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दूतकाव्य

सूची दूतकाव्य

यह लेख संस्कृत के महाकवि भास की रचना 'दूतवाक्य' के बारे में नहीं है। ---- दूतकाव्य, संस्कृत काव्य की एक विशिष्ट परंपरा है जिसका आरंभ भास तथा घटकर्पर के काव्यों और महाकवि कालिदास के मेघदूत में मिलता है, तथापि, इसके बीज और अधिक पुराने प्रतीत होते हैं। परिनिष्ठित काव्यों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित वह प्रसंग, जिसें राम ने सीता के पास अपना विरह संदेश भेजा, इस परंपरा की आदि कड़ी माना जाता है। स्वयं कालिदास ने भी अपने "मेघदूत" में इस बात का संकेत किया है कि उन्हें मेघ को दूत बनाने की प्रेरणा वाल्मीकि "रामायण" के हनुमानवाले प्रसंग से मिली है। दूसरी और इस परंपरा के बीज लोककाव्यों में भी स्थित जान पड़ते हैं, जहाँ विरही और विरहिणियाँ अपने अपने प्रेमपात्रों के पति भ्रमर, शुक, चातक, काक आदि पक्षियों के द्वारा संदेश ले जाने का विनय करती मिलती हैं। .

7 संबंधों: दूत, दूतवाक्यम्, भृङ्गदूतम्, मेघदूतम्, हंससन्देश, घटकर्पर, अब्दुर्रहमान (कवि )

दूत

मोहम्मद अली मुगल साम्राज्य में भेजे गये ईरान के शाह अब्बास के दूत थे। दूत संदेशा देने वाले को कहते हैं। दूत का कार्य बहुत महत्व का माना गया है। प्राचीन भारतीय साहित्य में अनेक ग्रन्थों में दूत के लिये आवश्यक गुणों का विस्तार से विवेचन किया गया है। रामायण में लक्ष्मण से हनुमान का परिचय कराते हुए श्रीराम कहते हैं - (अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली।। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कयाणमयी वाणी बोलते हैं जो दुखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे?) इसमें दूत के सभी गुणों का सुन्दर वर्णन है। .

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दूतवाक्यम्

दूतवाक्यम संस्कृत के प्राचीनतम नाटककार महाकवि भास की सुप्रसिद्ध काव्यकृति है। इसकी गणना दृश्यकाव्यों के अन्तर्गत की जाती है। नाट्यकला की दृष्टि से दूतवाक्य की परीक्षा करने पर इसे 'व्यायोग' नामक रूपक-भेद के अन्तर्गत रखा जाता है। व्यायोग की परिभाषा देते हुए आचार्य विश्वनाथ ने कहा है- अर्थात् व्यायोग उस रूपक को कहते हैं जिसमें प्रसिद्ध इतिवृत्त का चयन किया जाता है। पुरुष पात्रों की अधिकता और स्त्रीपात्रों की न्यूनता होती है, गर्भ और विमर्श सन्धियों की योजना अपेक्षित नहीं होती और पूरी रचना एक अंक में समाप्त होती है। इसमें ऐसे युद्ध का वर्णन होता है जिसमें स्त्री निमित्त न हो। इसमें कैशिकी वृत्ति का अभाव होता है। इसका नायक धीरोद्धत प्रकृति का कोई प्रख्यात व्यक्ति होता है या फिर कोई राजर्षि अथवा देवपुरुष। इसमें श्रृंगार, हास्य और शान्त रसों के अतिरिक्त अन्य कोई रस मुख्य होता है। दूतवाक्य में ‘व्यायोग’ के मुख्य लक्षण घटित होते हुए देखे जा सकते हैं। इसकी कथावस्तु महाभारत की कथा के उस अंश से ली गयी है जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण पाण्डवों के दूत बनकर कौरवों की सभा में जाते हैं। इस रूपक में स्त्रीपात्रों का सर्वथा अभाव है। इसमें राज्य के विभाजन को लेकर युद्ध की चर्चा है। कौरवों में से धीरोद्धत प्रकृति का दुर्योधन दूतवाक्य का नायक है। इसमें श्रृंगार और शान्त रसों की नहीं, वीर रस की प्रधानता है। इस रूपक में केवल एक अंक है। संस्कृत रूपक के मुख्य रूप से तीन तत्त्व होते हैं- कथावस्तु, नेता और रस। प्राचीन काल से ही संस्कृत नाटक मंच पर खेले जाते रहे हैं, इसलिए इनके मूल्यांकन में अभिनय की दृष्टि से मंचन -योग्यता को भी पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है। .

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भृङ्गदूतम्

भृंगदूतम् (२००४), (शब्दार्थ:भ्रमर दूत)) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा दूतकाव्य शैली में रचित एक संस्कृत खण्डकाव्य है। काव्य दो भागों में विभक्त है और इसमें मन्दाक्रान्ता छंद में रचित ५०१ श्लोक हैं। काव्य की कथा रामायण के किष्किन्धाकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें भगवान राम वर्षा ऋतु के चार महीने किष्किन्धा में स्थित प्रवर्षण पर्वत पर सीता के विरह में व्यतीत करते हैं। प्रस्तुत खण्डकाव्य में राम इस अवधि में अपनी पत्नी, सीता, जो की रावण द्वारा लंका में बंदी बना ली गई हैं, को स्मरण करते हुए एक भ्रमर (भौंरा) को दूत बनाकर सीता के लिए संदेश प्रेषित करते हैं। काव्य की एक प्रति स्वयं कवि द्वारा रचित "गुंजन" नामक हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अगस्त २००४ को किया गया था। .

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मेघदूतम्

कालिदास रचित मेघदूतम् मेघदूतम् महाकवि कालिदास द्वारा रचित विख्यात दूतकाव्य है। इसमें एक यक्ष की कथा है जिसे कुबेर अलकापुरी से निष्कासित कर देता है। निष्कासित यक्ष रामगिरि पर्वत पर निवास करता है। वर्षा ऋतु में उसे अपनी प्रेमिका की याद सताने लगती है। कामार्त यक्ष सोचता है कि किसी भी तरह से उसका अल्कापुरी लौटना संभव नहीं है, इसलिए वह प्रेमिका तक अपना संदेश दूत के माध्यम से भेजने का निश्चय करता है। अकेलेपन का जीवन गुजार रहे यक्ष को कोई संदेशवाहक भी नहीं मिलता है, इसलिए उसने मेघ के माध्यम से अपना संदेश विरहाकुल प्रेमिका तक भेजने की बात सोची। इस प्रकार आषाढ़ के प्रथम दिन आकाश पर उमड़ते मेघों ने कालिदास की कल्पना के साथ मिलकर एक अनन्य कृति की रचना कर दी। मेघदूत की लोकप्रियता भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से ही रही है। जहाँ एक ओर प्रसिद्ध टीकाकारों ने इस पर टीकाएँ लिखी हैं, वहीं अनेक संस्कृत कवियों ने इससे प्रेरित होकर अथवा इसको आधार बनाकर कई दूतकाव्य लिखे। भावना और कल्पना का जो उदात्त प्रसार मेघदूत में उपलब्ध है, वह भारतीय साहित्य में अन्यत्र विरल है। नागार्जुन ने मेघदूत के हिन्दी अनुवाद की भूमिका में इसे हिन्दी वाङ्मय का अनुपम अंश बताया है। मेघदूतम् काव्य दो खंडों में विभक्त है। पूर्वमेघ में यक्ष बादल को रामगिरि से अलकापुरी तक के रास्ते का विवरण देता है और उत्तरमेघ में यक्ष का यह प्रसिद्ध विरहदग्ध संदेश है जिसमें कालिदास ने प्रेमीहृदय की भावना को उड़ेल दिया है। कुछ विद्वानों ने इस कृति को कवि की व्यक्तिव्यंजक (आत्मपरक) रचना माना है। "मेघदूत" में लगभग ११५ पद्य हैं, यद्यपि अलग अलग संस्करणों में इन पद्यों की संख्या हेर-फेर से कुछ अधिक भी मिलती है। डॉ॰ एस.

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हंससन्देश

हंससन्देश, वेदान्तदेशिक द्वारा १३वी शताब्दी में रचित संस्कृत प्रेम काव्य है। यह ११० पद्यों का एक छोटा काव्य है जिसमें हंस के माध्यम से राम लंका स्थित अपनी प्रिया सीता को सन्देश भेजते हैं। यह काव्य एक सन्देश काव्य है और इसमें कालिदास के मेघदूत की शैली का अनुकरण किया गया है। वैष्णव लोगों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। श्रेणी:संस्कृत काव्य.

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घटकर्पर

घटकर्पर, यमकालंकार प्रधान 22 श्लोकात्मक काव्य है। विरहिणी नायिका द्वारा अपने दूरस्थ नायक को वर्षारंभ में संदेश भेजे जाने का वर्णन इस काव्य का मूल विषय है। इसके रचयिता के विषय में पर्याप्त संशय है। परंपरा में इसको उज्जयिनी नरेश विक्रमादित्य के नवरत्न घटकर्पर की कृति समझते हैं, पर यह मत संगत नहीं जँचता। कालिदास को भी निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं। याकोबी ने इस काव्य को कालिदास से प्राचीनतर माना है। इसके लेखक की गर्वोक्ति है कि जो यमकालंकार के प्रयोग में इस काव्य का अतिक्रमण करेगा, उसके लिये लेखक घट के टूटे हुए टुकड़ों में पानी भरेगा। इसके कई संस्करण प्रचलित है। इसपर अभिनवगुप्त कृत घटकर्परविवृति प्रकाशित हो चुकी है। .

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अब्दुर्रहमान (कवि )

अब्दुर्रहमान अवहट्ट भाषा के प्रारंभिक महाकवियों में गिने जाते हैं। इनका आविर्भाव अपभ्रंश काल के परवर्ती युग में हुआ। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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