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नाड़ी

सूची नाड़ी

अंगूठाकार चिकित्सा विज्ञान में हृदय की धड़कन के कारण धमनियों में होने वाली हलचल को नाड़ी या नब्ज़ (Pulse) कहते हैं। नाड़ी की धड़कन को शरीर के कई स्थानों पर अनुभव किया जा सकता है। किसी धमनी को उसके पास की हड्डी पर दबाकर नाड़ी की धड़कन को महसूस किया जा सकता है। गर्दन पर, कलाइयों पर, घुटने के पीछे, कोहनी के भीतरी भाग पर तथा ऐसे ही कई स्थानों पर नाड़ी-दर्शन किया जा सकता है। .

15 संबंधों: नाड़ी (योग), नाड़ी परीक्षा, न्यूमोनिया, पूर्णहृदरोध, बौद्ध धर्म एवं हिन्दू धर्म, रक्त चाप, रक्तदान, सत्यनारायण शास्त्री, सिद्ध चिकित्सा, हठयोग प्रदीपिका, हृदय की दर, गोरक्षशतक, आंत्रावरोध, कापालिक, अलिंद विकम्‍पन

नाड़ी (योग)

पद्मासन मुद्रा 1. मूलाधार चक्र 2. स्वाधिस्ठान चक्र 3. नाभि चक्र 4. अनाहत चक्र 5. विशुद्धि चक्र 6. आज्ञा चक्र 7. सहस्रार चक्र; A. कुण्डलिनी B. ईड़ा नाड़ी C. सुषुम्ना नाड़ी D. पिंगला नाड़ी योग के सन्दर्भ में नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है। कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं। इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं। इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है। अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं। ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है। पिंगला धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसको सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है। यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है। पिंगला का उद्गम मूलाधार के दाहिने भाग से होता है जबकि पिंगला का बाएँ भाग से। .

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नाड़ी परीक्षा

नाड़ी परीक्षा नाड़ी परीक्षा हृदयगति (पल्स) जाँचने की भारतीय पद्धति है। इसका उपयोग आयुर्वेद, सिद्ध आदि चिकित्सापद्धतियों में होता है। यह आधुनिक पद्धति से भिन्न है। इसमें तर्जनी, माध्यिका तथा अनामिका अंगुलियों को रोगी के कलाई के पास बहि:प्रकोष्‍ठिका धमनी (radial artery) पर रखते हैं और अलग-अलग दाब देकर वैद्य कफ, वात तथा पित्त- इन तीन दोषों का पता लगाता है। .

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न्यूमोनिया

फुफ्फुसशोथ या फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) फेफड़े में सूजन वाली एक परिस्थिति है—जो प्राथमिक रूप से अल्वियोली(कूपिका) कहे जाने वाले बेहद सूक्ष्म (माइक्रोस्कोपिक) वायु कूपों को प्रभावित करती है। यह मुख्य रूप से विषाणु या जीवाणु और कम आम तौर पर सूक्ष्मजीव, कुछ दवाओं और अन्य परिस्थितियों जैसे स्वप्रतिरक्षित रोगों द्वारा संक्रमण द्वारा होती है। आम लक्षणों में खांसी, सीने का दर्द, बुखार और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। नैदानिक उपकरणों में, एक्स-रे और बलगम का कल्चर शामिल है। कुछ प्रकार के निमोनिया की रोकथाम के लिये टीके उपलब्ध हैं। उपचार, अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करते हैं। प्रकल्पित बैक्टीरिया जनित निमोनिया का उपचार प्रतिजैविक द्वारा किया जाता है। यदि निमोनिया गंभीर हो तो प्रभावित व्यक्ति को आम तौर पर अस्पताल में भर्ती किया जाता है। वार्षिक रूप से, निमोनिया लगभग 450 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है जो कि विश्व की जनसंख्या का सात प्रतिशत है और इसके कारण लगभग 4 मिलियन मृत्यु होती हैं। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर द्वारा निमोनिया को "मौत बांटने वाले पुरुषों का मुखिया" कहा गया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक उपचार और टीकों के आने से बचने वाले लोगों की संख्या बेहतर हुई है।बावजूद इसके, विकासशील देशों में, बहुत बुज़ुर्गों, बहुत युवा उम्र के लोगों और जटिल रोगियों में निमोनिया अभी मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है। .

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पूर्णहृदरोध

पूर्णहृदरोध, (जिसे कार्डियोपल्मोनरी अरेस्ट या सर्कुलेटरी अरेस्ट) हृदय द्वारा प्रभावी ढंग से सिकुड़ने में विफलता की वजह से रक्त के सामान्य संचरण का ठहराव है। चिकित्सा कर्मी एक अप्रत्याशित पूर्णहृदरोध को सडेन कार्डियक अरेस्ट या SCA सन्दर्भित कर सकते हैं। पूर्णहृदरोध, दिल के दौरे से भिन्न है (लेकिन उसकी वजह से हो सकता है) जिसके तहत हृदय की मांसपेशी में रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है। बाधित रक्त परिसंचरण, शरीर में ऑक्सीजन के वितरण को रोक देता है। मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी से चेतना का लोप हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सांस लेने में असामान्यता आ जाती है या श्वास अनुपस्थिति हो जाती है। यदि पूर्णहृदरोध पांच मिनट से अधिक देर तक अनुपचारित रहे तो मस्तिष्क घात की संभावना होती है। बचने और स्नायविक लाभ के सबसे अच्छे मौके के लिए तत्काल और निर्णायक इलाज आवश्यक है। पूर्णहृदरोध एक चिकित्सकीय आपातस्थिति है, कुछ ख़ास स्थितियों में अगर इसका समय से इलाज किया जाए तो संभावित रूप से सुधार आ जाता है। जब अप्रत्याशित पूर्णहृदरोध से मौत हो जाती है तो इसे सडेन कार्डिएक डेथ (SCD) कहा जाता है। पूर्णहृदरोध का उपचार कार्डियोपल्मोनरी पुनरुत्थान (CPR) है जिसके द्वारा परिसंचरण समर्थन प्रदान किया जाता है, जिसके बाद यदि कंपन देने योग्य लय मौजूद है तो डिफ़ाइब्रिलेशन होता है। सीपीआर और अन्य नैदानिक उपायों के बाद अगर कम्पन देने योग्य लय विद्यमान नहीं है तो मौत अनिवार्य है। .

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बौद्ध धर्म एवं हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म दोनों ही प्राचीन धर्म हैं और दोनों ही भारतभूमि से उपजे हैं। हिन्दू धर्म के वैष्णव संप्रदाय में गौतम बुद्ध को दसवाँ अवतार माना गया है हालाँकि बौद्ध धर्म इस मत को स्वीकार नहीं करता। ओल्डेनबर्ग का मानना है कि बुद्ध से ठीक पहले दार्शनिक चिंतन निरंकुश सा हो गया था। सिद्धांतों पर होने वाला वाद-विवाद अराजकता की ओर लिए जा रहा था। बुद्ध के उपदेशों में ठोस तथ्यों की ओर लौटने का निररंतर प्रयास रहा है। उन्होंने वेदों, जानवर बलि और इश्वर को नकार दिया। भुरिदत जातक कथा में ईश्वर, वेदों और जानवर बलि की आलोचना मिलती है। बौद्धधर्म भारतीय विचारधारा के सर्वाधिक विकसित रूपों में से एक है और हिन्दुमत (सनातन धर्म) से साम्यता रखता है। हिन्दुमत के दस लक्षणों यथा दया, क्षमा अपरिग्रह आदि बौद्धमत से मिलते-जुलते है। यदि हिन्दुमत में मूर्ति पूजा का प्रचलन है तो बौद्ध मन्दिर भी मूर्तियों से भरे पड़े हैं। भारतीय कर्मकाण्ड में मन्त्र-तंत्र का प्रचलन है तो बौद्ध मत में भी तन्त्र-मन्त्र का विशेष महत्व है। प्रसिद्ध अंग्रेज यात्री डाॅ.

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रक्त चाप

स्फिगमोमनोमीटर, धमनीय दाब के मापन में प्रयुक्त एक उपकरण. रक्त चाप (BP), रक्त वाहिकाओं की बाहरी झिल्ली पर रक्त संचार द्वारा डाले गए दबाव (बल प्रति इकाई क्षेत्र) है और यह प्रमुख जीवन संकेतों में से एक है। संचरित रक्त का दबाव, धमनियों और केशिकाओं के माध्यम से हृदय से दूर और नसों के माध्यम से हृदय की ओर जाते समय कम होता जाता है। जब अर्थ सीमित ना हो, तब सामान्यतः रक्त चाप शब्द से तात्पर्य '''बाहु धमनीय दाब''' है: अर्थात् बाईं या दाईं ऊपरी भुजा की मुख्य रक्त वाहिका, जो रक्त को हृदय से दूर ले जाती है। तथापि, रक्त चाप को कभी-कभी शरीर के अन्य भागों में भी मापा जा सकता है, जैसे टखनों पर.

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रक्तदान

रक्तदान का चित्रीय आरेख रक्तदान तब होता है जब एक स्वस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से अपना रक्त देता है और रक्त-आधान (ट्रांसफ्यूजन) के लिए उसका उपयोग होता है या फ्रैकशेनेशन नामक प्रक्रिया के जरिये दवा बनायी जाती है। विकसित देशों में, अधिकांश रक्तदाता अवैतनिक स्वयंसेवक होते हैं, जो सामुदायिक आपूर्ति के लिए रक्त दान करते हैं। गरीब देशों में, स्थापित आपूर्ति सीमित हैं और आमतौर पर परिवार या मित्रों के लिए आधान की जरूरत होने पर ही रक्तदाता रक्त दिया करते हैं। अनेक दाता दान के रूप में रक्त देते हैं, लेकिन कुछ लोगों को भुगतान किया जाता है और कुछ मामलों में पैसे के बजाय काम के समय में सवैतनिक छुट्टी के रूप में प्रोत्साहन दिए जाते हैं। कोई दाता अपने भविष्य के उपयोग के लिए रक्त दान कर सकता है। रक्त दान अपेक्षाकृत सुरक्षित है, लेकिन कुछ दाताओं को उस जगह खरोंच आ जाती है जहां सूई डाली जाती है या कुछ लोग मूर्छा महसूस कर सकते है। संभावित दाताओं का मूल्यांकन किया जाता है ताकि उनके खून का उपयोग असुरक्षित न रहे। जांच में एचआईवी और वायरल हैपेटाइटिस जैसी बिमारियों के परीक्षण शामिल हैं जो रक्त-आधान के जरिये संक्रमित हो सकते हैं। दाता से उसके चिकित्सा इतिहास के बारे में भी पूछा जाता है और दाता के स्वास्थ्य पर दान से कोई क्षतिकारक प्रभाव नहीं पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए उसकी एक संक्षिप्त शारीरिक जांच की जाती है। कितनी बार एक दाता दान कर सकता है यह दिनों और महीनों में भिन्न हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर है कि वह क्या दान कर रहा या कर रही है और किस देश में दान दिया-लिया जा रहा है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दाता को पूर्ण रक्त दानों के बीच 8 हफ्ते (56 दिन) का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन प्लेटलेटफेरेसिस दानों के लिए सिर्फ तीन दिनों का। दिए जाने वाले रक्त की मात्रा और तरीके अलग-अलग हो सकते है, लेकिन एक आदर्श दान पूरे खून का 450 मिलीलीटर (या लगभग एक यूएस पिंट) होता है। इसे मैनुअली या स्वचालित उपकरण से संग्रहित किया जा सकता है जो कि केवल खून के विशिष्ट भाग को लेता है। आधान के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खून के अधिकांश घटक का छोटा अचल जीवन होता है और लगातार आपूर्ति बनाये रखना एक स्थायी समस्या है। .

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सत्यनारायण शास्त्री

सत्यनारायण शास्त्री (1887 -- 23 सितंबर 1969) आधुनिक आयुर्वेदजगत्‌ के प्रख्यात पंडित और चिकित्साशास्त्री थे। आयुर्वेद की धवल परंपरा को सजीव बनाए रखने के लिए आपने जीवन भर कार्य किया। उन्हें चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया। .

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सिद्ध चिकित्सा

आयुर्वेदिक उपचार सिद्ध चिकित्सा भारत के तमिलनाडु की एक पारम्परिक चिकित्सा पद्धति है। भारत में इसके अतिरिक्त आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धतियाँ भी प्रचलित हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तर भारत में यह पद्धति ९ नाथों एवं ८४ सिद्धों द्वारा विकसित की गयी जबकि दक्षिण भारत में १८ सिद्धों (जिन्हें 'सिद्धर' कहते हैं) द्वारा विकसित की गयी। इन सिद्धों को यह ज्ञान शिव और पार्वती से प्राप्त हुआ। यह चिकित्सा पद्धति भारत की ही नहीं, विश्व की सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा-पद्धति मानी जा सकती है। .

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हठयोग प्रदीपिका

हठयोगप्रदीपिका हठयोग से सम्बन्धित प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता गुरु गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम थे। यह हठयोग के प्राप्त ग्रन्थों में सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रन्थ है। हठयोग के दो अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं - घेरण्ड संहिता तथा शिव संहिता। इस ग्रन्थ की रचना १५वीं शताब्दी में हुई। इस ग्रन्थ की कई पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हैं जिनमें इस ग्रन्थ के कई अलग-अलग नाम मिलते हैं। वियना विश्वविद्यालय के ए सी वुलनर पाण्डुलिपि परियोजना के डेटाबेस के अनुसार इस ग्रंथ के निम्नलिखित नाम प्राप्त होते हैं- See, e.g., the work of the members of the Modern Yoga Research cooperative इसमें चार अध्याय हैं जिनमें आसन, प्राणायाम, चक्र, कुण्डलिनी, बन्ध, क्रिया, शक्ति, नाड़ी, मुद्रा आदि विषयों का वर्णन है। यह सनातन हिन्दू योगपद्धति का अनुसरण करती है और श्री आदिनाथ (भगवान शंकर) के मंगलाचरण से आरम्भ होती है। इसके चार उपदेशों ९अध्यायों) के नाम ये हैं-.

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हृदय की दर

समय की प्रत्येक इकाई में होने वाली ह्रदय की धड़कनों की संख्या को ह्रदय की दर कहते हैं – इसे धड़कन प्रति मिनट के रूप में व्यक्त किया जाता है – जो शरीर की आक्सीजन का अवशोषण और कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन करने की आवश्यकता के अनुसार भिन्न हो सकती है जैसे व्यायाम करने या सोने के समय.

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गोरक्षशतक

गोरक्षशतक हठयोग का ग्रन्थ है। इसके रचयिता गुरु गोरखनाथ हैं। यह ग्रन्थ हठयोग का सम्भवतः सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है। गोरक्षशतक में १०१ श्लोक हैं जिनमें आसन, प्राण-संरोध (प्राणायाम, मुद्रा तथा जपेदोंकार (ओंकार का जाप) का वर्णन है। इसके अलावा योग के 'कार्यिकी' के कुछ विषयों जैसे कण्ड, नाड़ी, चक्र, कुण्डलिनी आदि का वर्णन है। .

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आंत्रावरोध

इस एक्स-रे में छोटा सा आन्त्रावरोध दिख रहा है। अन्नमार्ग लगभग २५ फुट लंबी एक नली है जिसका कार्य खाद्यपदार्थ को इकट्ठा करना, पचाना, सूक्ष्म रूपों में विभाजित कर रक्त तक पहुँचा देना एवं निरर्थक अंश को निष्कासित करना है। आंत्रावरोध या बद्धांत्र (Bowel obstruction या Intestinal obstructions) वह दशा है जब किसी कारणवश आंत्रमार्ग में रुकावट आ जाती है। इससे उदर शूल (पेटदर्द), वमन तथा कब्ज आदि लक्षण प्रकट होते हैं। उचित चिकित्सा के अभाव में यह रोग घातक सिद्ध हो सकता है। आंत्रावरोध एक चिकिसीय आपातस्थिति (मेडिकल इमर्जेन्सी) है। .

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कापालिक

शैव परम्परा के अन्तर्गत कापालिक सम्प्रदाय का स्थान कापालिक एक तांत्रिक शैव सम्प्रदाय था जो अपुराणीय था। इन्होने भैरव तंत्र तथा कौल तंत्र की रचना की। कापालिक संप्रदाय पाशुपत या शैव संप्रदाय का वह अंग है जिसमें वामाचार अपने चरम रूप में पाया जाता है। कापालिक संप्रदाय के अंतर्गत नकुलीश या लकुशीश को पाशुपत मत का प्रवर्तक माना जाता है। यह कहना कठिन है कि लकुलीश (जिसके हाथ में लकुट हो) ऐतिहासिक व्यक्ति था अथवा काल्पनिक। इनकी मूर्तियाँ लकुट के साथ हैं, इस कारण इन्हें लकुटीश कहते हैं। डॉ॰ रा.गो.

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अलिंद विकम्‍पन

अलिंद इसके नाम से आता है (यानी, तंतुविकसन स्पंदन) प्रांगण के दिल की मांसपेशियों की, के बजाय एक समन्वित संकुचन.

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नाड़ी (ज्योतिष)

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