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तारणपंथ

सूची तारणपंथ

तारण पंथ, दिगंबर जैन धर्म का एक पंथ है। इसकी स्थापना संत तारण ने की थी। .

20 संबंधों: चैत्यालय, तारण तरण महासभा, तारण तरण जयंती, तारण तरण गुरु पर्वी, निसई जी सूखा, निसई जी सेमरखेड़ी, निसईजी, निसईजी मल्हारगढ़, पुष्पावति बिल्हेरी, ब्र. बसंत, ब्र. आत्मानंद, ब्र.जयसागर जी, ब्र.ज्ञानानंद जी, ब्र.विमलादेवीजी, ब्र.गुलाबचंद्र जी, मध्य प्रदेश, रजनीश, संत तारण तरण स्वामी, जैन धर्म, जैन धर्म की शाखाएं

चैत्यालय

चैत्यालय तारण पंथ के धार्मिक स्थल को कहते हैं।चैत्यालय देश के पांच राज्यों के १६८ स्थानों पर हैं।सर्वाधिक चैत्यालय बासोदा में हैं।व ज़िला स्तर पर दमोह में हैं। नाम चैत्यालय अवश्य है किंतु इसके भीतर वेदी में जिनवाणी रखातीं हैं जिनवाणी अर्थात जैन ग्रंथ।इनके निर्माण के पश्चात वेदी प्रतिष्ठा होती है।इसमें प्रथम दिवस अस्थाप व ध्वजारोहण,द्वितीय दिवस कलशारोहण,तृतीय दिवस वेदीसूतन व तिलक होता है।इसमेंं आयोजक परिवार को तारण तरण महासभा पदवी देती है।इसमें निम्न पदवियां मिलती हैं।क्रमशः सामुहिक,एक बार,दो बार,तीन बार,चार व पांच बार में धर्मप्रेमी, सेठ,सवाई सेठ,श्रीमंत, समाज रत्न और समाज भूषण की पदवी मिलती हैंं। .

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तारण तरण महासभा

तारण तरण महासभा एक मंंडल है।इसका मुख्यालय निसईजी मल्हारगढ़ और सागर है।यह मंडल ही तारण पंथ में पदवी देता है।.

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तारण तरण जयंती

यह एक तारण पंथ का त्योहार है।इस दिन संत तारण का जन्म हुआ था।इनका जन्म अगहन सुदी सप्तमी दिन गुरुवार वि.सं.१५०५ ईसवी सन् १४४८ को पुष्पावति बिल्हेरी को हुआ था।इस दिन पालकी निकलती है व कहीं-कहीं केवल मंदिर विधि होती है।दमोह के फुटेरा कलां में इसे विशाल रूप से मनाई जाती है। .

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तारण तरण गुरु पर्वी

यह एक तारण पंथ का त्योहार है।इस दिन संत तारण की समाधि हुई थी।इस दिन निसईजी मल्हारगढ़/चांद में मेला महोत्सव होता है। .

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निसई जी सूखा

दमोह जिले की पथरिया रेलवे स्टेशन से ७.५ कि.मी.

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निसई जी सेमरखेड़ी

यह तारणपंथ का तीर्थ क्षेत्र है।यह सिरोंज से सात व बासोदा से ४५ किलोमीटर दूर है।यह श्री गुरु तारण तरण मंडलाचार्य महाराज की दीक्षा स्थली साधना भूमि है।यहाँ प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर मेला महोत्सव होता है।यहाँ १५० सामान्य कमरे व ३० सर्वसुविधा युक्त कमरे हैं।यहाँ ५ अतिथिगृह भी हैं।यहाँ इन्हें जहर दिया जो अमृत बन गया।यहाँ मामा की हवेली,गुफाएं दर्शनीय हैं।यहाँ तारण पंथ का पहले बहुत प्रचार था।यहाँ इनको जहर दिया जो अमृत बन गया।.

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निसईजी

निसईजी नाम से तीन पृष्ठ हैं।.

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निसईजी मल्हारगढ़

बीना गुना लाइन पर मुंगावली तहसील से १४किलोमीटर दूर ग्राम मल्हारगढ़ में विशाल मंदिर व सर्वसुविधा युक्त धर्मशाला है।यहाँ स्वर्ण जड़ित वेदी पर मां जिनवाणी विराजमान हैं।यहाँ अभी तक कुल २५ मेले भरा चुके हैं।यह संत तारण का समाधि स्थल है। यहाँ प्रति वर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं।यहाँ से कुछ ही दूर बेतबा में टापू स्थित हैं। .

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पुष्पावति बिल्हेरी

कटनी से २० किलोमीटर दूर बिल्हेरी में विशाल मंदिर व धर्मशाला है। यह तारण स्वामी की जन्म भूमि है।यहां १५० कोठों की विशाल धर्मशाला है। .

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ब्र. बसंत

ब्र.

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ब्र. आत्मानंद

ब्र. आत्मानंद तारण पंथ के एक उत्कृष्ट साधक हैं।इनका जन्म गंजबासौदा में हुआ। इनका पूर्व नाम देवेन्द्र पांडे है।यह श्री संघ के संचालक हैं। यह दसम प्रतिमा धारी हैं।इन्होंने सप्तम प्रतिमा बासौदा एवं दशम प्रतिमा निसईजी मल्हारगढ़ में ली। आप श्री अत्यंत सरल स्वभाव के हैं। .

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ब्र.जयसागर जी

ब्र.

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ब्र.ज्ञानानंद जी

यह तारणपंथ के साधक थे।इनकी माता मथुराबाई और पिता चुन्नीलाल जी थे।इनका जन्म बरेली ज़िला रायसेन में हुआ।इन्होंने सन् १९७८ को ली व समाधि सन् २००२ को वारादेवी ग्राम पिपरिया जि़ला होशंगाबाद में हुई।.

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ब्र.विमलादेवीजी

श्रध्देय ब्र.विमलादेवी जी तारण पंथ की साध्वी थीं।इनका जन्म जन्माष्टमी सन् १९२६ में उत्तरप्रदेश के बांदा नगर में हुआ था।इनकी माता श्रीमती सुप्पीबाई व पिता श्री मान् बाबूलाल जी थे।इन्होंने विराशद की शिक्षा प्राप्त की।इन्होंने ब्रम्हचर्य व्रत वि.सं.१९९४ में ली थी।इन्होंने अन्न का आजीवन त्याग कर दिया।इनकी मृत्यु ३-५-१९९१ को बांदा में हुई। इनके लिए कोई ने दो पंक्तियां कहीं हैं। .

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ब्र.गुलाबचंद्र जी

यह तारण पंंथ के एक संंत थे।आपका जन्म सन् १९२३ में उत्तरप्रदेश के ललितपुर नगर में हुआ।आपके पिता लालदास व माता बेटीबाई थीं।आपका विवाह १९ वर्ष की आयु में में हुआ किंतु आपके विवाह के १२ वर्ष बाद आपकी पत्नी की मृत्यु हो गई।अब आपको वैराग्य आ गया।आपका देह परिवर्तन दिनांक १४ मार्च सन् १९९४ को हुआ।आपको तारण पंथ में धर्म दिवाकर की उपाधि मिली। .

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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .

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रजनीश

आचार्य रजनीश (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता था, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारत तथा पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र रहे, हालाँकि बाद में उनका यह दृष्टिकोण अधिक स्वीकार्य हो गया। चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना। शब्द 'ओशनिक' अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या? इसके लिए हम 'ओशो' शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और १९८९ के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये। रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें वे विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे.

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संत तारण तरण स्वामी

भारत के मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड की भू धरा पर जन्मे तारण पंथ के संस्थापक तारण तरण थे। .

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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जैन धर्म की शाखाएं

जैन धर्म की दो मुख्य शाखाएँ है - दिगम्बर और श्वेतांबर। दिगम्बर संघ में साधु नग्न (दिगम्बर) रहते है और श्वेतांबर संघ के साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है। इसी मुख्य विभन्ता के कारण यह दो संघ बने। .

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