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पर्यावरणीय अवनयन

सूची पर्यावरणीय अवनयन

पर्यावरणीय अवनयन (अंग्रेजी: Environmental degradation) के अंतर्गत पर्यावरण में होने वाले वे सारे परिवार्तन आते हैं जो अवांछनीय हैं और किसी क्षेत्र विशेष में या पूरी पृथ्वी पर जीवन और संधारणीयता को खतरा उत्पन्न करते हैं। अतः इसके अंतर्गत प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण और अन्य प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि शामिल की जाती हैं। .

सामग्री की तालिका

  1. 5 संबंधों: पर्यावरण, पर्यावरण भूगोल, पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण, संधारणीयता

पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण - कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है और "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। .

देखें पर्यावरणीय अवनयन और पर्यावरण

पर्यावरण भूगोल

पर्यावरण भूगोल (अंग्रेजी: Environmental geography) पर्यावरणीय दशाओं, उनकी कार्यशीलता और तकनीकी रूप से सबल आर्थिक मानव और पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्यययन स्थानिक तथा कालिक (spatio-temporal) सन्दर्भों में करता है। यह एक तरह का संश्लेषणात्मक विज्ञान है और इसे इंटीग्रेटेड भूगोल (समन्वयात्मक भूगोल) के रूप में भी जाना जाता है। भूगोल कि यह शाखा एक प्रकार से भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के विभाजन और बढ़ती दूरियों को कम करने का कार्य करती है| भूगोल सदैव ही मानव और उसके पर्यावरण का अध्ययन स्थान के सन्दर्भों में करता रहा है लेकिन 1950-1970 के बीच भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के बीच बढती दूरियों ने इसे पर्यावरण के अध्ययन से विमुख कर दिया था और इस दौरान पर्यावरण के झण्डाबरदार जीव विज्ञानी रहे। बाद में तंत्र विश्लेषण और पारिस्थितिकीय उपागम के बढ़ते महत्व को भूगोल में तेजी से स्वीकृति मिली और पर्यावरण भूगोल, भौतिक और मानव भूगोल के बीच एक बहुआयामी संश्लेषण के रूप में उभरा। पर्यावरण भूगोल के अध्ययन का क्षेत्र: (1) पर्यावरण का एक पारितंत्र के रूप में संगठन और उसकी कार्यशीलता, (2) मानव-पारितंत्रीय संबंध विश्लेषण और पर्यावरणीय अवनयन, (3) पर्यावरणीय दशाओं और मानव-पर्यावरण संबंधों का स्थानिक संदर्भ में अध्ययन, तथा (4) पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन से जुड़े स्थानिक पहलू (5) भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी॰ आइ॰ एस॰) और सुदूर संवेदन तकनीक का पर्यावरणीय अध्ययन में अनुप्रयोग कि दशा और दिशा निर्धारित करना है। अतः प्राकृतिक या भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के मध्य समन्वय स्थापित करने और इनके बहु आयामी संश्लेषण के कारण पर्यावरण भूगोल को एक तीसरी नई शाखा के रूप में भी कुछ विद्वानों द्वारा देखा गया है। .

देखें पर्यावरणीय अवनयन और पर्यावरण भूगोल

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु,जल,भूमि,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। .

देखें पर्यावरणीय अवनयन और पर्यावरण संरक्षण

प्रदूषण

कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक प्रमुख कारण है।.

देखें पर्यावरणीय अवनयन और प्रदूषण

संधारणीयता

संधारणीयता का अर्थ पारिस्थितिकी विज्ञान में होता है कि कोई जैविक तंत्र कैसे विविधता बनाये रखते हुए लंबे समय तक उत्पादन करता रह सकता है। दीर्घ अवधि से क्रियाशील और जैविक रूप से स्वस्थ आर्द्रभूमियाँ और वन इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सामान्य अर्थों में संधारणीयता का अर्थ सीमित प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना है कि भविष्‍य में वे हमारे लिए समाप्‍त न हो जाएं। संधारणीयता को बनाये रखते हुए मानव विकास की अवधारणा को संधारणीय विकास की संज्ञा दी जाती है और इसके अध्ययन को संधारणीयता विज्ञान कहते हैं। संधारणीयता की संकल्पना मानव-पर्यावरण संबंधों के एक सरल सिद्धांत पर आधारित है कि हमारे अस्तित्व के बने रहने के लिये और मानव कल्याण के लिये जो भी जरूरत की चीजें हैं वे किसी न किसी रूप में हमें अपने प्राकृतिक पर्यावरण से प्राप्त होती हैं। अतः संधारणीयता होना यह सुनिश्चित करना है कि मनुष्य और उसका पर्यावरण एक स्वस्थ और सुसंबद्ध रूप से आपस में संबंधित रहें और ये उत्पादक दशाएँ और विविधता चिरकाल तक बने रहें। इन अर्थों में संधारणीयता संसाधन उपयोग का एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जिससे हमारी पृथ्वी और प्राकृतिक पर्यावरण की विविधता, प्राकृतिक उत्पादनशीलता क्षमता और स्थायित्व बने रहें और मानव जीवन चिरकाल तक संकटमुक्त रह सके। संधारणीयता और संधारणीय विकास जैसे शब्दों का उपयोग अस्सी के दशक से काफ़ी प्रचलन में आया जब मार्च 20, 1987 को संयुक्त राष्ट्र की ब्रंटलैण्ड रिपोर्ट जारी हुई और इसमें संधारणीय विकास (sustainable development) का उल्लेख हुआ। संधारणीयता और संधारणीय विकास जैसे शब्दों की पापुलरिटी में लगातार बढ़ोत्तरी के बावज़ूद अगर पर्यावरणीय अवनयन, उपभोग की प्रवृत्तियाँ और आर्थिक समृद्धि की दौड़ और होड़ को गणना में लिया जाए तो इस बात पर अभी भी सवालिया निशान हैं कि मानव सभ्यता संधारणीयता प्राप्त कर पायेगी। --महात्‍मा गाँधी .

देखें पर्यावरणीय अवनयन और संधारणीयता