हम Google Play स्टोर पर Unionpedia ऐप को पुनर्स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं
निवर्तमानआने वाली
🌟हमने बेहतर नेविगेशन के लिए अपने डिज़ाइन को सरल बनाया!
Instagram Facebook X LinkedIn

जलवायु परिवर्तन

सूची जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है। जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी। ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम है। जलवायु परिवर्तन के खतरों के बारे में वैज्ञानिक लगातार आगाह करते आ रहे हैं .

सामग्री की तालिका

  1. 39 संबंधों: निसार (उपग्रह), पर्यावरण, पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को), पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरणीय विज्ञान, पर्यावरणीय अवनयन, प्रकाश जावड़ेकर, पृथ्वी, पैसिफ़िक रिम (फ़िल्म), पॉप्यूलेशन मॅटर्स, बेसिक, भूमंडलीय ऊष्मीकरण, भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव, भूविज्ञान, मोटरवाहन, राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र, समकालीन, समुद्र तल, समुद्री प्रदूषण, सिंधु जल समझौता, संधारणीय विकास लक्ष्य, सेण्टिनल-1ए, हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी, हिमानी, हिमालय, हिमालय के हिमनद, हिमालय की पारिस्थितिकी, जल संसाधन, जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, ज्वालामुखी, जैव संरक्षण, वायु प्रदूषण, विज्ञान एक्‍सप्रेस, वैश्वीकरण, गूगल, कार्बन कर, क्योटो प्रोटोकॉल, कृषि, उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन

निसार (उपग्रह)

नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर राडार या निसार मिशन (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar or NISAR) दोहरी आवृत्ति वाले सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह को विकसित करने और लॉन्च करने के लिए नासा और इसरो के बीच एक संयुक्त परियोजना है। यह उपग्रह दोहरी आवृत्ति का उपयोग करने वाला पहला रडार इमेजिंग सैटेलाइट होगा और इसे धरती के प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए रिमोट सेंसिंग में इस्तेमाल किया जाएगा। .

देखें जलवायु परिवर्तन और निसार (उपग्रह)

पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण - कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है और "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। .

देखें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण

पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को)

पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) (Environmental Planning and Coordination Organisation (EPCO)), भोपाल में स्थित एक स्वशासी संस्था है। इसका कार्य जनसमुदाय में पर्यावरण के प्रति जागरूकता निर्माण करना और मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर विभिन्न परियोजनाओं को क्रियान्वित करना है। इसकी स्थापना वर्ष १९८१ में हुई थी। जलवायु परिवर्तन मुद्दों पर यह राज्य की नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कराती है। ५० एकड़ में फैले इसके परिसर को पर्यावास परिसर कहा जाता है .

देखें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को)

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु,जल,भूमि,पेड़-पौधे, जीव-जन्तु,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं। .

देखें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरणीय विज्ञान

MK पर्यावरणीय विज्ञान (environmental science) पर्यावरण के भौतिकीय, रासायनिक और जैविक अवयवों के बीच पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन है। पर्यावरणीय विज्ञान पर्यावरणीय व्यवस्था के अध्ययन के लिए समन्वित, परिमाणात्मक और अन्तरविषयक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। पर्यावरणीय वैज्ञानिक पर्यावरण की गुणवत्ता की निगरानी करते हैं, स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी व्यवस्था पर मानवीय कृत्यों की व्याख्या करते हैं तथा पारिस्थतिकी व्यवस्था की बहाली के लिए रणनीतियां तैयार करते हैं। इसके अलावा पर्यावरणीय वैज्ञानिक योजनाकारों की ऐसे भवनों, परिवहन कोरिडोरों तथा उपयोगिताओं के विकास तथा निर्माण में सहायता करते हैं जिनसे जल संसाधनों की रक्षा हो सके तथा भूमि का सदुपयोग हो सके। .

देखें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय विज्ञान

पर्यावरणीय अवनयन

पर्यावरणीय अवनयन (अंग्रेजी: Environmental degradation) के अंतर्गत पर्यावरण में होने वाले वे सारे परिवार्तन आते हैं जो अवांछनीय हैं और किसी क्षेत्र विशेष में या पूरी पृथ्वी पर जीवन और संधारणीयता को खतरा उत्पन्न करते हैं। अतः इसके अंतर्गत प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का क्षरण और अन्य प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि शामिल की जाती हैं। .

देखें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय अवनयन

प्रकाश जावड़ेकर

प्रकाश जावड़ेकर (जन्म 30 जनवरी 1951) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पदासीन केंद्रीय मंत्री (एमएचआरडी) हैं। इन्हें 2008 में महाराष्ट्र से संसद के एक सदस्य के रूप में राज्यसभा के लिए निर्वाचित किया गया था, और 2014 में मध्य प्रदेश से फिर से निर्वाचित किया गया। 2014 भारतीय आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत के बाद इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया था। .

देखें जलवायु परिवर्तन और प्रकाश जावड़ेकर

पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

देखें जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी

पैसिफ़िक रिम (फ़िल्म)

पैसिफ़िक रिम (अंग्रेजी; Pacific Rim) वर्ष २०१३ में बनी अमेरिकी विज्ञान-फंतासी पर आधारित फ़िल्म है जिसका निर्देशन गुइलेर्मो डेल टोरो द्वारा किया गया है व लेखन कार्य टोरो और ट्रेविस बेचम द्वारा किया गया है, जो बेचम द्वारा मूल कहानी पर आधारित है। फ़िल्म में चार्ली हुन्नैम, इदरिस एल्बा, रिनको किकुची, चार्ली डे, राॅबर्ट केज़िनस्की, मैक्स मार्टिनी और रोन पर्लमैन मुख्य भूमिका में है। फ़िल्म २०२० के भविष्यकाल पर सेट है, जब पृथ्वीवासी कायज़स, नाम के विशालकाय दानवों से युद्धरत है जोकि प्रशांत महासागर की गहराई में प्रकट एक भिन्न आयाम के दरवाजे से प्रकट होता है। इन दानवों से निपटने के लिए, मानव समूह जैगेर्स, नाम के भीमकाय ह्युमैनाॅयड मैकास (मानवचलित मशीन) का विकास कर लेती है जिसे दो चालक कंट्रोल करते है, जो उनके न्युरल ब्रिज (तांत्रिक प्रणाली) के जरिए जुड़ी हुई है। युद्ध के आखिरी दिनों को याद करते हुए, यह कहानी जैगेर्स मशीन के चालक रैलिफ बैकेट, से शुरू होती है जिसे रिटायरमेंट से पूर्व एक नव-चालक माको मोरी के साथ कायज़स को हराने के लिए उन्हें खाई में धकेलने में मदद करता है। मुख्य फ़िल्मांकन के लिए टोरंटो में नवंबर 14, २०११ से शुरू कर अप्रैल २०१२ तक पूर्ण किया गया। फ़िल्म को बतौर निर्माता लिजेण्ड्री पिक्चर्स और बतौर वितरक वाॅर्नर ब्रदर्स पिक्चर्स ने पेश किया है। फ़िल्म को जुलाई १२, 2013 में त्रिआयामी और आइमैक्स थ्रीडी फाॅर्मेट के साथ रिलीज किया गया, जिनकी काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी गयी; विशेषकर विजुवल इफैक्टस और एक्शन सीक्वेंस की जोरदार प्रशंसा की गई। हालाँकि युनाइटेड स्टेट के बाॅक्स-ऑफिस में निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद, यह अन्य प्रादेशिक देशों में काफी सफल रही। फ़िल्म ने वैश्विक स्तर पर कुल $411 करोड़, से ज्यादा कमाई की जिनमें अकेले चीन के बड़े बाजार में $114 करोड़ का कारोबार किया, जो आज की तारीख में डेल टोरो की सबसे अधिक व्यावसायिक फ़िल्म साबित हुई है। फिर वर्ष 2014 में मेलस्टाॅर्म शीर्षक नाम से इसके सिक्विल की घोषणा की गई, जिसकी रिलीज की तिथि युनिवर्सल स्टुडियोज ने अगस्त 04, 2017 तक की शेड्युल दी है। सितंबर 2015 में, इस सिक्विल के रिपोर्ट मुताबिक इसके "अनिश्चित रुकावट" होने की खबर दी गई; किसी तरह, डेल टोरो और युनिवर्सल स्टुडियोज ने इसके सिक्विल की देरी और भविष्य में जल्द काम शुरू होने की पुष्टि की। फरवरी 2016 में, यह घोषणा प्रचार की गई कि बतौर फ़िल्म निर्देशन की कमान स्टीवन एस.

देखें जलवायु परिवर्तन और पैसिफ़िक रिम (फ़िल्म)

पॉप्यूलेशन मॅटर्स

पॉप्यूलेशन मॅटर्स, जिसे पूर्व में "ऑप्टिमम पॉप्यूलेशन" कहा जाता था, ब्रिटेन में पंजीकृत धर्मार्थ न्यास, विचार अथ्वा अभियान समूह है जो बढ़ती जनसंख्या के दीर्घकालिक संधारणीयता, जीवन शैली की गुणवत्ता प्राकृतिक वातावरण, विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधन, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता को लेकर जनसंख्या-संबंधि चिन्ता व्यक्त करता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और पॉप्यूलेशन मॅटर्स

बेसिक

बेसिक (BASIC) चार विकासशील देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) का पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर एक वार्ता मंच है। इस मंच के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए २00९ से धारणीय उपायों पर प्रमुखता से चर्चा की जाती है। बेसिक देशों के बीच क्योटो प्रोटोकॉल को लेकर आम सहमति है तथा इसने कनाडा के क्योटो प्रोटोकाल की बाध्यता से पीछे हटने की तीखी आलोचना की है। जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम पर चर्चा के लिए प्रत्येक ६ महीने में एक बार बेसिक राष्ट्रों का एक मंत्री स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाता है। इसमें तकनीकी, आर्थिक तथा रणनीतिक सहयोग संबंधित संयु्क्त सहयोग की प्रतिबद्धता दर्शायी जाती है। हाल ही में भारत का समर्थन करते हुए बेसिक द्वारा यूरोपीय संघ द्वारा बाहरी विमानों पर लगाए जा रहे कार्बन कर का भी कड़ा विरोध दर्ज़ कराया गया है। बेसिक का मानना है कि यूरोपीय संघ को यह कर तत्काल निरस्त कर देने चाहिए, क्योंकि यह कर संयुक्त राष्ट्र के बहु-पक्षवाद (Multi-lateralism) की भावना के विरुद्ध है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और बेसिक

भूमंडलीय ऊष्मीकरण

वैश्‍विक माध्‍य सतह का ताप 1961-1990 के सापेक्ष से भिन्‍न है 1995 से 2004 के दौरान औसत धरातलीय तापमान 1940 से 1980 तक के औसत तापमान से भिन्‍न है भूमंडलीय ऊष्मीकरण (या ग्‍लोबल वॉर्मिंग) का अर्थ पृथ्वी की निकटस्‍थ-सतह वायु और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्‍दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है। पृथ्‍वी की सतह के निकट विश्व की वायु के औसत तापमान में 2005 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± 0.18 °C (1.33 ± 0.32 °F) की वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन पर बैठे अंतर-सरकार पैनल ने निष्कर्ष निकाला है कि "२० वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसत तापमान में जो वृद्धि हुई है उसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा निर्मित ग्रीनहाउस गैसें हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को 'ग्लोबल वार्मिंग' कहा जा रहा है। हमारी धरती सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं जो लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव। आईपीसीसी द्वारा दिये गये जलवायु परिवर्तन के मॉडल इंगित करते हैं कि धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21वीं शताब्दी के दौरान और अधिक बढ़ सकता है। सारे संसार के तापमान में होने वाली इस वृद्धि से समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम (extreme weather) में वृद्धि तथा वर्षा की मात्रा और रचना में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के अन्य प्रभावों में कृषि उपज में परिवर्तन, व्यापार मार्गों में संशोधन, ग्लेशियर का पीछे हटना, प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा आदि शामिल हैं। .

देखें जलवायु परिवर्तन और भूमंडलीय ऊष्मीकरण

भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव

extreme weather). (Third Assessment Report) इस के अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change)। इस भविष्यवाणी की प्रभावों के ग्लोबल वार्मिंग इस पर पर्यावरण (environment) और के लिए मानव जीवन (human life) कई हैं और विविध.यह आम तौर पर लंबे समय तक कारणों के लिए विशिष्ट प्राकृतिक घटनाएं विशेषता है, लेकिन मुश्किल है के कुछ प्रभावों का हाल जलवायु परिवर्तन (climate change) पहले से ही होने जा सकता है।Raising sea levels (Raising sea levels), glacier retreat (glacier retreat), Arctic shrinkage (Arctic shrinkage), and altered patterns of agriculture (agriculture) are cited as direct consequences, but predictions for secondary and regional effects include extreme weather (extreme weather) events, an expansion of tropical diseases (tropical diseases), changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems (changes in the timing of seasonal patterns in ecosystems), and drastic economic impact (economic impact)। चिंताओं का नेतृत्व करने के लिए हैं राजनीतिक (political) सक्रियता प्रस्तावों की वकालत करने के लिए कम (mitigate), समाप्त (eliminate), या अनुकूलित (adapt) यह करने के लिए। 2007 चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (Fourth Assessment Report) के द्वारा अंतर पैनल तौर पर जलवायु परिवर्तन (Intergovernmental Panel on Climate Change) (आईपीसीसी) ने उम्मीद प्रभावों का सार भी शामिल है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और भूमंडलीय ऊष्मीकरण का प्रभाव

भूविज्ञान

पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और भूविज्ञान

मोटरवाहन

कार्ल बेन्ज़'स "वेलो"मॉडल (1894) -सबसे पहले गाड़ियों के होड़ में आई right विश्व मानचित्र प्रति 1000 लोग गाड़ी, मोटरवाहन, कार, मोटरकार या ऑटोमोबाइल एक पहियों वाला वाहन है, जो यात्रियों के परिवहन के काम आता है; और जो अपना इंजन या मोटर भी स्वयं उठाता है। इस शब्द की अधिकांश परिभाषाओं के अनुसार मोटरवाहन मुख्य रूप से सड़कों पर चलाने के लिए हैं, एक से आठ लोगों कों बैठाने के लिए हैं, आमतौर पर जिनके चार पहिये होते हैं, जिनका निर्माण मुख्य रूप से सामान के उपेक्षा लोगों के परिवहन के लिए किया जाता है। मोटरकार शब्द का प्रयोग विद्युतिकृत रेल प्रणाली के सन्दर्भ में, एक ऐसी कार के लिए प्रयुक्त होता है, जो एक छोटा लोकोमोटिव होने के साथ ही, इसमे लोगों और सामान के लिए जगह भी होती है। ये लोकोमोटिव कार उपनगरीय मार्गों में अंतर्नगरीय रेल प्रणालियों में इस्तेमाल की जाती हैं। 2002 तक, 590 मिलियन यात्री करें दुनिया भर में थी (मोटे तौर पर एक कार प्रति ग्यारह लोग).

देखें जलवायु परिवर्तन और मोटरवाहन

राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र

राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (National Centre for Antarctic & Ocean Research / एनसीएओआर) भारतीय ध्रुवीय (आर्कटिक, अंटार्कटिक और दक्षिणी महासागर) कार्यक्रम को समन्वित करने और लागू करने वाली केंद्रीय एजेंसी है। भारत में यह एकमात्र ऐसा संस्थान है जिसके पास ध्रुवीय प्रदेशों से हिमखंड के संग्रहण और प्रसंस्करण की क्षमता है। अब तक भारत सफलतापूर्वक अंटार्कटिका के लिए 30 वैज्ञानिक अभियानों और आर्कटिक तथा दक्षिणी महासागर प्रत्येक के लिए पांच अभियानों को प्रारंभ कर चुका है। एनसीएओआर की स्थापना २५ मई, १९९८ में डॉ॰ प्रेम चंद पाण्डेय के निदेशक पद पर बने रहते हुए हुई थी जबकि पूर्व में इसे अंटार्कटिक अध्ययन केंद्र के नाम से जाना जाता था जिसकी नीव डॉ॰ प्रेम चंद पाण्डेय की नियुक्ति के साथ १२ मई, १९९७ पडी और इस प्रकार इसका अस्तित्व १२ मई, १९९७ से माना जा सकता है। वर्ष 2010-11 में, एनसीएओआर ने दक्षिण ध्रुव के लिए सर्वप्रथम भारतीय अभियान की शुरुआत की। अंटार्कटिका में 'मैत्री' के अलावा भारत के पास अब आर्कटिक में अनुसंधान बेस 'हिमाद्रि' है। पूर्वी अंटार्कटिका में नवीन अनुसंधान बेस 'भारती' के निर्माण का प्रथम चरण पूरा हो चुका है और संभावना है कि 2012-13 में स्टेशन को अधिकृत कर दिया जाएगा। बर्फ तोड़ने वाले एक नए ध्रुवीय अनुसंधान पोत के अधिग्रहण की प्रक्रिया उन्नत चरण में है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र

समकालीन

समकालीन इतिहास के उस अवधि के बारे में बताता है जो आज के लिए एकदम प्रासंगिक है तथा आधुनिक इतिहास के कुछ निश्चित परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। हाल के समकालीन इतिहास की कमजोर परिभाषा विश्व युद्ध-II जैसी घटनाओं को शामिल करती है, लेकिन उन घटनाओं को शामिल नहीं करती जिनके प्रभाव को समाप्त किया जा चुका है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और समकालीन

समुद्र तल

समुद्र तल से ऊँचाई दिखाता एक बोर्ड समुद्र तल या औसत समुद्र तल (अंग्रेज़ी:Mean sea level) समुद्र के जल के उपरी सतह की औसत ऊँचाई का मान होता है। इसकी गणना ज्वार-भाटे के कारण होने वाले समुद्री सतह के उतार चढ़ाव का लंबे समय तक प्रेक्षण करके उसका औसत निकाल कर की जाती है। इसे समुद्र तल से ऊँचाई (MSL-Metres above sea level) में व्यक्त किया जाता है। इसका प्रयोग धरातल पर स्थित बिंदुओं की ऊँचाई मापने के लिये सन्दर्भ तल के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग उड्डयन में भी होता है। उड्डयन में समुद्र की सतह पर वायुमण्डलीय दाब को वायुयानों के उड़ान की उँचाई के सन्दर्भ (डैटम) के रूप में उपयोग किया जाता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल

समुद्री प्रदूषण

अक्सर प्रदूषण के कारण ज्यादातर नुकसान को देखा नहीं जा सकता है, जबकि समुद्री प्रदूषण को स्पष्ट किया जा सकता है जैसा कि समुद्र के ऊपर दिखाए गए मलबे को देखा जा सकता है। समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवतः हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समुंद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं। प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है। कई सामर्थ्य ज़हरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं। इस तरह ज़हरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं। कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुई रसायनिक प्रक्रिया के ज़रिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं। जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी.

देखें जलवायु परिवर्तन और समुद्री प्रदूषण

सिंधु जल समझौता

सिंधु जल संधि पानी के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है। इस सन्धि में विश्व बैंक (तत्कालीन पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक) ने मध्यस्थता की। द गार्डियन, Monday 3 June 2002 01.06 BST इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अनुसार, तीन "पूर्वी" नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को, तथा तीन "पश्चिमी" नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंतरण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े। 1960 में हुए संधि के अनुसमर्थन के बाद से भारत और पाकिस्तान में कभी भी "जलयुद्ध" नहीं हुआ। हर प्रकार के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है। Strategic Foresight Group, --> इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20% का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और सिंधु जल समझौता

संधारणीय विकास लक्ष्य

संयुक्त राष्ट्र संघ के संधारणीय विकास लक्ष्य का आधिकारिक अंग्रेजी प्रतीक (लोगो) संधारणीय विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals, संक्षेपारित रूप में SDG) भविष्य के अंतरराष्ट्रीय विकास संबंधित लक्ष्यों के सेट हैं। संधारणीय विकास के लिए उनको संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाया गया है और वैश्विक लक्ष्यों के समान प्रचारित किया गया है। 2015 के अंत में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के निरस्त हो जाने पर ये उनको प्रतिस्थापित कर रहे हैं। यह लक्ष्य 2015 से 2030 तक चलेगा। उन लक्ष्यों के लिए 17 लक्ष्य और 169 विशिष्ट लक्ष्य हैं। .

देखें जलवायु परिवर्तन और संधारणीय विकास लक्ष्य

सेण्टिनल-1ए

यूरोप ने जलवायु परिवर्तन पर निगरानी रखने के लिए 03 अप्रैल 2014 को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेन्सी के कौरु, फ्रेंच गुयाना से सोयूज रॉकेट सेण्टिनल-1ए नामक उपग्रह को लॉंच किया गया। सेण्टिनल-1बी को लॉंच करने का लक्ष्य रखा गया है। सेण्टिनल-1ए उच्च प्रौद्योगिकी उपग्रहों के समूह का प्रथम उपग्रह है यह उपग्रह ईएसए और यूरोपीय संघ (ईयू) की यूरोपियन डॉलर 5.19 अरब की कॉपरनिकस परियोजना का एक संयुक्त उपक्रम है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और सेण्टिनल-1ए

हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी

हाइड्रोजन के उत्पादन एवं उपयोग से सम्बन्धित समस्त तकनीकें हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आतीं हैं। हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का अनेकानेक क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है या हो सकता है। कुछ हाइद्रोजन प्रौद्योगिकियाँ कार्बन न्यूट्रल हैं तथा इस कारण जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा भविष्य की हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। .

देखें जलवायु परिवर्तन और हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी

हिमानी

काराकोरम की बाल्तोरो हिमानी हिमानी या हिमनद (अंग्रेज़ी Glacier) पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को कहते है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है। ध्यातव्य है कि यह हिमराशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है। वर्ष दर वर्ष हिम के एकत्रण से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम (Ice) के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है। पृथ्वी पर ९९% हिमानियाँ ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है। ये हिमानियाँ समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी (freshwater) का सबसे बड़ा भण्डार हैं और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं। हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थलरूप भी निर्मित किये जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थलरूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थलरूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहाँ आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवी सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं। हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं और इसीलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल परिवर्तन का बेहतर सूचक माना जाता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और हिमानी

हिमालय

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)। .

देखें जलवायु परिवर्तन और हिमालय

हिमालय के हिमनद

काराकोरम की बाल्तोरो हिमानी हिमालय के हिमनद से तात्पर्य उन हिमनदों से है जो हिमालय पर्वत श्रेणी पर पाए जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद हिमालय पर सबसे ज्यादा बर्फ़ पायी जाती है और हिमालय के हिमनद लगभग ४०,००० वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र पर फैले हैं और इनकी संख्या लगभग १०,००० है। इनमें से ज्यादातर हिमनद सर्क हिमनद हैं। हिमालय की श्रेणी में ही ध्रुवीय क्षेत्रों के आलावा अन्य कई बड़े हिमनद पाए जाते हैं। बाल्तोरो, बियाफो, सियाचिन, गंगोत्री और जेमू इत्यादि ऐसे ही हिमनद हैं। बियाफो हिमनद हिस्पर के साथ संयुक्त रूप से विश्व का सबसे लम्बा हिमनद तंत्र (ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर) बनाता है। इन हिमनदों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये वर्ष भर बहने वाली हिमालयी नदियों के स्रोत हैं। इसके आलावा ये हिमनद पर्यावरणीय-पर्यटन (इको-टूरिज्म) और ट्रेकिंग के लिये विश्व-विख्यात हैं। चूँकि हिमालय का जलवायु के नियंत्रण में काफी महत्व है और हिमनद जलवायु परिवर्तन के सूचक के तौर पर माने जाते हैं, हिमालय के हिमनदों का जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से काफ़ी अध्ययन हुआ है। इन अध्ययनों के निष्कर्ष मिश्रित हैंऔर अभी भी ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि जलवायु परिवर्तन का हिमालय के हिमनदों पर क्या प्रभाव पड़ा है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और हिमालय के हिमनद

हिमालय की पारिस्थितिकी

जैवविविधता के लिये प्रसिद्द फूलों की घाटी का एक दृश्य हिमालय की पारिस्थितिकी अथवा हिमालयी पारितंत्र जो एक पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है, भारत और विश्व के कुछ विशिष्ट पारितंत्रों में से एक है। हिमालय पर्वत तंत्र विश्व के सर्वाधिक नवीन और विशाल पर्वतों में से एक है। ध्रुवीय प्रदेशों के आलावा यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा हिम-भण्डार है और यहाँ करीब 1500 हिमनद पाए जाते हैं जो हिमालय के लगभग 17% भाग को ढंके हुए हैं। हिमालय पर्वत पर यहाँ की विशिष्ट जलवायवीय और भूआकृतिक विशेषताओं की वजह से कुछ विशिष्ट पारिस्थिक क्षेत्र पाए जाते हैं जो अपने में अद्वितीय हैं। उदाहरण के लिये फूलों की घाटी एक ऐसा ही जैवविविधता का केन्द्र है। पूर्वी हिमालय में वर्षा की अधिकता और अपेक्षा कृत नम जलवायु ने एक अलग ही प्रकार का पारितंत्र विकसित किया है। अपने विविध जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की जैवविविधता और इसके भौगोलिक प्रतिरूप के कारण हिमालयी पारितंत्र एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नवीन वलित पर्वत होने के कारण अभी भी हिमालय क्षेत्र में भूअकृतिक स्थिरता नहीं आयी है और यह भूकम्पीय रूप से संवेदन शील तथा भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्र में आता है। जलवायवीय रूप से भी यहाँ के हिमनदों के निवर्तन कि पुष्टि की गई है जो कि मानव द्वारा परिवर्धित जलवायु परिवर्तन का परिणाम माना जाता है। उपरोक्त कारणों से हिमालयी पारिस्थितकी अपने परिवर्तनशील होने के कारण भी महत्वपूर्ण है। इस विशिष्ट प्राकृतिक पर्यावरण में मनुष्य की क्रियाओं द्वारा एक अनन्य प्रकार का मानव पारितंत्र भी विकसित हुआ है। हिमालय की मानव पारिस्थितिकी में हुए अध्ययन यह साबित करते हैं की यहाँ मनुष्य और प्रकृति के बीच की अन्योन्याश्रयता ने एक विशिष्ट मानव पारिस्थितिकी निर्मित की है और हिमालय के परिवर्तनशील स्थितियों के कारण इस पर निर्भर मानव जनसंख्या भी बदलावों के प्रति संवेदनशील है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी पारितंत्र एशिया के 1.3 बिलियन लोगों की आजीविका पर प्रभाव डालता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और हिमालय की पारिस्थितिकी

जल संसाधन

जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का ९७.५% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल २.५% ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है। मीठा पानी एक नवीकरणीय संसाधन है क्योंकि जल चक्र में प्राकृतिक रूप से इसका शुद्धीकरण होता रहता है, फिर भी विश्व के स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही हैं, निकट भविष्य मैं इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है। पानी के प्रयोक्ताओं के लिए जल संसाधनों के आवंटन के लिए फ्रेमवर्क (जहाँ इस तरह की एक फ्रेमवर्क मौजूद है) जल अधिकार के रूप में जाना जाता है। आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे संबंधित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। .

देखें जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चाएँ प्रारंभ हुईं। १९७२ मे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पहला सम्मेलन आयोजित किया गया। तय हुआ कि प्रत्येक देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए घरेलू नियम बनाएगा। इस आशय की पु्ष्टि हेतु १९७२ में ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन किया गया तथा नैरोबी को इसका मुख्यालय बनाया गया। .

देखें जलवायु परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन सम्मेलन

ज्वालामुखी

तवुर्वुर का एक सक्रिय ज्वालामुखी फटते हुए, राबाउल, पापुआ न्यू गिनिया ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उपस्थित ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि बाहर आते हैं। वस्तुतः यह पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग (rupture) होता है जिसके द्वारा अन्दर के पदार्थ बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी द्वारा निःसृत इन पदार्थों के जमा हो जाने से निर्मित शंक्वाकार स्थलरूप को ज्वालामुखी पर्वत कहा जाता है। ज्वालामुखी का सम्बंध प्लेट विवर्तनिकी से है क्योंकि यह पाया गया है कि बहुधा ये प्लेटों की सीमाओं के सहारे पाए जाते हैं क्योंकि प्लेट सीमाएँ पृथ्वी की ऊपरी परत में विभंग उत्पन्न होने हेतु कमजोर स्थल उपलब्ध करा देती हैं। इसके अलावा कुछ अन्य स्थलों पर भी ज्वालामुखी पाए जाते हैं जिनकी उत्पत्ति मैंटल प्लूम से मानी जाती है और ऐसे स्थलों को हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। भू-आकृति विज्ञान में ज्वालामुखी को आकस्मिक घटना के रूप में देखा जाता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन लाने वाले बलों में इसे रचनात्मक बल के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि इनसे कई स्थलरूपों का निर्माण होता है। वहीं, दूसरी ओर पर्यावरण भूगोल इनका अध्ययन एक प्राकृतिक आपदा के रूप में करता है क्योंकि इससे पारितंत्र और जान-माल का नुकसान होता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और ज्वालामुखी

जैव संरक्षण

जैव संरक्षण, प्रजातियां, उनके प्राकृतिक वास और पारिस्थितिक तंत्र को विलोपन से बचाने के उद्देश्य से प्रकृति और पृथ्वी की जैव विविधता के स्तरों का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह विज्ञान, अर्थशास्त्र और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के व्यवहार से आहरित अंतरनियंत्रित विषय है। शब्द कन्सर्वेशन बॉयोलोजी को जीव-विज्ञानी ब्रूस विलकॉक्स और माइकल सूले द्वारा 1978 में ला जोला, कैलिफ़ोर्निया स्थित कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में शीर्षक के तौर पर प्रवर्तित किया गया। बैठक वैज्ञानिकों के बीच उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई, लुप्त होने वाली प्रजातियों और प्रजातियों के भीतर क्षतिग्रस्त आनुवंशिक विविधता पर चिंता से उभरी.

देखें जलवायु परिवर्तन और जैव संरक्षण

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। वायु प्रदूषण के कारण मौतें और श्वास रोग.

देखें जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण

विज्ञान एक्‍सप्रेस

विज्ञान एक्‍सप्रेस (Science Express) एक रेल पर सवार बच्चों के लिए एक गतिशील वैज्ञानिक प्रदर्शनी है जो पूरे भारत में यात्रा करती है। यह परियोजना ३० अक्टूबर २००७ को सफदरजंग रेलवे स्टेशन, दिल्ली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि ये सभी के लिए खुला है, ये प्रदर्शनी मुख्य रूप से छात्रों और शिक्षकों को लक्षित करती हैं। ट्रेन के नौ चरण हो चुके हैं और तीन विषयों पर प्रदर्शन किया गया है। २००७ से २०११ के पहले चार चरणों को साइंस एक्सप्रेस कहा जाता था और ये माइक्रो और मैक्रो कॉस्मॉस पर केंद्रित था। २०१२ से २०१४ के अगले तीन चरणों में जैव विविधता विशेष के रूप में प्रदर्शन को फिर से तैयार किया गया। २०१५ से २०१७ के आठवें और नौवें चरण को जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बदल दिया गया था। .

देखें जलवायु परिवर्तन और विज्ञान एक्‍सप्रेस

वैश्वीकरण

Puxi) शंघाई के बगल में, चीन. टाटा समूहहै। वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात, व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण.

देखें जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण

गूगल

यह लेख गूगल नामक संस्था के संबंद्ध में है। सर्च इंजन के लिए, गूगल सर्च देखें। अन्य के लिए, देखें। गूगल एक अमेरीकी बहुराष्ट्रीय सार्वजनिक कम्पनी है, जिसने इंटरनेट सर्च, क्लाउड कम्प्यूटिंग और विज्ञापन तंत्र में पूँजी लगायी है। यह इंटरनेट पर आधारित कई सेवाएँ और उत्पाद बनाता तथा विकसित करता है और यह मुनाफा मुख्यतया अपने विज्ञापन कार्यक्रम ऐडवर्ड्स (AdWords) से कमाती है। यह कम्पनी स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से पी॰एच॰डी॰ के दो छात्र लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन द्वारा स्थापित की गयी थी। इन्हें प्रायः "गूगल गाइस" के नाम से सम्बोधित किया जाता है। सितम्बर 4, 1998 को इसे एक निजि-आयोजित कम्पनी में निगमित किया गया। इसका पहला सार्वजनिक कार्य/सेवा 19 अगस्त 2004 को प्रारम्भ हुआ। इसी दिन लैरी पेज, सर्गेई ब्रिन और एरिक स्ख्मिड्ट ने गूगल में अगले बीस वर्षों (2024) तक एक साथ कार्य करने की रजामंदी की। कम्पनी का शुरूआत से ही "विश्व में ज्ञान को व्यवस्थित तथा सर्वत्र उपलब्ध और लाभप्रद करना" कथित मिशन रहा है। कम्पनी का गैर-कार्यालयीन नारा, जोकि गूगल इन्जीनियर पौल बुखीट ने निकाला था— "डोन्ट बी इवल (बुरा न बनें)"। सन् 2006 से कम्पनी का मुख्यालय माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया में है। गूगल विश्वभर में फैले अपने डाटा-केन्द्रों से दस लाख से ज़्यादा सर्वर चलाता है और दस अरब से ज़्यादा खोज-अनुरोध तथा चौबीस उपभोक्ता-सम्बन्धी जानकारी (डाटा) संसाधित करता है। गूगल की सन्युक्ति के पश्चात् इसका विकास काफ़ी तेज़ी से हुआ है, जिसके कारण कम्पनी की मूलभूत सेवा वेब-सर्च-इंजन के अलावा, गूगल ने कई नये उत्पादों का उत्पादन, अधिग्रहण और भागीदारी की है। कम्पनी ऑनलाइन उत्पादक सौफ़्ट्वेयर, जैसे कि जीमेल ईमेल सेवा और सामाजिक नेटवर्क साधन, ऑर्कुट और हाल ही का, गूगल बज़ प्रदान करती है। गूगल डेस्कटॉप कम्प्युटर के उत्पादक सोफ़्ट्वेयर का भी उत्पादन करती है, जैसे— वेब ब्राउज़र गूगल क्रोम, फोटो व्यवस्थापन और सम्पादन सोफ़्ट्वेयर पिकासा और शीघ्र संदेशन ऍप्लिकेशन गूगल टॉक। विशेषतः गूगल, नेक्सस वन तथा मोटोरोला ऍन्ड्रोइड जैसे फोनों में डाले जाने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम ऍन्ड्रोइड, साथ-ही-साथ गूगल क्रोम ओएस, जो फिलहाल भारी विकास के अन्तर्गत है, पर सीआर-48 के मुख्य ऑपरेटिंग सिस्टम के रूप में प्रसिद्ध है, के विकास में अग्रणी है। एलेक्सा google.com को इंटरनेट की सबसे ज़्यादा दर्शित वेबसाइट बताती है। इसके अलावा गूगल की अन्य वेबसाइटें (google.co.in, google.co.uk, आदि) शीर्ष की सौ वेबासाइटों में आती हैं। यही स्थिती गूगल की साइट यूट्यूब और ब्लॉगर की है। ब्रैंडज़ी के अनुसार गूगल विश्व का सबसे ताकतवर (नामी) ब्राण्ड है। बाज़ार में गूगल की सेवाओं का प्रमुख होने के कारण, गूगल की आलोचना कई समस्याओं, जिनमें व्यक्तिगतता, कॉपीराइट और सेंसरशिप शामिल हैं, से हुई है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और गूगल

कार्बन कर

कार्बन कर एक अप्रत्यक्ष कर है। यह उन आर्थिक गतिविधियों पर लगाया जाता है जिनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनजीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके द्वारा सरकारें अपना राजकोष भी संवर्धित करती हैं। इस कर से दो अन्य कर भी संबंधित हैं- उत्सर्जन कर और ऊर्जा कर। उत्सर्जन कर जहाँ प्रत्येक टन हरितगृह गैस के उत्सर्जन पर लगने वाला कर है, वहीं ऊर्जा कर ऊर्जा से संबंधित वस्तुओं पर आरोपित कर है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और कार्बन कर

क्योटो प्रोटोकॉल

क्योटो ग्रीनहाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन में कटौती करने का इरादा है। उद्देश्य है,"स्थिरीकरण और ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता के पुनर्निर्माण से जलवायु प्रणाली पर मानवजीवन के हानिकारक प्रभाव को रोकना." क्योटो जलवायु-परिवर्तन सम्मेलन का उद्देश्य था कानूनी तौर पर एक बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता स्थापन करना, जिससे सभी भाग लेने वाले राष्ट्रों ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे से निपटने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए खुद प्रतिबद्ध हुए.इस लक्ष्य के शिखर सम्मेलन में वर्ष 2012 में 1990 के स्तर से 5.2% की औसत कम करने पर सहमत हुए.

देखें जलवायु परिवर्तन और क्योटो प्रोटोकॉल

कृषि

कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .

देखें जलवायु परिवर्तन और कृषि

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन ऐसे वन क्षेत्र हैं जो भूमध्य रेखा के दक्षिण या उत्तर में लगभग 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं। ये एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, और प्रशांत द्वीपों पर पाए जाते हैं। विश्व वन्यजीव निधि के बायोम वर्गीकरण के भीतर उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन को उष्णकटिबंधीय वर्षावन वन (या उष्णकटिबंधीय नम चौड़े पत्ते के वन) का एक प्रकार माना जाता है और उन्हें विषुवतीय सदाबहार तराई वन के रूप में भी निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस जलवायु क्षेत्र में न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा 175 cm (69 इंच) और 200 cm (79 इंच) के बीच होती है। औसत मासिक तापमान वर्ष के सभी महीनों के दौरान 18 °से.

देखें जलवायु परिवर्तन और उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन