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जर्मन भाषा का साहित्य

सूची जर्मन भाषा का साहित्य

जर्मन साहित्य, संसार के प्रौढ़तम साहित्यों में से एक है। जर्मन साहित्य सामान्यत: छह-छह सौ वर्षों के व्यवधान (600, 1200, 1800 ई.) में विभक्त माना जाता है। प्राचीन काल में मौखिक एवं लिखित दो धाराएँ थीं। ईसाई मिशनरियों ने जर्मनों को रुने (Rune) वर्णमाला दी। प्रारंभ में (900 ई.) ईसामसीह पर आधारित साहित्य (अनुवाद एवं चंपू) रचा गया। प्रारंभ में वीरकाव्य (एपिक) मिलते हैं। स्काप्स का "डासहिल्डे ब्रांडस्ल्डि", (पिता पुत्र के बीच मरणांतक युद्धकथा) जर्मन बैलेड साहित्य की उल्लेख्य कृति है। ओल्ड टेस्टामेंट के अनेक अनुवाद हुए। जर्मन साहित्य के विभिन्न काल ImageSize .

सामग्री की तालिका

  1. 5 संबंधों: पञ्चतन्त्र, फ़ाउस्ट (गेटे), फ्रेडरिक महान्, योहान वुल्फगांग फान गेटे, आस्ट्रियाई साहित्य

पञ्चतन्त्र

'''पंचतन्त्र''' का विश्व में प्रसार संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं॰ विष्णु शर्मा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र लगभग ८० वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है.

देखें जर्मन भाषा का साहित्य और पञ्चतन्त्र

फ़ाउस्ट (गेटे)

फ़ाउस्ट (Faust) जर्मनी के महान कवि योहान वुल्फगांग फान गेटे द्वारा रचित दुखान्त नाटक है। यह दो अंकों में है। इसे जर्मन साहित्य की महान कृति माना जाता है। यह गेटे की सर्वश्रेष्ठ कृति है। जर्मनी में मंचित होने पर इसे देखने वाल की संख्या सर्वाधिक है। गेटे ने इसके प्रथम अंक का आरम्भिक संस्करण सन् १८०६ में पूरा किया था और दूसरा भाग १९३२ में। इसी वर्ष उसकी मृत्यु भी हुई। .

देखें जर्मन भाषा का साहित्य और फ़ाउस्ट (गेटे)

फ्रेडरिक महान्

फ्रेडरिक द्वितीय फ्रेडरिक द्वितीय महान् (Frederick II; जर्मन: Friedrich; १७१२ - १७८६ ई.) १७४० से १७८६ तक प्रशा का शासक था। वह अपने सैनिक विजयों, प्रशा की सेना की पुनर्रचना करने, प्रशा में कला और प्रबोध (इन्लाइटनेण्ट) को प्रोत्साहित करने और सप्तवर्षीय युद्ध में अनेकानेक कठिनाइयों के रहते हुए भी विजय प्राप्त करने के लिये प्रसिद्ध है। प्रशा की जनता उसे 'फ्रेडरिक महान (Friedrich der Große) कहने लगी और उसे 'डर अल्टे फ्रिट्ज' (Der Alte Fritz ("Old Fritz")) उपनाम दिया। .

देखें जर्मन भाषा का साहित्य और फ्रेडरिक महान्

योहान वुल्फगांग फान गेटे

गेटे योहान वुल्फगांग फान गेटे (Johann Wolfgang von Goethe) (२८ अगस्त १७४९ - २२ मार्च १८३२) जर्मनी के लेखक, दार्शनिक‎ और विचारक थे। उन्होने कविता, नाटक, धर्म, मानवता और विज्ञान जैसे विविध क्षेत्रों में कार्य किया। उनका लिखा नाटक फ़ाउस्ट (Faust) विश्व साहित्य में उच्च स्थान रखता है। गोथे की दूसरी रचनाओं में "सोरॉ ऑफ यंग वर्टर" शामिल है। गोथे जर्मनी के महानतम साहित्यिक हस्तियों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में विमर क्लासिसिज्म (Weimar Classicism) नाम से विख्यात आंदोलन की शुरुआत की। वेमर आंदोलन बोध, संवेदना और रोमांटिज्म का मिलाजुला रूप है। जोहान वुल्फगांग गेटे उन्होने कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। गेटे ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् के बारे में कहा था- .

देखें जर्मन भाषा का साहित्य और योहान वुल्फगांग फान गेटे

आस्ट्रियाई साहित्य

जर्मन साहित्य से मूल का नाता होते हुए भी आस्ट्रियन साहित्य की निजी जातिगत विशेषताएँ हैं; जिनके निरूपण में आस्ट्रिया की भौगोलिक तथा ऐतिहासिक परिस्थितियों के अतिरिक्त काउंटर रिफ़ार्मेशन (16वीं शताब्दी के प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के सुधारवादी आंदोलन के विरुद्ध यूरोप में ईसाई धर्म के कैथॉलिक संप्रदाय के पुररुत्थान के लिए हुआ आंदोलन) और पड़ासी देशों से घनिष्ठ, किंतु विद्वेषपूर्ण संबंधों का भी हाथ रहा। इसके साथ-साथ आस्ट्रिया पर इतालीय तथा स्पेनी संस्कृतियों का भी गहरा प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप यह देश एक अति अलंकृत साहित्य एवं संस्कृति का केंद्र बन गया। काउंटर रिफ़र्मेशन काल में वीनीज़ जनता का राष्ट्रीय स्वभाव एवं मनोवृत्तियाँ सजग होकर निखर आई थीं। इस चेतना ने आस्ट्रियाई साहित्य के जर्मन चोले को उतार फेंका। भावुक, हास्यप्रिय एवं सौंदर्यप्रेमी वोनीज़ जनता प्रकृतिस, संगीत तथा सभी प्रकार की दर्शनीय भव्यता की पुजारी है। उसकी कलादृष्टि बहुत पैनी है। जीवन की दु:खदायी परिस्थितियों से वह दूर भागती है। उसके आकर्षण और तन्मयता के केंद्र हैं जीवन के सुखद राग रंग। आत्मा परमात्मा, जीवन मरण, लोक परलोक के गंभीर दार्शनिक विवेचन में वह विरक्त है। फिर भी वह अतिशयोक्ति से दूर रहकर समन्वय और संतुलन में आस्था रखती है। प्रथम महायुद्ध के पूर्व और उपरांत जीवन के प्रति यह घोर आसक्ति आस्ट्रिया के साहित्य में प्रवाहित थी, किंतु द्वितीय महायुद्ध ने उसे बहुत कुछ चकित और कुंठित कर दिया है। फिर भी आस्ट्रियाई साहित्य आज तक भी उदारमना और मानवतावादी है। मध्ययुग में आस्ट्रिया के कैरिंथिया और स्टायर प्रदेशों में भजन और वीरकाव्य साहित्य में प्रमुख रहे। वीरकाव्य को विएना के राजदरबार में प्रश्रय मिला। किंतु काव्य दरबारी नहीं हुआ। मध्यकालीन राष्ट्रीय महाकाव्यों के निर्माण में आस्ट्रिया प्रमुख के साथ-साथ स्टायर तथा टीरोल प्रदेशों ने भी विशेष योग दिया। वाल्तेयर फ्ऱॉन डेयर फ़ोगलवीड और नीथार्ट इस युग के महारथी महाकाव्यकार हुए। मध्ययुगीन महाकाव्य के काल को सम्राट् माक्सीमिलियन प्रथम (मृत्यु सन्‌ 1519 ई.) ने अनावश्यक रूप से विलंबित किया, यद्यपि साहित्य में मानवतावाद की चेतना जगाने का श्रेय भी उसी को है। मध्ययुग का अंत होते न होते आस्ट्रियाई साहित्य पर यथार्थवाद और व्यंग्य का भी रंग चढ़ने लगा था। निरंतर धार्मिक संघर्षों, आंतरिक तथा विदेशी राजनीतिक कठिनाइयों के कारण आस्ट्रियाई साहित्य में निष्क्रियता के एक दीर्घयुग का सूत्रपात हुआ। तत्पश्चात्‌ अलंकृत शैली के युग ने जन्म लिया जो दक्षिण जर्मनी की देन थी और जो साहित्य, स्थापत्य, मूर्ति, चित्र, संगीत आदि सभी ललित कलाओं पर छा गई। धार्मिक क्षेत्र में यह जेसुइट्स की प्रभुता का युग था और राजनीतिक क्षेत्र में सम्राटों के कट्टर स्वेच्छाचारी शासन का काल। यह स्थिति स्पेन के प्रभाव के परिणामस्वरूप हुई। नाटक पर इतालीय प्रभाव पड़ा जो 19 वीं शताब्दी तक रहा। इसी प्रभाव के कारण आस्ट्रियाई नाटक प्रथम बार अपने साहित्यिक रूप में उभरकर आया। 18वीं शताब्दी के मध्य में आफ़क्लेयरुंग (ज्ञानोदय) आंदोलन आस्ट्रिया में प्रविष्ट हुआ, जिसने उत्तरी और दक्षिणी जर्मनी के काउंटर रिफ़र्मेंशन से चले आए साहित्यिक मतभेदों को कम किया। इस समन्वयवादी प्रवृत्ति का ऐतिहासिक प्रतिनिधि ज़ोननफैल्स (सन्‌ 1733-1817 ई.) है, जिसके साहित्य में स्थायी तत्व का अभाव होते हुए भी उसकी सदाशयता महत्वपूर्ण है। इस आंदोलन का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम सन्‌ 1776 ई.

देखें जर्मन भाषा का साहित्य और आस्ट्रियाई साहित्य

जर्मन साहित्य के रूप में भी जाना जाता है।