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ज्ञानेश्वर

सूची ज्ञानेश्वर

संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक महान सन्त थे जिन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। वे महाराष्ट्र-संस्कृति के 'आद्य-प्रवर्तकों' में भी माने जाते हैं। .

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पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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बद्दली कलावे

बद्दली कलावे डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ज्ञानेश्वर द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भारतीय व्यक्तित्व

यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय कवियों की सूची

इस सूची में उन कवियों के नाम सम्मिलित किये गये हैं जो.

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भक्त कवियों की सूची

* आलवार सन्त.

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भक्ति आन्दोलन

भक्ति आन्दोलन मध्‍यकालीन भारत का सांस्‍कृतिक इतिहास में एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव था। इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों की धारा द्वारा समाज विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया गया। यह एक मौन क्रान्ति थी। यह अभियान हिन्‍दुओं, मुस्लिमों और सिक्‍खों द्वारा भारतीय उप महाद्वीप में भगवान की पूजा के साथ जुड़े रीति रिवाजों के लिए उत्तरदायी था। उदाहरण के लिए, हिन्‍दू मंदिरों में कीर्तन, दरगाह में कव्‍वाली (मुस्लिमों द्वारा) और गुरुद्वारे में गुरबानी का गायन, ये सभी मध्‍यकालीन इतिहास में (800 - 1700) भारतीय भक्ति आंदोलन से उत्‍पन्‍न हुए हैं। .

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मराठी लोग

शिवाजी महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रजनीकांत सचिन तेंदुलकर .

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मराठी साहित्य

मराठी साहित्य महाराष्ट्र के जीवन का अत्यंत संपन्न तथा सुदृढ़ उपांग है। .

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मराठी साहित्यकारों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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मराठी कवि और लेखक

# संदीप खरे.

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महाराष्ट्र की संस्कृति

महाराष्ट्र भारत देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य हैं। स्कन्दपुराणके अनुसार यह क्षेत्र पंच द्रविडमे से एक हैं| विन्ध्याचल से उत्तर और दक्षिण को मुख्य क्षेत्र माननेवाले ब्राह्मणों की दश सम्प्रदाय में से एक समुह महाराष्ट्र हैं| वह संतों, शिक्षाविदों और क्रांतिकारियों की भूमि मानी जाती हैं, जिनमें महादेव गोविंद रानाडे, विनायक दामोदर सावरकर, सावित्रीबाई फुले, बाल गंगाधर तिलक, आदि प्रसिद्ध हैं। वारकरी धार्मिक आन्दोलन के मराठी संतों का लम्बा इतिहास हैं जिनमें ज्ञानेश्वर, नामदेव, चोखामेला, एकनाथ और तुकाराम जैसे संत शामिल हैं, जो महाराष्ट्र या मराठी संस्कृति की संस्कृति के आधार को एक बनाता हैं। महाराष्ट्र अपने पुरोगामी संस्कृति (सुधारवादी संस्कृति) के लिए भी जाना जाता हैं, जो शुरू पूर्व संतों द्वारा किया गया और महात्मा फुले, शाहू महाराज, डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने आधुनिक समय में इसका नेतृत्व में किया। १७ वी सदी के मराठा साम्राज्य के राजा शिवाजी और उनकी हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा (लोगों का स्व-शासन) के कारण महाराष्ट्र का पूरी दुनिया में बड़ा प्रभाव हैं। महाराष्ट्र राज्य में कई संस्कृतियों का फैलाव हैं, जिनमें वैदिक हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई आदि से संबंधित संस्कृतियाँ शामिल हैं। भगवान गणेश और भगवान विट्ठल महाराष्ट्र के हिंदुओं द्वारा पूजित पारंपरिक देवता हैं। महाराष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में बाँटा गया हैं - मराठवाडा, विदर्भ, खानदेश, कोंकण, आदि तथा प्रत्येक क्षेत्र की लोक गीत, भोजन, जातीयता, मराठी भाषा के विभिन्न बोलियों के रूप में अपनी खुद की सांस्कृतिक पहचान हैं। .

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श्रीमद्भगवद्गीता

कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यास: सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यै: सप्तभि: श्लोकशतैरु पनिबंध। ज्ञात होता है कि लगभग ८वीं सदी के अंत में शंकराचार्य (७८८-८२०) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। १०वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का जावा की भाषा में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल संस्कृत के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है। गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है। गीता में 'ब्रह्मविद्या' का आशय निवृत्तिपरक ज्ञानमार्ग से है। इसे सांख्यमत कहा जाता है जिसके साथ निवृत्तिमार्गी जीवनपद्धति जुड़ी हुई है। लेकिन गीता उपनिषदों के मोड़ से आगे बढ़कर उस युग की देन है, जब एक नया दर्शन जन्म ले रहा था जो गृहस्थों के प्रवृत्ति धर्म को निवृत्ति मार्ग के समकक्ष और उतना ही फलदायक मानता था। इसी का संकेत देनेवाला गीता की पुष्पिका में ‘योगशास्त्रे’ शब्द है। यहाँ ‘योगशास्त्रे’ का अभिप्राय नि:संदेह कर्मयोग से ही है। गीता में योग की दो परिभाषाएँ पाई जाती हैं। एक निवृत्ति मार्ग की दृष्टि से जिसमें ‘समत्वं योग उच्यते’ कहा गया है अर्थात् गुणों के वैषम्य में साम्यभाव रखना ही योग है। सांख्य की स्थिति यही है। योग की दूसरी परिभाषा है ‘योग: कर्मसु कौशलम’ अर्थात् कर्मों में लगे रहने पर भी ऐसे उपाय से कर्म करना कि वह बंधन का कारण न हो और कर्म करनेवाला उसी असंग या निर्लेप स्थिति में अपने को रख सके जो ज्ञानमार्गियों को मिलती है। इसी युक्ति का नाम बुद्धियोग है और यही गीता के योग का सार है। गीता के दूसरे अध्याय में जो ‘तस्य प्रज्ञाप्रतिष्ठिता’ की धुन पाई जाती है, उसका अभिप्राय निर्लेप कर्म की क्षमतावली बुद्धि से ही है। यह कर्म के संन्यास द्वारा वैराग्य प्राप्त करने की स्थिति न थी बल्कि कर्म करते हुए पदे पदे मन को वैराग्यवाली स्थिति में ढालने की युक्ति थी। यही गीता का कर्मयोग है। जैसे महाभारत के अनेक स्थलों में, वैसे ही गीता में भी सांख्य के निवृत्ति मार्ग और कर्म के प्रवृत्तिमार्ग की व्याख्या और प्रशंसा पाई जाती है। एक की निंदा और दूसरे की प्रशंसा गीता का अभिमत नहीं, दोनों मार्ग दो प्रकार की रु चि रखनेवाले मनुष्यों के लिए हितकर हो सकते हैं और हैं। संभवत: संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दृष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी दृष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता। इसीलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान् का गाया हुआ ज्ञान। .

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सत्त्व

हिन्दू दर्शन में, सत्त्व (शाब्दिक अर्थ: "अस्तित्व, वास्तविकता"; विशेषण: सात्विक) सांख्य दर्शन में वर्णित तीन गुणों में से एक है। अन्य दो गुण हैं - रजस् और तमस्। सत्वगुण का अर्थ 'पवित्रता' है। .

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सन्त एकनाथ

सन्त एकनाथ एकनाथ (१५३३-१५९९ ई.) प्रसिद्ध मराठी सन्त जिनका जन्म पैठण में संत भानुदास के कुल में हुआ था। इन्होंने संत ज्ञानेश्वर द्वारा प्रवृत्त साहित्यिक तथा धार्मिक कार्य का सब प्रकार से उत्कर्ष किया। ये संत भानुदास के पौत्र थे। गोस्वामी तुलसीदास के समान मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण ऐसा विश्वास है कि कुछ महीनों के बाद ही इनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी। बालक एकनाथ स्वभावत: श्रद्धावान तथा बुद्धिमान थे। देवगढ़ के हाकिम जनार्दन स्वामी की ब्रह्मनिष्ठा, विद्वत्ता, सदाचार और भक्ति देखकर भावुक एकनाथ उनकी ओर आकृष्ट हुए और उनके शिष्य हो गए। एकनाथ ने अपने गुरु से ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथों का अध्ययन किया और उनका आत्मबोध जाग्रत हुआ। गुरु की आज्ञा से ये गृहस्थ बने। एकनाथ अपूर्व संत थे। प्रवृत्ति और निवृत्ति का ऐसा अनूठा समन्वय कदाचित् ही किसी अन्य संत में दिखाई देता है। आज से ४०० वर्ष पूर्व इन्होंने मानवता की उदार भावना से प्रेरित होकर अछूतोद्धार का प्रयत्न किया। ये जितने ऊँचे संत थे उतने ही ऊँचे कवि भी थे। इनकी टक्कर का बहुमुखी सर्जनशील प्रतिभा का कवि महाराष्ट्र में इनसे पहले पैदा नहीं हुआ था। महाराष्ट्र की अत्यंत विषम अवस्था में इनको साहित्यसृष्टि करनी पड़ी। मराठी भाषा, उर्दू-फारसी से दब गई थी। दूसरी ओर संस्कृत के पंडित देशभाषा मराठी का विरोध करते थे। इन्होंने मराठी के माध्यम से ही जनता को जाग्रत करने का बीड़ा उठाया। .

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साहित्य अकादमी पुरस्कार मलयालम

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और मलयालम भाषा इन में से एक भाषा हैं। .

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साहित्य अकादमी पुरस्कार कन्नड़

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और कन्नड़ भाषा इन में से एक भाषा हैं। .

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सांपसीढ़ी (खेल)

भारतीय प्राचीन खेल सांप-सीढी का बोर्ड साँप-सीढ़ी (Snakes and ladders) का खेल बोर्ड पर खेला जाने वाला खेल है। प्राय: यह खेल बच्चों में बहुत लोकप्रिय है। इसका आविष्कार भारत में हुआ था। भारत में इसे 'मोक्षपातम्' या 'परम् पदम्' कहते थे। पहले इसका उपयोग बच्चों को हिन्दू धर्म के मूल सिद्धान्तों की शिक्षा देने के लिये किया जाता था। अंग्रेजों ने इसे 'स्नेक्स् ऐण्ड लैडर्स्' नाम दे दिया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसका आविष्कार तेरहवीं शती के सन्त ज्ञानेश्वर ने किया था। किन्तु कुछ सूत्रों के अनुसार इसकी जड़ें द्वितीय शताब्दी ईसापूर्व तक जाती हैं। .

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हिन्दू गुरु व सन्त

* कबीर.

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/च

कोई विवरण नहीं।

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ज्ञानेश्वर

संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र तेरहवीं सदी के एक महान सन्त थे जिन्होंने ज्ञानेश्वरी की रचना की। संत ज्ञानेश्वर की गणना भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में होती है। ये संत नामदेव के समकालीन थे और उनके साथ इन्होंने पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराया और समता, समभाव का उपदेश दिया। वे महाराष्ट्र-संस्कृति के 'आद्य-प्रवर्तकों' में भी माने जाते हैं। .

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ज्ञानेश्वरी

ज्ञानेश्वरी महाराष्ट्र के संत कवि ज्ञानेश्वर द्वारा मराठी भाषा में रची गई श्रीमदभगवतगीता पर लिखी गई सर्वप्रथम भावार्थ रचना है। वस्तुत: यह काव्यमलेकनय प्रवचन है जिसे संत ज्ञानेश्वर ने अपने जेष्ठ बंधू तथा गुरू निवृत्तिनाथ के निदर्शन किया था। इसमें गीता के मूल ७०० श्लोकों का मराठी भाषा की ९००० ओवियों में अत्यंत रसपूर्ण विशद विवेचन है। अंतर केवल इतना ही है कि यह श्री शंकराचार्य के समान गीता का प्रतिपद भाष्य नहीं है। यथार्थ में यह गीता की भावार्थदीपिका है। .

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विट्ठल

विट्ठल, विठोबा, या पाण्डुरंग एक हिन्दू देवता हैं जिनकी पूजा मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, तेलंगाना, तथा आन्ध्र प्रदेश में होती हैं। उन्हें आम तौर पर भगवान विष्णु या उनके अवतार, कृष्ण की अभिव्यक्ति माना जाता हैं। विट्ठल अक्सर एक सावले युवा लड़के के रूप में चित्रित किए जाता है, एक ईंट खडे और दोनो हाथ कमर पर रखे; कभी-कभी उनकी पत्नी रखुमाई भी साथ होती हैं। .

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सन्त ज्ञानेश्वर, संत ज्ञानेश्वर, ज्ञानदेव

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