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जैव सूचना विज्ञान

सूची जैव सूचना विज्ञान

बायो इन्फार्मेटिक्स मानव जीनोम का चित्रण जैवप्रौद्योगिकी की सबसे बड़ी उपलब्धि है इन्फ्लुएन्जा के विषाणु का प्रारूप (मॉडल) जैवसूचनाविज्ञान (Bioinformatics) जीव विज्ञान की एक शाखा है। बायोइंफॉर्मैटिक्स या जैव सूचना विज्ञान, जीव विज्ञान का एक नया क्षेत्र है, जिसके अन्तर्गत जैव सूचना का अर्जन, भंडारण, संसाधन, विश्लेषण, वितरण, व्याख्याआदि कार्य आते हैं। इस कार्य में जीव विज्ञान, सूचना तकनीक तथा गणित की तकनीकें उपयोग में लाई जातीं हैं। हम यहाँ भी कहा सकते है की यह कंप्यूटर और सूचना तकनिकी विज्ञान का मेल है इसके माध्यम से खासतौर पर किसी पौधे के जीन्स में किस प्रकार के परिवर्तन करना, जानलेवा बीमारी के लिए उत्तरदायी जीन्स समूह का पता करना, औषधि निर्माण में सहायता आदि में किया जाता है। जैव सूचना विज्ञान इस विषय की स्थापना के बारे में पाउलिन होगेवेग और बेन हेस्पर ने वर्ष 1978 को विचार किया और दुनिया के सामने बायोइन्फार्मेटिक्स विषय लाए। वर्तमान में कम्प्यूटर की पैटर्न रिकॉगनेशन, डाटा माइनिंग, मशीन लर्निंग अलगोरिद्मस व विजुअलाइजेशन से संबंधित एप्लिकेशंस का प्रयोग किया जा रहा है। इसके माध्यम से जीन खोजना, जिनोम असेंबली, ड्रग डिजाइन, ड्रग डिस्कवरी, प्रोटीन स्ट्रक्चर अलाइनमेंट, प्रोटीन स्ट्रक्चर प्रिडिक्शन आदि क्षेत्रों में इसका प्रयोग किया जा रहा है। बायोइन्फार्मेटिक्स अथवा कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी मालिक्यूलर बायोलॉजी के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग अथवा बायोलॉजिकल डाटा के प्रबंधन एवं विश्लेषण हेतु कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी का अनुप्रयोग है। इसमें कम्प्यूटर का उपयोग बायोलॉजिकल आंकड़ों के संकलन, भंडारण, विश्लेषण तथा संयोजन के लिए किया जाता है। यह एक उभरता हुआ इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च क्षेत्र है तथा जिंदगी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। बायोइन्फार्मेटिक्स का अंतिम लक्ष्य शृंखला, संरचना साहित्य तथा अन्य बायोलॉजिकल आंकड़ों में छिपी जैविक सूचनाओं को उजागर कर उसे मानव जीवन के स्तर को ऊपर उठाने के लिए उपयोग में लाना है। .

10 संबंधों: परजीवी विज्ञान, भारतीय वैज्ञानिकों की सूची, माइकल लेविट, मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर पैकेजों की सूची, राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्‍ली, जेनेटिक एल्गोरिद्म, जीनोम परियोजना, जीनोमिक्स, व्यूहों की सूची, आरएनए हस्तक्षेप

परजीवी विज्ञान

परजीवीयों के अध्ययन को परजीवी विज्ञान कहते हैं| वयस्क काली मक्खी (सिमुलियम याहेंस) संग ऑनकोसेर्का वॉल्व्युलस (''Onchocerca volvulus'') कृमि के एण्टिना से निकलता हुआ। यह परजीवी अफ्रीका में रिवर ब्लाइंडनैस (नदी अंधता) नामक रोग के लिये उत्तरदायी होता है। यह नमूना रासायनिक विधि से जमाया व क्रिटिकल बिंदु तक सुखाया हुआ है। फिर परंपरागत स्कैनिंग इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा गया। 100X (सौ गुणा) आवर्धित चित्र परजीवी विज्ञान परजीवों सहित उनके मेजबान (होस्ट), तथा उनके बीच के संबंध का अध्ययन है। जीव विज्ञान के विषय के तौर पर, परजीवी विज्ञान का विस्तार, चर्चित प्राणी या उसके वातावरण पर निर्भर नहीं होता, वरन उनके जीवन के तरीके पर निर्भर होता है। अतएव यह अन्य विषयों के, संयोजन से बना है; व कई उप-विषयों की तकनीकों पर आधारित है, जैसे कोशिका जैविकी, सूचना-जैविकी, जैवरासायनिकी आण्विक जैविकी, इम्युनोलॉजी, अनुवांशिकी, विकासवाद एवं पारिस्थितिकी। जीवन की पद्धति पृथ्वी पर सर्व सामान्य है। जिसमें सभी प्रधान टैक्सा के प्रतिनिधि सम्मिलित हैं, जो साधारणतम एक कोशिकीय जीव से लेकर जटिल कशेरुकियों तक हो सकते हैं। प्रत्येक मुक्त-जीव जाति की अपनी अनुपम परजीवी प्रजातियां होतीं हैं। .

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भारतीय वैज्ञानिकों की सूची

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माइकल लेविट

माइकल लेविट, (जन्म 9 मई 1947) एक अमेरिकी-ब्रितानी-इज़रायली जैव भौतिक विज्ञानी और १९८७ से स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में संरचनात्मक जीवविज्ञान के प्रोफेसर हैं उनका शोध कार्य अभिकलनी जीवविज्ञान के क्षेत्र में है। और वो संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के सदस्य हैं। मार्टिन कारप्लस और माइकल लेविट के साथ "जटिल रासायनिक प्रणालियों के लिए बहुस्तरीय मॉडल का विकास के लिए" उन्हें 2013 का रसायन शास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। .

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मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर पैकेजों की सूची

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राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्‍ली

राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली की स्थापना बायोटेक्नोलॉजी विभाग, भारत सरकार द्वारा भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ तथा प्रोफेसर (डॉ॰) जे.सी.बोस की जन्मतिथि के उपलक्ष्य पर की गई। इसकी औपचारिक घोषणा 30 नवम्बर 1997 में की गई। .

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जेनेटिक एल्गोरिद्म

2006 में निर्मित नासा का अंतरिक्षयान एण्टेना (ST5): एण्टेना का यह जटिल आकार एक विकासात्मक एल्गोरिद्म का प्रयोग करके प्राप्त किया गया था। जेनेटिक एल्गोरिथ्म (GA) एक सर्च (खोज) तकनीक है जिसका उपयोग इष्टतमीकरण तथा खोजने की समस्याओं के लिए सटीक या सन्निकट हल प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह एल्गोरिद्म, अनेकों विकासात्मक कलनविधियों में से एक है। विकासात्मक कलनविधियाँ, विकासवाद तथा उससे सम्बन्धित अवधारणाओं (वंशागति, उत्परिवर्तन, चुनाव, तथा क्रासओवर आदि) तकनीकों के अनुसरण पर आधारित हैं। .

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जीनोम परियोजना

जीनोमिक्स का चित्रण जीनोम परियोजना वह वैज्ञानिक परियोजना है, जिसका लक्ष्य किसी प्राणी के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम का पता करना है। जीन हमारे जीवन की कुंजी है। हम वैसे ही दिखते या करते हैं, जो काफी अंश तक हमारे देह में छिपे सूक्ष्म जीन तय करते हैं। यही नहीं, जीन मानव इतिहास और भविष्य की ओर भी संकेत करते हैं। जीन वैज्ञानिकों का मानना है, कि यदि एक बार मानव जाति के समस्त जीनों की संरचना का पता लग जये, तो मनुष्य की जीन-कुण्डली के आधार पर, उसके जीवन की समस्त जैविक घटनाओं और दैहिक लक्षणों की भविष्यवाणी करना संभव हो जायेगा। यद्यपि यह कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि मानव शरीर में हजारों लाखों जीवित कोशिकएं होतीं हैं। जीनों के इस विशाल समूह को जीनोम कहते हैं। आज से लगभग 136 वर्ष पूर्व, बोहेमियन भिक्षुक ग्रेगर जॉन मेंडल ने मटर के दानों पर किये अपने प्रयोगों को प्रकाशित किया था, जिसमें अनुवांशिकी के अध्ययन का एक नया युग आरंभ हुआ था। इन्हीं लेखों से कालांतर में आनुवांशिकी के नियम बनाए गए। उन्होंने इसमें एक नयी अनुवांशिकीय इकाई का नाम जीन रखा, तथा इसके पृथक होने के नियमों का गठन किया। थॉमस हंट मॉर्गन ने १९१० में ड्रोसोफिला (फलमक्खी) के ऊपर शोधकार्य करते हुए, यह सिद्ध किया, कि जीन गुणसूत्र में, एक सीधी पंक्ति में सजे हुए रहते हैं, तथा कौन सा जीन गुणसूत्र में किस जगह पर है, इसका भी पता लगाया जा सकता है। हर्मन मुलर ने १९२६ में खोज की, कि ड्रोसोफिला के जीन में एक्सरे से अनुवांशिकीय परिवर्तन हो जाता है, जिसे उत्परिवर्तन भी कहते हैं। सन १९४४ में यह प्रमाणित हुआ कि प्रोटीन नहीं, वरन डी एन ए ही जीन होता है। सन १९५३ में वॉटसन और क्रिक ने डी एन ए की संरचना का पता लगाया और बतया, कि यह दो तंतुओं से बना हुआ घुमावदार सीढ़ीनुमा, या दोहरी कुंडलिनी के आकार का होता है। .

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जीनोमिक्स

जीनोमिक्स एक विज्ञान है जिसमे हम आर - डीएनए,डी एन ए अनुक्रमण तकनीक एवं जैव सूचना विज्ञान का उपयोग करके जीनोम की संरचना, कार्य एवं अनुक्रमण का अध्ययन करते हैं। यह विधा जीवों के संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण का पता लगाने का प्रयास है। इस विधा के अन्तर्गत जीनोम के अन्दर एपिस्टासिस, प्लियोटरोपी एवं हेटरोसिस जैसे होने वाली प्रक्रियाओ का भी अध्ययन किया जाता है। .

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व्यूहों की सूची

मैट्रिक्स का संगठन इस पृष्ठ पर इंजीनियरिंग, विज्ञान और गणित में प्रयुक्त प्रमुख व्यूहों की सूची दी गयी है। व्यूहों का अध्ययन एवं अनुप्रयोग का लम्बा इतिहास है। इसलिये उन्हें तरह-तरह से वर्गीकृत किया जाता रहा है। वर्गीकरण का एक तरीका यह है कि व्यूहों को उनके अवयवों के आधार पर वर्गीकृत किया जाय। उदाहरण के लिये नीचे आइडेंटिटी मैट्रिक्स दी गयी है- वर्गीकरण का दूसरा आधार मैट्रिक्स का आगेनवैल्यू है। इसके अलावा गणित, रसायन शास्त्र और भौतिक विज्ञान, तथा अन्य विज्ञानों में कुछ विशेष तरह के मैट्रिक उपयोग में आते हैं। .

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आरएनए हस्तक्षेप

स्तनपाई कोशिकाओं में RNA के हस्तक्षेप की व्यवस्था और shRNA की डिज़ाइन की डिलिवरी. आरएनए हस्तक्षेप (RNAi) सजीव कोशिकाओं के अंदर की एक प्रणाली है जो यह नियंत्रण करने में सहायता करती है कि कौन-कौन से जीन सक्रिय हैं और कितने सक्रिय हैं। आरएनए अणुओं के दो छोटे प्रकार - माइक्रोआरएनए (miRNA) और लघु हस्तक्षेप करने वाले आरएनए (siRNA)- आरएनए हस्तक्षेप के केन्द्र में होते हैं। RNAs जीन के प्रत्यक्ष उत्पाद्य होते हैं और ये छोटे RNAs अन्य विशिष्ट RNAs से जुड़े हुए हो सकते हैं और उनकी गतिविधियों को या तो बढ़ा सकते हैं या घटा सकते हैं, उदाहरण के लिए वे एक मैसेंजर आरएनए को प्रोटीन उत्पादन करने से रोक सकते हैं। कोशिकाओं को परजीवी जीनों - वायरस एवं ट्रांसपोसोन - से बचाने में आरएनए हस्तक्षेप की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन साधारणत: यह विकास के निर्देशन के साथ ही जीन अभिव्यक्ति में भी अपनी भूमिका निभाता है। पशुओं के साथ कई यूक्रायोट में आरएनएआई (RNAi) मार्ग पाया जाता है और एंजाइम डिसर द्वारा प्रारंभ किया जाता है, जो लंबे दुहरे-धंसे हुए आरएनए (dsRNA) अणुओं को ~20 न्युक्लिओटाइड के छोटे टुकड़ों में विभाजित करता है। गाइड स्ट्रैंड के रूप में ज्ञात टुकड़े के दो स्ट्रैंड में से एक को तब आरएनए-प्रेरित सायलेंसिंग कॉम्प्लेक्स (RISC) में निगमित किया जाता है। अध्ययन का सबसे अच्छा परिणाम पोस्ट ट्रांस्क्रिप्शनल जीन सायलेंसिंग है, जो तब पैदा होता है जब गाइड स्ट्रैंड बेस मैसेंजर आरएनए अणु के संपूरक क्रम के साथ जुड़ता है और दरार को आर्गोनॉट, आरआइएससी कॉम्प्लेक्स का एक कैटालिटिक घटक, के द्वारा प्रेरित करता है। इसे siRNA के शुरूआती रूप में सीमित दाढ़ सांद्रता को छोड़कर दैहिक रूप से सभी जीवधारियों में फैल जाने वाली प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। जीन अभिव्यक्ति पर dsRNA का चयनित औप मजबूत प्रभाव इसे एक महत्वपूर्ण शोध बना देता है, कोशिका कल्चर और सजीव प्राणी होनों में ही क्योंकि कोशिका में दाखिल सिंथेटिक dsRNA रूचि के विशेष जीनों के दबाव को प्रेरित कर सकता है। RNAi भारी पैमाने के स्क्रीन के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है जो योजनाबद्ध तरीके से प्रत्येक जीन को कोशिका में बंद कर सकता है, जो एक विशेष कोशिकीय प्रक्रिया या कोशिका विभाजन की घटना के लिए जरूरी घटकों की पहटान में सहायता कर सकता है। इस मार्ग का उपयोग जैवप्रौद्योगिकी और औषधि के लिए एक आशाजनक उपकरण हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से, आरएनए हस्तक्षेप को पोस्ट ट्रांस्क्रिप्शनल जीन सायलेंसिंग और क्वेलिंग की तरह ही अन्य नाम से जाता जाता था। इन स्पष्टतया असंबंधित प्रक्रियाओं को पूरी तरह से समझ लेने के बाद ही यह साफ हो पाया कि ये सभी RNAi के ही तथ्य को व्याख्यायित करते हैं। 2006 में, एंड्रयू फायर और क्रेग सी.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

बायोइंफॉर्मैटिक्स, सूचना-जैविकी, जैवसूचना विज्ञान

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