सामग्री की तालिका
143 संबंधों: चांडाल, दुनिया का सबसे अनमोल रतन, दुर्गादास (उपन्यास), दो बैलों की कथा, नमक का दरोगा, नलिन विलोचन शर्मा, नागरीप्रचारिणी सभा, निर्मला (उपन्यास), नव जीवन, नवजीवन, परमानन्द श्रीवास्तव, पंच परमेश्वर, पुरुषोत्तमदास मोदी, प्रतिकूल, प्रसून, प्रेम प्रतिज्ञा (कहानी संग्रह), प्रेमचंद, प्रेमचंद साहित्य संस्थान, प्रेमचंद का कथा साहित्य, प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएँ, प्रेमचंद की रचनाएँ, प्रेमा, प्रेमाश्रम, फणीश्वर नाथ "रेणु", फकीर मोहन सेनापति, बदरीनाथ भट्ट, भारत में ब्रिटिश काल में भ्रष्टाचार, भारत की संस्कृति, भारतीय लेखकों की सूची, भारतीय व्यक्तित्व, मन्नन द्विवेदी गजपुरी, मनोरमा, मर्यादा (पत्रिका), माधुरी पत्रिका, मानसरोवर (बहुविकल्पी), मानसरोवर (कथा संग्रह), मिथिलेश्वर, मंगलसूत्र (उपन्यास), मुंशी दयानारायण निगम, मोहन दयाराम भवनानी, यशपाल, रतन नाथ धर सरशार, राधाचरण गोस्वामी, रानी सारन्धा, राजेन्द्र यादव, रांगेय राघव, रघुवीर सिंह (महाराज कुमार), रवीन्द्र प्रभात, रंगभूमि, लमही, ... सूचकांक विस्तार (93 अधिक) »
चांडाल
चांडाल भारत में व्यक्तियों का एक ऐसा वर्ग है, जिसे सामान्यत: जाति से बाहर तथा अछूत माना जाता है। यह एक प्राचीन अन्त्यज, नीच और बर्बर जाति है। इसे श्मशान पाल, डोम, अंतवासी, थाप, श्मशान कर्मी, अंत्यज, चांडालनी, पुक्कश, गवाशन, चूडा, दीवाकीर्ति, मातंग, श्वपच आदि नामों से भी पुकारा जाता है। भगवान गौतमबुद्ध ने सुत्तनिपात में चांडाल का जिकर किया है। खत्तिये ब्राह्मणे वेस्से, सुद्दे चण्डालपुक्कु से। न कि ंचि परिवज्जेति, सब्बमेवाभिमद्दति।। मृतुराज क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य,शूद्र और चंडाल - किसी को कोभी नहीं छोड़ता, सबको कुचल डालता है। .
देखें प्रेमचंद और चांडाल
दुनिया का सबसे अनमोल रतन
दुनिया का अनमोल रतन प्रेमचंद की पहली कहानी थी। यह कहानी कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका ज़माना में १९०७ में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी बाद में प्रेमचंद के कहानी संग्रह सोज़े वतन में संकलित की गई थी। .
देखें प्रेमचंद और दुनिया का सबसे अनमोल रतन
दुर्गादास (उपन्यास)
दुर्गादास एक उपन्यास है जो एक वीर व्यक्ति दुर्गादास राठौड़ के जीवन पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इसे एक वीर गाथा भी कह सकते हैं जिससे हमें कई सीख मिलती है। यह बाल साहित्य के अंतर्गत आता है तथा इसके मुख्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार राजा यशवन्तसिंह के सेवक दुर्गादास नें उसके मृत्यु के बाद राजा के पुत्र अजीतसिंह को औरंगज़ेब तथा उसके मुगल सेना से सुरक्षित किया तथा औरंगज़ेब को मारवाड़ से भगाकर अजीतसिंह को राज सौंपा। तथा किस प्रकार उसे दुष्ट अजीतसिंह से दूर भागना पड़ा। .
देखें प्रेमचंद और दुर्गादास (उपन्यास)
दो बैलों की कथा
कुछ श्रेष्ठ कृतियां समुचित प्रकाश-प्रसार में नहीं साहित्य के इतिहास में अनेक विसंगतियां घटित होती रहती हैं, कभी-कभी कुछ श्रेष्ठ कृतियां समुचित प्रकाश-प्रसार में नहीं आ पातीं और कुछ कृतियां जग-व्यापी होकर लोकप्रियता के शिखर छू लेती हैं। दो बैलों की कथा 1931 में मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित हिन्दी कहानी है। .
देखें प्रेमचंद और दो बैलों की कथा
नमक का दरोगा
नमक का दरोगा प्रेमचंद द्वारा रचित लघु कथा है। इसमें एक ईमानदार नमक निरीक्षक की कहानी को बताया गया है जिसने कालाबाजारी के विरुद्ध आवाज उठाई। .
देखें प्रेमचंद और नमक का दरोगा
नलिन विलोचन शर्मा
नलिन विलोचन शर्मा (1916–1961) पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक, हिन्दी लेखक एवं आलोचक थे। वे हिन्दी में 'नकेनवाद' आन्दोलन के तीन पुरस्कर्ताओं में से एक थे। .
देखें प्रेमचंद और नलिन विलोचन शर्मा
नागरीप्रचारिणी सभा
नागरीप्रचारिणी सभा, हिंदी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करनेवाली भारत की अग्रणी संस्था है। भारतेन्दु युग के अनंतर हिंदी साहित्य की जो उल्लेखनीय प्रवृत्तियाँ रही हैं उन सबके नियमन, नियंत्रण और संचालन में इस सभा का महत्वपूर्ण योग रहा है। .
देखें प्रेमचंद और नागरीप्रचारिणी सभा
निर्मला (उपन्यास)
निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ। महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र 'निर्मला' नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, उसे परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है। निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है। निर्मला के चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णतः बहिष्कार किया गया है। इससे यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचन्द का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यास’ कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि इसमें ‘प्रचारक प्रेमचन्द’ के लोप ने इसे ने केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिन्ह भी बन गया है। .
देखें प्रेमचंद और निर्मला (उपन्यास)
नव जीवन
नव जीवन प्रेमचंद द्वारा रचित एक कथासंग्रह है। श्रेणी:प्रेमचंद श्रेणी:पुस्तक.
देखें प्रेमचंद और नव जीवन
नवजीवन
नवजीवन भारतीय लेखक प्रेमचंद की एक कहानी है।.
देखें प्रेमचंद और नवजीवन
परमानन्द श्रीवास्तव
परमानन्द श्रीवास्तव (जन्म: 10 फ़रवरी 1935 - मृत्यु: 5 नवम्बर 2013) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। उनकी गणना हिन्दी के शीर्ष आलोचकों में होती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचन्द पीठ की स्थापना में उनका विशेष योगदान रहा। कई पुस्तकों के लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रिका आलोचना का सम्पादन भी किया था। आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें व्यास सम्मान और भारत भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। लम्बी बीमारी के बाद उनका गोरखपुर में निधन हो गया। .
देखें प्रेमचंद और परमानन्द श्रीवास्तव
पंच परमेश्वर
पंच परमेश्वर प्रेमचंद की पहली प्रकाशित कहानी थी। यह १९०५ में प्रकाशित हुई थी। इसके पहले उनका एक रहस्य उपन्यास धारावाहिक रूप से १९०३ में प्रकाशित हुआ था लेकिन वह पूरा प्रकाशित नहीं हो सका था उसको रोक देना पड़ा था। श्रेणी:प्रेमचंद श्रेणी:प्रेमचंद की कहानियाँ.
देखें प्रेमचंद और पंच परमेश्वर
पुरुषोत्तमदास मोदी
पुरुषोत्तमदास मोदी (जन्म: १९ अगस्त १९२७) पत्रकार, साहित्यकार, शिक्षाविद एवं प्रकाशक हैं। उन्होने सन् १९५० में विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी की स्थापना की। उनका जन्म गोरखपुर में हुआ था। .
देखें प्रेमचंद और पुरुषोत्तमदास मोदी
प्रतिकूल
प्रतिकूल का अर्थ होता है पक्ष में न होना। .
देखें प्रेमचंद और प्रतिकूल
प्रसून
प्रसून प्रेमचंद द्वारा रचित कथासंग्रह है। .
देखें प्रेमचंद और प्रसून
प्रेम प्रतिज्ञा (कहानी संग्रह)
प्रेम प्रतिज्ञा प्रेमचंद द्वारा रचित कथासंग्रह है। .
देखें प्रेमचंद और प्रेम प्रतिज्ञा (कहानी संग्रह)
प्रेमचंद
प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .
देखें प्रेमचंद और प्रेमचंद
प्रेमचंद साहित्य संस्थान
राजकीय दीक्षा विद्यालय, गोरखपुर वह विद्यालय है जहाँ उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने अपनी पहली नौकरी की थी। यह विद्यालय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। यहाँ उन्होंने १९ अगस्त १९१६ से २६ फ़रवरी १९२१ तक सहायक अध्यापक के पद पर कार्य किया। वे इस विद्यालय के छात्रावास अधीक्षक भी थे और विद्यालय परिसर में ही बने एक मकान में रहते थे। प्रेमचंद को सम्मानित करते हुए इस विद्यालय के उनके कमरे को प्रेमचंद साहित्य संस्थान में परिवर्तित कर दिया है। प्रेमचंद ने महात्मा गांधी की स्वतंत्रता आंदोलन की पुकार पर इस नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। श्रेणी:प्रेमचंद.
देखें प्रेमचंद और प्रेमचंद साहित्य संस्थान
प्रेमचंद का कथा साहित्य
महान साहित्यकार प्रेमचंद द्वारा लिखित प्रसिद्ध हिन्दी कहानियां निम्नलिखित हैं: - नमक का दारोगा एक आंच की कसर कौशल माता का ह्रदय नैराश्य अपनी करनी गैरत की कटार घमण्ड का पुतला आधार अमृत राष्ट्र का सेवक आख़िरी तोहफ़ा क़ातिल वरदान वैराग्य डिप्टी श्यामाचरण सखियाँ निष्ठुरता और प्रेम नये पड़ोसियों से मेल-जोल ईर्ष्या सुशीला की मृत्यु विरजन की विदा कमलाचरण के मित्र कायापलट भ्रम कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय कमला के नाम विरजन के पत्र प्रतापचन्द्र और कमलाचरण दु:ख-दशा आल्हा मिलाप नेकी जेल मैकू आत्माराम नाग पूजा दो बैलों की कथा नैराश्य लीला नरक का मार्ग निर्वासन परीक्षा स्त्री और पुरुष स्वर्ग की देवी तेंतर दण्ड विश्वास खुदी मन का प्राबल्य विदुषी वृजरानी माधवी काशी में आगमन प्रेम का स्वप्न विदाई मतवाली योगिनी सभ्यता का रहस्य समस्या दो सखियां सोहाग का शव आत्म-संगीत एक्ट्रेस ईश्वरीय न्याय ममता मंत्र प्रायश्चित कप्तान साहब इस्तीफा नसीहतों का दफ्तर मनावन बॉँका जमींदार पत्नी से पति समर-यात्रा बड़ें घर की बेटी कफ़न पूस की रात उद्धार धिक्कार लैला नेउर शूद्र एकता का सम्बन्ध पुष्ट होता है देवी शिष्ट-जीवन के दृश्य बड़े बाबू सैलानी बंदर अलग्योझा ईदगाह मॉँ बेटों वाली विधवा बडे भाई साहब शांति नशा स्वािमिनी ठाकुर का कुआं बुढ़ी काकी झांकी गुल्ली-डंडा ज्योति दिल की रानी धिक्का र बोहनी बंद दरवाजा तिरसूल स्वांग राजहठ अंधेर अनाथ लड़की शराब की दूकान शांति दुर्गा का मन्दिर पंच परमेश्वर विजय वफ़ा का खंजर मुबारक बीमारी वासना की कड़ियॉँ पुत्र-प्रेम इज्जत का खून होली की छुट्टी नादान दोस्त प्रतिशोध नब़ी का नीति-निर्वाह मंदिर और मस्जिद प्रेम-सूत्र तांगेवाले की बड़ शादी की वजह मोटेराम जी शास्त्री पर्वत-यात्रा कवच दूसरी शादी सौत देवी पैपुजी क्रिकेट मैच कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला दुनिया का सबसे अनमोल रतन शेख मखगूर शोक का पुरस्कार सांसारिक प्रेम और देशप्रेम विक्रमादित्य का तेगा आखिरी मंजिल त्रियाचरित्र सिर्फ एक आवाज कर्मों का फल जुलूस बैक का दिवाला शंखनाद श्रेणी:चित्र जोड़ें.
देखें प्रेमचंद और प्रेमचंद का कथा साहित्य
प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएँ
प्रेमचंद हिंदी के युग प्रवर्तक रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। वे सर्वप्रथम उपन्यासकार थे जिन्होंने उपन्यास साहित्य को तिलस्मी और ऐयारी से बाहर निकाल कर उसे वास्तविक भूमि पर ला खड़ा किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं। प्रेमचंद की रचनाओं को देश में ही नहीं विदेशों में भी आदर प्राप्त हैं। प्रेमचंद और उनकी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। आज उन पर और उनके साहित्य पर विश्व के उस विशाल जन समूह को गर्व है जो साम्राज्यवाद, पूँजीवाद और सामंतवाद के साथ संघर्ष में जुटा हुआ है। .
देखें प्रेमचंद और प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएँ
प्रेमचंद की रचनाएँ
मुंशी प्रेमचंद की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की। .
देखें प्रेमचंद और प्रेमचंद की रचनाएँ
प्रेमा
प्रेमा (हिंदी) अथवा हमख़ुर्मा व हमसवाब (उर्दू) प्रेमचंद का पहला उपन्यास है। यह १९०७ ई। में मूलतः उर्दू में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास में १२ अध्याय हैं। यह विधवा विवाह पर केंद्रित है। इसमें धार्मिक आडंबरों औ्र मंदिरों में व्याप्त पाखंड को उजागर किया गया है। यह प्रेमचंद के भविष्य की दिशा की ओर संकेत करने वाला उपन्यास है। .
देखें प्रेमचंद और प्रेमा
प्रेमाश्रम
प्रेमाश्रम उपन्यास मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित एक वृहद उपन्यास है। .
देखें प्रेमचंद और प्रेमाश्रम
फणीश्वर नाथ "रेणु"
फणीश्वर नाथ 'रेणु' (४ मार्च १९२१ औराही हिंगना, फारबिसगंज - ११ अप्रैल १९७७) एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .
देखें प्रेमचंद और फणीश्वर नाथ "रेणु"
फकीर मोहन सेनापति
ओड़िआ साहित्य में फकीरमोहन सेनापति (१८४३- १९१८) ‘कथा-सम्राट्’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। ओड़िआ कहानी एवं उपन्यास रचना में उनकी बिशिष्ट पहचान रही है। .
देखें प्रेमचंद और फकीर मोहन सेनापति
बदरीनाथ भट्ट
Badrinath Temple, Uttarakhand.jpg बदरीनाथ बदरीनाथ भट्ट (संवत् 1948 वि. की चैत्र शुक्ल तृतीया - 1 मई सन् 1934) हिन्दी के साहित्यकार, पत्रकार एवं भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। .
देखें प्रेमचंद और बदरीनाथ भट्ट
भारत में ब्रिटिश काल में भ्रष्टाचार
अंग्रेजों ने भारत के राजा महराजाओं को भ्रष्ट करके भारत को गुलाम बनाया। उसके बाद उन्होने योजनाबद्ध तरीके से भारत में भ्रष्टाचार को बढावा दिया और भ्रष्टाचार को गुलाम बनाये रखने के प्रभावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया। देश में भ्रष्टाचार भले ही वर्तमान में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लेकिन भ्रष्टाचार ब्रिटिश शासनकाल में ही होने लगा था जो हमारे राजनेताओं को विरासत में दे गए थे। भारत छोड़कर जाते-जाते भी अंग्रेजों की कुटिल बुद्धि ने भारत को और भी गारत करने सोच लिया था इसीलिए एक लम्बे अरसे से षड़यन्त्र पूर्वक इस देश में में नफरत फैलाना शुरू कर दिया था। धर्मेन्द्र गौड़ की पुस्तक “मैं अंग्रेजों का जासूस था” उनके द्वारा भारत छोड़ने के नफरत फैलाने का साक्ष्य है। भारत को विभाजन की आग में झोंकने की कुटिल योजना पहले से ही उन्होंने बना रखी थी। इतनी अधिक अराजकता इस देश में अंग्रेजों के आने से पहले कभी नहीं थी। आमतौर पर भ्रष्टाचार तथा गरीबी भारत में कहीं भी कभी भी देखने को नहीं मिलती थी। यदि यह कहा जाए कि गरीबी, सामान्य राजनीति और प्रशासनिक भ्रष्टाचार अंग्रेजों की देन है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुंबई के प्रसिद्ध प्रकाशक और व्यवसायी शानबाग लेखकों और साहित्यकारों में काफी प्रसिद्ध रहे हैं। फोर्ट में उनकी पुस्तकों की दुकान स्ट्रेंड बुक स्टाल एक ग्रंथ तीर्थ ही माना जाता है। अपने देहांत से पहले शानबाग ने भारतीय संपदा और पाठकों पर बड़ा उपकार किया, जब उन्होंने विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार एवं चिंतक विल डूरा की दुर्लभ एवं लुप्तप्राय पुस्तक "द केस फॉर इंडिया" का पुन: प्रकाशन किया। यह पुस्तक अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट ही नहीं, बल्कि भारत के प्राचीन संस्कारों, विद्या और चरित्र पर इतिहास के सबसे बड़े आक्रमण का तथ्यात्मक वर्णन करती है। इसमें उन्होंने लिखा है कि भारत केवल एक राष्ट्र ही नहीं था, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और भाषा में विश्व का मातृ संस्थान था। भारतभूमि हमारे दर्शन, संस्कृति और सभ्यता की मां कही जा सकती है। विश्व का ऎसा कोई श्रेष्ठता का क्षेत्र नहीं था, जिसमें भारत ने सर्वोच्च स्थान न हासिल किया हो। चाहे वह वस्त्र निर्माण हो, आभूषण और जवाहरात का क्षेत्र हो, कविता और साहित्य का क्षेत्र हो, बर्तनों और महान वास्तुशिल्प का क्षेत्र हो अथवा समुद्री जहाज का निर्माण क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में भारत ने दुनिया को अपना प्रभाव दिखाया। जब अंग्रेज भारत आए, तो उन्होंने राजनीतिक दृष्टि से कमजोर, लेकिन आर्थिक दृष्टि से अत्यंत वैभव और ऎश्वर्य संपन्न भारत को पाया। ऎसे देश में अंग्रेजों ने धोखाधड़ी, अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार के माध्यम से राज्य हड़पे, अमानुषिक टैक्स लगाए, करोड़ों को गरीबी और भुखमरी के गर्त में धकेला तथा भारत की सारी संपदा व वैभव लूटकर ब्रिटेन को मालामाल किया। उन्होंने मद्रास, कोलकाता और मुंबई में हिंदू शासकों से व्यापारिक चौकियां भाड़े पर लीं और बिना अनुमति के वहां अपनी तौपें और सेनाएं रखीं। 1756 में बंगाल के राजा ने इस प्रकार के आक्रमण का जब विरोध किया और अंग्रेजों के दुर्ग फोर्ट विलियम पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया, तो एक साल बाद रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के युद्ध में बंगाल को हराकर उस पर कब्जा कर लिया और एक नवाब को दूसरे से लड़ा कर लूट शुरू कर दी। सिर्फ एक साल में क्लाइव ने 11 लाख 70 हजार डॉलर की रिश्वत ली और 1 लाख 40 हजार डॉलर सालाना नजराना लेना शुरू किया। जांच में उसे गुनहगार पाया गया, लेकिन ब्रिटेन की सेवा के बदले उसे माफी दे दी गई। विल ड्यूरा लिखते हैं कि भारत से 20 लाख का सामान खरीद कर ब्रिटेन में एक करोड़ में बेचा जाता है। अंग्रेजों ने अवध के नवाब को अपनी मां और दादी का खजाना लूट कर अंग्रेजों को 50 लाख डॉलर देने पर मजबूर किया फिर उस पर कब्जा कर लिया और 25 लाख डॉलर में एक दूसरे नवाब को बेच दिया। अंग्रेजी भाषा चलाने और अंग्रेजों के प्रति दासता मजबूत करने के लिए भारतीय विद्यालय बंद किए गए। 1911 में गोपालकृष्ण गोखले ने संपूर्ण भारतवर्ष में प्रत्येक भारतीय बच्चे के लिए अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा का विधेयक लाने की कोशिश की, लेकिन उसे अंग्रेजों ने विफल कर दिया। 1916 में यह विधेयक फिर से लाने की कोशिश की, ताकि संपूर्ण भारतीयों को शिक्षित किया जा सके, लेकिन इसे भी अंग्रेजों ने विफल कर दिया। भारतीय सांख्यिकी के महानिदेशक सर विलियम हंटर ने लिखा है कि भारत में 4 करोड़ लोग ऎसे थे, जो कभी भी अपना पेट नहीं भर पाते थे। भूख और गरीबी की ओर धकेल दिए गए समृद्ध भारतीय शारीरिक दृष्टि से कमजोर होकर महामारी के शिकार होने लगे। 1901 में विदेश से आए प्लेग के कारण 2 लाख 72 हजार भारतीय मर गए, 1902 में 50 लाख भारतीय मरे, 1903 में 8 लाख भारतीय मारे गए और 1904 में 10 लाख भारतीय भूख, कुपोषण और प्लेग जैसी महामारी के कारण मारे गए। 1918 में 12 करोड़ 50 लाख भारतीय इनफ्लूएंजा रोग के शिकार हुए, जिनमें से 1 करोड़ 25 लाख लोगों की मौत सरकारी तौर पर दर्ज हुई। समान काम के लिए अंग्रेजों को भारतीयों से 10 गुना ज्यादा वेतन दिया जाता था और अंग्रेजों से 10 गुना अधिक विद्वान भारतीय को उनकी योग्यता के अनुरूप पद नहीं दिया जाता था। .
देखें प्रेमचंद और भारत में ब्रिटिश काल में भ्रष्टाचार
भारत की संस्कृति
कृष्णा के रूप में नृत्य करते है भारत उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय सांस्कृतिक सीमाओं और क्षेत्रों की स्थिरता और ऐतिहासिक स्थायित्व को प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र भारत की संस्कृति बहुआयामी है जिसमें भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। इसके साथ ही पड़ोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है। पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़, भाषाएँ, प्रथाएँ और परंपराएँ इसके एक-दूसरे से परस्पर संबंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं। भारत कई धार्मिक प्रणालियों, जैसे कि हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे धर्मों का जनक है। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न हुए विभिन्न धर्म और परम्पराओं ने विश्व के अलग-अलग हिस्सों को भी बहुत प्रभावित किया है। .
देखें प्रेमचंद और भारत की संस्कृति
भारतीय लेखकों की सूची
यहां भारतीय लेखकों (किसी भी भाषा के साहित्यकार) की सूची दी गयी है। .
देखें प्रेमचंद और भारतीय लेखकों की सूची
भारतीय व्यक्तित्व
यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .
देखें प्रेमचंद और भारतीय व्यक्तित्व
मन्नन द्विवेदी गजपुरी
मन्नन द्विवेदी गजपुरी (1844-1921 ई.) हिंदी साहित्यकार। .
देखें प्रेमचंद और मन्नन द्विवेदी गजपुरी
मनोरमा
मनोरमा नाम से निम्नलिखित लेख है।.
देखें प्रेमचंद और मनोरमा
मर्यादा (पत्रिका)
मर्यादा पत्रिका का पहला अंक नवम्बर सन १९१० ई० में कृष्णकान्त मालवीय ने 'अभ्युदय' कार्यालय प्रयाग से इसे प्रकाशित हुआ था। इसके प्रथम अंक का प्रथम लेख 'मर्यादा' शीर्षक से पुरुषोत्तमदास टण्डन ने लिखा। १० वर्षों तक इस पत्रिका को प्रयाग से निकालने के बाद कृष्णकान्त मालवीय ने इसका प्रकाशन ज्ञानमण्डल काशी को सौंप दिया। सन १९२१ ई० से श्री शिवप्रसाद गुप्त कस संचालन में और सम्पूर्णानन्द जी के संपादकत्व में "मर्यादा" ज्ञानमण्डल से प्रकाशित हुई। असहयोग आन्दोलन में उनके जेल चले जाने पर धनपत राय प्रेमचन्द स्थानापन्न संपादक हुए। पत्रिका का वार्षिक मूल्य ५ रुपए तथा एक प्रति का २ आना था। इसका आकार १० * ७ था। मर्यादा अपने समय की सर्वश्रेष्ट मासिक पत्रिका थी। प्रेमचन्द की आरम्भिक कहानियाँ इसमें प्रकाशित हुईं। सन १९२३ ई० में यह पत्रिका अनिवार्य कारणों से बन्द हो गई। इसका अन्तिम अंक प्रवासी विशेषांक के रूप में बनारसीदास चतुर्वेदी के सम्पादन में निकला, जो अपनी विशिष्ट लेख सामग्री के कारण ऍतिहासिक महत्त्व रखता है। .
देखें प्रेमचंद और मर्यादा (पत्रिका)
माधुरी पत्रिका
माधुरी पत्रिका का प्रकाशन अगस्त १९२१ ई० में लखनऊ से हुआ। इसके संपादक विष्णुनारायण भार्गव थे। प्रारम्भ में कई वर्ष तक इसके संपादक दुलारेलाल भार्गव और रूपनारायण पाण्डेय थे। बाद में प्रेमचन्द और कृष्णबिहारी मिश्र ने इसका संपादन किया। इसके अतिरिक्त कुछ समय तक इसका संपादन जगन्नाथदास रत्नाकर और ब्रजरत्नदास भी करते रहे। १९२५ में कुछ समय तक आचार्य शिवपूजन सहाय ने भी इसका संपादन किया। हिन्दी की प्रारम्भिक पत्रिकाओं में "सरस्वती" के साथ ही "माधुरी" की गणना होती है। अमृतलाल नागर ने भी मेरी प्रिय कहानियाँ में लिखा है कि उनकी पहली कहानी १९३४ में माधुरी में छपी थी। .
देखें प्रेमचंद और माधुरी पत्रिका
मानसरोवर (बहुविकल्पी)
मानसरोवर के कई अर्थ हैं -.
देखें प्रेमचंद और मानसरोवर (बहुविकल्पी)
मानसरोवर (कथा संग्रह)
मानसरोवर झील के बारे में जानने के लिए यहां जाएं -मानसरोवर यह प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानियों का संकलन है। उनके निधनोपरांत मानसरोवर नाम से ८ खण्डों में प्रकाशित इस संकलन में उनकी दो सौ से भी अधिक कहानियाँ शामिल है। किया गया है। कॉपीराइट अधिकारों से प्रेमचंद की रचनाओं के मुक्त होने के उपरांत मानसरोवर का प्रकाशन अनेक प्रकाशकों द्वारा किया गया है। .
देखें प्रेमचंद और मानसरोवर (कथा संग्रह)
मिथिलेश्वर
मिथिलेश्वर (जन्म: 31 दिसंबर 1950) हिंदी साहित्य में मुख्यतः साठोत्तरी पीढ़ी से सम्बद्ध प्रमुख कथाकार हैं। मुख्यतः ग्रामीण जीवन से सम्बद्ध कथानकों के प्रति समर्पित कथाकार मिथिलेश्वर सीधी-सादी शैली में विशिष्ट रचनात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में सिद्धहस्त माने जाते हैं। .
देखें प्रेमचंद और मिथिलेश्वर
मंगलसूत्र (उपन्यास)
मंगलसूत्र प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। यह अपूर्ण है। .
देखें प्रेमचंद और मंगलसूत्र (उपन्यास)
मुंशी दयानारायण निगम
मुंशी दयानारायण निगम बीसवीं सदी के प्रारंभ में कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका ज़माना के संपादक थे। उन्होंने प्रेमचंद की पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन प्रकाशित की थी। नवाबराय के नाम से लिखने वाले लेखक को प्रेमचंद नाम भी मुंशी दयानारायण निगम ने दिया था। जन्म तथा शिक्षा मुंशी दयानारायण निगम का जन्म 22 मार्च, 1882 को उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर शहर में हुआ था। उन्होंने 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय', उत्तर प्रदेश से शिक्षा पाई थी। निगम जी विद्वान् व्यक्तित्व के धनी थे। वे अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी के साथ-साथ ये बंगला, गुजराती और मराठी भाषाओं के भी ज्ञाता थे। सम्पादक व समाज सुधारक दयानारायण निगम ने मासिक पत्र 'ज़माना' के माध्यम से 'उर्दू साहित्य' की अभूतपूर्व सेवा की। यद्यपि निगम जी राष्ट्रीय विचारों के व्यक्ति थे, किन्तु संघर्ष की राजनीति से वे प्राय: अलग ही रहे। समाज सुधार उनका प्रिय विषय था, और वे अंतर्जातीय और 'विधवा विवाह' पर बड़ा बल देते थे। कहते हैं कि उनके आग्रह पर ही मुंशी प्रेमचन्द एक विधवा स्त्री से विवाह करने के लिए तैयार हुए थे। मुंशी प्रेमचन्द की अधिकांश उर्दू रचनाएँ 'ज़माना' में ही छपती थीं। मोहम्मद इक़बाल की प्रसिद्ध रचना 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' भी 'ज़माना' में ही पहली बार प्रकाशित हुई थी। श्रेणी:हिन्दी पत्रकार श्रेणी:प्रेमचंद.
देखें प्रेमचंद और मुंशी दयानारायण निगम
मोहन दयाराम भवनानी
मोहन दयाराम भवनानी का जन्म १९०३ में अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के हैदराबाद (पाकिस्तान) नगर में हुआ था। विभाजन के बाद वे भारत आ गए थे। वे हिन्दी फ़िल्मों के निर्माता, निर्देशक और लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने १९२५ में अपनी पहली फ़िल्म वीरबाला बतौर निर्देशक बनाई। इसमें प्रमुख भूमिका उन दिनों की नवोदित अभिनेत्री सुलोचना ने निभाई थी। सुलोचना की भी यह पहली फ़िल्म थी। १९३४ में उन्होंने प्रेमचंद जैसे प्रसिद्ध हिन्दी लेखक के साथ मजदूर (1934 फ़िल्म) नामक फ़िल्म बनाई। बीसवें दशक से पचासवें दशक तक विस्तृत कार्यकाल में लगभग २५ फिल्मों के निर्माता मोहन भवनानी की अंतिम फिल्म १९५७ में बनी हिमालयन टेपेस्ट्री थी। यह फ़िल्म अंग्रेज़ी में बनी एक वृत्तचित्र थी। ३० दिसंबर १९६२ को मुंबई में उनका देहांत हो गया। .
देखें प्रेमचंद और मोहन दयाराम भवनानी
यशपाल
---- यशपाल (३ दिसम्बर १९०३ - २६ दिसम्बर १९७६) का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .
देखें प्रेमचंद और यशपाल
रतन नाथ धर सरशार
रतन नाथ धर सरशार (जन्म - १८४६ - मृत्यु १९०३) उर्दू के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। इनके लेखन के प्रसंशकों में हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद भी शामिल थे। उनके द्वारा रचित उपन्यास फसाना-ए-आज़ाद का प्रकाशन १८७८ से १८८५ के मध्य धारावाहिक रूप से उनके अखबार अवध अखबार में हुआ। इस नॉवेल का हिन्दी अनुवाद प्रेमचंद ने आजाद कथा नाम से प्रकाशित किया और इसको आधार बनाकर शरद जोशी ने ८० के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक वाह जनाब की भी रचना की। .
देखें प्रेमचंद और रतन नाथ धर सरशार
राधाचरण गोस्वामी
राधाचरण गोस्वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .
देखें प्रेमचंद और राधाचरण गोस्वामी
रानी सारन्धा
रानी सारन्धा मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित की प्रसिद्ध कहानी है। .
देखें प्रेमचंद और रानी सारन्धा
राजेन्द्र यादव
राजेन्द्र यादव (अंग्रेजी: Rajendra Yadav, जन्म: 28 अगस्त 1929 आगरा – मृत्यु: 28 अक्टूबर 2013 दिल्ली) हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक होने के साथ-साथ हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय संपादक भी थे। नयी कहानी के नाम से हिन्दी साहित्य में उन्होंने एक नयी विधा का सूत्रपात किया। उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका हंस का पुनर्प्रकाशन उन्होंने प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था। यह पत्रिका सन् 1953 में बन्द हो गयी थी। इसके प्रकाशन का दायित्व उन्होंने स्वयं लिया और अपने मरते दम तक पूरे 27 वर्ष निभाया। 28 अगस्त 1929 ई० को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा में जन्मे राजेन्द्र यादव ने 1951 ई० में आगरा विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। उनका विवाह सुपरिचित हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ हुआ था। वे हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध हंस पत्रिका के सम्पादक थे। हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा राजेन्द्र यादव को उनके समग्र लेखन के लिये वर्ष 2003-04 का सर्वोच्च सम्मान (शलाका सम्मान) प्रदान किया गया था। 28 अक्टूबर 2013 की रात्रि को नई दिल्ली में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। .
देखें प्रेमचंद और राजेन्द्र यादव
रांगेय राघव
रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। .
देखें प्रेमचंद और रांगेय राघव
रघुवीर सिंह (महाराज कुमार)
डॉ रघुवीर सिंह (23 फरवरी, 1908 - 13 फरवरी, 1991) कुशल चित्रकार, वास्तुशास्त्री, प्रशासक, सैन्य अधिकारी, प्रबुद्ध सांसद, समर्थ इतिहासकार और सुयोग्य हिन्दी साहित्यकार थे। .
देखें प्रेमचंद और रघुवीर सिंह (महाराज कुमार)
रवीन्द्र प्रभात
रवीन्द्र प्रभात (जन्म: ५ अप्रैल १९६९) भारत के हिन्दी कवि, कथाकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, स्तंभकार, सम्पादक और ब्लॉग विश्लेषक हैं। उन्होंने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है परंतु व्यंग्य और गज़ल में उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ हैं। १९९१ में प्रकाशित अपने पहले गज़ल संग्रह "हमसफर" से पहली बार वे चर्चा में आये। लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी दैनिक 'जनसंदेश टाईम्स' और 'डेली न्यूज एक्टिविस्ट' के वे नियमित स्तंभकार रह चुके हैं। .
देखें प्रेमचंद और रवीन्द्र प्रभात
रंगभूमि
रंगभूमि प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। .
देखें प्रेमचंद और रंगभूमि
लमही
लमही उत्तर प्रदेश प्रान्त के वाराणसी शहर से 3.7 मील दूर एक छोटा गाँव है। यहाँ महान हिन्दी साहित्यकार प्रेमचंद का जन्म हुआ था। .
देखें प्रेमचंद और लमही
लॉटरी (लघु कहानी)
लॉटरी, भारत के महान लेखक प्रेमचंद की एक कालजयी लघु कहानी है। .
देखें प्रेमचंद और लॉटरी (लघु कहानी)
शतरंज के खिलाड़ी (कहानी)
शतरंज के खिलाड़ी मुंशी प्रेमचंद की हिन्दी कहानी है। इसकी रचना उन्होने अक्टूबर १९२४ में की थी और यह 'माधुरी' पत्रिका में छपी थी। 1977 में सत्यजीत राय ने इसी नाम से इस कहानी पर आधारित एक हिन्दी फिल्म बनायी। .
देखें प्रेमचंद और शतरंज के खिलाड़ी (कहानी)
शतरंज के खिलाड़ी (१९७७ फ़िल्म)
शतरंज के खिलाड़ी 1977 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसी नाम से मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानी पर आधारित इस फिल्म के निर्देशक थे प्रसिद्ध बांग्ला फिल्मकार सत्यजित रे। इसकी कहानी १८५६ के अवध नवाब वाजिद अली शाह के दो अमीरों के इर्द-गिर्द घूमती है। ये दोनों खिलाड़ी शतरंज खेलने में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने शासन तथा परिवार की भी फ़िक्र नहीं रहती। इसी की पृष्ठभूमि में अंग्रेज़ों की सेना अवध पर चढ़ाई करती है। फिल्म का अंत अंग्रेज़ों के अवध पर अधिपत्य के बाद के एक दृश्य से होता है जिसमें दोनों खिलाड़ी शतरंज अपने पुराने देशी अंदाज की बजाय अंग्रेज़ी शैली में खेलने लगते हैं जिसमें राजा एक दूसरे के आमने सामने नहीं होते। इस फिल्म को फिल्मकारों तथा इतिहासकारों दोनों की समालोचना मिली थी। फ़िल्म को तीन फिल्मपेयर अवार्ड मिले थे जिसमें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी शामिल था। .
देखें प्रेमचंद और शतरंज के खिलाड़ी (१९७७ फ़िल्म)
शिवदान सिंह चौहान
शिवदान सिंह चौहान (1918-2000) हिन्दी साहित्य के प्रथम मार्क्सवादी आलोचक के रूप में ख्यात हैं। लेखक होने के साथ-साथ वे सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे। .
देखें प्रेमचंद और शिवदान सिंह चौहान
सत्यजित राय
सत्यजित राय (बंगाली: शॉत्तोजित् राय्) (२ मई १९२१–२३ अप्रैल १९९२) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। इनका जन्म कला और साहित्य के जगत में जाने-माने कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज और विश्व-भारती विश्वविद्यालय में हुई। इन्होने अपने कैरियर की शुरुआत पेशेवर चित्रकार की तरह की। फ़्रांसिसी फ़िल्म निर्देशक ज़ाँ रन्वार से मिलने पर और लंदन में इतालवी फ़िल्म लाद्री दी बिसिक्लेत (Ladri di biciclette, बाइसिकल चोर) देखने के बाद फ़िल्म निर्देशन की ओर इनका रुझान हुआ। राय ने अपने जीवन में ३७ फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं। इनकी पहली फ़िल्म पथेर पांचाली (পথের পাঁচালী, पथ का गीत) को कान फ़िल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। यह फ़िल्म अपराजितो (অপরাজিত) और अपुर संसार (অপুর সংসার, अपु का संसार) के साथ इनकी प्रसिद्ध अपु त्रयी में शामिल है। राय फ़िल्म निर्माण से सम्बन्धित कई काम ख़ुद ही करते थे — पटकथा लिखना, अभिनेता ढूंढना, पार्श्व संगीत लिखना, चलचित्रण, कला निर्देशन, संपादन और प्रचार सामग्री की रचना करना। फ़िल्में बनाने के अतिरिक्त वे कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार और फ़िल्म आलोचक भी थे। राय को जीवन में कई पुरस्कार मिले जिनमें अकादमी मानद पुरस्कार और भारत रत्न शामिल हैं। .
देखें प्रेमचंद और सत्यजित राय
सदगति (१९८१ फ़िल्म)
सद्गति 1981 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। .
देखें प्रेमचंद और सदगति (१९८१ फ़िल्म)
सद्गति तथा अन्य नाटक
मुखपृष्ठइस पुस्तक में प्रेमचंद की कहानी सद्गति तथा कुछ अन्य कहानियों का नाट्य रूपांतर है। रूपांतरकार है प्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल।.
देखें प्रेमचंद और सद्गति तथा अन्य नाटक
समस्त रचनाकार
अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.
देखें प्रेमचंद और समस्त रचनाकार
सर्वस्व
सर्वस्व का अर्थ होता है सब कुछ। .
देखें प्रेमचंद और सर्वस्व
सलीम (प्रेमचंद)
सलीम प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास कर्मभूमि (१९३२) का प्रमुख चरित्र है। वह अमरकांत का साथी औ्र शहर के रईस एवं प्रभावशाली राजनेता हाफिज अली, जो बनारस की म्युनिसिपैलिटी के मेयर हैं, का पुत्र है। वह भारतीय लोक सेवा की तैयारी करने वाले युवकों का प्रतिनिधी है जो भारत की आम जनता विरोधी ब्रितानी प्रशासन का चरित्र उजागर करने का माध्यम बना है। ्प्रेमचंद उसे सरकारी नौकरी त्याग कर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होते दिखाकर उस समय के नौकरी करने वाले लोगों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में साथी बनने का स्वप्न देख रहे थे। श्रेणी:प्रेमचंद श्रेणी:साहित्यिक चरित्र.
देखें प्रेमचंद और सलीम (प्रेमचंद)
साहित्य
किसी भाषा के वाचिक और लिखित (शास्त्रसमूह) को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य
साहित्य अकादमी पुरस्कार पंजाबी
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और पंजाबी भाषा इन में से एक भाषा हैं। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार पंजाबी
साहित्य अकादमी पुरस्कार बोड़ो
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और बोड़ो भाषा इन में से एक भाषा हैं। अकादमी ने २००५ से इस भाषा के लिए पुरस्कारों को पेश किया। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार बोड़ो
साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और मणिपुरी भाषा इन में से एक भाषा हैं। अकादमी ने १९७३ से इस भाषा के लिए पुरस्कारों को पेश किया। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार मणिपुरी
साहित्य अकादमी पुरस्कार मलयालम
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और मलयालम भाषा इन में से एक भाषा हैं। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार मलयालम
साहित्य अकादमी पुरस्कार मैथिली
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और मैथिली भाषा इन में से एक भाषा हैं। अकादमी ने १९६६ से इस भाषा के लिए पुरस्कारों को पेश किया। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार मैथिली
साहित्य अकादमी पुरस्कार संस्कृत
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और संस्कृत भाषा इन में से एक भाषा हैं। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार संस्कृत
साहित्य अकादमी पुरस्कार कन्नड़
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और कन्नड़ भाषा इन में से एक भाषा हैं। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार कन्नड़
साहित्य अकादमी पुरस्कार असमिया
साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और असमिया भाषा इन में से एक भाषा हैं। .
देखें प्रेमचंद और साहित्य अकादमी पुरस्कार असमिया
सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम
सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (उर्दू नाम- इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) प्रेमचंद की पहली प्रकाशित कहानी है। इसका प्रकाशन कानपूर से निकलने वाली उर्दू पत्रिका ज़माना के अप्रैल १९०८ के अंक में हुआ था। आम तौर से प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह सोज़ेवतन में प्रकाशित दुनिया का सबसे अनमोल रतन को उनकी पहली कहानी माना जाता रहा है। डॉ॰ कमल किशोर गोयनका के अनुसार सोज़ेवतन का प्रकाशन जून १९०८ में हुआ था जबकि सांसारिक प्रेम और देशप्रेम अप्रैल १९०८ में प्रकाशित हो चुकी थी। यह कहानी इटली के मशहूर राष्ट्रवादी मैजिनी और उसकी प्रेमिका मैग्डलीन के जीवन को आधार बनाकर लिखी गई है। यह देश की आजादी के लिए आमरण संघर्ष करने की भावना को अभिव्यक्त करती है। यह व्यक्तिगत प्रेम पर राष्ट्रप्रेम को महत्ता प्रदान करने वाली कहानी है। .
देखें प्रेमचंद और सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम
संचित
संचित का अर्थ होता है इकट्ठा किया हुआ। .
देखें प्रेमचंद और संचित
संजीव
संजीव (6 जुलाई, 1947 से वर्तमान) हिन्दी साहित्य की जनवादी धारा के प्रमुख कथाकारों में से एक हैं। कहानी एवं उपन्यास दोनों विधाओं में समान रूप से रचनाशील। प्रायः समाज की मुख्यधारा से कटे विषयों, क्षेत्रों एवं वर्गों को लेकर गहन शोधपरक कथालेखक के रूप में मान्य। .
देखें प्रेमचंद और संजीव
संगीता गौड़
डॉ॰ संगीता गौड़ - संगीतकार, शास्त्रीय संगीत गायिका और नाट्य संगीत निर्देशक हैं। वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हवेली संगीत में अनुसंधान के लिए फैलोशिप प्राप्त कर चुकी हैं। .
देखें प्रेमचंद और संगीता गौड़
सुदर्शन (साहित्यकार)
सुदर्शन (1895-1967) प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। ये आदर्शोन्मुख यथार्थवादी हैं। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। अपनी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में इन्होंने समस्यायों का आदशर्वादी समाधान प्रस्तुत किया है। चौधरी छोटूराम जी ने कहानीकार सुदर्शन जी को जाट गजट का सपादक बनाया था। केवल इसलिये कि वह पक्के आर्यसमाजी थे और आर्य समाजी समाज सुधारर होते हैं। एक गोरे पादरी के साथ टक्कर लेने से गोरा शाही सुदर्शन जी से चिढ़ गई। चौ.
देखें प्रेमचंद और सुदर्शन (साहित्यकार)
सुबिमल बसाक
सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .
देखें प्रेमचंद और सुबिमल बसाक
सुरेन्द्र चौधरी
सुरेन्द्र चौधरी (1933-2001) हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में मुख्यतः कथालोचक के रूप में मान्य हैं। हिन्दी कहानी के शीर्ष आलोचकों में उनका स्थान प्रायः निर्विवाद रहा है। .
देखें प्रेमचंद और सुरेन्द्र चौधरी
सेवासदन
सेवासदन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। नारी जाति की परवशता, निस्सहाय अवस्था, आर्थिक एवं शैक्षिक परतंत्रता, अर्थात् नारी दुर्दशा पर आज के हिन्दी साहित्य में जितनी मुखर चर्चा हो रही है; बीसवीं सदी के प्रारंभिक चरण में, कथासम्राट प्रेमचंद (1880-1936) के यहाँ कहीं इससे ज्यादा मुखर थी। नारी जीवन की समस्याओं के साथ-साथ समाज के धर्माचार्यों, मठाधीशों, धनपतियों, सुधारकों के आडंबर, दंभ, ढोंग, पाखंड, चरित्रहीनता, दहेज-प्रथा, बेमेल विवाह, पुलिस की घूसखोरी, वेश्यागमन, मनुष्य के दोहरे चरित्र, साम्प्रदायिक द्वेष आदि आदि सामाजिक विकृतियों के घृणित विवरणों से भरा उपन्यास सेवासदन (1916) आज भी समकालीन और प्रासंगिक बना हुआ है। इन तमाम विकृतियों के साथ-साथ यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है। अतिरिक्त सुखभोग की अपेक्षा में अपना सर्वस्व गवाँ लेने के बाद जब कथानायिका को सामाजिक गुणसूत्रों की समझ हो जाती है, तब वह किसी तरह दुनिया के प्रति उदार हो जाती है और उसका पति साधु बनकर अपने व्यतीत दुष्कर्मों का प्रायश्चित करने लगता है, जमींदारी अहंकार में डूबे दंपति अपनी तीसरी पीढ़ी की संतान के जन्म से प्रसन्न होते हैं और अपनी सारी कटुताओं को भूल जाते हैं-ये सारी स्थितियाँ उपन्यास की कथाभूमि में इस तरह पिरोई हुई हैं कि तत्कालीन समाज की सभी अच्छाइयों बुराइयों का जीवंत चित्र सामने आ जाता है। हर दृष्टि से यह उपन्यास एक धरोहर है। प्रेमचंद ने सेवासदन उपन्यास सन् १९१६ में उर्दु भाषा में लिखा था। बाद में सन १९१९ में उन्होने इसका हिन्दी रुपान्तरण स्वयं किया।.
देखें प्रेमचंद और सेवासदन
सोज़े-वतन
सोज़े वतन नामक कहानी संग्रह के रचनाकार नवाबराय (प्रेमचन्द) हैं। इसका प्रकाशन १९०८ में हुआ। इस संग्रह के कारण प्रेमचन्द को सरकार का कोपभाजन बनना पडा। सोज़े वतन का अर्थ है देश का मातम। इस संग्रह में पाँच कहानियाँ थीं। दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर, यही मेरा वतन है, शोक का पुरस्कार और सांसारिक प्रेम। पाँचों कहानियाँ उर्दू भाषा में थीं। हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने इसे देशद्रोही करार दिया और इसकी सारी प्रतियाँ जलवाकर नष्ट कर दीं। इसके बाद नवाबराय से वे प्रेमचन्द हो गए। श्रेणी:प्रेमचंद.
देखें प्रेमचंद और सोज़े-वतन
हरीश त्रिवेदी
हरीश त्रिवेदी (जन्म १९४७) अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। उन्होंने हिंदी से प्रेमचन्द, मोहन राकेश एवं शरद जोशी की कहानियों तथा अमृतराय की पुस्तक कलम का सिपाही का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। कोलोनियल ट्रांसलेशन, इन्टरोगेटिंग पोस्ट कोलेनियलिज्म इनकी प्रमुख आलोचना पुस्तकें हैं। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.
देखें प्रेमचंद और हरीश त्रिवेदी
हिन्दी पत्रिकाएँ
हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्यवस्था के लिए चतुर्थ स्तम्भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्दोलन और साहित्यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .
देखें प्रेमचंद और हिन्दी पत्रिकाएँ
हिन्दी पुस्तकों की सूची/ट
* टक्कर मुझसे है - वसन्त कानेतकर.
देखें प्रेमचंद और हिन्दी पुस्तकों की सूची/ट
हिन्दी पुस्तकों की सूची/त
* तकीषी की कहानियां - बी.डी. कृष्णन.
देखें प्रेमचंद और हिन्दी पुस्तकों की सूची/त
हिन्दी पुस्तकों की सूची/प
* पंच परमेश्वर - प्रेम चन्द्र.
देखें प्रेमचंद और हिन्दी पुस्तकों की सूची/प
हिन्दी पुस्तकों की सूची/श
संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.
देखें प्रेमचंद और हिन्दी पुस्तकों की सूची/श
हिन्दी ग्रन्थों की सूची
रामचरितमानस - गोस्वामी तुलसीदास सूरसागर - सूरदास साखी - कबीरदास सतसई - बिहारी गोदान - मुंशी प्रेमचन्द कामायनी - जयशंकर प्रसाद प्रिय प्रवास - अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध रश्मिरथी - रामधकठपुतलियों का दौर - शिवकुमार श्रीवास्तव ारी सिंह दिनकर .
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हिन्दी के दस सर्वश्रेष्ठ
हिन्दी के दस सर्वश्रेष्ठ बीसवीं शताब्दी तक के हिन्दी साहित्यकारों एवं हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाओं के सन्दर्भ में श्रेष्ठ आलोचकों द्वारा किये गये उल्लेखों-विवेचनों पर आधारित मुख्यतः दस-दस उत्कृष्ट साहित्यकारों या फिर साहित्यिक कृतियों का चयन है, जिन्हें सापेक्ष रूप से श्रेष्ठतर माना गया है। .
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हिन्दी उपन्यास
हिंदी उपन्यास का आरम्भ श्रीनिवासदास के "परीक्षागुरु' (१८४३ ई.) से माना जाता है। हिंदी के आरम्भिक उपन्यास अधिकतर ऐयारी और तिलस्मी किस्म के थे। अनूदित उपन्यासों में पहला सामाजिक उपन्यास भारतेंदु हरिश्चंद्र का "पूर्णप्रकाश' और चंद्रप्रभा नामक मराठी उपन्यास का अनुवाद था। आरम्भ में हिंदी में कई उपन्यास बँगला, मराठी आदि से अनुवादित किए गए। हिंदी में सामाजिक उपन्यासों का आधुनिक अर्थ में सूत्रपात प्रेमचंद (१८८०-१९३६) से हुआ। प्रेमचंद पहले उर्दू में लिखते थे, बाद में हिंदी की ओर मुड़े। आपके "सेवासदन', "रंगभूमि', "कायाकल्प', "गबन', "निर्मला', "गोदान', आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं, जिनमें ग्रामीण वातावरण का उत्तम चित्रण है। चरित्रचित्रण में प्रेमचंद गांधी जी के "हृदयपरिवर्तन' के सिद्धांत को मानते थे। बाद में उनकी रुझान समाजवाद की ओर भी हुई, ऐसा जान पड़ता है। कुल मिलाकर उनके उपन्यास हिंदी में आधुनिक सामाजिक सुधारवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। जयशंकर प्रसाद के "कंकाल' और "तितली' उपन्यासों में भिन्न प्रकार के समाजों का चित्रण है, परंतु शैली अधिक काव्यात्मक है। प्रेमचंद की ही शैली में, उनके अनुकरण से विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, सुदर्शन, प्रतापनारायण श्रीवास्तव, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि अनेक लेखकों ने सामाजिक उपन्यास लिखे, जिनमें एक प्रकार का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद अधिक था। परंतु पांडेय बेचन शर्मा "उग्र', ऋषभचरण जैन, चतुरसेन शास्त्री आदि ने फरांसीसी ढंग का यथार्थवाद और प्रकृतवाद (नैचुरॉलिज़्म) अपनाया और समाज की बुराइयों का दंभस्फोट किया। इस शेली के उपन्यासकारों में सबसे सफल रहे "चित्रलेखा' के लेखक भगवतीचरण वर्मा, जिनके "टेढ़े मेढ़े रास्ते' और "भूले बिसरे चित्र' बहुत प्रसिद्ध हैं। उपेन्द्रनाथ अश्क की "गिरती दीवारें' का भी इस समाज की बुराइयों के चित्रणवाली रचनाओं में महत्वपूर्ण स्थान है। अमृतलाल नागर की "बूँद और समुद्र' इसी यथार्थवादी शैली में आगे बढ़कर आंचलिकता मिलानेवाला एक श्रेष्ठ उपन्यास है। सियारामशरण गुप्त की नारी' की अपनी अलग विशेषता है। मनोवैज्ञानिक उपन्यास जैनेंद्रकुमार से शुरू हुए। "परख', "सुनीता', "कल्याणी' आदि से भी अधिक आप के "त्यागपत्र' ने हिंदी में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया। जैनेंद्र जी दार्शनिक शब्दावली में अधिक उलझ गए। मनोविश्लेषण में स.
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हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद
मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्य में प्रगतिवाद के रूप में उदय हुआ। यह समाज को शोषक और शोषित के रूप में देखता है। प्रगतिवादी शोषक वर्ग के खिलाफ शोषित वर्ग में चेतना लाने तथा उसे संगठित कर शोषण मुक्त समाज की स्थापना की कोशिशों का समर्थन करता है। यह पूँजीवाद, सामंतवाद, धार्मिक संस्थाओं को शोषक के रूप में चिन्हित कर उन्हें उखाड़ फेंकने की बात करता है। हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद का आरंभ १९३६ से माना जा सकता है। इसी वर्ष लखनउ में प्रगतिशील लेखक संघ का पहला सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की। इसके बाद साहित्य की विभिन्न विधाओं में मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित रचनाएँ हुई। प्रगतिवादी धारा के साहित्यकारों में नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, आदि प्रमुख हैं। श्रेणी:हिन्दी साहित्य.
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हिंदी साहित्यकार
इस सूची में अन्य भाषाओं में लिखनेवाले वे साहित्यकार भी सम्मिलित हैं जिनकी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद हो चुका है। अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.
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हंस (संपादक प्रेमचंद)
हंस का प्रकाशन सन् 1930 ई० में बनारस से प्रारम्भ हुआ था। इसके सम्पादक मुंशी प्रेमचन्द थे। प्रेमचन्द के सम्पादकत्व में यह पत्रिका हिन्दी की प्रगति में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई। सन् 1933 में प्रेमचन्द ने इसका काशी विशेषांक बड़े परिश्रम से निकाला। वे सन् 1930 से लेकर 1936 तक इसके सम्पादक रहे। उसके बाद जैनेन्द्र और प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने संयुक्त रूप से इसका सम्पादन प्रारम्भ किया। हंस के विशेषांकों में प्रेमचन्द स्मृति अंक, एकांकी नाटक अंक 1938, रेखाचित्र अंक, कहानी अंक, प्रगति अंक तथा शान्ति अंक विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। जैनेन्द्र और शिवरानी देवी के बाद इसके सम्पादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय उसके बाद अमृत राय और तत्पश्चात् नरोत्तम नागर रहे। बहुत दिनों बाद सन् 1959 में हंस का एक वृहत् संकलन सामने आया जिसमें बालकृष्ण राव और अमृत राय के संयुक्त सम्पादन में आधुनिक साहित्य एवं उससे सम्बन्धित नवीन मूल्यों पर विचार किया गया था। .
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हंस पत्रिका
हंस दिल्ली से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की एक कथा मासिक पत्रिका है जिसका सम्पादन राजेन्द्र यादव ने 1986 से 2013 तक पूरे 27 वर्ष किया। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा स्थापित और सम्पादित हंस अपने समय की अत्यन्त महत्वपूर्ण पत्रिका रही है। महात्मा गांधी और कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी दो वर्ष तक हंस के सम्पादक मण्डल में शामिल रहे। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया। अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बन्द रहा। बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। वर्तमान में हंस एक सांस्कृतिक, साहित्यिक और विचारशील पत्रिका के रूप में जानी जाती है। .
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होली
होली (Holi) वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा (खोया) और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है। .
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जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'
जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' (१९०४ - ५ मई १९६४) हिन्दी कवि, कथाकार तथा शिक्षक थे। ये कहानी लेखकों की अगली पंक्ति में थे व इनकी गणना हिन्दी के छायावाद काल के भावुक कवियों में की जाती है। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने कहानी और पद्यरचना आरंभ कर दी थी जब कि ये विद्यालय के एक आदर्श छात्र थे। स्वभाव में गंभीर, प्रकृत्या शांत, प्रत्युत्पन्नमति, हँसमुख व्यक्ति थे जिन्होंने सदा सरल जीवन ही जिया। ये प्रतिभाशाली विचारक, निर्भय आलोचक, एवं स्पष्ट वक्ता थे तथा उन्होंनें हिंदीहित को अपने जीवन में सर्वोपरि रखा। .
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जागरण साप्ताहिक
प्रेमचन्द हंस से संतुष्ट न थे। वे एक सप्ताहिक पत्र भी निकालना चाहते थे। अवसर मिलते ही उन्होंने विनोदशंकर व्यास से जागरण ले लिया और २२ अगस्त, १९३२ को उनके सम्पादकत्व में इसका पहला अंक निकला, किन्तु आर्थिक हानि के कारण उन्हें इसका अन्तिम अंक २१ मई, १९३४ को निकाल कर इसे बन्द करना पड़ा। .
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जैनेन्द्र कुमार
प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्रकुमार (२ जनवरी, १९०५- २४ दिसंबर, १९८८) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं। .
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जोबा मुर्मु
जोबा मुर्मु कारंदीह, दुखू तोला, जमशेदपुर में रहने वाली संथाली महिला हैं जिन्हें उनके भाषा योगदान के कारण नवम्बर 14, 2017 को साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार प्राप्त हुआ।http://jharkhandstatenews.com/article/top-stories/2393/joba-murmu-santali-writer-selected-for-bal-sahitya-award/ .
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ईदगाह (कहानी)
ईदगाह प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानी है। .
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वाराणसी
वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .
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वाराणसी/आलेख
वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī), जिसे बनारस) और काशी) भी कहते हैं, गंगा नदी के तट पर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बसा शहर है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इसका नाम वाराणसीं वरुणा ओर असि नदियों के नाम के मिलाने से बना है !जो प्राचीन समय में यहा बहती थी !इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र शहर माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। ये संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रन्थ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी, दीपों का शहर, ज्ञान नगरी आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, दंतकथाओं (लीजेन्ड्स) से भीप्राचीन है और जब इन सबकों एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से दोगुना प्राचीन है।" .
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विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक'
विश्वंभर नाथ शर्मा 'कौशिक' (१८९९- १९४५) प्रेमचन्द परम्परा के ख्याति प्राप्त कहानीकार थे। प्रेमचन्द के समान साहित्य में आपका दृष्टिकोण भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद था। कौशिक जी का जन्म १८९९ में पंजाब के अम्बाला नामक नगर में हुआ था। इनकी अधिकांश कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं। इन कहानियों के पात्रों में चरित्र निर्माण में लेखक ने मनोविज्ञान का सहारा लिया है और सुधारवादी मनोवृत्तियों से परिचालित होने के कारण उन्हें अन्त में दानव से देवता बना दिया है। .
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विष्णु प्रभाकर
विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं। .
देखें प्रेमचंद और विष्णु प्रभाकर
विज्ञान कथा साहित्य
विज्ञान कथा, काल्पनिक साहित्य की ही वह विधा है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित परिवर्तनों को लेकर उपजी मानवीय प्रतिक्रिया को कथात्मक अभिव्यक्ति देती है। मेरी शेली की 'द फ्रन्केनस्टआईन' पहली विज्ञान कथात्मक कृति मानी जाती है। अमेरिका और ब्रिटेन में विगत सदी में बेह्तरीन विज्ञान कथाएं लिखी गयी है- आइजक आजीमोव, आर्थर सी क्लार्क, रोबर्ट हेनलीन प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक रहे हैं। अब तीनों दिवंगत हैं। .
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वृंदावनलाल वर्मा
वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। 'अपनी कहानी' में आपने अपने संघर्षमय जीवन की गाथा कही है। .
देखें प्रेमचंद और वृंदावनलाल वर्मा
वेदना
वेदना का अर्थ होता है दर्द। .
देखें प्रेमचंद और वेदना
ग़बन (उपन्यास)
---- गबन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। ‘निर्मला’ के बाद ‘गबन’ प्रेमचंद का दूसरा यथार्थवादी उपन्यास है। कहना चाहिए कि यह उसके विकास की अगली कड़ी है। ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'। ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने पहली नारी समस्या को व्यापक भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है और उसे तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़कर देखा है। सामाजिक जीवन और कथा-साहित्य के लिए यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है। यह उपन्यास जीवन की असलियत की छानबीन अधिक गहराई से करता है, भ्रम को तोड़ता है। नए रास्ते तलाशने के लिए पाठक को नई प्रेरणा देता है। .
देखें प्रेमचंद और ग़बन (उपन्यास)
गंगाप्रसाद श्रीवास्तव
गंगाप्रसाद श्रीवास्तव या गंगा बाबू (23 अप्रैल 1889–30 अगस्त 1976) हिन्दी साहित्यकार थे। जीपी बाबू अच्छे कथाकार, कहानीकार के अलावा एक बेहतर अभिनेता थे। कई नाटकों में उन्होंने सशक्त अभिनय किया। उस दौरान वे एकांकी के सशक्त अभिनेता थे। सरलता एवं अभिनय के गुण से परिपक्व, एकांकी लिखने में माहिर गंगा बाबू का नाम हिंदी के शुरुआती एकांकीकार के रूप में जाना जाता है। गंगा बाबू को ‘साहित्य वारिधि’ व ‘साहित्य महारथी’ जैसे अलंकरण से विभूषित किया गया। हास्य सम्राट गंगा बाबू की याद में पूर्वोत्तर रेलवे ने गोंडा-बहराइच रेल खंड पर 'गंगाधाम' स्टेशन का निर्माण कराया। .
देखें प्रेमचंद और गंगाप्रसाद श्रीवास्तव
गौतम सचदेव
गौतम सचदेव (८ जून १९३९-२९ जून २०१२)ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। गौतम सचदेव ब्रिटेन में बसने से पहले बाल साहित्य में भारतीय राष्ट्रपति से सम्मान पा चुके थे। प्रेमचन्द की कहानियों पर उनकी डॉक्टरेट की थीसिस पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुकी थी। गौतम सचदेव ने हिन्दी साहित्य की प्रत्येक विधा में अपना हाथ आजमाया है। कविता, ग़ज़ल, लेख, कहानी, व्यंग्य, आलोचना सभी विधाओं में समान रूप से लिखते हैं और इन सभी विधाओं में उनके संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी बहुत सी कहानियों में विभाजन की पीड़ा, त्रासदी, दुख, टूटन देखे जा सकते हैं। उनके व्यंग्य आमतौर पर राजनीतिक, सामाजिक स्थितियों पर टिप्पणियां करते हैं। व्यंग्य लेखन में वे पात्रों एवं घटनाओं का इस्तेमाल नहीं करते। बी.बी.सी.
देखें प्रेमचंद और गौतम सचदेव
गोदान (प्रेमचंद का उपन्यास)
गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। कुछ लोग इसे उनकी सर्वोत्तम कृति भी मानते हैं। इसका प्रकाशन १९३६ ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था। इसमें भारतीय ग्राम समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण है। गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है। इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है। गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है। .
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गोदान (फ़िल्म)
गोदान १९६३ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। .
देखें प्रेमचंद और गोदान (फ़िल्म)
गोदान (बहुविकल्पी)
* गोदान प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है।.
देखें प्रेमचंद और गोदान (बहुविकल्पी)
गोरखपुर
300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .
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गीतांजलिश्री
गीतांजलिश्री (जन्म 12 जून 1957) हिन्दी का जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं। उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी नगर में जन्मी गीतांजलि की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए.
देखें प्रेमचंद और गीतांजलिश्री
ओका ऊरी कथा
ओका ऊरी कथा प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित एक तेलुगू फ़िल्म थी। सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित इस फ़िल्म को १९७७ में मृणाल सेन ने बनाया था। श्रेणी:तेलुगू फ़िल्में.
देखें प्रेमचंद और ओका ऊरी कथा
औद्योगिक क्रांति
'''वाष्प इंजन''' औद्योगिक क्रांति का प्रतीक था। अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कुछ पश्चिमी देशों के तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति में काफी बड़ा बदलाव आया। इसे ही औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) के नाम से जाना जाता है। यह सिलसिला ब्रिटेन से आरम्भ होकर पूरे विश्व में फैल गया। "औद्योगिक क्रांति" शब्द का इस संदर्भ में उपयोग सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंड्स्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड" में सन् 1844 में किया। औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ आरम्भ हुआ। इसके साथ ही लोहा बनाने की तकनीकें आयीं और शोधित कोयले का अधिकाधिक उपयोग होने लगा। कोयले को जलाकर बने वाष्प की शक्ति का उपयोग होने लगा। शक्ति-चालित मशीनों (विशेषकर वस्त्र उद्योग में) के आने से उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई। उन्नीसवी सदी के प्रथम् दो दशकों में पूरी तरह से धातु से बने औजारों का विकास हुआ। इसके परिणामस्वरूप दूसरे उद्योगों में काम आने वाली मशीनों के निर्माण को गति मिली। उन्नीसवी शताब्दी में यह पूरे पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में फैल गयी। अलग-अलग इतिहासकार औद्योगिक क्रान्ति की समयावधि अलग-अलग मानते नजर आते हैं जबकि कुछ इतिहासकार इसे क्रान्ति मानने को ही तैयार नहीं हैं। अनेक विचारकों का मत है कि गुलाम देशों के स्रोतों के शोषण और लूट के बिना औद्योगिक क्रान्ति सम्भव नही हुई होती, क्योंकि औद्योगिक विकास के लिये पूंजी अति आवश्यक चीज है और वह उस समय भारत आदि गुलाम देशों के संसाधनों के शोषण से प्राप्त की गयी थी। .
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आदर्शोन्मुख यथार्थवाद
इस तस्वीर का प्रतिनिधित्व के बजाय वास्तविकता को स्वीकार आदर्श बनने की कोशिश कर समय बर्बाद नहीं है और एक यथार्थवादी होना आदर्शोन्मुख यथार्थवाद (Idealistic Realism) आदर्शवाद तथा यथार्थवाद का समन्वय करने वाली विचारधारा है। आदर्शवाद और यथार्थवाद बीसवीं शती के साहित्य की दो प्रमुख विचार धाराएँ थीं। आदर्शवाद में सत्य की अवहेलना या उस पर विजय प्राप्त कर के आदर्शवाद की स्थापना की जाती थी। जबकि यथार्थवाद में आदर्श का पालन नहीं किया जाता था, या उसका ध्यान नहीं रखा जाता था। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद में यथार्थ का चित्रण करते हुए भी आदर्श की स्थापना पर बल दिया जाता था। इस प्रवृत्ति की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण संकेत प्रेमचन्द का है। उन्होंने कथा साहित्य को यथार्थवादी रखते हुए भी आदर्शोन्मुख बनाने की प्रेरणा दी और स्वतः अपने उपन्यासों ऑर कहनियों में इस प्रवृत्ति को जीवन्त रूप में अंकित किया। उनका उपन्यास प्रेमाश्रम इसी प्रकार की कृति है। पर प्रेमचन्द के बाद इस साहित्यिक विचारधारा का आगे विकास प्रायः नहीं हुआ। इस चिंतन पद्धति को कदचित कलात्मक स्तर पर कृत्रिम समझकर छोड दिया गया। प्रेमचन्द कला के क्षेत्र में यथार्थवादी होते हुए भी सन्देश की दृष्टि से आदर्शवादी हँ। आदर्श प्रतिष्ठा करना उनके सभी उपन्यासों का लक्ष्य हॅ। ऐसा करने में चाहे चरित्र की स्वाभाविकता नष्ट हो जाय, किन्तु वह अपने सभी पात्रों को आदर्श तक पहुँचाते अवश्य है। प्रेमचन्द की कला का चर्मोत्कर्ष उनके अन्तिम उपन्यास गोदान में दिखाई पडता हॅ। "गोदान" लिखने से पहले प्रेमचन्द आदर्शोन्मुख यथार्थवादी थे, परन्तु "गोदान" में उनका आदर्शोन्मुख यथार्थवाद जवाब दे गया है। प्रेमचंद इस विचारधारा के प्रमुख लेखक थे। .
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आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास
हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना के साथ-साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ-साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नई क्रांति हुई। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे भारत में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है- .
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आधुनिक काल
हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। सं 1800 वि.
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आज
आज हिन्दी भाषा का एक दैनिक समाचार पत्र है। इस समय `आज' वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर, पटना, इलाहाबाद, तथा रांची से प्रकाशित हो रहा है। .
देखें प्रेमचंद और आज
आंतोन चेखव
आंतोन चेखव अन्तोन पाव्लाविच चेख़व (रूसी:Анто́н Па́влович Че́хов, IPA:; २९ जनवरी,१८६० -- १५ जुलाई,१९०४) रूसी कथाकार और नाटककार थे। अपने छोटे से साहित्यिक जीवन में उन्होंने रूसी भाषा को चार कालजयी नाटक दिए जबकि उनकी कहानियाँ विश्व के समीक्षकों और आलोचकों में बहुत सम्मान के साथ सराही जाती हैं। चेखव अपने साहित्यिक जीवन के दिनों में ज़्यादातर चिकित्सक के व्यवसाय में लगे रही। वे कहा करते थे कि चिकित्सा मेरी धर्मपत्नी है और साहित्य प्रेमिका। .
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इस्मत चुग़ताई
इस्मत चुग़ताई (عصمت چغتائی) (जन्म: 15 अगस्त 1915-निधन: 24 अक्टूबर 1991) भारत से उर्दू की एक लेखिका थीं। उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़ें की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। .
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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
कन्हैयालाल मुंशी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (२९ दिसंबर, १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, गुजराती एवं हिन्दी के ख्यातिनाम साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे। उन्होने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। .
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कफन
कफन हिन्दी- क़फ़न उर्दू का एक शब्द है जिसका अर्थ अंत्येष्टि में प्रयोग किया जानेवाला श्वेतवस्त्र, जो मृत व्यक्ति के शरीर पर डाला जाता है।.
देखें प्रेमचंद और कफन
कफन (कथासंग्रह)
कफ़न प्रेमचंद द्वारा रचित कथासंग्रह है। इसमें प्रेमचंद की अंतिम कहानी कफन के साथ अन्य १३ कहानियाँ संकलित हैं। पुस्तक में शामिल प्रत्येक कहानी मानव मन के अनेक दृश्यों, चेतना के अनेक छोरों, सामाजिक कुरीतियों तथा आर्थिक उत्पीड़न के विविध आयामों को सम्पूर्ण कलात्मकता के साथ अनावृत करती है। कफ़न कहानी प्रेमचंद की अन्य कहानियों से एकदम भिन्न है। उनके कहानी-संसार से इसका संसार सर्वथा निसंस्संग है, इसलिए उनकी कहानियों से परिचित लोगों के लिए यह अनबूझ पहेली हो जाती है, प्रेमचंद के संबंध में बनी हुई पूर्ववर्ती धारणा के आहे प्रश्रचिह्न लगा देती है। यह मूल्यों के खंडर ही कहानी है। आधुनिकता के सारे मुद्दे इसमें मिल जाते हैं। यह तो आधुनिकता बोध की पहली कहानी है। यही कारण है कुछ विद्वान इसे प्रगतिवादी कहते हैं तो डॉ॰इंद्रनाथ मदान का कहना है-कहानी जिस सत्य को उजागर करती है वह जीवन के तथ्य से मेल नहीं खाता। कफन प्रेमचंद की जिन्दगी के उस बिंदु से जुड़ी हुई कहानी है जिसके आगे कोई बिन्दु नहीं होता। डॉ॰बच्चन सिंह के मतानुसार- यह उनके जीवन का ही कफन नहीं सिद्ध हुई बल्कि उनके संचित आदर्शों, मूल्यों, आस्थाओं और विश्वासों का भी कफन सिद्ध हुई। जब कि डॉ॰परमानंद श्रीवास्तव का कहना है कि...
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कमल किशोर गोयनका
डॉ॰कमल किशोर गोयनका (सौजन्य से ईविश्वडॉटकॉम) डॉ॰ कमल किशोर गोयनका दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अवकाशप्राप्त प्राध्यापक हैं। उन्होंने वहाँ चालीस वर्ष अध्यापन किया। गोयनकाजी उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द के साहित्य के सर्वोत्तम विद्वान शोधकर्ता माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचन्द पर उनकी अनेकों पुस्तकें व लेख प्रकाशित हो चुके हैं। प्रवासी हिन्दी साहित्य को एकत्रित करने, अध्ययन एवं विश्लेषण करने में उनकी अहम भूमिका रही। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित प्रेमचन्द ग्रंथावली के संकलन एवं सम्पादन में उनका विशेष योगदान है। उन्होंने हिन्दी में हाइकु कवितायें भी लिखी हैं। .
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कर्मभूमि
कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ। आज कई प्रकाशकों द्वारा इसके कई संस्करण निकल चुके हैं। इस उपन्यास में विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार यद्यपि अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तथापि तत्कालीन राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। .
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कहानी
कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .
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क्लासिक
क्लासिक मूलत: प्राचीन यूनान और रोम के लेखकों और उनकी कृतियों, किंतु अब, किसी भी देश और युग के कालजित् कीर्तिलब्ध, सर्वमान्य या प्रतिष्ठित लेखकों और उनकी कृतियों के लिये प्रयुक्त शब्द। वर्तमान अर्थ में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ईसा की दूसरी सदी में रोमन लेखक औलस गेलियस ने किया। उसके अनुसार लेखक दो कोटि के होते हैं। 1.
देखें प्रेमचंद और क्लासिक
क्वींस कालेज
क्वींस कॉलेज वाराणसी में स्थित एक राजकीय इन्टर कालेज है। इसकी स्थापना अंग्रेज शासन में हुई। पहले यह संस्कृत क्वींस कालेज के नाम से जाना जाता था। वर्तमान संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, क्वींस संस्कृत कालेज का प्रवर्धित रूप है जो इससे अलग एक मानद विश्वविद्यालय है। इस स्कूल में हिंदी साहित्य के महापुरुष जैसे जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद आदि शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। अाजकल भी उत्तर प्रदेश बोर्ड के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में इसकी गिनती होती है। .
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अमरकांत
अमरकांत (1925 - 17 फ़रवरी 2014) हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे।रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २०१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-६ .
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अरविन्द गौड़
अरविन्द गौड़, भारतीय रंगमंच निदेशक, सामाजिक और राजनीतिक प्रासंगिक रंगमंच में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। अरविंद गौड़ के नाटक समकालीन हैं। व्यापक सामाजिक राजनीतिक मुद्दों - सांप्रदायिकता, जातिवाद, सामंतवाद, घरेलू हिंसा, राज्य के अपराध, सत्ता की राजनीति, हिंसा, अन्याय, सामाजिक- भेदभाव और नस्लवाद उनके रंगमंच के प्रमुख विषय हैं। गौड़ एक अभिनेता प्रशिक्षक (ट्रेनर), सामाजिक कार्यकर्ता और एक अच्छे कथा -वाचक (स्टोरी टेलर) हैं। अरविन्द गौड़ ने भारत और विदेश के प्रमुख नाट्य महोत्सवो मैं भाग लिया है। ऊन्होने नाटक कार्यशालाओं का विभिन्न कॉलेजों, संस्थानों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों में आयोजन किया है। वह बच्चों के लिए भी नाटक (थिएटर) कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं। अरविन्द ने विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर नुक्कड़ नाटकॉ के साथ- साथ दो दशकों में 60 से अधिक मंच नाटकों का निर्देशन किया है। अरविन्द गौड़ ने विदेशों में अमेरिका, रुस, फ्रांस, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, एडिनबर्ग फेस्टिवल (ब्रिटेन), आर्मेनिया और संयुक्त अरब इमारात (यू ए ई) के साथ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) महोत्सव (भारत रंग महोत्सव),संगीत नाटक अकादमी, साहित्य कला परिषद, दर्पणा अकादमी ऑफ आर्टस् (अहमदाबाद), नान्दिकार (कोलकाता), विवेचेना थिएटर महोत्सव (जबलपुर), ओल्ड वल्ड् थिएटर महोत्सव, टाइम्स महोत्सव, गजानन माधव 'मुक्तिबोध' नाट्य महोत्सव, वर्ल्ड सोशल फोरम और नेहरू सेंटर महोत्सव (मुम्बई) मे भी भाग लिया है। पद्मश्री हबीब तनवीर के नया थिएटर के प्रमुख नाटको के लिए अरविन्द ने प्रकाश व्यवस्था भी डिजाइन की। आजकल अरविन्द गौड़ अस्मिता थियेटर ग्रुप के निदेशक के रूप मैं कार्यरत है। कुछ प्रमुख सिनेमा अभिनेताओं - कंगना राणावत, दीपक डोबरियाल, शिल्पा शुक्ला(चक दे इंडिया (2007 फ़िल्म)), पीयूष मिश्र, लुशिन दुबे, बबल्रस सबरवाल, ऐशवरया निधि (सिडनी), तिलोत्त्त्त्मा शोम (मानसून वेडिंग), राशि बनि, रुथ शेअर्द् (ब्रिटिश अभिनेत्री),मनु ऋषि, सीमा आज़मी (चक दे इंडिया), सुसान बरार (फिल्म-समर 2007), चन्दन आनंद, जैमिनि कुमार, शक्ति आनंद आदि ने उसके साथ काम किया है। .
देखें प्रेमचंद और अरविन्द गौड़
अल्हड़
अल्हड़ का अर्थ है उन्मुक्त, बाधारहित नियंत्रण विहीन नवप्राप्य। .
देखें प्रेमचंद और अल्हड़
अशोक आत्रेय
अशोक आत्रेय बहुमुखी प्रतिभा के संस्कृतिकर्मी सातवें दशक के जाने माने वरिष्ठ हिन्दी-कथाकार और (सेवानिवृत्त) पत्रकार हैं | मूलतः कहानीकार होने के अलावा यह कवि, चित्रकार, कला-समीक्षक, रंगकर्मी-निर्देशक, नाटककार, फिल्म-निर्माता, उपन्यासकार और स्तम्भ-लेखक भी हें| .
देखें प्रेमचंद और अशोक आत्रेय
अस्मिता
अस्मिता दिल्ली स्थित रंगमंच कर्मियों की एक नाट्य संस्था (थियेटर ग्रुप) है। अस्मिता नाट्य संस्था ने नुक्कड़ नाटकॉ के साथ- साथ दो दशकों में 60 से अधिक मंच नाटक किये है। संस्था सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से प्रासंगिक व समकालीन मुद्दों पर नाटक करने के लिए प्रतिबद्ध है। इन दिनो अरविन्द गौड़ अस्मिता थियेटर ग्रुप के निदेशक के रूप मे कार्यरत है। .
देखें प्रेमचंद और अस्मिता
अजंता सिनेटोन कंपनी
अजंता सिनेटोन कंपनी मोहन भवनानी की सिनेमा कंपनी थी जिसने ५५ से अधिक फिल्मों का निर्माण किया। हिन्दी के सुप्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद ने भी इस कंपनी के लिए मजदूर नामक फ़िल्म की कहानी लिखी थी। यह फिल्म १९३४ में बनी थी। .
देखें प्रेमचंद और अजंता सिनेटोन कंपनी
अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ
अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक बीसवीं शती के प्रारंभ में भारतीय प्रगतिशील लेखकों का एस समूह था। यह लेखक समूह अपने लेखन से सामाजिक समानता का समर्थक करता था और कुरीतियों अन्याय व पिछड़ेपन का विरोध करता था। इसकी स्थापना १९३५ में लंदन में हुई। इसके प्रणेता सज्जाद ज़हीर थे। १९३५ के अंत तक लंदन से अपनी शिक्षा समाप्त करके सज्जाद ज़हीर भारत लौटे। यहाँ आने से पूर्व वे अलीगढ़ में डॉ॰ अशरफ, इलाहबाद में अहमद अली, मुम्बई में कन्हैया लाल मुंशी, बनारस में प्रेमचंद, कलकत्ता में प्रो॰ हीरन मुखर्जी और अमृतसर में रशीद जहाँ को घोषणापत्र की प्रतियाँ भेज चुके थे। वे भारतीय अतीत की गौरवपूर्ण संस्कृति से उसका मानव प्रेम, उसकी यथार्थ प्रियता और उसका सौन्दर्य तत्व लेने के पक्ष में थे लेकिन वे प्राचीन दौर के अंधविश्वासों और धार्मिक साम्प्रदायिकता के ज़हरीले प्रभाव को समाप्त करना चाहते थे। उनका विचार था कि ये साम्राज्यवाद और जागीरदारी की सैद्धांतिक बुनियादें हैं। इलाहाबाद पहुंचकर सज्जाद ज़हीर अहमद अली से मिले जो विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता थे। अहमद अली ने उन्हें प्रो॰एजाज़ हुसैन, रघुपति सहाय फिराक, एहतिशाम हुसैन तथा विकार अजीम से मिलवाया.
देखें प्रेमचंद और अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ
अंतरभाषिक अनुवाद
अंतरभाषिक अनुवाद माध्यम आधारित अनुवाद का एक प्रकार है जिसमें एक भाषा की प्रतीक व्यवस्था का रूपांतरण किसी दूसरी भाषा की प्रतीक व्यवस्था में किया जाता है। उदाहरण के लिए प्रेमचंद के हिंदी उपन्यास गोदान का अंग्रेज़ी में गिफ्ट ऑफ काउ नाम से हुआ अनुवाद। .
देखें प्रेमचंद और अंतरभाषिक अनुवाद
अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू
अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू: (उर्दू: انجمن ترقئ اردو) भारत और पाकिस्तान में उर्दू भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार और प्रसार के लिए काम कर रहे एक प्रमुख संगठन है। "अंजुमन-ए ताराकी-उर्दू (अब से अंजुमन कहा जाता है) दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा उर्दू विद्वानों के प्रचारक संघ है।" .
देखें प्रेमचंद और अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू
उपन्यासकार
उपन्यास के लेखक को उपन्यासकार कहते हैं। यह साहित्य की एक गद्य विधा है जिसमें किसी कहानी को विस्तृत रूप से कहा जाता है।। यह साहित्य की अत्यंत प्रचिलित विधा है इसलिये उपन्यासकार भी बहुत से मिलते हैं। उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं - प्रेमचन्द नरेन्द्र कोहली शिवानी आचार्य चतुरसेन चार्ल्स डिकेंस आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त ने उपन्यासों के वैज्ञानिक वर्गीकरण की चर्चा करते हुए निम्न वर्गीकरण किया है। श्रेणी:साहित्यकार.
देखें प्रेमचंद और उपन्यासकार
उपेन्द्रनाथ अश्क
उपेन्द्र नाथ अश्क (१९१०- १९ जनवरी १९९६) उर्दू एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार तथा उपन्यासकार थे। ये अपनी पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित करते थे। .
देखें प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क
१९३६
1936 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
देखें प्रेमचंद और १९३६
१९८०
अभिनेत्री नेहा धुपिया १९८० ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
देखें प्रेमचंद और १९८०
३१ जुलाई
३१ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २१२वॉ (लीप वर्ष में २१३ वॉ) दिन है। साल में अभी और १५३ दिन बाकी है। .
देखें प्रेमचंद और ३१ जुलाई
८ अक्तूबर
8 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 281वॉ (लीप वर्ष मे 282 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 84 दिन बाकी है।.
देखें प्रेमचंद और ८ अक्तूबर
धनपत राय, धनपत राय श्रीवास्तव, धनपतराय, धनपतराय श्रीवास्तव, प्रेम चन्द, प्रेम चंद, प्रेमचन्द, प्रेमचन्द, मुंशी प्रेमचन्द, मुंशी प्रेमचन्द्र, मुंशी प्रेमचंद के रूप में भी जाना जाता है।