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द्राखेन्सबर्ग

सूची द्राखेन्सबर्ग

अफ्रीका महाद्वीप के पूर्व एवं दक्षिण में उच्च पठारहैं। पठार के पूर्वी किनारे पर ड्रेकेन्सबर्ग पर्वत है जो समुद्र तट की ओर एक दीवाल की भाँति खड़ा है। ड्रेकेन्सबर्ग का स्थानीय नाम क्वाथालम्बा है। केप प्रान्त में यह पठार दक्षिण की ओर चबूतरे के रूप में समुद्र तक नीचे उतरता है। इन चबूतरों को कारू कहते हैं। इनमें उत्तरी चबूतरे को महान कारू तथा दक्षिणी चबूतरे को लघू कारू कहते हैं। दक्षिणी-पश्चिमी भाग में कालाहारी का मरूस्थल है। यह दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट पर स्थित 2000 से 3000 मीटर ऊँची पहाड़ियाँ है।यह लेसोथो से पूर्वी केप तक फैला हुआ है। सबसे ऊँची चोटी 3482 मीटर है।इससे ऑरेंज नदी लिम्पोपो आदि नदियाँ निकलती है। यह नामीब मरुस्थल, कालाहारी रेगिस्तान और हिन्द महासागर से घिरा है। यह पूर्वी नम हवाओं को पश्चिम की ओर बढ़ने से रोकता है जिससे नामीब रेगिस्तान अधिक शुष्क हो गया है। श्रेणी:अफ़्रीका की पर्वतमालाएँ श्रेणी:दक्षिण अफ़्रीका की पर्वतमालाएँ श्रेणी:लिसूतू की पर्वतमालाएँ.

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सामग्री की तालिका

  1. 6 संबंधों: द्राखेन्सबर्ग, महान घाट, दक्षिणी अफ़्रीका, लिसूतू, आरेंज नदी, अफ़्रीका, अफ़्रीका की भू-प्रकृति

द्राखेन्सबर्ग

अफ्रीका महाद्वीप के पूर्व एवं दक्षिण में उच्च पठारहैं। पठार के पूर्वी किनारे पर ड्रेकेन्सबर्ग पर्वत है जो समुद्र तट की ओर एक दीवाल की भाँति खड़ा है। ड्रेकेन्सबर्ग का स्थानीय नाम क्वाथालम्बा है। केप प्रान्त में यह पठार दक्षिण की ओर चबूतरे के रूप में समुद्र तक नीचे उतरता है। इन चबूतरों को कारू कहते हैं। इनमें उत्तरी चबूतरे को महान कारू तथा दक्षिणी चबूतरे को लघू कारू कहते हैं। दक्षिणी-पश्चिमी भाग में कालाहारी का मरूस्थल है। यह दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट पर स्थित 2000 से 3000 मीटर ऊँची पहाड़ियाँ है।यह लेसोथो से पूर्वी केप तक फैला हुआ है। सबसे ऊँची चोटी 3482 मीटर है।इससे ऑरेंज नदी लिम्पोपो आदि नदियाँ निकलती है। यह नामीब मरुस्थल, कालाहारी रेगिस्तान और हिन्द महासागर से घिरा है। यह पूर्वी नम हवाओं को पश्चिम की ओर बढ़ने से रोकता है जिससे नामीब रेगिस्तान अधिक शुष्क हो गया है। श्रेणी:अफ़्रीका की पर्वतमालाएँ श्रेणी:दक्षिण अफ़्रीका की पर्वतमालाएँ श्रेणी:लिसूतू की पर्वतमालाएँ.

देखें द्राखेन्सबर्ग और द्राखेन्सबर्ग

महान घाट, दक्षिणी अफ़्रीका

दक्षिणी अफ़्रीकी महान घाट एक बड़े पठार को घेरने वाले पहाड़ व ढलाने हैं महान घाट (Great Escarpment) अफ़्रीका के दक्षिणी भाग में स्थित दक्षिण अफ़्रीकी पठार के अधिकांश भाग को घेरने वाला एक पहाड़ी घाट है। जिस तरह से भारत के पश्चिमी घाट भारत के दक्षिण-मध्य में स्थित दक्खन पठार के पश्चिमी छोर पर स्थित घाट है, उसी तरह से दक्षिणी अफ़्रीकी महान घाट भी एक ऐसी ही स्थलाकृति है। महान घाट की पहाड़ियाँ अधिकतर तो दक्षिण अफ़्रीका के देश में हैं लेकिन कुछ लेसूतू (लेसोथो), स्वाज़ीलैण्ड, मोज़ाम्बीक, नमीबिया, ज़िम्बाब्वे व अंगोला में भी हैं। इन्हें अलग देशों में अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण अफ़्रीका में इन्हें द्राखेन्सबर्ग के नाम से बुलाया जाता है। .

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लिसूतू

लिसूतू या लेसोथो (Lesotho, उच्चारण: लिसूतू) (आधिकारिक तौर पर 'लिसूतू किंगडम') एक लैंडलॉक और दक्षिण अफ्रीका गणतंत्र से चारों तरफ से घिरा हुआ देश है। महज 30,000 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले इस देस की अनुमानित जनसंख्या 1,800,000 है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर मासेरु है। यह राष्ट्रमंडल का सदस्य है। लेसोथो का अर्थ मोटे तौर पर 'सेसोथो बोलने वाले लोगों का देश" है। देश की 40% जनसंख्या अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे 1.25 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन से कम आमदनी में गुजारा करती है। इसके पश्चिम और उत्तर में ऑरेंज फ्री स्टेट, पूर्व में नेटाल तथा पूर्वी ग्रीक्वालैंड तथा दक्षिण में केप प्रॉविंस हैं। यहाँ का औसत ताप लगभ १५.५ डिग्री सेल्सियस तथा जलवायु शुष्क है। लगभग ३० इंच वर्षा हाती हे। यहाँ बाँटू जाति के बासूतो लोग रहते हैं। इसकी पूर्वी सीमा पर १०,००० फुट ऊँचा 'द्राखेन्सबर्ग' नामक पठार है। ऑरेंज प्रमुख नदी है। मुख्यत: गेहूँ, मक्का, सोरघम, जौ, जई, फलियों (बीन), मटर एवं सब्जियों की उपज है। घोड़े, बंदर, भेड़, बकरे, खच्चर आदि प्रमुख पशु हैं। मसेरू यहाँ की राजधानी तथा रेलवे स्टेशन है। श्रेणी:लिसूतू श्रेणी:देश श्रेणी:अफ़्रीका श्रेणी:स्थलरुद्ध देश.

देखें द्राखेन्सबर्ग और लिसूतू

आरेंज नदी

आरेंज नदी (Orange river) दक्षिण अफ़्रीका की सबसे लम्बी नदी है। यह लिसूतू देश में द्राखेन्सबर्ग पहाड़ियों से आरम्भ होती है और पश्चिमी दिशा में बहकर अटलांटिक महासागर में विलय हो जाती है। .

देखें द्राखेन्सबर्ग और आरेंज नदी

अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अफ़्रीका की भू-प्रकृति

अफ्रीका का भौतिक मानचित्र ड्रेकेन्सबर्ग पर्वत इथियोपिया का पठार अफ्रीका ऊँचे पठारों का महाद्वीप है, इसका निर्माण अत्यन्त प्राचीन एवं कठोर चट्टानों से हुआ है। इस लावा निर्मित पठार को ढाल (शील्ड) कहते हैं। जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायुवेत्ता तथा भूशास्त्रवेत्ता अल्फ्रेड वेगनर ने पूर्व जलवायु शास्त्र, पूर्व वनस्पति शास्त्र, भूशास्त्र तथा भूगर्भशास्त्र के प्रमाणों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि एक अरब वर्ष पहले समस्त स्थल भाग एक स्थल भाग के रूप में संलग्न था एवं इस स्थलपिण्ड का नामकरण पैंजिया (पूर्ण पृथ्वी) किया। कार्बन युग में पैंजिया के दो टुकड़े हो गये जिनमें से एक उत्तर तथा दूसरा दक्षिण में चला गया। पैंजिया का उत्तरी भाग लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोंडवाना लैंड को प्रदर्शित करता था।अफ्रीका महादेश का धरातल प्राचीन गोंडवाना लैंड का ही एक भाग है। बड़े पठारों के बीच अनेक छोटे-छोटे पठार विभिन्न ढाल वाले हैं। इसके उत्तर में विश्व का बृहत्तम शुष्क मरुस्थल सहारा उपस्थित है। इसके नदी बेसिनों का मानव सभ्यता के विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है, जिसमें नील नदी बेसिन का विशेष स्थान है। समुद्रतटीय मैदानों को छोड़कर किसी भी भाग की ऊँचाई ३२५ मीटर से कम नहीं है। महाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग तथा सुदूर दक्षिण में मोड़दार पर्वत मिलते हैं। अफ्रीका के उत्तर-पश्चिम में एटलस पर्वत की श्रेणियाँ हैं, जो यूरोप के आल्प्स पर्वतमाला की ही एक शाखा है। ये पर्वत दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में फैले हुए हैं और उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक ऊँचे हैं। इसकी सबसे ऊँची चोटी जेबेल टूबकल है जिसकी ऊँचाई ४,१६७ मीटर है। यहाँ खारे पानी की कई झीलें हैं जिन्हें शॉट कहते हैं। मध्य का निम्न पठार भूमध्य रेखा के उत्तर पश्चिम में अन्ध महासागर तट से पूर्व में नील नदी की घाटी तक फैला हुआ है। इसकी ऊँचाई ३०० से ६०० मीटर है। यह एक पठार केवल मरुस्थल है जो सहारा तथा लीबिया के नाम से प्रसिद्ध है। यह एक प्राचीन पठार है तथा नाइजर, कांगो (जायरे), बहर एल गजल तथा चाड नदियों की घाटियों द्वारा कट-फट गया है। इस पठार के मध्य भाग में अहगर एवं टिबेस्टी के उच्च भाग हैं जबकि पूर्वी भाग में कैमरून, निम्बा एवं फूटा जालौन के उच्च भाग हैं। कैमरून के पठार पर स्थित कैमरून (४,०६९ मीटर) पश्चिमी अफ्रीका की सबसे ऊँचा चोटी है। कैमरून गिनि खाड़ी के समानान्तर स्थित एक शांत ज्वालामुखी है। पठार के पूर्वी किनारे पर ड्रेकेन्सबर्ग पर्वत है जो समुद्र तट की ओर एक दीवार की भाँति खड़ा है। ड्रेकेन्सबर्ग का स्थानीय नाम क्वाथालम्बा है एवं यह ३,००० मीटर तक ऊँचा है। केप प्रान्त में यह पठार दक्षिण की ओर चबूतरे के रूप में समुद्र तक नीचे उतरता है। इन चबूतरों को कारू कहते हैं। इनमें उत्तरी चबूतरे को महान कारू तथा दक्षिणी चबूतरे को लघु कारू कहते हैं। दक्षिणी-पश्चिमी भाग में कालाहारी का मरूस्थल है। पूर्व एवं दक्षिण का उच्च पठार भूमध्य रेखा के पूर्व तथा दक्षिण में स्थित है तथा अपेक्षाकृत अधिक ऊँचा है। प्राचीन समय में यह पठार दक्षिण भारत के पठार से मिला था। बाद में बीच की भूमि के धँसने के कारण यह हिन्द महासागर द्वारा अलग हो गया। इस पठार का एक भाग अबीसिनिया में लाल सागर के तटीय भाग से होकर मिस्र देश तक पहुँचती है। इसमें इथोपिया, पूर्वी अफ्रीका एवं दक्षिणी अफ्रीका के पठार सम्मिलित हैं। अफ्रीका के उत्तर-पश्चिम में इथोपिया का पठार है। इस पठार का अधिकांश भाग २,४०० मीटर से ऊँचा है तथा प्राचीनकालीन ज्वालामुखी के उद्गार से निकले हुए लावा से निर्मित है। इसी पठार से नील नदी की सहायक नीली नील नदी निकलती है। नील नदी की कई सहायक नदियों ने इस पठार को काट कर घाटियाँ बना दी हैं। इथोपिया की पर्वतीय गाँठ से कई उच्च श्रेणियाँ निकलकर पूर्वी अफ्रीका के झील प्रदेश से होती हुई दक्षिण की ओर जाती हैं। इथोपिया की उच्च भूमि के दक्षिण में पूर्वी अफ्रीका की उच्च भूमि है। इस पठार का निर्माण भी ज्वालामुखी की क्रिया द्वारा हुआ है। इस श्रेणी में किलिमांजारो (५,८९५ मीटर), रोबेनजारो (५,१८० मीटर) और केनिया (५,४९० मीटर) की बर्फीली चोटियाँ भूमध्यरेखा के समीप पायी जाती हैं। ये तीनों ज्वालामुखी पर्वत हैं। केनिया तथा किलिमांजारो गुटका पर्वत भी हैं। किलिमंजारो अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत एवं चोटी है। अफ्रीका के दरार घाटी की कुछ झीलों का आकाशीय दृश्य दक्षिण अफ्रीका के तट का उपग्रह से खींचा गया चित्र अफ्रीका महाद्वीप की एक मुख्य भौतिक विशेषता पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण अफ्रीका के पठार के पूर्वी भाग में भ्रंश घाटियों की उपस्थिति है। यह दरार घाटी पूर्वी अफ्रीका की महान दरार घाटी के नाम से प्रसिद्ध है तथा उत्तर से दक्षिण फैली है। भ्रंश घाटी एक लम्बी, संकरी एवं गहरी घाटी है जिसके किनारे के ढाल खड़े हैं। प्राचीन काल में पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों के कारण इस पठार पर दो विपरीत दिशाओं से दबाव पड़ा जिससे उसमें कई समानान्तर दरारें पड़ गयीं। जब दो समानान्तर दरारों के बीच का भाग नीचे धँस गया तो उस धँसे भाग को दरार घाटी कहते हैं। इनके दोनों किनारे दीवार की तरह ढाल वाले होते हैं। यह विश्व की सबसे लम्बी दरार घाटी है तथा ४,८०० किलोमीटर लम्बी है। अफ्रीका की महान दरार घाटी की दो शाखाएँ हैं- पूर्वी एवं पश्चिमी। पूर्वी शाखा दक्षिण में मलावी झील से रूडाल्फ झील तथा लाल सागर होती हुई सहारा तक फैली हुई है तथा पश्चिमी शाखा मलावी झील से न्यासा झील एवं टांगानिका झील होती हुई एलबर्ट झील तक चली गयी है। भ्रंश घाटियों में अनेक गहरी झीलें हैं। रुकवा, कियू, एडवर्ड, अलबर्ट, टाना व न्यासा झीलें भ्रंश घाटी में स्थित हैं। अफ्रीका महाद्वीप के चारो ओर संकरे तटीय मैदान हैं जिनकी ऊँचाई १८० मीटर से भी कम है। भूमध्य सागर एवं अन्ध महासागर के तटों के समीप अपेक्षाकृत चौड़े मैदान हैं। अफ्रीका महाद्वीप में तटवर्ती प्रदेश सीमित एवं अनुपयोगी हैं क्योंकि अधिकांश भागों में पठारी कगार तट तक आ गये हैं और शेष में तट में दलदली एवं प्रवाल भित्ति से प्रभावित हैं। मॉरीतानिया और सेनेगल का तटवर्ती प्रदेश काफी विस्तृत है, गिनी की खाड़ी का तट दलदली एवं अनूप झीलों से प्रभावित है। जगह-जगह पर रेतीले टीले हैं तथा अच्छे पोताश्रयों का अभाव है। पश्चिमी अफ्रीका का तट की सामान्यतः गिनी तट के समान है जिसमें लैगून एवं दलदलों की अधिकता है। दक्षिणी अफ्रीका में पठार एवं तट में बहुत ही कम अन्तर है। पूर्वी अफ्रीका में प्रवालभित्तियों की अधिकता है। अफ्रीका में निम्न मैदानों का अभाव है। केवल कांगो, जेम्बेजी, ओरेंज, नाइजर तथा नील नदियों के संकरे बेसिन हैं। .

देखें द्राखेन्सबर्ग और अफ़्रीका की भू-प्रकृति

ड्रेकिन्सवर्ग पर्वत, द्राख़ेन्सबर्ग, क्वाथालम्बा के रूप में भी जाना जाता है।