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बहुपद

सूची बहुपद

7 घात वाले एक बहुपद का कार्तीय निरेशांक प्रणाली में ग्राफ प्रारंभिक बीजगणित में धन (+) और ऋण (-) चिह्नों से संबंद्ध कई पदों के व्यंजक (expression) को बहुपद (Polynomial) कहते हैं, यथा (3a+2b-5c).

27 संबंधों: टेलर श्रेणी, डायोफैंटीय समीकरण, त्रिपदी, द्विपद प्रमेय, द्विघात समीकरण, प्रागनुभविक संख्या, बहुपद समीकरणों के सिद्धान्त, बीजगणित, बीजगणित का मौलिक प्रमेय, बीजीय फलन, बीजीय समीकरण, बीजीय संख्या, रुंग परिघटना, लांबिक बहुपद, लजान्द्र बहुपद, सतत फलन, विभाजन (गणित), व्यूहों की सूची, गणित का इतिहास, गुणनखण्ड, गॉस नामकरण, आंशिक भिन्न, आंशिक अवकल समीकरण, अपरिमेय संख्या, अबीजीय फलन, अभिलक्षणिक बहुपद, अंतःसर्पी श्रेणी

टेलर श्रेणी

गणित में टेलर श्रेणी (Taylor series) एक श्रेणी है किसी फलन को अनन्त पदों के योग से निरूपित करती है। ये पद उस फलन के किसी बिन्दु पर अवकलों के मान से निकाले जाते हैं। इसे अंग्रेज गणितज्ञ ब्रूक टेलर ने १७७५ में दिया था। .

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डायोफैंटीय समीकरण

पूर्णांक भुजाओं वाले सभी समकोण त्रिभुज प्राप्त करना एक प्रकार से डायोफैंटीय समीकरण a^2+b^2.

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त्रिपदी

प्रारम्भिक बीजगणित के सन्दर्भ में त्रिपदी (trinomial) उस बहुपद को कहते हैं जो तीन पद वाला हो। जैसे: 21ab+c+3b और 37xyz+4y^3+z.

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द्विपद प्रमेय

गणित में द्विपद प्रमेय एक महत्वपूर्ण बीजगणितीय सूत्र है जो x + y प्रकार के द्विपद के किसी धन पूर्णांक घातांक का मान x एवं y के nवें घात के बहुपद के रूप में प्रदान करता है। अपने सामान्यीकृत (जनरलाइज्ड) रूप में द्विपद प्रमेय की गणना गणित के १०० महानतम प्रमेयों में होती है। .

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द्विघात समीकरण

वर्ग समीकरण x^2 -5 x + 6 .

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प्रागनुभविक संख्या

गणित में, प्रागनुभविक संख्या (transcendental number) उन संख्याओं को कहते हैं जो परिमेय गुणांकों वाले किसी भी अशून्य बहुपद समीकरण की मूल न हों। π (पाई) और e दो प्रमुख प्रागनुभविक संख्याएँ हैं। यह सिद्ध करना कि कोई दी हुई संख्या प्रागनुभविक है, आसान नहीं है। फिर भी प्रागनुभविक संख्याएँ विरल (rare) नहीं हैं। सभी वास्तविक प्रागनुभविक संख्याएँ अपरिमेय हैं जबकि सभी अपरिमेय संख्याएँ प्रागनुभविक नहीं होतीं। उदाहरण के लिए '2 का वर्गमूल' एक अपरिमेय संख्या है किन्तु प्रागनुभविक संख्या नहीं है क्योंकि यह बहुपद समीकरण x2 − 2 .

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बहुपद समीकरणों के सिद्धान्त

x के किसी n घातीय व्यंजक (इक्सप्रेशन) को शून्य के बराबर रखने पर प्राप्त समीकरण को n घात का बहुपद समीकरण (polynomial equation) कहते हैं। एक से अधिक राशियों में भी बहुपद समीकरण हो सकते हैं। जैसे - गणित के परम्परागत बीजगणित का एक बड़ा भाग समीकरण सिद्धान्त (Theory of equations) के रूप में अध्ययन किया/कराया जाता है। इसके अन्तर्गत बहुपद समीकरण के मूलों की प्रकृति का अध्ययन किया जाता है एवं इन मूलों को प्राप्त करने की विधियों एवं उससे सम्बन्धित समस्याओं का विवेचन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, बहुपद, बीजीय समीकरण, मूल निकालना एवं मैट्रिक्स एवं सारणिक का प्रयोग करके समीकरणों का हल निकालना शामिल हैं। विज्ञान एवं गणित की सभी शाखाओं में समीकरण सिद्धान्त का बहुत उपयोग होता है। .

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बीजगणित

बीजगणित (संस्कृत ग्रन्थ) भी देखें। ---- आर्यभट बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित के विकास के फलस्वरूप निर्देशांक ज्यामिति व कैलकुलस का विकास हुआ जिससे गणित की उपयोगिता बहुत बढ़ गयी। इससे विज्ञान और तकनीकी के विकास को गति मिली। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वितीय ने कहा है - अर्थात् मंदबुद्धि के लोग व्यक्ति गणित (अंकगणित) की सहायता से जो प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं, वे प्रश्न अव्यक्त गणित (बीजगणित) की सहायता से हल कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, बीजगणित से अंकगणित की कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है। बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निमन प्रकार निरूपित करेंगे— बीजगणिति के आधुनिक संकेतवाद का विकास कुछ शताब्दी पूर्व ही प्रारंभ हुआ है; परंतु समीकरणों के साधन की समस्या बहुत पुरानी है। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व लोग अटकल लगाकर समीकरणों को हल करते थे। ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक हमारे पूर्वज समीकरणों को शब्दों में लिखने लगे थे और ज्यामिति विधि द्वारा उनके हल ज्ञात कर लेते थे। .

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बीजगणित का मौलिक प्रमेय

बीजगणित का मौलिक प्रमेय (fundamental theorem of algebra) के अनुसार, एक चर वाले सभी बहुपदों का कम से कम एक मूल (रूट) अवश्य होता है। .

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बीजीय फलन

गणित में बीजीय फलन (algebraic function) ऐसे फलनों को कहते हैं जो बहुपद गुणांक वाले बहुपदीय समीकरणों को संतुष्ट करें। उदाहरण के लिये, एक ही चर वाला बीजीय व्यंजक x निम्नलिखित बहुपदीय समीकरण का हल है- यहाँ गुणांक ai(x), x के बहुपदी फलन हैं। इसके विपरीत ऐसे फलन जो बीजीय न हों, अबीजीय फलन (transcendental function) कहलाते हैं। इसी प्रकार n चरों वाला बीजीय फलन वह फलन y है जो n + 1 चरों वाले बहुपदीय समीकरण का हल हो। .

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बीजीय समीकरण

गणित में निम्नलिखित स्वरूप वाले समीकरणों को बीजीय समीकरण (algebraic equation) या बहुपद समीकरण (polynomial equation) कहते हैं। जहाँ P_n(x), n घात का बहुपद है। तथा a_n \neq 0.

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बीजीय संख्या

गणित में बीजीय संख्या (algebraic number) उन संख्याओं को कहते हैं जो किसी एक चर वाले, परिमेय गुणांकों वाले, अशून्य बहुपद का मूल (रूट) हो। π आदि संख्याएँ बीजीय नहीं है। इन्हे अबीजीय (transcendental) कहते हैं। .

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रुंग परिघटना

१० घात के रुंग फलन में कम्पन (लाल रंग वाला वक्र) संख्यात्मक विश्लेषण के क्षेत्र में जब किसी समदूरस्थ अन्तर्वेशन बिन्दुओं पर कोई अधिक घात वाला बहुपद फिट किया जाता है तो अवकाश (इन्टरवल) के दोनों सिरों पर 'कम्पन' दिखायी देता है। इस समस्या को रुंग परिघटना (Runge's phenomenon) कहते हैं। इसकी खोज जर्मन गणितज्ञ कार्ल रुंग ने १९०१ में किया था। यह खोज महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह दर्शाती है कि अधिक घात वाला बहुपद फिट करने से अधिक यथार्थता (एक्युरेसी) मिना जरूरी नहीं है। यह परिघटना फ़ूर्ये श्रेणी के सन्दर्भ में गिब्ब परिघटना जैसी है। श्रेणी:अन्तर्वेशन.

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लांबिक बहुपद

गणित में लाम्बिक बहुपद से तात्पर्य बहुपदों के ऐसे श्रेणी से है जिसके कोई भी दो बहुपद किसी आन्तरिक गुणफल के अधीन परस्पर लम्बकोणिक (आर्थोगोनल) हों। हर्माइट बहुपद, लजान्द्र बहुपद, जैकोबी बहुपद, चेबीसेव बहुपद आदि लाम्बिक बहुपद के उदाहरण हैं। श्रेणी:बहुपद.

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लजान्द्र बहुपद

गणित में लजान्द्र बहुपद (Legendre Polynomial) वे बहुपद हैं जो लजान्द्र के अवकल समीकण के हल हैं: यह नामकरण आद्रियें मारि लजान्द्र‎ के नाम पर किया गया है। ये बहुपद लांबिक फलन (आर्थोगोनल फलन) के सरलतम उदाहरण हैं। .

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सतत फलन

गणित में किसी चर राशी x पर परिभाषित फलन f(x) सतत फलन (Continuous function) कहलाता है यदि x में अल्प परिवर्तन करने पर f(x) के मान में भी केवल अल्प परिवर्तन हो अन्यथा यह असतत फलन कहलाता है। एक सतत फलन के प्रतिलोम फलन का सतत होना आवश्यक नहीं। .

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विभाजन (गणित)

'''20 ÷ 4 .

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व्यूहों की सूची

मैट्रिक्स का संगठन इस पृष्ठ पर इंजीनियरिंग, विज्ञान और गणित में प्रयुक्त प्रमुख व्यूहों की सूची दी गयी है। व्यूहों का अध्ययन एवं अनुप्रयोग का लम्बा इतिहास है। इसलिये उन्हें तरह-तरह से वर्गीकृत किया जाता रहा है। वर्गीकरण का एक तरीका यह है कि व्यूहों को उनके अवयवों के आधार पर वर्गीकृत किया जाय। उदाहरण के लिये नीचे आइडेंटिटी मैट्रिक्स दी गयी है- वर्गीकरण का दूसरा आधार मैट्रिक्स का आगेनवैल्यू है। इसके अलावा गणित, रसायन शास्त्र और भौतिक विज्ञान, तथा अन्य विज्ञानों में कुछ विशेष तरह के मैट्रिक उपयोग में आते हैं। .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गुणनखण्ड

किसी वस्तु (जैसे - संख्या, बहुपद या मैट्रिक्स) को अन्य वस्तुओं के गुणनफल (product) के रूप में तोडने की क्रिया को गणित में गुणनखण्ड (factorization या factorisation) कहते हैं। किसी वस्तु के गुणनखण्डों को परस्पर गुणा करने पर वह मूल वस्तु पुनः प्राप्त हो जाती है। उदाहरण के लिये: १५ .

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गॉस नामकरण

कार्ल फ्रेडरिक गॉस (1777–1855) निम्नलिखित विषयों को नाम दिया अर्थात इनका नामकरण गॉस के नाम से किया गया। यहाँ 100 से भी अधिक विषय हैं जो जर्मन गणितज्ञ और वैज्ञानिक के नाम से नामित हैं, जो सभी गणित, भौतिक विज्ञान और खगोल शास्त्र के विषय हैं। .

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आंशिक भिन्न

बीजगणित में, आंशिक भिन्न प्रसार (partial fraction expansion) एक विधि है जो किसी परिमेय भिन्न के अंश या हर के डेग्री (degree) को कम करने के काम आती है। सांकेतिक रूप में, निम्नलिखित परिमेय भिन्न को आंशिक भिन्नों में तोड़ा जा सकता है- जहाँ ƒ और g बहुपद (polynomials) है। इसके आंशिक भिन्न निम्नवत होंगे- जहाँ gj (x) बहुपद हैं और ये g(x) के गुणखण्ड हैं।;उदाहरण - .

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आंशिक अवकल समीकरण

गणित में आंशिक अवकल समीकरण वो अवकल समीकरणें होती हैं जिनमें बहुचर फलन और उनके आंशिक अवकल होते हैं। (यह साधारण अवकल समीकरणों से भिन्न है जिनमें एक ही चर और उसके अवकलों में बंटा हुआ होता है। आंशिक अवकल समीकरणों का उपयोग उन समस्याओं को हल करने में प्रयुक्त किया जाता है जो विभिन्न स्वतंत्र चरों की फलन होती हैं एवं जिन्हें साधारणतया हल कर सकते हैं अथवा हल करने के लिए अभिकलित्र प्रोग्राम बनाया जा सके। आंशिक अवकल समीकरणो का उपयोग विभिन्न दृष्टिगत घटनाओं यथा ध्वनि, ऊष्मा, स्थिरवैद्युतिकी, विद्युत-गतिकी, द्रव का प्रवाह, प्रत्यास्थता या प्रमात्रा यान्त्रिकी को समझने में किया जा सकता है। ये पृथक प्रतीत होने वाली प्रक्रियाओं को आंशिक अवकल समीकरणों के रूप में सूत्रित किया जा सकता है। .

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अपरिमेय संख्या

गणित में, अपरिमेय संख्या (irrational number) वह वास्तविक संख्या है जो परिमेय नहीं है, अर्थात् जिसे भिन्न p /q के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, जहां p और q पूर्णांक हैं, जिसमें q गैर-शून्य है और इसलिए परिमेय संख्या नहीं है। अनौपचारिक रूप से, इसका मतलब है कि एक अपरिमेय संख्या को एक सरल भिन्न के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये २ का वर्गमूल, और पाई अपरिमेय संख्याएँ हैं। यह साबित हो सकता है कि अपरिमेय संख्याएं विशिष्ट रूप से ऐसी वास्तविक संख्याएं हैं जिन्हें समापक या सतत दशमलव के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता है, हालांकि गणितज्ञ इसे परिभाषा के रूप में नहीं लेते हैं। कैंटर प्रमाण के परिणामस्वरूप कि वास्तविक संख्याएं अगणनीय हैं (और परिमेय गणनीय) यह मानता है कि लगभग सभी वास्तविक संख्याएं अपरिमेय हैं। शायद, सर्वाधिक प्रसिद्ध अपरिमेय संख्याएं हैं π, e और √२.

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अबीजीय फलन

उस फलन को अबीजीय फलन (transcendental function) कहते हैं जो किसी बहुपदीय समीकरण को संतुष्ट नहीं कर सकता। (इन बहुपदीय समीकरणों के गुणांक भी नियतांक हों या बहुपद होने चाहिये)। अबीजीय फलनों के मान f(x) को इसके चर x के योग, घटाना, गुणन, भाग, घात एवं मूल की सीमित बीजीय संक्रियाओं के द्वारा अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत बीजीय फलन वे होत हैं जिनको सीमित बीजीय संक्रियाओं के रूप में अभिव्यक्त करना सम्भव हो। .

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अभिलक्षणिक बहुपद

रैखिक बीजगणित में प्रत्येक वर्ग मैट्रिक्स के सहवर्ती एक लाक्षणिक बहुपद (characteristic polynomial) परिभाषित किया जाता है। किसी वर्ग मैट्रिक्स का लाक्षणिक बहुपद बहुत उपयोगी परिकल्पना है - इससे उस वर्ग मैट्रिक्स में निहित (छिपी हुई) बहुत से महत्वपूर्ण गुण बाहर आ जाते हैं। लाक्षणिक बहुपद के द्वारा आइगेनमान (eigenvalues), मैट्रिस का सारणिक (determinant) तथा इसके ट्रेस (trace) का ज्ञान हो जाता है। .

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अंतःसर्पी श्रेणी

'''अन्तःसर्पण''': 'टेलीस्कोप' को दबाने पर छोटी हो जाती है। गणित में अंतःसर्पी श्रेणी (telescoping series) एक श्रेणी है जिसके आंशिक योग निरसन के बाद केवल कुछ सीमित पदों तक सीमित हो जाते हैं। इस तरह की तकनीक को अन्तर विधि (method of differences) भी कहते हैं। दूसरे शब्दों में, निम्नलिखित श्रेणी अंतःसर्पण का गुण प्रदर्शित करेगी यदि उसका kवाँ पद इस प्रकार से लिखा जा सके- ऐसा होने पर श्रेणी के आंशिक योग को उस श्रेणी के अन्तिम पद और प्रथम पद के अन्तर के रूप में व्यक्त किया जा सकता है- अन्ततः उपर्युक्त अनन्त श्रेणी का योग सरल होकर अनुक्रम (sequence) \ की सीमा की गणना के रूप में आ जाता है। .

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बहुपद फलन

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