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बलभद्र कुंवर

सूची बलभद्र कुंवर

बलभद्र कुंवर बलभद्र कुंवर (सन् १७८९ - सन् १८२२) एक नेपाली स्वतंत्रता सेनानी एवं जनरल थे। वे नेपाल के राष्ट्रीय नायक हैं। वे अंग्रेज-नेपाल युद्ध (१८१४ से १८१६) में अपने महान सेवाओं के लिये विख्यात हैं। वे शाही नेपाली सेना (गोरखाली सेना) के एक कैप्टेन थे तथा १८१४ के नालपानी के युद्ध में सेनानायक के रूप में उनको प्रसिद्धि मिली। नालपानी, देहरादून के पास स्थित है। .

6 संबंधों: भक्ति थापा, माथवरसिंह थापा, ललित त्रिपुरा सुन्दरी, जङ्गबहादुर राणा, कुँवर, क्षेत्री

भक्ति थापा

भक्ति थापा क्षेत्री वि.स. १९७१ सालमें नेपाल-अंग्रेज युद्धको समयमें नेपालके बरिष्ठ सैनिक थे। उनलाई नेपालको राष्ट्रिय विभूति माना जाता हैं। .

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माथवरसिंह थापा

माथवरसिंह थापा नेपालके प्रधानमन्त्री एवम् नेपाली सेना के कमाण्डर-इन-चिफ थे। उनका कार्यकाल सन् १८४३ से १८४५ तक रहा जब उनके भान्जा जंगबहादुर राणा द्वारा हत्या हुई। प्रधानमन्त्री भीमसेन थापाको सजाय मिल्नेके बाद, उनके भतिजा होनेके कारण वो शिमला, भारत में शरण लिए। विक्रम सम्वत १९०० में थापा वंशके ज्येष्ठ पुरुष होने के कारण उन्हें महारानी राज्यलक्ष्मी से वापसी का पत्र मिला और वो पंजाब से नेपाल पहुंचे। उन्हें प्रधानमन्त्री पद एवम् मुकुट से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने चाचा के मुद्दे को अनुसन्धान करते हुए पाँडे वंशके रणजंग पाँडे को छोडकर सबही ज्येष्ठ सदस्य को प्राणदण्ड दिया। उनका हत्या अपने भान्जे जंगबहादुर राणा ने किया। .

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ललित त्रिपुरा सुन्दरी

महारानी ललित त्रिपुरा सुन्दरी वा ललिता कुमारी थापा (१८५०-१८८८) नेपालके राजा रण बहादुर शाहके छोटी और बादमें प्रमुख पत्नी थी। उनको नेपाली साहित्यके प्रथम महिला स्रष्टाके रूपमे माना जाता हैं। उन्होंने संस्कृतसे “राजधर्म” को अनुवाद किया था और कचछ कविताए लिखि थि। इसलिए वो नेपालके प्रथम महिला साहित्यकार मानी जाती हैं। उनके प्रेरणासे सौतेला पुत्र नेपालके राजा गिर्वाण युद्ध विक्रम शाह और नाति (बादमें नेपालके राजा) राजेन्द्र विक्रम शाहने भी ३ पुस्तक लिखे थे। उनके पुस्तक राजधर्मको भाषा और शैलीके लिए ईतिहासविदने उत्कृष्ट माना हैं। नारीचुली। नरेन्द्रराज प्रसाईं। २००७। नई प्रकाशन। .

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जङ्गबहादुर राणा

महाराजा जंगबहादुर कुंवर राणाजी (1816-1877; जङ्गबहादुर राणा) जो जंगबहादुर राणा के नाम से प्रसिद्ध हैं, नेपाल के पहले राणा प्रधानमन्त्री तथा राणा राजवंश के संस्थापक थे। उनका वास्तविक नाम वीर नरसिंह कुँवर था। इनके शासनकाल में नेपाल ने अंग्रजो से लड़ाई में खोया हुआ जमीन का कुछ हिस्सा (बांके, बर्दिया, कैलाली, कंचनपुर) वापस हासिल किया। जंगबहादुर राणा के जन्म क्षत्रिय कुंवर भारदार परिवार के काजी बालनरसिंह कुँवर और थापा वंशके गणेश कुमारी के पुत्र के रूपमें हुआ । वे नेपाल के प्रसिद्ध मुख्तियार (प्रधानमंत्री) भीमसेन थापा के सहोदर भाइ काजी नैनसिंह थापा के भ्रातृपौत्र थे। उनकी नानी रणकुमारी पांडे नेपालके प्रसिद्ध भारदार पाँडे वंश के काजी रणजीत पांडे के पुत्री हैं । ये अपने पूर्वजों की अपेक्षा स्थायी शासन की स्थापना करने में सफल रहे। इन्हें अपने मामा माथवरसिंह थापा के मंत्रित्वकाल में सेनाध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री का पद सौंपा गया किंतु शीघ्र ही उन्होंने रानी राज्य लक्ष्मी के आदेश में मामा माथवरसिंहकी छलपूर्वक हत्या कर दी और चौतारिया फत्तेजंग शाह ने नया मंत्रिमंडल बनाया । इस नए मंत्रिमंडल में इन्हें सैन्य विभाग सौंपा गया। दूसरे वर्ष 1846 ई. में शासन में एक संघर्ष छिड़ा। फलस्वरूप फतेहजंग और उनके साथ के 32 अन्य प्रधान व्यक्तियों की कुटिलतापूर्वक हत्या कर दी गई। महारानी द्वारा राणा की नियुक्ति सीधे प्रधान मंत्री पद पर की गई। शीघ्र ही महारानी का विचार परिवर्तित हुआ और उनकी हत्या के षड्यंत्र भी रचे गए। परंतु रानी की योजना असफल रही। फलत: राजा और रानी दोनों को ही भारत में शरण लेनी पड़ी। अब राणा के मार्ग से सारी बाधाएँ परे हट चुकी थीं। शासन को व्यवस्थित और नियंत्रित करने में इन्हें पूर्ण सफलता मिली। यहाँ तक कि जनवरी, 1850 में वे निश्चिंत होकर इंग्लैंड गए और 6 फ़रवरी 1851 तक वहीं रहे। लौटने पर इन्होंने अपने विरुद्ध रची गई हत्या की कुटिल योजनाओं को पूर्णत: विफल कर दिया। इसके बाद आप दंडसंहिता के सुधार कार्यों में तथा तिब्बत के साथ होनेवाले छिटपुट संघर्षों में उलझे रहे। इसी बीच उन्हें भारतीय सिपाही विद्रोह की सूचना मिली। राणा ने विद्रोहियों से किसी प्रकार की बातचीत का विरोध किया और जुलाई, 1857 को सेना की एक टुकड़ी गोरखपुर भेजी। यही नहीं, दिसंबर में इन्होंने 14,000 गोरखा सिपाहियों की एक सेना लखनऊ की ओर भी भेजी थी जिसने 11 मार्च 1858 को लखनऊ की घेरेबंदी में सहयोग दिया। जंगबहादुर राणा को इस कार्य के लिए जी.बी.सी.

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कुँवर

कुँवर वा कँवर नेपाली क्षत्रिय वर्णके क्षेत्री जातिके पारिवारिक नाम है। इस परिवारकी उत्पत्ति नेपालके कर्णाली प्रदेशमे अन्य क्षेत्री जातिके साथ हुआ था। कुँवरका अर्थ नेपाली भाषामें कुमार है। यिनका भारतीय राजपुत और मराठा राजाओं से कुछ वैवाहिक सम्बन्ध है। भारतमे पाएजानेवाले कुँवर अलग वंशजके है। कुँवर पाँच पुस्त्यौनी काजी परिवार मध्ये एक है। अन्य चार परिवार बिष्ट, पाण्डे, बस्नेत और थापा है। इनके गोत्र वत्स गोत्र है। रामकृष्ण कुँवर पृथ्वीनारायण शाहके सेनामे सरदार थे। बलभद्र कुंवर भीमसेन थापाके भान्जा है। बलभद्र ने नेपाल अंग्रेज युद्धमें नेतृत्व किया था। जब बालनरसिंहके बेटे जंगबहादुर राणा प्रधानमन्त्री हुए तब बालनरसिंह कुँवर, बलराम कुँवर र रेवन्त कुँवरके वंशजोने बादमे राणा नाम लिया था। .

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क्षेत्री

क्षेत्री या छेत्री नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले योद्धा वर्ण के मुल निवासी हैं, इन्हें पहाड़ी राजपुत, खस राजपुत, नेपाली या गोर्खाली क्षत्रिय भी कहाँ जाता है। ये एक हिन्द-आर्य भाषिक जाति हैं। क्षेत्री या छेत्री या क्षथरीय सब क्षत्रिय के अपभ्रंश हैं और ये हिन्दू वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत क्षत्रिय वर्ण में आते हैं। ये लोग मूल रूप से सैनिक, राजा और प्रशासनिक क्षेत्र में काफी आगे हैं। ये बाहुन (खस ब्राह्मण) और खस दलित के जैसे खस समुदाय के एक विभाजन हैं। क्षेत्री नेपाल के कुल जनसंख्या में सर्वाधिक १६.६% हैं। इस जाति को नेपाल में सत्तारुढ माना जाता है। इन लोगों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न इतिहासकार और खोजकर्ता जेसै कि डोरबहादुर विष्ट और सूर्यमणि अधिकारी, आदि के अनुसार नेपाल के पश्चिमी पहाड़ी इलाका कर्णाली प्रदेश में हुआ था। इस जाति के पूर्वज पूर्वी इरानी भाषिक खस जाति हैं जो बाह्लिक-गान्धार क्षेत्रमें पाए जाते थे। आज ये नेपाल के सभी क्षेत्रों और भारत के कुछ क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं। ये लोग पूर्णत: हिन्दु होते हैं और स्थानिय मष्टो देवता की पुजा करते हैं। इस पुजा को मष्ट पुजा या देवाली कहते हैं। इन का मातृभाषा नेपाली भाषा है और ये इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार के सदस्य हैं। नेपाल के खस राजवंश, खप्तड राजवंश, सिंजा राजवंश, थापा वंश, बस्नेत, कुँवर और पाँडे वंश, दरबारिया समुह और नेपाल के पिछले समय के क्रुर शासक राणा वंश भी क्षेत्री(छेत्री) जाति में आते हैं। क्षेत्री (छेत्री) अधिकतर नेपाल सरकार और नेपाली सेना के उच्च पद पर कार्यरत पाए जाते हैं। इन के लिए भारतिय सेना में एक सैनिक दस्ता ९वीं गोरखा रेजिमेन्त आरक्षित है। .

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