गौड़ स्वामी (उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध) काशी के विद्वान संन्यासी थे। वे व्याकरण, न्याय, मीमांसा, वेदान्त आदि के परम विद्वान थे। उनका मूलनाम भगवानदत्त था और गुरु द्वारा दिया गया नाम दीक्षानाम तारक ब्रह्मानन्द सरस्वती था। गौड़ स्वामीजी का जन्म पंजाब के पटियाला रियासत के ‘शनोवर’ नामक गाँव में एक मध्यमवर्गीय गौड़ ब्राह्मण के घर में हुआ था। इनके पिता का नाम था–जयगोपाल मिश्र। बालक का नाम था भगवानदत्त। बड़े होने पर पढ़ने में इनकी अभिरुचि रही। पिताजी से आरम्भिक शिक्षा ग्रहण की। माता-पिता ने इन्हें बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोसा। 12 साल की उम्र में ही इनका विवाह कर दिया। पिताजी की बिना सूचित किए ही ये पढ़ने के लिए घर से निकल पड़े और होशियारपुर जिले में ‘मदूद’ गाँव के निवासी पण्डित केशवराम सारस्वत से तीन-चार वर्षों तक पढ़ते रहे। केशवरामजी ने काशी में विद्याभ्यास किया था और प्रसिद्ध वैयाकरण भैरव मिश्र (परिभाषेन्दुशेखर की भैरवी व्याख्या के कर्त्ता) से व्याकरण का अध्ययन किया था। यहाँ आकर काव्य, नाटक, पुराण आदि के समझने की योग्यता इन्होंने प्राप्त कर ली। ‘विचारसागर’ रचयिता निश्चलदासजी ने भी आरम्भ में इन्हीं से संस्कृत का अध्ययन किया था। भगवानदत्त अब प्रौढ़ शिक्षा के निमित्त काशी आए और यहाँ के वरिष्ठ पण्डितों से नानाशास्त्रों का अध्ययन अनेक वर्षों तक करते रहे। इस युग के प्रख्यात वैयाकरण पं.
1 संबंध: स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती।
स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती (1820 ई -) काशी के पण्डित (विद्वान) थे जिनके साथ 16 नवम्बर, 1869 ई. स्वामी दयानन्द सरस्वती का शास्त्रार्थ हुआ था। उनका जन्म सन् 1820 ई. में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के वाडी नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता पं.
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