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ट्रांजिस्टर

सूची ट्रांजिस्टर

अलग-अलग रेटिंग के कुछ प्रथनक ट्रान्जिस्टर (प्रथनक) एक अर्धचालक युक्ति है जिसे मुख्यतः प्रवर्धक (Amplifier) के रूप में प्रयोग किया जाता है। कुछ लोग इसे बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण खोज मानते हैं। ट्रान्जिस्टर का उपयोग अनेक प्रकार से होता है। इसे प्रवर्धक, स्विच, वोल्टेज नियामक (रेगुलेटर), संकेत न्यूनाधिक (सिग्नल माडुलेटर), थरथरानवाला (आसिलेटर) आदि के रूप में काम में लाया जाता है। पहले जो कार्य ट्रायोड या त्रयाग्र से किये जाते थे वे अधिकांशत: अब ट्रान्जिस्टर के द्वारा किये जाते हैं। .

सामग्री की तालिका

  1. 56 संबंधों: ऊष्मा, चुम्बकीय प्रवर्धक, एम्बेडेड सिस्टम, एकीकृत परिपथ, द्वि-प्रद्वार जालक्रम, निष्क्रिय घटक, नैण्ड गेट, परिपथ डिजाइन, परिकलक, पश्चिमी संस्कृति, पेन्टोड, फ्लिप-फ्लॉप, बहुकंपित्र, बीजेटी, भौतिक विज्ञानी, मशीन सारावली, माइक्रोप्रोसेसर, माइक्रोफोन, मूर का नियम, यंत्र, रासायनिक अन्‍तर्ग्रथन, रैंडम एक्सैस मैमोरी, रेडियो संग्राही, लघु प्रवर्धक, लॉजिक गेट, शाकले डायोड समीकरण, शक्ति मॉसफेट, शुष्क सेल, श्रव्य प्रवर्धक, संगणन हार्डवेयर का इतिहास, संकर एकीकृत परिपथ, सौर सेल, सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी, सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट, जाइरेटर, जॉन बर्दीन, ईएमआई (EMI), विदारी नवप्रवर्तन, विद्युत परिपथ, विद्युत इंजीनियरी का इतिहास, विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास, विद्युतीय प्रतीक, वैज्ञानिक परिकलित्र, इलैक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रानिक परिपथ, इलेक्ट्रॉनिक इंजिनीयरी का इतिहास, इलेक्ट्रॉनिक अवयव, इंसुलेटेड गेट बाईपोलर ट्रांजिस्टर, कार्बन नैनोट्यूब, कंप्यूटर के विभिन्न पीढ़ि, ... सूचकांक विस्तार (6 अधिक) »

ऊष्मा

इस उपशाखा में ऊष्मा ताप और उनके प्रभाव का वर्णन किया जाता है। प्राय: सभी द्रव्यों का आयतन तापवृद्धि से बढ़ जाता है। इसी गुण का उपयोग करते हुए तापमापी बनाए जाते हैं। ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा ऊर्जा का एक रूप है जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। किसी पदार्थ के गर्म या ठंढे होने के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है उसे उसकी ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। अन्य ऊर्जा की तरह इसका मात्रक भी जूल (Joule) होता है पर इसे कैलोरी (Calorie) में भी व्यक्त करते हैं। .

देखें ट्रांजिस्टर और ऊष्मा

चुम्बकीय प्रवर्धक

चुम्बकीय प्रवर्धक के कार्य का सिद्धान्त; I2 डीसी धारा है जिसे बढ़ा-घटाकर प्रेरक का प्रेरकत्व घटाया-बढ़ाया जाता है। लार्स लन्ढाल नामक स्विस इंजीनियर द्वारा डिजाइन किया गया एक चुम्बकीय श्रव्य प्रवर्धक चुम्बकीय प्रवर्धक (magnetic amplifier या "mag amp") एक विद्युतचुम्बकीय युक्ति है जिसके द्वारा विद्युत संकेतों को प्रवर्धित किया जाता है। इसका विकास २०वीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों में हुआ था। यह निर्वात नलिका प्रवर्धकों का एक विकल्प हुआ करता था। इसकी मजबूती तथा अधिक विद्युत धारा प्रदान करने की क्षमता इसकी विशेषता थी। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने इसकी डिजाइन को उँचाई प्रदान की और इसका उपयोग V-2 रॉकेट में किया। शक्ति के नियन्त्रण के लिए १९४७ से १९५७ तक इसका खूब प्रयोग किया गया, किन्तु उसके बाद ट्रांजिस्टर के आ जाने से इसका उपयोग क्षीण होता गया। आज इसका उपयोग नहीं के बराबर होता है। आज भी कहीं-कहीं चुम्बकीय प्रवर्धक तथा ट्रांजिस्टर मिलाकर काम में लिए जाते हैं। देखने पर चुम्बकीय प्रवर्धक, ट्रान्सफॉर्मर जैसा ही दिखता है किन्तु इसके कार्य का सिद्धान्त बिल्कुल अलग है। वास्तव में, चुम्बकीय प्रवर्धक, एक संतृप्त्य प्रेरक (saturable reactor) है। .

देखें ट्रांजिस्टर और चुम्बकीय प्रवर्धक

एम्बेडेड सिस्टम

ADSL मॉडेम/रूटर के आतंरिक भागों का चित्र.अंतःस्थापित प्रणाली का एक आधुनिक उदाहरण.लेबल वाले हिस्सों में एक माइक्रोप्रोसेसर (4), रैम (6) और फ्लैश मेमोरी (7) शामिल है। एम्बेडेड सिस्टम एक कम्प्यूटर सिस्टम है, जिसे अक्सर रीयल-टाइम कम्प्यूटिंग की बाध्यताओं के साथ एक या कुछ समर्पित कार्यों को करने के लिए बनाया जाता है। यह पूरे उपकरण के एक भाग में एम्बेडेड (अंत:स्थापित) होता है, जिसमें अक्सर हार्डवेयर तथा यांत्रिक भाग शामिल होते हैं। इसके विपरीत, सामान्य उद्देश्य वाले किसी कम्प्यूटर, जैसे पर्सनल कम्प्यूटर, की रचना लचीला होने और अंतिम-प्रयोक्ता की आवश्यकताओं की एक वृहद श्रेणी की पूर्ति करने के लिए की जाती है। एम्बेडेड सिस्टम वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले अनेक उपकरणों को नियंत्रित करते हैं। एम्बेडेड सिस्टम को मुख्य प्रोसेसिंग के एक या अधिक अंतर्भागों, विशिष्टत: एक माइक्रोकंट्रोलर या एक डिजिटल सिग्नल प्रोसेसर (DSP), द्वारा नियंत्रित किया जाता है। हालांकि इसकी मुख्य विशेषता किसी एक विशिष्ट कार्य को संभालने के लिए समर्पित होना है, जिसमें अत्यधिक शक्तिशाली प्रोसेसर्स की आवश्यकता हो सकती है। उदाहरण के लिए, हवाई यातायात नियंत्रण प्रणालियों को एम्बेडेड के रूप में देखना उपयोगी हो सकता है, हालांकि उनमें मेनफ्रेम कम्प्यूटर तथा हवाई-अड्डों और राडार स्थानों के बीच क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय समर्पित नेटवर्क शामिल होते हैं। (संभवत: प्रत्येक राडार में अपने स्वयं के एक या एक से अधिक एम्बेडेड सिस्टम्स शामिल होते हैं।) चूंकि एम्बेडेड सिस्टम विशिष्ट कार्यों के प्रति समर्पित होता है, अतः डिजाइन इंजीनियर्स, उत्पाद के आकार व लागत को घटाकर तथा विश्वसनीयता एवं प्रदर्शन को बढ़ाकर इसे अधिक उपयोगी बना सकते हैं। पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं (Economies of scale) से लाभ उठाते हुए कुछ एम्बेडेड सिस्टम्स का उत्पादन बड़े-पैमाने पर किया जाता है। भौतिक रूप से, एम्बेडेड सिस्टम, वहनीय उपकरणों, जैसे डिजिटल घड़ियों तथा MP3 प्लेयर्स, से लेकर बड़ी स्थिर संस्थापनाओं, जैसे यातायात बत्तियों, कारखानों के नियंत्रकों अथवा परमाणु ऊर्जा केन्द्रों, तक की श्रेणी में होते हैं। जटिलता का स्तर एकल माइक्रोकंट्रोलर चिप के लिए निम्न जटिलता से लेकर किसी बड़े ढांचे (Chassis) या घेरे में लगी अनेक इकाइयों, उपकरणों तथा नेटवर्क्स के लिए उच्च जटिलता तक होता है। सामान्यत: "एम्बेडेड सिस्टम" शब्दावली की कोई सटीक परिभाषा नहीं दी जा सकती क्योंकि अधिकांश सिस्टम्स में विस्तारण अथवा प्रोग्रामिंग की क्षमता के कुछ तत्त्व भी शामिल होते हैं। उदहारण के लिए, हैण्ड-हेल्ड कम्प्यूटर्स अपने कुछ तत्वों, जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम्स और उन्हें शक्ति देने वाले माइक्रोप्रोसेसर्स, को एम्बेडेड सिस्टम्स के साथ साझा करते हैं, परन्तु वे अन्य अनुप्रयोगों को लोड करने और उपकरणों को जोड़ने की अनुमति भी देते हैं। इसके अलावा, यहां तक कि जो सिस्टम्स प्रोग्रामिंग की क्षमता को अपनी प्राथमिक विशेषता के रूप में प्रदर्शित नहीं करते, उन्हें भी सॉफ्टवेयर अद्यतनों का समर्थन करने की आवश्यकता होती है। "सामान्य उद्देश्य" से "एम्बेडेड" की ओर एक अबाध क्रम में बढ़ने पर, बड़े अनुप्रयोगों में अधिकांश स्थानों पर कुछ उप-घटक होंगे, भले ही सम्पूर्ण सिस्टम को "एक या कुछ समर्पित कार्यों को पूर्ण करने के लिए बनाया गया हो" और इस प्रकार उसे "एम्बेडेड" कहना उपयुक्त हो। .

देखें ट्रांजिस्टर और एम्बेडेड सिस्टम

एकीकृत परिपथ

माइक्रोचिप कम्पनी की इप्रोम (EPROM) स्मृति के एकीकृत परिपथ आधुनिक सरफेस माउण्ट आईसी ऐटमेल (Atmel) की एक आईसी, जिसके अन्दर स्मृति ब्लॉक, निवेश निर्गम (इन्पुट-ऑउटपुट) एवं तर्क के ब्लॉक देखे जा सकते हैं। यह एक ही चिप में पूरा तन्त्र (System on Chip) है। एलेक्ट्रॉनिकी में एकीकृत परिपथ या एकीपरि (इन्टीग्रेटेड सर्किट (IC)) को सूक्ष्मपरिपथ (माइक्रोसर्किट), सूक्ष्मचिप, सिलिकॉन चिप, या केवल चिप के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अर्धचालक पदार्थ के अन्दर बना हुआ एलेक्ट्रॉनिक परिपथ ही होता है जिसमें प्रतिरोध, संधारित्र आदि पैसिव कम्पोनेन्ट (निष्क्रिय घटक) के अलावा डायोड, ट्रान्जिस्टर आदि अर्धचालक अवयव निर्मित किये जाते हैं। जिस प्रकार सामान्य परिपथ का निर्माण अलग-अलग (डिस्क्रीट) अवयव जोड़कर किया जाता है, आईसी का निर्माण वैसे न करके एक अर्धचालक के भीतर सभी अवयव एक साथ ही एक विशिष्ट प्रक्रिया का पालन करते हुए निर्मित कर दिये जाते हैं। एकीकृत परिपथ आजकल जीवन के हर क्षेत्र में उपयोग में लाये जा रहे हैं। इनके कारण एलेक्ट्रानिक उपकरणों का आकार अत्यन्त छोटा हो गया है, उनकी कार्य क्षमता बहुत अधिक हो गयी है एवं उनकी शक्ति की जरूरत बहुत कम हो गयी है। संकर एकीकृत परिपथ भी लघु आकार के एकीपरि (एकीकृत परिपथ) होते हैं किन्तु वे अलग-अलग अवयवों को एक छोटे बोर्ड पर जोड़कर एवं एपॉक्सी आदि में जड़कर (इम्बेड करके) बनाये जाते हैं। अतः ये मोनोलिथिक आई सी से भिन्न हैं। .

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द्वि-प्रद्वार जालक्रम

द्वि-प्रद्वार जालक्रम (टू-पोर्ट नेटवर्क) ऐसे विद्युत परिपथ को कहते हैं जिसमें बाहरी जगत (नेटवरक) से जुड़ने के लिये दो-जोड़ी (अर्थात, चार) सिरे होते हैं। उदाहरण के लिये ट्रान्जिस्टर एक द्वि-पोर्ट नेटवर्क है (यद्यपि इसमें चार नहीं तीन ही सिरे होते हैं। एक सिरा इनपुट और आउटपुट दोनों प्रद्वारों में उभयनिष्ट (कॉमन) होता है।) श्रेणी:विद्युत परिपथ.

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निष्क्रिय घटक

निष्क्रियता किसी इंजीनियरी प्रणाली का एक गुण है, जिसका प्रयोग सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरी और नियंत्रण प्रणालियों में किया जाता है। क्षेत्र के आधार पर एक निष्क्रिय घटक (passive compnent) वह है जो उर्जा का उपभोग तो करता है पर इसका उत्पादन नहीं करता, या यह वो घटक हैं जो शक्ति प्रवर्धन (power gain) मे अक्षम होते हैं। जो घटक निष्क्रिय नहीं होते, सक्रिय घटक (Active components) कहलाते हैं। पूरी तरह से निष्क्रिय घटकों से बना एक इलेक्ट्रॉनिक परिपथ, निष्क्रिय परिपथ कहलाता है (और इसके गुण एक निष्क्रिय घटक के समान ही होते हैं)।;निष्क्रिय घटक - प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड आदि; सक्रिय घटक - ट्रांजिस्टर, मॉसफेट, टेट्रोड, पेन्टोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर आदि .

देखें ट्रांजिस्टर और निष्क्रिय घटक

नैण्ड गेट

डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स में सात प्रकार के लॉजिक गेट (तर्क द्वार) होते हैं, उनमें से एक नैण्ड गेट है। नैण्ड गेट (नकार-ऐण्ड) एक डिजटल तर्क द्वार है जिसके दो या अधिक इनपुट और एक आउटपुट होते है। इसका व्यवहार ऐण्ड गेट से बिलकुल विपरीत होता है। जब इसके सारे इनपुट को लॉजिक हाइ (1) दिया जाय तब इसका आउटपुट लॉजिक लो (0) होता है और अन्य संयोजन में इसका आउटपुट लॉजिक हाइ (1) होता है। इसके विशेषताओं के कारण इसे सार्वभौमिक तर्क द्वार (यूनिवर्सल लॉजिक गेट) भी कहा जाता है, जिससे अन्य लॉजिक गेटों का निर्माण बडी आसानी से किया जा सकता है। इसके इनपुट A और B है तो आउटपुट Y.

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परिपथ डिजाइन

परिपथ अभिकल्प (सर्किट डिजाइन) का अर्थ बहुत व्यापक है। इसमें किसी आईसी के अन्दर केवल एक ट्रांजिस्टर का डिजाइन से लेकर जटिल एलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों की डिजाइन तक आता है। सरल कार्यों के लिये डिजाइन की प्रक्रिया एक ही व्यक्ति बिना किसी योजनाबद्ध डिजाइन प्रक्रिया का अनुसरण किये भी कर सकता है किन्तु अधिक कठिन और जटिल डिजाइनों के लिये डिजाइनरों की एक टोली (टीम) लगती है जो योजनाबद्ध मार्ग का अनुसरण करते हुए तथा कम्प्यूटर सिमुलेशन आदि का बुद्धिमतापूर्ण उपयोग करते हुए यह कार्य करती है।; प्रकार.

देखें ट्रांजिस्टर और परिपथ डिजाइन

परिकलक

कैसियो कम्पनी का '''वैज्ञानिक परिकलक''' परिकलक (अंग्रेजी: कैलकुलेटर), अन्य हिन्दी पर्याय, गणक या गणित्र), गणितीय गणनाएं (परिकलन) करने का एक उपकरण होता है। यद्यपि आधुनिक परिकलकों में प्रायः सामान्य उपयोग का एक संगणक (कंप्यूटर) होता है, फिर भी परिकलक, कंप्यूटर से इस मामले में भिन्न है कि परिकलक की अभिकल्पना अपेक्षाकृत छोटी गणनाएं करने के लिये होता है। इसके उपयोग के लिये प्रोग्रामिंग की आवश्यकता नही होती और यह बहुत सस्ता और आकार में छोटा होता है। इसके पहले गणनाएं करने के लिये स्लाइड रूल, गणितीय सारणियाँ, अबाकस आदि प्रयोग में लाये जाते थे। इन सबका प्रयोग परिकलक की तुलना में अपेक्षाकृत बहुत असुविधाजनक होता था। आधुनिक परिकलक विद्युत शक्ति (छोटे शुष्क सेल आदि) से चलते हैं; सस्ते, छोटे, अनेक जटिल गणनाओं की क्षमता वाले, सरलता से काम करने वाले तथा तेज गणना में दक्ष होते हैं। .

देखें ट्रांजिस्टर और परिकलक

पश्चिमी संस्कृति

पश्चिमी संस्कृति (जिसे कभी-कभी पश्चिमी सभ्यता या यूरोपीय सभ्यता के समान माना जाता है), यूरोपीय मूल की संस्कृतियों को सन्दर्भित करती है। यूनानियों के साथ शुरू होने वाली पश्चिमी संस्कृति का विस्तार और सुदृढ़ीकरण रोमनों द्वारा हुआ, पंद्रहवी सदी के पुनर्जागरण एवं सुधार के माध्यम से इसका सुधार और इसका आधुनिकीकरण हुआ और सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक जीवन और शिक्षा के यूरोपीय तरीकों का प्रसार करने वाले उत्तरोत्तर यूरोपीय साम्राज्यों द्वारा इसका वैश्वीकरण हुआ। दर्शन, मध्ययुगीन मतवाद एवं रहस्यवाद, ईसाई एवं धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद की एक जटिल श्रृंखला के साथ यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। ज्ञानोदय, प्रकृतिवाद, स्वच्छंदतावाद (रोमेन्टिसिज्म), विज्ञान, लोकतंत्र और समाजवाद के प्रयोगों के साथ परिवर्तन एवं निर्माण के एक लंबे युग के माध्यम से तर्कसंगत विचारधारा विकसित हुई.

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पेन्टोड

पेन्टोड का इलेक्ट्रॉनिक संकेत पेंटोड (Pentode) वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जिसमें पाँच एलेक्ट्रोड होते हैं। यह एक प्रकार की निर्वात नली है। प्रायः तीन ग्रिडों वाली निर्वात नली को ही पेंटोड समझा जाता है। इसका आविष्कार बेमार्ड टेलगन (Bernhard D.H.

देखें ट्रांजिस्टर और पेन्टोड

फ्लिप-फ्लॉप

एक आर-एस द्विमानित्र (फ्लिप-फ्लॉप) का परिपथ; यह परिपथ दो 'नॉर' द्वारों (गेटों) को जोड़कर बनाया गया है। लाल का अर्थ तर्कसंगत (लॉजिकल) '''1''' है और काला का अर्थ तर्कसंगत '''0''' एलेक्ट्रॉनिकी में द्विमानित्र (फ्लिप-फ्लॉप) एक अंकीय (डिजिटल) परिपथ है जिसका निर्गम (आउटपुट) दो स्थाई अवस्थाओं में में से किसी एक में बना रहता है (जब तक उसे बदलने के लिये निवेश (इनपुट) में कुछ न किया जाय)। इसे 'लैच' (latch) भी कहते हैं। इस परिपथ एक या अधिक निवेश होते हैं जिन पर संकेत का उचित परिवर्तन करके निर्गम के अवस्‍था (स्टेट) को बदला जा सकता है। इसके एक एक या दो निर्गम होते हैं। द्विमानित्र कई प्रकार के होते हैं और आंकिक एलेक्ट्रॉनिकी की मूलभूत निर्माण-ईकाई हैं। ये आंकड़ा भंडारण के अवयव (अर्थात 'मेमोरी') तैयार करने के लिये प्रयुक्त होते हैं। ये 'अनुक्रमिक तर्क' की श्रेणी में आते हैं। इनका उपयोग स्‍पंदों (पल्सों) को गिनने (काउन्टर) के लिये तथा अलग-अलग समय पर पहुंचने वाले निवेश संकेतों को समकालिक बनाने (synchronizing) के लिये किया जाता है। .

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बहुकंपित्र

बहुकम्पित्र (multivibrator) ऐसा एलेक्ट्रानिक परिपथ है जिसका उपयोग दो-स्थिति वाले (two-state) विविध आंकिक निकायों (जैसे कम्पित्र, टाइमर, फ्लिप-फ्लॉप आदि) के निर्माण में किया जाता है। इसमें दो प्रवर्धक युक्तियाँ (जैसे ट्रान्जिस्टर या एलेक्ट्रान ट्यूब आदि) प्रतिरोध और संधारित्र द्वारा क्रास-कपुल्ड होते हैं। बहुकंपित्र तीन तरह के होते हैं -.

देखें ट्रांजिस्टर और बहुकंपित्र

बीजेटी

बीजेटी के प्रतीक SOT-23 बाईपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर या बीजेटी (BJT), वे ट्रांजिस्टर हैं जिनमें इलेक्ट्रान और होल (hole) दोनों आवेश संवाहक का कार्य करते हैं। .

देखें ट्रांजिस्टर और बीजेटी

भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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मशीन सारावली

उन युक्तियों को मशीन (Machine) कहते हैं जो कोई उपयोगी कार्य करती हैं या करने में मदद करतीं हैं। सभी मशीनें प्राय: उर्जा लेकर (निवेश) कार्य करतीं हैं। नीचे मशीनों की सारावली दी गयी है जो मशीनों एवं उनसे सम्बन्धित उपविषयों पर एक विहंगम दृष्टि प्रस्तुत करती है। .

देखें ट्रांजिस्टर और मशीन सारावली

माइक्रोप्रोसेसर

माइक्रोप्रोसेसर (हिन्दी: सूक्ष्मप्रक्रमक) एक ऐसा डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जिसमें लाखों ट्रांजिस्टरों को एकीकृत परिपथ (इंटीग्रेटेड सर्किट या आईसी) के रूप में प्रयोग कर तैयार किया जाता है। इससे कंप्यूटर के केन्द्रीय प्रक्रमण इकाई (CPU या सीपीयू) की तरह भी काम लिया जाता है।। हिन्दुस्टान लाइव। २४ जनवरी २०१० इंटीग्रेटेड सर्किट के आविष्कार से ही आगे चलकर माइक्रोप्रोसेसर के निर्माण का रास्ता खुला था। माइक्रोप्रोसेसर के अस्तित्व में आने के पूर्व सीपीयू अलग-अलग इलेक्ट्रॉनिक अवयवों को जोड़कर बनाए जाते थे या फिर लघुस्तरीय एकीकरण वाले परिपथों से। सबसे पहला माइक्रोप्रोसेसर १९७० में बना था। तब इसका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक परिकलकों में बाइनरी कोडेड डेसिमल (बीसीडी) की गणना करने के लिए किया गया था। बाद में ४ व ८ बिट माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग टर्मिनल्स, प्रिंटर और ऑटोमेशन डिवाइस में किया गया था। विश्व में मुख्यत: दो बड़ी माइक्रोप्रोसेसर उत्पादक कंपनियां है - इंटेल (INTEL) और ए.एम.डी.(AMD)। इनमें से इन्टैल कंपनी के प्रोसेसर अधिक प्रयोग किये जाते हैं। प्रत्येक कंपनी प्रोसेसर की तकनीक और उसकी क्षमता के अनुसार उन्हे अलग अलग कोड नाम देती हैं, जैसे इंटेल कंपनी के प्रमुख प्रोसेसर हैं पैन्टियम -1, पैन्टियम -2, पैन्टियम -3, पैन्टियम -4, सैलेरॉन, कोर टू डुयो आदि.उसी तरह ए.एम.डी.

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माइक्रोफोन

एक माइक्रोफोन (जिसे बोलचाल की भाषा में Mic या Mike कहा जाता है) एक ध्वनिक-से-वैद्युत ट्रांसड्यूसर (en:Transducer) या संवेदक होता है, जो ध्वनि को विद्युतीय संकेत में रूपांतरित करता है। 1876 में, एमिली बर्लिनर (en:Emile Berliner) ने पहले माइक्रोफोन का आविष्कार किया, जिसका प्रयोग टेलीफोन स्वर ट्रांसमीटर के रूप में किया गया। माइक्रोफोनों का प्रयोग अनेक अनुप्रयोगों, जैसे टेलीफोन, टेप रिकार्डर, कराओके प्रणालियों, श्रवण-सहायता यंत्रों, चलचित्रों के निर्माण, सजीव तथा रिकार्ड की गई श्राव्य इंजीनियरिंग, FRS रेडियो, मेगाफोन, रेडियो व टेलीविजन प्रसारण और कम्प्यूटरों में आवाज़ रिकार्ड करने, स्वर की पहचान करने, VoIP तथा कुछ गैर-ध्वनिक उद्देश्यों, जैसे अल्ट्रासॉनिक परीक्षण या दस्तक संवेदकों के रूप में किया जाता है। शॉक माउंट वाला एक न्यूमन U87 कंडेंसर माइक्रोफोन वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश माइक्रोफोन यांत्रिक कंपन से एक विद्युतीय आवेश संकेत उत्पन्न करने के लिये एक विद्युतचुंबकीय प्रवर्तन (गतिज माइक्रोफोन), धारिता परिवर्तन (दाहिनी ओर चित्रित संघनित्र माइक्रोफोन), पाइज़ोविद्युतीय निर्माण (Piezoelectric Generation) या प्रकाश अधिमिश्रण का प्रयोग करते हैं। .

देखें ट्रांजिस्टर और माइक्रोफोन

मूर का नियम

समय के सापेक्ष ट्रान्जिस्टर संख्या का आलेख: देखा जा सकता है कि ट्रांजिस्टर की संख्या हर दो साल में दूनी हो रही है। मूर का नियम (Moore's law) दीर्घ अवधि में संगणन के हार्डवेयर में विकास की गति (ट्रेंड) की एक भविष्यवाणी है। सन् १९५८ में एकीकृत परिपथ के आविष्कार के बाद से किसी आईसी पर निर्मित किये जा सकने वाले ट्रांजिस्टरों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी है। यह संख्या प्राय: हर दो वर्ष में दुगूनी होती चली गयी है। इन्टेल के सह-संस्थापक गार्डन मूर ने सबसे पहले इस ट्रेंड का बारीकी से अध्ययन करने के बाद सन् १९६५ में एक शोधपत्र में प्रकाशित किया था। यद्यपि पहले उसने कहा था कि आईसी पर निर्मित होने वाले ट्रांजिस्टरों की संख्या प्रति एक वर्ष में दुगूनी होती जायेगी किन्तु बाद में इसे संशोधित करके उन्होने कहा कि यह संख्या प्रति दो वर्ष में दुगूनी होती चली जायेगी। मूर की यह भविष्यवाणी लगभग आधी शताब्दी तक (सन् २००५ में) सत्य साबित हुई है और ऐसा विश्वास है कि कम से कम एक और दशक तक यह क्रम जारी रहेगा। .

देखें ट्रांजिस्टर और मूर का नियम

यंत्र

जेम्स अल्बर्ट बोनसैक द्वारा सन् १८८० में विकसित मशीन; यह मशीन प्रति घण्टे लगभग २०० सिगरेट बनाती थी। कोई भी युक्ति जो उर्जा लेकर कुछ कार्यकलाप करती है उसे यंत्र या मशीन (machine) कहते हैं। सरल मशीन वह युक्ति है जो लगाये जाने वाले बल का परिमाण या दिशा को बदल दे किन्तु स्वयं कोई उर्जा खपत न करे। .

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रासायनिक अन्‍तर्ग्रथन

रासायनिक अन्‍तर्ग्रथन विशेषज्ञ संगम है जिसके माध्यम से न्यूरॉन एक दुसरे को और गैरतंत्रिकाकोशिकीय कोशिकाओं जैसे की मांसपेशियों में या ग्रंथि को संकेत देता है। रासायनिक अन्‍तर्ग्रथन न्यूरॉन्स को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में सर्किट फॉर्म करने की अनुमति देते है। ये धारणा और विचार को बनाए रखने वाले जैविक कंप्यूटेशन के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये तंत्रिका तंत्र को अन्य प्रणालियों से जुड़ने और नियंत्रण करने की अनुमति देते हैं। रासायनिक अन्‍तर्ग्रथन में एक न्यूरॉन एक स्नायुसंचारी को छोटे अन्तर में मुक्त करता है, जो कि दूसरे न्यूरॉन के लिए आसन्न होता है। न्यूरोट्रांसमीटर को अन्तर्ग्रथन से कुशलतापूर्वक बाहर साफ किया जाना चाहिए ताकि अन्तर्ग्रथन फिर से जल्द से जल्द कार्य के लिए तैयार हो सकें.

देखें ट्रांजिस्टर और रासायनिक अन्‍तर्ग्रथन

रैंडम एक्सैस मैमोरी

राइटेबल अस्थिर यादृच्छिक अभिगम मेमोरी का उदाहरण: तुल्यकालिक गतिशील रैम (RAM) मॉड्यूल, जो शुरू में व्यक्तिगत कंप्यूटरों, कार्यस्थलों और सर्वरों में मुख्य मेमोरी के रूप प्रयुक्त होता था। यादृच्छिक-अभिगम स्मृति (याभिस्मृति) (आमतौर पर अपने आदिवर्णिक शब्द, रैम (RAM) द्वारा जानी जाती है), कंप्यूटर डाटा संग्रहण का एक रूप है। आज यह एकीकृत परिपथ का रूप धारण करती है जो संग्रहीत डाटा को किसी भी क्रम में, अर्थात् जो इच्छा हो, यादृच्छिक) अभिगमित होने की अनुमति प्रदान करता है। शब्द यादृच्छिक इस प्रकार इस तथ्य को संदर्भित करता है कि डाटा का कोई भी हिस्सा अपनी भौतिक स्थिति और चाहे यह डाटा के पिछले हिस्से से संबंधित हो या न हो, इन सबकी परवाह किए बगैर निर्धारित समय में वापस आ सकता है। यह सिस्टम बस के साथ की आवृति पर काम करती है तो SDRAM कहलाती है जो आजकल कम्पयूटरों में सबसे अधिक प्रयुक्त होती है। इसकी इसके विपरीत, भंडारण उपकरण जैसे चुंबकीय डिस्क और प्रकाशीय डिस्क, रिकॉर्डिंग माध्यम या पठनीय सिरे की भौतिक गति पर निर्भर करते हैं। इन उपकरणों में, गति में डाटा स्थानांतरण से अधिक समय लगता है और अगली विषय-वस्तु की भौतिक स्थिति के आधार पर पुनर्प्राप्ति समय बदलता रहता है। शब्द रैम (RAM) अक्सर अस्थिर या वोलाटाइल प्रकार की मेमोरी (जैसे डीरैम (DRAM) मेमोरी मॉड्यूल) से संबंधित होता है जहां बिजली का संचालन बंद हो जाने पर सूचना खो जाती है। अधिकतर रोम (ROM) और नोर-फ़्लैश (NOR-Flash) कहे जाने वाले एक प्रकार के फ़्लैश मेमोरी सहित कई अन्य प्रकार की मेमोरी रैम (RAM) भी है। RAM दो प्रकार की होती है। static RAM aur daynemic RAM होती है। .

देखें ट्रांजिस्टर और रैंडम एक्सैस मैमोरी

रेडियो संग्राही

रेडियो संग्राही रेडियो संग्राही (radio receiver) एक विद्युत परिपथ है जो विद्युतचुम्बकीय तरंगों के रूप में उपलब्ध संकेतों को एंटेना के द्वारा ग्रहण करने के बाद इसका सम्यक प्रसंस्करण करते हुए अन्त में ध्वनि या किसी अन्य उपयोगी रूप में प्रस्तुत करता है। .

देखें ट्रांजिस्टर और रेडियो संग्राही

लघु प्रवर्धक

लघु प्रवर्धक या 'लॉग एम्प्लिफायर' वह प्रवर्धक है जिसका आउटपुट वोल्टेज Vout, इनपुट वोल्टेज Vin के प्राकृतिक लघुगणक के K गुना हो। जहाँ Vref नॉर्मलाइजेशन नियतांक (normalization constant, वोल्ट में) है। .

देखें ट्रांजिस्टर और लघु प्रवर्धक

लॉजिक गेट

74 शृंखला के एक NAND गेट आईसी का व्यवस्था आरेख (उपर) तथा वास्तविक फोटो (नीचे) तर्कद्वार या लॉजिक गेट (logic gate) वह युक्ति है जिसका आउटपुट उसके इनपुट पर उपस्थित वर्तमान संकेतों या पूर्व संकेतों का कोई लॉजिकल फलन (Boolean function) हो। यह भौतिक युक्ति हो सकती है या कोई आदर्शीकृत युक्ति। आजकल अधिकतर अर्धचालक लॉजिक गेट प्रयोग किये जाते हैं किन्तु सिद्धान्ततः ये विद्युतचुम्बकीय रिले, तरल लॉजिक, दाब लॉजिक, प्रकाशिक लॉजिक, अणुओं आदि से भी बनाये जा सकते हैं। बूलीय लॉजिक से जिन अल्गोरिथ्म का वर्णन किया जा सकता है उन्हें इन भौतिक गेटों से उन अल्गोरिद्मों को साकार रूप भी दिया जा सकता है (बनाया भी जा सकता है)। जिस प्रकार एक दरवाजा (द्वार) दो अवस्थाओं - 'खुला या बन्द' में हो सकता है, उसी तरह लॉजिक गेट का आउटपुट भी 'हाई या लो' (High/Low) हो सकता है। लॉजिक गेट, ऐण्ड (AND) और ऑर (OR) जैसे सरल भी हो सकते हैं और एक कम्प्युटर जितना जटिल भी। डायोड का उपयोग करके बनाया गया लॉजिक गेट सबसे सरल लॉजिक गेट है। किन्तु इसके केवल AND तथा OR गेट ही बनाये जा सकते हैं, 'इन्वर्टर' नहीं बनाया जा सकता। अतः इसे एक 'अपूर्ण लॉजिक परिवार' कह सकते हैं। इन्वर सहित सभी लॉजिक गेट बनाने में सक्षम होने के लिये किसी प्रकार के प्रवर्धक की जरूरत होगी। इसलिये 'सम्पूर्ण लॉजिक परिवार' बनाने के लिये रिले, निर्वात नलिका या ट्रांजिस्टर का प्रयोग अपरिहार्य है। बाइपोलर ट्रांजिस्टरों का प्रयोग करके बना लॉजिक परिवार रेजिस्टर-ट्रांजिस्टर लॉजिक (RTL) कहलाता है। आरम्भिक एकीकृत परिपथों में इसी का उपयोग किया गया था। इसके बाद विभिन्न दृष्टियों से सुधार करते हुए डायोड-ट्रांजिस्टर लॉजिक (DTL) और ट्रांजिस्टर-ट्रांजिस्टर लॉजिक (TTL) आये। अब लगभग सब जगह ट्रांजिस्टर का स्थान मॉसफेट (MOSFETs) ने ले लिया है जिससे आईसी कम स्थान घेरती है और काम करने के लिये कम उर्जा क्षय होती है। वर्तमान में प्रयुक्त लॉजिक परिवार का नाम कम्प्लिमेन्टरी मेटल-आक्साइड-सेमिकंडक्टर (CMOS) है। .

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शाकले डायोड समीकरण

शाकले डायोड समीकरण (Shockley diode equation) एक समीकरण है जो आदर्श डायोड की I–V (धारा-वोल्टता) वैशिष्ट्य को प्रकट करता है। यह नाम ट्रांजिस्टर के सह-आविष्कर्ता विलियम शाकले के नाम पर रखा गया है। इस समीकरण को डायोड नियम (डायोड ला) भी कहते हैं। जहाँ श्रेणी:डायोड.

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शक्ति मॉसफेट

पॉवर मॉसफेट: ये दोनो ही मॉसफेट १२० वोल्ट और ३० अम्पीयर सतत धारा ले सकने में सक्षम हैं। शक्ति मॉसफेट या 'पॉवर मॉसफेट' (Power MOSFET) विशेष प्रकार के मॉसफेट होते हैं जो अपेक्षाकृत अधिक विद्युत शक्ति संभाल सकते हैं। अर्थात ये अधिक वोल्टता या अधिक धारा या अधिक वोल्टता और धारा को हैंडिल करने में सक्षम होते हैं। आईजीबीटी, एससीआर आदि अन्य पावर-एलेक्ट्रानिक युक्तियों की अपेक्षा इन्हें उपयोग में लाने का मुख्य लाभ यह है कि इन्हें अधिक आवृत्ति पर चालू-बन्द (ON/OFF) किया जा सकता है। शक्ति-परिपथों को जितनी अधिक आवृत्ति पर चलाया जाता है, उनमें लगने वाले प्रेरकत्व, ट्रांसफॉर्मर, संधारित्र आदि का आकार उतने ही छोटे होते हैं। शक्ति मॉसफेट विशेषतः कम वोल्टता पर काम करना हो तो पॉवर मॉसफेट के उपयोग से दक्षता अधिक मिलती है। अधिक वोल्टता वाले पॉवर मॉसफेटों की चालू अवस्था का प्रतिरोध (ON resistance) अधिक होता है जिसके कारण इनके उपयोग से अधिक शक्ति क्षय होता है और कम दक्षता प्राप्त होती है। इसी कारण शक्ति मॉसफेट कम वोल्टता (२०० वोल्ट से कम) पर सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला स्विच है। शक्ति मॉसफेट के कार्य करने का तरिका वही है जो कम शक्ति पर काम करने वाले मॉसफेट का है। जब सन् १९७० दशक के आखिरी दिनों में आईसी निर्माण के लिये CMOS तकनीक का विकास हुआ तो मॉसफेट का जन्म हुआ। .

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शुष्क सेल

विभिन्न आकार-प्रकार के शुष्क सेल शुष्क सेल का रेखाचित्र (१) पीतल की टोपी (२) प्लास्टिक की सील (३) वृद्धि के लिये स्थान (४) सछिद्र कार्डबोर्ड (५) जस्ते का पात्र (६) कार्बन की छड़ (७) रासायनिक मिश्रण शुष्क सेल (dry cell) एक प्रकार के विद्युतरासायनिक सेल है जो कम बिजली से चल सकने वाले पोर्टेबल विद्युत-युक्तियों (जैसे ट्रांजिस्टर रेडियो, टार्च, कैलकुलेटर आदि) में प्रयुक्त होते हैं। इसके अन्दर जो विद्युत अपघट्य (electrolyte) उपयोग में लाया जाता है वह लेई-जैसा कम नमी वाला होता है। इसमें किसी द्रव का प्रयोग नहीं किया जाता जिसके कारण इसे "शुष्क" सेल कहा जाता है। (कार आदि में प्रयुक्त बैटरियों में प्रयुक्त विद्युत अपघट्य द्रव के रूप में होता है।) चूंकि इसमें कुछ भी चूने (लीक) लायक द्रव नहीं होता, पोर्टेबल युक्तियों में इसका उपयोग सुविधाजनक होता है। सामान्यत: प्रयोग में आने वाला शुष्क सेल वस्तुत: एक जिंक-कार्बन बैटरी होती है जिसे शुष्क लेक्लांची सेल (Leclanché cell) भी कहते हैं। इसकी सामान्य स्थिति (बिना धारा की स्थिति में) में वोल्टता १.५ वोल्ट होती है जो कि अल्कलाइन बैटरी के सामान्य वोल्टता के बराबर ही है। जहाँ १.५ वोल्ट से अधिक वोल्टेज की जरूरत होती है वहाँ कई ऐसे सेल श्रेणी क्रम (series) में जोड़ दिये जाते हैं। (३ सेल श्रेणी क्रम में जोड़ने पर ४.५ वोल्ट देते हैं; ९ वोल्ट की बहुप्रचलित बैटरी में ६ कार्बन-जिंक या अल्कलाइन-सेल सीरीज में जुड़े होते हैं)। इसी तरह जहाँ अधिक धारा की आवश्यकता होती है वहाँ कई सेलों को समान्तर क्रम (parallel) में जोड़ दिया जाता है। .

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श्रव्य प्रवर्धक

एकीकृत परिपथ (आईसी) से बना एक श्रव्य शक्ति प्रवर्धक आईसी के रूप में एक श्रव्य-आवृत्ति प्रवर्धक (Lm3886tf) ऐसे एलेक्ट्रानिक प्रवर्धक को श्रव्य प्रवर्धक या आडियो एम्प्लिफायर (audio amplifier) कहते हैं जो कम शक्ति के श्रव्य संकेतों का प्रवर्धन कर सकें। श्रव्य-आवृत्‍ति शक्ति प्रवर्धक (audio power amplifier) वह एलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक है जो कम शक्ति के श्रव्य आवृत्ति वाले विद्युत संकेतों को प्रवर्धित करके उनको इतना शक्तिशाली बना दे कि वे लाउडस्पीकर को चला सकें। उन संकेतों को श्रव्य संकेत (आडियो सिगनल) कहते हैं जिनकी आवृत्ति २० हर्ट्ज से लेकर २० हजार हर्ट्ज के बीच होती है। इस सीमा के भीतर की आवृत्तियों वाले संकेत ही मानव कर्ण को सुनाई पड़ते हैं, इससे कम या अधिक के नहीं। श्रव्य प्रवर्धकों का निवेश संकेत (इनपुट सिगनल) कुछ सौ माइक्रोवाट के स्तर का होता है जबकि आउटपुट दस, सौ या हजार वाट के स्तर का हो सकता है। श्रव्य प्रवर्धक, रेडियो, टीवी, टेलीफोन, सेलफोन आदि के आवश्यक अंग है। .

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संगणन हार्डवेयर का इतिहास

सूचना संसाधन (ब्लॉक आरेख) के लिए कंप्यूटिंग हार्डवेयर एक उचित स्थान है संगणन हार्डवेयर का इतिहास कंप्यूटर हार्डवेयर को तेज, किफायती और अधिक डेटा भंडारण में सक्षम बनाने के लिए चल रहे प्रयासों का एक रिकॉर्ड है। संगणन हार्डवेयर का विकास उन मशीनों से हुआ है जिसमें हर गणितीय ऑपरेशन के निष्पादन के लिए, पंच्ड कार्ड मशीनों के लिए और उसके बाद स्टोर्ड प्रोग्राम कम्प्यूटरों के लिए अलग मैनुअल कार्रवाई की आवश्यकता होती है। स्टोर्ड प्रोग्राम कंप्यूटरों के इतिहास का संबंध कंप्यूटर आर्किटेक्चर यानी इनपुट और आउटपुट को निष्पादित करने, डेटा संग्रह के लिए और एक एकीकृत यंत्रावली के रूप में यूनिट की व्यवस्था से होता है (दाएं ब्लॉक आरेख को देखें).

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संकर एकीकृत परिपथ

एक प्रिंटित परिपथ बोर्ड पर नारंगी रंग के एपॉक्सी में गड़ा हुआ संकर परिपथ एक संकर परिपथ जिसमें लेजर से ट्रिम किये गये प्रतिरोध लगे हैं (काले रंग के क्षेत्र) अलग-अलग एलेक्ट्रॉनिक अवयवों (डायोड, ट्रान्जिस्टर, प्रतिरोध, सन्धारित्र आदि) को किसी उपयुक्त आधार (जैसे पीसीबी आदि) पर जोडकर निर्मित लघु आकार के परिपथ को संकर एकीकृत परिपथ (हाइब्रिड इन्टीग्रेटेड सर्किट) कहते हैं। संकर परिपथों को प्रायः ऊपर से एपॉक्सी से ढक दिया जाता है। संकर एकीकृत परिपथ, सामान्य एकीकृत परिपथ जैसे ही उपयोग किये जाते हैं - अर्थात किसी एक अवयव की भांति। अन्तर केवल यह है कि सामान्य एकीकृत परिपथ के अन्दर लगे हुए अवयव एक साथ ही निर्मित किये जाते हैं जबकि संकर एकीकृत परिपथ में प्रयुक्त अवयव पहले से निर्मित अवयव होते हैं जो कहीं और भी उपयोग में लिये जा सकते थे। संकर परिपथ का एक बहुत बड़ा लाभ यह है कि इनमें वे भी अवयव उपयोग में लाये जा सकते हैं जिन्हें सामान्य एकीकृत परिपथों में निर्मित करना कठिन या असम्भव होता है, जैसे बड़े-बड़े सन्धारित्र (कैपेसिटर), क्रिस्टल, तार लपेटकर बने ट्रान्सफार्मर, चोक आदि। .

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सौर सेल

मोनोक्रिस्टलाइन सिलिकॉन वैफ़र से बना सौर सेल सौर बैटरी या सौर सेल फोटोवोल्टाइक प्रभाव के द्वारा सूर्य या प्रकाश के किसी अन्य स्रोत से ऊर्जा प्राप्त करता है। अधिकांश उपकरणों के साथ सौर बैटरी इस तरह से जोड़ी जाती है कि वह उस उपकरण का हिस्सा ही बन जाती जाती है और उससे अलग नहीं की जा सकती। सूर्य की रोशनी से एक या दो घंटे में यह पूरी तरह चार्ज हो जाती है। सौर बैटरी में लगे सेल प्रकाश को समाहित कर अर्धचालकों के इलेक्ट्रॉन को उस धातु के साथ क्रिया करने को प्रेरित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मार्च २०१० एक बार यह क्रिया होने के बाद इलेक्ट्रॉन में उपस्थित ऊर्जा या तो बैटरी में भंडार हो जाती है या फिर सीधे प्रयोग में आती है। ऊर्जा के भंडारण होने के बाद सौर बैटरी अपने निश्चित समय पर डिस्चार्ज होती है। ये उपकरण में लगे हुए स्वचालित तरीके से पुनः चालू होती है, या उसे कोई व्यक्ति ऑन करता है। सौर सेल का चिह्न एक परिकलक में लगे सौर सेल अधिकांशतः जस्ता-अम्लीय (लेड एसिड) और निकल कैडमियम सौर बैटरियां प्रयोग होती हैं। लेड एसिड बैटरियों की कुछ सीमाएं होती हैं, जैसे कि वह पूरी तरह चार्ज नहीं हो पातीं, जबकि इसके विपरीत निकल कैडिमयम बैटरियों में यह कमी नहीं होती, लेकिन ये अपेक्षाकृत भी होती हैं। सौर बैटरियों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में भी प्रयोग करने हेतु भी गौर किया जा रहा है। अभी तक, इन्हें केवल छोटे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोगनीय समझा जा रहा है। पूरे घर को सौर बैटरी से चलाना चाहे संभव हो, लेकिन इसके लिए कई सौर बैटरियों की आवश्यकता होगी। इसकी विधियां तो उपलब्ध हैं, लेकिन यह अधिकांश लोगों के लिए अत्यधिक महंगा पड़ेगा। बहुत से सौर सेलों को मिलाकर (आवश्यकतानुसार श्रेणीक्रम या समानान्तरक्रम में जोड़कर) सौर पैनल, सौर मॉड्यूल, एवं सौर अर्रे बनाये जाते हैं। सौर सेलों द्वारा जनित उर्जा, सौर उर्जा का एक उदाहरण है। .

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सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी

सूक्ष्म-इलेक्ट्रॉनिकी (Microelectronics) इलेक्ट्रॉनिकी का एक उपक्षेत्र है। यह अत्यन्त सूक्ष्म आकार के एलेक्ट्रॉनिक अवयवों के अध्ययन एवं उनके विनिर्माण से संबन्धित है। प्रायः (किन्तु हमेशा नहीं) यह आकार माइक्रोमीटर के तुल्य आकार का या इससे छोटा होता है। युक्तियाँ अर्धचालकों से बनायी जाती हैं। आजकल एलेक्ट्रॉनिक डिजाइन में काम आने वाले बहुत से अवयव जैसे ट्रांजिस्टर, संधारित्र, प्रेरकत्व, प्रतिरोध तथा डायोड आदि सूक्ष्मएलेक्ट्रानिक रूप उपलब्ध हैं। .

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सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट

एक इंटेल 80486DX2 सीपीयू, जैसा कि ऊपर से देखा। एक इंटेल 80486DX2 के नीचे की ओर, इसका पिन दिखा। एक सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सीपीयू) बुनियादी गणित, तार्किक, नियंत्रण और इनपुट / आउटपुट (आई / ओ) के संचालन के निर्देश के द्वारा निर्दिष्ट प्रदर्शन से एक कंप्यूटर प्रोग्राम के निर्देशों से बाहर किया जाता है कि एक कंप्यूटर के भीतर इलेक्ट्रॉनिक विद्युत्-परिपथ तंत्र है। अवधि कम से कम १९६० के दशक के बाद से कंप्यूटर उद्योग में इस्तेमाल किया गया है। परंपरागत रूप से, शब्द " सीपीयू " एक प्रोसेसर के लिए, और अधिक विशेष रूप से अपने प्रसंस्करण इकाई और नियंत्रण इकाई (मुद्रा) को संदर्भित करता है, इस तरह के मुख्य स्मृति और मैं / हे विद्युत्-परिपथ तंत्र के रूप में बाह्य घटकों से एक कंप्यूटर के इन मूल तत्वों भेद| रूप, डिज़ाइन और सीपीयू के कार्यान्वयन के अपने इतिहास के पाठ्यक्रम में बदल गया है, लेकिन उनके मौलिक ऑपरेशन लगभग अपरिवर्तित बनी हुई है। एक सीपीयू के प्रमुख घटक अंकगणितीय तर्क इकाई (ALU) कि गणित और तर्क संचालन करता है शामिल हैं, प्रोसेसर रजिस्टरों कि ALU के लिए आपूर्ति ऑपरेंड और ALU आपरेशन के परिणामों, और एक नियंत्रण इकाई है कि स्मृति से निर्देश मिलता है और " कार्यान्वित " उन्हें स्टोर ALU, रजिस्टरों और अन्य घटकों के समन्वित संचालन निर्देशन द्वारा। अधिकांश आधुनिक सीपीयू माइक्रोप्रोसेसरों हैं, जिसका अर्थ है कि वे एक एकल एकीकृत परिपथ (आईसी) चिप पर समाहित कर रहे हैं। एक आईसी कि एक सीपीयू भी स्मृति, परिधीय इंटरफेस है, और एक कंप्यूटर के अन्य घटकों को शामिल कर सकते हैं शामिल हैं, इस तरह के एकीकृत उपकरणों विभिन्न एक चिप (समाज) पर माइक्रोकंट्रोलर या सिस्टम कहा जाता है। कुछ कंप्यूटर एक मल्टी कोर प्रोसेसर है, जो दो या अधिक सीपीयू "कोर " कहा जाता है, जिसमें एक चिप है रोजगार; इस संदर्भ में, एकल चिप्स कभी कभी "कुर्सियां ​​" के रूप में करने के लिए भेजा जाता है। ऐरे प्रोसेसर या वेक्टर प्रोसेसर एकाधिक प्रोसेसर है कि कोई इकाई केंद्रीय माना के साथ समानांतर में काम करते हैं, लोगों की है। .

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जाइरेटर

जाइरेटर का प्रतीक (टेलिगन द्वारा प्रस्तावित) परिभ्रमित्र या जाइरेटर एक पैसिव, रैखिक, ह्रासरहित, द्वि-पोर्ट विद्युत नेटवर्क अवयव है जिसे १९४८ में बर्नार्ड डी एच टेलिगन ने प्रस्तावित किया था। चार परम्परागत अवयवों (प्रतिरोध, संधारित्र, प्रेरकत्व, तथा ट्रान्सफॉर्मर) से यह इस मामले में भिन्न है कि जाइरेटर एक अव्युत्क्रम अवयव है। जाइरेटर की सहायता से उन दो या अधिक पोर्ट वाली युक्तियों का भी प्रत्यक्षीकरण (रियलाइजेशन) किया जा सकता है जिनको केवल चार परम्परागत अवयवों द्वारा नहीं बनाया जा सकता। उदाहरण के लिये, जाइरेटर की सहायता से सर्कुलेटर और आइसोलेटर का प्रत्यक्षीकरण सम्भव है। ट्रान्जिस्टर और ऑप-ऐम्प का उपयोग करते हुए फीडबैक लगाकर जाइरेटर परिपथ बनाया जा सकता है। .

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जॉन बर्दीन

जॉन बर्दीन जॉन बर्दीन(23 मई 1908 - 30 जनवरी 1991) एक अमेरिकी भौतिक वैज्ञानिक थे जिन्हें विलियम शोक्ली और वॉल्टर ब्रैट्टैन के साथ 1947 में ट्रांज़िस्टर इजाद करने के लिये 1956 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। उन्हें 1972 में अतिचालकता का बी॰सी॰एस॰ सिद्धांत बनाने के लिये फिरसे इस पुरस्कार से नवाज़ा गया। .

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ईएमआई (EMI)

ईएमआई समूह (इलेक्ट्रिक एंड म्यूजिकल इन्डसट्रीज़ लिमिटेड- Electric & Musical Industries Ltd.) एक ब्रिटिश संगीत कम्पनी है। यह रिकॉर्डिंग उद्योग का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक समूह (बिजनेस ग्रुप) तथा इसे "चार बड़ी" रिकॉर्ड कम्पनियों में से एक बनाने वाली रिकार्ड लेबल की फैमिली है और इसी कारण से यह "चार बड़ी" रिकॉर्ड कम्पनियों में से एक है और साथ ही आरआईएए (RIAA) का एक सदस्य भी है। ईएमआई समूह का एक बड़ा प्रकाशन उपक्रम-ईएमआई म्यूजिक पब्लिशिंग (EMI Music Publishing)-न्यूयॉर्क शहर में स्थित है। एक समय ऐसा था जब यह कम्पनी एफटीएसई 100 सूचकांक का एक घटक थी, लेकिन आज टेरा फ़र्मा कैपिटल पार्टनर्स (Terra Firma Capital Partners) का इस पर पूरा स्वामित्व है। .

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विदारी नवप्रवर्तन

विदारी नवप्रवर्तन, समय के साथ सबसे आगे निकल जाता है। वह नवप्रवर्तन जो नया बाजार और नया नेटवर्क निर्मित करता है और अन्ततः वर्तमान बाजार और नेटवर्क को छिन्न-भिन्न करके बाजार में स्थापित अग्रणी कम्पनियों को हटा देता है, उसे विदारी नवप्रवर्तन (disruptive innovation) या विदारी प्रौद्योगिकी (डिस्रप्टिव टेक्नॉलॉजी) कहते हैं। उदाहरण.

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विद्युत परिपथ

एक सरल विद्युत परिपथ जो एक वोल्टेज स्रोत एवं एक प्रतिरोध से मिलकर बना है ब्रेडबोर्ड के ऊपर बनाया गया एक सरल परिपथ (मल्टीवाइव्रेटर) विद्युत अवयवों (वोल्टेज स्रोत, प्रतिरोध, प्रेरकत्व, संधारित्र एवं कुंजियों आदि) एवं विद्युतयांत्रिक अवयवों (स्विच, मोटर, स्पीकर आदि) का परस्पर संयोजन विद्युत परिपथ (Electric circuit) अथवा विद्युत नेटवर्क (electrical network) कहलाता है। विद्युत परिपथ बहुत विशाल क्षेत्र में फैले हो सकते हैं; जैसे-विद्युत-शक्ति के उत्पादन, ट्रान्समिसन, वितरण एवं उपभोग का नेटवर्क। बहुत से विद्युत परिपथ प्राय: प्रिन्टेड सर्किट बोर्डों पर संजोये जाते हैं। विद्युत परिपथ अत्यन्त लघु आकार के भी हो सकते हैं; जैसे एकीकृत परिपथ। जब किसी परिपथ में डायोड, ट्रान्जिस्टर या आईसी आदि लगे होते हैं तो उसे एलेक्ट्रॉनिक परिपथ भी कहा जाता है जो कि विद्युत परिपथ का ही एक रूप है। विद्युत परिपथ को परिपथ आरेख (सर्किट डायग्राम) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। प्रायः एक या अधिक बन्द लूप वाले नेटवर्क ही विद्युत परिपथ कहलाते हैं। .

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विद्युत इंजीनियरी का इतिहास

Blathy wattmeter विद्युत के संबन्ध में प्राचीन काल से ही कुछ काम हुए थे किन्तु इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास उन्नीसवीं शदी में ही आरम्भ हुआ। .

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विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास

एफिल टॉवर पर बिजली (१९०२) विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास उसी समय से शुरू माना जा सकता है जबसे प्राचीन काल में लोगों ने वायुमण्डलीय विद्युत (विशेषतः तड़ित) को समझना शुरू किया। .

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विद्युतीय प्रतीक

बहुधा प्रयुक्त विद्युतीय प्रतीक विद्युत अभियांत्रिकी तथा इलेक्ट्रॉनिकी में किसी परिपथ के चित्रमय प्रदर्शन के लिये उस परिपथ में प्रयुक्त विभिन्न अवयवों (जैसे तार, बैटरी, डायोड, प्रतिरोध आदि के लिये मानक प्रतीक उपयोग किये जाते हैं। आजकल लगभग सभी देशों में लगभग एक समान प्रतीक प्रयोग किये जा रहे हैं। किसी अवयव का प्रतीक काफी सीमा तक उस अवयव के किसी प्रमुख गुणधर्म को चित्रित करता है। .

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वैज्ञानिक परिकलित्र

कैशियो कम्पनी का FX-77 कैल्कुलेटर: सौर-ऊर्जा से चलने वाला, एक लाइन डिस्प्ले वाला यह वैज्ञानिक परिकलित्र १९८० के दशक में प्रचलित हुआ था। टेक्सास इंस्ट्रुमेण्ट्स (TI) का ग्राफीय परिकलित्र उन इलेक्ट्रॉनिक परिकलित्रों को वैज्ञानिक परिकलित्र (scientific calculator) कहते हैं जो विज्ञान, इंजीनियरी तथा गणित की गणनाओं के लिए प्रयुक्त होते हैं। साधारण परिकलित्रों में केवल जोड़, घटाना, गुणा, भाग आदि साधारण गणितीय कार्य की सुविधा होती है जबकि वैज्ञानिक परिकलित्रों में इनके अतिरिक्त त्रिकोणमितीय, लघुगणकीय, घात, संख्याओं का वैज्ञानिक निरूपण, आदि की क्रियाएँ भी की जा सकतीं हैं। वैज्ञानिक परिकलित्रों के आने से स्लाइड रूल का प्रयोग लगभग पूरी तरह समाप्त हो गया। अब उच्च शिक्षा तथा अन्य उच्च कार्यों में वैज्ञानिक परिकलित्र का स्थान ग्राफीय परिकलित्रों (graphing calculators) ने ले लिया है। ये परिकलित्र वैज्ञानिक परिकलित्र का सारा काम करते ही हैं, ये आंकड़ों या किसी फलन को ग्राफ के रूप में भी प्रदर्शित कर सकते हैं। इनमें प्रोग्राम करने तथा प्रोग्रामों को भण्डारित करने की भी सुविधा आ गयी है। .

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इलैक्ट्रॉनिक्स

तल पर जुड़ने वाले (सरफेस माउंट) एलेक्ट्रानिक अवयव विज्ञान के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स या इलेक्ट्रॉनिकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का वह क्षेत्र है जो विभिन्न प्रकार के माध्यमों (निर्वात, गैस, धातु, अर्धचालक, नैनो-संरचना आदि) से होकर आवेश (मुख्यतः इलेक्ट्रॉन) के प्रवाह एवं उन पर आधारित युक्तिओं का अध्ययन करता है। प्रौद्योगिकी के रूप में इलेक्ट्रॉनिकी वह क्षेत्र है जो विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों (प्रतिरोध, संधारित्र, इन्डक्टर, इलेक्ट्रॉन ट्यूब, डायोड, ट्रान्जिस्टर, एकीकृत परिपथ (IC) आदि) का प्रयोग करके उपयुक्त विद्युत परिपथ का निर्माण करने एवं उनके द्वारा विद्युत संकेतों को वांछित तरीके से बदलने (manipulation) से संबंधित है। इसमें तरह-तरह की युक्तियों का अध्ययन, उनमें सुधार तथा नयी युक्तियों का निर्माण आदि भी शामिल है। ऐतिहासिक रूप से इलेक्ट्रॉनिकी एवं वैद्युत प्रौद्योगिकी का क्षेत्र समान रहा है और दोनो को एक दूसरे से अलग नही माना जाता था। किन्तु अब नयी-नयी युक्तियों, परिपथों एवं उनके द्वारा सम्पादित कार्यों में अत्यधिक विस्तार हो जाने से एलेक्ट्रानिक्स को वैद्युत प्रौद्योगिकी से अलग शाखा के रूप में पढाया जाने लगा है। इस दृष्टि से अधिक विद्युत-शक्ति से सम्बन्धित क्षेत्रों (पावर सिस्टम, विद्युत मशीनरी, पावर इलेक्ट्रॉनिकी आदि) को विद्युत प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत माना जाता है जबकि कम विद्युत शक्ति एवं विद्युत संकेतों के भांति-भातिं के परिवर्तनों (प्रवर्धन, फिल्टरिंग, मॉड्युलेश, एनालाग से डिजिटल कन्वर्शन आदि) से सम्बन्धित क्षेत्र को इलेक्ट्रॉनिकी कहा जाता है। .

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इलेक्ट्रानिक परिपथ

घरों के पंखे, बल्ब आदि की शक्ति नियंत्रित करने वाला परिपथ; इसमें ट्रायक का उपयोग किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (electronic circuit) वह परिपथ है जिसमें प्रतिरोधक, संधारित्र, ट्रांजिस्टर, प्रेरकत्व, डायोड आदि तार से या बोर्ड पर बने चालक मार्गों से जुड़े हों। इसके मुख्य दो प्रकार हैं- एनालाग परिपथ और डिजिटल परिपथ। जिस परिप्थ में एनालॉग और डिजिटल दोनों का मिश्रण होता है उसे मिश्रि परिपथ (मिक्स्ड सर्किट) या संकर परिपथ (हाइब्रिड सर्किट) कहते हैं। श्रेणी:विद्युत परिपथ *.

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इलेक्ट्रॉनिक इंजिनीयरी का इतिहास

इलेक्ट्रॉनिकी का आधुनिक रूप रेडियो एवं दूरदर्शन के विकास के रूप में सामने आया। साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध में प्रयुक्त रक्षा उपकरणों एवं रक्षा-तन्त्रों से भी इसका महत्व उभरकर सामने आया। किन्तु इलेक्ट्रॉनिकी की नीव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी। इलेक्ट्रॉनिकी के विकास की मुख्य घटनायें एवं चरण संक्षेप में इस प्रकार हैं.

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इलेक्ट्रॉनिक अवयव

कुछ प्रमुख '''इलेक्ट्रॉनिक अवयव''' जिन विभिन्न अवयवों का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक परिपथ (जैसे- आसिलेटर, प्रवर्धक, पॉवर सप्लाई आदि) बनाये जाते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक अवयव (electronic component) कहते हैं इलेक्ट्रॉनिक अवयव दो सिरे वाले, तीन सिरों वाले या इससे अधिक सिरों वाले होते हैं जिन्हें सोल्डर करके या किसी अन्य विधि से (जैसे स्क्रू से कसकर) परिपथ में जोड़ा जाता है। प्रतिरोधक, प्रेरकत्व, संधारित्र, डायोड, ट्रांजिस्टर (या बीजेटी), मॉसफेट, आईजीबीटी, एससीआर, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, आपरेशनल एम्प्लिफायर एवं अन्य एकीकृत परिपथ आदि प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक अवयव हैं। प्रमुख एलेक्ट्रॉनिक अवयवों के प्रतीक .

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इंसुलेटेड गेट बाईपोलर ट्रांजिस्टर

एक आई.जी.बी.टी का पार-अनुभाग (क्रॉस-सेक्शन) जिसमें मॉस्फेट और बाईपोलर ट्रांज़िस्टर के आंतरिक कनेक्शन दिखाये गये हैं आइजीबीटी का प्रतीक चिन्ह इन्सुलेड गेट बाइपोलर ट्रान्जिस्टर (अंग्रेज़ी:Insulated Gate Bipolar Transistor, लघु:आइजीबीटी) एक अर्धचालक वैद्युत युक्ति है जो आधुनिक शक्ति इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में त्वरित स्विच के रूप में प्रयोग की जा रही है। इसमें तीन सिरे होते हैं - कलेक्टर, एमिटर और गेट। जैसा कि नाम से ही विदित है, इसका गेट 'इन्सुलेटेड' होता है जिसके कारण इसे ड्राइव करना ट्रान्जिस्टर की तुलना में आसान है। आइजीबीटी को ट्रान्जिस्टर और मॉसफेट के सम्मिलन से बनी युक्ति (डिवाइस) के रूप में देखा जाता है जिसका इन्पुट (गेट) मॉसफेट् जैसा है और आउटपुट बीजेटी जैसा। आइजीबीटी में कई अच्छाइयाँ है। वस्तुत: इसमें मॉसफेट और बीजेटी दोनो की अच्छाइयों का मेल है। इसको ड्राइव करना बीजेटी से आसान है और चालू (ON) स्टेट में इसमें शक्ति की हानि मोस्फेट् की अपेक्षा कम होता है। इस कारण मध्यम शक्ति के कार्यों के लिये इस डिवाइस ने बीजेटी और मॉस्फेट दोनो को बाहर कर दिया है। उच्च दक्षता के साथ स्विच करने में समर्थ होने के कारण यह आज के विद्युत कारों, वैरिएबल स्पीड रेफ्रिजेरटरों, एयर-कन्डिशनरों, वरिएबल स्पीड ड्राइव आदि में प्रयुक्त हो रही है। .

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कार्बन नैनोट्यूब

कार्बन नैनोट्यूब का घूर्णन करता यह एनिमेशन उसकी 3 डी संरचना को दर्शाता है। कार्बन नैनोट्यूब (CNTs) एक बेलनाकार नैनोसंरचना वाले कार्बन के एलोट्रोप्स हैं। नैनोट्यूब को 28,000,000:1 तक के लंबाई से व्यास अनुपात के साथ निर्मित किया गया है, जो महत्वपूर्ण रूप से किसी भी अन्य द्रव्य से बड़ा है। इन बेलनाकार कार्बन अणुओं में नवीन गुण हैं जो उन्हें नैनोतकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के कई अनुप्रयोगों के साथ-साथ वास्तु क्षेत्र में संभावित रूप से उपयोगी बनाते हैं। वे असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत् गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल ताप परिचालक हैं। उनका अंतिम उपयोग, लेकिन, उनकी संभावित विषाक्तता और रासायनिक शोधन की प्रतिक्रिया में उनके गुण परिवर्तन को नियंत्रित करने के द्वारा सीमित हो सकता है। नैनोट्यूब फुलरीन संरचनात्मक परिवार के सदस्य हैं, जिसमें गोलाकार बकिबॉल भी शामिल हैं। एक नैनोट्यूब के छोर को बकिबॉल संरचना के एक गोलार्द्ध के साथ ढका जा सकता है। उनका नाम उनके आकार से लिया गया है, चूंकि एक नैनोट्यूब का व्यास कुछ नैनोमीटर के क्रम में है (एक मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/50,000 वां हिस्सा), जबकि वे लंबाई में कई मिलीमीटर हो सकते हैं (यथा 2008).

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कंप्यूटर के विभिन्न पीढ़ि

कंप्यूटर के विकास का इतिहास अक्सर अलग पीढ़ी दर पीढ़ी कंप्यूटिंग उपकरणों के संदर्भ में है। यह यात्रा वैक्यूम ट्यूबों के साथ 1940 में शुरू हुई और तब से चली आ रही है। वर्तमान में यह कृत्रिम बुद्धि का प्रयोग कर तरक्की कर रही है। कंप्यूटर की पाँच पीढ़ियाँ में प्रत्येक पीढ़ि की यह विशेषता है कि उनमें हुए प्रमुख तकनीकी विकास द्वारा उन्होंने कंप्यूटर के काम करने का तरीका बदल दिया। ज्यादातर विकास के परिणामस्वरूप तेजी से छोटे, सस्ता और अधिक शक्तिशाली और कुशल कंप्यूटिंग उपकरणों का आविश्कार हो पाया है। .

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कृत्रिम पेसमेकर

एक पेसमेकर, सेंटीमीटर में पैमाना ट्रांसवेनस प्रविष्टि के लिए इलेक्ट्रोड युक्त एक कृत्रिम पेसमेकर (सेंट जुड मेडिकल से).उपकरण का ढांचा लगभग 4 सेंटीमीटर लम्बा है, इलेक्ट्रोड की माप 50 और 60 सेंटीमीटर के बीच (20 से 24 इंच) है। दिल की धड़कन को नियंत्रित रखने के लिए पेसमेकर (या कृत्रिम पेसमेकर, ताकि दिल का प्राकृतिक पेसमेकर मानकर भ्रमित न हुआ जाय) एक चिकित्सा उपकरण है, जो दिल की मांसपेशियों से संपर्क करने के लिए इलेक्ट्रोड द्वारा प्रदत्त विद्युत आवेगों का उपयोग करता है। दिल अर्थात् हृदय के मूल पेसमेकर का पर्याप्त तेजी से काम नहीं करने या फिर दिल की विद्युत चालन प्रणाली में अवरोध आ जाने की वजह से पेसमेकर का प्राथमिक प्रयोजन पर्याप्त हृदय गति को बनाये रखने का है। आधुनिक पेसमेकर बाह्य रूप से प्रोग्रामयोग्य होते हैं और अलग-अलग मरीजों के लिए अनुकूलतम पेसिंग मोड का चयन करने की हृदय रोग विशेषज्ञ को अनुमति देते हैं। कुछ में एक ही इम्प्लांटयोग्य उपकरण में पेसमेकर और वितंतुविकंपनित्र (डिफाइबरीलेटर) सयुक्त रूप से होते हैं। दूसरों में, दिल के निचले कक्षों के संकालन (सिंक्रोनाइजेशन) में सुधार के लिए दिल के अंतर्गत भिन्न अंग-विन्यास के उद्दीप्तिकारक के बहुत सारे इलेक्ट्रोड होते हैं। .

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अनुरूप फिल्टर

अनुरूप फिल्टर या एनालॉग फिल्टर (Analogue filters) इलेक्ट्रानिकी में प्रयुक्त होने वाले संकेत प्रसंस्करण के मूलभूत अवयव हैं। .

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अन्तिम वस्तु

अर्थशास्त्र में, कोई भी पण्य जो उत्पादित किया जाएँ और तत्पश्चात् उपभोक्ता द्वारा अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपभुक्त किया जाएँ, वह एक उपभोक्ता वस्तु (consumer good) अथवा अन्तिम वस्तु (final good) है। उपभोक्ता वस्तु वे वस्तु होते हैं, जो अन्य वस्तु के उत्पादन में उपयुक्त होने के बजाए, अन्ततः उपभुक्त कियें जाते हैं। उदाहरणार्थ, एक माइक्रोवेव ओवन या बाइसिकल जो उपभोक्ता को बेचे जाते हैं, एक अन्तिम वस्तु अथवा उपभोक्ता वस्तु है; जबकि जो कॉम्पोनेन्ट उन वस्तुओं में उपयुक्त होने के लिए बेचे जाते हैं, मध्यवर्ती वस्तु कह लाते हैं। उदाहरणार्थ, टेक्सटाइल या ट्रांज़िस्टर, जिनका उपयोग और भी कुछ वस्तु बनाने में हो सकता हैं। श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अर्धचालक पदार्थ

सुचालक, अर्धचालक तथा कुचालक के बैण्डों की तुलना अर्धचालक (semiconductor) उन पदार्थों को कहते हैं जिनकी विद्युत चालकता चालकों (जैसे ताँबा) से कम किन्तु अचालकों (जैसे काच) से अधिक होती है। (आपेक्षिक प्रतिरोध प्रायः 10-5 से 108 ओम-मीटर के बीच) सिलिकॉन, जर्मेनियम, कैडमियम सल्फाइड, गैलियम आर्सेनाइड इत्यादि अर्धचालक पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं। अर्धचालकों में चालन बैण्ड और संयोजक बैण्ड के बीच एक 'बैण्ड गैप' होता है जिसका मान ० से ६ एलेक्ट्रान-वोल्ट के बीच होता है। (Ge 0.7 eV, Si 1.1 eV, GaAs 1.4 eV, GaN 3.4 eV, AlN 6.2 eV).

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अर्धचालक युक्ति

अर्धचालक युक्तियाँ (Semiconductor devices) उन एलेक्ट्रानिक अवयवों को कहते हैं जो अर्धचालक पदार्थों के गुण-धर्मों का उपयोग करके बनाये जाते हैं। सिलिकॉन, जर्मेनियम और गैलिअम आर्सेनाइड मुख्य अर्धचालक पदार्थ हैं। अधिकांश अनुप्रयोगों में अब उन सभी स्थानों पर अर्धचालक युक्तियाँ प्रयोग की जाने लगी हैं जहाँ पहले उष्मायनिक युक्तियाँ (निर्वात ट्यूब) प्रयोग की जाती थीं। अर्धचालक युक्तियाँ, ठोस अवस्था में एलेक्ट्रानिक संचलन पर आधारित हैं जबकि ट्यूब युक्तियाँ उच्चा निर्वात या गैसीय अवस्था में उष्मायनों के चालन पर आधारित थीं। निर्माण के आधार पर अर्धचालक युक्तियाँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं - अकेली युक्तियाँ और एकीकृत परिपथ (IC) .

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अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी

अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी या डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रॉनिक्स की एक शाखा है जिसमें विद्युत संकेत अंकीय होते हैं। अंकीय संकेत बहुत तरह के हो सकते हैं किन्तु बाइनरी डिजिटल संकेत सबसे अधिक उपयोग में आते हैं। शून्य/एक, ऑन/ऑफ, हाँ/नहीं, लो/हाई आदि बाइनरी संकेतों के कुछ उदाहरण हैं। जबसे एकीकृत परिपथों (इन्टीग्रेटेड सर्किट) का प्रादुर्भाव हुआ है और एक छोटी सी चिप में लाखों करोंड़ों इलेक्ट्रॉनिक युक्तियाँ भरी जाने लगीं हैं तब से डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है। आधुनिक व्यक्तिगत कम्प्यूटर (पीसी) तथा सेल-फोन, डिजिटल कैमरा आदि डिजिटल इलेक्ट्रॉनिकी की देन हैं। लकडी की तख्ती पर हाथ से बुनी हुई एक द्विआधारी घड़ी एक औद्योगिक अंकीय नियंत्रक इनटेल 80486DX2 माइक्रोप्रोसेसर अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी, या सूक्ष्माड़विक आंकिक पद्धति ऐसी प्रणाली है जो विद्युत संकेतों को, रेखीय स्तर के एक निरंतर पट्टियों के बजाए एक अलग अलग पट्टियों की श्रृंखला के रूप में दर्शाती है। इस पट्टी के सभी स्तर संकेतों की एक ही अवस्था को दर्शाते हैं। संकेतो की इस पृथकता की वजह से निर्माण सहनशीलता के काऱण रेखीय संकेतो के स्तर में आये अपेक्षाकृत छोटे बदलाव अलग आवरण नहीं छोड़ते है। जिसके परिणाम स्वरुप संकेतो की अवस्था को महसूस करने वाला परिपथ इन्हे नजरअंदाज कर देता है। ज्यादातर मामलों में संकेतो की अवस्था की संख्या दो होती है और इन दो अवस्थाओं को दो वोल्टेज स्तरों द्वारा दर्शाया जाता है: प्रयोग में आपूर्ति वोल्टेज के आधार पर एक व दूसरा (आमतौर पर "जमीनी" या शून्य वोल्ट के रूप में कहा जाता है)| 1 उच्च स्तर पर होता है व 0 निम्न स्तर पर। अक्सर ये दोनों स्तर "लो" और "हाई" के रूप में प्रतिनिधित्व करते हैं। आंकिक तकनीक का मूल लाभ इस तथ्य पर आधारित है कि संकेतो की एक सतत श्रृंखला को पुनरुत्पादित करने के बजाए, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को संकेतो की ० या १ जैसे किसी ज्ञात अवस्था में भेजना ज्यादा आसान होता है। डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स आम तौर पर लॉजिक गेट्स के वृहद संयोजन व बूलियन तर्क प्रकार्य के सरल इलेक्ट्रोनिक्स से बनाया जाता है। .

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प्रथनक, ट्रान्जिस्टर के रूप में भी जाना जाता है।

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