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नाक

सूची नाक

कुत्ते की नाक नाक रीढ़धारी प्राणियों में पाया जाने वाला छिद्र है। इससे हवा शरीर में प्रवेश करती है जिसका उपयोग श्वसन क्रिया में होता है। नाक द्वारा सूँघकर किसी वस्तु की सुगंध को ज्ञात किया जा सकता है। श्रेणी:अंग * श्रेणी:मानव सिर और गर्दन श्रेणी:श्वसन तंत्र श्रेणी:मुखाकृति श्रेणी:घ्राण तंत्र श्रेणी:ज्ञानेन्द्रियाँ.

26 संबंधों: चिकित्सकीय परीक्षण, तिब्बतन टेरियर, नासिका, परागज ज्वर, प्लैटीपुस, मस्तिष्क, मुख, मुंहासे, लकी डायमंड रिच, श्वसन तंत्र, सिर, संयोगिता चौहान, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, सुश्रुत संहिता, स्ट्रेप्टोकॉकल ग्रसनीशोथ, ज्ञानेन्द्रिय, घ्राणहानि, वसाबी, वैक्सिंग, खर्राटे, गैसत्राण, कॉनकॉर्ड, अनुनासिकीकरण, अरीठा, अवगम, छींक

चिकित्सकीय परीक्षण

विल्हेल्म रोएन्टजन द्वारा लिया गया अल्बर्ट फॉन कोल्लिकर के हाथ का एक्स-रे आयुर्विज्ञान में मानव शरीर का स्वास्थ्य और उपचार मुख्यतः देखा जाता है। इसके लिये शरीर के कई परीक्षण किये जाते हैं। इन्हें चिकित्सकीय परीक्षण (Medical test) कहा जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं.

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तिब्बतन टेरियर

तिब्बतन टेरियर नस्ल का एक काला कुत्ता तिब्बतन टेरियर (अंग्रेजी: Tibetan Terrier) तिब्बत में पाया जाने वाला एक दुर्लभ नस्ल का कुत्ता है। इसे यह नाम तिब्बत घूमने गये किसी यूरोपियन यात्री ने दिया था। यह देखने में बिल्कुल ल्हासा एप्सो जैसा ही होता है किन्तु कद काठी में उससे कुछ ज्यादा होता है। इसकी आवाज इतनी बुलन्द होती है कि सुनने वाले के मन में भय (अंग्रेजी में टेरर) उत्पन्न करती है। सम्भवत: इसी कारण इसे "तिब्बतन टेरियर" नाम दिया गया होगा। मालिक की सुरक्षा करने और घर की रखवाली करने में इससे बेहतर नस्ल का अन्य कोई भी पालतू प्राणी नहीं है। अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के पास इसी नस्ल से मिलता जुलता पुर्तगीज वाटर डॉग (अंग्रेजी: Porutguese water dog) प्रजाति का कुत्ता है। आधुनिक डीएनए टेस्ट से यह सिद्ध हो चुका है कि तिब्बतन टेरियर कुत्तों की सबसे प्राचीन व दुर्लभ प्रजातियों में से एक है। यह बहुत ही होशियार किस्म का होता है तथा इसकी आयु भी सामान्य कुत्तों से अधिक होती है। .

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नासिका

नासिका (nostril) या नास कुछ प्राणियों की नाक के अंत में शरीर से बाहर खुलने वाली दो नलियों में से एक को कहते हैं। पक्षियों और स्तनधारियों में नासिकाओं में उन्हें ढांचा प्रदान करने वाली हड्डियाँ या उपास्थियाँ होती हैं, और नासिकाएँ अंदर लिए जाने वाले श्वास को गरम करती हैं और बाहर जाने वाले श्वास से नमी हटाकर उसका जल शरीर से खोए जाने से रोकती हैं। मछलियाँ अपने नाक से श्वास नहीं लेतीं, हालांकि उनमें भी दो छोटे छिद्र होते हैं जिनका प्रयोग सूंघने के लिए किया जाता है। .

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परागज ज्वर

एलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी से परागकणों के मिश्रण का फोटो (रंग कृत्रिम हैं, वास्त्विक नहीं) एलर्जी के कारण नाक के वायुमार्गों का प्रदाह होना परागज ज्वर (Hay Fever या Allergic rhinitis) कहलाता है। नाक की श्लेष्मा कला जब पौधों के पराग के प्रति ऐलर्जी (allergy) के कारण प्रभावित होती है, जिससे व्यक्ति की नाक में खुजली होती है, आँख से पानी गिरता है और छींके आती हैं, तब यह अवस्था परागज ज्वर कहलाती है। इसे पहले 'स्वर्णदंड ज्वर' या 'गुलाब ज्वर' भी कहते थे। वैसे इस रोग में ज्वर नहीं आता तथा फूलों से भी इसका कम संबंध है, किंतु इसका नाम परागज ज्वर ही प्रचलित है। एलर्जी पराग के का कारण हो सकती है या अन्य कई वस्तुमों के कारण भी। जब यह एलर्जी पराग के कारण होती है तो इस रोग को 'परागज ज्वर' (हे फीवर) कहते हैं। .

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प्लैटीपुस

प्लैटीपुस (Platypus), जो बत्तखमुँह प्लैटीपस (duck-billed platypus) भी कहलाता है, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में रहने वाला एक स्तनधारी प्राणी है। यह स्तनधारियों के मोनोट्रीम गण की पाँच ज्ञात जातियों में से एक है (अन्य चार एकिडना की जातियाँ हैं), जो स्तनधारी होने के नाते अपने शिशुओं को दूध तो पिलाते हैं लेकिन जिनमें माता गर्भ धारण करने की बजाए अण्डे देती है। पूरे स्तनधारी समुदाय में अण्डे देने वाली केवल यही पाँच जातियाँ है। क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह जातियाँ उस समय का संकेत हैं जब स्तनधारी नये-नये विकसित हो रहे थे और उनमें गर्भ में शिशु विकसित करने की क्षमता उत्पन्न नहीं हुई थी। इसलिए इन्हें जीवित जीवाश्म की श्रेणी में भी डाला जाता है। .

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मस्तिष्क

मानव मस्तिष्क मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँख, नाक, जीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है। मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है। मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है। .

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मुख

मुख (face) कई प्राणियों के सिर के सामने वाली ओर पाया जाने वाला भाग है जिसमें कई ज्ञानेन्द्रिय उपस्थित होती हैं, हालांकि हर प्राणी का मुख नहीं होता। स्तनधारियों में आमतौर पर मुख पर नाक, कान, मुँह (जिसमें स्वाद-बोध रखने वाली जिह्वा होती है) और आँखें होती हैं। मानव व अन्य स्तनधारी इनसे अपनी भावनाएँ भी प्रकट करते हैं, तथा इसे एक-दूसरे को पहचानने व मौखिक संचार के लिए भी प्रयोग करते हैं। .

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मुंहासे

मुहांसे मुंहासे या पिटिका (Pimples or Acne) त्वचा की एक स्थिति है जो सफेद, काले और जलने वाले लाल दाग के रूप में दिखते हैं। यह लगभग 14 वर्ष से शुरू होकर 30 वर्ष तक कभी भी निकल सकते हैं। ये निकलते समय तकलीफ दायक होते हैं व बाद में भी इसके दाग-घब्बे चेहरे पर रह जाते हैं। .

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लकी डायमंड रिच

लकी डायमंड रिच (अंग्रेजी:Lucky Diamond Rich) (जन्म: ग्रेगरी पॉल मैकलरीन1971) विश्व का वह इंसान है जिसके पूरे शरीर पर गोदना बनाये गये हैं। इसके शरीर पर हर अंग पर -आँख,कान,नाक गाल इत्यादि जगह पर गोदने किये गये हैं। गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने भी यह दावा किया है कि इसके शरीर पर 100% प्रतिशत गोदने अर्थात छेद है, इस कारण 2006 में इसका गिनीज़ विश्व कीर्तिमान पुस्तक में उल्लेख किया गया है। .

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श्वसन तंत्र

श्वसन तंत्र का योजनामूलक चित्र श्वसन तंत्र या 'श्वासोच्छ्वास तंत्र' में सांस संबंधी अंग जैसे नाक, स्वरयंत्र (Larynx), श्वासनलिका (Wind Pipe) और फुफ्फुस (Lungs) आदि शामिल हैं। शरीर के सभी भागों में गैसों का आदान-प्रदान (gas exchange) इस तंत्र का मुक्य कार्य है। .

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सिर

एक चीता का सिर प्राणियों के शरीर के सबसे शीर्ष भाग को आमतौर पर सिर कहते हैं, इसमें नाक, कान, आँख इत्यादि ज्ञानेन्द्रियाँ स्थित होती हैं। .

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संयोगिता चौहान

संयोगिता (संयोगिता चौहान, Sanyogita Chauhan) पृथ्वीराजतृतीय की पत्नी थी। पृथ्वीराज के साथ गान्धर्वविवाह कर के वें पृथ्वीराज की अर्धांगिनी बनी थी। भारत के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में संयोगिताहरण गिना जाता है। पृथ्वीराज की तेरह राज्ञीओं में से संयोगिता अति रूपवती थी। संयोगिता को तिलोत्तमा, कान्तिमती, संजुक्ता इत्यादि नामों से भी जाना जाते थे। उनके पिता कन्नौज के राजा जयचन्द थे। जिन्होंने पृथ्वीराज के विरद्ध घोरी को युद्ध में सहायता की थी। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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सुश्रुत संहिता

सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद एवं शल्यचिकित्सा का प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है। सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब-ए-सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था। सुश्रुतसंहिता में १८४ अध्याय हैं जिनमें ११२० रोगों, ७०० औषधीय पौधों, खनिज-स्रोतों पर आधारित ६४ प्रक्रियाओं, जन्तु-स्रोतों पर आधारित ५७ प्रक्रियाओं, तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है। इसके रचयिता सुश्रुत हैं जो छठी शताब्दी ईसापूर्व काशी में जन्मे थे। सुश्रुतसंहिता बृहद्त्रयी का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह संहिता आयुर्वेद साहित्य में शल्यतन्त्र की वृहद साहित्य मानी जाती है। सुश्रुतसंहिता के उपदेशक काशिराज धन्वन्तरि हैं, एवं श्रोता रूप में उनके शिष्य आचार्य सुश्रुत सम्पूर्ण संहिता की रचना की है। इस सम्पूर्ण ग्रंथ में रोगों की शल्यचिकित्सा एवं शालाक्य चिकित्सा ही मुख्य उद्देश्य है। शल्यशास्त्र को आचार्य धन्वन्तरि पृथ्वी पर लाने वाले पहले व्यक्ति थे। बाद में आचार्य सुश्रुत ने गुरू उपदेश को तंत्र रूप में लिपिबद्ध किया, एवं वृहद ग्रन्थ लिखा जो सुश्रुत संहिता के नाम से वर्तमान जगत में रवि की तरह प्रकाशमान है। आचार्य सुश्रुत त्वचा रोपण तन्त्र (Plastic-Surgery) में भी पारंगत थे। आंखों के मोतियाबिन्दु निकालने की सरल कला के विशेषज्ञ थे। सुश्रुत संहिता शल्यतंत्र का आदि ग्रंथ है। .

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स्ट्रेप्टोकॉकल ग्रसनीशोथ

स्ट्रेप्टोकॉकल ग्रसनीशोथ या स्ट्रेप थ्रोट एक ऐसा रोग है जो एक ऐसे जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है जिसे “समूह ए स्ट्रेप्टोकॉकस”कहा जाता है। स्ट्रेप थ्रोट गले तथा गलतुंडिका (टॉन्सिल)पर प्रभाव डालता है। गलतुंडिका (टॉन्सिल) गले में स्थित, दो ग्रंथियांहोती हैं जो मुँहके पीछे होती हैं। स्ट्रेप थ्रोट आवाज़ पैदा करने वाले (स्वर यंत्र) को भी प्रभावित कर सकता है। सामान्यलक्षणोंमें बुखार, गले में दर्द (जिसे ख़राश के साथ गले में दर्द की समस्या भी कहते हैं), तथासूजी हुई ग्रंथियां (लिम्फ नोड्स) जो गलेमें स्थित होती हैं, आदि शामिल हैं। स्ट्रेप थ्रोटबच्चोंके गले में होने वाली ख़राश तथा दर्द के कारणों का 37% होता है। स्ट्रेप थ्रोट किसी बीमार व्यक्ति से नज़दीकी संपर्क द्वारा फैलता है। किसी व्यक्ति में स्ट्रेप थ्रोट की पुष्टि करने के लिये, एक थ्रोट कल्चर कहे जाने वाले परीक्षण की आवश्यकता होती है। इस परीक्षण के बिना भी, स्ट्रेप थ्रोट की संभावित उपस्थिति को इसके लक्षणों से पहचाना जा सकता है।प्रतिजैविक (ऐंटीबायोटिक) स्ट्रेप थ्रोट से पीड़ित व्यक्ति को आराम पहुंचा सकती है। प्रतिजैविक (ऐंटीबायोटिक) वे दवाएं हैं जो जीवाणुओंको समाप्त करती हैं। ये मुख्य रूप से आमवात बुखार (रह्यूमेटिक फीवर) जैसी जटिलताओं की रोकथाम के लिये उपयोग की जाती हैं, न कि रोग की अवधि को कम करने के लिये। .

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ज्ञानेन्द्रिय

वातावरण के परिवर्तनों को ग्रहण करने वाले अंगो को ज्ञानेन्द्रिय कहते हैं। आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा प्रमुख ज्ञानेन्द्रिय हैं। आंख का सम्बन्ध दृष्टि से है। नाक द्वारा सूँघकर किसी वस्तु की सुगंध को ज्ञात किया जा सकता है। जीभ पर उपस्थित स्वाद कलिकाओं से भोजन के स्वाद की जानकारी प्राप्त होती है। श्रेणी:तन्त्रिका तंत्र *.

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घ्राणहानि

घ्राणहानि या अघ्राणता (Anosmia) की अवस्था में गंध की अनुभूति में न्यूनता, अथवा पूर्ण रूप से अभाव, हो जाता है। .

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वसाबी

ब्रस्सिकासाए परिवार का एक सदस्य है, जिसमें बन्दगोभी, सहिजन, सरसों, शामिल है। यह "जापानी हॉर्सरैडिश" के नाम से जाना जाता है, इसके जड़ का उपयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है जिसका स्वाद बेहद तीखा होता है। इसका तीखापन सरसों के समान काली मिर्च में काप्सैसिन से अधिक होता है, जिसका विषाद जीभ के बजाय नासिका को अधिक उत्तेजित करता है। इसका पौधा जापान में पर्वतीय नदी की घाटी में जलधाराओं के किनारे की समतल भूमि पर स्वाभाविक रूप से पनपता है। वहां अन्य प्रजातियां भी हैं जैसे डब्ल्यू कोराना और डब्ल्यू तेत्सुइगी जो इस्तेमाल में लायी जाती हैं। बाजार में दो मुख्य प्रजातियां हैं डब्ल्यू जापोनिका सीवी. 'दारूमा' और सीवी.

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वैक्सिंग

वैक्सिंग के पहले और बाद में पुरुष की छाती. वैक्सिंग (Waxing), अनचाहे बालों को हटाने की एक अर्द्ध स्थायी विधि है जो बालों को जड़ों से हटा देती है। पहले से वैक्स किये हुए भाग में नए बाल, दो से आठ सप्ताह से पहले नहीं उगते हैं। शरीर के लगभग किसी भी भाग में वैक्स किया जा सकता है, जैसे भोहें, चेहरा, बिकिनी का भाग, पैर, हाथ, पीठ, पेट का निचला भाग और पंजा। कई प्रकार के वैक्सिंग उपलब्ध हैं जो अनचाहे बालों को हटाने के लिए उपयुक्त हैं। वैक्सिंग की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए त्वचा पर मोम के मिश्रण की पतली परत फैलाई जाती है। उसके बाद एक कपड़े या कागज की पट्टी को उसके ऊपर दबाया जाता है और फिर उसे बालों के उगने की दिशा में एक झटके में खींचा जाता है। यह मोम के साथ बालों को भी हटा देता है। एक अन्य विधि में सख्त मोम का इस्तेमाल किया जाता है (यह पट्टी मोम के विपरीत होता है).

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खर्राटे

जब सोते हुए व्यक्ति के नाक से अपेक्षाकृत तेज आवाज निकलती है तो इसे खर्राटे लेना (snoring) कहते हैं। इसे 'ओब्स्टृक्टिव स्लीप अप्निया' कहा जाता है; अर्थात नींद में आपकी साँस में अवरोध उत्पन्न होता है। .

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गैसत्राण

गैसत्राण (गैस मास्क) धारण किया हुआ एक सैनिक गैसत्राण या 'गैस प्रच्छादक' (gas mask) उस आवरण को कहते हैं जिसे चेहरे पर धारण करने से वायु में मिश्रित विषैली गैसों एवं अन्य प्रदूषकों से रक्षा होती है। गैसत्राण नाक और मुख को ढक लेता है और वाह्य वायु को नाक/मुह में घुसने नहीं देता। इसमें आँख व चेहरे के अन्य कोमल ऊतकों को ढकने की व्यवस्था भी हो सकती है। .

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कॉनकॉर्ड

Aérospatiale-BAC Concorde एक टर्बोजेट-चालित यात्री विमान, एक सुपरसोनिक परिवहन (SST) है। यह इंग्लैंड और फ्रांसिसि सरकार का संयुक्त उत्पाद है। इसका निर्माण एयरोस्पेशियल और ब्रितानी विमान निगमकी संयुक्त प्रौद्योगिकी से हुआ है। इसने 1969 में पहली बार उड़ान भरा तथा 1976 से अपनी सेवाएं देनी प्रारंभ कर दी। इसकी सेवाएं अगले 27 वर्षों तक जारी रही। इसने लंदन के हीथ्रो (ब्रिटिश एयरवेज़) और पेरिस के चार्ल्स डे गॉले हवाई अड्डे से न्यूयॉर्क और वाशिंगटन डीसीके लिए नियमित रूप से उड़ाने भरी। रिकॉर्ड गति से चलने वाले इस विमान ने अन्य विमानों की तुलना में इस ट्रांस-अटलांटिक दूरी को आधे समय में तय की। इसलिए यह विमानन कंपनियों और यात्रियों के लिए काफी लाभप्रद साबित हुआ। इस तरह के केवल 20 विमानों का निर्माण किया गया जो इस बात का द्योतक है कि इसका विकास आर्थिक दृष्टि से नुकसानदायक था। इस विमान को खरीदने के लिए एयर फ़्रांस और ब्रिटिश एयरवेज़ को उनकी सरकारों द्वारा आर्थिक सहायता दी गई थी। 25 जुलाई 2000 को एयर फ्रांस का न्युयॉर्क की उड़ान पर जा रहा कॉनकॉर्ड विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था जिसमें 113 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस एकमात्र दुर्घटना, 11 सितंबर 2001 के हमलों से उत्पन्न होने वाले आर्थिक प्रभाव और अन्य कारकों के परिणामस्वरूप, 24 अक्टूबर 2003 में इसका प्रचालन बंद कर दिया गया। 26 नवम्बर 2003 को इसने आखिरी उड़ान भरी। एक पूर्व एयर फ़्रांस कॉनकॉर्ड (F-BTSD) की बहाली का प्रयास जारी है और आशा व्यक्त की जा रही है कि वह 2012 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक समय पर उड़ान भरेगा। यह कई संस्थाओं द्वारा विमानन प्रतीक के रूप में सम्मानित हुआ। .

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अनुनासिकीकरण

अनुनासिकीकरण या अनुनासिकता (nasalization) का अर्थ है किसी भी व्यंजन की ध्वनि मुख से निकालने की बजाय नाक से निकालना। जैसे कि "क" वर्ण को नाक के माध्यम से उच्चारित किया जाए तो ये "कं" की ध्वनि अपने आप ही देने लगेगा। * श्रेणी:स्वानिकी श्रेणी:स्वनिमविज्ञान श्रेणी:ऐतिहासिक भाषाविज्ञान श्रेणी:सम्मिलन (भाषाविज्ञान).

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अरीठा

अरीठा का वृक्ष अरीठा का फल और उसकी आन्तरिक रचना रीठा या अरीठा (soap nut) एक वृक्ष है जो लगभग हरजगह भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके पत्ते गूलर के पत्तों से बड़े, छाल भूरी तथा फल गुच्छों में होते हैं। इसकी दो जातियाँ हैं। पहली सापीन्दूस् मूकोरोस्सी (Sapindus Mukorossi) और दूसरी सापीन्दूस् त्रीफ़ोल्यातूस् (Sapindus Trifoliatus)। सापीन्दूस् मूकोरोस्सी के जंगली पेड़ हिमालय के क्षेत्र में अधिक पाये जाते जाते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत में तथा आसाम आदि में लगाये हुए पेड़ बाग-बगीचों में या गांवों के आसपास पाये जाते हैं। इसके फलों को पानी में भिगोने और मथने से फेन उत्पन्न होता है और इससे सूती, ऊनी तथा रेशमी सब प्रकार के कपड़े तथा बाल धोए जा सकते हैं। आयुर्वेद के मत में यह फल त्रिदोषनाशक, गरम, भारी, गर्भपातक, वमनकारक, गर्भाशय को निश्चेष्ट करनेवाला तथा अनेक विषों का प्रभाव नष्ट करेनवाला है। संभवत: वमनकारक होने कारण ही यह विषनाशक भी है। वमन के लिए इसकी मात्रा दो से चार माशे तक बताई जाती है। फल के चूर्ण के गाढ़े घोल की बूंदोंको नाक में डालने से अधकपारी, मिर्गी और वातोन्माद में लाभ होना बताया गया है। सापीन्दूस् त्रीफ़ोल्यातूस् के पेड़ दक्षिण भारत में पाए जाते हैं, इसमें 3-3 फल एक साथ जुड़े होते हैं। इसके फलों की आकृति वृक्काकार होती है और अलग होने पर जुड़े हुए स्थान पर हृदयाकार चिन्ह पाया जाता है। ये पकने पर लालिमा लिए भूरे रंग के होते हैं। दूसरे प्रकार के वृक्ष से प्राप्त बीजों से तेल निकाला जाता है, जो औषधि के काम आता है। इस वृक्ष से गोंद भी मिलता है। .

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अवगम

नॅकर क्यूब और रुबिन गुलदस्ते ऐसे दो चित्र हैं जिनको दो भिन्न बोधों से देखा जा सकता है अपने वातावरण के बारे में इन्द्रियों द्वारा मिली जानकारी को संगठित करके उस से ज्ञान और अपनी स्थिति के बारे में जागरूकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को अवगम या प्रत्यक्षण (perception) कहते हैं।Pomerantz, James R. (2003): "Perception: Overview".

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छींक

छींक वह क्रिया है जिसमें फेफड़ों से हवा नाक और मुह के रास्ते अत्यधिक तेजी से बाहर निकाली जाती है। यह एक अर्ध-स्वायत्त (semi-autonomous) क्रिया है। छींक आमतौर पर तब आती है जब हमारी नाक के अंदर की झिल्ली, किसी बाहरी पदार्थ के घुस जाने से खुजलाती है। नाक से तुरंत हमारे मस्तिष्क को संदेश पहुंचता है और वह शरीर की मांसपेशियों को आदेश देता है कि इस पदार्थ को बाहर निकालें.

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