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दुर्ग

सूची दुर्ग

दुर्ग छत्तीसगढ़ प्रान्त के 27 जिलो मे तीसरा सबसे बड़ा जिला है। दुर्ग जिले के मुख्य शहर भिलाई और दुर्ग को सम्मिलित रूप से टि्वन सिटी कहा जाता है। भिलाई में लौह इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही दुर्ग का महत्व काफी बढ़ गया। शिवनाथ नदी के पूर्वी तट पर स्थित दुर्ग शहर के बीचोबीच से राष्ट्रीय राजमार्ग ६ (कोलकाता-मुंबई) गुजरती है। टि्वनसिटी के तौर पर दुर्ग-भिलाई शैक्षणिक और खेल केंद्र के रूप में न केवल प्रदेश में बल्कि देश में अपना स्थान रखता है। श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर.

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चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)

ओरछा का चतुर्भुज मंदिर विष्णु का मंदिर है। यह मंदिर जटिल बहुमंजिला संरचना वाला है तथा मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल की वास्तुगत विशेषताओं से युक्त है। श्रेणी:भारत के मंदिर.

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चाणक्य

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके नाम पर एक धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर 1990 के दशक में दिखाया जाता था। .

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चित्तौड़गढ़ दुर्ग

चित्तौड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। यह एक विश्व विरासत स्थल है। चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी थी। इस किले ने इतिहास के उतार-चढाव देखे हैं। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं। चित्तौड़ के दुर्ग को २०१३ में युनेस्को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। .

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चित्रदुर्ग (किला)

चित्रदुर्ग, कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थित एक दुर्ग है। .

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चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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टाटानगर जंक्शन रेलवे स्टेशन

टाटानगर जमशेदपुर शहर के रेलवे-स्टेशन का नाम है जो झारखंड प्रांत में स्थित है। पहले यह बिहार का हिस्सा हुआ करता था। टाटानगर दक्षिणपूर्व रेलवे का एक प्रमुख एवं व्यस्त स्टेशन है जो हावडा मुंबई मुख्य लाईन पर स्थित है। .

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झांसी का किला

झाँसी का दुर्ग (सन १८८२ में) उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। २५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा। मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। १९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग १५ एकड़ में फैला हुआ है। इसमें २२ बुर्ज और दो तरफ़ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में १० द्वार थे। इसके अलावा ४ खिड़कियाँ थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं। कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं। फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था। किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है। किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है। वर्ष पर्यन्त देखने जा सकते हैं।यहॉ सड़क तथा रेल मारग दोनो से पहुँचा जा सकता है। .

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तिमण गढ़

तिमण गढ़ राजस्थान,भारत के करौली ज़िले में स्थित एक लोकप्रिय दुर्ग है। तीमंगढ़ किला, हिण्डौनसिटी के पास मासलपुर तहसील के अन्दर स्थित है। इतिहासकारों का मानना है कि यहाँ निर्मित ये किला 1100 ई में बनवाया गया था जो जल्द ही नष्ट कर दिया गया। इस किले को 1244ई में यदुवंशी राजा तीमंपल जो राजा विजय पाल के वंशज थे द्वारा दोबारा बनवाया गया था। लोगों का मानना है कि आज भी इस किले में अष्ठधातु की प्राचीन मूर्तियां, मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों को इस किले के मंदिर के नीचे छुपाया गया है। यहाँ बने मंदिरों की छतों और स्तंभों पर सुंदर ज्यामितीय और फूल के नमूने किसी भी पर्यटक का मन मोहने के लिए काफी हैं साथ ही यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर के स्तंभों पर अलग अलग देवी देवताओं की तस्वीरों को भी बनाया गया है जो प्राचीन कला का एक बेमिसाल नमूना है।कई रिकॉर्ड साइट से खोज की पुष्टि करते हैं कि किला 1196 और 1244 ई. के लोगों के बीच मुहम्मद गौरी बलों द्वारा कब्जा किया गया थाका मानना है कि वहाँ एक सागर झील के तल पर पारस पत्थर, किले के पक्ष में मौजूद है। इस साइट से प्राप्त कई रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करते हैं कि 1196 से 1244 के बीच इस किले पर मुहम्मद गौरी ने कब्ज़ा कर रखा था। लोगों का मानना है कि आज भी किले के पास स्थित सागर झील में पारस पत्थर है जिसके स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है। तिमण गढ़ का निर्माण तिसमानों ने करवाया था। .

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तवांग मठ

तवांग मठ भारत के अरुणाचल प्रदेश में स्थित एक बौद्ध मठ है। यह भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और ल्हासा के पोताला महल के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। यह तवांग नदी की घाटी में तवांग कस्बे के निकट स्थित है। 300 साल पहले बने इस मठ को बौद्ध भिक्षु अंतरराष्ट्रीय धरोहर मानते हैं। इसे 1680 में मेराक लामा लोद्रे ग्यास्तो ने बनवाया। इसमें 570 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु रहते हैं। समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊंचाई पर तवांग चू घाटी में बने इस मठ में दुनिया भर के बौद्ध भिक्षु और पर्यटक आते हैं। पहाड़ी पर बने होने के कारण तवांग मठ से पूरी त्वांग घाटी के खूबसूरत दृश्य देखे जा सकते हैं। यह मठ दूर से दुर्ग जैसा दिखाई देता है। इसके प्रवेश द्वार का नाम 'काकालिंग' है जो देखने में झोपडी जैसा लगता है और इसकी दो दीवारों के निर्माण में पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इन दीवारों पर खूबसूरत चित्रकारी की गई है जो पर्यटकों को बहुत पसंद आती है। तवांग मठ .

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त्र्यम्बक शर्मा

त्र्यम्बक शर्मा त्र्यम्बक शर्मा (५ सितम्बर १९७०) भारत के युवा कार्टूनिस्ट हैं। उन्हें विशेष रूप से कार्टून आधारित एकमात्र मासिक पत्रिका कार्टून वाच के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। शंकर्स वीकली के बाद भारत में कार्टून पत्रिका प्रारंभ करने वाले त्र्यम्बक शर्मा का जन्म छत्तीसगढ़ में और शिक्षा दुर्ग-भिलाई और रायपुर में हुई। भिलाई के कल्याण महाविद्यालय से विज्ञान में स्नातक होने के बाद त्र्यम्बक ने रायपुर से पत्रकारिता में स्नातक डिग्री प्राप्त की। कार्टून वाच पत्रिका के प्रकाशन के चलते वे सपरिवार रायपुर में ही बस गए। त्र्यम्बक कार्टूनिस्ट की नज़र से उन्होंने तीन वर्ष रायपुर के सुप्रसिद्ध अंग्रेज़ी दैनिक़ द हितवाद मे तथा एक वर्ष हिंदी दैनिक देशबंधु में मे बतौर संवाददाता कार्य भी किया। रायपुर में दैनिक नवभारत में काम करते हुए उन्होंने १९९१ में दैनिक कार्टून बनाना प्रारंभ किया। १९९२ से उनके कार्टून दैनिक भास्कर के रायपुर संस्करण में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होना प्रारंभ हुए। १९९६ में उन्होंने दैनिक भास्कर की नौकरी छोड़कर मासिक पत्रिका कार्टून वाच का प्रकाशन रायपुर से आरम्भ किया। कार्टून वाच राजनीतिक और सामाजिक कार्टूनों पर आधारित भारत की एक मात्र हिंदी कार्टून मासिक पत्रिका है। यह पत्रिका जहाँ पुराने कार्टूनिस्टों के कार्टूनों का पुनः प्रकाशन करती है वहीं नए कार्टूनिस्टों की प्रतिभा को सामने लाने का लिए भी मंच प्रदान करती है। देश-विदेश में अपनी प्रदर्शनियाँ करने वाले त्र्यंबक रायपुर में एक कार्टून संग्रहालय बनाने में लगे हैं। .

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तोरण

तोरण किसी बड़े भवन, दुर्ग या नगर का वह बाहरी बड़ा द्वार जिसका ऊपरी भाग मंडपाकार हो और प्रायः पताकाओं, मालाओं आदि से सजाया जाता हो। तोरण, हिन्दू, बौद्ध तथा जैन वास्तुकला का प्रमुख अंग है और दक्षिण एशिया दक्षिणपूर्व एशिया तथा पूर्वी एशिया के पुराने संरचनाओं में पाया जाता है। .

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दिल्ली का इतिहास

दिल्ली का लौह स्तम्भ दिल्ली को भारतीय महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था। अभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में कराये गये खुदाई में जो भित्तिचित्र मिले हैं उनसे इसकी आयु ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का लगाया जा रहा है, जिसे महाभारत के समय से जोड़ा जाता है, लेकिन उस समय के जनसंख्या के कोई प्रमाण अभी नहीं मिले हैं। कुछ इतिहासकार इन्द्रप्रस्थ को पुराने दुर्ग के आस-पास मानते हैं। पुरातात्विक रूप से जो पहले प्रमाण मिलते हैं उन्हें मौर्य-काल (ईसा पूर्व 300) से जोड़ा जाता है। तब से निरन्तर यहाँ जनसंख्या के होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। 1966 में प्राप्त अशोक का एक शिलालेख(273 - 300 ई पू) दिल्ली में श्रीनिवासपुरी में पाया गया। यह शिलालेख जो प्रसिद्ध लौह-स्तम्भ के रूप में जाना जाता है अब क़ुतुब-मीनार में देखा जा सकता है। इस स्तंभ को अनुमानत: गुप्तकाल (सन ४००-६००) में बनाया गया था और बाद में दसवीं सदी में दिल्ली लाया गया।लौह स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था, संभवतः तोमर राजा, अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) इसे मध्य भारत के उदयगिरि नामक स्थान से लाए थे। इतिहास कहता है कि 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच लोह स्तंभ को दिल्ली में स्थापित किया गया था और उस समय दिल्ली में तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) था। वही लोह स्तंभ को दिल्ली में लाया था जिसका उल्लेख पृथ्वीराज रासो में भी किया है। जबकि फिरोजशाह तुगलक 13 शताब्दी मे दिल्ली का राजा था वो केसे 10 शताब्दी मे इसे ला सकता है। चंदरबरदाई की रचना पृथवीराज रासो में तोमर वंश राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि उसने ही 'लाल-कोट' का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है। 'दिल्ली' या 'दिल्लिका' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया गया। शायद 1316 ईसवी तक यह हरियाणा की राजधानी बन चुकी थी। 1206 इसवी के बाद दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी जिसमें खिलज़ी वंश, तुग़लक़ वंश, सैयद वंश और लोधी वंश समते कुछ अन्य वंशों ने शासन किया। .

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दुर्ग जिला

दुर्ग भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। दुर्ग जिला ८,५ ३ ७ वर्ग किलोमीटर की एरिया में फैला हुआ है। यहाँ की जनसंख्या सन १९ ९ १ में २,३९ ७, १ ३ ४ था। जिले का मुख्यालय दुर्ग है। क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.

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दुर्ग विश्वविद्यालय

दुर्ग विश्वविद्यालय भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिला में स्थित विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना २४ अप्रैल २०१५ को जारी अधिसूचना के साथ की गई है। विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र में पांच जिलों- दुर्ग, बालोद, बेमेतरा, राजनांदगांव और कबीरधाम के ५० सरकारी और ६८ गैर सरकारी महाविद्यालय शामिल किए गए हैं। .

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धरमपुरी

धरमपुरी मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित पौराणिक नगर है। धरमपुरी प्राचीन भारत का एक सुविख्यात नगर तथा दुर्ग रहा है। यह दक्षिण - पशचिम के भूतपूर्व धार राज्य के अंतर्गत आता था। आजादी के पश्चात् यह धार जिले की मनावर तहसील का टप्पा था। विंध्यांचल पर्वत के अंचल में पुन्य सलिला नर्मदा के तट पर बसी यह नगरी मुंबई-आगरा राजमार्ग से खलघाट से पश्चिम दिशा में ११ किलोमीटर दुरी पर स्थित है। मांडवगढ़ के इतिहास से इस नगर का घनिष्ट सम्बंध रहा है। नर्मदा के उत्तर तट पर बसी धरमपुरी नगरी परमार राज्य की शक्ति, सुरक्षा, स्थापत्यकला और धर्म की द्रष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र था। धरमपुरी के नाम की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है की महाभारत कल में धर्मराज युधिष्ठिर ने यह राजसूर्य यज्ञ किया था। इस कारण धर्मराज द्वारा बसाए जाने कारण उन्ही के नाम पर इस नगरी का नाम धर्मपुरी पड़ा था। जिसे वर्तमान में हम धरमपुरी से संबोधन करते है। धरमपुरी का वर्तमान स्वरूप उसकी प्राचीनता तथा पूर्वावशेष इसके धार्मिक, एतिहासिक एवं कलात्मक होने की पुष्टि करते है। जगत तारनी माँ नर्मदा के उत्तर तट पर विंध्यांचल की तलेटी में स्थित धरमपुरी वर्तमान में बड़ा शहर नही है। परन्तु प्राचीन काल में यह महत्वपूर्ण नगर था। इसका प्रमाण पुराण एवम इतिहास में मिलता है। सदियों से ऋषि मुनियों तथा प्रतापी राजाओ की आवास स्थली होने के साथ - साथ धरमपुरी आध्यात्मिक एवम शोर्य से गोरान्वित था। सुद्रड़ता और सुरक्षा की द्रष्टि से तत्कालीन गडी के रूप में यह अपनी गरिमा रखता था। गडी के भग्नावशेष इसके आज भी साक्षी है। नगर के चारो और परकोटा और चार द्वार थे। जिसमे से तीन आज भी विद्यमान है। काल और युध्दो के प्रभाव ने इस धर्मप्राण भू भाग को ध्वस्त कर दिया। भव्य प्रसादो और मन्दिरों के स्थानों पर खंडहर ईट, पत्थर और मिटटी के ढेर में तब्दील हो गए। प्राचीन इतिहास से पता चलता है की रामायण काल में १६०० ईस्वी पूर्व यह प्रदेश अनूप जनपद के अंतर्गत था। यह शाश्वत राज्य स्थापित होने के साथ महेश्व्वर हैहेय वंशीय राजा सहस्त्रार्जून एवम शिशुपाल ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। इसके पश्चात् महाभारत काल में धर्मराज युधिष्टिर ने यहा राजसूर्य यज्ञ के दौरान यज्ञ की सफलता के लिए राजा भीमसेन को अनेक राजाओ से युध्द करना पड़ा था। राजा भीमसेन ने अनेक देशो पर विजय प्राप्तकर युधिष्टिर की आज्ञा से चेदी वंश के राजा शिशुपाल को पराजित किया। चेदी वंश का राज्य नर्मदा किनारे फैला था और महेश्वर (माहिष्मती) उसकी राजधानी थी। महाभारत के पश्चात सम्राट परीक्षित और जन्मेजय के राज्यकाल तक धरमपुरी का वैभव अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच चूका था। लेखो और शिलालेखो के आधार पर ईसा की पहली व दूसरी सदी से इस जनपद का नाम अनूप पाया जाता है। बौध ग्रंथो में भी इसका उल्लेख है की ईसवी पूर्व ६०० के लगभग उत्तर में १६ महाजनपद थे। निमाड़ का यह हिस्सा अवन्ती महाजन के पद अंतर्गत आता था। पूर्व निमाड़ जिले के सन १९०८ में प्रकाशित ग्झेतियर के अनुसार प्राचीन निमाड़ के प्रान्त की सीमा क्षेत्र पूर्व में होशंगाबाद जिले में प्रवाहित गुंजाल नदी पश्चिम में हिरन फाल (हिरन जलप्रताप) तथा उत्तर दक्षिण में विंध्यांचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणी है। प्राचीन धार्नाओ के अनुसार इस प्रान्त में नीम के पेड़ अधिक होने के कारण इसका नाम निमाड़ पड़ गया। मुगल शासक काल में निमाड़ की प्रतिष्ठा एवम स्वतंत्र राज्य के रूप में थी और उसके पश्चात् तुगलक वंश के समय में भी यह प्रान्त का रूप में अस्तित्व में था। धरमपुरी नगर अपने आप में इतिहास समेटे हुए है। नगर व इसके आसपास का क्षेत्र तपोभूमि के प्राचीन एेतिहासिक व सांस्कृतिक जिसमे जैन, बौध, वैष्णव एवम् पौराणिक कालीन मूर्ति एवम् स्थापत्यकला के आज भी दर्शन होते है। धरमपुरी नगर के आसपास महान तपस्वियों ने तपस्या की जिनकी साक्षी गुफाए व प्राचीन शिवालय वर्तमान में विद्यमान है। .

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नरवर दुर्ग

नरवर दुर्ग मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के नरवर में विन्ध्य वर्वतमाला की एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई भूस्तर से लगभग ५०० फीट है और यह लगभग ८ वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। कहा जाता है कि १०वीं शताब्दी में जब कछवाहा राजपूतों ने नरवर पर अधिकार किया तो इस दुर्ग का निर्माण (पुनर्निर्माण) किया। कछवाहों के बाद यहां परिहार और फ़िर तोमर राजपूतों का आधिपत्य रहा और अन्ततः यह १६वीं शताब्दी में मुगलों के अधीन आ गया। कालान्तर में १९वीं शताब्दी के आरम्भ में यहां मराठा सरदार सिन्धिया ने अधिकार किया।, शिवपुरी पर्यटन .

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नागदेव मंदिर,नगपुरा,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक नागदेव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में नगपुरा नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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नाकाबन्दी

नाकाबन्दी का अर्थ है किसी भूभाग से आपूर्ति, युद्ध सामग्री या संचार व्यवस्था को काट देने का प्रयास। यह कार्य पूर्णतः बल द्वारा या अंशतः बल द्वारा किया जाता किया जाता है। ध्यान रहे कि नाकाबन्दी तथा इम्बार्गो (सैंक्शन) में बहुत अन्तर है क्योंकि ये व्यापार में रुकावट डालते हैम किन्तु कानूनी तरीके से, बल द्वारा नहीं। नाकाबन्दी, घेराबंदी (siege) से भी अलग है क्योंकि घेराबन्दी में घेरा गया क्षेत्र बहुत छोटा होता है (जैसे एक दुर्ग)। ऐतिहासिक रूप से अधिकांश नाकेबन्दियाँ समुद्र में हुईं किन्तु थल पर भी नाकेबन्दी की जाती है। .

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नवागढ़

नवागढ़ बेमेतरा जिले में है। पहले यह अवभाजित दुर्ग जिले में था। यह दुर्ग से इसकी दूरी करीब 100 कि०मी० और बेमेतरा से 25 कि०मी० है। यह मुंगेली व बेमेतरा जिले के ठीक मध्य में स्थित है। मंदिरों की नगरी कहा जाने वाला नवागढ़ अपने आप में पुरातात्विक इतिहास संजोए है। कल्चुरी राजाओं के 36 गढ़ों में से एक गढ़ के रूप में नवागढ़ आज भी प्रतिष्टित है। जहाँ राजा के द्वारा निर्माण करायी हुई बावड़ी आज भी बावली पारा में विद्यमान है, जिसमें अत्यधिक पानी होने के कारण लोहे के दरवाजे से बंद कर दिया गया है, जो पहले पुरे नगर में जल का स्रोत हुआ करता था। यहाँ समय-समय पर अनेक प्राचीन अवशेष मिलते हैं, जो इसकी पुरातात्विक महत्त्व को प्रदर्शित करता है। नवागढ़ और उसके आसपास उपजाऊ भूमि है। लेकिन सिंचाई का साधन नहीं होने के कारण कृषि उन्नत नहीं है। श्री शमी गणेश का विश्व का एक मात्र प्रसिद्ध मन्दिर नवागढ़ की शोभा को चार चाँद लगाता है। इस मन्दिर की रचना तांत्रिक विधि द्वारा की गयी है। इसके अतिरिक्त यहाँ पर बहुत प्राचीन तालाब है,यहाँ तालाबो की बहुत संख्या है| .

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परपोड़ी

नगर पंचायत परपोड़ी भारत देश के छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जिले में स्थित है। परपोड़ी नगर एक हरा भरा नगर है। 28 मई 2003 को नगर पंचायत का दर्ज़ा मिला। यह राजा परपोड़ी" के नाम से प्रसिद्ध हैं। 14 जनवरी 2012 से पहले यह नगर दुर्ग जिले के अंतर्गत था पर अब यह छत्तीसगढ़ राज्य के नवघोषित 9 जिलो में से एक बेमेतरा जिले में हैं | नए बेमेतरा जिले के अंतिम छोर पर अवस्थित यह नगर जो 5 किलोमीटर के बाद राजनांदगांव जिले की सीमा को छूती हैं। यहाँ के राजा गोंड वंशी थे और 'जमींदार' कहलाने लगे। वास्तव में ये अपने अपने गढ़ के राजा होते थे। नगर का तहसील व विकासखंड "साजा" नगर हैं जो परपोड़ी से 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित हैं। .

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पल्लिपुरम् किला

अलिकोट्ट पल्लिपुरम दुर्ग केरल के एर्नाकुलम जिले में है। यह दुर्ग वैपिन द्वीप के सबसे उत्तरी छोर पर स्थित है। आकार की दृष्टि से यह षटभुजाकार है। यह 'अयिक्कोट्ट' या 'अलिकोट्ट' के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण पुर्तगालियों ने १५०३ में किय था। यह भारत में यूरोपीय लोगों द्वारा निर्मित सबसे पुराना दुर्ग है। १६६१ में डचों का इस दुर्ग पर अधिकार हो गया और १७८९ में उन्होने इसे त्रावणकोर सरकार को बेच दिया। .

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पश्चिमी घाट

भारत की प्रमुख पर्वत-शृंखलाएँ; इसमें पश्चिमी तट के लगभग समान्तर जो पर्वत-श्रेणी है, वही ''''पश्चिमी घाट'''' कहलाती है। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत शृंखला को पश्चिमी घाट या सह्याद्रि कहते हैं। दक्‍कनी पठार के पश्चिमी किनारे के साथ-साथ यह पर्वतीय शृंखला उत्‍तर से दक्षिण की तरफ 1600 किलोमीटर लम्‍बी है। विश्‍व में जैविकीय विवधता के लिए यह बहुत महत्‍वपूर्ण है और इस दृष्टि से विश्‍व में इसका 8वां स्थान है। यह गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है। वर्ष 2012 में यूनेस्को ने पश्चिमी घाट क्षेत्र के 39 स्‍थानों को विश्व धरोहर स्‍थल घोषित किया है।" पश्चिमी घाट का संस्कृत नाम सह्याद्रि पर्वत है। यह पर्वतश्रेणी महाराष्ट्र में कुंदाइबारी दर्रे से आरंभ होकर, तट के समांतर, सागरतट से ३० किमी से लेकर १०० किमी के अंतर से लगभग ४,००० फुट तक ऊँची दक्षिण की ओर जाती है। यह श्रेणी कोंकण के निम्न प्रदेश एवं लगभग २,००० फुट ऊँचे दकन के पठार को एक दूसरे से विभक्त करती है। इसपर कई इतिहासप्रसिद्ध किले बने हैं। कुंदाईबारी दर्रा भरुच तथा दकन पठार के बीच व्यापार का मुख्य मार्ग है। इससे कई बड़ी बड़ी नदियाँ निकलकर पूर्व की ओर बहती हैं। इसमें थाल घाट, भोर घाट, पाल घाट तीन प्रसिद्ध दर्रे हैं। थाल घाट से होकर बंबई-आगरा-मार्ग जाता है। कलसूबाई चोटी सबसे ऊँची (५,४२७ फुट) चोटी है। भोर घाट से बंबई-पूना मार्ग गुजरता है। इन दर्रो के अलावा जरसोपा, कोल्लुर, होसंगादी, आगुंबी, बूँध, मंजराबाद एवं विसाली आदि दर्रे हैं। अंत में दक्षिण में जाकर यह श्रेणी पूर्वी घाट पहाड़ से नीलगिरि के पठार के रूप में मिल जाती है। इसी पठार पर पहाड़ी सैरगाह ओत्तकमंदु स्थित है, जो सागरतल से ७,००० फुट की ऊँचाई पर बसा है। नीलगिरि पठार के दक्षिण में प्रसिद्ध दर्रा पालघाट है। यह दर्रा २५ किमी चौड़ा तथा सगरतल से १,००० फुट ऊँचा है। केरल-मद्रास का संबंध इसी दर्रे से है। इस दर्रे के दक्षिण में यह श्रेणी पुन: ऊँची हाकर अन्नाईमलाई पहाड़ी के रूप में चलती है। पाल घाट के दक्षिण में श्रेणी की पूर्वी पश्चिमी दोनों ढालें खड़ी हैं। पश्चिमी घाट में सुंदर सुंदर दृश्य देखने को मिलती हैं। जंगलों में शिकार भी खेला जाता है। प्राचीन समय से यातायात की बाधा के कारण इस श्रेणी के पूर्व एवं पश्चिम के भागों के लोगों की बोली, रहन सहन आदि में बड़ा अंतर है। यहाँ कई जंगली जातियाँ भी रहती हैं। पश्चिमी घाट का उपग्रह से लिया गया चित्र .

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प्राचीन मंदिर,डोंडी लोहारा,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में डोंडी लोहारा नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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प्रौद्योगिकी

२०वीं सदी के मध्य तक मनुष्य ने तकनीक के प्रयोग से पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलना सीख लिया था। एकीकृत परिपथ (IC) के आविष्कार ने कम्प्यूटर क्रान्ति को जन्म दिया । प्रौद्योगिकी, व्यावहारिक और औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञानों से संबंधित अध्ययन या विज्ञान का समूह है। कई लोग तकनीकी और अभियान्त्रिकी शब्द एक दूसरे के लिये प्रयुक्त करते हैं। जो लोग प्रौद्योगिकी को व्यवसाय रूप में अपनाते है उन्हे अभियन्ता कहा जाता है। आदिकाल से मानव तकनीक का प्रयोग करता आ रहा है। आधुनिक सभ्यता के विकास में तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। जो समाज या राष्ट्र तकनीकी रूप से सक्षम हैं वे सामरिक रूप से भी सबल होते हैं और देर-सबेर आर्थिक रूप से भी सबल बन जाते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि अभियांत्रिकी का आरम्भ सैनिक अभियांत्रिकी से ही हुआ। इसके बाद सडकें, घर, दुर्ग, पुल आदि के निर्माण सम्बन्धी आवश्यकताओं और समस्याओं को हल करने के लिये सिविल अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के साथ-साथ यांत्रिक तकनीकी आयी। इसके बाद वैद्युत अभियांत्रिकी, रासायनिक प्रौद्योगिकी तथा अन्य प्रौद्योगिकियाँ आयीं। वर्तमान समय कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी का है। .

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फाउंडेशन प्रयास

फाउंडेशन प्रयास संस्थान .

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बस्तर जिला

बस्तर भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है। जिले का प्रशासनीक मुख्यालय जगदलपुर है। यहां की कुल आबादी का लगभग 70% भाग जनजातीय है। इसके उत्तर में दुर्ग, उत्तर-पूर्व में रायपुर, पश्चिम में चांदा, पूर्व में कोरापुट तथा दक्षिण में पूर्वी गोदावरी जिले हैं। यह पहले एक देशी रियासत था। इसका अधिकांश भाग कृषि के अयोग्य है। यहाँ जंगल अधिक हैं जिनमें गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं। जगंलों में टीक तथा साल के पेड़ प्रमुख हैं। यहाँ की स्थानांतरित कृषि में धान तथा कुछ मात्रा में ज्वार, बाजरा पैदा कर लिया जाता है। इंद्रावती यहाँ की प्रमुख नदी है। चित्राकट में कई झरने भी हैं। जगदलपुर, बीजापुर, कांकेर, कोंडागाँव, भानु प्रतापपुर आदि प्रमुख नगर हैं। यहाँ के आदिवासी जंगलों में लकड़ियाँ, लाख, मोम, शहद, चमड़ा साफ करने तथा रँगने के पदार्थ आदि इकट्ठे करते रहते हैं। खनिज पदार्थों में लोहा, अभ्रक महत्वपूर्ण हैं। .

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बहादुर क्लारिन की माची,चिरचारी,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक बहादुर क्लारिन की माची छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में चिरचारी नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान

बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में टाइगर बांधवगढ राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। यह वर्ष 1968 में राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था। इसका क्षेत्रफल 437 वर्ग किमी है। यहां शेर आसानी से देखा जा सकता है। यह मध्यप्रदेश का एक ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जो 32 पहाड़ियों से घिरा है यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं। बाघों का गढ़ (बांधवगढ़?) 448 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। इस उद्यान में एक मुख्य पहाड़ है जो 'बांधवगढ़' कहलाता है। 811 मीटर ऊँचे इस पहाड़ के पास छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं। पार्क में साल और बंबू के वृक्ष प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाते हैं। बाँधवगढ़ से सबसे नजदीक विमानतल जबलपुर में है जो 164 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग से भी बाँधवगढ़ जबलपुर, कटनी और सतना से जुड़ा है। खजुराहो से बाँधवगढ़ के बीच 237 किलोमीटर की दूरी है। दोनों स्थानों के बीच केन नदी के कुछ हिस्सों को क्रोकोडाइल रिजर्व घोषित किया गया है। .

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बजरंगबली मंदिर,सहसपुर,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक बजरंगली मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में सहसपुर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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बूढेश्वर शिव मंदिर तथा चतुर्भुजी मंदिर,धमधा,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक बूढेश्वर शिव मंदिर तथा चतुर्भुजी मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में धमधा नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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भानगढ़ दुर्ग

भानगढ़ दुर्ग भारत के राजस्थान में स्थित १७वीं शताब्दी में निर्मित एक दुर्ग है। इसे मान सिंह प्रथम ने अपने छोटे भाई माधो सिंह प्रथम के लिए बनवाया था। इस दुर्ग का नाम भान सिंह के नाम पर है जो माधो सिंह के पितामह थे। इस दुर्ग की सीमा के बाहर एक नया गाँव बसा है जिसमें लगभग २०० घर और जनसंख्या १३०० है। यह दुर्ग और इसका अहाता अच्छी तरह संरक्षित है। इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा इस क्षेत्र में सूर्यास्‍त के बाद किसी भी व्‍यक्ति के रूकने की अनुमति नहीं है। दिन में आप भानगढ़ दुर्ग और यहां के खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेवे। सूर्योदय के बाद ओर सूर्यास्त से पहले किसी भी प्रकार का कोई डर नही है। dineshmeenabhangarh.blogspot.com .

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भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी.

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भारत का भूगोल

भारत का भूगोल या भारत का भौगोलिक स्वरूप से आशय भारत में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। दक्षिण एशिया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित यह देश अपने ३२,८७,२६३ वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग १.३ अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। भारत की भौगोलिक संरचना में लगभग सभी प्रकार के स्थलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके उत्तर में विशाल हिमालय की पर्वतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दक्षिण में विस्तृत हिंद महासागर, एक ओर ऊँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो वहीं विशाल और समतल सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, थार के विस्तृत मरुस्थल में जहाँ विविध मरुस्थलीय स्थलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। कर्क रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु भी पायी जाती है। मिट्टी, वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से भी भारत में काफ़ी भौगोलिक विविधता है। प्राकृतिक विविधता ने यहाँ की नृजातीय विविधता और जनसंख्या के असमान वितरण के साथ मिलकर इसे आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विविधता प्रदान की है। इन सबके बावजूद यहाँ की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक एकता इसे एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करती है। हिमालय द्वारा उत्तर में सुरक्षित और लगभग ७ हज़ार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा के साथ हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर स्थित भारत का भू-राजनैतिक महत्व भी बहुत बढ़ जाता है और इसे एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करता है। .

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भारत के दुर्ग

यह सूची भारत में स्थित दुर्गों की है:-.

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भारत के शहरों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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भारतीय दुर्ग

सभी राजाओं की राजधानी एक दुर्ग होती थी जिसके चारों ओर नगर बस जाता था। यह स्थिति दक्षिण एशिया के अनेक नगरों में देखी जा सकती है, जैसे दिली, आअगरा, लाहौर, पुणे, कोलकाता, मुम्बई आदि। भारत के दो दुर्ग यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में सम्मिलित हैं- आगरे का किला और लाल किला। भटिण्डा स्थित किला मुबारक भारत का सबसे प्राचीन किला है जो अब भी बचा हुआ है। इसका निर्माण कुषाण साम्राज्य के समय लगभग १०० ई में हुआ था। कांगड़ा दुर्ग जो कांगड़ा वंश द्वारा महाभारत युद्ध के बाद निर्मित किया गया था, य वंश अब भी बचा हुआ है। इस दुर्ग के विषय में सिकन्दर महान के लिपिकों ने लिखा है। अतः यह सर्वाधिक प्राचीन दुर्ग था। .

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भारतीय दुर्गों की सूची

यहाँ भारत स्थित दुर्गों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय राजनय का इतिहास

यद्यपि भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि वह एक छत्र शासक के अन्तर्गत न रहकर विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित रहा था तथापि राजनय के उद्भव और विकास की दृष्टि से यह स्थिति अपना विशिष्ट मूल्य रखती है। यह दुर्भाग्य उस समय और भी बढ़ा जब इन राज्यों में मित्रता और एकता न रहकर आपसी कलह और मतभेद बढ़ते रहे। बाद में कुछ बड़े साम्राज्य भी अस्तित्व में आये। इनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध थे। एक-दूसरे के साथ शांति, व्यापार, सम्मेलन और सूचना लाने ले जाने आदि कार्यों की पूर्ति के लिये राजा दूतों का उपयोग करते थे। साम, दान, भेद और दण्ड की नीति, षाडगुण्य नीति और मण्डल सिद्धान्त आदि इस बात के प्रमाण हैं कि इस समय तक राज्यों के बाह्य सम्बन्ध विकसित हो चुके थे। दूत इस समय राजा को युद्ध और संधियों की सहायता से अपने प्रभाव की वृद्धि करने में सहायता देते थे। भारत में राजनय का प्रयोग अति प्राचीन काल से चलता चला आ रहा है। वैदिक काल के राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है। महाकाव्य तथा पौराणिक गाथाओं में राजनयिक गतिविधियों के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन भारतीय राजनयिक विचार का केन्द्र बिन्दु राजा होता था, अतः प्रायः सभी राजनीतिक विचारकों- कौटिल्य, मनु, अश्वघोष, बृहस्पति, भीष्म, विशाखदत्त आदि ने राजाओं के कर्तव्यों का वर्णन किया है। स्मृति में तो राजा के जीवन तथा उसका दिनचर्या के नियमों तक का भी वर्णन मिलता है। राजशास्त्र, नृपशास्त्र, राजविद्या, क्षत्रिय विद्या, दंड नीति, नीति शास्त्र तथा राजधर्म आदि शास्त्र, राज्य तथा राजा के सम्बन्ध में बोध कराते हैं। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, कामन्दक नीति शास्त्र, शुक्रनीति, आदि में राजनय से सम्बन्धित उपलब्ध विशेष विवरण आज के राजनीतिक सन्दर्भ में भी उपयोगी हैं। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद राजा को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जासूसी, चालाकी, छल-कपट और धोखा आदि के प्रयोग का परामर्श देते हैं। ऋग्वेद में सरमा, इन्द्र की दूती बनकर, पाणियों के पास जाती है। पौराणिक गाथाओं में नारद का दूत के रूप में कार्य करने का वर्णन है। यूनानी पृथ्वी के देवता 'हर्मेस' की भांति नारद वाक चाटुकारिता व चातुर्य के लिये प्रसिद्ध थे। वे स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य एक-दूसरे राजाओं को सूचना लेने व देने का कार्य करते थे। वे एक चतुर राजदूत थे। इस प्रकार पुरातन काल से ही भारतीय राजनय का विशिष्ट स्थान रहा है। .

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भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भिलाई प्रौद्योगिकी संस्थान

भिलाई प्रौद्योगिकी संस्थान (The Bhilai Institute of Technology (BIT) दुर्ग में स्थित इंजीनियरी महाविद्यालय है। यह मध्य भारत का प्रथम स्ववित्तपोषित इंजीनियरी महाविद्यालय है। इसकी स्थापना १९८६ में की गयी थी। .

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भूपेश बघेल

भूपेश बघेल (जन्म 23 अगस्त 1961) एक भारतीय राजनेता, से छत्तीसगढ़.

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मढियापाट (ध्वस्त मंदिर),डोंडी लोहारा,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक मढियापाट (ध्वस्त मंदिर), छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में डोंडी लोहारा नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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महापाषाणीय स्थल,धनोरा,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक महापाषाणीय स्थल छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में करकाभाट नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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महापाषाणीय स्मारक,भुजगहन,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक महापाषाणीय स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में भुजगहन नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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महापाषाणीय स्मारक,करहीभदर,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक महापाषाणीय स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में करहीभदर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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महापाषाणीय स्मारक,करकाभाट,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक महापाषाणीय स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में करकाभाट नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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महापाषाणीय स्मारक,कुलिया,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक महापाषाणीय स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में कुलिया नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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माँ पीताम्बरा बगलामुखी मंदिर (अमलेश्वर)

माँ पीताम्बरा बगलामुखी मन्दिर छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें पीताम्बरा भी कहते हैं। मंदिर रायपुर हवाईअड्डे से १५, रायपुर रेलवे स्टेशन से ५ और दुर्ग शहर से लगभग २५ किलोमीटर पर महादेव घाट से पाटन-दुर्ग सड़क पर स्थित है। इस मंदिर में बगलामुखी के साथ-साथ भैरव और शिव-शक्ति की प्रतिमाएँ भी हैं। मंदिर का निर्माण पीताम्बरा पीठाधीश्वर युधिष्ठिर महाराज द्वारा १६ मई २००५ में करवाया गया था। .

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माधोगढ़ दुर्ग

माधोगढ़ दुर्ग राजस्थान के एक गाँव "माधोगढ़ गाँव" में स्थित एक दुर्ग है लेकिन वर्तमान में एक हेरिटेज़ होटल है। यह जयपुर से 42 किमी की दुरी पर स्थित है। इस दुर्ग का निर्माण श्री माधोसिंह जी ने करवाया। सन 2000 में ठाकुर भवानी सिंह जी ने इसे हेरिटेज़ होटल में बदल दिया था। .

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मंडन सूत्रधार

मंडन, महाराणा कुंभा (1433-1468 ई0) के प्रधान सूत्रधार (वास्तुविद) तथा मूर्तिशास्त्री थे। वह वास्तुशास्त्र के प्रकांड पण्डित तथा शास्त्रप्रणेता थे। इन्होंने पूर्वप्रचलित शिल्पशास्त्रीय मान्यताओं का पर्याप्त अध्ययन किया था। इनकी कृतियों में मत्स्यपुराण से लेकर अपराजितपृच्छा और हेमाद्रि तथा गोपाल के संकलनों का प्रभाव था। मंडन सूत्रधार केवल शास्त्रज्ञ ही न था, अपितु उसे वास्तुशास्त्र का प्रयोगात्मक अनुभव भी था। कुंभलगढ़ का दुर्ग, जिसका निर्माण उसने 1458 ई0 के लगभग किया, उसकी वास्तुशास्त्रीय प्रतिभा का साक्षी है। यहाँ से मिली मातृकाओं और चतुर्विंशति वर्ग के विष्णु की कुछ मूर्तियों का निर्माण भी संभवत: इसी के द्वारा या इसी की देखरेख में हुआ। मंडन, मेदपाट (मेवाड़) का रहनेवाला था। इसके पिता का नाम 'षेत' या 'क्षेत्र' था जो संभवत: गुजराती था और कुंभा के शासन के पूर्व ही गुजरात से जाकर मेवाड़ में बस गया था। .

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मंडावा

मंडावा भारत में राजस्थान के झुन्झुनु जिले में एक शहर है। शेखावाटी क्षेत्र का हिस्सा है। मंडावा उत्तर में जयपुर से 190 किमी स्थित है। मंडावा अपने किले और हवेली के लिए जाना जाता है। .

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मंडोर

मंडोर (अँग्रेजी: Mandore), जोधपुर शहर में रेलवे स्टेशन से ९ किलोमीटर की दूरी पर है। .

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मुरैना ज़िला

मुरैना मध्य प्रदेश राज्य का एक जिला है। इसका मुख्यालय मुरैना में है। जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 50 प्रतिशत भाग खेती योग्य है। जिले का 42.94 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित हैं। नहर इस क्षेत्र की सिंचाई का मुख्य साधन है। जिले की मुख्य फसल गेहूँ है। सरसों का उत्पादन भी जिले में प्रचुर मात्रा में होता है। खरीफ की मुख्य फसल बाजरा है। यह जिला कच्ची घानी के सरसों के तेल के लिये पूरे मध्य प्रदेश में जाना जाता है। इस जिले में पानी की आपूर्ति चम्बल, कुँवारी, आसन और शंक नदियों द्वारा होती है। चम्बल नदी का उद्गम इन्दौर जिले से हुआ है। यह नदी राजस्थानी इलाके से लगती हुई उत्तर-पश्चिमी सीमा में बहती है। .

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मुंदोता दुर्ग और महल

मुंदोता दुर्ग और महल लगभग १५५० में बनाया गया एक दुर्ग तथा महल है। यह दुर्ग राजपूती वास्तुकला तथा मुग़ल वास्तुकला में निर्मित है यह जयपुर के मुंदोता कस्बे में स्थित है। मुंदोता पर नथावत वंश के कच्छहवा राजवंश के शासकों ने शासन किया था। Mandawa, Devi Singh.

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मेहरानगढ़

मेहरानगढ़ दुर्गचामुंडा माता मंदिर मेहरानगढ दुर्ग भारत के राजस्थान प्रांत में जोधपुर शहर में स्थित है। पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशालकाय किला, पथरीली चट्टान पहाड़ी पर, मैदान से १२५ मीटर ऊँचाई पर स्थित है और आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के चार द्वार हैं। किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ और प्रेरित करने वाले नाम हैं। इनमें से उल्लेखनीय हैं मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का विस्मयकारी संग्रह निहित है। इसके अतिरिक्त पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है। यह किला भारत के प्राचीनतम किलों में से एक है और भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की २४ संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने तत्कालीन किले से ९ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने का विचार प्रस्तुत किया। इस पहाड़ी को भोर चिडिया के नाम से जाना जाता था, क्योंकि वहाँ काफ़ी पक्षी रहते थे। राव जोधा ने १२ मई १४५९ को इस पहाडी पर किले की नीव डाली महाराज जसवंत सिंह (१६३८-७८) ने इसे पूरा किया। मूल रूप से किले के सात द्वार (पोल) (आठवाँ द्वार गुप्त है) हैं। प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं। अन्य द्वारों में शामिल जयपोल द्वार का निर्माण १८०६ में महाराज मान सिंह ने अपनी जयपुर और बीकानेर पर विजय प्राप्ति के बाद करवाया था। फतेह पोल अथवा विजय द्वार का निर्माण महाराज अजीत सिंह ने मुगलों पर अपनी विजय की स्मृति में करवाया था। राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने १४६० मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि अधिसंख्य जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मेहरानगढ दुर्ग की नींव में ज्योतिषी गणपत दत्त के ज्योतिषीय परामर्श पर ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (तदनुसार, 12 मई 1459 ई) वार शनिवार को राजाराम मेघवाल को जीवित ही गाड़ दिया गया। राजाराम के सहर्ष किये हुए आत्म त्याग एवम स्वामी-भक्ति की एवज में राव जोधाजी राठोड़ ने उनके वंशजो को मेहरानगढ दुर्ग के पास सूरसागर में कुछ भूमि भी दी (पट्टा सहित), जो आज भी राजबाग के नाम से प्रसिद्ध हैं। होली के त्यौहार पर मेघवालों की गेर को किले में गाजे बाजे के साथ जाने का अधिकार हैं जो अन्य किसी जाति को नही है। राजाराम का जन्म कड़ेला गौत्र में केसर देवी की कोख से हुआ तथा पिता का नाम मोहणसी था। .

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रणथम्भोर दुर्ग

रणथंभोर दुर्ग दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से १३ कि॰मी॰ दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से ४८१ मीटर ऊंचाई पर १२ कि॰मी॰ की परिधि में बना एक दुर्ग है। दुर्ग के तीनो और पहाडों में प्राकृतिक खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है। यूनेस्को की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में 21 जून 2013 को रणथंभोर को विश्व धरोहर घोषित किया गया। यह राजस्थान का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। .

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रायगढ़

रायगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड में पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध दुर्ग है। इसे छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था और १६७४ में इसे अपनी राजधानी बनाया। रायगड पश्चिमी भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है। यह मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के ठीक दक्षिण में महाराष्ट्र में स्थित है। यह कोंकण समुद्रतटीय मैदान का हिस्सा है, इसका क्षेत्र लहरदार और आड़ी-तिरछी पहाड़ियों वाला है, जो पश्चिमी घाट (पूर्व) की सह्याद्रि पहाड़ियों की खड़ी ढलुआ कगारों से अरब सागर (पश्चिम) के ऊँचे किनारों तक पहुँचता है। यह किला सह्याद्री पर्वतरांग मे स्थित है.

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

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राखीगढ़ी

हारियाणा हरियानणा राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार ज़िले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। राखीगढ़ी सिन्धु घाटी सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में धोलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है। राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया। राखीगढ़ी से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं। राखीगढ़ी से महत्त्वपूर्ण स्मारक एवं पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें दुर्ग-प्राचीर, अन्नागार, स्तम्भयुक्त वीथिका या मण्डप, जिसके पार्श्व में कोठरियाँ भी बनी हुई हैं, ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएँ आदि मुख्य हैं। .

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रविन्द्र चौबे

श्री रविन्द्र चौबे (जन्म:२८ मई १९५७) एक भारतीय राजनेता है और दिनांक ५ जनवरी २००९ से 11 दिसंबर 2013 तक विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष चुने गए हैं। आप छत्तीसगढ़ राज्य के तीसरे नेता प्रतिपक्ष है और बेमेतरा जिले के साजा धमधा विधानसभा से छत्तीसगढ़ विधानसभा के छाया विधायक भी हैं। कुछ सामान्य जानकारी - जन्मतिथि- 28,May,1957 बच्चे - 2 शिक्षा - B.Sc.,L.L.B. आपका सफर - President, Govt.

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रूपनगढ़ दुर्ग

रूपनगढ़ दुर्ग (अंग्रेजी:Roopangarh Fort) एक पूर्व का दुर्ग था जो वर्तमान में एक होटल है। यह भारतीय राज्य राजस्थान के रूपनगढ़ में स्थित है इसका निर्माण महाराज रूप सिंह ने करवाया था। .

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रोहतास दुर्ग

रोहतासगढ़ दुर्ग या रोहतास दुर्ग, बिहार के रोहतास जिले में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। यह भारत के सबसे प्राचीन दुर्गों में से एक है। यह बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 और डेहरी आन सोन से 43 किलोमीटर की दूरी पर सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 1500 मीटर ऊँचा है। कहा जाता है कि इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र व राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। बहुत दिनों तक यह हिन्दू राजाओं के अधिकार में रहा, लेकिन 16वीं सदी में मुसलमानों के अधिकार में चला गया और अनेक वर्षों तक उनके अधीन रहा। इतिहासकारों का मत है कि किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कराया था, ताकि कोई किले पर हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था। रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेरा ४५ किमी तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं, जिनमें मुख्य चार- घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है। .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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लोहागढ़ दुर्ग

लोहागढ़ दुर्ग एक दुर्ग अथवा एक किला है जो भारतीय राज्य राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। दुर्ग का निर्माण भरतपुर के जाट वंश के महाराजा सूरजमल ने 1733 ई. में करवाया था। यह भारत का एकमात्र अजेय दुर्ग हैं। अतः इसको अजय गढ़ का दुर्ग भी कहते हैं। इसके चारों ओर मिट्टी की दोहरी प्राचीर बनी हैं। अतः इसको मिट्टी का दुर्ग भी कहते हैं। किले के चारों ओर एक गहरी खाई हैं, जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया हैं। इस किले में दो दरवाजे हैं। इनमें उत्तरी द्वार अष्टधातु का बना है, जिसे जवाहर सिंह जाट 1765 ई. में दिल्ली विजय के दोहरान लाल किले से उतरकर लाएँ थे। दीवाने खास के रूप में प्रयुक्त कचहरी कला का उदाहरण हैं। भरतपुर राज्य के जाट राजवंस के राजओ का राज्याभिषेक जवाहर बुर्ज में होता था। इस किले पर कई आक्रमण हुए हैं, लेकिन इसे कोई भी नहीं जीत पाया। इस पर कई पड़ोसी राज्यों, मुस्लिम आक्रमणकारीयो तथा अंग्रेजो ने आक्रमण किया, लेकिन सभी असफल रहे। 1803 ई. में लार्ड लेक ने बारूद भरकर इसे उड़ाने का असफल प्रयास किया था। यहां पर फतेह बुर्ज का निर्माण ब्रिटिश सेना पर विजय को चिरस्थायी बनाने के लिए करवाया गया था। .

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शनिवार वाड़ा

शनिवार वाड़ा (अंग्रेजी:Shaniwarwada) (Śanivāravāḍā) भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक दुर्ग है जिनका निर्माण १८वीं सदी में १७४६ में किया था। यह मराठा पेशवाओं की सीट थी। जब मराठाओं ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से नियंत्रण खो दिया तो तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ था तब मराठों ने इसका निर्माण करवाया था। दुर्ग खुद को काफी हद तक एक अस्पष्टीकृत आग से १८३८ में नष्ट हो गया था, लेकिन जीवित संरचनाएंअब एक पर्यटक स्थल के रूप में स्थित है। मराठा साम्राज्य में पेशवा बाजीराव जो कि छत्रपति शाहु के प्रधान (पेशवा) थे इन्होंने ने ही शनिवार वाड़ा का निर्माण करवाया था। शनिवार वाड़ा का मराठी में मतलब शनिवार (शनिवार/Saturday) तथा वाड़ा का मतलब टीक होता है। .

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शिमशाल

शिमशाल (Shimshal) पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलतिस्तान क्षेत्र के हुन्ज़ा-नगर ज़िले की गोजाल तहसील में स्थित एक गाँव है। यह ३,१०० मीटर की ऊँचाई पर बसा हुआ है और हुन्ज़ा वादी की सबसे ऊँची बस्ती है। शिमशाल गाँव में वाख़ी भाषा बोलने वाले लगभग २,००० लोग रहते हैं जो शिया धर्म की इस्माइली शाखा के अनुयायी हैं। यहाँ पहुँचना बहुत कठिन हुआ करता था लेकिन अक्टूबर २००३ के बाद पस्सू से यहाँ सड़क बनाकर इसे काराकोरम राजमार्ग से जोड़ दिया गया।, Lindsay Brown, Paul Clammer, Rodney Cocks, John Mock, pp.

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शिल्पशास्त्र

शिल्पशास्त्र वे प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ हैं जिनमें विविध प्रकार की कलाओं तथा हस्तशिल्पों की डिजाइन और सिद्धान्त का विवेचन किया गया है। इस प्रकार की चौसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है जिन्हे 'बाह्य-कला' कहते हैं। इनमें काष्ठकारी, स्थापत्य कला, आभूषण कला, नाट्यकला, संगीत, वैद्यक, नृत्य, काव्यशास्त्र आदि हैं। इनके अलावा चौसठ अभ्यन्तर कलाओं का भी उल्लेख मिलता है जो मुख्यतः 'काम' से सम्बन्धित हैं, जैसे चुम्बन, आलिंगन आदि। यद्यपि सभी विषय आपस में सम्बन्धित हैं किन्तु शिल्पशास्त्र में मुख्यतः मूर्तिकला और वास्तुशास्त्र में भवन, दुर्ग, मन्दिर, आवास आदि के निर्माण का वर्णन है। .

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शिव मंदिर, पलारी, दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में पलारी नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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शिव मंदिर,नगपुरा,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में नगपुरा नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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शिव मंदिर,सहसपुर,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में सहसपुर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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शिव मंदिर,जगन्नाथपुर,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में जगन्नाथपुर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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शिवाजी

छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले (१६३० - १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। .

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श्री शंकराचार्य अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय

श्री शंकराचार्य के संस्थानों के समूह का अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी संकाय,  (पूर्व श्री शंकराचार्य कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी (SSCET)) भिलाई, छत्तीसगढ़, भारत, में स्थित एक अभियांत्रिकी महाविद्यालय है। इसका नाम आदि गुरु शंकराचार्य क नाम पर रखा गया है। १९९९  में स्थापित, यह छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय, भिलाई से सम्बद्ध है। यह श्री शंकराचार्य संस्थानों के समूह कि एक इकाई है। .

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सिसोदिया (राजपूत)

सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया यासिसोदिया एक राजपूत राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी राजपूत थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं। 'गुहिल' या 'गेहलोत' 'गुहिलपुत्र' शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत: ब्राह्मण मानते हैं, किंतु वे स्वयं अपने को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है। कुछ समय तक चित्तौड़ प्रतिहारों के अधिकार में रहा और गुहिल उनके अधीन रहे। भर्तृ पट्ट द्वितीय के समय गुहिल फिर सशक्त हुए और उनके पुत्र अल्लट (विक्रम संवत् १०२४) ने राजा देवपाल को हराया जो डा.

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सुरेंद्र दुबे

सुरेंद्र दुबे (Surendra Dubey) कॉमिक कविताओं के एक भारतीय व्यंग्यवादी और लेखक हैं। वह पेशे से एक आयुर्वेदिक चिकित्सक भी हैं। दुबे का जन्म 8 जनवरी 1953 को भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में दुर्ग के बेमेतरा में हुआ था। उन्होंने पांच किताबें लिखी हैं वह कई मंचो और टेलीविजन शो पर दिखाई दिया है। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2010 में, देश के चौथे उच्चतम भारतीय नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वह 2008 में काका हाथ्री से हसया रत्न पुरस्कार के भी प्राप्तकर्ता हैं। .

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हम्मीर चौहान

हम्मीर देव चौहान, पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। उन्होने रणथंभोर पर १२८२ से १३०१ तक राज्य किया। वे रणथम्भौर के सबसे महान शासकों में सम्मिलित हैं। हम्मीर देव का कालजयी शासन चौहान काल का अमर वीरगाथा इतिहास माना जाता है। हम्मीर देव चौहान को चौहान काल का 'कर्ण' भी कहा जाता है। पृथ्वीराज चौहान के बाद इनका ही नाम भारतीय इतिहास में अपने हठ के कारण अत्यंत महत्व रखता है। राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतिभा सम्पन शासक हम्मीर देव को ही माना जाता है। इस शासक को चौहान वंश का उदित नक्षत्र कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। डॉ॰ हरविलास शारदा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का प्रथम पुत्र था और इनके दो भाई थे जिनके नाम सूरताना देव व बीरमा देव थे। डॉक्टर दशरथ शर्मा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था वहीं गोपीनाथ शर्मा के अनुसार सभी पुत्रों में योग्यतम होने के कारण जैत्रसिंह को हम्मीर देव अत्यंत प्रिय था। हम्मीर देव के पिता का नाम जैत्रसिंह चौहान एवं माता का नाम हीरा देवी था। यह महाराजा जैत्रसिंह चौहान के लाडले एवं वीर बेटे थे। .

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हिन्दुओं का उत्पीड़न

हिन्दुओं का उत्पीडन हिन्दुओं के शोषण, जबरन धर्मपरिवर्तन, सामूहिक नरसहांर, गुलाम बनाने तथा उनके धर्मस्थलो, शिक्षणस्थलों के विनाश के सन्दर्भ में है। मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा मलेशिया आदि देशों में हिन्दुओं को उत्पीडन से गुजरना पड़ा था। आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सो में ये स्थिति देखने में आ रही है। .

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हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकायें

हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएँ, हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास और संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभाती रहीं हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, आलोचना, यात्रावृत्तांत, जीवनी, आत्मकथा तथा शोध से संबंधित आलेखों का नियमित तौर पर प्रकाशन इनका मूल उद्देश्य है। अधिकांश पत्रिकाओं का संपादन कार्य अवैतनिक होता है। भाषा, साहित्य तथा संस्कृति अध्ययन के क्षेत्र में साहित्यिक पत्रिकाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। वर्तमान में प्रकाशित कुछ प्रमुख पत्रिकाओं की सूची निम्नवत है: .

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जयपुर

जयपुर जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर भारत का दसवां सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा। जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली,आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ और २०१२ के बाद ३५ लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। .

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जयपुर जिला

- जयपुर (राजस्थानी: जैपर) जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, भारत में राजस्थान राज्य की राजधानी है। आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना १७२८ में आंबेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। १८७६ में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं। बाद में एक और द्वार भी बना जो न्यू गेट कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह १११ फुट (३४ मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। पाँच भाग मध्य प्रासाद भाग को पूर्वी, दक्षिणी एवं पश्चिमी ओर से घेरे हुए हैं और छठा भाग एकदम पूर्व में स्थित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शह के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वेधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं। जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम आज भी प्रसिद्ध है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। १९वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या १,६०,००० थी जो अब बढ़ कर २००१ के आंकड़ों के अनुसार २३,३४,३१९ हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। इस शहर की वास्तु के बारे में कहा जाता है, कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नही मिलेगा। .

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जसवंत थड़ा

जोधपुर दुर्ग मेहरानगढ़ के पास ही सफ़ेद संगमरमर का एक स्मारक बना है जिसे जसवंत थड़ा कहते हैं। इसे सन 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी (द्वितीय)(1888-1895) की यादगार में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह जी ने बनवाया था। यह स्थान जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के लिये सुरक्षित रखा गया है। इससे पहले राजपरिवार के सदस्यों का दाह संस्कार मंडोर में हुआ करता था। इस विशाल स्मारक में संगमरमर की कुछ ऐसी शिलाएँ भी दिवारों में लगी है जिनमे सूर्य की किरणे आर-पार जाती हैं। इस स्मारक के लिये जोधपुर से 250 कि, मी, दूर मकराना से संगमरमर का पत्थर लाया गया था। स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढा देती है इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह जी (1724-1749) ने करवाया था। जसवंत थड़े के पास ही महाराजा सुमेर सिह जी, महाराजा सरदार सिंह जी, महाराजा उम्मेद सिंह जी व महाराजा हनवन्त सिंह जी के स्मारक बने हुए हैं। इस स्मारक को बनाने में 2,84,678 रूपए का खर्च आया था। .

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जिंजी दुर्ग

जिंजी दुर्ग या सेंजी दुर्ग तमिलनाडु में स्थित एक दुर्ग है। यह दुर्ग विल्लुपुरम जिले में पुद्दुचेरी के पास स्थित है। यह इस प्रकार निर्मित है कि छत्रपति शिवाजी ने इस किले को भारत का सबसे 'अभेद्य दुर्ग' कहा था। अंग्रेजों ने इसे 'पूरब का ट्रॉय' कहा था। जिंजी दुर्ग दक्षिण भारत के उत्‍कृष्‍टतम किलों में से एक है। इसका निर्माण नौंवी शताब्‍दी में कराया गया था, जब यह चोल राजवंश के अधिकार में था, किन्‍तु यह किला आज जिस रूप में है वह विजय नगर के राजा का कठिन कार्य है, जिन्‍होंने इसे एक अभेद्य दुर्ग बनाया। सन् 1677 ई. में शिवाजी ने जिंजी के दुर्ग को बीजापुर से छीन लिया और अपनी कर्नाटक सरकार की राजधानी बना दिया। शिवाजी की मृत्यु के बाद जिंजी पूर्वी तट पर मराठों के स्वातंत्र्य युद्ध का प्रमुख केन्द्र बन गया। श्रेणी:भारत के दुर्ग.

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जूनागढ़ दुर्ग

जूनागढ़ दुर्ग, राजस्थान के बीकानेर में स्थित है। मूलतः इसका नाम चिन्तामणि था। यह राजस्थान के उन मुख्य दुर्गों में से एक है जो पहाड़ी पर नहीं बने हैं।Michell p. 222Ring pp.

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घुघुसराजा मंदिर,देवकर,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक घुघुसराजा मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में देवकर नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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घेरा

कुस्तुंतुनिया का घेरा येरुशलम की जीत (१०९९ ई) घेरा (siege) का अर्थ है किसी नगर या दुर्ग को सैनिकों द्वारा घेरना ताकि इसको जीता जा सके। घेरा डालकर युद्ध करना एक प्रकार का लगातार चलने वाला किन्तु कम तीव्रता का युद्ध है जिसमें एक पक्ष रक्षात्मक रवैया अपनाते हुए किसी दुर्ग या दीवार के अन्दर 'मजबूत' स्थिति में होता है और दूसरा पक्ष उसे चारों ओर से घेरे रहता है ताकि बाहर से अन्दर कोई न जा पाये न ही अन्दर से कोई भाग निकलने में सफल हो। इस तरह की घेराबन्दी के द्वारा शत्रु की भोजन सामग्री, जलापूर्ति, एवं अन्य सभी सुविधाएँ रोक दी जातीं हैं। इसके अलावा 'घेरा इंजनों' (सीज इंजन), तोप, सुरंग आदि के द्वारा शत्रु पर प्रहार किया जाता है। श्रेणी:युद्ध.

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वरंगल दुर्ग

वारंगल् दुर्ग तेलंगण के वरंगल में स्थित एक दुर्ग है। इसका निर्माण १३९९ ई में हुआ था। काकतीय वंश के गजपति देव तथा उनकी पुत्री रुद्रम्मा ने इस विशाल दुर्ग का निर्माण कराया था। श्रेणी:भारतीय दुर्ग.

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विष्णु मंदिर, बानवरद, दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक विष्णु मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में वानवरद नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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विजयपुर, मध्यप्रदेश

विजयपुर या विजैपुर मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले की एक नगर पंचायत एवं नगर है। यह कुवारी नदी के तट पर बसा हुआ है। यहाँ का दुर्ग प्रसिद्ध है। .

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वेणुगंगा

वेणुगंगा नदी मध्य प्रदेश राज्य की महादेव पहाड़ी के पूर्वी भाग से निकलती है और दक्षिण में गोदावरी की सहायक प्राणहिता नदी से मिल जाती है। इसकी घाटी की रचना आद्यमहाकल्पी चट्टानों की है। घाटी अधिक ऊँचा नीचा लगभग १००० फुट ऊँचा भूभाग है। यहाँ भारत का ६० प्रतिशत मैंगनीज़ प्राप्त होता है। कुछ छोटे छोटे कोयला क्षेत्र भी मिलते हैं। दक्षिण में दुर्ग और चाँदा जिलों में उत्तम लोहा प्राप्त होता है। श्रेणी:भारत की नदियाँ श्रेणी:नदी.

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खड़िया आदिवासी

खड़िया महिला खड़िया, मध्य भारत की एक जनजाति है। यह जनजाति आस्ट्रालॉयड मानव-समूह का अंग है और इनकी भाषा आस्ट्रिक भाषा परिवार की आस्ट्रोएशियाटिक शाखा के मुंडा समूह में आती है। जनसंख्या की दृष्टि से मुंडा समूह में संताली, मुंडारी और हो के बाद खड़िया का स्थान है। खड़िया आदिवासियों का निवास मध्य भारत के पठारी भाग में है, जहाँ ऊँची पहाड़ियाँ, घने जंगल और पहाड़ी नदियाँ तथा झरने हैं। इन पहाड़ों की तराइयों में, जंगलों के बीच समतल भागों और ढलानों में इनकी घनी आबादी है। इनके साथ आदिवासियों के अतिरिक्त कुछ दूसरी सदान जातियाँ तुरी, चीक बड़ाईक, लोहरा, कुम्हार, घाँसी, गोंड, भोगता आदि भी बसी हुई हैं। खड़िया समुदाय मुख्यतः एक ग्रामीण खेतिहर समुदाय है। इसका एक हिस्सा आहार-संग्रह अवस्था में है। शिकार, मधु, रेशम के कोये, रस्सी और फल तथा जंगली कन्दों पर इनकी जीविका आधारित है। जंगल साफ करके खेती द्वारा गांदेली, मडुवा, उरद, धन आदि पैदा कर लेते हैं। .

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खर्ग

खर्ग नखलिस्तान की स्थिति (नीचे वाले भाग के केन्द्र में) खर्ग (Kharga Oasis; मिस्री अरबी: الخارجة el-Ḵarga उच्चारण) मिस्र के पाँच नखलिस्तानों में से सबसे दक्षिणी नखलिस्तान है। .

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ख़ैबर दर्रा

ख़ैबर दर्रा ख़ैबर दर्रा ख़ैबर दर्रा या दर्र-ए-ख़ैबर (Khyber Pass) उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफगानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिंदुकुश के सफेद कोह पर्वत शृंखला में स्थित एक प्रख्यात ऐतिहासिक दर्रा है। यह दर्रा ५० किमी लंबा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल १० फुट चौड़ा है। यह सँकरा मार्ग ६०० से १००० फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है। इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आया-जाया सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। ख़ैबर दर्रे का सबसे ऊँचा स्थान पाकिस्तान के संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र की लंडी कोतल (لنڈی کوتل, Landi Kotal) नामक बस्ती के पास पड़ता है। इस दर्रे के इर्द-गिर्द पश्तून लोग बसते हैं। पेशावर से काबुल तक इस दर्रे से होकर अब एक सड़क बन गई है। यह सड़क चट्टानी ऊसर मैदान से होती हुई जमरूद से, जो अंग्रेजी सेना की छावनी थी और जहाँ अब पाकिस्तानी सेना रहती है, तीन मील आगे शादीबगियार के पास पहाड़ों में प्रवेश करती है और यहीं से खैबर दर्रा आरंभ होता है। कुछ दूर तक सड़क एक खड्ड में से होकर जाती है फिर बाई और शंगाई के पठार की ओर उठती है। इस स्थान से अली मसजिद दुर्ग दिखाई पड़ता है जो दर्रे के लगभग बीचोबीच ऊँचाई पर स्थित है। यह दुर्ग अनेक अभियानों का लक्ष्य रहा है। पश्चिम की ओर आगे बढ़ती हुई सड़क दाहिनी ओर घूमती है और टेढ़े-मेढ़े ढलान से होती हुई अली मसजिद की नदी में उतर कर उसके किनारे-किनारे चलती है। यहीं खैबर दर्रे का सँकरा भाग है जो केवल पंद्रह फुट चौड़ा है और ऊँचाई में २,००० फुट है। ५ किमी आगे बढ़ने पर घाटी चौड़ी होने लगती है। इस घाटी के दोनों और छोटे-छोटे गाँव और जक्काखेल अफ्रीदियों की लगभग साठ मीनारें है। इसके आगे लोआर्गी का पठार आता है जो १० किमी लंबा है और उसकी अधिकतम चौड़ाई तीन मील है। यह लंदी कोतल में जाकर समाप्त होता है। यहाँ अंगरेजों के काल का एक दुर्ग है। यहाँ से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है। लंदी कोतल से आगे सड़क छोटी पहाड़ियों के बीच से होती हुई काबुल नदी को चूमती डक्का पहुँचती है। यह मार्ग अब इतना प्रशस्त हो गया है कि छोटी लारियाँ और मोटरगाड़ियाँ काबुल तक सरलता से जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त लंदी खाना तक, जिसे खैबर का पश्चिम कहा जाता है, रेलमार्ग भी बन गया है। इस रेलमार्ग का बनना १९२५ में आरंभ हुआ था। सामरिक दृष्टि में संसार भर में यह दर्रा सबसे अधिक महत्व का समझा जाता रहा है। भारत के 'प्रवेश द्वार' के रूप में इसके साथ अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। समझा जाता है कि सिकन्दर के समय से लेकर बहुत बाद तक जितने भी आक्रामक शक-पल्लव, बाख्त्री, यवन, महमूद गजनी, चंगेज खाँ, तैमूर, बाबर आदि भारत आए उन्होंने इसी दर्रे के मार्ग से प्रवेश किया। किन्तु यह बात पूर्णतः सत्य नहीं है। दर्रे की दुर्गमता और इस प्रदेश के उद्दंड निविसियों के कारण इस मार्ग से सबके लिए बहुत साल तक प्रवेश सहज न था। भारत आनेवाले अधिकांश आक्रमणकारी या तो बलूचिस्तान होकर आए या 2 साँचा:पाकिस्तान के प्रमुख दर्रे श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:पाकिस्तान के पहाड़ी दर्रे श्रेणी:अफ़्गानिस्तान के पहाड़ी दर्रे श्रेणी:पश्तून लोग श्रेणी:ऐतिहासिक मार्ग.

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खारवेल

खारवेल (193 ईसापूर्व) कलिंग (वर्तमान ओडिशा) में राज करने वाले महामेघवाहन वंश का तृतीय एवं सबसे महान तथा प्रख्यात सम्राट था। खारवेल के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी हाथीगुम्फा में चट्टान पर खुदी हुई सत्रह पंक्तियों वाला प्रसिद्ध शिलालेख है। हाथीगुम्फा, भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाड़ियों में है। इस शिलालेख के अनुसार यह जैन धर्म का अनुयायी था। उसने पंडितों की एक विराट् सभा का भी आयोजन किया था, ऐसा उक्त प्रशस्ति से प्रकट होता है। इसके समय के संबंध में मतभेद है। उसकी प्रशस्ति शिलालेख में जो संकेत उपलब्ध हैं उनके आधार पर कुछ विद्वान् उसका समय ईसा पूर्व दूसरी शती में मानते हैं और कुछ उसे ईसा पूर्व की प्रथम शती में रखते हैं। किंतु खारवेल को ईसा पूर्व पहली शताब्दी के उत्तरार्ध में रखनेवाले विद्वानों की संख्या बढ़ रहीं है। .

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खिचिंग

खिचिंग ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित एक प्राचीन ऐतिहासिक गाँव है। यह भंज वंश की प्राचीन राजधानी है। भंज का राजवंश चित्तौड़ के राजपूतों की एक शाखा थी। इस राज्य के दो खंड थे जो क्रमश: खिचिंग और खिंजली कहे जाता थे। इस राजवंश के संस्थापक वीरभद्र थे। उन्हें 'आदि भंज' कहा जाता है। उनके संबंध में जनुश्रुति है कि उनका जन्म किसी पक्षी के अंडे से हुआ था और वशिष्ठ ऋषि ने उनका पालन पोषण किया। खिचिंग में दो दुर्गो के अवशेष हैं जो विराटगढ़ और कीचक गढ़ कहे जाते हैं। भंज राजघराने की देवी चकेश्वरी कही जाती है। वहाँ उनकी एक दर्शनीय मूर्ति है। वहाँ नीलकंठेश्वर महादेव का मंदिर है जो वास्तुकला की दृष्टि से उल्लेखनीय है। वह भुवनेश्वर के मंदिरों की परंपरा में बना है और कदाचित् ११वीं या १२वीं शती का है। श्रेणी:ओड़िशा.

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खेतड़ी

खेतड़ी नगर भारत के पश्चिमी प्रांत राजस्थान के झुन्झुनू जिले का एक कस्बा है। यह शेखावाटी का एक क्षेत्र है। वास्तव में खेतड़ी दो कस्बे हैं एक वह जिसे "खेतड़ी कस्बे" के रूप में जाना जाता है और जिसे राजा खेत सिंहजी निर्वान ने बसाया था। अन्य "खेतड़ी नगर" का कस्बा, जो खेतड़ी से लगभग 10 किमी दूर है। इसे 'ताँबा परियोजना' के रूप में जाना जाता है। खेतड़ी नगर का निर्माण भारत सरकार के एक सार्वजनिक उपक्रम हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड ने किया और उन्हीं के अधिकार में है। यह नगर चारों तरफ से पर्वत द्वारा घिरा है तथा बहुत ही मनोरम है। यहाँ एक किला भी है। समीप में ही ताँबे की खदानें हैं जिनका मुगल काल में बड़ा महत्व था। बीच में यह खान एकदम बंद पड़ी थी। अब पुन: भारतीय ताँबा निगम की ओर से खान चालू की गई हैं और ताँबा प्राप्त किया जा रहा है। .

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गाँव

मध्य भारत का एक गाँव कैसल नाला, विल्टशायर, इंग्लैंड के गाँव के मुख्य सड़क पर. Masouleh गाँव, Gilan प्रांत, ईरान. Saifi गाँव के केंद्र Ville, बेरूत, लेबनान में मुख्य चौराहे Lötschental घाटी, स्विट्जरलैंड में एक अल्पाइन गाँव. ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्राय: गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्राय: बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। परम्परागत रूप से गाँवों में शहरों की अपेक्षा कम सुविधाएं (शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य आदि की) होती हैं।इसे संस्कृत में ग्राम, गुजराती में गाम(गुजराती:ગામ), पंजाबी में पिंड कहते हैं। .

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गोम्पा

लकिर दगोन पा (लद्दाख) गोम्पा या गोम्बा या गोन्पा (तिब्बती: དགོན་པ། / दगोन पा; अर्थ- 'एकान्त स्थान') तिब्बती शैली में बने एक प्रकार के बौद्ध-मठ के भवन या भवनों को कहते हैं। तिब्बत, भूटान, नेपाल और उत्तर भारत के लद्दाख़, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों में यह कई स्थानों में मिलते हैं। भिक्षुओं की सुरक्षा के लिए मज़बूत दिवारों और द्वारों से घिरे यह भवन साधना, पूजा, धार्मिक शिक्षा और भिक्षुओं के निवास के स्थान होते हैं। इनका निर्माण अक्सर एक ज्यामीतीय धार्मिक मण्डल के आधार पर होता है जिसके केन्द्र में बुद्ध की मूर्ति या उन्हें दर्शाने वाली थांका चित्रकला होती है।, Shridhar Kaul, Hriday Nath Kaul, pp.

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आमेर दुर्ग

आमेर दुर्ग (जिसे आमेर का किला या आंबेर का किला नाम से भी जाना जाता है) भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है। यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है। आमेर का कस्बा मूल रूप से स्थानीय मीणाओं द्वारा बसाया गया था, जिस पर कालांतर में कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने राज किया व इस दुर्ग का निर्माण करवाया। यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है। लाल बलुआ पत्थर एवं संगमर्मर से निर्मित यह आकर्षक एवं भव्य दुर्ग पहाड़ी के चार स्तरों पर बना हुआ है, जिसमें से प्रत्येक में विशाल प्रांगण हैं। इसमें दीवान-ए-आम अर्थात जन साधारण का प्रांगण, दीवान-ए-खास अर्थात विशिष्ट प्रांगण, शीश महल या जय मन्दिर एवं सुख निवास आदि भाग हैं। सुख निवास भाग में जल धाराओं से कृत्रिम रूप से बना शीतल वातावरण यहां की भीषण ग्रीष्म-ऋतु में अत्यानन्ददायक होता था। यह महल कछवाहा राजपूत महाराजाओं एवं उनके परिवारों का निवास स्थान हुआ करता था। दुर्ग के भीतर महल के मुख्य प्रवेश द्वार के निकट ही इनकी आराध्या चैतन्य पंथ की देवी शिला को समर्पित एक मन्दिर बना है। आमेर एवं जयगढ़ दुर्ग अरावली पर्वतमाला के एक पर्वत के ऊपर ही बने हुए हैं व एक गुप्त पहाड़ी सुरंग के मार्ग से जुड़े हुए हैं। फ्नोम पेन्ह, कम्बोडिया में वर्ष २०१३ में आयोजित हुए विश्व धरोहर समिति के ३७वें सत्र में राजस्थान के पांच अन्य दर्गों सहित आमेर दुर्ग को राजस्थान के पर्वतीय दुर्गों के भाग के रूप में युनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। .

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कपिलेश्वर शिव मंदिर समूह एवं बावड़ी,बालोद,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक कपिलेश्वर शिव मंदिर समूह एवं बावड़ी छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में बालोद नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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कालिंजर दुर्ग

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .

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कांगड़ा दुर्ग

कांगड़ा दुर्ग कांगड़ा दुर्ग हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा कस्बे के बाहरी सेमा में फैला हुआ एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग का उल्लेख सिकन्दर महान के युद्ध सम्बन्धी रिकार्डों में प्राप्त होता है जिससे इसके इसापूर्व चौथी शताब्दी में विद्यमान होना सिद्ध होता है। कांगड़ा, धर्मशाला से २० किमी दूर है। .

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किलाबंदी

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में किलेबन्दी का चित्रात्मक वर्णन दुर्गबन्दी या किलाबंदी (fortification) शत्रु के प्रतिरोध और उससे रक्षा करने की व्यवस्था का नाम होता है। इसके अन्तर्गत वे सभी सैनिक निर्माण और उपकरण आते हैं जो अपने बचाव के लिए उपयोग किए जाते हैं (न कि आक्रमण के लिए)। वर्तमान समय में किलाबन्दी सैन्य इंजीनियरी के अन्तर्गत आती है। यह दो प्रकार की होती है: स्थायी और अस्थायी। स्थायी किलेबंदी के लिए दृढ़ दुर्गों का निर्माण, जिनमें सुरक्षा के साधन उपलब्ध हो, आवश्यक है। अस्थायी मैदानी किलाबंदी की आवश्यकता ऐसे अवसरों पर पड़ती है जब स्थायी किले को छोड़कर सेनाएँ रणक्षेत्र में आमने सामने खड़ी होती हैं। मैदानी किलाबंदी में अक्सर बड़े-बड़े पेड़ों को गिराकर तथा बड़ी बड़ी चट्टानों एवं अन्य साधनों की सहायता से शत्रु के मार्ग में रूकावट डालने का प्रयत्न किया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह निष्कर्ष निकला कि स्थायी किलाबंदी धन तथा परिश्रम की दृष्टि से ठीक नहीं है; शत्रु की गति में विलंब अन्य साधनों से भी कराया जा सकता है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि इसका महत्व बिल्कुल ही खत्म हो गया। अणुबम के आक्रमण में सेनाओं को मिट्टी के टीलों या कंकड़ के रक्षक स्थानों में आना ही होगा। नदी के किनारे या पहाड़ी दर्रों के निकट इन स्थायी गढ़ों का उपयोग अब भी लाभदायक है। हाँ, यह अवश्य कहा जा सकता है कि आधुनिक तृतीय आयोमात्मक युद्ध में स्थायी दुर्गो की उपयोगिता नष्ट हो गई है। .

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कंकवाड़ी

कंकवाड़ी (अंग्रेजी:Kankwadi या Kankwari) एक गांव तथा दुर्ग है जो भारतीय राज्य राजस्थान के अलवर ज़िले में स्थित है। इस दुर्ग की स्थापना सवाई राजा जय सिंह प्रथम ने की थी। राज्य में अकाल पड़ने पर जय सिंह जी ने इस किले का निर्माण कार्य शुरु करवाया, जिससे इलाके के लोगों को काम तथा मेहनताना मिलता रहे। अाम लोग जहां दिन में किले पर काम करते थे, संभ्रांत परिवार के लोग रात के अाकर अपने हिस्से का काम पूरा करते थे। औरंगजेब ने गद्दी की लड़ायी के दौरान अपने भाई दारा शिकोह को कुछ समय के लिये इस किले में कैद रखा था। कंकवाड़ी सरिस्का बाग परिसर के मुख्य इलाके में पड़ता है और इसीलिये यहां रह रहे गांव वालों को सरकार विस्थापित कर चुकी है। कुछेक परिवार अभी भी यहां रह रहे हैं, पर वे भी शीघ्र सरिस्का के बाहरी इलाके में विस्थापित कर दिये जायेंगे। किले तक जाने के लिये सरिस्का वन परिसर से सफ़ारी जीप किराये पर ली जा सकती है। वन परिसर (व किला) अगस्त व सितंबर में बंद रहता है। .

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कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार; इसे '''राम पोल''' कहा जाता है। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से ७० किमी दूर समुद्र तल से १,०८७ मीटर ऊँचा और ३० किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर १४४३ से शुरू होकर १५ वर्षों बाद १४५८ में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। बादल महल .

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कुकुरदेव मंदिर,खपरी,दुर्ग

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक कुकुरदेव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में खोपरी नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

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क्रेमलिन

कोलोम्ना का क्रेमलिन सामंतवादी युग में रूस के विभिन्न नगरों में जो दुर्ग बनाए गए थे वे क्रेमलिन कहलाते हैं। इनमें प्रमुख दुर्ग मास्को, नोव्गोरॉड, काज़ान और प्सकोव, अस्त्राखान और रोस्टोव में हैं। ये दुर्ग लकड़ी अथवा पत्थर की दीवारों से बने थे और रक्षा के निमित्त ऊपर बुर्जियां बनी थीं। ये दुर्ग मध्यकाल में रूसी नागरिकों के धार्मिक और प्रशासनिक केंद्र थे, फलत: इन दुर्गों के भीतर ही राजप्रासाद, गिरजा, सरकारी भवन और बाजार बने थे। आजकल इस नाम का प्रयोग प्रमुख रूप से मास्को स्थित दुर्ग के लिये होता है। यह डेढ़ मील की परिधि में त्रिभुजाकार दीवारों से घिरा है जो 1492 ई. के आसपास गुलाबी रंग की ईटों से बना था। इसके भीतर विभिन्न कालों के बने अनेक भवन हैं जिनमें कैथिड्रेल ऑव अज़ंप्शन नामक गिरजाघर की स्तूपिका सब भवनों में ऊँची है। इसका बनना 1393 ई. में आरंभ हुआ था। इसके भीतर के अन्य प्रख्यात भवन हैं-विंटर चर्च (यह भी 1393 में बनना आरंभ हुआ था) और कंवेट ऑव अज़म्पशन (जो 1300 के आसपास का बना है)। इस मठ का द्वार गोथिक शैली का है जो 1700 ई. के आसपास रोमांतिक काल में बना था। अधिकांश राजप्रासाद रिनेंसाँ काल के हैं और अधिकांशत: उन्हें इतालवी शिल्पकारों ने बनाया था। इनमें उन लोगों ने रिनेंसाँकालीन वास्तुरूपों को रूसी रुचि के अनुरूप ढालने का प्रयास किया है। ग्रैंड पैलेस नामक राजप्रासाद रास्ट्रेली नामक इतालवी बोरोक वास्तुकार की कृति थी। 1812 में जब नेपौलियन ने मास्को पर आक्रमण किया उस समय यह प्रासाद अग्नि में जलकर नष्ट हो गया। उसके स्थान पर अब 19 वीं शती के पूर्वार्धं में बना एक सादा भवन है। क्रेमलिन का दृश्य बाहर से अद्भुत जान पड़ता है। दुर्ग की भीमकाय दीवारों के पीछे भवनों की चमकती हुई अनंत स्तूपिकाएँ ओर द्वार तोरणों के पिरामिडाकृत मीनार की भव्यता बाहर से देखते ही बनती है। भीतर वास्तु शैली की विविधता, उनके असीम अलंकरण और भवनों की बेतरतीब पातें भी उतनी ही सशक्त भव्यता का प्रदर्शन करती हैं। तेरहवीं शती के बैजंटाइन कला, 14वीं 15वीं शती की रिनेंसा कला और 16 वीं शती की अपनी रूसी कला और परवर्ती रोमांतिक क्लासिज्म वाली कला, सबका मिश्रण देखने में आता है। फिर भी उनमें रूसी निजस्व की अनुभूति बनी हुई है। 1917 से पूर्व यह सोवियत विरोधी शक्तियों का गढ़ था। साम्यवादी शासन के समय यह सोवियत समाजवादी गणतंत्र का केंद्र था। जिन भवनों में किसी समय राजदरबारी रहते थे उनमें आज सोवियत सरकार के अधिकारी निवास करते थे। पास में ही रेड स्क्वायर है जहाँ राष्ट्रीय अवसरों पर रूसी सैनिक प्रदर्शन होते हैं। इसी स्क्वायर में लेनिन की समाधि है। .

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कृष्णदेवराय

कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए। कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.; राज्यकाल 1509-1529 ई) विजयनगर के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं कवि और कवियों के संरक्षक थे। तेलुगु भाषा में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू  के साथ—साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास आंध्रभोज लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो अष्टदिग्गज के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी आंध्रभोज के नाम से विख्यात थे। .

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केसरोली पहाड़ी दुर्ग

केसरोली पहाड़ी दुर्ग 14वीं शताब्दी में बनाया गया एक दुर्ग (किला) है जो भारतीय राज्य राजस्थान के अलवर ज़िले में स्थित है। अभी वर्तमान में केसरोली पहाड़ी दुर्ग एक हेरिटेज़ होटल है जिसका संचालन नीमराना होटल समूह कर रहा है। .

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अत्तुर

अत्तुर तमिलनाडु राज्य के सलेम जिले का एक ताल्लुका तथा नगर है। नगर 11° 35' उ. अ. तथा 78° 37' पू.

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अधिवक्ता

अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील (ऐडवोकेट advocate) के अनेक अर्थ हैं, परंतु हिंदी में ऐसे व्यक्ति से है जिसको न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उसके हेतु या वाद का प्रतिपादन करने का अधिकार प्राप्त हो। अधिवक्ता किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर (या उसके तरफ से) दलील प्रस्तुत करता है। इसका प्रयोग मुख्यत: कानून के सन्दर्भ में होता है। प्राय: अधिकांश लोगों के पास अपनी बात को प्रभावी ढ़ंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति नहीं होती। अधिवक्ता की जरूरत इसी बात को रेखांकित करती है। अन्य बातों के अलावा अधिवक्ता का कानूनविद (lawyer) होना चाहिये। कानूनविद् उसको कहते हैं जो कानून का विशेषज्ञ हो या जिसने कानून का व्यावसायिक अध्ययन किया हो। वकील की भूमिका कानूनी न्यायालय में काफी भिन्न होती है। भारतीय न्यायप्रणाली में ऐसे व्यक्तियों की दो श्रेणियाँ हैं: (१) ऐडवोकेट तथा (२) वकील। ऐडवोकेट के नामांकन के लिए भारतीय "बार काउंसिल' अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक प्रादेशिक उच्च न्यायालय के अपने-अपने नियम हैं। उच्चतम न्यायालय में नामांकित ऐडवोकेट देश के किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन कर सकता है। वकील, उच्चतम या उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन नहीं कर सकता। ऐडवोकेट जनरल अर्थात्‌ महाधिवक्ता शासकीय पक्ष का प्रतिपादन करने के लिए प्रमुखतम अधिकारी है। अभी महाराष्ट्र के महाधीवक्ता रोहित देव है। ● अपनी मुकद्दमे की पैरवी स्वम कर सकते है इसके लिए कुछ कुछ महत्वपूर्ण बातो को धयान में रखने की जरूरत है क्यो की वकील के पास अनेको मुकद्दमे देखने की जिम्मेदारी होती है इस कारण से जितनी बातें पीड़ित की रखनी होती है नही रख पाते इस कारण मुकद्दमा हल्का हो जाता है मुवक्किल अपना पछ रखने के लिए स्वतंत्र है वह अपनी बात अच्छे से प्रस्तुत कर सकता है क्यो की उसे न किसी वकालत नामे की जरूरत नही होती है न वकालत के डिग्री की............#लेख जारी है .

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अनंगपाल तोमर द्वितीय

द्वितीय अनंगपाल तोमर, दिल्ली का जाट शासक था। वह १७ जून १०५१ को दिल्ली का १६वाँ राजा बना। उसने लाल कोट बनवाया जो दिल्ली का प्रथम दुर्ग था। अनंगपाल द्वितीय ने 1051 ई-1081 ई तक राज्य किया इनका वास्तविक नाम अनेकपाल था  श्रेणी:भारत के शासक.

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अन्तपाल

कौटिलीय अर्थशास्त्र से हमें अंतपाल नामक राजकर्मचारियों का पता चलता है जो सीमांत के रक्षक होते थे और जिनका वेतन कुमार, पौर, व्यावहारिक, मंत्री तथा राष्ट्रपाल के बराबर होता था। अशोक के समय अंतपाल ही अंतमहामात्र कहलाने लगे। गुप्तपाल में अंतपाल गोप्ता कहलाने लगे थे। मालविकाग्निमित्र नाटक में वीरसेन तथा एक अन्य अंतपाल का उल्लेख हुआ है। वीरसेन, नर्मदा के किनारे स्थित अंतपाल दुर्ग का अधिपति था। अंतपालों का कार्य महत्त्वपूर्ण था; ग्रीक कर्मचारी 'स्त्रातेगस' से इन पदाधिकारियों की तुलना करना सहज है। अंतपाल शब्द साधारणतया सीमांत प्रदेश के शासक या गवर्नर को निर्दिष्ट करता है। यह शासक सैनिक, असैनिक दोनों ही प्रकार का होता था। अन्तपाल श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अग्निपुराण

अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्‍णु एवं शिव तथा सूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है। पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है। .

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उदायिभद्र

उदायिभद्र मगध महाजनपद के शक्तिशाली राजा अजातशत्रु का पुत्र और उत्तराधिकारी। उसका उल्लेख उदायिन्, उदायी अथवा उदयिन और उदयभद्र जैसे कई नामों से मिलता है। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार उदायिभद्र अपने पिता अजातशत्रु की ही तरह स्वयं भी पितृघाती था और पिता को मारकर गद्दी पर बैठा था। उस अनुश्रुति का तो यहाँ तक कथन है कि आजतशत्रु से लेकर चार पीढ़ियों तक मगध साम्राज्य में उत्तराधिकारियों द्वार अपने पूर्ववर्तियों के मारे जाने की परंपरा ही चल गई थी। परंतु जैन अनुश्रुति उदयभद्र को पितृघाती नहीं मानती। कथाकोश में उसे कुणिक (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। परिशिष्टपर्वन् और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित् जैसे कुछ अन्य जैन ग्रंथों में यह कहा गया है कि अपने पिता के समय में उदायिभद्र चंपा का राज्यपाल (गवर्नर) रह चुका था और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था। तदुपरांत सामंतों और मंत्रियों ने उससे मगध की राजगद्दी पर बैठने का आग्रह किया और उसे स्वीकार कर वह चंपा छोड़कर मगध की राजधानी गया। राजा की हैसियत से उदायिभद्र का सबसे मुख्य कार्य था मगध की नई राजधानी पाटलिपुत्र का विकास करना। परिशिष्टपर्वन् की सूचना है कि उसी ने सबसे पहले मगध की राजधानी राजगृह से हटाकर गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र बसाकर वहाँ स्थापित की। इस बात का समर्थन वायुपुराण से भी होता है। उसका कथन है कि उदयभद्र ने अपने शासन के चौथे वर्ष में कुसुमपुर नामक नगर बसाया। कुसुमपुर अथवा पुष्पपुर पाटलिपुत्र के ही अन्य नाम थे। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ के दुर्ग का विकासकार्य अजातशत्रु के समय में ही प्रारंभ हो चुका था। श्रेणी:भारतीय राजा श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

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छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन १ नवम्बर २००० को हुआ था। यह भारत का २६वां राज्य है। भारत में दो क्षेत्र ऐसे हैं जिनका नाम विशेष कारणों से बदल गया - एक तो 'मगध' जो बौद्ध विहारों की अधिकता के कारण "बिहार" बन गया और दूसरा 'दक्षिण कौशल' जो छत्तीस गढ़ों को अपने में समाहित रखने के कारण "छत्तीसगढ़" बन गया। किन्तु ये दोनों ही क्षेत्र अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत को गौरवान्वित करते रहे हैं। "छत्तीसगढ़" तो वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। .

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छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय

सीएसवीटीयू का नेवईभाठा स्थित नवीन भवन छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले के भिलाई शहर में स्थित तकनीकी विश्वविद्यालय है। इसे संक्षिप्त रूप से सीएसवीटीयू के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के हाथों ३० जुलाई २००५ को हुई थी। छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानन्द तकनीकी विश्वविद्यालय से संबद्ध राज्य में ४५ इंजीनियरिंग महाविद्यालय, एक आर्किटेक्चर महाविद्यालय, ३८ पॉलीटेक्निक और ११ फार्मेसी महाविद्यालय शामिल हैं। .

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छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय

छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के अंजोरा में स्थित पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा छत्तीसगढ़ कामधेनु अधिनियम २०११ की घोषणा के साथ ११ अप्रैल २०१२ को की गई। छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय से वर्तमान में प्रदेश के तीन कालेज - कालेज ऑफ वेटनरी साइंस एंड एनीमल हसबेंड्री, अंजोरा, दुर्ग, कालेज ऑफ डेयरी टेक्नालाजी, रायपुर और कालेज ऑफ फिशरिज, कवर्धा संबद्ध हैंं। .

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छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य

छत्तीसगढ़ी पूर्वी हिंदी की तीन विभाषाओं में से एक है। यह रायगढ़, सरगुजा, विलासपुर, रायपुर, दुर्ग, जबलपुर तथा बस्तर आदि में बोली जाती है। कहते हैं किसी समय इस क्षेत्र में 36 गढ़ थे, इसीलिये इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। किंतु गढ़ों की संख्या में वृद्धि हो जाने पर भी नाम में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। डॉ॰ हीरालाल के मतानुसार छत्तीसगढ़ चेदीशगढ़ का अपभ्रंश हो सकता है। संभलपुर में तथा उसके आसपास छत्तीसगढ़ी लरिया कहलाती है। छत्तीसगढ़ी, मराठी तथा उड़िया भाषाओं से प्रभावित हुई है। छत्तीसगढ़ी साहित्य में भारतीय संस्कृति के तत्व वर्तमान हैं। इस साहित्य में अनेक लोककथाएँ हैं जिनके मूल भाव भारत की अन्य भाषाओं में भी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। कहीं कहीं स्थानीय तथा सामयिक ढंग से इन कथाओं की रोचकता बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ी पँवाड़ों के प्रबंधगीत किसी न किसी कहानी पर आधारित हैं। पँवाड़ों के केंद्रविंदु बहुधा ऐतिहासिक है। वीरगाथाओं में राजा वीरसिंह की गाथा प्रसिद्ध है। इसमें मध्यकालीन विश्वासों की प्रचुरता है। कुछ गीतों में देवता के पराक्रम का वर्णन है। श्रवणकुमार संबंधी "सरवन" के गीत तथा "सरवन" की गाथा प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ी में ऋतुगीत, नृत्यगीत, संस्कारगीत, धार्मिक गीत, बालकगीत तथा अन्य प्रकार के विविध गीत पाए जाते हैं। लोकोक्तियों तथा पहेलियों की भी कमी नहीं है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:हिन्दी की बोलियाँ.

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