6 संबंधों: नरवर दुर्ग, निषध, रानीघाटी, सौन्हर, कटेवा, कुशवाहा।
नरवर दुर्ग
नरवर दुर्ग मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के नरवर में विन्ध्य वर्वतमाला की एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई भूस्तर से लगभग ५०० फीट है और यह लगभग ८ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। कहा जाता है कि १०वीं शताब्दी में जब कछवाहा राजपूतों ने नरवर पर अधिकार किया तो इस दुर्ग का निर्माण (पुनर्निर्माण) किया। कछवाहों के बाद यहां परिहार और फ़िर तोमर राजपूतों का आधिपत्य रहा और अन्ततः यह १६वीं शताब्दी में मुगलों के अधीन आ गया। कालान्तर में १९वीं शताब्दी के आरम्भ में यहां मराठा सरदार सिन्धिया ने अधिकार किया।, शिवपुरी पर्यटन .
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निषध
अयोध्या के एक राजा तथा वैदिक काल के एक देश का नाम। श्रीहर्ष रचित नैषधीयचरितम् में इसका उल्लेख मिलता है। सम्भवतः नरवर को प्राचीन काल में निषध नाम से भी जाना जाता था। श्रेणी:अयोध्याकुल.
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रानीघाटी
रानीघाटी ग्वालियर से दक्षिण दिशा की ओर ग्वालियर नरवर मार्ग पर स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है। यह क्षेत्र पूरी तरह से पहाड़ी है और आसपास जंगल ही जंगल है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि रानीघाटी वही स्थान है जहाँ राजा नल का जन्म हुआ था। Ranighati: Birthplace of Raja Nal (Narwar-Gwalior)रानीघाटी / Ranighati: Birthplace of king Nal रानीघाटी पर कई ऐतिहासिक इमारतें और मंदिर खंडहर अवस्था में पड़े हैं। पूरे रानीघाटी क्षेत्र में तमाम ऐतिहासिक शिलालेख और अवशेष यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। डॉ मनोज माहेश्वरी जी के मुताबिक यह स्थान अति प्राचीन और ऐतिहासिक है। राजा नल का जन्म यहीं पर हुआ था।यहाँ एक विशाल राम जानकी मंदिर भी है, जिसकी देखभाल का जिम्मा स्थानीय लोगों ने एक साधू को दिया है। पहाड़ों की तलहटी में में बड़ा सुंदर और हराभरा रमणीक स्थल मौज़ूद है। यहाँ एक प्राकृतिक जल स्रोत भी है जो कि एक गौमुख से होकर है। .
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सौन्हर
सौन्हर का तालाब सौन्हर, भारत के मध्यप्रान्त मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की तहसील नरवर के अन्तर्गत आने वाला एक प्रसिद्ध गाँव है। यह गाँव आसपास के क्षेत्र में बहुचर्चित और प्रसिद्ध है। सौन्हर तालाब का एक दृश्य। फोटोः पवन सिंह बैश .
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कटेवा
कटेवा राजस्थान, भारत में पायी जाने वाली एक जाट गोत्र है। कटेवा गोत्र के लोग सिंध, पाकिस्तान में भी स्थित है। वो कर्कोटक के वंशज हैं जो एक नागवंशी राजा था। वे महाभारत काल में किकट साम्राज्य के रहने वाले थे। जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार वो यदु वंश के सम्बंधित हैं। वास्तव में वाकाटक या कर्कोटक यदुवंशी थे। कुछ लोगों के समूह ने उनके देव और नागा पुजा की पद्धति के अनुसार वंश का विकास किया। कर्क नागा की पुजा करने वालों को कर्कोटक कहा गया। अतः नागवंशी राजा थे। कर्कोटक के वंशज आज भी राजस्थान के कटेवा नामक जाट गोत्र के रूप में पाये जाते हैं। यह माना जाता है कि इन्होने अधिकतर ने यवनों के साथ युद्ध में अपनी जान गवांई अतः कटेवा कहलाये जैसे राजपूतों में शिशोदिया।ठाकुर देशराज: जाट इतिहास, महाराजा सुरज मल स्मारक शिक्षा संस्थान, दिल्ली, 1934, 2nd संस्करण 1992 (पृष्ठ 614) काटली नदी जो झुन्झुनू में बहती है का नामकरण भी कटेवाओं के नाम पर पड़ा है। इसके तट पर एक कटेवा जनपद था। वहाँ पर काटनी नदी के तट पर भी खुडाना नामक स्थान स्थित है जहाँ पर एक दुर्ग भी है जो कटेवाओं का बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों ने उनकी उपस्थिति जयपुर में बताई है जहाँ वो कुशवाहा के नाम से जाने जाते थे। इनमें से कुछ लोग विधवाओं के पुनःविवाह में विश्वास नहीं करते थे और नरवर चले गये और राजपूत बन गये। बाकी जिन्होंने इन पुराने रिवाजों को छोड़ दिया जाट कहलाए। .
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कुशवाहा
कुशवाहा भारतीय समाज की एक वंश/जाति है। परंपरागत रूप से किसान थे परंतु 20वीं शताब्दी में उन्होने स्वयं को राजपूत वंश का बताया। इस जाति का कई स्वतंत्र राज्यों व रियासतों पर शासन रहा हैं जिनमे से अलवर, आमेर (वर्तमान जयपुर) व मैहर प्रमुख हैं। कुशवाहा या कछवाहा, स्वयं को अयोध्या के सूर्यवंशी राजा राम के पुत्र कुश का वंशज मानते हैं। .
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