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जोशीमठ की परंपराएं

सूची जोशीमठ की परंपराएं

आदि शंकराचार्य अपने 109 शिष्यों के साथ जोशीमठ आये तथा अपने चार पसंदीदा एवं सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया था। उनके शिष्य ट्रोटकाचार्य इस प्रकार ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य हुए। जोशीमठ वासियों में से कई उस समय के अपने पूर्वजों की संतान मानते हैं जब दक्षिण भारत से कई नंबूद्रि ब्राह्मण परिवार यहां आकर बस गए तथा यहां के लोगों के साथ शादी-विवाह रचा लिया। जोशीमठ के लोग परंपरागत तौर से पुजारी और साधु थे जो बहुसंख्यक प्राचीन एवं उपास्य मंदिरों में कार्यरत थे तथा वेदों एवं संस्कृत के विद्वान थे। नरसिंह और वासुदेव मंदिरों के पुजारी परंपरागत डिमरी लोग हैं। यह सदियों पहले कर्नाटक के एक गांव से जोशीमठ पहुंचे। उन्हें जोशीमठ के मंदिरों में पुजारी और बद्रीनाथ के मंदिरों में सहायक पुजारी का अधिकार सदियों पहले गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया। वह गढ़वाल के सरोला समूह के ब्राह्मणों में से है। शहर की बद्रीनाथ से निकटता के कारण यह सुनिश्चित है कि वर्ष में 6 महीने रावल एवं अन्य बद्री मंदिर के कर्मचारी जोशीमठ में ही रहें। आज भी यह परंपरा जारी है। बद्रीनाथ मंदिर की पहुंच में इस शहर की महत्वपूर्ण स्थान से लाभ उठाने के लिये दो-तीन पीढ़ी पहले कुछ कुमाऊंनी परिवार भी जोशीमठ में आकर बस गये। वे बद्रीनाथ तक आपूर्ति ले जाने वाले खच्चरों एवं घोड़ों के परिवहन व्यवसाय में लग गये। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले भोटिया लोग ऊंचे रास्ते पार कर तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लोग ऊंचे पर्वतीय मार्ग पर तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। सीमापार व्यापार में संलग्न भोटिया लोग इन ऊंचे पर्वतीय रास्तों को पार करने में निपुणता एवं कौशल प्राप्त लोग थे। वे ऊन, बोरेक्स, मूल्यवान पत्थर तथा नमक बेचने आया करते थे। आज भी नीति एवं माना घाटियों के ऊंचे स्थल पर भोटिया लोग केवल गर्मी के मौसम (मई से अक्टूबर) में ही रहते हैं। मरचा एवं तोलचा समूह के भोटिया लोग ऊंचे स्थानों पर गेहूं तथा जड़ी-बूटियों को उपजाते हैं तथा बर्फ से मुक्त पांच महीने मवेशियों तथा भेड़ों को पालते हैं। अपने गढ़वाली पड़ोसियों के साथ वे राजपूतों के नामधारण कर हिंदू बन जाते हैं। वर्ष 1960 के दशक में तिब्बती सीमा बंद हो जाने से तथा सीमा पर सैनिकों के आ जाने से परंपरागत भोटिया लोगों का व्यापारिक रास्ता भी बंद हो गया है, जिससे सामाजिक एवं आर्थिक अव्यवस्था आ गयी है। इनमें से कई लोगों ने जोशीमठ को अपना घर बना लिया है। तीर्थयात्री इस शहर की अस्थायी आबादी का हमेशा एक भाग रहे हैं जो पहले विभिन्न मंदिर स्थलों पर रहते थे और जो अब कई होटलों एवं निवासों में रहते हैं, जो उनके लिये पिछले चार से पांच दशकों में खुल गये हैं। आज शहर की अधिकांश आबादी पर्यटन व्यापार में होटलों, रेस्तरांओं, छोटे व्यापारों, पर्यटन संचालनों एवं मार्गदर्शकों (गाइडों) के रूप में नियोजित हैं। स्की ढलान औली से इस शहर की निकटता के कारण जाड़ों में भी आमदनी का जरिया बना रहता है। .

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