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3 संबंधों: रोमन गृहयुद्ध, लीबिया गृहयुद्ध (2014-वर्तमान), गृहयुद्ध।
रोमन गृहयुद्ध
प्राचीन रोम में कई नागरिक युद्ध थे, विशेष रूप से रोमन गणराज्य के अंतिम दौर पर। इनमें से सबसे प्रसिद्ध 40 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर और पोम्पी के नेतृत्व में सीनेट अभिजात वर्ग में, और आगे चल कर सीज़र के उत्तराधिकारियों और ओप्टिमाते गुट के बीच, इसके अलावा 30 ईसा पूर्व में ओक्ताविस और मार्क एंटनी के बीच युद्ध रहे हैं। यहाँ प्राचीन रोम में गृह युद्ध की सूची है: .
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लीबिया गृहयुद्ध (2014-वर्तमान)
दूसरा लीबिया गृहयुद्ध, लीबिया के राज्यक्षेत्र में नियंत्रण को लेकर कई प्रतिद्वंद्वी समूहों के बीच चल रहा संघर्ष है। यह संघर्ष, 2014 में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित "लीबिया सरकार" जिसे "टोब्रुक सरकार" के रूप से भी जाना जाता है, और राजधानी त्रिपोली से नियंत्रित प्रतिद्वंद्वी जनरल नेशनल कांग्रेस (जीएनसी), सरकार जिसे "राष्ट्रीय मुक्ति सरकार" भी कहा जाता है, के बीच चल रही हैं। दिसंबर 2015 में लीबिया के राजनीतिक समझौते (एलपीए) पर हस्ताक्षर किए गए। यह एलपीए समझौता दीर्घावधि से चले आ रहे प्रतिद्वंद्वी समूहों को राष्ट्रीय समझौते की सरकार के रूप में एकजुट करने के लिए लंबी वार्ता का परिणाम था। हालांकि राष्ट्रीय समझौते की सरकार अब भी कार्य कर रही है, किन्तु दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य विशिष्ट विवरण अभी भी स्पष्ट नहीं है। प्रतिनिधि परिषद (सीओडी) जिसे प्रतिनिधि सभा के नाम से भी जानते हैं, पूर्वी लीबिया में सशक्त रूप से है, तथा इसकी वफादारी जनरल खलीफा हफ्तार के नेतृत्व में लीबिया नेशनल आर्मी के प्रति है मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात ने भी हवाई हमलों के द्वारा इनका समर्थन किया है। जीएनसी, जोकि पश्चिमी लीबिया में आधारित है जिसे "लीबिया डॉन", कतर, सूडान और तुर्की, के द्वारा समर्थन प्राप्त हैं,शुरू में 2014 के चुनाव के परिणामों को स्वीकार कर लिया था, लेकिन बाद में ख़ारिज कर दिया जिसका कारण सुप्रीम संवैधानिक कोर्ट के लीबिया के चुनाव सम्बन्धित एक संशोधन को निरस्त कर उन्हें खारिज करने का आदेश था। संवैधानिक संशोधनों में विवाद के कारण, प्रतिनिधि सभा (HoR), ने त्रिपोली में जीएनसी से कार्यालय लेने से इनकार कर दिया, जोकि मिसराता के पश्चिमी तटीय शहर के शक्तिशाली लड़ाकों द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था। इसके बजाय, HoR टोब्रुक में अपनी संसद की स्थापना की। इन के अलावा, यहाँकई छोटे प्रतिद्वंद्वी समूह भी हैं: अंसार अल-शरिया (लीबिया) के नेतृत्व में बेनगाजी क्रांतिकारियों की इस्लामी शूरा काउंसिल, जिन्हें जीएनसी का समर्थन प्राप्त है; इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक और लेवांत (आईएसआईएल); साथ ही टुअरेग घाट के लड़ाके जोकि दक्षिण पश्चिम में रेगिस्तान क्षेत्रों को नियंत्रित करते हैं; मिसराता जिला में उपस्थित स्थानीय बल, जोकि बानी वालिद और तावरगा शहर को नियंत्रित करते हैं। इनके आलावा कई छोटे सशस्त्र समूहों है जोकि अलग-अलग पक्ष बदलते रहते हैं। हाल के महीनों में कई राजनीतिक घटनाक्रम किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2015 और 31 मार्च 2016 में संघर्ष विराम की मध्यस्थता की, संयुक्त राष्ट्र समर्थित नए "एकता सरकार" के नेता त्रिपोली में पहुंचे। 5 अप्रैल को प्रतिद्वंद्वी जीएनसी सरकार ने घोषणा की है कि वह सरकार संचालन का कार्य निलंबित कर नई एकता सरकार को सत्ता सौंप देगा, जिसे आधिकारिक तौर पर "राष्ट्रीय समझौते की सरकार" का नाम दिया गया, हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हैं कि नई व्यवस्था सफल होगी। 22 अगस्त तक, एकता सरकार को अभी भी प्रतिनिधि सभा की मंजूरी प्राप्त नहीं हैं जिसके अधिकांश संसद सदस्यो ने विश्वास प्रस्ताव में इसके खिलाफ मतदान किया था। .
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गृहयुद्ध
स्पेनी गृहयुद्ध के दौरान दो सैनिक अपने ज़ख़्मी साथी को ले जाते हुए श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान कुछ लोग जो अपने घर या सम्बन्धी खो बैठे गृहयुद्ध एक ही राष्ट्र के अन्दर संगठित गुटों के बीच में होने वाले युद्ध को कहते हैं। कभी-कभी गृह युद्ध ऐसे भी दो देशों के युद्ध को कहा जाता है जो कभी एक ही देश के भाग रहे हों। गृहयुद्ध में लड़ने वाले गिरोहों के ध्येय भिन्न प्रकार के होते हैं। कुछ पूरे देश पर नियंत्रण पाकर अपनी मनचाही व्यवस्था लागू करना चाहते हैं, कुछ देश की सरकारी नीतियाँ बदलना चाहते हैं और कुछ देश को विभाजित करके अपने क्षेत्र को स्वतन्त्र बनाना चाहते हैं। गृहयुद्धों अक्सर बहुत घातक होते हैं - लाखों मर सकते हैं, करोड़ों बेघर हो सकते हैं, देश में दशकों तक चलने वाली भयंकर ग़रीबी और भुखमरी फैल सकती है और देश का उद्योग लम्बे अरसे के लिए चौपट हो सकता है। बर्मा, अंगोला और अफ़्ग़ानिस्तान ऐसे देश हैं जिनका भविष्य कभी बहुत उज्वल माना जाता था लेकिन गृहयुद्ध की चपेट में आने से यह दुनिया के सबसे पिछड़े और असुरक्षित देशों में गिने जाने लगे। गृहयुद्धों के दौरान अक्सर विदेशी ताक़तें भी देश को कमज़ोर पाकर उसमें हस्तक्षेप करने लगती हैं, जैसा की १९७५-१९९० तक चलने वाले लेबनान के गृहयुद्ध में हुआ।, Marie Olson Lounsbery, Frederic Pearson, University of Toronto Press, 2009, ISBN 978-0-8020-9672-2 .