कोप्ती का साहित्यिक व्यवहार एक अंश में १४वीं सदी तक जहाँ-तहाँ दीख जाता है। प्राय: पिछले ३०० वर्षों से बोली जानेवाली भाषा के रूप में कोप्ती का उपयोग उठ गया है। साधारणत: माना जाता है कि कोप्त जाति और भाषा का संबंध मिस्र के उस कुफ्त गाँव से है जो नील नदी के पूर्वी तट पर प्राचीन थीब्ज़ से प्राय: ३५ किमी उत्तर-पूर्व आज भी खड़ा है। कोप्त लोग ईसा की तीसरी चौथी सदी में ईसाई हो गए थे। वस्तुत: प्राचीन मिस्री ईसाइयों का ही नाम कोप्त पड़ा और उनकी भाषा कोप्ती कहलाई। इसकी जनबोली साहीदी बियाई जनपद में बोली जाती थी, जैसे अख़मीमी अख़मीम के पड़ोस में और फ़ायुमी फ़ायूम के आस पास मिस्र के मध्य भाग में, मेंफ़िस तक। बोहाइरी नाम की कोप्ती बोली डेल्टा के उत्तर-पश्चिमी भाग में बोली जाती थी। इसमें लिखा नवीं सदी का ईसाई साहित्य आज भी उपलब्ध है। कोप्ती का प्राय: समूचा साहित्य धार्मिक है जो मूलत: ग्रीक से अनूदित है। साहीदी, अख़मीमी और फ़ायूमी तीनों में बाइबिल की पुरानी और नई दोनों पोथियों के अनुवाद ४५० ई. से पूर्व ही प्रस्तुत हो चुके थे। धर्मेतर विषयों का बहुत थोड़ा साहित्य कोप्ती में लिखा गया या आज बच रहा है। इसमें कुछ तो झाड़-फूँक या जंतर-मंतर संबंधी प्रयोग हैं, कुछ चिकित्सा से संबंधित हैं, कुछ में सिकन्दर और मिस्रविजेता प्राचीन ईरानी सम्राट् कंबुजीय की जीवन की घटनाएँ हैं। १३वीं-१४वीं सदी में काप्ती का यह रूप भी अरबी के प्रभाव से मिट गया। श्रेणी:विश्व की भाषाएँ.

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अधिप्रचार

सैम चाचा के बाहों में बाहें डाले ब्रितानिया: प्रथम विश्वयुद्ध में अमेरिकी-ब्रितानी सन्धि का प्रतीकात्मक चित्रण अधिप्रचार (Propaganda) उन समस्त सूचनाओं को कहते हैं जो कोई व्यक्ति या संस्था किसी बड़े जन समुदाय की राय और व्यवहार को प्रभावित करने के लिये संचारित करती है। सबसे प्रभावी अधिप्रचार वह होता है जिसकी सामग्री प्रायः पूर्णतः सत्य होती है किन्तु उसमें थोडी मात्रा असत्य, अर्धसत्य या तार्किक दोष से पूर्ण कथन की भी हो। अधिप्रचार के बहुत से तरीके हैं। दुष्प्रचार का उद्देश्य सूचना देने के बजाय लोगों के व्यवहार और राय को प्रभावित करना (बदलना) होता है। .

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अन्तरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस

30 सितंबर अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है। अनुवाद दिवस बाइबल के अनुवादक सेंट जीरोम की स्मृति में मनाया जाता है। इस वर्ष की विषयवस्तु (विषय) "द चेंजिंग फेस ऑफ़ ट्रांसलेशन एण्ड इंटरप्रेटिंग" हैं। अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस हर साल 30 सितंबर को सेंट जेरोम के पर्व पर मनाया जाता है, बाइबिल अनुवादक जिसे अनुवादकों के संरक्षक संत माना जाता है। 1 9 53 में स्थापित होने के बाद से यह समारोह एफआईटी (अंतर्राष्ट्रीय अनुवादकों की अंतर्राष्ट्रीय संघ) द्वारा प्रोत्साहित किया गया है। 1 99 1 में एफआईटी ने एक आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस का विचार शुरू किया, ताकि दुनिया भर में अनुवाद समुदाय की एकता को बढ़ावा मिले। विभिन्न देशों में अनुवाद कार्य का महत्व प्रदर्शित करने के लिए मनाया जाता है। भूमंडलीकरण की प्रगति के युग में अनुवाद कार्य तेजी से बढ़ रहा है।.

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अपस्मार

अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी: मिरगी, अंग्रेजी: Epilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।, हिन्दुस्तान लाइव, १८ नवम्बर २००९ दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।, वेब दुनिया, डॉ॰ वोनोद गुप्ता। १७ नवम्बर को विश्व भर में विश्व मिरगी दिवस का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।।। द टाइम्स ऑफ इंडिया।, याहू जागरण, १७ नवम्बर २००९ .

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अफ़्रीकान्स भाषा

अफ़्रीकांस भाषा स्मारक अफ़्रीकांस भाषा एक दक्षिणी फ़्रांकोनीयाई भाषा है जो दक्षिण अफ़्रीका में बोली जाती है। .

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अल बुस्तानी

अल बुस्तानी बुट्रस अल बुस्तानी (१८१९ - १८८३) वर्तमान लेबनान के एक लेखक एवं साहित्य पंडित थे। वे १९वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में मिस्र में शुरू होकर मध्य पूर्व में फैले अरबी पुनर्जागरण के प्रमुख अग्रदूतों में से थे। अमरीकी मिशनरियों के संपर्क में आकर वह ऐबे में अध्यापक बने। उन्होने अली स्मिथ के बाइबिल के अरबी अनुवाद में सहायक का कार्य किया। इसके लिए उसको इब्रानी, यूनानी, सीरियाई और लैटिन भाषाएँ भी सीखनी पड़ीं। वह अंग्रेजी, फ्रांसीसी और इतालीय भाषाओं के भी विद्वान् थे। उन्होने एक विस्तृत अरबी शब्दकोश का भी संपादन किया। उसका दूसरा संपादित ग्रंथ 'दायरात अल-म-आरिफ़' (विश्वकोश) भी बहुत प्रसिद्ध है। १८६० में, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच गृहयुद्ध के दौरान अपने पत्र 'नफीर सूरीया' के माध्यम से सद्भावना और सुमति का संदेश प्रचारित किया। अपने जीवन भर बुस्तानी सहिष्णुता और देशभक्ति के मूल्यों का प्रचार करते रहे। श्रेणी:अरबी साहित्यकार.

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अवतारवाद

संसार के भिन्न-भिन्न देशों तथा धर्मों में अवतारवाद धार्मिक नियम के समान आदर और श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। पूर्वी और पश्चिमी धर्मों में यह सामान्यत: मान्य तथ्य के रूप में स्वीकृत किया गया है। .

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अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र

अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र (Great Hymn to the Aten) बाइबल के पूर्वविधान (Old Testament) में १०४वें स्तोत्र के रूप में मिलता है। श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अंग्रेजी नाटक

इब्सन के प्रचार ने अंग्रेजी नाटक को नई दिशा दी। उसके नाटकों की कुछ विशेषताएँ ये थीं- समाज और व्यक्ति की साधारण समस्याएँ; पुरानी नैतिकता की आलोचना; बाहरी संघर्षों के स्थान पर आंतरिक संघर्ष; रंगमंच पर यथार्थवाद; विवरणात्मक साज-सज्जा; स्वगत का बहिष्कार; बोलचाल की भाषा से निकटता; प्रतीकवाद। इब्सन के नाटक समस्या नाटक हैं। 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक नाटककारों पर इब्सन के अतिरिक्त चेखव का भी गहरा असर पड़ा। ऐसे नाटककारों में सबसे प्रमुख शॉ और गाल्सवर्दी के अतिरिक्त ग्रैनबिल बार्कर, सेंट जॉन हैंकिन, जॉन मेसफील्ड, सेंट जॉन अर्विन, आर्नल्ड बेनेट इत्यादि हैं। इस युग में कॉमेडी ऑव मैनर्स की परंपरा भी विकसित हुई है। 19वीं शताब्दी के अंत में ऑस्कर वाइल्ड ने इसको पुनरुज्जीवित किया था। 20वीं शताब्दी में इसके प्रमुख लेखकों में शॉ, मॉम, लांसडेल, सेंट अर्विन, मुनरो, नोएल काअर्ड, ट्रैवर्स, रैटिगन इत्यादि हैं। समस्या नाटकों की परंपरा भा आगे बढ़ी है। उनके लेखकों में सबसे प्रसिद्ध ओफ़ कैसी के अतिरिक्त शेरिफ, मिल्न, प्रीस्टले और जॉन व्हॉन ड्रटेन हैं। इस युग के ऐतिहासिक नाटककारों में सबसे प्रसिद्ध डिं्रकवाटर, बैक्स और जेम्स ब्रिडी हैं। काव्य नाटकों का विकास भी अनेक लेखकों ने किया है। उनमें स्टीफेन फिलिप्स, येट्स, मेसफील्ड, डिं्रकवाटर, बाम्ली, फ्लेकर, अबरक्रुंबी, टी.एस.

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अंग्रेजी शब्दकोशों का इतिहास

'लातिन' की शब्दसूचियों ने आधुनिक कोश-रचना-पद्धति का जिस प्रकार विकास किया, अंग्रेज कोशों के विकास क्रम में उसे देखा जा सकता है। आरंभ में इन शब्दार्थसूचियों का प्रधान विधान था क्लिष्ट 'लातिन' शब्दों का सरल 'लातिन' भाषा में अर्थ सूचित करना। धीरे-धीरे सुविधा के लिये रोमन भूमि से दूरस्थ पाठक अपनी भाषा में भी उन शब्दों का अर्थ लिख देते थे। 'ग्लाँसरी' और 'वोकैब्युलेरि' के अंग्रेजी भाषी विद्वानों की प्रवृत्ति में भी यह नई भावना जगी। इस नवचेतना के परिणामस्वरूप 'लातिन' शब्दों का अंग्रेजी में अर्थनिर्देश करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। इस क्रम में लैटिन-अंगेजी कोश का आरंभिक रूप सामने आया। दसवीं शताब्दी में ही 'आक्सफोर्ड' के निकटवर्ती स्थान के एक विद्वान धर्मपीठाधीश 'एफ्रिक' ने 'लैटिन' व्याकरण का एक ग्रंथ बनाया था। और उसी के साथ वर्गीकृत 'लातिन' शब्दों का एक 'लैटिन-इंग्लिश', लघुकोश भी जोड दिया था। संभवत: उक्त ढंग के कोशों में यह प्रथम था। १०६६ ई० से लेकर १४०० ई० के बीच की कोशोत्मक शब्दसूचियों को एकत्र करते हुए 'राइट ब्यूलर' ने ऐसी दो शब्दसूचिय़ाँ उपस्थित की है। इनमें भी एक १२ वीं शताब्दी की है। वह पूर्ववर्ती शब्दसूचियों की प्रतिलिपि मात्र हैं। दूसरी शब्दसूची में 'लातिन' तथा अन्य भाषाओं के शब्द हैं। इंग्लैड में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना के उद्बुद्ध होने पर अंग्रेजी राजभाषा हुई। शिक्षा-संस्थाओं में फ्रांसीसी के स्थान पर अंग्रेजी का पठन-पाठन बढा। अंग्रेजी में लेखकों की संख्या भी अधिक होने लगी। फलत: अंग्रेजी के शब्दकोश की आवश्यकता भी बढ गई। १५वीं शती में 'राइट व्यूलर' ने छह महत्त्वपूर्ण पुरानी शब्दार्थसूचियों को मुद्रित किया। अधिकत: विषयगत वर्गों के आधार पर वे बनाई गई थीं। केवल एक शब्दसूची ऐसी थी जिसमें अकारादिक्रम से २५००० शब्दों का संकलन किया गया था। ऐम० ऐम० मैथ्यू ने अंग्रजी कोशों का सर्वेक्षण नामक अपनी रचना में १५वी शती के दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का उल्लेख किया़ है। प्रथम 'ओरट्स' का 'वोकाब्युलरियम्' था जो पूर्व 'मेड्डला' व्याकरण पर आधारित था। दूसरा था 'ग्लाफेड्स' या 'ज्याफरी' व्याकरण पर आधारित इंग्लिश—लैटिन कोश। इसका पिंसिन द्वारा १४४० ई० में प्रथम मुद्रित संस्करण प्रकाशित किया गया। उसका नाम था प्रोंपटोरियम परव्यूलोरमं सिनक्लोरिकोरं (अर्थात् बच्चों का भांडार या संग्रहालय)। इसका महत्व— ९—१० हजार शब्दों के संग्रह के कारण न होकर इसलिये था इसके द्वारा शब्दसूचि के रचनाविद्यान में नए प्रयोग का संकेत दिखाई पडा़। इसमें संज्ञा और क्रिया के मुख्यांश से व्यतिरिक्त अन्य प्रकार के शब्द (अन्य पार्टस् आँव स्पीच) भी संकलित है। यह 'मेड्डला ग्रामाटिसिज' कदाचित् प्रथम 'लातीन—अंग्रेजी' शब्दकोश था। लोकप्रियता का प्रमाण मिलता है— उसकी बहुत सी उपलब्ध प्रतिलिपियो के कारण। १४८३ ईं में 'वेथोलिअम ऐंग्लिवन् ' नामक शब्दकोश संकलित हुआ था। परंतु महत्त्वपूर्ण कोश होकर भी पूर्वाक्त कोश के समान वह लोकप्रिय न हो सका। इसके पश्चात् १६वी शताब्दी में 'लैटिन-अँग्रँजी' और 'अंग्रेजी-लैटिन' की अनेक शब्दसूचियाँ निर्मित एवं प्रकाशित हुई। 'सर टामस ईलियट' की डिक्शनरी ऐसा सर्वप्रथम ग्रंथ है जिसमें 'डिक्शनरी' अभिधान का अंग्रेजी में प्रयोग मिलता है। मूल शब्द लातिन का 'डिक्शनरियम्' है जिसका अर्थ था कथन (सेइंग)। पर वैयाकरणों द्वारा 'कोश' शब्द के अर्थ में उसका प्रयोग होने लगा था। इससे पूर्व—आरं- भिक शब्दसूचियों और कोशों के लिये अनेक नाम प्रचलित थे, यथा— 'नामिनल', 'नेमबुक', मेडुला ग्रामेटिक्स, 'दी आर्टस् वोकाब्युलेरियम्' गार्डन आफ़ वडंस, दि प्रोम्पटारियम पोरवोरम, कैथोलिकं ऐग्लिकन्, मैनुअलस् वोकैब्युरम्, हैंडफुल आव वोकैब्युलरियस्, 'दि एबेसेडेरियम्, बिबलोथिका, एल्बारिया, लाइब्रेरी, दी टेबुल अल्फाबेटिकल, दी ट्रेजरी या ट्रेजरर्स ऑफ वर्डस् 'दि इंग्लिश एक्सपोजिटर', दि गाइड टु दि टंग्स्, दि ग्लासोग्राफिया, दि न्यू वल्डर्स, आव वर्डस् 'दि इटिमालाँजिकम्' दि फाइलाँलाँजिकम्' आदि। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के अनुसार १२२४ ईं में कंठस्थ की जानेवाली 'लातिन' शब्दसूची के हस्तलेख के लिये जान गारलैंडिया ने इस (डिक्शनरी) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया था। परंतु लगभग तीन शताब्दी बाद सर टामस् ईलियट द्वारा प्रयुक्त यह शब्द क्यों और कैसे लोकप्रिय हो उठा यह कहना सरल नहीं है। १६वीं शती में पूर्वार्ध के व्यतीत होते होते यह विचार स्विकृत होने लगा कि शब्दकोश में शब्दार्थ देखने की पद्धति सुविधापूर्ण और सरल होनी चाहिए। इस दृष्टि से कोश के लिये वर्णमाला क्रम से शब्दानुक्रम की व्यवस्था उपयुक्ततर मानी गई। पश्चिम की इस पद्धति को महत्त्वपूर्ण उपलब्धि और कोशविद्या के नूतन विकास की नई मोड़ माना जा सकता है। एकाक्षर और विश्लेषणात्मक पदरचना वाली चीनी भाषा में एकाक्षर शब्द ही होते हैं। प्रत्येक 'सिलेबुल' स्वतंत्र, सार्थक ज्ञौर विश्लिष्ट होता है। वहाँ के पुराने कोश अर्थानुसार तथा उच्चारण- मूलक पद्धति पर बने हैं। वैसी भाषा के कोशों में उच्चारणानुसारी शब्दों का ढूँढना अत्यंत दुष्कर होता था। परंतु योरप की भाषाओं में अकारादि क्रमानुसारी एक नई दिशा की ओर शब्दकोशरचना का संकेत हुआ। पूर्वोक्त प्रोम्पटोरियम के अनंतर १५१९ में प्रकाशित विलियम हार्नन का शब्दकोश अंग्रेजी लैटिन कोशों में उल्लेख्य है। इसमें कहावतों और सूक्तियों का प्राचीन पद्धति पर संग्रह था। मुद्रित कोशों में इसका अपना स्थान था। १५७३ ई० में रिचार्ड हाउलेट का 'एबेसेडेरियम' और 'जाँन वारेट का लाइब्रेरिया—दो कोश प्रकाशित हुए। प्रथम में लैटिन पर्याय के साथ साथ अंग्रैजी में अर्थ कथन होने से अंग्रेजी कोशों में—विशेषत: प्राचीन काल के—इसे उत्तम और अपने ढंग का महत्वशाली कोश माना गया है। इससे भी पूर्व— ई० १५७० में 'पीटर लेविस' ने एक 'इंगलिश राइमिंग डिक्शनरी' बनाई थी जिसमें अंग्रेजी शब्दों के साथ लैटिन शब्द भी हैं और सभी खास शब्द तुकांत रूप में रखे गए थे। हेनरी अष्टम की बहन, मेरी ट्युडर, जब फ्रांस के १२वें लुई की पत्नी बनी तब उन्हें फ्रांसीसी भाषा पढा़ने के लिये जान पाल ग्रे ने एक ग्रंथ बनाया जिसमें फ्रांसीसी के साथ साथ अंग्रेजी शब्द भी थे। १४३० ई० में यह प्रकाशित हुआ। इस कोश को आधुनिक फ्रांसीसी और आधुनिक अंग्रेजी भाषाओं का प्राचीनतम कोश कहा जा सकता है। गाइल्स दु गेज़ ने लेडी मेरी को फ्रांसीसी पढा़ने के लिये १५२७ में व्याकरणरचना की जो पुस्तक प्रकाशित की थी उसमें भी चुने हुए अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्दों का संग्रह जोड़ दिया गया था। रिचर्ड हाउलेट का एबेसेडिरियम १५५२ ई० में प्रकाशित हुआ; जिसे सर्वप्रथम अंग्रेजी (+ लैटिन) 'डिक्शनरी' कह सकते हैं। जान वारेट का कोश (एल्बरिया) भी १५७३ ई० में प्रकाशित हुआ। रिचार्ड के कोश में अंग्रेजी भाषा द्वारा अर्थव्याख्या की गई है। अत: उसे प्रथम अंग्रेजी कोश— लैटिन अंग्रेजी डिक्शनरी कह सकते हैं। १६वीं शताब्दी में ही (१५९९ ई० में) रिचार्डस परसिवाल ने स्पेनिश अंग्रेजी—कोश मुद्रित कराया था। पलोरियो ने भी दि वर्ल्ड्स आव दि वर्डस् नाम से एक इताली—अग्रेजी—कोश बनाकर मुद्रित किया। उसका परिवर्धित संस्करण १६११ ई० में प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष रैंडल काटग्रेव का प्रसिद्ध फ्रेंच—अंग्रेजी—कोश भी प्रकाशित हुआ जिसके अति लोकप्रिय हो जाने के कारण बाद में अनेक संस्करण छपे। केवल अंग्रेजीकोश के अभाववश 'पलोरियो' और 'काटग्रेव' के अंग्रेजी शब्दसंग्रही का अत्यंत महत्व माना गया और 'शेक्सपियर' के युग की भाषा समझने—समझाने में वह बडा़ उपयोगी सिद्ध हुआ। इसी के आस-पास 'बाइबिल' का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाश में आया। १७वी० शताब्दी के प्रथम चरण (१६१० ई० में) में जाँन मिनश्यू ने 'दि गाइड इंटु इग्स ' नामक एक नानाभाषी कोश का निर्माण किया जिसमें अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य दस भाषाओं का (वेल्स लो डच्, हाई डच्, फ्रांसीसी, इताली, पूर्तगाली, स्पेनी लातिन, यूनानी और हिंब्रु शब्द दिए गए थे)। इन कोशों में अंग्रेजी कोश के लिये आवश्यक और उपयोगी सामग्री के रहने पर भी केवल अंग्रेजी के एकभाषी कोश की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। प्राचीन अध्ययन के प्रति पुनर्जागर्ति के कारण अंग्रेजी में लातिन, यूनानी, हिब्रू, अरबी आदि के सहस्रों शब्द और प्रयोग प्रचारित होने लगे थे। ये प्रयोग 'इंक हार्डस टमँस्' कहे जाते थे। वे परंपरया आगत नहीं थे। इन क्लिष्ट शब्दों की वर्तनी और कभी कभी अर्थ बतानेवाले ग्रंथों की तत्कालीन अनिवार्य आवश्यकता उठ खडी हुई थी। मुख्यतः इसी की पूर्ति के लिये— न कि अपनी भाषा के शब्दों और मुहावरों का परिचय कराने की भावना से— आरभिक अंग्रेजी- कोशों के निर्माण की कदाचित् मुख्य प्रेरणा मिली। सर्वप्रथम 'टेबुल अल्फावेटिकल आव हार्ड वर्डस' शीर्षक एक लघु पुस्तक राबर्ट काउड ने प्रकाशित की जो १२० पृष्ठों में रचित थी। इसमें तीन हजार शब्दों की शुद्ध वतंनी और अर्थों का निर्देश किया गया था। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि आठ वर्षों में इसके तीन संस्करण प्रकाशित करने पडे़। १६१६ ई० में 'ऐन इंगलिश एक्सपोजिटर' नामक — जान बुलाकर का — कोश प्रकाशित हुआ जिनके न जाने कितने संस्करण मुद्रित किए गए। १६२३ ई० में 'एच० सी० जेट' द्वारा रचित 'इंगलिश डिक्शनरी' के नाम से एक कोशग्रथ प्रकाशित हुआ जिसकी रचना से प्रसन्न होकर प्रशंसा में 'जाँन फो़ड' ने प्रमाणपत्र भेजा था। तीन भागों में विभक्त इस कोश की निर्माणपद्धति कुछ विचित्र सी लगती है। इसकी विभाजनपद्धति को देखकर 'यास्क' के निरुक्त में निर्दिष्ट नैगमकांड, नैघंटुककांड और दैबतकाडों में लक्षित वर्गानुसारी पद्धति की स्मृति हो आती है। प्रथम अंश से क्लिष्ट शब्द सामान्य भाषा में अर्थों के साथ दिए गए हैं। द्वितीय अंश में सामान्य शब्दों के अर्थों का क्लिष्ट पर्यायों द्वारा निर्देश हुआ है। देवी देवताओं, नरनारियो, लड़के लडकियों, दैत्वों—राक्षमों, पशु पक्षियों आदि की व्याख्या द्वारा तीसरे भाग के इस अंश में वर्णन किया गया। इसमें शास्त्रीय, ऐतिहासिक, पौराणिक तथा अलौकिक शक्तिसंपन्न व्यक्तियों आदि से संबद्ध कल्पनाआ का भी अच्छा सकलन है। २० साल परिश्रम करके 'ग्लासोग्राफया' नामक एक ऐसे कोश का 'टामस क्लाउंडर ने संग्रह किया था जिसमें यूनानी, लातिन, हिब्रू आदि के उन शब्दों की व्याख्या मिलती है जिनका प्रयोग उस समय की परिनिष्ठित अंग्रजी मे होने लगा था। एस० सी० काकरमैन का कोश भी बडा़ लोकप्रिय था और उसके जाने कितने संस्करण हुए। प्रसिद्ध कवि मिल्टन के भतीजे एडवर्ड फिलिप्स ने १५४५ ई० में दि न्यू वर्ल्ड आव इंगलिश बर्डस, या 'ए जेनरल डिकश्नरी' नामक लोकप्रिय कोश का निर्माण किया था। १६६० तक के प्रकाशित कोशों की निर्माण संबंधी आवश्यकताओं में कदाचित् तात्कालिक प्रयोजन का सर्वाधिक महत्व था विशिष्ट महिलाओं यो अध्ययनशील विदुषियों को सहायता देना। बाद में चलकर कोशनिर्माण का इस प्ररणा का निर्देश नहीं मिलता। १७०२ ई० से १७०७ तेक 'लासोग्राफिया' के अनेक संस्करण छपे। एडवर्ड फिलाप्स का काश भी बाद क संस्करणों में अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया। एशिसाकोत्स और एडवर्ड पार्कर के कोश भी इसी समय के आसपास छपे जिनका पुनर्मुद्रण बीसवीं शती तक भी होता रहा। जाँन करेन्सी ने भी 'डिक्शनेरियम एंग्लोब्रिटेनिकन' या 'जनरल इंग्लिश डिक्शनरी' निर्मित की जिसमें पुराने (प्रयोगलुप्त) शब्दों की पर्याप्त संख्या थी। .

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अंग्रेजी साहित्य

अंग्रेजी साहित्य के प्राचीन एवं अर्वाचीन काल कई आयामों में विभक्त किए जा सकते हैं। यह विभाजन केवल अध्ययन की सुविधा के लिए किया जाता है; इससे अंग्रेजी साहित्य प्रवाह को अक्षुण्णता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। प्राचीन युग के अंग्रेजी साहित्य के तीन स्पष्ट आयाम है: ऐंग्लो-सैक्सन; नार्मन विजय से चॉसर तक; चॉसर से अंग्रेजी पुनर्जागरण काल तक। .

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अंग्रेजी गद्य

अंग्रेजी गद्य ने अंग्रेजी कविता, नाटक और उपन्यास के समान ही अंग्रेजी साहित्य को समृद्ध किया है। बाइबिल के अनेक वाक्य अंग्रेजी राष्ट्र के मानस पर सदा के लिए गहरे अंकित हो गए हैं। इसी प्रकार शेक्सपियर, मिल्टन, गिबन, जॉन्सन, न्यूमैन, कार्लाइल और रस्किन के वाक्य अंग्रेज जाति को स्मृति में गूंजते हैं। अंग्रेजी गद्य अनेक साहित्यिक विधाओं द्वारा समृद्ध हुआ है। इनमें उपन्यास, कहानी और नाटक के अतिरिक्त निबंध, जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, इतिहास, दर्शन और विज्ञान भी सम्मिलित हैं। अंग्रेजी गद्य का संगीत अनेक शताब्दियों से पाठकों को मोहता रहा है। यह संगीत बहुधा रोमांसवादी और भावना प्रधान रहा है। इस गद्य में काव्य का गुण प्रचुर मात्रा में मिलता है। अंग्रेजी गद्य की तुलना में फ्रेंच गद्य की गति अधिक संतुलित और संयत रही है। एक आलोचक का कहना है कि कविता भावना को भाषा देती है, किंतु गद्य विवेक और बुद्धि की वाणी है। अंग्रेजी गद्य ऐंग्लो-सैक्सन साहित्य की परंपरा का ही विकास है। मध्य युग के बीड (672-735) अंग्रेजी गद्य के पितामह कहे जा सकते हैं। बीड की ‘एक्सेज़िएस्टिकल हिस्ट्री’ जूलियस सीज़र के आक्रमण से लेकर 731 ई. तक के इंग्लैंड का प्राय: आठ सौ वर्षों का इतिहास प्रस्तुत करती है। अंग्रेजी गद्य का सर्वप्रथम महत्त्वपूर्ण ग्रंथ सर जॉन मेंडेविल की यात्राएँ हैं। यात्रा वर्णन के रूप में यह पुस्तक वास्तव में काल्पनिक गाथा है। सन् 1377 में मूल फ्रांसीसी से अनूदित होकर यह अंग्रेजी में प्रकाशित हुई। अंग्रेजी कविता के जनक चॉसर (1340-1400) का गद्य साहित्य भी परिमाण में काफी है। उनकी कैटरबरी टेल्स में दो कहानियाँ गद्य में लिखी है। अंग्रेजी गद्य को विक्लिफ (1324-1384) की रचनाओं से बहुत प्रेरणा मिली। विक्लिफ अंधविश्वासों पर कठोर आघात करता है। उसने सर्वप्रथम बाइबिल का सन् 1611 का विख्यात संस्करण तैयार हुआ। विक्लिफ धर्म के क्षेत्र में स्वतंत्र विचारक था। उसके गद्य में बड़ी शक्ति है। 15वीं शताब्दी तक इंग्लैंड के लेखक लातीनी गद्य में ही लिखना पसंद करते थे और शक्ति तथा प्रतिभा से संपन्न कम गद्य अंग्रेजी में लिखा गया। ऐसे लेखकों में सर जॉन फॉर्टेस्क्यू (1394-1476) का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने अंग्रेजी विधान की प्रशंसा में एक पुस्तक ‘दि गवर्नेन्स ऑव इंग्लैंड’ लिखी। अंग्रेजी गद्य के इतिहास में कैक्स्टन (1421-91) का नाम विशेष महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 1476 में मुद्रण कार्य आरंभ किया और अंग्रेजी गद्य को स्थानीय बोलियों के प्रभाव से मुक्त करके एक निश्चित रूप देने में बड़ी मदद की। कैक्स्टन ने मध्य युग के अनेक रोमांस अंग्रेजी गद्य में अनुवाद करके प्रकाशित किए। उन्होंने फ्रेंच गद्य को अपना आदर्श बनाया और अंग्रेजी गद्य के विकास में बड़ा हिस्सा लिया। कैक्स्टन के महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों में सर टॉमस मैलोरी का ‘मार्त द आर्थर’भी था। मैलोली की पुस्तक अंग्रेजी गद्य के इतिहास में एक स्मरणीय मील स्तंभ है। अंग्रेजी पुनर्जागरण के पहले बड़े लेखक सर टॉमस मोर (1478-1535) है। उनकी पुस्तक युटोपिया विश्वविख्यात है, किंतु दुर्भाग्य से इस पुस्तक को उन्होंने लातीनी में लिखा। अंग्रेजी में उनकी केवल कुछ मामूली रचनाएँ हैं। उन्हीं के बाद इलियट, चीक, एैस्कम और विल्सन ने अपनी शिक्षा संबंधी पुस्तकें लिखीं। विलियम टिंडेल (1484-1536) ने सन् 1522 से बाइबिल का अनुवाद अंग्रेजी में करना शु डिग्री किया। इस प्रशंसनीय कार्य के बदले टिंडेल को निर्वासन और मत्युदंड मिला। एलिज़ाबेथ के युग का गद्य कविता के स्वर का ही है। इसके उदाहरण लिलि (1554-1606) और सर फिलिप सिडनी (1554-86) की रचनाओं में हो पाते हैं। लिली की ‘यूफुइस’और सिडनी की ‘आर्केडिया’काव्य के गुणों से समन्वित रचनाएं हैं। सिडनी की ‘डिफेंस ऑव पोएजी’अंग्रेजी आलोचनाओं की पहली महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। अंग्रेजी गद्य के विकास में अगला कदम ग्रीन, लॉज, नैश, डैलूनी आदि के उपन्यासों का प्रकाशन है। इन लेखकों ने आत्मकथाएँ और अनेक विवादपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं। उदाहरण के लिए ग्रीन के ‘कन्फेशंस’ का उल्लेख हो सकता है। ‘ओबरवरी’और अर्ल नाम के लेखकों ने चारित्रिक स्केच लिखे, जिसकी प्रेरणा उन्हें ग्रीक लेखक थियोफ्रॉस्तस से मिली। अंग्रेजी गद्य साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंश हमें एलिज़ाबेथकालीन नाटकों में मिलता है। भावना के गहरे क्षणों में शेक्सपियर के पात्र गद्य में बोलने लगते हैं। ग्रीन, जॉन्सन, मालों आदि के नाम भी अंग्रेजी गद्य के इतिहास में महत्त्वपूर्ण है। अंग्रेजी गद्य के महान लेखकों में पहला बड़ा नाम रिचर्ड हूकर (1554-1600) का है। उनकी पुस्तक ‘दि लॉज ऑव एक्लेजिएस्टिकल पॉलिटी’अंग्रेजी गद्य की उन्नायक हैं। इसी समय (1611) बाइबिल का सुप्रसिद्ध अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ। बाइबिल की भाषा अंग्रेजी गद्य के अनुपम साँचों में ढालती है। वास्तव में यह गद्य काव्य के संगीत से अनुप्राणित है। प्रांसिस बेकन (1561-1626) अंग्रेजी निबंध के जनक तथा इतिहास के दर्शन के गंभीर लेखक थे। उनकी रचनाओं में ‘दि ऐडवांस्मेंट ऑव लर्निंग’, ‘दि न्यू ऐटलैंटिस’, ‘हेनरी सेवेंथ’, ‘दि एसेज़ नोवं ओगनिम’आदि सुप्रसिद्ध है। बेकन की भाषा ठोस, गंभीर और सूत्र शैली की है। रिचर्ड बर्टन (1576-1640) की पुस्तक ‘दि एनाटॉमी ऑव मेलैकली’अंग्रेजी गद्य के इतिहास में एक विख्यात रचना है। इसका पाडित्य अपूर्व है और एक गहरी उदासी पुस्तक भर में छाई रहती है। इस युग के एक महान गद्य लेखक ‘सर टॉमस ब्राउन’(1605-82) है। इनके गद्य का संगीत पाठकों को शताब्दियों से मुग्ध करता रहा है। इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाओं में ‘रिलीजिओ मेडिसी’और ‘हाइड्रोटैफिया’उल्लेखनीय है। जैरेमी टेलर (1613-77) प्रसिद्ध धर्म शिक्षक और वक्ता थे। उनकी उपमाएँ बहुत सुंदर होती थीं, उनका गद्य कल्पना और भावना से अनुरंजित है। उनकी पुस्तकों में ‘होली लिविंग’और ‘होली डाइंग’प्रसिद्ध है। इस काल के लेखकों में मिल्टन का जन्म अग्रगण्य है। तीस से लेकर पचास वर्ष की आयु तक मिल्टन ने केवल गद्य लिखा और तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक विवादों में जमकर भाग लिया। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एरोपाजिटिका’में वे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रश्न को ऊँचे धरातल पर उठाते हैं और आज भी उनके विचारों में सत्य की गूँज है। मिल्टन के गद्य में शक्ति और ओज का अद्भुत संयोग है। 17वीं शताब्दी के गद्य लेखकों में अन्य उल्लेखनीय नाम फुलर (1608-61) और वाल्टन (1593-1683) के हैं। फुलर धार्मिक विषयों पर लिखते थे। उनकी पुस्तक, ‘दि बर्दीज ऑव इंग्लैंड’प्रसिद्ध है। वाल्टन की पुस्तक, ‘दि कंप्लीट ऐंग्लर’अंग्रेजी साहित्य की अमर रचनाओं में से है। ड्राइडन (1631-1700) अंग्रेजी के प्रमुख गद्यकारों में थे। उनकी आलोचना शैली सुलझी हुई और सुव्यवस्थित थी। उनकी गद्य शैली भी फ्रेंच परंपरा के निकट है। वह चिंतन को सहज और तर्कसंगत अभिव्यक्ति देते हैं। ड्राइडन की भूमिकाओं के अतिरिक्त उनकी पुस्तक, ‘एसे ऑव ड्रैमेटिक पोएज़ी’सुप्रसिद्ध है। हॉब्स (1588-1679) के राजनीतिक विचारों का ऐतिहासिक महत्व है और उनकी पुस्तक ‘दि लेवायथान’अंग्रेजी भाषा की एक सुप्रसिद्ध रचना है। पेपीज़ (1632-1704) और एवलिन (1632-1706) की डायरियाँ अंग्रेजी साहित्य की निधि हैं। हॉब्स के समान ही लॉक (1623-1704) के राजनीतिक विचारों का भी ऐतिहासिक महत्व बहुत है। 18वीं शताब्दी में अंग्रेजी गद्य जीवन की गति के सबसे अधिक निकट आया। इसका कारण फ्रेंच साहित्य का बढ़ता हुआ प्रभाव था। स्विफ़्ट (1667-1745) अपनी अमर कृति ‘गुलिबर्ग ट्रैवेल्स’में अपने समय के मानवीय व्यापारों पर कठोर व्यंग करते हैं। उनके गद्य में बड़ा ओज और बल है। उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में ‘ए टेल ऑव ए टब’और ‘दि बैटिल ऑव दि बुक्स’भी उल्लेखनीय है। 18वीं शताब्दी का साहित्य उठते हुए मध्य वर्ग की भावनाओं को व्यक्त करता है और इसके गद्य की शैली भी इस वर्ग की आवश्यकताओं के अनुरूप सरल और स्पष्ट है। इस युग के सफल गद्यकारों में डिफो, एडिसन और स्टील हैं। डिंफो (1660-1731) का उपन्यास ‘रॉबिन्सन कूसो’अंग्रेजी भाषा की विशेष लोकप्रिय रचनाओं में से हैं। उनके अन्य उपन्यास ‘मॉल फ्लैंडर्स’, ‘ए जर्नल ऑव दि प्लेग ईगर’आदि यथार्थवादी शैली में ढले हैं। एडिसन (1672-1719) और स्टील (1672-1729) मुख्यत: निबंधकार है। उन्होंने ‘दि टैटलर’ और ‘दि स्पेक्टेटर’ नाम के पत्र निकाल कर अंग्रेजी साहित्य में उच्च कोटि की पत्रकारिता की भी नींव रखी। अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में डॉ॰ जॉन्सन (1709-84) का नाम अविस्मरणीय रहेगा। वे इतिहासकार, निबंधकार, आलोचक, कवि और उपन्यासकार थे। उन्होंने एक कोश की भी रचना की। इनकी गद्य कृतियों में ‘लाइव्ज़ ऑव दि पोएट्स’, ‘रासेलस’और ‘प्रीफेसेज़ टु शेक्सपियर’ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जॉन्सन की बातचीत भी, जो बॉजवेल लिखित जीवनी में संकलित है, उनके लेखन से कम महत्व की नहीं होती थी। 18वीं शताब्दी में अंग्रेजी उपन्यास का अपूर्व विकास हुआ। इस काल के उपन्यासकारों में गोल्डस्मिथ (1728-1774) भी थे जिन्होंने जल के समान तरल गति का गद्य लिखा और अनेक सुंदर निबंधों की रचना की। इनकी रचनाओं में ‘दि सिटिज़न ऑव दि वर्ल्ड’, ‘दि विकार ऑव बेकफील्ड’आदि सुविख्यात है। इतिहासकारों में हयूम, रॉबर्टसन और गिबन के नाम महत्त्वपूर्ण है। गिबन (1737-1784) अंग्रेजी गद्य के इतिहास के अमर हैं। शैली और निर्माण शक्ति की दृष्टि से उनका ग्रंथ ‘डिक्लाइन ऐंड फ़ाल ऑव दि रोमन एम्पायर’ एक स्मरणीय कृति है। इसी श्रेणी में प्रसिद्ध विचारक और वक्ता वर्क (1729-1797) का नाम भी आता है। उनके गद्य में बड़ी प्रवहमान शक्ति थी। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘रिफ्लेक्शंस ऑन दि फ्रेंच रिवल्यूशन’है। फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित रोमैंटिक साहित्य में मूलत: कविता प्रमुख है। रोमैंटिक कवियों ने अपने कृतित्व के बचाव में भूमिकाएँ आदि लिखीं। उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण वक्तव्य वर्ड सवर्थ का ‘प्रीफेस टु दि लिरिकल बैलड्स’, कोलरिज की ‘बायोग्रैफिया लिटरेरिया’और शेली की पुस्तक ‘ए डिफ़ेंस ऑव पोएट्री’है। रोमैंटिक युग का गद्य भावना और कल्पना से अनुरंजित है। समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र पर जेरेमी बेंथम, रिकार्डो और एडस स्मिथ ने ग्रंथ लिखे। 19वीं शताब्दी में ‘एडिनबरा रिव्यू’, ‘क्वार्टर्ली’और ‘ब्लैकबुड’ के समान पत्रिकाओं का जन्म हुआ जिन्होंने गद्य साहित्य के बहुमुखी विकास में मदद की। 19वीं शताब्दी के प्रमुख निबंधकारों और आलोचकों में लैंब, हैज़लिट, ली हंट और डी क्विंसी के नाम अग्रगण्य है। लैंब (1775-1834) अंग्रेजी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ निबंधकार हैं। उनके निबंध ‘एसेज़ ऑव इलिया’के नाम से प्रकाशित हुए। हैज़लिट (1778-1830) उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। डी क्विंसी (1785-1859) की पुस्तक ‘कन्फेशंस ऑव ऐन ओपियम ईटर’ अंग्रेजी साहित्य का अनुपम रत्न है। विक्टोरिया युग के प्रारंभ से अंग्रेजी साहित्य अधिक संतुलन और संयम की ओर अग्रसर होता है और गद्य की शैली भी अधिक संयत हो जाती है, यद्यपि कार्लाइल और रस्किन के से गद्यकारों की रचना में हम रोमांटिक शैली का प्रभाव फिर देखते हैं। मिल (1806-1873) ने अनेक ग्रंथ लिखकर दार्शनिक गद्य को समृद्ध किया। इतिहासकारों में मैकाले (1800-1859) का गद्य बहुरंगी और सबल था। उनके ऐतिहासिक निबंध बहुत ही लोकप्रिय हैं। साहित्यालोचन के क्षेत्र में मैथ्यू आर्नल्ड (1822-88) का कार्य विशेष महत्व का है। आर्नल्ड का चिंतन सुस्पष्ट था और यही स्पष्टता उनकी गद्य शैली की भी विशेषता है। विचारों के क्षेत्र में भी डारविन, हक्सले और हर्बर्ट स्पैंसर की कृतियाँ अंग्रेजी गद्य को महत्त्वपूर्ण देन है। 19वीं शताब्दी के गद्यकारों में कार्लाइल, न्यूमैन और रस्किन का उल्लेख अनिवार्य है। इनके लेखन में हमें अंग्रेजी गद्य की सर्वोच्च उड़ानें मिलती हैं। कार्लाइल (1795-1881) इतिहासकार और विचारक थे। उनके ग्रंथ ‘दि फ्रेंच रिवल्यूशन, पास्ट ऐंड प्रेज़ंट, हिरोज़ ऐंड हिरो वर्शिप’अंग्रेजी साहित्य के उत्कृष्ट नमूने हैं। उनकी आत्मकथा अंग्रेजी गद्य का उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत करती है। रस्किन कलात्मक और सामाजिक प्रश्नों पर विचार करते हैं। उनकी कृतियों में ‘मॉडर्न पेंटर्स’, ‘दि सेविन लैप्स ऑव आर्किटेक्चर’, ‘दि स्टोन्स ऑव वनिस अंटू दिस लास्ट’, आदि विख्यात है। सन् 1890 के लगभग अंग्रेजी साहित्य एक नया मोड़ लेता है। इस युग के पितामह पेटर (1839-94) थे। उनके शिष्य ऑस्कर वाइल्ड (1856-1900) ने कलावाद के सिद्धांत को विकसित किया। उनका गद्य सुंदर और भड़कीला था और उनके अनेक वाक्य अविस्मरणीय होते थे। इस युग के लेखक इतिहास में ह्रासवादी कहे जाते हैं। आयरिश गद्य के जनक येट्स (1865-1939) थे। उनका गद्य अनुपम साँचों में ढला है। उनके अनुगामी सिंज की देन भी महत्त्वपूर्ण है। नाटक के क्षेत्र में इन दोनों का बड़ा महत्व है। येट्स उच्च कोटि के कवि और चिंतक भी थे। 20वीं शताब्दी युद्ध, आर्थिक संकट और विद्रोही विचारधाराओं की शताब्दी है। विद्रोही स्वरों में सबसे सशक्त स्वर इस युग के प्रमुख नाटककार बर्नाड शा (1856-1950) का था। शा और वेल्स (1866-1946) दोनों को ही समाजवादी कहा गया है। इनके विपरीत चेस्टरटन, (1874-1936) और बेलॉक (1870-1953) वैज्ञानिक दर्शन के विरुद्ध खड़े हुए। वे दोनों ही उच्च कोटि के निबंधकार और आलोचक थे। आधुनिक अंग्रेजी गद्य अनेक दिशाओं में विकसित हो रहा है। उपन्यास, नाटक, आलोचना, निबंध, जीवनी, विविध साहित्य, विज्ञान और दर्शन सभी क्षेत्रों में हम जागृति और प्रगति के लक्षण देखते हैं। लिटन स्ट्रैची (1880-1932) के समान जीवनी लेखक और टी.एस.

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अंक विद्या

अनेक प्रणालियों, परम्पराओं (tradition) या विश्वासों (belief) में अंक विद्या, अंकों और भौतिक वस्तुओं या जीवित वस्तुओं के बीच एक रहस्यवाद (mystical) या गूढ (esoteric) सम्बन्ध है। प्रारंभिक गणितज्ञों जैसे पाइथागोरस के बीच अंक विद्या और अंकों से सम्बंधित शकुन लोकप्रिय थे, परन्तु अब इन्हें गणित का एक भाग नहीं माना जाता और आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा इन्हे छद्म गणित (pseudomathematics) की मान्यता दी जाती है। यह उसी तरह है जैसे ज्योतिष विद्या में से खगोल विद्या और रसविद्या (alchemy) से रसायन शास्त्र का ऐतिहासिक विकास है। आज, अंक विद्या को बहुत बार अदृश्य (occult) के साथ-साथ ज्योतिष विद्या और इसके जैसे शकुन विचारों (divinatory) की कलाओं से जोड़ा जाता है। इस शब्द को उनके लोगों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है जो कुछ प्रेक्षकों के विचार में, अंक पद्धति पर ज्यादा विश्वास करते हैं, तब भी यदि वे लोग परम्परागत अंक विद्या को व्यव्हार में नहीं लाते। उदाहरण के लिए, उनकी १९९७ की पुस्तक अंक विद्या; या पाइथागोरस ने क्या गढ़ा, गणितज्ञ अंडरवुड डुडले (Underwood Dudley) ने शेयर बाजार (stock market) विश्लेषण के एलिअट के तरंग सिद्धांत (Elliott wave principle) के प्रयोगकर्ताओं की चर्चा करने के लिए इस शब्द का उपयोग किया है। .

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उत्पत्ति पुस्तक

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१४५६

1456 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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२३ अगस्त

23 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 235वॉ (लीप वर्ष में 236 वॉ) दिन है। साल में अभी और 130 दिन बाकी है। .

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