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पर्यावरण

सूची पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण - कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है और "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। .

119 संबंधों: टाइगर हैवन, टेरी - ऊर्जा और संसाधन संस्थान, एम डी मदन, एजेण्डा-21, एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, ऐतिहासिक भूगोल, डेंगू बुख़ार, दिल्ली मेट्रो रेल, दुधवा लाइव, नैगमिक सामाजिक उत्तरदायित्व, नीम, परमाणु ऊर्जा के पर्यावरणीय प्रभाव, पर्यटन भूगोल, पर्यावरण, पर्यावरण प्रबन्धन, पर्यावरण रसायन विज्ञान, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण अभियांत्रिकी, पर्यावरणवाद, पर्यावरणीय डिज़ाइन, पर्यावरणीय विज्ञान, पर्यावरणीय गुणवत्ता, पर्यावरणीय अवनयन, पर्यावास, पारिस्थितिकी, प्रदूषण, प्रदूषक, प्राकृतिक दृश्य, प्राकृतिक वरण, प्रवास, प्रकाश जावड़ेकर, प्रकाश-संश्लेषण, प्लवक, पृथ्वी, पृथ्वी सम्मेलन, पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ, बराक ओबामा, बलबीर सिंह सीचेवाल, बिन्देश्वर पाठक, बेल्जियम, बेसिक, भारत मे पर्यावरण की समस्या, भूमि उपयोग, भूमितिकी, भूगोल शब्दावली, महेन्द्रा कुमारी, मानव निर्मित पर्यावरण, मानव पारिस्थितिकी, मानव भूगोल, मृदुला गर्ग, ..., मैती आन्दोलन, रमेश ठाकुर, राष्ट्रीय सेवा योजना, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (भारत), राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010, रासायनिक दुर्घटना, राजा उदय प्रताप सिंह, लोक जीवविज्ञान, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, सतत विपणन, सस्यविज्ञान, सारस (पक्षी), सिट्रिक अम्ल, संधारणीय विकास, संधारणीयता, संरक्षण कृषि, संवेष्टन, सक्रियतावाद, सुनीता नारायण, सुखी ग्रह सूचकांक, स्वास्थ्य शिक्षा, सौर ऊर्जा, सौर शक्ति, सौर सेल, सूक्ष्मजीव, हरित भवन, हरित वाहन, हरित अभिकलन, हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी, हिमालय की पारिस्थितिकी, जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड, जल संसाधन, जुब्बल उपत्यका, जैवोपचारण, जीवन की गुणवत्ता, ईकोटूरिज़्म, वन महोत्सव, वास्तुस्थितिकी, विश्व पर्यावरण दिवस, विश्व गौरैया दिवस, व्यवहारवाद, वृक्ष रेखा, वृक्षायुर्वेद, गिरीगंगा उपत्यका, ग्रीन केमिस्ट्री, ग्रीनपीस, ग्रीनफील्ड इन्वेस्टमेण्ट, ग्रीनहाउस, आचार्य कृपलानी, आपदा, आवास, इष्टतम नियंत्रण, इंडियन ओशॅन (बैंड), कमलानाथ, काली बेईं नदी, कुवेंपु विश्वविद्यालय, कृषि पारिस्थितिकी, केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला, कोज प्रमेय, अनुकूलन, अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध, अपशिष्ट प्रबंधन, अल्पाइन सम्मेलन, अल्फोन्सो आम में स्प्ंजी टिशू की समस्या एंव इसका समाधान, अस्तित्ववाद, अवशिष्ट, अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत, अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी केन्द्र, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ सूचकांक विस्तार (69 अधिक) »

टाइगर हैवन

टाइगर हैवन (Tiger Haven) जनपद लखीमपुर में दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से लगा हुआ सुहेली नदी के तट पर स्थित है। यह टाइगर मैन बिली अर्जन सिंह का निवास स्थान था, जहाँ बाघ, कुत्ते और तेन्दुए एक साथ रहते थे। यह स्थान बाघ और तेन्दुओं के सफ़ल पुनर्वासन के कारण विश्व प्रसिद्ध हुआ। यह पुनर्वासन कार्यक्रम भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के वन्य-जीवों के प्रति लगाव के कारण संभव हो पाया। उन्ही के द्वारा इस प्रोजेक्ट को सफ़लता पूर्वक संपन्न करने का कार्य बिली अर्जन सिंह ने किया। दुनिया का यह पहला सफ़ल प्रयोग था, जब किसी चिड़ियाघर से या मनुष्य द्वारा पालतू बाघ या तेन्दुए के शावक को वयस्क होने पर उसे जंगल में पुनर्वासित किया गया। .

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टेरी - ऊर्जा और संसाधन संस्थान

ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान, जो आमतौर पर टेरी के नाम से जाना जाता है (पूर्व में टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान), १९७४ में स्थापित, ऊर्जा, पर्यावरण और टिकाऊ विकास के क्षेत्रों में अनुसंधान गतिविधियों पर केंद्रित नई दिल्ली में आधारित शोध संस्थान है। .

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एम डी मदन

एमडी मदन भारत के सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं शिक्षाविद थे। जमशेदपुर उनकी कर्मभूमि रही। भारत में सहकारिता के आधार पर स्थापित एकमात्र महाविद्यालय जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज है। पचास के दशक में स्व.

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एजेण्डा-21

1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डि जेनेरो में हुआ। इस सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इसमें 170 देशों के प्रतिनिधियों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों और अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में ही विश्व राजनीति में पर्यावरण को एक ठोस स्वरूप मिला। इस अवसर पर एजेण्डा-21 पारित किया गया। सभी राष्ट्रों से निवेदन किया गया कि वह प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखें, पर्यावरण के प्रदूषण को रोके तथा सतत विकास का रास्ता अपनाएं। .

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एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन

फसलों के नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं (parasitoid) का उपयोग यह कीट दूसरे कीटों और कवकों को चाट जाता है जिससे पौधे की रक्षा होती है। एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (Integrated pest management (IPM), या Integrated Pest Control (IPC)) नाशीजीवों के नियंत्रण की सस्ती और वृहद आधार वाली विधि है जो नाशीजीवों के नियंत्रण की सभी विधियों के समुचित तालमेल पर आधारित है। इसका लक्ष्य नाशीजीवों की संख्या एक सीमा के नीचे बनाये रखना है। इस सीमा को 'आर्थिक क्षति सीमा' (economic injury level (EIL)) कहते हैं। एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें फसलों को हानिकारक कीड़ों तथा बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को एक से अधिक तरीकों को जैसे व्यवहारिक, यांत्रिक, जैविक तथा रासायनिक नियंत्रण इस तरह से क्रमानुसार प्रयोग में लाना चाहिए ताकि फसलों को हानि पहुंचाने वालें की संख्या आर्थिक हानिस्तर से नीचे रहे और रासायनिक दवाईयों का प्रयोग तभी किया जाए जब अन्य अपनाए गये तरिके से सफल न हों।; आई.

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ऐतिहासिक भूगोल

ऐतिहासिक भूगोल किसी स्थान अथवा क्षेत्र की भूतकालीन भौगोलिक दशाओं का या फिर समय के साथ वहाँ के बदलते भूगोल का अध्ययन है। यह अपने अध्ययन क्षेत्र के सभी मानवीय और भौतिक पहलुओं का अध्ययन किसी पिछली काल-अवाधि के सन्दर्भ में करता है या फिर समय के साथ उस क्षेत्र के भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन का अध्ययन करता है। बहुत सारे भूगोलवेत्ता किसी स्थान का इस सन्दर्भ में अध्ययन करते हैं कि कैसे वहाँ के लोगों ने अपने पर्यावरण के साथ अंतर्क्रियायें कीं और किस प्रकार इन क्रियाओं के परिणामस्वरूप उस स्थान के भूदृश्यों का उद्भव और विकास हुआ। आज के परिप्रेक्ष्य में भूगोल की इस शाखा का जो रूप दिखाई पड़ता है उसका सर्वप्रथम प्रतिनिधित्व करने वाली रचनाओं में हेरोडोटस के उन वर्णनों को माना जा सकता है जिनमें उन्होंने नील नदी के डेल्टाई क्षेत्रों के विकास का वर्णन किया है, हालाँकि तब ऐतिहासिक भूगोल जैसी कोई शब्दावली नहीं बनी थी। आधुनिक रूप में इसका विकास जर्मनी में फिलिप क्लूवर के साथ शुरू माना जाता है जिन्होंने जर्मनी का ऐतिहासिक भूगोल लिखकर इस शाखा का प्रतिपादक बनने का श्रेय हासिल किया। १९७५ में जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल ज्याग्रफी के पहले अंक के साथ ही इसके विषय क्षेत्र और अध्ययनकर्ताओं के समूह जो एक व्यापक विस्तार मिला। अमेरिका में इस शाखा को सबसे अधिक बल कार्ल सॉअर के सांस्कृतिक भूगोल के अध्ययन से मिला जिसके द्वारा उन्होंने सांस्कृतिक भूदृश्यों के ऐतिहासिक विकास के अध्ययन को प्रेरित किया। हालाँकि अब वर्तमान समय में इसमें कई अन्य थीम शामिल हो चुकी हैं जिनमें पर्यावरण का ऐतिहासिक अध्ययन और पर्यावरणीय ज्ञान के ऐतिहासिक अध्ययन को भी शामिल किया जाता है। अब ऐतिहासिक भूगोल रुपी भूगोल की यह शाखा इतिहास, पर्यावरणीय इतिहास और ऐतिहासिक पारिस्थितिकी इत्यादि शाखाओं से काफ़ी करीब मानी जा सकती है। .

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डेंगू बुख़ार

डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं. मच्छर डेंगू वायरस को संचरित करते (या फैलाते) हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है। डेंगू वायरस चार भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है। हलांकि बाकी के तीन प्रकारों से वह कुछ समय के लिये ही सुरक्षित रहता है। यदि उसको इन तीन में से किसी एक प्रकार के वायरस से संक्रमण हो तो उसे गंभीर समस्याएं होने की संभावना काफी अधिक होती है।  लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू बुख़ार से लोगों को बचाने के लिये कुछ उपाय हैं, जो किये जाने चाहिये। लोग अपने को मच्छरों से बचा सकते हैं तथा उनसे काटे जाने की संख्या को सीमित कर सकते हैं। वैज्ञानिक मच्छरों के पनपने की जगहों को छोटा तथा कम करने को कहते हैं। यदि किसी को डेंगू बुख़ार हो जाय तो वह आमतौर पर अपनी बीमारी के कम या सीमित होने तक पर्याप्त तरल पीकर ठीक हो सकता है। यदि व्यक्ति की स्थिति अधिक गंभीर है तो, उसे अंतः शिरा द्रव्य (सुई या नलिका का उपयोग करते हुये शिराओं में दिया जाने वाला द्रव्य) या रक्त आधान (किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रक्त देना) की जरूरत हो सकती है। 1960 से, काफी लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित हो रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बीमारी एक विश्वव्यापी समस्या हो गयी है। यह 110 देशों में आम है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित होते हैं। वायरस का प्रत्यक्ष उपचार करने के लिये लोग वैक्सीन तथा दवाओं पर काम कर रहे हैं। मच्छरों से मुक्ति पाने के लिये लोग, कई सारे अलग-अलग उपाय भी करते हैं।  डेंगू बुख़ार का पहला वर्णन 1779 में लिखा गया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने यह जाना कि बीमारी डेंगू वायरस के कारण होती है तथा यह मच्छरों के माध्यम से संचरित होती (या फैलती) है। .

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दिल्ली मेट्रो रेल

दिल्ली मेट्रो रेल भारत की राजधानी दिल्ली की मेट्रो रेल परिवहन व्यवस्था है जो दिल्ली मेट्रो रेल निगम लिमिटेड द्वारा संचालित है। इसका शुभारंभ २४ दिसंबर, २००२ को शहादरा तीस हजारी लाईन से हुई। इस परिवहन व्यवस्था की अधिकतम गति ८०किमी/घंटा (५०मील/घंटा) रखी गयी है और यह हर स्टेशन पर लगभग २० सेकेंड रुकती है। सभी ट्रेनों का निर्माण दक्षिण कोरिया की कंपनी रोटेम (ROTEM) द्वारा किया गया है। दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में मेट्रो रेल एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इससे पहले परिवहन का ज्यादतर बोझ सड़क पर था। प्रारंभिक अवस्था में इसकी योजना छह मार्गों पर चलने की थी जो दिल्ली के ज्यादातर हिस्से को जोड़ते थे। इस प्रारंभिक चरण को २००६ में पूरा किय़ा गया। बाद में इसका विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे शहरों गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गाँव और नोएडा तक किया गया। इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक ७ अप्रैल, २००६ बीबीसी, हिन्दी, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र में भी इसे चलाने की योजनाएं बन रही हैं। दिल्ली मेट्रो रेल व्यव्स्था अपने शुरुआती दौर से ही ISO १४००१ प्रमाण-पत्र अर्जित करने में सफल रही है जो सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। सितंबर २०११ में संयुक्त राष्ट्र ने "स्वच्छ विकास तंत्र" योजना के तहत हरित गृह गैसों में कमी लाने के लिए दिल्ली मेट्रो को दुनिया का पहला "कार्बन क्रेडिट" दिया जिसके अंतर्गत उसे सात सालों के लिए 95 लाख डॉलर मिलेंगे। .

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दुधवा लाइव

कोई विवरण नहीं।

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नैगमिक सामाजिक उत्तरदायित्व

कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी - सभ्य भारत निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate social responsibility या "CSR") व्यापारिक और औद्योगिक कंपनियों द्वारा अपनाया गया स्व-नियंत्रण है जिसके अन्तर्गत वे ऐसे व्यापारिक मॉडल के अनुसार काम करतीं हैं जो कानून, नैतिक मानकों, एवं अन्तरराष्ट्रीय रीति के अनुकूल हो। इसके अन्तर्गत कंपनी द्वारा कुछ ऐसे कार्य किये जाते हैं जो पर्यावरण, आम जनता, उपभोक्ता, कर्मचारी, तथा अंशधारियों पर सकारात्मक प्रभाव डाले। कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी कॉर्पोरेट आत्म नियमन एक व्यापार मॉडल में एकीकृत का एक रूप है। एक स्व नियामक तंत्र है जिसके तहत एक व्यापार पर नज़र रखता है और कानून, नैतिक मानकों और राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मानदंडों की भावना के साथ अपनी सक्रिय अनुपालन सुनिश्चित करता है के रूप में सीएसआर नीति कार्य करता है। उद्देश्य सकारात्मक सार्वजनिक संबंध और उच्च नैतिक मानकों के माध्यम से लंबी अवधि के लाभ और शेयरधारक विश्वास बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट कार्यों के लिए जिम्मेदारी लेने के द्वारा व्यापार और कानूनी जोखिम को कम करने के लिए है। सीएसआर रणनीतियों पर्यावरण और उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, निवेशकों, समुदायों, और अन्य लोगों सहित हितधारकों पर सकारात्मक प्रभाव बनाने के लिए कंपनी प्रोत्साहित करते हैं। निगमों एक सीएसआर के नजरिए के साथ काम करके लंबी अवधि के मुनाफे में वृद्धि होती है। सीएसआर एक संगठन के मिशन सहायता के रूप में अच्छी तरह से क्या कंपनी अपने उपभोक्ताओं के लिए प्रतिनिधित्व करने के लिए एक गाइड के रूप में सेवा करने के लिए शीर्षक है। शब्द "कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी" 1960 के दशक में लोकप्रिय हो गया और कई द्वारा अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल किया, कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी अधिक बाल बाल लगाया कवर करने के लिए एक शब्द बनी हुई है। बिजनेस शब्दकोश "के रूप में समुदाय और पर्यावरण (दोनों पारिस्थितिकी और सामाजिक) में इसे संचालित प्रति जिम्मेदारी की कंपनी की भावना सीएसआर को परिभाषित करता है। कम्पनी (१) शैक्षिक और सामाजिक योगदान करके, उनकी बर्बादी और प्रदूषण में कमी प्रक्रियाओं के माध्यम से इस नागरिकता (२) एक्सप्रेस कार्यक्रमों और (३) कार्यरत संसाधनों पर पर्याप्त रिटर्न कमाई से। .

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नीम

नीम भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है। यह सदियों से समीपवर्ती देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यानमार (बर्मा), थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका आदि देशों में पाया जाता रहा है। लेकिन विगत लगभग डेढ़ सौ वर्षों में यह वृक्ष भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक सीमा को लांघ कर अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एवं मध्य अमरीका तथा दक्षिणी प्रशान्त द्वीपसमूह के अनेक उष्ण और उप-उष्ण कटिबन्धीय देशों में भी पहुँच चुका है। इसका वानस्पतिक नाम ‘Melia azadirachta अथवा Azadiracta Indica’ है। .

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परमाणु ऊर्जा के पर्यावरणीय प्रभाव

नाभिकीय ऊर्जा से जुडे क्रियाकलाप जो पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं- खनन, संवर्धन, विद्युत-जनन तथा भूगर्भीय निपटान (geological disposal)। पर्यावरण पर पडने वाले प्रभाव की दृष्टि से परमाणु ऊर्जा अन्य ऊर्जाओं से कुछ मामलों में अच्छी है और कुछ मामलों में खराब। नाभिकीय ऊर्जा में सबसे बडी बाधा नाभिकीय दुर्घटना की सम्भावना और उससे जुडे खतरे हैं। नाभिकीय रिएक्टरों से हरितगृह गैसों का उत्सर्जन बहुत कम होता है, जो इसके पक्ष में है। .

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पर्यटन भूगोल

वास्को डि गामा कालीकट, भारत के तट पर 20 मई 1498। पर्यटन भूगोल या भू-पर्यटन, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं। इस शाखा में पर्यटन एवं यात्राओं से सम्बन्धित तत्वों का अध्ययन, भौगोलिक पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। नेशनल जियोग्रेफ़िक की एक परिभाषा के अनुसार किसी स्थान और उसके निवासियों की संस्कृति, सुरुचि, परंपरा, जलवायु, पर्यावरण और विकास के स्वरूप का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने और उसके विकास में सहयोग करने वाले पर्यटन को "पर्यटन भूगोल" कहा जाता है। भू पर्यटन के अनेक लाभ हैं। किसी स्थल का साक्षात्कार होने के कारण तथा उससे संबंधित जानकारी अनुभव द्वारा प्राप्त होने के कारण पर्यटक और निवासी दोनों का अनेक प्रकार से विकास होता हैं। पर्यटन स्थल पर अनेक प्रकार के सामाजिक तथा व्यापारिक समूह मिलकर काम करते हैं जिससे पर्यटक और निवासी दोनों के अनुभव अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण बन जाते है। भू पर्यटन परस्पर एक दूसरे को सूचना, ज्ञान, संस्कार और परंपराओं के आदान-प्रदान में सहायक होता है, इससे दोनों को ही व्यापार और आर्थिक विकास के अवसर मिलते हैं, स्थानीय वस्तुओं कलाओं और उत्पाद को नए बाज़ार मिलते हैं और मानवता के विकास की दिशाएँ खुलती हैं साथ ही बच्चों और परिजनों के लिए सच्ची कहानियाँ, चित्र और फिल्में भी मिलती हैं जो पर्यटक अपनी यात्रा के दौरान बनाते हैं। पर्यटन भूगोल के विकास या क्षय में पर्यटन स्थल के राजनैतिक, सामाजिक और प्राकृतिक कारणों का बहुत महत्त्व होता है और इसके विषय में जानकारी के मानचित्र आदि कुछ उपकरणों की आवश्यकता होती है। .

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पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण - कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है और "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। .

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पर्यावरण प्रबन्धन

जैसा कि इस नाम से लग सकता है, पर्यावरण प्रबंधन का तात्पर्य पर्यावरण के प्रबंधन से नहीं है, बल्कि आधुनिक मानव समाज के पर्यावरण के साथ संपर्क तथा उसपर पड़ने वाले प्रभाव के प्रबंधन से है। प्रबंधकों को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख मुद्दे हैं राजनीति (नेटवर्किंग), कार्यक्रम (परियोजनायें) और संसाधन (धन, सुविधाएँ, आदि)। पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता को कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। पर्यावरण प्रबंधन के पीछे एक आम विचार तथा प्रेरणा है कैरीयिंग केपेसिटी (वहन क्षमता) की अवधारणा। आसान भाषा में कहें तो वहन क्षमता का तात्पर्य किसी विशेष पर्यावरणीय तंत्र द्वारा अपने भीतर जीवों की अधिकतम संख्या को धारण करने की क्षमता से है। हालाँकि कई संस्कृतियों को ऐतिहासिक रूप से वहन क्षमता की अवधारणा की समझ थी, लेकिन इसका मूल माल्थूसियन थ्योरी में है। अतः, पर्यावरण प्रबंधन का अर्थ केवल पर्यावरण की खातिर उसके संरक्षण से नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति की खातिर पर्यावरण के संरक्षण से है। उपयुक्त शोषण के इस तत्व, अर्थात प्राकृतिक संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग को ईयू के जल संबंधी दिशा निर्देशों में देखा जा सकता है। .

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पर्यावरण रसायन विज्ञान

पर्यावरण रसायन शास्त्र में इस तरह के जीव विज्ञान, विष विज्ञान, जैव रसायन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और महामारी विज्ञान के रूप में जैविक रसायन शास्त्र, विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान, भौतिक रसायन और अकार्बनिक रसायन विज्ञान के पहलुओं, साथ ही और अधिक विविध क्षेत्रों से युक्त, रसायन शास्त्र की एक बहुत ही ध्यान केंद्रित शाखा है। पर्यावरण दवा की दुकानों सार्वजनिक, निजी और सरकारी प्रयोगशालाओं की एक किस्म में काम करते हैं। यह पर्यावरण के प्रदूषण का प्रभाव पर्यावरण, प्रदूषण में कमी और प्रबंधन के साथ संबंधित है, क्योंकि पर्यावरण रसायन शास्त्र सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पर्यावरण chemists प्रदूषण और हवा, पानी और मिट्टी के वातावरण पर उनके पर्यावरणीय प्रभाव के व्यवहार, साथ ही मानव स्वास्थ्य और प्राकृतिक पर्यावरण पर अपने प्रभाव का अध्ययन। .

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पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु,जल,भूमि,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। .

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पर्यावरण अभियांत्रिकी

औद्योगिक वायु प्रदूषण के स्रोत पर्यावरण इंजीनियरिंग पर्यावरण (हवा, पानी और/या भूमि संसाधनों) में सुधार करने, मानव निवास और अन्य जीवों के लिए स्वच्छ जल, वायु और ज़मीन प्रदान करने और प्रदूषित स्थानों को सुधारने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के सिद्धांतों का अनुप्रयोग है। पर्यावरण इंजीनियरिंग में शामिल हैं जल और वायु प्रदूषण नियंत्रण, पुनरावर्तन, अपशिष्ट निपटान और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे और साथ ही साथ पर्यावरण इंजीनियरिंग कानून से संबंधित ज्ञान.

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पर्यावरणवाद

पर्यावरणवाद या परिस्थितिवाद (Environmentalism या Environmental rights) पर्यावरण संरक्षण तथा पर्यावरण के स्वास्थ्य के सुधार से सम्बन्धित विस्तृत दर्शन, विचारधारा तथा सामाजिक आन्दोलन है। पर्यावरणवाद, प्राकृतिक पर्यावरण की कानून द्वारा की रक्षा, सुधार तथा पुनर्स्थापन का पक्ष लेता है। पर्यावरण को बचाने के लिए राजस्थान और देश के अन्य राज्यो में रह् रहे बिश्नोई पंत के लोगों का अहम योगदान रहा है । जोधपुर के खेजड़ियाली गांव में 363 लोगों ने अपनी जान देकर पेड़ो की रक्षा की थी । ये सब अमृता देवी बिशनोई के नेतृत्व में हुआ । बिसनोई पंत के लोग विष्णु अवतार जाम्भोजी के शिष्य है .

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पर्यावरणीय डिज़ाइन

पर्यावरणीय डिज़ाइन (Environmental design) किसी वस्तु, इमारत का निर्माण करने से पूर्व या किसी योजना को चलाने से पूर्व आसपास के पर्यावरण को परख कर, उसके तथ्यों को डिज़ाइन में सम्मिलित करने की प्रक्रिया को कहते हैं। इसमें ध्येय होता है कि पर्यावरण को हानि न पहुँचे और निर्मित चीज़ अपने पर्यावरण में अप्राकृतिक न लगे। .

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पर्यावरणीय विज्ञान

MK पर्यावरणीय विज्ञान (environmental science) पर्यावरण के भौतिकीय, रासायनिक और जैविक अवयवों के बीच पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन है। पर्यावरणीय विज्ञान पर्यावरणीय व्यवस्था के अध्ययन के लिए समन्वित, परिमाणात्मक और अन्तरविषयक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। पर्यावरणीय वैज्ञानिक पर्यावरण की गुणवत्ता की निगरानी करते हैं, स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी व्यवस्था पर मानवीय कृत्यों की व्याख्या करते हैं तथा पारिस्थतिकी व्यवस्था की बहाली के लिए रणनीतियां तैयार करते हैं। इसके अलावा पर्यावरणीय वैज्ञानिक योजनाकारों की ऐसे भवनों, परिवहन कोरिडोरों तथा उपयोगिताओं के विकास तथा निर्माण में सहायता करते हैं जिनसे जल संसाधनों की रक्षा हो सके तथा भूमि का सदुपयोग हो सके। .

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पर्यावरणीय गुणवत्ता

पर्यावरणीय गुणवत्ता (अंग्रेज़ी: Environmental quality) किसी स्थान विशेष पर पर्यावरण के उन लक्षणों से जुड़ी अवधारणा है जिनसे मानव अथवा अन्य जीवधारियों के जीवन पर पर्यावरण की परस्थितियों के प्रभाव को आकलित किया जाता है। .

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पर्यावरणीय अवनयन

पर्यावरणीय अवनयन (अंग्रेजी: Environmental degradation) के अंतर्गत पर्यावरण में होने वाले वे सारे परिवार्तन आते हैं जो अवांछनीय हैं और किसी क्षेत्र विशेष में या पूरी पृथ्वी पर जीवन और संधारणीयता को खतरा उत्पन्न करते हैं। अतः इसके अंतर्गत प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण और अन्य प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि शामिल की जाती हैं। .

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पर्यावास

अफ्रीकी हाथी के बचे हुए पर्यावास क्षेत्रपर्यावास या प्राकृतिक वास किसी प्रजाति विशेष के पौधों या जीवों या अन्य जीवधारियों के रहने का एक पारिस्थितिक या पर्यावरणीय क्षेत्र है।Dickinson, C.I. 1963.

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पारिस्थितिकी

260 px 95px 173px 115px 125px पारिस्थितिकी का वैज्ञानिक साम्राज्य वैश्विक प्रक्रियाओं (ऊपर), से सागरीय एवं पार्थिव सतही प्रवासियों (मध्य) से लेकर अन्तर्विशःइष्ट इंटरैक्शंस जैसे प्रिडेशन एवं परागण (नीचे) तक होता है। पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी:इकोलॉजी) जीवविज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीव समुदायों का उसके वातावरण के साथ पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करतें हैं। प्रत्येक जन्तु या वनस्पति एक निशिचत वातावरण में रहता है। पारिस्थितिज्ञ इस तथ्य का पता लगाते हैं कि जीव आपस में और पर्यावरण के साथ किस तरह क्रिया करते हैं और वह पृथ्वी पर जीवन की जटिल संरचना का पता लगाते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २ मई २०१०। पारिस्थितिकी को एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी भी कहा जाता है। इस विषय में व्यक्ति, जनसंख्या, समुदायों और इकोसिस्टम का अध्ययन होता है। इकोलॉजी अर्थात पारिस्थितिकी (जर्मन: Oekologie) शब्द का प्रथम प्रयोग १८६६ में जर्मन जीववैज्ञानिक अर्नेस्ट हैकल ने अपनी पुस्तक "जनरेल मोर्पोलॉजी देर ऑर्गैनिज़्मेन" में किया था। बीसवीं सदी के आरम्भ में मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों पर अध्ययन प्रारंभ हुआ और एक साथ कई विषयों में इस ओर ध्यान दिया गया। परिणामस्वरूप मानव पारिस्थितिकी की संकलपना आयी। प्राकृतिक वातावरण बेहद जटिल है इसलिए शोधकर्ता अधिकांशत: किसी एक किस्म के प्राणियों की नस्ल या पौधों पर शोध करते हैं। उदाहरण के लिए मानवजाति धरती पर निर्माण करती है और वनस्पति पर भी असर डालती है। मनुष्य वनस्पति का कुछ भाग सेवन करते हैं और कुछ भाग बिल्कुल ही अनोपयोगी छोड़ देते हैं। वे पौधे लगातार अपना फैलाव करते रहते हैं। बीसवीं शताब्दी सदी में ये ज्ञात हुआ कि मनुष्यों की गतिविधियों का प्रभाव पृथ्वी और प्रकृति पर सर्वदा सकारात्मक ही नहीं पड़ता रहा है। तब मनुष्य पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव के प्रति जागरूक हुए। नदियों में विषाक्त औद्योगिक कचरे का निकास उन्हें प्रदूषित कर रहा है, उसी तरह जंगल काटने से जानवरों के रहने का स्थान खत्म हो रहा है। पृथ्वी के प्रत्येक इकोसिस्टम में अनेक तरह के पौधे और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनके अध्ययन से पारिस्थितिज्ञ किसी स्थान विशेष के इकोसिस्टम के इतिहास और गठन का पता लगाते हैं। इसके अतिरिक्त पारिस्थितिकी का अध्ययन शहरी परिवेश में भी हो सकता है। वैसे इकोलॉजी का अध्ययन पृथ्वी की सतह तक ही सीमित नहीं, समुद्री जनजीवन और जलस्रोतों आदि पर भी यह अध्ययन किया जाता है। समुद्री जनजीवन पर अभी तक अध्ययन बहुत कम हो पाया है, क्योंकि बीसवीं शताब्दी में समुद्री तह के बारे में नई जानकारियों के साथ कई पुराने मिथक टूटे और गहराई में अधिक दबाव और कम ऑक्सीजन पर रहने वाले जीवों का पता चला था। .

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प्रदूषण

कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक प्रमुख कारण है।.

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प्रदूषक

अनुपचारित मलजल के कारण गंगा नदी का प्रदुषण प्रदूषक ऐसे पदार्थ होते हैं जिनके कारण पर्यावरण में प्रदूषण फैलता है। * श्रेणी:प्रदूषण श्रेणी:विषविज्ञान.

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प्राकृतिक दृश्य

स्विस आल्प्स की ऐशिना झील, एक अत्यंत विविधतापूर्ण प्राकृतिक दृश्य का एक उदाहरण. तोलिमा कोलम्बिया की प्राकृतिक दृश्य संबंधी तस्वीर बर्न में आरे नदी प्राकृतिक दृश्य भूमि के किसी एक हिस्से की सुस्पष्ट विशेषताएं हैं, जिनमें इसके प्राकृतिक स्वरूपों के भौतिक तत्त्व, जल निकाय जैसे कि नदियाँ, झीलें एवं समुद्र, प्राकृतिक रूप से उगनेवाली वनस्पतियों सहित धरती पर रहने वाले जीव-जंतु, मिट्टी से बनी उपयोगी मानव निर्मित वस्तुओं सहित भवन एवं संरचनाएं और अस्थायी तत्त्व जैसे कि विद्युत व्यवस्था एवं मौसम संबंधी परिस्थितियाँ शामिल हैं | मानवीय संस्कृति की छवि, जो बनने में सहस्राब्दियाँ लग जाती हैं, दोनों मिलकर दृश्य किसी भी स्थल के लोग तथा वह स्थल दोनों की स्थानीय तथा राष्ट्रीय पहचान को प्रतिबिंबित करते हैं। प्राकृतिक दृश्य, इनकी विशेषता और गुणवत्ता, किसी क्षेत्र की आत्म छवि और, उस स्थान की भावनात्मक अनुभूतियाँ, जो इसे दूसरे क्षेत्रों से अलग करती है, को परिभाषित करने में मदद करती है। यह लोगों के जीवन की गतिशील पृष्ठभूमि है। पृथ्वी पर प्राकृतिक दृश्यों का एक व्यापक विस्तार है जिसमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बर्फीले प्राकृतिक दृश्य, पहाड़ी प्राकृतिक दृश्य, विस्तृत मरुस्थलीय प्राकृतिक दृश्य, द्वीपों और समुद्रतटों केप्राकृतिक दृश्य, घने जंगलों या पेड़ों के प्राकृतिक दृश्यों सहित पुराने उदीच्य वन एवं उष्णकटिबंधीय वर्षावन और शीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के कृषि योग्य प्राकृतिक दृश्य शामिल हैं। प्राकृतिक दृश्यों की समीक्षा आगे 2 श्रेणी:प्राकृतिक दृश्य (लैंडस्केप) श्रेणी:सांस्कृतिक भूगोल श्रेणी:भूदृश्य ar:منظر طبيعى bg:Пейзаж ca:Paisatge (geografia) cs:Krajina da:Landskab de:Landschaft en:Landscape eo:Pejzaĝo es:Paisaje et:Maastik fi:Maisema fr:Paysage hr:Krajolik id:Lanskap it:Paesaggio ja:ランドスケープ lt:Kraštovaizdis lv:Ainava mwl:Paisage nds:Landschap nl:Landschap nn:Landskap pl:Kraina geograficzna pt:Paisagem ro:Peisaj ru:Ландшафт sk:Geografická krajina sr:Пејзаж sv:Landskap (terräng) uk:Ландшафт yi:לאנדשאפט zh:风景.

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प्राकृतिक वरण

जिस प्रक्रिया द्वारा किसी जनसंख्या में कोई जैविक गुण कम या अधिक हो जाता है उसे प्राकृतिक वरण या 'प्राकृतिक चयन' या नेचुरल सेलेक्शन (Natural selection) कहते हैं। यह एक धीमी गति से क्रमशः होने वाली अनयादृच्छिक (नॉन-रैण्डम) प्रक्रिया है। प्राकृतिक वरण ही क्रम-विकास(Evolution) की प्रमुख कार्यविधि है। चार्ल्स डार्विन ने इसकी नींव रखी और इसका प्रचार-प्रसर किया। यह तंत्र विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रजाति को पर्यावरण के लिए अनुकूल बनने मे सहायता करता है। प्राकृतिक चयन का सिद्धांत इसकी व्याख्या कर सकता है कि पर्यावरण किस प्रकार प्रजातियों और जनसंख्या के विकास को प्रभावित करता है ताकि वो सबसे उपयुक्त लक्षणों का चयन कर सकें। यही विकास के सिद्धांत का मूलभूत पहलू है। प्राकृतिक चयन का अर्थ उन गुणों से है जो किसी प्रजाति को बचे रहने और प्रजनन मे सहायता करते हैं और इसकी आवृत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती रहती है। यह इस तथ्य को और तर्कसंगत बनाता है कि इन लक्षणों के धारकों की सन्ताने अधिक होती हैं और वे यह गुण वंशानुगत रूप से भी ले सकते हैं। .

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प्रवास

पर्यावरण और प्राणी व्यवहार में प्रवास (migration) या प्रवास व्यवहार के कई अर्थ हो सकते हैं.

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प्रकाश जावड़ेकर

प्रकाश जावड़ेकर (जन्म 30 जनवरी 1951) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पदासीन केंद्रीय मंत्री (एमएचआरडी) हैं। इन्हें 2008 में महाराष्ट्र से संसद के एक सदस्य के रूप में राज्यसभा के लिए निर्वाचित किया गया था, और 2014 में मध्य प्रदेश से फिर से निर्वाचित किया गया। 2014 भारतीय आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत के बाद इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया था। .

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प्रकाश-संश्लेषण

हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .

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प्लवक

कुछ प्लवक वे सभी प्राणी या वनस्पति, जो जल में जलतरंगों या जलधारा द्वारा प्रवाहित होते रहते हैं, प्लवक (प्लवक .

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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पृथ्वी सम्मेलन

पर्यावरण में प्रदूषण के कारण पूरी पृथ्वी प्रदुषित हो रही है। वैज्ञानिकों और पर्यवरण विषेज्ञों का मानना है यही स्थित बनी रही तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं जिनमें पृथ्वी पर प्राणियों और वृक्षों का बने रहना कठिन होगा। इस प्रकार से भविष्य में मानव सभ्यता का जीवन ही खतरे में पड़ रहा है। इसको मद्देनजर रखते हुए सन् 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो शहर में विश्व के 172 देशों ने पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसके पश्चात सन् 2002 में दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन करके संसार के सभी राष्ट्रों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर कर दिया था। .

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पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ

पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ (पीसीआरए), भारत सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तत्वावधान में स्थापित एक पंजीकृत संस्था है। 1978 में एक गैर लाभकारी संगठन के तौर पर पीसीआरए का गठन, भारत में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया था। यह तेल की आवश्यकता पर देश की अत्याधिक निर्भरता को कम करने के लिए पेट्रोलियम संरक्षण नीति और रणनीति प्रस्तावित करने में सरकार की सहायता करता है, जिनका मुख्य उद्देशय न सिर्फ धन के अपव्यय को रोकना है अपितु तेल के बेजा इस्तेमाल से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी कम करना है। पिछले कुछ वर्षों में पीसीआरए ने पर्यावरण सुरक्षा और स्थायी विकास अर्जित करने के प्रयोजन हेतु ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के उपयोग में उत्पादकता सुधारने में अपनी भूमिका का विस्तार किया है। .

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बराक ओबामा

बराक हुसैन ओबामा (Barack Hussein Obama, जन्म: ४ अगस्त, १९६१) अमरीका के ४४वें राष्ट्रपति रहे हैं। वे इस देश के प्रथम अश्वेत (अफ्रीकी अमरीकन) राष्ट्रपति हैं। उन्होंने २० जनवरी, २००९ को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ओबामा इलिनॉय प्रांत से कनिष्ठ सेनेटर तथा २००८ में अमरीका के राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रैटिक पार्टी के उम्मीदवार थे। ओबामा हार्वर्ड लॉ स्कूल से १९९१ में स्नातक बनें, जहाँ वे हार्वर्ड लॉ रिव्यू के पहले अफ्रीकी अमरीकी अध्यक्ष भी रहे। १९९७ से २००४ इलिनॉय सेनेट में तीन सेवाकाल पूर्ण करने के पूर्व ओबामा ने सामुदायिक आयोजक के रूप में कार्य किया है और नागरिक अधिकार अधिवक्ता के रूप में प्रेक्टिस की है। १९९२ से २००४ तक उन्होंने शिकागो विधि विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून का अध्यापन भी किया। सन् २००० में अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेसेंटेटिव में सीट हासिल करने में असफल होने के बाद जनवरी २००३ में उन्होंने अमरीकी सेनेट का रुख किया और मार्च २००४ में प्राथमिक विजय हासिल की। नवंबर २००३ में सेनेट के लिये चुने गये। १०९वें काँग्रेस में अल्पसंख्य डेमोक्रैट सदस्य के रूप में उन्होंने पारंपरिक हथियारों पर नियंत्रण तथा संघीय कोष के प्रयोग में अधिक सार्वजनिक उत्तरदायित्व का समर्थन करते विधेयकों के निर्माण में सहयोग दिया। वे पूर्वी युरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका की राजकीय यात्रा पर भी गये। ११०वें काँग्रेस में लॉबिंग व चुनावी घोटालों, पर्यावरण के बदलाव, नाभिकीय आतंकवाद और युद्ध से लौटे अमेरीकी सैनिकों की देखरेख से संबंधित विधेयकों के निर्माण में उन्होंने सहयोग दिया। विश्वशांति में उल्लेखनीय योगदान के लिए बराक ओबामा को वर्ष 2009 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। .

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बलबीर सिंह सीचेवाल

बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल भारत के पंजाब राज्य के एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। टाईम पत्रिका ने अपने पंजाब की प्रदूषित काली बेई नदी को साफ करने का अभियान चलाने वाले बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल को दुनिया भर से चुने गए 30 हीरोज ऑफ एन्वायरनमेंट या दुनिया के पर्यावरण नायक में शामिल किया है। (अक्टूबर, २००८)। जनवरी २०१७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। .

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बिन्देश्वर पाठक

डॉ बिन्देश्वरी पाठक (जन्म: ०२ अप्रैल १९४३) विश्वविख्यात भारतीय समाजिक कार्यकर्ता एवं उद्यमी हैं। उन्होने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। सुलभ इंटरनेशनल मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाली एक अग्रणी संस्था है। श्री पाठक का कार्य स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। इनके द्वारा किए गए कार्यों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है और पुरस्कृत किया गया है। .

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बेल्जियम

किंगडम ऑफ़ बेल्जियम उत्तर-पश्चिमी यूरोप में एक देश है। यह यूरोपीय संघ का संस्थापक सदस्य है और उसके मुख्यालय का मेज़बान है, साथ ही, अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों का, जिसमें NATO भी शामिल है। 10.7 मीलियन की जनसंख्या वाले बेल्जियम का क्षेत्रफल है। जर्मनिक और लैटिन यूरोप के मध्य अपनी सांस्कृतिक सीमा को विस्तृत किये हुए बेल्जियम, दो मुख्य भाषाई समूहों, फ्लेमिश और फ्रेंच-भाषी, मुख्यतः वलून्स सहित जर्मन भाषियों के एक छोटे समूह का आवास है। बेल्जियम के दो सबसे बड़े क्षेत्र हैं, उत्तर में 59% जनसंख्या सहित फ्लेंडर्स का डच भाषी क्षेत्र और वालोनिया का फ्रेंच भाषी दक्षिणी क्षेत्र, जहाँ 31% लोग बसे हैं। ब्रुसेल्स-राजधानी क्षेत्र, जो आधिकारिक तौर पर द्विभाषी है, मुख्यतः फ्लेमिश क्षेत्र के अंतर्गत एक फ्रेंच भाषी एन्क्लेव है और यहाँ 10% जनसंख्या बसी है। * * * * पूर्वी वालोनिया में एक छोटा जर्मन भाषी समुदाय मौजूद है। मूल (पहले ही) 71,500 निवासियों के बजाय 73,000 का उल्लेख करता है। बेल्जियम की भाषाई विविधता और संबंधित राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संघर्ष, राजनीतिक इतिहास और एक जटिल शासन प्रणाली में प्रतिबिंबित होता है। बेल्जियम नाम, गॉल के उत्तरी भाग में एक रोमन प्रान्त, गैलिया बेल्जिका से लिया गया है, जो केल्टिक और जर्मन लोगों के एक मिश्रण बेल्जी का निवास स्थान था। ऐतिहासिक रूप से, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग, निचले देश के रूप में जाने जाते थे, जो राज्यों के मौजूदा बेनेलक्स समूह की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ बड़े क्षेत्र को आवृत किया करते थे। मध्य युग की समाप्ति से लेकर 17 वीं सदी तक, यह वाणिज्य और संस्कृति का एक समृद्ध केन्द्र था। 16वीं शताब्दी से लेकर 1830 में बेल्जियम की क्रांति तक, यूरोपीय शक्तियों के बीच बेल्जियम के क्षेत्र में कई लड़ाइयाँ लड़ी गईं, जिससे इसे यूरोप के युद्ध मैदान का तमगा मिला - एक छवि जिसे दोनों विश्व युद्ध ने और पुष्ट किया। अपनी स्वतंत्रता पर, बेल्जियम ने उत्सुकता के साथ औद्योगिक क्रांति में भाग लिया और उन्नीसवीं सदी के अंत में, अफ्रीका में कई उपनिवेशों पर अधिकार जमाया। 20वीं सदी के उत्तरार्ध को फ्लेमिंग्स और फ्रैंकोफ़ोन के बीच साँप्रदायिक संघर्ष की वृद्धि के लिए जाना जाता है, जिसे एक तरफ तो सांस्कृतिक मतभेद ने भड़काया, तो दूसरी तरफ फ्लेनडर्स और वालोनिया के विषम आर्थिक विकास ने. अब भी सक्रिय इन संघर्षों ने पूर्व में एक एकात्मक राज्य बेल्जियम को संघीय राज्य बनाने के दूरगामी सुधारों को प्रेरित किया। .

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बेसिक

बेसिक (BASIC) चार विकासशील देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) का पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर एक वार्ता मंच है। इस मंच के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए २00९ से धारणीय उपायों पर प्रमुखता से चर्चा की जाती है। बेसिक देशों के बीच क्योटो प्रोटोकॉल को लेकर आम सहमति है तथा इसने कनाडा के क्योटो प्रोटोकाल की बाध्यता से पीछे हटने की तीखी आलोचना की है। जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम पर चर्चा के लिए प्रत्येक ६ महीने में एक बार बेसिक राष्ट्रों का एक मंत्री स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाता है। इसमें तकनीकी, आर्थिक तथा रणनीतिक सहयोग संबंधित संयु्क्त सहयोग की प्रतिबद्धता दर्शायी जाती है। हाल ही में भारत का समर्थन करते हुए बेसिक द्वारा यूरोपीय संघ द्वारा बाहरी विमानों पर लगाए जा रहे कार्बन कर का भी कड़ा विरोध दर्ज़ कराया गया है। बेसिक का मानना है कि यूरोपीय संघ को यह कर तत्काल निरस्त कर देने चाहिए, क्योंकि यह कर संयुक्त राष्ट्र के बहु-पक्षवाद (Multi-lateralism) की भावना के विरुद्ध है। .

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भारत मे पर्यावरण की समस्या

भारत में पर्यावरण की कई समस्या है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा, और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण भारत के लिए चुनौतियों हैं। पर्यावरण की समस्या की परिस्थिति 1947 से 1995 तक बहुत ही खराब थी। 1995 से २०१० के बीच विश्व बैंक के विशेषज्ञों के अध्ययन के अनुसार, अपने पर्यावरण के मुद्दों को संबोधित करने और अपने पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने में के अनुसार भारत दुनिया में सबसे तेजी से प्रगति कर रहा है। फिर भी, भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के स्तर तक आने में इसी तरह के पर्यावरण की गुणवत्ता तक पहुँचने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। भारत के लिए एक बड़ी चुनौती और अवसर है। पर्यावरण की समस्या का, बीमारी, स्वास्थ्य के मुद्दों और भारत के लिए लंबे समय तक आजीविका पर प्रभाव का मुख्य कारण हैं। .

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भूमि उपयोग

भूमि उपयोग पृथ्वी के किसी क्षेत्र का मनुष्य द्वारा उपयोग को सूचित करता है। सामान्यतः जमीन के हिस्से पर होने वाले आर्थिक क्रिया-कलाप को सूचित करते हुए उसे वन भूमि, कृषि भूमि, परती, चरागाह इत्यादि वर्गों में बाँटा जाता है। और अधिक तकनीकी भाषा में भूमि उपयोग को "किसी विशिष्ट भू-आवरण-प्रकार की रचना, परिवर्तन अथवा संरक्षण हेतु मानव द्वारा उस पर किये जाने वाले क्रिया-कलापों" के रूप में परिभाषित किया गया है। वृहत् स्तर पर ग्रेट ब्रिटेन में प्रथम भूमि उपयोग सर्वेक्षण सन् 1930 ई॰ में डडले स्टाम्प महोदय द्वारा किया गया था। इण्डिया वाटर पोर्टल पर। भारत में भूमि उपयोग से संबंधित मामले 'भारत सरकार' के 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' के 'भूमि संसाधन विभाग' के अंतर्गत आते हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भूमि उपयोग से संबंधित सर्वेक्षणों का कार्य नागपुर स्थित 'राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो' नामक संस्था करती है। इस संस्था द्वारा भारत के विभिन्न हिस्सों के भूमि उपयोग मानचित्र प्रकाशित किये जाते हैं। भूमि उपयोग और इसमें परिवर्तन का किसी क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक संसाधन संरक्षण से जुड़े मुद्दों में भूमि उपयोग संरक्षण से जुड़े बिंदु हैं: मृदा अपरदन एवं संरक्षण, मृदा गुणवत्ता संवर्धन, जल गुणवत्ता और उपलब्धता, वनस्पति संरक्षण, वन्य-जीव आवास इत्यादि। .

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भूमितिकी

भूमितिकी अथवा भूगणित विज्ञान की वह शाखा है जो भौगोलिक रूप से संदर्भित आंकड़ों के संग्रहण, समायोजन, परिरक्षण, विश्लेषण व्याख्या का कार्य करती है। यह मुख्यतः भूगोल, सर्वेक्षण और भू-सूचना विज्ञान जैसी शाखाओं के साथ अपनी विषय-वस्तु शेयर करने वाली शाखा है। .

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भूगोल शब्दावली

कोई विवरण नहीं।

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महेन्द्रा कुमारी

महेन्द्रा कुमारी लोकसभा की सदस्य थी। वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में राजस्थान में अलवर से लोकसभा के लिए चुनी गयी। उनका जन्म 1942 में बूंदी में एक शाही परिवार में हुआ था और ग्वालियर के सिंधिया गर्ल्स कॉलेज में उनकी शिक्षा हुई। वह अलवर के शासक प्रताप सिंह की पत्नी हैं। महेन्द्रा कुमारी 1991 से 1996 तक राजस्थान के अलवर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए दसवीं लोकसभा की सदस्य थी। महेन्द्रा कुमारी 1993 से 1996 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन पर समिति के सदस्य थे और 1993 से 1 995 तक हाउस कमेटी। एक गहन खेल उत्साही, महेन्द्रा कुमारी महिलाओं की पिस्टल शूटिंग की एक पूर्व चैंपियन थी और टेनिस, तैराकी और सवारी में विशेष रुचि थी। एक व्यापक रूप से यात्रा करने वाली, महेंद्र कुमारी 1995 में बीजिंग, चीन में महिलाओं की चौथी विश्व सम्मेलन के भारतीय संसदीय समूह के सदस्य थी। 27 जून 2002 को नई दिल्ली में एक संक्षिप्त बीमारी के बाद 60 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। .

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मानव निर्मित पर्यावरण

सामाजिक विज्ञान के सन्दर्भ में, मानव निर्मित पर्यावरण (Built environment) मानव द्वारा प्रयासपूर्वक निर्मित पर्यावरण को कहते हैं। यह भौतिक पर्यावरण से भिन्न है। इसमें भवन, पार्क, सहित बहुत सी चीजें आतीं हैं। श्रेणी:वास्तु शब्दावली.

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मानव पारिस्थितिकी

मानव पारिस्थितिकी (अंग्रेज़ी: Human Ecology) एक अंतर्विषयक विज्ञान है जो मनुष्य, मानव समाज और मानव निर्मित पर्यावरण के प्राकृतिक पर्यावरण के साथ अन्योन्याश्रय संबंधों का अध्ययन करता है। विज्ञान की इस शाखा का विकास बीसवीं सदी के आरम्भ में एक साथ कई शास्त्रों के चिंतनफ़लक में हुए परिवर्तन का परिणाम है। यह विज्ञान अपनी अध्ययन सामग्री और विधियों तथा सिद्धांतों के लिये जीव विज्ञान, पारिस्थितिकी, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और भूगोल आदि पर आश्रित है। "मानव पारिस्थितिकी" शब्द का पहली बार प्रयोग एलेन स्वैलो रिचर्ड्स (Ellen Swallow Richards) द्वारा उनके लेख "Sanitation in Daily Life", में हुआ जिसमें उन्होंने इसे "मनुष्य के आसपास के पर्यावरण के मानव जीवन पर प्रभावों के अध्ययन" के रूप में परिभाषित किया।" प्रसिद्द भूगोलवेत्ता हार्लेन एच॰ बैरोज ने एसोशियेशन ऑफ अमेरिकन ज्याग्रफर्स के 1922 ई॰ के वार्षिक अधिवेशन में मानव भूगोल को मानव पारिस्थितिकी के रूप में विकसित करने का पुरजोर समर्थन किया। वर्तमान परिप्रेक्ष्यों में पर्यावरण (जो एक पारितंत्र है) में परिवर्तन और मानव पर उसके प्रभाव, मानव स्वास्थ्य, सामाजिक सरोकारों का पारिस्थितिकीय अध्ययन, आर्थिक क्रियाओं की संधारणीयता, प्रकृति प्रदत्त पारितंत्रीय सेवाओं का मूल्यांकन और पारिस्थितिकीय अर्थशास्त्र का विकास मानव पारिस्थितिकी के मूल अध्ययन-विषय हैं। .

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मानव भूगोल

देशों के अनुसार जनसंख्या का घनत्व, 2006 मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन। मानव भूगोल में पृथ्वी तल पर मानवीय तथ्यों के स्थानिक वितरणों का अर्थात् विभिन्न प्रदेशों के मानव-वर्गों द्वारा किये गये वातावरण समायोजनों और स्थानिक संगठनों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल में मानव-वर्गो और उनके वातावरणों की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्वन्धों का अध्ययन, प्रादेशिक आधार पर किया जाता है। मानव भूगोल का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय देशों, पूर्ववर्ती सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत के विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन में अधिकाधिक रूचि ली जा रही है। पिछले लगभग ४० वर्षों में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र का वैज्ञानिक विकास हुआ है और संसार के विभिन्न देशों में वहाँ की जनसंख्या की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक उन्नति के लिये संसाधन-योजना में इसके ज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है। .

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मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग (जन्म:२५ अक्टूबर, १९३८) कोलकाता में जन्मी, हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने २० से अधिक पुस्तकों की रचना की है। १९६० में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद उन्होंने ३ साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया है। उनके उपन्यासों को अपने कथानक की विविधता और नयेपन के कारण समालोचकों की बड़ी स्वीकृति और सराहना मिली। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक हिंदी भाषाओं तथा जर्मन, चेक, जापानी और अँग्रेजी में अनुवाद हुआ है। वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट करती रही हैं तथा महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में २००३ से २०१० तक 'कटाक्ष' नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। उनके आठ उपन्यास- उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, 'मैं और मैं', कठगुलाब, 'मिलजुल मन' और 'वसु का कुटुम'। ग्यारह कहानी संग्रह- 'कितनी कैदें', 'टुकड़ा टुकड़ा आदमी', 'डैफ़ोडिल जल रहे हैं', 'ग्लेशियर से', 'उर्फ सैम', 'शहर के नाम', 'चर्चित कहानियाँ', समागम, 'मेरे देश की मिट्टी अहा', 'संगति विसंगति', 'जूते का जोड़ गोभी का तोड़', चार नाटक- 'एक और अजनबी', 'जादू का कालीन', 'तीन कैदें' और 'सामदाम दंड भेद', तीन निबंध संग्रह- 'रंग ढंग','चुकते नहीं सवाल' तथा 'कृति और कृतिकार', एक यात्रा संस्मरण- 'कुछ अटके कुछ भटके' तथा दो व्यंग्य संग्रह- 'कर लेंगे सब हज़म' तथा 'खेद नहीं है' प्रकाशित हुए हैं। .

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मैती आन्दोलन

मैती एक भावनात्मक पर्यावरण आंदोलन है। उत्तराखंड में जीव विज्ञान के प्राध्यापक कल्याण सिंह रावत की सोच से इस मुहिम की शुरुआत हुई तथा आज वहां के चमोली जनपद में एक अभियान का रूप ले चुकी है। 'मैती' यानि शादी के समय दूल्हा-दुल्हन द्वारा फलदार पौधों का रोपण। मैती शब्द का अर्थ होता है मायका, यानि जहां लड़की जन्म से लेकर शादी होने तक अपने मां-बाप के साथ रहती है। जब उसकी शादी होती है, तो वह ससुराल अपने मायके में गुजारी यादों के साथ-साथ विदाई के समय रोपित पौधे की मधुर स्मृति भी ले जाती है। भावनात्मक आंदोलन के साथ शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान विश्व में व्याप्त कई गंभीर समस्याएं जो पर्यावरण से जुड़ी हैं को खत्म करने में अहम भूमिका निभा सकता है। .

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रमेश ठाकुर

रमेश ठाकुर या रमेश ठाकुर पत्रकार (जन्म नाम रमेश सिंह) एक भारतीय वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और ब्लॉगर है। जिनका जन्म १० अगस्त १९८३ को पीलीभीत, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। इन्होंने अपने पत्रकारिता कैरियर भारत के कई जाने माने समाचार पत्रों के लिए कार्य किया। .

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राष्ट्रीय सेवा योजना

राष्‍ट्रीय सेवा योजना (National Service Scheme-NSS) राष्‍ट्र की युवाशक्‍ित के व्‍यक्‍तित्‍व विकास हेतु युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संचालित एक सक्रिय कार्यक्रम है। इसके गतिविधियों में भाग लेने वाले विद्यार्थी, समाज के लोगों के साथ मिलकर समाज के हित के कार्य करते है। साक्षरता संबंधी कार्य, पर्यावरण सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य एवं सफाई आपातकालीन या प्राकृतिक आपदा के समय पीड़ीत लोगों की सहायता आदि। विद्यार्थी जीवन से ही समाजपयोगी कार्यों में रत रहने से उनमें समाज सेवा या राष्‍ट्र सेवा के गुणो का विकास होता है। .

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राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (भारत)

भारत राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण व्यवस्था शुरू कर दुनिया में ऐसा तीसरा देश बन गया है, जहाँ पर्यावरण मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें चलती हैं। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश लोकेश्वरसिंह पंता को न्यायाधिकरण का पहला अध्यक्ष बनाया गया है और उन्होंने पदभार संभाल लिया है। इस न्यायाधिकरण की चार क्षेत्रीय पीठ होंगी। न्यायाधिकरण के अस्तित्व में आने के साथ राष्ट्रीय पर्यावरण अपीली प्राधिकार अस्तित्व में नहीं रह जाएगा तथा उसके समक्ष के सारे मामले नए संस्था को स्थानांतरित कर दिया गया है। इस न्यायाधिकरण की स्थापना राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण कानून के तहत किया गया है जिस कानून को इस वर्ष के आरंभ में संसद के द्वारा पारित किया गया था। भारत से पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ही केवल दो देश हैं, जिनके पास पर्यावरण संबंधी मसलों के निपटारे के लिए विशेष अदालत है। पिछले वर्ष अप्रैल में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद से अवकाश ग्रहण करने वाले पंता ने कहा कि उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसे पूरा करने की कोशिश करने का उनका प्रयास होगा। इस न्यायाधिकरण में 20 सदस्य होंगे जिसमें 10 न्यायापालिका क्षेत्र के और 10 सदस्य पर्यावरण के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होंगे। (भाषा) .

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राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010 द्वारा भारत में एक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई है। 18 अक्टूबर 2010 को इस अधिनियम के तहत पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन एवं व्यक्तियों और संपत्ति के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गयी। यह एक विशिष्ट निकाय है जो बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं वाले पर्यावरणीय विवादों को संभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा सुसज्जित है। यह प्राधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं होगा, बल्कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाएगा। पर्यावरण संबंधी मामलों में अधिकरण का समर्पित क्षेत्राधिकार तीव्र पर्यावरणीय न्याय प्रदान करेगा तथा उच्च न्यायालयों में मुकदमेबाज़ी के भार को कम करने में सहायता करेगा। अधिकरण को आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के ६ महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करने का कार्य सौंपा गया है। शुरूआत में एनजीटी को पांच बैठक स्थलों पर स्थापित किया जाना है और यह स्वयं को अधिक पहुंचयोग्य बनाने के लिए सर्किट व्यवस्था का अनुपालन करेगा। अधिकरण की बैठक का मुख्य स्थान नई दिल्ली होगा और साथ ही भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई अधिकरण की बैठकों के अन्य चार स्थल होंगे।.

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रासायनिक दुर्घटना

रासायनिक दुर्घटना रासायनिक दुर्घटना किसी एक या अधिक संकट पैदा करने वाले पदार्थों के अवांछित रूप से निकलने को रासायनिक दुर्घटना कहते हैं। इससे मानव स्वास्थ्य को या पर्यावरण को क्षति हो सकती है। रसायनों से आग लग सकती है, विस्फोट हो सकते हैं, विषाक्त पदार्थ हवा या जल में मिश्रित हो सकते हैं, जिससे लोग बीमारी, चोट, मृत्यु आदि हो सकते हैं। .

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राजा उदय प्रताप सिंह

राजा उदय प्रताप सिंह राजा उदय प्रताप सिंह (जन्म: १९३३) अवध के भूतपूर्व भदरी रियासत के वर्तमान उत्तराधिकारी है। वे एक पर्यावरणविद एवं विश्व हिंदू परिषद के हिंदूवादी नेता तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पदाधिकारी हैं। वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से विवादों के कारण भी जाने गए। वे उत्तर प्रदेश के राजनेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया के पिता है। .

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लोक जीवविज्ञान

लोक जीवविज्ञान (Ethnobiology) वैज्ञानिक रूप से विभिन्न मानव संस्कृतियों का अमानवीय जीवों के साथ के सम्बन्ध का अध्ययन करता है। इसमें अन्य जीवों के साथ करे गये मानव-व्यवहार, प्रयोगों, इत्यादि को देखा जाता है। मानवों का बायोटा और पर्यावरण के साथ ऐतिहासिक और वर्तमान सम्बन्ध परखा जाता है, जो कि हर संस्कृति में बदलता रहता है। .

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शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास भारत में शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करने वाला न्यास है। इसकी स्थापना १८ मई २००७ को की गयी थी। इसके संस्थापक दीनानाथ बत्रा हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक तथा विद्या भारती के पूर्व निदेशक हैं। यह न्यास अपने सहयोगी संगठनों जैसे, शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के निकट सहयोग से काम करता है। इस न्यास का घोषित लक्ष्य वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की वैकल्पिक व्यवस्था की स्थापना करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये लिये यह संस्था शिक्षा के पाठ्यक्रम, प्रणाली, विधि और नीति को बदलने तथा शिक्षा के 'भारतीयकरण' को आवश्यक मानती है। .

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सतत विपणन

सतत विपणन उप्भोक्तयो और व्यापारो के आज के जरुरतो को महत्व देता है और उसके साथ आने वाली पीढ़ी के योग्यता को संरक्षण कर उसे बढ़ाता है ताकि उनकी जरुरतो का भी ध्यान दिया जा सके। सतत विपणन सन्कल्पना और बाकी विपणन सन्कल्पना की तुलना भी की जा सकती है। विपणन सन्कल्पना व्यवस्थापन के रोज़ाना फलना का निर्धारण कर लक्षित ग्राहको के वर्तमान जरुरते और चाहतो को पहचानता है और उन्ही को कुशलतापूर्वक पुरी करता है। यह दलो के छोटा अवधि बिक्रि, विकास और लाभ होने के जरुरतो पर ध्यान केन्द्रित करता है और ग्राहको के इच्छाओ पे भी ध्यान केन्द्रित कर उन्हे उसकी सुविधा देता है। हालान्कि उपभोक्तायो के जरुरते को तुरन्त सन्तोषजनक करने से उनके भविष्य चाहतो को समझा नही जा सकता। जबकि सामाजिक विपणन सन्कल्पना उपभोक्तायो के भविष्य कल्याण को महत्व देता है और सामरिक आयोजन सन्कल्पना दलो के भविष्य जरुरते को महत्व देता है, सतत विपणन सन्कल्पना दोनो को महत्व देता है। पर्यावरण की दृष्टि से और सामाजिक रूप से सतत विपणन ग्राहको और दलो के भविष्य और वर्तमान जरुरतो को मिलाता है। सही मायने मे सतत विपणन को कार्यात्मक विपणन प्रणाली की आवश्यकता है जिसमे उपभोक्तायो, दलो, सार्वजनिक नीति निर्माताओं एक साथ कार्य कर नैतिकता कार्यो और सामाजिक आवश्यकताओ को सुनिश्चित करे। ' विपणन का विकास'- 'विपणन के सामाजिक आलोचनाये'- विपणन अनेक आलोचनाये प्राप्त करता है। कुछ आलोचनाये जायज है, कुछ नही। सामाजिक आलोचक दावा करते है कि कुछ विपणन नीतिया उप्भोक्तयो को चोट पहुचाती है, पुरे समाज को और अनेक फर्मो को भी। उनमे से कुछ प्रथाव इस प्रकार है: १) उच्च कीमतें लागत - बहुत आलोचक प्रभारी करते है की अमेरिकी विपणन प्रणाली, जो तेजी से विश्व स्तर पर अपनाया जा रहा है, उच्च कीमतो का कारण बनता है। इसके तीन कारक बताये गये है- अ) उच्च वितरण लागत - लम्बे समय से प्रभारी यह है कि लालची चैनल बिचौलियों कीमतो को उनके सेवा से ज्यादा दाम बताते है। आलोचक बताते है कि बहुत सारे बिचौलियों जो अक्श्म है और वह बेकार सेवाये देते है। इसी वजह से वितरण कीमत ज्यादा होता है और उप्भोक्तयो ज्यादा भुगतान करते है। आ) उच्च विज्ञापन और संवर्धन लागत - आधुनिक विपणन पे भारी विज्ञापन और संवर्धन लागत का भी आरोप लगाया गया है। विपणक का जवाब है कि विज्ञापन उत्पाद लागत का आवरन्न करते है। यह क्षमता खरीदारो को भी सूचित करता है और ब्रांड के खूबियो को दर्शाता है। इ) अत्यधिक मार्क अप - कुछ दल अपने उत्पादो को अत्यधिक मार्क अप करते है। विपणक क जवाब है कि बहुत व्यापारो उप्भोक्तयो से सम्बन्ध रखने कि कोशिश करते है। और अपने व्यापार को दोहराते है। विपणक यह भी बताते कि बहुत बार ग्राहको के उच्च मार्क अप के कारणों का पता नही चलता। २) भ्रामक प्रथाओ - विपणक पे कभी कभी भ्रामक प्रथाओ का आरोप लगाया जाता है कि वह ग्राहको को झूठी प्रथाओ मे उलझाते है। भ्रामक प्रथा तीन भागो मे है- अ) मूल्य निर्धारण आ) संवर्धन इ) पैकेजिंग विपणक तर्क करते है कि बहुत द्ल भ्रामक प्रथाओ से बचते है क्योकि यह अभ्यास उनके व्यापार को लम्बे समय के लिये हानी पहुचाते है और वह सतत नही होते है। ३) उच्च बिक्री दबाव - द्लो पे उच्च बिक्री दबाव का आरोप लगाया जाता है जो लोगो को अनावश्यक उत्पादो को खरीद्ने मे आकर्षित करता है। हालाकि ज्यादा बेच उप्भोक्तयो से सम्भन्ध बनाती है। उच्च दबाव और भ्रामक बिक्री इन सम्भन्धो को खराब कर सकती है। ४) अप्रचलित आयोजन - आलोचक तर्क करते है कि कुछ दल अप्रचलित आयोजन को महत्व देते है, जो उनके उत्पादो को प्रतिस्थापन से पहले अप्रचलित बना देता है। विपणक का जवाब है कि उप्भोक्तयो को शैली मे बदलाव अच्छा लगता है। वह पुराने माल से उब जाते है और उन्हे शैली मे नई देख चाहिये होती है। ५) भौतिकवाद और झूठी इच्छा - विपणन प्रणाली पे समाज मे विभिन्न बुराइयों को महत्व देने का आरोप लगाया गया है। आलोचक ने बताया है कि विपणन प्रणाली का आग्रह भौतिकवाद मे है और उसमे ज्यादा रुची है। उप्भोक्तयो पर यह चक्कर सतत नही है। ६) अनुचित प्रतिस्पर्धी प्रथाओ - कुछ दलो ने दुसरे दलो को नष्ट करने के इरादे से अनुचित प्रतिस्पर्धी प्रथाओ अपनाया है। वह अपनी कीमते लागत से नीचे करते है, आपूर्तिकर्ताओं को व्यापार से कट करने कि धमकी देते है या लोगो को प्रतियोगियो के उत्पादो को लेने से हतोत्सहित करते है। जबकि यह साबित करना है कि उनका इरादा शिकारी है। 'सतत विपणन के सिद्धांत'- १) ग्राहक उन्मुखी विपणन - सतत विपणन जो यह दर्शाती है कि दल को अपना दृश्य और विपणन गतिविधियो उप्भोक्तयो के दृश्य से रखना चाहिये। २) ग्राहक मान विपणन - सतत विपणन का वो सिद्धांत जो दर्शाता है कि दल को अपने सन्साधन ग्राहक मान विपणन निवेश बनाता है। ३) नविन विपणन - सतत विपणन का वो सिद्धांत जो दर्शाता है कि एक दल को अपने उत्पाद और विपणन सुधार कि तलाश की जरुरत होती है। ४) मिशन की भावना विपणन - सतत विपणन का वो सिद्धांत जो दर्शाता है कि दल को अपना मिशन व्यापक सामाजिक रूप से तैयार करना चाहिये। ५) सामाजिक विपणन - सतत विपणन का वो सिद्धांत जो दर्शाता है कि एक दल को अपना विपणन निर्णय उपभोक्तायो कि जरुरते, दल की लम्बे समय की आवश्यकताये, रुचिया और सामाजिक इच्छायो पर विचार कर उसे अपनाना चाहिय। 'सतत विपणन के पांच प्रमुख तत्वों'- १) सतत व्यापार प्रथायो को अपने व्यापार रणनीति मे शामिल करे। २) विपणन गतिविधियाँ चल रहे विकास स्थिति के लिये उद्धार करे। ३) सतत व्यापार क समर्थन करे। ४) दुसरे व्यापारो को सतत व्यापार अपनाने का प्रभाव करे। ५) रोजगारी व्यापारी संसाधन का कम से कम उपयोग करे। .

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सस्यविज्ञान

पौधों से भोजन, ईंधन, चारा एवं तन्तु (फाइबर) की प्राप्ति के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को सस्यविज्ञान (Agronomy) कहते हैं। सस्यविज्ञान के अन्तर्गत पादप अनुवांशिकी, पादप क्रियाविज्ञान, मौसमविज्ञान तथा मृदा विज्ञान समाहित हैं। यह जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, पर्यावरण, मृदा विज्ञान तथा आनुवांशिकी आदि विषयों का सम्मिलित अनुप्रयोग है। वर्तमान में सस्यवैज्ञानिक अनेकों कार्यों में संलग्न हैं, जैसे- अन्न उत्पादन, अधिक स्वास्थ्यकर भोजन का उत्पादन, पादपों से ऊर्जा का उत्पादन आदि। सस्यवैज्ञानिक प्रायः सस्य आवर्तन (crop rotation), सिंचाई एवं जलनिकास, पादप प्रजनन, पादपकार्यिकी (plant physiology), मृदा-वर्गीकरण, मृदा-उर्वरकता, खरपतवार-प्रबन्धन, कीट-प्रबन्धन आदि में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। .

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सारस (पक्षी)

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली। .

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सिट्रिक अम्ल

सिट्रिक अम्ल (Citric acid) एक दुर्बल कार्बनिक अम्ल है। नींबू, संतरे और अनेक खट्टे फलों में सिट्रिक अम्ल और इसके लवण पाए जाते हैं। जांतव पदार्थों में भी बड़ी अल्प मात्रा में यह पाया जाता है। नींबू के रस से यह तैयार होता है। नींबू के रस में ६ से ७ प्रतिशत तक सिट्रिक अम्ल रहता है। नींबू के रस को चूने के दूध से उपचारित करने से कैल्सियम सिट्रेट का अवक्षेप प्राप्त होता है। अवक्षेप को हल्के सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ उपचारित करने से सिट्रिक अम्ल उन्मुक्त होता है। विलयन के उद्वाष्पन से अम्ल के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं जिनमें जल का एक अणु रहता है। शर्करा के किण्वन से भी सिट्रिक अम्ल प्राप्त होता है। रसायनशाला में सिट्रिक अम्ल का संश्लेषण भी हुआ है। यह वस्तुत: २-हाइड्रोक्सि-प्रोपेन १: २: ३ ट्राइकार्बोसिलिक अम्ल है। 300px 300px .

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संधारणीय विकास

संधारणीय विकास अथवा टिकाऊ विकास (Sustainable Development), विकास की वह अवधारणा है जिसमें विकास की नीतियां बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मानव की न केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति हो, वरन् अनन्त काल मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित हो सके। इसमें प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। .

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संधारणीयता

संधारणीयता का अर्थ पारिस्थितिकी विज्ञान में होता है कि कोई जैविक तंत्र कैसे विविधता बनाये रखते हुए लंबे समय तक उत्पादन करता रह सकता है। दीर्घ अवधि से क्रियाशील और जैविक रूप से स्वस्थ आर्द्रभूमियाँ और वन इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सामान्य अर्थों में संधारणीयता का अर्थ सीमित प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना है कि भविष्‍य में वे हमारे लिए समाप्‍त न हो जाएं। संधारणीयता को बनाये रखते हुए मानव विकास की अवधारणा को संधारणीय विकास की संज्ञा दी जाती है और इसके अध्ययन को संधारणीयता विज्ञान कहते हैं। संधारणीयता की संकल्पना मानव-पर्यावरण संबंधों के एक सरल सिद्धांत पर आधारित है कि हमारे अस्तित्व के बने रहने के लिये और मानव कल्याण के लिये जो भी जरूरत की चीजें हैं वे किसी न किसी रूप में हमें अपने प्राकृतिक पर्यावरण से प्राप्त होती हैं। अतः संधारणीयता होना यह सुनिश्चित करना है कि मनुष्य और उसका पर्यावरण एक स्वस्थ और सुसंबद्ध रूप से आपस में संबंधित रहें और ये उत्पादक दशाएँ और विविधता चिरकाल तक बने रहें। इन अर्थों में संधारणीयता संसाधन उपयोग का एक मार्गदर्शक सिद्धांत है जिससे हमारी पृथ्वी और प्राकृतिक पर्यावरण की विविधता, प्राकृतिक उत्पादनशीलता क्षमता और स्थायित्व बने रहें और मानव जीवन चिरकाल तक संकटमुक्त रह सके। संधारणीयता और संधारणीय विकास जैसे शब्दों का उपयोग अस्सी के दशक से काफ़ी प्रचलन में आया जब मार्च 20, 1987 को संयुक्त राष्ट्र की ब्रंटलैण्ड रिपोर्ट जारी हुई और इसमें संधारणीय विकास (sustainable development) का उल्लेख हुआ। संधारणीयता और संधारणीय विकास जैसे शब्दों की पापुलरिटी में लगातार बढ़ोत्तरी के बावज़ूद अगर पर्यावरणीय अवनयन, उपभोग की प्रवृत्तियाँ और आर्थिक समृद्धि की दौड़ और होड़ को गणना में लिया जाए तो इस बात पर अभी भी सवालिया निशान हैं कि मानव सभ्यता संधारणीयता प्राप्त कर पायेगी। --महात्‍मा गाँधी .

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संरक्षण कृषि

संरक्षण कृषि (Conservation tillage), खेती का एक बिल्कुल ही नया मॉडल है, जिसकी मदद से पर्यावरण का ख्याल रखा जाता है। इस अनोखी तरह की खेती में जमीन को या तो बिल्कुल भी नहीं जोता जाता (जुताई रहित कृषि) या फिर कम से कम जुताई होती है। इसमें फसल के पौधों को शुरू में नर्सरी में उगाया जाता है। साथ ही, लेजर की मदद से जमीन को जबरदस्त तरीके से समतल किया जाता है। ऊपर से, इसमें ड्रिप और स्प्रिंकलर्स जैसे सिंचाई के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल होता है। इन तरीकों का इस्तेमाल करके खेती में काफी मुनाफे का सौदा बन सकती है। साथ ही, इससे कृषि में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कार्यकुशलता में जबरदस्त इजाफा होता है। इससे लागत कम आती है और पैदावार में काफी बढ़ोतरी होती है। इस सबका फायदा किसानों को मोटे मुनाफे के रूप में होता है। गंगा के मैदानों के किसानों के बीच खेती का यह नया तरीका काफी मशहूर हो रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह है, इसका काफी अच्छा और फायदेमंद होना। .

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संवेष्टन

टेस्को से एक टुकड़े किए हुए पोर्क का सील बंद पैकेट. यह दर्शाता है पकाने का समय, सर्विंग्स की संख्या, 'डिस्प्ले अन्टिल' डेट, 'यूज़ बाई' डेट, किलोग्राम में वजन, £/kg और £/lb दोनों के मूल्य से वजन दर, प्रशीतित और भंडारण निर्देश.यह कहता हैं 'लेस डैन 3% फैट' और 'नो कार्ब्स पर सर्विंग' और इसमें एक बार कोड शामिल है। संघ का ध्वज, ब्रिटिश फार्म मानक ट्रेक्टर लोगो और ब्रिटिश मांस गुणवत्ता मानक लोगो भी मौजूद हैं। एक ब्लिस्टर पैक में गोलियाँ, जो खुद एक तह लगी दफ्ती के कार्टन में पैक है। संवेष्टन या पैकेजिंग, उत्पादों को वितरण, भंडारण, बिक्री और खपत के लिए बंद करने या सुरक्षित करने का विज्ञान, कला और प्रौद्योगिकी है। पैकेजिंग, डब्बों की डिज़ाइन प्रक्रिया, मूल्यांकन और उनके उत्पादन को भी संदर्भित करता है। पैकेजिंग को, उत्पादों को परिवहन, भंडारण, प्रचालन-तन्त्र, बिक्री और खपत के लिए तैयार करने की एक समन्वित प्रणाली के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पैकेजिंग, धारण करता है, सुरक्षा करता है, संरक्षित रखता है, परिवहन करता है, सूचित करता है और बेचता है। कई देशों में यह पूरी तरह से सरकार, व्यापार, संस्थागत, औद्योगिक और व्यक्तिगत उपयोग में एकीकृत होता है। पैकेज लेबलिंग (en-GB) या लेबलिंग (en-US), पैकेजिंग पर या किसी अलग मगर जुड़े हुए लेबल पर लिखा हुआ, इलेक्ट्रॉनिक, ग्राफिक सम्प्रेषण है। .

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सक्रियतावाद

सक्रियतावाद सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, या पर्यावरण परिवर्तन, या ठहराव, को बढ़ावा देने मंं बाधा, या निर्देशित करने का होता हैं। सक्रियतावाद अखबारों या राजनेता, आतंकवाद, राजनीतिक चुनाव प्रचार, इस तरह के बहिष्कार या रियायत के संरक्षण व्यवसायों, रैलियों, सड़क जुलूस, हड़ताल पर बैठने और भूख हड़ताल के रूप में आर्थिक सक्रियता को पत्र लिखने से रूपों की एक विस्तृत श्रृंखला मैं देखा जा सकता है। अमेरिका में रिसर्च की सुरुआत होचुकी है यह जानने के लिए के कैसे कार्यकर्ता समूह अमेरिका और कनाडा मैं नागरिक सगाई और सामूहिक कार्रवाई की सुविधा के लिए सामाजिक मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। .

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सुनीता नारायण

सुनीता नारायण (जन्म १९६१--) भारत की प्रसिद्ध पर्यावरणविद है। वे हरित राजनीति और अक्षय विकास की महान समर्थक हैं। कु॰ सुनीता नारायणन सन १९८२ से भारत स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र से जुडी रहीं हैं। इस समय वे इस केन्द्र की निदेशक हैं। वे पर्यावरण संचार समाज (Society for Environmental Communication) की निदेशक भी हैं। वे डाउन टू अर्थ नामक एक अंग्रेजी पाक्षिक पत्रिका भी प्रकाशित करती हैं जो पर्यावरण पर केन्द्रित पत्रिका है। सन २००५ में भारत सरकार ने उन्हे पद्मश्री से अलंकृत किया। प्रकृति से प्यार करने वाली सुनीता नारायण को इंग्लैण्ड की पत्रिका ने दुनिया भर में मौजूद सर्वश्रेष्ठ 100 बुद्धिजीवियों की श्रेणी में शामिल किया है। (अगस्त २०१०) .

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सुखी ग्रह सूचकांक

'सुखी ग्रह सूचकांक' (Happy Planet Index / HPI) एक सूचकांक है जिसे २००६ में विश्व आर्थिक मंच ने शुरु किया। इस सूचकांक की गणना किसी देश के लोगों के सौख्य (well-being) तथा वहाँ के पर्यावरण को ध्यान में रखकर की जाती है। श्रेणी:सौख्य सूचकांक श्रेणी:टिकाऊपन से संबन्धित सूचकांक.

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स्वास्थ्य शिक्षा

लोगों को स्वास्थ्य के सभी पहलुओं के बारे में शिक्षित करना स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education) कहलाती है। स्वास्थ्य शिक्षा ऐसा साधन है जिससे कुछ विशेष योग्य एवं शिक्षित व्यक्तियों की सहायता से जनता को स्वास्थ्यसंबंधी ज्ञान तथा औपसर्गिक एवं विशिष्ट व्याधियों से बचने के उपायों का प्रसार किया जा सकता है। विस्तृत अर्थों में स्वास्थ्य शिक्षा के अन्तर्गत पर्यावरण का स्वास्थ्य, दैहिक स्वास्थ्य (physical health), सामाजिक स्वास्थ्य, भावात्मक स्वास्थ्य, बौद्धिक स्वास्थ्य, तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य सभी आ जाते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह ऐसा बर्ताव करता है जो स्वास्थ्य की उन्नति, रखरखाव और पुनर्प्राप्ति में सहायक हो। .

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सौर ऊर्जा

विश्व के विभिन्न भागों का औसत सौर विकिरण (आतपन, सूर्यातप)। इस चित्र में जो छोटे-छोटे काले बिन्दु दिखाये गये हैं, यदि उनके ऊपर गिरने वाले सम्पूर्ण सौर विकिरण का उपयोग कर लिया जाय तो विश्व में उपयोग की जा रही सम्पूर्ण ऊर्जा (लगभग 18 टेरावाट) की आपूर्ति इससे ही हो जायेगी। यूएसए के कैलिफोर्निया के सान बर्नार्डिनो में 354 MW वाला SEGS सौर कम्प्लेक्स सौर ऊर्जा वह उर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है। सौर ऊर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है। यहीं धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है। वैसे तो सौर उर्जा के विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है, किन्तु सूर्य की उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर उर्जा के रूप में जाना जाता है। सूर्य की उर्जा को दो प्रकार से विदुत उर्जा में बदला जा सकता है। पहला प्रकाश-विद्युत सेल की सहायता से और दूसरा किसी तरल पदार्थ को सूर्य की उष्मा से गर्म करने के बाद इससे विद्युत जनित्र चलाकर। .

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सौर शक्ति

यह लेख सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए विद्युत के उत्पादन के बारे में है। सौर ऊर्जा के अन्य उपयोगों के लिये सौर ऊर्जा देखें। ---- सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त शक्ति को कहते हैं। इस ऊर्जा को ऊष्मा या विद्युत में बदल कर अन्य प्रयोगों में लाया जाता है। उस रूप को ही सौर ऊर्जा कहते हैं। घरों, कारों और वायुयानों में सौर ऊर्जा का प्रयोग होता है। ऊर्जा का यह रूप साफ और प्रदूषण रहित होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १२ जनवरी २०१० सूर्य से ऊर्जा प्राप्त कर उसे प्रयोग करने के लिए सोलर पैनलों की आवश्यकता होती है। सोलर पैनलों में सोलर सेल होते हैं जो सूर्य की ऊर्जा को प्रयोग करने लायक बनाते हैं। यह कई तरह के होते हैं। जैसे पानी गर्म करने वाले सोलर पैनल बिजली पहुंचाने वाले सोलर पैनलों से भिन्न होते हैं। .

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सौर सेल

मोनोक्रिस्टलाइन सिलिकॉन वैफ़र से बना सौर सेल सौर बैटरी या सौर सेल फोटोवोल्टाइक प्रभाव के द्वारा सूर्य या प्रकाश के किसी अन्य स्रोत से ऊर्जा प्राप्त करता है। अधिकांश उपकरणों के साथ सौर बैटरी इस तरह से जोड़ी जाती है कि वह उस उपकरण का हिस्सा ही बन जाती जाती है और उससे अलग नहीं की जा सकती। सूर्य की रोशनी से एक या दो घंटे में यह पूरी तरह चार्ज हो जाती है। सौर बैटरी में लगे सेल प्रकाश को समाहित कर अर्धचालकों के इलेक्ट्रॉन को उस धातु के साथ क्रिया करने को प्रेरित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मार्च २०१० एक बार यह क्रिया होने के बाद इलेक्ट्रॉन में उपस्थित ऊर्जा या तो बैटरी में भंडार हो जाती है या फिर सीधे प्रयोग में आती है। ऊर्जा के भंडारण होने के बाद सौर बैटरी अपने निश्चित समय पर डिस्चार्ज होती है। ये उपकरण में लगे हुए स्वचालित तरीके से पुनः चालू होती है, या उसे कोई व्यक्ति ऑन करता है। सौर सेल का चिह्न एक परिकलक में लगे सौर सेल अधिकांशतः जस्ता-अम्लीय (लेड एसिड) और निकल कैडमियम सौर बैटरियां प्रयोग होती हैं। लेड एसिड बैटरियों की कुछ सीमाएं होती हैं, जैसे कि वह पूरी तरह चार्ज नहीं हो पातीं, जबकि इसके विपरीत निकल कैडिमयम बैटरियों में यह कमी नहीं होती, लेकिन ये अपेक्षाकृत भी होती हैं। सौर बैटरियों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में भी प्रयोग करने हेतु भी गौर किया जा रहा है। अभी तक, इन्हें केवल छोटे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोगनीय समझा जा रहा है। पूरे घर को सौर बैटरी से चलाना चाहे संभव हो, लेकिन इसके लिए कई सौर बैटरियों की आवश्यकता होगी। इसकी विधियां तो उपलब्ध हैं, लेकिन यह अधिकांश लोगों के लिए अत्यधिक महंगा पड़ेगा। बहुत से सौर सेलों को मिलाकर (आवश्यकतानुसार श्रेणीक्रम या समानान्तरक्रम में जोड़कर) सौर पैनल, सौर मॉड्यूल, एवं सौर अर्रे बनाये जाते हैं। सौर सेलों द्वारा जनित उर्जा, सौर उर्जा का एक उदाहरण है। .

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सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

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हरित भवन

सिडनी का एक लटकता हुआ बाग। हरित भवन एक प्रकार का ऐसा भवन, जो पर्यावरण के साथ मिल कर बना होता है। इसे बनाते समय इस तरह से बनाते हैं कि पर्यावरण को बहुत ही कम हानि हो। इसे बनाए के बाद आसपास के स्थान पर पेड़ पौधे लगाए जाते हैं। इसके अलावा कुछ लोग इसमें पूरी तरह से अपने भवन के ऊपर के भाग को गमलों और छोटे पौधों से सजाते हैं। .

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हरित वाहन

एक प्रकार का हरित वाहन। हरित वाहन ऐसे वाहनों को कहते हैं, जिससे बहुत कम प्रदूषण होता है और पर्यावरण पर बहुत कम दुष्प्रभाव पड़ता है। यह पेट्रोल आदि से चलते हैं, लेकिन इनसे उतना अधिक प्रदूषण नहीं होता है। कुछ हरित वाहन वैकल्पिक स्रोत से चलते हैं। जैसे विद्युत, प्राकृतिक गैस द्वारा आदि। .

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हरित अभिकलन

हरित अभिकलन (Green computing या Green ICT) से तात्पर्य सूचना प्रौद्योगिकी तथा अभिकलन के क्षेत्र में ऐसी नीतियों को प्रोत्साहित करने से है जो पर्यावरण की रक्षा की दृष्टि से अच्छी हैं। हरित अभिकलन के लक्ष्य भी वे ही हैं जो हरित रसायन के हैं (खतरनाक पदार्थों का उपयोग कम करना, किसी उत्पाद के जीवनकाल में ऊर्जा दक्षता को अधिक से अधिक करना, उत्पाद का जीवनकाल समाप्त होने पर वह पुनर्चक्रीय या जैवनिम्ननी (बायोडिग्रेडेबुल) हो)। हरित अभिकलन सभी प्रकार के अभिकलित्रों के लिए महत्वपूर्ण है (हाथ में रखकर चलाये जाने वाली युक्तियों से लेकर बड़े-बड़े डेटा-केन्द्र तक)। श्रेणी:संधारणीय प्रौद्योगिकी.

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हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी

हाइड्रोजन के उत्पादन एवं उपयोग से सम्बन्धित समस्त तकनीकें हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आतीं हैं। हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का अनेकानेक क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है या हो सकता है। कुछ हाइद्रोजन प्रौद्योगिकियाँ कार्बन न्यूट्रल हैं तथा इस कारण जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा भविष्य की हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। .

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हिमालय की पारिस्थितिकी

जैवविविधता के लिये प्रसिद्द फूलों की घाटी का एक दृश्य हिमालय की पारिस्थितिकी अथवा हिमालयी पारितंत्र जो एक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है, भारत और विश्व के कुछ विशिष्ट पारितंत्रों में से एक है। हिमालय पर्वत तंत्र विश्व के सर्वाधिक नवीन और विशाल पर्वतों में से एक है। ध्रुवीय प्रदेशों के आलावा यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा हिम-भण्डार है और यहाँ करीब 1500 हिमनद पाए जाते हैं जो हिमालय के लगभग 17% भाग को ढंके हुए हैं। हिमालय पर्वत पर यहाँ की विशिष्ट जलवायवीय और भूआकृतिक विशेषताओं की वजह से कुछ विशिष्ट पारिस्थिक क्षेत्र पाए जाते हैं जो अपने में अद्वितीय हैं। उदाहरण के लिये फूलों की घाटी एक ऐसा ही जैवविविधता का केन्द्र है। पूर्वी हिमालय में वर्षा की अधिकता और अपेक्षा कृत नम जलवायु ने एक अलग ही प्रकार का पारितंत्र विकसित किया है। अपने विविध जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की जैवविविधता और इसके भौगोलिक प्रतिरूप के कारण हिमालयी पारितंत्र एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नवीन वलित पर्वत होने के कारण अभी भी हिमालय क्षेत्र में भूअकृतिक स्थिरता नहीं आयी है और यह भूकम्पीय रूप से संवेदन शील तथा भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्र में आता है। जलवायवीय रूप से भी यहाँ के हिमनदों के निवर्तन कि पुष्टि की गई है जो कि मानव द्वारा परिवर्धित जलवायु परिवर्तन का परिणाम माना जाता है। उपरोक्त कारणों से हिमालयी पारिस्थितकी अपने परिवर्तनशील होने के कारण भी महत्वपूर्ण है। इस विशिष्ट प्राकृतिक पर्यावरण में मनुष्य की क्रियाओं द्वारा एक अनन्य प्रकार का मानव पारितंत्र भी विकसित हुआ है। हिमालय की मानव पारिस्थितिकी में हुए अध्ययन यह साबित करते हैं की यहाँ मनुष्य और प्रकृति के बीच की अन्योन्याश्रयता ने एक विशिष्ट मानव पारिस्थितिकी निर्मित की है और हिमालय के परिवर्तनशील स्थितियों के कारण इस पर निर्भर मानव जनसंख्या भी बदलावों के प्रति संवेदनशील है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी पारितंत्र एशिया के 1.3 बिलियन लोगों की आजीविका पर प्रभाव डालता है। .

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जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड

जयपुर इंडियन ऑयल डिपो अग्निकांड गुरूवार २९ अक्टूबर २००९ को हुआ था। इस अग्निकाण्ड में राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर शहर के निकट स्थित सांगानेर में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तेल भण्डार डिपो में भीषण आग लग गई जिसमें कंपनी को जहाँ करोड़ों की हानि हुई, वहीं इस दुर्घटना में ११ लोगों की मृत्यु भी हो गयी। .

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जल संसाधन

जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का ९७.५% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल २.५% ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है। मीठा पानी एक नवीकरणीय संसाधन है क्योंकि जल चक्र में प्राकृतिक रूप से इसका शुद्धीकरण होता रहता है, फिर भी विश्व के स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही हैं, निकट भविष्य मैं इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है। पानी के प्रयोक्ताओं के लिए जल संसाधनों के आवंटन के लिए फ्रेमवर्क (जहाँ इस तरह की एक फ्रेमवर्क मौजूद है) जल अधिकार के रूप में जाना जाता है। आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे संबंधित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। .

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जुब्बल उपत्यका

जुब्बल उपत्यका भारत में हिमाचल प्रदेश के शिमला जनपद का शांत, एकांत एवं मनमोहक हिमालयी भूदृश्य है। यह देउरा घाटी, जुब्बल घाटी या बिशकल्टी घाटी के नाम से भी जानी जाती है। सेब उत्पादन में लगे स्थानीय निवासियों के मन में बसे देवी-देवताओं के अत्यंत रोचक मिथक, सहज रूप से समाज के ताने-बाने को प्रभावित करते हैं। हिमाचल प्रदेश की अन्य घाटियों की तरह जुब्बल उपत्यका में भी है देवी-देवताओं का राज तो कायम रहा पर रियासतें बदलती रही। जुब्बल शिमला पहाड़ी की रियासतों में से एक थी। इसका क्षेत्रफल लगभग ३०० वर्ग किमी था। इसमें ८४ गाँव थे। देवढ़ा इस रियासत की राजधानी थी। राठौर राजपूतों का यहाँ राज्य था। अनाज, तंबाकू और अफीम यहाँ के प्रमुख उत्पादन थे। खड़ापत्थर में लुभावने वन, पर्वत शिखर और गिरीगंगा; पुराना जुब्बल में ग्रामीण परिवेश और स्थानीय काठकूणी शैली के मकान; जुब्बल (देउरा) का पाश्चात्य शैली से निर्मित और स्थानीय काष्ठकला से सुसज्जित राजमहल; तथा हाटकोटी में पब्बर तट पर ८वीं से ११वीं शताब्दी के बीच वास्तुपुरूषमंडल नियोजन से परिचय कराते मंदिर, जुब्बल उपत्यका के महत्वपूर्ण स्थल हैं। जुब्बल उपत्यका हिमालय में मिश्रित वनों के संरक्षण के साथ सेब और आलू की सघन खेती से उत्पन्न टकराव, में प्राकृतिक संसाधनों की सीमित उपलब्धता तथा मानव मन की असीमित इच्छाओं का द्वंद्व है। .

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जैवोपचारण

तेल रिसावजैवोपचारण (जीव+उपचार+ण .

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जीवन की गुणवत्ता

जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) (QOL) व्यक्तियों और समाज की सामान्य भलाई हैं, जो जीवन के नकारात्मक और सकारात्मक विशेषताओं को दर्शाती हैं। इस में जीवन की संतुष्टि देखने को मिलती हैं, जिस में शारीरिक स्वास्थ्य, परिवार, शिक्षा, रोजगार, धन, धार्मिक विश्वास, वित्त और पर्यावरण से लेकर सब शामिल हैं। जीवन की गुणवत्ता संदर्भों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जिस में, अंतरराष्ट्रीय विकास, स्वास्थ्य सेवा, राजनीति और रोजगार के क्षेत्र भी शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण हैं कि QOL की अवधारणा को बिलकुल हाल में ही बढ़ते स्वास्थ्य से संबंधित QOL (HRQOL) के क्षेत्र के साथ मिश्रित न करें। HRQOL का आकलन प्रभावी ढंग से QOL और उसके स्वास्थ्य के साथ अपने संबंध का मूल्यांकन हैं। जीवन की गुणवत्ता को जीवन स्तर की अवधारणा के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि जीवन स्तर मुख्य रूप से आय पर आधारित हैं। .

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ईकोटूरिज़्म

पर्यावरण प्रेमी पर्यटक (अंग्रेज़ी:ईकोट्रैवलर) वे पर्यटक होते हैं, जो अपनी यात्राओं के दौरान कुछ बातों का ध्याण रखकर पर्यावरण को बचाने में अपना सहयोग देते हैं। इस प्रकार के पर्यटन को ही ईकोटूरिज़्म कहते हैं। पर्यावरण पर बढ़ते दुष्प्रभावों को देखते हुए सभी देशों में पर्यावरण-प्रेमी जीवनशैली अपनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसी जीवनशैली जो घर तक ही सीमित न हो। लोग अपने व्यवसाय और नौकरी के काम से अथवा मौज-मस्ती के लिए कहीं बाहर घूमने जा रहे हों, तो भी ईको-ट्रैवलर बनकर जाएं।। हिन्दुस्तान लाइव। २७ जनवरी २०१० यह ध्यान योग्य है कि यात्रा के दौरान गतिविधियां कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में सहायक हो। इसके लिए सबसे आवश्यक होगा अपनी गतिविधियों पर नियंत्रण रखना और पर्यावरण-प्रेमी बातें अपनाने में आगे रहना। विश्व भर में कई ऐसे होटल हैं, जो अपने यहां ग्रीन होटल्स अभ्यास अपना रहे हैं। उनकी ऐसी गतिविधियों के लिए होटल प्रबंधक और कर्मचारियों के प्रयासों की प्रशंसा करना न भूलें। जहां तक संभव हो सीधी उड़ान लें। हर साल की जाने वाली वायु यात्राओं की संख्या में भी कमी ला सकते हैं यानी कम यात्रा, पर लंबी यात्रा की योजना बना सकते हैं। इस तरह अपनी यात्राओं से उत्सजिर्त होने वाली कार्बन मात्र को कम कर सकते हैं। इकोनॉमी क्लास में यात्रा करें। एक फ्लाइट में जितने अधिक लोग होंगे, प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट की संख्या उतनी ही कम होगी। यदि होटल में ठहरे हैं, तो बाहर निकलते समय कमरे की प्रकाश व्यवस्था, रेडियो, टीवी और एसी आदि बंद करना न भूलें। डिस्पोजेबल कप व अन्य बर्तनों की जगह दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले बर्तनों का इस्तेमाल करें। अतिरिक्त पैकेजिंग, प्लास्टिक बैग, बोतल, व्यर्थ सामान अथवा प्रदूषण फैलाने वाली क्रियाओं पर नियंत्रण बनाएं। सामान का अधिकतम उपयोग करें। यदि वस्तु को दोबारा इस्तेमाल में ला सकते हैं तो अवश्य यूज करें। कागज पर दोनों ओर लिखें। ऐसे सामान की खरीदारी करें, जो पुनर्प्रयोगनीय पदार्थ से बने हों। यदि किसी पहाड़ी इलाके में घूमने गए हैं, तो वहां की सुंदरता को बनाए रखने में अपना पूरा योगदान दें। खाने-पीने के सामान को यहां-वहां न फैंके। यदि किसी जगह पर कूड़ेदान की व्यवस्था नहीं है, तो अपने पास एक पॉलीथीन रखें और बेकार सामान को उसमें एकत्र करें। .

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वन महोत्सव

वन महोत्सव भारत सरकार द्वारा वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में आयोजित किया जाने वाला एक महोत्सव है। यह १९६० के दशक में पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने वाला एक आंदोलन था। तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने इसका सूत्रपात किया था। .

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वास्तुस्थितिकी

वास्तुस्थितिकी (Arcology) वास्तुशास्त्र और पारिस्थितिकी का एक मिश्रित अध्ययन होता है जिसमें विशेष रूप से घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ऐसे आवास व कार्यस्थल बनाने पर बल दिया जाता है जिनका पर्यावरण पर कम-से-कम हानिकारक प्रभाव हो। अक्सर इसमें एक ही बड़ी इमारत में आवास, कार्यालय, कृषि और दुकानें स्थापित करने की परिकल्पना की जाती है। .

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विश्व पर्यावरण दिवस

विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। .

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विश्व गौरैया दिवस

एक नर गौरैया विश्व गौरैया दिवस २० मार्च को मनाया जाता है। .

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व्यवहारवाद

व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) के अनुसार मनोविज्ञान केवल तभी सच्ची वैज्ञानिकता का वाहक हो सकता है जब वह अपने अध्ययन का आधार व्यक्ति की मांसपेशीय और ग्रंथिमूलक अनुक्रियाओं को बनाये। मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में जे.बी. वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी। उन दिनों मनोवैज्ञानिकों से माँग की जा रही थी कि वे आत्म-विश्लेषण की तकनीक विकसित करें। वाटसन का कहना था कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी भीतरी और निजी अनुभूतियों पर आधारित नहीं होता। वह अपने माहौल से निर्देशित होता है। मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए किसी बाह्य उत्प्रेरक के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया का प्रेक्षण करना ही काफ़ी है। वाटसन के इस सूत्रीकरण के बाद व्यवहारवाद अमेरिकी मनोविज्ञान में प्रमुखता प्राप्त करता चला गया। एडवर्ड हुदरी, क्लार्क हुल और बी.एफ़.

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वृक्ष रेखा

मई २००९ में सेंट मॉरिट्ज़, स्विटज़रलैंड के उपर की वृक्ष रेखा।वृक्ष रेखा, पर्यावास की वो सीमा है जहाँ पर वृक्ष उग पाने में सक्षम होते हैं। वृक्ष रेखा के पार, वृक्ष पर्यावरण की विषम परिस्थितियों जैसे कि बहुत कम तापमान, अपर्याप्त वायु दाब और/ या आर्द्रता की कमी के कारण उग पाने में असमर्थ होते हैं। कुछ मत एक अतिरिक्त गहरी काष्टरेखा की भी व्याख्या करते हैं, जहां पेड़ों के तनों का विकास संभव होता है। वृक्ष रेखा के ठीक उपर, वृक्षों का विकास अवरुद्ध रहता है और वृक्ष अक्सर घनी झाड़ियों रूप में ही उगते हैं। अगर यह हवा के कारण होता है, तो इसे क्रमहोल्ज़ के नाम से जाना जाता है, जो एक जर्मन शब्द है और जिसका अर्थ मुड़ी हुई लकड़ी है। दूर से देखने पर वृक्ष रेखा अन्य कई प्राकृतिक रेखाओं (जैसे कि किसी झील के किनारे) के समान बड़ी स्पष्ट दिखाई पड़ती है, पर अधिकतर स्थानों पर निकट से निरीक्षण करने यह संक्रमण क्रमिक होता है। जैसे जैसे हम उपर की ओर बढ़ते हैं जलवायु के विषम होने के साथ वृक्षों की ऊँचाई कम होती जाती है और एक बिन्दु पर आकर वृक्ष उगना बंद कर देते हैं। .

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वृक्षायुर्वेद

वृक्षायुर्वेद एक संस्कृत ग्रन्थ है जिसमें वृक्षों के स्वास्थ्यपूर्ण विकास एवं पर्यावरण की सुरक्षा से समन्धित चिन्तन है। यह सुरपाल की रचना मानी जाती है जिनके बारे में बहुत कम ज्ञात है। सन् १९९६ में डॉ वाय एल नेने (एशियन एग्रो-हिस्ट्री फाउन्डेशन, भारत) ने यूके के बोल्डियन पुस्तकालय (आक्सफोर्ड) से इसकी पाण्डुलिपि प्राप्त की। डॉ नलिनी साधले ने इसका अनुवाद अंग्रेजी में किया। वृक्षायुर्वेद की पाण्दुलिपि देवनागरी के प्राचीन रूप वाली लिपि में लिखी गयी है। ६० पृष्ठों में ३२५ परस्पर सुगठित श्लोक हैं जिनमें अन्य बातों के अलावा १७० पौधों की विशेषताएँ दी गयीं हैं। इसमें बीज खरीदने, उनका संरक्षण, उनका संस्कार (ट्रीटमेन्ट) करने, रोपने के लिये गड्ढ़ा खोदने, भूमि का चुनाव, सींचने की विधियाँ, खाद एवं पोषण, पौधों के रोग, आन्तरिक एवं वाह्य रोगों से पौधों की सुरक्षा, चिकित्सा, बाग का विन्यास (ले-आउट) आदि का वर्नन है। इस प्रकार यह वृक्षों के जीवन से सम्बन्धित सभी मुद्दों पर ज्ञान का भण्डार है। .

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गिरीगंगा उपत्यका

गिरीगंगा उपत्यका हिमाचल प्रदेश के तीन जनपदों शिमला, सोलन और सिरमौर में फैली है, और गिरी नदी इनके अधिकांश भागों से जलग्रहण कर यमुना में डालती है। इन क्षेत्रों के लोग गिरी नदी को गिरीगंगा के नाम से पुकारते हैं। गिरीगंगा का जलग्रहण क्षेत्र २,६३,८६१.८६ हेक्टेयर में राजबन (समुद्र तल से ३९१ मीटर ऊंचाई पर), उत्तराँचल और हिमाचल की सीमा पर यमुना से शिमला जनपद के जुब्बल कस्बे के ऊपर कूपड़ पर्वत (समुद्र तल से ३३५४ मीटर ऊंचाई पर) तक फैला है। गिरीगंगा, जुब्बल-रोहडू राष्ट्रीय मार्ग पर शिमला से ८० किलोमीटर दूर खड़ा-पत्थर नामक स्थान से लगभग ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शिमला जनपद में कूपड़ पर्वत से निकल कर गिरीगंगा दक्षिण-पश्चिम दिशा में ४० किलोमीटर की दूरी तय कर, सोलन के पास से पूरब दिशा की ओर ८८ किलोमीटर की यात्रा के बाद रामपुर घाट में यमुना नदी में मिलती है। इस यात्रा में यह नदी गिरीगंगा उपत्यका का निर्माण करती है, यहाँ इसके चार महत्वपूर्ण पहलूओं, पौराणिक, ऐतिहासिक, जैविक और पारिस्थितिक, का उल्लेख है। .

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ग्रीन केमिस्ट्री

ग्रीन केमिस्ट्री thumbnail thumbnail thumbnail ग्रीन केमिस्ट्री रसायनशास्त्र के अन्य सभी शाखाऍ जैसे कार्बनिक, अकार्बनिक, अनुसन्धानिक, पर्यावरण, भौतिक आदि को प्रभावित करती है। ग्रीन केमिस्ट्री पर्यावरण रसायन की तरह नही है क्यौंकी पर्यावरण रसायन मे पर्यावरण मे हो रहे रसायनिक बदलाव और गतिविधियो, पर्यावरण प्रदूषण और उसके कारण जेसे कई प्रदूषक और उनके प्रभावो का वर्णन किया जाता है पर ग्रीन केमिस्ट्री मे उद्योग रसायनो से प्रक्रुति मे हो रहे विनाशकरी बदलावो को कम करने और से प्राप्त रसायनिक उत्पादनो को अच्छा और उपयोगी बनाने कि कोशिश की जाती है। ग्रीन केमिस्ट्री धरती और पर्यावरण को रसायनो के दुश्प्रभावो से मुक्त करने मे विश्वास करती है। ग्रीन केमिस्ट्री शब्द का इस्तेमाल पहली बार पौल अनस्तस ने सन् १९९१ मे किया था। ग्रीन केमिस्ट्री शब्द का उपयोग हमेशा रसायनशास्त्र और उद्योग के साथ किया जाता है। .

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ग्रीनपीस

ग्रीनपीस (Greenpeace) (शाब्दिक अर्थ - हरित शान्ति) पर्यावरण चेतना का विश्वव्यापी आन्दोलन है। इसकी स्थापना सन १९७१ में कनाडा के वैनकूवर (Vancouver) में हुई थी। तात्कालिक रूप से यह अमेरिका (USA) द्वारा अलास्का में नाभीकीय हथियारों के परीक्षण का विरोध करने के लिये बनी थी किन्तु बाद में इसका उद्देश्य व्यापक रूप से पर्यावरण की सुरक्षा होता गया। .

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ग्रीनफील्ड इन्वेस्टमेण्ट

हरित क्षेत्र निवेश या ग्रीन फील्ड इन्वेस्टमेण्ट, निवेश का वह स्वरूप है जहाँ विद्यमान प्लाण्ट के विस्तार की अपेक्षा नये स्थान पर सामान्यतः विद्यमान औद्योगिक क्षेत्र से बाहर नयी औद्योगिक इकाई की स्थापना के लिए निवेश किया जाता है। इस प्रकार नये स्थान पर नये विनियोग की क्रिया से एक ही क्षेत्र में इकाईयों के संकेन्द्रण तथा संकेन्द्रण के परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरण क्षरण से बचा जा सकता है। .

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ग्रीनहाउस

रूस के सेंट पीटर्सबर्ग वानस्पतिक उद्यान स्थित विक्टोरिया अमेज़ोनिका (विशाल आमेज़न वॉटर लिली). बेल्जियम, ब्रसेल्स, लेकेन के रॉयल ग्रीनहॉउसेस.19 वीं शताब्दी के ग्रीनहॉउस वास्तुकला का एक उदाहरण कॉर्नवॉल, इंग्लैंड में इडेन परियोजना, युनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ा ग्रीनहॉउस ला मोजोनेरा, अल्मेरिया, अंडालुसिया, स्पेन. अल्मेरिया के तट पर स्थित ग्रीन हॉउसेस हरितगृह या ग्रीनहाउस (ग्लासहाउस भी कहा जाता है) एक इमारत है, जहां पौधे उगाये जाते हैं। ग्रीनहाउस विभिन्न तरह की आवरण सामग्रियों जैसे कांच या प्लास्टिक की छत और अक्सर कांच या प्लास्टिक की दीवारों के साथ बनी एक संरचना है; यह गर्म होता है, क्योंकि सूर्य द्वारा भेजे जा रहे दृश्य सौर विकिरण को पौधों, मिट्टी और भवन के भीतर स्थित अन्य चीजों द्वारा अवशोषित किया जाता है। कांच इस विकिरण के लिए पारदर्शी है। ग्रीनहाउस के भीतर गरम संरचनाएं और पौधे इस ऊर्जा को फिर से अवरक्त में विकीर्ण करते हैं, जिससे कांच आंशिक रूप से अपारदर्शी हो जाता है और वह ऊर्जा ग्रीनहाउस के भीतर कैद हो जाती है। हालांकि, प्रवाह के कारण उष्मा का कुछ नुकसान होता है, लेकिन इससे ग्रीन हाउस के अंदर ऊर्जा (और इस तरह तापमान) में विशुद्ध वृद्धि होती है। गर्म आंतरिक सतहों के ताप से गरम हुई हवा को छत और दीवार द्वारा ईमारत के अन्दर बरकरार रखा जाता है। इन संरचनाओं का आकार छोटे से शेड से लेकर बहुत बड़ी इमारतों तक हो सकता हैं। ग्रीनहाउस को कांच के ग्रीनहाउस और प्लास्टिक ग्रीनहाउस के रूप में विभाजित किया जा सकता है। प्लास्टिक में ज्यादातर पीई (PE) फिल्म और पीसी (PC) या पीएमएमए (PMMA) की कई दीवारों वाली चादरें प्रयुक्त की जाती है। कांच के व्यावसायिक ग्रीनहाउस में अक्सर सब्जियों या फूलों के लिए उच्च तकनीक वाली उत्पादन सुविधाएं होती हैं। कांच के ग्रीनहाउस स्क्रीनिंग स्थापना, गर्म करने, ठंडा करने, प्रकाशमान करने जैसे उपकरणों से परिपुर्ण होते हैं और यह एक कंप्यूटर द्वारा स्वचालित रूप से नियंत्रित हो सकता है। ग्रीनहाउस के लिए इस्तेमाल किया कांच हवा के प्रवाह के लिए एक बाधा के रूप में काम करता है और इसका प्रभाव ग्रीनहाउस के भीतर ऊर्जा को बांधकर रखने के रूप में पड़ता है, जो पौधों और इसके अंदर की जमीन दोनों को गर्म करता है। यह जमीन के पास की हवा को गर्म करता है और इस हवा को उपर उठने और बहकर दूर चले जाने से रोका जाता है। एक ग्रीनहाउस की छत के पास एक छोटी सी खिड़की खोलकर इसका प्रदर्शन किया जा सकता है: क्योंकि तापमान उल्लेखनीय रूप से काफी नीचे आ जाता है। यह सिद्धांत ठंडा करने की ऑटोवेंट स्वचालित प्रणाली पर आधारित है। एक अति लघु ग्रीनहाउस एक ठंडे फ्रेम के रूप में जाना जाता है। .

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आचार्य कृपलानी

आचार्य कृपलानी (11 नवम्बर 1888 – 19 मार्च 1982) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, गांधीवादी समाजवादी, पर्यावरणवादी तथा राजनेता थे। उनका वास्तविक नाम जीवटराम भगवानदास था। वे सन् 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जब भारत को आजादी मिली। जब भावी प्रधानमंत्री के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो तो सरदार पटेल के बाद सबसे अधिक मत उनको ही मिले थे। किन्तु गांधीजी के कहने पर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहर लाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। .

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आपदा

आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम का प्रभाव है जो समाज या पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है आपदाशब्द ज्योतिष विज्ञान से आया है इसका अर्थ होता है कि जब तारे बुरी स्थिति में होते हैं तब बुरी घटनायें होती हैं समकालीन शिक्षा में, आपदा अनुचित प्रबंधित जोखिम के परिणाम के रूप में देखी जाती है, ये खतरे आपदा और जोखिम के उत्पाद हैं। आपदा जो कम जोखिम के क्षेत्र में होते हैं, वे आपदा नहीं कहे जाते हैं, जैसे-निर्जन क्षेत्र मेंQuarantelli E.L.(१९९८).हम कहा रहे हैं और हमें कहाँ जाना है Quarantelli E.L. (ed).आपदा क्या है ?लंदन: Routledge.

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आवास

आवास (Housing) मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। हर समाज को अपने सदस्यों को रहने के लिये स्थान व सुविधाएँ दिलवाने के लिये व्यवस्था करनी पड़ती है। कई राष्ट्रों, राज्यों, ज़िलों, नगरों और अन्य मानवीय बस्तियों की प्रशासनिक संस्थाओं में आवास-सम्बन्धी प्राधिकरण होते हैं। .

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इष्टतम नियंत्रण

इष्टतम नियंत्रण (Optimal control), नियंत्रण की नीति (कन्ट्रोल स्ट्रेटिजी) निर्धारित करने की एक गणितीय इष्टतमीकरण विधि है। यह विचरण-कलन (calculus of variations) का विस्तार है जिसका विकास १९५० के दशक में लेव पोंट्रयागिन (Lev Pontryagin) तथा रिचर्ड बेलमान (Richard Bellman) ने किया था। इष्टतम नियंत्रण के अनुप्रयोग विविध क्षेत्रों में हो रहे हैं, जैसे- इंजीनियरी, अर्थनीति, जीवविज्ञान, पर्यावरण, वित्त, प्रबन्धन, चिकित्सा आदि। .

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इंडियन ओशॅन (बैंड)

इंडियन ओशॅन, भारत की राजधानी दिल्ली, का एक समकालिक फ्यूजन संगीत बैंड है। कुछ संगीत आलोचक इनके संगीत को जैज़ और भारतीय रॉक संगीत का मिश्रण मानते हैं जिसमे श्लोक, सूफीवाद, पर्यावरणवाद, पुराण और क्रांति समाहित हैं। .

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कमलानाथ

कमलानाथ शर्मा (के.एन.शर्मा भी) जलविज्ञान, सिंचाई तथा जल-निकास, एवं जल-विद्युत अभियांत्रिकी के अन्तरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, वैदिक ग्रंथों में जलविज्ञान, पर्यावरण आदि विषयों के लेखक, साहित्यकार, तथा हिंदी के जानेमाने व्यंग्य लेखक और कहानीकार हैं। जलविज्ञान, जल-विद्युत अभियांत्रिकी व विश्व खाद्यान्न में उल्लेखनीय योगदान के अतिरिक्त के॰एन॰शर्मा ने वेदों, उपनिषदों आदि वैदिक वाङ्मय में जल, पर्यावरण, पारिस्थितिकी आदि पर भी शोध करके प्रचुरता से लिखा है। हिंदी साहित्य में साठ के दशक से कमलानाथ के नाम से उनके व्यंग्य तथा कहानियां भी देश की विभिन्न पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। अपने कार्यकाल के दौरान आपने विश्व के लगभग सभी देशों की यात्रा की, वहां के सिंचाई, जलनिकास, जलविज्ञान आदि के विकास में योगदान दिया तथा अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं से संबद्ध रहे। .

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काली बेईं नदी

काली बेई एक नदी है जो पंजाब के होशियारपुर जिले की मुकेरियां तहसील के ग्राम घनोआ के पास से ब्यास नदी से निकली है और दुबारा 'हरि के छम्ब' में जाकर ब्यास नदी में ही मिल जाती है। काली बेईं का सिख धर्म के लिए बड़ा धार्मिक महत्व है और इसे पवित्र माना जाता है। यही वह नदी है जिसके किनारे पर सिखों के पहले गुरू नानक देव जी ने 14 साल 9 महीने और 13 दिन व्यतीत किये थे। इसके बाद उन्होंने इसी नदी के तट पर सिख धर्म के मूल मंत्र ‘एक ओंकार सतनाम’ का सृजन किया था। बलबीर सिंह सीचेवाल नामक एक संत ने एक सौ साठ किलोमीटर लंबी 'काली बेई' नदी को 'जीवित' किया है। पर्यावरण बचाने के लिए नदियों का संरक्षण भी जरूरी है यह उनका दृढ़ विश्वास है। .

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कुवेंपु विश्वविद्यालय

महान कवि कुवेंपु, जिसे विश्वविद्यालय नामित किया गया था के बाद. कुवेंपु विश्वविद्यालय (भी कुवेंपु विश्वविद्यालय के रूप में जाना), एक राज्य Shivamogga, कर्नाटक, भारत के शहर में स्थित विश्वविद्यालय है। Kuvempu वर्ष में विश्वविद्यालय की स्थापना 29 जून 1987 कर्नाटक राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम के माध्यम से एक संशोधन No.28/1976 दिनांक 29 जनवरी 1989 को कर्नाटक राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के तहत किया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 1994 में मान्यता प्राप्त है और यह भी भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ का सदस्य है। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद है Kuvempu विश्वविद्यालय से 'तीसरे सितारा स्तर "प्रदान किया। विश्वविद्यालय Jnana Sahyadri परिसर, Shivamogga में अपने मुख्यालय है। अपने परिसर Jnana Sahyadri कहा जाता है, जो ज्ञान के Sahyadri, काफी जिसे उपयुक्त साधन के रूप में विश्वविद्यालय Shivamogga और Chikmagalur, जिसके माध्यम से पहाड़ Sahyadri पास बुलाया पर्वतमाला के malnad जिलों के अधिकार क्षेत्र है। यह भी Davangere और Chitradurga के जिलों में लागू है। परिसर में 230 एकड़ के क्षेत्र में sprawls.

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कृषि पारिस्थितिकी

कृषि पारिस्थितिकी (Agroecology) कृषि उत्पादन प्रणालियों से सम्बन्धित पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के व्यवस्थित अध्ययन को कहते हैं। इसमें खेती से होने वाली पर्यावरणीय हानि - चाहे वह प्रदूषण हो, या वनों व वान्य जीवन को क्षति, या अन्य कोई दुषप्रभाव - को कम करने के उपाय विकसित करने पर भी बल दिया जाता है। .

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केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला

केन्द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला(CSMRS) भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय का संबद्ध कार्यालय है। नई दिल्ली स्थित भारत का यह प्रमुख संस्थान क्षेत्र तथा प्रयोगशाला अन्वेषण, भूयांत्रिकी, कंक्रीट प्रौद्योगिकी, निर्माण सामग्री की समस्याओं पर आधारभूत तथा प्रायोगिक अनुसंधान, तथा पर्यावरण मुद्दों के संबंध में कार्य करता है जिसका देश में सिंचाई संबंधित तथा ऊर्जा के विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यह कार्यालय भारत तथा विदेश में विभिन्न परियोजनाओं तथा संगठनों के लिए उपर्युक्त क्षेत्रों में सलाहकार तथा परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है। .

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कोज प्रमेय

कोज प्रमेय (coase theorem) या कोज का सिद्धांत नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री रोनाल्ड कोज द्वारा प्रतिपादित, बाह्यता (externalities) व पर्यावरण की समस्या के समाधान से संबंधित, सिद्धांत है जिसकी मान्यतानुसार बाजार यंत्र के द्वारा बाह्यता को सुधारा जा सकता है। यह सिद्धांत अर्थव्यवस्था के कानूनी पक्षों से संबंधित है। सामान्यतया यह प्रतिपादित किया जाता है कि बाह्यता की समस्या बाजार यंत्र के क्रियाशीलन को असफल बनाती है, क्योंकि बाह्यता उत्पादन के दौरान सृजित वह लागत है जिसे वस्तु की मौद्रिक लागत की गणना में नहीं रखा जा सकता। ऐसा तभी हो सकता है जबकि, सम्पत्ति अधिकार (property rights) परिभाषित हो तथा लेन-देन व्यवहार संबंधित कोई लागत नहीं हो, बाह्यता सृजित करने वाले लोग तथा उससे पीड़ित लोग आंतरिक रूप से परस्पर व्यक्तिगत समझौता कर लें। इस प्रकार संसाधनों का कुशल आवंटन होगा, दोनों पक्षों के बीच संपत्ति अधिकार का बँटवारा केवल आय के बँटवारे को प्रभावित करेगा, समग्र आय वितरण को प्रभावित नहीं करेगा। ऐसी स्थिति में कुशलता को ऊपर उठाने के लिए न तो सरकारी नियंत्रण की आवश्यकता होगी और न ही करारोपण की। ध्यातव्य है कि कोज प्रमेय तभी लागू होगा जबकि आर्थिक व्यवहार की लागत शून्य हो। यह भीड़ के संबंध में लागू नहीं होगा जहाँ प्रदूषण करने वाले तथा उससे प्रभावित होने वाले बहुत अधिक संख्या में हों तथा उनके पहचान करने की लागत बहुत अधिक हो। .

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अनुकूलन

अनुकूलन किसी विशेष वातावरण में सुगमता पूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंशवृद्धि के लिए जीवों के शरीर में रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थायी परिवर्तन उत्पन्न होने की प्रक्रिया है। यह शरीर का अंग या स्थिति नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है अनुकूलन द्वारा होने वाले स्थायी बदलावों को इस प्रक्रिया से भिन्न स्पष्ट करने के लिए उन्हें अनुकूलन जन्य लक्षण कहा जा सकता है। .

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अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध

राष्ट्र महल (Palace of Nations): जेनेवा स्थित इस भवन में २०१२ में ही दस हाजार से अधिक अन्तरसरकारी बैठकें हुईं। जेनेवा में विश्व की सर्वाधिक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध (IR) विभिन्न देशों के बीच संबंधों का अध्ययन है, साथ ही साथ सम्प्रभु राज्यों, अंतर-सरकारी संगठनों (IGOs), अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों (INGOs), गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की भूमिका का भी अध्ययन है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को कभी-कभी 'अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन' (इंटरनेशनल स्टडीज (IS)) के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि दोनों शब्द पूरी तरह से पर्याय नहीं हैं। .

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अपशिष्ट प्रबंधन

बर्कशायर, इंग्लैंड में पहियों वाला कचरे का डब्बा अपशिष्ट प्रबंधन परिवहन (transport), संसाधन (processing), पुनर्चक्रण (recycling) या अपशिष्ट (waste) के काम में प्रयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह है। यह शब्द आम तौर पर उस सामग्री को इंगित करता है जो मानव गतिविधियों से बनती हैं और ये इसलिए किया जाता है ताकि मानव पर उस के स्वस्थ, पर्यावरण (environment) या सौंदर्यशास्त्र.

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अल्पाइन सम्मेलन

230x230पिक्सेल अल्पाइन चापअल्पाइन कन्वेंशन आल्प्स के सतत विकास के लिए एक यूरोप के राष्ट्रों के बीच एक प्रादेशिक संधि है। यह आल्प्स के प्राकृतिक पर्यावरण और सांस्कृतिक अखंडता की रक्षा करते हुए क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने चाहता है। फ्रेमवर्क कन्वेंशन के साथ यूरोपीय संघ और आठ राज्यों (ऑस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस, इटली, लिकटेंस्टीन, मोनाको, स्लोवेनिया और स्विट्जरलैंड) इसमें है। यह 1991 में हस्ताक्षर करने के लिए आरंभ किया गया था और 1995 में लागू हो गया। श्रेणी:जलवायु परिवर्तन नीति.

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अल्फोन्सो आम में स्प्ंजी टिशू की समस्या एंव इसका समाधान

thumbnail 'अल्फोन्सो' आम की किस्मों में राजा माना जाता हैं।इसके विकास के द्श्कों बाद भी आंतरिक खराबी या स्प्ंजी टिशू की समस्या के कारण भारत अभी भी इसके नियार्त में काफी पीछे है।इसके फलस्वरुप देश के राजस्व में भारी घाटा होता है।वर्ष १९९८ से यह समस्या एक पह्ली बनी रही हैं। .

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अस्तित्ववाद

किर्कगार्द, दास्त्रावस्की, नीत्शे तथा सार्त्र (बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे) अस्तित्ववाद (एग्जिस्टेशन्शिएलिज़्म / existentialism) एक ऐसी विचारधारा है जिसमें अस्तित्व को तत्व से ऊपर समझा जाता है। इसके अनुसार मानव अपने पर्यावरण की निर्जीव वस्तुओं से आत्मबोध का उत्तरदायित्व पूर्णतया स्वयं लेता है। अतः उसे अपने पर्यावरण में तत्वज्ञान की अपेक्षा नहीं होती। 1940 व 1950 के दशक में अस्तित्ववाद पूरे यूरोप में एक विचारक्रांति के रूप में उभरा। यूरोप भर के दार्शनिक व विचारकों ने इस आंदोलन में अपना योगदान दिया है। इनमें ज्यां-पाल सार्त्र, अल्बर्ट कामू व इंगमार बर्गमन प्रमुख हैं। कालांतर में अस्तित्ववाद की दो धाराएं हो गई।.

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अवशिष्ट

अवशिष्ट जब किसी उत्पाद, उपोत्पाद काल आभदायक उपयोग संभव नहीं होता, उसे अवशिष्ट या वेस्ट कहा जाता है। जो अवशिष्ट पर्यावरण को प्रदूषित करते हैम, प्रदूषक कहलाते हैं। श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी.

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अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत

---- अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत में सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य से अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन किया जाता है। यह एक ऐसा वैचारिक ढांचा प्रदान करने का प्रयास करता है जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जा सके। ओले होल्स्ती कहता है की अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत रंगीन धूप के चश्में की एक जोड़ी के रूप में कार्य करते हैं, जो उसे पहनने वाले व्यक्ति को केवल मुख्य सिद्धांत के लिए प्रासंगिक घटनाओं को देखने की अनुमति देता है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यथार्थवाद, उदारवाद और रचनावाद, तीन सबसे लोकप्रिय सिद्धांत हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत मुख्यत: दो सिद्धांतों में विभाजित किये जा सकते हैं, "प्रत्यक्षवादी/बुद्धिवादी" जो मुख्यत: राज्य स्तर के विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। और उत्तर-प्रत्यक्षवादी/चिंतनशील जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत में उत्तर औपनिवेशिक युग में सुरक्षा, वर्ग, लिंग आदि के विस्तारित अर्थ को शामिल करवाना चाहते हैं। आईआर (IR) सिद्धांतो में443333 विचारों के अक्सर कई विरोधाभासी तरीके मौजूद हैं, जैसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों (IR) में रचनावाद, संस्थावाद, मार्क्सवाद, नव-ग्रामस्कियनवाद (neo-Gramscianism), और अन्य। हालांकि, प्रत्यक्षवादी सिद्धांतों के स्कूलों में सबसे अधिक प्रचलित यथार्थवाद और उदारवाद हैं। यद्यपि, रचनावाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तेजी से मुख्यधारा होता जा रहा है। .

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अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी केन्द्र

अंतरिक्ष विज्ञान और इंजीनियरिंग केंद्र (SSEC) एक अनुसन्धान और विकास केंद्र है। पृथ्वी के वायुमंडल, सौरमंडल के अन्य  ग्रहों, और ब्रह्माण्ड की समझ बढ़ाने के लिए पृथ्वी विज्ञान अनुसन्धान एवं तकनीकी पर इसका मुख्य ध्यान है।  SSEC विस्कांसिन-मेडिसन विश्वविद्यालय के स्नातक विद्यालय का हिस्सा है। .

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अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (अंग्रेजी:International Union for Conservation of Nature), प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए समर्पित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। संगठन का घोषित लक्ष्य, विश्व की सबसे विकट पर्यावरण और विकास संबंधी चुनौतियों के लिए व्यावहारिक समाधान खोजने में सहायता करना है। संघ विश्व के विभिन्न संरक्षण संगठनों के नेटवर्क से प्राप्त जानकारी के आधार पर "लाल सूची" प्रकाशित करता है, जो विश्व में सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों को दर्शाती है। CBS News Online, 2007-09-12.

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