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जीवात्मा

सूची जीवात्मा

जीवात्मा भारतीय दर्शनों में प्रयुक्त एक शब्दावली है जिसका विभिन्न मतों में अलग-अलग अर्थ व्यक्त किया गया है और भिन्न-भिन्न लक्षण गिनाये गये हैं। .

4 संबंधों: पुरुष सूक्त, सूर्य देवता, हिरण्यगर्भ, वेद

पुरुष सूक्त

पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त यानि मंत्र संग्रह (10.90) है, जिसमें एक विराट पुरुष की चर्चा हुई है और उसके अंगों का वर्णन है। इसको वैदिक ईश्वर का स्वरूप मानते हैं, लेकिन अंगो के अर्थ और प्रयोजन पर विवाद है। विभिन्न अंगों में चारो वर्णों, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि की बातें कहीं गई हैं। मैक्समूलर इसको वेदों में सबसे बाद में जोड़े गए अंग समझते हैं क्योंकि इसमें ऋग्वेद के अन्दर वर्ण व्यवस्था की एक मात्र झलक मिलती है । हाँलांकि यही श्लोक यजुर्वेद (31वें अध्याय) और अथर्ववेद में भी आया है। ध्यान देने की बात है कि वेदों (और सांख्य शास्त्र में) में पुरुष शब्द का अर्थ जीवात्मा तथा परमात्मा आया है, पुरुष लिंग के लिए पुमान और पुंस जैसे मूलों का इस्तेमाल होता है। पुम् मूल से ही नपुंसकता जैसे शब्द बने हैं। .

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सूर्य देवता

कोई विवरण नहीं।

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हिरण्यगर्भ

हिरण्यगर्भ शब्द भारतीय विचारधारा में सृष्टि का आरंभिक स्रोत माना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है – प्रदीप्त गर्भ (या अंडा या उत्पत्ति-स्थान)। इस शब्द का प्रथमतः उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। श्लोक का अर्थ - सब सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों का आधार जो जो जगत हो और होएगा उसका आधार परमात्मा डगत की उत्पत्ति के पूर्व विद्य़मान था। जिसने पृथ्वी और सूर्य-तारों का सृजन किया उस देव की प्रेम भक्ति किया करें। इस श्लोक से हिरण्यगर्भ ईश्वर का अर्थ लगाया जाता है - यानि वो गर्भ जहाँ हर कोई वास करता हो। वेदान्त और दर्शन ग्रंथों में हिरण्यगर्भ शब्द कई बार आया है। अनेक भारतीय परम्पराओं में इस शब्द का अर्थ अलग प्रकार से लगाया जाता है। सामान्यतः हिरण्यगर्भ शब्द का प्रयोग जीवात्मा के लिए हुआ है जिसे ब्रह्मा जी भी कहा गया है। ब्रह्म और ब्रह्मा जी एक ही ब्रह्म के दो अलग अलग तत्त्व हैं। ब्रह्म अव्यक्त अवस्था के लिए प्रयुक्त होता है और ब्रह्माजी ब्रह्म की तैजस अवस्था है। ब्रह्म का तैजस स्वरूप ब्रह्मा जी हैं। हिरण्यगर्भ शब्द का अर्थ है सोने के अंडे के भीतर रहने वाला.

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वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

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